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पीठ पर स्थितमूल वृक्ष
३, इस वृक्ष की चारों दिशाओं में छह-छह योजन
लम्बी तथा इतने अन्तराल से स्थित चार महाशाखाएं हैं। jधारी या
शाल्मली वृक्ष की दक्षिण शाखा पर और जम्बवृक्ष की उत्तर शाखा पर जिनभवन हैं। शेप तीन शाखामों पर व्यन्तर देवों के भवन हैं । तहां शाल्मली वृक्ष पर वेणु व बेणुधारी तथा जम्ब वृक्ष पर इस द्वीप के रक्षक प्रादृत व अनादृत नाम के देव रहते हैं।
४, इस स्थल पर एक के पीछे एक करके ११ वेदियां हैं, जिनके बीच बारह भूमियों हैं। यहां पर है. पु. में वापियों आदि वाली ५ भूमियों को छोड़कर केवल परिवार वृक्षों वाली ७ भूमियां बतायी हैं। इन सात भूमियों में आदृत युगल या वेणु युगल के परिवार देवों के वृक्ष हैं।
५, तहां प्रथम भूमि मध्य में उपरोक्त मूलवृक्ष स्थित
है। द्वितीय में वन वापिकाएं हैं। तृतीय की प्रत्येक दिशा में
पीन रजतनी नर, शाल्गली क्षम
२७ करके कुल १०८ वृक्ष महामान्यों अर्थात् प्रायस्त्रियों के हैं। चतुर्थ की चारों दिशाओं में चार द्वार हैं, जिन पर स्थित
वृक्षों पर उसकी देवियां रहती हैं। पांचवीं में केवल वापियां हैं । छटी में वनखण्ड है। सातवीं की चारों दिशाओं में कुल १६००० वृक्ष अंगरक्षकों के हैं। अष्टम की वायव्य ईशान व उत्तर दिशा में कुल ४००० वृक्ष सामानिकों के है। नवम को आग्नेय दिशा में कुल ३२००० वृक्ष आभ्यन्तर परिषदों के हैं । दसवीं की दक्षिण दिशा में ४०००० वृक्ष मध्यम पारिषदों के हैं। ग्यारहवों को नैऋत्य दिशा में ४८००० वृक्ष बाह्य पारिषदों के हैं। बाहरवीं की पश्चिम दिशा में सात वृक्ष अनीक महत्तरों के हैं । सब वृक्ष मिलकर १४०१२० होते हैं।
२ यो
मिनमा दक्षिण स्पत पर और जन्य वन में
कराया पर
६, स्थल के चारों ओर तीन वन खण्ड हैं । प्रथम की चारों दिशाओं में देवों के निवासभूत चार प्रासाद है । विदिशानों में से प्रत्येक में चार-चार पुष्करिणी की चारों दिशाओं में पाठ-पाठ कूट हैं । प्रत्येक कूट पर चार-चार प्रासाद हैं। जिन पर उन बादत प्रादि देवों के परिवार देव रहते हैं। इस प्रकार प्रासादों के चारों तरफ भी आठ कूट बता आदृत युगल या वेणु युगल का परिवार रहता है।
बकरी, हाबी, भंस, घोड़ा, गधा, अंट. विल्ली, सर्प और अनुष्पादिव के महे हुए गरीरों के गन्ध की अपेक्षा वे नाहीयों के दिल अनन्तगुणी दुर्गन्ध से युक्त हैं।
__ स्वभावत: अधकार से परिपूर्ण ये नारकियों के बिल कनक (कौशेयक या कच), कृपाण, चरिका, खदिर (खैर) की आग, अति तीक्ष्ण सुई और हाथियों की चिक्कार से अस्थन्त भयानक है ।
बेनारकियों के बिल इन्द्रक, अरणीबद्ध और प्रकीर्णक वो भेद से तीन प्रकार के हैं ये सब ही नरकबिल नारकियों को भयानक दुख करते हैं।
विशेषार्थ--जो अपने पटल के सब बिनों के बीच में हो वह इन्द्रक बिल कहलाता है, चार दिशा और चार विदिशाओ में जो वि। पंक्ति से स्पित होते हैं, उन्हें श्रेणीबद्ध कहो हैं श्रेणी-चंद्र विरों के बीच में इधर-उपर रहने वाले विलों को प्रकोणक समझना चाहिपे ।
रत्नप्रभा भादिक पृध्वियी में कम से तेरह पारह, नौ, सात, पांच, तीन और एक, इस प्रकार कुल उन्लचास इन्द्रक बिल हैं ।