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कोडा-कोडी सागर का है। पंचम इक्कीस हजार वर्ष का और षष्टम भी एक्कीस हजार वर्ष का होता है, ऐसा जिनागम जाननेवाले प्राचार्य कहते हैं । उपरोक्त पूर्व के तीन बालों में भोगापभोग सामग्रिया कल्पवृक्षों से प्राप्त होती हैं, अत: उक्त तीनों कालों को भोग-भूमि कहते हैं । प्रथ: :: जी की अष्ट सांग पाल्य, दूसरे में दो पल्य और तीसरे में एक पल्य को होतो है। इसे भी उत्तम, मध्यम, जघन्य भोगभूमि के अनुरूप ही समझना चाहिए । पूर्व काल के प्रारंभ में वहां के मनुष्य ६ हजार धनुष, दूसरे काल के प्रारंभ में चार हजार धनुष, और तीसरे के आरम्भ में दो हजार धनुष ऊंचे होते हैं। भोगभूमि में उत्पन्न स्त्रीपुरुषों के शरीर का रंग पूर्व काल में सूर्य की प्रभा के समान, दूसरे काल में चन्द्रमा के और तीसरे काल में नीलवर्ण का होता है। वहां के स्त्री-पुरुष प्रथम काल में बेर के समान, द्वितीय काल में बहेरे के समान और तृतीय काल में प्रांवलों के बराबर भोजन करते हैं। बहां तीनों कालों में वस्त्रांग, दीपाग, गृहांग, ज्योतिरांग, मालांग, भूषणाग, भोजनांग, भाजनांग बाद्यांग और माद्यांग जाति के कल्पवृक्ष होते हैं। तीनों कालों के स्त्री-पुरुष सुलक्षणों से युक्त और क्रीड़ा रत रहते हैं। उनकी तृप्ति कल्पवृक्ष सदा किया करते हैं। वहां के तिर्यंच भी सदनुरूप ही होते हैं। जो लोग उत्तम पात्रों को शुभ दान देते हैं, वे भोगभूमि में उत्पन्न होकर इन्द्र के समान सुख भोगने के अधिकारी होते हैं। जिस समय अवपिणी का अन्त हो रहा था, पल्य का पाठवा भाग बाको था
और कल्पवृक्ष नष्ट हो रहे थे, उस समय कुलंकर उत्पन्न हुए थे। उनके नाम क्रम से १४ हैं प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, क्षेमधर, विमलवाहन चक्षुष्मान, यशस्वान, अभिचन्द्र, चन्द्राभ; मरुदेव ; प्रसेनजित और नाभिराय थे। इनमें से सुख प्रदान करने वाले नाभिराय की आयु एक करोड़ वर्ष थी और उन्होंने उत्पन्न होने के समय ही नाभि-काटने की विधि बताई थी। इस प्रकार सभी कुलकर अपने २ नाम के अनुसार गुण धारण करने वाले थे। वे एक-एक पुत्र उत्पन्न कर तथा लोगों को सदबुद्धि दं स्वर्ग सिधार गये । पर तीसरे काल में जब तीन वर्ष साढ़े आठ महीने अधिक चौरासी लाख वर्ष बाकी थे, उस समय युग्मधर्म को दूर करने वाले मति, श्रुत, अवधिज्ञान से सुशोभित त्रिलोक के स्वामी तीनों लोकों के इन्द्रों द्वारा पूज्य श्री ऋषभदेव तीर्थकर उत्पन्न हुए थे।
श्री ऋषभदेव, अजित नाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दन. सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांस नाथ, वासुपूज्य, विमल नाथ, अनन्त नाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत नाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, और वर्द्धमान ये चौबीस तीर्थकर कामदेव को परास्त करने वाले और भव्यजीवों को संसार सागर से पार उतारने वाले थे। जब तीसरे काल में तीन वर्ष साढे अठारह महीने बाकी रहे, तब श्री महावीर स्वामी मोक्ष गये थे। श्री ऋषभदेव की आयु चौरासी लाख पूर्व, श्री अजीतनाथ को बहत्तर लाख पूर्व, श्री शंभवनाथ की साठ लाख पूर्व, श्री अभिनन्दननाथ की पचास लाख पूर्व, श्री सुमतिनाथ की चालीस लाख पूर्व, श्री पद्मप्रभु को तीस लाख सुपार्श्वनाथ की बीस लाख पूर्व, श्री चन्द्रप्रभ को दश लाख पूर्व, श्री पुष्प दन्त की दो लाख पूर्व, श्री शीतलनाथ को एक लाख पूर्व, श्री श्रेयांस नाथ की चौरासी लाख पूर्व, थी बासु पूज्य की बहत्तरलाख वर्ष, श्री विमल नाथ की साठ लाख वर्ष, श्री अनन्त नाथ की तीस लाख वर्ष, धर्मनाथ की दश लाख वर्ष, श्री शान्ति नाथ की एक लाख वर्ष, श्री कुन्धनाथ की पचानवे हजार वर्ष, श्री अरहनाथ की चौरासी हजार वर्ष, श्री मल्लिनाथ की पचपन हजार वर्ष, श्री मुनिसुव्रत नाथ को दश हजार वर्ष, श्री नमिनाथ की दश हजार वर्ष, श्री नेमिनाथ को एक हजार वर्ष, श्री पार्श्वनाथ को सौ वर्ष और श्री बर्द्धमान की ७२ वर्ष की प्राय थी। श्री ऋषभदेव के मोक्ष जाने के पश्चात पचास लाख करोड़ सागर व्यतीत होने पर श्री अजितनाथ उत्पन्न हुए थे। उनके मोक्ष के पश्चात् तीस लाख करोड़ सागर बीत जाने पर श्री शंभव नाथ उत्पन्न हुए थे। इनके मोक्ष के बाद दश लाख करोड़ सागर बीतने पर अभिनन्दन नाथ हए । इनके मोक्ष जाने के पश्चात् नव लाख करोड़ नागर व्यतीत होने पर श्री सुति नाथ उत्पन्न हुए थे। इनकी सिद्धि के नब्बे हजार करोड़ सागर व्यतीत होने के बाद पद्मप्रभ उत्पन्न हुए थे। इनके मोक्ष जाने के नौ हजार करोड़ सागर बीतन पर श्री चन्द्रप्रभ हुए पुनः नन्ने करोड़ सागर व्यतीत होने पर धो पुष्पदन्त हुए थे। इसी प्रकार नौ करोड़ सागर बीत जाने पर श्री शीतल नाथ उत्पन्न हुए थे। इनके मोक्ष जाने के वाद सौ सागर छयासठ लाख छब्बीस हजार वर्ष कम एक करोड सागर बीत जाने पर श्री थेयांसनाथ की उत्पत्ति हई, इनके वाद चौसठ सागर वीत जाने पर भी विमल नाथ हए थे। इनके बाद नौ सागर व्यतीत होने पर श्री अनन्त नाथ हुए थे। श्री अनन्त नाथ के मोक्ष जाने के बाद चार सागर बोत जाने के बाद श्री धर्मनाथ जी हुए थे। इनके पश्चात पौन पल्य कम तीन सागर व्यतीत होने पर श्री शान्तिनाथ हए थे। इनके पश्चात् आधा पल्य बीतने पर श्री कुथनाथ हुए थे। इनके पश्चात् एक हजार करोड़ वर्ष कम चौथाई पल्य व्यतीत होने पर श्री अरहनाथ हुए थे। एक लाख करोड़ दो हजार वर्ष बीतने पर श्री मल्लिनाथ और उनके मोक्ष जाने के चौवन लाख वर्ष बीत जाने पर श्री मुनिसुव्रत हुए थे। ऐसे हो श्री मुनिसुव्रत के मोक्ष जाने के पश्चात् ६ लाख वर्ष बीत जाने पर श्री नमिनाथ हुए थे। इनके बाद पांच लाख वर्ष व्यतीत होने पर श्री नेमिनाथ उत्पन्न हुए। इसके तिरासी हजार सात सौ वर्ष व्यतीत होने पर श्री
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