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६ - सुमेरु पर्वत निर्देश
१. सामान्य निवेश
विदेहक्षेत्र के बहू मध्य भाग में सुमेरु पर्वत है। यह पर्वत तीर्थकरों के जन्माभिषेक का व्यानरूप माना जाता है। क्योंकि इसके शिखर पर पाण्डुक वन में स्थित पाण्डुक प्रादि चार शिलाओं पर भरत, ऐरावत तथा पूर्व व पश्चिम विदेहों के सर्व तीर्थकरों का देव लोग जन्माभिषेक करते हैं। यह तीन लोकों का मानदण्ड है, तथा इसके मेरु, सुदर्शन, मन्दर प्रादि अनेकों नाम हैं।
२. मेरु का आकार
यह पर्वत गोलाकार वाला है। पृथ्वी तल पर १०,००० पंोजन विस्तार तथा ६२,००० योजन उत्सेध वाला है। क्रम से हानि रूप होता हुआ इसका विस्तार शिखर पर जाकर १००० योजन रह जाता है। इसकी हानि का क्रम इस प्रकार है— क्रम से हानि का रूप होता हुआ पृथ्वीतल से ५०० योजन ऊपर जाने पर नन्दन वन के स्थान पर यह चारों शोर से युगपत ५०० योजन संकुचित होता है । तत्पचात् ११००० योजन समान विस्तार से जाता है। पुनः १५५०० योजन क्रमिक हानि रूप से जाने पर, सीमनस बन के स्थान पर चारों ओर से ५०० यो० संकुचित होता है। यहां से ११००० योजन तक पुनः विस्तार से जाता है उसपर २००० यो० क्रमिक हानिरूप से जाने पर पाण्डुक बन के स्थान पर चारों पोर से युगपत् ४९४ योजन संकुचित होता है। इसका वाहा विस्तार भद्रपाल यादि वनों के स्थान पर कम से १००,००.९५४,४२७२६ तथा १०० योजन प्रमाण है। इस पर्वत के शीश पर पाण्डुक वन के बीचोंबीच ४० योजन ऊंची तथा १२ योजन मूल विस्तारयुक्त भूमिका है। सुपर्वत
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