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प्राप्त होती है अथवा रा-वा व, नि. सा. की अपेक्षा तमिस्त्र गुफा को प्राप्त होती है। पश्चिम की ओर मुड़कर प्रभास तीर्थ के स्थान पर पश्चिम लवण सागर में मिलती है । इसकी परिवार नदियाँ १४००० हैं।
३--हिमवान् पर्वत के ऊपर पद्मद्रह के उत्तर से रोहितास्या नदी निकलती है जो उत्तरमुखी ही रहती हुई पर्वत के ऊपर २७६ योजन दलकर पर्वत के उत्तरी किनारे को प्राप्त होती है, फिर गंगा नदीवत् ही धार बनकर नीचे रोहितास्या कुण्ड में स्थित रोहितास्याकूट पर गिरती है। कुण्ड के उत्तरी द्वार से निकल कर उत्तरमुखी ही रहती हुई वह हेमबत क्षेत्र के मध्य स्थित नाभिगिरि तक जाती है। परन्तु उससे दी कोस इधर ही रहकर परिचम को प्रोर उसकी प्रदक्षिणा देती हई पश्चिम दिशा में उसके प्रधं भाग के सम्मुख होती है। वहां पश्चिम दिशा की ओर मुड़ जाती है और क्षेत्र के अर्ध पायाम प्रमाण क्षेत्र के बीचोंबीच बहती हुई अन्त में पश्चिम लवण सागर में मिल जाती है । इसकी परिवार नदियों का प्रमाण २८००० है। महाहिमवान पर्वत के ऊपर महापद्म हृद के दक्षिण द्वार से रोहित नदी निकलती है । दक्षिण मुखी होकर १६०५५. योजन पर्वत के ऊपर जाती है। वहां से पर्वत के नीचे रोहितकण्ड में गिरती है और दक्षिण मुखी बहती हुई रोहितास्यावत् ही हैमवत क्षेत्र में, नाभिगिरि से २ कोस इधर रहकर पूर्व दिशा की ओर उसकी प्रदक्षिणा देती है। फिर वह पूर्व की पोर मुडकर क्षेत्र के बीच में बहती हुई अन्त में पूर्व लवण सागर में गिर जाती है। इसकी परिवार नदियाँ २८००० हैं। महाहिमवान पर्वत के ऊपर महापद्म हद के उत्तर द्वार से हरिकान्ता नदी निकलती है। वह उत्तर मुखी होकर पर्वत पर १६०५५. योजन चलकर हरिकान्ता कुण्ड में गिरती है। यहां से उत्तरमुखी बहती हुई हरिक्षेत्र के नाभिगिरी को प्राप्त हो उससे दो कोस इधर ही रहकर उसकी प्रदक्षिणा देती हई पश्चिम की ओर मुड़ जाती और क्षेत्र के बीचोबीच बहती हुई पश्चिम लवणसागर में मिल जाती है। इसकी परिवार नदियाँ ५६००० हैं। निषध पर्वत के तिगिछद्रह के दक्षिण द्वार से निकलकर हरित नदी दक्षिणमुखी ही ७४२११ योजन पर्वत के ऊपर जा, नीचे हरित कुण्ड में गिरती है । वहाँ से दक्षिण मुखी बहती हुई हरिक्षेत्र के नाभिगिरि को प्राप्त हो उससे दो कोस इधर ही रहकर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पूर्व की ओर मुड़ जाती है और क्षेत्र के बीचोंबीच बहती हुई पूर्व लवण सागर में गिरती है। इसकी परिवार नदियां ५६००० हैं। निषध पर्वत के तिगिछहद के उत्तर द्वार से सीतोदा, नदी निकलती है, जो उत्तरमुखी ही पर्वत के ऊपर ७४२११ योजन जाकर नीचे विदेह क्षेत्र में स्थित सीतोदा कुण्ड में गिरती है। वहां से उत्तरमुखी बहती हुई वह सुमेरु पर्वत तक पहुँचकर उससे दो कोस इधर ही पश्चिम की ओर उसकी प्रदक्षिणा देती विद्युतप्रभ गजदन्त की गुफा में से निकलती है। सुमेरु के अर्थ भाग के सम्मुख हो वह पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। और पश्चिम विदेह के बीचोंबीच बहती हई अन्त में पश्चिम लवणसागर में मिल जाती है। इसकी सर्व परिवार नदियां देवकरू में ८४००० पीर पश्चिम विदेह में ४४८०३८ (कुल ५३२०६८) है। लोक ३।१ की अपेक्षा ११२००० हैं । सीता नदी का सर्व
.. - - इस प्रकार क्योंकि यह पृथ्वी बहुत प्रकार के रत्नों से भरी हुई दोभायमान होती है, इसलिए निमुण पुरुषों ने इसका 'रस्न प्रभा' यह सार्थक नाम कहा है।
रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे शतप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा और तमस्तमः प्रभा और महातमःप्रभा, ये शेष यह पवियाँ क्रमशः शक्कर, वाग्नु, कीचड़ धूम, अधवार और महान्धकार की प्रभा से सहयरिन हैं, नमीलिए इनके भी उगर्य बत नाम सार्थक हैं।
इन छह अबस्नन पृश्चियों की मुटाई कम से बत्तीस हजार, मट्टाईस हजार, चौबीस हजार, बीस हजार, सोलह हजार और आठ हजार योजन प्रमाण है।
श. प्र. ३२०००, वा. प्र. २८०००, पं० प्त. २४००० पू० प्र. २००००, त. प्र. १६०००, म. प्र. ८००० योजन ।
छयासह चौसठ, साठ उनसठ, अट्टावन, और चोब्बन, इनके दुगुने हजार अर्थात् एक लाख बत्तीस हजार, एक लाख अट्टाह हजार, एक लाख बीस हजार, एक लाख अठारह हजार, एक लाख सोलह हजार, और एक लाख साठ हजार, योजन प्रमासा उन अधस्तन छह पश्वियों की मुटाई है।
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