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४. कुण्डसवर पर्वत व उसके ट
नाम
पर्वत -
दृष्टि [सं० १
दृष्टि सं० २
इसके फूट द्वीप के स्वामी
देवों के कूट
ऊंचाई
यो.
७५०००
४२०००
गहराई
यो.
१०००
मूल
...ܐ
यो.
विस्तार
मध्य
१०२२० | ७२३० । ४२४०
मानुषोत्तरवत
मानुषोत्तर के दृष्टि से०२ मत
सर्वत्र उपरोक्त से दूने
उत्तर
यो. 1 यो.
वि.प. रा.बा.३५
३५ पृ. पं
गा.
i
११८
१३०
११२४, १३१ | ११६।१२
१३७
१६६/०
१६५
!
सा.
प्रथम पृथ्वी के निरय नामक द्वितीय पटल में एक धनुष एक हाथ और सत्तरह अंगुल के या
६८७
६६७
त्रि. सा.
गा.
६४३
पृथ्वी के अन्तिम इन्द्रक में नारसियों के शरीर की बाई सात धनुष तो हाथ और छल है। इसके आये षयों के अन्तिम इन्द्रकों में रहने वाले नारकियों के शरीर की ऊंचाई का प्रमाण उत्तरोत्तर इससे दुगुणा दुगुणा होता गया है।
६६०
वर्मा पु. में शरीर की ऊंचाई दं. ७ . ३, अं. ६ बंधा दं, १५, ह. २. अ. १२ मेघा ३१, ह. १, अंजना, ६२, इ. २: अरिष्टा दं, १२५ मध्वी दं, २५० माघवी दं, ५०० ।
रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमन्त पटल में जीवों के शरीर को ऊंचाई तीन हाथ है। इसके आगे शेष पटलों में शरीर की ऊंचाई हानि-बुद्धि को लिये हुए है। सीमन्त ऊंचाई - २
के
अन्त में से आदि को घटाकर शेष में एक कम अपने इन्द्रक के प्रमाण का भाग देने पर जो लब्ध आये उतना प्रथम पृथ्वी में हानिवृद्धि का प्रमाण है | इसे उत्तरोत्तर मुख में मिलाने अथवा भूमि में से कम करने पर अपने पटलों में ऊंचाई का प्रमाण ज्ञात होता है । उदाहरण---अन्त ७ यनु. ३ हा. ६ अ अ दिहा इसे हाथों में परिवर्तित करके २११ - ३ ÷ ( १३ - १) - २ हा. अं. हानि-वृद्धि । घर्मा पृथ्वी में इस हानि-वृद्धि का प्रमाण दो हाथ, आठ अंगुल और एक अंगुल का दूसरा भाग (३) है । हा. २, अं. ८३ ॥
अर्थात् साढ़े आठ अंगुन प्रमाण तथा
शेरुक पटल में एक धनुष, तीन हाथ और सत्तरह अंगुल प्रमाण दशरीर की ऊंचाई है ।
नरक. प. में दं. १, हा. १. मं.
रोचक पटल में दं, १ . ३, अ, १७ ।
प्रांत पटल में दो धनुष, दो हाथ और डेढ़ अंगुल तथा उद्भ्रान्त पटल में तीन धनुष और दश अंगुल प्रमाण शरीर का उत्सेध है ।
भ्रान्त प. में दं. २, ६, २, ३३ उद्भ्रांत प. दं. ३, अं. १० ॥
प्रथम पृथ्वी के संभ्रान्त नामक इन्द्रक में शरीर को ऊंचाई तीन धनुष, दो हाथ और साढ़ अठारह अंगुन है। संभ्रान्त प में दें. ३, ६. २. अं. १५१ ।