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२०४०
२०६०
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पद्मद्रह
हिमवान् पर्वतवत् अपने-अपने
अत्यद्रह
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पर्वतीबत् (दे. दिग्गजेन्द्र
भद्रशालवन
।
पर्वत) |
नन्दनवन
१६६७
३३१ | ६२६
सौमनसवन
' २५० । २५० १८७१ | १२५
सौमनस वन वाले के समान
नन्दनवन का
भलभद्रकूट
१९६७
सौमनसवन का
बलभद्र कूटदृष्टि सं० १ । १०० । दृष्टि सं० २ । १०००
१६६८
१०० १०००
। ७५ । ५० । ७५० ५००
१६८० १६८०
(१०।१३।१७६
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है ॥२६००० यो. कम १ रा.1
नीतरी पृथिवी के प्रत्येक इन्द्रक विल का अन्तराल तीन हजार दो सौ उनकास योजन और पेंतीस सौ धनुष प्रमाण है। ३२४६ यो. ३५०० दण्ड 1
तोय पृची का अन्तिम इन्द्रक संप्रज्वलित और चतुर्थ पृथ्वी का प्रथम इन्द्रक और, इन दोनों बिलों का अन्तराल बाईस हजार योजन कम एव राजुप्रमाण है। २२००० यो, कम १ रा.।
पंक प्रभा पृथ्वी के इन्द्रक बिलों का अन्तराल तीन हजार छह सौ पैंसठ योजन और पचहत्तर सौ दण्ड प्रमाण है । ३६६५ । मो.
चतुर्थ पृथ्वी का अन्तिम इन्दक खल-खल घोर पांचवों गृश्वी का प्रथम इन्द्रका नम, इन दोनों जिलों के अन्तराल का प्रमाण अठार. हजार योजन क्रम एक सनु है । १०००० पी. मग १ रा. ।
धम प्रभा के इन्द्र क बिलों का अन्तराल चार हजार चार सी निन्यानवे योजन और पांच सौ दण्डप्रमाण है । Net यो. ५०० दण्ड 1
गाँववीं पृथ्वी का अतिम इन्द्रक तिभित्र और छठी पृथ्वी का प्रथम इन्द्रक हिम, इन दोनों बिलों का अन्तराल बौदह हजार योजन कम एक राजु प्रमाण है। १४००० यो. कम १ राजु ।
मधवी पृथ्वी में प्रत्येक इन्द्रक का अन्तराल छह हजार नौ सौ अट् छानवे योजन और पचपन सौ धनुष है। ६EE यो. ५५०० दण्ड ।
छठी पृथ्वी के अन्तिम इन्द्रक लल्लक और सातवीं पृथ्वी के अवधिस्थान इन्द्रक का अन्तराल तीन हजार योजन और दो को