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नख द्वितीया के चन्द्रमा के समान बड़े ही मनोहर और भव्य जान पड़ते थे। उसको जांध केले के स्तंभ को तरह सुकोमल और कामोद्दीपक थी। वह रानी अपने मनोरम करिप्रदेश की सुन्दरता से सिंह के कटि प्रदेश की शोभा को हरण कर लेती थी। यदि ऐसान होता तो सिंह को गुफाओं की शरण नहीं लेनी पड़ती। उसी नदी गोल, नोहर गवं गम्भीर थी। वह काम रस (जल) से भरी हुई चायिका की भांति प्रतीत होती थीं। उसके कूच बिल्य फल के समान कठोर थे। वह कामीजनों के हृदय को जीतने वाली थी। उन कुचों के मध्य रोम राशि ऐसी प्रतीत होती थी मानों दोनों के विरोध को दूर करने के लिए सीमा निर्धारित कर रही हो। रान के हाथों की दोनों हथेलियां लाल कोमल और सुन्दर थीं। उन पर मछली ध्वजा आदि के ग्राकर्षक चिह्न बने हुए थे । वह अपनी मुखाकृति से आकाश के चन्द्रमा को भी लज्जित करती थी। इसीलिए चन्द्रमा महादेवी को सेवा करने में लग गया था। रानी की नाक इतनी सुन्दर थी कि तोते की चोचों की सारी सुन्दरता जाती रही। तोते विचारे लज्जा से अवनत हो वन में जा पहुंचे थे। वह अपनी सुमघर वाणी से पिक की वाणी भी जीत चको थी। संभवतः यही कारण है कि कोयलों ने श्यामवर्ण धारण कर लिया है। उसके विशाल नेत्र हिरणी के नेत्रों को भी मात करते थे । यही कारण है कि हिरणियों ने अपना बसेरा दन में कर लिया है। रानी के दोनों कान मनोहर और वर्ण-भूषणों से शोभित हो रहे थे। उसकी भौहें कमान जैसी टेढ़ी और चंचल थीं, मानों वे कामरूपी योद्धाओं को परास्त करने के लिए धनुषवाण ही हों। रानो की सुगन्धित पुष्पों से गठी हुई केशराशि ऐसी सुन्दर जान पड़ती थी कि उसकी सुगन्धि के लोभ से सर्प ही आ गये हों। वह अपने कटाक्ष और हाव भाव से सुशोभित थी। अर्थात समस्त गुणों से भरपूर थी। उसके गुणों का वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है। वह बड़ी रूपवती और पति के स्ववश में करने के लिए औषधि के तुल्य थी। ऐसी परम सुन्दरी के साथ सुख उपभोग करता हुप्रा राजा जावनयापन कर रहा था। जिस प्रकार कामदेव रति के वश में रहता है, ठीक उसी प्रकार उस रानी ने अपने पति को प्रेमपाश में बांध लिया था। राजा विश्वलोचन को उस विशालाक्षी के स्पर्श, रूप, रस, गन्ध और शब्द से जो ऐहिक सुख उपलब्ध थे, उसे वही अनुभव कर सकता है, जिसे ऐसी सुन्दरी पत्नी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो ।
कुछ समय व्यतीत होने पर ऋतुराज बसंत का आगमन हुआ । स्वभाव से ही बसन्त ऋतु में तरुणों में कामोपभोग की लालसा प्रबल हो उठती है । समस्त वृक्ष फल-फलों से लद गए। उन पर पक्षियों का निवास हो गया। उस समय तरुण पुरुष भी अपनी कान्ता के साथ परस्पर संभोग के लिए उत्सुक हो गए। प्रम पूर्ण कामनियां उनके हृदयों में निवास करने लग गयीं। बसन्त की उन्मत्तता शील संयमादि धारण करने वाले मुनियों को भी विचलित करने से नहीं चूकती । कामरूपी योधा बसन्त, क्षीण शरीर वाले मुनियों तक के हृदयों में भी क्षोभ उत्पन्न कर रहा था। उसी समय राजा विश्वलोचन अपनी विशाल सेना और नगर निवासियों को साथ लेकर क्रीड़ा के लिए उस वनस्थलो में पहुंचा, जहां के वृक्ष लताओं से भरपूर हो रहे थे। वन में पहुँचकर राजा को हार्दिक प्रसन्नता हुई । वन की मनोहर सुन्दरता, वायु से चंचल लताओं के समह एवं चहकते हुए पक्षियों की सुमधुर ध्वनि से ऐसा प्रतीत होता था, मानो राजा विश्वलोचन के समक्ष वायुरूपी अप्सरा नत्य कर रही हो । यह लतारूपी अप्सरा पुप्पों रो सजी हुई थी। वृक्षों की पत्तियां उसके रमणीय केश से प्रतीत होती थी। फल स्तन थे। सादि पक्षियों की सुमधुर ध्वनि संगीत का भान करा रहे थे । वह वनस्थली सारी छटाको धारण किए हुए थी । मानव चित्त को चुराने वाली लतायें पुष्पहार जैसी सुशोभित थीं। वसंत के उन्मत्त भ्रमरों की झंकार उसके गीत थे, कोयलों को वाणी मदंग
और शुक की ध्वनि वीणा । छिद्रयुक्त बासों की आवाज सम और ताल का काम दे रही थी। इस प्रकार सारी वनस्थली लहलहा उठी थी, मानों अपने अतिथि महाराज का स्वागत कर रही हो।
प्रथम ही राजा ने आम के वृक्ष पर बैठे हुए दो स्त्री-पुरुष पिकों को देखा। वे परस्पर प्रेम-चुम्बन कर रहे थे। जिस स्त्री का सम्भोग सुख प्रदान करने वाला पति विदेश चला गया हो, वह भला बसंत के इस मधुमय समय में पिक की वाणी कैसे सहन कर सकती है। राजा वन के चारों ओर घूम-घूम कर पक्षियों के मनोहर कलरव सुनने लगे। कह। मालती, के सुगन्धित पुष्प देखे, कहीं पुष्प वृक्षों पर भ्रमरों का समूह क्रीड़ा करते हुए दिखायी दिया । इसी प्रकार किन्हीं स्थानों पर मुक मयूर नृत्य करते थे । स्थान-स्थान पर बन्दरों की विशाल क्रीड़ा हरिणों की लीला और पक्षियों के समुदाय देखे। राजा ने ग्राम के वृक्ष, अनार के बन और कहीं विजौर के फल देखे । स्त्री-पुरुषों की क्रीड़ा भी देखने लायक थी। कहीं कोई अपनी प्रिया को मना रहा है। कहीं स्त्री मान द्वारा पति को चिढ़ा रही है। कोई प्रेम में मत्त थी और कोई स्तन दिखाकर प्रेम प्रकट कर रही थी। किहीं स्थलों पर हरी घास थी, कही पृथिवी जल से भर रही थी और कहीं पर पाम के वृक्ष फलों से झक रहे थे । इन सारी शोभा को राजा ने बड़े चाव से देखा । पश्चात् वह अंगूर की लताओं के मंडप में पहुंचे और वहीं पंचेन्द्रियों की तृप्ति करने वाले सरस कामोपभोग एवं लीला पूर्वक ऐहिक स्पर्श से रानी को प्रसन्न करने लगे। इस प्रकार राजा कामोपभोग से प्रसन्न होकर रानी के