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नृप सुग्रीव नवम जिन तात, रामादेवी तिनकी मात । काकंदी नगरी अवलोइ, धनद रची प्रभु आगम जोइ ॥२४३।। दृढ़रथ राज पिता अभिराम, मात सुनन्दा देवी नाम । भागलपुरी दशम अवतार, नव बारह जोजन विस्तार ।।२४४॥ विष्णकुमार जु कहिये तात, विमलादेवीजिनकी मात । सिंहपुरी एकादश थान, रची कुबेर हर्ष उर प्रान ।।२४५|| नप वसूदेव ज़ पिता बखान, मात जयावति देवी जान । वारम जिन चंपापुर ठये, तिनके पंचकल्याणक भये ।।२४६।। कृतिधर्म नप तात बखाम, श्यामा माता ताकौ जान । तह कंपिला नगरी अवदात, तेरम जिनवर जन्म विख्यात ॥२४७॥ सिंहोन राजा प्रभु तात, सूर्यादेवी कहिपे मात । चौदम जिनपति सुरपति नयौ, नगर अजुध्या जन्म जु भयौ ॥२४॥ भानु नाम राजा जिन तात, सुव्रतादेवी तिनकी मात । रत्नपुरी है जन्मस्थान, पन्द्रम जिनवर को पहिचान ।।२४६।। विश्वमेन नप पिता महान, ऐरादेवी जननी जान । हस्ति-नागपुर जन्म घरेव, पोडश जिनवर इन्द्रहि सेव ॥२५॥ सूर्य नाम नृप पिता जु कहे, सिरीमती माता गुन लहै । हस्तिनापुर जन्म मु लयो, सत्रम जिन सुरनर मुनि नयौ ।।२५१|| राज सुदर्शन तात प्रमान, देवी सुमित्रा माता जान | हस्तिनागपुर कहिये सोय. पाठारम जिनवर अबलोय ||२५२।। पिता कभनप जगविख्यात, प्रभावती है तिनकी मात । मिथिलापुरी जनम भगवान, एकबीस में जिनबर जान ।।२५३।। समद्र विजय नप कहिये तात, शिवदेवी माता विख्यात । द्वारावती धनद ही रची, द्वाविंशति जिन जन्मन सची ।।२५४|| अश्वसेन नृप तात बखान, बामादेवी माता जान । पुरी बनारस है अक्दात, तेबीसम [जनवर विख्यात ॥२५॥ सिद्धारथ नप पिता जु भये, त्रिशलादेवी के उर ठये । कुण्डपुर नगरी अवतार, चौबीसम अन्तिम जिन सार ॥२५६।।
चौबीस तीर्थकरों के चिन्ह, मान, शरीर की उंचाई, वर्ग, मोक्षरधान तमा तरकाल का वर्णन
दोहा
अथ चौबीस जिनेशके, कहौं किमपि गुण गाय । लक्षण प्रायु उत्तंग युति, जिन अंतर समुदाय ।।२५७।।
पड़ि छन्द वा लक्षण बषभ जिनेश भाय, पूरब चौरासी लाख आव । सत पंच धनुष तन तुंग पोख, द्युति हेमवरन कलाश मोख ॥२५॥ अन्तर लख कोड़ पचास सिंध, जिन अजित भये लक्षण गयंद । लज पूर्व बहत्तर अायु धर्ण, शत ढींच धनुष तन हम वर्ण ॥२१ गत तीस लक्ष सायर हि कोड़, संभव जिन लक्षण तुरिय जोड़ 1 थिति साठ लाख पूरब गनेह, सत चार धनुष धुति हेम देह ॥२६॥
और काल लाने इस प्रकानन्दनीय
वाणीके द्वारा सबका वर्णन किया। जिस प्रकारकी चन्द्रमाको सुधारावी कहते हैं और उससे बरावर अमत च्या करता है उसी प्रकार जिनेन्द्र महावीर प्रभुके मुख चन्द्रसे निकलने वाले ज्ञानोपदेश रूपी अमृतको कानों के द्वारा पीकर (सुनकर) श्री गौत बीमीने मिथ्यात रूपी भयानक विपको उगल दिया और काल लब्धि (उत्तम भवितव्यता) वश सम्यकदर्शनसे युक्त होकर संसार गरीर और भोग इत्यादिसे विरक्त हो गये और अपने मन में उन्होंने इस प्रकार विचार करना प्रारम्भ किया। उन्होंने का है। मर्खतावश चिरकाल पर्यन्त सम्पूर्ण पाप कार्योको उत्पन्न करने वाले प्रत्यन्त निन्दनीय और प्रशभ मिथ्या-मार्गको किया। जिस प्रकार भ्रममें पड़कर कोई मनुप्य विषधारी सर्पको माला समझकर गले में धारण करने के लिये जाने प्रकार मैं भी भ्रममें ही पड़ गया धर्मके धोखे में मिथ्यात्वरूपी महा पापोंको ग्रहण कर लिया । धुतंकि द्वारा बनाये गये मिथ्यात्व मार्ग में फंसकर महामुर्ख लोग महाभयंकर पोर घोर नरक में दुःसह यन्त्रणामोंको भोगने के लिये जोरोंसे गिराये जाते
और वहां पर इनकी भीषण दुर्गति होती है। मदिराको पीकर जो एकदम मन्दोन्मत्त हो गया है वहां मल मालिका ध्यान रख सकता है? जो सम्यक दसनसे हीन हैं वे मतवालोंकी तरह ही अशुभ मागमे जा गिरते हैं। प्रधान चलता है तो वह कुएं में गिरने से कैसे बच सकता है? मिथ्यात्वसे जिनकी आँख अन्धी हो गयी है बेनरक रूपमा ही गिर पडते हैं यह मिथ्यात्व मार्ग अत्यन्त हेय है। यह दुष्टों को नरक में पहुचा देने का साथी है और इसका आदर भी जहमति