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पर चाकर नर किहि बिधि होय अरु स्वामित्व लहै किम कोय । कोन पापतिहि पुत्र न जिये. अरु वन्ध्या नारीका किये ।।१०६॥ कैसे पूत्र होय चिरजीब, किम कातर किम धीर अतीव । कौन करम ने निन्दा अपार, किम आचरणल है जस भार ॥११॥ शीलवंत नर कैसे होइ, अरु कुशील किम पावै सोइ । क्यों कर सत संगतिको पाय, लहै कुसंगति किहि विधि प्राय ।।११।। होय विबेकी किहि परकार, मूढ़ होय नर किहि संसार । लहैं घेष्ठ कुल किहि कर जीव, कौन पाप कुल निंद्य अतीव ॥११॥
कर सकता है? आपके गुणोंकी तथा स्थितिको तो गणधर भी नहीं जान पात र दूसरों को भी ये क्या बतला पायेगे? यथार्थ स्तुति तो हमसे होगी नहीं फिर व्यर्थ प्रयास से क्या लाभ ? हे देव', पापको नमस्कार है। प्रभो श्राप, दिव्य मति हैं, सर्वज्ञ हैं और अनन्त गुण स्वरूप हैं आपको बारम्बार नमस्कार हैं। आप दोपहीन, परम-बन्ध, मंगल स्वरूप, लोकोत्तम, जगत शरण एवं मन्त्रमति हैं आपको कोटिशः प्रणाम है । आप बर्द्धमान स्वरूप हैं पापनो नमस्कार है। आप महावीर हैं. सन्मति है, विश्वके हित स्वरूप हैं, तीनों जगत्के गुरु है, अनन्त सुखके समृद्र हैं इसलिये अापको अनन्त बार नमस्कार है। इस प्रकार परम भक्ति पूर्वक मैं आपकी स्तुति एवं पुनः कोटिशः प्रणाम करके आपसे त्रैलोक्य की सम्पत्ति को नहीं मांगता । हे नाथ, मैं तो
मुख, चक्रवर्ती पद और स्वर्ग की विभूतियां बिना मांगे आप से पाप ही मिल जाती है और मुनि-धर्म पालन से समस्त संसारी दुःखों से मुक्त होकर यही गंगारी जीवात्मा सच्चा जागन्द, अविनाशी सुख और आत्मिक शांति का धारी सर्वज्ञ. सर्वदृष्टा तथा सर्वशक्तिमान परमात्मा तथा मोक्ष की प्राप्ति की शिद्धि अवश्य हो जाती है।
वीर-शासन जिन-शासन सकल पापों का वर्जनहारा और तिहु लोक में अति निर्मल तथा उपमारहित है।
–महागजा दशरथ : पद्मपुराण, पर्व ३१, पृ० २१६ ।
अहिंसावाद Truc world peace could be won only through the application of spiritual and moral values-not by the most terrifying instruments of destruction"
... President Eisenhower, Washington पिछले दो महा भयानक युद्धों के अनुभव ने संमार को बना दिया कि हिंसा रो चाहे थोड़ी देर के लिए शत्रु दब जाये, परन्तु शत्रता का नाश नहीं हो, इसलिए युद्ध और हिंसा में विश्वास रखने वाले देश भीलवार से अधिक हिंसा की शक्ति को स्वीकार करने लगे हैं और भारत मे विश्वशान्ति की आशा करते हैं।
यह विचार करना कि आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले श्री वर्द्धमान महावीर या महात्मा बुद्ध ने अहिंसा को स्थापना की, ठीक नहीं है। अहिंसा एक अत्यन्त प्राचीन मंस्कृति है, जिसको महिमा का प्राचीन से प्राचीन ग्रन्थों में भी बड़ा मुन्दर कथन है । 'मनम्मान में खि
जीने बताया कि हजारों गाल तक अपवमेघ यज्ञ करने से भी वह लाभ नहीं, जो अहिमा धर्म के पालने से होता है। भागवत पुराण में हर प्रकार के यज्ञ और तप करने से भी अधिक अहिंसा का फन बनाया है। 'रामायण' में अहिमा को धर्म का मन स्वीकार किया है। शिवपराणे बागदपरराण, स्कन्धपुराण, रुद्रपुराण में भी अहिंसा की महिमा का कथन है। महाभारत में ब्राह्मणों को हजारों गउओं के दान से भी अधिक न सा को बनाया है। श्रीकृष्ण जी ने तो यहां तक स्पष्ट कर दिया है कि वही धर्म है जहाँ अहिंसा है और कहा है :
अहिंसा परमो धर्मरतथाऽहिंसा परो यमः । अहिंसा परमं दानमहिसा परमं तपः ।।
अहिंसा परमो यज्ञ स्तथाऽहिंसा परं फल म । अहिंमा परम मित्रमहिंसा परमं सुखम् ।। – महाभारत अनुशासन पर्व श्री व्यास जी के दाब्दों में हिन्दू धर्म के लो समस्त १८ पुराण हिंसा की ही महिमा से भरपूर हैं । वैदिक, बौद्ध, मुसलमान, सिक्ख, याई पारसी आदि धर्मों में भी अहिंसा को बड़ा उत्तम स्थान प्राप्त है।
डा कालीदाम नाग ने अहिंसा सिद्धान्त की खोज और प्राप्ति को संसार की समस्त खोजों और प्राप्तियों में महान सिद्ध करते हुए
Law ofGravitation गे भी अधिक बताया है। डा राजेन्द्रप्रसाद जी ने अहिंसा जैनियों की विशेष सम्मति कही है। सरदार वादों में अहिमा वीर पुरुषों का धर्म है। भारत जैनियों की अहिंसा के कारण पराधीन नहीं हुआ वहिक स्वतन्यही अहिमा की बदौलत
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