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घृणा पाप से हो, वापी से नहीं कभी लव-लेश । भूल सुभा कर प्रेम मार्ग से करो उसे पुण्येश || ३ || एकान्त कदाग्रह दुर्गुण बनो उदार विशेष रह प्रसन्नचित सदा करो तुम मनन तत्म उपदेश || जीतो राग द्वेष भय इन्द्रिय मोह कषाय प्रशेष 1 धरो धैर्य समचित रहो, और सुख दुख में सविशेप ||५|| अहंकार मकार तजो जो अवनतिकार विशेष | उप संयम में रत हो, त्यागो तुष्या भाव वोर उपासक बनो सत्य के तज मिथ्या विपदाओं ने मत घबराओ घरो न संज्ञानी संदृष्टि बनो, श्रोतजो भाव सदाचार पालो दृढ़ होकर रहे प्रमाद सादा रहन सहन भोजन हो, सादा भूषा वेष । विश्व प्रेम जाग्रत कर उर में, करो कर्म निःशेष || ६ ||
शेष ॥६॥
मिनिवेश |
कोपावे ||७||
संक्लेश |
न लेश ||८||
हो सबका कल्याण, भावना ऐसी रहे हमेश । दया लोक सेवा रत चित्त हो, और न कुछ प्रदेश || १०|| इस पर चलने से होगा, विकसित स्वात्म प्रदेश | आत्म ज्योति जगेगी ऐसे,
आजकल जो गौर निर्वाण संवत् प्रचलित है संवत् का एक साधार "जिलोकसार" की निम्न गाथा है,
जैसे उदित निदेश || ११| वहीं है महावीर सरदेश, विपुला० महावीर का समय
अब देखना यह है कि भगवान महावीर को अवतार लिए ठोक कितने वर्ष हुए हैं। महावीर को धायु कुछ कम ७२ वर्ष की - ७१ वर्ष ७ मास, १८ दिन की थी। यदि महावीर का निर्वाण समय ठीक मालूम हो तो उनके श्रवतार समय को श्रथवा जयंती के अवसरों पर उनकी वर्षगांठ संख्या को सूचित करने में कुछ देर न लगे। परन्तु निर्वाण समय से विवादग्रस्त चल रहा है-प्रचलित वीर निर्वाण संवत् पर आपत्ति की जाती है-कितने ही देशी विदेशी विद्वानों का उसके विषय में मतभेद है, और उसका कारण साहित्य को कुछ पुरानी गड़बड़, श्रर्थं समझने की गलती अथवा काल गणना की भूल जान पड़ती है। यदि इस गड़बड़, गलतो अथवा भूल का ठोक पता चल जाय तो समय का निर्णय सहज में ही हो सकता है और उससे बहुत काम निकल सकता है, क्योंकि महावोर के समय का प्रश्न जैन इतिहास के लिए ही नहीं किन्तु भारत के इतिहास के लिए भी एक बड़े ही महत्व का प्रश्न है। इस से अनेक विद्वानों ने उसको हल करने के लिए बहुत परिश्रम किया है और उससे कितनी ही नई-नई बातें प्रकाश में आई हैं। परन्तु फिर भी, इस विषय में, उन्हें जैसी चाहिए वैसी सफलता नहीं मिली - बल्कि कुछ नई उलझनें भी पैदा हो गई हैं और इसलिए यह प्रश्न अभी तक बराबर विचार के लिए यता ही जाता है। मेरी इच्छा थी कि मैं इस विषय में कुछ बहरा उतर कर पूरा तफसील के साथ एक विस्तृत लेख लि परन्तु समयको कमी यादि के कारण या न करके, संक्षेप में ही अपनी खोज का एक सार भाग पाठकों के सामने रखता आधा है कि सहृदय पाठक इस पर से ही उस गड़बड़, गलती अथवा भूल को मान करके, समय का ठीक निर्णय करने में समर्थ हो सकेंगे।
और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है वह २४६० है। इस जो भी नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का बनाया हुआ है
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