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चतुर्दश अधिकार
मंगलाचरण
दोहा
तत्वारथ परगट करण, केवल ज्ञान सुभान तीन जगत नायक नमी, श्री सन्मति भगवान || १ ||
चौपाई
॥२॥
फिर गौतम बोले घिरनाथ, तुम स्वामी त्रिभुवन सुखदाय अब अजीब तस्वहि कहि भेद भविजन मनको ना तब प्रभु मुख वाणी उच्चरी, सकल अर्थ गर्भित गुणभरी । जीव तत्व गुण पूरव रहे, अब सब तत्व प्रदारथ लहे || ३ ||
अजीव तत्वका वर्णन
दोहा
पुद्गल
धर्म अधर्म नभ, काल सहित ये पंच। सो जीव जड़रूप हैं, वरणी तिनहि प्रपंच ॥४॥
पुद् गलका स्वरूप
चौपाई
पुद्गल भेद दोष परकार संघ रूप अणु रूप विचारता yora रूपी दर बारी और रूपी सरव ॥ ५ ॥ बरन पंच रस पंच हि पाऊ, दोय गंध सपरस गुन ठाउ । पुद्गल गुण ये बोस बखान, इनतंबंध रूप परवान ॥६॥ श्रव णु सुनिये लोय, छेद भेद जाके नहि होय । अगन जलादिक नाश न हूल, शब्द रहित पे कारण भूत ॥ ७॥ सूक्ष्म थल पट भेद प्रमान श्रद्धाकर सुनिये बुधवान सूक्षम सूक्षम प्रथम बखान, सूक्षम द्वितीय कहै भगवान ॥ सूक्ष्म चूल तृतीय जानिये पूल सूक्षम थीथी मानिये पूल पंचमी कहिये नाम, भूलबूल, छट्ठो अभिराम ॥२॥ कर्म वर्गणा दुष्टि न आय सो सूक्षम सूक्षम हि कहाय अष्ट कर्ममय खंध जु होय. सो सूक्षम पुद्गल अवलोय ॥ १०॥ शब्द सपर्स गंध रस जान सूक्षम स्थूल करो परवान धूप चांदनी आदि समस्त सूक्ष्म यो कहिये वस्त ||११|| जल घृत तेल आदि दे सर्व बूथ थूल रूप जानी सब दवं भूमि विमान धाम गिरि जान, थूल थूल ताको पहिचान || १२||
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तीन जगतके नाथ जो केवल ज्ञान निकेत विश्वबन्धु वीरेश के, विश्व तत्व कहि देत ||
इसके बाद सम्यक्त्व एवं ज्ञानके कारण नी पदायों को कहा जाता है सात तत्वोंमें पाप और पुण्यको मिला देने से नौ पदार्थ हो जाते हैं। तीर्थेश श्रीमहावीर प्रभुने भव्य जीवोंके संवेग (संसार-भय उत्पन्न करने के लिये पाप पुण्यके कारण एवं उनके फलोंको कहना प्रारम्भ किया। एकान्त यदि पांच मिध्यात्य, दुष्ट, कषाय, असंयम, निन्दनीय प्रभाद, कुटिल योग, बार्स- रौद्ररूप बरे ध्यान, कृष्णादि तीन बुरी लेश्याएं तीन शल्य मिथ्या गुरुदेव इनका सेवन, धर्मावरोध एवं पापोपदेश करने तथा धन्यान्य भूषित आचरणोंके द्वारा उत्कृष्ट पाए होता है। जिनका मन दूसरोंकी स्त्री, धन एवं वस्त्रकी अभिलाषाने लगा है, रोगसे दूषित
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