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में जैन परम्परा की प्राचीन पट्टावलियों व ग्रन्थों में बताया गया है। भगवान महावीर के निर्वाण काल से ४७० वर्ष बाद विक्रम संवत् का प्रचलन हुधा । इतिहास की सर्वसम्मत धारणा के अनुसार विक्रम संवत् ई० पू० ५७ से प्रारम्भ होता है।' इससे भी महावीर-निर्वाण का काल ५७+४७० =ई०पू०५२७ ही पाता है।
श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही जैन-परम्परामों की प्राचीन मान्यतामों के अनुसार शक संवत् महावीर-निर्वाण के ६०५ वर्ष ५ महीने बाद प्रारम्भ होता है। ऐतिहासिक धारणा से शक संवत् का प्रारम्भ ई० पू० ७८ से होता
--- ---. --..मुनि (5) वेद (४) युक्तः । चत्वारिंशतानि सप्तत्यधिकवर्षारिए श्री महावीरविक्रमादित्ययोरन्तर मित्यर्थः । नन्वयं काल: वीरविक्रमयोः कथं गण्यते, इत्याह-विक्रमराज्यारम्भात् परतः पश्चात् श्री वीरनिवृत्रिरत्र भरिणता । को भावः श्रीवीरनिवरिण-दिनादनु ४७० वर्षे विक्रमादित्यस्य राज्यारम्भदिनमिति ।
-विचार-श्रेणी, ३-४ पुनर्मनिर्वाणात् सपत्यधिकचतुः शतवर्षे (४७०) उज्जयिया श्री विक्रमादित्यो राजा भविष्यति' 'स्वनाम्ना च संवत्सरप्रवृत्ति करिष्यति।
-श्री सौभाग्य पंचभ्यादि पर्वकथा संग्रह, दीपमालिका व्याख्यान, पृ० ६६-६७ महामुक्ख गमणाम्रो पालय-नंद चन्द्र गुप्ताइराईसु बोलीणेसु च उसय सत्तरेहि विक्कमाइच्चो राया होहि । तस्थ सट्ठी परिमाण पालगस्स रज्ज, पापण्यांसय नंदारणं, अट्ठोत्तर सयं मोरिय बंसाणं, तीसं पूसमित्तस्स, सट्ठी बलमित्- भारण-मिसाणं चालीस नरवाहणरस, तेरह गभिलस्स, चत्तारि सगस्स । तमो विक्कमाइच्चो–दिविषतीर्थकल्प (अपाहाबहत्कल्प), पृ०३८-३६ चउसय सत्तरि वरिसे (४७०) वीरामो विक्कमाइच्चो जानो।-पंचवस्तुक।
गुप्त साम्राज्य का इतिहास, प्रथम खंड पृ० १८३ २. (क) रयणि सिद्धिगमो, परहा तित्थंकरो महावीरो।
तं रयणिमदन्तीए, अभिसित्तो पालो राया ॥६२०॥ पासगरम्णो सट्ठी, पुरण पण्णसवं वियारिश णंदाणं । मुरियाणं सव्यं पणतीसा पूसमित्तारणं (त्तस्स) ॥६२१॥ बलमित्त-मागुमित्ता, सट्ठी चत्ताय होन्ति नहसेणे । गद्दभसयमेगं पुण, पडिवन्नो तो सगो राया ।।२।। पंच मा मासा पंच य, पापा छच्छेव होंति वाससया ।
परिनिन्दप्रसारिहतो, तो उत्पन्नो (पडियन्नो) सगो राया ।।६२३।। -तिस्योगाली पइन्नय । (ख) श्री वीरनिवतेवर्षेः षभिः पंचोसरः शनैः । पाकिसंवत्सरस्यैषा प्रवृत्तिभरतेऽभवत् ।।
-मेरुतुंगाचार्य-रचित, विचार श्रेणी
(जैन साहिरम संशोधक, खंड २ अंक ३-४ पृ०४)। (ग) हि वासारण सरहिं पंचहि पासे हि पन्तमासेहि। मम निब्वाण मयस्स उ उपज्जिस्सह सगो राया ॥
---नेमिचन्द्र रचित, महावीर चरियं, लो० २१६६ प ६४-१) (घ) पणछस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिन्वुइदो। सगराजो तो फक्की चदुणवत्तियमाहियसममासं ।।
-नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती रचित, त्रिलोसार, १५० (छ) वर्षाणषट्शती त्वक्त्वा पंचाना मासपंचकम् ।
मुषितं यते महावीरे शकराजस्ततो भवत् ।। --जिनसेनाचार्य रचित, हरिवंशपुराण, ६०-५४६ (च) रिणवारणे वीरजिणे छन्चास सदेसु पंचबरिसेसु ।
पणमासेसु गदेसु संजादो सगणिो अहवा ।। -तिलोययणत्ति, भाग १पृ०३४१ (छ) पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होंति वाससया।
समकालेण म सहिया यावेयव्यो तदो रासी। -धवला, जैन सिद्धान्त भवन, पारा, पत्र ५३७ ।