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चौपाई धरै थूल जब यही शरीर, तब विस्तार कर मुणधीर । सक्षम देह पाय कर जीव, संकोच न तिहि होय सदीद ॥३८॥ जैसे दीप अधिक छवि घर, भाजन मान उदोत न सरं। समुद्घात विन यह परबान, ताको भेद सुनो गुण खान ||३६॥
समुद्घात वर्णन
दोहा कार्माण तेजस दुविध, बाहर निकस प्रदेश । पावें वे ही मूलतन, समुद्घात इहि वेष ॥४०॥ सात भेद ताके कहे, प्रथम वेदना नाम । दुतिय कषाय विकुर्व श्रय, मरणान्त अभिराम ||४१।। पंचम तेजस छटम पुनि, पाहारक गुण धाम । केवलि जुत सातौं कहै, समुद्घातके नाम ।। ४२॥
वेदना समुद्घात
अडिल्ल दुसह वेदना पीर होय, कहुं प्रायके। कढ़हि जीव परदेश महि अकुलायक ।। औषध तछिन परम फेर तन ग्रावही। समुद्घात यह प्रथम वेदना नाम ही ॥४३॥
कषाय समुद्घात काह रिपुको करै विध्वंसन जायक । वाहिर निकसे अंश, जीब के आयके । अति कषाय बल होइ, अशुभभावन बहै। समुद्घात यह दुतिय, कुगतिको पद गहै ।।४४॥
वैक्रियिक समुद्घात घर विक्रिया रूप विविध परकार सौं। निकस ब्रह्म प्रदेश, सचेतन भाव सौं।। देव नारकी मनुष्य लहैं, पशु नाहि हैं । समुद्घात यह तृतिय भेद, पहिचान है ।।४५।।
- मारणान्तिक समुद्घात । काह जीवकै मरण समय उपज सही। बाहिर निकसै प्राय, जीव परदेश हो।
तब उनके प्रोष्ठ इत्यादिका एकदम हो परिचालन नहीं हुआ। वह पर्वत गुमासे निकली प्रतिध्वनिके समान हो अत्यन्त कर्णप्रिय और नाना सन्देहोंको नष्ट करने वालो यो। धन्य है, तोर्थराजों को उस योगजन्य अदभुत शक्तिको; जिसके द्वारा सांसारिक भव्य अतिशयुक्त महान् उपकार होता है। हे गौतम; बुद्धिमान् लोग जिसको यथार्थ सत्य कहते हैं वह सर्वज्ञ-प्रतिपादितपदार्थोंका स्वरूप ही है। इस बातको तुम सर्वथा निभ्रान्ति समझो । जोव दो प्रकारके होते हैं। एक मुक्त सिद्ध पुरुष और दूसरे संसारी । प्रथम मुक्त जीवों में तो कोई भेद नहीं परन्तु संसारियों में कई एक प्रकारके भेद हैं। जो कि पाठ कर्मोंसे रहित हैं, और पाठ गुणोंसे शोभित हैं, सर्वदा एक स्वरूप, समान सुख वाले एवं सम्पूर्ण दु:खोंसे हीन हैं, उन्हींको सिद्ध अथवा मुक्त कहा जाता है। ऐसे सिद्ध महापुरुष संसारके उच्चतम शिखर पर विराजमान होकर निर्वाध एवं अनन्त ज्ञान युक्त होते हैं और उनका शरीर भी अलौकिक होता है । संसारो जोवोंको विभिन्न श्रेणियां और भेद हैं। वे स्थावर और उसके भेदसे दो प्रकार के हैं; एकेन्द्री, विकलेन्द्री एवं पंचद्रीके भेदसे तीन प्रकार के हैं, अोर नरकादिक भेदसे चार प्रकारके हैं। दयालु घोजिनेन्द्र भगवान ने इन्द्रियोंको अपेक्षा एकेन्द्री, दो इन्द्रो, ते इन्द्रो, चो इन्द्री एवं पंचेन्द्रोके भेदसे पांच तरहका कहा है। बस एवं स्थावरजीव छ: प्रकार के होते हैं इन छ: काय जीवों को रक्षाके लिये हो जिनेन्द्र प्रभु को प्राज्ञा हैं । पृथ्वो इत्यादि पांच स्थावर के साथ विकलेन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय मिलाकर जीवोंके सात भेद हो जाते है। पांच स्थावर, विकलेन्द्रिय संज्ञो एवं प्रसंज्ञी ये जोवों की पाठ जातियाँ हैं। पांच