________________
किया जाता था। साथ ही, बलि लथा यज्ञ के बहाने लोग मांस खाते थे। इस तरह देश में चहुं ओर अन्याय अत्याचार का साम्राज्य था-बड़ा ही वीभत्स तथा करुण दृश्य उपस्थित था—सत्य कुचला जाता था, धर्म अपमानित हो रहा था, पीड़ितों की पाहों के धुएं से आकाश व्याप्त था और सर्वत्र असन्तोष हो असन्तोष फैला हुया था।
यह सब देखकर सज्जनों का हृदय तिलमला उठा था, धार्मिकों को रात दिन चैन नहीं पड़ता था और पीड़ित व्यक्ति अत्याचारों से ऊबकर त्राहि-त्राहि कर रहे थे। सबों की हृदय तन्त्रियों से कोई अवतार नया हो की एक ही श्वनी निकल रही थी और सबों की दष्टि एक ऐसे असाधारण महात्मा की पोर लगी हुई थी जो उन्हें हस्तावलम्ब देकर इस घोर विपत्ति से निकाले । ठीक इसी समय---आज से कोई दाई हजार वर्ष से भी पहले-प्राची दिशा में भगवान महावीर भास्कर का उदय हमा, दिशाएं प्रसन्न हो उठी, स्वास्थ्य कर मन्द मुगन्ध पवन बहने लगा, सज्जन धर्मात्माओं तथा पीड़ितों के मुखमण्डल पर पाशा की रेखाएं दीख पड़ी, उनके हृदय कमल खिल गये और उनकी नस नाड़ियों में ऋतुराज (बसन्त) के प्रागमनकाल-जैसा नवरस का संचार होने लगा।
महावीर का उद्धारकार्य
महावीर ने लोक स्थिति का अनुभव किया, लोगों की प्रज्ञानता, स्वार्थपरता, उनके वहम, उनका अन्धविश्वास और उनके कुत्सित विचार एवं दुर्व्यवहार को देखकर उन्हें भारी दुःख तथा खेद हुा । साथ ही, पीड़ितों की करुण पुकार को सुनकर उनके हृदय से दया का खण्ड स्रोत बह निकला । उन्होंने लोकोद्धार का संकल्प किया, लोकोद्धार का सम्पूर्ण भार उठाने के लिए अपनी सामर्थ्य को तोला और उसमें जो वृटि थी, उसे बारह वर्ष के उस घोर तपश्चरण के द्वारा पूरा किया जिसका अभी उल्लेख किया जा चुका है।
इसके बाद सब प्रकार से शक्ति सम्पन्न होकर महावीर ने लोकोद्धार का सिंहनाद किया- लोक प्रचलित सभी अन्याय अत्याचारों, कुविचारों तथा दुराचारों के विरुद्ध आवाज उठाई और अपना प्रभाव सबसे पहले ब्राह्मण विद्वानों पर डाला, जा उस वक्त देश के सर्वे सर्वाः बने हए थे और जिनके इस पट सिंहनाद को सुनकर, जो एकान्त का निरसन करने वाले स्याद्वाद की निचार पद्धति को लिए हया था, लोगों का तत्वज्ञान विषयक भ्रम दूर हुया, उन्हें अपनी भूलें मालूम हुई, धर्म-अधर्म के यथार्थ स्वरूप का परिचय मिला, आत्मा अनात्मा का भेद स्पष्ट हुमा मौर बन्ध मोक्ष का सारा रहस्य जान पड़ा। साथ ही, टे देवी-देवताओं तथा हिंसक यज्ञादिकों पर से उनकी श्रद्धा हटी और उन्हें यह बात साफ जंच गई कि हमारा उत्थान और पतन हमारे ही साथ में है, उसके लिए किसी गुप्त शक्ति की कल्पना करके उसी के भरोसे बैठे रहना अथवा उसको दोष देना अनुचित और मिथ्या है। इसके सिवाय, जाति भेद की कट्टरता मिटी, उदारता प्रगटी, लोगों के हृदय में साम्यवाद की भावनाएं दद हई और उन्हें अपने प्रात्मोत्कर्ष का मार्ग सूझ पड़ा। साथ ही ब्राह्मण गुरुपों का आसन डोल गया, उनमें से इन्द्रभूति गौतम जैसे कितने ही दिग्गज विद्वानों ने भगवान के प्रभाव से प्रभावित होकर उनको समीचीन धर्म देशना को स्वीकार किया मोर सब प्रकार से उनके पुरे अन्यायी बन गये । भगवान ने उन्हें गणधर के पद पर नियुक्त किया और अपने संघ का भार सौंपा। उनके साथ उनका बहुत बड़ा शिष्य समुदाय तथा दूसरे ब्राह्मण और अन्य धर्मानुयायो भो जैन धर्म में दाक्षित हो गये। इस भारी विजय से क्षत्रिय गुरुयों और जैन धर्म की प्रभाव वृद्धि के साथ-साथ तत्कालीन ( क्रियाकाण्डी ) ब्राह्मण धर्म की प्रभा क्षीण हई, ब्राह्मणों की शक्ति घटी, उनकं अत्याचारों में रोक हुई, यज्ञ यागादिक कर्म मन्द पड़ गये उनमें पशूमों के प्रतिनिधियों की भी कल्पना होने लगी और ब्राह्मणों के लौकिक स्वार्थ तथा जाति पांति के भेद को बहुत बड़ा धक्का पहंचा। परन्तु निरकशता के कारण उनका पतन जिस तेजी के साथ हो रहा था वह रुक गया और उन्हें सोचने-विचारने का अथवा अपने धर्म तथा परिणति में फेरफार करने का अवसर मिला।
महावीर की इस धर्म देशना और विजय को सम्बन्ध में कवि सम्राट डा. रवीन्द्र नाथ टैगोर ने जो शब्द को इस प्रकार हैं:
Malavira proclaimed in India the message of salvation that religion is a reality and not it more social convention, that salvation comes from taking refuge in that true Religion and not from observing the externul cercmonics of the community, that religion can not regard any barrier between man and 1 an eternal verity. Wondrous 10 relate, this teaching rapidly overtopped the barriers of the race's abiding