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२. विवेह क्षेत्र के ३२ क्षेत्र व उनके प्रधान नगर१. क्षेत्र सम्बन्धी प्रमाण :
प्रबस्थान
क्रम
क्षेत्र
नगरी
अवस्थान
क्रम
क्षेत्र
नगरी
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उत्तरी पूर्व ! ३ विदेह में ४ पश्चिम से ५ पूर्व की ६ मोर
क्षेमा क्षेमपुरी रिष्टा (अरिष्टा) दक्षिण । अरिष्टपरी पश्चिम । खड्गा विदेह में । मंजपा
पूर्व से यौषध नगरी पश्चिम । पुण्डरीकिणी
को ओर
कुमुदा सरित
xru or me xury
कच्छा सूकच्छा महाकच्छा कच्छावती पावर्ता लांगलावा पुज्कला पूष्कलायती (पुष्कलावती) वत्सा सुवत्सा महावत्सा बत्सकावती (बत्सवत्) रभ्या सुरभ्या (रम्यक) रमणीया मंगलावती
prm" xx90 ~prmar9॥
सुसीमा कुण्डला अपराजिता उत्तरी 1 प्रभंकरा
पश्चिम (प्रभाकरी) विदेह में अंका (अंकावली) पश्चिम से पद्मावती पूर्व की
__ओर रत्नसंचया
पमा अश्वपुरी सुपद्मा सिंहपुरी महापद्मा महापूरी पत्रकाबती विजयपुरी (पद्मवत) शंखा
परजा नलिनी विरजा
शोका
वीतशोका वप्रा
विजय सुवप्रा
वजयन्ता महावप्रा जयन्ता वप्रकावती अपराजित (बप्रावत) गधा (बल्गु) चऋपुरी सुगन्धा-सुवैल्गु खड्पुरी गन्धिला अयोध्या गन्धमालिनी अवध्या
दक्षिण पूर्व विदेह में । पूर्व से पश्चिम । की मोर ।
शुभा
प्रमाण निकलता है।
(४१-४६]X5+ (४६x४) + (२४४)
२३५२४८+१९६-९८-९६०४ सं० धन
रत्नप्रभादिक पृध्वियों में सम्पूर्ण श्रेणीबद्ध विली का प्रमाण नौ हजार छह सौ चार ९६०४ ।
पद के अर्ध भाग से भाजित संकलित घन में इच्छा मे गुरिणत चय को जोड़ कर, और उसमें से चय से गुरिणत एक कम इच्छा से अधिक पक्ष को कम करके दोष को जाधा करने पर आदि का प्रमाण आता है।
(९६०४-+ +(x)-५-१:४६४)
३९३+५६०-४३०२.४ आदि
पद के असं भाग से गुपित जो एक कम पद, उससे भाजित संकलित धन के प्रमाण में से, एक कम पद के अर्घ भाग से भाजित भस को कम कर देने पर शेष चय वा प्रमाण होता है।
६६०४ (४६-१x६)-(४:४१) = ६६६-४ चम
चय के अद्धं भाग से गणित मंकलित घन में यय के अर्थ भाग से रहित आदि (मुख के अन्तर रूप संख्या के वर्ग को मिला देने पर जो राशि उत्पन्न हो उसका वर्गमूल निकाले । पश्चात उसमें में पूर्व के मूल को (जिसके वर्ग को संकलित धन में जोड़ा था) घटाकर अबशिष्ट राशि में चय के वर्षभाग का भाग देने पर पद का प्रमाण निवलता है।
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