________________
त्रयोदश अधिकार
मंगलाचरण
दोहा
श्री सन्मति केवल उदय, नास्यो तम अज्ञान । विश्वनाथ प्रणमी सदा, विश्व प्रकाशक भान ।।१।। अब प्रभु दिव्य ध्वनि भई, स्वर्ग मुकति सुखदाय । चतुर वदन प्रारम्भ किय, सप्तभंग' समुदाय ॥२।। तालु मोंठ सपरस बिना, अक्षर रहित गम्भोर । सर्व भाषमय मधुर ध्वनि, सिंह गरज सम धीर ॥३॥
चौपाई
प्रथमहि स्यात् अस्ति जानिये, दूजे स्यात् नास्ति मानिये। तीज स्यात् अस्ति अरु नास्ति, चौथे स्यात् अव्यक्त प्रशस्ति ॥४॥ पंचम् स्यात् अस्ति अव्यक्त, छठम स्यात् नास्ति अव्यक्त । स्यात् जु अस्ति नास्ति जुल जान, प्रवक्तव्य सातम परवान ।।५।।
केवल ज्ञानी सूर्य सम जगत प्रकाशक बीर । अन्धकार अज्ञानको दूर करें मुनिधीर ||१|| इसके बाद उन गीतम स्वामोने थोतार्थ नायक महावीर स्वामीको नत मस्तक होकर प्रणाम किया। भव्य जोबोंकी पौर अपनी कल्याण कामना से अज्ञान के नाश एवं शानको प्राप्तिके लिये उन्हाने सर्वज्ञ जितेन्द्र प्रभुसे प्रश्न मालाका पूछा
- १. अनेकांतवाद तथा स्याद्वाद The Anckantvada or the Syadvada stands unique in the world's thought If followed in practice, it will spell the end of all the warring beliefs and bring harmoay and peace to mankind."
Dr. M. B. Niyogi, Chiel justice Nagpur : Jain Shasan Int.
हर एक वस्तु में बहुत से गुण और स्वभाव होते हैं । ज्ञान में तो उन सबको एक साथ जानने की शक्ति है परन्तु वचनी में उन सबका कथन एक साथ करने की शत्रिन नहीं । क्योंकि एक समय एक ही स्वभाव कहा जा सकता है। किसी पदार्थ के समस्त गुणों को एक ही स्वभाव कहा जा सकता है। किसी पदार्थ के समस्त गुणों को एक साथ प्रकट करने के विज्ञान को जैन धर्म अनेकान्त अथवा स्याहाद के नाम से पुकारता है । यदि कोई पूछे कि संखिया जहर है या जनन ? नो स्याद्वादी यही उत्तर देगा कि जहर भी तथा अमुत भी और जहर अमृत दोनों भी है। अज्ञानी इस सत्य की हंसी उडाने हैं कि एक ही वस्तु में दो बाते कसे ? किन्तु विचारपूर्वक देखा जाये तो संखिया से मर जाने वाले के लिए वह जहर है। दवाई के तौर पर साकर अच्छा होने वाले रोगी के लिए अमृत है । इसलिये संलिये को केवल जहर या अमृत कह देना पूग सत्य कसे कोई पूछे श्री लक्ष्मण जी महाराजा दशरथ के बड़े बेटे थे या छोटे : श्री रामचन्द्र जी से छोटे व शवघ्न से बड़े अत: वे छोटे भी, बड़े भी!
कुछ अन्यों ने यह जानने के लिए कि हाथी कैसा होता है, उसे टटोलना शुरू कर दिया ; एक ने पांव टटोलकर कहा कि हाथी कैसा खम्बे जैसा ही है, दुमरे ने कान टोल पर कहा कि नहीं, हाज जैना ही है. तीसरे ने सूड टोलकर कहा कि तुम दोनों नहीं समझे वह तो लाठी के समान है, चौथे ने कमर टोलकर वहा कि तुम सब झूठ कहते हो हावी तो तमा के समान ही है। अपनी-अपनी अपेक्षा में चारों को लड़ते देख कर आंखवाले ने समझाया कि इसमें झगड़ने की बात क्या है ? एक ही वस्तु के संबंध एक दूसरे के विरुद्ध कहते हुए भी अपनी-अपनी अपेक्षा से तुम
४६