________________
गीतिका छन्द बहु भांति धर्म विपाक करकं, भये गौतम गणपती । सकल मुनिगण मुख्य शोभत, चरन अरने सुरपती॥ श्रुतज्ञान अखिल विधान पूरण, प्रमट भव्यनि हित कर्यो। यह जान बुधजन धर्म उर घर, सिद्ध सब कारज सर्यो ||३७२।। धर्म जग में सुख्य करता, धर्म नह बड़ावहो । धर्म अघ भट विजय कोनी, धर्म शिवपद पावही ।। जो धर्म प्रभु उपदेश वानी, सभा द्वादश प्रति भनी । कहि 'नवलशाह' प्रनामि जिनपद, धर्म मुहि दीजै धनी ।।३७३।।
धर्म के प्रभाव एवं फलसे श्रीगौतम गणधर स्वामी द्वादशांग शास्त्रों की रचना करने के बाद सब मुनियोंमें, श्रेष्ठ, श्रद्धेय और पूज्यनीय हुए, इसलिए संसारके बुद्धिमान पुरुषोंको उचित है कि वे अपनी अभीष्ट प्राप्ति के लिए मनको पवित्र करके उत्तम धर्मका प्राश्रय ग्रहण करें।
dि
५४१