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अनगार
उक्त प्रश्नका उत्तर देकर अब यह बताते हैं कि विशिष्ट आयु आदिकी मी प्राप्ति पुण्योदयके निमितसे ही होती है।
आयुः श्रेयोनुबन्धि प्रचुरमुरुगुणं वज्रसारः शरीरं, श्रीस्त्यागप्रायभोगा सततमुदयनी घी: परार्ध्या श्रुताढ्या । गीरादेया सदस्या व्यवहृतिरपथोन्माथिनी सद्भिरा,
स्वाम्यं प्रत्यर्थिकाम्यं प्रणयिपरवशं प्राणिनां पुण्यपाकात् ॥ २९ ॥ प्राणियोंको पुण्यके उदयसे ये सब बातें प्राप्त होती हैं। यथा
अविच्छिन्न कल्याणोंसे युक्त और उत्कृष्ट-लम्बी आयु, सौन्दर्य कोमलता आदि अनेक महान् गुणोंसे युक्त वज्रके सारकी तहर अभेद्य और दृढ शरीर, जीवन पर्यंत दिनपर दिन बढती जानेवाली और प्रायः दान व भोगोंमें ही जिसका उपयोग होता हो ऐसी लक्ष्मी, उत्कृष्ट -शुश्रूषा आदि गुणोंसे युक्त और श्रुतज्ञानकी समृद्धिसे पूर्ण बुद्धि, सभाके योग्य और आदेय-जिसका कोई उल्लंघन न करसके ऐसी वाणी, हितमें प्रवृत्ति और अहितसे निवृत्तिरूप ऐसा व्यवहार-सदाचार कि जिसको साधु भी प्राप्त करना चाहें और जिसको देखकर दूसरे अमार्गमें प्रवृत्ति करनेवाले भी अपनी उस अयुक्त प्रवृत्तिको छोड दें। अपने बन्धु मित्र आदिक स्नेही व्यक्तियोंके अधीन और जिसको शत्र भी प्राप्त करना चाहें- जिसे देखकर शत्रओंको भी मनमें यह भाव उत्पन्न हो जाय कि " हम भी ऐसे ही जाय" ऐसी प्रभुता ।। पुण्यके प्रतापसे बहुतसे फल-अभ्युदय एकदम आकर प्राप्त होते हैं । यही बात दिखाते हैं । -
चिद्भूम्युत्थः प्रकृतिशिखारिश्रणिरापूरिताशा -,
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अध्याय