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जो त्रिजग भवि जीवन सु तारक, कर्म अरिनाशन कही । द्वादश सभात अन थिर हो. धर्म उपदेशक सही ।। विश्व जनको हरो बाधा, ज्ञान अमृत चाखियो । प्रनमा अनन्त चतुष्ट नायक, भक्ति मुहि निज दोजियो ।।२११|| असम गूनन निधान हो प्रभु, ज्ञान केवल दृग मही। तीन भुवपति करत सेवा, विश्व लक्ष्मी पद मही ।। सकल दोष विध्वंस कीनी, धर्म तीरथ भीजिये । 'नवलशाह' विचार बिनवं, मोहि शिबाद दोजिये ॥२१२॥
चक्रवत्तियों के द्वारा परम सेव्य हैं, सब के कल्याण करने वाले अद्वितीय बन्धु है, सम्पूर्ण दोषों से होन हैं, धर्म तीर्थ के प्रवर्तक हैं। उपर्युक्त महागुणों से युक्त श्री महावीर प्रभु को मोक्ष गुणों की प्राप्ति के लिये मैं भक्ति पूर्वक स्तुति करता है।
पीठ पर स्थितमूलवृक्ष
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नॉट. शाल्मनी वक्ष में जिजभवन दक्षिनशमन पर हैं और जम्बवृक्षा में उतरशारधार
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