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कि हे देव ! यह पिटारा तो हमारा हो है परन्तु इसमें कुछ दूसरे अमूल्य रल मिला दिये गये हैं। इनमें ये रत्न मेरे नहीं हैं इस तरह दहकर सच बोलने वाले, शुद्ध बुद्धि के धारक तथा सज्जनों में श्रेष्ठ भद्रमित्र ने अपने ही रत्न ले लिये। यह जानकर राजा बहुत ही संतुष्ट हुए और उन्होंने भद्रमित्र के लिए सत्यघोष नाम के साथ अत्यन्त उत्कृष्ठ सेठ का पद दे दिया-भद्रमित्र को राजश्रेष्ठी बना दिया और उनका 'सत्यघोष' मंत्री झूठ बोलने वाला है, पापी है तथा इसने पास बहत किये हैं इसलिए इसे दण्डित किया जावे इस प्रकार धर्माधिकारियों के कहे अनुसार राजा ने उसे दण्ड दिये जाने की अनुमति दे दो। इस प्रकार राजा के द्वारा प्रेरित हुए नगर के रक्षकों ने श्रीभूति मंत्री के लिए तीन दण्ड निश्चित किये :-(१) इसका सब धन छीन लिया जाने, (२) वज्रमुष्टि पहलवान के मजबूत तीन घुसे दिये जावें, (३) और कांसे के तीन थालों में रखा हया नया गोबर खिलाया जाये, इस प्रकार नगर के रक्षकों ने उसे तोन प्रकार के दण्डों से दण्डित किया। श्रीभूति राजा के साथ बैर बांधकर पार्तध्यान से कुपित होता हुआ मरा और मरकर राजा के भण्डार में अगन्धन नाम का सांप हुमा।
बाद से परे कापालादारी कहलाती है वह दो प्रकार की मानी गई है एक जो स्वभाव से ही होती और दसरी किसी निमित्त से। जो चोरी स्वभाव से होती है वह जन्म से ही लोभ कषाय के निकृष्ट सम्बन्धों का उदय होने से होती है। जिस मनष्य के नैसगिक चोरी करने को यादत होती है, उसके घर में करोड़ों का धन रहने पर भी तथा करोडों का पालन पर होने पर भी चोरी के बिना उसे संतोष नहीं होता । जिस प्रकार सबको क्षुधा आदि की बाधा होती है उसी प्रकार उसके जारी का भाव होता है। जब घर में स्त्री-पुत्र आदि का खर्च अधिक होता है और घर में धन का प्रभाव होता है तब दसरी तरह को चोरी करनी पड़ती है वह भी लाभ कवाय प्रयवा किसोअन्य दुष्कर्म के उदय से होती है। यह जीव दोनों प्रकारको चारियों में अशुभ ग्राघु का बन्ध करता है यार दुर चेष्टा से दुगति में चिरकाल तक मारी दुख सहन करता है। चोरी करने बाले को सज्जनता नष्ट हो जाता, धनादि के विषय में उसका विश्वास चला जाता है, और मित्र तथा भाई-बन्धयों के साथ से प्राणान्त तक विपत्ति उठानी पड़ती है । जिस प्रकार दावानल से लता शीघ्र ही नष्ट हो जाती है उसी प्रकार गूणरूपी फलों गयी हई कौति रूपी ताजो माला चोरी से शीघ्र ही नष्ट हो जाती है यह सब जानते हुए भी मूर्ख सत्यघोष (श्रीभति) ने
कि चोरी के द्वारा यह साहस कर डाला। इस चोरी के कारण वह मंत्री पद से शोध हो च्युत कर दिया गया, उसे पोत कठिन तोन दण्ड भोगने पड़े तथा बड़े भारो पाप से बंधी हुई दुर्गति में जाना पड़ा। इस प्रकार अपने हृदय में मंत्रों के दराचार का चिन्तवन करते हुए राजा सिहसेन ने उसका मंत्री पद धर्मिल नामक ब्राह्मण के लिए दे दिया।
इस प्रकार समय व्यतीत होने पर किसो दिन असना नाम के बन में विमलकान्ता नाम के पर्वत पर विराजमान नाम के मनिराज के पास जाकर सेठ भद्रमिव ने धर्म का स्वरूप सुना और अपना बहुत-साधन दान में दे दिया। उसकी वा समित्रा इसके इतने दान को न सह सकी अतः अत्यन्त त्रुध हुई और अन्त में मरकर उसी असना नाम के वन में व्याघ्रों हाक दिन भद्रमित्र अपनी इच्छा से असना बन में गया था उसे देखकर दुष्ट अभिप्राय वाली व्याघ्रो ने उस अपने हो पत्र को खा लिया सो ठीक ही है क्योंकि क्रोध से जीवों का क्या भक्ष्य नहीं हो जाता ? वह भद्रमित्र मरकर स्नह के कारण रानी रामदत्ता के सिंहचन्द्र नाम का पुत्र हना तथा पूर्णचन्द्र उसका छोटा भाई हुआ। ये दोनों ही पुत्र राजा को अत्यन्त प्रिय थे। किमी समय राजा सिंहसेन अपना भण्डारागार देखने के लिये गये थे वहां सत्यघोष के जीव अगन्धन नामक सा ने उसे कोसो इस लिया। उस गरुड़दण्ड नामक शारुड़ी ने मन्त्र से सब सपों को बुलाकर कहा कि तुम लोगों में जो निर्दोष हो वह पनि में नाकर बाहर निकले और शुद्धता प्राप्त करे । अन्यथा प्रवृत्ति करने पर मैं दण्डित करूंगा। इस प्रकार कहने पर अगन्धन को लोड बाकी सब सर्प उस अग्नि से क्वेश के बिना ही इस तरह बाहर निकल पाये जिस तरह कि मानो किसी जलाशय से हो
परन्त अगन्धन कोध और मान से भरा था अतः उस अग्नि में जल गया और मरकर कालक वन में लोभ ... जाति कामगआ। राजा सिंहसेन भी आयु के अन्त में मर कर सल्लकी वन में प्रशनि पोषनाम कामदोन्मत्त हाथी हुआ।