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दिशा
६ लवणसागर के पवंत पाताल व नम्निवासी देवों के नाम
( ति प ।४१२४१० + २४६० - २४६९), ह. पु. ५/४४३, ४४३, ४६०), त्रि. सा. १८६७/९०५- ६०७),
(ज. प. ११०१६-३०-३२ )
पूर्व
दक्षिण
पश्चिम
उत्तर
सागर के अभ्यन्तर भाग की ओर
पर्वत
देव
कौस्तुभ
उदक
शंख
२५७५०००।
दक
विव
उदकावास
लोहित
(रोहित)
२३०००००।
मध्यवर्ती पाताल
का नाम
पाताल
कदम्ब
बड़वामुख
यूपकेशरी
सागर के बाह्य भाग की प्रोर
पर्वत
देव
कौस्तुभावास
उदकावास
महाशंस
बकवास
शिवदेव
नोट- त्रि. सा. में पूर्वादि दिशाओं में क्रम से बढ़वामुख, कदंबक, पाताल, व रूपकेशरी नामक पाताल बताये हैं।
घात नामक पंचम इन्द्र का विस्तार योजना में से दो नाग सहित उनतीस लाख इकतालीस हजार छह सौ छमास योजन प्रमाण है। १०३०००२-११६६६ = २९४१६६
द्वितीय पृथ्वी में संघात नामक इसका विस्तार अठाईस साख पचास हजार रोजन प्रमाण है। २२४१६६६-१६
उदक
लोहितांक
-- २८५००००।
जिव्ह नामक सातवें इन्द्रक के विस्तार का प्रभाग सत्ताईस लाख अठावन हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक योजन के तीसरे भाग प्रमाण है । २८५०००० - ११६६६३ - २७५८१३३ ।
जिक नामक आठवें इन्द्रक का विस्तार छब्बीस लाख छयासठ हजार छह सौ मास योजन और एक योजन के तीन भागों में से यो भाग प्रमाण है। २०४८३३३३–६१६६६३२६६६६६६३|
द्वितीय पृथ्वी में वो इन का विस्तार पच्चीस साल पचहत्तर हजार भोजन प्रमाण है। २६६६-११
लोलक नामक दसवें इन्द्रक का विस्तार चौबीस लाख तेरासी हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक योजन के तीसरे भाग प्रमाण है। २५७५०००–९१६६६३ २४८२२२२३
स्तन लोलक नामक ग्यारहवें इन्द्रक का विस्तार तेईस लाख इक्यानवें हजार छह सौ छ्यांस योजन और योजन के लीन भागों में से दो भाग प्रमाण है। २४०१३११-१६१६२३९१६९३
तीसरी पृथ्वी में तप्त नामक प्रथम इन्द्रक का विस्तार तेईस लाख योजन प्रमाण जानना चाहिए । २३९१६६६३-९१६६६३=
तृतीय पृथ्वी में त्रसित नामक द्वितीय इन्द्रक का विस्तार बाईस लाख आठ हजार तीन सौ तेतीस योजन और योजन का तीसरा भाग है। १३५