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अष्टम अधिकार
मंगलाचरण
दोहा बन्दौं वीर जिनेन्द्र पद, तीन जगत श्रिय दैन । पंच कल्याणक भोगता, त्राता मोहि सूचन ॥१॥
भगवान के जन्म कल्याण का वर्णन
चौपाई
चैत्रमास उत्तम शशि पक्ष, त्रयोदशी उत्तम परतक्ष । माता सुख में सोवत थान, जन्म में प्रभु ज्यों प्राची भान ॥ तन दीपत उद्योत अपार, निशि मिथ्यातम के क्षयकार । तीन ज्ञान भूषित उर व्यो, तीन जगत अजित पद लयौ । जनम महत्व भयो अतिशाय, सकल दिशा निर्मलता थाय । तन' सुगन्ध फैली चहुं ओर, नभ में उपज्यौ जै जै शोर ॥४॥ निर्मल पहप वृष्टि तह करें, निज निज टेक पुण्य ह्यि धर। चतुर निकायी देवन भूप, ग्रासन कंप भई निज रूप 11५।। अनहद घण्ट बज्यो सुरलोक, सिंह घोषणा ज्योतिष थोक । शंख भवनवासिन के मेह, भेरी रव व्यंतर कर नेह ॥६॥ सौधर्मेन्द्र प्रादि बहु देव, जन्म जिनेश जान कर भेव' । कल्याणक प्रभु कीजै जाय, लिज निजपर पुण्य उपाय ।।७।। दल साजन याज्ञा की इन्द्र, सप्त अनीक रच्यो ग्रानन्द । हस्ती प्रथम पुतिय हय जान, रथ गन्धर्व नतक पय दान ।। वृषभ सातमों वरनौ भेवा, देव बलाहक विक्रिय एव । जोजन लख ऐरावत भयौ, सो मुख तास दशों दिश ठयो । मख मख प्रति वस दन्त घरेह, दन्त दन्त इक इक सर लेह । सर सर माहि कमलिनी जान, सबासी हैं परमान ॥१०॥ कमलिनि प्रति प्रति कमल बखान, ते पच्चीस पच्चीसहि ठान । कमल कमल प्रति दय सोभंत, प्रष्टोत्तर शत है विकसन्त ॥१॥ दल प्रति एक अप्सरा जान, सब सत्ताइस कोड प्रमान । ता गजपै थारूढ़ जु इन्द्र, अरु सब संग इन्द्राणी बन्द ॥१॥ सामानिक सब देव' अनेक, षोडश स्वर्ग तन कर टेक । आये सकल महोत्सव काज, अपने अपने वाहन साज ॥१७॥ ज्योतिष व्यन्तर और फणीन्द्र, सब परिवार सहित पानन्द 1 दुन्दुभि शब्द महा ध्वनि करें, सकल देव जै जै उच्चर।।१४॥
भोक्ता कल्याणक प्रभ, दाता वैभव सर्व । त्राता गति-संसार के, करें कर्म सब खर्व ।। जो गर्भादिक पंच कल्याणकों के भोक्ता हैं, जो समग्र विश्व को वैभव प्रदान करने वाले हैं, जो सांसारिक चारों गतियों से रक्षा करने वाले हैं, वे प्रभु अर्थात् महाबीर स्वामी मेरे समस्त कर्मों को नष्ट करें।
स्वर्ग से पाई हुई देवियों में कोई तो जिन माता के समक्ष मंगल द्रव्य रखती, किन्हीं देवियों ने माता की सेज बिछानेका भार अपने ऊपर लिया, किमी ने दिव्य प्राभूषण पहनाने का तथा किसी ने माला तथा रत्नों के गहने देनेका । कितनी देवियां माता
१. तीर्थंकरपद पुण्य की महिमा देखिये जिसके कारण बिना इच्छा के भी स्वर्ग के उत्तम सुख स्वयं प्राप्त हो जाते हैं और स्वर्ग से भी महाउत्तम विमान माप से पाप मिल जाते हैं विमान में सम्यग्दृष्टि देवों से तत्व चर्चा करने, तीर्थंकरों के कल्याण को उत्साहपूर्वक मनाने सरल स्वभाव, मन्द कषाय तया अहिंसामयी व्यवहार करने के कारण अच्युत विमान से प्राकर अब में माता त्रिशलादेवी का पुत्र वर्धमान हुआ हूं।