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नाम
२. वाई द्वीप के कमलों का विस्तार
पद्मद्र का
मूल कमल
मूल कमल
परिवार कमल
मागे तिछिद्रह
तक
केसरी आदि के
दह
हिमवान् पर
कमलाकार कूट
ऊंचाई
घातकीखंड के
विस्तार
ऊंचाई
दृष्टि सं० १
दृष्टि सं० २
विस्तार-
दृष्टि सं० १
दृष्टि सं० २
ऊंचाई
विस्तार
कमल सामान्य
का
४
४ या २
1
नाल का
मृणाल को
पत्ता को
४२
जल के
१
ऊपर
२
2:40
१
सर्वत्र उपरोक्त से आधा
उत्तरोत्तर दूना
१२
१२५
।
१६७०
नोट :- जल के भीतर १० योजन या ४० कोस तथा ऊपर दो कोस (रा. बा. १८५६); (ह.पु. ५११२८ ) ;
(जि.सा. ५७१) (ज. प. ३।७४)
1
तिमि यदि पत्
१
२
कणिका का
१
२
सि. प. ४ रा.बा. ३ हु.पु.।५।
9.18 |
| १७-१८५१
पंक्ति
गा.
१
ग्रा.
१६६७
१६७०
१७६
१६६७
१६७९
१२
१
जम्बूद्वीप वालों से दूने ( रा. वा. । ३।३३।५।१६५। २३)
5,8
!
१६
त. सू|३|१८
स.मू. | ३|२६|
२०६ | २२|२०१८८३
२५४
१२५
त्रिसा.
गा.
| २७०-५७१
ज. प. प्र.
५७०-५७१ ६।७४
ग्रा.
३।७४
| ३|१२७
३।७४
मधु और मञ्च का सेवन करने वाले प्राणियों के मुखों में नारकी अत्यन्त सपे हुए द्रवित लोहे को डालते हैं, जिससे उनके अवयवसमूह भी पिघल जाते हैं ।
जिस प्रकार तलवार के प्रहार से भिन्न हुआ कुएं का जल फिर से मिल जाता है, इसी प्रकार अनेकानेक शस्त्रों से ा गया नारकियों का शरीर भी फिर मिल जाता है। तात्पर्य यह कि अनेकानेक शस्त्रों से छेदने पर भी नारकियों का अकाल मरा नहीं होता ।
नरकों में कच्छुरि (कपिकच्छु, केवांच), यातनायें किया करते हैं।
करोत, सुई और खर की आग इत्यादि विवध प्रकारों से नारकी परस्पर में एक-दूसरे को