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गीतिका छन्द यह भांति गौतम पठन कर, बहु तत्व आदि अनेक ही। सभा द्वादश हर्ष उपज्यौ, रंक मानों निधि लही।। कहत भवि धन धन्य व्यासहि, तुमहि उत्तम जस लयो । विश्व हित उपकार करता, वचन अमृत पर ठयो ।। ११३।।
इस प्रकार श्रद्धाभक्ति पूर्वक गौतम ब्राह्मण ने जिनाति महावार प्रभु को स्तुति करके उनके चरण कमलों को प्रणाम किया और अपने को त कल्य समझा। इसके अनन्तर वह गौतम ब्राह्मण इन्द्रों का पूज्य होकर सम्यग्दर्शन ज्ञानरूपो रस को पा कर श्रेष्ठ धर्मके उत्तम मार्ग का चतुर ज्ञाता हो गया तथा जघन्य तमो रूपी शत्रुओंका नाशक हुमा ।
लेकर कई दिन के भुग्ने शेर के पिंजरे में भयरहित घुस गये और शेर में कहा कि अदि भुख शान्त करनी है तो यह मिठाई भी तेरे लिये उपयोगी है. और यदि मांस ही खाना है तो मैं खडा है मेरा मांस खालो। शेर भी तो आखिर जीव ही था । दीवन साहब की निर्भयना और अहिंसामयी प्रेमवारणी का उस पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसनेमाको चकित करते हुए शान्त भाव में मिठाई बाली।
श्री विवेकानन्द के मासिक पत्र "प्रबुद्ध भारत" का कथन है कि एण्डरसन नाम का एक अंग्रेज जयदेवगर को जंगल में शिकार बनने गया, वहाँ एक शेर को देखकर उनका हाथी इस, उराने साहब को नीचे गिरा दिया । एण्डरसन ने शेर पर दो नीन गोलियां चलाई' किन्तु निशाना चक गया। अपने प्राणों की रक्षा के हेतु शेर ने साहब पर हमला कर दिया । साहब प्राण बचाने को भागकर पास की एक भोगली में घम गये। वहाँ एक दिगम्बर साधु को देख वह शान्त हो गया । शिकारी को कुछ न कह, वह थोड़ी देर वहाँ चुपचाप बैठकर वापस चना आया तो एण्डरसन ने जैन मावु से इस आरचर्य का कारण पूछा तब नग्न मुनी ने कहा- "जिसके चित्त में हिंसा के विचार नहीं उसे शेर या सांप आदि कोई भी हानि नहीं पहचाना, जंगली जानवरों से तुम्हारे हिंसक भाव हैं इसलिये वे सुम्हारे पर हमला करत है" । गुनिराज को इरा अहिंसामई वारणी का
तना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसी रोज सरा अंगरेज ने हमेशा के लिए शिकार खेलने का त्याग कर दिया और सदा के लिए शाहाकारी बन गया। चटगांव में एण्डरसन के इस परिवर्तन को लोगों न प्रत्यक्ष देखा है ।
एक अंग्रेज विवान मिस्टर पाण्यटन का कथन हैं कि महपि रम ग ना में जी थे । रात्रि में उनाने एक शेर दे पा जो भक्ति पूर्वक रमण के पांव चम रहा था ब बिना कोई हानि पहुंचाये सुबह होने से पहले वहां से चला गया । एक दिन उन्होंने रगण महाराज के आधा में एक काला माफ'कार मारता तुमा देषा जिसे दंगते ही उन्होंने चीस गारी, जिरो सुनकर रमण का एक शिष्य वहां आ गया, और उस जहरील काले सांप को हाथों में लेकर उसके फरण से प्यार करने लगा 1 अंग्रेज ने आश्चर्य से पूछा कि क्या तुम्हें मसरो भय नहीं लगता? उसने कहा, जब इसको हमसे भय नहीं तो हमें इससे भय कैसा जहाँ अहिंसः और प्रेम होता है वहां भयानक पशु नक भी योग-शक्ति से प्रभावित होकर अपनी छात्रुता को भूलकर विरोधियों तक से प्रेम व्यवहार करने लगते हैं।
वास्तव में अहिंसा धर्म परम धर्म है और यदि जैन धर्म को विश्व धर्म होने का अवसर मिले तो हिसा धर्म को अपना कर वह दावी संसार अवश्य स्वर्ग के समान सुखी हो जाये ।
जिनोपदेश
भगवान महावीरको केवलज्ञान वैशाख मुदी १० को हुआ । उग समय ऋतुकूला नदी के तट पर देवादिक इन्द्रों ने केवलज्ञान की पूजा की तिदिन तक उनकी दिव्य ध्वनि नहीं पियरी । वे मौन पूर्वक विहार करते रहे। तब प्रदन हुआ गिः कारगी थी नही धिनी, उत्तर दिया गणधर का अभाव होने से दिव्य ध्वनि नहीं खिरी। सोनम इन्द्रने गणधरका तत्काल उपस्थित नयों नहीं पिया काय लधि के बिना बर सा कैसे कर सकता था? उस समय उममें एराी शकिा का अभाव था। जिसने अपने पाद मूब में महाव्रत धारण किया हो उसके लिए नियमित सकती है। उगता ऐसा स्वभाव है।
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