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स्वास्थ्यम्) मृत्यु को प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार गम्भीर वचन कह कर अचल बल ने उस दूध को विदा कर दिया उसने भी जाकर हवा की तरह उसकी कोपाति को प्रदीप्त कर दिया। यह सुनकर कोपाग्नि से प्रदीप्त हुआ तारक निके समान प्रज्वलित हो गया और कहने लगा कि इस प्रकार वे दोनों भाई मेरी कोधारित के पतंगे बन रहे हैं। उसने मंत्रियों के साथ देकर किसी कार्य का विचार नहीं किया और अपने आपको सर्वशक्ति सम्पन्न मानकर मृत्यु प्राप्त करने के लिए प्रस्थान कर दिया | अन्याय करने के सम्मुख हुआ वह मूर्ख पतंग सेना से समस्त पृथ्वी को कंपाता हुआ उदय होने के सम्मुख हुए उन दोनों भाइयों के पास जा पहुंचा। उसने मर्यादा का उल्लंघन कर दिया था इसलिए प्रलयकाल के समुद्र को भी जीत रहा था । इस अतिशय दुष्ट तारक ने शीघ्र ही जाकर अपनी सेनारूपी बेला (ज्वार-भाटा) के द्वारा अचल और द्विपृष्ठ के नगर को घेर लिया।
जिस प्रकार कोई पर्वत जल की लहर को अनायास हो रोक देता है उसी प्रकर पर्वत के समान स्थिर रहने वाले अचल ने अपनी सेना के द्वारा उसकी निःसार सेना को श्रनायास ही रोक दिया था। जिस प्रकार सिंह का बच्चा मत्त हाथी के ऊपर आक्रमण करता है उसी प्रकार उद्दण्ड प्रकृति वाले द्विपृष्ठ ने भी एक पराक्रम की सहायता से ही बलवान् शत्रु पर आक्रमण कर दिया । तारक ने यद्यपि चिरकाल तक युद्ध किया पर ता भी वह द्विपृष्ठ को पराजित करने में समर्थ नहीं हो सका । ग्रन्त में उसने यमराज के पत्र के समान अपना चक्र घुमा कर फेंका। वह चक्र द्विदृष्ठ को प्रदक्षिणा देकर उस लक्ष्मीपति को दाहिनी भुआ पर स्थिर हो गया और उसने उसी चक्र को तारक के लिए भेज दिया । उसी समय द्विष्ट, सात उत्तम रत्नों का तथा तीन खण्ड पृथ्वी का स्वामी हो गया बोर अचल वलभद्र वन गया तथा चार रहना उसे प्राप्त हो गये। दोनों भाइयों ने शत्रु राजाओं को जीतकर दिग्विजय किया और श्री वासुपूज्य स्वामी का नमस्कार कर अपने नगर में प्रवेश किया। चिरकाल तक तीन खण्ड का राज्य कर अनेक सुख भोगे । श्रायु के अन्त में सरकर द्विपृष्ठ सातवें नरक गया ।
भाई के वियोग से अचल को बहुत शोक हुआ जिससे उसने श्री वासुपूज्य स्वामी का आश्रय लेकर संयम धारण कर लिया तथा मोक्ष-दमी के साथ समागम प्राप्त किया। उन दोनों भाइयों ने किसी पुण्य का बीज पाकर तीन खण्ड की पृथ्वी पाई अनेक विभूतियां पाई और साथ ही साथ उत्तम पद प्राप्त किया परन्तु उनमें से एक तो अंकुर के समान फल प्राप्त करने के लिए कार को ओर (मोक्ष) गया और दूसरा पाए से युक्त होने के कारण फलरहित जड़ के समान नीचे की ओर (नरक) गया। इस प्रकार द्विपृष्ठ तथा प्रचल का जो भी जीवन वृत्त घटित हुआ है वह सब कर्मोदय से ही घटित हुआ है ऐसा विचार कर विशाल वृद्धि के धारक अर्थ पुरुषों को पाप छोड़कर उसके विपरीत समस्त सुखों का भण्डार जो युग्म है वही करना चाहिए। राजा हिपृष्ठ पहले इसी भरत क्षेत्र के कनकपुर नगर में सुण नाम का प्रसिद्ध राजा हुआ फिर परकर चौदह स्वयं में देव हुआ, तदनन्तर तीन खण्ड की रक्षा करने वाला द्विपृष्ठ नाम का अर्थचक्री हुआ और इसके बाद परिग्रह के महान् भार से मरकर सातवें तरफ गया। वरामत्र, पहले महापुर नगर में वायुरथ राजा हुआ, फिर उत्कृष्ट चारित्र प्राप्त कर उसी प्राणत स्वर्ग के अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ, तदनन्तर द्वारावती नगरी में अचल नाम का बलभद्र हुआ और अन्त में निर्वाण प्राप्त कर त्रिभुवन के द्वारा पूज्य हुआ। प्रतिनारायण तारक पहने प्रसिद्ध विध्यनगर में विन्ध्यशक्ति नाम का राजा हुआ, फिर विरकाल तक संसार-वन में भ्रमण करता रहा। कदाचित थोड़ा पुण्य का संचय कर श्री भोगवर्द्धन का राजा तारका मीर में द्विपृष्ठ नारायण का शत्रु होकर — उसके हाथ से मारा जाकर महापाप के उदय से अन्तिम पृथ्वी में नारकी उत्पन्न हुआ ।
भगवान् विमलनाथ
जिनके दर्पण के समान निर्मल ज्ञान में सारा संसार निर्मल स्पष्ट दिखाई देता है और जिनके सब प्रकार के मलों का अभाव हो चुका है ऐसे श्री विमलनाथ स्वामी श्राज हमारे मलों का अभाव करें - हम सबको निर्मल बनायें। पश्चिम धातकी खण्ड द्वीप में पर्व से पश्चिमी और सीता नदी के दक्षिण तट पर रम्बकावती नामक एक देश है उसके महानगर में वह पद्मसेन राजा राज्य करता था जो कि प्रजा के लिए कल्पवृक्ष के समान इच्छित फल देने वाला था। स्वदेश तथा परदेश के विभाग से कहे हुए नीति-शास्त्र सम्बन्धी अर्थ का निश्चय करने में उस राजा का चरित्र उदाहरण रूप था ऐसा शास्त्र के जान
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