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दोहा
भरम हरण प्रानन्द करण, मुकति रमणि भरतार मोह तिमिर नाशन सरक, बन्दी निज हितकार ||७|| ।। अथ चौबीस जिनको नमस्कार ||
चौपाई
वृषभ वृषभ चक्री कृत सार वृषभ तोर्थ वर्तावन हार मोह वाम भारति इन्द्रीय, दुसह परियहादिक जोतोय संभव भय हैं सार महान तीन लोक भवि जीवन जान सचिदानंद भगवान मनोग, आनंद करता हरता सोग । श्रातम थिति अभिनंदन देव, आनंद हेत करों नित सेव ||११||
सुर्मात जिनेश सुमति दातार । भवि जीवन संबोधन सार । स्वच्छ सुमतिकी सिद्धिविशाल । बन्दी तास हूण भव जाल ।। १२ ।।
वृषदायक वृप आम जान, बन्दों नृप मनाच भगवान ||८|| एकाको अमित जु सर्व अजितनाथ बन्दों तजि गर्व ॥ १|| संपूरण सुख के करवार वन्दों निराबाध सुविचार ||१०||
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शीतल भव्य जीवको सार प्रणमी श्रेय श्रेय दातार के
बन्दों पद्म प्रभु भगवान, पद्मा पद्म अलंकृत जान नमीं सुपार्श्वनाथ जिनराय, सुमिय नरनको पारस राय जगत जीव मानन्द करवार, धर्मामृत करि पूरित सार सुविधि शुभ्रम भ्रम हरता वान सुरय मुकति सुख प्रापति काज पार ताप नाशक भवतार प्रभु भुति घारं
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संसार
सकल जीवको हैं दातार, पद्मा पद्मकांत शुभसार || १३|| सूख अनन्त अरु गुण जु अनन्त, अष्टकर्मको कोनों प्रत ॥ १४॥ मिध्यातम हर चन्द्र समान बन्द चन्द्रप्रभु सुखदान || १५|| भव्यानि विधि उपदेशक जान
भ्रमनायक अनमी जिनराज ॥ १६ ॥
दिव्य सुधा ध्वनि जास, नमीं पाप छेदन शुभ वास ॥१७॥ विश्वभेय पर मोकर श्रेय, श्रेय लीन सुखदायक मेव ||१८||
वर
| अरु
सुमेरु पर्वत पर जिनका जन्माभिषेक उत्सव देखकर इन्द्र के सह नेत्र हो गये।
जिन्होंने पेशवावस्थामें राज्यविभूति को तृणवत समझकर तथा कामरूपी शत्रु को परित्याग कर कठिन तपस्या के लिये वन में गमन किया । जिन्हें माहार दान देने के कारण चन्दना नामकी कन्या त्रैलोक्य में प्रख्यात हुई ।
जो द्र के उपसर्गोको शान्तिपूर्वक सहन कर 'महावीर' नामसे प्रसिद्ध हुए। जिन्होंने घातिया कर्मरूपी सोधाओं को परास्त कर केवलज्ञान प्राप्त किया।
जिन भगवान ने स्वर्ग मोक्ष रूपी लक्ष्मी प्रदान करनेवाला धर्मका प्रकाश किया, जो ग्राज पर्यन्त श्रावण और मुनि धर्म के रूप में विद्यमान है और भविष्यमें भी रहेगा।
जिनके कर्म जीतने से 'वीर', धर्मोपदेश देनेसे 'सन्मति धीर उपसर्गों को सहन करने से 'महावीर' नाम है, उन मनन्त गुणोंसे परिपूर्ण श्री महावीर प्रभुको में उनके गुणोंकी प्राप्ति के लिये मन, वचन, कायसे सदा नमस्कार करता हूं । इनके साथ ही मैं श्री ऋषभदेव मादि तेइस तीर्थंकरोंको भो तीनों योगोंसे बारम्बार नमस्कार करता हूं।
मैं ऐसे समस्त सिद्धों को नमस्कार करता हूं, जो सम्यकत्वादिष्ट गुणों सहित लोक शिखर पर विराजमान हैं ।
श्री महावीर स्वामी मोक्ष जानेके पश्चात् श्री गौतम स्वामी, सुधर्माचार्य और अन्तिम श्री जम्बूस्वामी ने तीन केवलज्ञानी हुए।
ये तीनों श्री महावीर स्वामी निर्वाण प्राप्त होनेके ६२ वर्ष पश्चात् धर्मके प्रवर्तक हुए।
उनके चरण कमलोग भक्तिभाव रचता हुआ में उनके गुणोंकी प्राप्ति की इच्छा रखता है।
इनके सौ वर्ष बाद अंग-पूर्वोके जानकार नन्दी, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रबाहु स्वामी ये पांच श्रुतकेवल) हुए। मेरा उनके चरणों में शतशः नमस्कार है।
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