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कहो तो सही प्रापका गोत्र क्या है ? मुरु कौन है, क्या-क्या शास्त्र आपने पड़े हैं, क्या-क्या निमित्त आप जानते हैं, आपका क्या नाम है ? और आपका यह आदेश किस कारण हो रहा है ? यह सब राजा ने पूछा। निमित्तज्ञानी कहने लगा कि कुण्डपुर नगा में मिरथ नाम है। एका जाना है। इसके पुरोहित का नाम सुरगुरु है और उसका एक शिष्य बहुत ही विद्वान है। किसी एक दिन बलभद्र के साथ दीक्षा लेकर मैंने उसके शिष्य के साथ अष्टांग निमित्तज्ञान का अध्ययन किया है और उपदेश के साथ उनका श्रवण भी किया है। अष्टांग निमित्त कौन हैं और उनके लक्षण क्या हैं यदि यह आप जानना चाहते हैं तो है आयुष्मन् विजय ? तुम सुनो, मैं तुम्हारे प्रश्न के अनुसार सब कहता हूँ । आगम के जानकार प्राचार्यों ने अन्तरिक्ष, भोम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण छिन्न और स्वप्न इनके भेद से पाठ तरह के निमित्त कहे हैं। चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे ये पांच प्रकार के ज्योतिषी आकाश में रहते हैं अथवा आकाश के साथ सदा उनका साहचर्य रहता है इसलिए इन्हें अन्तरिक्ष-आकाश कहते हैं। इनके उदय अस्त आदि के द्वारा जो जय-पराजय, हानि, वृद्धि, शोक, जीवन, लाभ, अलाभ तथा अन्य बातों का यथार्थ निरूपण होता है उसे अन्तरिक्ष निमित्त कहते हैं। पृथ्वी के जुदे-जुदे स्थान प्रादि के भेद से किमी की हानि वृद्धि आदि का बतलाना तथा पृथ्वी के भीतर रखे हुए रत्न ग्रादि का कहना सो भौम निमित्त है। अंग उपांग के स्पर्श करने अथवा देखने से जो प्राणियों के तीन काल में उत्पन्न होने वाले शुभ-अशुभ का निरूपण होता है वह अंग-निमित्त कहलाता है।
मृदंग प्रादि अचेतन और हाथी प्रादि चेतन पदार्थों सुस्वर तथा दुःस्वर के द्वारा इष्ट-अनिष्ट पदार्थ की प्राप्ति की
ता ज्ञान स्वर निमित्त ज्ञान है। शिर मुख आदि में उत्पन्न हए तिल यादि चिह्न अथवा घाव आदि किसी का लाभ मलाभ आदि बतलाना सो व्यंजन-निमित्त है। शरीर में पाये जाने वाले श्री वृक्ष तथा स्वस्तिक श्रादि एक सौ पाठ लक्षणों के द्वारा भोग ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति का कथन करना लक्षण-निमित्त ज्ञान है। वस्त्र तथा शास्त्र आदि में मूषक आदि जो छेद कर देते हैं वे देव, मानुष और राक्षस के भेद से तीन प्रकार के होते है उनसे जो कल कहा जाता है उसे छिन्न-निमित्त कहते हैं । शुभ-अशुभ के भेद से स्वप्न दो प्रकार के कहे गये हैं उनके देखने से मनुष्यों की वृद्धि तथा हानि आदि का यथार्थ कथन करना स्वप्न निमित्त कहलाता है। यह कहकर बह निमित्त ज्ञानी कहने लगा क्षधा प्यास आदि बाईस परिषही से में पीड़ित हुमा, उन्हें सह नहीं सका इसलिए मुनिपद छोड़ कर पधिनीखेट नाम के नगर में मा गया। वहां सोम शमी नाम के मेरे मामा रहते थे। उनके हिरण्यलोमा नाम की स्त्री से उत्पन्न चन्द्रमा के समान मुख वाली एक चन्द्रानना नाम की पुत्री थी। वह उन्होंने मुझे दी। धन कमाना छोड़कर निरंतर निमित्त शास्त्र के अध्ययन में लगा रहता था अतः धीरे-धोरे चन्द्रानना के पिता के द्वारा दिया हुआ धन समाप्त हो गया । मुझे निर्धन देख वह बहत विरक्त अथवा खिन्न हई। मैंने कुछ कौड़ियां इकट्ठी कर रक्खी थीं । दूसरे दिन भोजन के समय यह तुम्हारा दिया हा धन है ऐसा कहकर उसने क्रोध-बश वे सब कौड़ियां हमारे पात्र में डाल दीं।
उनमें से एक अच्छी कौड़ी स्फटिक-मणि के बने हुए सुन्दर थाल' में जा गिरी, उस पर जलाई हुई अग्नि के फुलिंगे पड़ रहे थे (?) उसी समय मेरी स्त्री मेरे हाथ धुलाने के लिए जल की धारा छोड रही थी उसे देखकर मैंने निश्चय कर लिया कि मुझे सन्तोष पूर्वक अवश्य ही धन का लाभ होगा। आपके लिये यह प्रादेश इस समय प्रभोघ-जिब नामक मुनिराज ने किया है। इस प्रकार निमित्त ज्ञानी ने कहा। उसके मुक्तिपूर्ण वचन सुनकर राजा चिन्ता से व्यग्र हो गया। उसने निमित्त ज्ञानी को तो विदा किया और मन्त्रिों से इस प्रकार कहा-कि इस निमित्त ज्ञानी की बात पर विश्वास करो और इसका शीघ्र ही प्रतिकार करो क्योंकि मूल का नाश उपस्थित होने पर विलम्ब कौन करता है ? यह सुनकर मुमति मन्त्री बोला कि आपकी रक्षा करने के लिए आपको लोहे को सन्दुक के भीतर रखकर समुद्र के जल' से भीतर बैठाये देते हैं। यह सुनकर सुबुद्धि नाम का मंत्री बोला कि नहीं, वहाँ तो मगरमच्छ आदि का भय रहेगा इसलिये विजया पर्वत की गुफा में रख देते हैं। सुबुद्धि की बात पूरी होते ही बुद्धिमान् तथा प्राचीन वृत्तान्त को जानने वाला बुद्धिमान नाम का मंत्री यह प्रसिद्ध कथानक कहने लगा।
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