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दश लक्ष कोडि सायर गतीस, जिन अभिनन्दन लक्षण कपीस । पच्चास लाख पूरब सु आब, धनुशन साढ़े वय हेम भाव ।।२६१।। नव लाख कोड़ि सायर बितीत, जन सुमति चिन्ह चकदा पुनीत । जीवत पूरब चालीस लाख, सत तोन धनुष तन हेम भाख ॥२६२ नब्ब हजार सायर हि कोड़ि, जिन पन पद्मदल चिन्ह जोडि । तिनि तीस लारत्र पूरब सुपाव, अढ़ाई शत धनु तन मरुन भाव।२६३ नक सहस कोड़ि सायर गनेह, स्वस्तिक सुपरस लक्षण भनेह । लख बीस पूर्व जीवित प्रमान, शत धनुष दोय तन हरित जान ।२६४ नव शय जु कोडि सायर गमाय, चन्द्रप्रभ लक्षण चन्द्र पाय । दश लास पूर्व सत्र आयु तास, शत हेढ़ धनुष वपु श्वेत भास १२६५ गय नव कोड़ि सागर प्रजंत, सो मगर चिन्ह जिम पहुप दंत । प्रभु प्रायु लाख द्रय पूर्व जान, सो धनुष तंग तन श्वेत मान ।।२६६।। नवकोडि सिंधु कालहि गमाय, शीतल थी तरुवर चिह्नमाय । सिनि एक लाख पूरब जु अायु, अरु नवं धनुष तन हेम ठायु ॥२६७। तह एक कोडि सायर गतेह, सौ मायर ताम होन नेह । घट छयासठ लाख जु वरप और छब्बीस सहरा पुन करह ठोर ।। तब उपजे श्री श्रेयांसनाथ, लक्षण गेंडा द्युति हेम साथ । जीवत चौरासी लाख वर्ष, धनु असो तुग काया जु पर्ष ।।२६६।। गत चौंबन सागर जहि जिन्ह, श्रीवासुपूज्य महिषा जु चिन्ह । जिन सत्तर लाग्न जुयायु होग, गत्तर धनु बपु युति अरुण जोय ।। सायर हि तीस गत जवहि होद, जिन विमल बराह जु चिन्ह सोइ । है माठ लाख जीवन सु प्राय, धनु साट हेम ति धरिय काय ।। नव सागर का युग माइ जिएन, उपजे अनन्त सेही जु चिह्न । है तीस लाख की वायु तंह, पंचास धनुष चुति है सदेह ॥२७२।। सागर जो चौ गत वर्ष होय, जिन धर्म वज्र लक्षण हि सोय । दश लाख मायु दुति हैम रंग, पंतालिस धनु काया उतंग ॥२७३|| त्रय सागर हीन पल्य पौन, जिन शांतिनाथ मृगचिह्नहौन । है एक लाख तनु प्रायुजान, चाल स धनुष तन हेमवान ।।२७४॥ गत आध पल्य जब वरष जोय, जिन फुन्थ, चिह्न छेरौ बताय । पंचानब सहसहि तिथि गनेह, पंतोस धनुष जुलि हैम देह ।। है पाव पल्य गत जोडि, तामें घट एक सहस्र कोहि । पर मीन चिह्न धनु तीस काय, द्युति हेम सहस चौरासियाय ॥२७६। इक सहस कोडि घत वरष सीइ, जिन मिल्ल कलश लांछन सु होय । पचमन सहस्र तिस आयु ठान, पच्चीस धनुष वपु हेमवान ।। जब चौवन लाख जु बरष जांय, मुनिसुव्रत कच्छप चिह्न पाय । तह तीन सहस थिति लही जास, धनु वीस काय द्युतिश्याम भास॥ छह लाख वरष जब काल जाइ, नमिनाथ कमल लक्षण सुधार । दश सहस प्रायु जिनकी बखान, धनु पंद्रह काय जु हेमावान ।। तहं पांच लाख बर वितीत, जिन मैमि शख लक्षण पुनीत । थिनि एक सहस की लही तैह, दश धनुषकाय द्युति श्याम लह॥ गत सहस तिरासी साढ़ सात, जिन पारस-चिह्न फनेन्द्र जात । इकशत वर जीवित सुथान, नव हाथ काय द्युति हरित जान॥ ढाई सय जह जव बरष जाय. जिनवीर सुलक्षण सिंह थाय । थिलि-वरष बहत्तर हेमवर्ण, वपु सात हाथ जग दुरित हर्ष ।
दोहा
भये चतुर्दश इक्षु कुल. चदु कुल वंश मझार । पुनि हरिवंशी चार जिन. है दोइ उग्र अवधार ।।२८३॥ वासुपूज्य चम्पामगर, नेमि मोक्ष गिरि शीस । पाबापुर श्री वीर जिन, शिखर समेद हि वीस ।।२८४।।
जीव किया करते हैं । इस मिथ्यात्व को सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र इत्यादि धार्मिक राजाओं का उग्र शत्रु समझना चाहिये । इसे जीव भक्षक महाविषधारी और विशाल अजगर सांपसे कदापि कम नहीं समझना चाहिए। यह सम्पूर्ण पापोंका उत्पत्ति स्थान खानि है। जिस प्रकार कि गौयोंके सींगसे दूध का मिलना, पानी के मथने से घी का निकलना दुर्व्यसनों से प्रशंसा प्राप्त करना, कृपपातासे प्रसिद्ध होना और नीच कर्म से धनोपार्जन करना असम्भव है उसी प्रकार मिथ्यात्वके द्वारा अज्ञानी पुरुषों की शुभ वस्त'. श्रेष्ठ सुख और उत्तम गति कदापि नहीं मिल सकती। धर्महीन मिथ्यादष्टि जोव मिथ्यात्व आचरण के कारण भयंकर दुःख और दर्गति रूप नरक में ही पड़ते हैं। इसलिए है प्राणियों, स्वर्ग और मोक्षकी सिद्धि प्राप्त करने के लिये चतुर बुद्धिमानों को उचित है कि, अपने मिथ्यात्व रूपी महा-शत्रुओंको सम्यक् दर्शन रूपी तीक्ष्ण तलवारसे काटकर शीघ्र ही नष्ट कर डाले।
आज मेरा जन्म सफल हो गया और अब मैं धन्य हूँ ! अत्यन्त अधिक पुण्योंके उदयसे ही हमें जगद्गुरु थी जिनेन्द्र देव के समान महाज्ञानी गुरु प्राप्त हुना। इनके अनुपम उपदेशमें जो कहा गया है वही सत्य, सरल और श्रेष्ठ मोक्षका मार्ग है।