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कथन सीतोदावत जानना। विशेषता यह कि नील पर्वत के केसरी द्रह के दक्षिण द्वार से निकलतो है। सौता कण्ड में गिरती हैं। माल्यवान् गजवन्त की गुफा से निकलती है। पूर्व विदेह में से बहती हुई पूर्व सागर में मिलती है। इसकी परिवार नदियां भी सीतोदावत् जानना । नरकान्ता नदी का सम्पूर्ण कथन हरितवत है। विशेषता यह है कि नीलपर्वत के केसरी द्रह के उत्तरद्वार के निकलती है। पश्चिमी रम्यक् क्षेत्र के बीच में से बहती और पश्चिम सागर में मिलती है। नारी नदी का सम्पूर्ण कथन हरिकान्तावत है। विशेषता यह है कि रुक्मि पर्वत के महापुण्डरोक द्रह के दक्षिण द्वार से निकलती है और पूर्व रम्यक् क्षेत्र में
ई पूर्ण सागर में मिलती है । रूप्यकूला नदी का कथन रोहितनदीवत् है । विशेषता यह है कि रुक्मि पर्वत के महापुण्डरीक हुद के उत्तर द्वार से निकलती है। और पश्चिम हरण्वत क्षेत्र में बहती हुई पश्चिम सागर में मिलती है। सुवर्णकुलानदी का सम्पूर्ण कथन रोहितास्यावत है। विशेषता यह है कि शिखरी के पुण्डरीक हुद के दक्षिण द्वार से निकलती है और पूर्वी हरण्य वत् क्षेत्र में बहती हुई पूर्व सागर में मिल जाता है। रक्ता वा रक्तोदा नदी का कथन गंगा व सिन्धुवत है। विशेषता यह कि शिखरी पर्वत के महापुण्डरीक हृद के पूर्व और पश्चिम द्वार से निकलती है। इनके भीतरी कमलाकार कुटों के नाम रक्ता रक्तोदा हैं। ऐरावत् क्षेत्र के पूर्व व पश्चिम में बहती है विदेह के ३२ क्षेत्रों में भी गंगानदी की भाँति गंगा सिन्धु वा रक्ता रक्तोदा नाम की क्षेत्र नदियां है इनका कथन गंगा नदीवत् जानना। इन नदियों को भी परिवार नदियां चौदह चौदह हजार हैं। पूर्व व पश्चिम विदेह में से प्रत्येक में सीता वा सीतोदा के दोनों तरफ तीन तीन करके कुल १२ विभंगा नदियाँ हैं। ये सब नदियां निषध वा नील पर्वत से निकलकर सीतोदा वा सीता नदियों में प्रवेश करती हैं। ये नदियाँ जिन कुण्डों से निकलती हैं वे निषध व नील पर्वत के ऊपर स्थित हैं। प्रत्येक नदी का परिवार २८००० नदो प्रमाण है।
११. देवका वनरक रिर्ट
जम्बूद्वीप के मध्यवर्ती चौथे नम्बर बाले विदेह क्षेत्र के बहमध्य प्रदेश में सुमेरु पर्वत स्थित है। उसके दक्षिण व निषध पर्वत की उत्तर दिशा में देवकूर व उसकी उत्तर व नौल पर्वत की दक्षिण दिशा में उत्तरकुर स्थित है। सुमेरु पर्वत पर चार गजदन्त पर्वत हैं जो एक ओर तो निषध व नील कुचाचलों को स्पर्श करते हैं और दूसरी ओर सुमेरु को । अपनी पूर्व व पश्चिम दिशा में ये दो कुरू इनमें से ही दो दो गजदन्त पर्वतों से घिरे हुये हैं। तहां देवकुरू में निषध पर्वत से १०० योजन उत्तर में जाकर सीतोदा नदी के दोनों तटों पर यमक नाम के दो जल हैं जिनका मध्य अन्तराल ५०० यो. है। अर्थात् नदी के तटों से नदी के अर्ध विस्तार से हीन २२५ यो० हटकर है। इसी प्रकार उत्तरकुरू में नील पर्वत के दक्षिण में सौ योजन जाकर सीता नदी के दोनों तटों पर दो यमक हैं। इन यमकों से पांच सौ योजन उत्तर में
श.प्र. १३२००० वा. प्र० १२८००० ५० प्र. १२०००० पू. प्र. ११८००० त. प्र. ११६००० म. प्र. १०००० यह पाठान्तर अर्थात मतभेद है।
सातों परिवया उर्ध्व दिशा को छोड़ दोष नौ दिशाओं में घनोदधि वातबलय से लगी हुई हैं। परन्तु आठवौं पृथ्विी दशों दिशाओं में ही घनोदधि वाजवलय को छूती हैं।
उपर्य क्त पृथ्वियों पूर्व और पश्चिम दिशा के अन्तराल में वेत्रासन के सदृश आकार वाली है। तथा उत्तर और दक्षिण में समान रूप से दीर्घ एवं अनादिनिधन है।
सर्व गृथ्वियों में नारकियों के बिल कुन चौरासी लाख हैं । अब इसमें से प्रत्येक पृथ्विी का आश्रय करके उन बिला के प्रमाण का निरूपण करते हैं । समस्त पवियों के बिल' ८४०००००।
रत्नप्रभा आदिक पुध्वियों में क्रम से तीस लाख पक्वीस लाख, पन्द्रह लाख, दश, तीन लाख, पांच एक कम एक लास और केवल पाँच ही चारकियों को दिल हैं।
बिल सँख्या-र.प्र. ३००००००। श.प्र. २५०००००। वा.प्र. १५०००००। पं.प्र. १०००.०० | ५. प्र. २०००००त. प्र. RE६९५म. प्र. ५-८४०००००० ।
सातवीं पश्चिी के तो कोक मध्य भाग में ही नारकियों के दिल हैं, परन्तु अबहुल भाग पर्यन्त शेष छह पध्वियों में नीचे व ऊपर एक एक हजार योजन छोड़कर पटनों के क्रम से नारकियों के बिल हैं।
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