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नाम
ऊंचाई व चोड़ाई
दोनों बाह्य विदेशों के बार
चित्रकूट व देवमाल
पद्म व वैडूर्य कूट
नलिन व नागकूट
एक दल व चन्द्रनाग
पूर्वोक्त सामान्य नियम
ज
दोनों अभ्यन्तर विदेहों के वक्षार
श्रद्धावान् व आत्मजन
अंजन व विजय वान
यशोविष व वैभवण
सखावह व त्रिकूट
द पूर्वोक्त सामान्य नियम
आदिम
TI
१६४०७७०३६३
१९८०९५०
२०२११२३३
२०६१३०९५
१४५२०५७३३
१४४१८७७३१६
१४०१६१०१
१३६१५१२३.
विस्तार
मध्यम
१९४१७२५१
१९८२२०४२७
२०२२०६४,
२०६२२६३११४
१४८११०२३३¥
१४४०६२३२१
१४०० ७४३११६
१३६०५६४६३
ठ
पन्ति
ति. प. ४ गा.
१६४२६७९३३३ २८४६
१६८२०५९५३३ २८५४
२०२३०३८३६६ २०६२
२०६३२१८१३ २८७०
दश पटलों में तथा शेष पटलों में भी असंख्यात वर्ष प्रमाण ही नारकियों की आयु होती है।
उन रत्न प्रभादिक सातों पृथिवियों के अन्तिम इन्द्रक बिलों में क्रम से एक, तीन, सात, दश, सत्तरह, बाईस और तेतीस सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट आयु है ।
१४८०१४
२६८२ १४३९९६५११६ २०६०
१३११७८१५५६ २०६८
१३६६६०२३६३
२६०६
सा. १।३२७।१०।१७।२२।३३।
सीमन्तक इन्द्रक में जघन्य वायु दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु नये हजार वर्ष प्रमाण है। निरय इन्द्रक में उत्कृष्ट आयु का प्रमाण न लाख वर्ष है |
१६३
सीमंत ई. में ज. आयु १०००० ५. आ. ६००००; नरक ई. में उ. आपु २०००००० वर्ष
रोक इन्द्रक में उत्कृष्ट आयु असंख्यात पूर्वकोटी, और भात में इन्द्रक में सागरोमन के दसवें भाव प्रकाच उत्कृष्ट है। रो. ई. में असंख्यात पू. को. भ्रा. ई. में पैसा ।
त्रि. सा. १३१-६३३
प्रथम पृथ्वी के चतुर्थ पटल में जो एक सागर के दसवें मान प्रमाण उस आयु है, उसमे प्रथम पृथ्वीय नारकियों की उत्कृष्ट बायु में से कम करके शेष में नौ का भाग देने पर जो लब्ध भावे उतना प्रथम पृथ्वी के अष्टि से कटनों में याद के प्रमाण को लाने के लिये हानि वृद्धि का प्रमाण जानता चाहिये । ( इस हानि-वृद्धि के प्रमाण को चतुर्यादि पटलों की आयु में उत्तरोत्तर कोने पर पटनों में आयु का प्रमाण निकला है)।
र. प्र. पू. में उ. आयु एक सागरोपम है, अत: ११:२० हा. . 1
रत्नप्रभा पृथ्वी के चतुर्थ पंचमादिन्द्रकों में क्रमशः देश से भः जित एक, दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ और दा सागरोपम प्रमाण उत्कृष्ट आयु है ।
उतई.सं. असं विश्रा प्तसित व विका. १३ मा
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