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में ६४ वन हैं इन सब पर अवतंस आदि ६४ वन हैं। उन सब पर अवतंस आदि ६४ देव रहते हैं। प्रत्येक वापी में सफेद रंग का एक-एक दधिमुख पर्वत है। प्रत्येक वापी के बाह्य दोनों कोनों पर लाल रंग के दो रहितकर पर्वत हैं। लोक विनिश्चय की अपेक्षा प्रत्येक द्रह के चारों कोनों पर चार रतिकर हैं। जिनमन्दिर केबल बाहर वाले दो रतिकरों पर ही होते हैं, अभ्यन्तर रतिकरों पर देव क्रीड़ा करते हैं। इस प्रकार एक दिशा में अजनगिरि, चार दधिमुख, पाठरतिकर ये सब मिलकर १३ पर्वत हैं। इनके ऊपर १३ जिनमन्दिर स्थित हैं। इसी प्रकार शेष तीन दिशाओं में भी पर्वत द्रह, वन व जिन मन्दिर जानना। कल मिलाकर ५२ पर्वत, ५२ जिन मंदिर और १६ वापियां हैं। अष्टाह्निक पर्व में सौधर्म ग्रादि इन्द्र व देवगण बड़ो भक्ति से इन मन्दिरों की पूजा करते हैं । तथा पूर्व दिशा में कल्पवासी, दक्षिण में भवनवासी पश्चिम में व्यन्तर और उत्तर में देव पूजा करते हैं।
मानुषोत्तर पर्वत
दृष्टि भेट:--२२ की बजाय २०है। नपाध्यक या विश लेकर नहीं है।
वधि
-आग्नेश
दक्षिण
स्फाटेकर
जब मेघदव सुषमुन्द्रदेश
वेधारी देव
वेलम्ब देव वेलाय कूट
उजट हनुमानदेव
बैंडी कूट यशस्वानदेव
कालाव
रजत कुट मानसदेव
अश्मगर्भस्ट यशस्कार देव
कनका कूट वैप्रदेव
सौगधीकट
यशोधर देव
सिद्धार्थ देश
अन्यन्सर पुष्करान
तपनीयकट
स्वाति देव
सर्वरवट वेणुधारी देव
वेणु देव रत कूट
।
अजन अशनि लोहित घोष देव नदीत
रुचकट दिन नन्द देव
बाह्यार्ध पुष्कर द्वीप
+- ४२४ यो
अभ्यन्तर पुष्करा
की ओर।
बाहा पुष्करा की ओर
नाभिगिरि HTEN
A. 'बालिका विद्वार समान
+-१०२२योSTATES३.यो. को-
EMATONTER
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