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तीन काल जुत जोग में महा तपोधन जान उपाध्याय गरमेष्ठि को नमीं जोर जुग पान ॥ ५२ ॥ ॥ प्राचार्य परमेष्ठी को नमस्कार ।। भूषित पंचाचार करि पाठक जिनवर लोन वन्दो जिनके गुण अरथ, धुति करके सुख सीन ॥५३॥ ॥ साधु परमेष्ठी को नमस्कार ॥
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तीन काल जुस जोग में महा तपोधन जान साधव ते जग पूज्य हैं संस्तुति करों बखान ॥ ५४|| || शारदा को नमस्कार ।। चौपाई
भारति जगत मान्य है कही, जिनमुख अम्बुज उद्भव सही are free ra दरयनो भूति करके शारद शिर मनी
देव शास्त्र गुरु पूर्व विधि वक्ता श्रोता भादि ६
कविता रचना को परवीन, शुद्धवृत्ति मतिदाइक लोन ||५५३| होउ परमबुद्धि की करतार, दरवान ज्ञान सिद्ध मुझ सार ।। ५६ ।। दोहा
बन्दों गुण अभिराम लक्षण कहाँ प्रवीन
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सिद्धि सुदृष्ट अनिष्ट हर मंगल सुख के प्रतिष्ठादि अरु ग्रन्थ में होइ शुद्ध मति वक्ता के गुण
जीभाई
धाम ।। ५७ ।। लीन ||१०||
सर्वसंग निर्मुक्त प्रवीन, पूजा में सो निशदिन लीन । अनेकान्त मत पंडित होइ, सकल शास्त्र को वेदक सोइ ।। ५६ ।। बिन कारण जग बन्धन सहै, भव्य जीव हित ऐसी कहै प भूषण मय दरशन ज्ञान, समता गुणसागर शुभ ध्यान ॥ ६०॥ निरलोभी अरु निरहंकार, पुन धर्मी शुभ वचन विचार । जिन शासन माहात्म्य प्रवीन, परकाशक मुनिवर व्रत लीन ॥ ६१ ॥ I महाघीय प्रज्ञावर पास, शास्त्र प्रादि रखने छनिवास कीति प्रसिद्धिमान जग होइ, सत्य वचन अंकित बुधसो ||६२||
श्रोता के लक्षण
जो सम्वरदृष्टी शीलवती, सिद्धान्त ग्रन्थों के अपन में उत्सुक और शास्त्रोपदेश को धारण करने में समर्थ हो, जिनेन्द्र देव के सिद्धान्तोंको माननेवाले के भक्त, सदाचारी और पदार्थ स्वरूपके विचारक और कसोटी के सद्दा परीक्षक हों वे आचार्य के कथनानुसार शास्त्रोंका अध्ययन कर सार-प्रसार का अन्वेषण कर सत्यग्रहण करनेवाले हों, यदि आचार्यको कहीं भूल भी हो जाय तो उसपर हंसनेवाले न हों, ऐसे श्रोता गुणोंके धारक और श्रेष्ठ कहे गये है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक श्रेष्ठ गुणों को धारण करनेवाले श्रोताओं के लक्षण दूसरे शास्त्रों के लक्षण दुसरे शास्त्रों से जानना ।
श्र ेष्ठ कथा का लक्षण
जिस कथा तथा उपदेश में जीवादि सप्ततत्वों का पूर्ण रूप से विवेचन किया गया हो, जहां संसार देह भोगों पन्त में वैराग्य बतलाया गया हो, जिसमें दान, पुजा तपशील प्रसादि एवं उनके फल तथा बंध मोक्षका स्वरूप एवं कारण बताये गये हो। वस्तुतः जिस धर्म की माता जीवदया प्रसादसे भव्यजन समस्त परिग्रहोंका परित्याग कर स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करते हैं, जीव दया का वर्णन जिस कयामें पूर्णरूप से किया गया हो जिस उपदेशमें महान पदवी को धारण करनेवाले मोक्षगामी स शलाका पुरुषोंके चरित्र एवं उनकी विभूतियों का विस्तृत वर्णन हो, साथ ही उन महापुरुषों के पूर्वजन्मों की कथायें तथा उनके पूर्व कर्मों के फल आदिका वर्णन हो, वह श्रेष्ठ कथा कल्याण कारिणी 'धर्म-कथा' कही जाती है । वही सत्य कथा है, जिसका पूर्वापर विरोधी नहीं है और जिनसूत्र के आधार पर हो। इसके अतिरिक्त अन्य श्रृंगारादिरसों को प्रकट करने वाली पापकारिणी कथा स्वप्न में भी शुभ करने वाली नहीं हो सकती । इसका वत्रता - श्रोता और कथा के लक्षणों का संक्षिप्त में विवेचन कर अब मैं श्री महावीर भगवान के परम निर्मल चरित्र का वर्णन करता हूं, जो सदा पुण्य का कारण और पाप का नाशक है । केवल यही नहीं, यकता तथा श्रोता दोनों का हित करने वाला है। इस चरित्रको श्रवण कर भव्य जीव पुण्यका संग्रह करते हैं, उनके पाप का विनाश होता है और उन्हें दुःख रूपी संसारसे भय उत्पन्न होता है ।
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