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पुर का राजा धनंजय समस्त विद्याधरों का स्वामी है। इनमें से किसी एक के लिए कन्या देनी चाहिये यह निश्चय है। बहुध त के वचन हृदय में धारण कर तथा विचार कर स्पतिरुणी नेत्र को धारण करने वाला थत नाम का तीसरा मंत्री निम्नांकित मनोहर वचन कहने लगा । यदि कुल, पारोग्य वय और रूप प्रादि से सहित बर के लिए कन्या देना चाहते हो तो मैं कुछ कहता हूं उसे थोड़ा सुनिये । इसी विजयाई पर्वत की उत्तर श्रेणी में सुरेन्द्रकान्तार नाम का नगर है उसके राजा का नाम मेघवाहन है। उसके मेघमालिनी नाम की बल्लभा है । उन दोनों के विद्युत्प्रभ नाम का पुत्र और ज्योतिर्माला नाम की निर्मल पुत्री है। खगेन्द्र मेघवाहन उन दोनों पुत्र-पुत्रियों से ऐसा समृद्धिमान सम्पन्न हो रहा था जैसा कि कोई पुण्य कर्म और सवद्धि से होता है। अर्थात पुत्र पुण्य के समान था और पुत्री बद्धि के समान थी। किसी एक दिन मेघवाहन स्तुति करने के लिए सिद्धकट गया था। वहां पर धर्म नाम के अवधिज्ञानी चारणऋद्धिधारी मुनि की वन्दना कर उसने पहले तो धर्म का स्वरूप सुना और बाद में अपने पुत्र के पूर्व भव पूछे । मुनि ने कहा कि हे विद्याधर । चित्त लगाकर सुनो, मैं कहता हूं।
जम्बुद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में वत्सकावती नाम का देश है उसमें प्रभाकरी नाम को नगरी है वहां सुन्दर आकार वाला मन्दन नाम का राजा राज्य करता था । जयसेना स्त्री के उदर से उत्पन्न हुआ विजयभद्र नाम का इसका पुत्र था। उस विजयभद्र ने किसी दिन मनोहर नामक उद्यान में फैला हुआ ग्राम का वृक्ष देखा फिर कुछ दिन बाद उसी वृक्ष को फलरहित देखा। यह देख उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया और विहितासव गुरु से चार हजार राजाओं के साथ संयम धारण कर लिया। प्राय के अन्त में माहेन्द्र स्वर्म के चक्र नामक विमान में सात सागर की आयु वाला देव हुआ। वहां चिरकाल तक दिव्य-भोगों का उपभोग करता रहा । वहां से च्युत होकर यह तुम्हारा पुत्र हुआ है और इसी भव से निर्वाण को प्राप्त होगा। श्रुतसागर मन्त्री कहने लगा कि मैं भी स्तुति करने के लिये सिद्धकट जिनालय में बट धर्म नामक चारण मुनि के पास गया था वहीं यह सब मैंने सुना है।
इस प्रकार विद्युत्प्रभ वर के योग्य समस्त गुणों में सहित है उसे ही कन्या दी जावे और उसकी पुण्यशालिनी बहिन ज्योतिर्माला को हम लोग अर्ककीर्ति के लिए स्वीकृत करें। इस प्रकार श्र तसागर के वचन सुनकर विद्वानों में अत्यन्त श्रेष्ठ सुमति नाम कामंत्री बोला कि इस कन्या को पृथक-पृथक् अनेक विद्याधर राजा चाहते हैं इसलिए विद्युत्प्रभ को कन्या नहीं देनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से बहुत राजाओं के साथ बर हो जाने की सम्भावना है मेरी समझ से तो स्वयंवर करना ठीक होगा। ऐसा कह कर वह चुप हो गया । सब लोगों ने यही बात स्वीकृत कर ली, इसलिए विद्याधर राजा ने सब मंत्रियों को विदा कर दिया और संभिन्नश्रोत नामक निमित्तज्ञानी से पूछा कि स्वयंप्रभा का हृदयबल्लभ कौन होगा ? पुराणों के अर्थ को जानने वाले निमित्त-ज्ञानी ने राजा के लिये निम्न प्रकार उत्तर दिया। वह कहने लगा कि भगवान ऋषभदेव ने पहले पूराणों का वर्णन करते समय प्रथम चक्रवर्ती से, प्रथम नारायण से सम्बन्ध रखने वाली एक कथा कही थी। जो इम प्रकार है
इसी जम्बद्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्र में एक पुष्कलावती नाम का देश है उसकी पुण्डरीकिणी नगरी के समीप ही मधक नाम के वन में पुरुरवा नाम का भीलों का राजा रहता था। किसी एक दिन मार्ग भूल जाने से इधर-उधर घूमते हए सागरसेन मुनिराज के दर्शन कर उसने मार्ग से ही पूण्य का संचय किया तथा मद्य मांस मधु का त्याग कर दिया । इस पुण्य के प्रभाव से वह सीधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुअा और बहाँ ये च्युत होकर तुम्हारी अनन्तसेना नाम की स्त्री के मरीचि नाम का पुत्र हमा है। यह मिथ्या मार्ग के उपदेश देने में तत्पर है इसलिये चिरकाल इस संसाररूपी चक्र में भ्रमण कर सुरम्यदेश के पोदनपूर नगर के स्वामी प्रजापति महाराज की मृगावती रानी से त्रिपृष्ठ नाम का पुत्र होगा। उन्हीं प्रजापति महाराज की दूसरी रानी भद्रा के एक विजय नाम का पुत्र होगा जो कि त्रिपृष्ठ का बड़ा भाई होगा। ये दोनों भाई थेयारानाथ तीर्थकर के तीर्थ में अश्वग्रीव नामक शत्र को मार कर तीन खंड के स्वामी होंगे और पहले बलभद्र कहलायेंगे। त्रिपृष्ठ संसार में भ्रमण कर अन्तिम तीर्थकर होगा।
मापका भी जन्म राजा कच्छ के पुत्र नमि के बंश में हुया है प्रतः बाहुबली स्वामी के वंश में उत्पन्न होने वाले उस
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