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क्या यह शरद ऋतु का पूर्ण चन्द्रमा है, अथवा समस्त पदार्थों को जानने के लिए रक्खा हुआ है, अपना अका शोभायमान विशाल पिण्ड है अथवा पुण्य परमाणुओं का समूह है इस प्रकार जिनके सुख-कमल को देखकर लोग शंका किया करते हैं वे चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र अज्ञानान्धकार को नष्ट करते हुए पाप के भय से हमारी रक्षा करें। जिनको द्रव्य और भाव दोनों ही प्रकार की लेश्याएं कमल की मृणाल के समान सफेद तथा प्रशंसनीय सुशोभित हैं, जिनका मुख चन्द्रमा रात कुवलयपृथ्वी - मण्डल अथवा नील कमलों के समूह को हर्षित करता रहता है, जिनके ज्ञानरूप निर्मल दर्पण में त्रिकाल सम्बन्धी जीवाजीवादि पदार्थ दिखाई देते है और जिन्होंने बष्ट कर्मों का समूह नष्ट कर दिया है ऐसे नाज-लक्ष्मी से सम्पन्न चन्द्रप्रभ स्वामी हम सबको लक्ष्मी प्रदान करें जो पहने यो वर्मा हुए, फिर श्रीधर देव हुए, तदनन्त जिससे हुए तत्पश्चात अच्युत स्वर्ग के फिर पद्मनाभ हुए फिर अहमिन्द्र हुए और तदनन्तर प्रष्टम तीर्थकर हुए ऐसे चम्प्रभ स्वामी हम सबकी रक्षा करें। भगवान् पुष्पदन्त
जिन्होंने विशाल तथा निर्मल मोक्षमार्ग में अनेक शिष्यों को लगाया और स्वयं लगे एवं जो सुविधि रूप हैं-उत्तम मोक्षमार्ग को विधि रूप हैं अथवा उत्तम पुण्य से सहित हैं वे सुविधनाथ भगवान् हम सबके लिए सुविधि-मोक्षमार्ग की विधि अथवा उत्तम पुण्य प्रदान करें। पुष्करार्धद्वीप के पूर्व दिग्भाग में जो मेरु पर्वत है उसके पूर्वविदेह क्षेत्र में सोता नदी के उत्तर तट पर पुष्पकलावती नाम का एक देश है । उसको पुण्डरीकिणी नगरी में महापद्म नाम का राजा राज्य करता था। उस राजा ने अपने भुजदण्डों से शत्रुओं के समूह खण्डित कर दिये थे, वह अत्यन्त पराक्रमी था, वह कियो पुराने मार्ग को अपनी वृत्ति के द्वारा नया कर देता था और फिर श्रागे होने वाले लोगों के लिए वही नया मार्ग पुराना हो जाता था। जिस प्रकार कोई गोपाल अपनी गाय का बछी तरह भरणपोषण कर उसकी रक्षा करता है और गाय द्रवीभूत होकर बढ़ी प्रसन्नता के साथ उसे दूध देती हुई सदा संतुष्ट रहती है उम्री प्रकार वह राजा अपनी पृथ्वी का भरण-पोषण कर उसको रक्षा करता था और वह पृथ्वी भी द्रवीभूत हो बड़ो प्रसन्नता के साथ अपने में उत्पन्न होने वाले रहन आदि श्रेष्ठ पदार्थों के द्वारा उस राजा को संतुष्ट रखती थी।
वह बुद्धिमान् सब लोगों को अपने गुणों के द्वारा अपने में अनुरक्त बनाता था और सब लोग भी सब प्रकार से उस बुद्धिमान् को प्रसन्न रखते थे। उसने मंत्री पुरोहित बादि जिन कर्ताओं को नियुक्त किया था तथा उन्हें बढ़ाया था वे सब अपनेअपने उपकारों से उस राजा को बढ़ाते रहते थे। जिस प्रकार मुनियों में अनेक गुण वृद्धि को प्राप्त होते हैं उसी प्रकार उस हुए मणि सदाचारी और शास्त्रज्ञान से सुशोभित राजा में अनेक गुध वृद्धि को प्राप्त हो रहे थे तथा जिस प्रकार संस्कार किये सुशोभित होते हैं उसी प्रकार उस राजा में अनेक गुण सुशोभित हो रहे थे। वह राजा बनायोग्य रीति से विभाग कर अपने ग्राश्रित परिवार के साथ अखण्ड रूप से चिरकाल तक अपनी राज्य लक्ष्मी का उपभोग करता रहा सो ठीक हो है क्योंकि सज्जन लक्ष्मी को सर्वसाधारण के उपभोग के योग्य समझते हैं। नीति के जानने वाले राजा को इन्द्र और यम के समान कहते हैं पुरुष परन्तु वह पुण्यात्मा इन्द्र के ही समान था क्योंकि उसकी सब प्रजा गुणवती थी अतः उसके राज्य में कोई दण्ड देने के योग्य नहीं था ।
उसके गुख की परम्परा निरन्तर बनी रहती थी और उसके भोगोपभोग के योग्य पदार्थ भी सदा उपस्थित रहते वे अतः विशाल पुण्य का धारी यह राजा अपने सुख के विरह को कभी जानता ही नहीं था। इस प्रकार अपने पुष्य के माहात्म्य से जिसके महोत्सव निरन्तर बढ़ते रहते हैं ऐसे राजा महापद्म ने किसी दिन अपने वनपाल से सुना कि मनोहर नामक उद्यान में महान ऐश्वर्य के धारक भूतहित नाम के जिगराज स्थित हैं। यह उनको बन्दना के लिये बड़े वैभव से गया और समस्त जीवों के स्वामी जिनराज की तीन प्रदक्षिणाएं देकर उसने पूजा की, वन्दना की तथा हाथ जोड़कर अपने योग्य स्थान पर बैठकर उनसे धर्मोपदेश सुना । उपदेश सुनने से उसे प्रात्मन उत्पन्न हो गया और वह इस प्रकार विचार करने लगा। अनादि कालीन मिध्यात्व के उदय से दूषित हुआ। यह प्रात्मा, अपने ही आत्मा में अपने ही ग्रात्मा के द्वारा दुःख उत्पन्न कर पागल की तरह अथवा मतदाने की
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