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भीतर-बाहर शुद्ध थे, दर्पण के समान समदर्शी थे, कछुवे के समान संकोची थे, सांप के समान कहीं अपना स्थिर निवास नहीं बनाते थे, हाथी के समान चुपचाप गमन करने थे, शृंगाल के समान सामने देखते थे, उत्तम सिंह के समान शुरवीर थे और हरिण के समान सदा विनिद्र - जागरूक रहते थे । उन्होंने सब परिषह जीत लिये थे, सब उपसर्ग सह लिये थे और विक्रिया यदि अनेक ऋद्धियां प्राप्त कर ली थीं। उन्होंने क्षपक श्रेणी पर ग्रारूढ़ होकर दो शुक्लध्यानों के द्वारा घातिया कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया था तदनन्तर अनेक देशों में विहार कर अनेक भव्य जीवों को समीचीन धर्म का उपदेश दिया योर कुमार्ग में चलने वाले मनुष्यों के लिये दुर्गम मोक्ष का समोचीन म सबको बतलाया जब उनकी आयु अन्तर्मुहुर्त की रह गई तब तीनों योगों का निरोध कर उन्होंने समस्त कर्मों के क्षय से प्राप्त होने वाला पविनाशो गोक्ष पद प्राप्त किया जिन्होंने अपने जिनेन्द्र के समान शरीर से सनतकुमार इन्द्र को जीत लिया, जिन्होंने अपने पराक्रम के बल से दिशाओं के समूह पर श्रा मग किया और धर्म द्वारा पापों का समूह नष्ट किया वे श्री सनतकुमार भगवान् तुम सब के लिए शीघ्र ही लक्ष्मीप्रदान करें।
भगवान् शान्तिनाथ
संसार को नष्ट करने वाले जिन घातिनाथ भगवान का ज्ञान, पर्याय सहित समस्त द्रव्यों को जानकर मागे जानने योग्य द्रव्य न रहने से विधान्त हो गया वे शान्तिनाथ भगवान तुम सबको शान्ति के लिए हों पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को देखने वाला विद्वान पहले वक्ता, श्रोता तथा कथा के भेदों का वर्णन कर पीछे गम्भीर अर्थ से भरी हुई धर्मकथा कहे। विद्वान होना, श्रेष्ठ चारित्र धारण करना, दयालु होना, बुद्धिमान होना, बोलने में चतुर होना, दूसरों के इशारे को समझ लेना, प्रश्नों के उपद्रव को सहन करना, मुख अच्छा होना, सोक व्यवहारका जाता हो, पूजा से युक्त होना और थोड़ा बोलना, इत्यादि धर्मापदेश देने वाले के गुण हैं। यदि वक्ता तत्वों का जानकार होकर भी चारित्रों से रहित होगा तो यह कहे अनुसार स्वयं ग्राचरण क्यों नहीं करता ऐसा सोचकर साधारण मनुष्य उसको बात को ग्रहण नहीं करेंगे। यदि वक्ता सम्यक चारित्र से युक्त होकर भी शास्त्र का ज्ञाता नहीं होगा तो वह घोड़े से शास्त्र ज्ञान से उद्धत हुए मनुष्यों के हास्ययुक्त वचनों से समीचीन मोक्ष मार्ग की हंसी करावेगा। जिस प्रकार ज्ञान और दर्शन जीव का प्रवाधित स्वरूप है उसी प्रकार विद्वता और सच्चरित्रता वक्ता का मुख्य लक्षण है। यह योग्य है अथवा अयोग्य है ? इस प्रकार कही हुई बात का अच्छी तरह विचार कर सकता हो, अवसर पर योग्य वात के दोष कह सकता हो, उस बात को भक्ति से ग्रहण करता हो, उपदेश श्रवण के पहले ग्रहण किये हुए प्रसार उपदेश में जो विशेष प्रादर अथवा हठ नहीं करता हो, भूल हो जाने पर जो हंसी नहीं करता हो, गुरु भक्त हो, क्षमावान हो, संसार से डरने वाला हो, कहे हुए वचनों को धारण करने में तत्पर हो, तोता मिट्टी अथवा हंस के गुणों से सहित हो वह श्रोता कहलाता है। जिसमें जीव सजीव आदि पदार्थों का अच्छी तरह निरूपण किया हो, दान पूजा तप और शील की वर्णन विशेषताऐं विशेषता के साथ बतलाई जाती हों, जीवों के लिए बन्ध, मोक्ष तथा उनके कारण और फलों का पृथक-पृथक किया जाता हो, जिसमें सत् खीर असत की कल्पना युक्ति से की जाती हो, जहां माता के समान हित करने वाली दया का खूब वर्णन हो और जिनके सुनने से प्राणी सर्वपरिग्रह का त्याग कर मोक्ष प्राप्त करते हों वह तत्वधर्म कथा कहलाती है इसका दूसरा नाम धर्मकथा भी है। इस प्रकार वक्ता, श्रोता और धर्मकथा के लक्षण कहे । अब इसके श्रागे शान्तिनाथ भगवान का विस्तृत चरित्र कहता हूँ।
अवान्तर—जो समस्त द्वीपों का स्वामी है और लवण समुद्र का नीला जल ही जिसके बड़े शोभायमान वस्त्र हैं ऐसे जम्बूद्वीप रूपी महाराज के मुख की घोभा को धारण करने वाला, छह खण्डों से सुशोभित, लवणसमुद्र तथा हिमवान् पर्वत के मध्य स्थित भरत नाम का एक अभीष्ट क्षेत्र है । वहाँ भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले भोगों को आदि लेकर चक्रवर्ती दश प्रकार के भोग, तीर्थंकरों का ऐश्वर्य और ग्रघातिया कर्मों के भय से प्रकट होने वाली सिद्धि-मुक्ति भी प्राप्त होती है इसलिए विद्वान लोग उसे स्वर्गलोक से भी श्रेष्ठ कहते हैं उस क्षेत्र में ऐरावत क्षेत्र के समान वृद्धि और सास के द्वारा परिवर्तन होता रहता है। उसके ठीक बीच में भरतक्षेत्र का प्राधा विभाग करने वाला, पूर्व से पश्चिम तक लम्बा तथा ऊंचा विजवार्थ पर्वत सुशाभित
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