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से लवण सागर के साथ स्पर्शित सातवां ऐरावत क्षेत्र है। इसका सम्पूर्ण कथन भरतक्षेत्र वत है। केवल इसकी दोनों नदियों के नाम भिन्न है।
४. कुलाचल पर्वत निर्देश
भरत व हेमवत इन दोनों क्षेत्रों को सीमा पर पूर्व पश्चिम लम्बायमान प्रथम हिमवान पर्वत है। इस पर ११ कट हैं। पूर्व दिशा के कूट पर जिनायतन और शेष कूटों पर यथायोग्य नामधारी व्यन्तर देव व देवियों के भवन हैं। इस पर्वत के शीर्ष पर बीचों-बीच पद्म नाम का हृद हैं। तदन्तर हमवत् क्षेत्र के उत्तर व हरिक्षेत्र के दक्षिण में दूसरा महाहिमवान् पर्वत है। इस पर पूर्ववत् आठ कूट है । इसके शीर्ष पर पूर्ववत् महापद्म नाम का द्रह है। तदन्तर हरिवर्ष के उत्तर व विदेह के दक्षिण में तीसरा निषध पर्वत हैं। इस पर्वत पर पर्ववत् । कूट हैं। इसके शीर्ष पर पूर्ववत् तिगिछ नाम का द्रह हैं। तदनन्तर विदेह के उत्तर तथा रम्यक क्षेत्र के दक्षिण दिशा में दोनों क्षेत्रों को विभक्त करने वाला निषध पर्वत के सदृश चौथा नील पर्वत है। इस पर पूर्ववत् ६ कुट हैं ।
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- -- ---- -..-- - - -- -- -- कम चार राजु विस्तार वाला सात राजु लम्बा और साठ हजार योजन मोटा है। इसबा घनफल पन्द्रह लाख योजन के उन्नचासवें भाग बाहल्य प्रमाण जगप्रतर होता है।
१४४७.६००००-७X१५०००००४ (१)... १५००००० X४६ पांचवीं पृथ्वी के अधस्तन भाग में अवरुद्ध वातक्षेत्र के धनफल को कहते हैं-पांचयी पृथ्वी के प्राधे भाग में बातावद्ध क्षेत्र चार बठेमात भाग (3) कम पांच विस्तार रूप, सात राजु लम्बा और साठ हजार योजन मोत है । इसका घनफल अठारह लाख साठ हजार योजन के उनचासवें भाग बाल्य प्रमाण जगपतर होता है। १४७४६००००-७४१८६००००४७.१०६०००.XYE
X पठी पथ्वी के अधस्तन भाग में वातावरुद्ध क्षेत्र के वफल को कहते हैं--पांच बटे सात भाग (1) कम छह राज विस्तार दान सात राज लंबा और साठ हजार योजन त्राहल्य वाला छठी पृथ्वी के नीचे वातरुद्ध क्षेत्र हैं। इसका घनफल बाईस लाख बीस हजार योजन के