________________
arat प्रतिक्रमा है ग्रन्थ, पंच भेद ताके क्रम पन्थ । ऊ अधो तिरछो गति सर्व क्षेत्र वास्तु मर्यादा घर्व || जो कुछ व्रत को नियम जु करो, तातें विचल नहीं पग घरी ए दश बाहिज परिग्रह जान, अव चौदश संक्षेप बखान ॥२०॥ मिष्यात प्रथम जो वेद, स्त्री त्रय चौथ नपुंसक भेद हास्य पंचमौ परिग्रह जान, रति छठों पागो उरमान ||१३| अरति सप्तमी परिग्रह जो शोक अष्टमो रंच न भजी । भय परिग्रह नवमों नहि त्रास, दशम जुगुप्सा को कर नाश || ६२॥ अनंतानुबंधी तु कपाय, कोच मान माया लोभाय । ऐ चौदश श्राभ्यंतर ग्रंथ, सो छोड़े जिनवर शिवपंथ ॥६३॥ वस्त्र सफल सागरण उतार तनते त्याग नए जिनसार देह भोग मद सबै निवार, स्वातन पद थिर कियो संबार ||२४|| फिर सिद्धन को प्रणमन करो, पल्यंकासन निश्चल घरी । पंच मुष्टि तह लुंचे केश, मोह पाश जिमि टोर जिनेश ॥६५॥ सब सावद्य त्याग तह कियो, अष्टावीस मूलगुण लियो । उत्तर गुण चौरासी लाख, धारी जोग अडोल प्रभाव ||१६||
वीर भगवान को वैराग्य होने के पश्चात् म्राठों लौकान्तिक देवों ने अपने अवधिज्ञान से यह निश्चय कर लिया कि भगवान का तप कल्याणक का उत्सव मनाना चाहिये । पश्चात् वे भगवान वीरके पास आये। उन देवों ने अपने पूर्व जन्ममें द्वादशांगत का अभ्यास किया था। वैराग्य भावनाओं का चितवन किया था, चौदह पूर्ण बुत के जानने वाले स्वभाव से रातब्रह्मचारी तप कल्याण का उत्सव करने वाले एक भय के बाद नियम से मोक्ष जाने वाले उन देशों में श्रेष्ठ वीरमात्मायों की हम सादर नमस्कार करते हैं ।
विद्वान लोnifoe देव कर्मरूपी वैरियोंका नाश करनेमें जो प्रयत्न शील हैं ऐसे वीर भगवान को नमस्कार कर तथा स्वर्ग से जाई हुई पवित्र द्रव्यों से भगवान का पूजन कर वैराग्य मय परिणाम हो जाय ऐसी वैराग्यमयी स्तुति द्वारा वे भगवान का गुणगान करने लगे ।
है वीर प्रभु ! आप जगत के स्वामी हैं, गुरुयों के भी महान श्रेष्ठ ज्ञानी हैं, समझदारों में आप सर्व हैं। तब आपको हम विशेष क्या समझा सकते हैं, इसलिये स्वयं बुद्ध तथा सर्व पदार्थों के ज्ञाता, आपको हम क्या समझावें ? क्योंकि श्राप स्वयं हमको सद्बुद्धि देने वाले हैं। जिस प्रकार प्रकाशवान दीपक तमाम पदार्थों को प्रकाशित करता है, उसी तरह आप भी तमाम संसार के पदार्थों को प्रकाशित करेंगे। परन्तु भगवान ! हमारा यह कर्तव्य है कि हम आपको समझाने के बहाने से आपके दर्शन और भक्ति करने की यहाँ मानेका सौभाग्य प्राप्त कर देते हैं आप तीन ज्ञानके धारी है। आपको कौन शिक्षा दे सकता है क्या सर्पका दर्शन करने के लिये दीपक की मावश्यकता होती है, कदापि नहीं हे देव बलशान मोहरूपी वैरी को जीतने के लिये आपने जो उद्योग किया है, उसे देखकर संसार समुद्र पार होनेकी इच्छा रखने वाले अनेक भव्य सात्माओं का महान हित होगा। आप जैसे दुर्लभ जहाजको पाकर असंख्यात भव्य जीव आपके पवित्र उपदेश से रत्नत्रय धर्मको अंगीकार कर उसके द्वारा सर्वाचं सिद्धि जैसे स्थान को गगन करेंगे। कोई २ प्राणी यापकी वाणी को सुनकर मिथ्या ज्ञानरूपी अन्धकार का निवारण कर सब पदार्थों के साथ ही गोक्ष-लक्ष्मीको देखेंगे। हे प्रभु! आपसे बुद्धिमानों को मन चाहे इष्ट पदार्थों की सिद्धी होगी। हे देव आपके प्रसाद से ही स्वर्ग और मोक्षकी प्राप्ति हो सकेगी।
हे दीनानाथ ! मोहरूपी फंदे में फंसे हुए भव्य प्राणियों को आप ही बराबर सहारा दोगे ; क्योंकि श्रापही तीर्थ को चलाने वाले प्रवर्तक हैं। भापके वचनरूपी मेघ से वैराग्यरूपी अपूर्व बयको पाकर असंख्यात बुद्धिमान महान ऊंचे मोहरूपी शिखर को बालकी बातमें खंड खंड कर देंगे । भापके उपदेश से पापी प्राणी अपने प्राणों को और कामी व्यक्ति काम शत्रुको शीघ्र ही नाश कर डालेंगे, इसमें रंच मात्र भी संदेह नहीं है। हे स्वामी ! यह भी निश्चय है कि बहुत से जीव आपके चरण कमलों को सेवन से दर्शन विशुद्धादि सोलह भावनाओं को स्वीकार करके आपही के समान हो जायेंगे।
प्रभो ! संसारसे वर करने वाले, वैराग्य रूपी अस्त्र को रखो हुए आपको अवलोकन कर मोक्ष और इन्द्रिय रूपी शत्रु अपनी जीवन लीला को समाप्त होने के भय से कांप रहे हैं; क्योंकि हे दीनबन्धु ! आप बलवान सुभट हैं, दुर्जय परिषद् रूपी दीरों को क्षण मात्रमें जीतने की सामर्थ्य रखते हैं। इसलिये हे धीर वीर प्रभो! आप मोह इन्द्रिय रूपी वंरियों को जीतने में तथा भव्यात्माओं उपकार करने के लिये घातिया कर्मरूपी शत्रुओं के नाश करने का शीघ्र ही उपाय करो; क्योंकि अब यह उत्तम समय तपस्या करने के लिये और भव्यों को मोक्ष ले जाने के लिये आपके हाथ में पाया है।
૪૦૭