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श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रंथमाला समिति
प्रथम पुष्प
लघुविद्यानुवाद
(यंत्र, मंत्र, तंत्र विद्या का एक मात्र संदर्भ ग्रन्थ)
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द्वितीय संस्करण विमल भाषा टीका (पद्मावती स्तोत्र वृत्याष्टक) सहित
सग्रहकर्ता: परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज
एव परम पूज्या श्री १०५ गरिणनी आयिका विजयामती माताजी
प्रकाशन सयोजक : शान्ति कुमार गंगवाल
विशेष सहयोगी. (प्रस्तुत ग्रथ के प्रकाशन कार्य को सम्पन्न कराने मे)
प्रेमचन्द जैन, (मित्तल) बड़ौत
प्रकाशक : श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्थमाला समिति,
जयपुर (राजस्थान) RANAHANEMAMANANAKAMANAMANANEMAMATA
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परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थ सागरजी महाराज व उनके विशाल संघ सानिध्य में माह फरवरी, १९६०
बड़ौत (उ. प्र.) में प्रायोजित मुनि दीक्षा समारोह के शुभावसर पर प्रकाशित
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ग्रथ प्राप्ति स्थान । श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्थमाला समिति, कार्यालय : १६३६, जौहरी बाजार, धी वालो
का रास्ता, कसेरो की गली,
जयपुर-३०२००३ (राज.) AS सर्वाधिकार सुरक्षित & मूल्य
54500 (डाक व्यय अतिरिक्त) - मुद्रक मूनलाइट प्रिन्टर्स, जयपुर-3
गरणधराचार्य महाराज को आज्ञानुसार पाठको से नम्र निवेदन
प्रस्तुत ग्रथ यत्र, मत्र, तत्र विद्या का एक मात्र सदर्भ ग्रंथ है। इसका विनय पूर्वक अध्ययन करे और यथा स्थान पर रक्खे, जिससे इसका अविनय नही हो। साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रहे कि यह ग्रन्थ किसी भी ऐसे व्यक्ति के हाथ मे न जावे जो इस बात का ध्यान नही रक्खे और इसका दुरुपयोग करे । अन्यथा आप दोष के भागी होगे।
प्रकाशन संयोजक
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श्रीधरणेन्द्र
श्री १०८ आचार्य महावीर कीर्ति
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यंत्र
तंत्र
मंत्र ग्रंथ 21भी संग्रह कर्त्ता श्री २० / आचार्य गणधर कुंथु सागरजी महाराज श्री गणनी सि० वि० १०५ आर्यिका विजयमती माताजी
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श्री णमोकार महामंत्र णमो अरिहंताण णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं. णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं
एसो पञ्चणमो यारोसव्वपावप्पणासणी। मंङ्गलाणच सव्वेर्सि पटमं होई मङ्गलम् ॥
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श्री १००८ भगवान पार्श्वनाथ
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परमपूज्य समाधि सम्राट चारित्र चक्रवर्ति श्री १०८ आचार्य आदि सागरजी महाराज ( अकलीकर )
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परमपूज्य समाधि सम्राट तीर्थभक्त शिरोमणि श्री १०८ प्राचार्यरत्न
महावीर कीर्तिजी गुरु महाराज साहब
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परमपूज्य सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमणि श्री १०८
प्राचार्यरत्न विमलसागरजी महाराज
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परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य महावीर कीतिजी महाराज के पट्टाधीश प्राचार्य श्री १०८ मुक्ति पथ नायक सत
शिरोमणि सन्मतिसागरजी महाराज
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परमपूज्य श्री १०८ गराधराचार्य वात्सल्य रत्नाकर, श्रमणरत्न, स्याहादकेशरी, जिनागम सिद्धान्त महोदधि, वादिभसूरी
श्री कृन्थसागरजी महाराज
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परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज के परम शिष्य उपाध्याय एलाचार्य श्री १०८
कनकनन्दिजी महाराज
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परमपूज्या श्री १०५ गणिनी आर्यिका विदुषिरत्न,
सम्यकज्ञान शिरोमणि, सिद्धान्त विशारद, जिनधर्म प्रचारिका विजयामती माताजी
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परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज से लघुविद्यानुवाद ग्रथ का पुनः प्रकाशन कराने हेतु आशीर्वाद
प्राप्त करते हुये ग्रथमाला के प्रकाशन सयोजक शान्ति कुमार गगवाल
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परमपूज्य सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमणि श्राचार्य रत्न विमलसागरजी महाराज
का
मंगलमय शुभाशीर्वाद
मुझे यह जानकर हार्दिक प्रशन्नता है कि श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रंथमाला समिति जयपुर (राजस्थान) द्वारा प्रकाशित प्रथम पुष्प लघुविद्यानुवाद ग्रथ का, गणधराचार्य 'कुन्थु सागरजी महाराज द्वारा पूर्ण सशोधन करने के बाद पुन द्वितीय सस्करण के रूप मे प्रकाशन हो रहा है । ग्रथ का पुन प्रकाशन होना इस बात का सूचक है कि वास्तव मे इस ग्रथ के माध्यम से लोगो को लाभ पहुचा है । गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज ने इसी ग्रथ मे विमल भाषा टीका (पद्मावती स्तोत्र वृत्याष्टक) को भी शामिल कर दिया है। इससे यह ग्रथ भव्य जीवो के लिये पहिले से भी ज्यादा कल्याणकारी सिद्ध होगा ।
यह ग्रथ भव्य जीवो को अध भक्ति से छुडाकर मिथ्यात्व से दूर हटा कर सम्यक्तवधिनि क्रिया मे लगावेगा | पद्मावती देवी भगवान पार्श्वनाथ की यक्षिरिण है । इसने बडे-बडे मगलमय कार्यो मे सहायता की है और जगह-जगह जैनशासन के महत्त्व को बढाया है ।
गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज ने बहुत ही कठिन परिश्रम करके लघुविद्यानुवाद का पूर्ण सशोधन का कार्य किया है और साथ ही पद्मावती स्तोत्र वृत्याष्टक की जो टीका करने का कार्य किया है, इसके लिये हमारा उनको बहुत-बहुत आशीर्वाद है ।
मला समिति भी लगन व परिश्रम से कार्य कर रही है । श्री शांतिकुमार जी गगवाल जो इस ग्रंथमाला के प्रकाशन सयोजक है उनकी लगन एव सेवाए प्रशसनीय है । ग्रथमाला समिति इसी प्रकार आगे भी महत्त्वपूर्ण ग्रंथो का प्रकाशन कर जिनवाणी के प्रचार-प्रसार का कार्य करती रहे, इसके लिये गगवालजी को व इस कार्य मे सलग्न इनके सभी सहयोगियो को हमारा बहुतबहुत मगलमय शुभाशीर्वाद है ।
श्राचार्य विमलसागर
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परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्यरत्न आदिसागरजी महाराज (अंकलीकर) के तृतीय पट्टाधीश श्री १०८ प्राचार्यरत्न
मुक्तिपथ नायक संत शिरोमणि
सन्मतिसागरजी महाराज
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का
मंगलमय शुभाशीर्वाद हमे यह जानकर प्रशन्नता है कि श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रथमाला समिति जयपुर (राजस्थान) द्वारा लघुविद्यानुवाद ग्रथ का द्वितीय सस्करण के रूप मे प्रकाशन हो रहा है।
ग्रथ का पुन प्रकाशन होना ग्रथ की लोकप्रियता व लाभकारी होने का ही प्रमाण है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रथ के पुन. प्रकाशन से भव्य जीव मिथ्यादृष्टि मत्रादि से बचकर सम्यकदृष्टि मत्रादि को अाराधनाकर रत्नत्रय की आराधना करते हुये मोक्ष मार्ग मे लगेगे, ऐसा हमारा विश्वास है । गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज को हमारा बहुत-बहुत आशीर्वाद है।
नथ प्रकाशन के कार्य के लिये प्रथमाला समिति के प्रकाशन सयोजक श्री शातिकुमारजी गगवाल व इनके सहयोगियो को हमारा बहुत-बहुत आशीर्वाद है, कि भविष्य मे भी इसी प्रकार कार्य करते रहे।
प्राचार्य सन्मतिसागर
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ग्रन्थ के संग्रहकर्त्ता परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य वात्सल्य रत्नाकर, श्रमरणरत्न, स्याद्वाद केशरी, बादिभ सूरी, जिनागम सिद्धान्त महोदधि कुन्थु सागरजी महाराज के प्रकाशित ग्रन्थ के बारे में विचार एवं मंगलमय शुभाशीर्वाद
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बहुत प्रशन्नता की बात है कि हमारे द्वारा संकलित सर्वजन प्रिय लघुविद्यानुवादग्र प्रकाशन पूर्ण सशोधन के बाद (द्वितीय संस्करण) के रूप मे श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रंथमाला समिति जयपुर (राज) के द्वारा हो रहा है ।
यह ग्रथ अपने आप में एक ही है । जिसको दिगम्बर श्वेताम्बर जैन प्रजैन आदि सभी सम्प्रदाय के लोगो ने पसन्द किया । लघुविद्यानुवाद ग्रंथ के प्रकाशन से मेरे को बहुत ही प्रसिद्धि प्राप्त हुयी । क्योकि इस ग्रथ के प्रकाशन से पूर्व शायद इतने लोग मुझे नही जानते थे । इस ग्रथ के प्रकाशन का प्रचार-प्रसार हमारे यत्र मंत्र के विरोधी भाई बहिनो ने तो इतना किया कि अल्प समय
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ही इस ग्रथ की सभी प्रकाशित प्रतियाँ समाप्त हो गयी । और अनेको पत्र ग्र थमाला के सयोजकजी को ग्रंथ के मंगवाने के लिये प्रतिदिन प्राप्त हो रहे है । इसलिये यत्र, मंत्र मे विश्वास रखने वाले
को भाई बहिनो के विशेष आग्रह को ध्यान मे रखकर विवादास्पद सामग्री को निकालकर उनके लाभार्थ इस ग्रंथ का पुन प्रकाशन करवाया गया है।
पूर्व मे मैंने इस ग्रंथ का सकलन मात्र दिगम्बर जैनियो के अवलोकनार्थ किया था। क्योंकि दिगम्बर परम्परा मेभी सभी प्रकार के यत्र, मत्र तत्रो को स्थान दिया है। पूर्व परम्परा मे जैसे
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जिस समय लोगो को यत्र मत्रो की आवश्यकता पडी वैसे ही प्राचार्यों मुनियो भट्टारको तथा श्रावको ने इसका प्रयोग किया। किन्तु वर्तमान मे कुछ पथवादी तथा सुधारवादी विद्वान लोगो का उनका अलग ही स्वतन्त्र ही मत है। कि जेन परम्परा मे मत्र, यत्र, तत्रो का स्थान नही है। लेकिन विषय पर गौर करे तो पाया जायेगा, कि मूडवद्री का शास्त्र भण्डार, पारा सिद्धान्त भवन, दिगम्बर जैन मन्दिर लणकरणजी पाण्ड्या (जयपुर) ग्रथालय तया और भी अनेको ग्रथालयो मे यत्र, मत्र, तत्र से सम्बन्धित काफी सख्या मे हस्तलिखित ग्रथ भरे पडे है, क्या यह सब झठे है। विद्वानो का इस ओर ध्यान नही है। अनेको ग्रथों को तो दीमक लग रही है। कागज गलकर नष्ट हो गया है। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो यत्र, मत्र, तत्र सम्बन्धी हमारा सभी साहित्य नष्ट हो जावेगा । इसलिये इस विषय के शास्त्रो की ऐसी जीर्ण-क्षीण हालत देखकर मेरे मन में यह भावना जागृत हुयी कि इन ग्रथो का उद्धार होना चाहिये । इसलिये मैंने यह बोडा उठाया और कार्य कर रहा हूँ। लोगो के यह भी विचार है कि साधु होने के बाद यह नही लिखना चाहिये । यह सब नही करना चाहिये। तो अरे, भाईयो तनिक यह भी तो विचार करो कि क्या किसी विद्वान ने इस ओर ध्यान दिया है अथवा कार्य किया है ? जब किसी ने ध्यान नहीं दिया तो हमको यह करना पडा । कार्य करने वाले को निन्दा करना गालियाँ देना, अपवाद करना सहज है लेकिन सभी बातो को सहन करते हुये कार्य करके दिखाना बहुत ही कठिन कार्य है।
हमारे समन्वय वाणी पत्र के सम्पादक वर्ग, धर्म मगल पत्र के सम्पादक वर्ग, तीर्थकर पत्र के सम्पादक वर्ग आदि पत्रो के सम्पादक वर्गों का इस ग्रथ के प्रचार-प्रसार मे बहुत ही अच्छा सहयोग रहा जिससे यह अथ जन-२ का प्रिय बना और बनता जा रहा है । इसलिये मैं बहुत बडा उपकार मानता हूँ।
आप लोगो ने अपने-अपने पत्रो के माध्यम से मेरे इस ग्रथ को सर्वजन प्रिय बना दिया। आगे भी आप ग्रथ की खुब निन्दा करे, अपवाद करे, ताकि प्रसिद्धि को प्राप्त हो । अरे, सीताजी पर दुर्जन लोग यदि अपवाद नहीं लगाते ओर नाही अग्नि परीक्षा होती तो सीताजी को इतनी प्रसिद्धि कैसे मिल पाती। आप लोग तो खलनायक का पार्ट अदा कर रहे है । आप हमेशा सज्जनो की निन्दा करने का कार्य ही करते रहे, ताकि जल्दी ही आप लोगो की दुर्जनता यथास्थान को प्राप्त कर लेवे।
आपके सभी के गलत प्रचार से क्या बुरा असर पड़ा यह आप स्वय ही देखिये कि ग्रथ की माग अधिक होने से इस ग्रथ का पुन प्रकाशन हो रहा है और ग्रथमाला समिति को ग्रथ के प्रचारप्रसार मे धनराशि खर्च नही करनी पडी। अनेको लोग इस विषय पर चर्चा करने मेरे सघ मे दर्शन करने आते है और प्रभावित होकर चले जाते है । वास्तव मे कुछ लोगो को छोडकर सभी इस ग्रथ की प्रशसा करते है, और अनेको लोगो ने इस ग्रथ के माध्यम से लाभ प्राप्त किया है।
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परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्यु सागरजी महाराज लघुविद्यानुवाद ग्रन्थ का सशोधन कार्य करते हुए ।
इसी प्रकार हमारे ग्रालोचको का भाव मात्र अपवाद अथवा निन्दा करना ही बना रहता है | वैसे मैने इस काल निकृष्ट और लोगो की परणति खराब देखकर जो भी अशुद्ध द्रव्य अभक्ष्य द्रव्य, मारण, उच्चाटन आदि क्रिया का जहाँ भी विवरण था अब इस संशोधित प्रति मे इस विवरण
को निकाल दिया गया है। ग्रथ मे मत्रो तथा यत्रो के संग्रह को कम नही किया गया है। क्योकि
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मत्र यत्रो के संग्रह को समाप्त करना उचित नही है। मात्र विधियों व तंत्र निकाल दिये गये है। पूर्ण रूप से इन क्रियाओ को ग्रथ से निकालकर सशोधित कर दिया गया है ।
ग्रंथ मे पहिले से भी ज्यादा लाभकारी सामग्री हो इसलिये इस ग्रथराज मे वीरनन्दि आचार्य कृत पद्मावती स्तोत्र व उस स्तोत्र पर लिखी हुयी आठ श्लोको पर वृत्याष्टक नाम की टीका श्री पार्श्वमणि देव द्वारा रचित उसको भी बहुत शुद्धि पूर्वक हमने विमल भाषा टीका के नाम से कर प्रकाशन करवा दिया है। सभी यत्र, मंत्र, विधि सहित है।
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श्लोक अर्थ प्रत्येक श्लोक की संस्कृत टीका ८ न तक न २ की विधि मे श्लोक और प्रत्येक श्लोक की विधियाँ यत्र मंत्र न ३ की श्लोक पढने मात्र से क्या फल होता है उसके भी कुछ यत्र मंत्र अलग-अलग लिखे है, सो हमने सग्रहित कर दिये है। पद्मावती स्तोत्र सम्बन्धित जितने भी श्लोक है उनके सब मत्र यत्र साधन विधि आदि एक ही जगह पर साधक को उपलब्ध हो जायेगे । किसी प्रकार की कठिनाई नहीं उठानी पड़ेगी। इस कृति से जो भी श्रद्धावान आवक वर्ग साधना करना चाहते है
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उनको प्रत्येक यत्र या मत्र मे व इनकी विधियो मे अच्छी सफलता प्राप्त होगी। यह कृति भी पूर्वाचार्य कृत है इस कृति मे भी अशुद्ध पदार्थो का वर्णन उच्चाटन, स्तंभन, मारणानि क्रियानो का वर्णन आचार्यों ने लिखा है सो हमने भी उनका अनुसरण करके लिख दिया है तो भी मेरा स्वतन्त्र ऐसा विचार है कि साधक को इन सब प्रयोगो को नही करना चाहिये करने से प्राघात अवश्य होगा दुर्गति का पात्र बनना पडेगा। इसी कृति मे भी एक जगह इस बात को प्राचार्यों ने लिखा है मारण उच्चाटणादि क्रिया आत्मार्थी लोगो को कभी नही करना चाहिये। ये सब क्रिया तो शुद्र लोग करते है । अच्छे वर्ग के लोग ये सब क्रिया नहीं करते है । पाठको को और साधको को इस बात का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिये । मुझे अवश्य क्षमा करेगे । साधक के भावनानुसार कर्म बाधना अथवा छोडना उसी की जवाबदारी है । लेखक की नही, आप यह कहो कि इस प्रकार की क्रिया को छोड देना था क्यो लिखा गया जिससे कोई उपयोग करे, ये तो कोई तुक नही है। प्राचार्यों ने लिखा, हमने लिखा, हम छोडने वाले है कौन? हमे क्या अधिकार है जो हम आचार्यो की कृति को अस्तव्यस्त करे । हमारा कार्य मात्र जिसकी जो कृति है उसका अनुसरण करना । इस प्रकार मुझे अशा ही नही बल्कि पूर्ण विश्वास है कि सभी इस ग्रथ के माध्यम से और भी अधिक लाभ उठा सकेगे ।
मेरे व इस ग्रथ के जो भी शुभ चितक है उनको मेग बहुत-बहुत आशीर्वाद है। आप लोगो के सभी के सदप्रयासो से यह ग्रथ पुनः प्रकाशित हो रहा है।
___इस ग्रथ के लिये परम दयालु वात्सल्य मूर्ति आचार्य विमलसागरजी महाराज का पूर्ण आशीर्वाद रहा है और अब भी आशीर्वाद है।
__ श्री दिगम्बर जैन कु थु विजय ग्रथमाला समिति के प्रकाशन सयोजक श्री शान्ति कुमारजी गगवाल व उनके सुपुत्र श्री प्रदीप कुमारजी गगवाल ने इस ग्रथ के पुन प्रकाशन के लिये बहुत ही कठिन परिश्रम किया है। उनको हम बहुत-बहुत प्राशीर्वाद देते है।। श्री शान्ति कुमारजी सच्चे पुरुषार्थी है। इन्ही के कारण यह ग्रथमाला लोकप्रिय होती जा रही है और इन्ही के कठिन परिश्रम से महत्वपूर्ण ग्रथो (१५) का प्रकाशन हो सका है। ग्रथमाला समिति के अन्य सहयोगियो को भी मेरा आशीर्वाद है। इस ग्रन्थ सशोधन कार्य मे हमारे सधस्थ श्री १०५ गणिनी आर्यिका कमल श्री माताजी का पूण सहयोग रहा है । अपने अध्ययन कार्य के साथ-साथ ज्ञान ध्यान मे रत रहती हुए भी मेरे इस कार्य मे हाथ बटाया है। इनको भी मेरा बहुत-बहुत आशीर्वाद है।
ग्रन्थ प्रकाशन खर्च मे जैन समाज बडौत के दातारो का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ है अन्य दातारो ने भी सहयोग किया है। मेरा सभी को बहुत-बहुत आशीर्वाद है । श्रीमान् गुरुभक्त प्रेमचन्दी जी जैन (मित्तल) ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन कार्य को सम्पन्न कराने मे सहयोग प्रदान किया है इनको भी मेरा बहुत-बहुत आर्शीवाद है।
गणधराचार्य कुन्थुसागर
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परमपूज्या श्री १०५ गणिनी आर्यिका विदुषिरत्न सम्यग्ज्ञान शिरोमरिण सिद्धान्त विशारद, जिनधर्म
प्रचारिका विजयामती माताजी
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मंगलमय शुभाशीर्वाद ग्रथमाला समिति के प्रकाशन सयोजक श्री शाति कुमारजी गगवाल के पत्र से विदित हुआ श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रथमाला समिति से लघुविद्यानुवाद ग्रथ का पुन प्रकाशन होने जा रहा है । इस ग्रथ की पुनरावृति ही इसके महत्त्व और जनप्रियता की द्योतक है। यह ग्रथ मानव जीवन का परोपकारी है । ससारिक जीवो के क्षुद्र सकटो का निवारण कर मानव को स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है । यह ग्रथमाला समिति नाति प्राचीन होने पर भी एक सुदृढ और सुव्यस्थित सस्था है । इसके सभी प्रकाशन प्रार्प परम्परा के अनुकूल और जिनशासन के प्रवर्द्धक है । ग्रथमाला समिति अपने उद्देश्यो का समुचित रक्षण करती रहे, यही हमारी शुभ भावना है। समिति के प्रकाशन सयोजक श्री शाति कुमारजी गगवाल कर्मठ, देव शास्त्र गुरुभक्त है । उनका प्रयास और ज्ञान सद्धित होता रहे, यही हमारा उनके लिये मगलमय शुभाशीर्वाद है। अन्य सहयोगी मण्डल भो अपना अमूल्य समय जिनवाणी प्रचार-प्रसार मे लगाने की योग्यता प्राप्त करे, उन्हे भी सधर्म वृद्धि आशीर्वाद है।
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श्री १०५ क्षुल्लक चैत्यसागरजी महाराज
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मंगलमय शुभाशीर्वाद मुझे यह जानकर अत्यन्त हर्ष है, कि परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज ने बहुत अल्प समय मे जैन समाज के लिए अद्भुत देन को बहुत हो परिश्रम के साथ लघुविद्यानुवाद ग्रथ का पुन. सशोधन किया। इसके लिए मेरी भावना थी कि इसका पुन प्रकाशन होना चाहिए। क्योकि आज समाज मे इसकी बहुत ही आवश्यकता है। इसके पहले लघुविद्यानुवाद ग्रथ के प्रथम सस्करण का विमोचन बाहुबलि सहस्त्राभिषेक महोत्सव के शुभावसर पर श्रवण बेलगोल मे सन् १९८१ मे भारत के महान प्राचार्यों के सानिध्य मे परम पूज्य श्री १०८ प्राचार्य देश भूषण जी महाराज, परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य विमलसागरजी महाराज, परमपूज्य श्री १०८ एलाचार्य विद्यानन्दजी महाराज, परमपूज्य श्री १०८ दयासागरजी महाराज परमपूज्य श्री १०८ सुबाहुसागरजी महाराज एव श्री १०५ ग० प्रा० विजयामती माताजी एव अन्य (२५० पीछी त्यागी वृत्ति) विद्वानो के सानिध्य मे हुवा था। जिसकी जैन समाज मे बहुत ही जोर शोर से इसको चर्चाये हुई। परिणाम स्वरूप ग्रथमाला के पास आज लघविद्यानवाद की ग्रथ की प्रतिया उपलब्ध नही है। इस ग्रथ की माग आज जैन समाज मे ही नही अन्य लोगो मे भी अत्यधिक है।
जैन समाज मे कुछ विद्वानो ने इसकी बहुत ही आलोचना की है। इसमे बहुत ही घिनौने यत्र, मंत्र तत्र आदि दिये हैं। इसमें वशीकरण, मोहनी, आर्कषण, पौष्टिक, मारण
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शाति कार्य सिद्धि इत्यादि मन्त्रो का उल्लेख किया गया है। जिन विद्वानो ने विरोध किया उनके लिये हम कहेगे, कि ये आगम विरुद्ध "अग " पूर्व पर उन्हे श्रद्धान नही है । ऐसे विद्वानो को हम क्या कहे, इनके लिए ऐसे कोई शब्द नही जिनको कि मै उनके बारे में लिख सकू । फिर भी जिन भगवान की वाणी है, कि सम्पूर्ण तत्वों का ज्ञान होने पर भी अगर एक शब्द पर भी श्रद्धान न हो तो वह मिथ्यादृष्टि माना जाता है। यह मंत्र शास्त्र आगम साहित्य मे प्रमाण बतलाता है, यह विद्यानुवाद दशवा पूर्व है । इसमे ही सब मत्र तत्र यत्र उच्चाटन इत्यादि विषय पर दिया गया है । जिसके ज्ञाता केवली अथवा श्रुत केवलो ही होते है । वैसे तो विद्यानुवाद पूर्ण रूप से अपर्याप्त है । फिर भी ७०० महाविद्याओ १२०० लघुविद्याओ का वर्णन मिलता है । इन महा ग्रथो का लोप होने के बाद कही कही प्रमाण मिलते है । राजस्थान के शास्त्र भण्डार एव जयपुर, आरा, अजमेर, नागौर आदि अनेक स्थानो पर मन्त्र शास्त्र उपलब्ध है । गणधराचार्य कुन्थुसागर जी महाराज की भावना थी कि जहा तहा यह मंत्र शास्त्र रखखे हुए है उन्हे एक जगह सकलन करके प्रकाशन करवाया जावे । परन्तु जैन विद्वानो ने जो कि अपने ही धर्म से द्वेष के कारण इस महान् मंत्र शास्त्र का अपमान किया । निन्दा ही नही बल्कि अनेक पत्र पत्रिकाओ मे इसके नाम से आलोचना की । परन्तु सूर्खो का यह पता नही कि महा पराक्रमी रावण को भी ११०० विद्याये सिद्ध थी । रामचन्द्रजी सेठ जिनदत्त हनुमान एव भूतबली पुष्पदन्त आदि महान पुरुषो प्रमाण मिलते है । क्या ये मूर्ख थे, या आगम नही जानते थे । सो उन्होने विरोध क्यो नही किया । अभी साक्षात् दिगम्बर गुरुप्रो ने भी इसे आगम विरुद्व नही बताया । जैसे नाव होती है उसमे बैठकर इस पार से उस पार जाने के लिए होती है । अगर कोई मूर्ख उसमे छेड-छाड करे तो क्या होगा । उसे आप जानते है । उसी प्रकार यह मंत्र शास्त्र भी इसीलिए लिखा गया है और इसमे अब और भी अनेक १२८ पृष्ठो के अन्दर इसी लघुविद्यानुवाद में और भी प्राचीन मत्र शास्त्रो द्वारा शास्त्रो से प्राप्त हुए उन मत्रो को जोडा गया है । इन मंत्रो को देख करके श्रापको बहुत ही श्राश्चर्य होगा साथ ही चित्रो के साथ दिया गया है । जीसको देखते ही आपके रोम-रोम खडे हो जावेगे कि जब-जब धर्म पर सकट प्रावे और स्वयं पर कोई आपत्ति आवे उसके निवारण करने के लिए मंत्र शास्त्र की रचना की है। मै तो कहूगा कि पूज्य गणवराचार्य श्री का समाज पर बहुत ही उपकार है । मैं पूज्य गणधराचार्य श्री के चरणो मे यही प्रार्थना करता हू कि आप जैन समाज के लिए ऐसे ही उपयोगी शास्त्रो का प्रकाशन कराते रहे, और मुझे भी सेवा का मौका मिलता रहे यही प्रार्थना करता हू ।
ग्रंथ प्रकाशन कार्यो मे ग्रथमाला के प्रकाशन सयोजक श्री शांति कुमारजी गगवाल एव उनके सुपुत्र श्री प्रदीपकुमार जी गगवाल ने बहुत ही कठिन परिश्रम किया। । इनके कथ परिश्रम से ही यह ग्रथमाला सुचारू रूप से कार्य कर रही है । मेरा इनको बहुत-बहुत आशीर्वाद है कि भविष्य मे भी वो इसी प्रकार कार्य करते रहे ।
क्षुल्लक चैत्यसागर
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प्रस्तावना
द्वादशाग जिनवाणी के ग्यारह अग चौदह पर्व लोक विथत हैं, इनमे विश्व के समस्त ज्ञान विज्ञान का सार है, नवीन एव प्राचान प्राच्य एव प्रतीच्य सभी प्रकार के धर्म-दर्शन साहित्य कला, सस्कृति, अन्तरिक्ष विद्या के साथ ही मत्र-तत्र यत्र को अनेक विद्याओ का अद्भुत भण्डार इसमे समाया है। जैन विद्या में विद्यानुवाद सुकुमार सेन को प्रसिद्ध कृति है, प्रस्तुत लघुविद्यानुवाद इसी कोटि का नयनाभिराम सर्वाङ्ग सुन्दर, रगोन चित्रो-यत्रो मत्रो तत्रो तथा अनेक औषधि रसायन प्रयोगो से मडित दुर्लभ एव सग्रहणीय ग्रथ है। मत्र शक्ति शब्द ब्रह्मा, दिव्य ध्वनि, नाद तरगो एव वाक शक्ति के जीवन्त चमत्कार आधुनिक विज्ञान ने हमारे सम्मुख प्रस्तुत कर दिये है। रेडियो, टेलोविजन, टेपरिकार्डर, ग्रामोफोन, टेलीकास्ट टेलिस्कोप, fax फेक्स-(ध्वनि चित्र) सभी शब्द शक्ति की महत्ता और मत्र विज्ञान को गुण गरिमा का जीवन्त उदाहरण है। इनसे मात्र ज्ञान जानकारी और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एव अन्तरिक्ष से मानव का सम्पर्क ही नही होता अपितु शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न, बुद्धि विस्तृत, और प्रात्मचेतना मे शक्ति का प्रादुर्भाव होता है।
मत्र मे मनन, चितन, उच्चारण, द्वारा (त्रारण) रक्षा शक्ति तो होती है। मत्र लौकिक और अलौकिक शक्तिदाता, सन्तोप विधाता तथा महान आत्माओ से सम्पर्क भी कगता है । मन की शुद्धि, विचारो की पवित्रता, साहस की वृद्धि, मत्र द्वारा निश्चय ही होती है । ॐ आर्य, अनार्य, वैदिक, श्रमण बौद्ध एव विश्व की समस्त साधना सम्प्रदायो मे एक मत से अनन्त शक्तिसामर्थ्य और गुणो का भण्डार एव मन्त्रराज है। जैसे बीज मे विशाल वट वृक्ष समाया रहता है वैसे ही बीजाक्षरो मे अनन्त शक्ति होती है। मत्रो का वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया जा सकत १ केरल, २ काश्मीर, ३ गौड तीन भारत के प्रसिद्ध मत्र सप्रदाय है। कुछ विद्वान १ छिन्न, २ रूद्ध, ३ शक्तिहीन, ४ शताधिक भेदो मे मत्रो की गणना करते है ।'साधना की दृष्टि से १ दक्षिण मार्ग, सात्विक साधना २ वाममार्ग, ३ मिश्रमार्ग रूपो मे मानते है। कुछ ऋपियो ने-१:पुरुष स्त्री, नपू सक मन्त्र २ सिद्ध-साध्य सुसिद्ध अरिमन्त्र ३ पिण्ड कर्तरी बीज, मालामन्त्र, ४ सात्विक-राजसतामस मन्त्र ५ सावर डावर मन्त्र इसी प्रकार भी वर्गीकरण किया है।
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पुरुष देवता से सम्बन्धित मन्त्रो को १ सौर मन्त्र कहा जाता है । २ स्त्री देवता से सबधित मन्त्र सौम्य मत्र या विधा मन्त्र कहलाते है । पुरुष मन्त्र के अन्त मे "हु फट् " रहता है । स्त्रो मन्त्रो के अन्त मे ' ठ: ठ" होता है । ' नम" जिनके अन्त मे आता है वे नपुसक मन्त्र कहलाते है । कतिपय विद्वान वपट् और फट् से समाप्त मन्त्रो को पुरुष मत्र वोषट् और स्वाहा को स्त्री मत्र तथा हू नम से समाप्त मत्रो को नपुसक मानते है । १ पिडमन्त्र, २ कर्त्त मन्त्र, ३ बीजमन्त्र इस प्रकार भी विविक्षा है। एक अक्षर का मन्त्र पिडमन्त्र कहलाता है । दो अक्षरो का मन्त्र कत्तरीमन्त्र । तीन अक्षरो से नव अक्षरो तक के मन्त्र बीजाक्षरी मन्त्र कहलाते है ।
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जिनमे अधिक वर्ण, अक्षर, मात्रा, पद, वाक्य हो, माला मत्र कहलाते है । मत्र ध्वनि-नाद उच्चारण, लय, स्वर, ताल, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से शक्ति सम्पन्न होते है । वशीकरण एक मत्र है— तज दे वचन कठोर । "हित मनोहारी वचन च दुर्लभः । " कोयल की मीठी कुहुक वशीकरण कोए की कर्कण ध्वनि उच्चाटन करती है । तानसेन, बैजू बावरा के स्वर संगीत से दीपक जलते, फूल खिलते, मेघ बरसते, हिरण जगल से आते, नाग सर्प बीन पर भू मते, हमने देखेसुने - पढे ही है । भक्तामर, विपापहार, कल्याण मन्दिर स्तोत्रो के सगीत-मय-भावपूर्ण भजनो के चमत्कार से, ताले टूटते, बेडिया कटती, कुष्ठ रोग दूर होता एव सर्प, बिच्छु के विष नाश होते ही है । भूत-प्रेत भागते और ज्वर, दृष्टि दोष नजरा लगना ( झाडने से आराम ) सुप्रसिद्ध ही है । चन्द्रशेखर व्यंकट रमण ने भारतीय वाद्य (तबला बजाना) बारह वर्ष तक सीखा, साधा, वे एक थाप से मोतियो को ॐ ऐ का आकार प्रदान कर देते थे । जल-तरग की स्वर लहरिया, एव संगीत के ध्वनि प्रयोग से अनेक पागलो, मनोरोगियो को शयन निद्रा ग्रवस्था मे ही रोग मुक्त कर चुके है । आज के वज्ञानिक ध्वनि-तरगो से ऑप्रेशन एव मूच्छित कर व्याधि रहित शरीर कर देते है ।
यह मंत्र विद्या का प्रत्यक्ष विज्ञान द्वारा सहज सुलभ चमत्कार मंत्र शक्ति को स्पष्ट करता है । शास्त्रो मे मत्रो की संख्या सात करोड है। वैदिक विद्वानो के अनुसार कुछ मत्र शिव-शक्ति द्वारा कीलित है बौद्धो मे असख्य मत्र तत्र है । जेनो मे इसकी विशाल परम्परा है णमोकार महामंत्र तो ग्यारह, अगो चौदह पूर्वो का सारतत्व और अनादि मत्र है ही ।
प्रतिष्ठा कल्प, मंत्र कल्प, सूरि कल्प, श्री कल्प, श्री विद्या कल्प, चक्रेश्वरी कल्प, ज्वाला मालीनी कल्प, पद्मावती कल्प, वर्द्धमान विद्या कल्प, रोगपहार कल्प अनेक प्रकार के मंत्र-तंत्र-यंत्र, ग्रथ जैन शास्त्र भण्डारो मे प्राप्त है ।
मत्र की - आत्मा है—ध्वन्यात्मकता एव मन शुद्धि | बुद्धि-शान्ति, आत्म शुद्धि एव पवित्र भावना, इसी के सहारे मंत्र शक्ति ध्वनि ऊर्जा, तरागर्भित होकर अग्नि से अम्बर तक व्याप्त होकर अपना कार्य सिद्ध करती है एव साधक को सिद्धिया, ऋद्धिया एव सफलताये देती है ।
स्वरूप,
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यत्र - धातु, तार, ताडपत्र, कागज, वस्त्र पर टकित चित्रित लिखित रेखाकार विदु को से निमित्त, चित्रित होते हैं । ये यत्र शुद्ध अष्टगंध केशर, कपूर, धूप, आदि से विशेष रविपुष्प, गुरुपुष्प, सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि दशहरा, दिवाली, होलो, ग्रहण, पर्वो एव विशेष मुहूर्तो मे हवन, पूजन, मंत्रो द्वारा शक्तिशाली रूप मे बनाये जाते है । यत्र जैसे नभ में, जल मे,
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पृथ्वी पर, गमनागमन और यात्रादि मे सरलता, शीघ्रता आराम देते है, वैसे ही यत्र-स्वर्ण, रजत, धातु कागज पर बने हुए अनेक रोगो की शान्ति, अनेक बधनो से छुटकारा और अनेक कार्यों को सम्पन्न कराते है।
तत्र -तनु को, (शरीर को) तरावट देते, शरीर, इन्द्रियो को स्वस्थ. मजबूत, शक्तिशाली, शीत, उण, रोग व्याधि को हरते, उपसर्ग से बचाते, तथा शरीर को रसायनो, जडी-बूटियो से दृढ, शक्तिशाली, मजबूत बनाते, योगासनो द्वारा-शरीर मे लचक, चमत्कार, सूक्ष्मता, दृढता, विशालता, विस्तृता आदि को देने वाले, औपधि स्वरूप भी होते है ।
मत्र से मन मे मस्ती शाति, तत्र से शरीर मे दृढता, तरावट, तन की शुद्धता, और यत्र से मानव-जीवन को सरल-सुगम विहार पर्यटन (आकाश, जल, पृथ्वी, नौकागमन) मे शक्ति मिलती है यथार्थ मे मत्र-तत्र यत्र मानव के पचभत शरीर मे स्थित प्रात्मा की ऊर्जा का उर्वीकरण और नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा, पुरुष से पुरुषोत्तम के विकास की प्रक्रिया के द्योतक है।
वारणी की बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ती पराशक्तियो को अभिव्यजना, लक्षण, द्वारा प्रगट करना एव शब्द ब्रह्म की त्रैलोक्य व्यापिनी शक्ति को प्रदर्शित करना मत्र विद्या और मत्र शक्ति का ही कार्य है।
(१) क, च ट, त, प-इन अथरो मे विद्यमान पृथ्वी तत्व से सभी मौलिक सामग्री पायी
जा सकती है। (२) ख, छ ठ, थ, फ-इन जल तत्व के अक्षरो से शाति सन्तोष, मानसिक तृप्ति हो
जाती है। (३) ग, ज, ठ, द, ब-इन अग्नि तत्व अक्षरो की साधना साहस, धैर्य, शक्ति ऊर्जा
प्रदान करती है।
(४) घ, झ, ढ, ध, झ-इन वायु तत्व के अक्षरो से दूर-सचार, गमन आगमन शक्ति
प्राप्त कर सकते है।
(५) ड, ण, न, म-इन आकाश तत्व से निर्मित वणों से अनन्तता, विशालता,
पवित्रता, मोक्ष मिलता है।
और साधक इच्छानुसार पृथ्वी, स्वर्ण धातु, जल से सुख शाति, अग्नि से सामर्थ्य, वायु से गमनागमन पर्यटन, विहार एव आकाश तत्व साधनो से दिव्य, अलौकिक शक्ति सम्पन्न प्रात्मामो से सम्पर्क कर सकता है।
बीजाक्षरो की शक्ति-स्वरूप, आसन, मुद्रा के विधि विधान, तथा रोग निवत्ति कारक अनेक अनुभवी औषधि नुस्खो सहित परमेष्ठी वाचक मत्रो, पद्मावती-चक्रेश्वरी देवियो के चित्रो एव चमत्कारिक जडी बूटियो के प्रयोगो, तथा धन्वन्तरि कल्प, गजा कल्प, हाथाजोडी दक्षिणावती शख, एकाक्षी नारियल, सुवर्ण-रजत के रसायनिक प्रयोगो से परिपूर्ण इस न थराज के पाचों
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प्रकरणो मे पचपरमेष्ठी स्वरूप मानव के पचतत्व निर्मित शरीर को स्वस्थ्य एव पचभूत निर्मित ससार के रहस्य को समझने के अनेक दुर्लभ और प्राचीन प्रयोगो का भण्डार है । यह ग्रंथराज आपके हाथो मे है ।
अपने निर्ग्रथ गुरु के श्रीचरणो मे, एव अनुभवी योग्य इंद्रियजयी निर्लोभी, परोपकारी, साधु स्वभाव, समी, विद्वानो के सम्पर्क से इस महान ग्रंथ के मंत्र तत्र यत्र जडी बूटी - प्रौषधि | प्रयोग से लाभान्वित होना एव स्वपर उपकार कर पुष्पार्जन करना प्रत्येक का कर्तव्य है । ससारी | मानव और गृहस्थ के लिए अपने धर्म, शील, धन एव मंदिर, देव शास्त्र गुरु तथा परिवार जनो की रक्षा, सेवा के लिये इसके सभी प्रयोग कामधेनु की तरह तृप्तिदायक चितामरण की तरह रक्षक और कल्पवृक्ष की तरह महत्वकाक्षाओ को पूर्ण करने वाले है । आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी के अनेक अनुभवी प्रयोग श्री १०८ गणधराचार्य कु थुप्सागरजी महाराज ने कृपापूर्वक सशोधित करन | इस ग्रथराज मे सम्मिलित किये है, तथा श्रावश्यक पद्मावत्याष्टक भी हृदयशील भावुक भक्तो के लिये | सकलित कर दिया है । श्री दि० जेन कुथु विजय ग्रंथमाला समिति के प्रकाशन सयोजक सगीताचार्य, | गुरुउपासक श्री गगवाल शांति कुमारजी उनकी सहायक मित्रमण्डली, सौ. श्री मेमदेवी गंगवाल एव | बाबू प्रदीपकुमारजी गंगवाल ( बी कॉम ) इसके पुन सस्करण के लिये कोटिश साधुवाद सधन्यवाद पात्र है |
इसमे अध्यात्मवाद, भौतिकवाद का मरिणकाचन सयोग है । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की | प्राप्ति का सरल प्रयोग है । चौसठ यक्षिणी सोलह विद्या देवियो, चौबीस तीर्थङ्करो के शासन देवी| देवताओ के युगल चित्र ह । हाम कुण्डो के नक्शे और सैकडो अनमोल गारूडी, घातु, पारा, अगूठियो Arts प्रयोग है, जिनसे प्रत्येक श्रावक, श्रविका, साधु, तपस्वी, विद्वान, विद्यार्थी लाभान्वित होगे। इसके अनेक प्रयोग मेरे अनुभूत है, जिनसे अनेको प्रसंशापत्र मुझे प्राप्त हुए है । ऐसा यह ग्रंथ राष्ट्रभाषा हिन्दी का गौरव एव मत्र-तत्र यत्र का अभूतपूर्व सदर्भ ग्रंथ है ।
रक्षाबन्धन, १७ अगस्त, १९८६ भारती ज्योतिष विद्या संस्थान ५१ / २ रावजी बाजार, इन्दौर - ४
शुभाकक्ष अक्षय कुमार जैन शास्त्री एम. ए प्राध्यापक, हिन्दी विभाग
गुजराती कला विधि महाविद्यालय
इन्दौर
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Priya
Layak
MENTS
प्रकाशकीय
मुझे हार्दिक प्रसनता है कि श्री दिगम्बर जैन कु थु विजय ग्र थमाला समिति जयपुर (राजस्थान) द्वारा प्रकाशित सर्वजन प्रिय प्रथम पुष्प लघुविद्यानुवाद ग्र थ का द्वितीय सस्करण के रूप मे प्रकाशन होकर इस न थ का विमोचन परमपूज्य श्री १०८ गणधराचाय कु थु सागरजी महाराज के कर कमलो द्वारा करवाने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है ।
पूर्व मे प्रकाशित लघुविद्यानुवाद ग्रथ का प्रकाशन वास्तव मे सभी को लाभदायक सिद्ध हुमा है । लोगो ने ग्रथ मे प्रकाशित सामग्री के माध्यम से अनेको रोग शोक प्राधि व्याधियो से मुक्ति प्राप्त की है। इसलिये सभी ने इस ग्रथ को प्राप्त किया और अल्प समय मे ही प्रथम पुष्प के रूप मे प्रकाशित इस ग्रथ की प्रतिया समाप्त हो गई। इसके बाद ग्रथ भिजवाने हेतु प्रतिदिन अनेको पत्र ग्र थमाला के कार्यालय पर प्राप्त होने लगे। लेकिन हम क्षमा चाहते है उन सभी बधूम्रो से जिनको हम इस न थ, ग्रथ को प्रतिया समाप्त होने के कारण उपलब्ध नही करा सके । लेकिन इस स्थिति से परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कु थु सागरजी महाराज को अवगत कराया गया।
गणधराचार्य महाराज परम दयालु एव वात्सल्य मूर्ति है। इतने विशाल संघ का सचालन करते हए सदैव अपने ज्ञान ध्यान तथा तप मे लीन रहते है। फिर भी विषय पर गौर फरमाकर ग्रथ की अत्यधिक माग को ध्यान में रखते हुए लोगो के लाभाथ अपने अमूल्य समय मे से समय निकालकर पुन इस ग्रथ का सशोधन कार्य किया और पुनः प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान को ।
___ लघुविद्यानुवाद ग्रथ के प्रथम सस्करण मे कुछ ही विषयो को छोडकर सभी सामग्री लाभप्रद थी। लेकिन उन विषयो को पकडकर लोगो ने अपने-अपने तरीके से इस ग्रथ का काफी
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अपवाद किया, लेकिन परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथु सागरजी महाराज के हम बहुत-बहुत कृतज्ञ है कि उन्होने बहुत ही धैर्य के साथ सभो अपवादो को सहन किया और फिर भी जन-भावना को ध्यान में रखते हुए पुन इस न थ का सशोधन कार्य किया और साथ ही इस कृति से सभी अपवादजनक सामग्री को भी अलग कर दिया है जिसे पकडकर लोगो को अपवाद करने का मौका मिल रहा था।
यह ग्रथराज अब पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण ग्रथ सिद्ध होगा क्योकि इस ग्रथराज मे वीरनन्दि आचार्यकृत पद्मावती स्तोत्र व उस स्तोत्र पर लिखी हुई अाठ श्लोको पर 'वृत्याष्टक' नाम की टीका श्री पार्श्वनाथ देव द्वारा रचित उसको भी विशेष शुद्धिपूर्वक गणधराचाय महाराज ने टीका करके विमल भाषा टीका के नाम से इस ग्रन्थ मे प्रकाशित करवा दिया है। पद्मावती देवी के अनेको यत्र मत्र इसमे प्रकाशित किये गये है जो अनेक प्रकार के रोग शोक सकट निवारण मे लोगो को लाभ प्रदान कर सकेंगे।
ग्रन्थ मे प्रकाशनार्थ, प्रस्तावना आदरणीय प्रोफेसर अक्षयकुमारजी जैन इन्दौर वालो ने लिखने की कृपा की है। इसके लिए हम ग्रन्थमाला समिति की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद देते है
और आशा करते है कि भविष्य मे भी आपका सहयोग तथा मार्ग-दर्शन इस ग्रन्थमाला समिति को सदैव प्राप्त होता रहेगा।
ग्रन्थ प्रकाशन मे, प्रकाशन खर्चों के भुगतान हेतु आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती है। ग्रन्थमाला समिति के पास स्थायी आर्थिक जमा राशि नही है फिर भी इस ग्रथमाला से अब तक पन्द्रह ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके है जो सभी समाज के गुरुभक्त दातारो से प्राप्त आर्थिक सहयोग के आधार पर हम करा सके है।
___ ग्रन्थमाला समिति को समय-समय पर प्रकाशन खर्चों मे सहयोग हेतु जिन-जिन दातारो ने हमे सहयोग किया है हम सभी के आभारी है और आशा करते हैं कि भविष्य मे भी आप सभी का सहयोग हमे प्राप्त होता रहेगा।
प्रस्तुत ग्रन्थ मे भी लगभग एक लाख रुपया प्रकाशन कार्य में खर्च हा है जो आप सभी से प्राप्त सहयोग के आधार पर हम करा सकेगे। जैन समाज बडौत ने इस ग्रन्थ मे प्रकाशन खर्चों की पूर्ति हेतु विशेष सहयोग किया है । श्रीमान् परम गुरुभक्त सेठ प्रेमचन्दजी जैन (मित्तल) का भी इस ग्रन्थ का प्रकाशन कार्य शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण कराने मे विशेष सहयोग रहा है। हम सभी को ग्रन्थमाला समिति, की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद देते है । __ ग्रन्थमाला समिति के प्रकाशन कार्यो मे सभी सहयोगी कार्यकर्त्तानो का बहुत-बहुत आभारी हूं कि आप सभी ने समय पर कार्य पूरा करवाने मे मुझे सहयोग प्रदान किया है। श्री प्रदीप कुमार
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गगवाल ने परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथु सागरजी महारज के शुभाशीर्वाद से इस कार्य मे अथक परिश्रम किया है। अन्य सहयोगीगण सर्वश्री मोतीलालजी हाडा, श्री होरालालजी सेठी, श्री लिखमीचन्दजी बख्शी, श्री लल्लूलालजी जैन (गोधा), श्री रवि कुमार गगवाल, जैन सगीत कोकिला रानी बहिन श्रीमती कनकप्रभाजी हाडा, श्रीमती मेमदेवी गगवाल का समय-समय पर सहयोग मिलता रहा है । अतः सभी को बहुत २ धन्यवाद देता हूँ।
ग्रन्थमाला समिति द्वारा प्रकाशन कार्य को बहुत ही सावधानी पूर्वक देखा गया है फिर भी इतने विशाल कार्य में त्रुटियो का रहना स्वाभाविक है। ग्रन्थ में प्रकाशित सामग्री मेरे सामान्य ज्ञान की परिधि के बाहर की है। मैने तो मात्र परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कु थु सागरजी महाराज की आज्ञा को शिरोधार्य करके यह कार्य किया है। अत साधुवर्ग विद्वतजन व अन्य पाठको से निवेदन है कि त्रुटियो के लिये क्षमा प्रदान करे ।
ग्रन्थमाला समिति द्वारा प्रकाशित ग्रन्थो के प्रचार-प्रसार के कार्यो मे सभी जैन पत्रो, (जैन गजट, जैन मित्र, करूणा दीप, अहिसा, पुष्पदत्त धारा) आदि पत्रो के सम्पादक महोदयो का हमे सहयोग मिलता रहा है । हम न थमाला समिति की ओर से सभी का आभार व्यक्त करते हुए उनके सदैव दिये गये सहयोग के लिये धन्यवाद देते है और आशा करते है कि भविष्य मे भी आप सभी का सहयोग हमे ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित ग्रन्थो के प्रचार-प्रसार के कार्य मे प्राप्त होता रहेगा।
परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथु सागरजी महाराज ने विशाल सघ सहित वर्ष १६८६ का वर्षायोग बडौत नगर मे किया। वर्षायोग मे समय-समय पर अनेक धामिक आयोजन समय-समय पर हुए, जिससे बहुत ही धर्म प्रभावना हुई और आज भी दिनाक ८/२/६० को परमपूज्य श्री १०८ गणघराचार्य कु थु सागरजी महाराज द्वारा श्री १०५ क्षुल्लक कुमार विजयनन्दिजी महाराज की दीक्षा हो रही है, ऐसे मागलिक शुभावसर पर परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुथु सागरजी महाराज के शुभाशीर्वाद से ऐसे मागलिक शुभावसर पर प्राकर कार्यक्रम में सम्मिलित होने का मौका प्राप्त हुआ है और इसी शुभावसर पर ग्रन्थमाला समिति द्वारा प्रकाशित द्वितीय सस्करण 'लघुविद्यानुवाद' ग्रन्थ की प्रथम प्रति गणघराचार्य कुथु सागरजी महाराज के कर-कमलो मे भेट कर प्रार्थना करता हूं कि इस ग्रन्थराज का विमोचन करने की कृपा करे ।
गुरु उपासक सगीताचार्य, प्रकाशन सयोजक शान्ति कुमार गगवाल (बी कॉम)
जयपुर (राज.)
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परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य वात्सल्य रत्नाकर, श्रमरणरत्न, स्याद्वाद केशरी, वादिभ सूरी, जिनागम सिद्धान्त महोदधि कुन्थु सागरजी महाराज
का ॐ संक्षिप्त जीवन परिचय ॥
ससार मे प्रत्येक प्राणी जन्म लेकर ससार रूपी सागर की यात्रा पूर्ण करता है, किन्तु ऐसे भी कुछ प्राणी होते है जो स्व-पर हित करके ही अपना जीवन सफल बना लेते है। जीवन उन्ही का सफल है, जिन्होने अपने इस जीवन को प्राप्तकर आध्यात्मिक खोज मे बिताया है। कहा भी
स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् ।
परिवर्तिन संसार, मृतः को वा न जायते । जैसे-चक्र की तरह घूमते हुये ससार मे मरकर कौन जन्म नही लेता परन्तु जन्म उसी का सार्थक है, जिसके जन्म से वश, देश तथा धर्म की उन्नति हो ।
पद्माकर दिनकरो बिकची करोति,
चन्द्रो विकाशयप्ति कैखचक बालम् । नाभ्यथितो जलधरोअपि जलंददाति,
संत स्वय पर हितेषु कृताभियोग । जैसे -सूर्य विना कहे आप ही कमलो को खिलाता है, चन्द्रमा बिना कहे कुमुदो को प्रफुल्लित करता है, बादल बिना मागे मेह बरसाते है, वैसे ही सन्त जन भी बिना कहे परोपकार करते है। ऐसे स्व-पर कल्याण का भाव वाला सत्पुरुष ससारी जोवो को दुर्लभ है । परन्तु आज भी इस भारत वसुन्धरा पर अनेक ज्ञानी ध्यानी तपस्वी सयम मे ख्याति प्राप्त धर्म प्रभावना मे अग्रण्य सत जन विद्यमान है उन्ही मे से हमारे मध्य परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज विराजमान है।
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गरगधराचार्य श्री की जीवन झाँकी
पिता का नाम-पण्डित रेवाचन्द्रजी. माता का नाम-श्रीमती सोहनी देवी जी, जन्म तारीख एवं मिति-१-६-१९४७ ज्येष्ठ शुक्ला १३ वि० स० २००३, जन्म स्थान-ग्राम बडा बाठेडा । (जिला उदयपुर) राजस्थान, जन्म का नाम-कन्हैयालालजी, भाई-एक, बहिन-तीन, शिक्षा-घर मे ही पूज्य पिता श्री से, मातृ भाषा-हिन्दी, ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण-श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र पावागढ मे विराजमान चितामणि
पार्श्वनाथ भगवान के श्री चरणो मे, शुद्र जल त्याग-परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य सीमन्धर सागरजी महाराज एव सुबाहु
सागरजी महाराज के श्री चरणों में, मुनि दीक्षा स्थान-श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र होम्बुज पद्मावती । (कर्नाटक) मुनि दीक्षा तारीख एवं मिति-६ जुलाई सन् १९६७ तदनुसार आसाढ सुदि २ रविवार
विक्रम सवत २०२४, दीक्षा गुरु-परम पूज्य समाधि सम्राट तीर्थभक्त शिरोमणि श्री १०८ प्राचार्य प्रवर
महावीर कीर्तिजी महाराज, गरणघर पद-परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य महावीर कीतिजी महाराज द्वारा दिनाक
६-१-१९७२ तदनुसार माघ सूदि पष्ठी को महसाना (गुजरात) में प्रदान
किया गया। माचार्य पद-परमपज्य श्री १०८ प्राचार्य सन्मार्ग दिवाकर, निमित्तज्ञान शिरोमणि
विमल सागरजी महाराज की आज्ञानुसार दिनाक १९-११-८० को अकलून
(सोल्हापुर, महाराष्ट्र) मे प्रदान किया गया। पारा नगर (बिहार) मे अतिशय
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के सघ का वर्ष १६८८ का वयोग प्रारा नगर (बिहार) मे हया था। वर्षायोग मे गणघराचार्य महाराज के ग्राहार के उपरान्त चरण कमलो के चिह्न कई श्रावको के घरो पर अकित हए है जो आपकी उत्कृष्ट तपस्या का साक्ष प्रमाण है।
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इस प्रकार हम कह सकते है कि परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कु थु सागरजी महाराज आज के युग मे आर्ष परम्परा के दृढ स्तम्भ है और गुरुवों के द्वारा प्रदत्त पदो से ही आप गणधराचार्य पद से सुशोभित है।
समता, वात्सल्यता निर्ग्रन्थता आपके विशेष गुण है, जो भी आपके एक बार दर्शन प्राप्त कर लेता है वह अपने आपको धन्य मानता है और उसका मन प्रफुल्लित होकर कह उठता है
महाराज तुम्हारे दर्शन को दुनियां दौड़ी आती है।
कुछ बात अनोखी है तुममे जो ओरो मे नहीं पाती है। गणधराचार्य महाराज के भाव स्व-कल्याण के साथ-२ हमेशा पर कल्याण के भी बने । है । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण आपका विशाल संघ है। आपने अनेको दीक्षाये दी है। वर्तमान में आपके सघ मे लगभग ३० पिच्छो है, जिनमे पाप ही के द्वारा दीक्षित मुनियो की संख्या १७ है जो भारत वर्ष मे विद्यमान किसी भी श्रमण सघ मे नही है, हमारे लिये यह वहत ही गौरव व प्रसन्नता की बात है कि गणधर चार्य महाराज का विशाल सघ हमारे मध्य विद्यमान है । सघस्थ सभी साघु ज्ञानी ध्यानी एव तपस्वी है। सदव अध्ययन चितन मे लीन रहते है।
परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य धर्म सागरजी महाराज के आदेशानुसार आपने भारतवर्ष मे नगर-नगर और गाँव-गाँव मे विशाल संघ के साथ विहार कर सोनगढ़ साहित्य का बहिष्कार करने व जिन मन्दिरो से उस साहित्य को हटाने के लिए पूर-जोर अभियान चला रक्खा है जिसके फलस्वरूप आपने अनेको उपसर्ग सहन किये । प्राण घातक हमले आप पर हुये। लेकिन धर्म की रक्षा के लिये आपको अपने प्राण। की भी चिन्ता नहीं है । अभी हाल ही मे आपके द्वारा लिखित पुस्तक काजी पोपडम् शतक (असत्य कहान स्वामी) प्रकाशित हुई है जिसमे गणधराचार्य महाराज ने बहुत ही साहस के साथ निडर होकर के कानजी स्वामी तथा उनके अनुयायियो ने किस प्रकार से असत्य कथनो के द्वारा लोगो को गुमराह कर रहे है उसका वर्णन किया है । सरल मुबोध प्रवाह मयी भाषा मे लिखा गया एक-२ सवैया गाथा को निरूपित करता है-महाराज की यह कृति डके की चोट कहती है।
कहा कहान वाणी देखो, कहा बीर वाणी है। दोनो मे अन्तर जैसे, कौआ और कोयल मे ।। गृहस्थ पुल्लिग धारी, शुद्धोपयोगी न होय । फिर चम्पा बहिन को शुद्ध कैसे होय ? वस्त्रधारी व्यक्ति को सदगुरुदेव कहे।
निर्ग्रन्थ साधुवो को द्रव्य लिगी कहत है। धर्म ग्रास्था तर्क वितर्क ज्ञान समाधान और, न्याय की सतरगी प्राभा से दमकती पुस्तिका काजी बाबा के टोल की पूरी पोल खोलने में समर्थ है।
___ इस प्रकार धर्म रक्षा हेतु परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कु थु सागरजी महाराज ने इस दिशा में जो कार्य किया है उस पर हम सभी को गौरव है।
गणधराचार्य महाराज सदैव ही निडर होकर पूर्वाचार्यों द्वारा लिखित ग्रथो का ही स्वाध्याय करने की प्रेरणा भव्य जीवो को देते रहते है प्राचीन ग्रथ जो अप्रकाशित है तथा
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जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे जो ग्रन्थालयो मे पडे है उनके जीर्णोद्धार करने की आपकी भावना सदैव बनी रहती है और इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये आपने अनेक ग्रन्थो की टीकाये की और उनका प्रकाशन भी हुआ। साथ ही उन ग्रथो का स्वाध्याय कर अनेको भव्यजीव लाभ उठा रहे है।
गणधराचार्य महाराज के ज्ञान, ध्यान, त्याग व तप से प्रभावित होकर माह दिसम्बर ८८ मे आरा बिहार में आयोजित पचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर आपका अभिनन्दन कर आपको "जिनागम सिद्धान्त महोदधि' के पद से विभुषित कर अभिनन्दन पत्र भेट किया गया।
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(भेट किया गया अभिनन्दन-पत्र समारोह में उपस्थित जनसमुदाय को दिग्दर्शन कराते हुये
ग्र थमाला के प्रकाशन सयोजक शान्ति कुमार गगवाल ) यत्र, मत्र, तत्र शास्त्रो का पूर्ण जीर्णोद्धार प्रदान करने के लिये आपने अद्वितीय कार्य किया है वोह सभी के सामने है। आपने लघविद्यानवाद ग्रथ का सकलन कर प्रकाशन करवाया। अ अपवादो के बावजुद भी आपकी यह कृति इतनी लोकप्रिय रही कि हम इसे श्री दिगम्बर जैन कुथु विजय ग्रथमाला समिति, जयपुर (राज.) से पुन प्रकाशित करवा रहे है।
अत मे हमारी यही भावना है कि परमपज्य श्री १०८ गणधराचार्य कू थु सागरजी महाराज इस भारत भूमि पर चिरकाल तक विहार कर रत्नत्रय की वद्धिकर धर्म प्रभावना करते रहे।
प्रकाशन सयोजक
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然然然然然然然然然然然然然然然是长路 परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य, बालनायक, वात्सल्य रत्नाकर, चतुर्विध संघाधिपति
चारित्र चक्रवर्ती, आगम उद्धारक, ज्ञानयोगी, उपसर्गजयी, स्याद्वाद केशरी । श्री आचार्य कुन्युसागरजी महाराज के श्री चरणो मे सविनय समर्पित
* अभिनन्दन-पत्र * गणधराचार्य --हे स्वामिन । आपने गण अर्थात् पाँच द्रव्य इन्द्रियो का धारण केवल भव्य जनो के हित और मोक्ष-मार्ग प्रकाशन मे ही किया है। आपकी अन्तर्मुखी वृत्ति एव सतत् प्रात्मध्यान मे लीनता देखकर हो भगवान महावीर के तीर्थ की प्रभावना करने वाले पूज्य आचार्य श्री महावीर कीति ने ६ जनवरी, ७२ गुरुवार को प्रापको गणधर के पद पर सुशोभित किया तथा १६ नवम्बर ८० को निमित्तज्ञान शिरोमणि श्री विमलसागरजी महाराज ने आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर सम्यक दर्शन के प्रभावना अग की प्रतिष्ठा की।
बालनायक वात्सल्य रत्नाकर -हे सरल साधु निश्छल हृदय बालकवत् भावुक भोलेचलते-फिरते जोवत मोक्ष स्वरूप आपके स्नेह भाव और अमृतवाणी से भारतवर्ष की जैन जैनेत्तर सभी जनता ने शुक्रदेव जैसा बालयोगी और वात्सल्य रत्नाकर कहकर भूरि-भूरि प्रशसा की।
चतुर्विध संघाधिपति चारित्र्य चक्रवर्ती -आपने साधु, मुनि, उपाध्याय, आचार्य सभी के मूल गुणो और आवारादि गुणो से शरीर को कुन्दन बनाया है। मुनि-ऐल्लक, क्षुल्लक, आर्यिका रूप संघ के कर्णधार एव उपाध्याय, श्रावक, श्राविकाओ, सतो, तपस्वियो के मार्गदर्शक वाईस परिषहो को जय करते हुए, बाईस मुनिराजो को दीक्षा प्रदान करने वाले आत्मलिन आप वदनीय है।
श्रागम उद्धारका-जिस प्रकार चक्रवर्ती १४ रत्नो से वसुधा विजय कर वीर पताका फहराता है, उसी प्रकार आपने जयपुर-जैनपुरी सस्थान के श्रावक रत्न शाति कुमार गगवाल द्वारा श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रथमाला से चौदह ग्रन्थ रत्न प्रकाशित करवा कर अपनी प्रतिभा, साधना, श्रम, अध्यवसाय का परिचय ही नही दिया, अपितु राष्ट्र भाषा मे मत्र, तत्र, यत्र श्रमण सिद्धात, सम्मेद शिखर माहात्म्म्, शीतल, शातिपूजा व्रत विधान, रात्रि भोजन त्याग, धर्म, ज्ञान, । विज्ञानादि प्रचारित कर जिनवाणी मथन कर आर्ष परपरा को जीवित रखने का भागीरथ प्रयत्न किया। तीर्थङ्कर प्रकृति के बधन को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया है।
ज्ञानयोगी-हे प्रभु वोर प्रभू मेवाड, उदयपुर के बाठेडा ग्राम मे प रेवाचद्रजी सोहनीदेवी ने जिन पॉच सतानो को जन्म दिया उनमे आपने प्राचार्य परमेष्ठी बनकर उनके दिव्य पवित्र धर्मशाल सस्कारो को मूर्त ही नही किया, ज्ञान सूर्य और तप द्वारा सहस्र गुना विकसित किया । SEARNAYANAMAHARAMINAMANANANMMS
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だだだだ だ だだだだだだだだだだいだいおうちわとおかわりだ कन्हैयालाल से कुन्थुसागर 'कुन्ठुनाथामिघातस्य सर्वेपा पाप कुन्युनाथा।' श्लोक ३० पृष्ठ २४० सम्मेद शिखर माहात्म्म् नाम को सार्थक किया, कन्हैया से मुरकराते प्रथमानुयोग, करणानुयोग,
द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग के प्रवचनो द्वारा योगिश्वर कृष्ण सी जिणवारणी गगा गीता बहाने श्रापका E जीवन धन्य एव प्रणम्य है।
उपसर्गजयो -मिथ्यात्वी, एकाती, मदाघ पण्डितो ने उनके उपसर्ग, कष्ट एव विरोधपूर्ण लाछनो से आप श्री को अपमानित करने का प्रयत्न किया, किन्तु पाप क्षीर सागर मे शात विराजमान विष्णु की तरह अडिग रहे । बचपन से ही पूर्ण ब्रह्मचर्यपालक विषय वासना दाहन को शिव सा तोसरा नेत्र जाग्रत रखते है और परिपह जय करते हुए उपसर्गों का कालकूट पीते महादेव शकर से सर्वदा सर्वत्र पूज्य ही रहे।
स्यादवाद केशरी -अापने उत्तर से दक्षिण पैदल विहार करके कन्नड, सस्कृत, प्राकृत, पालो, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, अपभ्रश एव राष्ट्र भाषा के अनेक विद्वानो, पण्डितो, श्रावको को जहाँ जिनवाणो का अमृतपान कराया है, वही उनके हठी दुराग्रही, दभी जनो को अकाट्य तर्को । द्वारा स्याद्वादमयी जिणवाणी का रहस्य समझाकर कुन्द कुन्दाचार्य की प्रापं पताका फहराई एव । मदान्ध ज्ञानी गजो का मद भजन कर "स्यादवाद केसरी" कहलाये।
प्रात स्मरणीय पूज्य -ग्राप ज्ञान के सागर, चरित्र के सुमेरु, वात्सल्यमूर्ति, जिनालयो, मन्दिरो, तीर्थो के उद्धारक, प्रतिष्ठा-कर्ता एव शास्त्रो के गूढ ज्ञाता है, आप निकाल वदनीय, सदाकाल पूज्यनीय एव प्रात स्मरणीय है। सबकी भावना है आप शतायु स्वस्थ रहे। आपने शुद्ध-अशुद्ध, निश्चय व्यवहार सभी प्रकार से जिनागम महोदधि का मथन कर सत्य का सूय प्रकाशित किया है।
___अत बिहार प्रात मे जहाँ कभी भगवान् महावीर और गौतम बुद्ध ने अहिंसा, क्षमा, प्रेम त्याग सेवा का जयक्रान्ति घोप कर प्राणीमात्र को कल्याणकारी पचशोल का उपदेश दिया था, उसी प्रात की पावन, पवित्र भूमि आरा नगरी मे पचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर वही काउपस्थित जनसमुदाय एव जयपुर नगर के श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रन्थमाला समिति के श्रद्धालु परम गुरुभक्त कार्यकर्ता नवविशेषनात्मक रत्नो से युक्त नवधाभक्तिपूर्वक आपका अभिनन्दन कर आपको "जिनागम सिद्धान्त-महोदधि" पद से विभूपित करते है और यह अभिनन्दन पत्र आपको समर्पित करते हुए अपने आपको धन्य एव गौरवान्वित अनुभव करते है।
कृपया स्वीकार कर, आशिर्वाद दे गुरुवर्य । हम है आपके श्रद्धावनत१ श्री दिगम्बर जैन मुनि सघ सेवा समिति
श्री दिगम्बर जैन २ पचकल्याणक महोत्सव समिति एव सकल
कुन्थु विजय ग्रथमाला समिति, दिगम्बर जैन समाज, पारा (बिहार) दिनाक ११-१२-८८ जयपुर (राजस्थान) HINTAMANANAMANAMRATANAMANNAR
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-: वर्तमान में :
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के संघस्थ साधुगरण ।
परम पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज एव उपाध्याय एलाचार्य श्री १०८ कॅनके नन्दिजी 'महाराज
श्री १०८ स्थविर वीरनन्दिजी महाराज
श्री १०८ प्राचार्यकल्प करूणानन्दिजी महाराज
श्री १०८ बालाचार्य पद्मनन्दिजी महाराज
श्री १०८ कोमलनन्दिजी महाराज
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श्री १०८ कमलनन्दिजी महाराज
श्री १०८ केवलनन्दिजी महाराज
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श्री १०८ कविन्द्रनन्दिजी महाराज
श्री १०८ कुशाग्रनन्दिजी महाराज
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श्री १०८ कुमार विद्यानन्दिजी
महाराज
श्री १०८ कुलचन्द्रनन्दिजी
महाराज
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श्री १०८ कुलपुत्रनन्दिजी महाराज
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श्री १०८ कल्पश्रुतनन्दिजी महाराज
श्री १०८ बालयोगी कामकुमारनन्दिजी महाराज श्री १०८ कन्कोज्जवलनन्दिजी महाराज
श्री १०८ कर्मविजयनन्दिजी महाराज
गणिनी आर्यिका श्री १०५ कमल श्री माताजी
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* प्राचार्य कुन्द-कुन्द के सदुपदेश * परम पूज्य श्री १०८ प्राचार्य विद्यानन्दजी महाराज की प्रेरणा से सर्वत्र भारत भर में दिनांक ३०-७-८८ से दो वर्ष तक प्राचार्य श्री कुन्द-कुन्द द्विसहस्त्राब्दि समारोह मनाये जा रहें है। प्रस्तुत ग्रन्थराज भी इसी अवधि के बीच प्रकाशित किया गया है और प्राचार्य कुन्द-कुन्द द्वारा आज से दो हजार वर्ष पहने रचित अमर काव्य "कुरल" का कुछ हिन्दी रूपान्तर निम्न प्रकार है ।
१. यदि तुम सर्वज्ञ परमेश्वर के श्री चरणो की पूजा नही करते हो तो तुम्हारी सारी विद्वता किस काम की ?
२ देखो | जो मनुष्य प्रभु के गुणो का उत्साहपूर्वक गान करते है, उन्हे अपने भले बुरे कर्मो का दुखद फल नही भोगना पडता।
३ धन वैभव और इन्द्रिय सुख के तूफानी समुद्र को वे ही पार कर सकते है जो धर्म सिधु मुनिश्वर के चरणो मे लीन रहते है।
__४ त्याग तपस्या की चट्टान पर खडे हुए मुनि महात्मानो के क्रोध को एक क्षण भी सह लेना असभव है।
५. धर्म से मनुष्य को मोक्ष मिलता है, और उससे स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है फिर भला धर्म से बढकर लाभदायक वस्तु और क्या है ?
६ अपना अन्त करण पवित्र रखो, धर्म का समस्त सार बस इसी उपदेश मे समाया हुआ है । अन्य सब बाते और कुछ नहीं केवल शब्दाडम्बर मात्र है ।
७ ईफ लालच, क्रोध, और अप्रिय वचन इन सबसे दूर रहो, धर्म प्राप्ति का यही मार्ग है।
८ मुझ से यह मत पूछो कि धर्म करने से क्या लाभ है ? बस एक बार पालकी उठाने वाले कहारो की ओर देख ले और फिर उस आदमी की और देखो, जो उस पालकी मे सवार है।
६ सद्गृहस्थ-अनाथो का नाथ, गरीबो का सहायक और निराश्रितो का मित्र है।
१० जो बुराई से डरता है और भोजन करने से पहले दूसरो को दान देता है उसका वश कभी निर्वीज नहीं होता।
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श्री दिगम्बर जैन कुन्थु-विजय ग्रंथमाला समिति : एक परिच
(स्थापना एवं किये गये प्रकाशन संबंधी संक्षिप्त जानकारी)
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श्री दिगम्बर जैन कुन्थु-विजय ग्रन्थमाला समिति जयपुर (राजस्थान) की स्थापना पर पूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज व श्री १०५ गणिनी आर्यिकारत्न विजयामत माताजी के नाम से वर्ष १९८१ मे की गई थी। इस ग्र थमाला समिति का प्रमुख उद्देश्य पूर्वाचार द्वारा रचित तीर्थकरो की वाणी के अनुसार साहित्य प्रकाशन करना है।
लघुविद्यानुवाद
सर्वप्रथम इस ग्रन्थमाला समिति से पहले पुष्प के रूप मे "लघुविद्यानुवाद” (यन्त्र, मन्त्र तन्त्र विद्या का एक मात्र सदर्भ ग्रन्थ) का प्रकाशन करवाकर इसका विमोचन श्री वाहुबलि सहस्त्रा भिषक के शुभावसर पर चामुण्डराय मण्डप मे दिनाक २४-२-८१ को श्रवण बेलगोल मे परमपूज्य सन्मार्ग दिवाकर निमित्त ज्ञान शिरोमणि श्री १०८ प्राचार्य रत्न विमल सागरजी महाराज के कर कमलो द्वारा करवाया गया था। . इस समारोह मे देश के विभिन्न प्रान्तो से पधारे हुये लाखो नर-नारियो के अलावा कार्फ सख्या मे मच पर दिगम्बर जैनाचार्य मुनिगण व अन्य साधुवर्ग उपस्थित थे। समाज के गणमान्य
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व्यक्तियो मे सर्वश्री भागचन्दजी सोनी, साहू श्रेयास प्रसादजी जैन, श्री निर्मल कुमारजी सेठी, श्री त्रिलोकचन्द कोठ्यारी, श्री पूनमचन्द जी गगवाल (झरिया वाले) श्रादि उपस्थित थे । समारोह की अध्यक्षता श्री पन्नालालजी सेठी (डीमापुर ) वालो ने की थी। समारोह मे मूडबद्री व कोल्हापुर के भट्टारक महास्वामी जी भी उपस्थित थे ।
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श्री चतुविशति तीर्थकर अनाहत ( यत्र मंत्र विधि ) -
ग्रन्थमाला समिति ने द्वितीय पुष्प श्री चतुविशति तीर्थकर अनाहत" ( यन्त्र-मन्त्र विधि पुस्तक) कन्नड से हिन्दी मे अनुवादित करवाकर इसका प्रकाशन दिनाक १-५-८२ को श्री पार्श्वनाथ चूलगिरि अतिशय क्षेत्र जयपुर (राजस्थान ) मे प्रायोजित पचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर भारत गौरव श्री १०८ प्राचार्यरत्न देशभूपणजी महाराज के कर कमलो द्वारा विमोचन करवाया गया । इस समारोह मे भी देश के विभिन्न प्रान्तो से आये हुये काफी सख्या मे लोगो ने भाग लिया और समारोह बहुत ही सुन्दर रहा। समारोह की अध्यक्षता श्री सुरेशचन्दजी जैन दिल्ली वालो ने की ।
तजो मान करो ध्यान -
१९८२ मे
भारत गौरव आचार्य रत्न श्री १०८ देशभूषरणजी महाराज का चातुर्मास वर्ष जयपुर मे हुआ और इमी वर्ष दशलक्षण पर्व के शुभावसर पर समिति ने अपने तृतीय पुष्प के रूप मे 'तजो मान करो ध्यान" पुस्तक का प्रकाशन करवाकर ग्राचार्य श्री के ही कर कमलों द्वारा दिनाक
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२६-८-८२ को महाबोर पार्क जयपुर (राजस्थान) मे हजारों नर-नारियो के बीच इस पुस्तक का वमोचन करवाया । यह समारोह भी बहुत ही सुन्दर था।
हुम्बुज श्रमण सिद्धांत पाठावलि
ग्रन्थमाला समिति ने चतुर्थ पुष्प "हुम्बुज श्रमण सिद्धान्त पाठावलि" ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर इसका विमोचन परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज के हासन (कनोटक) चातुर्मास मे आयोजित इन्द्रध्वज विधान के विसंजन के शभावसर पर दिनाक २-१२-८२ का हजारो जन-समुदाय के बीच वडी धूमधाम से इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थराज का विमोचन करवाया । इस समारोह मे मूडबद्री व जैनबद्री के भट्टारक मह स्वामीजी भी उपस्थित थे।
हुम्वुज श्रमण सिद्धान्त पाठावलि एक महत्वपूर्ण ग्रन्थरत्न है। यह ग्रन्य लगभग ७५ ग्रथो का १००० पृष्ठों का गुटका है। इसमे साधुओ के पाठ करने के सभी प्रावश्यक स्तोत्रो का सकलन कर प्रकाशन करवाया है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन से साधुअो को अनेक ग्रन्थ साथ मे नही रखने पडेगे। साधु संघ के विहार के समय अनेक ग्रन्थो को मार्ग मे ले जाने से जो दिक्कत होती थी, वो अब नही होगा और साथ ही जिनवाणी का भी अविनय नही होगा। मात्र एक ही ग्रन्थराज (हुम्बुज श्रमण सिद्धात पाठावलि) के रखने से सारा कार्य हो जावेगा। इस प्रकार के ग्रन्थ का प्रकाशन प्रथम वार हा हुआ है ऐसा सभी साधुओ व विद्वानो का मत है। साधुवर्ग इस प्रकाशन से बहुत ही लाभान्वित हुआ है। यह ग्रन्थ सभी सघो मे साधनो को ग्रन्थमाला की ओर से मान डाक खर्च पर स्वाध्याय हेतू
वितरित किया गया है।
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पुनर्मिलन
ग्रन्थमाला समिति ने पचम पुष्प "पुनर्मिलन" (अजना का चरित्र) पुस्तक का प्रकाशन करवाकर श्री पार्श्वनाथ पचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव (श्री दिगम्बर जैन श्रादर्श महिला विद्यालय श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र) के जन्म कल्याणक के शुभावसर पर दिनाक १२-२-८४ को श्री १०८ आचार्य सन्मतिसागरजी महाराज (अजमेर) के कर कमलो द्वारा हजारो की संख्या में उपस्थित जन-समुदाय के बीच करवाया। समारोह मे साधु सघ के अलावा श्रीमान् निर्मल कुमारजा जैन (सेठी) श्री माणकचन्दजी पालीवाल, श्री मदनलालजी चादवाड श्री त्रिलोकचन्दजी कोठ्यारी, श्री प्रकाशचन्दजी पाडया आदि श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के पदाधिकारी उपस्थित थे। समारोह मे स्व० आदरणीय पण्डित साहब श्री बाबूलालजी जमादार, श्री भरतकुमारजी काला, श्री काका हाथरसी आदि महानुभावो ने भी भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री माणकचन्दजी पालीवाल ने की। इस प्रकार समिति के द्वारा पचम पुष्प 'पुनर्मिलन' पुस्तक का विमोचन भी बहुत ही सुन्दर रहा। श्री शीतलनाथ पूजा विधान (संस्कृत)
ग्रन्थमाला समिति ने षष्ठम पुष्प "श्री शीतलनाथ पूजा विधान' कन्नड से सस्कृत भाषा मे अनुवादित करवाकर अलवर (राजस्थान) मे आयोजित पचकल्याणक मे जन्म कल्याणक के शुभावसर पर श्री १०८ प्राचार्य सन्मतिसागरजी महाराज (अजमेर) के करकमलो द्वारा दिनांक ५-३-८४ को बडी धूमधाम से इसका विमोचन करवाया । शाति विधान के समान ही यह शीतलनाथ विधान है। इस विधान की पुस्तक के प्रकाशन से उत्तर भारत के लोग भी अव इससे लाभ उठा सके, जो कि कन्नड भाषा नही जानते है। वर्षायोग स्मारिका
श्री १०८ प्राचार्य सन्मतिसागरजी महाराज (अजमेर) ने वर्ष १९८४ का चातुर्मास जयपुर मे किया । ग्रन्थमाला समिति ने इस शुभावसर पर एक बहुत ही सुन्दर वर्षायोग स्मारिका का प्रकाशन करवाकर बुलियन बिल्डिग, जयपुर (राजस्थान) मे विशाल जन-समुदाय के बोच दिनाक २८-१०-८४ को श्री १०८ प्राचार्य सन्मतिसागरजी महाराज (अजमेर) के कर कमलो द्वारा विमोचन करवाया। इस स्मारिका मे वर्षायोग मे प्रायोजित कार्यक्रमो के चित्रो की झलक प्रस्तुत की गई है
और अलग-अलग विषयो पर ही ज्ञानोपयोगी साधूम्रो द्वारा लिखित लेख प्रकाशित किये गये है। समारोह की अध्यक्षता श्रीमान् ज्ञानचन्दजी जैन (जयपुर) ने की थी। श्री सम्मेद शिखर माहात्म्यम
परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्यरत्न धर्मसागरजी महाराज ने विशाल सघ सहित अपना
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१९८५ का वर्षायोग श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र लगवा (राजस्थान) मे किया। समिति ने इस अवसर पर अष्टम पुष्प के रूप मे "श्री सम्मेदशिखर माहात्म्यम्" ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर आचार्य श्रो के करकमलो द्वारा दिनाक १४-७-८५ को विशाल जन-समुदाय के बीच विमोचन किया।
श्री सम्मेद शिखर माहात्म्यम् ग्रन्थ एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। श्री सम्मेदशिखर जी के महत्व पर प्रकाश डालने वाला इस प्रकार के ग्रन्थ का प्रकाशन आज तक नही हुआ है। इस ग्रन्थ मे २४ तीर्थकरो के चित्र, प्रत्येक कूट का चित्र, अर्थ व उसका फल प्रकाशित किया गया है। संसार मे सम्मेदशिखरजी सिद्धक्षेत्र जैसा कोई क्षेत्र नहीं है । क्योकि यह तोर्थराज अनादिकाल का है और इस सिद्धक्षेत्र से हमारे २४ तीर्थकरो मे से २० तीर्थकर मोक्ष पधारे है और उनके साथ-साथ असख्यात मुनिराज मोक्ष पधारे है । इसलिये इस क्षेत्र का कण-करण पूजनीय व वदनीय है। इस क्षेत्र की वदना करने से मनुष्य के जन्म-जन्म के पापो का क्षय हो जाता है और उसके लिए मोक्षमार्ग आसान हो जाता है तथा उसे नरक व पशुगति मे जन्म नहीं लेना पडता और वह ४६ वे भव मे निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति करता है। कहा भी है ..
भाव सहित बंदे जो कोई ।
ताहि नरक पशुगति नहीं होई ॥ इस प्रकार इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने से अनेक भव्यात्माओ ने इस ग्रन्थ को पढ़कर सम्मेदशिखरजी सिद्धक्षेत्र की यात्रा कर धर्म लाभ प्राप्त किया है और कर रहे है ।
है.
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रात्रि भोजन त्याग कथा
परमपूज्य श्री १०८ आचार्यरत्न निमित्तज्ञान शिरोमणि विमलसागरजी महाराज विशाल सघ सहित राणाजी की नसिया खानिया जयपुर (राजस्थान) मे वर्षायोग करने हेतु दिनाक ३-७-८७ को पधारे । ग्रन्थमाला समिति ने दिनाक ५-७-८७ को ही अपना नवम् पुष्प रात्रि भोजन त्याग कथा पस्तक का प्रकाशन करवाकर इसका विमोचन प्राचार्य श्री के कर कमलो से करवाया। कार्यक्रम की. अध्यक्षता श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के महामत्री श्री त्रिलोक चन्दजी कोठयारी ने की। मुख्य अतिथि श्री पूनमचन्दजी गगवाल (झरिया वाले) व श्री सोहनलालजी सेठी थे। केशलुञ्चन क्या और क्यों ?
परमपूज्य श्री १०८ आचार्य विमलसागरजी महाराज के जयपुर (राजस्थान) मे वर्षायोग के समय आचार्य श्री की आरती, जिनवाणी स्तुति, वर्षायोग करने वाले साधुनो की सूची का प्लास्टिक कवरयुक्त कार्ड प्रकाशित करवाकर नि शुल्क वितरण किये गये । आचार्य श्री, उपाध्याय श्री, सघस्य साधुप्रो के केशलुञ्चन समारोह के अवसर पर एक लघु पुस्तिका केशलुञ्चन क्या और क्यो । का प्रकाशन करवाकर नि शुल्क वितरण किया गया। जन्म जयन्ति पर्व क्यो?
दिनाक १४-७-८७ को प्राचार्य श्री की ७२वी जन्म-जयन्ति के शुभावसर पर जन्म-जयन्ति पर्व क्यो ? एक लघु-पुस्तिका का प्रकाशन करवाकर नि शुल्क वितरण किया। इससे जन-समुदाय को जन्म-जयन्ति पर्व मनाने की जानकारी सुलभ हो गई। शीतलनाथ पूजा विधान (हिन्दी)
वर्षायोग समाप्ति पर परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्यरत्न विमलसागरजी महाराज विशाल सघ (४३) पिच्छी सहित दिनाक २७-११-८७ को ग्रन्थमाला के कार्यालय पर पधारे। इतने विशाल सघ का समिति के कार्यालय पर पधारना ग्रन्थमाला के इतिहास मे स्वर्ण अवसर था । इस शुभावसर पर प्राचार्य श्री के करकमलो से श्री १००८ धर्मनाथ भगवान की मूर्ति विराजमान की गई। ग्रन्थमाला का कार्यालय हमारे निवास स्थान पर है और हमारे निजी खर्च से यह कार्यक्रम सम्पन्न करवाया। तत्पश्चात् समिति द्वारा प्रकाशित दशम् पुष्प ' श्री शीतलनाथ पूजा" विधान (हिन्दी) का विमोचन आचार्य श्री के करकमलो द्वारा करवाया गया। श्री भैरव पद्मावती कल्प :
परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज विशाल सघ सहित वर्ष १९८७ का वर्षायोग अकलूज (महाराष्ट्र) मे पूर्ण धर्म प्रभावना के साथ समाप्त करके चतुर्विध सघ के साथ
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तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी पहुचे । ग्रन्थमाला समिति ने इस उपलक्ष्य मे ११वा पुष्प "श्री भैरव पद्मावती कल्प " ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ का विमोचन परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमणि विमलसागरजी महाराज के कर कमलो द्वारा दिनाक | १३-३- ८८ को विशाल जन समूह के मध्य प्रवचन हाल मे ( श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र) पर अष्टान्हिका पर्व पर करवाया । यह समारोह बहुत ही सुन्दर रहा ।
सच्चा कवच -
परमपूज्य श्री १०८ श्राचार्य विमलसागरजी महाराज विशाल सघ सहित कुछ दिनो तक श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र पर ही विराजे । इसी बीच दिनाक ३१-३-८८ को श्री महावीर जयन्ति | का शुभावसर श्राया और ग्रन्थमाला समिति ने इस शुभावसर पर १२वा पुष्प "सच्चा कवच' का | प्रकाशन करवाकर श्री शातिवीर नगर, सन्मति भवन मे कार्यक्रम आयोजित करके परमपूज्य श्री १०८ | आचार्य विमलसागरजी महाराज के करकमलो द्वारा इस पुस्तक का विमोचन करवाया । इस | कार्यक्रम की अध्यक्षता परम गुरुभक्त श्री ज्ञानचन्दजी जैन बम्बई वालो ने की, और हजारो की संख्या | मे इस समारोह मे लोगो ने भाग लेकर धर्म लाभ प्राप्त किया ।
फोटो प्रकाशन एवं निःशुल्क वितरण -
माह फरवरी ८७ मे बोरीवली बम्बई मे आयोजित मानस्तम्भ पचकल्याणक महोत्सव के शुभावसर पर (जन्म-कल्याणक महोत्सव ) दिनाक ६ - २ ८७ को परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज व श्री १०५ गणिनी आर्यिका विजयामति माताजी के फोटो प्रकाशित कर इसका विमोचन न्यूयार्क निवासी धर्म स्नेही गुरूभक्त श्री महेन्द्रकुमाजी पाण्ड्या व उनकी धर्म पत्नि श्रीमति श्राशादेवीजी पाण्ड्या के करकमलो द्वारा करवाया। दोनो फोटो बहुत ही सुन्दर व मनमोहक हैं । विशिष्ट गुरूभक्तो को नि शुल्क वितरण की गई है । इसके साथ-साथ जिन मन्दिरो व क्षेत्रो पर समिति द्वारा फ्रेम मे जडवाकर फोटो लगवाये गये है ।
" श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चिंतामणि" -
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ग्रन्थमाला समिति ने तेरहवे पुष्प के रूप मे श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चितामणि ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर आरा ( बिहार ) मे आयोजित पचकल्याणक महोत्सव मे जन्म कल्याणक के शुभावसर पर दिनाक ११-१२ ८८ को परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के कर कमलो द्वारा हजारो की सख्या मे उपस्थित जन समुदाय के बीच करवाया ।
श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चितामरिण ग्रन्थ जैन रामायण सरिका (गागर मे सागर) के समान
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११०० पृष्ठो का महत्वपूर्ण वृहद ग्रन्थ है। इसमे ३८ ध्यान के रगीन चित्र प्रकाशित किये गये है, इस ग्रन्थ के सकलनकर्ता परमपूज्य श्री १०८गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज ही है। ग्रन्थ के सम्बन्ध मे गणधराचार्य महाराज के विचार निम्न प्रकार है
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ग्रन्थ में करूणानुयोग, द्रव्यानुयोग आदि सभी प्रकार की चर्चाये सग्रहित की गई है और आधार लिया गया है जिनागम का मै समझता हू कि स्वाध्याय प्रेमियो को इस एक ही ग्रन्थ के स्वाध्याय करने से जिनागम का बहुत कुछ ज्ञान हो सकता है, इस ग्रन्थ . मे गुण स्थानानुसार. श्रावक धर्म, मुनि धर्म, आत्म ध्यान, पीडस्थ रूपापीत आदि ध्यान और उनके चित्रो सहित वर्णन किया गया है, और भी अनेक सामग्री सकलित की गई है। यह ग्रन्थ अपने आप मे एक नया ही सग्रहित हमा है, इस ग्रन्थ मे सभी ग्रन्थो से लेकर २,१७८ श्लोको का सग्रह है।
__इस ग्रन्थ मे पूर्वाचार्यकृत -गोम्मटसार, जीवकाड, त्रिलोकसार, मूलाचार, ज्ञानार्णव, समयसार,प्रवचनसार, नियमसार, रत्नकरड श्रावकाचार, तत्वार्थ सत्र, राजवातिक आचारसार, अष्टपाहुड, हरिवश पुराण, ग्रादि पुराण . वसु नन्दी श्रावकाचार, परमात्म प्रकाश, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, समयसार कलश, धवलादि, उमा स्वामी का श्रावकाचार. जैन सिद्धान्त प्र दशभक्त्यादि सग्रह चर्चाशतक, चर्चा समाधान, स्याद्वाद चक्र, चर्चासागर, सिद्धान्तसार प्रदीप, मोक्ष मार्ग प्रकाशक, त्रिकालवर्ती महापुरुष आदि बड़े-२ ग्रन्थो का आधार लेकर सग्रह किया गया है।"
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समारोह में जयपुर निवासी जैन सगीत कोकिला रानी, आध्यात्मिक सगीत विदुषि . जिन भक्ति सगीत विशारद बहिन श्रीमती कनक प्रभाजी हाड़ा भक्ति सगीत
का कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए। धर्म ज्ञान एवं विज्ञान
ग्रन्थमाला समिति ने चौदहवे पुष्प के रूप मे 'धर्म ज्ञान एव विज्ञान' पुस्तक का भी प्रकाशन करवाकर पारा (बिहार) में प्रायोजित पचकल्याणक महोत्सव मे जन्म कल्याणक के शुभावसर पर परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के करकमलो द्वारा दिनाक ११-१२-८८ को करवाया है । इस पुस्तक मे जैन धर्म के तत्वो का सरल भाषा मे उल्लेख किया गया है। पुस्तक के
लक गणवराचार्य महाराज के परम शिष्य एलाचार्य उपाध्याय सिद्धान्त चक्रवति परमपूज्य श्री १०८ कनक नन्दिजी महाराज है । पुस्तक सभी के लिए पठनीय है। शान्ति मण्डल कल्पः (पूजा)
परमपूज्य श्री १०८ प्राचार्य प्रादि सागरजी महाराज की ४६वी पुण्य तिथि- (समाधि ११) के उपलक्ष मे आयोजित समारोह मे परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य महाराज के करकमलो
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर चम्पा बाम, ग्वालियर से भारी जनसमुह के बीच दिनांक ५-३-८६
को करवाया।
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संघातिपति प्राचार्यो का फोटो कलेण्डर का प्रकाशन--
ग्रन्थमाला समिति ने सघाधिपति आचार्यों का फोटो कलैण्डर प्रकाशित करवाकर इस कलैण्डर की प्रथम प्रति परमपूज्य सन्मार्ग दिवाकर निमित्तज्ञान शिरोमणि श्री १०८ प्राचार्य विमल सागरजी महाराज को दिनाक २३-१२-८८ को सिद्धक्षेत्र श्री सोनागिरजो मे भेट की गई।
इस फोटो कलैण्डर के मध्य मे वर्तमान युग के प्रथम दिगम्बर जैनाचार्य परमपूज्य समाधि सम्राट श्री १०८ प्राचार्य आदि सागरजी महाराज (अकलीकर) का फोटो प्रकाशित किया गया है।
इसके चारो ओर परमपूज्य श्री १०८ आचार्य शाति सागरजी महाराज, प्राचार्य महावीर कीर्तिजी महाराज, आचार्य देशभूषणजी महाराज, आचार्य विमलसागरजी महाराज, आचार्य धर्म सागरजी महाराज, प्राचार्य सन्मतिसागरजी महाराज, आचार्य अजितसागरजी महाराज, आचाय विद्यासागरजी महाराज, प्राचार्य विद्यानन्दजी महाराज, आचार्य बाहुबली सागरजी महाराज, प्राचार्य सुबलसागरजी महाराज, गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज के फोटो प्रकाशित किये गये है।
इसके नीचे श्री १०५ गणिनी आर्यिका विजयामती माताजी, गणिनी आयिका सुपार्वमती माताजी, गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी, गणिनी प्रायिका कलभूपण श्री माताजी के फोटो प्रकाशित किये गये है।
इसमे परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के विशाल सघ तथा आर्यिका सघ के फोटो भी प्रकाशित किये गये है। मध्य मे पारा (बिहार) मे श्री चन्द्रप्रभु मन्दिर मे विराजमान अतिशयकारी श्री ज्वालामालिनी देवी का फोटो प्रकाशित किया गया है।
इस प्रकार यह कलैण्डर बहुत ही सुन्दर तथा मनमोहक है। इसके प्रकाशन मे समिति का यही उद्देश्य है कि एक ही फोटो कलैण्डर के माध्यम से सभी भव्य आत्माओ को सभी साधनो के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके।
प्रथम पुष्प लघुविद्यानुवाद ग्रन्थ का पुनः प्रकाशन
ग्रन्थमाला समिति द्वारा प्रथम पुष्प के रूप में प्रकाशित 'लघुविद्यानुवाद' ग्रन्थ का पुन प्रकाशन करवाया गया है । यह ग्रन्थ यत्र, मत्र, तत्र विपय का एक मात्र सदर्भ ग्रन्थ है।
इस प्रकार पाठकगण अवलोकन करे, कि ग्रथमाला समिति के सीमित प्राथिक साधन होते हये भी इतने कम समय मे उपरोक्त महत्वपूर्ण ग्रथो के प्रकाशन करवाने में सफलता प्राप्त की है। सभी ग्रन्थ एक से बढकर एक है और सभी ज्ञानोपार्जन के लिये विशेष लाभकारी सिद्ध हुये है। ऐसे सभी प्राचार्यो साधुवो विद्वानो के विचार हमे समय-२ पर प्राप्त होते रहे है, यह सभी सफलता परम
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पूज्य सभी प्राचार्यो व साधुवो के शुभाशीर्वाद के साथ-२ परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज व श्री १०५ गणिनी आर्यिका विजयामती माताजी के शुभाशीर्वाद से हो सका है। इसके लिये हम सभी कृतज्ञ है और उनके चरणो मे नतमस्तक होकर शत-२ बार नमोस्तु अर्पित करते है।
ग्रन्थमाला समिति के कार्यो मे यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि यह ग्रन्थमाला समिति सभी प्राचार्यो साधुवो विशिष्ट विद्वानो, पत्रो के प्रकाशको, प्रकाशन खर्च मे सहयोग करने वाले सभी दातारो को सभी प्रकाशन व्यक्तिगत रूप से भेट करती है या मात्र डाक खर्च पर भिजवाती है ।
मुझे आशा ही नही बल्कि पूर्ण विश्वास है कि पाठकगण ग्रथमाला समिति द्वारा प्रकाशित ग्रन्थो का स्वाध्याय करके पूर्ण ज्ञानोपार्जन कर रहे है और आगे भी इस ग्रन्थमाला से जिन महत्वपूर्ण ग्रन्थो का प्रकाशन होगा उनसे पूर्ण लाभ उठा सकेगे और त्रुटियो के लिये क्षमा करेगे।
शान्ति कुमार गंगवाल
प्रकाशन सयोजक श्री दिगम्बर जैन कुन्थु विजय ग्रथमाला समिति,
जयपुर (राज.)
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जिनवाणी का माहात्म्य
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जिनवाणी का एकाग्रचित होकर सेवन करने का फल आत्मा की उन्नति करना है । यह उन्नति तभी सम्भव है जबकि सद्साहित्य को पढकर धर्म के मर्म को समझने की जिसमे जिज्ञासा या आकाक्षा हो । सम्यग्ज्ञान के महत्व को जिन्होने समझा है, उन्होने स्वाध्याय को अपना कर सद्साहित्यो का अध्ययन किया है । वह अपनी आत्मा के निज स्वभाव मे रत रहते है । ज्ञानाराधना एक तपश्चर्या है।
अत कहा गया है -"स्वाध्यायो परम तप" अर्थात स्वाध्याय ही परम तप है । क्योकि स्वाध्याय के विना कर्मो की निर्जरा नही हो सकती है । ज्ञान के द्वारा ही प्रत्येक जीव अमृतपान कर सकता है । जिनवाणी का रसास्वादन शान्ति
और सुख को प्रदान करने वाला है जैसा सुख जिनवाणी के अध्ययन करने से होता है, वैसा सुख अन्य किसी वस्तु के सेवन करने से प्राप्त नही होता है ।
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ज्ञान की महिमा को निम्न पक्तियो द्वारा भी जाना जा सकता है -
ज्ञान समान न पान जगत में सुख को कारण । यह परमामृत जन्म जरामृत रोग निवारण ॥
अत पूर्वाचार्यो द्वारा लिखित सद्साहित्य को प्राप्त कर जिनवारणी का रसास्वादन कर शान्ति व सुख को प्राप्त करते हुये मोक्ष पथ को और बढने का प्रयत्न करे।
प्रकाशन संयोजक
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लघुविद्यानुवाद
प्रथम खंड
(पृष्ठ १ से २४ तक)
इस खण्ड में
मंगलाचरण मन्त्र साधन करने वाले के लक्षण
अथ सकलीकरणम् * मन्त्र साधन की विधि, मन्त्र जाप करने की विधि
का कोष्ठक अगुलियों के नाम प्रासन विधान अगुली विधान, माला विधान मन्त्र शास्त्र मे अकडम चक्र का प्रयोग अकड़म चक्र मन्त्र साधन मुहूर्त का कोष्ठक, मन्त्र सिद्ध होगा या नही, उसको देखने की विधि, मन्त्र जपने के लिये प्रासन मन्त्र शास्त्र मे मुद्रामो की विधि मन्त्र जाप के लिये विभिन्न मुद्रामो के २१ चित्र मन्त्र जाप के लिए मडलो का ध्यान, मडलो का नक्शा २४
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मंगलाचरण
वृषभादि जिनान् वन्दे, भव्य पंकज प्रफुल्लकान् । गौतमादिगरणधीशान्, मोक्ष लक्ष्मी निकेतनान् ॥१॥ वन्दित्वा कुंदकुंदादीन् महावीर कीर्ति तथा । लघुविद्यां प्रवक्षामि पूर्वाचार्या नुरूपतः ||२||
मोक्ष लक्ष्मी के घर है ऐसे प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव से लगाकर अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी पर्यत चतुर्विंशति तीर्थकर प्रभु को नमस्कार करता हूँ ।
भव्य रूपी कमलो को प्रफुल्लित करने वाले, गौतमादि गण नायको को नमस्कार करता हू । आचार्य परम्परा मे आने वाले कुन्दकुन्दादिक श्राचाय देव है, उनको नमस्कार करता हूँ। और मेरे गुरुदेव श्री महावोर कीर्ति जी महाराज है, उनको नमस्कार करके लघु-विद्यानुवाद को कहूंगा, जो पूर्वाचार्यो के द्वारा कहा गया है ।
मन्त्र साधन करनेवाले के लक्षरण
निजित मदनाटोप प्रशमित कोपो विमुक्त विकथालापः । देव्यर्चनानुरक्तो जिनपद भक्तौ भवेन्मंत्री ॥
जिसने कामदेव को जीता है, और जिसके क्रोधादि कषाये शान्त है, जो विकथानो से दूर रहने वाला है, देवीयो की पूजा करने मे जिसका चित्त अनुरक्त है और जिनेन्द्र प्रभु के चरण कमलो की भक्ति करने वाला है, वह मन्त्री हो सकता है, मन्त्र साधन करने वाला हो सकता है ।
मंत्राराधन शूरः पाप विदुरो गुणेन गम्भीरः । मौनी महाभिमानी मन्त्री स्यादीदृशः पुरुषः ||
जो मन्त्राराधन करने मे शूरवीर है, पाप क्रियाओ से दर रहने वाला है, गुरणो मे गम्भीर है, मौनी है, महान् स्वाभिमानी है, ऐसा पुरुष हो मन्त्रवादी हो सकता है ।
गुरुजन हितोपदेशो गततन्द्रो निद्रयापरित्यक्ताः । परिमित भोजनशीलः स स्यादाराधको मंत्राः ॥
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मंगलाचरण
वृषभादि जिनान् वन्दे, भव्य पंकज प्रफुल्लकान् । गौतमादिगणधीशान्, मोक्ष लक्ष्मी निकेतनान् ॥१॥ वन्दित्वा कुदकुदादीन्, महावीर कीर्ति तथा।।
लघुविद्या प्रवक्षामि पूर्वाचार्या नुरूपतः ॥२॥ मोक्ष लक्ष्मी के घर है ऐसे प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव से लगाकर अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी पर्यत चतुर्विशति तीर्थकर प्रभु को नमस्कार करता हूँ।
भव्य रूपी कमलो को प्रफुल्लित करने वाले, गौतमादि गण नायको को नमस्कार करता है। आचार्य परम्परा मे आने वाले कुन्दकुन्दादिक आचाय देव है, उनको नमस्कार करता हूँ। और मेरे गुरुदेव श्री महावीर कीति जी महाराज है, उनको नमस्कार करके लघु-विद्यानुवाद को कहंगा, जो पूर्वाचार्यो के द्वारा कहा गया है।
मन्त्र साधन करनेवाले के लक्षण
निजित मदनाटोप प्रशमित कोपो विमुक्त विकथालापः ।
देव्यर्चनानुरक्तो जिनपद भक्तौ भवेन्मंत्री ॥ जिसने कामदेव को जीता है, और जिसके क्रोधादि कषाये शान्त है, जो विकथाओ से दर रहने वाला है, देवीयो की पूजा करने मे जिसका चित्त अनुरक्त है और जिनेन्द्र प्रभु के चरण कमलो की भक्ति करने वाला है, वह मन्त्री हो सकता है, मन्त्र साधन करने वाला हो सकता है।
मंत्राराधन शूरः पाप विदूरो गुणेन गम्भीरः ।
मौनी महाभिमानी मन्त्री स्यादीदृशः पुरुषः ॥ जो मन्त्राराधन करने मे शूरवीर है, पाप क्रियाओ से दर रहने वाला है, गुणो मे गम्भीर है, मौनी है, महान् स्वाभिमानी है, ऐसा पुरुष हो मन्त्रवादी हो सकता है।
गुरुजन हितोपदेशो गततन्द्रो निद्रयापरित्यक्ताः । परिमित भोजनशीलः स स्यादाराधको मंत्राः ।।
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लघुविद्यानुवाद
जिसने गुरुजनो से उपदेश को प्राप्त किया है, जिसकी तन्द्रा खत्म हो चुकी है और जिसने 1 को छोड दिया है, जो परिमित भोजन करने वाला है, वही मन्त्रो का श्राराधक हो सकता है । निर्जित विषय कषायोधर्मामृत जनित हर्षगत कायः । गुरुतर गुरण सम्पूर्णः समवेदाराधको देव्याः ( मन्त्रा ) ॥
जिसने सम्पूर्ण विपय कपायो को जीत लिया है, धर्मामृत का सेवन करने से जिसकी काय हर्पयुक्त है, उत्तम गुणो से सयुक्त है, ऐसा पुरुष ही मन्त्राराधन कर सकता है ।
शुचिः प्रसन्नो गुरुदेव भक्तो दृढ़ व्रतः सत्य दया समेतः । दक्ष पटुर्बीज पदावधारी मन्त्री भवेदीदृश एव लोके ॥
दृढता
जिसका बाह्य और अभ्यन्तर से चित्त शुद्ध है, प्रसन्न है, देव शास्त्र गुरु का भक्त है, व्रतो को से - पालन करने वाला है, सत्य बोलने वाला है, दया से युक्त है, चतुर है, मन्त्रो के बीज रूप पदो को धारण करने वाला है ऐसा व्यक्ति ही लोक में मन्त्राराधन कर सकता है ।
एते गुणा यस्य न सन्ति पुंस क्वचित् कदाचिन्न भवेत् स मंत्री । करोति चेद्दर्प वशात् स जाप्यं प्रात्नोत्यनर्थ फरिशेखरायाः ॥
उपरोक्त गुणो से जो पुरुष युक्त नही है, वह मन्त्रसाधन का अधिकारी किसी भी हालात मे नही होता है । अगर अभिमान से सयुक्त होकर मन्त्रसाधन कोई करता है तो वह मन्त्रो के अधिष्ठाता देवो के द्वारा अनर्थ को प्राप्त होता है । ऐसी श्री मल्लिषेणाचार्य की आज्ञा है ।
अथ सकलीकररणम् :
दृष्टे सृष्टे भुवि न्यस्ते, समीपस्थापना द्रव्यो,
ॐ क्ष्वी भूः शुद्धयतु स्वाहा । ॐ ह्रीँ गृहामि स्वाहा ।
ॐ ह्रां ह्रीं करोमि स्वाहा |
सन्निविष्टः सु विष्टरे । मौनमार्कामिकं दधे ।।
ॐ ह्री अर्ह क्ष्मठ श्रासन निक्षिपामि स्वाहा । सिहि रिसिहि आसलम् उपविशामि स्वाहा । ॐ ह्रो मौन स्थिताय मौनव्रत
शोधये सर्वपात्राणि, पूजार्थानपि वारिभिः ।
समाहितो यथाम्नायं करोमि सकलीक्रियाम् ॥
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ह्रहः नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पवित्रतर जलेन पात्रशुद्धि
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लघुविद्यानुवाद
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इस मन्त्र से हाथ मे पानी लेकर पूजा के बर्तनो की शुद्धि करे, पश्चात्
ॐ ह्रीं अर्ह झों झौ वं मं हं सं तं पं झ्वी क्ष्वी हं सः असि आ उ सा समस्त तीर्थ जलेन शुद्ध पात्रे निक्षिप्त पूजाद्रव्यारिण शोधयामि स्वाहा ।
पूजा के द्रव्यो का शोधन करे । पश्चात्
मै अग्नि मण्डल मे पर्यड्डासन से बैठा हुआ हूँ और मेरे चारो ओर हवा से प्रज्वलित अग्नि से यह सप्त धातुमय शरीर जल रहा है, ऐसा चितवन करे । पश्चात्
ॐ ॐ ॐ रं रं रं झौ झौ झौ असि आ उ सा दर्भासने उपवेशनं करोमि स्वाहा।
यह मन्त्र पढ कर दर्भ के आसन पर बैठे । पश्चात्ॐ ह्री ओं को दर्भेराच्छादनं करोमि स्वाहा ।
ॐ ह्री अर्ह भगवतो जिनभास्करस्य बोधसहस्त्र किरणैर्ममनोकर्मेधनद्रव्यं शोषयामि घे घे स्वाहा । नोकर्म शोषणम् ।
यह पढ कर ऐसा विचार करे कि मेरे कर्म शोषण हो रहे है । पश्चात्
ॐ ह्रां ह्री ह ह्रौ ह्रः ॐ ॐ ॐ रं रं रं हh ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल संदह सदह कर्ममल दह दह दुख पच पच पापं हन हन ह फट घे घे स्वाहा । इति कर्म दहन ध्यानम् ।
इस को पढ कर विचार करे कि हमारे सर्व कर्म जल गये है। ॐ ह्रीं अर्ह श्री जिनप्रभंजन मम कर्मभस्म विधूननं कुरु कुरु स्वाहा ।
इस मन्त्र को पढ कर विचार करे कि कर्म जल कर उनकी राख उड गई है। इति भस्मापसरणम् ।
ॐ पंच ब्रह्ममुद्राग्रन्यस्तगुर्वमृता क्षरैः ।
क्षरत्सुधौधैः सिंचामि सुधा मंत्रेण मूर्धनि ।। अब यहाँ पर पच गुरु मुद्रा बनाकर और उसको मस्तक पर उल्टा रखकर अमत बीज मन्त्र से अपनी शुद्धि करे। निम्नलिखित अमृत मन्त्र से हाथ मे लिये हुए जल को मन्त्रित कर अपने शिर पर डाले
ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवपिणि अमृत स्रावय स्रावय सं स क्ली क्ली ब्लू ब्लू द्रां द्रा द्री द्री द्रावय द्रावय ह स इवी क्ष्वी ह स अ सि प्रा उ सा मम सर्वाङ्ग शुद्धि कुरु कुरु स्वाहा । इति अमृत प्लावनम् ।
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लघुविद्यानुवाद
शून्याक्षरादि गुरु पंच पदान्कनीय । स्याद्यगुली त्रितयपर्वसु चाग्र भागे । अंगुष्ठ तर्जनीकया क्रमशः कराभ्याम् ।
विन्यस्य हस्तयुगलं मुकुली करोमि ।। यहाँ पर दोनो हाथो को मिलाकर मुकुलित करे अर्थात् हाथ जोडे और हाथ जोडे-जोडे ही निम्नलिखित मत्र के अनुसार अङ्गन्यास (अङ्ग रक्षण) करे अर्थात् जिस स्थान का नाम आया है, उस स्थान का स्पर्श करे ।
ॐ ह्रॉ णमो अरहताण स्वाहा । ॐ ह्री णमो सिद्धाण स्वाहा । ॐह णमो पायरियारण स्वाहा । ॐ ह्रौ गमो उवज्झायाण स्वाहा । ॐ ह्र. णमो लोए सव्व साहूण स्वाहा। (करन्यास मत्र ) ॐ ह्रां ह्री हह्रौ ह्र व म ह स त प अ सि आ उ सा स्वाहा।
(हस्त द्वय मुकुलीकरण मत्र) अर्ह नाथस्य मंत्र हृदय सरसिजे सिद्ध मत्रं ललाटे। प्राच्यामाचार्य मंत्र पुनर्वटुवटे पाठकाचार्य मत्र ।। वामे साधो स्तुति मे शिरसि पुनरिमानं स योनीभिदेशे । पार्वाभ्यां पंच शून्यैः सह कवच शिरोऽङ्गन्यास रक्षा करोमि । ॐ ह्रॉ गमो अरहतारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(हृदय कवच) ॐ ह्री णमो सिद्धारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(मुखम्) ॐ ह्र णमो आइरियाण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(दक्षिरणग) ॐ ह्रौ गमो उवज्झायारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(पृष्ठागम्) ॐ ह्र गमो लोए सव्व साहूण रक्ष रक्ष स्वाहा।
(वामाग) हा णमो अरहतारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(ललाट भाग) ॐ ह्री णमो सिद्धाण रक्ष रक्ष स्वाहा।
(उर्वभाग) ॐ हणमो पाइरियारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(शिरो दक्षिण भाग) ॐ ह्रौ णमो उवज्झायारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(शिरो अपर भाग) ॐ ह्र णमो लोए सव्व साहूण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(शिरो वाम भाग) ॐ ह्रॉ णमो अरहतारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(दक्षिण कुक्ष) ॐ ह्री णमो सिद्धारण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(वाम कुक्ष) ॐ हणमो आइरियाण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(नाभि प्रदेश) ॐ ह्रौ णमो उवज्झायाण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(दक्षिण पार्श्व भाग) ॐ ह्र णमो लोए सव्व साहूण रक्ष रक्ष स्वाहा ।
(वाम पार्श्व भाग) (इति अगन्यासः)
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लघुविद्यानुवाद
विन्यस्य करतर्जन्यां, पंच ब्रह्म पदावलि ।
बध्नाभि स्वात्मरक्षाय, कूट शून्याक्षरदिशः ॥ नीचे लिखे मंत्रो से दिशा वधन करे। ॐ क्षा ह्रा पूर्वे। ॐ क्षी ह्री अग्नौ । ॐ श्रीं ह्री दक्षिणे। ॐ क्षे ह नैऋते । ॐ क्षे है पश्चिमे । ॐ क्षो हो वायव्ये । ॐ क्षौ ह्रौ उत्तरे। ॐ भ हईशाने । ॐ मः ह्रः भूतले । ॐ क्षी ही उद्ये । ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते समस्त दिग्वधनं करोमि स्वाहा ।
ऊपर लिखे मत्रो से क्रम पूर्वक एक-एक दिशा मे तर्जनी अंगुली घुमावे। तर्जनी अंगुली पर असि आ उ सा केशर से लिखे, दाएं हाथ की तर्जनी पर लिखे ।
ॐ हाँ रगमो अरहतारणं अर्हद्भ्यो नमः ।
ॐ ह्रीं णमो सिद्धारणं सिद्ध भ्यो नमः ॥ परमात्मध्यान मत्र का यहाँ ध्यान करे
जिनेन्द्र पादाचित सिद्ध शेषया । सिद्धार्थ दर्वायव चंदनाक्षतान् ।। उपासकानामपि मूनि निक्षिपन् ।
करोमि रक्षां मम शान्ति कानाम् । ॐ नमोऽर्हते सर्व रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा ।
इस मंत्र से पुष्प या पीली सरसों को ७ बार मत्रित करे और सर्व दिशा में फेके । तथा मंत्र बोलते हुए सब दिशाओ मे ताली बजावे व तीन बार चुटकी बजावे ।
सिद्धार्थान भिमंत्रितान्सह्य वैरादाय यज्ञ क्षितौ । स्वां विद्यामभिरक्षणाय, जगतां शांत्यै सतां श्रेयसे ।। सर्वासु प्रचुरान् दिशासु, पर विद्याछेदनार्थ ।
किराभ्यर्हत्याग विधि, प्रसिद्ध कलि कुंडाख्येन मंत्रेण च । ॐ ह्री अर्ह श्री कलि कुड स्वामिन् स्फ्रां स्फ्री स्फू स्फे स्फे स्फ्रो स्फ्रौं स्फ स्फः हसू फट् इतीन् घातय घातय विघ्नान् स्फोटय स्फोटय । पर विद्यां छिन्द छिन्द आत्म विद्यां रक्ष रक्ष ह फट् स्वाहा।
इस मन्त्र से जौ और सरसो मत्रित कर दाहिनी दिशा मे डाले।
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लघुविद्यानुवाद
इत्थं सदैव सकलीकरणं यथाव । सं भावयतिमशेष मलंघ्य शक्तिः ।। भूतो रगादि विष किल्विष दु.ख मुग्रं । निजित्य निश्चय सुखान्यनु भूयतेऽसौ ॥
मन्त्रसाधन को विधि
जो परुप मन्त्र साधन के लिए जिस किसी स्थान मे जावे, प्रथम उस क्षेत्र के रक्षक देव से प्रार्थना करे कि मैं इस स्थान मे, इतने काल तक ठहरूँगा, तब तक के लिए आज्ञा प्रदान करो, और किसी प्रकार का उपसर्ग होवे तो निवारियो-क्योकि हमारे जैन मुनि भी जब कही किसी स्थान मे जाकर ठहरते है तो वहा के रक्षक देव को कहते है कि इतने दिन तक तेरे स्थान मे ठहरेगे तू क्षमाभाव रखियो। इस वास्ते गृहस्थियो को अवश्य हो उपरोक्तानुसार रक्षक देव से आज्ञा लेनी चाहिये ।। १ ।। जब मन्त्र साधन करने के वास्ते जावो तव जहाँ तक हो ऐसे स्थान मे मन्त्र सिद्ध करो जहाँ मनुष्यो का गमनागमन न हो जेसे अपने जैन तीर्थ, मॉगी तुगीजी, सिद्धवरकूट, रेवा नदी के तट पर या सोनागिरोजी या और जो अपने जैन तीर्थ एकान्त स्थान मे है, या बगीचो के मकानो मे, पहाडो मे तथा नदी के किनारे पर या निर्जन स्थान मे, ऐसे स्थानो मे मन्त्र सिद्ध करने को जाना चाहिये। जब उस स्थान मे प्रवेश करो, वहाँ ठहरो तो मन, वचन, काय से उस स्थान का जो रक्षक देव या यक्ष आदि है उसका योग्य विनय मुख से यह उच्चारण करे कि हे इस स्थान के रक्षक देव मै, अपने इस कार्य की सिद्धि के वास्ते तेरे स्थान मे रहने के लिये आया हूँ तेरी रक्षा का आश्रय लिया है, इतने दिनो तक मै तेरे स्थान मे रहने के लिये आया हूँ तेरी रक्षा का आश्रय लिया है, इतने दिनो तक निवास के लिये प्राज्ञा प्रदान कीजिये । अगर मेरे ऊपर किसी तरह का सकट, उपद्रव या भय ग्रावे तो उसे निवारण कीजिये ।। २॥ जब मन्त्र साधन करने जावो तो एक नौकर साथ ले जाओ, जो रसोई की वस्तु लाकर, रसोई बनाकर तुमको भोजन करा दिया करे। तुम्हारा धोती-दुपट्टा धो दिया करे, जब तुम मन्त्र साधन करने बैठो, तब तुम्हारे सामान की चौकसी रखे ।। ३ ।। जो मन्त्र साधन करना हो पहले विधिपूर्वक जितना-जितना हर दिन जप सके उतना हर दिन जप कर सवा लाख पूरा कर मन्त्र साधन करे, फिर जहाँ काम पडे उसका जाप जितना कर सके १०८ बार या २१ बार या जैसा मन्त्र मे लिखा हो उतनी बार जपने से कार्य सिद्ध होवे। मन्त्र शुद्ध अवस्था मे जपे। शुद्ध भोजन करे । और मन्त्र मे जिस शब्द के आगे दो का अक हो उस शब्द का दो वार उच्चारण करे।। ४ ।।
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शान्ति कर्म
पश्चिम वरुण दिशा
३ श्रर्द्ध रात्रि
ज्ञान मुद्रा
पर्यङ्काशन
१
२
४
५
६
७
श्वेत वस्त्र
श्वेत पुष्प
ह श्वेत वर्ण
८
१०
पूरक योग
दोपन यादि
नाम
१२ स्फटिक मणि
११
स्वाहा पल्लव
१२ | मध्यमागुली
१४ दक्षिण हस्त
वाम वायु
१५
१६
१७
शरद ऋतु
जल मण्डल
मध्य
१८ अर्द्ध रात्रि
पौष्टिक कर्म
नैऋत्य दिशा
प्रभात काल
ज्ञान मुद्रा
पकजासन
स्वधापल्लव
श्वेत वस्त्र
श्वेत पुष्प
श्वेत वर्ण
पूरक योग
दीपन आदि
नाम
मुक्ता मणि
मध्यमागुली
दक्षिण हस्त
वाम वायु
हेमन्त ऋतु
जल मण्डल
वश्य कर्म
कुवेर दिशा
पूर्वान्ह
सरोज मुद्रा
स्वस्तिकासन
वषट् पल्लव
अरूण पुष्प
रक्त वर्ण
रक्त वस्त्र
मन्त्र जाप करने की विधि का कोष्टक
चाकणकर्म
स्तम्भन कर्म
दक्षिण यम दिशा पूर्वाभिमुख
पूर्वान्ह का
पूर्वान्ह काल
शख मुद्रा
पूरक योग
सम्पुट आदि
मध्यनाम
प्रवाल मरिण
अनामिका
वाम हस्त
वाम वायु
वसन्त ऋतु
जल मण्डल
कुश मुद्रा
दण्डासन
वौपट् पल्लव
उदयार्क वस्त्र
अरूण पुष्प
उदयार्क वर्ण
पूरक योग
यथन वरुणा तरित नाम
प्रवाल मरिण
कनिष्टका
वज्रासन
जहाँ स्वाहा लिखा हो वहाँ धूप के साथ जपे यानि धूप आगे रखे ।
ठ ठ पल्लव
पीत वस्त्र
पीत पुष्प
पीत वर्ण
कुम्भक योग विदर्भाक्षर मध्य
नाम
स्वर्ण मणि
कनिष्टका
दक्षिण हस्त
वाम हस्त
दक्षिण वायु
वाम वायु
वसन्त ऋतु
वसन्त ऋतु
अग्नि मण्डल
पृथ्वी मण्डल
प्रभात काल
पूर्वान्ह काल
पूर्वान्ह
पूर्वान्ह काल नोट - प्रत्येक दिन मे २ || घडी २॥ घडी क्रमशः छहो ऋतु समझना ।
मारण कर्म
ईशानदिक्
सध्याकाल
वज्र मुद्रा
भद्रासन
घे घे पल्लव
कृष्ण वस्त्र
कृष्ण पुष्प
कृष्ण वर्ण
रेचक योग
रोवन आदि मध्य
नाम
पुत्रजीवा मणि
तर्जन्यगुली
दक्षिण हस्त
दक्षिण वायु
शिशिर ऋतु
वायु मण्डल
सध्या काल
॥१३॥
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UT
इत्थं
• निरि
जो पुरुप मन्त्र साधन के लिए देव से प्रार्थना करे कि मैं इस . आज्ञा प्रदान करो, और वि हमारे जैन मुनि भी जब क को कहते है कि इतने दिन त वास्ते गृहस्थियो को अवश्य जब मन्त्र साधन करने के वा. करो जहाँ मनुष्यो का गमनागम वरकूट, रेवा नदी के तट पर र स्थान मे है, या बगीचो के मा स्थान मे, ऐसे स्थानो मे मन्त्र प्रवेश करो, वहाँ ठहरो तो मन आदि है उसका योग्य विनय मु देव मै, अपने इस कार्य की सि रक्षा का आश्रय लिया है, इत रक्षा का प्राश्रय लिया है, इस अगर मेरे ऊपर किसी तरह का जब मन्त्र साधन करने जावे लाकर, रसोई बनाकर तुमकं दिया करे, जब तुम मन्त्र साध जो मन्त्र साधन करना हो पह हर दिन जप कर सवा लाख पूर जाप जितना कर सके १०८ ब बार जपने से कार्य सिद्ध हो और मन्त्र मे जिस शब्द के आ .
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लघुविद्यानुवाद
जब मन्त्र जपने बैठे, पहले रक्षा-मन्त्र सकलीकरण कर अपनी रक्षा कर लिया कर ताकि कोई उपद्रव अपने जाप्य मे विघ्न न डाल सके। अगर रक्षा-मन्त्र जप कर मन्त्र जपने बठे तो सॉप, विच्छू, भेडिया, रीछ, शेर, बकरा उसके बदन को न छू सके-दूर ही रुके। मन्त्र पूर्ण होने पर जो देव-देवी वगेरह साप बनकर उसको डराने आवे तो रक्षा मन्त्र जप कर जाप करने से उसके अग को वह छ नही सकेसामने से ही डरा सके। जब मन्त्र पूर्ण होने को आवे तब देव पूर्ण देवी विक्रिया से साँप वगैरह डराने आवे तो डरे नही। चाहे प्राण जावे तो डरे नही तो मन्त्र सिद्ध होय | मनोकामना पूर्ण होय। यदि विना मन्त्र रक्षा के [ रक्षा-मन्त्र के ] जपने बैठे तो पागल हो जावे। इस वास्ते पहले रक्षा-मन्त्र जप कर, पश्चात् दूसरा मन्त्र जपना चाहिये। मन्त्र जहाँ तक हो सके ग्रीष्म ऋतु मे जपना चाहिए ताकि धोती दुपट्टा मे सर्दी न लगे । मन्त्र सिद्ध करने मे धोती दुपट्टा दो ही कपडे रक्खे। वे कपडे शुद्ध हो, उनको पहने हये पाखाने नही जावे, खाना नही खावे, पेशाब नही जावे, सोवे नही, जब जप कर चुके तो उन्हे अलग उतार कर रख देवे, दूसरे वस्त्र पहन लिया करे, यह वस्त्र नित्य हर दिन स्नान कर बदन पौछ कर पहना कर। वह वस्त्र सूत के पवित्र वस्तु के हो। ऊन, रेशम वगैराह अपवित्र वस्तु के न हो। स्त्री सेवन न करे । गृह कार्य छोडकर एकान्त मे मन्त्र जप सिद्ध करे। मन्त्र मे जिस रग की माला लिखी हो उसी रग का आसन यानि बिस्तर आदि । धोती दुपट्टा भी उसी रग का हो तो और भी श्रेष्ठ है, यदि माला उसी रग की न होवे तो सत की माला उस रग से रग लेवे। जब मन्त्र जपने बैठे तो इतनी बातो का ध्यान रखे।
॥७॥ पहले सब काम ठीक करके मन्त्र जपे।
॥८ ॥ सबसे अच्छा आसन डाभ का लिखा है, या सफेद या पीला या लाल-जैसा जिस मन्त्र मे चाहिये वैसा बिछावे ।
॥६॥ अोढने की धोती-दुपट्टा सफेद उम्दा हो या जिस रग का जिस मन्त्र मे चाहिये वैसा हो।
॥१०॥ शरीर की शुद्धि करके परिणाम ठीक करके धीरे-धीरे तसल्ली के साथ जाप्य करे, अक्षर शुद्ध पढे ।
॥११॥ मन्त्र पद्मासन मे बैठकर जपे। जिस प्रकार हमारी बैठी हई प्रतिमायो का ग्रासन होता है, बॉया हाथ गोद मे रखकर दाहिने हाथ मे जपे। जो मन्त्र बाये हाथ मे जपना लिखा हो तो वहाँ दाहिना हाथ (गोद) मे रखकर वाये हाथ मे जपे। ॥१२॥ जहाँ स्वाहा लिखा हो वहाँ धूप के साथ जपे यानि धूप आगे रखे।
॥१३॥
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लघुविद्यानुवाद
जहाँ दीपक लिखा हो, वहाँ घी का दीपक आगे जलाना चाहिये ।
॥१४॥ जिस-जिस अंगुली से जाप्य लिखा हो उसी अँगुली और अंगूठे से जाप्य जपे । अँगुलियो
के नाम आगे लिखे हैअंगुलियो के नाम:
अँगूठे को अंगुष्ठ कहते है। अँगूठे के साथ की अगुली को तर्जनी कहते है। तीसरी बीच की अंगुली को मध्यमा कहते है।
चौथी यानि मध्यमा के पास की अगुली को [अंगुष्ठ से चौथी को ] अनामिका कहते है। पाँचवी सबसे छोटी अँगुली को कनिष्ठा कहते है ।
अंगुष्ठेन तु मोक्षार्थ धर्मार्थ तर्जनी भवेत् ।
मध्यमा शान्तिकं ज्ञेया सिद्धिलाभायऽनामिका ॥१॥ जाप्य विधि मे मोक्ष तथा धर्म के वास्ते अँगुष्ठ के साथ तर्जनी से, शान्ति के लिये मध्यमा तथा सिद्धि के लिये अनामिका अँगुली से जाप्य करे।
कनिष्ठा सर्व सिद्धार्थ एतत् स्याज्जाप्य लक्षणम् ।
असख्यातं च यज्जप्तं तत् सर्व निष्फलं भवेत् ॥२॥ कनिष्ठा सर्व सिद्धि के वास्ते श्रेष्ठ है, ये जाप्य के लक्षण जाने बिना मर्यादा किया हुआ सब जाप्य निष्फल होता है अर्थात् किसी मन्त्र का २१ बार जाप्य लिखा है तो वहाँ २१ से कम या अधिक जाप्य नही करना, ऐसा करने से वह निष्फल होता है। मन्त्र सिद्ध नही होता।
अंगुल्यग्ररण यज्जप्तं यज्जप्तं मेरुलंघने ।
व्यग्रचित्त न यज्जप्तं तत् सर्व निष्फल भवेत् ॥३॥ अंगुली के अग्र भाग से जो जाप किये जाय तथा माला के ऊपर जो तीन दाने मेरु के है, उनको उल्लघन करके जो जाप्य किये जाय तथा व्याकुल चित्त से जो जाप्य किया जाय वह सब निष्फल होता है।
माला सुपंचवर्णानां सुमाना सर्व कार्यदा । स्तम्भने दुष्टसंत्रासे जपेत् प्रस्तरकर्कशान् ॥४॥
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लघुविद्यानुवाद
सव कार्यो मे पाँचो वर्णों के फूलो को माला श्रेष्ठ है, परन्तु दुष्टो को डराने मे तथा स्तम्भन करने व कीलने मे कठोर ( सख्त ) वस्तु के मणियो की माला से जाप्य करे ।
[स्त्रजम् ]
धर्मार्थी काममोक्षार्थी जपेद् वै पुत्र जीविकाम् । लाभाय जपे दुत्तममालिकाम् ||५||
शान्तये पुत्र
मन्त्र साधन करने वाला धर्म के लिये तथा काम और मोक्ष के लिये तथा शान्ति के लिये और पुत्र प्राप्ति के वास्ते मोती आदि की उत्तम माला से जाप्य करे । शान्ति से यह तात्पर्य है कि जैसे रोगी श्रादि के लिये रोग की शान्ति करना या देवी वगैरह उपद्रव हो उसकी शान्ति करना । अन्य कामो मे जीवापोता को माला जाप्य करे ।
शान्ति श्रर्द्धरात्रि वारुरि दिक् ज्ञानमुद्रापंकजासन । मौक्तिक मालिका स्वच्छे स्वेते पू० चं० क्रां० स्वरे ॥६॥
शान्ति के प्रयोग में मन्त्र जाप्य करने वाला आधी रात के समय पश्चिम दिशा की ओर मुख करके ज्ञान - मुद्रा महित कमलासन युक्त मोनियो की माला से स्वच्छ श्वेत बाएँ योग पूरक च० क्रा० का उच्चारण करता हुआा जाप्य करे ।
स्तम्भनं पूर्वाह्न वज्रासने पूर्वदिक् शंभुमुद्रा । स्वर्णमणिमालिका पीताम्बर a 3: 311011
स्तम्भन रोकना तथा कीलना ] के प्रयोग मे पूर्वाह्न अर्थात् दुपहर से पहले काल मे वज्रासन युक्त पूर्व दिशा की तरफ मुख करके स्वरण के मणियो की माला से पीले रंग के वस्त्र पहने हुये ठ ठ पल्लव उच्चारण करता हुआा जाप्य करे ।
शत्रूच्चाटने च रुद्राक्षा
विषारिष्टजंप्तजा । स्फाटिकी सूत्रजामाला मोक्षार्थानां (र्थीनां ) तू निर्मला ||८||
दुश्मन का उच्चाटन करने के लिये रुद्राक्ष की माला, वैर मे जिवा पोते की माला, मोक्षाभिलापियो को स्फटिक मरिण की तथा सूत्र की माला श्रेष्ठ है ।
"
c
उच्चाटनं वायव्यदिक् अपराह्नकाल कुक्कुटासन । प्रवालमालिका धूम्राच फटित् तर्ज न्यगुष्ठयोगेन || ||
उच्चाटन के प्रयोग मे वायव्य कोण | पश्चिम और उत्तर के बीच में ] की तरफ मुख करके अपराह्न [ दोपहर के बाद ] मे कुक्कुटासन युक्त मूंगे की माला से धुवे के रंग व फट् पल्लव लगाकर अंगूठा और तजनी से जाप करें ।
वशीकरणे पूर्वाह्न स्वास्तिकासन उत्तरदिक् कमलमुद्रा । विद्रममालिका कुसुम वर्ण वषट् ॥ १० ॥
जपा
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लघुविद्यानुवाद
वशीकरण अर्थात् वश मे करना [ अपने अधीन करना] इसके प्रयोग मे पूर्वाह्न, दोपहर के पहले काल मे स्वस्तिकासन युक्त उत्तर दिशा की तरफ मुख करके कमल मुद्रा सहित मूंगे की माला से जपे । कुसुमवर्ण वपट्पल्लव उच्चारण करता हुआ जाप्य करे।
आसन डाभ रक्त वर्ण यन्त्रोद्धार । रक्त पुष्प वाम हस्तसे डाभ के आसन पर बैठ कर लाल कपडे सहित यन्त्रोद्वार · .. ..... . . 'लाल फूल रखता हुवा वाये हाथ से जाप्य करे।
श्राकृष्टि पूर्वाह्न दण्डासनं अंकुश मुद्रा दक्षिणदिक् ।
प्रवालमाला उदयार्कवर्ण वौषट् स्फुट अंगुष्ठमध्यमाभ्यंतु ।। प्राकृष्टि-बुलाना इसके प्रयोग मे पूर्वाह्न ( दोपहर से पहले ) काल मे दण्डासनयुक्त अ कुश मुद्रा-सहित दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके मगे की माला से उदयार्कवर्ण · ... ...." वौषट उच्चारण करता हुआ अगूठे और वीच की अगुली से जाप्य करे ।
निषिद्ध सन्ध्यासमय भद्र पीठासन ईशानदिक् वज्रमुद्रा ।
जीवापोतामालिका धूम्र बहुभ कनिष्ठांगुष्ठयोगेन ।। निषिद्ध कर्म या मारण कर्म समय मे भद्र पीठासन युक्त ईशान [उत्तर और पूर्व दिशा के बीच] की तरफ मुख करके वज्र-मुद्रा युक्त जीवापोता माला से धूप खेता हुया या होम करता हुआ अगूठे ओर कनिष्ठा से जाप करे। नोट - जो बगैर रक्षा-मन्त्र के जप के मन्त्र साधन करते है अक्सर व्यन्तरो से डराये जाकर
अधबीच मे मन्त्र साधन छोड देने से पागल हो जाते है इसलिए जब कोई मन्त्र सिद्ध करने बैठे तो मन्त्र जपना प्रारम्भ करने से पूर्व इनमे से कोई रक्षा-मन्त्र जरूर जप लेना चाहिये। इससे मन्त्र साधन करने मे कोई उपद्रव नही हो सकेगा और कोई व्यन्तर वगैरह रूप बदल कर ध्यान मे विघ्न नही डाल सकेगा। कुण्डली के अन्दर पा नहीं सकेगा।
इन मन्त्रो का जाप्य भगवान की वेदी के सामने करना चाहिए या देवस्थान मे जाप्य करना चाहिये या घर मे एकान्त स्थान मे जाप्य करे। किन्तु घर मे होम और पुण्याहवाचन करके णमोकार मन्त्र का चित्र और जिनेन्द्र भगवान का चित्र, दीप और धूपदानी समक्ष रख कर, आसन पर बैठकर और शुद्ध वस्त्र पहनकर जाप्य करे। उस स्थान पर बच्चो आदि का
व या शोर नहीं होना चाहिए। मन्त्र की जाप्य अत्यन्त शुद्ध, भक्ति के साथ करनी चाहिए। मन्त्र में किसी प्रकार की प्राकुलता चिन्ता, दुख, शोक आदि भावनाएँ नही रहनी चाहिए। जाप्य करते समय मन को स्थिर रखना चाहिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके जाप्य देनी चाहिए। जाप्य मे बैठने से पहले समय की मर्यादा कर लेनी चाहिए। पद्मासन से बैठना चाहिए, मौन रखना चाहिए। जितने दिन जाप्य कर, उतने दिन एकाशन, किसी रस का त्याग, वस्त्र आदि का परिमारण करे। जमीन, चटाई या तख्ते पर सोवे जाप्य समाप्त होने
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लघुविद्यानुवाद
तक ब्रह्मचर्य व्रत रखे मन्त्र की जाप्य पुष्प हस्त और मल आदि शुभ नक्षत्रो मे प्रारम्भ करना चाहिये। सुबह दोपहर और शाम को जाप्य करे। सुबह ५ बजे उठकर स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र पहन कर जाप्य दे। श्वेत वस्त्र पहने। यदि घर मे जाप्य करनी हो तो भगवान का दर्शन-पूजन करने के पश्चात् करनी चाहिए। दोपहर को शुद्ध वस्त्र पहनकर तथा सध्या को मन्दिर मे दर्शन करने के पश्चात् शुद्ध वस्त्र पहनकर जाप्य करे।
जाप्य तीन प्रकार का होता है। मानसिक, वाचनिक (उपाशुक) और कायिक । मानसिक जाप :-मन मे मन्त्र का जप करना, यह कार्य सिद्धि के लिए होता है। । वाचनिक जप -उच्च स्वर मे मन्त्र पढना, यह पुत्र प्राप्ति के लिए होता है।
कायिक जप –बिना बोले मन्त्र पढना, जिसमे होठ हिलते रहे। यह धन प्राप्ति के लिए होता है या किया जाता है।
इन तीनो जाप्यो मे मानसिक जाप्य श्रेष्ठ है, जाप उगलियो पर या माला द्वारा करना चाहिये । माला चाहे सूत को या स्फटिक, सोना, चाँदी या मोती आदि को हो।
विश्व शान्ति के लिए आठ करोड़ आठ लाख आठ हजार आठ सौ आठ जप करे । कम से कम सात लाख जप करे। यह जाप नियमबद्ध होकर निरन्तर करे, सूतक पातक मे भी छोडे नहीं । विश्व शान्ति जाप के लिए दिनो का प्रमाण कर लेना चाहिए।
पुत्र प्राप्ति, नवग्रह शान्ति, रोग निवारण प्रादि कार्यो के लिए एक लाख जाप करे। यात्मिक शान्ति के लिए सदा जाप करे। दिनो का कोई नियम नही है, स्त्रियो को रजस्वला होने पर भी जाप करते रहना चाहिए, स्नान करने के पश्चात् मन्त्र का जाप्य मन मे करे, जोर से नहीं बोले और माला भी काम मे न ले।
जप पूर्ण होने पर भगवान का अभिषेक करके यथाशक्ति दान पुण्य करे।
प्रासन-विधान
बॉस की चटाई पर बैठकर जाप करने से दरिद्र हो जाता है, पाषाण पर बैठकर जाप करने से व्याधि पीडित हो जाता है। भूमि पर जाप्य करने से दु.ख प्राप्त होता है, पट्ट पर बैठकर जाप करने से दूर्भाग्य प्राप्त होता है, घास की चटाई पर बैठकर जाप करने से अपयश प्राप्त होता है, पत्तो के आसन पर बैठकर जाप करने से भ्रम हो जाता है, कथरी कर बैठकर जाप करने से मन चचल होता है, चमडे पर बैठकर जाप करने से ज्ञान नष्ट हो जाता है, कबल पर बैठकर जाप करने से मान भग हो जाता है। नी ने रग के वस्त्र पहनकर जाप करने से बहुत दुख होता है। हरे रंग के वस्त्र पहनकर जाप करने से मान भग हो जाता है।
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लघुविद्यानुवाद
श्वेत वस्त्र पहन कर जाप करने से यश को वृद्धि होती है। पीले रंग के वस्त्र पहन कर जाप करने से हर्ष बढता है । ध्यान मे लाल रंग के वस्त्र श्रेष्ठ है। सर्व धर्मकार्य सिद्ध करने के लिए दर्भासन (डाब का आसन) उत्तम है।
गृहे जपलं प्रोक्तं वने शत गुणं भवेत्, पुण्यास्थाने तथारण्ये सहस्र गुरिणतं मतम् । पर्वते दश सहस्र च नद्याँ लक्ष मुदाहृतम्,
कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिन सन्निधौ ।। अर्थात् घर मे जो जाप का फल होता है उससे सौ गुणा फल वन मे जाप करने से होता है। पुण्य क्षेत्र तथा जगल मे जाप करने से हजार गुणा फल होता है। पर्वत पर जाप करने से दस हजार गुणा, नदी के किनारे जाप करने से लाख गुणा, देवालय (मन्दिर) मे जाप करने से करोड गुणा और भगवान के समीप जप करने से अनन्त गुणा फल मिलता है। अंगुली-विधान :
अंगुष्ठ जपो मोक्षाय, उपचारे तु तर्जनी, मध्यमा धन सौख्याय, शान्त्यर्थ तु अनामिका । कनिष्ठा सर्व सिद्धिदा तर्जनी शत्रु नाशाय । इत्यापि पाठान्तरोऽस्ति हि ....."
मोक्ष के लिए अगठे से जाप करे, उपचार (व्यवहार) के लिए तर्जनी से, धन और सुख के लिये मध्यमा अगली से, शान्ति के लिए अनामिका से और सब कार्यों की सिद्धि के लिए कनिष्ठा से जाप करे। पाठान्तर से कही शत्र नाश के लिए तर्जनी अगुली से जाप करे ।
माला-विधान:
दुष्ट या व्यतर देवो के उपद्रब दर करने, स्तम्भन विधि के लिए रोग शान्ति के लिए या पुत्र प्राप्ति के लिए मोती की माला या कमल बीज की माला से जाप करन चाहिये। शत्र उच्चाटन के लिए रुद्राक्ष को माला, सर्व कर्म के लिए या सर्व काय सिद्धि के लिए पच वर्ण के पुष्पो से जाप करने चाहिय । हाथ की अगलियो पर जाप करने से दस गुणा फल मिलता है, ऑवले की माला पर जप करने से सहस्र गरणा फल मिलता है। लौग की माला से पाँच हजार गुरणा, स्फटिक की माला से दस हजार गुणा, मोतियो को माला से लाख गरणा, कमल बीज माला से दस लाख गरणा, सोने की माला से जाप करन से करोड़ गुणा फल मिलता है। माला के साथ भाव शुद्धि विशेष होनी चाहिये।
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मन्त्र शास्त्र में अकडम चक्र का प्रयोग
अथ अ क ड म चक्र प्रयोगनाम- पुरुष के नाम के पहले अक्षर से मन्त्र के नाम अक्षर तक गिनना । मन्त्र सिद्ध सिद्ध देखे |
अर्थ - पुरुष के नामाक्षर तक गिरणाई पहले सिद्ध विजई साध्य, तीजई सु सिद्ध, चउरि शत्रुता इरणी ।
लघुविद्यानुवाद
नुक्रम से बारह स्थान कूँ जो
बारह कोठे है उनमे गिनकर शुभ अशुभ सिद्ध प्रसिद्ध देखो । १-५ - ६ कोठा के अक्षर यावे तो देर से सिद्ध, २-६-१० कोठा के अक्षर आवे तो सिद्ध हो या न भी हो, ३-७-११ कोठा के अक्षर हो तो जल्दी सिद्ध हो, ४-८-१२ कोठा के
अक्षर हो तो शत्रुता, कार्य न हो ।
अः ऊ
मज्ञः
अ ट
औऊ पह
ऐऊ
नस
व क्ष
जओ फत्र
उ ओप
ऱ्ह
1
ए ज न स
ष ह छ्ध
अ
क
न अक
उ भ
ए
छ
ध
श चं ऋट द
ष
4 थल
अक
उम
求
व
आख दय
ऑफ पर
उ डच न
अ च दश
क
ठभ आअ
इम इ
इ ख द य
ऊ त
घल
रउ गण
१३
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लघुविद्यानुवाद
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पच पाठा पचई पाठार तिन्ह चोरिका सत्व छक्का सतई छकाई चऊ रिक्का एकेन
आ ख द पर
SkP8/02
12
वृषपीला
इम ण र/
782
EARR
मिथुन /
कुंभ लाभ
रंग
100
ई छ तल अ क ड म .१६३ २-७-४५ कके गुलाबी मेष लाल
22 112
\उड थष
५७ २४
तुला पीला
ॐ च दशए प्रधष ८३६१
कन्या २५४७ नील
एजनस ओझ पह १८६
४५२७ वृश्चिक
पीला
अर
पुरुष. द्वाभ्या स्त्री शून्ये नपु सक एकेन जीवा द्वाभ्या धातु शून्येन मूल ३ एकेन लाभ द्वाभ्या न लाभ शून्येन हानि ४ एकेन आकाश द्वाभ्या पाताल शून्येन मृत्यु लोक ॥
॥ इति॥ एक एक कोठा मे ४ ४ अक्षर १८ अङ्क है । १२ कोठे १२ राशि रग का विवरण है। अकडम चक्रम्
__कोई पाठ मन्त्र किसी आ 2 /
व्यक्ति को फलप्रद होगा कि नहीं यह जाने के लिए उस मन्त्र या पाठ का नाम का पहला अक्षर
और व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का इस चक्र मे नीचे लिखे शब्द बोलकर मिलान करने पर मालूम हो जयेगा कि पहले व्यक्ति के नाम से कार्य के नाम के पहले अक्षर को गिनना तो मालूम होगा । सिद्ध, साध्य सुसिद्ध, अरि।
4
4XAXA
__ 4A
ॐ
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र साधन मुहूर्त का कोष्टक :
नक्षत्र उत्तफा ह अश्वि०म०वि०म०
वार र०सी० बु० गु० शु० | तिथि २१३५१७।१०।१९।१३।१५
इस कोष्टक को देखकर, पचाङ्ग से मिलान कर मन्त्र साधना करने का मुहर्त देख लेना चाहिये, तब मन्त्र साधन की ओर अग्रसर हो, नही तो सफलता नही मिलेगी।
मन्त्र सिद्ध होगा या नहीं उसको देखने की विधि :
जिस मन्त्र की साधना करना हो उस मन्त्र के अक्षरो को ३ से गुणा करे, फिर अपने नाम के अक्षरो को और मिला देवे, उस सख्या मे १२ का भाग देवे, शेष जो रहे, उसका फल निम्नानुसार जाने -
५-६ बाकी बचे तो मन्त्र सिद्ध होगा। ६-१० बचे तो देर से सिद्ध होगा। ७-११ बचे तो अच्छा होगा। ८-१२ बचे तो सिद्ध नहीं होगा।
कोई मन्त्र अगर अपने नाम से मिलने पर ऋणी या धनी आता हो, तो उस मन्त्र के आदि मे ॐ ह्री श्री क्ली इनमे से कोई भी बीज मन्त्र के साथ जोड देने पर मन्त्र अवश्य सिद्ध हो जायेगा।
मन्त्र जपने के लिये प्रासन :
पर्यकासन - इसे सूखासन भी कहते हैं। दोनों जंघाओ के नीचे की भीग पाँव के ऊपर करके बैठे यानि पालथी मार कर बैठे और दाहिना व बाया हाथ नाभि कमल के पास ध्यान मुद्रा मे रखे।
वीरासन -दाहिना पैर बॉयी जघा पर व बायाँ पैर दाहिनी जंघा पर रख कर स्थिरता से बैठे।
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लघुविद्यानुवाद
वज्रासन -वीरासन मुद्रा मे पीठ की तरफ से लेकर दाहिने पैर का अगूठा दाहिने हाथ से और बॉये पैर का अगूठा बॉये हाथ से पकडे तो वज्रासन होता है ।
पद्मासन -दायाँ पैर बॉयी जघा पर रखे और बायाँ पैर दाँयी जघा पर, एडियाँ परस्पर मिली हो, दोनो घुटने जमीन से स्पर्श न करे तो पद्मासन होता है।
भद्रासन -पुरुष चिह्न के आगे गॅव के दोनो तलुवे मिलाकर उनके ऊपर दोनो हाथ की अगुली परस्पर एक के साथ एक करने के बाद दोनो अगुलिया ठीक तरह से दीखती रहे इस प्रकार हाथ जोडकर बैठना भद्रासन है।
दण्डासन —जिस आसन मे बैठने से अगुलियाँ, गुल्फ व जघा भूमि से स्पर्श करे, इस प्रकार पॉवो को लम्बे कर बैठना दण्डासन कहा जाता है।
उत्किटिकासन -गुदा और ऐडी के सयोग से दृढता पूर्वक बेठे तो उत्किटिकासन कहा जाता है।
गो दोहिकासन :-गाय दुहने को बैठते है, उस तरह बैठना, ध्यान करना गोदोहिकासन है।
कायोत्सर्गासन :-खडे-खडे दोनो भुजारो को लम्बो कर घुटने की तरफ बढाना या बैठे-बैठे काया की अपेक्षा नही रख कर ध्यान करना कायोत्सर्गासन कहलाता है।
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मन्त्र शास्त्र में मुद्राओं की विधि (१) वाम हस्तस्योपरिदक्षिणकरं कृत्वा कनिष्ठिकागुष्ठाभ्या मणिबध वेष्ट्य शेषागुलिना
विस्फारित 'वज्रमुद्रा' । [ चित्र स० १] (२) पद्माकरो कृत्वा मध्ये अगुष्ठौ करिणकारो विन्यस्येदिति 'पद्ममुद्रा'। [ चित्र स० ५ ] ( ३ ) वामहस्ततले दक्षिण हस्तमूल निवेश्य करशाखा विरलीकृत्य प्रसारयेदिति 'चक्रमुद्रा'
[चित्र स०७] (४) उत्तानहस्तद्वयेन वेणीबध विधाया गुष्ठाभ्यां कनिष्ठ तर्जनीभ्या मध्ये सगृह्य अनामिके
समीकुर्यातामिति 'परमेष्ठीमुद्रा' । (५) यद्वा करागली अर्धीकृत्य मध्यमा मध्ये कुर्यादिति 'द्वितीया परमेष्ठीमुद्रा'।
चित्र स० २०] उत्तानो किचिता कुचित कर शाखौ पाणी विधाय धारयेदिति 'अञ्जुलि मुद्रा'। अथवा 'पल्लव मुद्रा'। [चित्र स० १]
(६)
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लधुविद्यानुवाद
१७
(७ ) परस्पराभिमुखौ ग्रथितागुलिको करौ कृत्वा तर्जनीभ्यामनामिके गृहीत्वा मध्यमे प्रसार्य तन्मध्ये
अंगुष्ठ द्वय निक्षिपेत् इति (सौमय मुद्रा) 'सौभाग्य मुद्रा'। (८) किचिद्गभितौ हस्तौ समौ विधाय ललाट देशे योजनेन 'सुक्ता सुक्ति मुद्रा' । (६) मिथपराग मुखौ करौ सयोज्यागुलो विदूर्ध्यात्म सम्मुख कर द्वयपरावर्तनेन 'मुद्गर मुद्रा' । (१०) वामकर सहितागुलि हृदयाने निवेश्य दक्षिण मुष्टिबद्ध तर्जनोमूर्धी कुर्यादिति तर्जनी
मुद्रा। (११) अगुलीत्रिक सरलीकृत्य तर्जन्य गुष्ठीमिल यित्वा हृदयाग्रेधार्येदिति प्रवचनमुद्रा। (१२) अन्योन्य ग्रथितागुलिषु कनिष्ठानामिकयो मध्यमा तर्जन्योश्च सयोजनेन गोस्तनाकार
धनुमुद्रा। [चित्र स० २१] (१३) हस्ततलिकोपरि हस्ततलिका कार्या इति आसन मृद्रा।। (१४) दक्षिणागुप्ठेन तर्जनीमध्यमे समाक्रम्यपुनर्मध्यमा मोक्षणेन नाराचमुद्रा । (१५) करस्थापनेन जनमुद्रा । (१६) वामहस्तपृष्ठोपरि दक्षिण हस्त तले निवेशने अंगूष्ठ द्वय चालनेन 'मोन मुद्रा' । (१७) दक्षिणहस्तस्य तर्जनी प्रसार्य मध्यमा ईपदवक्रोकरणे अकुश मुद्रा। [चित्र स० ६) (१८) बद्धमुष्टयो करयो सलग्न समुखाँगुष्ठयो हृदय मुद्रा। [चित्र स० १३] (१९) तावेवमुष्टी समीकृत्वा गुष्ठ शिरसिविन्यस्येदिति 'शिरोमुद्रा'। (२०) मुष्टिबद्धे विधाय कनिष्ठ मगुष्ठप्रसारयेत् इति 'शिखामुद्रा' । (२१) पूर्ववत् मुष्टि बध्वा तर्जन्यो प्रसारयेदिति 'कवचमुद्रा' । (२२) कनिष्ठा मगुष्ठेन सपीड्यशेषागुली प्रसारयेदिति 'क्षरमुद्रा' । (२३) तनदक्षिण करेण मुष्टि बध्वा तर्जनी मध्यमे प्रसारयेत् इति 'अस्त्र मुद्रा' । (२४) हृदयादीना विन्यास मुद्रा प्रसारितोन्मुखाभ्या हस्ताभ्या पादागुलि तलान्मस्तकस्पर्शान
_ 'महामुद्रा'। (२५) हस्ताभ्यामजुलि कृत्वा नाभिकामूल पर्वागुष्ठ सयोजनेन 'मावाहिनी मद्रा'। (२६) इयमेवाधोमुखी 'स्थापनी मुद्रा'। चित्र स० ११] (२७) सलग्नमुष्ट्युछितागुष्ठौ करौ 'सन्निधानी मुद्र।' । [चित्र स० १२] (२८) तामेवगुष्ठो 'निष्ठुरा मुद्रा' एतातिस्र 'अवगाहनादि मुद्रा' । (२६) अन्योन्यग्रथितागुलीषु कनिष्ठानामिकयोर्मध्यमा तर्जन्या विस्तारित तर्जन्यो वामन
तलचालनेन त्रासनी नेत्रास्त्रयो 'पूज्यमुद्रा'। (३०) अंगुष्ठे तर्जनी सयोज्य शेषोंगुली प्रसारणेन पाशमुद्रा'। [चित्र स० ३]
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नयुविधानुवाद
(२१) स्वहस्तोगुनो वागात मूर्त तग्गयांगुष्ठ तियंग विधाय तर्जनी नालनेन 'ध्यज मुद्रा'। (३२) दक्षिणहरतमत्तान विपायाध करणागा प्रसारगदिति नरमता'। (३३) वामहन्तेन मुष्टि बन्या गनिप्टिमा प्रसार्ग शेषांगती रगान पीठयदिति 'शयमुद्रा'। (३४) परस्पराभिमुग हस्ताभ्या वणी यथ निमाय मध्यमे प्रसागं गोज्य च शेषागुलिभिमुष्टि
विधाय शक्ति मा। (३५) हस्तद्गयेगांगुष्ठ तर्जनीन्या बनके विधायपरम्पगतः प्रयशनेन 'शृगला मुद्रा' । (३६) मस्तकोपरोहन्तागंन शिमराकार पुदमन नियते ग एय गारमेर मुद्रा (पंचमेरु मद्रा)
[चित्र स०४। (३७) वामहानमुटेपरि दक्षिण मष्टि न्यागारणामहरिनिरामयेदिति 'गदा मुद्रा' । (३८) प्रवामुग वामहानागलोघंटा कारा. प्रमादभिगमति बच्चा नजनी मूळ कृत्वा
वामहन्ननलेनियोज्यघण्टायनालनेन "उण्टा मद्रा'। (३६) उन्नतपृष्ठ हस्ताभ्या मपुट कृत्या गनिष्ठिो निष्कान्य योजयेदिति 'कमण्डलु मुद्रा'। (४०) पत्ताकावत् हम्न प्रमायं प्रा गुष्ठ योजनेन परशु मुद्रा'। (४१) ऊध्वंदण्डौ कगे कृत्या पदावन करणारा प्रसारयेदिति बना मुद्रा'। (४२) दक्षिण हन सहनागलि मुन्नमत्य मपंफणावत् किनिनामुञ्चयदिति 'ममुद्रा' । (४३) दक्षिण करेगा मुष्टि बचा तजना मध्यमे प्रमारयेदिति गङ्गमुद्रा। (४४) हरताभ्या सपुट विधायागुली पदिकाम्य मध्यमे परस्पर सयोज्यातन्मूललग्नागुप्ठी
कारयेदिति 'ज्वलनमुद्रा'। (४५) बद्धमुप्टेर्दक्षिण कास्यमध्यमागुष्ठ तजन्याम्नन्मूलाक्रमेण प्रसारयेदिति 'दण्ड मुद्रा'।
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A. C
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लघुविद्यनुवाद
वज्र मुद्रा (चित्र स० १)
शङ्ख मुद्रा (चित्र स २)
पास मुद्रा (चित्र स० ३)
पचमेरु मुद्रा (चित्र स० ४)
सरोज मुद्रा (चित्र स ५)
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नविद्यानुवाद
प्रकुश मुद्रा (चित्र म०६)
नग मुद्रा (निम न० ७)
-
X.NLO
चित्र स०८, ६ आवाहन शुद्रा सुखासन (पल्लव मुद्रा)
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लघुविद्यानुवाद
CMYDE
चित्र स० १०, स्थभन मुद्रा (शख मुद्रा) द्वितीय
स्थापन मुद्रा सुखासन (चित्र स० ११)
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ननिधिकरण शुद्रा (निनन०१३)
हृदय मुद्रा (चित्र म०१३)
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२२
uts
लघुविद्यानुवाद
द्वितीय कुश मुद्रा सुखासन उल्टा (चित्र स० १४ )
ज्ञान मुद्रा (चित्र स० १६ )
30
और भी अन्य मुद्रा (चित्र स० १५ )
( चित्र स०१७ )
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लघुविद्यानुवाद
२३
अस्त्र मुद्रा, सिद्धासुग्यासन (चित्र स० १८)
कायोत्सर्ग, अस्त्र मुद्रा (चित्र स १६)
रमे
मा निगम,
मनु मुगम मुद्रा, गान्याना
द्रा (नित्र. २११
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मंत्रजापलियबस्थान
. मंडलोंकानुन
नानिमंडल
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र्रर्रर्रर्रर्रर्रई
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चन्द्रप्रभाऽनाहत
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अग्नि मंडल पृथ्वी मंडल
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पद्मप्रभाऽनाहत
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जलमंडल
जलमंडल
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लघुविद्यानुवाद
द्वितीय खंड
( पृष्ठ २५ से २४८)
इस खण्ड मे
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३७
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V. स्वर और व्यंजनो के स्वरूप ४ स्वरो और व्यजनो की शक्ति V मन्त्र निर्माण के लिये बीजाक्षरो की आवश्यकता
एव उत्पत्ति ध्वनि (उच्चार) के वर्ण, मन्त्र शास्त्रानसार, बीजाक्षरो का वर्णन
बीजाक्षर मन्त्र IV रक्षा मन्त्र, रोग एव बन्दीखाना निवारण मन्त्र
अग्नि निवारण मन्त्र V/ चोर, बैरी निवारण मन्त्र, चोर नाशन मत्र
दुश्मन तथा भूत निवारण मन्त्र वाद जोतन मन्त्र, विद्या प्राप्ति मन्त्र, परदेश लाभ मन्त्र
शुभाशुभ कहन मत्र, (बाग्बल मत्र) V मन चिन्ता, द्रव्य प्राप्ति मन्त्र, सर्व सिद्धि मत्र V आत्म रक्षा महासकलीकरण मन्त्र तथा
सर्व कार्य साधक मन्त्र IV जाप्य मन्त्र, / सूर्य मन्त्र का खुलासा V शाति मन्त्र, सर्व शाति मन्त्र ८ विभिन्न रोगों व कष्टों के निवारण हेतु ५०८ मंत्र
विधि सहित v भूत तन्त्र विधान ४० मन्त्र विधि सहित
१४६ V कुरगिनी गारुडी विद्या १२ मन्त्र विधि सहित १५८ V शारदा दंडक विभिन्न १२० मन्त्र विधि सहित १६१ सहदेवी कल्प मन्त्र विधि सहित
१८३
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लोगस्य कल्प ३२ मन्त्र विधि सहित प्रष्ट गध श्लोक & मन्त्र विधि सहित
सर्व शान्ति कर मन्त्रोऽयम, गोरोचन कल्प ११ मन्त्रविधि सहित
नारी केल कल्प १८ मन्त्र विधि सहित
(५) मणिभद्रादि क्षेत्रपालो के ३ मन्त्र विधि सहित अन्नोत्पादन ४५ मन्त्र विधि सहित कलश भ्रामरण यन्त्र विधि पद्मावती सिद्धि २७ मन्त्र विधि सहित जीवन मरण विचार ४० मत्र विधि सहित पुत्रोत्पत्ति के लिए मन्त्र, ग्रंथ वृहद शाति मन्त्र पद्मावती ग्राह्नानन मन्त्र 1 पद्मावती माला मन्त्र लघु पद्मावती माला मन्त्र वृहत
(3) श्री ज्वाला मालिनीदेवी माला मन्त्र
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(1) सरस्वती मन्त्र
(७) शाति मन्त्र लघु - शाति मन्त्र, नवग्रह जाप्य (५) वर्द्धमान मन्त्र
जिनेन्द्र पच कल्याणक के समय प्रतिमा के कान मे देने वाला सूर्य मन्त्र
9) प्रत्येक शासन देव सूर्य मन्त्र
ॐ पद्मावती प्रतिष्ठा वा यक्षिरणी प्रतिष्ठा सूर्य मन्त्र धरणेन्द्र श्रथवा यक्ष प्रतिष्ठा सूर्य मन्त्र
गणधर वलय से सम्बन्धित ऋद्धि मन्त्र व फल
1 अण्डकोप वृद्धि व खाख बिलाई मन्त्र
१) मस्सा नाशक मन्त्र, वरणहर मन्त्र
वाला (नहरवा) का मन्त्र, घाव की पीडा
का मन्त्र
(१) कर्ण पिशाचिनी देवी एव क्ली वीज मन्त्र वाक् सिद्धि मन्त्र, दाद का मन्त्र
(१) भजन, श्री १०८ गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज भारती श्री १०५ गणिनी आर्यिका विजयामती माताजी ।
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१६५
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२०३
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२३६
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२३८
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२४५
२४६
२४७
२४८
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थः द्वितीय मन्त्राधिकार
स्वर और व्यंजनों के स्वरूप
श्र - वृत्तासन, हाथी का वाहन, सुवर्ण के समान वर्ण, कुकुम गध, लवरण का स्वाद, जम्बूद्वीप मे विस्तीर्ण, चार मुख वाला ग्रष्ट भुजा वाला, काली आँख वाला, जटा मुकुट से सहित, सितवर्ण, मोतियो के आभरण वाला, अत्यन्त बलवान, गम्भीर, पुल्लिंग, ऐसा 'अ' कार का लक्षण है ।
आ. - पद्मासन, गज, व्याल, वाहन, सितवर्ण, है, दो मुख वाला, आठ हाथ वाला, सर्प का भूषण है, धारण करने वाला, तीस हजार योजन, विस्तार वाला, स्त्रीलिंग है, जिसका ऐसा 'आ' कार का लक्षण है ।
शख, चक्र - कमल, अकुश का आयुध जिसको शोभानादि महाद्युति
इ कछुवे का वाहन, चतुरानन, सुवर्ण जैसा वर्ण वज्र का प्रायुध वाला, एक योजन विस्तार वाला, द्विगुरण उत्सेध वाला, कषायला स्वाद वाला, वज्र, वैडूर्य वर्ग के अलकार को धारण करने वाला, मन्द स्वर वाला और नपुंसक लिंग वाला और क्षत्रिय है, ये 'इ' कार का लक्षण है ।
ई – कुवलय का आसन, वराह का वाहन, मन्द गमन करने वाला अमृत रस का स्वाद वाला, सुगंधित, दो भुजा वाला, फल और कमल का श्रायुध वाला, श्वेत वर्ण वाला, सौ योजन विस्तार वाला, द्विगुरणा उत्सेध वाला, दिव्य शक्ति को धारण करने वाला, स्त्रीलिंग वाला 'ई' कार का लक्षण है ।
उ – त्रिकोण आसन, वाला, कोक वाहन, ( ) दो भुजा वाला, मूसल गदा के प्रायुध वाला, धुन के वर्ण वाला, कठोर कडवा स्वाद वाला, सौ योजन विस्तार वाला, द्विगुणीत उत्सेध वाला, कठोर, वश्याकर्षण वाला ऐसा 'उ' कार का लक्षण है ।
ऊ – त्रिकोण आसन वाला ऊँट का वाहन वाला, लाल वर्ण वाला, कपायला रस वाला, निष्ठुर गध से सहित दो भुजा वाला, फल और शूल के प्रायुध को धारण करने वाला; नपुसकलिंग वाला, सौ योजन विस्तार वाला है, ऐसा 'ऊ' कार का लक्षण 1
ऋ - ऊँट के समान ऊँट के वर्ण वाला, सौ योजन विस्तार वाला, द्विगुणित ऊँट के मुख का स्वाद वाला, नाग का श्राभरण वाला, सर्व विघ्न मय, ऐसा 'ऋ' कार का लक्षण है ।
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२६
लघुविद्यानुवाद
T) का आयुध से सहित
__ ऋ - पद्मासन मयूर का वाहन वाला, कपिल वर्ण वाला, चार भुजा वाला, सौ योजन विस्तार वाला, द्विगुणित आयाम वाला, मल्ल (चमेली) के गध जैसा मधुर स्वाद वाला, सुवर्ण के आभरण को धारण करने वाला नपुसक लिग वाला, ऐसा 'ऋ' का लक्षण है।
__ल - घोडे के स्वभाव वाला, घोडे जैसे स्वर वाला, घोडे के समान रस वाला सौ योजन विस्तार वाला, द्विगुणि आयाम वाला, शर का वाहन वाला, चार भजा वाला, मुसल, अकस कमल, कोदण्ड, आयुध वाला, कुवलय का प्रासन वाला, नाग का अामरण वाला, सर्वविघ्नकारि नपुसक लिग वाला, ऐसा 'ल' कार का स्वरूप है।
ल -मौलि (मुकुट) मुक्तायो से सहित और यज्ञोपवित धारण किये हुये, कुण्डलाभरण सहित, दो भजाग्रो वाला (कमल को माला से सहित) कमल कूत (माला) का प्रायूध से मल्लिका के गन्ध वाला, पचास योजन विस्तार वाला, द्विगुणा पायाम वाला, नपुंसक, भत्रिय, उच्चाटन करने वाला । ऐसा 'ल' कार का लक्षण है।
ए -जटा-मुकुट को धारण करने वाला, मोतियो के आभरण वाला यज्ञोपवित पहने हुये, चार भुजा वाला, श ख, चक्र, फरसा, कमल के आयध सहित, दिव्य स्वाद से सहित, सुगन्ध से युक्त, सर्व प्रिय शुभ लक्षण से सहित, वृत्तासन को धारण करने वाला और नपुसक इस प्रकार 'ए' का लक्षण हुआ।
ऐ -त्रिकोणासन से सहित, गरुड वाहन, दो भजायो वाला, त्रिशूल, गदा का प्रायुध वाला, अग्नि के समान वर्ण वाला, निष्ठर, गन्ध से सहित, क्षीर के स्वाद वाला धघर स्वर वाला, दस योजन विस्तार वाला, द्विगुणित लम्बावश्य आकर्षण शक्ति वाला। ऐसा 'ऐ' कार का लक्षण है।
ओ -बैल का वाहन, तपाया हया सोना के समान वर्ण वाला, सर्वायुध से सम्पन्न, लोकालोक मे व्याप्त, महाशक्ति का धारक, तीन नेत्र वाला, बारह हजार विस्तार वाला, पद्मासन वाला, महाप्रभ सर्वदेवतापो से पूज्य, सर्व मन्त्र का साधन. सर्व लोक से पूजित, सर्व शान्ति करन वाला, सभी को पालन या नाश करने मे समर्थ, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि से सहित, यजमान, आकाश, सूर्य, चन्द्रादि के समान कार्य करने वाला. सम्पूर्ण प्राभरणो से भूषित, दिव्य स्वाद वाला, सुगन्धित, सबो का रक्षण करने वाला, शुभ देह से सयक्त, स्थावर जगम आश्रय से सहित, सव जाव दया से सयुक्त (परम अव्यय) पाँच अक्षर से गभित । ऐसा 'यो' कार का लक्षण है।
औ -वृत्तासन वाला, कोक चकवा) वाहन, कु कुम गन्ध से सयुक्त पीले वर्ण वाला, चार भुजा वाला, वज्र, पाश के प्रायुध वाला, कषायला स्वाद वाला, श्वेत माल्यादि लेपन स सहित, स्तम्भन शक्ति युक्त सौ योजन विस्तार वाला,, द्विगुणित पायाम वाला। ऐसा 'श्री' कार का लक्षण है।
अ:-पद्मासन, सितवर्ण, निलोत्पल ( नीला कमल) गन्ध से सयुक्त को स्तुभ के
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लघु विद्यानुवाद
आभरण से सहित, दो भुजाश्रो वाला, कमल, पास के आयुध वाला, शुभ गन्ध से सयुक्त यज्ञोपवित यज्ञोपवित को धारण करने वाला, प्रसन्न बुद्धि वाला मधुर स्वाद वाला, सौ योजन विस्तार वाला, दो गुणित आयाम है जिसका ऐसा 'अ' कार का लक्षण है ।
२७
अ - त्रिकोण आसन वाला, पीले वस्त्र वाला, कुम्कुम के समान गन्ध वाला, धूम्र वर्ण वाला, कठोर स्वर वाला, निष्ठुर दृष्टि वाला, खारा स्वाद से सयुक्त, दो भुजाश्रो वाला, शूल का प्रायुध धारण करने वाला, निष्ठुर गति वाला, अशोभन प्राकृति वाला, नपुसक, शुभ कर्म है कार्य जिसका । ऐआ 'अ ' कार का लक्षण है '
क - चतुरस्रासन, चतुरादत्त भवाहन, पीले वर्ण का सुगन्ध माल्यादि लेपन सहित स्थिर गति वाला, प्रसन्न दृष्टि वाला, दो भुजा वाला, वज्र मूसल के प्रायुध सहित जटा - मुकुट धारी सर्वाभरण से भूषित, हजार योजन विस्तार वाला दस हजार योजन का उत्सेध पुल्लिंग, क्षत्रिय, इन्द्रादि देवता का स्तम्भन करने वाला, शान्तिक, पौष्टिक वश्याकर्षण कर्म का नाश करने वाला । ऐसा 'क' कार का लक्षण हे |
ख — पिगल वाहन, मयूर के कण्ठ के समान वर्ण वाला, दो भुजा वाला, तोमर, शक्ति के आयुध से सहित, सुन्दर यज्ञोपवित को धारण करने वाला, सुस्वर वाला, तीस योजन विस्तार वाला, आकाश मे गमन करने वाला, क्षत्रिय, सुगन्ध माल्यादि लेपन से सहित, आग्नेय पुराकपन, चिन्तित मनोरथ की सिद्धि करने वाला, अणिमादि दैवत, पुल्लिंग । ऐसा 'ख' कार का लक्षण है।
ग - हस का वाहन, पद्मासन माणिक्याभरण से सहित, इगिलीक वर्ण वाला, श्वेत वस्त्र वाला, सुगन्ध माल्यादि लेपन से सहित, कुम्कुम चन्दनादिक है प्रिय जिसको क्षत्रिय, पुल्लिंग, सर्व शान्ति करने वाला, सौ योजन विस्तार वाला, सर्वाभरण भूषित दो भुजा से सहित, फल और पास को धारण करने वाला यक्षादि देवता, अमृत स्वाद वाला, प्रसन्न दृष्टि वाला । ऐसा 'ग' कार का लक्षण है ।
घ -
- ऊँट का वाहन उल्लू का आसन, दो भुजा, वज्र, गदा, आयुध, धूम्रवर्ण, हजार योजन विस्तीर्ण हस के समान स्वर वाला, कठोर, गन्ध वाला, खारा स्वाद वाला, महाबलवान, उच्चाटन, छेदन, मोहन, स्तम्भनकारी पचाशत योजन विस्तिर्ण, नपुसक, रौद्र शक्ति वाला, क्षत्रिय, सर्व शान्तिकर महावीर्य को धारण करने वाले देवता । ऐसा 'घ' कार का लक्षण है ।
ड :- सर्पासन, दुष्ट स्वर वाला, दुर्दृष्टि, दुर्गन्ध, हजार योजन उत्सेध, शासन को करने वाला, रात्रि प्रिय छ मुष्टि, भुशुड, परसा के प्रायुध को धारण करने वाला, कार का लक्षण है |
दुराचारी, कोटी योजन विस्तिर्ण, भुजा वाला, मूशल, गदा, शक्ति नपुसक यमादि देवत । ऐसा 'ड'
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लघु विद्यानुवाद
च - शोभन, हस वाहन, शुक्ल वर्ण, सौ करोड हजार योजन विस्तार वाला, वज्र वैडूर्य मुक्ताभरण भूषित, चार भुजा वाला शुभ चक्र फल, कमल के आयुध वाला, जटा मुकुट धारी, सुस्वर वाला, सुमन प्रिय ब्रह्मा यक्षादि दैवत को प्राप्त । ऐसा 'च' कार का लक्षण है ।
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छ - मगर का वाहन, पद्मासन, महाघण्टा के समान वाला उगते हुये सूर्य के समान प्रभाव वाला, हजार योजन विस्तार वाला, श्राकर्षणादि रौद्र कर्म के करने वाला, सुमन के समान सुगन्ध वाला, काले वर्ण का, दिव्य ग्राभरण से सहित, चार भुजा वाला, चक्र, वज्र, शक्ति, गदा के आयुध से सहित, सर्व कार्य की सिद्धि करने वाला, गरुड देवता । ऐसा 'छ' कार लक्षण है।
ज -- शूद्र, पुल्लिंग, चार भुजा वाला, परसु, पाश, कमल, वज्र के धारण करने वाला, अमृत का स्वाद वाला, जटा मुकटधारी भौतिक वज्राभरण भूषित वश्यावरण शक्ति वाला, सत्यवादी, सुगन्ध प्रिय, सौदल कमल के समान वारुणादिदेव के समान । ऐसा 'ज' कार का लक्षण है ।
झ - पुरुष, वैश्य, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के समान वश्याकर्षण करने वाला कुबेरादि दैवत, दो भुजाओ वाला, शख, चक्र के प्रायुध को धारण करने वाला, मौक्तिक वज्राभरण भूषित, सत्यवादी, पीला वर्ण का पद्मासन, सुगन्ध, अमृत स्वादु । ऐसा 'झ' कार का लक्षण है ।
ञ :- कौवा के वाहन वाला, गन्धवान, काष्ठासन वाला, काला वर्ण वाला, दूत कर्म है, कार्य जिसका, नपुसक, सौ योजन विस्तिर्ण, चार भुजा वाला, त्रिशूल परसु के श्रायुधो को धारण करने वाला, निष्ठुर और गदा को धारण करने वाला महाक्रूर स्वर वाला, सर्व जीवो को भय पैदा करने वाला, शीघ्र गति वाला, व्यभिचार कर्म से सयुक्त, क्षार (खार) स्वाद वाला, शीघ्र गमन के स्वभाव वाला, रौद्र, दृष्टियम् दैवत । ऐसा 'ञ' कार का लक्षण है
ट - वृत्तासन, कबूतर के वाहन वाला, कपिल वर्ण वाला, दो भुजा वाला, वज्र, गदा, मन्द गति वाला, लवरण के समान स्वाद वाला, शीतल स्वाद वाला, व्याल यज्ञोपवित को धारण करने वाला, चन्द्र दैवत । ऐसा ट' कार का लक्षण है ।
ठ - चतुरस्रासन गज वाहन वाला, शख के समान दो भुजा वाला, वज्र, गढा के आयुध को धारण करने वाला, जम्बूद्वीप प्रमाण, अमृत स्वाद वाला, पुल्लिंग, रक्षा, स्तम्भन, मोहन, कार्य के सिद्ध करने वाला, सर्वाभरणभूषित, क्षत्रिय दैवत । ऐसा ठ' कार का लक्षण है ।
ड : - चतुरस्रासन, शख के समान, जम्बू द्वीप प्रमाण, क्षोरामृत स्वाद वाला, पुल्लिंग, दो भुजा वाना, वज्र पद्म के आयुध को धारण करने वाला, रक्षा, स्तम्भन, मोहनकारी, कर्पुर गन्ध वाला, सर्वाभरण भूपित है। केला के स्वाद वाला, शुभ स्वर वाला, कुबेर दैवत । ऐसा 'ड' कार का लक्षण है ।
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लघुविद्यानुवाद
२६
ढ -चतुरस्रासन, मोहन के समान, जम्बू द्वीप प्रमाण, पुल्लिग, आठ भुजा वाला, पशु, पाश, वज्र, मूसल, भिदपाल, मुद्गर, चाप, हल, नाराचायुध को धारण करने वाला, सुस्वाद, सुस्वर,सिह नाद के समान महाध्वनि करने वाला, लाल वरणं वाला, ऊपर मुख वाला, दुष्ट निग्रह शिष्ट परिपालन करने वाला, सौ योजन विस्तार वाला, हजार योजन पावत्त वाला, तदर्द्ध परिणाह जटा मुकुट को धारण करने वाला, सुगन्ध से सयुक्त, निश्वास वाला, किन्नर ज्योतिष के द्वारा पूजित, महोत्सवयुक्त, कालाग्नि शक्ति, वश्याकर्षण, निमिषार्द्ध साधन, विकलाग, अग्नि दैवत । ऐसा 'ढ' कार का लक्षण है।
____ण :-त्रिकोणासन, व्याघ्र वाहन, सौ हजार योजन आयाम, पचास हजार योजन विस्तार वाला, छ भुजा वाला, शशि तोमर, भुशुडि, भिदपाल, परशु त्रिशूल के आयुध को धारण करने वाला, कठोर गन्ध से सहित, श्राप या अनुग्रह करने मे समर्थ, काले वरण का, रौद्र दृष्टि, खारा स्वाद वाला, नपुसक, वायु दैवत । ऐसा 'ण' कार का लक्षण है।
त –पद्मासन, हाथी वाहन, शौर्य ही जिसका आभरण है, सौ योजन विस्तार वाला, पचास योजन अायाम, चम्पा के गन्ध वाला, चार भुजा वाला, पशु, पाश, पद्म, शख के आयुध वाला, पुल्लिग, चन्द्रादि देवता से पूजित, मधुर स्वाद वाला, सुगन्ध प्रिय। ऐसा 'त' कार का लक्षण है।
थ.-बैल का वाहन, आठ भुजा वाला, शक्ति तोमर, पशु धनुष, पाश, चक्र, गदा, दण्ड आयुध वाला, काला वर्ण वाला, काला वस्त्र वाला, जटा मुकुटधारी, करोड योजन आयाम आधा करोड विस्तार वाला, कर दृष्टि वाला, कठोर स्वर वाला, गन्ध वाला, धतूरा के रस का प्रिय, सर्व कामार्थ साधन अग्नि देवत । ऐसा 'थ' कार की शक्ति व लक्षण है।
द -भैस का वाहन, काला वर्ण, तीन मुख वाला, छ भुजा वाला, गदा, मूसल, त्रिशल. भशडि, वज्र, तोमर का पायव वाला, करोड योजन आयाम वाला प्राधा करोड़ योजन विस्तिर्ण, दिगम्बर (नग्न) लोहा के प्राभरण वाला उर्ध्व दृष्टि, सर्प का यज्ञोपवितधारी, निष्ठर ध्वनि है जिसकी मकरन्द मुन्मोक्षण, मन्त्र साधन मे विशेष, यम देवता से पूजित काला रग वाला, नपुसक । ऐसा 'द' कार का लक्षण है।
ध -पुल्लिग, कपायला वर्ण वाला, तीन नेत्र वाला, चतुरायुत योजन, विस्तीर्ण, रौद्र कार्य करने वाला, छ भुजा वाला, पाश, गदा, भुशुडि, मूसल, वज्र, शरासन का पायध धारण करने वाला, काला वर्ण, काला सप का यज्ञोपवित धारण करने वाला जटा मुकूटधारी हुकार का महाशब्द करने वाला, मशहूर कठोर, धूम्र प्रिय, रौद्र दृष्टि, नेऋत्य देव से पूजित । ऐसा 'ध' कार का लक्षण है।
न :-काला वर्ण का, नपुसक त्रिशूल, मुद्गर के आयुध वाला, द्विभुजा युक्त, उर्ध्व केश से व्याप्त, चर्मचारी रौद्र दष्टि वाला, कठोर स्वाद वाला, काला सर्प का प्रिय, कौए के समान स्वर वाला, सौ योजन उत्सेध वाला, पचास योजन आयाम वाला, निर्यास, गुग्गल, तिल,
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लघुविद्यानुवाद
तेल के धूप का प्रिय, दुर्जन प्रिय, रौद्र कर्म का धारण करने वाला, यमादि देव से पूजित । ऐसा 'न' कार का लक्षण है।
प -असित वर्ण, पुल्लिग, जाति पुष्प के गन्ध का प्रिय, दस सिर वाला, बीस हाथ वाला, अनेक आयुधो के धारण करने वाली मुद्रा से युक्त, करोड योजन विस्तार वाला, द्विगुणित आयाम वाला, मन्त्र, कोटि योजन शक्ति का धारी, गरुड वाहन वाला, कमल का आसन, सर्वाभरण भूषित, सर्प का यज्ञोपवित धारी, सर्व देवता से पूजित, सर्व देवात्मक, सर्व दुष्टो का विनाशक, (अलयानिल) चन्द्रादि देवता से पूजित । ऐसा 'प' कार का लक्षण है।
फ -बिजली के समान तेज वाला, पुल्लिग, पद्मासन, सिह वाहन, दस करोड योजन आयाम वाला, पाँच करोड योजन का विस्तार वाला, दो भुजा वाला, पशु चक्र के आयुध वाला, केतकी के गन्ध का प्रिय, सिद्ध विद्याधर से पूजित, मधुर स्वाद वाला, व्याधि विप, दृष्ट, ग्रह विनाशन, सर्व महारति, महादिव्य शक्ति, शान्तिकर, ऐशान्य देव से पूजित । ऐसा 'फ' कार का लक्षण है।
ब -इगिलि का भ, दस करोड योजन का उत्सेध, उसका आधा विस्तार, मुक्ति का भरण धारण करने वाला, जनेव धारी, दिव्या भूषित, आठ भूजा वाला, शख, चक्र, गदा, मूसल कॉडकण, शरासन, तोमर आयुष को धारण करने वाला, हस वाहन वाला, कुवलयासन का धारी, वेर फल का स्वादी, घन स्वर वाला, चम्मा के गन्ध वाला, वश्याकृष्टि प्रसग प्रिय, कुबेर देव से पूजित । ऐसा 'ब' कार का लक्षण है।
भ -नपुसक, दस हजार योजन उत्सेध, पाँच हजार योजन विस्तीर्ण, ( विस्तार वाला ), निष्ठर मन वाला, कठोर, रुक्ष, स्वाद प्रिय, शीघ्र गति गमन प्रिय ऊपर मुख वाला, तीन नेत्र वाला, चार भुजा वाला, चक्र, शूल, गदा, शक्ति के पायधो को धारण करने वाला, त्रिकोणासन वाला, व्याघ्र वाहन, लोहिताक्ष तीक्ष्ण, उर्ध्व केश वाला, विकृत रूप वाला, रौद्र काति, अर्द्ध खिले हुये नेत्र, शरण सिद्धि कर, नैऋत्य देव से पूजित । ऐसा 'भ' कार का लक्षण है।
म -उगते हये सूर्य के समान प्रभा, अनन्त योजन प्रभा शक्ति, सर्व व्यापि, अनन्त मुख, अनन्त हाथ, भूमि, आकाश, सागर, पर्यन्त दष्टि, सर्व कार्य साधक, अमरी करण दीपन सर्व गन्ध माल्यानुलेपन से सहित, धूप चरु का क्षत प्रिय, सर्व देवता रहस्य करण प्रलयाग्नि शिखि काति से युक्त, सर्व का नायक, पद्मासन, अग्नि देवता से पूजित । ऐसा 'म' कार का लक्षण हुआ।
___ य -नपुसक, भूमि, आकाश, दिशा विशेष वाला, सर्व व्यापि, अरूपी, शीघ्र, मन्द गति यक्त, प्रमोद से युक्त, व्यभिचार कर्म प्रिय, सर्व देवता अग्नि, प्रलयाग्नि तीव्र ज्योति, सर्व विकल्प वाला, अनन्त मुख, अनन्त भुजा, सर्व गर्भ करता, सर्व लोक प्रिय, हरिण व हन, वत्तासन, अजन के समान वर्ण वाला, महामधुर ध्वनि से युक्त वायव्य देवता से पूजित । ऐसा 'य' कार का लक्षण है।
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लधुविद्यानुवाद
३१
र -नपुसक, सर्व व्यापि, बारह सूर्य के समान प्रभा, ज्वालामाल, करोड योजन धु ति, सर्व लोक के कर्ता, सर्व होम प्रिय, रौद्र शक्ति, स्त्री णाम पच सायक, पर विद्या का छेदन करने वाला, आत्म कर्म साधन वाला, स्तम्भन, मोहन कर्म का कर्ता, जम्बू द्वीप मे विस्तीर्ण भैस का वाहन, त्रिकोणासन, अग्नि देवता से पूजित । ऐसा 'र' कार का लक्षण है।
ल:-पीला वर्ण, चार हाथ वाला, वज्र, शक्र, शूल, गदा के प्रायुधो को धारण करने वाला, हाथी का वाहन वाला, स्तम्भन मोहन का कर्ता, जम्बू द्वीप मे विस्तीर्ण, मद गति प्रिय, महात्मा, लोकालोक मे पूजित, सर्व जीव धारी, चतुरस्त्रासन, पथ्वी का जय करने वाला, इन्द्रदेव के द्वारा पूजित । ऐसा 'ल' कार का लक्षण है।
__व – श्वेत वर्ण बिन्दु से सहित, मधुर क्षार रस का प्रिय विकल्प से नपुसक, मगर का वाहन, पद्मासन, वश्याकर्षण, निर्विष शान्ति करण वरुणादि से पूजित । ऐसा 'व' कार का लक्षण है।
श-लाल वर्ण दस हजार योजन विस्तीर्ण पाच हजार योजन आयाम, चदन गध, मधुर स्वाद, मधुरस प्रिय चक्रवा का रूढ, कुवलयासन, चार भुजा, शख चक्र, फल कमल, का आयुध धारी, प्रसन्न दृष्टि, सुभानस, सुगन्ध धूप प्रिय, लाल वर्ण के हार से शोभिताभरण, जटा
याकषरण शातिक, पाण्टिक कत्तो, उगते हुए सूर्य के समान, चन्द्रादि देव से पूजित । ऐसा 'श' कार का लक्षण है।
प_पल्लिग, मयर शिखा के समान वर्ण, दो भजा. फरण, चक्र का अायध वाला प्रसन्न दृष्टि, एक लाख याजन विस्तीर्ण, पचास हजार योजन आयाम, अम्लरस प्रिय, शीतल गध, कछमाँ का आसन कछुओं पर बैठा हुआ प्रिय दृष्टि वाला, सर्वाभरण भूषित, स्तभन, मोहनकारी, इन्द्रादि देवता से पूजित । ऐसा 'ष' कार का लक्षण है।
स -पुल्लिग शुक्ल वर्ण, चार भुजा, वज्र, शख, चक्र गदा का धारी, एक लाख योजन विस्तीर्ण. मधुर स्वर, मौक्तिक वज्र, वैडुर्य आदि के भूषण से सहित, सुगन्धित माल्यानुलेपन से सहित, सित वस्त्रप्रिय, सर्व कर्म का कर्ता, सर्व मन्त्र गण से पूजित महा मुकुटधारी, वश्याकर्षण का कर्ता, प्रसन्न दृष्टि, हंसवाहन, कुबेर देव से पूजित। ऐसा 'स' कार का लक्षण है।
ह -नपुसक सर्व व्यापी, सितवर्ण सितगध प्रिय, सित माल्यानुलेपन से सहित, सिताबर प्रिय, सर्व कर्म का कर्ता, सर्व मत्रो का अग्रणी, सर्व देवता से पूजित, महाद्य ति से सहित, अचित्य गति, मन स्थायी, विजय को प्राप्त, चितित मनोरथ विकल्प से रहित, सर्व देव महा कृष्टित्व अतीत अनागत वतमान त्रैलोक्य काल दर्शक, सर्वाश्रयादि देवता से पूजित, महाद्य तिमान, ऐसा 'ह' कार का लक्षण है।
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लघुविद्यानुवाद
क्ष -पुल्लिग, पीले वर्ण का जम्बुद्वीप ध्याय ध्येय, सख्यात द्वीप समुद्र मे व्यापक एक मुख, मरुत गाभीर्य, आठ भुजा वाला, वज्र पाश, मूशल, भुशडि भिडि, पाल, गदा, शख, चक्र आयुध घारी, हाथी का वाहन वाला, चतुरस्त्रासन, सर्वाभरण भूपित, जटा शुकुटधारी सर्व लोक मे पूजित, स्तंभन कर्म का कर्ता, सुगन्ध माल्य प्रिय, सर्व रक्षाकर, सर्वप्रिय काल ज्ञान मे माहेश्वर, सकल मन्त्र प्रिय, रुद्राग्नि देवता से पूजित । ऐसा 'क्ष' कार का लक्षण हे ।
स्वरों और व्यंजनो की शक्ति
मन्त्र पाठ:
"णमो अरिहताण णमो सिद्धाण, णमो पायरियारण ।
णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्व-साहूण ।।" विश्लेषण :
ण् +अ+म् + प्रो+अ+र+इ+ह, +अ+म् + त्+आ+ ण् +अ+म् । ण् +अ+म् + प्रो +स+ + + +आ+ण् +अ+म् + । ण् +अ+म् + ओ+आ+य्+ + + +य्+या + + +म् । ग+अ+म् + प्रो+उ+व+अ+ + +आ+य्+आ+ + +म् । ण् +अ+म् -Fओ+ल+ओ+ए+स्+अ+व+व+अ+स्+या+ह +ऊ+ +अ+म् ।
- इस विश्लेषण मे से स्वरो को पृथक किया तो
अ+यो+अ+इ+अ+या+अ+अ+यो+इ+मा+अ+अ+ओ+आ+अ+इ+ प्रा+अ+ + प्रो+उ+अ+या+मा+अ+अ+यो+यो+ए+अ+
औ + आ+ऊ+अ।
पूनरुक्त स्वरो को निकाल देने के पश्चात रेखाकित स्वरो को ग्रहण किया तो
अ आ इ ई उ ऊ [२] ऋ ऋ [ल्] ल ल ए ऐ ओ औ अअ । व्यञ्जन:
ण्+म्+र+ह. +त्+ण्+ण्+म्+स्+ + + + ण् - म्+य्+र+य्+ण्+ण, +म्+व+ + +य्+ण्+ण्+म् + ल्+ + + + +ह + ण् ।
ई
पुनरुक्त व्यजनो को निकालने के पश्चात्ण् + म् + + + +स्+य्+ + +व+ + + है । ध्वनि सिद्धान्त के आधार पर वर्गाक्षर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत घ्=कवर्ग, झ्च वर्ग, ण् =टवर्ग, ध्=लवर्ग, म्=पवर्ग, य, र, ल, व, स = श, प,
स, ह!
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लघुविद्यानुवाद
इस महामन्त्र की समस्त मातृका ध्वनियाँ निम्न प्रकार हुई । ऋ लृ लृ ए ऐ ओ ओ अ अ' क् ख् ग् घ् ड् च् छ् ज् झ् ञ् ट् ठ् ड् ढ् ण् त् थ् द् र् ल् व् श् ष् स् ह ।
३३
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ध् न् प् फ् ब् भ् म् य्
उपर्युक्त ध्वनियाँ ही मातृका कहलाती है । जयसेन प्रतिष्ठा पाठ मे बतलाया गया है
प्रकारादिक्षकारान्ता वर्णा प्रोक्तास्तु मातृकाः ।
सृष्टिन्यास स्थितिन्यास - संहृतिन्यासत स्त्रिधाः ॥ ३७६ ॥
अर्थात् — अकार से लेकर क्षकार [ क +ष+ अ ] पर्यन्त मातृका वर्ण कहलाते है ।
जृम्भक ।
इनका तीन प्रकार का क्रम है - सृष्टि क्रम, स्थिति क्रम और सहार क्रम ।
णमोकार मन्त्र मे मातृका ध्वनियो का तीनो प्रकार का क्रम सन्निविष्ट है । इसी कारण यह मन्त्र आत्म कल्याण के साथ लौकिक प्रभ्युदयो को देने वाला है । प्रष्ट कर्मों के विनाश करने की भूमिका इसी मन्त्र के द्वारा उत्पन्न की जा सकती है । सहार क्रम कर्म विनाश को प्रकट करता । तथा सृष्टि क्रम और स्थिति क्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अभ्युदय की प्राप्ति मे भी सहायक है । इस मन्त्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमे मातृका ध्वनियो के तीन प्रकार के मन्त्रो की उत्पत्ति हुई है । बोजाक्षरो की निष्पत्ति के सम्बन्ध मे बताया गया है 'हलो बीजानि चोक्तानि, स्वरा. शक्तय ईरिता ।। ३७७ ।। अर्थात् ककार से लेकर हकार पर्यन्त व्यजन बीजसज्ञक है और अकारादि स्वर शक्तिरूह है । मन्त्र बीजो की निष्पत्ति बीज और शक्ति के सयोग से होती है ।
11
सारस्वत बीज, माया भुवनेश्वरी बीज, पृथ्वि बीज, अग्नि बीज, प्ररणव बीज, मारुत बीज, जल बीज, प्रकाश बीज आदि की उत्पत्ति उक्त हल् और प्रचो के सयोग से हुई है । यो तो बीजाक्षरो का अर्थ बीज कोश एव बीज व्याकरण द्वारा ही ज्ञात किया जाता है, परन्तु यहा पर सामान्य जानकारी के लिए ध्वनियों की शक्ति पर प्रकाश डालना आवश्यक है ।
श्र - श्रव्यय, व्यापक, आत्मा के एकत्व का सूचक शुद्ध-बुद्ध, ज्ञान रूप शक्ति द्योतक प्रणव बीज का जनक ।
श्रा - अव्यय शक्ति और बुद्धि का परिचायक, सारस्वत बीज का जनक, माया बीज के साथ कीर्ति धन और आशा का पूरक ।
इ - गत्यर्थक, लक्ष्मी प्राप्ति का साधक, कोमल कार्य साधक, कठोर कर्मो का बाधक व ह्री बीज का जनक |
ई - अमृत बीज का मूल कार्य साधक, अल्पशक्ति द्योतक, ज्ञान वर्धक, स्तम्भक, मोहक,
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३४
लघुविद्यानुवाद
उ-उच्चाटन बीजो का मूल, शक्तिशाली, श्वास, नलिका द्वारा जोर का धक्का देने पर मारक।
ऊ-उच्चाटक और मोहक बीजो का मूल, विशेष शक्ति परिचायक, कार्य ध्वस के लिए शक्ति दायक।
ऋ-ऋद्धि बीज, सिद्धि दायक, शुभ कार्य सम्बन्धी बीजो का मूल, कार्य सिद्धि का सूचक ।
ल-सत्य का सचारक, वाणी का ध्वसक, लक्ष्मी बीज की उत्पत्ति का कारण, यात्म सिद्धि मे कारण।
ए-निश्चल पूर्ण, गति सूचक, अरिष्ट निवारण वीजो का सूचक, पोपक ओर सवर्द्धक।
ऐ-उदात्त, उच्च स्वर का प्रयोग करने पर वशीकरण बीजो का जनक पोषक और सवर्धक, जल बीज की उत्पत्ति का कारण, सिद्धि प्रद कार्यों का उत्पादक बीज, शासन देवताओ का आव्हानन करने में सहायक, क्लिष्ट और कठोर कार्यो के लिए प्रयुक्त बीजो का मूल, ऋण विद्युत का उत्पादक।
-निम्न स्वर की अवस्था, मे माया बीज का उत्पादक, लक्ष्मो और श्री का पोषक उदात्त, उच्च स्वर की अवस्था मे कठोर कार्यो का उत्पादक वीज, कार्य साधक निर्जरा का हेतु, रमणीय पदार्थो के प्राप्ति के लिए आयुक्त होने वाले बीजो मे अग्रणो, अनुस्वरान्त बीजो का सहयोगी।
औ-मारण और उच्चारण सम्बन्धी वीजो मे प्रधान, शीघ्र कार्य साधक निरपेक्षी अनेक बीजो का मूल।
अ-स्वतन्त्र शक्ति रहित कर्माभाव के लिए प्रयुक्त ध्यान मन्त्रो मे प्रमुख शून्य या अभाव का सूचक, आकाश बीजो का जनक, अनेक मृदूल शान्तियो का उद्घाटक, लक्ष्मी बोजो का मूल।
अ-शान्ति बीजो मे प्रधान निरपेक्षा अवस्था में कार्य प्रसाधक सहयोगी का अपेक्षक ।
क-शान्ति बीज, प्रभावशाली सूखोत्पादक, सम्मान प्राप्ति की कामना का पूरक, काम बीज का जनक।
ख-याकाश वीज, अभाव कार्यो की सिद्धि के लिए कल्पवृक्ष, उच्चाटन बीजो का जनक।
ग-पृथक करने वाले कार्यों का साधक, प्रणव और माया बोज के साथ कार्य सहायक।
घ-स्तम्भक बीज, स्तम्भन कार्यों का साधक, विध्न विघातक मारण और मोहक बीजो का जनक।
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लघुविद्यानुवाद
ड-शत्रु का विध्वसक, स्वर मातृका बीजो के सहयोगानुसार फलोत्पादक विध्वसक बीज जनक।
च-अगहीन खण्ड शक्ति द्योतक का स्वर मातृका बीजो के अनुसार फलोत्पादक-उच्चाटन बीज का जनक ।
छ-छाया सूचक, माया बीज का सहयोगी बन्धनकारक, आप बोज का जनक, शक्ति का विध्वसक, पर मृदु कार्यो का साधक ।
ज-नूतन कार्यों का साधक, आधि व्याधि विनाशक शक्ति का सचारक, श्री बीजो का जनक।
ज-स्तम्भक और मोहक बीजो का जनक. कार्य साधक, साधना का अवरोध माया वीज का जनक।
ट-वह्नि बीज, आग्नेय कार्यो का प्रसारक और निस्तारक, अग्नि तत्व युक्त विध्वसक कार्यो का साधक।
ठ-अशुभ सूचक बीजो का जनक, क्लिष्ट और कठोर कार्यों का साधक, मृदुल कार्यो का विनाशक, रोदन कर्ता, अशान्ति का जनक साक्षेप होने पर द्विगुरिणत शक्ति का विनाशक, वह्नि बीज।
ड-शासन देवताओ की शक्ति का प्रस्फोटक, निकृष्ट कार्यो की सिद्धि के लिए अमोघ सयोग से पञ्चतत्वरूप बीजो का जनक, निकृष्ट आचार-विचार द्वारा साफल्योत्पादक अचेतन क्रिया साधक।
ढ-निश्चल माया बीज का जनक, मारण बीजो मे प्रधान, शान्ति का विरोधी, शान्ति वर्धक।
ण-शान्ति सूचक, प्राकाश बीजो मे प्रधान, ध्वसक बीजो का जनक, शक्ति का स्फोटक।
त-आकर्षक बीज, शक्ति का आविष्कारक, कार्य साधक, सारस्वत बीजो के साथ सर्व सिद्धिदायक।
थ-मगल साधक, लक्ष्मी बीजो का सहयोगी, स्वर मातृकाप्रो के साथ मिलने पर मोहक ।
द-कर्म नाश के लिए प्रधान बीज, आत्मशक्ति का प्रस्फोटक, वशीकरण बीजो का जनक।
ध-श्री और क्ली बीजो का सहायक, सहयोगी के समान फलदाता, माया बीजों का जनक।
न- आत्म सिद्धि का सूचक-जल तत्व का स्रष्टा, मुदुतर कार्यों का साधक, हितैषी आत्म नियन्ता।
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लघुविद्यानुवाद
प-परमात्मा का दर्शक जलतत्व के प्राधान्य से युक्त समस्त कार्यो की सिद्धि के लिए ग्राह्य ।
फ-वायु और जल तत्व युक्त महत्वपूर्ण कार्यो की सिद्धि के लिए ग्राह्य स्वर और रेफ युक्त होने पर विध्वसक, विघ्नो का विघातक, 'फट्' की ध्वनि से युक्त होने पर उच्वाटक, कठोर काय साधक।
ब–अनुस्वार युक्त होने पर समस्त प्रकार के विघ्नो का विघातक और निरोधक, सिद्धि सूचक ।
भ-साधक विशेषत मारण ओर उच्चाटन के लिए उपयोगी, सात्विक कार्यों का निरोधक, परिणत कार्यो का तत्काल साधक, साधना मे नाना प्रकार से विघ्नोत्पादक, कल्याण से दर कट मधु वर्णो से मिश्रित होने पर अनेक प्रकार के कार्यो का साधक, लक्ष्मी बीजो का विरोधी।
म–सिद्धि दायक, लौकिक और परलौकिक सिद्धियो का प्रदाता सन्तान की प्राप्ति मे सहायक।
य-शान्ति का साधक, सात्विक साधना की सिद्धि का कारण, महत्वपूर्ण कार्यो की सिद्धि के लिए उपयोगी, मित्र प्राप्ति या किसी अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी ध्यान का साधक।
र--अग्नि बीज, कार्य साधक समस्त प्रधान बीजो का जनक, शक्ति का प्रस्फोटक और वर्द्धक।
___ल-लक्ष्मी प्राप्ति मे सहयोग श्री बोजो का निकटत, सहयोगी और सगोत्री कल्याण सूचक ।
व-सिद्धि दायक आकर्षक ह, र और अनुस्वार के सहयोग से चमत्कारो का उत्पादक, सारस्वत बीज, भूत-पिशाच-शाकिनी बाधा का विनाशक, रोगहर्ता लौकिक कामनायो को पूर्ति के लिए अनुस्वार मातृका सहयोगापेक्षी, मगल साधक, विपत्तिपो का रोधक और स्तम्भक।
श –निरर्थक सामान्य बीजों का जनक या हेतु उपेक्षा धर्म युक्त शान्ति का पोपक ।
ष-आव्हान बीजो का जनक, सिद्धि दायक, अग्नि स्तम्भक, जल स्तम्भक, सापेक्ष ध्वनि ग्राहक, सहयोग द्वारा विलक्षण कार्य साधक, आत्मोन्नति से शून्य, रुद्र बीज का जनक, भयकर और बीभत्स कार्य के लिए प्रयुक्त होने पर साधक। ..
स-सर्व समीहित साधक, सभी प्रकार के बीजो मे प्रयोग योग्य शान्ति के लिए परम आवश्यक, पौष्टिक कार्यो के लिए परम उपयोगो, ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय आदि कर्मों का विनाशक, क्ली बीज का सहयोगी, काम बीज का उत्पादक आत्म सूचक और दर्शक ।
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लघुविद्यानुवाद
ह-शान्ति पौष्टिक और माङ्गलिक कार्यों का उत्पादक, साधन के लिए परमोपयोगी स्वतन्त्र और सहयोगापेक्षो, लक्ष्मो की उत्पत्ति मे साधक, सन्तान प्राप्ति के लिए अनुस्वार यूक्त होने पर जाप मे सहायक, आकाश तत्व युक्त कर्म नाशक सभा प्रकार के बीजो का जनक ।
मन्त्र निर्माण के लिये निम्नांकित बीजाक्षरों
की आवश्यकता ॐ ह्रा ह्री ह.ह्र इवी क्ष्वी हा ह स क्ली ब्लू द्रा द्री द्रू द्र क्ष्वी श्री क्ली अर्ह अ फट् । वपट् । सवौषट् । घे घे । ठ. ठ. ख झल्व्यू व व य ऋ त थ प आदि बीजाक्षर होते है।
बीजाक्षरों की उत्पत्ति
बीजाक्षरो की उप्पत्ति णमोकार मन्त्र से हुई है। कारण सर्व मातृका ध्वनि इसी मत्र से उदभूत है । इन सब मे प्रधान "ॐ" बीज है। यह आत्म वाचक है, मूल भूत है। इसका तेजो बोज काम बीज और भाव बोज मानते है। प्रणव वाचक पच परमेष्ठी वाचक होने से 'ॐ" समस्त मन्त्रो का सार तत्त्व है। ।
श्री............ ....कीत्ति वाचक ही .... ..."कल्याण "
प्रौ प्री....... स्तम्भन वाचक श्री. -........ शान्ति
क्ली ....... - लक्ष्मी प्राप्ति वाचक है .. ... . मगल ।
सर्व तीर्थकरो के नाम " मगलवाचक ॐ .....-" सूख "
क्ष्वी .. -योग वाचक ह -... ... .विद्वेष रोष वाचक यक्ष-यक्षणियो के नाम ... कीत्ति और प्रोति वाचक।
मन्त्र शास्त्र के वीजो का विवेचन करने पर प्राचार्य ने उनके रूपो का निरूपण करते हये बताया है कि
अ आ ऋह श य क ख ग घ ड यह वर्ण वायु सज्ञक है। इ ई ऋ च छ ज झ ञक्ष र थ यह वर्ण अग्नि तत्व सजक है। ल व ल उ ऊ त ट द डण यह वर्ण पृथ्वी तत्त्र सनक है। ए ऐ ल थ ध ठढ ध न स यह वर्ण जल तत्व सज्ञक है। ओ औ अअ प फ ब भ म यह वरण आकाश तत्व सज्ञक है।
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लघुविद्यानुवाद
वर्ण के लिंग
क्ष-इन
अउ ऊ ऐ ओ औ अ, क ख ग घ, ट ठ ड ढ, त थ, प फ ब, ज झ, य स प ल वर्णो का लिग पुल्लिग ( सज्ञक ) है।
श्रा च छ ल व " ..."इन वर्णो का लिग स्त्रीलिग है। इ ऋ ऋ. ल ल ए अःध भ म र ह द ज ड न-इनका नपुसक लिग है।
ध्वनि (उच्चार) के वर्ण, मन्त्र शास्त्रानुसार स्वर और ऊष्म ध्वनि
ब्राह्मण वर्ण सज्ञक अन्तस्थ और क वर्ग ध्वनि
क्षत्रिय वर्ण सज्ञक च वर्ग और प वर्ग ध्वनि
वैश्य वर्ण सज्ञक ट वर्ग, त वर्ग ध्वनि
शूद्र वर्ण सज्ञक वश्य आकर्षण और उच्चाटन मे हूं का प्रयोग मारण मे
फट का प्रयोग स्तम्भन, विद्वेषण और मोहन मे
नम का प्रयोग शान्ति और पौष्टिक मे
वषट् का प्रयोग मन्त्र के आखिर मे 'स्वाहा' शब्द रहता है। यह शब्द पाप नाशक, मङ्गलकारक तथा आत्मा की प्रान्तरिक शान्ति दढ करने वाला है। मन्त्र को शक्तिशाली करने वाले अन्तिम ध्वनि मे। स्वाहा-स्त्रीलिग
उन वर्णो के इस प्रकार लिग वषट्, फट, स्वाहा-पुल्लिग
माने गये है। नमः-नपुसकलिग
बीजाक्षरों का वर्णन ॐ, प्रणव, ध्रुव ब्रह्मबीज, तेजोबीज, वा ॐ तेजोवीज, ऐ-वाग्भव वीज,
ह-गगन वीज
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लघुविद्यानुवाद
३६
ल-कामवीज,
ह-ज्ञानवीज, झी- शक्तिबीज,
य-विसर्जनवीज उच्चारण, ह स. -विपापहारबोज,
प-वायुवीज, क्षी-पृथ्वीबीज,
जु-विद्वेषणवीज, स्वा - वायुवीज,
झ्वी-अमृतबीज, हा-आकाशबीज,
क्ष्वी-भोगबीज, ह्रॉ-मायाबीज,
ह्रौ-ऋद्धि सिद्धिवीज, झो अकुशबीज,
ह्रॉ-सर्व शान्तिवीजम्, ज-पाशबीज,
ह्रीं-सर्व शान्तिबीजम्, फट-विसर्जनबीजम्, चालनबीजम्, ह - सर्व शान्तिबीजम्, वौपट पूज-ग्रहण-आकर्षणबीजम् ह्रौ - सर्व, शान्तिवीजम् सवौषट् -आमन्त्रणबोजम्
ह्र - सर्व शान्तिबीजम्, ब्ल-द्रावरण,
हे दण्ड बीजम्. क्लू ब्लू-आकर्षण,
ख-स्वादनवीजम् ग्लो-स्तभन,
झो महाशक्तिबीजम्, ह्री-महाशक्ति,
ह्रव्यू- पिंडवीजम्, वपट-आह्वाननम्,
है-मगल सुखवीजम्, र-जलनम्
श्री-कीर्तिबीजम्, वा कल्याणबीजम्, श्वी -विषापहाग्बीजम्,
क्ली-धनबीजम्, कुवेरवीजम्, उ-चन्द्रबीजम्,
तीर्थङ्कर नामाक्षर-शाति, मागल्य कल्याण व घे घे-ग्रहणवाजम्
विघ्नविनाशकवोजम वै विद्यौ-विद्वेषणबीजम्,
अ-ग्राकाश या चान्यवाजम, ट्रा ट्री क्ली ब्लू स-रोषवीजम्
आ-सुखवीजम्, तेजोबीजम्, वा पच वर्ण बीजम्, स्वाहा-शातिक मोहक वा स्वधा-पौष्टिक मोहक वा
ई-गुणबीजम्, तेजोवीजम् नम-शाधनबीजम
वा उ-वायवीजम क्षा क्षी क्षे भै क्षो क्षौ क्ष क्ष.-रक्षा. सर्व कत्याग, अथवा मर्व गुद्धि वीज है।
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लघुविद्यानुवाद
त-थ-द-कालुष्यनाशक, मङ्गलवर्धक, सुखकारक मङ्गल व ..... 'द्रवणबीजम् । य .... रक्षाबीजम् । म .. ... ... मङ्गलबीजम् ।
... . • शक्तिबीजम् । स -- . . ... शोधनबीजम् ।
मन्त्र सिद्धि के लिये जैन शास्त्रो मे ४ प्रकार के आसन कहे गये हैं
(१) श्मशानपीठ। (२) शवपीठ (३) अरण्यपीठ। (४) श्यामापीठ।
ग्ली
,
णमोकार मन्त्र मे से ही बीजाक्षरो की उत्पत्ति हुई है। जैसे(ॐ) समस्त णमोकार मन्त्र से (ह्री) की उत्पत्ति णमोकार मन्त्र के प्रथम चरण से
श्री ,, , , , द्वितीय चरण से क्षी क्ष्वी , ., , , प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरण से
प्रथम पाद मे से प्रतिपादित द्रा द्री,
, , चतुर्थ और पचम चरण से
, , प्रथम चरण से है , , , , बाज हत
, बीज हे तीर्थकरो के यक्षिणी द्वारा अत्यन्त
शक्तिशालो और सकल मन्त्रो में व्याप्त है। -ह्रॉ ह्री-ह-हो-ह्रः ॥ ॥ प्रथम धरणी से उत्पन्न हुए है। . क्षा क्षी क्षु क्षे झै क्षो क्षौ क्ष. , ,, प्रथम, द्वितीय और तृतीय चरण से उत्पन्न
हुये है।
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लघुविद्यानुवाद
४१
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बीजाक्षरमन्त्र (१) ॐ --'प्रणव' नाम से हो प्रसिद्ध है। अरिहन्त, अशरीर (सिद्ध), प्राचार्य उपाध्याय,
मुनि (साधु) गनके पहले अक्षर लेकर सन्ध्यक्षर ॐ बना है । यह परमेष्ठीवाचक है । ( २ ) ह्र –यह मन्त्रराज, मन्त्राधिप, इस नाम से प्रसिद्ध है। सब तत्वो का नायक
बीजाक्षर तत्व है। इसे कोई बुद्धि तत्व, कोई हरि, कोई ब्रह्म, महेश्वर या शिव तत्व या कोई साब, सर्वव्यापी या ईशान तत्व इत्यादि अनेक नामो से पुकारते है। इसे
'व्योम बीज' भी कहते है। ( ३ ) ह्रीं -मन्त्र का नाम 'मायावणं' मायाबीज और शक्ति बोज भी कहते है। ( ४ ) इवी -मन्त्र का नाम सकल सिद्ध विद्या या महा विद्या है, इसे 'अमृत बीज भी
कहते है। (५) श्री -मन्त्र का नाम छिन्न मस्तक महाबीज है । इसे 'लक्ष्मी बीज' भी कहते है। ( ६ ) क्ली - मन्त्र का नाम कामबीज है। (७) ऐं -मन्त्र का नाम 'काम बीज' और 'विद्या बीज' ही है। (८) 'अ'. (6) वी-मन्त्र का नाम क्षिति बीज है। (१०) स्वा -मन्त्र का नाम वायु बीज है। (११) 'हां'
(१३) 'हाँ' (१४) 'ह्रः' (१५) 'क्ल'
(१६) "कौं' (१७) 'श्री' (१८) 'भू' (१६) 'क्षा' (२०) 'क्षी (२१) 'क्ष'
(२२) 'क्ष' युग्माक्षरी (१) अर्ह (२) सिद्ध (३) ॐ ह्री (४) श्रा, सा
त्रयाक्षरी (१) अहत (२) ॐ अर्ह (३) ॐ सिद्ध
चतराक्षरी (१) अरहत या अरिहत (२) ॐ सिद्ध भ्यः (३) असिसाहु
पंचाक्षरी (१) असि आउसा (२) ह्रा ह्री ह. ह्रौ ह्रः (३) अर्हत सिद्ध
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लघुविद्यानुवाद
(४) णमो सिद्धाण (५) नमो सिद्ध भ्य . (६) नमो ग्रहते (७) नमो अहंद्य (८) ॐ आचार्येभ्य
षडक्षरी (१) अरहत सिद्ध (२) नमो अरहते
(३) ॐ ह्रा ही ह हौ ह्र (४) ॐ रणमो अर्हते (५) ॐ नमो अर्हद्भ्य ६) ह्री ॐ ॐ ह्री ह स ७) ॐ नम सिद्ध भ्य (८) अरहत सिद्धा
सप्ताक्षरी (१) णमो अरहताण
(२) ॐ ह्री श्री अर्ह नम (३) णमो आयरियारण
(४) णमो उवज्झायाण (५) नमो उपाध्यायेभ्य
(६) नम सर्व सिद्धेभ्य (७) ॐ श्री जिनाय नम
अष्टाक्षरी (१) ॐ णमो अरहताणं
(२) ॐ गामो पाइरियारण (३) ॐ नमो उपाध्यायेभ्य.
(४) ॐ रणमो उवज्झायारण
नवाक्षरी
(१) गमो लोए सव्वसाहूण
(२) अरहत सिद्धभ्यो नम. (३) अर्ह सिद्ध साधुभ्यो नम
दशाक्षरी (१) ॐ णमो लोए सव्वसाहूण
(२) ॐ अरहत सिद्ध भ्यो नम
एकादशाक्षरी (१) ॐ ह्रा ह्री हू, ह्रो ह्र असिग्राउसा (२) ॐ श्री अरहत सिद्धेभ्यो नम .
द्वादशाक्षरी (१) ह्रा ही ह ह्रौ ह्र असि पाउसा नम (२) ह्रा ह्री ह ह्रौ ह्र असि आउसा स्वाहा (३) ॐ अर्ह सिद्ध सबागी केवलि स्वाहा
त्रयोदशाक्षरी (१) ॐ ह्रा ही है. हो ह असि आ उ सा नम:
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लघुविद्यानुवाद
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(२) ॐ ह्रा ह्री ह्र, ह्रौ ह्र असि आ उ सा स्वाहा , (३) ॐ अर्ह सिद्ध केवलि सयोगी स्वाहा । १४) ॐ अर्ह सिद्ध सयोगी केवलि स्वाहा
चतुर्दशाक्षरी: (१) ॐ ह्री ह नमो नमोऽर्हताण ही नम. . (२) श्रीमद् वृषभादि वर्धमाना तेभ्यो नम
पचदशाक्षरी (१) ॐ श्रीमद् वृषभादि वर्धमानान्तेभ्यो नमः ।
षोडशाक्षरी (१) अर्ह सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यो नम ।
द्वाविंशत्यक्षरी (१) ॐ ह्रा ह्री हू, ह्रौ ह्रौ ह्रः अर्हसिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यो नमः ।
त्रयोविंशत्यक्षरी ॐ ह्रा ही हू, ह्रौ ह्र' असि-प्रा-उसा अर्ह सर्व सर्व शान्ति कुरु कुरु स्वाहा
पंचविंशत्यक्षरी ॐ जोग्गे मग्गे तच्चे भूदे भव्वे भविस्से अक्खे पक्खे जिण परिस्से स्वाहा
एकत्रिंशत्यक्षरी ॐ सम्यग्दर्शनाय नम सम्यक्ज्ञानाय नम सम्यकचारित्राय नमः सम्यक् तपसे नम ।
सत्ताईस अक्षरी ऋषि मंडल ॐ ह्रा ह्री ह्र, ह ह ह ह्रौ ह्र
बीजाक्षर । असि पाउसा सम्यकदर्शन ज्ञान चारित्रेभ्यो ह्री नम १८शुद्धाक्षर ।
णमोकार मंत्र (१) पच त्रिशत्यक्षरी ३५ श्री णमोकार मन्त्र णमो अरिहताण, सो सिद्धाण णमो आयरियारण, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ।। १ ।।
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लघुविद्यानुवाद
एक सप्तत्यक्षरी ७१ (१) ॐ अर्हन्मुख कमलवासिनि पापात्मक्षयकरि श्रुत ज्ञान ज्वाला सहस्र-प्रज्वलिते सरस्वति मम पाप हन हन दह दह क्षा क्षी हूं क्षौ क्ष शीखर धवले अमृत सम्भवे व व ह ह स्वाहा ।
षट सप्तत्यक्षरी ७६ १ ॐ नमो अर्हते केवलिने परमयोगिने अनत शुद्धी परिणाम । विस्फुरु दुरु शुक्लध्यानाग्नि निर्दग्ध कर्म बोजाय प्राप्तानत-चतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मगल वरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा।
२४ शत सप्त विंशत्यक्षरी १२७ चत्तारि मगल, अरहता मगल, सिद्धा मगल, साहू मगल, केवली पण्णत्तो धम्मो मगल ।
चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि शरणं पव्वज्जामि, अरहन्ते शरणं पव्वज्जामि, सिद्ध शरणं पव्वज्जामि, साहू शरणं पव्वज्जामि,
केवलि पण्णत्तं धम्मं शरणं पव्वज्जामि ।
इस प्रकार मत्र है जिसके यथाविध जपने से इह परलोक सुख की प्राप्ति प्रात्म सिद्धि कार्य सिद्धि के लिए उपयुक्त है । केवलि विद्या
ॐ ह्री अरिहतारण ही नम ।। व ॐ णमो अरिहताण श्रीमद्वषभादि वर्धमानान्तेभ्यो नम ।।
या श्रीमदवषभादि वर्धमानन्तेभ्यो नम, ।। विविधपिशाची विद्या .
ॐ णमो अरिहताण ॐ ॥इति कर्ण पिशाचो।। ॐ णमो आयरियाण ॥इति शकुन पिशाची॥ ॐ णमो सिद्धाण ॥ इति सर्व कर्म पिशाची।। ॐ णमो उवझायाण ॥स्वप्न पिशाची॥ ॐ गणमो सव्व साहूण ॥इति दिव्य पिशाची॥ फलम् -इति भेदोऽङ्ग पठनोद्युक्त मानसे (सश्च) मुने. ।
सिद्धान्त विषयी ज्ञान जायते गणितादिषु ।। वज्र पञ्जरम् -ॐ ह्रदि। ह्री मुखे । 'रणमो' नाभौ।।
'अरि' वामे । 'हता' वामे । दक्षिणे ण ताह शिरासि। ॐदक्षिणे बाही। हो वामे बाही। गमो कवचम् । सिद्धाण, अस्त्राय फट् स्वाहा ।।
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लघुविद्यानुवाद
फलम् :-विपरीत कार्येऽङ्गन्यासः शोभन कार्ये वज्र पञ्जर स्मरेत तेन रक्षा।
अपराजित विद्या :-ॐ णमो अरिहताण, णमो सिद्धाण, णमो पायरियाण, णमो उवज्झायाण णमो लोए सव्यसाहूण ह्री फट् स्वाहा ।
फलम् :-इत्योषोऽनादि सिद्धोऽयं मन्त्र --स्याच्चितचित्रकृत इत्येषा पचाङ्गी विद्याध्याता कर्म क्षय कुरुते ।।
परमेष्ठी बीज मत्र -ॐ तत्कथमिति चेत् अरिहता, असरीरा पायरिया तह उवझाया मुरिगणा पढमक्ख ( र ) णिप्पण्णो (पणो ) ॐ कारोय पञ्च परमेष्ठी ।। अकसेदी
इति जनेन्द्र सत्रण अ-अ इत्यस्य दीर्घा अा पूनर्सपि दीर्घउ तस्य पररुप गण कृते औमिति जाने युनरपि मोदर्व चन्द्र [ॐ ] इति सुत्रेणानुसारेणाऽनुम्वारे सति सिद्ध पञ्चाङ्ग मन्त्र निष्पद्यते ।।
प्रथम रक्षा मन्त्र :-ॐ रणमो अरहताण शिखायाम् ।
यह पढकर सारी चोटी के ऊपर दाहिना हाथ फेरे । ॐ रणमो सिद्धाण-मुखावरणे।
यह पडकर सारे मुख पर हाथ फेरे । ॐ णमो पायरियाण-अङ्ग रक्षा ।
यह पढकर सारे अग पर हाथ फेरे । ॐ गणमो उवज्झायाण प्रायुध।
यह पढकर सामने हाथ से जैसे कोई किसी को तलवार दिखावे, ऐसे दिखावे। ॐ णमो लोए सव्वसाहूण-मौर्वी ।
यह पढकर अपने नीचे जमोन पर हाथ लगाकर और जरा हिलाकर जो श्रासन बिछा हुआ है, इसके इधर-उधर यह ख्याल करे कि मै वज्र शिला पर बेठा हूँ, नीचे से बाधा नही हो सकती।
सव्वपावप्पणसागो-वज्रमय प्राकाराश्चतुर्दिक्षु
__ यह पढकर अपने चारो तरफ अगुली से कुण्डल सा खींचे यह ख्याल कर ले कि यह मेरे चारो और वज्रमय कोट है।।
मगलाण च सव्वेसि-शिखादि सर्वत प्रखातिका । यह पढकर यह ख्याल करे कि कोट के परे खाई है। पढमहवई मगल प्राकारोपरि वज्रमय टकारिणकम । इति महा रक्षा सर्वोपद्रवविद्राविणी।
यह पढकर वह जो चारो तरफ कुण्डली खीचकर वज्र मय काट रचा है उसके ऊपर चारो तरफ चटकी बजावे। इसका मतलब है कि जो उपद्रव करने वाले है वे सब चले जावे। मैं वजमयी कोट के अन्दर व वज्रशिला पर बैठा हैं। इस रक्षा मन्त्र के जपने से जाप
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लघुविद्यानुवाद
करते हुए के ध्यान मे साप, शेर, बिच्छू, व्यन्तर, देव, देवी श्रादि कोई भी, विघ्न नही कर सकते। मन्त्र सिद्ध करने के समय जो देव-देवी डरावना रूप धारण कर आवेगा तो भी उस वज्रमयी कोट के अन्दर नही पा सकेगा । अगर शेर वगैरह पास से गुजरेगा तो भी आप तो उसे देख सकेगे किन्तु वह जप करने वाले को मायामय वज्र कोट की ओर होने से नही देख सकेगा, जपने वाले को अगर कोई तीर-तलवार वगेरह से घात करेगा तो उस स्थान का रक्षक देव उसको वही कील देगा। वह इस रक्षा मन्त्र को जपने वाले पर घात नहीं कर सकेगा। अनेक मुनि श्रावको के घातक इस रक्षामन्त्र के स्मरण से कोले है और उनकी रक्षा हुई है।
___ नोट -जो बगैर रक्षा मन्त्र से मन्त्र सिद्ध करने बैठते है वे या तो व्यन्तरो आदि की विक्रिया से डर कर मन्त्र जपना छोड देते है या पागल हो जाते है। इसलिए मन्त्र साधना करने से पहले रक्षा मन्त्र जप लेना चाहिए । इस मन्त्र से हाथ फेरने की क्रिया सिर्फ गहस्थ के वास्ते है । मुनि के तो मन से ही सकल्प होता है।
द्वितीय रक्षामत्र ॐ रगमो अरहताण ह्रा ह्रदय रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॐ णमो सिद्धाण ह्री शिरो रक्ष रक्ष हु फट् स्वाहा ॐ णमो पायरियाण हू शिखा रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॐ णमो उवज्भायाण ह एहि एहि भगवति वज्रकवच वज़िरिण रक्ष रक्ष हुँ फट् स्वाहा.
ॐ णमो लोए सव्वसाहूण ह्र क्षिप्र साधय साधय वजहस्ते शूलिनि, दुष्टान् रक्ष रक्ष हु फट् स्वाहा।
जब कभी अचानक कही अपने ऊपर उपद्रव आ जाए, खाते पीते सफर मे जाते, सात बैठते तो फौरन इस मन्त्र का स्मरण करे, यह मन्त्र बार वार बढना शुरू करे'. सब उपद्रव नष्ट है। जावे, उपसर्ग दूर हो, खतरे से जान माल बचे।
तृतीय रक्षामंत्र ॐ रणमो अरहताण, णमो सिद्धाण, णमो पायरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लाए सव्व साहण । ऐसो पच णमोकारो सव्वपावप्पणासणो। मगलाण च सव्वेसिं पढम हवई म ॐ हूं फट् स्वाहा।
चतुर्थ रक्षामत्र ॐ णमो अरहताण नाभौ-यह पद नाभि मे धारिए ॐ णमो सिद्धाण ह्रदि-यह पद हृदय मे धारिए ॐ णमो पायरियाण कण्ठे-यह पद कण्ठ मे धारिए
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लघुविद्यानुवाद
ॐ णमो उवज्झायाण मुखे-यह पद मुख मे धारिए ॐ रणमो लोए सव्वसाहूण मस्तके—यह पद मस्तक मे धारिए
सर्वागे मा रक्ष रक्ष मातगिनि स्वाहा।।
यह भी रक्षा मन्त्र है। जो अङ्ग जिसके सम्मुख लिखा है, वह मन्त्र का चारण पढकरर उस अङ्ग का मन मे चिन्तवन करे, जैसे वह उस मे रखा हो ऐसा समझे । यह मन्त्र इस प्रकार १०८ बार पढे, रक्षा होगी।
' रोग निवारणमंत्र ॐ णमो अरहताण, णमो सिद्धाण, णमो आयरियाण, णमो उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण।
ॐ णमो भगवदि सुयदेवयाणवार सग एव यण । जणणीये सररु
ॐ णमो भगवदिए सुय देव याए सव्व सुए मयाएणीय सरस्सइए सव्व वाइरिण सण वणे।
सद ए सव्ववाइणि सवणवणो।। ॐ अवतर अवतर देवी मम शरीर प्रविश पुछ तस्स पविम सव्व जणमय हरोये अरहत सिरिए परमे सरीए स्वाहा । यह मन्त्र १०८ बार लिखकर रोगी के हाथ मे रखे सर्व रोग जॉए।
मस्तक.का दर्द दूर करने का मत्र ॐ णमो अरहताण, ॐ णमो सिद्धाण, ॐ गयो आयरियाण, ॐ णमो उवज्झायाण, ॐ णमो लोए सव्वसाहूण।
ॐ णमो णाणाय, ॐ णमो दसणाय, ॐ णमो चरिताय, ॐ ह्री त्रलोक्यवश्यकरी ह्री स्वाहा । विधि -एक कटोरी मे जल लेकर यह मन्त्र उस जल पर पढकर, उस जल को जिसके मस्तक मे पीडा हो, आधाशीशी उसे पिलावे तो उसके मस्तक का सर्व रोग जाये।
ताप निवारण मत्र ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूरणं ॐ ह्रीं णमो लोए उवज्झायारणं . . ., ॐ ह्री णमो पायरियारण . . .
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४८
लघुविद्यानुवाद
ॐ ह्रीं गमो सिद्धारणं । ॐ ह्रीं णमो अरहंतारणं ।
जब यह मन्त्र पढे, चाँचव चरण के अन्त मे "ऐ ह्री" पढता जावे, एक सफेद शुद्ध चद्दर लेकर उसके एक कोने पर यह मन्त्र पढता जावे और गाँठ देने को तरह कोणे को मोडता जावे, १०८ बार उस कोणे पर मन्त्र पढकर उसमे गाँठ देवे, वह चद्दर रोगो को उढा देवे। गाँठ शिर की तरफ रहे, रोगी का बुखार उतरे। जिसको दूसरे या चौथे दिन बुखार आता है। इससे हर प्रकार का बुखार चला जाता है। जब तक बुखार न उतरे, रोगी इम चद्दर को प्रोढे रहे।
बन्दीखाना निवारण मंत्र ॐ णमो अरसंतारणं म्ल्व्य नमः । ॐ णमो सिद्धाणं झाल्या नमः । ॐ रणमो पायरियारणं स्म्यानमः । ॐ णमो उवज्झायारणं हम्ल्या नमः । ॐ रणमो लोए सव्वसाहूरणं, म्ल्व्या नमः ।
( यहाँ नाम लेकर ) अमुकस्य बन्दिमोक्ष कुरु कुरु स्वाहा । विधि -यह प्रयोग है- जिस किसी का कोई कुटुम्बी या रिश्तेदार या मित्र जेल हवालात मे
हो जावे, उसके वास्ते उसका कुटम्बी यह प्रयोग करे । एक पाठा कागज पर श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा माँड कर ( लिखकर ) पाँच सौ फूल लेकर यह मन्त्र पढता जावे और एक फल उसके ऊपर चढाता जावे और उस पर जहाँ फल चढाया था, उस पाठे पर अगुली ठोकता जावे, ऐसे ५०० बार मन्त्र पढे । अमुक की जगह मन्त्र से उसका नाम लिया करे, जिसे बन्दो मे रखा हुआ है। इधर तो वह कार्यवाही करे, उधर उसकी अपील वगैराह जैमी कार्यवाही कानून की हो सो ही करे । बन्दीखाने मे से, कैद से फौरन छुटे । यह मन्त्र उस पाठे पर चित्राम की प्रतिमा के सम्मुख खडे होकर पढे। और खडा होकर ही फल चढावे, सब कार्य खडा होकर ही करे
इससे बन्दी मुक्त होय, स्वप्न मे शुभाशुभ कहे। नोट -यह प्रक्रिया गृहस्थ के वास्ते है, मुनि के वास्ते इसके स्मरण मात्र से ही बन्दीखाना दूर हो, अपने आप ही बन्दोखाने के किवाड खुलें और जजोर टूटे । बन्दौखाना निवारण द्वितीय मंत्र
म्हसावत्सएलो मोण।
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लघुविद्यानुवाद
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गयाझाज्वउ मोरण । रणंयारिइया मोण। गंद्धासि मोरण ।
रगताहरन मोरण । विधि -चौथ, चौदस या शनिश्चर को धूल की चुटकी लेकर मन्त्र पढता हुआ तीन बार फूक
मारकर जिस पर डाले सो वश मे होय। यह मन्त्र नवकार मन्त्र के ३५ अक्षर उल्टे लिखने से बनता है। जब और जितना समय मिले उतनी देर तक इस मन्त्र का जाप करे। नित्य सात दिन तथा ग्यारह दिन तथा इक्कीस दिन तक जपे, अगर हो सके तो इसका सवा लक्ष जाप करे। इससे अधिक जितने हो सके करे, तो तुरन्त ही बन्दी छट जावे। कैद मे हो वह तो यह मन्त्र जपे, और इसके हितपरिवारी अदालत मे मुकदमा की अपील वगैरह करे तो तुरन्त छूटे। मछली बचावन बन्दीखाना निवारण मंत्र
ॐ गमो अरहंतारणं ॐ रामो लोए सनसाहरणं ।
हुलु हुलु कुलु कुलु चुलु चुलु मुलु मुलु स्वाहा ॥ विधि :-यह मन्त्र दो कार्यो की सिद्धि मे काम आता है -
१-यह मन्त्र ककरी के ऊपर पढकर मुह से फूक देता जावे । इस प्रकार इक्कीस बार पढ़कर फिर उस कट्टर को किसी हिकमत से जाल पर मारे, जो मछली पकड रहा हो तो उसके
जाल में एक भी मछली न फसे, सब बच । २-यह मन्त्र जितनी देर तक जप सके प्रतिदिन जपे, सवा लक्ष सख्या पूर्ण होने पर बल्कि
उससे पहले ही बन्दी, बन्दीखाने से छूट। अगर मुमकिन हो सके तो मन्त्र जपते समय धप जलाकर आगे रखे, मन्त्र का फल तुरन्त हो, बन्दीखाने से तुरन्त छूटे।
अग्नि निवारण मन्त्र
ॐ अर्ह असि आ उ सा णमो अरहताणं नमः । विधि :-एक लोटे मे पवित्र शुद्ध जल लेकर उसमे से हाथ की चुल्लू मे जल लेकर यह मन्त्र इक्कोस
बार पढे । जहाँ अग्नि लग गई हो उस स्थान पर इस जल का छीटा दे। पहले जो चल्ल मे जल है जिस पर ईक्कीस बार मन्त्र पढा है, उसकी लकीर खीचे, उस लकीर से आगे अग्नि नही बढे और अग्नि शान्त हो जाये। इस मन्त्र को १०८ बार अपने मन मे जपे तो एक उपवास का फल प्राप्त हो।
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५०
लघुविद्यानुवाद
चोर, बैरी निवारण मन्त्र ॐ ह्रीं णमो अरहतारणं, ॐ ह्री णमो सिद्धारणं, ॐ ह्री णमो पाइरियाण, ॐ ह्री णमो उवज्झायारणं, ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूरणं ।। विधि - इस मन्त्र को पढकर चारो दिशा मे फूक दो, तुरन्त चोर, बैरी नाशे ( अर्थात् जिस
दिशा मे चोर, बैरी हो उस दिशा मे फूंक दोजे यानि यह मन्त्र पढता जावे और उस तरफ
फूक देता जावे तो तुरन्त चोर, बैरी भागे । नोट -पहले इस मन्त्र का सवा लक्ष जप करे और इसे सिद्ध करे, फिर जरूरत पर थोडा स्मरण
करने से कार्य सिद्ध होगा। किन्तु पहले थोडा भी नियम से जपकर जरूर सिद्ध करले, जिससे जरूरत पड़ने पर फोरन काम पावे ।
चोर नाशन मन्त्र ॐ रणमो अरहंतारणं धणु धणु महाधणु महाधणु स्वाहा । विधि :-यह मन्त्र पहले सवा लक्ष जप कर सिद्ध करे, वक्त पर मन्त्र के अक्षरो को पढता जावे और
उन अक्षरो को अपने ललाट पर बतौर लिखने के हरफ-ब-हरफ खयाल करता जावे और . मन्त्र जपता जावे, तो तुरन्त चोर भाग जावे अथवा मन्त्र को वाये हाथ मे लिखकर मुद्री बाँधकर ऐसा खयाल करे कि, मेरे बाये हाथ मे धनष है और मन्त्र जपता जाये तो चोर तुरन्त भाग जावे।
दुश्मन तथा भूत निवारण मन्त्र ॐ ह्रीं अ-सि-पा-उ-सा सर्व दृष्टान् स्तम्भय-स्तम्भय मोहय-मोहय अन्धयअन्धय मूकवत्कारय कुरु कुरु ही दुष्टान् ठ ठः ठः ।
इस मन्त्र की दो क्रिया है - १-यदि किसी के ऊपर दुश्मन हमला करने आवे तो तुरन्त उसके मुकाबले को जावे। यह
मन्त्र १०८ बार मुटी बाँधकर जप करता जावे, दुश्मन भागे। २-यदि किसी बालक या स्त्री को कोई भूत-पिशाच, चूडल, डायन सतावे तो यह मन्त्र १०८
बार मुट्री बाँधकर पढकर उसे झाडे। सुबह-शाम दोनो समय झाडा करे तो भूतादिक
जावे, बालक-स्त्री अच्छे हो जावे।। नोट :- इस म त्र के नीचे के चरण मे-'ही दुष्टान ठ ठ ठ.' में दुष्टान के स्थान पर दुश्मन का
नाम जानता हो तो ले या भुतादिक कहे ।
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लघुविद्यानुवाद
५१
वाद - जीतन मन्त्र
ॐ ह्रौं सः ॐ श्रहं ऐ श्रीं अ-सि-प्रा उ सा नमः ।
विधि - पहले यह मन्त्र पढकर एक लक्ष तथा सवा लक्ष जप सिद्ध कर लेवे, फिर जहाँ वाद-विवाद जाना हो वहाँ यह मन्त्र इक्कीस बार पढकर जावे तो वाद-विवाद मे आप जीते, जय पावे ।
विद्या प्राप्ति, वाद - जीतन मन्त्र
ॐ ह्री प्र-सि-प्रा-उ-सा नमो श्रर्ह वद वद वाग् वादिनी सत्य वादिनि वद वद मम वक्त्रे व्यक्त वाचयाही सत्यं ब्रूहि सत्यं ब्रूहि सत्यं वद सत्यं वद प्रस्खलित प्रचारं सदैव मनुजा सुरसदसि ह्री अर्ह अ-सि-प्रा-उ-सा नमः ।
विधि
— यह मन्त्र एक लक्ष बार जपे तो सर्व विद्या आवे, और जहाँ वाद-विवाद करना पड जावे, तो वहाँ वाद के झगडे मे बोल ऊपर होय जीत जावे |
परदेश लाभ सन्त्र
ॐ गमो अरहंताणं, ॐ गमो भगवइए चन्दायईएसतट्ठाए गिरे मोर मोर हल हल चल चलु मयूर वाहिनिए स्वाहा ।
जब उस
विधि :- जब किसी परदेश मे रोजगार के वास्ते धन प्राप्ति के लिए जावे तो पहले श्री पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा के सामने यह मन्त्र दस हजार जपे । फिर श्रेष्ठ मुहूर्त्त मे गमन करे। जिस दिन, जिस समय गमन करने लगे, इस मन्त्र को १०८ बार जपे । नगर मे पहुँचे तो यह मन्त्र १०८ बार जपे । जिस नगर मे जावे, रोजगार करे लाभ हो । महान् धन मिले ।
नोट
-- जिस नगर मे रोजगार के लिए जावे, वहाँ मंगलवार के दिन प्रवेश न करे । मंगलवार के दिन प्रवेश करे तो हानि हो । घर की पूँजी खोकर, कर्जदार हो, दिवाला निकाले, काम बन्द हो ।
शुभाशुभ कहन मन्त्र, बाग्बल मन्त्र
ॐ ह्रीं
वीं स्वाहा ।
विधि - किसी मुकदमे मे या फिर किसी फिकर मे या अन्देशे मे या बीमारी मे, रात में सारे मस्तक पर चन्दन लगाकर, चन्दन सूख जाने के बाद १०८ बार यह मन्त्र पढकर सो जावे । जैसा कुछ होनहार होगा, स्वप्न द्वारा मालूम होगा । वृहस्पतिवार से ११००० जप करे ।
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५२
लघुविद्यानुवाद
मनचीता कार्य-सिद्धि मन्त्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौ ह्रः अ-सि-पा-उ-सा-नमः स्वाहा । विधि :--इस मन्त्र से मनचीता कार्य सिद्ध होय । अर्थात जब यह मन्त्र जपे आगे धप जलाव
रखले । जिस कार्य की सिद्धि के वास्ते जपे, मन मे उसे रखे कि अमुक कार्य की सिद्धि के वास्ते यह मन्त्र जपता है। यदि कोई इस मन्त्र का सवा लक्ष जाप करे तो मनचीते कार्य होय, सब कार्य की सिद्धि होवे ।
द्रव्य-प्राप्ति मन्त्र अरहंत, सिद्ध, पाइरिय, उवज्झाय, सव्वसाहरण । विधि -इस मन्त्र का सवा लाख जप विधिपूर्वक करे तो द्रव्य प्राप्ति हो ।
लक्ष्मी-प्राप्ति, यशकरण, रोग-निवारण मन्त्र
ॐ रणमो अरहतारणं, ॐ रणमो सिद्धारणं, ॐ गमो पायरियारणं, ॐ रणमो उवझायारणं, ॐ गमो लोए सव्वसाहूरणं ।।
ॐ ह्र ही ह ह्रौं ह्रः नमः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का जप करने से लक्ष्मी बढे ( वृद्धि को प्राप्त हो ) लोक मे यश हो, सर्व प्रकार
के रोग जाये। नोट :-सवा लक्ष जप विधिपूर्वक जपने से कार्य पूर्ण सिद्ध होता है, फिर जिस मर्यादा से जपेगा, उतनी मदद देगा।
सर्व-सिद्धि मन्त्र ॐ ह्री श्री अर्ह असि आ उ सा नमः । विधि -इस महामन्त्र का सवा लक्ष जप करने से सर्व कार्य सिद्धि होती है।
द्रव्य-लाभ, सर्व-सिद्धिदायक मन्त्र ॐ अरहतारणं, सिद्धारणं पायरियाणं उवज्झायारणं साहूरण मम रिद्धि वृद्धि
समोहितं कुरु कुरु स्वाहा । विधि -स्नान करने के पश्चात् पवित्र होकर प्रभात, मध्यान्ह, अपरान्ह, तीनो समय इस मन्त्र का
जाप करे, द्रव्य लाभ हो, सर्व-सिद्धि हो। नोट :-२१ दिन तक तीनो समय के सामायिक के वक्त निर्भय होकर दो-दो घडी जाप्य करे।
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लघु विद्यानुवाद
५३
पुत्र - सम्पदा प्राप्ति मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं प्रति श्राउसा चुलु चुलु हुल हुलु मुलु मुलु इच्छियं कुरु कुरु स्वाहा । (त्रिभुवन स्वामिनी विद्या । )
विधि – जब यह मन्त्र जपने बैठे तो आागे धूप जला कर रख लेवे और यह मन्त्र २४ हजार फूलो पर, एक फूल पर एक मन्त्र जपता जावे । इस प्रकार पूरा जपे । घर मे पुत्र की प्राप्ति हो और वश चले |
नोट :- धन, दौलत, स्त्री, पुत्र, मकान सर्व-सम्पदा की प्राप्ति इस मन्त्र के जाप से होवे ।
राजा तथा हाकिम वशीकरण मन्त्र
ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं । ॐ ह्रीं मो आयरियाणं । ॐ ह्री रामो उवज्झायाणं । ॐ ह्रीं गमो लोए सव्वसाहूणं । श्रमुकं मम वश्यं कुरु कुरु वषट् ।
विधि
'अमुक
- जब किसी राजा या हाकिम या बड़े आदमी को अपने वश मे करना हो तो, याने मेरे पर किसी तरह मेहरबान हो तो शिर पर पगडी या दुपट्टा जो बाँधता है यह २१ बार पढकर उसके पल्ले मे गॉठ देवे । जब मन्त्र पढना शुरू करे, जब पल्ला हाथ मे लेवे । २१ बार यह मन्त्र पढकर गाँठ देवे और शिर पर उस वस्त्र को बाँधकर उसके पास आवे तो वह मेहरबानी करे, मित्र हो । जब मन्त्र पढे अमुक की जगह उसका नाम लेवे । राजा प्रजा सव वश्यम्
वशीकरण (मन्त्र)
ॐ णमो अरहंताणं । अरे (रि) अर (अरि ) रिमोहिणी अमुकं मोहय मोहय स्वाहा ।
विधि :—इस मन्त्र से चावल तथा फूल पर मन्त्र पढकर जिसके सिर पर रखे वह वश मे हो । १०८ बार स्मरण करने से लाभ होता है ।
सर्प - भय निवारण मन्त्र
ॐ अर्हसि श्रा उसा अनाहत ( विद्यायै ) जयि श्रर्ह नमः ।
विधि - यह मन्त्र नित्यप्रति टक ३ गुरणीजे । बार १०८ दिवाली दिन गुरणीजे । जीवनपर्यन्त सर्प
भय न हो ।
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लघुविद्यानुवाद
दुष्ट निवारण मन्त्र
ॐ अर्हमुकं दुष्टं साधय साधय असि श्रा उ सा नमः । विधि - इस मन्त्र को २१ दिन तक जपे, १०८ बार शत्रु के ऊपर पढे, क्षय होय । लक्ष्मी - लाभ करावन मन्त्र मो श्रहतारणं
ॐ ह्रीं ह्र
न
- १०८ बार पढे, तो लक्ष्मी का लाभ हो ।
५४
विधि
विधि
रोगापहार मन्त्र
ॐ गमो मो सहि पत्ताणं ।
ॐ गमो खेलो सहि पत्ताणं । ॐ गमो जल्लो सहि पत्ताणं ।
ॐ गमो विप्पो सहि पत्ताणं ।
ॐ गमो सव्वोसहि पत्ताणं । ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लौ श्रर्ह नम । - १०८ बार पढे, सर्व रोग जाय ।
वरणादिक नाशन मन्त्र
ॐ गमो जिगाणं जावियाणं । यूसोरिंग श्रं ( अ ) एस (ऐ) णं ( ग ) वर्ण (सव्ववाराणवरणं) मा पच्वत्त मां फुट् (य उध उमा फुट् ) ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - राख पर पढकर व्रणादिक पर लगावे, तो व्रणादिक की समाप्ति हो ।
आकाश गमन मन्त्र
ॐ गमो आगासगामरिणो स्वाहा ।
विधि :- २५० दिन अलूगा भोजन काजी सेती करोजे । २४६ बार मन्त्र पढकर वक्त के ऊपर याद करे । आकाश गमन होय ।
प्रकाश गमन द्वितीय मन्त्र
ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ गमो श्रायरियाणं, ॐ गमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ।
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लघुविद्यानुवाद
ॐ गमो भगवदिए सुयदेवयाए सव्वसुएमायाएगीय सरस्सइए सव्व नाइरिण सवण वगो ॐ अवतर अवतर देवि मम्शरीरं पविसपुछं तस्स पविस सवजगमय इरिये प्ररहंतसिरीए परमेसरी ए स्वाहा ।
विधि - ये मन्त्र १०८ बार खड़ी मन्त्री हाथ मे राखिजे ये को देखिजे ।
व्यापार-लाभ व जयदायक मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं श्रर्हसि श्रा उ सा अनाहतविद्यायै अर्ह नमः । विधि - यह मन्त्र दिन मे तीन बार जपिये । १०८ बार जपे तो व्यापार मे लाभ हो सर्वत्र जय पावे |
भयनाशक मन्त्र
५५
ॐ
नो सिद्धाणं पंचणं ।
विधि :- यह मन्त्र १०८ बार दिवाली के दिन जपिये, जीवे जगता इस थकी भय टले । सर्व रोगनाशक मन्त्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं क्लौ क्लौ प्रर्ह नमः ।
विधि : - यह मन्त्र त्रिकाल बार १०८ बार जपे, सर्व रोग जाय ।
विरोधकारक मन्त्र
सिउ सा अनाहत विजे ह्रीं ह्र असं कवि खं
ॐ ह्रीं श्री
कुरु कुरु स्वाहा |
विधि - यह मन्त्र सात दिन १०८ बार जपे । मसान के अङ्गारे की राख घोलकर कौवे के । भोज-पत्र पर लिखे । जिसका नाम लिखे ।
पङ्ख से
सर्वसिद्धि व जयदायक मन्त्र
ॐ हन्त सिद्ध प्रायरिय उवज्झाय सव्वसाहू, सव्व धम्मति त्थय राणं ॐ गमो भगवईए सुयदेवयाये शांति देवयाणं सर्व पवयणं देवयाणं दसराह दिसा पालाणं पंचलोग पालाणं । ॐ ह्रीं अरहन्त देवं नमः । (श्री सर्व जुमोहं कुरु कुरु स्वाहा ) पाठन्तरे ।
विधि
- यह मन्त्र १०५ बार जपे उत्तम स्थान मे । सर्वसिद्धि और जयदायक है । सात वार मन्त्र पढकर कपड े मे गाठ देने से चोर भय नही होता, सर्प भय भी नही होता ।
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५६
लघुविद्यानुवाद
श्रात्मा - रक्षा महासकलीकररण मन्त्र
पढ़म हवइ मंगलं ब्रजमइ शिलामस्तकोपरि णमो प्ररहंताणं प्रगुष्ठ्योः णमो सिद्धाणं तर्जन्योः णमो श्रायरियाण मध्यमयोः णमो उवज्झायाणं अनामिकयोः णमो लोएसव्वसाहूणं कनिष्ठकयोः ऐसो पंच रामोयारो ब्रजमइ प्राकारं सव्वपावप्परणासरणे जलभृतरवातिका, मंगलाग च सव्वेसि खादिरांगार पूर्ण खातिका ।
॥ इति श्रात्मनिश्चन्तये महासकलीकररणम् ॥
श्राकाश गमन कारक मन्त्र
ॐ श्रादि हो हीन पंचबीजपदेर्युतं सर्व सिद्धये नमः ।
विधि - पुष्प या फल से एक लाख जाप वृक्षे छीक कृत्वा तणी - बद्धत प्रारूढोऽग्नि कुण्डो होमयेत् । येकाघातेन पादास्त्रोटयते खे गमनम् ।
सर्व कार्य साधक मन्त्र
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हसि श्रा उसा स्वाहा । विधि व फल – यह सर्व कार्य सिद्ध करने वाला मन्त्र है ।
अरहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहू | विधि - षोडशाक्षर विद्याया जाप्य २०० चतुर्थ फलम् ।
रक्षा मन्त्र
ॐ ह्रीं गमो अरिहंताणं पादौ रक्ष रक्ष । ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं कटि रक्ष रक्ष । ॐ ह्री मो प्रायरियाणं नाभि रक्ष रक्ष । ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं हृदयं रक्ष रक्ष । ॐ ह्रीं गमो लोए सव्वसाहूणं ब्रह्माण्ड रक्ष रक्ष । ॐ ह्री ऐसो पंच मोयारो शिखा रक्ष रक्ष । ॐ ह्री सव्वपावपरणासरणो ग्रासणं रक्ष रक्ष ।
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लघुविद्यानुवाद
ॐ ह्रीं मंगलाणं च सव्वेंस पढ़मं हवइ मंगलं श्रात्म चक्षु पर चक्षु रक्ष रक्ष रक्ष रक्षामन्त्रोयम् ।
चोर दिखाई न देने अर्थात् चोर भयनाशन मन्त्र
ॐ नमो अरिहंताणं श्रमिरणी मोहरणी मोहय मोहय स्वाहा । विधि :- २१ बार स्मरण करे, गॉव मे प्रवेश करते हुए । अभिमन्त्र ' क्षीर वृक्ष्यो हन्यते लाभा : ' रास्ते मे जाते हुए इस मन्त्र का स्मरण करने से चोर का दर्शन भी नही होता । वांच्छितार्थ फल सिद्धि कारक मन्त्र
ॐ ह्रीं सिप्रा उसा नमः ।
असि श्रा उसा नमः ।
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( महामन्त्र )
( मूल मन्त्र )
ॐ ह्रीं श्रर्हते उत्पत उत्पत स्वाहा । ( त्रिभुवन स्वामिनि ) विधि :- स्मरण करने से वाछितार्थ सिद्ध होता है ।
नवग्रह अरिष्ट निवारक जाप्य
ग्रह - ॐ ह्रां णमो प्रायरियाणं । सूर्य-मंगल- - ॐ ह्रां णमो सिद्धाणं । चन्द्रमा-शुक्र- - ॐ ह्रीं गमो अरहंताणं ।
बुध - वृहस्पति - ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं ।
शनि-राहु-केतु - ॐ ह्रीं गमो लोए सव्वसाहूणं ।
प्रत्येक ग्रह की शान्ति के लिए उपरोक्त मंत्र के दस हजार जाप करने चाहिए और
सर्व ग्रहो की शान्ति के लिए 'ॐ ह्री बीजाक्षर' पहले लगाकर पच नमस्कार मन्त्र के दस हजार जाप करने चाहिए ।
एते पचपरमेष्ठी महामन्त्र प्रयोगाः ॐ नमो अरिहउ भगवउ बाहुबलिस्स पहरावरणस्स अमले विमलेम्मिल नारणपयासेरिग ॐ गमो सन्व भासइ श्ररिहासव्व भासइ केवलि ए सव्व - वयएण सव्व सव्व होउ मे स्वाहा । आत्मान शुचि कृत्य वाहु युग्म सम्पूज्य कायोत्सर्गेण शुभाशुभ वति । इति
ॐ गमो अरहंताणं ह्रां स्वाहा ।
ॐ णमो सिद्धाणं ह्रीं स्वाहा । ॐ गमो आयरियाणं ह्रस्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
ॐ णमो उवज्झायाणं ह्रौ स्वाहा ।
ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं ह्रः स्वाहा । विधि :-सुगन्धित फूलो से १०८ बार जाप कर लाल कपडे से फोडा-फुन्सी पर घेरा देने से तथा गले मे पहनने से फोडा न पक कर बैठ जाता है।
ॐ वार सुवरे प्र-सि-पा-उ-सा नमः । विधि -त्रिकाल १०८ बार जपने से विभव करता है ।
जाप्य-मन्त्र पावश्यक नोट -माला के ऊपर जो तोन दाने होते है, सबसे अन्तिम जो इन तीनो मे से है उससे जप आरम्भ करो। जपते हुए अन्दर चले जाओ। जब सारे १०८ जप कर चुको तब उन
आखिर के तीन दानो को माला के अन्त मे भी जपते हए उसी पाखिर के दाने पर प्रायो। जिससे माला जपनी शुरू की थी। यह एक माला हुई। इन तीनों दानो के बारे मे किसी प्राचार्य का मत ऐसा भी है कि ये तीन दाने रत्नत्रय के सूचक है इसलिए इन तीनो दानो पर 'सम्यक्दर्शन ज्ञान चारित्रायनम' ऐसा मन्त्र पढकर माला समाप्त (पूर्ण) करनी चाहिए। प्रथम मन्त्र -ॐ णमो अरहताण, णमोसिद्धाण, णमो पायरियाण, णमो उवज्झायाण,
णमो लोए सव्वसाहूण। दूसरा मन्त्र -अरहत सिद्ध पायरिया उवज्झाया साहू। तोसरा मन्त्र-अरहत सिद्ध । चौथा मन्त्र-ॐ ह्री अ-सि-पा-उ-सा। पांचवां मन्त्र-ॐ नम सिद्धेभ्यः । छठा मन्त्र-ॐ ह्री। सातवाँ मन्त्र-ॐ।
अनादि निधन मन्त्र-ॐ णमो अरहताण, णमो सिद्धाण, रणमी पायरियारण, मी उवज्झायाण, णमो लोए सव्वसाहूण ।
चत्तारि मंगल-अरहता मगल, सिद्धा मगल, साह मगल, केवलि पण्णतो धम्मो मगल ।
चत्तारि लोगुत्तमा-अरहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि पण्णतो धम्मो लोगुत्तमा ।
चत्तारि सरण पव्वजामि-अरहते सरण पवजामि, सिद्धे सरण पव्वजामि, साहूँ सरण पवज्जामि, केवलि पण्णत्त धम्म सरण पव्वजामि । ह्रौ सर्व शान्ति कुरु कुरु स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१०८ जाप्यम्
ॐ
སྙ ॐ सत्य. ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं ।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्र-सि- श्रा - उ- सा - नमः मम ऋद्धि वृद्धि ं कुरु कुरु स्वाहा । ॐ नमो अहद्द्भ्यः स्वाहा । ॐ सिद्ध ेभ्यः स्वाहा । ॐ सूरभ्यः स्वाहा । ॐ पाठकेभ्यः स्वाहा । ॐ सर्व साधूभ्यः स्वाहा । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः प्र-सि श्राउ-सा नमः स्वाहा | मम सर्व शान्ति कुरु कुरु स्वाहा । अरहंत प्रमाणं समं करोमि
स्वाहा ।
ॐ नमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो प्रायरियाणं, णमो उवज्झाया रामो लोए सव्व साहूणं ह्रौ शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा (नमः) ॐ ह्रीं श्रीं अ-सि-उ-सा श्रनाहत विद्यायै गमो अरहंताण ह्रीं नम ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्र. स्वाहा ।
ॐ ह्रीं अरहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय साधूभ्यः नमः । ॐ ह्रां ह्रीं स्वाहा ।
विधि - १०८ बार पढकर छाती को छीटे देवे ।
ॐ ह्रीं श्रीं नमः । या ॐ ह्रीं श्रीं श्रहं नमः ।
५६
सूर्य मन्त्र का खुलासा
किसी काम के लिये ८००० जाप करने से फौरन काम होता है। खासकर कैद वगैरह के मामले मे अजमाया हुआ है ।
ॐ ह्रीं प्रर्ह णमो सव्वो सहिपत्ताणं ।
ॐ ह्रीं श्रर्ह णमो खिल्लो सहिपत्ताणं ।
विधि - दोनो मे से कोई एक ऋद्धि रोज जपे । सर्व कार्य सिद्ध होय ।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ऐं क्रौ ह्रो गमो अरहंताणं नमः ॐ ह्रीं ग्रर्ह णमो उसा प्रति चक्र, फट्
अरहंताणं णमो जिणाणं ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः श्रसि
विचक्राय झो झौ स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र की नित्य १ माला जपे तो दलाली ज्यादा होवे । धन ज्यादा होवे | राज द्वारे जो जावे तो दुश्मन झूठा पडे । पुत्र की प्राप्ति होवे । बदन मे ताकत आवे, विजय हो,
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लघुविद्यानुवाद
परिवार बढे, बुद्धि बढे, सौभाग्य बढे जहाँ जावे वहाँ आदर-सम्मान पावे । मूठ करे तो भी नजदीक न आवे । जाप करे जितने वार धूप खेवे, पद्मासन होकर, नासाग्र दृष्टि लगाकर जाप करना चाहिये।
शांति मन्त्र ॐ गमो अरहंताणं, केवलिपणतो धम्मो, सरणं पव्वजामि ह्रौ शाति कुरु कुरु स्वाहा । श्री अर्ह नमः।
(१) बिजौरा या नारियल १०८ बार इस मत्र से मन्त्रितकर ७२ दिनो तक वध्या (बाझ)
को खिलावे तो पुत्र हो। (२) नये कपडे, मन्त्र से मन्त्रितकर रोगी को पहनावे तो दोष ज्वर जाय ।
___ॐ सिद्धभ्यो बुद्ध भ्यो सिद्धिदायकेभ्यो नमः । विधि -जाप १०८ अष्टमी, चतुर्दशी को पढकर धूप देना।।
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, णमो अरहताणं, णमो प्राचार्याणं, णमो उवज्झायाणं, णमो साहूणं, णमो धर्मेभ्यो नम. । ॐ ह्री णमो अरहंताण पारे अभिनि मोहनो मोह्य मोह्य स्वाहा । विधि -नित्य १०८ बार जपे। ग्राम प्रवेशे ककर ७ मन्त्र २१ क्षीर वक्ष हन्यते लाभो भवति । प्रथम मत्र जप दीप-धूप से सिद्ध करना, छे अपने काम मे लगना चाहिये ।
सर्व शान्ति मन्त्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौ ह्रः अ-सि-पा-उ-सा सर्व शांति तुष्टि पुष्टि कुरु
कुरु स्वाहा । ॐ ह्री अर्ह नमः । क्लीं सर्वारोग्यं कुरु कुरु स्वापा । विधि :-१०८ बार जाप गुरुवार से प्रारम्भ करे पूर्व दिशा को मुख करके बैठे। धूप से प्रारम्भ
कर ११,००० जाप करे। मन्त्र -ॐ ह्री असि प्रा उ साह्री नम । विधि :- इस मन्त्र का त्रिकाल १०८-१०८ बार जाइ के फूलो से जप करे तो सर्व प्रकार की अर्थ
सिद्धि को देता है। मन्त्र -ॐ क्ली ही हहौऐ ही (हाँ?) हा अपराजितायै नम । विधि -इस मन्त्र का ३ लक्ष जाप विधिपूर्वक करने से मन्त्र सिद्ध होता है। इस मन्त्र के प्रभाव
से साधक जो भी भोगोपभोग चीजो की इच्छा करता है वह सब साधक को प्राप्त होती है। स्त्री आदि तो अपना होश ही भूलकर साधक के पीछे-पाछे चलती है।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ पार्श्वनाथाय ह्री। विधि :-इस मन्त्र का १ लाख बार जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है। इस मन्त्र का दस दिन तक
प्रयत्नपूर्वक आराधना करने से स्त्री, पुरुष, राजा आदि वश मे होते है। पथभ्रष्ट होने वाला मनुष्य दस दिन तक प्रतिदिन १-१ हजार जप करे तो जल्दी से ही पद की प्राप्ति
पुनः होती है। मन्त्र :-ॐ ऑ ह्रॉ क्ष्वी ॐ ह्री। विधि -चन्द्रग्रहण ग्रहण मे या दीवालो के दिन इस मन्त्र को सिद्ध करने के लिए साधक
को देवे। इस मन्त्र को शुद्धता से ब्रह्मचर्यपूर्वक ६ महीने तक प्रतिदिन एक हजार (१ हजार) बार जाप करने वाले को ये मन्त्र सिद्ध होता है। मन्त्र के प्रभाव से साधक को राजा, उन्मत्त हाथी, घोड़ा, सर्व जगत के प्राणी वश मे होते है। सर्व कार्य को सिद्धि
होती है। मन्त्र -(ॐ ह्री श्री कलि कुण्डदण्डाय ह्री नम ।) विधि :-पार
ति के सामने सोने की कटोरी मे १२००० (१२ हजार) जाइ के फल से इस मन्त्र का जप करे। मन्त्र सिद्ध हो जाने के बाद मनोवाछित कार्य की सिद्धि होती है । मन्त्र के प्रभाव से भूत पिशाच, राक्षस डाकिनी, शाकिणी इत्यादि सामने ही नही प्राते, बाधा देने को तो अलग बात रहा । मन्त्र के प्रभाव से यूद्ध, सर्प, चोर, अग्नि, पानी, सिह, हाथी इत्यादि बाधा नही पहुँचा सकते है। मन्त्र के प्रभाव से सन्तान की प्राप्ति होवे, वध्या गर्भ धारण करे, जिसकी सन्तान पैदा होते ही मरती होवे तो जीने लगे, कीर्ति की प्राप्ति, लक्ष्मी की प्राप्ति, राज्य-सौभाग्य की प्राप्ति होती है, देवागनाये सेवा
मे हाजिर रहती है । ऐसा इस विद्या का प्रभाव है । मन्त्र .-ॐ नमो भगवति शिव चक्र मालिनी स्वाहा । विधि -पुष्प नक्षत्र, सप्तमी या शनिवार के दिन या रवि पुष्पामृत मे, पहले दन निमन्त्रणपूर्वक
दसरे दिन अपनी छाया बचा के, सफेद आकडे की जड को लाकर पावं प्रभ की प्रतिमा बनावे, फिर उपर्युक्त मन्त्र से मूर्ति की प्रतिष्ठा करके इसी मन्त्र से मूर्ति को पूजा करे, तो जो-जो कार्य साधक विचारे वह सर्व कार्य साधक के चितन मात्र से ही होते है।
न्यायालय वगेरह के विवाद मे, धान्य सग्रह मे, सब मे विजय प्राप्ति होती है। मन्त्र -ॐ ह्री ला ह्रा प लक्ष्मी झ्वी क्ष्वी खु कु हस स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का विधिपूर्वक जाइ के फूलो से १३००० (तेरह हजार) जाप तीन दिन मे
करे तो यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । इस मन्त्र को सिद्ध करने के लिए स्वय शुद्ध होकर विलेपन लगाकर, सफेद वस्त्र पहन कर, अम्बिकादेवी की मूर्ति को स्नान कराकर, पंचामृत से पूजा करे, फिर देवीजी के सामने बैठकर भक्तिपूर्वक उपवास करके मन्त्र सिद्ध करे तो तीन दिन मे मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। फिर मन्त्र के प्रभाव से भूत, भविष्यन
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मन्त्र
- ॐ ह्री ला ह्रा प लक्ष्मी हस स्वाहा ।
विधि - इस मंत्र का दस हजार जाप जाइ के फूलो से करने से और दशाश होम करने से मन्त्र सिद्ध हो जायेगा । मन्त्र के प्रभाव से स्थावर या जगम विष की शक्ति का नाश होता है । - ॐ ऐ ह्री श्री क्ली ब्लू कलिकुण्ड नाथाय सौ ह्री नम ।
- इस मन्त्र का ६ महीने तक एकासनपूर्वक १०८ बार जाप करे तो सौ योजन तक के पदार्थ का ज्ञान होता है और उसके बारे मे भूत, भविष्यत् वर्तमान का हाल मालूम पडता है । इस मन्त्र का कलिकुण्ड यन्त्र के सामने बैठकर जाइ के पुष्पो से १ लाख बार जाप करे और दशा होम करे, मन्त्र सिद्ध हो जायेगा ।
मन्त्र
विधि
लघुविद्यानुवाद
वर्तमान की बात को देव कान मे आकर कहेगा, याने जो पूछोगे वही कान मे ग्राकर कहेगा ।
मन्त्र
विधि
विशेष - पाच वर्ष तक ब्रह्मचर्यपूर्वक इस विद्या की जो आराधना करता है उसको प्रतिदिन विद्या के द्वारा १ पल भर सोना नित्य ही प्राप्त होता है । किन्तु नित्य ही जितना सोना मिले उतना खर्च कर देना चाहिए। अगर खर्च करके सचय करोगे तो विद्या का महत्व घट जावेगा ।
ह्रॉ ह्र (झाँ हूँ) फट् ।
१ - ॐ हुँ २ हे २ कूच तू —इस मन्त्र का एक लाख जाप करने से कार्य सिद्ध होता है । इस मन्त्र के प्रभाव से राजदरबार मे, कचेरी में, वाद-विवाद मे, उपदेश के समय पर विद्या का छेदन करने मे, वशीकरण मे, विद्वेषरणादि कर्मों मे, धर्म-प्रभावना के कार्यो मे प्रति उत्तम कार्य करने से फल की प्राप्ति होती है ।
पद्मावती प्रत्यक्ष मन्त्र २ – ॐ ग्रा क्रौ ही ऐ क्ली हौ पद्मावत्यै नमः ।
विधि :-सवा लाख जाप करने से प्रत्यक्ष दर्शन होते है या साढे बारह हजार जप करने से स्वप्न मे दर्शन होते है ।
सरस्वती मन्त्र ३ – “ ॐ ऐ श्री क्ली वद् वद् वाग्वादिनी ही सरस्वत्यै नमः ।”
विधि
- ब्राह्ममुहूर्त मे रोज ५ माला जपने से बुद्धिमान होय । ॐ त्रौ त्रौ शुद्ध बुद्धि प्रदेहि श्रुत देवी मर्हत तुभ्य नम ।
लक्ष्मी प्राप्ति मन्त्र ४ :- "ॐ ह्री श्री क्ली ठौ । ॐ घटा कर्ण महावीर लक्ष्मी पुरय पुरय सुख सौभाग्य कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि
- धन तेरस को ४० माला, चौदस को ४२ औौर दोवाली के दिन ४३ माला उत्तर दिशा मे मुख करके, लाल माला से, लाल वस्त्र पहन कर जाप करे, लक्ष्मी की प्राप्ति होय । श्रीमणिभद्र क्षेत्रपाल का मन्त्र ५ ॐ नमो भगवते मणिभद्राय क्षेत्रपालाय कृष्णरुपाय चतुर्भुजाय
जिन शासन भक्ताय नव नाग सहस्त्र वात्नाय किन्नर कि पुरुष गधर्व, राक्षष, भूत-प्रेत, पिशाच सर्व शाकिनी ना निग्रह कुरु कुरु स्वाहा माँ रक्ष रक्ष स्वाहा |
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लघुविद्यानुवाद
क्षेत्रपालनी मन्त्र ६ -ॐ क्षा क्षी झूक्षौ क्ष. क्षेत्रपालायनम । विधि :-साढे बारह हजार जाप करना ।
फौजदारी, दीवानी दावा आदि निवारण मंत्र
मल मन्त्र :-ॐ ऋषभाय नमः। विधि :-श्री आदीश्वर भगवान के समक्ष स्त्रोत १०८ बार प्रतिदिन जाप करना। साढे बारह
हजार जाप करे मूल मन्त्र का । चक्रेश्वरी देवो का मन्त्र १ -ॐ ह्री श्री क्ली चक्रेश्वरी मम रक्षा कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-सोते समय ५ माला जपना चाहिये। मन्त्र : २ :-ॐ नमो चक्रश्वरो चिन्तित कार्य कारिणी मम स्वप्ने शुभाशुभ कथय कथय दर्शय
स्वाहा। विधि -शुभ योग, चन्द्रमा, तिथि वार से शुरू कर साढे बारह हजार जप करे। स्वप्न मे शुभाशुभ
मालूम पडेगा।
चतुर्विशति महाविद्या णमो अरिहंतारणम्, णमो सिद्धारणं, रणमो पायरियारणम् ।
रणमो उवज्झायारणम्, रणमो लोए सव्वसाहूरणम् ॥ विधि -यह अनाधि मूल मन्त्र है। इस मन्त्र से भव्य जीव ससार समुद्र से पार हो जाता है
और लौकिक सर्व कार्य की सिद्धि होती है। यदि मन, वचन, काय को शुद्ध करके - त्रिकाल जपे।
ॐ नमो भगवनो अरहऊ ऋषभस्स आइतित्थ यरस्स जलंतं ग (च्छं) तं चक्क सम्वत्य अपराजियं, पायावरिण ऊहरिण, थभरिण, मोहरिण जमणि, हिली-हिली धारिणी भंडारण, भोइयाणं, अहीरणं, दाढीरणं, सिगीणं, नहीणं, वाराणं, चारियारणं, जक्खाणं, ररक्खसारणं, भूयारणं, पिसायारणं,
मुहबंधणं, चक्खु बंधरणं, गइ बंधणं करेमी स्वाहाः । विधि :-इस विद्या से २१ वार धूल यानि मिट्टी को मन्त्रित करके दशो दिशामो मे फैक देने से मार्ग
में किसी प्रकार का भय नही रहता है। सघ का रक्षण होता है। कुल का रक्षण होता है। गरण का रक्षण होता है। प्राचार्य, उपाध्याय, सर्व साधूनी कां और सर्व साध्वियो का
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विधि
लघु विद्यानुवाद
रण होता है। इससे सर्व प्रकार का उपसर्ग दूर होता है । मन्त्र पढता जाय और मन्त्रित धूल को फैकता जाय ।
ॐ नमो भगवऊ संभवस्स श्रपराजियस्स सिज्झउ मे भगवऊ महवइ महाविद्या संभवे महासंभवे ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - चतुर्थ स्थान याने दो उपवास करके जपे साढे बारह हजार मन्त्र, फिर इस मन्त्र से भोजन अथवा पानी अथवा अर्क अथवा पुष्प या फल को अट्ठसय ( ग्राठ सौ बार ) मन्त्रित करके जिसको दिया जायेगा वह वशी हो जायगा ।
विधि
ॐ नमो भगवऊ रहऊ प्रजिय जिरणस्स सिज्झऊ मे, भगवइ महवइ महाविद्या जिए अपराजिए प्रनिहाय महाबले लोग सारे ठ ठः स्वाहा । — इस विद्या का उपवासपूर्वक ८०० बार जाप्य करे तो दारिद्र का नाश, व्याधियो का नाश, पुत्र की प्राप्ति, यश की प्राप्ति, पुण्य की प्राप्ति, सौभाग्य की प्राप्ति, दम्पत्ति वर्ग प्रीति की प्राप्ति होती है ।
ॐ नमो भगवऊ अभिनदरणरस सिझ (ष्य ) ऊ मे भगवइ महवइ महाविद्यानंदणे अभिनन्दर ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि :- दो उपवास करके फिर पानी को अट्ठसय ( आठ सौ बार ) जाप से मन्त्रित करके जिसका मुखमन्त्रित पानी से धुलाया जायेगा वह वशी हो जायगा ।
विधि
ॐ नमो भगवऊ रहऊ सुमइस्स सिझ (ष्य ) ऊ मे भगवइ महवइ महाविद्या समरणे सुमरण से सोमरण से ठः ठः ठ. स्वाहा ।
- दो उपवास करके अट्ठसय ( आठ सौ बार ) मन्त्र प्ररहत प्रभु के सामने कोई भी कार्य के लिये अथवा दुकान की वस्तुओ के लिए जाप करके सो जावे तो भविष्यत भूत, वर्तमान मे क्या होने वाला है, जो भी कुछ मन मे है, सबका स्वप्न मे मालूम पडेगा, सर्व कार्य सिद्धि होगी ।
ॐ नमो भगवऊ रहऊ पउमप्पहस्स सिज्झ ( ष्य ) उ मे भगवई महवइ महाविद्या, पउमे, महापउमे, पउमुत्तरे पउमसिरि ठः ठ ठः स्वाहा । - इस मन्त्र को भी अट्ठसय ( आठ सौ बार मन्त्र ) दो उपवास करके करने वाले मनुष्य के सर्वजन इष्ट हो जाते है यानि सर्व लोगो का प्रिय हो जाता है ।
ॐ नमो भगवऊ रहऊ महाविद्या, पस्से, सुपस्से,
सुपासस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ इपस्से, सुहपस्से ठः ठ ठ स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि -इस मन्त्र से अपने शरीर को मन्त्रित करके सो जावे तो स्वप्न मे शुभाशुभ का ज्ञान हो।
मार्ग चलते समय स्मरण करने से सर्प, व्याघ्र, चोर, आदि का भय नही रहता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ, चंदप्पहस्स सिज्झ (ष्य)ऊ मे भगवइ महवइ
महाविद्या चंदे चदप्पभे अइप्पभे महाप्पभे ठः ठः ठ स्वाहा । विधि .-दो उपवास करके इस मन्त्र को आठ सौ बार जाप करके पानी सात बार मत्रित करके
उस पानी से जिसका मह धुलाया जायगा वह सर्वजन का इष्ट हो जायगा अथवा पानी
को २१ बार मत्रित कर स्त्री या पुरुष को देने से चन्द्र के समान सर्वजन का इष्ट होता है । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ पुष्पदंत्तस्स सिज्झ (व्य)ऊ मे भगवइ महवइ
महाविद्या पुफ्फ, महापुपफे, पुफ्फसुइ ठः ठ ठः स्वाहा । विधि - इस मन्त्र को दो उपवास करके आठ सौ बार मत्र जपे फिर इस मन्त्र से फल को अथवा
पुष्प को २७ वार मत्रित कर जिसको दिया जाय वह वश मे हो जाता है । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ सियलजिएस्स सिझ (प्य ) उ मे भगवइ महवड
महाविद्या सीयले २ पसीयले पसंति निव्वुए निवारणे निव्वुएत्ति नमो भवति
ठः ठ. ठः स्वाहा । विधि :-इस मत्र को दो उपवास करके २१ बार पानी मत्रित करके अॉख के रोग पर या शिरोरोग
पर, आधा शिशी रोग पर, फौडा-फुन्सी के रोग पर, परीक्रमा रूप मत्रित पानी को छीडके तो रोग अच्छा हो जाता है।
मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ सिद्य सस्स सिज्झ (ष्य)उ मे भगवइ महवइ
महाविद्या सिज्जसे २ सेयं करे महासेयं करे पभं करे सुप्पभं करे ठ स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को उपवासपूर्वक रात्रि मे पुष्पो से आठ सौ जाप करे। भूतेष्टाया रात्रौ सर
जो बलि कर्म (साष्टशत । जापम् । कुर्यान्मोच्य चबहि स स्वस्थ श्चन्द्रराशिविद्या, उपद्रव जगल चाउदिसे सुगहेयव्व सुद्धवलि कम्म कायव्व तवाहिय च चउदिसि परिक्ख कम्म
कायव्वैतऊ सुह होइ। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ वासुपुज्यस्स सिज्झ (प्य)ऊ मे भगवइ महवइ
महाविद्या वासुपुज्ये २ महापुज्ये रूहे ठः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को उपवासपूर्वक आठ सौ बार जाप करके सो जावे फिर जो स्वप्न मे शुभा
शुभ दीखेगा, वह सब सत्य होगा। ज किचि अप्पण छाए पर छाएवा नाउकामेण
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लघुविद्यानुवाद
खेमवा भयवा नासवा डमरवा मारिवा दुभिक्खवा, सासयवा, असासयवा जयवा अन्नयरवा पडिलेहिऊ कामेण श्रप्पाण सत्त वार परिजवेऊण सोयव्व ज जपासह सुमिणे तस्स फल तारिस होइ ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ अरहऊ विमलस्स सिज्झ ( ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या
श्रमले २ विसले कमले निम्मले ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि
- सप्ताभिमन्त्रित सुमै प्रतिमा स पूज्य तिष्ठति स्व कृते । तत्रस्थ पश्चयति य सत्यार्थ स इति विमलजिन विद्या ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ श्ररणंत जिरणस्स सिज्झ (व्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या प्ररांत केवलरगाणे प्ररणंत पद्मवनार प्रणते गमे श्ररणत केवल दंसणे ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - शास्त्रारम्भे जपत्वा साष्टशत शयत एपयत्स्वप्ने । पश्यति तत्सर्व मिद तथैव तदनन्त जिनविद्या ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ अरहऊ धम्ल जिरणस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविजा धम्मे सधस्मे धम्मे चारिणी धम्म धम्मे उवए स धम्मे ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि - शिष्याचार्याद्यर्थे कार्योत्सर्गे जपन्नि मा विद्या । पश्यति शृणोति यदसौ तत्सत्य सर्वमेव पचदशी ।। कार्यारभेशिष्य श्रवणो विद्याभि मन्त्रितोऽष्ट शतम् । कार्यस्य पारदर्शी, विशेषतोऽष्य नशन ग्राही ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ रहऊ
विधि
विधि
संतिजिणस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या संति संति पसति उवसंति सव्वापावं एस मेहि स्वाहा ।
- इस मन्त्र का आठ सौ बार जाप कर, धूप- गव-पुष्पादिक को मंत्रित करके धूप देने से ग्राम, नगर, देश, पट्टण मे अथवा स्त्रियो मे वा पुरुषो मे वा पशुओ मे का, मारि रोग नष्ट हो
जाता है ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ रहऊ कुथुस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या कुंडे कुंकुंथुम ठः ठः ठः ॐ कु थेश्वर कुथे स्वाहा ।
- इस मन्त्र से धूलि को सात बार मंत्रित कर जहाँ डाल देवे वहाँ के सर्व ज्वर सर्व रोग नष्ट हो जाते है ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ अरहऊ अरस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या अरणि आरिणी अरणिस्स परिणयले ठ ठ ठः स्वाहा ।
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लघु विद्यानुवाद
विधि :- राजकुल, देवकुल वा देवा गन्तु मिच्छता विद्याम् । परि जप्यपय पेय वक्त्र वाऽभ्यज्य गध तैलेन । वद्ध्वा शिरसि शिखा वा सिद्धार्थान् वा स्वनिवसन प्राते । गन्तव्य, तत्रेति चन्द्रगज विद्या ।
यत्रेष्ट सुभग
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ रहऊ मल्लिएस सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या
मल्ली मल्ली जय मल्लिपडि मल्लि ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि
-- इस मन्त्र से वस्त्र, माला, अलकारादिक मत्रित करके जिसको दिया जावेगा वह वश में हो जायेगा |
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ श्ररहऊ मुरिणसुव्यस्स सिज्झ (ष्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविज्जा सुव्व महासुव्वए प्रणुव्वए महत्वए व एमइ ठः स्वाहा ।
1
- व्याघ्र, चित्रक सिहादे कस्य चिन्मास भक्षिरण । दग्धवा मास च केशिवा तद्रक्षा म्रक्षिताङ्ग ुलि । यस्यनाम्ना जपेद् विद्यामिमामष्टोत्तर शतम् । सहस्त्र वास वश्य स्यादिति सुव्रत विद्या ॥
मन्त्र — ॐ नमो भगवऊ रहऊ नमिस्स सिज्झ (व्य ) उ मे भगवइ महवइ महाविद्या अरे रहावत्तं प्रावते वतेरिट्ठनेमि स्वाहा ।
—इस मंत्र से सात बार फल, पुष्प वा ग्रलकारादि मत्रित करके जिसको दिया जाय वह वश मे हो जाता है ।
विधि
विधि
r
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ
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रहऊ अरिट्ठनेमीस्स सिज्झ (प्य) उ मे भगवइ महवइ महाविज्जा अरेरहावते श्रावत्रे वत्रे रिट्ठनेमि स्वाहा ।
विधि - हय गज रथ नाव साष्टशताभि मत्रितम् । आरोहेद् वाहनवश्य वैरी वा वशगो भवेत् । मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ रहऊ पासस्स सिज्झ (घ्य ) उ से भगवइ महवइ महाविजा उग्र सहाउग्र उग्रजसे पासे सुपासे एस्स माखि स्वाहा ।
विधि - देश पुरग्रामादेः कोष्ठागारस्य धूप बलि कर्म । कार्य शिव च सरुजा शातिर्बहुधनमपधनस्य । द्विपद चतुष्पद वाड भिमन्त्ररणाद् वश्यमथधन निहितम् । सुप्रापयुधि विजय: स्वार्थ कृति पार्श्व विधेय ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ अरहऊ महइ महावीर वढ्ढमारण सामिस्स सिज्झरसउ मे भगवइ महवइ महाविज्या वीरे २ महावीरे सेरग वीरे जयंते श्रजिए अपराजिए श्रहिए स्वाहा ।
विधि - सुवासान नया जप्तान् शिष्य मूर्ध्नि गुरु क्षिपेत् । स्वकार्य पारग स स्यादपविघ्न महान्तिमा ।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ वढ्ढ मारणाय सुर असुर तिलोय पूजिताय वेगे
महावेगे निवृवरे निरालंवणे विटि २ कुटि २ मुदरे पविसामि कुहि २ उदरेतेपे
विसिस्सामि अंतरिऊ भवामि मामेपावया ठः ठ ठः स्वाहा । विधि --पथियुद्ध वा स्मरणाद पराजितोऽथ चौराणाम् । व्याघ्रादीना भीतौ मुष्टेबंधे भवति
शाति । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ उसहस्स चरमवद्ध मारणस्स काल संदोवस्स, पहस, मणस्स,
विझां पुरीसस्स, सव्वपावारणं हिंसा, बंधंक रित्ता जे अछे सच्चे भूए भविस्से से अछे इह दीसउ स्वाहा सवेसु उ स्वाहा । कारो कायवो चउथेरण साहरण
कायव्वं सव्वासि पंचमंगल नमुक्कार करिता तऊ सव्वाउ विझाऊ । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहऊ इमं विझां पउझामि । विधि -सामे विजाए सिष्यऊ वार ३ बार जाप्य ज जस्सतिथयरस्य जम्म नखत तमिचेवतम तव
कायव्व सव्वाऊ सठ्ठसय जापेण । विधि -ये चविशति विद्या है। इन विद्यापो का करने वाला गर्व से रहित होना चाहिए । शान्त
चित्त होना चाहिए। ये चौबीस तीर्थकर के मत्र तीर्थकर प्रभ के जो जम्म नक्षत्र हो उस रोज से उसी तीर्थकर के मन्त्र जाप करना चाहिये। कौनसा दिन किस तीर्थकर का जन्म
नक्षत्र है ये अन्यत्र देखकर कार्य करे। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री क्लीं ब्लूद्रां द्रों द्र द्रौ द्रः द्रावय २ हूँ फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से तेल को १०८ बार मन्त्रित करके देने से सुख से प्रसव होता है। मन्त्र :-ॐ ह्री नमः । विधि -विधिपूर्वक सवा लाख जाप करके एक माला नित्य फेरने से सर्व कार्य सिद्धि होती है। सर्व
रोग शात होते है। लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस मत्र को एकाक्षरी विद्या कहते है।
सात लक्ष जप करने से महान विद्यावान होता है। मन्त्र -ॐ अंषि (विख) महाविसेण विष्णु चक्क ना हूं फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से चूर्ण २१ बार मत्रित करके (सखानिकयोष्टि विकके कर्त्तव्ये) तो अाँख का
रोग शॉत होता है। मन्त्र :-ॐ कालि २ महाकालि रोद्री पिगल लोचनी सुलेन रौद्रोपशाभ्यंते उँ ठः
स्वाहा।
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________________ लघुविद्यानुवाद 66 विधि -इस मन्त्र से सात वार (घरट्र पूट ल हण) वस्त्र मे बाधकर डोरे से, बायी प्रॉख दुखे तो दक्षिण की तरफ वॉधे और दक्षिण की तरफ आँख दुखे तो बायी की तरफ बाँधे, तो अॉख की पीडा शात होतो है। मन्त्र .-ॐ शांते शांते शॉति प्रदे, जगत् जीवहित शांति करे, ॐ ह्री भगवति शांते मम शांति कुरु कुरु शिवं कुरु कुरु, निरुपद्रव कुरु कुरु सर्वभयं प्रशमय 2, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौ ह्रः ह्रशांते स्वाहा / विधि -स्मरण मात्र से शाति / मन्त्र :--ॐ नमो भगवऊ वर्द्ध माणस्स वीरे वीरे महावीरे सेरणवीरे जयंते अपराजिए स्वाहा / विधि -उपाध्यायो के वाचन समय का मन्त्र है, परम्परागत है। प्रात अवश्य ही 21 बार या 108 बार स्मरण करना चाहिये, फिर भोजन करना चाहिये। इस मन्त्र के प्रभाव से सौभाग्य की प्राप्ति, आपत्ति का नाश, राजा से पूज्यता को प्राप्त, लक्ष्मी की प्राप्ति दीर्घायु, शाकिनी रक्षा, सुगति / (स्याद्भवात्तरे चेन्न करोति तदोपवासोहड शक्त्यू गुरु पोवादण्ड जावझी व कालावधि अक्षर 27 मन्त्रेसे तिमन्त्रो न कण्याप्यग्रे कथनीय गुरु प्रशादात् सर्व सफल भवति / मन्त्र -ॐ नमो भगवऊ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खीया महाणसस्स तर तर ॐ अक्खीरण महारणस्स स्वाहा ॐ क्षों क्षः क्षः क्षः य. यः यः लः हुं फट् स्वाहा / विधि -अनेन वा साक्षता अभिमन्त्रय गृहादौ प्रक्षिप्ता दोपोनुपमयति / (इस मन्त्र से अक्षत मन्त्रित कर घर के अन्दर फेक देवे तो सर्व दोप नाश हो जाते है।) मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ अरहरू संतिजिणस्स सिझ (प्य) उ मे भगवइ महाविद्या संति संति पसंति उवसति सव्वपावं पममेउ त उसव्व सत्तारणं कृपय चउप्पयारणं सति देशेगामागर नगर पट्टणखेडेवा पुरिसारणं इत्थीरणं नपुंसगाणी वा स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से धूप 1008 बार मन्त्रित करके घर मे अथवा देवदत्त के सामने धृप को खेने से भूत-प्रेत उमर मारी रोगो की शाति होती है / मन्त्र :- ॐ नमो अगाइ निहणे तित्थयर पगासिएगगहरेहि अणुमन्निए वादशांग चतुर्दश पूर्व धारिणी शूतिदेवते सरस्वति अवतर अवतर सत्यवादिनि हुं फट् स्वाहा /
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________________ 70 लघुविद्यानुवाद विधि :- अनेन सारस्वत्त मन्त्रेण पुस्ताकादौ प्रारम्भ क्रियते प्रथम मन्त्र पठित्वा। मन्त्र -ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौ ह्रः, ॐ ह्रीं नमः कृष्णवास से मौशत सहस्त्र कोटी लक्षासह वाहने फ्र सहस्त्र वदने ह्रौ महाबले ह्रौ अपराजिते ह्रीं प्रत्यंगिरे ह्रौ परसैन्य निर्नाशिनि ह्रीं पर कर्म विध्वसिनि ह्रसः परमन्त्रो छेदिनिय सर्वशत्रू च्चाटिनि ह्रसौ सर्व भूतदमनि वः सर्व देवान बंधय बंधय हूँ फट् सर्व विघ्नान छेदय छेदय सर्वानर्थान निकृतय निकृतय क्ष' सर्व प्रदुष्टान् भक्षय भक्षय ह्रींज्वालाजिह्वह्रसौ करालव के ह्रस पर यन्त्रान स्फौट्य स्फोट्य ह्रीं वज्रशृङ्खलां त्रोटय त्रोटय असुर मुद्रा द्रावय द्रावय रोद्रमूर्ते ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे मम मनश्चितित मंत्रार्थं कुरु कुरु स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को स्मरण करने मात्र से सर्व कार्य की सिद्धि हो जाती है। मन्त्र :-ॐ विश्वरूपमहातेज नील कंठ विष क्षय महावल त्रिसूलेनगंडमाला छिद छिद भिंद भिंद स्वाहा। विधि -इस मन्त्र से आकड का दूध और तिल का तेल 21 वार या 108 वार मन्त्रित कर गण्ड माल के ऊपर लगावे तो गण्डमाल रोग का नाश होता है। मन्त्र --ॐ ह्रां ह्रीं क्रां क्रीं क्रः श्रीशेषराजाय नमः हूं हः ह वं के केसः सः स्वाहा / विधि -यह धरणेन्द्र मन्त्र है / इस मन्त्र को कोई भी महान आपत्ति के समय दस हजार जाप करे तो अभीष्ट फलदायक होता है / मन्त्र :-ॐ नयो महेश्वराय यक्षेश्वराय सर्व सिद्धाय नमोरे वार्चनाय यक्ष सेनाधिपतये इदं कार्य निवेदय तद्यथा कहि कहि ठ. ठ / विधि -इस मन्त्र को क्षेत्रपाल की पूजा करके क्षेत्रपाल के सामने 108 बार जाप करे, फिर गुग्गल को 21 बार मन्त्रित करके, स्वय को धूप का धूवाँ लगाकर सोवे, तो स्वप्न मे शुभाशुभ मालूम होता है। मन्त्र :-ॐ शुक्ले महाशुक्ले अमुक कार्य विषये ह्रीं श्री क्षी अवतर अवतर मम शुभाशुभं स्वप्ने कथय कथय स्वाहा। विधि -काच कर्पूर युक्त प्रधान श्रीखण्डे नालिख्य सिवनि काप्ट पट्ट के जाती पुष्प 108 जाप्यो देय स्वप्ने शुभाशुभ कथयति /
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________________ लघुविद्यानुवाद 71 मन्त्र :-ॐ चंद्र परिश्रम परिश्रम स्वाहा / विधि -हस्त प्रमाण शर ग्रहीत्वा रघणि ताडयेत दिन 21 यावत् ततो रघरिणर्नश्यति / हस्त प्रमाण शर (बारण) को लेकर इस मन्त्र से 21 दिन तक रघरिणवायु का ताडन करने से रघरिणवायु नष्ट होती है / मन्त्र -ॐ शुक्ले महाशुक्ले ह्रीं श्रीं क्षीं अवतर अवतर स्वाहा / (सहयं जाप्यः पूर्व 108 गुरणेते स्वप्ने शुभाशुभं कथयति / ) विधि -इस मन्त्र को 1008 बार जाप करके, फिर सोने के समय 108 बार जाप करके सो जावे तो स्वप्न मे शुभाशुभ मालूम होता है। मन्त्र :-ॐ अंगे फुमंगे फुग्नंगे संगे फु स्वाहा / ( बार 21 जलमभिमंत्र्यपिवेत् शुलं नाश्यति / ) विधि :-इस मन्त्र से जल 21 बार मन्त्रित करके उस जल को पी जावे तो शूल रोग नाश होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं कृष्ण वाससे सुध्स सिंहबाहने सहस्त्र वदने महाबले प्रत्यंगिरे सर्वसैन्य कर्म विध्वंसिनी परमंत्र छेदनी सर्वदेवाणारणी सर्वदेवारणारणी वंधि वाधि निकृतय निकृतय ज्वालाजिह्व कराल चक्रे ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे स्वाहा स्वाहा स्वाहा शेषाणंद देवकेरी आज्ञाफुरई 4 घट फेरण मंत्र / विधि :-इस मन्त्र की विधि नही है / मन्त्र -ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय अष्टादशवृश्चिकारणां विषं, हर हर, प्रां कहां स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को पढता जाय और बिच्छु काटे हुए स्थान पर झाडा देता जाय तो बिच्छु का जहर उतर जाता है। मन्त्र -ॐ शिवरि फुट् स्वाहाः। विधि :-स्ववाहु प्रमार्जयेत दष्टस्य विष मुत्ररति / मन्त्र :-ॐ खुलु मुलु स्वाहा / विधि --वृश्चिक विद्ध आत्मन प्रर्दक्षणी कारयेत / मन्त्र '-ॐ कंख फुट् स्वाहा / विधि -इस मन्त्र की विधि नही है।
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________________ लघुविद्यानुवाद मन्त्र :-ॐ काली महाकाली वज्रकाली हनश्रु लं श्री विश्रु लेन स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से कर्ण (कान) का दर्द नाश होता है। मन्त्र :-ॐ मोचनी मोचय मोक्षरिण मोक्षय जीवं वरदे स्वाहा / ॐ तारणि तारिण तारय मोचनि मोचय मोक्षरिण मोक्षय जोवं वरदे स्वाहा / विधि :-बार 7 बिच्छु (खजुरा) डक अभिमत्र्य दिष उतरति / मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयस्य आवटुक दारुकविवटुक दारुकविवटु विवट विवटु दारुक स्वाहा / 12 कटो० फे० मं० नमः क्षिप्रगामिनि कुरु कुरु विमले विमले स्वाहा / विधि -इन मन्त्रो से पानी मन्त्रित करके जिसके नाम से पीवे, वह मनुष्य वश मे हो जाता है। मन्त्र -ॐ अरवचन धी स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को 108 वार तीनो सध्यानो मे स्मरण करने से महान् बुद्धिमान हो जाता है / मन्त्र :-ॐ क्रीं वद वद वाग्वादिनि ह्रीं नमः / विधि -इस मन्त्र का एक लाख जाप करने से मनुष्य को काव्य रचना करने की योग्यता प्राप्त होती है। विधि -देव भद्र नित्य स्मरणीय / मन्त्र . -ॐ ह्रीं सरस्वत्यै नमः / विधि -तीन दिन मे 12 हजार जाप करके 1 माला निन्य फेरे तो कवि होता है / विधि -108 बार नित्य ही स्मरण करने से स्वप्न मे अतीत अनागत वर्तमान का हाल मालूम पडता है। मन्त्र :--ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल हूं हूं महाग्नि स्तभय स्तंभय ह फुट स्वाहा। अग्नि स्तम्भन मन्त्र / विधि -इस मन्त्र से 7 बार कजिक (काजी) मन्त्रित कर दीपक के सामने क्षेपन करने से दीपक बन्द हो जायगा और शरीर मे लगा हया ताप शान्त हो जायगा।
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________________ लघुविद्यानुवाद 73 मन्त्र :-ऐ ही सर्वभय विद्रावरिण भयायै नम / विधि :-इस मन्त्र का स्मरण करके मार्ग मे चले तो किसी प्रकार का भय नही होगा। मन्त्र :-ॐ ह्री को ही हू फट् स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से सुपारी मन्त्रित करके जिसको दिया जाय वह वश मे हो जाता है। मन्त्र :---ॐ नमो सुमति भुखाबजाय स्वाहा / विधि .-इस मन्त्र का स्मरण करके धर्म कथा करने से प्रमाणित शब्द होते है। (एन स्मृत्वा धर्मकथा कुर्वन् गृहीत्वाक्योभव ) / मन्त्र :-ॐ नमो मालिनी किलि किलि सरिण सरिण स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को 12 हजार विधि पूर्वक जाप करके 108 बार नित्य जपे तो सरस्वती के समान वाक्य होते है। मन्त्र :-ॐ भ्र भ्र वः श्वेत ज्वालिनी स्वाहा / विधि -अग्नि उतारक मन्त्र / मन्त्र .---ॐ चिली चिली स्वाहा / विधि :-सर्वोच्चाटन मन्त्र / मन्त्र :-ॐ ऐं ह्रो श्रीं वद वद वाग्वादिनी क्ली नमो ॐ अमृते अमृत वर्षरिण पट पट प्लावय प्लावय ॐ हंसः। (कलवारिणमन्त्र) विधि -अग्नि उतारण मन्त्र / मन्त्र .-ॐ नमो रत्नत्रयाय अमले विमलें वर कमले स्वाहा।। (बार 21 तैलमभिमंत्र्य दापयेत् विशल्याभवति गुविणो) विधि :-इस मन्त्र से तेल 21 वार मन्त्रित कर गभिरणी स्त्री को देने से शोघ्र कष्ट से छुट जायगी। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ चंदप्पहस्ससिजण्यउ मे भगवइ महवइ महाविज्या चंदे चंदे चंदप्पमे सुप्पभे अइप्पभे महाप्पभे ठः ठः स्वाहा / (लाभ करण मन्त्र) विधि :-इस मन्य का नित्य ही 108 बार स्मरण करने से लाभ होता है। मन्त्र :-ॐ हः झू झूहः। (शिरोत्ति मन्त्र) विधि :- इस मन्म ने मस्तक को मन्त्रित करने मे सिर का दर्द मिटता है। मन्त्र :-ॐ भूधर भूधर स्वाहा / (खजूरा मन्त्र)
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________________ 74 लघुविद्यानुवाद विधि -इस मन्त्र को पढता जावे और नीम को डालो से झाडा दे तो विच्छू का जहर नष्ट होता है। मन्त्र :-ॐ पद्म महापद्म अग्निं विध्यापय विध्यापय स्वाहा / (अग्नि स्तम्भन मन्त्र) ____ॐ नमो भगवते पार्श्वचद्राय गोरी गंधारी सवं संकरी स्वाहाः / विधि -(मुखाभि मत्रेण 108 बार अदियता) / मन्त्र :-ॐ ह्रमम सर्व दुष्टजनं वशी कुरु कुरु स्वाहा / (समरंड मरंमारि रोग सोगं उवछवं सयलं घोरं चोरं पसमेउ सुविहि संघस्स संति जणो वार 21 शांतये स्मरणीया) विधि -युद्ध मे मरने के समय मे अथवा रोग, शोक, उपद्रव सकल घोर, चोरो के पास मे पहुँच जाने पर अथवा चतुर्विध सघ की शाति के लिये शात चित्त से 21 वार स्मरण करना चाहिये। मन्त्र -ॐ ए हु सुउग्रइ सुरोए जिन्मति तिमिर संघायां प्रगलिए वयरणा सुद्धाए गंतरमापुरणो एहि हुं फुट् स्वाहा / (एकान्तर ज्वर विद्या) विधि :-इस मन्त्र से एकान्तर ज्वर वाले को झाडा देने से ज्वर दूर हो जाता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे महाविद्य येनकेन चिन्ममोपरि पापं चितितं कृत कारितं अनुमतं वातत्पापं तस्यवै मस्त के निपत्तउ मम शांति कुरु कुरु पुष्टिं कुरु चिरि अहि अहि अहिरिण स्वाहा / (अंगुल्यागृह्यते भूतं नाश्यति) विधि -(इस मन्त्र की विधि उपलब्ध नहीं हो सकी है।) मन्त्र :-ॐ चलमाउ एया चिटि चिटि स्वाहा / (कलवारिण मन्त्र) विधि .इस मन्त्र की विधि उपलब्ध नहीं हो सकी है। मन्त्र :-ॐ विमिचि भस्मकरी स्वाहा / (विशुचिका मन्त्र) विधि -(इस मन्त्र से खुजली दूर होती है।) विधि -इस मन्त्र से झाडा अथवा पानी मन्त्रित कर देता जावे तो दृष्टि दोष दूर होता है। मन्त्र .-ॐ नमो धम्मस्त नमो संतिस्स नमो अजियस्स इलि मिलि स्वाहा / (श्रव श्रुति मन्त्र)
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________________ लघुविद्यानुवाद 75 विधि -अनेन मत्रेण चक्षु कर्णोचाधिवास्य आत्मविपये परविषये च एकात स्थीतो यत् श्रुणेति तत्सत्य भवति / मन्त्र :-ॐ ह्रां ह्रीं ह्रग्लां जिनचंद्राचार्य नाम गृहरणेण अष्टोत्तर शतव्याधीः क्षयं __ यां तु स्वाहा / (रोग क्षय मन्त्रः अत्थरण कंडकं क्रियते / ) विधि -इस मन्त्र से पानी से मन्त्रित करके देने से 108 व्याधी नाश को प्राप्त होती है, पानी 108 बार मन्त्रित करना चाहिये / जब तक रोग न जाय तब तक मन्त्रित पानी देवे। मन्त्र :-ॐ क्षः क्षः। (कर्णरोगोपशमन मन्त्र) विधि -विधि नही है। मन्त्र :-ॐ ह्री ठः। (अग्नि स्तंभन मन्त्र) मन्त्र :-ॐ ह्रीं नमः श्रीं नमः ह्रीं नमः स्वाहा / विधि .-अनेन मन्त्रेण कागुरिण (माल कागणी) म्रक्षीता श्चरणका अभिमत्र्यते ततो गुडेन धूपयति गुडे नैव सवेष्प्य भक्षते विद्या प्रभवति / इस मन्त्र से मालकागुणी और चना मन्त्रित कर उन चना और कागुनी को गुड की धूप लगावे फिर चना और कागुनी को गुड से वेष्टित करके खावे तो बहुत विद्या आती है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते आदित्याय असिमसि लु'तोसि स्वाहा / (अर्कोतारण मन्त्र) विधि :-इस मन्त्र की विधि उपलब्ध नहीं हो सकी है। मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय मणिभद्राय महायज्ञ सेनाधिपतये ॐ कलि कलि स्वाहा / विधि - अनेन दतकाष्ट सप्त कृत्वोऽभि मत्र्य प्रत्युषे भक्षयेत् अयाचित भोजन लभते / दतवन ( दातुन ) के सात टुकडे करके इस मन्त्र से 21 बार मन्त्रित करके प्रातः खावे याने दातुन करे तो अनमागे भोजन मिलता है। याने भोजन के लिये याचना नही करनी पडतो है। मन्त्र :-निरु मुनि स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से झाड़ा देने से दात की वेदना शात होती है / मन्त्र :-निकदुरि स्वाहा / (विश्रु चिका मन्त्र) विधि -इस मन्त्र से राख ( भस्म ) मन्त्रित करके खुजली पर लगाने से खुजली रोग शात होता है। मन्त्र :-ॐ अजिते अपराजिते किलि 2 स्वाहा /
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________________ 76 लघुविद्यानुवाद विधि .-ऐषा विद्या वैर, व्याघ्र, दष्ट्राणा वध करोति ककरिका सप्ताभिमत्रता कृत्वा दिक्ष विदीक्षु क्षिपेत् / इस मत्र से ककरियो को 7 वार या 21 वार मन्त्रित करके दिशा विदिशाओ मे फेकने से वैर, व्याघ्र, दात वाले जीवो को बद कर देता है। याने इनका उपद्रव नही होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे ममस्वस्ति शांति कुरु कुरु स्वाहा। विधि :-यह मन्त्र सिर्फ स्मरण करने से सर्व प्रकार की शाति होती है। मन्त्र :-ॐ ह्री अंबिके उर्जयंत निवासिनी सर्व कल्याण कारिणी ही नमः / विधि .- इस मन्त्र को स्मरण करने से सर्व प्रकार का कल्याण क्षेम होता है / मन्त्र :-ॐ ह्री कपिले लंगेपुरो वः महामेद्य प्रवर्षणस्य अनेक प्रदीपनकं विज्ञाट्रापय 2 स्वाहा। विधि -जाति पुष्पे 108 मूल साधन एकविशति कृत्वोऽभिमत्रनेन अविलेन धारादीयते प्रदीपन कैन कामति / मन्त्र :-इंदते प्रज्वलितं वज्र सर्व ज्वर विनाशनं अनेन अमुस्य ज्वरं वज्रण चूर्णयामि यदि अद्यापिन कुर्वतो। विधि -इस मन्त्र मे जल को 21 बार मत्रित करके पिलाने से ज्वर का नाश होता है। मन्त्र :-धुणसि चचुलीलवंकुली पर विद्या फट् स्वाहा हूँ फट् स्वाहा / विधि :-इस मन्त्र का स्मरण करने से पर विद्या का स्तम्भन होता है / मन्त्र :-ॐ अप्रति चक्र फट विचक्राय स्वाहा / विधि :-इस मन्त्र का स्मरण करने से सर्व कार्य सिद्ध होता है। मन्त्र :-ॐ हँस शिव हँसः हं हं हं सः पारिरेहंस प्र (त्थि) जांगुली नामेण मंतु असुरणं तहं पटि जइ सुरणइ तो कोडउ मरइ अहन सुणइ तो सत्त वासाइ नि(द्वि) विसो होइ ॐ जांगुलि के स्वाहाः। विधि - इस मन्त्र से बालु 21 बार मन्त्रित करके साप की बामी अथवा साप के विल पर डाल देवे तो साप बिल छोड कर भाग जायेगा। मन्त्र :-ऐ क्लीं ह्रसौः रक्त पद्माति नमः सर्वमम वशी कुरु कुरु स्वाहा ॐ अलू मलू ललू नगर लोकूराजा सर्व मम वशी कुरु कुरु स्वाहा / विधि - इस मन्त्र से लाल कनेर के पूष्प 21 बार मन्त्रित करके नगर के प्रवेश के समय अथवा राज के सम्मुख अथवा प्रजा के सम्मुख डाले तो राजा प्रजा नगरवासी सब वश में होते है।
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________________ लघुविद्यानुवाद 77 मन्त्र :-ऐ क्लीं ह्रसौ कुडलिनी नमः। विधि -इस मन्त्र का त्रिकाल 108 बार जपने से कुभाग्य भी सौभाग्य हो जाता है। मन्त्र :-पनरस सयता वसारणं दिखु दितस्स गोयम मुनिस्स उवगररणं वहु देइ धरणऊ धन्नारण भन्वारणं ॐ नमो सिद्ध चामुंडे अजिते अपराजिते किल कलेश्वरी हूं फट् स्वाहा या फुफट् स्वाहा / इत्यस्य स्थाने स्फुट विकट करी ठ ठः स्वाहा ऐसा भी होता है। विधि .-इस मन्त्र का स्मरण करने से मार्ग का श्रम दूर होता है / मन्त्र :--ॐ नमो भगवते क्रोध रुद्राय हन 2 दह 2 पच 2 हूंहः स्वत्र केरण अमुकस्य गृहं नाशय स्वाहा। विधि -इस मन्त्र से डोरा को 21 बार मन्त्रित करके 5 गाठ लगावे फिर उस डोरे को हाथ मे बाधे तो सर्व उपद्रव नाश हो जाते है / मन्त्र :-ॐ प्रां कों प्रों ह्रीं सर्व पुरजनं राजानं क्षोभय-क्षोभय पानय-पानय ममपादयो पातय पातय प्राकर्षिणी स्वाहा ॐ नमो सिद्ध चामुडे अजिते अपराजिते किली 2 रक्ष 2 ठ: 3 स्वाहा ॐ नमो पार्श्वनाथाय ॐ णमो अरहंतारणं ॐ णमो सिद्धारणं ॐ रणमो पायरियारणं ॐ णमो उवज्झायारणं ॐ रणमो लोए सव्वासाहूरणं ॐ नमो गाणाय ॐ नमो दंसणाय ॐ नमो चरिताय ॐ ह्रीं त्रैलोक्यवंशकरी ॐ ह्रीं स्वाहा जइतः। मन्त्र :-ॐ व्रजसेणाय महाविद्याय देव लोकाउ आगयाय इमंघति उं इंद जालु दिशि. वंधं विदिशि बंधं प्रायासंबंधं पायाल बंधं सर्व दिशाउ बंधं पंथे दुप्पय वंधं, पंथे बंधं चउप्पयं घोरं पासीविस बंधं, जाव गंथी न छुटइ ताव ह्री स्वाहा / विधि -बार 7 जपित्वा विपरीत न थी वध्वा वामदिशि कुर्यात ताचल धुनित्पादौ वर्जयेत् / मन्त्र :- ॐ नमो भगवऊ वर्द्ध माणस्स जस्सेयं चक्कं जलंतं गच्छइ संयलं महिमंडलं पयासंत्त लोयारणं भूयारणं भूवणारणं जूए वाररणे वारायं गणे वा जंभरणे थंभरणे मोहणे सव्वसत्तारणं अपराजिऊ भवामि स्वाहा। ॐ नमो प्रोहिजिरगाणं नमो परमोहिजिरणारण नमो खेलोसहि जिरगाणं णमो अरहताणं गमो सिद्धारणं ॐ ह्रीं श्री धरणेन्द्राय श्री पद्मावति सहिताय ॐ मारक्ष 2 महावल स्वाहा / ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय शिरोमरिण विद्रावकाय स्वाहा / विधि .-पुरषस्य दक्षिणेन स्त्रियावामेन वाहनीया शिरोत्ति मन्त्र /
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________________ 78 लघुविद्यानुवाद मन्त्र :-ॐ ह्रीं पांचाली 2 जो इमं विजं कंठे धरिइ सो जाव जीव अहिणा नड सिझइति स्वाहा / वार 21 गुण सुप्पते / मन्त्र :-ॐ चंडे फुः / विधि -इस मन्त्र को 21 बार पढकर फूक देने से बिच्छु का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-आदित्यरथ वेगेन वासुदेव बलेनच गुरूड पंक्षिनिपातेन भूभ्यां गछ गछ महा बलः / ॐ उनीलउ कविलउ भमरू पंखाल उ रत्तउ विछिउ अनंत्तरि कालउ एउ मंत्र जो मरिण अवधारइ सो विछिउ डक उत्तारइ / विधि -इस मन्त्ररूप मणि को जो जो धारण करता है याने स्मरण करता है वह विच्छू के डक के जहर को उतार देता है। मन्त्र :-ॐ जः जः ज जः कविसी गाइ तरणइच्छारिण तिरिणउप्पन्नी विछिरिण पंचता हांलगिउ अठारह गोत्र विछिरिण भरणइनिसुणिहो विछिय विसुपायाल ह हु तउ प्रावइ जिम चडतु तिम पडंतु छइ पायालि अभिय नव नव कुण्ड ' सो अभिउमइ मंत्रिहि आरिणउडकह दीधतई विसु जारिणउ ॐ ज जः ज. जः जः / विधि -इस मन्त्र को पढकर झाडा देने से बिच्छू का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-मइदिट्ठी कल्पालिणी श्री उझयिरणी मडा चोरती ब्रह्माधी विलवती तासुपसा इ मइ शिषव द्वीवलवंति त्रिभुवणु वसिकरउ / विधि .-विधान रक्षा मन्त्र / यहाँ अभिप्राय कुछ समझ मे नही आया है। मन्त्र -काला चोला पहिरणी वामइ हथि कपालु हउ शिव भवरणहनिसरी को मम चंपई वारु वाली कपाली ॐ फूट स्वाहा / (र. वि. मन्त्र) मन्त्र :-वधस्स मुख करणी वासर जावं सहस्स जावेण हिलि हिलि विझाण तहारिउ वल दप्पं परणासेउ स्वाहा / विधि -कृष्ण चतुर्दशी को उपवास करके शुद्ध होकर रात्रि मे इस मन्त्र का 1000 जप करके सिद्ध कर ले, फिर 108 बार प्रतिदिन जपने से शीघ्र ही बधन को प्राप्त हुए मनुष्य का छुटकारा होता है तुरन्त ही बदी मोक्ष होता है। मन्त्र :-ॐ विधुजिह्व ज्वालामुखी ज्वालिनी ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल धग धग धूभांध कारिणि देवी पुरक्षोभं कुरु कुरु मम मनश्चिन्तितं मन्त्रार्थ कुरु कुरु स्वाहा।
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________________ लघुविद्यानुवाद 76 विधि -इस मत्र को कपूर चदनादि से थाली मे लिखकर सफेद अक्षतादि (मोक्ष पूर्व) से मन्त्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लौ कलिकुण्ड स्वामिन् सिद्धि श्रियं जगद्वश मानय स्वाहा। विधि -इस मन्त्र को कपूर चदन केशरादि से पाटा के ऊपर लिख कर 21 दिन तक प्रतिदिन 108 बार अनशनादि तप पूर्वक जाप करे आदरपूर्वक आराधना करे फिर निश्चित रूप से अभीष्ट सिद्धि होगी। यह मन्त्र चितामणी है। मन्त्र :-ॐ ओं कों ह्रीं ऐं क्लीं ह्रसौ देवि पद्म मे सर्व जगद्वशं कुरु सर्व विघ्नान् नाशय नाशय पुरक्षोभं कुरु कुरु ह्रीं संवौषट् / विधि -इस मन्त्र को लाल कनेर के फूलो से 12000 (बारह हजार) जाप करे फिर चने के बराबर मधु मिश्रित गुगुल की गोली 12000 (बारह हजार) बनाकर होम करने से मन्त्र सिद्ध हो जायगा। इस मन्त्र के प्रभाव से राजादिक वश मे होते है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्लीं पद्म पद्मावति पद्म हस्तेपुरंक्षोभय क्षोभय राजानं क्षोभय मंत्रीणं क्षोभय क्षोभय हूं फट् स्वाहा / विधि .-इस मन्त्र को भी लाल कनेर के फूलो से और लाल रग मे रगे हुए चावल से 12000 (बारह हजार) जाप करके मन्त्र को सिद्ध करे / यह मन्त्र भी वशीकरण मन्त्र है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पिशाच रुद्राय कुरु 3 यः भंज भंज हर हर दह दह पच पच गृहन गृहन् माचिरं कुरु कुरु रुद्रो प्राज्ञापयाति स्वाहा / विधि .-इस मन्त्र से गुगल, हिगु सर्षय (सरसो), सॉप की केचुली इन सब को मिलाकर मन्त्र से 108 बार या 21 बार मन्त्रित करे फिर रोगी के सामने इन चीजो की धणी देवे तो तत्क्षण शाकिन्यादि दुष्ट व्यतरादि रोगी को छोडकर भाग जाते है और रोगी निरोग हो जाता है। विधि -इस मन्त्र से पानी 108 बार मन्त्रित करके पिलाने से पेट का दर्द शात होता है। मन्त्र :-ॐ सिद्धि चटकि धाउ पटकी फूटइ फूहुन, वंधइ रकुन वहइ वाट घाट ठः ठः ___स्वाहा / त्रिम्मादेवी चंडिकालि, शिखरु लोही पूकु सुकि जाइ हरो हरः देवी कामाक्षा की आज्ञा फुरै जइ इहि पिडिरहइ पीडा करहिं / विधि -इस मन्त्र को अरणी कडो की राख को 108 बार मन्त्रित कर आँख पर लगाने से आँख की पीड़ा शात होती है।
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________________ 80 लघुविद्यानुवाद मन्त्र :- समुद्र समुद्र मांहि दीपु दीप माहिं धनाढयु जी दाढ़ की डउखाउ दाढ़ कीडउ नरवाहित अमुक तरणइ पापी लीजउ / विधि -इस मन्त्र से 7 बार या 21 बार (उजने) मन्त्रित करने से दाढ पीडा दूर होती है। मन्त्र :-ॐ उतुंग तोरण सर्प कुण्डली गतुरी महादेवुन्हाइ कसणउ ढलि जाइ वलि छीनउ मूसलिछोनउ कारवविलाइ छीनउ ऊगमुखी पाठ मुखोछोनउ थावरउछीनउ कालहोडीछीनउ वराहीछोनउ वाठसीछीनउ गडुछीनउ गुवमुछीनउ चउरासी दोषछोनउ अठासीसय व्यछीनउ छीनी-छीनी भीनी-भीनी महादेव की प्राज्ञा। विधि --अरणी कडे की राख को मन्त्रित करके उस भस्म को 3 या 5 या 7 दिन फोडे के ऊपर बाधने से दुष्ट स्फोटिकादिक का नाश होता है। मन्त्र -प्रावइ हणवंतु गाजंउ गुड डंउ वाजामोरिउ अाछा कंद रखउ हाथमोडंउ पायमोडउ,चउथि काटइ चउथि उतारइ रक्त श्रु ल मुख श्रु ल सवे श्रु ल समेटि घालिवा पुप्रचड हणुमत की शक्तिः / विधि .-इस मन्त्र से पानी 21 बार मन्त्रित करके पिलाने से और श्रल प्रदेश मे लगाने से अजीरणं विश्रुचिका झूलादि की शाति होती है। स्त्री के प्रसव काल मे इस मन्त्र से मन्त्रित पानी पिलाने से तत्क्षण प्रसव होता है / मन्त्र :-एडा पिंगला सुख मिना जडा वीया नाडी रामु गतु सेतु वंधि सुख वंधि मुखा खारु वंधि नव मास थंभू दशमइ मुक्ति स्तंभू 3 / / विधि :-इस मन्त्र से कन्या कत्रित सूत्र को स्त्री के बराबर नाप कर ले फिर 6 लड करके 21 वार मन्त्रित करके उस डोरे को स्त्री की कमर मे बाधे तो गर्भ का स्तभन होता ह और नौ मास की पूर्ति हो जाने पर कमर मे वाधा डोरा को खोल देने से तुरन्त प्रसव हो जाता है। मन्त्र :-ॐ चक्र श्वरी चक्रांकी चक्र वेगेन घट भ्रामय-भ्रामय ह्रां ह्री ह ह हा हः जः ज. ॐ चक्रवेगेन घटो भ्रामय भ्रामय स्वाहा ॐ भृकुटि मुखी स्वाहा ॐ हिमल वर्ज स्वाहा / विधि -घट भ्रामण मन्त्र / मन्त्र :-ॐ नमो चक्र श्वरी चक्र वेगेण शंख वेगेन घटं भ्रामय भ्रामय स्वाहा हो ही होरी सणरीसो अदमदपुरी सोडग मडचर्याइउद्दिउ दक्षिण दिशा
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________________ लघुविद्यानुवाद 81 हागी लगा महादेवी किली 2 शब्दं जंकार रूपी अदमद चक्कि छिन्नी 2 मडाशिनि छिन्नि 2 कंवोडती छिन्नि 2 अदमद सामिरिण छिन्नी हो ही होरी सगरी पर सो पुरुष दिवायर भंजइ मुद्रयसयाई तिहिं बारि हिंपई संताई कंपई वहुविह सायरत्त कम्मइ परिहरहुं रायक पावंती चिगि चिगाइ कंवोडी डाइणि फाडइ सिहोही होरी सगरोसोविष नासरिण हर चलि छिन्नी सुदरशरिण। विधि -इस मन्त्र से गुगल मन्त्रित करके धूप देने से जो भी बाधा होगी वह प्रकट होगी। अगर भूत की बाधा होगी तो आग मे मन्त्रित गुगल को डालने से कडवी बदबू आयेगी, चमडे की गध आवे तो शाकिनि बाधा, षुसरभि की गध से योगिनी बाधा। मन्त्र :-ॐ नमो भगवइ कालि कालि मरुलि काक चंडालि ठः ठः। विधि -इस मन्त्र को 7 बार मन्त्रित (जप) करके गोबर से मडल करे / मन्त्र :-ॐ नमो ब्रह्मदेवश्वराय अरे हरहि मरि पुंडरि ठः ठः / विधि -इस मन्त्र को 108 बार जप कर (शाल्योदन सत्कामधु घृत) मिश्रित करके स्थापन करे फिर प्रथम डभ द्वितीये मृदु तृतीये अगारा कल्पनीया * प्रथमे काक पाते शीघ्र वर्षति द्वितीय पक्षण तृतीये न वति / मन्त्र :-ॐ ब्रह्मणि विश्वाय काक चंडालि स्वाहा / (काकाह्वान मन्त्रः) मन्त्र :-काम रूपी विपइ संताडावइ परवइ अछइ कोकिलउ भइखु अजिउ सुको किलउ भइखु पहिरइ पाऊचडइ हांसि चडइ कहा जाइ श्री उजेणी नगरी जाइ उजेणी नगरीछइ गंध वाम सणुता हंछइ सिद्धवटु सिद्धवट हे द्विवल इछइ चिहाचिहां दाडाइ मडउं मडाहाथि छइ कपालु कपालियंतु यत्रि मन्त्रु मन्त्रि कामउ कामई कामतु नामदु ऐ क्लीं शिरु धूरणय 2 कटिकंपय 2 नाभि चालय चालय दोषतरणा पाठइ महादेवी तणे वारणे हरिण हरिण खिलि खिलि मारि मारि भांजि 2 वायु प्रचंडु वोरु कोकिल उभइर वु जः जः विधि .-इस मन्त्र को सात बार जपने से दोष नही (प्रभवति) प्रकट होगा। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं पार्श्वनाथाय प्रात्म चक्षु पर चक्षु भूत चक्षु पिश्र न चक्षु 2 डाकिनि चक्षु 2 साकिनी चक्षु सर्वलोक चक्षु माता चक्षु पिता चक्षु अमुकस्य चक्षु दह दह पच पच हन हन हूं फट् स्वाहा /
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________________ 82 लघुविद्यानुवाद विधि :-यह मन्त्र 21 जपे (कलवाणी मन्त्र) / मन्त्र :-ॐ चिकिचि हि रिण स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से भस्म (राख) को 21 बार मन्त्रित करके चारो दिशाग्रो मे फेकने से मशक भाग जाते है। मन्त्र :--ॐ ठो ठों मातंगे स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से सरसो 21 बार मन्त्रित करके डालने से चूहे भाग जाते है / मन्त्र :-ॐ स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र से कन्या के हाथ का सुत कता हा ७बार मन्त्रित करके खटिया के वाध देने से खटमलो का उपसर्ग दूर होता है। मन्त्र :-ॐ हर हर भमर चक्षु स्वाहा / विधि :-इस मन्त्र से सुपारी मन्त्रित करके 21 बार, फिर खावे तो दाँत के कीडे वाहर पा जाते है। मन्त्र :-ॐ क्ल्व्याक्ली क्लेशिनि सर्व दुष्ट दुरित निवारिरिण हूं फट् स्वाहा / ॐ अमृते अमृत्तोद्भवे अमृत वर्षिणी अमृत वाहिनी अमृतं श्रावय 2 सं सं ह्र ह्र क्लीं 2 ब्लु 2 द्रां द्री दुष्टान द्रावय 2 मम शाति कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु दुःखमपनय 2 श्री शांतिनाथ चक्र न अमृत वर्षिणी स्वाहा / विधि .-इस मन्त्र को 21 बार जपे। (कलवाणी मन्त्र) मन्त्र :-ॐ समरि समिरि सिद्धो समरी प्रातुरि आतुरि परि पूरि नाग वासिरिण तं अस्थि वासिरणी प्राकासु वंध पाताल वंध दिशि वंधु अवदिशि वंधु डाकिरिण वंध शाकिरिण बंध बंध वंधेरण लंकादही तेण हणु एण लोहेन / विधि :-इस मन्त्र को 21 बार जपने से सर्व उपद्रव शान्त होते है / (कलवानी कृते) मन्त्र :-ॐ हिमवंत स्योत्तरे पार्वे कठ कटी नाम राक्षसी तस्यानूपुर शब्देन मकुरणा दृश्यंतु ठः ठः स्वाहा / विधि .-इस मन्त्र से कीडा-कोडी अदृश्य हो जाते है / मन्त्र :-युधिष्ठर उवाचेत्यधिकंच अते वते कार्य सिद्ध विसवंतो अजीन भाठ किलि किनिपातेसु गुदिनिनिपातेषु वातहरि सेसु पीत्त हरीसेसु सिलेसम हरिसेसु
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________________ लघुविद्यानुवाद ब्राह्मणो चत्वारो गाथा भरणंती काली महाकाली लिपिसिपि शारदा भयं पंथे। विधि -अर्श उपशम मन्त्र हरिश स्थानेषु श्रूलोचारणे सति शूलोपशम मन्त्रः। मन्त्र :-आउभूत जीव आकाशे स्थानं नास्ति ॐ असि पाउसा ॐ नमः (त्रैयामन्त्र) मन्त्र :-ऐ क्लीं ह्रसौ (नाभि, हृदय, स्थाने वामा नां वश्य ललाट मुख वक्षसि नृणां वश्यं) मन्त्र :-ॐ नमो चामुडा फट्टे फट्टेश्वरी। विधि -अनैनते ल, सुट्ठी, च वार 7 प्रदक्षिणा वर्त 7 वामा वर्त चामि मत्र्यत्तत स्तैलेन टिक्कक करणीय सुठया चूणि कृत्यान नस्युर्देया / मन्त्र :-ॐ ऐं ह्रीं अंबिके प्रां का द्रा द्रीं क्लीं ब्लू सः ह्मक्लीं नमः ॐ ह्रीं ह्रः श्रीं स्वाहा ॐ ह्रमम सर्वदुष्ट जनंवशी कुरु कुरु स्वाहा ॐ नमो भगवत्तेरि षभाय हनि हनि ते / विधि - इस मन्त्र को प्रात 108 बार स्मरण करने से सुन्यतादि सर्व रोग शात होते है। मन्त्र :-ॐ सो सूसें सः वृश्चिक विषं हर हर सः / विधि -प्रनेन बार 21 ख टिकायामभि मत्रिताया वृश्चिक उतरति / विधि -इस मन्त्र से खटिया को 21 बार मन्त्रित करने से बिच्छु का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-ॐ ऋषभाय हनि हनि हना हानि स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को 21 बार या 108 बार जपने से कपायेन्द्रिय का उपशम होता है, विशेष तो निद्रा, तन्द्रा का नाश करने वाला है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्री क्ली कलिकुण्डे 2 अमुकस्य आपात्त रक्षरणे अप्रतिहत चक्र ॐ हों वोरे वीरे 'जयवीरे सेरणवीरे वढ़माणे वीरे जयंते अपराजिए हूं फट् स्वाहा / ॐ ह्री महाविद्य आर्हत्ति भागवति पारमेश्वरी शांते प्रशांते सर्वक्षद्रोपशमेनि सर्वभय सर्वरोगं सर्वक्षुद्रोपद्रवं सर्ववेला ज्वलं प्रणाशय 2 उपशमय 2 सर्व संघस्य अमुकस्य वा स्वाहा ॐ नमो भगवऊ संतिस्स सिजउ में भगवइ महाविद्या संत्ति संत्ति पंसत्ति पंसत्ति उवसंत्ति सव्वपावंपसमेउ सव्वसत्ताणं दपय चउप्पयाणं संति देश गामा गर नगर पट्टण खेडेवा रोगियारणं पुरिसारणं इत्थीणं न पुसयारणं अट्ठसयाभि मंतिएणं धूप पुष्प गंध माला लं कारेरणं संति / कायव्वा निरुवसग हवइ 3 /
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________________ 84 लघुविद्यानुवाद विधि .-ऐते स्त्रिभिरपिवासा जल च प्रत्येक मष्टोत्तर शत वारान् अभिमत्र्या यदा त्वत्फत्सुक भवति तदा प्रत्येक बार 51 अभिमत्र्य. हस्तवाहन च / मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय वज्र स्फोटनाय वज्र वज्र एकाहिक रक्ष रक्ष द्वयाहिकं रक्ष रक्ष व्याहिकं रक्ष रक्ष चातुथिकं रक्ष रक्ष वात ज्वर पित्त ज्वरं श्लेष्म ज्वरं संणिपात्र ज्वरं हर हर अात्म चक्षु परचक्षु भूतचक्षु पिशाच चक्षु शाकिनि चक्षु डाकिनि चक्षु माता चक्षु पिता चक्ष ठठारि, च मारि व रुडिकल्लालि वेसिरिण, छीपिरिण, वाणिरिण, खत्रिणि, वंभरिण, सु नारि सर्वेषां दृष्टि वधि वंधि गति बंधि 2 ऊडोसिरिण, पाडोसिरिण, घरवासिरिण, वाल वृद्धियुवारिण, शाकिरिणनां हन हन दह दह ताडय ताडय भंजय भंजय मुखं स्तंभय स्तंभय इलि मिलि ते पार्श्वनाथाय स्वाहा। विधि -अनेन प्रत्येक गुणणा पूर्व तचसप्तवा ग्रन्थयो वध्यन्ते / मन्त्र :-ॐ क्षु / विधि -इस मन्त्र से माथे का रोग (दुखना) शान्त होता है / मन्त्र :-ॐ ह्रीं चंद्रमुखि दुष्ट व्यंतर रोगं ह्रो नाशय नाशय स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से 21 बार अक्षत (तन्दूल) श्वेत मन्त्रित करे, दुष्ट व्यतर कृत रोग शात होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते सुग्रिवाय कपिल पिंगल जटाय मकुट सहश्र योजनाय आकर्षणाय सर्वशाकिनिनां विध्वंशनाय सवभूत विध्वंशनाय हरिण हरिण दहि दहि पचि पचि छेदि छेदि दारि दारि मारि मारि भक्षि भक्षि शोषि शोषि ज्वालि ज्वालि प्रज्वालि प्रज्वालि स्वगि इंदु पाताली वासुगि अहट्ठ कोडि भूतावलि जोहि जोहि मोहि मोहि उच्चाटि उच्चाटि स्तिंभि स्तिभि वंधि वधि हूं फट् स्वाहा / विधि -7 बार स्मरण करने से आशान प्रभवति / मन्त्र :-ॐ अंगे बंगे चिर चंडालिनी स्वाहा / विधि :--अनेन बार 7 अभिमत्रीतयो गोमूत्र घृष्टया गुटिकया चक्षु रजने वेलोय शाभ्यति / मन्त्र :-ॐ सोखाऊ नारू छिन्न तडक छिन्नउं पडडाह छिन्नउ गद होडी फोडी छिन्नउ रक्त फोडि छिन्नउ रक्तीफोडि कउरिण उपाइ देवी नारायणि उपाइछिन्नउ
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________________ लघुविद्यानुवाद 85 भिन्न अर्जुन कइवारिण नार सिंह कइ मन्त्री म्हारइ हाथि शरीर विसइ नाथि चउसटि सह दोष नाथि वावन्नसइ लोंट नाथि आरिण आणि कट्टि कट्टि सोखाम्हारउ वुत कीजइ काटि फोडी पासिधरजइ अइसउ सोखा तुंवलि वंतउ लायउ लग्गइछवियउ छटु इ फूट उफटु उ घाइ लग्रइ वायुसोखाचेट की शक्ति, ए, ए, मंत्रन जाहि भस्मेन लहुइउ हंसा ठाउ, उच्चरइ संमुद्रहतीरि पंखपसार इविसुहडइ अई अहभरइ शरीरुउ सरुदिसपसरु हंस समुजीव परिवसइ विदूनास्ति विसुज फोडी छिन्न काली फोडी छिन्नउ कविलि फोडि छिन्न लोही फोडि छिन्न राती फोडी छिन्नलुय छिन्न पारिणयलुय छिन्न ॐ सुकवरण सुकु ॐ हत्तइ संकरु मच्छइ बह्मा टोपइ उठ्ठ उछ वइसु वइसु सुकइ करइ कूडि सिरी नाइं गयउ देउ जय जया विजया जेण तेरण पंथेरण कट्टि धल्लिरिवेडा जइन कट्टि घल्ल इंत महादेव की भार संकल तूपडइ फोडी वैश्वानर तोडी नीरवरिहि किनीस्वार हू कि वैश्वानरि प्रज्वाल वज्र स्वादियउ मूलि जिम्व धूलि छलि छिदि छमि कालु रुद्र अग्नि उम्पुड हइ जइ इवु पिडिरह इज फोडी सिवनास्तिविसु / विधि –अनेन मन्त्रेण लूतादि फोडी वार 7/21 (उजिता श्रुष्यति) मन्त्रित करने से तुलादिक से होने वाले फोड़े-फुन्सी शात होते है। मन्त्र :-हूं खे रक्षे खः स्त्रीक्षे हूं फट् / विधि :-लक्ष जाप्यान् मोक्ष / मन्त्र :-ॐ इति तिटि स्वाहा। विधि :-108 बार भणित्वा त्रिकाल हस्त वाहन कार्य कारव विलाइ पीडा नाशयति / मन्त्र :-लूण लूणा गरिहि उत्पन्न जोगिणिहिउपायउ जाहि गलिमि उरत्ताविकलि जमष्यु देखिन सक्कइ सुवामिय पातालि / विधि - इस मन्त्र से नमक को सात बार मन्त्रित करके जिसके नाम से खावे वह वशी होता है। मन्त्र :-ॐ ऽमर्हसिद्ध संयोगि केवलि स्वाहा / ॐ आइच्चु सोम मंगल बुद्ध गुरु सुक्को शनि छरो राहु केतु सव्वे विगहा हरंतु ममविग्यरोग चयं ॐ ह्रीं अछुप्ते मम श्रियं कुरु कुरु स्वाहा आहिय सराहिया हः म्हः यः यो हु वः ऊहः /
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________________ लघुविद्यानुवाद विधि :-इस मन्त्र से धूली (मिट्टी) को 5 या 7 बार मन्त्रित करके, दुष्ट के सामने डालने से दुष्ट उपशम हो जाता है और वश मे हो जाता है। मन्त्र --ॐ हः हः हंसः सः सः हंसः षषः हंसः रः रः हंसः झः झ. हंसः जागु हंस विधि -अनेन ऊजनेन कल्पानीये च कालदष्टो जिवति एते स प्रन्ययाः / मन्त्र ---ॐ भगमालिनी भगवते ह्रीं कामेश्वरी स्वाहा / विधि :-वस्त्र, पुष्प, पान आदि मन्त्रित कर देवे तो वश मे होता है / मन्त्र :-ॐ जंभे थंभे दुटुमंथं भय मोहय स्वाहा / विधि -वासाधूपो जलवा 21 वार अभिमन्यते / मन्त्र --ॐ प्रात्म चक्षु पर चक्षु भूत चक्षु शाकिनी चक्षु डाकिनी चक्षु पिसुन चक्षु सर्व चक्षु ही फट् स्वाहा। विधि -इस मन्त्र से झाडा देने से नजर लगने वाले का दृष्टि दोष दूर होता है / मन्त्र :-ॐ दीट्रि विसुन दीटि विसुथावर विसु जंगम विसु विसु विसु उपविसु उपविसु गुरु को प्राज्ञा परमगुरु की आज्ञा स्फुरउ प्राज्ञा स्फुरत्तर प्राज्ञा तीव्र प्राज्ञा तीव्रतर आज्ञा खर प्राज्ञा खरतर प्राज्ञा श्री का जल आदिनाथ देव की प्राज्ञा स्फरउ स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से दृष्टि दोष उतारा जाता है। मन्त्र पार्बोपर्वउ त्रिशुलधारी श्रुल भंजइ श्रु ल फोडइ तासुलय जय / विधि :- इस मन्त्र से पेट पीडा का नाश होता है / मन्त्र -हिमवंतस्यात्तरे पार्वे अश्वकर्णो महाद्र मः तत्रेव श्रूला उत्पन्ना तत्रैव प्रलयं गता। विधि -शूल नाशन मन्त्र / मन्त्र .-ॐ पंचात्माय स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को 21 बार मन्त्रित करके, ज्वरग्रस्त रोगी की चोटी मे गांठ देने से ज्वर बन्धन को प्राप्त होता है।
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________________ लघुविद्यानुवाद मन्त्र -ॐ हुं मुड़न स्वाहा / विधि :-इस मन्त्र से शाकिनी दोष से रक्षा होती है / मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय सर्व भूत वशं कराय किनर किंपुरुष गरुड गंधर्व यक्ष राक्षस भूत पिशाच शाकिनी डाकिनीनां आवेशय आवेशय कट्टय कट्टय धुर्मय घुर्मय पात्रय पात्रय शीघ्र शीघ्र ह्रां ह्रां ह्रीं ह्रह्रौ ह्रः फट् 5 यः 5 वज्र तुंडोमहाकायें वज्र ज्वलित लोचन वजदंड निपातेन् चन्द्रहास खङ्गन भूभ्यांगच्छ महाज्वर स्वाहा / (ज्वर वाहन क० मन्त्रः) मन्त्र :-ॐ नमो अप्रति चक्र महावले महार्वीये अप्रतिहत्त शासने ज्वाला मालोद्धान्त चक्क श्वरे ए हहि चक्र श्वरी भगवति कुल कुल प्रविश प्रविश ही आविश प्राविश ह्रीं हन हन महाभूत ज्वाराति नाशिनी एकाहिक द्वाहिक त्राहिक चातुर्थिक ब्रह्मराक्षस ताल अपस्मार उन्माद ग्रहान् अपहर अपहर ह्री शिरोमुच 2 ललाटं मुंच मुंच भूज मुंच 2 उदरं मुंच 2 नाभिमुच 2 कटि मुच 2 जंघां मच 2 भूमि गच्छ 2 हूं फट् स्वाहा / विधि .-अनेन ज्वरिणि हस्त भ्रामयित्वा ज्वर प्रमाणात्रि गुण कुमारीसूत्र दवरक अमु बार 21 जपन वेला ज्वरे ग्रन्थि सात एकात रादौ 2 दत्वा स्त्रीणा वामे वाही पुरुषस्य दक्षिणे वधयेत् प्रथम दवर कस्य कुकुम धूप पूजा कियते / मन्त्र :--ॐ यः क्षः स्वाहा कुमारी सूत्रस्य नवतं तवः पुरुषमानेन गृहीत्वाऽनेनाभि मंत्र्यस गुडां गुटिकां कृत्वा भक्षयेत् घृतं वा अनेन बार 108 अभिमंत्र्यपिवेत् वालको नश्यति / मन्त्र :-काच माचि केष्यिटि स्वाहा / विधि :-प्रणेन चणका वर्षोपलानि वा सूइ वाडभि मन्यते कामल वात नाशयति / मन्त्र :-ॐ श्री ठः ठः (हिडु की मन्त्रः) मन्त्र :-ॐ सीय ज्वर उष्ण ज्वर वेल ज्वरवाय ज्वरपमूह रोगे व उवसमेउ संतित्ति थयरो कुरणउ आरोग्गं स्वाहा / (वार 21 स्मरणीया)
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________________ लघुविद्यानुवाद विधि -इस मन्त्रको 21 बार जाप करने से हर प्रकार के ज्वर नाश होते है। . मन्त्र :-ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्र. ग्लांजिनदत्ताचार्य मंत्रेण अष्टोत्तर शत व्याधि क्षयं यांतु ह्री ठः ठः स्वाहा। विधि -इस मन्त्र से कन्या कत्रीत सूत्र को 7 वड करके 108 या 7 या 21 मन्त्रित करके डोरे मे 7 गाठ लगावे फिर ज्वर पीडा ग्रसित व्यक्ति के हाथ मे या कमर में बाँधने से ज्वर गड गुमडादि सर्व दोष नाश को प्राप्त होते है। मन्त्र :- ॐ ह्री श्रीं क्लीं कलिकुण्ड स्वामिन् असि प्रा उ साय नमः / विधि -- इस मन्त्र से कुमारी कत्रीत सूत्र को 108 मत्रित करके और डोरे मे 6 गाठ लगावे और कमर मे बाधे तो गर्भ रक्षा भी होती है और गर्भ मोचन भी होता है / ध्यान रखे कि गर्भ रक्षा के लिये डोरा मन्त्रित करना हो तो मत्र के साथ-साथ गर्भ रक्ष 2 बोले और गर्भ मोचन करना हो तो गर्भ मोचय 2 मन्त्र के साथ बोले तो कार्य हो जाता है। मन्त्र -ॐ रगमो अरहंतारणं, ॐ रणमो सिद्धारणं, ॐ रणमो पायरियारणं, ॐ रणमो उवझायारणं, ॐ रणमो सव्वसाहरणं एय पंचरणमोक्कारो चउबीसमध्यउ आयरिय परं परागय चंदसेण खमासमणारणं प्रत्येणं सुत्तेण दाढ़ीणं दत्तोरणं जरक्खाणं रक्खसारणं पिसायारण चोराण मुख बधारणं दिट्ठी बधारण पहार करोमि हो ठः ठः स्वाहा / / विधि .-इस मन्त्र से पानी मन्त्रित करके उस पानी को दशादिशा मे फेकने से दष्टि दोष शांत होता है। मन्त्र :-ॐ उजेरिण पाटरिण को कासु नामवाडहिउ रक्तवार छिदउ ताउ छिदउ सूधउली छिदउ फोडि छिदउ फोसली छिदउ दृष्टि छिदउ शोफु छिदउ ग्रंथि छिदउ 2 अनादि वचननेन छिदउ रामरण चक्रण छिद छिद भिद भिद ठः ठः शिरोतो शिरोति छिदउ स्वाहा। विधि -इस मन्त्र को बोलता जाय और हाथ से छुरी पकड कर उस छरी के अग्र भाग को छेदानु कार से घुमावे तो माथे का रोग, फोडे, फुन्सी का रोग शान्त होता है, किन्तु छुरी को फोडे के ऊपर घुमाना पडेगा। मन्त्र -ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय सप्तकरण विभूषित्ताय अपराजित्ताए ॐ भ्रम भ्रम रम, वज्र वज्र प्राकट्ट प्राकट्ट अमुकस्य सर्वग्रहान् सर्व
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________________ लघुविद्यानुवाद 86 ज्वरान् सर्व भूतान् सर्व लूतान सर्व वातान् सर्वोपद्रवान् समस्त वैडाकिन्यो हन हन त्राशय त्राशय क्षोभय क्षोभय विज्ञापय विज्ञापय श्री पार्श्वनाथो प्राज्ञापयति / विधि -अनेन बार 7/7 गुण्या ग्रन्थि दीयन्ते अय मन्त्र खटिकया प्रथम नव सरावे लेख्य. द्वितीय शरावे चान विछिन्न खटिकया एव विध ठ कारत्रय लिखित्वात्र शराव अधोमुख उपरि निवेश्य कुमारी सूत्रेण द्वयमपि वेष्टि यित्वा सु विधानेन मचकाधो धरणीय धूपादिना पूजनीय नैवेद्य च दातव्य सर्वरोग निवृति / मन्त्र -ॐ की ह्रीं रक्त रक्त स्वरा इदं कटोरकं भ्रामय भ्रामय स्वाहा / विधि .-श्रावक गृहानीत भस्मना वार 7 परिमार्जयित्वा मडले स्थाप्यत्ते पूजादिक विधियते / मन्त्र :-ॐ नमो भगवतेन कृताय व्याघ्र चर्म परिवत्तित शरीराय यो यो वा जपेयो भवति सोऽस्मिन्पाने प्रवेशय प्रवेशय सर सर प्रसर प्रसर चल चल चालय चालय भ्रम भ्रम भ्रामय भ्रामय यत्र स्थाने द्रव्य स्थापितं तत्र तत्र गच्छ गच्छ स्वाहा / विधि - इस मत्र की विधि नही है / मन्त्र :--रागाइरिउ जई णं जए जिणाणं नमो महं होउ एवं ऊहि जिरगाणं परमोहीणं पितपित्तहा एव मणं तोहीरणं तारणं तोहि ज्जयजिरणारणं नमो सामन्न केवलिणं भवा भव थारराते सित्तहा सित्तहा उग्रतव चरण वारीण मेवमितो नमो मंह होउ चउ दस दस पुव्वीरणं नमो तहिक्कार संगंमि / विधि -सव्वेसि ए ए सि एव किच्चा अह नमुक्कार जपिय विज्ज पउ जेसामे विद्यापसि ज्जिज्जा। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ बाहुबलि स्सेहपगह सवरिणस्सं ॐ वन वन निवन मनगयस्स सया सोमेविय सोमरण सेम हम हुरे जिन वरे नमं सामि इरिकालि पिरिकाली सिरिकाली तह महाकाली किरियाए हिरियाएय संग एतिविह कलियंविरए सुहमाहप्पे सव्वे सांहते साहुरगो वंदे ॐ किरि किरि कालि पिरि 2 कालि चसिरि 2 सकालि हिरि हिरि कालिपयं पिय सरिद्य सरे पायरिय
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________________ लघुविद्यानुवाद कालि 8 किरिमेरि पिरिमेर सिरि मेरि सरिय होइहिरि मेरि पायरियमेरि पय मपि साहंते सूरिणो सरिमो // 6 // विधि -इयमत पय समेया थुणिया सिरिमाण देव सूरीहि जिणसिद्ध सूरि पमुहा दितुथुण तारण सिद्धिपय / / 10 // मन्त्र :-ॐ नमो गोयमस्ससिद्धस्स बुद्धस्स अवखोरणं महारिणसस्स पत्त पूरय पूरय स्वाहाः / ॐ दिट्ठी मखा विलट्टी श्री उज्जेणीम चरंती ब्रह्मधीय वलवती तासु पसाई श्रम्ह सिद्धि लद्धि बलं त्रिभुवनं वशीकरं (प्रात्मरक्षा मन्त्र) उच्चिट्टीवर प्रसादात् सर्व सिद्धि तरकणा होइ शांतिदेव की प्राज्ञा फुरइ / मन्त्र :-ॐ एकवर्ती सीसवर्ती पंच ब्राह्मण पंचदेव गरुडनी कंचुली पहिरइ मनुनि भ्रन्तु वालु वालिहिं विछिय हवालह नदी प्रवेसु हाथ रक्खउ पागरक्खउ वलिशंकर जीउ राखउ नारसिहरण उ बंधु पडइ श्री स्वामिनीरणी आजा फुरइ / विधि - वज्र तारावर प्रशादात् सर्वसिद्धि तरक्करणा होड शान्ति देवतणी आज्ञा फुरइ / मन्त्र :-कालीनागिणी मुहिवसइ को विस कट उ रवाइ अंगि अंगि अम्हहरू वसइ कोसंमुहउ न छाइ। विधि -इस मत्र को 3 बार पढकर अपने वस्त्र के अन्तिम छोर पर बाये हाथ से गॉठ लगावे ता मार्ग मे किसी प्रकार का भय नही होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्षीण महारणसस्स त्तर 2 ॐ अक्खीण महाणसस्स स्वाहा / विधि :-स्मरण मात्र से ही लाभ करता है / मन्त्र :-ॐ अढे मढे चोर घट्टे सर्व दुष्ट भक्षी मोहीनी स्वाहा / विधि .-इस मन्त्र से पत्थरो को मन्त्रित करके दशो दिशामो मे फेकने से चोरो का भय नहीं होता है। मन्त्र :-प्राइवंसे चाइ वंसे अच्चलिय पच्चग्रलियं स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को स्मरण करने से मार्ग मे भय नही होता है / मन्त्र :-ॐ धनु धनु महाधणु 2 कट्टि जंतंसयं न देइ आरोपित गुण /
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________________ लघुविद्यानुवाद विधि :-धनुमार्गे लिखित्वा एन मत्र मध्येविन्यस्य वामपादेनाहत्य गच्छेत् चोर भय न भवन्ति / मन्त्र --ॐ ह्रीं गरुड ह्री हंस सर्व सर्प जातीनां मुख बंधं कुरु कुरु स्वाहा / विधि -इस मन्त्र को 7 बार स्मरण करने से 1 वर्ष तक सॉप नही काट सकता है। सहिताः सानु ग्रहा मे भवंतु ॐ ह्रीं असि पाउसा स्वाहा / विधि - इस मन्त्र का स्मरण करने से प्रतिकूल ग्रह भी अनुकूल हो जाते है। मन्त्र :-इदस्स वज्ररण विष्णु चकशतेन च काका सकुठारेण अमुकस्य कंठान छिद छिद भिद भिद हुं फट् स्वाहा / (कांठा मन्त्रः) मन्त्र :-ॐ झज्यं अरुणोदय अमुकस्य सूर्यावर्त नाशय नाशय / विधि -कालातिलराती करडिदर्भरक्त चन्दन फूल 21 सूर्यावर्त नाशयति / विधि -लूसागर्दभादीना डाकिनीना भूतपिशाचाना सर्वग्रहाणा तथा ज्वर निवर्तको मन्त्र. / मन्त्र . -हिमवंतस्योत्तरे पार्वे सरधानामयक्षिणी / तस्मानपुरशब्देन विशल्या भवति गुविणी। विधि -इस मन्त्र को 7 बार जल मन्त्रित करके गभिरणो को पिलाने से प्रसूति सूख से हो जाती है। मन्त्र --ॐ ह्रां ह्री हहः लूह लूह लक्ष्मी स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से चना को मन्त्रित करके खिलाने से कामल रोग नाश होता है। मन्त्र :-ॐ नमो सवराय इलिमिलि स्वाहा / (शिरोति मन्त्रः) विधि -इस मन्त्र की विधि नही है। मन्त्र -ॐ ह्री क्षीं क्लीं आवेशय स्वाहा / विधि :-अनेन मन्त्रेण सर्व विषये हस्त भ्रामण / इस मन्त्र को पढता जाय जौर फेरता जाय तो सर्व प्रकार के विष दूर होते है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्षः उर्द्ध मुखी छिद छिद भिंद भिंद स्वाहा / (कलवाणी मन्त्रः) / मन्त्र :-डुगर उप्परिरि सिमुयउ सो अप्पुत्रु वराउ तसु काररिण मइ पारिणउ दिन्नर फिहउ सूरिय वाउ /
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________________ लघुविद्यानुवाद विधि :-इस मन्त्र से सूर्यवात दूर होता है। मन्त्र .-ॐ क्षी क्षों क्षीं हः / विधि -इस मन्त्र से सिर दुखना ठीक होता है। मन्त्र :-ॐ व ॐ सः ॐ ठः स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से मक्खियो का उपद्रव नही होता है / मन्त्र -ॐ नमो नमस्त्रित्तये ऊंदर ऊंदर हर हर कर कर चर चर भूवि देसि देसि दास पुरलु ठः ठः अनगार से वितेकुर्वर 2 संहर संहर सर्व भूत निवारिणी क्ली म्ली क्लीं उत्तालि मालि कालि स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से अपस्मार रोग दूर होता है। मन्त्र --ॐ वज्र दंडो महाकाय वज्रपाणि महावलः तेन वज्र दंडन भूमि गच्छ महा ज्वरे ॐ नमो धर्माय, ॐ नमो संघाय, ॐ नमो बुद्धाय, ॐ मनै मने एकाहिक द्वाहिकः त्र्याहिक चातुर्थिक वेलाज्वर वातिक पेतिक श्लेष्मिकः / संनिपातिक सर्व ज्वरान् अमुकस्य ज्वरं बंधामि ठः ठः / विधि :--इस मन्त्र से फल व पानी मन्त्रित कर खिलाने से बुखार दूर होता है / मन्त्र -ॐ हिमवंतस्योत्तरे पार्वे कपिलो नाम वृश्चिकः तस्य लांगुल प्रभावेन भूम्यां पतउ महाविष / विधि .-इस मन्त्र से बिच्छू का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-ॐ इवीं श्रीं प्रदक्षिणे स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से भी बिच्छू का जहर उतर जाता है। मन्त्र . -ॐ क्षां क्षीं सूक्षे क्षः / विधि - इस मन्त्र से भी बिच्छू का जहर उतर जाता है / मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्रो ठः ठः ठः अष्टादश वृश्चिकारणां जाति छिद छिद भिद भिद स्वाहा / विधि -इस मन्त्र से झाडा देने पर विच्छू का जहर उतर जाता है। मन्त्र -ॐ अमृत मालिनी ठः ठः स्वाहा / विधि :-इस मन्त्र से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
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लघु विद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ खुर खुर्दन हुं फट् स्वाहा । विधि :- २१ वार फेरा चउसट्टिदातव्या ।
मन्त्र :- ॐ क्षिय पक्षियः ३ निर्विषी करणं स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र से बिच्छू का जहर उतर जाता है ।
मन्त्र :- ॐ हृदये ठः ।
विधि : - इस मन्त्र का ललाट पर ध्यान करने से बिच्छू का जहर उतर जाता है ।
मन्त्र :- ॐ प्रागि संकरू पाच्छी संकरूं चालि संकरू हउ सिउ सिउ संकरू जइरे वीछिय अचल सिवल वलसि चंडिकादेवी पूजपाइ टालसि वृश्चिक खी भरिवि खप्परू रूहिर मदमांस कर कुकरू डोरिय उडक्कस हुने उरूगही उहि चडि मोरिलु नीसरइ जोगिणी नयणाणां दुत खिखिगि खिरर्त्त पालुखिरिण खखीछिय खः खः ।
विधि - इस मन्त्र से भी बिच्छू का जहर उतर जाता है ।
मन्त्र :- ॐ ठः ठः स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र को २१ बार पढे ।
मन्त्र — ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय प्रमुकस्य कठकं छिंद छिंद भिद भिद ठः ठः स्वाहा । यह कंठक् मन्त्र है ।
मन्त्र :- ॐ विसुंधरी ठः ठ ।
विधि : - इस मन्त्र से १०८ बार हस्त वाहन श्वान विषोत्तार मन्त्री |
६ ३
मन्त्र :- ॐ विश्वरूप महातेजठ्ः २ स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र से अर्क विष दूर होता है ।
मन्त्र :- श्रादि श्रादितपुत्र अर्क जट मउडधरु लयउ मुष्टिह घउयष्टि रेजः । विधि . - इस मन्त्र से अर्क विप दूर होता है ।
मन्त्र :- हिमवंत नाम पर्वतो तिखिहालिउ हलु खेडइ सुराहिका पुत्र तसु पाणिउ देसु उल्लहि सिज्ज्म सुज्जावत्तउ ।
विधि - श्रनेन वार ७ उजनमपि क्रियते ।
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१४
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-गग वहंती को धरइ कोतहि मत्तउहथि मइ वइ संदरू थांभिय उमहु परमेसह
हथि ता ती सीयली ठः ठः । विधि -इस मन्त्र से अग्नि स्तभन (भवति) होती है। मन्त्र -कुतिकरो पांच पुत्र पचहि चडहि केदारी तिण्हु तँडतह महिपडई लोहिहि
पडइ ऊ सारु तातीसीयली ठः ठः । विधि -इस मन्त्र से दिव्य अग्नि भी शात होती है । मन्त्र :-लइ मदिया वामह (थ) छम्मि कहिया जाहि दव दतिए मदीय क द सएरण
भारिणय भार सहस्सेण बंधोहि वसपविस पडिय मचडिय ॐ ठः ठः
स्वाहा। विधि - अनेन वार २१ कुसरणी अभिमत्र्यते । भत्र :-हिमवतस्योत्तरे पारे रोहिणी नाम राक्षसी तस्यानाम ग्रहणेन वलिरोगं
छिदामि पणरोगं छिदामि । विधि –गल रोहिणी मन्त्र । मन्त्र :-ॐ कंद मूले वारण गुरग वारणधणुह चडावणु ह चडावणु निक्कवाय सर
___ जावन छिप्पइराव। विधि -यह सरवायु मन्त्र । (इस मन्त्र से धनुर्वात ठीक होता है)। मन्त्र :- ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लौ कलिकुड दंड स्वामिन् सिद्धि जगद्वशं प्रानय
आनय स्वाहा। विधि -इस मन्त्र को प्रात अवश्यमेव २१ या १०८ बार स्मरण करके भोजन करे तो इस मन्त्र के
प्रभाव से सौभाग्य की प्राप्ति आपदा का नाश राजा से पजित लक्ष्मी का लाभ, दीर्घायु शाकिनी रक्षा सुगति की प्राप्ति । यदि जाप करते हुए छूट जाय तो उसका प्रायश्चित, एक उपवास करना चाहिए। अगर उपवास करने की शक्ति न हो तो जैसी शक्ति हो उस मताबिक प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए और फिर जपना प्रारम्भ करे। जीवन भर इस मन्त्र का स्मरण करे और गोप्य रक्खे किसी को बतावे 'नहीं' तो देव गुरु के प्रसाद से
सर्व कार्य स्वय सफल हो जायेगे । और सुगति की प्राप्ति होगी। मन्त्र :-ॐ रक्त विरक्त स्वाहाः । विधि -(छेति उतारण मन्त्र)
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लधुविद्यानुवाद
६५
मन्त्र :-ॐ रक्ते विरक्ते तखाते हूं फट् स्वाहा । (लावणोत्तारण मंत्रः) मन्त्र :-ॐ (प) क्षिपस्वाहायः हु फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से दुष्ट वर्ण शान्त होते है। मन्त्र :-ॐ वंक्षः स्वाहा (गड मन्त्रः) मन्त्र :-नीलीपातलि कविलउ वडुयउ कालउडंवुचउ विहुभांडु पृथ्वी तण इपापी
लीजिसिजइ गिडिसि पावसि ठः स्वाहा । विधि –अनेन बार २१ गडोऽभिमत्र्यते एतद्भिमन्त्रितेन भस्मनाऽक्षि म्रक्ष्यते । मन्त्र :-ॐ उदितो भगवान सूर्योपद्माक्ष वृक्ष के तने आदित्यस्य प्रसादेन अमुकस्याद्ध
भेटकं नाशय नाशय स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को कुकु से लिखकर कान पर बाँधने से आधा शिशी सिर की पीडा दूर
होती है। मन्त्र :- ॐ चिगि भ्रां इं चिगि स्वाहा । विधि । -अनेन मन्त्रेण दर्भु, सुइ, जीवण इ हाथि लेवा इ जइ डावइ हाथि सरावु करोटी वाध्रियते
सूइ पुरणपाणी माहि घाली जइ खाट हेट्ठिधरी जइ कामल-वाउ फीटइ पडियउ दोसइ । मन्त्र :-ॐ रां री रु रौ रं स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से कामल वात (उज्यते) नाश होता है। मन्त्र :-ॐ इटिल मिटिल रिटिल कामलं नाशय नाशय अमुकस्य ह्रीं अप्रत्तिहते
स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से चना, कडवा तैल, नमक, अजवाइन. मिर्च, सब चीज साथ में लेकर २१ बार
मन्त्रित करके खिलाने से कामल-वात नाश होता है। मन्त्र :-हिमवंत उत्तरे पार्वे पर्वतो गंध मादने सरसा नाम यक्षिणी तस्याने उर
सद्दण विशल्या भवति गुविरणी। विधि -इस मन्त्र से तेल २१ बार मन्त्रित कर शरीर पर तथा मल स्थान पर लगाने से गभिरणी
सुख से प्रसूति करती है।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ क्रां श्रां ह्री सो नमो सुग्रीवाय परम सिद्धि कराय सर्व डाकिनी
गृहीतस्य । विधि :-पाटे पर यत्र लिखकर अन्दर नाम लिखे, फिर सरसो, उडद, नमक से ताडन करे तो
डाकिनी आदि से आक्रदीत हुआ रोगी का रोग नाश होता है। इस प्रकार का यत्र बनावे
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नाम न
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मन्त्र :-ॐ ह्री वासादित्ये ह्रीं क्लीं स्वाहा । विधि –सर्व मूली उन्मूल्यन मन्त्र । मन्त्र -ॐ ह्रीं क्षी ३ क्षः ३ लः ३ यः ३ हुं फट् स्वाहा । विधि :-अनेन वासा अक्षत रक्षा बार २१ अभिमन्त्र्य चतुर्दिक्षु गृहादौ क्षिप्पते सर्व दोपा
उपशाम्यति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं अप्रति चक्र श्वरी नखाग्रह शिखाग्रह रक्ष रक्ष हुफट् स्वाहा । विधि :-कलवाणी मन्त्र । मन्त्र -ॐ दसा देवी केरउ पाडउ अरणंत देवी केरउ पाडउ ॐ विद्ध विद्धरण
विजाहरी विजा। विधि -गो घतेन हस्ते चोपडयित्वाविद्वगडोपरि हस्तो मन्त्र भणित्वा वार २१ भ्राम्यते त्तता विह
उपशाम्यति, यदा एत्ता वतापिन निवर्त्तते तदा गोमय पूत्तलकम धो मुखम वलय
शुलाभि विध्यते ततो निवर्तते । मन्त्र :-ॐ उरगं उरगां सप्त फोडिउ नीसरइ रक्त वइमांसि रांघिणि । छिन्नउ सवाउ
हाथुसरीरि वाहयेत् ।
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लघुविद्यानुवाद
६७
विधि :- अनेन उ जित्ताराधिरिण रूपशाम्यति ।
मन्त्र :- ॐ प्रांजलि महातेजे स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र को गौरोचन से भोजपत्र पर लिखकर मस्तक पर धारण करने से सर्व कार्य मे जीत होती है ।
मन्त्र :- द्रोण पर्वतं यथा वद्ध शीतार्थे राघवेण उतं तथा वंघयिष्यामि प्रमुकस्य गर्भ मापत उमा विशीर्य उ स्वाहा । ॐ तद्यथाधर धारिणी गर्भ रक्षिणी प्रकाश मात्र के हु फट् स्वाहा ।
विधि - लाल डोरा को इस मन्त्र से २१ बार जपकर २१ गाठ देवे, फिर गभिरणी के कमर मे बाध देने से गर्भ पतन नही होता है, किन्तु नौ मास पूरे होने पर उस डोरे को खोल देना चाहिए ।
मन्त्र - ॐ पद्मपादीव ह्रीं ह्रां ह्रः फटु जिह्वा बंधय बंधय सवसवे व समानय
स्वाहा ।
विधि . - इस मन्त्र से वच मन्त्रित करके मुह मे रखने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है । मन्त्र :- ॐ रक्त े रक्ता वते हुं फट् स्वाहा ।
विधि - कन्या कत्रीत सूत्र गाठ देकर लाल कनेर के फूलो से १०८ बार मन्त्रित करके स्त्री के कमर मे बाधने से रक्त प्रवाह नाश होता है ।
मन्त्र :- ॐ अमृतं वरे वर दर प्रवर विशुद्ध हुं फट् स्वाहा । ॐ अमृत विलोकिनि गर्भ संरक्षिरिण श्राकारिण हु हुं फट् स्वाहा । ॐ विमले जयवरे अमृते हुं हुं फट् स्वाहा । ॐ भर भर सभर सं इन्द्रियवल विशोधिनि हुं हुं फट् स्वाहा । ॐ मरिग धरि वजिणी महाप्रतिसरे हुं हुं फट् फुट् स्वाहा ।
विधि
- इन पाँच मन्त्रो को चन्दन, कस्तूरी, कु कुम अलकुक के रस से भोजपत्र पर लिखकर इस विद्या का जाप करे फिर गले मे बाँधे या हाथ मे बाधने से शाकिनी, प्रेत, राक्षसी वा अन्य का किया हुआ यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र प्रयोगादि का नाश होता है । विशेष क्या कहे, विष भक्षण भी किया हो तो भी उस विष का नाश होता है ।
मन्त्र :- ॐ काली रौद्री कपाल पिंडिनी मोरा दुरित निवारिणी राजा वंधउ
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हद
विधि
मन्त्र --
विधि
मन्त्र
शक्तिका बधउ नील कंठ कंठेहि बंधउ चक्षु पार्वती बांध सिद्धिर्मम गुरु प्रसादेन ।
लघुविद्यानुवाद
विधि - गोबर की गुहली का करे, और एक स्वय दूसरी गुहली का कि जिसको रघगी होती है उसको करके अक्षत से मन्त्रोच्चारण पूर्वक ताडन करे तो रघणी अच्छी हो जाती है ।
मत्र
- इस मन्त्र का सदैव स्मरण करना चाहिए । क्षुद्रोपद्रव का नाश होता है, विशेष पडतो की सभा मे स्मरण करे, चोरो का भय हो तो स्मरण करे, या राजद्वारे स्मरण करे ।
मन्त्र — ॐ घटा करर्णो महावीरः सर्व व्याधि विनाशकः विस्फोटक भयं प्राप्त मा रक्ष रक्ष महाबल यत्र त्व तिष्ट से देव लिखि तो विशदा क्षरैः तत्र दोषान्नुपामि सर्वज्ञ वचने यथाः ।
जिह्वादेवी सरस्वती बंधउ
- रघरिणरंघ वाइ विसलित्ती देवीतिण तिरिण तिसु लिभित्ती उट्ठी उवहिली जाइष्यडत्ति जावन संकरू श्रावइ श्रपि ।
मंत्र
विधि - २१ बार स्मरणीया ।
- इस मन्त्र से कन्या कत्रीत सूत्र मे ७ गाठ लगावे मन्त्र को २१ बार पढे, फिर उस डोरे को कमर मे बाधने से निगडादय उपशम होते है ।
- ॐ ह्रीं श्रीं धनधान्य करि महाविद्य श्रवतर मम गृहे धनधान्यं कुरु कुरु ठः ठः स्वाहा ।
- सुर्वण मउडुरक्त प्राक्षि नील चचु स्वेत वर्ण शरीरिजउमाथइ अनत पुलकुविहुकाने कुडल तक्षकु शख चूडु वाहर रवइ वासुकिककोलु विह पाए नेउल शखद्वय पाय हेट्ठि चरकयोनि ब्रह्मपुत्र खत्रु चरसि अखत्रुजिनवर सिजज्ञाकारिजाइ विसुखर का खारिहिखाइ विल्लाकारि लेइ विसुलिहि किलिहि हँस किलिहिलि हि हँस जसु चदुठा इसोविसुखय हजाइ लो हिउ समप्पियउ तासु मइ जीवि उ समप्पियउ आदित्य कालिज्जममप्पियउ कालागरणी रुद्र फोकस अरि रे उट्ठी २ ।
विधि - अनेन वार २१ अपराह्न दिन ७ डाभिउ जित्ता दुष्ट फोडी का वलु पीहउ चरहलु घण्यादिकमुपशाम्यति गूहलिकद्वाय मध्येवा स्व पादादिक ध्रियते ।
- ॐ वीरिणो विवात पित्तापि इटि २ इस मस भक्षणे दास हरण व्याधि चूरह दुगत मॉसगत तेज गत गलगड गड माला कुरु हुटिया रोगो रुधिर हरो गुह्य कुभकरणो
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लघुविद्यानुवाद
.88
विधि
मन्त्र
पचमो नास्ति कलिग प्रिये वात हरस्या अधो मुखी देवी नव शिर-धरे छत्री हरिय भट्ठ धरिय उसव्वसभावाइं खीलउ परमथि-पापणी पर मुद्र दी थी जग वाउ भमर वाउ हद् वाउ रक्त वाउ राघणि सव्ववाउ सिद्धिहि जाउ । -इस मन्त्र से प्रत्येक प्रकार के वात रोग ठीक होते है । मन्त्र पढते जाये और झाडा
देते जाये। '- नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्रयपद्मावति सहिताय किनर कि पुरूषाय गरुड गधर्व
महोरग यक्षराक्षस भूत पिशाच शाकिनीना सर्वमूल व्याधि विनाशाय काला दुष्ट विनाशाय वज्र सकल भेदनाय वज्र मुष्टि स चूर्णनाय महावीर्य पराक्रमाय सर्व मन्त्र रक्षकराय सर्वभूत वश कराय ॐ हन २ दह २ पच २ छिन्नय २ भिन्नय २ मुच्चय २ धरणेन्द्र पद्मावति स्वाहा ॐ नमा भगवते हनुमताय कपिल पिगल लोचनाय वज्रॉगमुष्टि उद्दीपन लकापुरी दहन वालि सुग्रीव अजण कुक्षि भूषण आकाश दोष बधि २ पाताल दोष वधि २ मुद्गल दोप वॉधि एकाहिक द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिक नित्य ज्वर वात ज्वर धातु ज्वर प्रत ज्वर श्लेष्म ज्वर सर्व ज्वरान् सर्वदह २ सर्वैहन २ ह्री स्वाहा कोइलउ कट ग्रलउ पुज्जित्तउ फुल्ल ववालु प्रापरणी शक्ति पागली खेलावइ हीमवेत्ताल चल्लावइ एक जाति चालि छन्न चालि प्रकट चालि जर उत्रोडि वोउ बोडि चउरासी दोप कोइलउ हरणउ वापुशक्ति कोइलावी रत्तणी ३ ।
विधि -एभिस्त्रिभिमत्रे प्रत्येक कलपानीये कृते पायित्ते सर्वे दोपा उपशाम्यसि. एकेन वार
७ अभिमन्यतया खटिकया नव शरावे, ठ, कारे लिखिते ऊसोसाघोत च निद्रा समायाति
ॐ सयूक्त नमस्कार पद पचक लिखित्वा चिप्टिगा बडा नवर क्षति मानका नमस्कार वाचन लिखित्वा तच्चिप्टि काउ छीय दे तारान्त्री सुजन्य नवौंप द्रवान्नाशयति । दम मन्त्र को विधि का भाव दिप नमन मे नही प्राता है।
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१००
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र .- खत्रिउ काला कुट विस वन्नउ सूद्रिका सद्ध लिउ वन्नउ वाय ससउ हरियालउ चन्नउ
चारि विस चारि उवन्नउ अट्रारह जाति फोडी २ जानिविसी होई शनैश्वर वारिउ हु जाय उरेविस खपनि का जाती पीगला पूत माह मासि अधारी चउदसिरे वति नक्षत्रे घारउ जन्म भयउ -मू टिठ हयउ दीट्ठि तोलियउ खाउ अत्तोलियउ खाउ पल खाउ पलसउ खाउ भार खाउ भारसउ खाउ अदीउ खाउ हउ खाउ तुहुन खाइ कउणुखाइ श्री सरडा मडैवु खाउ जरे विस फूटि होइ माटी क्षेत्रीस कोटि देवता खाधउ वाटि तिहु त्रिभुवन शिव नास्ति विसु ठ ठ श्री नील कठ की आज्ञा सोषाराउल की आज्ञा शिव
शक्ति नास्ति वि सुजरे विस ज ज. । विधि –विसत्रिभुवनि हि नास्ति विसु ।
'-ॐ नमो पार्स यक्षाय भस्म जटा सहिताय वग्ध न आरोहणाय चलु-२ रे चालु २ रे
डाकिनी शाकिनी भूत प्रेत पिशाच छल छिद्र जाण विनाण गुप्त प्रकट चउरासी यत्र चूरि २ चउरासी मन्त्र चूरि २ पराई मुद्रा चूरि २ पापणी मुद्रा प्रकट करि पाराइ भाँजि घालि वापु श्री पसदेव तरणी आज्ञा वाधि भीडि आक्रसि सर्वइ दोष जिकवणडाथि गुप्त प्रकटति सवइ बाधि पारिणघालि महारा पाग हेठि ३ दीहउ रीस नीरसउ अद वद व पुरी सी दग मग चरितउ उठियद क्खिणादिसि हिम देव किलि २ शब्दइ जकार रूपिहि अदवद वक्रइ छिदि मडा सिणि छिदि अहमद साविरिण छिदि कवाडत्ती छिदि २ ही हउरीस निरीसउ परपोरिसि दिवाकरू भुजसि मध सामिते वार नइ पसता कपइ व हव वसायर ते कचापरिहरिगय की पात्ती चग भगउडी करमोडउ डाइणि फोडिसि होरी सरगत विसनासण हार छदि सुदरि सणि । ॐ नमो अरिमत्र राजाय कूछितविटॅ बनाय अनत शक्ति सहिताय अष्ट
र भाव वनस्पति वाधि नव कुल नाग बॉधि सात समुद्रि बाधि अठासी सहस्त्र रिपि बाधि नवानवइ कोडियक्ष बाधि विष्ण रुद्र बाधि नव कोटि देव वॉधि छप्पन्न कोटि चाउडा बॉधि अट्ठारह पवणि बाधि छतिस राजकुली बाधि मालिरिण बाधि कल्लालिणि बाधि तेलणी बाधि ब्राह्माणि बॉधि सर्वइ दोष बाधि जिकवरण दोप आथि गुप्त प्रकटति सर्व दोष बाधि भीडि प्राक्रसि आणि घालि महारा पाग हेट्ठि वडइ वेगि वायु २ अरि मन्त्र य वायण की शकि बाधि २ भिडि २ आक्रसि २ वड वाग वाधि २।
विधि
-इस मन्त्र से पानी मन्त्रित करके देने से अथवा झाडा देने से सर्व प्रकार के दोप चाहे व्यतर डाकिनी शाकिनी राक्षस भत प्रेतादि कृत हो चाहे दष्टि दोष हो चाहे परकृत यत्र मन्त्रादि हो सर्व प्रकार के दोप इस महा मन्त्र मे शात होते है।
मन्त्र -पाय मानंन तज प्राइत्त मान पहिरणउं हंकारइ प्रावई जकारइ
जाइजः ३ ।
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लघुविद्यानुवाद
१०१
विधि :-स्नात्र काराप्य अक्षते स्ताम्यते गुगुल दीयते तृतीय ज्वर नाश्यति । मन्त्र -जदुहुल त्रशनि वेसिय ॐ ऊ उप्पाइया सिरत्ति जउ हरण वंति कलि काउ
किउचत्तिन दुक्कातत्ति कालु काले महाकाले। विधि :-एक श्वास मे सात बार अथवा तीन श्वास मे इक्कीस बार हाथ पर सिर धरे तो सिर का
दर्द शात होता है। मन्त्र -ॐ नमो सुग्रीव सया कल विकुल जाटयागरण गधर्व जरकर कस बेताल भूत प्रेत पिशाच
डाइरिण सिर सूल पेट सूल आकाश पाताल कन्यका । ॐ नमो पार्श्वनाथाय जस्सेय चक्क फूरतगच्छइ तेण चक्केण जट्ठ दृट्ठ विस चउरासी वायाउछत्तीस लूताय सत्तावीस अध गडाइ अट्ठावीस फुल्लियाऊ छिदी २ भिदि २ सुदरिसरण चक्केण चन्द्र हास खङ्गन
इन्द्र वज्रण हु फट् स्वाहा । विधि :--दर्भेण गडवाउ उजितो वार २
प्रभाते कृष्ण चनकान् भक्षयित्वा मुष्टि प्रमाण कुषुक जटा षष्टिक तदुलकेन पिष्टाय
पिवति तस्य अभारि निवर्तते । मन्त्र :-सीहुया कारणी पहुया धालिरेट पजारे जरालं किली जइ हणुया नाउ
हर संगर की अगन्या श्री महादेव भराडा की अगन्या देव गुरु की
अगन्या जरो जरालंकि । विधि :-डोरा को दश वड करके उसमे दस गाठ लगावे, मन्त्र १०८ बार पढे । मन्त्र पढता
जावे और डोरे मे गाठ लगाता जावे। उस डोरे को गले मे या हाथ मे बाधने से वेला ज्वर, एकातर ज्वर, द्वयातर ज्वर, त्रयतर ज्वर का नाश होता है। इसी प्रकार गुगुल को भी
मन्त्रित कर जलाने से सर्व ज्वार का नाश होता है । मन्त्र :-ॐ सिद्धि ॐ शंकरू महादेव देहि सिद्ध तेल । विधि -इस मन्त्र से काच तेल अभिमन्त्रित (नश्यया) करके सू घे तो सर्व प्रकार के सिर
__ दर्द नष्ट होते है और इस तेल से गुमडा, फोडा, घाव, अग्निदाह इत्यादिक अच्छे
होते है। मन्त्र -ॐ सद्यवाम अघोर ईसान तत् वक्तः । विधि -इस मन्त्र को एक श्वास मे ३ बार जपने से माथे का दर्द शात होता है और विच्छू का
जहर उतर जाता है। विशेष -अनेननि श्वासेन पार मेक विधिना, एक बार त्रय जपित्त शिरोत्ति वृश्चिक मुतरति
कालू वरी चर्ण ग०८ पल द्वय क्काथपलिका मध्ये अवा घाडा वावनी बीच चर्ण व्यगुली प्रक्षिप्त पीते सरिषप तेले अभ्यगेद भत श्वेत कर्क टीनि वर्त यति, टकण
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१०२
लघुविद्यानुवाद
खारस्य वासित्त जलेण लेपे सर्वमपि साड निवर्त्तयति, सुवर्ण माक्षिक वेलरस पली
हरियाल मणसिल गन्धक निबु या रस पलि अभ्यगेनद भूत निवृति । मन्त्र :- ॐ हां पा को क्षां ह्री क्ली ब्लू ह्रां ह्री पद्मावती नम । विधि -इस मन्त्र को सफेद पुष्पो से १००८ बार दस दिन तक जपे तो सर्व सिद्धि करने वाला
होता है। मन्त्र :- ॐ रक्त जट्ट रक्त रक्त मुकुट धारिणि परवेध संहारिणी उदलवेधवंती
सल्लुहारण विसल्लुचूरी फटु पूर्वहि प्राचार्य का प्राज्ञा ह्रीं फट् स्वाहा । विपि - इस मन्त्र का जप करने से परविद्या का छेदन होता है। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री हर हर स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को ३ दिन मे १०८ पुष्पो से श्री पार्श्वनाथ भगवान के सामने जप करे तो सर्व
सम्पदादिक होती है। तीनो दिन १०८-१०८ पुष्प होने चाहिये। मन्त्र -ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय पद्मावती सहिताय हिली हिली
मिलि मिलि चिली चिली किली किली ह्रां ह्रीं ह्र हौ ह्रः कौ
नौ नौ यां यां हंस हंस हू फट् स्वाहा। विधि - सर्व ज्वर नाशन मन्त्र ज्वरानतर देव कुल दर्शनायाह । मन्त्र
-ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ह्री श्री ही नम ॐ तक्षकाय नम उत्कट विकट दाढा रुद्रा कराय नम हन हन दहि दहि पचि पचि सर्व ग्रहाणा बधि बधि भूताना राशि राशि ज्वालि ज्वालि प्रज्वालि प्रज्वालि शोषि शोषि भक्षि भक्षि य य ज्वलि ज्वलि प्रज्वलि प्रज्वलि वायु वीरु ॐ नीलासूया कता पाया का ह जाणइ पाखु जागड प्रापद्रट्रि परद्रोट्रि माय बाप केरी द्रट्रि प्राडासी पाडासी की द्रट्रि नाट्ट केरी द्र ट्रि शिहरीउ मल अजीर्ण व्याधि हणमत तणी लातभस माते हो जिउ ॐ वीर हनोवता प्रतुल बल पराक्रमा सर्वव्याधि छिनि छिनि भिनि भिनि त्राशय त्राशय नाशय नाशय त्रोटय त्रोटय स्फोटय स्फोटय बाधय बाधय बवइ बधेरण लकादहि तेण हुणएण हू
फट् स्वाहा। विधि -इस मन्त्र को ७ बार जपने से व्याधि बध होती है। मन्त्र -हन हन दह दह पच पच मथ मथ त्रास सागी सत्वयारे वछ नाग
नारो बोल घिमोर उपांग प्रावहु पुत प्रावहु सुरगहु विचारहु हाछ
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लघुविद्यानुवाद
१०३
हिलइ विसु दिट्ठि हिमारुद्र कवि सवी सवावीस उपवीस चइ वारि भार विस माटो करउ संज्ञा ही नास्ति विसनाश य य क्षोभय क्षोभय
विक्षोभय विक्षोभव माविलाशय २ । विधि -इस मन्त्र को ऊपर वाले मन्त्र के साथ जोडकर पूरा मन्त्र ७ बार जपने से विष उतर
जाता है। मन्त्र :-श्रल महेश्वर जइ द्वारि पर्वत्त माला चारि समुद्र माहि ल लघि हंस
भस्म अधूली सिरि गंभारी परतू स लखुरण पर जीवउ जिया स्वहि कुमारोकं मकरेइ हंसु विनय पूतु गुरुडु सवास सहस्त्र भार परविसुनि
वद्धउ । विधि - इस मन्त्र को ७ बार जपने से विष बधन को प्राप्त होता है अथवा नष्ट होता है। मन्त्र :--ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं क्लीं ब्ली सर्व ज्वरो नाशय नाशय सर्व प्रेत नाशिनी
ॐ ह्रीं ठः भस्वं करि फट् स्वाहा । विधि -इस महामन्त्र को जपने से अथवा २१ बार पानी मन्त्रित कर पिलाने से पेट दर्द, अजीर्ण
आदिक नष्ट होते है। मन्त्र -ॐ ह्री वातापिक्षितोयेन पीतोयेन महोदधि समेपीत च भुक्तं च अग स्तिर्जर यिष्यति
ह्री ॐ कारे प्रथम रूप निराकारे प्रसूत शिवशक्ति सम रूप विन्न काल भैरव कालउ गोरउ क्षेत्रपालु जक्ख वइज नाथु कलि सुग्रीव करी आज्ञा फूर इ जाहो महाज्वर २ जाल जलती देवी पद्मावण वेगिव हति देवि सहर मारि पइट्ठी देवी इ क्कुविसुइ क्कवीस विस वावीस म वाघ विसुत हमहु वद्धी सिद्धि गठिल कह हु तउ नीसरइ गडयड तु
गाज तुट जाहो मह.ज्वर २ । विधि -नाग वल्ली पत्रपरि जप्य क्षरि तस्यदेय कर्णे वा दृष्ट प्रत्यय । मन्त्र :-ॐ नमो भेलि क्खिए गिन्हामिम दिया सव्व दुट्ठ प्रामदिया सव्व मुहमह
लक्खिया स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को १०८ बार १० ककर को मन्त्रित करके दशो दिशाओ मे फेकने से मार्ग मे
चोरादि का भय नही होता है । मन्त्र -ॐ ह्रीं अर्ह श्री शांतिजिन शांतिकरः श्री सर्वसंघ शांति विदध्यात
अहे स्वाहा । ॐ ह्री शांते शांतये स्वाहा । ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे महाविद्य।
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१०४
लघुविद्यानुवाद
विधि
-वार १०८ दिन ७ यस्य कार्यणादि दोषै सस्मारणीय ततोयेन दोष कृत स्यात्तस्यैव पतति राजप्रशाद वैरिश्म त्तन्नास्ति यदि तो नस्यात्त पर प्रत्यगिरादि यत्राग्रत कार्य हिगु भाग १ वचा भाग २ पिप्पली भाग ३ सूठि भाग ४ यवानी भाग ५ हरीतकी भाग ६ चित्रिक भाग ७ उपलोठ भाग ८ एत च्चूर्ण प्रात रूथा योष्णोदकेन २१ पेय कास, श्वास, क्षय रोग, मन्दाग्नि दोष प्रशम कार्मण चंत दोष घात् प्रशमति।
मन्त्र :-रे कालिया निष्य खिलउ सहता लुया ठः ठः । (यह कोलणी मन्त्र है) मन्त्र :-रे कालिया जिष्य मुक्को सहत्तालुयायः यः स्वाहा । (यह कोलणी मन्त्र है) मन्त्र .-ॐ गं ब्रां श्रीं हा हंसः वं हे सः क्षं हः सः हा हं सः स्थावर जंगम विष
नाशिनी निर्जरण हंस निर्वाण हंस अहं हंस जु। विधि -जल अभिमत्रयपाय येत् यदि जीर्यते तदा जीवति अन्यथा मृत्यु । मन्त्र :-ॐ हंसः नील हंसः महा हंसः ॐ पक्षि महापक्षि सर्पस्य मुखं बंध गति वधं
ॐ वं सं क्षं ठः । इस मन्त्र से सर्प का ग्रहण होता है । मन्त्र :-ॐ क्रों प्रों नठः। विधि .-इस मन्त्र से बीच्छू और साप का जहर बध जाता है। वश्चिक सर्प विषये
कडक बघ । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते ऋषभाय जैनमति मोनमति रोदन मति स्वाहा । विधि .-इस मन्त्र से वच सात, मन्त्रित करके खावे तो महा बुद्धिमान, निरोगी होता है। मन्त्र -ॐ श्री ह्री कीर्तिमुख मंदिरे स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को उपदेश देने के समय में प्रथम स्मरण करे तो श्रोतागण प्राकषित
होते है। मन्त्र :-ॐ यः रः लः त्यज दूरतः स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का प्रात नित्य ही १०८ बार स्मरण करने से कार्मणादि दोष नाश
होते है। मन्त्र :-ॐ नमो अरिहंते (उत्पति) स्वाहा। बाहुबलि चत्तारि सरणं पवज्जामी
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लघुविद्यानुवाद
१०५
इत्यादि । ॐ नमो अरहताणं ॐ नमो सिद्धारणं ॐ रणमो पाइरियारणं ॐ
नमो उवज्झायारण ॐ रणमो लोए सव्वसाहूरण । विधि :-इस मन्त्र का स्मरण करने से स्वप्न मे शुभाशुभ मालूम होता है और दुस्वप्नो का नाश
होता है। मन्त्र :- इति पिसो भगवान अरिष्ट सम्म संबुद्धो विज्जावरण सपन्नो सुगतो लोक
विद्ध अनुत्तरो पुरुष दमसारथी शास्तादेवानां च मानुषारणं च बद्धो भगवाजयधम्मा हेतु प्रभवा तेसां तथागतो अवचेतसांयो निरोधो एवं वादी
मह समरणो। विधि -इस मन्त्र को २१ बार जपकर दुपट्टे मे गाठ लगाकर प्रोढ लेने पर किसी भी प्रकार के
शस्त्रो का घाव नही लग सकता रण मे सर्व शस्त्रो का निवारण होता है। इस मन्त्र के स्मरण मात्र से जीव बन्धन मुक्त हो जाता है। चोर भय, नदी में डूबने का भय, राज भय, सिह व्याघ्र सर्पादि सर्व उपद्रव का निवारण होता है । यह मन्त्र पठित सिद्ध है,
इसका फल प्रत्यक्ष होता है। मन्त्र :-ॐ अरिट्ट नेमि बंधेरण बंधामि पर दृष्टि बंधामि चौराणं भूयारणं शाकिरणोरणं
डाकिरणीण महारोगारणं दृष्टि चक्षु अंचलारणं तेसि सन्वेसि समरणं बंधामिगइवंधामि हुं हुं फट् स्वाहा ॐ ह्रीं सव्व अरहताणं सिद्धारणं सूरीणं उवज्झायारणं साहुणं मम् ऋद्धि वृद्धि सर्व समीहितं कुरु कुरु
स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र का प्रात. और शाम को उभय काल मे बत्तीस २ बार स्मरण करना
चाहिये। मन्त्र :-गमो अरहंतारणं णमो सिद्धारणं णमो आयरियारणं इत्यादि । ॐ नमो
भगवइएसुयदेवयाए सव्व सुय मयाए सरस्सईए सव्व वाइणि सुवन्न वन्ने ॐ अरदेवी मम शरीरं पविस्स पुछतयस्स मुहंपविस्स सव्वं गमण हरीए
अरहंत सिरीए स्वाहा। विधि .-इस मन्त्र का प्रात १०८ बार जप करने से महाबुद्धिमान होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रमम् अमुकं वशी कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को २१ बार स्मरण करने से इच्छित व्यक्ति वश मे होता है।
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१०६
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ ह्रीं अव्वुप्ते मम् सर्व भयं सर्व रोगं उपशामय २ ह्रीं स्वाहा अर्ह स्वस्ति
लंकातः महाराजाधिराज समस्त कौणाधिपतिः अमुक शरीस्थं अमुक ज्वरं समादिशतिय थारे रे दुष्ट अमुक ज्वरं त्वयापत्रिका दर्शनादेव शीघ्र मागतव्यं अथ नाग छसित दाते सिर चंद्रहासखङ्गन कर्तयिष्यामि हुफटः
मा भरिणष्यसि यन्नाख्यात्त । विधि :-इस मन्त्र को कागज पर लिखकर, रोगी के हाथ मे उस कागज को बाधने से वेला ज्वरादि
भाग जाते है। मन्त्र :-ॐ हर हर हुहः दूतां श्रु कि पृछ कस्य प्रछादिकां । विधि :-प्रकुमित्वात्तन्नोऽनेनमत्रेण वार १०८ जपित्वा पुनरापिमीयते वृद्धौ वृद्धि शुभ च लाभादि
पृछाया ह्यनौथ हानिर श्र भ च । मन्त्र :-~-ॐ ब्राह्माणी २ अहो कहो बलिकठकाः खविलाई लेऊ लेऊ हिव जाहो । विधि :-अनेन बार ३२ हस्तस्य स्पर्श विधानेन बलि काठा काख विलाइउप शाम्यति दृष्ट
प्रत्ययोय । मन्त्र :--ॐ लावरण लाइ वाधि थण लउ काख विलाइ अर्जुन कइ वाणी छीन उती
ह्र इ अर्जुन भामि जाई विलाइ ।' विधि -अष्टोत्तर शत वेल रक्षामभि मन्त्र दीयते । मन्त्र :-~-ॐ समुद्र अवगाहिनी भृगु चंडालिनी नव लुन जलु हुं फट् स्वाहा । क ५
काइ ३ नु ५ तुप्राइ ३ ए ६ जः ३ तक्षकाय नमः । विधि :-दे
जल, इस मन्त्र से मन्त्रित करके देने से डक का विष उतर जाता है। शिख्या दिक्षा एकांत ज्वर, तृतीय ज्वर, भूत, शाकिनी का निग्रह होता है। मन्त्र :-ॐ ह्री श्रीस्फ्रां सिद्धिः गणनाम विद्ययं । विधि :-इस मन्त्र को एरड के पत्ते पर लिखकर रास्ते मे उस पत्ते को फेक देने से शाकिन्यादि
मार्ग से हट जाते है। इस मन्त्र को नीम के पत्ते पर लिखकर, उस पने को पानी में फेंक
देने से शाकिन्यादि जल त्तरति स व्रत्ययोऽय । मन्त्र :-ॐ क्ल्व्या ॐ मम्ल्या" ॐ लम्ल्या" ॐ अम्ल्या ॐ हल्या
ॐ शम्ल्या ॐ म्ल्या ॐ रम्ल्या ॐ खुम्च्या ।
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लघुविद्यानुवाद
१०७
विधि -इन नव कुटाक्षर को मडल पर लिखकर पूजा करने वाले व्यक्ति की प्रत्यक्ष रूप से
शाकिन्यादि पाकर सेवा करते है । और सब दुष्टादिक उपशमता को प्राप्त होते है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं हर हर स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से १०८ सफेद पुष्पो से ३ दिन तक जप करने से श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा
के सामने, तो सर्व सम्पत्तिवान होता है । मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ गोयमस्स गरण हरिस्स अक्षीरण महाण सस्स सव्वाणं व
(छा) थारणं सवारणं पत्ताणं सव्वाणं वथूरणं ॐ अक्खिरण महारणसिया
लद्विहवउ मे २ स्वाहा । विधि -प्रात. उपयोग वेलाया विहरण वेलाया चेतन वेलाया च स्मरणीय वार २१ मत्रभि
__मत्रणीय देय वस्तु अभिमत्र्य दातव्य । मन्त्र --ॐ ह्री ला ह्वा प्लक्ष्मी स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को १०८ बार स्मरण करने से स्वप्न मे शुभाशुभ प्रकट करता है। मन्त्र :---ॐ अरण भद्र नदी-चारे स्वाहा । विधि :-गाव व नगर मे प्रवेश करते समय मिट्टी को सात बार मत्रित करके फेकने से गाव मे
मागे बिगर भोजन की प्राप्ति होती है। याने भोजन के लिए याचना नही करनी
पडती है। मन्त्र :- ॐ नमो भगवति वागेश्वरी अन्नपूर्ण ठ । विधि :-इस मन्त्र को नगर मे प्रवेश करते समय २१ वार जपे तो भोजनादिक का लाभ हो। मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्रों क्लीं ब्लू जंभे जंभे मोहे वषट् । विधि :-इस मन्त्र का हाथ से जाप करने पर सर्व प्रकार के ज्वर का नाश होता है। मन्त्र :- ॐ ह्रीं नमः । विधि :-अनेन मन्त्रेण शीतलि का दोष हस्तो वाहनीय स्तानि वृति भवति । मन्त्र :--ॐ ह्रीं अप्रति चक्र फट विचक्राय स्वाहा ॐ अप्रावि सोषागजति गडडं
तिमेघ जिम धड हडंति मडा मसारण भखंतु ईगई छंदइतुए परि चल्लई फाटइ फूटइ धमाह लग्रइ भूत प्रेत भीडउ मारइ नव ग्रह तुट्ठा चालइ वाप वीर श्री परमेश्वरा एकल्ल वीर अहुट्ठ कोडि रूप फोडि निकहइ
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१०८
विधि
लघुविद्यानुवाद
एक रूप मेल्हि उजेरिण महि कालि गगन खाली भूत पंचास वांधि चेडउ वांधि चेटकु वधि एकंतरु बांधि वेंतरउ बांधि त्रेयतरउ बांधि चालंतर दोषु चरडकइ काटि ।
- इस मन्त्र से कन्या कत्रित सूत्र मे ३ गाँठ लगाकर उन तीनो गाठ के पुट) डाले फिर उस डोरे को हाथ मे बाँधे तो एकातरादि ज्वर का प्रत्यक्ष बात है ।
मन्त्र
- यं रं लं वं क्षः ।
विधि - वलि कृष्ण कबल दवरकेनअनेन वार २१ जपित्वा बघयेत वलिर्याति ।
मन्त्र
मध्य मे ( कोलिया नाश होता है ।
मन्त्र :- ॐ तारे तु तारे वीरे २ दुर्गा दुत्तारय २ मां हुं सर्व दुःख विमोचिनी दुर्गोत्तारणी महायोगेश्वरी ह्रीं नमोस्तुते ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्र सरसुं सः हर हुं हः स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र का १०८ बार स्मरण करने से सर्व शांति होती है । सर्व उपद्रव का नाश
होता है ।
- ॐ नमो भगवऊ पासनाहस्तथं भेउ सव्वाउ ईई ऊजिरणा एमा इह अभि भवंतु स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र को १०८ बार जाप करने से, इति का उपशम होता है। जिस क्षेत्र में इस मन्त्र से भस्म और अक्षत १०८ मन्त्रित करके फेकने से और इस मन्त्र को भोज पत्र पत्र लिखकर खभे पर बाधने से किसी प्रकार की इति नही होती है ।
मन्त्र :- ॐ नमो शिवाय ॐ नमो चंड गरुडाय क्लीं स्वाहा श्री गरुडो श्राज्ञापयति स्वाहाविष्णुं क्लीं २ मिलि २ हर २ हरि २ फुरु २ मूषकान् निवारय निवारय स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र से सरसो मन्त्रित कर डालने से चूहे नही रहते है |
मन्त्र :--- ॐ प्रसन्न तारे प्रसन्ते प्रसन्न कारिणि ह्रीं स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र का जाप करने से शाति मिलती है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्री ब्रह्म शांते श्री मदंवि के श्री सिद्धाय के श्री श्रछुप्ते श्री सर्व देवता मम् वांछितान् कुर्वन्तु सर्व विघ्नानिशतु सर्व दुष्टान् वारयंतु ही श्री श्री स्वाहा ।
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लघु विद्यानुवाद
विधि :- स्मरणादेव पूजापुरःसर कर्त्तव्येति ।
मन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं कुष्मांडि देवि मम् सर्व शत्रु वशं कुरु २ स्वाहा ॐ ह्रीं क्लीं सर्व
दुष्टेभ्यो मां रक्ष २ स्वाहा ।
विधि उपलब्ध नही है ।
मन्त्र — ॐ खुर खुरीभ ठः ठः स्वाहा ।
विधि उपलब्ध नही है ।
मन्त्र :- ॐ भद्र यटा मल धरति सु ठः ठः स्वाहा ।
विधि उपलब्ध नही है ।
मन्त्र :- ॐ हं स्वाहा ।
विधि
१०६
--
- मघा नक्षत्र से अपा मार्ग की कील ४ प्रगुल इस मंत्र से सात बार मन्त्रित करके जिसके घर मे गाड दिया जाय वह वश मे जाता है ।
मन्त्र :- ॐ सिली खीली स्वाहा ।
विधि - अनुराधा नक्षत्र मे सरीष की कील प्रगुल ४ प्रमाण इस मन्त्र से सात बार मन्त्रित करके जिसके घर मे डाल दिया जाय, वह वश में हो जाता है यदा तस्य सत्कपुष्पो परिकीलिका मारीजते तदा स्वस्त्रियो वशी भवति ।
मन्त्र :- ॐ स्वदार दार स्वाहा ।
विधि :- स्वाति नक्षत्र मे बाडि ( बगीचा) की कील अंगुल ४ प्रमाण इस मन्त्र से ७ वार मन्त्रित करके तेल से बर्तन भरकर उस तेल मे वह कील डाल कर तेल से युक्त बर्तन को जिस घर 'गाड़ देवे तो तेल न भवति ।
मे
मन्त्र :- ॐ तटमर्टय स्वाहा ॐ व्याघ्र वदने व्रज देवी सप्त पाताल भेदिनी यज्ञक्ष प्रतिक्षोभिरणी राजा मोहिनी त्रैलोक्य वंश करणी परसभा जय २ ॐ ह्रां ह्री फट् स्वाहा ।
विधि इस मन्त्र को १०८ बार जपने से प्रतिवादी की जिह्वा का स्थाभन होता है ।
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११०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ जहि हुंधरणि सरजिइत्तछ हु धरी सरत्ति जाहरण वंत किल किय उगइ न
आवाइत्ति ॐ फट् स्वाहा । एकल्ल सुन्दरि हेलिविसु संवर्ग सुन्दरि हरहि विषु न दृष्टि विसु न अदृष्टि विसु मन्त्र कइ जं जंकार इति निसारणक शब्द
त्रिभुवने नास्ति विसु । विधि :-मयण हल मूल काष्ट बार ७ जपित्वा निशान च बार ७ जपित्वा निसाण काष्टे ना
हन्यते यत्र २ शब्द' श्रुयते तत्र २ स्थावर विष न प्रभवति । मन्त्र -अस्ति तिउडि मइ चलति पत्तो ठी वहरी काल मेघ मइ प्रावत दीट्ठि
दाडिमहुल्ली सव्व कहा जग हिल्ली मोर तु त्रात्रु तोरतु भरकु मइ दी एह उत्तइ लीयउ तु हु आगइ पाड कहि जन जाइ आदि तउ अत इदीन्हनु प्राथ वतइ लइ वात कहि वाघ काल मेघ वहिरी की शक्ति अ ल ल ल ल ल।
विधि :-काच शरावे पूतलक श्मसाने कोइलेन लिखीत्वा वार ७ पुष्प जपित्वा २ सप्तपुष्प
या वत्पूज्यते गुगुल गुलिका चउ दाह्यते दिन ७ यावत रात्रौ विधान एक जाति पुष्पाणि ग्राह्याणि ततोयन्नाम्ना जप्यते स क भवति । पानीयस्थाने य मधुरजले, क्षिप्ते सुस्था भवति । पर प्राक्प्रार्थ्यते जतु हतु स्वामिनि मेल्हा वत् तदामोच्यः प्रन्यो मोचयितु न शक्य ।
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मन्त्र : - हिमगिरि पर्वतु त हांथि तु पवणू उच्छनि लइ नींव की लकड़ी डालइ हिमगिरि पर्व ए वोल जतु प्रमारण न करहीतर ग्रादीश्वर
विधि :- नीव की लकडी हाथ मे पकड कर रोगी के मा तो असणी पात वार येत् । नदी मध्ये पूर्वोक्त मन्त्रित वासान्निक्षिप्त ततस्त छिरस ही कार्य स्व हस्त कृत्वा ही कार मेक विशतिवारान्
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रर्ह स्वों क्रीं ची श्रीं प्री सर्व संपू वले महाशक्ते क्षां क्षी क्षू मां रक्ष रक्ष स्वाहा ।
विधि
मन्त्र
-इस महा मन्त्र को प्रभात के समय मे २१ वार होते है | श्रेयश्चकर होता है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रो अर्हं नमि ऊरण पास बिसहर वसह त्रिण है. ( इति मूल मंत्र )
मन्त्र
विधि
- ॐ ह्रीं श्रीं क्ली कलि कुण्ड स्वामिनि श्रपराजिते नंभे ।
विधि :- उपदेश के समय जप कर उपदेश करने से श्रोताजन म्रा रहा है तो भी इस मन्त्र का ३ दिन तक ज का स्थन करता है और मनुष्यो को वश मे करन १०८ स्मर्यते तत ऊर्द्ध' वार २१ चित्राण ) ।
.-- ॐ ह्री धरणेन्द्राय नमः ॐ ह्रीं सर्व विद्या - इस मन्त्र को ६ महीने तक निरन्तर १०८ बार २१ बार जपने से सर्प जाति का भय नही होता है. आगइ वार १०८ स्मर्यते ।
+
मन्त्र :- ॐ ह्रों पंचाली २ जोइ मंविज्जं क
सज्जइत्ति स्वाहा ।
विधि - वार २९ गुणियित्वा सुप्यते ।
है।
f
र
कुरु
क
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११२
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र .-ॐ ह्रीं चामुंडे वज्रपाणे हुं फट् ठः ठः । विधि -गुप्ति मोक्ष विषये मासु १ सहस्त्र उभय सध्य गुणनीयः ग्रह विग्रहा दौच । मन्त्र :-ॐ सरल विषात् सिरकती नाशय नाशय अर्द्ध शिरोतों सिरकती स्थाने
अर्द्ध सिरकति । विधि .-आदित्य शुक्र वारयोरिम अर्द्ध वट्टिकाया लिखित्वा कुमारी सूत्रेण वेष्टियित्वा पक्का ऽक्षर
सयुक्त मर्द्ध श्रुनोदीयते अन्यदद्ध शिरोतिमान् भक्षयति । मन्त्र :-ॐ इलवियक्ष ॐ सिलवियक्ष । विधि -इस मन्त्र से लोहे की कील ७ वार मन्त्रित करके पूर्वाभिमुख लकडी के खम्भे मे ठोके,
स्वय पश्चमाभिमुखेन् दाढ रोगिण सकाशात् कीलिका खोटन च पानाय्यते स्तोक निक्षिप्य पुनर्वार ७ जपित्वा निक्षिप्यते पुनर्वार ७ सकलानिक्षिप्यते तत्पाद्धिस्तु १ परिहार्यते ।
इस प्रकार करने से दाढ पीड़ा नष्ट होती है । मन्त्र :-ॐ ः ॐ ह्रथु जंभे ॐ ह्र. स्तभे ॐ ह्र सूअंधे
ॐ ह्रथू मोहे। विधि :-इस मन्त्र को कपडे पर लिखकर धारण करना चाहिये। (इमवहि का पट्टे लिखित्वा
पावधाऱ्या)। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय हुं फट् ॐ ह्रां ह्री ह ह ह्रौ ह्रः। विधि :-इस मन्त्र को पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा के सामने १०८ बार जपने से वेला ज्वर का नाश
होता है। मन्त्र .-ॐ चंडि के चक्रपाणे हुं फट् स्वाहा । विधि :-(इसकी विधि उपलब्ध नहीं हो सकी है।) मन्त्र :- ॐ नमो भगवतो पार्श्व चंद्राय गौरी गांधारी सर्ववशंकरी स्वाहा ।
ॐ नमो सुमति मुख मंडये स्वाहा । विधि :-आभ्यापृथक वार १०८ मुखभामिमन्त्र वाम हस्तेनवादा दी गम्यते । मन्त्र .- ॐ ह्रीं अछुप्ते मम श्रियं कुर कुरु स्वाहा ह्रीं मम दुष्ट वातादि रोगान्
सर्वोपद्रवान वृहतो नु भावात् ठः ३ मक्षिका फुसिका गुरुपादुके अमृतं भयं ठः ३ स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
११३
विधि :-इस मन्त्र को ३ बार जपकर भोजन करने के लिये बैठने से मक्खियाँ नही आती है और
सर्व प्रकार के वात रोग नष्ट होते है । मन्त्र :- ॐ एहि नंदे महानंदे पंथे खेमं भविस्सइ पंथे दुपयं बंधे पंथे बंधे चउपयं घोरं
पासीविसं बंधे जाव गंठी न छुटइ स्वाहा । ॐ नमो भगवऊ पार्श्वनाथाय द्वयं धरणेन्द्राय सप्तफरण विभूषिताय सर्व वात सर्व लूतं सर्व दुष्टं सर्व विषं सर्व
ज्वर नाशय नाशय त्रासय त्रासय छिद छिद भिंद भिंद हूं फट् स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से पानी २१ बार मन्त्रित करके देने से दृष्टि ज्वरादिक शात होते हैं । मन्त्र :-ॐ ह्रीं विजय महाविजये सर्व दुष्ट प्रणाशिनी महांत मुख भंजनि ॐ ह्रीं श्रीं
भ्रीं कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-इस मत्र को १०८ बार जपे। मन्त्र -ॐ ह्रीं ज्वी लाह्वापलक्ष्मी चल चल चालय चालय स्वाहा । विधि -कृष्णाष्टभ्या चतुर्दश्या वा उपोषितेन् सहस्त्र १००८ जाप्य:--ततासाधिते सर्व स्वपने
कथयति ।
मन्त्र :-ॐ ह्रीं बाहुबलि प्रलंब बाहु बलिगिरि बलिगिरि महागिरि महागिरि धीर
बाहुवले स्वाहा । ॐ प्रचंड बाहुबलि क्षां क्षीं झूक्ष क्षौ क्षः उर्द्ध भुजं कुरु
कुरु सत्यं ब्रू हिब्रू हि स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को कायोत्सर्ग १०८ जाप्यः । मन्त्र :-ॐ ज्जी ह्रां ह्रीं ह्र नमः । विधि :-बार ३३ जाप्ये राजकुले तेज आगछति । मन्त्र :-ॐ स्वैरिणी २ स्वाहा । विधि .-पूगीफलादिक वार १०८ जपित्वायस्य दीयत्ते स वश्यो भवति । मन्त्र :-ॐ नमो अरहंतारणं अरेअररिण म्हारिणि मोहिणी २ मोहय २ स्वाहा । विधि : जिन प्रायतन मे इस मन्त्र को १०८ बार जपे फिर फलादिक को ७ बार मन्त्रित कर
जिसको दिया जाय वह वश मे हो जाता है।
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११४
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ मातग राजाय चिलि चिलि मिलि मितक्ली अमुकस्य रक्तं स्तंभय स्तभय
स्वाहा। विधि :--शुक्ल (सफेद) रग के डोरे को इस मन्त्र से २१ वार मन्त्रित करे, फिर उस डोरे को वाधे
तो स्त्रियो का रक्त श्राव वध होता है। मन्त्र :-करुणी वरुणी हुइव हिरिणरात मुहि रातपूठी पारे अछउ श्रीघोडी भेडु उतार
उपहर मलाउभतु संचार उ जहिपहर उतेही पहरिसंसारउ । विधि -बार २१ वातग्रस्थस्य श्वस्य हस्त वाहन घोडा हस्त वाहन मन्त्र । मानुपस्यापि रक्ते
निष्कासिते हस्तो वाह्यते । मन्त्र :-वजदंडो महादंडः वज्जकामल लोचनः वज हस्त निपातेन भूमौगछ महाज्वरः
एकाहिक द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिक नश्यंतु त्रिभिः । विधि :-एष मन्त्रो वहुकरि तृणेन चूना रसेन नाडा वल्लीदले लिखित्वा यस्य ज्वर आगच्चति तस्य
पाहि क्षापनीय ज्वर नाश्यति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं फे नमः । विधि :-लक्ष जापेन वधनात्मुच्यते । मन्त्र :-ॐ ह्री श्री झौ झा कोदंड स्वामिनि मम वंदि मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-रोज सवेरे दोनो समय दक्षिण की तरफ मुख करके रौद्र भाव से १०८ बार इस मन्त्र को
जपे तो बन्दि-मोक्ष । मन्त्र :-ॐ ह्री पद्म नंदेश्वर हूं। विधि .-इस मन्त्र को १०८ बार जपने से पाप से मक्ति मिलती है। ५००वार जपने से वह विशेष
रूप, १००० जप से अपमृत्य चालयति, २००० जप से सौभाग्य करोति. रात-दिन में ध्यान करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। (वृद्धि होती है) और १ लाख जप करने से
बन्दि मोक्ष, सर्व प्रकार का दारिद्र नाश होता है। मन्त्र --उद्धीध गधगती प्रज्वलंती हरगइ झाल गुरुपदेशी नामा नपार्या । विधि -ध्यायती सिद्धि स्तभयति घात वात अग्नि दग्वलावणा दौपिछादिना उजन कलपानीय
सर्वमुप शमयति दृष्ट प्रत्यय । मन्त्र :--ॐ वीर नारसिहाय प्रचंड वातग्रह भंजनाय सर्वदोष प्रहरणाय ॐ ह्री अम्ल व लू श्री स्फी त्रोय्य २ हुं फट् स्वाहा ।
. विधि .--इस मन्त्र से दुष्टवातादि उजन ।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र - लइंद्र ेण कृतं द्वारं इन्द्र ेण भ्रकुटी कृत भंजती इः कपाटा नि गर्भ मुंच सशोरिणत हुल हुलु मंच स्वाहा ।
विधि
. - इस मन्त्र से तेल २१ बोर मन्त्रित करके पेट के ऊपर मालिश करे, और पानी मन्त्रित करके पिलाने से सुख से प्रसव होता है ।
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3
मन्त्र :- ॐ धनु २ महाधनु २ सर्वधनु धीरी पद्मावती सर्वदुष्ट निर्दलनि स्तंभनी मोहनी सर्वासु नामिराजाधीनामि सर्वासुनामि राजाधि नामि प्राउ बंधउ दृष्टि बंध मुख स्तंभ ॐ किरि २ स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र को दक्षिरण हस्त से धनुप - बाण चलाने की मुद्रा से जपना, सर्व प्रकार से दुष्ट जनो के मुख का स्तम्भन करने वाला वह सर्व उपद्रव दूर करता है ।
मन्त्र :- ॐ गगनधर मट्टी सर्याल संसारि श्रवट्टी धरि ध्यानु ध्यायउ जुमग्रउ सुपावर आपणी भक्ति गुरु की शक्ति धरपुर पाटण खोमंतु राजा प्रजाखोभंतु डाइरिण कुकुरु खोभंतुवादी कुवादी खोभंतु आपणी शक्ति गुरु की शक्ति उठः ३ ।
बिधि
- इस मन्त्र से मिट्टी को मन्त्रित करके माथे पर रखने से या पास में रखने से सर्व जन वश होते है ।
मन्त्र
- ॐ ह्रीं ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रः महादुष्ट लूता दूष्ट फोडी वरण ॐ ह्रां ह्रीं सर्व नाशय २ पुलि तखङ्ग ेन छिन भिन्न २ हुं फट् स्वाहा ।
विधि : - इस मन्त्र से तैल २१ या १०८ बार मन्त्रित करके लगाने से और राख ( भस्म ) मन्त्रित करके लगाने से सर्व प्रकार का गड गुमड फुसी आदि शात होते है ।
मन्त्र :- ॐ सिद्धि ॐ संकरु महादेव देहि सिद्धि ।
विधि
- इस मन्त्र से तैल १०८ बार मन्त्रित करके गडमाल ऊपर लगाने से गडमाल अच्छा होता है।
विधि
मन्त्र — ॐ नमो श्ररहऊ भगवऊ मुखरोगान् कंठरोगान् जिह्वा रोगान् तालु रोगान् दंत रोगान् ॐ प्रां प्रीं प्र प्र सर्व रोगान् निवर्त्तय २ स्वाहा ।
- इस मन्त्र से पानी मन्त्रित करके कुल्ला करने से सर्व प्रकार के मुख रोग शांत होते है ।
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११६
लघुविद्यानुवाद
-
मन्त्र :-ॐ डाऊ चेडा उन्मन मोखी बावन वीर चउसट्ठि योगिरिण छिद २ भिंद २
ईसर कइत्रि सूलीहरण वंत कह खङ्गि छिन्न २.हुं फट् स्वाहा । विधि :-वार २१ उ जनेन कर्ण मूलादि उपशाम्यति । मन्त्र :~ॐ ह्रां ह्रीं ह्र. सेयउ घोडउ ब्राह्मणी कउ घोडउल कारे लागइ जकारे जाइ
भूत बांधि प्रेत बांधि राक्षस वांधि भेक्षस बांधि डाकिनी बांधि शाकिनी बांधि डाउ बांधि वपालउ बांधि लहुडउ गरुडु वडउ गरुडु प्रासनि भेदु २ सुबांधिकसु बांधि सकसु बांधि सकसु बांधि जइनें मेरउ वुतउ करहि परिग्रह स चक भीडी घरि मारि बापु प्रचडं वीर नार स्यंघ वीर की शक्ति धरी
मारि बापु पूत प्रचंड सीह । विधि .~ इस मन्त्र को धूप से मन्त्रित करके जलाने से और रोगी पर हाथ फेरने से भूतादि
उपशमति । मन्त्र :-ॐ नमो अरहताणं नमो सिद्धारणं नमो अणंत जिरणाणां सिद्धयोग धाराणं
सम्वेसि विज्जाहर पत्ताणं कयैजली इमं विज्जारायं पउंजामि इमामे
विज्जापसिष्यउ पार कालि बालकालि पुस खररेउ आवतवो चडि स्वाहा । विधि .-पृथ्वी पर सात ककर लेकर इस मन्त्र से २१ बार या १०८ बार मन्त्रित कर बिकने वाली
दूकान की चीजो पर डाल देने से शोघ्र ही उस सामान की बिक्री हो जाती है। मन्त्र :- अरहऊ नमो भगवऊ महड महावद्ध मारण सामिस्सपरणय सुरासुर सहर
वियलिय कुसु मुच्चिय कमस्स जस्स वर धम्म चक्कं दिय रवि व व भासुर छांय ते एण पज्जलं तं गच्छइ पुरऊ जिरिंणदस्स २ प्रायसं पायाल सयलं महि मंडलं पयासं तं मिछत मोह तिमिरं हरेइति एहं पिलोयाण सयल भिविते लुक्के चितिय सितो करेइ सत्तारणं रक्खं रक्खस डाइरिण पिसाय गह जक्ख भूयारणं लहइ विवाए वाए ववहारे भावउ सरं तोउ जुएय रणराय
गणेय विजयं विसुद्धप्पा। विधि :-इस वर्द्धमान विद्या स्त्रोत का पाठ करने वाले के रोग शोक आपदा शात होती है। मन्त्र :-ॐ महादंडेन भारय २ स्फोटय २ आवेशय २ शीघ्र भंज २ चूरि २
स्फोटि २ इंद्र ज्वरं एकाहिक्कं द्वयाहिकं च्याहिकं चाथिदकं वेला ।
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लघु विद्यानुवाद
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सम ज्वरं दुष्ट ज्वर विनाशय २ सर्व दुष्टान्नाशय २ ॐ ७ र ७ हो स्वाहा २य. ३ ।
विधि
: - इस मन्त्र को अष्टमी अथवा चतर्दशि को उपवास करके १०८ बार जपने से यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । और यह मन्त्र सर्व कार्य के लिए काम देता है ।
मन्त्र :- ॐ झांझीं झौ भूः ।
विधि :- इस मन्त्र से डोरा रगीन वड करके २१ बार मन्त्रित करके हाथ मे बाधने से तृतीय ज्वर नाश होता है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं प्रप्रति चक्र े फट् विचक्राय स्वाहा । ( सर्व कर्म भरा मन्त्र )
विधि - विशेषत शाकिनी गृहं तस्य सर्षापान् गृहीत्वा शाकिन्या कर्षयेत् । एकैक सर्षपं सप्ताभिमन्त्रीत कृत्वा जलभृत कटोरक मध्ये क्षिपेत् ये तरति ते शाकिन्यः समेन शाकिन्यः विषमेण भूत प्रथ न तदा भूत शाकिनी मध्याद् एकोपि ना अनेन मन्त्रेण सप्ताभि मन्त्रीत कृत्वा उदुषल ताडयेत् यथा २ ताडयेत् तथा २ श्राक्रदति । एतेन् चावर सप्ताभि मंत्रित कृत्वा उद्धी कृत्य स्फोटयेत् रुपिष्यो नश्यति श्रनेन् मन्त्रेण युग्मगृहीत्वा सप्ताभि मन्त्रीता क्रित्वा उद्वीकृत्य स्फोटयेत् रुपिण्यो नश्यति । अनेन मन्त्रेण प्रजा लिडि कामे काकी विध्यात् शाकिन्या गृहीतस्य खट्वाघ शराव स पुट धारयेत् शाकिन्यो नश्यति रक्षा वधयेत् ।
मन्त्र :- ॐ क्रां क्रीं क्रौ क्षः हः रः फट् स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र को सरसो लेकर पढता जावे और रोगी के उपर सरसो डालता जावे तो भूतादिक रोगी को छोडकर निश्चित ही भाग जाते है ।
विधि
मन्त्र :- ॐ चन्द्र मीलि सूर्य मीलि स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र से डोरे को २१ बार मन्त्रित करके जिसकी प्राख (चक्षु) दुखती हो उस मनुष्य के कान मे उस डोरे को बाधने से चक्षु रोग पीडा नष्ट होती है ।
मन्त्र :- ॐ नमो आर्या व लोकिते स्वराय पके फुः पद्म वदने फुः पद्म लोचने
स्वाहा ।
- भस्म वार २१ जपित्वा टिल्लक त्रियतेततो दृष्टि दोषो निवर्त ते हस्तवाहन च । इस मन्त्र से भस्म २१ बार जप कर तिलक करने से दृष्टि दोष याने नजर लगी हो तो ठीक हो जाती है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं प्रग्र कुष्मांडिनी कनक प्रभेसिंह मस्तक समारुडे अवतर २ अमोघ वागेश्वरी सत्यवादिनी संत्यं कथय २ ॐ ह्री स्वाहा ।
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११८
लघुविद्यानुवाद
विधि -मासमेक दशमी मारभ्य १०८ जपित्वा पचमी दशम्योविशेषतः तप कार्य यामिन्यद्धि
अविचलेन वार ७ जाप्य ।। अयं यत्र लेखन विधि .-बसन्तु १ ग्रीष्म २ प्रावृट ३ शरद ४ हेमन्तु ५ शिशिर ६ एक दिन
मध्ये षट् रितवो भवति दश २ घटिकाः प्रत्येक ऋतु प्रमाण अहोरात्रि मध्ये पट् भवति घटिका ६० आदित्योदयात् बसत ऋतु घटिकाः १० तत्राकर्पण १ ग्रीष्मे/द्वेषण २ प्रावृटे, अपरान्हे उच्चाटण ३ लिखेत् सर्वत्र योज्य शिशिरे मारण लिखेत् ४/शरदे शातिक लिखेत् /५ हेमते पौष्टिक लिखेत् ६/ पन्नगाधिप शेषरा विपुलारूणा वुजविष्ट राकुकुटोरग वाहना अरुण प्रभा कलला ननाय बिका वरदा कुशायतप शादिव्य फलाकित्ताचितयेत पद्मावती जपता सता फलदायिनी दिक्काल मद्रासन पल्लवाना भेद परित्ताय जपेत्समन्त्री न चान्यथा सिध्यति तस्यमन्त्र. । दा तिष्ठति जाप्य
होम। मन्त्र .-ॐ ह्रीं महाविद्य प्रार्हति भागवति परमेश्वरी शाते प्रशांते सर्वक्षुद्रोप
शामिनि सर्व भयं सर्व रोगं सर्व क्षुद्रोपद्रवं सर्व वेला ज्वरं प्रणाशाय २
उपशमय २ अमुकस्य स्वाहा । विधि -बार ७४३१०८ अनेन मत्रेण दवरक वासादिमभिमत्र्यते । मन्त्र :--- ॐ ह्रीं श्री चंद्र वदनी माहेश्वरी चंडिका भूतप्रेत पिशाच विद्रापय २
वज्रदंडेन महेश्वर त्रिशूलेनदी वीर खङ्गन चूरय २ पात्र प्रवेशे २ ॐ छां
छीं छू छः फट् स्वाहा । विधि :-प्रथम १०८ बार इस मन्त्र का जाप्य करे, फिर डोराको २१ बार मन्त्रित करके बाध देने
से सर्व प्रकार के ज्वर का नाश होता है।
मन्त्र :-ॐ अतिशनैश्वराय। विधि -इस मन्त्र का जाप करने से शनि की पीडा दूर होती है । मन्त्र :-लोहु स्वाहु लोहु पीयउ लोह ही दर दितु चंदसुर राजा अनुनाही कोइ
राजा । विधि -इस मन्त्र से फोडे को ७ बार मन्त्रित करने से फोडा (घाव) अच्छा होता है। मन्त्र :-ॐ लक्ष्मी प्रागछ २ ह्री नम अरे ॐ नमः सोषा महाप्रचंड वीर भूतान्
हन २ शाकिनी हन २ मुंच २ हुं फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से जाप करे तो सर्व दोष की शान्ति होती है।
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लघुविद्यानुवाद
११६
मन्त्र :-वहु पाणी ए पुर पट्टणमष्यि प्रारिग एण वाउ पुत्रु तुह मछइ कामलु चडियउ
सोमे पीछिलेउ छाडिउ १ उडु का मल संखपालु भगइ उडु का मल संखु
पालु भणइ। विधि -रविवारे शोभने दिने (गोस नाड) शब्द सत्कपाडलेत्वा खडि का १०८ एकैक वार भणित्वा
कुमारो सुत्र दवर केण सप्त वडेन ग्रथि तिव्यः कठे प्रक्षिप्तामाला यवा २ वर्द्ध यते तथा
२ कामल उपशाम्यति । मन्त्र :-ॐ रां री रुरः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से तीन दिन तक २१-२१ बार मन्त्र पढता जावे और कामलवात रोगी पर हाथ
फेरता जाय तो कामल वात नष्ट होती है। मन्त्र :-ॐक्षी ३ हः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को जपता जावे और सिर पर हाथ फेरता जावे तो सिर का दर्द दर
होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रां ग्रां हुं फट् स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को १०८ बार पढे और रोगी पर हाथ फेरे तो शाकिन्यादि दोष शात होते है।
चाउ लोद केन सहवास जडापीषयित्वा पातव्या सुखेन् प्रसूते । मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह्रः श्रीं स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को बासी मुख नाभि मत्रित करे तोमन्त्र :-जे चल्ल चल्लइ घाउ घल्लइ अष्ट कुल नाग पूजा पाए टालई भोपरिभो
कुमारी काला सांपहदाढ़ निवारी खील तुवाट घाटजहि तउ आयउ खोल माय वा पूजहिंतुहु जायउ खीलउ धणि अनु प्राकासु मरसिरे
विषहर जइकाटि सिसासु । विधि -सर्प खिलण मन्त्र अनेन मन्त्रेण वात विषये दवर को ग्रथि सत्को कृत्वा दीयते पर
अष्टकूल नागस्थाने चउरासी वाय इति पदपठि तव्य । जेथउ ठरे स सर्प
कीलन मन्त्र । मन्त्र -ॐ नमोहणु हरणइ वज्रदंडेरण वेदुप्रजालिगोपाला शाकिनी चेडउ डाउसो
ना समउ भेदु वहत्तरि साडा एहिरा गुगुल लोधउ हाथी पहुता सी वलि पासि गिरि टालइ भीम टालइ राहउ चडु टालइ जमरातणी
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१२०
लघुविद्यानुवाद
पुजखडहडंत पाडइ हिडव गंठ्ठि मोर गंठेरण वाप हणु वीरणी शक्ति फुरइ
सयं जरु त्रेता ज्वरु वेला ज्वरु एकांत्तरऊ हणुवीरगी शक्ति फूरइ । विधि :-इस मन्त्र से डोरा मन्त्रित करके बॉधने से ज्वर का नाश होता है । मन्त्र :-डूंघ भू। विधि -इस मन्त्र को भयानक स्थान पर स्मरण किया करे । मन्त्र :- ॐ ह्रीं मायागे सरस्वस्यै नमः । विधि :-बोध सारस्वत मन्त्र । चद्रा नना स्वरा भोधी वाड्मयी च सरस्वती ह्र च्चद्र मडल
गताध्याये सारस्वत महत् । मन्त्र :-ॐ ह्री ठः श्री वीस पारा उल केरी आज्ञा श्री घंट्टा कर्णकेरी प्राज्ञा
फुरइ । विधि -उसरणो वात मन्त्र । मन्त्र -ॐ नमो लोहितपिंगलाय लघु २ हलु २ विलु २ ह्री स्वाहा । विधि :-कसु भल रक्तसूत्र स्त्री प्रमाण कृत्वा शिरस उपरी अगुल ४ कृत्वा ऽनेन् मत्रेणभि । मत्र्य
व ध्रीयात वा मपादल ध्वगुलि काया गर्भो न रक्षति पानीय चलूक ३ अभिमत्र्य दीयते
गर्भो न क्षरति । मन्त्र :-ॐ तद्यथा गर्भधर धारिणी गर्भरक्षिरिण आकाश मात्रीकै हुं फट्
स्वाहा। विधि .-इस मन्त्र से लाल डोरे को २१ बार मत्रित करके स्त्री के कमर मे बाँधने से रक्त स्राव
__ रुक जाता है। मन्त्र -ॐ नमो लोहित पिंगलायः मातंग राजानो स्त्रीणां रक्तं स्तंभय २ ॐ तद्यथा
हु सुरलघु २ तिलि २ मिलि २ स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से लाल डोरे को २१ बार मन्त्रित कर ७ गाठ लगाकर स्त्रियो के वाम पाव के
अँगूठे मे बाँधने से रक्त स्राव रुक जाता है। मन्त्र :-ॐ रक्त २ वस्त्रो पु फु रक्त वाक्त स्वाहा । विधि :-अनेन कसु भ रक्त सूत्रेण अन्हढ हस्त दवरक वटित्वा अघा घाडा मूल बधित्वा वार ७
अभिमन्यते रक्त वाहक नश्यति । मन्त्र -ॐ भीमाय भूमि पुत्राय मम् गर्भ देहि २ स्थिर २ माचल माचल ॐ का
क्री कौ उ फट् स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१२१
विधि -इस मन्त्र का मगलवार के दिन को कुमारी कन्या को भोजनादि वस्त्रालंकार से सन्तुष्ट
करे फिर इस मन्त्र का १ महिने मे ५०,००० जाप पूरा करे, किन्तु मगलवार को ही जाप्य शुरू करना चाहिये और याव जीव (जीवन पर्यन्त) प्रत्येक मगलवार को ब्रह्मचर्य
व्रत पाले और एकासन करे तो नि सन्देह सन्तान उत्पन्न होती है। मन्त्र :-ॐ हिमवंतस्योत्तरे पार्वे पर्वते गंध मादने तस्य पर्वतस्य प्राग्दिग्विभागे कुमारी
शुभ पुण्य लक्षणाए व चर्मवसना घोरासैः कृत के ऊरन्नुपुरा सर्प मंडित मेखला प्रासी विसचोंभलि का दृष्टि विष करर्णा व तंसिका खादंती विषपुष्पाणि पिवंती मारुतां लतां समाल वेति लावेति एह्य हि वत्से श्रु गोहि मे जांगुली नाम विद्याहं उत्तमा विषनाशिनी (यत्किचि मम नाम
नातत्सर्व नश्यते विषं)। मन्त्र :-ॐ इलवित्त तिलवित्त डुवे डुवालिए दुस्से दुस्सालिए जक्के जक्करणे मम्मे
मम्मरणे संजक्करणे अघे अनघे अखायंतीए अपायंतीए श्वेतं श्वेते तुडे अनानु रक्त ठः २ ॐ इल्ला विल्ला चक्का वक्का कोरडा कोरड़रत्ति घोरडा घोरड़ति मोरडा मोरड़ति अट्ट अट्टरुहे अदृट्टोंड रहे सप्पे सप्प रहे सप्प होंड रुहे नागे नागरुहे नाग ट्रोड रुहे अछे अछले विषत्त डि २ त्रिडि २ स्फुट २ स्फोटय २ इदाविषम विषं गछतु दातारं गछतु भोक्तारं
गछतु भूम्यां गछतु स्वाहा। विधि -इस मन्त्र विद्या को जो पढता है, सुनता है, उसको सात वर्ष तक साप दष्टि मे नही
दिखेगा याने उसको सात वर्ष तक सर्प के दर्शन नही होगे और काटेगा भी नही और
काटेगा भी तो शरीर मे जहर नही चढेगा। मन्त्र :-अपसर्प सर्प भ्रदंते दूरं गछ महाविषु जनमेजय य ज्ञाते आस्तिक्य वचनं
शृणु । आस्तिक्य वचनं श्रुत्वा यः सर्पनि निवर्तते । तस्यैव भिद्यते मुर्दा
सं सृ वृक्ष फलं यथा । मन्त्र :-ॐ गरुड जीमुत वाह. सर्प भयं निवर्त्तय २ आस्तिक की आज्ञा पर्यंत
पदं। विधि :-इस मन्त्र को हाथ की ताली बजाता जावे और पढता जावे तो साप चला जाता है. किन्त
मन्त्र तीन बार पढना चाहिये।
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१२२
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ कुरु कुरुले २ मातंग सवराय सं खं वादय ह्री फट् स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से बालू २१ वार मन्त्रित करके घर मे डाल देने से सर्व सर्प भाग
जाते है। मन्त्र :-ॐ नकुलि नाकुलि मकुलि माकुलि अ हा (ला) ते स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से बालू २१ बार मन्त्रित करके घर मे डाल देने से घर मे साप नही
होते है। मन्त्र -ॐ सुरबिदु सः । विधि :-इस मन्त्र को पढता जावे और सर्प डसने वाले मनुष्य को नीम के पत्तो से झाडता जाय
तो साप का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-ॐ चामुडे कुर्यम दंड अमुक हृदय मम हृदयं मध्ये प्रवेशाय ३ स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को पढता जावे और जिस दिशा मे क्रोधी मानव हो, उस दिशा मे सरसो फेकता
जावे तो क्रोध नष्ट हो जाता है। (भस्म निसद्यः क्षिपते क्रोध) मन्त्र :-वानरस्य मुखं घोर आदित्य सम तेजसं ज्वरं तृतीयकं नाम दर्शना देव नश्यति
तद्यथा हन २ दह २ पच २ मध २ प्रमथ २ विध्वंसय २ विद्रावय २ छेदय २ अन्यसीमां ज्वर गच्छ हनुमंत लांगुल प्रहारेरण भेदय ॐ क्षां क्षी क्षौ क्षः रक्ष फट् स्वाहा । विष्णु चने रण छिन्न २ ' रुद्र श्रु लेग भिद भिद
ब्रह्मकमलेन हन हन स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को केशर, गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर प्रात रोगी को दिखाने से ज्वर
का नाश होता है। मन्त्र :- ॐ कुरु कुरु क्षेत्रपाल मेघनाद केरी प्राज्ञा । विधि :-अनेन वार २१ खटिकामभिमन्यस्य ज्वर प्रागच्छन्नस्ति स ज्वर वेला या अन
उपवेश्य तत्पार्वतस्त्रि रेखाभि कु डक । क्रियते यावद्व लाया उपरिघटिका १ अतिक्राता भवति तावत्कु डक नमस्कारेण उत्तारणीय कु डस्थेन न पातव्य न भोक्तव्य कितु नमस्कारा गुणनोया य र ल व व ल र य इति पूर्वत एव परावर्तनात् ३००
एकातरादि वेलोप शाम्याति दृष्ट प्रत्ययोय कस्यापि अग्रेन कथनीय । मन्त्र -ॐ पंचबाण हथे धनुषं बालकस्य अबलोकनं हनु अस्य सरूपेण नश्यत्त
धनुर्वातकं ॐ क्रां क्रीं ठः ठः स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१२३
विधि .-धनुष और पाच बाण लेकर मन्त्रित करे इस मन्त्र से फिर चारो दिशा मे एक-एक बाण
छोड देवे और एक बाण आकाश मे छोडे फिर धनुर्वात रोगी के देखने से धनुर्वात शात
होता है । और कोई भी बालक को भी देखे । मन्त्र :-ह छाया पुरुषस्य क्षः ाः ३ क्षः सः आः आः क्षः। विधि :-इस मन्त्र से अघाहेडा दूर होता है।
मन्त्र :-ॐ नमो भगवते ईश्वरयक्षाय गौरी विनाय कषए सुष सहिताए मालाधराय
चंद्र शोभिताय तृतीय ज्वर वर प्रदाय गमय गमय स्फोटय २ त्रोटय २
परमेश्वरीस्य आज्ञायाम रहिरे तृतीय ज्वर जइ पोडा करइ । विधि -इस मन्त्र से गुगुल को १०८ वार मन्त्रित करके, फिर रोगी के सिर पर महेश्वर है ऐसा
विचार करता हया रोगी के सामने उस गुगुल को जलाने से तथा पानी कलवानी करके
पिलावे तो तृतीय ज्वर जाता है । मन्त्र :-ॐ नमो भगवतः क्षेत्रपालं त्रिशूलं कपालं जटा मुकुट बद्ध शिरो डमरूक
शोभितं उग्रनादं जियं गोगिरणी जय जया बहुला संद विकट नै मुखं जयंतु
कुंडल विशालं । विधि :- इससे दर्भ हाथ मे लेकर रोगी को झाडा दे तो ज्वर का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते काश्यपपस्ताय वासुकि सुवर्ण पक्षाय वज्र तुडाय
महागुरुडाय नमः सर्वलोकनखांतर्गताय तद्यथा हन २ हनि २ भन २ भनि २ सवंलूतान ग्रस २ चर २ चिरि कुरु २ घोड़ासान गृन्ह २ लोह लिंग छिद
भिद २ गंडमाल कीटां भक्षे स्वाहा । विधि .-तीक्ष्ण शस्त्रेण उजयेत गडमाला नश्यति । मन्त्र :--ॐ नमो भगवते पाश्वनाथाय पद्मावती सहिताय शंशाक गोक्षीर धवलाय
अष्टकर्म निर्मूलनाय तत्पाद पंकज निषेविनी देवी गोत्र देवत्ति जलंदेवति क्षेत्र देवति पाद्रदेवति गुप्त प्रकट सहज कुलिश अंतरीषयत्र स्थाने मठे पारा में नदी कुल संकटे भूम्यां आगच्छ २ आणि २ बांधि २ भूत प्रेत पिशाच मुद्गर जोटिग व्यंतर एकाहिक द्वयाहिक चातुर्थिक मासिक वरसिक शीत ज्वर दाह ज्वर श्लेष्म ज्वर सर्वाणि प्रवेश २ गात्राणि
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१२४
लघुविद्यानुवाद
भंज २ पात्राणि पूर २ प्रात्म मंडल मध्ये प्रवेशय २ अवतर २
स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र से मुद्गलादि दोष नाश होते है । मन्त्र :-पर्वतु डुगर कर्कट वाडि तसुकेरि वंश कुहा हाडी छिद २ भिद २ सापून
केरि शक्ति ठः ठः स्वाहा । विधि - इस मन्त्र से विष काटा ठीक होता है। मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय तद्यथा हने मोहने अहं अमकं अमकस्यं ज्वरं बंधामि
एकाहिक द्वयाहिक ज्याहिक चातुर्थिकं नित्यं ज्वरं वंधामि वेला ज्वरं
बंधामि स्वाहा । विधि -केशर, गोरोचन से चीरिका ( ) ऊपर इस मन्त्र को लिखकर कठ मे धारण करने
से ज्वर का नाश होता है। विदुक २० लिखित्वा द्धयोर्दिक शोर्गणयित्वार परिमाज्यंते
ततो वृश्चिक विषयाति । मन्त्र :-घ घ घः घु घु घुः धरुरे धरहउ सुनील कंछु पाउरे वाहुडि २ । विधि :-वाम हस्ते दुह अगुलि आगुट्ठ, डक, गृहीत्वा ऽय मत्रा भण्यते वृश्चिक विष याति । मन्त्र :-ॐ सवरि स्वाहा । विधि :-जब अपने को बिच्छू काट ले तो वे इस मन्त्र को जपे, विच्छ का जहर नहीं
चढता है। मन्त्र :-ॐ रौद्र महारौद्रं वृश्चिकं अवतारय २ स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से सात प्रदक्षिणा करते हये जपे तो वृश्चिक विष उतरति । अम जपित्वा
आत्म. सप्तप्रदक्षिणादाय नीयास्ततो वृश्चिक उतरति । मन्त्र :-अट्ठारह जाति विछी यह अरुणार उदे वल्लावइ महादेवउ उत्तारइ खंभाक
देव केरी प्राज्ञा फुरतु देव उतारउ । विधि :-इस मन्त्र से १०८ बार हाथ फेरता जाय और मन्त्र पढता जाय तो बिच्छू का जहर
उतर जाता है। मन्त्र :-अट्ठ गंट्ठि नव फोडि ३ तालि बीछतु ऊपरि मोरु उडिरे जावन गरुड
भक्खड़।
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विधि
मन्त्र :- सुयर वाले हिंगेरु येहि एहि ।
उत्तारि
लघुविद्यानुवाद
—इस मन्त्र से ७ बार हाथ से झाडा देने से बिच्छू का जहर उतर जाता है ।
अन्तु नहि फलेहि प्रभुका विछि उलग्रउ
१२५
विधि - इस मन्त्र से प्रथम कपडा को मोडता जाये, तो बिच्छू का जहर उतर जाता है । मौन से मन्त्र पढना चाहिये |
मन्त्र :- ॐ कुरु कुल्ले ह्रीं फट् स्वाहा ।
विधि - तृरणाग्रेण वृश्चिक अकुटकं सप्तवार स्पृश्यते हस्ते गृह्यते न लगती यदपि पतति भूमौ तदा पुनस्तथैव स्पृश्यते शिरीष वृक्ष फले घषित्वा लगित्ते डकादपि वृश्चिक नुत्तरति ।
ॐ जः हः सः ।
मन्त्र : विधि - इस मन्त्र से सिर दर्द ठीक होता है । ॐ वैष्णवै हुं स्वाहा ।
मन्त्र :
मन्त्र :- ॐ क्षं क्षं शिरोवेदनां नाशय २ स्वाहा ।
विधि :- ऊपर लिखे दोनों ही मन्त्र सिर का दर्द मिटाने का है, इस मन्त्र को २१ बार पढने से सिर वेदना ठीक होती है ।
मन्त्र :- ॐ पूं पूं हः हः दुदुः स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र को केशर से भोजपत्र पत्र लिखकर कान मे बाघने से श्रद्ध शिसा रोग शान्त होता है।
मन्त्र :-- ध भेदकं सिरती नाशय २ स्वाहा ।
विधि :-- इस मन्त्र को गौरोचन से भोजपत्र पर लिखकर कान में बांधने से आधासीसी शान्त होता है ।
मन्त्र :-- प्रावइ २ उद्ध फाटिउमरि सिजा ३ चाउंड हरणी प्रारण जइ २ हइ ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं री रीं रुं यः क्षः ।
विधि - इस मन्त्र को २१ बार जपने से सिर पीडा की शांति होती है ।
मन्त्र :--ॐ महादेव नील ग्रोव जय धर ठः ठ स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र से भी सिर पीडा शान्त होती है ।
मन्त्र :- ॐ ऋषभस्य किरु २ स्वाहा ।
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१२६
लघुविद्यानुवाद
विधि :-इस मत्र से भी सिर पीडा दूर होती है। मन्त्र :-पारे पारे समुद्रस्य त्रिकुटा नाम राक्षसी तस्याः किली २ शब्देन अमुकस्य
चक्षु रोगं प्रणश्यति । विधि -इस मन्त्र से सप्तवड लाल डोरे को ७ गाठ देकर वाम कान पर डोरे को बांधने से चक्षु
पीडा दूर होती है। मन्त्र :-ॐ अंषि जले जलं धरे अन्धा वंधा कोडी देव पुत्रारे हिमवंतसारी । विधि :-इस मन्त्र से २१ वार प्रारनाल जल मत्रित करके चक्षु धोने से पीडा मिटती है । मन्त्र :---ॐ कालि कालि महाकालि महाकालि रोद्री पिंगल लोचनी श्रु लेन रौद्रोप
शाम्यंते ॐ ठः ठः स्वाहा । विधि -बार ७ घरट्रपूट लहणक वस्त्र दोरडउ यदि वामी तदा दक्षिणो करें यदि दक्षिणा तदा
वामे वध्यते । मन्त्र :-ॐ ह्री पद्म पुष्पाय महापद्म पुष्पाय ठः ठः स्वाहा । विधि -वार २१ हस्तो वाह्यते चक्षुषोभरण निवृति क्रियते । मन्त्र :-ॐ विष्णु रूपं महारूपं ब्रह्मरूपं महागुरु शंकर प्रणिपादेयं अक्षि रोग मा ह
ह रौ ह ह हिरंतु स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से पानी २१ वार मन्त्रित करके जल छिडके तो चक्षु पीडा शात होती है। मन्त्र -ॐ क्षि क्षि प क्षं हं सः। विधि :-भस्म मत्रित करके आँख पर लगावे तो चक्षु पीडा शात होती है । मन्त्र :-रे प्राकस हरणाक प्रादित्य पुत्र थलि उप्पन्नउ खमणिया दारी उत्तर हि कि
उत्तारउ कि छालियाह क्वावार तु । (अवर्कोतारण मन्त्र) मन्त्र -ॐ भूर भूर भूः स्वाहा । (खजूरा मन्त्र) मन्त्र -ॐ भूरु भूरु स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को २१ बार पढकर हाथ से झाडा दे तो खजूरा विप शात होता है। कपिथ
वटिका पानीयेन घर्षित्वा डके दीयते खजूरो विषोपशम । मन्त्र :-डू कु कुरु वंभणुराउ पंचय मिलहि तिपव्वय घाउ । विधि -इस मन्त्र से मिट्टी को मन्त्रित करके घोडे के काटे हये पर डालने से और हाथ से झाडा
देने से अच्छा हो जाता है।
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लघुविद्यानुवाद
.१२७
मन्त्र :-वाहि रहोज्जुत्तो सीहे हि परिवारिऊ एभ्य नंद गछा मोकु कुराणां मुखं
वंधामि स्वाहा । विधि - इस मन्त्र को २१ बार पढता जाय और कपडे मे गाठ देवे तो पागल कुत्त का मुख बध
हो जाता है, फिर किसी को भी नही काटता है । मन्त्र .-धतूरे वाहि ऊहिं महादेवी उपाइ हि धरि गरुडि बच्चाइ हि धरि गाडि
गडि। विधि -२१ बार जलमभिमन्त्र्य पीयते धतूरउ चूरति । मन्त्र .-काली पंखाली रुयालि फट स्वाहा । विधि - इस मन्त्र से मक्खिया भागती है। मन्त्र :-उडक वेडि जागलि जाहठर ल्लइ पारिपरे ल्लइ जाहः काली कुरड़ी
तु हु फिट काल काले सरी उग्न महेसरी पछारु साधरिण शत्रु
नाशिनी । विधि - रविवार को गोबर से मण्डल करके उसके ऊपर खडा रहे फिर दर्भ लेकर इस मन्त्र से
झाडा २१ बार देवे तो कृाम दोष मिटता है। मन्त्र :-समुद्र २ माहिदीपु दीप माहिधनाढ, जीव दाढ़ तोड़उ खाउ दाढ़ कीडउ न
खाहित अमुक तराइ पापिली जई। विधि ---इस मन्त्र से दाढ को २१ बार मन्त्रित करे तो दाढ पीडा शान्त होती है । मन्त्र :-ॐ इटि त्तिटि स्वाहा । विधि :--इस मन्त्र को १०८ बार जप कर ७ बार हाथ से झाडा देवे तो काख विलाई नष्ट
होती है। मन्त्र :-कुकुहा नाम कु हाडउ पलि घडि उपलासइ घडिउ भारि घडिउ
भारसइ घडिउ सवरासबरी मंत्रेण तासु कुहाडेरण छिन्न वलि बेटे
व्याधि । विधि :-इस मन्त्र को ७ बार जपने से काग काख विलाई नष्ट होती है। मन्त्र -ॐ चक्रवाकी स्वाहा । विधि -मनुष्य के प्रमाण सात वड डोरा बनावे, फिर इस मन्त्र से १०८ बार मन्त्रित करे गुड के
अन्दर गुटिका भक्षापयेत् वालका नश्यति ।
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१२८
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ यः क्षः स्वाहा । अनेनापि सर्वतथैव कार्य वालको पशमो भवति । मन्त्र :-ॐ देवाधिपत्ते सर्व भूतादि पत्ते ह्री बालकं हन २ शोषय २ अमकस्य हुं
फट् स्वाहा। विधि :--दोरउ नवततु नव गठ्ठि वालकोपशमो भवति । मन्त्र .-ॐ श्रीं ठः ठः स्वाहा । विधि -पानी अभिमन्त्र्य १०८ बार पीयते हिडुकि नाशयति । मन्त्र :- ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । विधि :--वार ३२ हिडकी नश्यति । मन्त्र :-ॐ क्षां क्षां क्षुबै क्षौ क्ष क्षः। विधि --गर्म पानी को २१ बार मन्त्रित करके पीने से विश्र चिका नाश होती है । मन्त्र :-भस्म करी ठः ठः स्वाहा । ॐ इचि मिचि भस्म करी स्वाहा । ॐ इटिमिटि
मम भस्म करि स्वाहा । विधि .--इस मन्त्र से जल मन्त्रित करके पिलाने से और हाथ से झाडा देने से अजीर्ण ठीक होता
है और अतिसार भी ठीक होता है और पेट का दर्द भी ठीक होता है । मन्त्र :-प्रतीसारं वंधेमि महाभेरं वधेमि न क्वाहि वंधेमि स्वाहा । विधि -डोरा को ७ बार मन्त्रित करे, फिर कमर मे बाधे तो नाक रक्त, अतिसार ठीक होता है।
और बहुत खट्टी काजी निमक के साथ पीने से भी अतिसार ठीक होते है । मन्त्र :-ॐ नमो ऋषभध्वजाय एक मुखी द्विमुखी अमकस्य क्लीहा व्याधि छिदय २
स्व स्थानं गछ प्ली हे स्वाहा । यह प्लीहा मन्त्र है । मन्त्र :-ॐ क्रों प्रों ठः ठः स्वाहा । विधि .-इस मन्त्र का १०८ बार जाप करने से दुष्ट वर्ण (घाव) का नाश होता है । मन्त्र .--ॐ इटि तुटि स्वाहा । विधि :-( वलि नाश.) मन्त्र :--ॐ इज्जेविज्जे हिमवंत निवासिनी अमोविज्जे भगंदरे वातारिसे सिंभारि स
सोरिण यारि से स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
१२६
विधि :-इस मन्त्र से पानी ७ बार मन्त्रित करके पिलाने से बवासीर ठीक हो जाता है। मन्त्र :-अडी विरण्डी विहंडि विमडीवा कुण कुण कुतय तीविरण ही विमडी वा
कुकुणा विद्यापसाए अम्हकुले हरि साउन भवंति स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से किसी भी प्रकार के धान्य का लावा (धाणी) को मन्त्रित करके ७ दिन
तक खिलावे तो हरिष रोग याने बवासीर ठीक होता है। मन्त्र :-अंजरिण पुतु हणवतु वालि सुग्रोउ मुहि पइसइ २ सोसइ २ हरि मंत्रेण
हणुवंत की आज्ञा फुरइ । विधि :-इस मन्त्र से सुपारी मन्त्रित कर देने से और नारियल की जटा कमर मे बाधने से बवासीर
रोग ठीक होता है। मन्त्र :-ॐ धानी धानी तुह सो वलि हाली वावी होई दुवन्नी मासि दीहि बांधइ
गांठिडउ गांठि २ विस कंटउ पसरइ असुर जिणे विणऊभऊ ।
भारणऊं। विधि -इस मन्त्र से पानी २१ बार मन्त्रित करके पीने से विष कटक नाश होता है। मन्त्र :- ॐ नमो द्राद्राव्य जस्स सरीखेर कारिणी तस्स छंडती नमो नमः श्री हनुमन्त
की प्राज्ञा प्रवर्तते । विधि -इस मन्त्र से थूक और भस्म दोनो को मन्त्रित कर दाद के ऊपर लगाने से दाद ठीक होता
है। प्रभु गदिनद्रद्रे चहिया वलि तैलेन सह मेलयित्वा ऽभि मन्त्रिणा पूर्व दीयते दद्रादिक
याति। मन्त्र :-कर्म जारणइ धर्म जारणइ राका गुरु कउ पातु जारणइ सूर्य देवता जाणइ
जाई रे विष । विधि - इस मन्त्र से फोडा को मन्त्रित करने से फोडा ठीक हो जाता है । मन्त्र :-ॐ दधी चिकतु पुत्रु तामलि रिषि तोर उपित्ता गावि जीभ वाटि
मारियउ तिथु वयरिहंतु लागउहंतु गावितु हु ब्राह्मणु छाडि २ न
कीजइ अइसा। विधि :-इस मन्त्र से जल २१ बार मन्त्रित करके उस पानी को मुख मे लेकर, मुख मे घमाने से
मसोडा ठीक होता है।
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१३०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ घंटा कर्ण महावीर सर्व व्याधि विनाशनः चतुः पदानां मले जाते रक्ष रक्ष
महा बलः। विधि .-इस मन्त्र को सुगन्धित द्रव्यो से भोज पत्र पर लिखकर घण्टा मे बाधे फिर उस घण्टा
को जोर से बजावे, जितने प्रदेश मे घण्टे की आवाज जायेगी उतने प्रदेश के मल दोप
नष्ट होगे सर्व व्याधि नष्ट होगी। मन्त्र :-ॐ चन्द्र परिश्रम २ स्वाहा । विधि -एक हाथ प्रमाण बाण (शर) को लेकर २१ दिन तक इस मन्त्र से रिघणी वाय को ताडन
करे तो रिगणी वाय नष्ट होती है। मन्त्र -ॐ कमले २ अमुकस्य कामलं नाशय २ स्वाहा । विधि .-इस मन्त्र से चने मन्त्रित करके खाने से कामल वाय नष्ट होती है । मन्त्र :-ॐ रां री रू रौ रः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से २१ बार दिन ३४ तक हाथ से झाडा देवे तो कामल वात नष्ट
होता है। मन्त्र :--ॐ कामली सामली विवहिन कामली चडइ सामली पडइ विहुसुइ
सारतरणी। विधि :-इस मन्त्र से कामल वात नष्ट होता है। मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ चलट्ठ चूजे स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को रोते हुये बच्चे के कान मे जपने से बच्चा चुप हो जाता है, रोता
नही है। मन्त्र - इष्टि महादृष्टि विद्विष्टि स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से दृष्टि दूर होती है । मन्त्र :-ॐ मातंगिनी नाम विद्या उग्रदंडा महावला लूतानां लोह लिंगानां
यच्चहलाहलं विषं गरुडो ज्ञापयति (लूत्तागड़ गंडादि)। विधि -इस मन्त्र से मकडी का जहर निकल जाता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवऊ पार्श्व चंद्राय पद्मावती सहिताय सर्व लूतानां शिरं छिद
छिद २ भिद २ मुच २ जा २ मुख दह २ पाचय २ हुं फट् स्वाहा । विधि .-यह भी मकडी विप दूर करने का मन्त्र है।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ चंद्रहास खङ्ग ेन छिद २ दि २ हुं फट् स्वाहा । विधि - इस मन्त्र से फोडा को मन्त्रित करने से फोडा ठीक होता है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रौं ह्रां ह्रीं ह्र हः महा दुष्ट लूता, दुष्ट फोडी, दुष्ट व्ररण ॐ ह्रां ह्रीं सर्वनाशय २ पुलित खङ्ग ेन छिदि २ भिदि २ हुं फट् स्वाहा ।
मन्त्र
विधि :- इस मन्त्र से १०८ बार फोडा फुन्सी, व्रण, मकड़ी विष को मन्त्रित करने से शान्त होते है ।
१३१
- ॐ हड होडि फोडि छिन्न तल होडि फोडि छिन्न दिट्ठा होडि फोडि छिन्न बाहोड़ फोडि छिन्न सातग्रह चऊ रासी फोडि हरगवंत कइ खांडइ छिन्नउ जाहिरे फोडि वाय व्रण होइ ।
विधि - कुमारी कन्या कत्रीत सूत मे इस मन्त्र से गाठ १४ दे, फिर गले मे या हाथ मे बाधे तो सर्व प्रकार के फोडे-फुन्सी इत्यादिक दूर होते है और सर्व प्रकार की वायु नष्ट होती है ।
मन्त्र :-पवणु २ पुत्र, वायु २ पुत्र हणमंतु २ भराइ निगवाय अंगज्ज भरणइ । विधि - इस मन्त्र से भी सर्व प्रकार की वात दूर होती है ।
मन्त्र :- ॐ नील २ क्षीर वृक्ष कपिल पिंगल नार सिंह वायुस्स वेदनां नाशय नाशय २
फुट् ह्रीं स्वाहा ।
विधि : - इस मन्त्र से भी वात रोग दूर होता है ।
मन्त्र :- ॐ रक्त विरक्त रक्त वाते हुं फट् स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र से स्त्रियो की या पुरुषो की लावरण पड जाती है, वह दूर हो जाती है ।
मन्त्र :-ॐ महादेव नाइ की दुट्ठि दिकि सर्व लावरण छिंदि २ भिदि २ जुलि २
स्वाहा ।
विधि :- यह भी लावरण उतारण मन्त्र है ।
मन्त्र :- कविलङ कक्कडउ वैश्वानरु चालंतर ठः ठः कारी नपज्जलइ न शीतलउ थाइ श्री दाहो नाथत्तरणी श्राज्ञा फुरइ स्वाहा ।
विधि :-वार १०८ पुरुष, स्त्री, वाग्निदध्धोऽनेन मत्रेण घू घृ कार्यते भव्यो भवति । यद्य नापायेननोपशाम्यति तदा तैल मभिमन्त्र्य दीयते भव्यो भवति ।
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१३२
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते हिमसीत लेहि मतुपारपातने महाशीतले ठः स्वाहा । विधि -इस मन्य से अग्नि उतारी जाती है। मन्त्र :-ॐ ज्लां ज्ली ज्लं ज्लः । विधि .-इस मन्त्र से अग्नि का स्तम्भन होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं ठः। विधि :-इस मन्त्र से अग्नि का स्तम्भन होता है। मन्त्र :-ॐ अमते श्रमत वर्षरिण स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र मे काजि (मट्ठा) मन्त्रित करके उस मट्ठा कांजी से धारा देवे तो अग्नि का
स्तभन होता है। मन्त्र :--ॐ नमः सर्व विद्याधर पूजिताय इलि मिलि स्तंभयामि स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को पटकर अपनी चोटी मे गाठ लगा कार अग्नि मे प्रवेश करे तो जलेगा
नही। मन्त्र :-गंग वहंती को धरइ कोकलि विसुखाइ एहिं विदि हि विदउ वेसं
नरु ऊल्हाइ। ॐ शीतले ३ स्ये शीतल कुरु कुरु स्वाहा । (चारायां
स्मयते) । मन्त्र -वालेयः कर्द मेयः चिखिल यष्ठ कारं ठः । विधि :-इस मन्त्र से भी दिव्य स्तभन होता है। मन्त्र :-इंद्रणरइय चुल्लिउ वेण चाडा विषं तिल्ल महादेवेण थंभियं हिमजिस्व
सोयलं द्वाहि गोलक स्तभ ॐ जं जे अमृत रुपिणी स्वाहा । विधि - इस मन्त्र से (चारिका) दासी का स्तंभन होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं स सूर्याय असत्यं सत्यं वद वद स्वाहा ।
विधि .-इस मन्त्र को २१ बार स्मरण करके सिर पर हाथ धरे फिर पाग में प्रवेश करे तो पाग
मे नही जलता है। यह मन्त्र झूठे को सत्य कहलाने वाला है। झठा आदमी अगर शपथ करे कि मेरी अगर बात झठी हो तो मैं आग मे जल जाऊगा नहीं तो जल गा नहीं। ऐसी शपथ करने वाला झूठा आदमी भी इस मन्त्र का प्राश्रय लेकर आग मे प्रवेश करें तो झठा होने पर भी अग्नि मे नही जलेगा और सच्चा सावित होगा नि सन्देह ।
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लघुविद्यानुवाद
बार २१ स्मरताय छिरसि हस्तो दीयते सो शुद्धोपि दिव्ये श्रुध्यति न सदेहो । यावति
क्षेत्रे दृष्टि, प्रसरति तावति क्षेत्रे एत स्मरतो दिव्य श्रुद्धि. । मन्त्र :-ॐ श्री वीर हनमंत मेघ घर त्रय त्रावय सानर नानगण २ देवगरण २ भेदगरण ___ जलंततो सावय सानर लहरि हिमाल जसुपाउदिय उतसु कछ मीथाइ जलं
थाइ सीतलं जलत श्री हनूवत केरी आज्ञा वापु वीर। विधि :-अय मन्त्री बार १०८ स्मृत्वा चूरि गृह्यते न दह्यते यदा अन्योगाहते तदा वार २१ चुरिस
मुख निरीक्ष्य स्मर्यते सोपि न दह्यते पर चुरौ दृष्टि धरणीया। मन्त्र :-ॐ सिद्धि ाला मती मोघामती कालाग्नी रुइ शीतलं जलत श्री हनुवंत
पयमय वज्र लोह मयी तिल्ल नास्ति अग्निः । विधि -अय मन्त्रो बार १०८ स्मृत्वा गोल का गृह्यतेऽन्य पार्खाद्वि लोकयता ग्राह्यते सोपिन
दह्यते। मन्त्र :-ॐ नमो सुग्रीवाय अनंत योग सहस्त्राय पाखारणा प्राविया हनु दहु
जलु २ प्रज्वलु २ भेद २ छेद २ सोसउ २ पाप विद्या राख पर विद्या छेद प्रत्यंगिरा नमोस्तु सुग्रीव तरणी आज्ञा फुरइ ठः ठः
स्वाहा । विधि --बार २१ स्मृत्वा चुरि गोलक दिव्यो शुद्धि यति । अक्षतान् बार २१ जपित्वा ऽपर
पाश्वोच्चार गोलक धमने क्षप्पत्त स्व परयो श्र द्धिः हष्ट प्रत्यय मन्त्र :-ॐ अरिणउ बंध उधार वंद्यउं वालिसउ हणुवंतु वंधउ हणुवंति मूकी
लाल अरिणउबंधउ किधार । विधि :-अनेन मन्त्रेण वार २१ धारा जप्पते खड्ग को धारा बधः । मन्त्र :-पार धार खांडउ कयर तु आणिउ लोहु बंधु वधउ वाप प्रचंड नारस्यह
को शक्ति । विधि :-बार ७ खङ्गा दोना धारा वधः । मन्त्र '-धुलि २ महा धुलि धुलि दर्शणि न फट्टइ घाउ सुमरंतह वज्रा सरिण
पाउ। विधि .- एक विशति वार चतुप्पथ धूलिमभिमत्र्य प्रहारे दीयते भद्रो भबीत न सशयः ।
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१३४
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-अरकंड मंडलस चरा चरं तीरिण पोहउ प्रलय नीयउ कालिंग वइं गरणध
तुरकं । विधि :-बार १०८ भणित्वा चोर्यतेप्लीह को परि रविवारे प्लीह को यात्येव । मन्त्र :-ॐ भगबति भिराड़ी भाटप्तु तु कुरु कुटउतिरिण भगवति भिराड़ी की ६ मास
सेवा कीधी भगवति भिराडी तूसि करि वरू दीहुउ जुकणू जल वटि थल वटि
प्रम्हरउ नामुले सइ तसुकु सवणु फेडि ससवणु होसइ । विधि :-इस मन्त्र को घर से जाते समय ३ बार स्मरण करे तो अपशकुन भी शकुन हो जाते है ।
बार ३ अस्तु वस्त्रु मार्गेऽपशकुन सु सकुन भवति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं अर्ह शासन देवते सिद्वायके सत्यं दर्शय दर्शय कथय कथय स्वाहा । विधि -परदेश जाते समय इस मन्त्र का सात पाँव चलकर ७ बार स्मरण करे तो मुहुर्त वार
शकुन अच्छे न होने पर भी सर्व कार्य सफल होते है। अशुभ मुहुर्त भी इस मन्त्र के प्रभाव
से शुभ हो जाता है। विशेष -सरसो का चूर्ण करे, फिर अकोल के तेल मे आग पर औटावे, फिर उस तेल को ऊट के
चमड़े से ब जूतो पर लगावे, फिर चले तो एक मे सौ योजन की शक्ति पा जाती है
और फिर सौ योजन वापस लौट भी सकता है। मन्त्र -ॐ कलय विकलाय स्वाहा ॐ ह्री क्षी फट् स्वाहा । विधि -कलपानिये मन्त्री बार २१ गुणनियौ सर्व कर्म करो च । मन्त्र :-नानउ वोलइ सूतली चाउ चउदिशी मोकली । विधि .-इस मन्त्र से तेल मन्त्रित करके लगाने से सुखपूर्वक प्रसूति होती है। मन्त्र :-ॐ क्षां क्षं क्षं। विधि -इस मन्त्र से कर्ण श्रूल (कान का दर्द) मिटता है। मन्त्र -ॐ श्रूलानाथ देव नास्ति सूल सखानाथ देव नास्ति श्रूल ब्रह्म चक्रण योगिनी
मंत्रेण भ्र ५। विधि -इस मन्त्र से प्रसूति श्रूल का नाश होता है । मन्त्र :-ॐ ह्रीं कल लोचने ल ल भी क्ली प्ली प्ली अमकस्या गर्भ स्तंभय स्तंभय
क्लां क्लीं क्लूठः ठः स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१३५
विधि :-इस मन्त्र को हरिद्रा (हल्दो) के रस से भोज पत्र पर लिखकर एक मटके मे लिखित
भोजपत्र को डाल कर चौ रास्ते पर उस मटके को गाड देवे तो गिरता हुमा गर्भ रुक
जाता है। देहली को धोवरण, तलवार का धोवरण पीवे तो गर्भ नही गिरता है। मन्त्र :-ॐ चिटि चांडालि स्वाहा । विधि :-इयं मुपोषितेन् वार १०८ जाप्यातत. स्त्रीणा सून्य भवति । कुकु गोरोचनाभ्याभूर्जे
लिखित्वा कठा दौ वध्यते । मन्त्र :-ॐ चामुंडे एष कोस्थंथंभामि व्रज कीलकेन ठः ठः स्वाहा । विधि :-काले डोरे को उल्टा वट कर इस मन्त्र को २ बार बोलकर ७ गाठ डोरे मे लगावे फिर
कमर मे बाधे मूल नक्षत्र या जैष्ठा नक्षत्र मे तो गर्भ गिरना रुक जाता है । नौ महीने समाप्त हो जाने पर उस डोरे को छोड देना चाहिए तव ही बच्चा होगा । जब तक डोरा
कमर मे बन्धा रहेगा तब तक प्रसूति नहीं होगी। मन्त्र .-ॐ चक्र श्वरी चक्रधारिणी शंख गदा हस्त प्रहररणी अमुकस्य वदि मोक्षं कुरु
कुरु स्वाहा । विधि ---इस मन्त्र से तेल सात बार मन्त्रित करके सिर पर डालने से वदि मोक्ष । मन्त्र :-ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कलिकुण्ड दंड स्वामिने सम् वंदि मोक्षं कुरु कुरु श्रीं ह्रीं क्लीं
स्वाहा। विधि .-सात दिन तक सध्या के समय निश्चय से जप करे तो शीघ्र ही बन्दी मोक्ष होता है, एक
माला नित्य फेरे। मन्त्र :-ॐ हरि हरि तिष्ट तिष्ट तस्करं बंधेमि माचल २ ठः । विधि -इस मन्त्र से अपने वस्त्र को मन्त्रित कर एक गाठ लगावे तो मार्ग मे चोर का भय नही
रहता। मन्त्र .-ॐ नमो सवराणं हिली हिली मिलि मिलि वाचायै स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का २१ बार स्मरण करने से वचन चातुर्य होता है। मन्त्र :-ॐ मालिनि किलि किलि सरिण सरिण। विधि :-इस मन्त्र का स्मरण करने से सरस्वती की प्राप्ति होती है । मन्त्र -ॐ कर्ण पिशाची अमोध सत्य वादिनो मम् कर्णे अवतर अवतर अतीताः
नागत वर्तमानं दर्शय दर्शय ऐहि ह्री कर्ण पिशाचिनी स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि --शुद्ध होकर रात्रि मे स्मरण करे । मन्त्र :-ॐ नमो नमो पत्तेय बुद्धारणं । विधि :-प्रतिवादि पक्ष की विद्या छेद होती है । मन्त्र -ॐ नमो सयं बुद्धिरणं नौ नौ स्वाहा । विधि :-नित्य ही सिद्ध भक्ति करके इस मन्त्र का जाप करे तो कवि होता है और आगम वादी
होता है। मन्त्र :-ॐ नमो बोहि बुद्धारणं झौ झी स्वाहा । विधि :-शत शत पविशति दिनानि जपेत् एक सघो भवति ।
मन्त्र :-ॐ नमो भागास गमरणांरणं झौ झौ स्वाहा । विधि -अट्ठावीस (२८) दिन तक नमक रहित काजि का भोजन करके प्रतिदिन १०८ वार मन्त्र
___ जपे तो आकाश मे १ योजन तक गति होती है। मन्त्र .-ॐ नमो महातवारणं झौ झो स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से १०८ बार पानी मन्त्रित करके पीने से अग्नि का स्तभन होता हैं । मन्त्र :-ॐ नमो विप्पो सहिपत्तारणं झौ झौ स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का जप करने से नार मारी का नाश होता है। मन्त्र -ॐ नमो अमिया सवारणं झौ झौ स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का जप करने से सर्व प्रकार का उपसर्ग नाश होता है। मन्त्र :-ॐ नमो खेलो सहिपत्तांरणं । विधि . - सद्योऽल्प मृत्यु मुपशमयती इस मन्त्र को नित्य जपने से अपमृत्यु का नाश होता है । मन्त्र -ॐ नमो जलो सहिपत्तांरणं । विधि -इस मन्त्र से शुद्व नदी का जल १०८ बार मन्त्रित करके पीने से तीन दिन में ही अपस्म
रादि रोग का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ नमो धोर तवारण। विधि :-विष सर्पादिरोग पर जय प्राप्त करता है । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते नमो अरहताणं नमो जिरणारणं हां ह्रीं ह्रह्रौ ह्रः प्रप्रति
चक्र फट्वि चक्राय ह्रां ह्रीं ह्रौ हः असि प्रा उ सा नौ नौ नौ नौ स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१३७
विधि -इस मन्त्र का स्मरण करने से विसुचि (हैजा) रोग का स्तम्भन होता है । मन्त्र - ॐ ज्वल २ प्रज्जवल २ श्री लंका नाथ की आज्ञा फुरइ । विधि -- इस मत्र का स्मरण करने से अग्नि प्रज्ज्वलित होती है। मन्त्र :-ॐ अग्नि ज्वलइ प्रज्जवलइ डभइ कट्ठह भारु मई वे सन रुथं भियउ अग्नि
हिं पडउतु सारु । वधि -अनेन मत्रेण कटाहा मध्यावटका कृष्यते । मन्त्र :--ॐ पुरुषकाये अद्योराये प्रवेग तो जाय लहु कुरु २ स्वाहा । विधि :-इस मत्र से सरसो २१ बार जप करके सिर पर धारण करे तो सर्व कार्य सिद्ध
होता है। मन्त्र :---ॐ नमो कृष्ण सवराय वल्गु २ ने स्वाहा । विधि :-इस मत्र को हाथ से २१ बार स्वय को मत्रित करके जिसको भी स्पर्श करे वह वश मे हो
जाता है। मन्त्र -ॐ भगवती काली महाकाली स्वाहा । विधि - -सवेरे मूह धोकर इस मत्र से हाथ मे पानी लेकर ७ बार मत्रित करे और फिर जिस
व्यक्ति के नाम से पीवे वह व्यक्ति वश मे हो जाता है। सात दिन तक इसी प्रकार
जल पीवे। मन्त्र -ॐ नमो भगवती गंगे काली २ महाकाली स्वाहा।। विधि -वाम पाव के नीचे की मिट्टी को वाम हाथ से ग्रहण करे फिर उस मिट्टी को ७ बार
मत्रित करे फिर अपने मुख पर लगावे (मुख खरद्यते) फिर राज कुल मे प्रवेश करे और
जैसा राजा को कहे, वैसा ही राजा करे। मन्त्र ---ॐ नमो मोहिणी महामोहिणि राजा प्रजा क्षोभणी पुरपट्टण मोहरणी त्रिपुरा
देवीकपाल बसै अमृत्तटिलोनीतधरे दुष्ट रंजनमुस्छ भरग स्वाहा ।। विधि -सात या एकवीस बार मत्र पढकर तिलक करे, मोह न होय । मन्त्र :--ॐ नमो रुद्राय अगिर्धाग रंगि स्वाहा । विधि -श्वेत सरसो को इस मन्त्र से ६० बार मन्त्रित करके जिसके माथे पर डाले तो सवयी
भवति विशेषत ।
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१३८
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :--ॐ जलिपाणि थलि पाणि मकरि मछिट टोलीउंपारिबाउंसरग हरिण
दिज्जमु खुधावउं ज्ज जोयउं सुमोहउ ज्ज चाह सुवाहपचकिरिण पंच
धारि जो महु करइ रागुरो सु सुजाउ अट्ठमइपा तालि फट् स्वाहा । विधि –अनेन् सूर्योदय समये वाम हस्तेन करोटक मध्य स्थित उदक गहित्वा बार २१ अभि
__ मन्त्र्यतत एकविशति वारा मुख प्रक्षाल्य राजकुले गतव्य श्वेत सपंपा. शिव निमाल्यमव
च एकीकृत्य यस्य गृहे स्थापयेत् । मन्त्र :--ॐ पिशाच रुपेलिंग परिचुम्बयेत् भगंवि सिंचयेत स्वाहा । विधि -इस मन्त्र की विधि समाप्त कर दी है। मन्त्र :--ॐ नोमो भगवती चीमी चामी वी चमी स्वाहा । विधि - इस मन्त्र का एक लाख जाप्य करने से मोहिणी प्रसन्न होती है । मन्त्र --ॐ तारे तु तारे तुरे मम कृते सर्व दुष्ट प्रदुष्टानां जंभय स्थंभय मोहय हुं फट्
३ सर्वदुष्ट प्रदुष्टानां स्तंभय तारे स्वाहा । विधि -शुक्ल चतुर्दशी दिने १००० जाप्यसिध्यति प्रतिदिन वार ७ कार्ये उपस्थते वार १०८
वशी भवति दृष्ट मात्रे। मन्त्र :--ॐ नमो भगवति रक्ता क्षीरक्त मुखी रक्त खशीरक्त ए ए अमुकं उच्चाटय २
ॐ ह्रह फट् स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र की विधि उपलब्ध नहीं हुई। मन्त्र --ॐ ॐ पासीया ॐ सीयायन्मोह वन वाद वादनी असि पाउसाया ये नमो
नमः । विधि :- इस मन्त्र का सवा लक्ष जाप्य करे तो वादी जीते। मन्त्र --ॐ नमो भगवति पद्मावती वृषभ वाहिनी सर्वजन क्षोभिरिण मम चितित
कर्म कर्मकारिणी ॐ ॐ ह्रां ह्रीं हः। विधि .-इस महा मन्त्र का स्मरण करने से सर्वजन वश करता है, प्रादर स स्मरण करना
चाहिये। दृष्ट प्रत्यक्ष ।
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लघुविद्यानुवाद
१३६
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मन्त्र :-ॐ नमो भगवतो रुद्राय ॐ चामुंडे अमुकस्य हृदयं पिवामि चामुडिनी
स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र से १०८ बार पानी मन्त्रित करके जिसके नाम से पीवे तो वह वश मे
होता है। मन्त्र :- ॐ नमो भगवती वशं करि स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से फलादिक २७ बार मन्त्रित कर जिसको खिलाया जाय वह वश मे होता है।
अन्धा हुलि के फूल और वाम पाव के नीचे की धूलि, शमशान की राख (भस्म) सब
मिलाकर चूर्ण करे फिर उस चूर्ण को जिसके माथे पर डाले वह वश मे होता है। मन्त्र :-ॐ सुगधवती सुगध वदना कामिनी कामेश्वराय स्वाहा अमुक स्त्री वश
मानय २। विधि .- इस मत्र की विधि उपलब्ध नही है। मन्त्र .--ॐ देवी चद निरइ करइ हरु मंडइ राहडि तीनइ त्रिभुवन वसि किया ह्रीं
कियइ निलादि । विधि :-इस मन्त्र से चन्दनादिक मन्त्रित करके तिलक करने से सर्वजन वश मे होते है। मन्त्र :-ॐ काम देवाय काम वशं कराय अमुकस्य हृदयं स्तंभय २ मोहय २
वशमानय स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से कोई भी वस्तु मन्त्रित कर चाहे जिसको देने से वह वश मे होता है। सिन्दर
चन्दन, कु कुम सम भाग लेकर इस मन्त्र से ७ बार मन्त्रित कर माथे पर तिलक करने
अच्छा वशीकरण होता है। मन्त्र :- ॐ देवी रुद्र केशी मन्त्र सेसी देवी ज्वाला मुखी सूति जागा विसिवइटी
लेयाविसी हाथ जोडंति पाय लागंति ठं ठली वायंति सांकल मोडंति ले प्राउ
कान्हड नारसिंह वीर प्रचंड । विधि :-इस मन्त्र को जिसका नाम लेकर १०८ वार ७ दिन तक जपे तो वह वशी होता है। मन्त्र :-ॐ समोहनी महाविद्य' जंभय स्तंभय मोहय आकर्षय पातय महा
समोहनी ठः ३।
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१४०
लघुविद्यानुवाद
विधि :-इस मन्त्र का स्मरण मात्र से वशीकरण होता है । मन्त्र :-काइ करे सिलोउरे खुदा महु चउसट्टि जोगिरिण केरीमुदा । विधि :- इस मन्त्र से अपने थूक को २१ बार मत्रित करके फिर उस थूक से तिलक करे तो राज
कुलादिक मे सर्वत्र जय होती है । मन्त्र :-ॐ ह्र३ ह्री ३ ह व वा वि वी वु व वे वै वो वौ वं वः । विधि -रात्रि को सोते समय व प्रात इस मन्त्र का एक एक श्वास मे चितन करे फिर जो मन में
चितन करे वह वश मे होता है। मन्त्र :--ॐ काली प्रावी काला कपड़ा काला पाभरण काला कनि ताडवन्न केशकरी
मोकला प्रावीचउ वाहए कहाथि प्रज्वलंती छारणो एक हाथी कुत्ता चाक हिग हिल्ली तहि नगहिल्ली जहिं अच्छइ मत्तविलासिरिण घरु फोड़ि पुरु मोड़ि घरु जालि धरु वालिदा घुता पुसो सु अंगिलाइ अमुकी मारइ
पाइ पाडि । विधि :-अनेन मत्रेण जल चलुक २१ अभिमन्त्र्य स्वप्न काले सुप्यते यावन्निद्रा नागच्छति तावन्न
वक्त व्यसा वशी भवति । मन्त्र --ॐ नमो रत्नत्रयाय नमो चार्या वलोकितेश्वराय बोधिसच्चाय महा सत्वाय
महा कारुणि काय चंद्रन सूर्य मति पूतेन महा महा पूरण सिद्ध पराक्रमे
स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से अपने स्वय के कपडे को २१ बार मन्त्रित करके उस कपड़े से गाठ लगाव
फिर क्रोधी के आगे जावे तो वह शात हो जाता है। धतूरे के फल को लेकर उसको पान के
साथ जिसको भी खिलावे तो वह वश मे हो जाता है। मन्त्र --ॐ ह्रीं श्री क्ली ब्लू अमुक अमुकी वा स्तंभय २ मोहग २ वश मानय
स्वाहा। विधि - इस मन्त्र से पुष्प अथवा फलादिक १०८ बार मन्त्रित करके जिसको वश करना हो
उसको दिया जाय तो वह वश मे हो जाता है । मन्त्र :-ॐ ह्री मम अमुकं वशी कुरु २ स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का १०८ बार स्मरण करने से वश मे होता है।
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लघुविद्यानुवाद
१४१
मन्त्र .-ॐ ह. सर्व दुष्ट जनं वशी कुरु २ स्वाहा । विधि .-इस मन्त्र का भी १०८ बार स्मरण करने से वशीकरण होता है । मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं कूष्मांडि देवि मम सर्व शत्रु वशं कुरु २ स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का १०८ बार स्मरण करे, वशीकरण होता है । मन्त्र :-ॐ ह्रीं कों ह्रीं ह्र. फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से सुपारी मन्त्रित करके जिसको दिया जाय वह वशी होता है। मन्त्र .-ॐ नमो देवीए ॐ नमो भरगीय ठः ठः। विधि :-इस मन्त्र से काजल १०८ बार मन्त्रित करके ऑख मे आजने से सर्वजन वशी
होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं सिद्ध बुद्ध माला अंबिके मम सर्वा सिद्धि देहि देहि
ह्रो नमः । विधि :-पुत्र की इच्छा रखने वालो को नित्य ही १०८ बार स्मरण करना चाहिये। मन्त्र :--ॐ ह्रीं श्रीं क्ली ब्लूद्रां द्री द्रुद्रः द्रावय २ हुं फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से तेल और चावल मन्त्रित कर देने से सुख पूर्वक प्रसव होता है। मन्त्र --ॐ शुक्रकामाय स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से कन्या कत्रित सूत को २१ बार मन्त्रित करे, फिर सात बार मन्त्र को पढकर
उस सूत को कमर मे बाधे तो शुक्र का (वीर्य) स्तम्भन होता है। मन्त्र --ॐ नमो भगवउ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खीण महारणसस्स अवतर
अवतर स्वाहा । विधि .. इस मन्त्र से अक्षत ५०० बार मन्त्रित करके बिकने वाली चीजो पर डालने से क्रय-विक्रय
मे लाभ होता है। मन्त्र :-सीता देलागउ घाउ फूकिउ भलउ होइ जाउ । विधि :-इस मन्त्र से तैल ७ बार मन्त्रित करके घाव पर लगाने से और २१ बार मन्त्र पढकर
घाव ऊपर (पूक्का प्रदान विधियते) घाव भरने लगता है। मन्त्र :--सोवन कंचोलउ राजादुधु पियइ घाउ न अउघाइ भस्मांत होइ जाइ । विधि :-कुत्ते के काटने पर इस मन्त्र से भस्म मन्त्रित कर, लगाने से अच्छा होता है।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-सोहु आकारणी पहुया घालिरे जंप जारे जरा लंकि लीजइ हणुया नां
हरसं करची अगन्या श्री महादेव भराडाची अगन्या देव गुरु ची अगन्या जारे
जरा लंकि । विधि :-दशवड सूत्र मे दस गाठ लगावे, दस बार मन्त्र पढे', फिर उस सूत्र को गले मे या
हाथ मे बाँधे तो वेला ज्वर, एकातर ज्वर, द्ववान्तर ज्वर, व्यतर ज्वर, चतुर्थ ज्वर नष्ट होता है। इसी प्रकार गुगुल मन्त्रित करके जलाने से भी ज्वर का नाश
होता है। मन्त्र :-ॐ चंड कपालिनी शेषान् ज्वरं बंध सईल ज्वरं बंध वेला ज्वरं बंध विषम
ज्वरं बंध महा ज्वरं बध ठः ठः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से कुसु भ रग के डोरे मे मन्त्र २१ बार पढता हुआ ७ गाठ लगावे फिर गले मे
या हाथ मे बाधे तो सर्व ज्वर का नाश होता है । मन्त्र कालिया ज्वर वेताल नारसिंह खय काल क्षी क्षीणी अमुकस्य नास्ति
ज्वरः। विधि -वार २१ चापडी वादने ज्वरोयाति। मन्त्र ----सप्त पातालु सप्त पाताल प्रमाणु छइ वालु ॐ चालिरे वालु जउ लगि राम
लाषरण के वाणु छीनि घातिय हिलउ । विधि .-इस मन्त्र से जगली कडे की राख और अक्षत मन्त्रित कर देने से स्तन की पीडा
ठीक होती है। मन्त्र :- ॐ नमो भगवते आदित्याय सर २ आगच्छ २ इमं चक्षुरोगं नाशय २
स्वाहा। विधि -कुमारीकत्रीत सूत्र को लेकर ७ वड कर, फिर मयूर शिखा को केशर मे रग कर उस
डोरा मे मयूर शिखा को बाधे, फिर इस मन्त्र से २१ बार मन्त्रित करके कान मे बाधने
से चक्षु रोग का नाश होता है । मन्त्र -ॐ ज्येष्ट श्र क्रवारिणि स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से कूमारी सत्र को सात वड करके सात गाठ लगावे. फिर उस डोरे को कमर
मे बाधने से वीर्य का स्तम्भन होता है। मन्त्र :- अंरं हं तं सिद्धां यं रि यं उं वं झां यं सां च । विधि :-एयाणि विदु मत्ता सहियाणि हवति सोलसवि १ सोलससु अक्खरेसु इक्कि क्व
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लघुविद्यानुवाद
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अक्खरेसुम ताजा सावरि सा वइ मेह कुणइ सुभिक्ख न सन्देहो। एयाइ अक्खराइ सोलस
जो पढइ सम्म मुवउत्तो सोदुष्यिवखु दुराउलपर चक्व भयाइ हणइ सया। मन्त्र :-ऐं ह्रीं भ्रू
टयू झू हू क्ले ह्रले ह्रसां कों ह्रीं ह्र क्ष्मौक्ष्मः । विधि -यह अट्ठारह अक्षर वाली त्रैलोक्य विजयादेवी नाम महाविद्या वार ३३ चावल तीनो
काल ध्यान करने से सर्व इष्ट को सिद्धि होती है । मन्त्र -ॐ अर्ह नमः ॐ ह्री ३ ॐ श्री ३ ॐ प्री २ ॐ वी ३ ॐ भ्रीं ३ म्री ३
ज्री ३ ली ३ झी ती ३ हुं फट् स्वाहा । विधि -यह विद्या ३१ अक्षर को महा विद्या है, सर्व कर्म करने वाली है। प्रथम विद्या चोर भय होने
पर १६ बार जाप करना चाहिये। दूसरी विद्या शाति कर्म स्थापना, प्रतिष्ठादिक मे, राजा आदि के पास जाने के समय ३ बार जपना चाहिये । तुरन्त ही राजा के दर्शन होते है। तीसरी विद्या शाकिन्यादिक मे, मुद्गलादि दोष मे औरचोदर पीडा मे १०८ बार कलपानी अादिक करना चाहिये। चतुर्थ विद्या जब गर्भ गिरने लगे, तब पानी तेल को १०८ बार मन्त्रित करे फिर लगावे । पचम्या राज शत्रु भयादिषु स्वय जाप्या आतुर पार्वा च जपनीया इष्ट देवता दीना च भोग कार्य । षष्टया मनुणस्य धनुर्वाते सति गगल १०७६ दाह्यते कर्णे च जप्यते । सप्तम्या सर्प दष्टस्य घन घृत वार २१६६ जप्तापानीय कृष्ण जीरक च परि जाप्यो डाह्यते लहरी नाश । अष्टमीयदा मेघजानदि मार्गा दो विषमा भवति तदा जात्य ककुमेन जलेन् वा, हस्त पट्ट (द) कादो लिखित्वा कर्परा गुरु धूपा दिना पूज्या बार १०८ नदी सुगमा भवति । नवमी जपनीया खनादि स्तम्भ । दशमी पदीप नादौ स्मरणीया एक वस्त्र परि जाप्य स मुख स्तम्भ दिव्ये उजि जप्त्वा
शुक्ल (सरसो) सर्षपा अग्नौ क्षेप्याऽनिष्टोऽश्रु द्धो भवति । मन्त्र -ॐ नमो धर्मराजाय मृत्युस्थाने श्रुभं कराय काक रूपिणे ॐ ठः ठः
स्वाहा। विधि .-अय सदावार ३ त्रय जाप्य यदाषह ६ मासा वधिरायुर्भवति तदाऽय विस्मरति उत्कृष्टतो
दशानामेवाय देय ।
मन्त्र :-ॐ अर्ह न्मुख कमल वासिनि पापात्म क्षयं करि श्रुत ज्ञान ज्वाला सहस्त्र
प्रज्वलिते सरस्वती मत्पापं हन हन दह दह क्षां क्षी सूक्षौ क्षः क्षीर धवले अमृत संभवे वं वं हु कट् स्वाहा ।
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१४४
लघुविद्यानुवाद
विधि
-इस मन्त्र को विशेषत कुवार पूर्णिमा ( शरद पूर्णिमा ) को चन्द्रमा के सामने मुख करके जप किया जाता है। और करीब १००० बार जपने से ज्ञान का प्रकाश होता है। एक माला नित्य जपने से पाप कालिमा दूर होती है, मन स्वस्थ्य होता है।
मन्त्र :-ॐ श्रीं श्रि श्रुश्रः झां झी झझः रां रि रुरः ह्रां ह्रीं ह्रहः ध्रां ध्रि
धू ध्रः स्वाहा। विधि -सिचह काउण जल इमेण मन्त्रेण सत्तपरियत्त थभेइ पली वयण दिव्व च करेही धोएहि ।
मेघ माला प्रवक्ष्यामि । जा सग्रहुती अवतरती गज्जती अमीयधाराहि वरि सती तुहु मेघ
माला वुच्चहि परम कल वारणु करणु करिति वइ सान रुघभती जवीउति । विधि -इमेण मत्रेण पाणिय पवर धोउण जाहु जलणे सिहि इमष्ये निरासको । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते महामाए अजिते अपराजिते त्रैलोक्य माते विद्य से सर्व भूत
भयावहे माए माए अजिते वश्य कारिके भ्रम भ्रामिरिण शोषिरिण भ्रू वे कारिरणे ललति नेत्राशनि मारणि प्रवाहरिण रण हारिणि जए विजय जं भंनि खगेश्वरी खगे प्रोखे हर हर प्रारण विखिरगो खिखिरणी विधून विधून वज हस्ते शोषय शोषय त्रिशुल हस्ते षट्वांग कपाल धारिणि महापिशित मार्स सिनि मानुषार्द्ध चर्म प्रावृत शरीरे नर शिर मालां ग्रंथित धारिणी निश्रूभिनि हर हर प्राणानु मर्म छेदिनि सहस्त्र शीर्षे सहस्त्र वाहने सहश्र नेत्रे हे ह ह्व हे हे ष ष ग ग धु धु छ छ जी जी ह्री ह्री त्रि त्रि ख ख हसनी त्रैलोक्य विनाशिनि फट् फट् सिंह रूपे खः गज रूपे गः त्रैलोक्यो दरे समुद्र मेखले गृन्ह गृन्ह फट फट् हे हे हुं हुं हन हन माए भूत प्रसवे परम सिद्ध विद्य
हः हः हु हु फट् फट् स्वाहा । विधि -सूर्य ग्रहण अथवा चन्द्र ग्रहण में उपवास करके इस मन्त्र को १०८ बार जाप करे मन्त्र
तब सिद्ध होता है, फिर इस मन्त्र का २१ बार स्मरण करने से राजा, मन्त्री नर, नारा, जो कोई भी हो सबका आकर्षण होता है। सब वश मे होगे। जिस किसी दुष्ट के नाम से जपे तो उसका अवश्य ही भागना होता है। रण मे वा, राजकुल मे, वाद मे, विवादम इस विद्या का स्मरण करने से अजय होता है। और पूष्पादिक मन्त्रित करके, जिस भूत, प्रत, शाकिन्यादि से लगा हो, उस पुरुष के ऊपर डालने से भूतादिक प्रकट होते है। बहुत क्या कहे सर्व अभिष्ट सिद्ध होता है।
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लघुविद्यानुवाद
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मन्त्र :-ॐ रणमो अरहंतारणं णमो सिद्धारणं णमो अणंत जिरणाणं णमो सिद्ध जोग
धराणं णमो सव्वेसि विज्जा हर पुत्तारणं कयंजली।
-~-इम विज्जाराय पउ जामि इमामे विज्जा पसिष्यऊ। मन्त्र :- प्राक्खालि वालिका लिपं सुखरे ॐ प्रावत वो चडि स्वाहा । विधि -दिय वाय पत्त कक्वराऊ वा धिप्पति ताऊ सत्त वाराऊभिमति उण जो प्राहम्म इसो
वसो होई ।।१।। इस मन्त्र से सात ककर लेकर मन्त्रित करे, फिर जो भी बिकने वाली चीज है उसमे उन सात ककरो को डाल देवे तो वस्तु शीघ्र बिक जाती है॥२॥ एयाए तुलसी पत्ताणी सत्ताभि मतिउरण कन्हे कीरति ज मग्रइ त ल ह इ॥३।। सत्ताभि मतिऊ कुमारी सुत मऊ डोरो हस्ते वध्यते कुविऊ पसीयइ ॥४॥ एयाए घरा, कक्वराऊ सत्तधि तुण सत्त वा राजा वियाहि गावी सुरण हीवा। प्राहम्मइ ॥५॥ अप्पणो सरीरे पज्जविऊण ज मोसो वइ सो वसो भवई ।।६।। एयाए तिल्ल जविउण जरिऊ मक्खिज्जइ सस्थो हवइ ॥७॥ एयाए सप्पदट्ठस्स पाणिय सत्ताभिमतिय पाइज्जइ
सुही होइ ।।८॥ मन्त्र :-ॐ क्रों प्रों नरी सहि सहे नमः । विधि :-गोमय मडल कृत्वा श्री खड कस्तुरिका कर्पू रेणमडल वेधाय तस्यो परि दीपकः कुमारी
कर्तित सूत्र वृति घृत भृतो दीयते बार १०८ बार मन्त्रा जप्यते पात्र मस्तके दीयते जव निकातर मध्ये आत्मना मन्त्रो जप्यते श्रु भे श्रु कला वरधरा नारी श्र क्ल पुष्प गहीत्वा श्रभ वदती दृश्यते अश्रुभे रक्ता वरा श्रुभ वदती च अष्टम्या चतुर्दश्या वा अथवा
प्रयोजनेऽनस्या तिथौ दृश्यते दीप शीखाया दृश्यते । मन्त्र :---ॐ अरिहंते उत्पत्ति स्वाहा । (ॐ अरहंतउत्पत २ स्वाहा) विधि :-इस मन्त्र का एक लाख जाप करने पर सिद्ध होता है । इस विद्या का नाम त्रिभवत । स्वामिनि है । सिद्ध हो जाने पर विद्या से जो पूछो वह सब कहेगी। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौ ह्रः असि आउसा नमः । विधि -इय सप्ता दशाक्षरी विद्या अस्याः फल गुरूपदेशा देव ज्ञायते । मन्त्र :-ॐ रूधिर मालिनी स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को सात बार जप करके अपना रक्त निकाले फिर उस रक्त को करजो
तेल मे मिलावे फिर कमल पुष्प की डडि का डोरा सूत्र निकाले फिर उस डोरे की बत्ती बनावे उस बत्ती को रक्त मिला हुमा करज के तेल में डाल कर बत्ती को जला देवे फिर काजल ऊपाड कर आख मे अजन करने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है।
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लघु विद्यानुवाद
अदृश्य व्यक्ति सबको देखता है, किन्तु दूसरे व्यक्ति उस अदृश्य व्यक्ति को नही देख पाते है ।
मन्त्र :- ॐ मातंगाय प्रेत रूपाय विहंग माय धून २ ग्रस २ आकर्षय २ हूं फट सिरि सूल चंडा धर प्रचंड सुग्रीवो श्राज्ञापयति स्वाहा ।
विधि :- सरसो लेकर इस मन्त्र से १०८ बार ताडित करने से ग्रह भूत डाकिन्यादि शीघ्र दूर होते है । कनेर के फूल, घतुरे के फूल, अश्व गन्ध, अपामार्ग इन वस्तुओ की घूप बनाकर जलाने से भूत बाधा नष्ट होती है ।
श्लोक - करण वीरस्य पुष्याणि कनकस्य तथैव च,
अश्व गधा स्वपा मार्ग मेष धूपो विधियते || १ || अन्- धूपितागस्य भूता नश्यति वि चिन्हता, शाकिन्यो विविधाकारास्तथा च रजनी चरा |२|| - वैताला श्चेव तु ष्माडा ज्वरा श्चातुर्थिकादय, सर्पाश्चैव विशेषेण शिरोति विविधा तथा ॥ ३ ॥
धूप राजेन सर्वेपि धूपिताया विनाशन,
श्रुष्क शतावरी खड हस्ते वद्ध ज्वरम पहरति ॥४॥
इन श्लोको का अर्थ बहुत सरल है इसलिए यहाँ नही किया है ।
मन्त्र :- ॐ क्लीं ॐ सः ।
विधि :- पान ७ चूर्णेन खडयित्वाऽलक्ते केन लिखित्वा भक्ष्यते तृती ज्वर नाश ।
मन्त्र :- ॐ कुमारी केन ह्रीं भगवति नग्नो हं श्रनाथाय ठः ३ ।
विधि - कालत्रय बार १०८ जाप्य सप्ताह वस्त्र ददाति, गोरोचन तथा हिगु कु कुम च मनः शिलाक्षी द्र ेण च समायुक्त जात्यधोपि च पश्यति ।
मन्त्र :
मन्त्र — ॐ किरि २ स्वाहा ।
विधि :- अर्द्ध रात्रि मे नग्न होकर इस मन्त्र का जाप करने से स्वप्न मे मन चिन्तित कार्य को कहता है ।
- हंषो बलाय सूर्यो नमः ।
विधि :- कन्या कत्रीत सूत्र मे & गाठ लगाकर पांव में बाघने से वलिर्याति ।
मन्त्र :- ॐ गरुडाय विलि २ गरूडो ज्ञापयति तस्य विष्णु वचने न हिलि २ हर २ हिरि २ र २ स्वाहा निरक्खे ( निर्ररके) व सुमष्य यारे ।
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लघुविद्यानुवाद
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विधि । -इमेण मन्त्रेण सत्त परियते भूइ धराउ नाशति वित्त गजेण दुट्ठावि । मन्त्र :-ॐ लं वं रं यं क्षं हं सं मातंगिनी स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से जल को अभिमन्त्रित कर पिलाने से सर्व रोग चला जाता है। चउ दश
अक्खर विज्जा जविय जल सत्त वाराऊ जल विस दाह विसाणं - वाहि हर तोए
पीएण। मन्त्र :-ग छ ह उ कुपाउ उरू छिदउ मुहुछिदउ पुंछु छिदउ छिदि २ भिदि २
त्रुटि २ जाहि ३ निसंत्तानु । विधि :-इस मन्त्र को २१ बार पढता जाय और हाथ से झाड़ा देता जाय तो, गड दोष नष्ट हो। मन्त्र .-ॐ पंचात्माय स्वाहा ।
:-इस मन्त्र से २१ बार चोटी मन्त्रित करके चोटी मे गाँठ लगावे तो ज्वर से छटकारी
मिलता है। मन्त्र :-ॐ प्रां कों ह्रीं नित्ये कलं दे मद द्रवे इंक्लीं ह सौं पद्मावती देवी
त्रिपुराजित्रिपुर क्षोभिनी त्रैलोक्यं क्षोभय क्षोभय स्त्री वर्ग आकर्षय आकर्षय
ब्लीं ह्रीं नमः। विधि :- इस मन्त्र का विधि विधान से जप करने से महादेवी पद्मावती जी का प्रत्यक्ष दर्शन
होता है। मन्त्र :-ॐ प्रां कों ह्रीं ऐं क्लीं ह सौ पद्मावती नमः । विधि : यह पद्मावती मूल मन्त्र है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं पद्म पद्मासने श्री धरणेन्द्र प्रिये पद्मावती श्रियं मम कुरु करु
दुरितानि हर हर सर्व दुष्टानां मुखं वंधय वंधय ह्रीं स्वाहा । । विधि :-इस मन्त्र का २१ बार स्मरण करने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है। मन्त्र :-ॐ क्लीं ब्ली ली ब्री (ध्री) श्री कलि कुड भगवती स्वाहा। . विधि :-इस मन्त्र का १००८ बार ज्येष्ठ महीने मे जप करे तो पद्मावती महादेवी जी प्रसन्न
होती है। : . . . मन्त्र :-ॐ भगवति विद्या मोहिनी ह्रीं हृदये हर हर प्राउ आउ आणि जोहि जोडि
मोहि मोहि फ्रे ३ आकर्षि २ भैरव रूपिणी ब्लू३ मम वशमानय वशमानय स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
विधि :-इस मन्त्र का १०८ बार जप करने से आकर्षण होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवति महा विद्य चक्रेश्वरी एहि २ शीघ्र द्रां भ्र गन्ह २ ॐ
ह्रीं सहस्त्र वदने कुमारि शिखंड वाहने श्रु क्ले शुक्ल गात्रे ह्रीं सत्य वादिनि
नमः। विधि -हाथ के चुलू मे पानी ७ बार मन्त्रित करके नित्य ७ बार पीवे तो, ज्ञान की वृद्धि
होती है। मन्त्र :-ॐ नमो देवाधि देवाय नमः सिंह व्याघ्र. रक्ष वाहने कटि चक्र कृत मेखले
चंद्राधिः पतये गगवति घंटाधिपतये टणं टणं शब्दाधिपतये
स्वाहा। विधि :-घण्टा को २१ बार इस मन्त्र से मन्त्रित कर बाधने से रोग मिटता है। (यहा घण्टा से
मतलब छोटे घुघरू लेना ।) मन्त्र :-ॐ नमो भगवति महा मोहिनी जंभनी स्तंभनी वशी करणी पुर क्षोभिरणी " सर्व शत्रु विद्रावरणी ॐ प्रां कों हां ह्रीं प्रों जोहि २ मोहि मोहि क्षुभ २
क्षोभय २ अमुकं वशो कुरु २ स्वाहा ।, विधि -इस मन्त्र का रात्रि को सोते समय ३०८ बार नग्न होकर जपने से महा वशीकरण
___ होता है।
मन्त्र -ॐ अरे अरूणु मोहय २ देवदत्तं मम वश्यं कुरु २ स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को कृष्ण पक्ष की चौदस को पाटे पर लिखकर लाल कनेर के फूलो से जप करे
१०८ बार तो उत्तम वशीकरण होता है। देवदत्त मन्त्र मे आया है। उस जगह पर
जिसको वश करना चाहे उसका नाम ले। मन्त्र :-ॐ नमो भगवति अप्रति चक्र जगत्सं मोहिनी जगन्मादिनी नयन मनोहरी
हे हे, पानंद परमानंदे परम निर्वाण कारिणी कली कल्यारण देवी ह्री
अप्रति चक्र फट विचक्राय स्वाहा । विधि .-इस मन्त्र का सतत् जप करने स सौभाग्य की वृद्धि, सर्वजनप्रियता और उत्तम प्रकार से
वशीकरण होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवति अप्रति चक्रे रत्नत्रय तेजो ज्वलित सु वदने कमले विमले
अवतर देवि अवतर विवुध्य ॐ सत्यं मादर्शय स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
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विधि :-इस मन्त्र से शीशा, दीप, तलवार, छुरी, लकडी, जल, दीवाल आदि मन्त्रित करके दोषी
को दिखाने से जैसा का तैसा कह देता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवति अप्रति चक्रे जगत्संमोहन कारि सिद्ध सिद्धार्थे क्ली
क्लिन्ने मदद्रवे सर्व कामार्थ साधिनी प्रां इं ऊ हितकरी यसस्करी प्रभंकरी मनोहरी वशंकरी शूह, सम्द्र कद्रां द्रीं अप्रति चक्र फट
विचनाय स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र का सतत् जप करने से तीनो लोको के लोग क्षुभित होते है। परम सौभाग्य
की प्राप्ति होती है। राजकुल की स्त्रियो को देखकर जपने से नित्य ही दास भाव से व्यवहार करती है । इन तीनो हो कार्य के लिये पहले लाल कनेर के फूलो से १००० जाप
करे सर्व कार्य सिद्ध होता है। मन्त्र :-ॐ ह्रां ह्रीं ह्र हः यः क्षः २ ही फट फट २ स्वाहा । विधि . ;-मन्त्राधि राजमन्त्र :-पहले उपवास करे, फिर सायकाल मे दूध पीकर सवेरे, काले चनो
को खाकर मुष्टीप्रमाण क्रु न्षक जटा षष्टिक को चावल का धोया हुआ पानी या चावल
मॉड को पीसकर पिलाने से मारी रोग की निवृत्ति होती है। मन्त्र -ॐ ह्रीं चंद्रमुखि दुष्ट व्यंतर कृतं रोगोपद्रवं नाशय नाशय ह्रीं स्वाहा । विधि -वासा श्वेताक्षता अभिमत्र्य गृहादौक्षेप्या दुष्ट व्यतर कृत रोगो नश्यति । .
अब भत तंत्र विधान को कहते हैं ।
(श्रीमद पूज्य पादाचार्य कृत) । प्राणिपत्य युगादि पुरुषं, केवल ज्ञानं भास्करं, भूत तन्त्र प्रवक्ष्यमि यथावदनु
पूर्वशः ॥१॥ अर्थ –श्री आदिश्वर प्रभु को नमस्कार करता हू जिनको कि केवल ज्ञान रूपी सूर्य का उदय
हुआ है। ऐसे आदि पुरुष को नमस्कार करके भूत तन्त्र को कहू गा' जैसे कि पहले
पर्वाचार्यो ने कहा है। तत्र :-श्र चि विद्या ल कृतो मन्त्री पचाग वद्ध परिकर. साधयेद्भ वन कृष्ण किं पुन
मनुजेश्वरान् ॥२॥ अर्थ :-सर्व विद्या से अलकृत साधक सकलीकरण पूर्वक पच अग का रक्षण करता हुआ साधन
करे तो तीनो लोको को साधने वाला होता है तो फिर मनुष्यो के राजा की तो वात
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लघुविद्यानुवाद
ही क्या, अब आगे वाली विद्या का तीन बार उच्चारण करे। णमो अरि हतारण गमो सिद्धाण गमो आगासगामिरिगण । ॐ नम .- अव पच अग न्यास करके विचक्षण बुद्धि वाला कार्य प्रारम्भ करे। पचाग न्यास विधि . ॐ अरहताण नमः हृदय । हृदय को हाथ लगावे।ॐ सिद्धारण नम शिरः। ऐसा कहकर सिर का स्पर्श करे । ॐ प्राचार्याणा नम: शिखा। शिखा का स्पर्श करे। ॐ उपाध्यायाना नम कवच । ऐसा कहकर कवच धारण करे। ॐ लोके सर्व साधुना नम अस्त्र । ऐसा विचार करके अस्त्र धारण करे। इस सकलीकरण को सुर, इन्द्र भी भेदन करने मे असमर्थ है, फिर अन्य की तो बात ही क्या है। सुरा सुरेन्द्राणा अस्त्र विसर्ग युक्त त्रासकर सर्व दुष्टाना । इस प्रकार अग न्यास विधि करके आदि प्रभु की प्रतिमा के के सामने या अन्य तीर्थकर की प्रतिमा के सामने यथा शक्ति पूजा करके मन्त्र का
जाप प्रारम्भ करे। मन्त्र -सवाय नमो भगवतो ऋषभाय नमो गुरु पादेभ्यो हदु हदु कल कल सिमि सिमि गृह्न २
२ शीघ्र कुरु कुरु सुरु सुरु मुरु २ वध २ दह २ छिद छिंद प्युभ २ वीर २ भज २ महावीर महावीर ग्रस २ मर्द २ हे है हे घु घू मे३ वुघर हस ३ केलि ३ महाकेलि ठः फट २ फुरु फुरु सर्वग्रहान धुनु महासत्व वज्रपाणि दुर्दाताना दमक चर ३ कक यथा नुशास्तोस्ति भगवता ऋषभदेवेन तथा प्रति प्रद्य इद ग्रह ग्रह सुवज्र मूर्द्धान् फालय महा वन्त्राधिपति सर्व भूताधिपति वज्र मेरवल वज्र काल हु २ रौतु २ जयति वज्र पाणिर्महावल दुर्द्ध र दुर्द्धर क्रोध चण्ड धुरु २ धावे २ ही ह्व हो ह ह ह्वाक्षा क्षा हो ही क्षी क्षी है २ क्षु २'क्ष २ क्ष. सोध र्माधिपति
ऋषभ स्वामिराज्ञापयति स्वाहा। विधि :-यह पठित सिद्ध मन्त्र है, केवल पुष्पो से जप करना चाहिये, तब सिद्ध हो जाता है । चाहे
गृह से गहित हो, चाहे अगह से हो, सबको सिद्ध हो जाता है। इस मन्त्र को पढने से गहित व्यक्ति को आवेश पाता है, छोड देता है, हसाता है, गवाता है, जिसको कि इन रोगों से ग्रसीत हो । अनंत, वासुकि, तक्षक कर्केटिक, पद्म, महापद्म, शखपाल, कुलिक, महानाग, इत्यादिको के काट लेने पर आवेश मे पाते है, शोघ्र ही जहर उतर जाता है। तीन लोक मे जो काल कुट विष है उसका भी असर नही रहता, फिर सर्प के जहर की तो क्या कथा । इस प्रकार पूज्यपादाचार्य का वाक्य है यहा किसी भी प्रकार का शका नही करनी चाहिये। और पवन ज्वर. डाकिनी, शाकिनी, भत, 'प्रेत, राक्षस, व्यंतर, गर्दभ, लूता (मकडी विषा) दिक को मष्ट करता है, कितने ही दुष्ट क्यो न हो
(पूजपादाचार्य कृत भूत तत्र समाप्ता.) मन्त्र :-ॐ कुरु कुल्ले ह्रीं ठः ठः स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का पहले ३० हजार जाप करे, तब मन्त्र सिद्ध होता है। प्रतिदिन रात्रि
में वलि देकर नैवेद्य की ओर जपे, फिर इस मन्त्र से वस्त्रॉचल को १०८ बार मान
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करके गाठ देवे, फिर राजकुलादिक मे जावे तो साधक जो कहे, सो मान्य होता है। अगर १००० जाप नित्य करे तो सर्व का प्रिय होता है, और अगर किसी को वश करना चाहे तो
अनु को १०८ बार जप करने से कार्य की सिद्धि होती है। मन्त्र :-बहुत दिवस की कुठाहल नान्ही करिपाणी भे विसुपाणी उलान्हइ कापडइ
छारिण लोजइ पियरग दीजइ । विधि :-इस मन्त्र से शेर के बाल का विष नष्ट होता है । शाकिनी उच्चारण धूप .-सरसो, हिगु, नीम के पत्ते, वच, सर्प की काचली, इस सबकी धूप बनाकर
रोगो के सामने जलाने से शाकिनी का उच्चाटन हो जाता है। वणि की जड, हिंग, सूठ सबको समभाग लेकर जल के साथ पीस लेवे, फिर शाकिनी गसीत रोगी को नाक मे सुघाने से शाकिन्यादि, रोगी को छोडकर भाग जाते है।
मन्त्र :-ॐ नमो भगवतो मारिण भद्राय कपिल लिंग लोचनाय वातांचल प्रेतांचल
डाकिनीअंचलं शाकिनी अंचल वंध्याचलं सार्वाचलं ॐ ह्रीं ठः ठः स्वाहा । विधि --आचलवात मन्त्र । मन्त्र :-ह्रीं। इति उपरित नांगुलिद्वय मध्येअंगुष्ठकं निधाय गण्यते मार्गे सर्व भयं
निवर्तयति । मन्त्र :-ॐ नमो भगवत्यं अप कुष्मांड महाविद्य कनक प्रभे सिंह रथ गामिनी
त्रैलोक्य क्षोभनी एह्य एह्य मम चितितं कार्य कुरु कुरु भगवती स्वाहा । विधि :-सफेद गुलाब के फूल १०८ बार लेकर इस मन्त्र को जाप करे तो लाभालाभ शुभाशुभ
जीवित मरणादिक का कहता है । इस मन्त्र का कर्ण पिशाची भी नाम है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं कर्ण पिशाचिनी अमोध सत्यवादिनी मम कर्णे अवतर अवतर सत्यं
कथय कथय अतोत अनागत वर्तमानं दर्शय दर्शय एह्य एह्य ॐ ह्रीं कर्ण
पिशाचिनी स्वाहा। विधि -लाल चन्दन की एक पुतली बनावे, फिर उसको पुतली के आगे एक पट्टे पर इस मन्त्र
को लिखकर सुगन्धित पुष्पो से १०,००० जाप करे तब यह मन्त्र सिद्ध होता है। अब यहाँ पर सक्षेप से कहते है। शुद्ध होकर सीधे कान को ७ बार इस मन्त्र से मन्त्रित करे या १०८ बार अव्यग वस्त्रं सुप्पते, तब शुभाशुभ स्वप्न मे कहता है या वचन में कहता है। शिवजी के लिग पर २४ षकार श्मशान के अगारे से ( कोयले ) लिखे
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लघविद्यानुवाद
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फिर ज्वर ग्रसित रोगी को उस लिंग को दूध से धोकर पिलावे, तो ज्वर से रहित
होता है। मन्त्र :--ॐद्रां द्रींनी विधि :-इस मन्त्र से भस्म मन्त्रित करके खाने से घटिका रोग नष्ट होता है। मन्त्र -दिशां वंध भगवान वंघ वाहतां चक्षु वंधः सर्वं मुख बंधः क्लीं मुखः ॐ वातली
वातली वाराही वाराही वारामुखी वारामुखी सर्व दुष्ट प्रदुष्टानां क्रोध स्तभस्तंभे जिह्वां स्तंभस्तमे दृष्टि स्तंभस्तंभे महि स्तंभस्तंभे सर्व दुष्टान्
प्रदुष्टे ॐ ठः ७ क्लीं गुरु प्रसादे । विधि :-इप मन्त्र का जाप करने से स्तभन होता है, लेकिन गुरु की कृपा होनी चाहिये । मन्त्र :-ॐ सुग्रीवाय वानर राजाय अतुल बल वीर्य पराक्रमाय स्वाहा । विधि .-मन्त्रो लिख्यते ढाहु लीपते शोभने चूर्ण खरटिते अधोमुखपुच्या श्रूलाया वा एक द्वित्रि
लिख्यते। इस मन्त्र को सुपारि, फल मन्त्रित करके खिलाने से सर्व प्रकार के ज्वर नष्ट होते है।
मन्त्र :-ॐ नमो भगवतो पार्श्व चद्राय महावीर्य पराक्रमाय अपराजित शासनाय ससार प्रमर्दनाय
सर्व शत्रु वश कराय किंनर कि पुरुप गरुड, गधर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, पिशाच, प्रमर्दनाय सर्व भूत ज्वर व्याधि विनाशनाय काल दष्ट मन्त्रो छादनाय सव दुष्ट ग्रह छेदनाय सर्व रिपु प्रणासनाय अनेक मुद्रा कोटा कोटी शत सहस्त्र लक्ष स्फोटनाय वज्र शृखल छेदनाय वज्र मुष्टि संचूर्णनाय चद्र हासच्छेदनाय सूदर्शन चक्र स्फोटनाय सर्व पर मन्त्र छेदनाय सर्वात्म मन्त्र रक्षणाय सर्वार्थ काम साधनाय विश्राकुशाय धरणेन्द्राय पद्मावति सहि ताय
ल दिलि परमार्थ साधिनी पच पच पय पय धम धम घर घर छिद छिद भिंद भिद म च म च पाताल वासिनी पद्मावति
प्राज्ञापयती हु फट. स्वाहा । विधि -सर्व विषय के कार्य मे इस मन्त्र का जाप करना चाहिये। मन्त्र --ॐ नमो भगवतो चड पार्वाय भगवन एहि एहि यक्ष यक्षी राक्षस राक्षसी भूत भूती
पिशाच पिशाची कुष्माड कुष्माडि नाग नागी क्षर क्षरी अपस्मार अपस्मारी प्रत प्रती कुमार कुमारी ब्रह्म राक्षस स्कद स्कदी विशाख विशाखी गाधर्व गाधवी उन्माद उन्मादी काली महाकाली खेती महाखेती कात्यायिनी महा कात्यायिनी भूगी रिटी महा भूगीरिटी विनाय की महा विनाय की चामुडि महा चामुडि सप्त मात्र की ताट की महा ताट की डाकिनी महा डाकिनी सप्त रोहिणी महा सप्त रोहीणा
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सूर्य ग्रह गृन्ह २ सोम ग्रह गृन्ह २ वन राज ग्रह गृन्ह २ नागेन्द्र ग्रह गृन्ह २ माहेश्वर ग्रह गन्ह २ नमोस्तुते भगवते पार्श्वनाथाय एकाहिक द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिक विषम ज्व सावत्सरि कार्द्ध मासिक वातिक पितिक श्लेष्मिक सनिपातिक ज्येष्ठाया गुन्ह २ मुह २ मु च २ धम २ रग २ तिष्ठ २ पच २ त्रिष्ठि २ कय २ परु २ तूरु २ पूरय २ भगवते भो २ शिघ्र २ गच्छ २ आवेश २ हन २ दह २ पच २ छिद २ भिद २ कुरु २ लघु २ चल २ रिपु २ गडाली २ चडपुरी २ अपस्मारति पर पुरी २ धरि २ करि २ कुरु २ भीतरपूर्ण २ कुभ २ भज २ र र र र रि रि रि रि रु रु रु रु हु फट सर्वक्षर नाशिनी कालमुखीना वासुकीना तक्षकीना कपिलाना काल कीटाना अष्टादश वृश्चिकाना द्वादश मुषकाना व्यंतर विषनाशिनी सर्व विष छेदनी सर्व रोग विनाशिनी हितकरी यशस्करी सर्व लोक वशकरी नमो स्तुते भगवते पार्श्वनाथाय तीर्थकरेभ्यो नमो नम आज्ञापयति
स्वाहा । विधि :-यह मन्त्र सर्व रोग मे पढता जाय और झाडा देवे तो सर्व रोग नष्ट होते है । मन्त्र -ॐ नमो भगवतो पार्श्वनाथाय श्री कलि कु ड नाथाय सप्त फण चतुर्दश दष्ट्रा करालाय
धरणेन्द्र पद्मावति सहिताय महाबल पराक्रमाय अपराजित साशनाय अष्ट विद्या सहस्त्र परिवाराय सर्व भूत वशकराय वज्रमुष्टि चूर्णनाय अकाल मृत्यु नाशनाय ससार चक्र प्रमर्दनाय सर्व विष मोचनाय सर्व मुद्रा स्फोटनाय सर्वे श्रुल रोग नाशनाय काल दष्ट मतको पथापनाय सर्ववध मोचनाय अनेक मुद्राशत सहस्त्र कोटा कोटि स्फोटनाय वज श्रगोद्धदनाय सूदर्शन चद्र हास खङ्ग नाशनाय सर्वात्म मन्त्र रक्षणाय सर्वार्थ काम साधनाय सर्व विष छेदनाय सर्व रोग नाशनाय कि पुरुष गरुड गान्धर्व यक्ष राक्षस भत पिशाच डाकिनीना प्रनाशनाय एहि २ महाबलि पद्मावति साधनी देवी एकाहिक द्वयाहिक च्याहिक चार्थिक वातिक पैत्तिक श्लेष्मिक सनि पातिक सर्व ज्वरान गड पिटक विस्फोटिक श्रल लता ज्वाला गर्दभ अक्षि कुक्षि रोगाणा वाल ग्रह हन २ दह २ पच २ पाटय २ विघ्वशय २ गन्ह २ वध २ मोचय २ तिष्ट २ वेधय २ उच्चाटय २ चल २ धम २ रग २ कप २ जल्प २ कूरु २ पूरय २ आवेशय कपिल घाति कुरु २ कपिल पिगल लोचनाय का २ भ्रामय २ शातिकर २ शुभकर २ प्रशाताय २ ही धरणेन्द्राय अमृवो ज्ञापयति फट
स्वाहा । क्षि क्षा क्ष क्ष र ७ कुरु २ हु फट् स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से भी सर्व कार्य की सिद्धि होती है तथा सर्व रोग शान्त होते है । ये पठित सिद्ध
मन्त्र है । मन्त्र नित्य १ बार पढने से स्वय सिद्ध हो जाते है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय तीर्थंकराय कालामुखीनां वासुकीनां कपिलिकानां
कालकीटानां तक्षकानां अष्टादश वृश्चिकानां एकादश देवतानां पंचादश विसरणां द्वादश मूषिकानां सर्वेषां चित्रिकाणां सर्वेषां डाकिनीनां सर्वेषां
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विधि - सर्व साधकोय मन्त्र ।
विधि
लूतानां सर्वेषां वाताना सर्वेषां विस्फोटकानां सर्वेषां ज्वराणं सर्वेषां णां सर्वेषां पन्नगानां सर्वेषां ग्रहाणां सर्व रोग विनाशिनी सर्व विद्या छेदिनी सर्व मुद्रा छेदिनी अर्थकरी हितकरी यशः करी सर्व लोक वशंकरी हन २ दह २ पच २ मथ २ गृह २ छिंद २ शीघ्र २ प्रवेशय २ पार्श्व तीर्थंकराय ॐ नमो नमः हुं २ यः २ पार्श्व चंद्रो ज्ञापयति स्वाहा ।
मन्त्र :- ॐ णमो अरिहंताणं ॐ णमो सिद्धाणं ॐ रामो श्रायरियागं ॐ रामो उवज्झायाणं ॐ गमो लोए सव्वसाहूणं ॐ ऐसो पंचरणमोकारो ॐ सव्वपावपरासरण ॐ मंगलाणं च सव्वेसि पढमं हवइ मंगलं स्वाहा ।
लघुविद्यानुवाद
नोट
मन्त्र
- इस मन्त्र के प्रभाव से सर्व कार्य सिद्ध होते हैं, और सर्व इच्छा सफल होती है । यह सर्व मन्त्रो का सार है ।
मन्त्र :- ॐ थभेउ जलं जलणं
चितिय मित्तोय पंच नमक्कारो अरि मारि चोर राउल घोरु वस परणासेउमलसया स्वाहा मम समीहियथं पुरण कुरणइ ।
मन्त्र :--- ॐ नमो पंचालए पंचालए ।
विधि
- इस विद्या का जो जीवन पर्यन्त स्मरण करता है, उसको जीवन पर्यन्त कभी सर्प नही सकता है |
मन्त्र — ॐ गमो सिद्धाणं श्राउवंसि चाउवंसि श्रच्चग्रलं पच्चग्रलं स्वाहा ।
मन्त्र :- ॐ नमि ऊणपास विसहर वसह जिरग फुलिंग ही नमः ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं गह भूय जक्ख रक्ख सड़ाइणि चोरारि दुट्टराय मारि धरागय रोग जलणाइ सव्व भयाउ रक्खउ सिरिथं भरणयट्ठिऊ पासा स्वाहा ।
- ऊपर लिखे मन्त्रो की विधि नही है ।
— नदे भद्दे जए विजये अपराजिते स्वाहा ३ ॐ ह्री ह्र हौ नमो वर्द्धमान स्वामिने व्राव्रो ब्रु व्र स्वाहा ॐ ऐं ह्री नमो वर्द्धमान स्वामिनि महाविद्ये मम शान्ति कुरु कुरु तुष्टि कुरु कुरु पुष्टि करु २ हृष्टि कुरु २ जीव रक्षा च कुरु २ ह क्षू जभे मोहे
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लघुविद्यानुवाद
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हु फट् ठ ५ बलि गृन्ह २ धूप गृन्ह २ पुष्पाणि गृन्ह २ नैवेद्य गृन्ह २ नानाविध वलि गन्ह २ सर्व रोग अपहर २ वा वी व व वर्द्धमान स्वामिने स्वाहा । ॐ पन्नती गधारी वइरोटा माणवी महाजाला अव्वुत्ता पुरिसदत्ता काली गौरी महाकाली अप्पडीहया रोहणी वज्र कुसा वज्जसिखला माणसी महामारणसी एयाउ मम सन्ति कराखे मकरा लाभ करा हवतु स्वाहा ॐ अढे वय अट्ठसया अट्ठ सहस्सय अट्ट कोडीऊ रक्खतु मे सरीर
देवा सुरपणमिया सिद्धा स्वाहा । विधि :- मस्तके वाम हस्त चालयद्भि स्वस्परक्षाक्रियते । मन्त्र :-ॐ नमः देवपास सामिस्स संसार भय पारगामिस्स ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मी में
कुरु कुरु देवी पद्मावती भगवती ह्रीं स्वाहा ॐ चोरारि मारि विसहर गर भयरिण रायदुट्ठ जलणेय गहभूय जरक्ख रक्खस साइणि दोसं पणासेउ मम देवोपास जियो स्वाहा ॐ ह्रीं श्रीं मां लक्ष्मी
स्वाहा। विधि :-सात धान्य को इस मन्त्र से २१ बार मन्त्रित करके सातो धान्यो को पृथक-पृथक तोलकर
पृथक-पृथक पुडिया बाध लेवे फिर २१ बार मन्त्रित करके सिराणे रखकर सो जावे फिर प्रात उठकर उन धान्यो की पुडिया को तोल लेवे, जो धान्य वजन मे बढ जायगा
वह धान्य ज्यादा पैदा होगा वकाल मे । मन्त्र :-मुहि चंदप्पह ज्जहियइ जिणुम थइ पारस वथु ईण इमु छ इं मुछकिय को ही
लणह समुथु। मन्त्र :-ॐ शांते शांति प्रदे जगज्जीव हित शांति करे ॐ ह्रीं भयं प्रशम २ भगवति
शांतेमम शांति कुरु २ शिवं कुरु कुरु निरुपद्रवं कुरु कुरु ॐ ह्रां ह्रीं हहः
शांते स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को तीनो समय (टाइम) जपने से निरुपद्रव होता है। मन्त्र :--ॐ नमोअरहो वीरे महावीरे सेरणवीरे वर्द्धमान वीरे जयंते अपराजिए
भगवऊ अरहस्स जिणिद वरवीर आसरणस्स कु समय मयप्पणासरणस्स भगवऊ समण संघस्स में सिद्धासिद्धाइया सासरण देविनि विग्धं करणउ
सानिष्यं स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र का नित्य ही स्मरण करने से किसी प्रकार का उपद्रव नही होता है।
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१५६
मन्त्र :- ॐ ह्रीं क्लीं ह्र श्री गज मुख यक्षराज प्रागच्छ मम कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ॐ ह्रां क़ों क्षी ही क्ली ब्लूद्रांद्री
हम्ब्यूल्ब्यू
दुव्यरम्यूच्यू
डुम्व्यू ज्वालामालिनी सर्व कार्याणि कुरु कुरु
लघुविद्यानुवाद
20
विधि
←
?
AN
स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र का नित्य ही स्मरण करने से सर्व उपद्रव शान्त होते है ।
मन्त्र
- ॐ वीर वीर महावीर श्रजिते अपराजित प्रतुल बलपराक्रम त्रैलोक्य ररण रंग मल्ल गजित भवारि मल्लऊ दुष्ट निग्रहं कुरु कुरु मूर्द्धान् माक्रम्य सर्व दुष्ट ग्रह भूत पिशाच शाकिनी योगिनी रिपुयक्ष राक्षस गंधर्व नर किंनर महोरग दुष्ट व्याल गोत्रप क्षेत्रप दुष्ट सत्व ग्रहनि ग्रहण निग्रन्होया २ ॐ चुरु चुरु मुरु मुरु दह दह पच पच मर्दय मर्दय त्राय २ सर्व दुष्ट ग्रहं ॐ श्रहं श्रद्भगवद्वीरो अतुलवल वीरो निन्हिया दत्र स्वाहा ।
- इस मन्त्र से अक्षत २१ बार मन्त्रित कर घर मे डालने से घर मे किसी प्रकार का उपद्रव नही होता है ।
मन्त्र :- अरहंताणं जिरगागं भगवंताणं महापभावाणं होउ नमो ऊ माई साहितो सव्व दुःख हरो, जोहि जिखाणपभावो पर मिट्टीच जंच माहष्पं संघामिजो भावो श्रवयर उजलं मिसोइथ ।
विधि
- इस मन्त्र से २१ बार पानी मन्त्रित कर पिलाने से सर्व प्रकार के उपद्रव शात होते है । मन्त्र :- ॐ श्रसि श्राउसा नमः स्वाहा ॐ प्ररिहोति लोय पुज्जो सत्त भय विवज्जिऊ परम नाणी अमर नर नाग महिऊ प्रणाइ हिरणो सिवंदे ॐ विजये जंभे थंभे मोहे हृः स्वाहा ।
विधि - इय विद्या यस्य डिभस्य वध्यते तस्य दता सुखे नायाति ।
मन्त्र - ॐ ह्रीं ली श्री श्री श्री हे हे हर हर प्रमुकं महाभूतेन गृन्हापय २ लय लय
शीघ्र भक्ष भक्ष खाहि खाहि हुं फटी ।
इस मन्त्र की विधि नही है, भडारित करदी गई है।
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लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-हु फटो ॐ रुद्राय स्वाहा । विधि :-रुद्राक्ष, गुगुल, भूत केशी, हिगु, बिल्ली की टट्टी (मल) (वीराल वृष्टि) मोर पख,
गोशृगु, मुलोट्ठी, सरसो, बच, इन सब चीजो को एकत्र करे फिर ये मन्त्र पढता जाय और
इन सब चीजो को धूप देवे तो प्रेत ज्वर का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ लुच मुच स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से पानी को मन्त्रित करे २१ बार फिर रोगी को पिलावे तो (अरिशोपशम )
बवासीर रोग शान्त होता है। इस मन्त्र को जो पढता है सुनता है उसको बवासीर
रोग नही होता। मन्त्र - ॐ इले नोले नीले हिमवंत निवासिने गलगंधे विसगंधे अनष्टे भगदरे न
कोरसा वातारसा हता कृष्णा हेता श्वेता स्फटिक रसा मरिण मन्त्र ऊषधीनां
वर्षशतं जीवेत् । जो इमां न प्रकाशयेत् चतुर्थब्रह्म घातक । मन्त्र :-ॐ कालि महाकालि अवतरि अवतरि स्वाहा लुचि मुंचि स्वाहा । विधि -जो इमा विद्या न प्रकाशयेत् तसु कुले हरिसा नाशयति । सवेरे दुरा मन्त्र को २१
बार द्वयपलिका प्रमाण जल को मन्त्रित कर ७ दिन तक पीवे तो उस व्यक्ति को हरस, (बवासीर) पीडा नही होती है । इस मन्त्र को प्रतिदिन भी स्मरण
करना। मन्त्र :-अमीकऊ कु डु तहि न्हाइ देव्या हाथि लउडातुपरि जविउ तेलु छीनीवराही पीड करइ
फाडइ फटइ जइ फुसइ ई पीड नही जान ही कइ खाजहि गउ भमरइ नवउ सोषउ प्रचड़ गाजइ चारिमास मसारिण जागइ फाडइ पूटइ धावि लागइ कालीपन्नाली काली चउदसि उपन्नी महादेव कइ मुहि पर्जति नीकली फाट फूटइ जइ फुसइ महादेवपज पायल इधू धुरी वुचइ वानरी काली वूचइ कूकरी जाफोडी वाउ वियालु होउ जउल गिखडी कादव इन छीपइ सन होडी छिन्नउ वाय होडि छिनउ हाडहोडी छिन्नउ गुप्तहोडी छिन्नउ पाठ उछौन उधर वर उ छी न उ ऊग मुछी नउ ग्रह चउरासी नव फोडि छिनि छिनि हणु मन्त कइ खाडई महादेव कइ त्रिशुलिहणु ब्रह्म राम सरू सघि वाय जिणीको जाय नव उचेडउ महादेव कउ काडुलय उग उविसु लल्ल कारइ सी गिय उवथरणागु आकु तेलु धतुर उइथु घरि निहथु घरि पिगलि माइदिट्ठउ दीट्टि पराय ऊटकारी गयछ पूक्कारी ब्रह्मपुतु काज ला विसुजारे का दवा पुक्कार हिटठ ठोवाइ प्राड दुछु हतुन जाणउ मनदा पूछिका मखदे लारू खाइ भारउ खाइ ब्रह्म खाइ महादेउ खाइ तेतीस कोडि देवता खाइ जा फोडि वाउ वियालु होइ जउ लगि खडीका ध्वइन छीपइ ।
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१५८
लघुविद्यानुवाद
विधि :-इस मन्त्र से ३७ बार तैल मन्त्रित करके फोडे पर लगाने से दुष्ट फोडा नष्ट
होता है। मन्त्र :-ॐ प्रां कों प्रों ह्रीं सर्व पुर जनं क्षोभय क्षोभय आनय प्रानय पादयोः पातय
पातय पाकर्षणी स्वाहा । विधि :-अनेन मन्त्रेण वार २१ जपित्वा हस्तो वाह्मते तथा कुमारि सूत्र दवर के अमु मन्त्र पा
७/७ जपित्वा सप्त ग्रन्थयो दीयते ततो गाढतर ग्लाना वस्था या रोगिण 'कटि प्रदेशे दक्षिण हस्ते वा दवर को बध्यते वार ७/२१ अनेन मन्त्रेण वासा अभिमन्त्र्य रोगिरणा शरीरे लग्यते शराव सपुट च रोगिण खट्ठा घस्थात् स्थाप्यते तस्य नित्य भोगादि कार्य ते स्वय च नित्य स्मर्यते ।
मन्त्र :-ॐ ह्रीं कृष्ण वाससे शत वदंने शत सहस्त्र सिंह कोटि वाहने पर विद्या
उछादने सर्व दुष्ट निकंदने सर्व दुष्ट भक्षणे अपराजिते प्रत्यगिरे महाबले
शत्र क्षये स्वाहा । विधि .-इस महामन्त्र का नित्य ही १०८ बार जप करने से सर्व दुष्टादिक का उपशम होता है
और सर्वमन चितित कार्य की सिद्धि होती है। मन्त्र :-ॐ नमो इंद्र भूद गरणहरस्स सव्व लद्धि करस्स मम ऋद्धि वृद्धि कुरु कुरु
स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को नित्य लाभ के लिए सदा स्मरण करना चाहिए । बकरे का मूत्र, हिगु, वच,
इनको पानी के साथ पीसकर पिलाने से यदि वासु की सर्प भी काट लिया हो तो भी
निविष हो जाता है। मन्त्र :-ॐ माले शाले हर विषये वेग हाहासरी अवेलं चे सर्वेक पोत गेद्रः मारुद्र
अर्चटः माहु हुं लसः स्वाहा । विधि :-इस विद्या का स्मरण करने से विष निविष हो जाता है।
अब कुरगिरणी नाम की गारूड़ी विद्या को लिखते हैं । मन्त्र :- ॐ अकलु स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से, शख को सात वार मन्त्रित करके सर्प खाया हा मानव के कान मे शख को
बजाने से तत्क्षरण निविष हो जाता ।
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लघुविद्यानुवाद
१५६
मन्त्र :-ॐ चिटि पिटि निक्षीज ३ । विधि :-अनया सप्त वारपरिजप्य दष्टस्यें परि निक्षिपेत्तक्षणा निर्विषो भवति । मन्त्र :-ॐ चलि चालिनी नीयतेज ३ ।
विधि .-इस मत्र को ७ बार जप कर हाथ को सर्प खाये हुये व्यक्ति के ऊपर (दापयेत् ) फिर
पानी को माथे पर डालने से निविष हो जाता है।
मन्त्र :--ॐ चंद्रिनी चंद्रमालिनीयते ज ३ । विधि :-इस मत्र से पानी को ५ बार मत्रित करके सर्पदृष्टा को स्नान कराने से १०० योजन चला
जाता है और निविष हो जाता है । मन्त्र :-उत्तरापथ पिप्पिलि सहि वसहिं ज (ग) पडरक्वसि विसऊ ढइ विमुप थरइ
विसु पाहारि करेइ जं जं. चक्खइ सयतु विसुतं सयलु निरु विसु होइ अरे
विस दी? उदिट्ठि बधउ गंट्ठि लयउ मुट्ठि ॐ ठः ठः । मीणा मन्त्र :-छ हार कारनेखार ठं ठं ठं ठं कार ठः ठः ठरे विष । विधि .--उर्द्ध स्वासेन सीत्कार कुर्वता नेन मन्त्रेण वार १०८ जल मभि मत्र्य भक्षित
गढतर विषोय पुरुषादि पानीय पाप्यते सिच्यतेऽवश्य विष वमति अस्य मन्त्रस्य पूर्व
साधना। विधि :-प्रतिवर्ष वार १/१ एव क्रियते निब काष्टे पट्टि काया नि व चन्दना क्षरै मन्त्रो लिख्यते
निव पुष्पै निव चन्दने न पूज्यते निव छविश्चो ड्राह्मते वार १०८ मन्त्री जप्यते प्रतिवर्ष वार १/१ अनेन विधिना पट्ठित सिद्धिस्यात। - अह घोरणसविज्जाए मंतैहि जवंति सत्तवाराउ पच्छपि बंति तोयं पटंति अह घोरणसा विज्जा १ मंतोयं ॐ नमो श्री घोण से हरे हरे वरे वरे तरे तरे वः वः वल वल लां लां रां रां री री रु रु रौ रौ रस रस क्ष क्ष ह्री २ ह. हां भगवती श्री घोरण से घः ५ सः ५ हः ५ वः ५ 8 ५ ठः ५ ग ५ वर विहंगम नुजे मां क्ष्मी क्ष्मूक्ष्मौ क्ष्मः मां री शोष य २ ठः ३
श्री घोण से स्वाहा । विधि :--यह पठित सिद्धमत्र है इस मत्र से सर्व कार्य की सिद्धि होती है। सर्व प्रकार के विप दर
होते है। सर्व प्रकार के रोग दूर होते है।
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१६०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं महा संमोहिनी महाविद्य मम दर्शनेन अमुकं भय स्तंभय
मोहय मूर्छय कछय आकछय आकर्षय पातय ह्रीं महा संमोहिनी ठः ठः
स्वाहा विधि :-इस मन्त्र का स्मरण करके उपदेश देने से सब श्रोतागण प्राकष्ट होते है। जन, विषये
तन्नाम् च यः कोपि रोचते तन्नाम खटिकया लिख्यो पर वाम पाद दत्वा वार १०८ स्र्य तेत तस्तन्मृष्ट्वा वाम हस्तेन तिलक क्रियतेऽधोमखः ततो राजादिवशीस्यात् । जन, विषये च दक्षिण पाद दत्वा वार १०८ जप्त्वा च दक्षिण पाणिनोर्द्ध मुखस्तिलक क्रियते पर तस्यानामोपरि पूगी फल ध्रियते त तस्या दीयते तत सा वशीकरण
स्यात.। मन्त्र :-ॐ ब्रह्म कुष्यि के दुर्जन मल २ मुखी स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से ७ या २१ बार चन्दन मन्त्रित करके उल्टा तिलक करे तो ससार को वश
करने वाला होता है। मन्त्र :-ॐ जंभे स्तंभे मोहे अंबे सर्व शत्रु वशं करि स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को पहले १०० माला जप करके सिद्ध करले फिर जिसके नाम वार १०८
करके तीन चुलू पानी छीटे और तीन चुलू पानी पिलावे तो वशी हा जाता है। मन्त्र :-ॐ अर्घयाडा पिटु वाडा जिथुथानक स्सेति प्राइ तिथु थानक जाह महादेव
की केरी आज्ञारा ठः ठः । विधि :-अनेन् मत्रेत तृण्यानि सप्त वार १०८ अभि मत्र्ये विले प्रक्षिप्यते कीटि का न नी
सरती। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं श्री कलि कुडे अमुकस्य प्रापत रक्षरणे अप्रतिहत चक्र ॐ
नमो भगवऊ महइ महावीर वद्ध मारण सामिस्स जस्सोयं चक्कं जलंत गच्छइ प्रायांसं पायालं लोयारणं भूयारणं जोएवा रणेवा रायंगणवा जाणे वा वाहणे वा बंधणे वा मोहरणे सव्वेसि अपराजिऊ होमि होमि स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
शारदा दड़क
ऐ जय जय जगदेक मात्तम चन्द्र चूडेंद्र सौपेन्द्र पद्मोद्भ वोष्या श्रुशीता श्रुशिखि पवन यम धनद दनुजेन्द्र पति वरुण मुख सकल सुर मुकुट मणि निचय कर निकर परिजनित वर विविध रुचिर चितनव कुसुम चय-बुद्धि लुष्च भ्रमद्भमर मालानि नादा नुगत मुजुसि जान मन्जीर कलस कनक मयकिकिणी क्काणजिन्नयुदुछामर सनि भृतपद किरण गण-किकरानुगत सुचक्रामण ली लेषु ली ले स्थलाभोजनिभ चरण नरवरन्न किरण काति छलेन हरन यन हव्याशन प्रतिकृतानग विजय श्रियो सौभवत्या भये नेव शरणागत पादमूले सुमूलेसमालीन इवलक्ष्यते ललित लावण्य तरुकदली सुभग जघालते गलीत कलधौत रजत प्रभोरुद्यते विधुदुद्योत माणिक्य बधो ज्वलानर्थ्य काची कला पानु सयमित मुनि तव विवस्म रद्धिरद परिरचित नव रोमराज्य कुशे निरकुशे दक्षिणा वर्तनाभि भ्रम त्रिवलितर लुट्टित लावन्यरस निम्नगा भूषित मध्यदेशे सुवेसे स्फुरतार हारावली गगन गगा तरग ध्वजालिगि तो तुनिविडस्तन स्वर्ण गिरि शिखर यूग्मे उमेमुरारी कर कबु रेखानुगत कठपीठे सुपीठे लसित सरस सुविलास भुज युगल परिहसित कोमल मृणाल नव नाले सुनाले महानय॑मणि वलय जमयूख मख मासलित कर कमल नखरन्न किरण जित तरणि किरणे सुशरणे स्फूरत्यग्रं रागेन्द्र मणि कु डलो ल्लसित कॉति छटा छुरित गल्लस्थली रचित कस्तुरिका पत्र लेखा समुत् खाल सुरनाथ नामी व शोभे महासिद्ध गन्धर्व गण किनरी तुवर प्रमुख परिरचित विविध पद मगला नद सगीत मुख सम्पूर्ण कर्णेसू कर्णे जय जय स्वामिनि शशि सकल सुगन्धि तावुल परिपूर्ण मुख वाल प्रवाल प्रभाधर दलोपात विश्रात दत द्युति घोत्तिता शोक नव पल्लवा सक्त शरदिदु साद्र प्रभेसु प्रभे विश्वनाथादि निर्माण विधि मन्त्र सूत्र सुस्पष्ट नासान रेखे सुरेखे कपोल तल काति विभवेन विभाति नश्यति यावति तेजासि चतमा सिच विमल तर तार तर सचर तार का नग लीला विलासो ल्लसित
र्ण मूलात विश्रात विपुलेक्षणा क्षेप क्षेपे विक्षिप्त रुचिर रुचिर नव कुदली नाबुज प्रकर भूषिताशा व काशे सूकाशे चलद्म लता ।वजित कदर्प को दण्ड भगे सुभगे मिलन्मध्ये मृगनाभिमय बिन्दु पद चन्द्र तिलकाय मानेक्षणालकृतार्द्ध दुरोचिर्ल लाटे सुलोढे लसित वश मणि जालि कात रि चलत् कुन्तलातानुगत नव कुन्द माला नुषक्त भ्रम भ्रमरपंक्त सुपक्त वह द्वहुल परिमल मनाहारि नव मालिका मल्लिका मालती केतकी चपके दीवरोदार माला नुसग्रथित धम्मिल्ल मूर्द्धावन द्वदु कर
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१६२
लघुविद्यानुवाद
सचयो गगन तल सचरोय वशश्छ त्ररुप सदा दृश्यते पार्श्व नाथे यस्य मधुर स्मीत ज्योतिषा पूर्ण हरिणाक लक्ष्मक्षणादेदेव विक्षिप्य पे तस्य मुग्ध मुख पुडरी कस्य कविभिः कदा कोप माकेन कस्मै कथदीयता सस्फुट स्फटिक घटिताक्ष सूत्र नक्षत्र चय चक्र वर्ति पद विनोद सदशिताहनिशा समय चारे सुचारे महाज्ञान मय पुस्तक हस्तपद्मऽत्र वामे दधत्पा भवत्पा स्फुट वाम मार्गस्य सर्वोत्तम त्व समुपदिश्यते दिव्य मुख सौरभे योग पर्यक बद्धास ने सुवदने सुखदने सुहसन सुवसने सुरसने सुवचने सुजघने सुसदने सुमदने सुचरणे सुशरणे सुकिरुणे सुकरणे जननि तुभ्य नम. ऐ अ इ उ ऋ लु इति लघु तया तदनु दैर्येण पचैव योनि स्थिता वाग्भवे प्रणव ॐ बिन्द रूबिन्द रू क ख ग घ ड च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श प स हे ति सिद्ध रूद्रात्मिक काममृत कर किरण गण वर्पिणी मात्रि कामुद्गिरतिव मन्ति रस तीस सती हसती सदा तत्र कमल भव भवन भूमौ भवति भय भेदिनि भवानि नद भजनी सुभुर्भव स्वर्भुवन भूति भव्ये सुहव्ये सुकव्वे सुक्त तितायेन सभाव्यसे तस्य जर्जरित जरसो विरजसो विपुत्री कृतार्द्धस्य सत्तर्क पद वाक्य मय सु शास्त्र शास्त्रार्थ सिद्धात सौरादि जैन पुराणेति हास स्मृति गारूड भूत तत्र शिरोदय ज्योतिषायुविधाना ख्य पाताल शास्त्रार्थ शस्त्रास मन्त्र शिक्षा दिक विविध विद्या कुल ललित पद गुफ परिपूर्ण रस लसित कान्ति सो दार भरिणति प्रगल्भार्थ प्रबन्ध साल कृता शेप भाषा नहा काव्य लीलोदय सिद्धि मुपयाति सद्योबिके वाद्भवे नैक के नैव वाग्देवी वागोश्वरो जायते किच कामा क्षरेण सक्त दुचारितेन तव साध को बाघ को भवतु भूवि सर्व शृगारिणा तन्नय न पथ पथि मतित नेत्र निलोत्पलत् झटिति सिद्ध गधर्वगण किनरी प्रवर विद्याधरी वासुरी मरी वाम ही नाथ ना गाग ना वा तदा ज्वलन मदन शरि भिकर सक्षोभित्ता विगलितेव दलि तेव छलिते व कवलितेव विलिखि तेव मुखितेव मुद्रितेव व पुषि सपद्य ते शक्ति वीजेषु सध्यायिना योगिना भोगिना रोगिणा वैनतेयाप्यते नाहि नातत् क्षणाद मृते मेघाप्यते दु सह विपाणा शशाक चूडाप्यते ध्यायते येन बीज त्रय सर्वदा तस्य नाम्नैवप श्रु पाशमल पजर त्रुटाति तदाज्ञथा सिद्वयति गुणाष्टक भक्ति भाजा महा भैरवि । ए ॐ हूँ कवलित सकलत त्वात्मके सुख रूप परिणताया त्वयि तदाक परि शिप्य ते शिष्यते यदि तहित्वछक्ति हीनस्य तस्य कार्य क्रिया कारिता तदिति तस्मिन विधौ तदा तस्य कि नाम कि शर्म कि कर्म कि नर्म कि वर्म कि मर्म कामति' कागात कारति: कावृति कास्थिति पर्यप्यति यदि सर्व शून्यात भूमौ निजे स्थास मुन्मेप समय समामाय वालाग्र कोग्र शरूपापि गभि कृत शेप ससार वीजान वनासि क त तदा स्वविकागीय से तदनुपारजनित कुटिलान तेजो कुगजन निवामेति सस्तूय मे बद्ध सस्पष्ट रखा शिग्वावा ज्येप्ठेति मभाव्य से सैव शृगाठका कारिता मागता गैद्रि रोद्रिति विख्याय्यप्ने ताश्चवामादि कास्त कलारबीन गुरगान सदघत्य क्रियाज्ञानमय वाछा स्वस्पा मात्रामरस नाम मधु मयनपुर वैरिणंबीज भाव भजत्य मृजत्य
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लघुविद्यानुवाद
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स्त्रि भुवन त्रिपुर भैरवी तेन् सकीर्त्य से तत्र शृगार पीठे लसत् कु डलोल्का कलाया कुला प्रोल्लसती शिवार्क समास्कद्य चाद्र महामण्डल द्रावयन्ति पिवति सुधा कुल वधु व्रत परित्यज्य पर पुरुषमकुलीन मवलव्य सर्वस्व माक्रम्य विश्व परि भ्रम्य तेनैव स्यार्गेण निजकुल निवास समागत्य सन्तुष्य सीतितदाक पतिक प्रिय. क प्रभु कोस्तिते नैव जानी महे हे महे स्यानिरम से च कामेश्वरी काम काम गर्जा लये अनग कुसुमादिभि. सेविता पर्यट सि जाल पीठे तदनु चक्रेश्वरी परिजेता नटसि भगमालिनी पूर्णा गिरि गह्वरै नग्न कुसुमा वृता विलससि मदन शरमधु विकासित कदब विपिने त्रिपुर सु दरी सो घ्राणे नमस्ते ३ अरहते ।
इति त्रिपुर सुन्दरी चरण कि करोऽरीरचन् महा प्रणति दीपक त्रिपुर दडक दीपकः इम भजति भक्ति मान् पट्टत्तिय सुधी साधक सर्वाष्ट गुण सपदा भवति भाजन सर्वदा ॥१॥
इस त्रिपुर सुन्दरी शारदा दडक को जो कोई पढता है, सुनता बुद्धिमान तो सम्पूर्ण गुणरूपी सम्पदा को प्राप्त होता है। सम्पूर्ण दु खो को दूर करता है । कीर्ति की प्राप्ति होती है और सम्पूर्ण विद्यापो का स्वामी बनत
॥ इति शारदा दण्डक समाप्त. ।।
मन्त्र :-संपत्ते सीह भएसंतं भरिण ऊरण धणुह चूलेरण किज्जइ तह कुंडलयं वहि एसे
सयल संघस्स धणु हस्सरे हमष्येन कुरणइ कुणइ चलणंपि सीह संघाऊ मंतप हावेण फुडं सघस्स विरक्खरणं कुरणई मंत्रोयथा नंटायणु पुत्रा सायरि उपडि हास मोरो रक्खा कुकुर जिम पुछी उल्ल वेइ उर हइ पुछी पर हइ मुहि जाहि रे जाह अट्ठ संकला करि उरू बंधउ वाघ वाघिरणी मुह बंधाउ कलि व्याखि खिरणी की दुहाइ महादेव श्री ऋषभदेव की पूजा पाइटा लहि
जइ आगल्ही वीर वदेहि । विधि :-धनुष लेकर डोरी चढाकर आवाज करे धनुष का फिर इस मन्त्र से सात बार मन्त्र
पढ कर सात रेखा करे । मन्त्र के प्रभाव से व्याघ्र भी उस रेखा का उल्लघन नही कर सकता है। अनेन मन्त्रेण धणु ह अद्दणि ना कुडला कार सघात वाह्य रेखा सप्तक क्रियते मन्त्र प्रभावेन सिहो सघात मध्ये नायाति रेखा नोल्लघते।
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१६४
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह्र ह स्क्लों पद्म पद्म कटिनी ब्लें नमः । विधि ~इस मन्त्र का त्रिकाल १ माला फेरने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है। विशेष जप
करना हो तो गुरू की पहले आज्ञा प्राप्त करे तब ही सिद्ध हो सकता है। अन्यथा
नही। मन्त्र :-ॐ ह्रीं सर्व कार्य प्रसाधि के भट्टारिके सम्वन्नु वयणरत्तस्य सम सव्वाऊ
रिद्धिऊ सं पज्जंतु ह्रां हनौ नमः सर्वार्थ साधिनी सौभाग्य मुद्रया स्म० ॐ नमो भगवती यामये महा रौद्र काल जिह्व चल चल भर भर धर धर का
क्रां ब्री ब्रीं हुं हुं य मालेनी हर हर ज्धी हुं फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से भूत प्रेतादि नष्ट होते है। इस मन्त्र को १०८ बार नित्य ही स्मरण
करे । मन्त्र :--ॐ इरि मेरि किरि मेरि गिरि मेरि पिरि मेरि सिरि मेरि हरि मेरि आयरिय
मेरि स्वाहाः। विधि -इस मन्त्र को सध्या मे ७ दिन तक १०८ बार जपे, सौभाग्य की प्राप्ति होती है । मन्त्र -श्री सह जाणंद देव केरी प्राज्ञा श्री गुरू याणंद केरी प्राज्ञा श्री पिगडा देव
केरी आज्ञा अचलान् चालि चालि वेऊ करि चालि चालि स्वाहाः । विधि -पुष्प धूपाक्षत श्री खड युक्तो घट, सखो जपेत बार १०८ तत. शिलाया प्रत्य परे पुरूषोनि
वेश्या क्ष तै हैन्य ते तत स्फिरत यह घट, शख भ्रामण मन्त्र है । मन्त्र :-ॐ ह्रीं चक्क चक्रेश्वरी मध्ये अवतर अवतर ही चक्र चक्र श्वरी घटं चक्रव
____ गेन भ्रामय भ्रामय स्वाहा । विधि -नये घडे को चन्दनादिक से मन्त्र से पूजा करके फिर घडे के ऊपर कुम्हार को स्थापन
करके इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे फिर अक्षत से उस घडे को ताडन करे अगर घटा ससार मे भ्रमण करे तो शुभ है और धडा टूट जाय तो हानि होगी। नूतन घट चदनादि ना पूजोय त्वा मन्त्र भणन पूर्व मुपरि कुमार विवेश्य प्रथम वार १०८ अभि
मन्त्रित रक्षितै स्ताडयत्त सृष्टि भ्रमणे शुभ सहारे हानिः । मन्त्र :-ॐ ह्रीं चक्रेश्वरी चक्र रूपेण घटं भ्रामय भ्रामय मम दर्शय दर्शय ॐ ह्री
फट् स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१६५
विधि :-नये घडे के अन्दर चन्दन से ही लिखे फिर उस घड को मडल अन्दर स्थापन करे, फिर
चारो दिशाओ मे उस घड़े की पूजा करे फिर अक्षत लेकर मन्त्र पढता जाय और घड़े
का अक्षतो से ताडन करता जाय तो घडा घूमेगा। मन्त्र :-ॐ ह्रीं चक्रेश्वरी चक्क धारिणी व्रज धारिण चक्र वेगेन कटोर के भ्रामय
२ दव्यं दर्शय २ शल्यं दर्शय २ चौरं दर्शय २ सिद्धि स्वाहा । विधि :-एक कटोरा को गाय के मूत्र मे धोकर पत्थर के चकले पर स्थापना करे फिर कु दरू और
गुगुल की धूप देकर इस मन्त्र से हाथ मे सरसो लेकर उस कटोरा का मन्त्र पढता जाय और ताडन करता जाय तो वह कटोरा जल कर जहा पर चोर होगा, अथवा चोरो द्वारा
जहा पर धन गडा होगा वहा पर पहुचेगा। मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय नमो प्राचार्य विलोकिते स्वरात्थ वोधि सत्वाय महा
सत्वाय महा कारूणि काय चन्द्र २ सूर्ये २ मति पूतने सिद्ध पराक्रमें
स्वाहा। विधि :-अपने कपड़े को इस मन्त्र से २१ बार मन्त्रित करके गाठ लगावे फिर क्रोधित मनष्य के
सामने जावे तो तुरन्त वश मे हो जाता है। मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय मोचिनि २ मोक्षिरणी २ मिली मिली मोक्षय जीवं
स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का त्रिकाल १० माला २ फेरे तो तुरन्त ही बदी बदीखाने से छूटता है। मन्त्र :-ॐ ह्री अघोर घंटे स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का १ लक्ष जाप करने से तुरन्तवदी वदी मोक्ष होता है । मन्त्र :--ॐ लि विवि वि स्वाहा अलइ नलइ तलइ गलइ हेमंतु न वास इरसा वाता
रसा होता कि स्वामि लोभिता सप्त सिंगार केरउ मरिण मंतु ए विद्या जेन
प्रकाश इतेह चत्वरि ब्रह्म हत्या । विधि -इस मन्त्र का वार २१ या १०८ सारस्य ध्रुचिकया कटोर कस्या लगत्या जन्न
मभिमत्र्यते तज्जल म पोयते शेष अर्द्ध जल मध्ये भूचिका निक्षिप्य कटोक भव्य परिणामम स्थोद्य भव्य स्थाने रात्री मुच्यते तत्र हरीपा पतनि प्रमाते क्टोर का जन्न रक्त भवति ।
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लघुविद्यानुवाद
हिगु, वच दोनो समान मात्रा में लेकर चूर्ण करे, उस चूर्ण को बकरी के मूत्र के साथ
मिलाकर पिलाने से सर्प का विप दूर होता है। मन्त्र :--हसिठ ह उसंकरू हउं सुपर मत्तात् विसुरं जउ विसुखाउं विसु अवले
विरिण कर उं जादि सिचा हु सादिशि निर्विस कर उ हरो हर शिव
नास्ति विसु । विधि :-थावर विष भक्षण मन्त्र भक्षितो वा कल पानीय पातव्य वार ७ अभिमन्त्र्य निर्विषो
भवति ।
मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय अमले विमले स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को १०८ बार पढता जाय और हाथ से झाडा देता जाय और पानी को १०८
बार मन्त्रित करके पिलाने से सर्प का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-ह्रीं ह्रहः । विधि :-इस मन्त्र से झाडा देवे १०८ बार तो किसी के द्वारा खिलाया हुआ जहर दूर होता है ।
तथा क्षः इति स्मर्यते सर्पो न लगति । मन्त्र .-ॐ कुरु कुल्ले मातंग सवराय शंख वादय २ ह्रीं फुट् स्वाहा । विधि -बालु को २१ बार इस मन्त्र से मन्त्रित करके घर मे डालने से सर्प घर से भाग
जाते है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं कलि कुड स्वामिने अप्रति चक्र जये जये अजिते अपराजिते
स्तंभे मोहे स्वाहा । विधि - कन्या कत्रित सूत्र को मनुष्य के बराबर लेकर १०८ बार मन्त्रित करे, फिर उस सूत्र का
टुकडा करके खावे तो (बालका न भवति) सन्तान नहीं होवे । मन्त्र -वम्लव्य व्यू टम्ल्व्यू । विधि -इस मन्त्र को पान ऊपर हाथी के मद से अथवा सुगन्धित द्रव्य से लिखकर खिलावे तो
वश होय । मन्त्र :-ॐ नमो ह्रां ह्री श्री चमुंड चंडालिनी अमुका मम नामेण प्रालिंगय
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लघुविद्यानुवाद
१६७
२ वय २ अग संचय २ ॐ कों ह्रीं क्लीं ब्लू सः सर्व फट् फट्
स्वाहा। विधि :-रात्रि को सोने के समय इस मन्त्र को १०८ बार जपना, फिर पानी को २१ बार मन्त्रित
• करके पीना, सोते समय इस प्रकार २६ दिन तक करना, शनिवार से प्रारम्भ करना,
जिसके नाम से जपा जायगा वह अवश्य वश मे होगा। मन्त्र :---ॐ गुहिया वैतालाय नमः ।
इसकी विधि हमारे पास है, यहाँ नही दी गई है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह्रीं ह्र ऋषभशांति, घृती कीति कांती बुद्धी लक्ष्मी ह्रीं अप्रति
चन स फट् विचनाय स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का स्मरण करने से पानी का उपद्रव नही होता, पानी मे डूबे नही, नदी से
निर्विघ्न पार उतर जाय । मन्त्र .-ॐ उचिष्ट चांडालिनी देवी अमुकी हृदयं प्रविश्य मम हृदये प्रवेशय २ हन । २ देहि २ पच २ हुं फट् स्वाहा । विधि :-शनिवार से रविवार तक ७ दिन इस मन्त्र को शौच पेशाब बैठते समय २१ बार जपे तो
७ दिन मे वाछित जन वश मे होता है। मन्त्र :-ॐ नमो आदेश गुरु को ॐ नमो उयणी मोहिनी दोय बही नड़ी
चालोकंत वन माही जान जलती आगी बुझा वीदों जल मोही थल मोही आकाश मोही पाताल मोही पारणी की परिण हारी मोही वाट घाट मोही आवता जाता मोही सिंहासन बैठो राजा मोही गोखे बैठी रानी मोही चौसठ जोगिनी मोही एता न मोहै तो कालिका माता को दूध हराम करि हणमंतनी वाचा फुरै गुरु की शक्ति हमरी भक्ति फुरो मन्त्र
ईश्वरो वाचा। विधि -रविवार के दिन इस मन्त्र को १०८ बार नग्न होय जपे पान, फूल, सिन्दूर, गुगुल
इन चीजो का सात बार होम करे। जिसको वशी करना चाहे उसके आगे वही पूजा मे का सिन्दर को सात बार मन्त्रित करके सीधा तिलक अपने माथे पर करे। वह
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१६८
लघुविद्यानुवाद
जिसके नाम से सिन्दूर मन्त्रित करके तिलक लगाया हो। वश्य होता है। अगर वशीकरण को छोड़ना चाहे तब पूर्वोक्त क्रिया करके पूजा मे का सिन्दूर से उल्टा
तिलक करे। मन्त्र :-ॐ काला कलावा कालीरात भेसासुर पठाऊ आधी रात जेरुन पावे आधी
रात ताल मेलु करे सगलारात वाप हो काला कलवा वोर अमुकी स्त्री बैठा उठाय लाय सूता कू जगाय ल्याव खडी कू चलाय ल्याव पवन वेग आरिण मिलाय आपणि वलि मुक्ति लीजै अमुकी स्त्री आणि दिजै प्रावै
तो जीव नहीं तो उर्द्ध फाटि मरे । विधि :-भैसहा गुग्गुल को गोली एक सौ आठ घृत के साथ वैर की लकड़ी को जलाय कर इस मन्त्र
___ से होम करे। (बलि देवे) नैवैद्यकी। मन्त्र :-सर्पपि सर्प भद्रते दूर गच्छ महाविषः जन्मेजयस्ययझीते आस्तिक वचनं
स्मर ॥१॥ आस्तिक वचनं श्रुत्वा यस्सोन निवर्तते । शतधाभिद्यते
मून्द्धि शीर्ष वृक्ष फलं यथा । विधि -अगर सर्प सामने चला आ रहा हो तो दोनो श्लोक रूप मन्त्र को पढकर ताली बजा
देना और सर्प के सामने मिट्री फेक देना, सामने से सर्प हट जायगा, अगर नहीं मानेगा और जबदस्ती सामने आवेगा तो सर्प का दो टक हो जावेगा। सवेरे और शाम को तीन-तीन बार इस श्लोक को नित्य ही स्मरण करे तो सर्प जीवन में कभी भी नहीं
काटेगा। मन्त्र :-ॐ नमो काला भैरू कल वा वीर मे तोहि भेजु समदा तीर प्रग
चटपटी मांथै तेल काला भैरू किया खेल कलवा किलकिला भरू गजगजाधर मे रहे न काम सवारे रात्रि दिन रोव तो फिर तो जती मसान जहारै लोह का कोट समुद्रसी खांई रात्रि दिन रोवता न फिर तो जती हणमंत की दुहाई सवदशा चापिडका चा फूरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ।
इस मन्त्र की विधि उपलब्ध नहीं है। मन्त्र . -ॐ महा कुबेरेश्वरी सिद्धि देहि २ ह्री नमः ।
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लघुविद्यानुवाद
१६६
विधि :- इस मन्त्र को तीन दिन तीन रात्रि प्रहनिश जपे एकान्त जगह मे, जहाँ स्त्री-पु - पुरुष का मुख भी नही दिखाई पडे ऐसी जगह जाकर जपे यहाँ तक कि भूख लगे चाहे प्यास लगे तो भी पता ही रहे । टट्टी लगे तो भी जपे और पैशाब लगे तो भो जपता रहे । एक मुरदे की खोपडी को सिन्दूर का लितक लगावे फिर दोप, धूप, नेवेद्य चढाय कर उस खोपडी के सामने जप करे निर्भय होकर चौथे दिन साक्षात भगवती सिद्ध होगी और वरदान देगी फिर नित्य ही ४० सुवर्ण मोहर का, फिर ४० सुवर्ण की मोहर नित्य मिलेगी ।
मन्त्र -- -ॐ ह्री रक्त चामुण्डे कुरु कुरु प्रमुकं मे वश्य मे वश्यमानय स्वाहा ।
विधि - लाल कनेर के फूल, लाल राइ, कडुवा तेल का होम करे, दस हजार जाप करे अवश्य ही वशीकरन होय ।
मन्त्र — ॐ नमो वश्य मुखीराजमुखी प्रमुकं मे वश्य मानय स्वाहा ।
विधि - सवेरे उठकर मुह धोते समय पानी को सात बार मन्त्रित करके मुह धोने से जिसके नाम से जपे वह वशी होता है ।
मन्त्र :- ॐ नमो कट विकट घोर रूपिणी प्रभुकं मे वश्य मानय स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र को भोजन करते समय एक २ ग्रास के साथ एक बार मन्त्र पढता जाय और खाता जाय तो पाँच सात ग्रास मे ही वशीकरण होता है । अमुक की जगह जिसको वश करना चाहे उसका नाम ले ।
मन्त्र — ॐ जल कंप जलधर कंपै सो पुत्र सौ चंडिका कंपै राजा रूठो कहा करे सिंघासन छाडि बैठे जब लगई चंदन सिर चडाउ' तब लग त्रोभुवन पांव
पडाउ ह्री फट् स्वाहा ।
विधि
: - चदन को १०८ बार मन्त्रित करके तिलक नगाने से राजा प्रजा सर्व ही वश मे होता है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं श्री करी धन करी धान्य करी मम सौभाग्य करी शत्रु क्षय करो स्वाहा ।
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१७०
विधि
लघुविद्यानुवाद
—-अगर, तगर, कृष्णागर, चन्दन, कर्पूर, देवदारु इन इन चीजो का चूर्ण कर इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे और १०८ बार मन्त्र की ग्राहुति देवे तो तुरन्त रोजगार मिले चाहे व्यापार चाहे नौकरी ।
मन्त्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं नसिह चेट को ह्रां ह्रीं दृष्टया प्रत्यक्ष अमुकी मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि
विधि
- इस मन्त्र को रात्रि को १०८ बार जपने से स्व स्त्री तुरन्त वश में होती है ।
मन्त्र :- ॐ नमो ॐ ह्रीं श्रीं ॐ नमो भगवति मोहिनी महामोहिनी जूं भिणी स्तंभिती पुर ग्राम नगर संक्षोभिनी मोहिनी वश्य करिणी शत्रु विडारनी ॐ ह्रीं ह्रां ह्रद्रोही २ जोहि २ मोहि २ स्वाहा ।
- इस मन्त्र को सातो बार १०८ बार जपे और मुख पर हाथ फेरे तो राजा प्रजा सर्व
वश्य ।
मन्त्र :- ॐ ह्री श्री वद् वद् वाग्वादिनी सप्त पाताल भेदिनी सर्व राज मोहिनी अमुकं मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि
.~ इस मन्त्र का १०८ बार नित्य ही जाप करने से बुडा प्रतापी होता है और जगद्वश्य होता है ।
मन्त्र :- ॐ नमो राई रावै धनि प्राधावे खारी नोन चटपटी लावे मिरच मारि दुश्मन जलावे श्रमुक मेरे पांव पडता यावे बैठा होय तो उठावे सूता होय तो मार जगावे लट गहि साटो मार मेरे बांये पायें तले श्रानि घाल देषों हनमत वीर तेरी श्राज्ञा पुरै ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि -- राई, धनिया, नमक, मिरच, इन चारो चीजो को मिलाकर इस मन्त्र से १०८ बार ग्रग्नि
.मे होम करे तो इच्छित व्यक्ति प्राकर्षित होता है ।
मन्त्र
- ॐ जूं सः अमुकं मे वश्य मानय सः जुं ॐ । विधि :- इस मन्त्र का एक लक्ष जप करने से वशीकरण होय । मन्त्र — ॐ जूं सः अमुक श्राकर्षय २ सः जुं ॐ ।
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लघुविद्यानुवाद
१७१
विधि :-इस मन्त्र का एक लक्ष जप करने से आकर्षण होता है। मन्त्र :-ॐ जुसः अमुकी आकर्षय २ सः जु ॐ । विधि -इस मन्त्र का एक लक्ष जप करने से स्व स्त्री का आकर्षण होता है । स्व पुरुष के लिए करे
तो पुरुष भी आकर्षण हो । मन्त्र -ॐ जुसः अमुकं स्तंभय २ ठः ठः सः जुॐ । विधि -इस मन्त्र का एक लक्ष जप करने से भी स्तम्भन होता है। मन्त्र .-ॐ जुसः अमुकं मोहय २ सः जुॐ । विधि .-इस मन्त्र का लक्ष जप करने से मोहनी करण होता है। अमुक की जगह साध्य व्यक्ति
का नाम लेवे। मन्त्र :-ॐ जुसः अमुकं उच्चाटय २ सः जुॐ ।। विधि :-इस मन्त्र का एक लक्ष जप करने से उच्चाटन होता है । मन्त्र - ॐ जुसः अमुकं मारय २ घे घे सः जुॐ । विधि :- इस मन्त्र का एक करोड जप करे । मन्त्र :-ॐ नमो चीटी चीटी चांडाली महाचांडाली अमुकं मे वश्य मानय
स्वाहा। विधि :-दूध, घी को एक हजार आठ बार होम करे तो वश मे होता है। मन्त्र :-ॐ नमो नगन कोटि प्रा वीर हू. पूरों तोरी पाशा तूं पूरों मोरी
प्राशा। विधि :-भूने हुए चावल एक सेर, शक्कर १ पाव, घी प्राधा पाव इन सब चीजो को एकत्र करके
रखना फिर प्रातःकाल जहाँ चीटियो का बिल है वहाँ जाकर मन्त्र पढता जाय और वह एकत्र करी चीज को थोडी २ चीटियो के बिल पर डालता जाय। इस प्रकार
तक करने से तुरन्त रोजगार मिलता है। मन्त्र :-ॐ चंदा मोहन चंदा वेली नगरी माहि पान की चेली नागर वेली की रंग चढे
प्रजा मेरे पाय पडे । यहाँ नाम देवे।
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१७२
लघुविद्यानुवाद
विधि :-वार ७ या २१ मन्त्रित पान खाने से सर्वलोक देखकर प्रसन्न होय । मन्त्र :-ॐ नमो हन हन दह दह पच पच मथ मथ अमुकं मे वश्य मानय मानय कुरु
कुरु स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र से सूर्योदय के समय पानी को १०८ बार मन्त्रित करके पीने से वश्य
होता है। मन्त्र :-ॐ नमो हनुमह ने वसी करण श्री सुरज तारा नाम मुख परवालुमारू मोहे
सारूगांम ॐ ह्रीं नमो स्वाहा । विधि -१०८ बार पानी मन्त्रित करके मुह का प्रक्षालन करे तो सर्व वश्य होय । मन्त्र :--ॐ नमो आदेश गुरू कू काला भैरू कपिली जटा भैरू फिरे चारों
दिशा कह भैरू तेरा कैसा भेष काने कुण्डल भगवा हाथ अंगीछी ने माथे ममडो मरे मशाने भैरू खड़ो जह जह पठ ॐ तह तह जाय हाथ भी जी खड़ खड़ खाय मेरा वैरी तैरा भख काढ कलेजा वेगा चख डाकिनी का चख शाकिनी का चख भूत का विगर चख्या रहे तो काली माता की सेज्या पर पाव धरे गुरू की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र
ईश्वरो वाचा। मन्त्र :-ॐ माहेश्वरी नमः। ।। विधि :-इस मन्त्र को बेर की लकडी चार अगूल की एक हजार बार मन्त्रित करके जिसके घर म
डाल देवे तो सर्व परिवार वश होय । मन्त्र :-ॐ ह्री अमुकी मे प्रयछ ठं ठः। मन्त्र :-ॐ के कां कि की अमुकं हुं कुंकू के कै को कौ कं कः ठः ठः। मन्त्र :-ॐ हूं खं खां हि वि खु खू खे खै खों खौ खं खः ठः ठः । मन्त्र :-ॐ क्षौ धं धां धिं धीं धु धे धै धों धौ धं धः अमुकं ठः ठः ।
नोट
-जिन मन्त्रो की विधि नही है. उनकी विधि हमारे पास उपलब्ध नही है।
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लघुविद्यानुवाद
१७३
मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह्र जं जां जि जी जुजू जै जै जो जौ जं जः अमुकं ठः ठः । विधि :-पीपल की लकडी पाच प्रगुल की हजार बार मन्त्रित करके अपने घर गाड देने से
वश होय। मन्त्र :-ॐ झं झां झि झी झु झू में झै झों झौ झं झः अमुकं ठः ठः । विधि :-समी की लकडी की कील ११ अगुल की इस मन्त्र से १००० वार मन्त्रित करके
जिसके घर मे गाड दी जाय उसके घर मे के सर्व भय राक्षस, भूत, प्रेतातिक कृतोपद्रव
शान्त हो। मन्त्र :-ॐ हूं क्षु झी अमुकं ठः ठः । मन्त्र -ॐ कुरु कुध्वो ह्रां स्वाहा । विधि :-सहस्त्रक जप्त्वा पूर्वस्यैव कर्तव्य मनास्मरे तु सर्वमाकर्षयति । मन्त्र -ॐ प्रचंड ह्री ह्रीं फट् ठं ठः । मन्त्र :-ॐ हूं क्षौ अमुकं फट् स्वाहा । मन्त्र -ॐ हूं क्षौ अमुकं फट् स्वाहा । मन्त्र -ॐ ह्रीं अमुकं ठं ठः । मन्त्र :-ॐ ह्री ह्रां ह्र. महाकाल कराल वदन गृह भिदि २ त्रिशुले न ठं ठः । मन्त्र :-ॐ ह्री हां अमुकं ठं ठ। विधि -इस मन्त्र सेतु । ) काण्ट की लकडी नव अगुल प्रमाण १ हजार बार मन्त्रित करके
जिसके नाम से घर मे गाडे तो वश्य होय । मन्त्र -मातं गिनी ही ह्रीं ह्रीं स्वाहा । विधि .-राई, नमक दोनो को घी के साथ होम करने से जिनके नाम से होम करे वह वश ने ही,
आकर्षित हो।
नोट
-जिन मन्त्रो की विधि नही है उनकी विधि हमारे पास उपनघनदी।
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१७४
मन्त्र — ॐ जलयं जुल ठ ठ स्वाहा ।
मन्त्र - -ॐ मनु ॐ ठं ठः स्वाहा ।
विधि :- हस्त नक्षत्र मे जास्छि की कील चार ग्रगुल सात बार मन्त्रित करके कुम्हार के श्रावा मे ( बरतनो के भट्ट मे) डाल देवे तो सर्व बरतन फूट जाय ।
- ॐ मरे घर मुह मुह ठः ठः स्वाहा ।
मन्त्र
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ मिली २ ठं ठः स्वाहा ।
विधि -- ज्येष्ठान नक्षत्र मे हिगोष्ट की लकड़ी एक अगुल की सात वार मन्त्रित करके जिस वैश्या के घर मे डाल देवे, तो वैश्या के घर मे अन्य पुरुष प्रवेश नही करेगा ।
मन्त्र -- ॐ नां नीं नुं ठं ठः स्वाहा ।
मन्त्र
- ॐ ह्रीं ह्रीं ठं ठः स्वाहा ।
मन्त्र :- ॐ जं जां जि जूं ठं ठः स्वाहा ।
अदृश्य अजन विधि – वैला द्राज्या ततो ग्राह्म वाराह वस सजुत । प्रिय पितर्यथा देवि कज्जल यस्तु कारयेत् । इस प्रकार अजन बनाकर आँख मे प्रजने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है ।
मन्त्र :- ॐ ठठां ठि
हु ठं ठः ।
नोट
ठु ठू ठे ठै ठो ठौ ठं ठः प्रमुकं गृह २ पिशाच
जू जे जै जो जौ जं जः प्रमुकं ठं ठः ।
मन्त्र :- ॐ जं जां जि जी जु विधि - अनेन मन्त्रेण लोह कील केन राश नाशन मन्त्र ।
मन्त्र :- ॐ ह्रौं श्रमुकं फट् स्वाहा ।
कर्ण पिशाची देवी सिद्ध करण मन्त्र :- ॐ धेंठ स्वाहा ।
- जिन मन्त्रो की विधि नही है, उनकी विधि उपलब्ध नही है ।
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लघुविद्यानुवाद
१७५
विधि :-लाल फूल से एक लक्ष इस मन्त्र का जाप करे तब मन्त्र सिद्ध होता है । जो बात पूछो भूस,
भविष्य, वर्तमान की सब कान मे कह देवे । मन्त्र :-ॐ खं खः अमुकं हन हन ठ ठ । मन्त्र :-ॐ खं दुखः अमुकं ठं ठः । मन्त्र :-ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रां ह्रीं हु ऊ दक्षिरण कालिके कां ह्रीं ह्र स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र से मयूर की बिष्टा, कबूतर की विष्टा, मुरगा की विष्टा, धतूरे का बीज, ताल
मखाना इन पाचो चीजो को बरावर लेना, फिर मन्त्र का जप १ हजार करना और दश मास होम करना तब वह होम की भस्म लेके जिसके माथे पर मन्त्रित कर डाल दिया जाय वह हो जाता है। शरठो वृश्चिको भृ गोकर्करा च चतुष्टय, चत्वारः पक्काय तैले
तल्लेप कष्ट कारक। मन्त्र :-ॐ मर २ ठं ठः स्वाहा । विधि :-पूर्वा फाल्गुणी नक्षत्र मे राक्षस वैतालादि उपद्रव करे। मन्त्र :-ॐ नमः कामेश्वरीय गद २ मद उन्माद अमुकी ह्रीं ह्रः स्वाहा । मन्त्र :-ॐ ह्रीं की ऐ ह्रीं परमेश्वरी स्वाहा । विधि .- इस मन्त्र का एक लक्ष जाप करने से पुरुष वश मे होता है । मन्त्र :- ॐ प्रां ह्रीं क्रों एहि २ परमेश्वरी स्वाहा । विधि -लाल वस्त्र पहिनकर लक्ष जाप जपने से पुरुप वश मे होना है। मन्त्र :-ॐ क्षौ ही प्रां ह्रीं स्वाहा । विधि -लाल कपडे पहितकर काप मे कम लगाना. लाल रंग का फूल घर माना पहिनकर
एकात निर्जन वन मे १ लक्ष जप करे। मन्त्र :-ॐ हं अमुकं हन २ स्वाहा ।
नोट
-जिन मन्त्रो की विधि नहीं है, उनको विधि उपलर नहीं है।
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१७६
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ ह्रां ह्रीं लां ह्रीं लीं ह्रीं लौ ही लः ह्रीं अमुकं ठं ठः । विधि -सरसो की भस्म को इस मन्त्र से मन्त्रित करके सेना के सामने डालने से सेना का स्तम्भन
हो जाता है। मन्त्र :-ॐ श्रीं क्षं का मातुरा काम खेला विधेसिनी लवनी अमुकं वश्यं कुरु २
ह्रीं नमः। विधि :-इस मन्त्र को भोजन करते समय अपने भोजन को ७ बार मन्त्रित करके जिसके नाम से
खावे वह सातवे दिन तथा बारहवे दिन वश मे हो जाता है। मन्त्र :- ॐ जुसः। मन्त्र :-ॐ हुं नमः । विधि :-तीनो सध्यारो मे नित्य ही लक्ष लक्ष जप करे तो पादुका सिद्धि होती है । उस पादुका को
पहिन कर, जल पर तथा आकाश मे गमन करने की शक्ति आती है। मन्त्र :--ॐ ह्र हन २ ॐ ह्रीं हन २ ॐकार हैन २ ॐ ह्री हन हन ठ ठ ठ
स्वाहा । विधि .-१०८ वार गोरोचन मन्त्रित करके ललाट पर तिलक करे तो बाघवश, अगूठे मे करे तो
__विद्या आवे, जाघ पर करे तो नाग वश, ललाट पर करे तो राजा वश्य होय । मन्त्र :--ॐ हूँ क्षु ह्री अमुकं ठं ठः । मन्त्र :--ॐ ॐ ॐ हः हः ऐ नमः । विधि :--इस मन्त्र का पाठ लाख जप करने से महा विद्वान कवि पडित होता है। मन्त्र .--ॐ ह्रीं ह्रीं ठं ठः । मन्त्र :--ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं श्रे सः स्वाहाः नम । विधि .--इस मन्त्र का जाप करने से सिद्ध जन होता है।
नोट
-जिन मन्त्रो की विधि नही है, उनकी विधि हमारे पास उपलब्ध नही है ।
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लघुविद्यानुवाद
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मन्त्र :-ॐ नमो आदि योगिनी परम माया महादेवी शत्रु टालनी दैत्य मारनी
मन वांछित पूरणी धन वृद्धि मान वृद्धि प्रान जस सौभाग्य प्रान न प्रानै तौ प्रादि भैरवी तेरी प्राज्ञा न फुटै गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुटो मन्त्र
ईश्वरो वाचा। विधि :-मन्त्र जपे निरन्तर १०८ बार विधिपूर्वक लक्ष्मी की प्राप्ति होय। सर्व कार्य सिद्धि होय ।
बार २१-१०८ चोखा मन्त्र जिस वस्तु मे राखे तो अक्षय होय । मन्त्र :-ॐ नमो गोमय स्वामी भगवऊ ऋद्धि समो वृद्धि समो अक्खीरण समो पारण २
भरि २ पुरि २ कुरु कुरु ठः ठः ठः स्वाहा । विधि .-मन्त्र जपे प्रात.काल शुद्ध होकर लक्ष्मी प्राप्त होय । बार २१-१०८ सुपारी चावल
मन्त्रित कर जिस वस्तु मे घाले सो अक्षय होय । यह मन्त्र पढ कर दीप धूप, खेवे; भोजन
वस्तु भण्डार मे अक्षय होय । उज्ज्वल वस्त्र के धारी शुद्ध आदमी भीतर जाय । मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॐ नमो भगवउ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स
अक्खीरणस्स भास्वरी ह्रीं नमः स्वाहा । विधि :--मन्त्र नित्य प्रात काले शुचिभूत्वा दीप धूप विद्यानेन जपे, लाभ होय, लक्ष्मी प्राप्त
होय । मन्त्र :-ॐ नमो गोतम स्वामीने सर्व लब्धि सम्पन्नाय नमः अभीष्ट सिद्धि कुरु कुरु
स्वाहा। विधि :-बार १०८ प्रतिदिन जपिये, जय हो, कार्य सिद्ध होय । मन्त्र :-ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे महाविद्य स्वाहा । विधि :-फल अनेन मन्त्रेण लवण च पुष्पय धूलि च पृथक-पृथक एकविशति वारान् परिजप्य
आतुरस्य पार्वती भ्रामयित्वा एकविशति वारान् परिजाप्य तक्रादिमध्ये स्थापयित्वा आतुर पल्यकस्याधो धारयेत् यथा २ लवण विलीयते तथा तथा दृष्टिदोषणे मुच्यते लवण
मन्त्र दृष्ट प्रत्यय । मन्त्र :-ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृत वर्षिणी अमृतं स्रावय २ अमुकस्य सर्व दोषान
स्त्रावय प्लावय स्वाहा ।
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१७८
लघुविद्यानुवाद
विधि -औषधादि मन्त्रण मन्त्र । मन्त्र :- ॐ ह्री धरणेन्द्र पार्श्वनाथाय नमः निधि दर्शनं कुरु कुरु स्वाहा । विधि -जप मन्त्र अस्य तु मत्रस्य जपात् हस्त नेत्रयो स्पर्थ्य मन्त्र निधिस्तभन प्राप्त्वा दर्शन कार्य
नेत्राभ्या स्पष्ट भवति दर्शनम् । मन्त्र -ॐ नमो ह्री जय जय परमेश्वरी अम्बिके पान हस्ते महासिंह यान स्थितेकिकरणी नूपुरा
क्वाणकेयूर हारागदानेक सद्भ पण भूपितागे जिनेन्द्रस्य भवते कले निष्फले निर्मले नि प्रपचे महोगनने सिद्ध गधर्व विद्याधरे रचिते मन्त्र रूपे शिवे शकरे सिद्धि वुद्धि धृति कीति बुद्धि स्थिते शान्ति धृति, कीति, काति वि स्तारिणी, पुष्टि निधि स्तुष्टि दृष्टि श्रिये शोभने सुख हासे ज्वरे जमिनी स्तभिनी मोहनी, दीपनी, गोपिणी, बासनी, मोटिनी, भजनि, दुष्ट निर्णाशिनी क्षद्र विद्रावणी धर्म सरक्षिणी देवी अम्बे महा विक्रमे भीमनादे सुनादे अधोरे सुघोरे रौद्र रोद्रानने चडिके चडिरुपेसुचक्र सुनेत्रे, सुगात्रे, सुपात्रे तनु मध्यभागे जयति २ पुरध्री कुमारी सुभद्रे पवित्रे सुवर्णे महामल विद्यास्थिते गीरि गाधारी गधर्व जक्षेश्वरी काली २ महाकालि योगीश्वरी जैनमार्ग स्थिते सुप्रशस्ते शस्त्र धनुनाद्र दडाभि चक्रेक वक्राकुशावेक शास्त्रोदिते सृष्टि सहार कातार नागेन्द्र भूतेन्द्र देवेन्द्र स्तुते किन्नरै र्यक्ष रक्षा धिप ज्योतिघे पन्नगेन्द्र. सुरेन्द्राश्चिति वदिते पूजिते सर्व सत्वोतमे सर्व मत्राधिष्ठते ॐ कार वषट्कार ह कार हीकार सुधाकार बीजान्विते दुख दीर्भाग्य निर्णाशिनी रोग विध्वशनी लक्ष्मी धति, कीति कान्ती विस्तारनी सर्व दुगुणेषु निस्तारणी दुस्तरोत्तारणी ॐ क्रौ ही नमो यक्षिणी ह्री महादेवी कुष्माडिके ही नमो योगिनी ह. सदा सर्व सिद्धि प्रदे रक्ष मा देवी अम्बे अम्बे विवादे रणे कानने शत्रु मध्ये समुद्र प्रवेशागमे गिरौ कृष्ण रात्री घने सध्याकाले निहस्त निरस्त निहीन निशान्त प्रशन प्रनष्ट प्रष्ट ग्रहै र्यक्ष रक्षो रुगै दैत्यभत पिशाचै ग्रहीत ज्वरेणाभिभूत गव्याध्रिसिहै निरुद्ध व्याल वेताल ग्रस्त खगेन्द्रण नीत कृ तातै न ग्रस्त मत चापि सरक्ष मा देवी अम्बालये त्वत्प्रसादात् शान्तिक पौष्टिक वश्यमाकर्षणोच्चाटन स्तभन मोहन दीपन चैव एतन्यहा ताडक एतानि सर्व कार्याणि सिद्धि नयति सक्षेपत सर्वरोगा प्रणश्यन्ति । न सशय भवेदिह ॐह फट् स्वाहा इति । "पाम्र कृष्माडिनी मालामन्त्र । ॐ ह्री कूष्माडिनी कनक प्रभेसिह मस्तक समारुदे जिनधर्म सुवत्सले महादेवी मम चितित कार्य शुभाशुभ कथय-कथय अमोघ वागीश्वरी सत्यवादिनी सत्य दर्शय-दशय स्वाहा।
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लघु विद्यानुवाद
विधि : - इस मन्त्र का विधान मंगल के
।
दिन से आरम्भ करे । गुलाब का इत्र अपने शरीर पर लगावे । गुलाब के फूल चढावे एक चौकी पर या श्राले मे चमेली के फूलो का चौको चबूतरा बना ले । वहा देवो की स्थापना करे । धूप बत्ती जलावे, धूप खेवे, धूप मे जावित्र अवश्य मिलावे, गाय के घी का दीपक जलावे, मिष्ठान्न चढावे और आम्रफल विशेष रूप से चढावे । नित्य प्रति प्रथम नेमिनाथ स्वामी को पूजा करके देवी की पूजन
करना ।
मन्त्र :- ॐ कुरु कल्लो हां स्वाहा ।
विधि :- लाल वस्त्र पहिनकर एकान्त मे एक लाख जप करे तो आकर्षण होता है ।
मन्त्र : -ॐ हूं हूं सं सं श्रमुकं फट् स्वाहा ।
विधि :- विधि भडारित कर दी गई ।
१७६
मन्त्र
- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं प्रर्ह नमो ।
विधि :- खाने के सात पान ऊपर एक श्वाश मे मन्त्र लिखना, और खिलाना जिसको खिलाओ वह वश में होय ।
विधि
मन्त्र :- ॐ नमो विकराल रूपाय महाबल पराक्रमाय प्रमुकस्य भुजवत्सलं बंधय २ दृष्टि स्तभय २ अंगानि धुनय २ पातय २ महीतले हुँ ।
:—इस मन्त्र का एक हजार जप करे और शत्रु का मन्त्र मे नाम डाल दे तो शत्रु की शक्ति का छेद हो जाता है । जड के समान हो जाता है ।
मन्त्र — ॐ नमो कालरात्री त्रिशूलधारिणी मम शत्रु सेन्यं स्तंभनं कुरु २ स्वाहा । विधि -भौ वारे गृहीत्वा तु काकोल्लूकपक्षयो, भूर्येपत्रे लिखेन्मत्र, तस्य नाम समन्वित गोरोचन गले वध्वा, काकोल्लूकपक्षयो सेनाना समुख गच्छेत् नान्यनाश करोदित शब्द मात्रे सैन्य मध्ये, पलायतेति निश्चित राजा, प्रजा, गजा श्चश्व, नान्यथा च महेश्वरी ।
तथा :
मन्त्र :- ॐ नमो भयंकराय परम भय धारिणे मम शत्रु सैन्य पलायनं कुरु कुरु
स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र को भौमवार कू काला कौवा श्रौर उल्लू के पख लेकर इस मन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर गले मे बाधना । उन दोनो पंखो के साथ, फिर शत्रु की सेना के सन्मुख जावे तो सेना देखते ही भाग जावे ।
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१८०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :--ॐ सुमंखो महापिशाचिनी ठः ठः ठः फट स्वाहा । विधि :-अपमृत्यु से मरे हुये मनुष्य के मुर्दे पर इस मन्त्र का जाप २१ हजार बैठ कर करे और
मुर्दे के मुह मे पारा दो तोला डाल देवे । जब जप समाप्त हो जावे तव सहतु १ सौप १ शकर, उडद का होम करे । दशास । तब वह मुर्दा उठ जावेगा, उस मुर्दे को पकड कर उसके मुह से पारा की गोली निकाल लेना और उस मुर्दे को जला देना । इसी मन्त्र से उस पारा की गोली की पूजा करके २१०० सौ जाप करे । फिर उस गोली को पास मे या मुह मे धारण करने से मनुष्य आकाश में उड़ने लगता है, जहा जाना चाहे
वहाँ जाता है। मन्त्र :--ॐ नमो आदेश गुरुकु सेंदुरिया चलै असा वीर नरसिह चलै असै वीर
हनुमंत चलै लट छोड़ मरे पाय पर मेरी भगती गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि :
लवार के दिन अपने शरीर मे उबटन लगावे, फिर उबटन उतारे। उस शरीर के मैल का एक मनुष्याकार पुतला बनावे । उस पुतले के माथे मे सिन्दूर की टीकी सोलह लगाना, सोलह २ बार एक टीको लगाते समय सोलह २ वार मन्त्र पढना, इस प्रकार सोलह दिन तक करना प्रत्येक दिन का मन्त्र व टीकी २५६ हुई । इस प्रकार करने से वोरा, यक्ष प्रत्यक्ष होता है । प्रत्यक्ष होते ही उससे वचन ले लेवे जो आज्ञा करो
सोही करे। मन्त्र :-थल बांधौ हथौडा बांधौ, अहरन माही, चार खूट कडाही बांधो, बांधो
प्राज्ञा माही तीन सवद मेरे गुरु के चालियौ चढ़ियौ लहरस वाई अनी बांधों सूई बांधौ २ सारा लोहा निकलियो न लोहू पकियो न घाव जिसकी रक्षा
करे गुरुनाथ । विधि :-इस मन्त्र को एक श्वास मे सात बार पढ कर नाक कान छेदन करने से पीडा भी नहा
होगी और पकेगा भी नहीं। मन्त्र -ॐ नमो भगवते चंद्रप्रभ जिनेन्द्राय चंद्र महिताय चन्द्र कीति मुख रंजनी
स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र को चन्द्र ग्रहण के दिन रात्रि मे जपने से विद्या की प्राप्ति अच्छी होती है।
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लघुविद्यानुवाद
१८१
मन्त्र :- ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्व जन मोहिनी सर्व कार्य कारणी विधन
संकट हरणी मन मनोरथ पूरणी मम चिता चूरणी ॐ नमो पद्मावती नमः
स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का साढे बारह हजार जप करना चाहिये, त्रिकाल जाप करे। अखण्ड दीप धप
रखना, शुद्ध भूमि, शुद्ध वस्त्र और शरीर शुद्धि का पूरा ध्यान रखे, पार्श्व प्रभु के मूर्ति के सामने अथवा पद्मावती के सामने सफेद माला पूर्व दिशा की तरफ मुख रखना, एकाग्रता
से जप कर सिद्धि करना, इस मन्त्र का सवा लक्ष जप भी कहा है । मन्त्र --ॐ नमो भगवती पद्मने पद्मावती ॐ ऐं श्री ॐ पूर्वाय, दक्षिणाय, पश्चिमाय
उत्तराय, पारण पूरय, सर्व जन वश्यं कुरु २ स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का सवा लक्ष जप करना तब मन्त्र सिद्ध हो जावेगा, फिर प्रातःकाल एक माला
नित्य फेरना जिससे पाय बढेगी, बेकार का कार्य मिटेगा। मन्त्र दीप, धप, विधान से
जपना सकलीकरण पूर्वक । भगवान के सामने । मन्त्र :-ॐ पद्मावती पद्मनेत्रे पद्मासने लक्ष्मी दायिनी वांच्छा पूर्ण भूत प्रेत निग्रहरणी
सर्व शत्र सहारिणी, दुर्जन मोहिनी, ऋद्धि वृद्धि कुरु २ स्वाहा ॐ ह्रीं श्रीं
पद्मावत्यै नमः स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का जप दीप धूप विधान से भगवान के सामने बैठ कर सवा लक्ष जप करना,
धूप मे गुग्गुल, गोरोचन, छाड छबीला, कपूर, काचरी इस सबको कूट कर गोली बना लेवे, शनिवार अथवा रविवार की रात्रि को लाल वस्त्र, लाल माला लाल आसन, लाल वस्त्र पर स्थापना करके जाप एक २ गोली अग्नि मे डालते हुए एक एक मन्त्र के साथ खेवे और एक एक मन्त्र के साथ लाल पूष्प भी रखता जाय, इस प्रकार सवा लक्ष जप एक महीने मे पूरा करे । मन्त्र जपने के समय एक महीने तक ब्रह्मचर्य पाले तब मन्त्र सिद्ध होगा। फिर नित्य ही प्रात काल ११ या २१ बार मन्त्र का नित्य ही स्मरण करे, आय
बढेगी, लक्ष्मी प्रसन्न होगी, सुख शान्ति मिलेगी। मन्त्र :-ॐ पद्मावती पद्म कुंशी बज्र वज्र कुशी प्रत्यक्ष भवन्ति २ स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का जाप इक्कीस दिन में एक एक हजार नित्य करके पूरा करे, जाप दीप धप
विधान पर्वक अर्द्ध रात्रि मे एकाग्रता से करे तो मन्त्र सिद्ध होगा। फिर एक माला नित्य ही फेरे । लक्ष्मी की प्राप्ति होगी। वस्त्र शुद्धि का पूरा २ ध्यान रखे ।
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१८२
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूहः ऐं नमः स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र को नव रात्रि मे सिद्ध करे । सिद्ध करते समय ब्रह्मचर्य व्रत पाले। एकासन
करे, कषायो का त्याग करे, मन्त्र एकान्त मे अखण्ड दोप, धूप, पूर्वक साढे बारह हजार जप करना, फिर एक माला नित्य फेरने से प्रानन्द से दिन जायगा, रोजी मिलेगी। मन्त्र सिद्ध हो जाने पर कार्य काल मे इस मन्त्र का २१ बार जप कर व्याख्यान देवे तो श्रोता मोहित होते है । २१ बार जप कर वाद विवाद करे तो जय प्राप्त हो । कोर्ट मे मजिस्ट्रेट के सामने इस मन्त्र का २१ बार जप कर बोले तो मुकदमे मे अपनी विजय हो। पर गाव मे रोजी के निमित्त जाने के पहले प्रवेश के समय जलाशय के किनारे बैठ कर एक माला फेर कर प्रवेश करे तो व्यापार मे लाभ मिले। सर्व कार्य सिद्ध हो। इस मन्त्र का ७ बार जाप करते हुए अपने मुह पर हाथ फेरने से शत्रु की पराजय होती है। मन्त्र के अन्त मे स्वाहा पूर्वक शत्र का नामोच्चारण करता जाय । इस मन्त्र से २१ बार सिर को मन्त्रित करे तो सिर दर्द होता है । इस मन्त्र से २१ बार पानी मन्त्रित कर पिलाने से पेट का दर्द दूर होता है। इस मन्त्र को पढता जाय और भस्म उतारता जाय तो बिच्छू का जहर दूर होता है। मार्ग मे चलते समय जप करता जाय तो व्याघ्रादिक का भय नहीं
होता है। मन्त्र -~ॐ अर्ह मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयं करी वद २ वाग्वादिनी सरस्वती
एं ह्रीं नमः स्वाहा। विधि -इस मन्त्र का शुद्धिपूर्वक ब्रह्मचर्यव्रत पालते हुए अखण्ड दीप धूप विधान पूर्वक एक लाख
जप करना, फिर दशास होम करना, होम करने मे धूप इस प्रकार की चीजो का बनाना नारियल, खोपरे के टुकड, १ कपूर, खोरक, (छहारा), मिश्री, गुग्गुल, अगररताजणी घृत, गुड, चन्दन । इस प्रकार की सामग्री की धुप बना कर हवन करे तब स्वप्न मे देव अथवा देवी आकर वरदान देगे। मन्त्र सिद्ध हो जाने के बाद विद्या बहत पाती है।
व्याख्यान मे चतुरता होती है। मन्त्र :-नमि ऊरण असुर सुर गरूल भुयंग परिवंदिये गय किले से अरि हे सिद्धायरिय
उवज्झाय सव्व साहूरणं नमः । विधि -इस मन्त्र का जप नित्य एक सौ इक्कीस बार उत्तर दिशा की ओर मुख करके करे, दीप
धूप रखने से मन्त्र की शक्ति बढती है। जतनपूर्वक उपयोग स्थिर रखना, जब जप पूरा
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लघुविद्यानुवाद
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हो जाय तब २१ बार णमोकार मन्त्र को जप लेना, इस तरह करने वाले को सर्व प्रकार
के भय नष्ट होते है और आनन्द मगल हो जाता है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं गमो जिरणाणं, ॐ ह्रीं अर्ह आगासगामीणं, ॐ ह्रीं श्रीं वद वद
वाग्वादिनी भगवती सरस्वती मम विद्यार्सािद्ध कुरु कुरु । विधि :-इस मन्त्र का अधिक जाप करने से ऐसा लगेगा कि मै आकाश में उड रहा हूँ। जाप करने
के बाद भगवान की व सरस्वती देवी की पूजा करे, जप आँख मीच कर करे तब मन्त्र सिद्ध होगा। उसके पश्चात कोई भी मन्त्र या विद्या सिद्ध करने मे देर नहीं लगेगी तत्काल
सिद्धि होगी। आयु का ज्ञान होगा, कष्ट निवारण होगा। मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्लीं नौ कौ बटु काय आपद, उद्घारणाय कुरु कुरु बटु काय ह्री
हम्व्य नमः विधि -इस मन्त्र का साढे बारह हजार जप विधि पूर्वक करे, विशेष पूजन करे, तब देव प्रत्यक्ष
होगा अथवा स्वप्न मे दीखेगा और स्पष्ट उत्तर देगा। इस मन्त्र का जाप अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना नहीं तो पागल कर देता है।
सहदेवी कल्प
सहदेवी के पेड़ के नीचे शनिवार की रात्रि को जाकर १ सुपारी रखे, सहदेवी को धप दिखा कर हाथ जोड विनयपूर्वक प्रार्थना करे कि हे सहदेवी प्रात मै तुमको अपने यहाँ पधराऊ गा, ऐसा कह कर घर आ जावे, रविवार को प्रात होने के पहले जाकर इक्कीस बार पढे।
मन्त्र :-ॐ नमो भगवती सहदेवी सद्वत हय नीस वद कुरु कुरु स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से मन्त्रित कर जड सहित सहदेवी को बाहर निकाले और मौन बने अपने स्थान
पर आकर एक पाटे पर स्थापन कर धूप, दीप, फल भेट करे और फिर उसका रस निकाले, और उस रस मे गोरोचन व केशर डाल कर गोली बनावे, जब कभी काम हो तब गोली को घिस कर तिलक कर के जावे तो इच्छित व्यक्ति वश मे होगा। विजय होगी, सहदेवी की जड हाथ मे बाँधने से रोग नष्ट होता है। इसके चर्ण को पीस कर गाय के घी मे मिला कर पीने से बन्ध्या स्त्री गर्भ धारण करती है। प्रसूति के समय कष्ट हो रहा हो तो इसको कमर से बाधने पर शान्ति से प्रसव होता है। कण्ठ माला रोग होने पर हाथ मे बाँधे, हाथ मे बाघ कर प्रस्थान करे तो जय पावे। शत्र के सामने विवाद पड जाने पर जड को पास मे रखे तो जय पावे ।
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लघुविद्यानुवाद
लोगस्स कल्प
मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं नमः नमिजिणं च बन्दामिरिट्ठ नेमि पासं तह वढ्ढ मारणं चम
नोवाच्छितं पूरय २ ह्री स्वाहाः । विधि :-किसी प्रकार का भय उत्पन्न हुआ हो साधु सग मे अथवा गृहस्थियो मे तो इस मन्त्र का
पीले रंग की माला से जाप करना चाहिए और किसी प्रकार की मिथ्या दृष्टियो द्वारा उपद्रव आने वाला हो तो लाल रंग की माला से जप करने से सब प्रकार का भय मिट
जाता है, शाति होती है । इष्ट देव का स्मरण करे। मन्त्र :-ॐ ह्री ऐ ऐं लोगस्स उज्झो (य) गरेधम्म तित्थपरजिण अरिहंते किति इस्सं
चन्विसंपि केवलि मम मनो अभिष्टं कुरु कुरु स्वाहाः । विधि :--इस मन्त्र का जाप पूर्व दिशा मे मुख करके खडे हो कर करना चाहिए। सम्पत्ति सुख
के लिए श्वेत वस्त्र, सफेद माला, सफेद आसन चक्रेश्वरी देवी के सामने दीप धूप रख कर करे । साधु करे तो दीप धूप की आवश्यकता नही है। अन्तिम पहर रात्रि का बचे तब मन्त्र की आराधना करना । खडे होकर जप करने से शीघ्र लाभ होता है। सम्पत्ति की
प्राप्ति होती है। मन्त्र :-ॐ क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं उस भम जिनं च वन्दे संभवमभिरणं दणं च सु मइंच
पउमप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वन्दे स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का जाप पद्मासन से उत्तर मुख होकर सकल्पपूर्वक एकान्त स्थान मे अय बिल
व्रत करते हुए २१ हजार जप करे। फिर एक माला नित्य फेरे जिससे शीघ्र हो कार्य की
सिद्धि होती है । दीप धूप अवश्य सामने रखे। मन्त्र :- ॐ ऐं ह्री (ह सौ) झों झी सुर्वािह च पुष्फ दन्तं सीयलं सिझं सा सु पुजं
विमलनगत च छम्मं संति च वदामि-जिरण कुथुअरं चल्लि वन्दे मुरिण सुव्वयं (च) स्वाहा । (ॐ ह्रीं श्री नमिजिणं च वंदामि रिट्ठ नेमि पासं तहू वड्ढ
माणं च मम मनो वाछितं पूरय पूरय ह्री स्वाहा) विधि :-इस मन्त्र का विधिपूर्वक दीप धूप दान पूर्वक सवा लक्ष जप करने से आपस के झगडे
ग्रह क्लेश वगैराह सब शात होते है। सब प्रकार के बैर भाव मिटते है। फिर एक माला
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लघुविद्यानुवाद
नित्य फेरनी साधू सघ मे अथवा गृहस्थो के घर मे सर्व प्रकार का मन मुटाव दूर होता है।
सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । जाप न्युन्याधिक नही करे। मन्त्र :-ॐ ऐं ह्रां ह्रीं एवं मऐ अभि थुप्रावि हुयर यमला पहोरण जर मरणा चउन्वि
संपि जिरगवरा तित्थयरा में पसीयंतु स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का साढे बारह हजार दीप धूप विधानपूर्वक करने से सर्व प्रकार के अपवाद
मिटते है यश फैलता है । सर्व कार्यों मे जय विजय प्राप्त होती है । शत्रु स्वयं ही शात हो
जाते है। मन्त्र .-ॐ श्रां अम्बराय (उद्यवराय) कित्तिय वदिय महिया जे लोगस्य उत्तम सिद्वा
प्रारोग्ग बोहिलाभं समाहि वर मुत्तमं दिन्तु स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र का स्मरण मनुष्य जब रोगी हो जाय किसी प्रकार से रोग ठीक नही होता
हो और दिनो दिन वेदना बढती जाय तो जाप करे अथवा दूसरा व्यक्ति रोगी मनुष्य को सुनावे तो, आयुष्य अगर वाको है तो शाति मिलती है । आयु का अगर आयु अन्त है तो इस मन्त्र को सुनाने से समाधि ठीक होगी। सद्गति की प्राप्ति
होती है। मन्त्र :---ॐ ह्रीं ऐं श्रां जां जी चन्दे सुनिम्मल यरा प्राइच्चे सु अहियं पयासयरा
सागर वरगंभीरा सिद्वा सिद्धि ममदि सन्तु मम मनोवाछित पूरय पूरन
स्वाहा। विधि :-यश प्रतिष्ठा के इच्छुक व्यक्तियो को इस मत्र का जाप करना चाहिए। यह मन्त्र अत्यन्त
चमत्कारी है। मन्त्र का जाप साढे बारह हजार वार करे तो सर्व कार्य की सिद्धि होगी।
यश प्रतिष्ठा बढेगी, उपद्रव शात होगे। मन्त्र :-ॐ चंडिनि चले चल चित्ते चपले चपल चित्ते रेतः स्तम्भय स्तम्भय .
ठः स्वाहा। विधि :-३ हजार जाप इस मन्त्र का दीप धूप विधान पूर्वक जपने से सिद्ध होता है। फिर इस
मन्त्र से सात बार शक्कर मन्त्रित कर, योनि में रखने से स्त्रियो का प्रदर रोग गात
होता है। मन्त्र :-ॐ ो ो अं अः स्वाहाः । विधि :-इस मन को जप कर काजल बनावे काजल प्रॉब की रुई और लार का रम अथवा
पाकको रईपार कमन के धागे की बनी बना पर वाजल बना प्रांतो में प्रजन करने से वश्य होता है।
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१८६
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ वाचस्पतये नमः। विधि :-इस मन्त्र का जाप १ वर्ष तक करे तो बुद्धि बहुत बढेगी। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय अदु मुढे
क्षुद्र विघट्ट क्षुद्रान् स्थम्भय स्थम्भय दुष्टान् चूरय चूरय मनोवांछितं पूरय
पूरय स्वाहाः। विधि -दीवाली के दिन १००० जाप करे, पीछे एक माला नित्य फरे तो मनोवाछित
कार्य हो। मन्त्र :-ॐ नमो ज्वाला मालिनी देवी शभंवति रक्त रोहिणी ॐ क्षां क्षीं !
ह्रां ह्रीं रक्तू वाशसी अथ वर्ण दुहिते अधेरे कर्म कारके अमुकस्य मन्ः दह दह उपविष्टाय मुखं दह दह सुप्ताय मनः दह दह पर बुद्धाय हृदयं दह दह पच पच मथ मथ अथ तावद हन्यात् ॐ हम्ल्यू ह्र. ह.
ह्र फट् स्वाहाः। विधि :-इस मन्त्र का १०८ बार जाप नित्य करे तो सर्व कार्य की सिद्धि होती है। मन्त्र :-ॐ रक्त रक्तावते हुं फट् स्वाहा । विधि -कुमारिका सूत्रेण कटक कुत्वा करणवीर पुष्प १०८ जाप्य दत्त्वा कटौ बधये द्रक्त
प्रवाह नाशयति । मन्त्र :-ॐ अंगे कुमंगे मंगे फु स्वाहा । विधि :-१००८ वार जाप पूर्व १०८ गुणिते स्वप्ने शुभाशुभ कथ । मन्त्र :-ॐ अंगे कुमंगे फु स्वाहाः । विधि :-फल व जल अभिमत्र्य पिवेत शूल नाशयति । मन्त्र -ॐ नमः क्षिप्त गामिनी कुरु कुरु विमले स्वाहा । विधि .-अने नाम्बु सप्ताभि मन्त्रित कृत्वा नस्य नाम्नि पिवेत् स वश्यो भवति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं क्रीं ह्री ह्रफट् स्वाहाः । विधि :-पुगी फलादि यस्य दीयते स वश्यो भवति । मन्त्र :-ॐ ऐं ह्री सर्वभय विद्रावरिण भयायै नमः। विधि :-एन ध्यायन् पथान व्रजेत् भय न भवति । मन्त्र :-ॐ कृष्ण गन्ध विलेप नाय स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
१८०
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विधि :-१०८ बार स्मरणे ना तीता नागत वर्तमान स्वप्ने कथयति। मन्त्र :-ॐ ह्रीं त्रिशुलिनी प्रत कपालस्तां नमुड मुक्तावलि बद्ध कंठां कृतान्तहारां
रूधिरौधं संप्लुतां तामेव रोद्रीं शरणं प्रपद्य अमुकं विस्फोटक भया द्रक्ष २
स्वाहाः। विधि -ये मन्त्र केशर, कपूर, गोरोचन से लिखकर भुजा के बाधने से शीतला का दोष
जाता है। मन्त्र :-ॐ काम देवाय काम वशं कराय अमुकस्य हृदयं स्तम्भय २ मोहय २ वशं
__ मानय २ स्वाहा । विधि -अनेन मन्त्रेणामिमन्त्र्य यद्वस्तु यस्य कस्याऽपि दीयते स वशी भवति । मन्त्र :-ॐ सम्मोहिनी महाविद्य जंभय स्तम्भय मोहय, श्राकर्षय पातय महा
___ संभोहिनी ठः । स्मरण मात्रेण सिद्धिर्भवति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं अरहंत देवाय नमः। विधि :-१०८ बार वाद के समय जपने से तथा प्रौर कार्य मे तो जय होय । मन्त्रि के कपडा मे
गाठ दीजे तो चोरी न कर सके तथा सर्पादि वस्त्र से दूर रहे।
णमाकार मन्त्र उल्टा जपे वन्दी मोक्ष होय बिना कार्य उल्टी नाही जपि जै।
णमोकार मन्त्र ३ बार पढकर धूल चू टी के फूक दै इके जे के माथे डारे सो वश्य होय।
चौथ तथा चौदश शनिवार को णमोकार मन्त्र पढि के सन्मुख तथा दाहिने बाई तरफ
फ कि दीजे पढि पढि के वेरी देखते ही भागि जाय । मन्त्र :-ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आयरियाणं, ॐ णमो
उज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्व साहूरणं । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय अपराजित शासनाय चमर महा भ्रमर
भ्रमर भ्रमर रूज २ भुज २ कड़ २ सर्व ग्रहान् सर्व ज्वरान् सर्व वातान् सर्व पीडान् सर्व भूतान् सर्व योगिनीन् सर्व दुष्टान्नाशय क्षोभय २ ऊ कः धः मः यः रः क्षि क्षं सर्वोपसर्गान्नाशय २ हूं फट स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि :- इस मन्त्र से कलवाणी करके पिलावे सर्व रोग दोष पीडा भूत उपद्रव जाय सही। मन्त्र :-ॐ णमो अरहंतारणं ॐ रणमो भगवऊ पास जिणदस्स अलवेसर २ प्रागच्छ २
मम स्वप्ने शुभाशुभं दर्शय २ स्वाहा ।। विधि :-प्रथम पूर्व मुख, दीप, धूप विधानेन १०००८ बार जपे । कार्य काले २११०८ जप सोवे,
शुभ शुभ आदेश स्वप्न मे होय सही। मन्त्र :-ॐ णमो गाणाय, ॐ णमो दसणाय, ॐ णमो चरित्ताय, ॐ णमो त्रिलोक
वरं करहिं स्वाहा। विधि :-सर्व कर्म करो मन्त्रोऽयम । कालायानी येन घटन पायन चलावण्य च छु सिरोधो
सिरोत्पातादिषु कार्येषु योज्य ॥ मन्त्र :-ॐ ह ह ह ठं ठं ठं स्वाहा । विधि :-आद्रा नक्षत्रे राता कनीर की कील प्रांगुल चार बार ७ इस मन्त्र सू मन्त्रि, जिको नाम
लीजे सो वश्य भवति । मन्त्र :-अनेन कोल सयनाल स्वाहा । विधि :-उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रे खैर की कील अगुल ८ बार ७ मन्त्रि जै जिका घर माहि गाढ
सो उच्चाटन भवति । मन्त्र :-ॐ गर्दभ हृदये स्वाहा ।
विधि उपलब्ध नहीं हो सकी। मन्त्र :-ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं सिकोतरी मम चितितं कार्यशुभाशुभं कथय २ संत्यं
ब्रूहि २ स्वाहा । विधि -अनेन मन्त्रेण आजानुजल मध्ये प्रविश्य १०८ कनेर का फूल जपिजै, चन्दन, केशर,
कपूर, कस्तूरी सू हाथ लेप कीजै अन धूप दीजै सफेद घडे चढी कन्या दीसै । जो पूछो
सो कहे। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं अचले प्रबलो चल चल अमकी गर्भ चाल चाल स्तंभय स्तंभय
स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
१८६
मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह,म्ल्व्यू महादेवी पद्मावति महयंहि मम दर्शनं देहि स्वाहा । विधि :-अक्षत १०,००० (दस हजार) जाप्य क्रियते पद्मावति प्रत्यक्षो भवति अथवा आदेश
ददाति । मन्त्र :--ॐ नमो भगवोक्त गोमयस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्षीण महानसी लब्धि लक्ष्मी
प्रानय २ पूरय २ स्वाहा । विधि -बार २१ अक्षत पर जपिये। धनधान्य मध्ये क्षिप्यते अक्ष्य भवति । किन्तु उस स्थान को
उठाइजै नहि। मन्त्र :-ॐ ह्रीं रामो महायम्मा पत्तारणं जिणारणं । विधि :--अनेन मन्त्रेण द्वादश सहस्त्र जाप्य कृतेन लक्ष्मी सिद्धति लक्ष्मी कथयति निधि
स्थान। मन्त्र :--ॐ रणमो इदं भुइ गण हरस्स सव्वलद्धिकरस्स मय ऋद्धि वृद्धि कुरु कुरु
स्वाहा । विधि -बार १०८ लाभाय सदा स्मरणीया । मन्त्र :-ॐ श्रीं इवीं (भ्वीं) श्रीं क्लीं श्रीं झौ श्रीं ह्रीं श्रीं झौ झू. श्री कौ श्रीं
स्वाहा । विधि :-मन्त्रोय लक्ष जप्त. सन श्रिया वश्य करोति च धन्य धान्य सम दीप्त दान ददाति
वृद्धयति। मन्त्र :-ॐ अम्बे अम्बाले भूतान् कूरान् सर्पान् दूरी कुरु २ निधि दर्शय २ श्री
झो स्वाहा । विधि -मत्रोऽय द्वादश सहस्त्र जप्तो कथयति, वशति निधान स्फुट । मन्त्र :--ॐ हं उ ह ह व वा वि वी वु वू वे वै वो वौ वं वः । विधि :-रात्रौ स्पाप समये प्रत्यूषे च वार १-१ श्वासेन स्मरण कार्या यो मनसि चिन्तये तस्य वशी
भवति । मन्त्र :--ॐ ह्र इले तीले नीले हिमवंत निवासिनी गल गंधे विश्व गंधे दुष्ट
भंगदरि, वा तारिशा नाशारिशा स्फटिकारिशा हता कृष्ठा, हतानिधूताय ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि .-इमा विद्या पठति, शृणोति, तस्य कुले अरिश वाता नाहि । अनेन मन्त्रण बार २१
कलपानीयेन अर्थोपशम । मन्त्र :-ॐ कालि महाकालि अवतरि २ स्वाहा लुचि मुंचि स्वाहा । विधि -बार २१ स्मरणात् हरप पीडा न भवति । मन्त्र :-ॐ ह्री कृष्ण वाससे शत वदने शत् सहस्त्र सिंह कोटि वाहने पर विद्या __ उछादने सर्व दुष्ट निकंदने सर्व दुष्ट भक्षणे अपराजिते प्रत्यंगिरे महावले
शत्रु क्षये स्वाहा। विधि -एतस्य महा मन्त्रस्य नित्य बार १०८ जापने सर्व दुष्ट दुरितोपशमेन सर्व समिहित सिद्धि
र्भवति । मन्त्र :-ॐ नमो अरहउँ भगवर्ड मुख रोगान् कंठ रोगान् जिह्वा रोगान्, तालु रोगान्,
दन्त रोगान् ॐ प्रां प्री प्रः सर्व रोगान् निवर्तय २ स्वाहा । विधि -पानीयमभि मन्त्र्य कुरला क्रियन्ते मुख रोगा: निति । तत्र कर्णे वध्यते ततोऽक्षि
दोषान् निवर्त ते। मन्त्र :--ॐ नमो लोहित पिंगलाय मातंग राजानो स्त्रीणां रक्त स्तभय २ ॐ तद्यथा
हुसु २ लघु २ तिलि २ मिलि स्वाहा । विधि -रक्त सूत्र दूवर के ग्रन्थि ७ कृत्वा बार २१ जापित्वा स्त्रीणा वाम पादागुष्ठे बधयते
रुधिर प्रशमयेत । मन्त्र :--ॐ श्रीं ह्री क्ली कलि कुड दंड स्वामिने मम वंदि मोक्षं कुरु रक्षीं ह्री क्लीं
स्वाहा। विधि -नित्य जाप्येन वदि मोक्ष दिन ७ सन्ध्या समय निश्चयत जाप. । मन्त्र :-ॐ ह्री चन्द्रमुखी दुष्ट व्यतर कृतं रोगोपद्रवं नाशय ह्री स्वाहा । विधि -श्वेताक्षत अभिमन्त्र ग्रहादौ क्षेष्या दुष्ट व्यतर रोगो नश्यति । वानर मुख चोर आदित्य
सम तेज स ज्वर तृतीयक नाम दर्शनादेव नश्यति । मन्त्र :-तद्यथा हन २ दह २ पच पच मथ मथ प्रमथ प्रमथ विध्वंशय २ विद्रावय
२ छेदय छेदय अन्य सीमां ज्वर गच्छ गच्छ हनुमंत लांगुल प्रहारेण भेदय २
ॐ क्षां क्षी सूक्षौ खं रक्ष रक्ष स्वाहा । मन्त्र -विष्णु चक्रण छिन्न २ रुद्र शूलेन भिद भिद ब्रह्म कमलेन हन हन स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि : - कुमकुम गौरोचन भूर्ये लिखित्वा प्रत्यवेला या हस्ते बधनीया ।
मन्त्र
- ॐ भस्मकरी ठः ठः स्वाहा । ॐ इचि मिचि भस्मकरि स्वाहा । ॐ इटि मिटिमम भस्मकरि स्वाहा ।
विधि - एभि मन्त्र जलमभिमन्त्रत्र पीय्यतेऽजीर्ण मुदशाम्यति । प्रति सारादि रोगानऽपि निवर्तते उदर पीड़ा च उपशाम्यति 1
मन्त्र :- ॐ ह्रां ह्रौ ं ह्रः कलिकुड स्वामिने जये विजये प्रति चक्र े अर्थ सिद्धि कुरु २ स्वाहा ।
विधि : - इद मन्त्र लिखित्वा वस्तु मध्ये क्षिप्यते क्रियारण विक्रियते रक्षाया ।
मन्त्र :- ॐ गमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय एकाहिक द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिकषण मासिक वात वित्त कफ श्लेष्म सन्निपातिक सर्व रोगानां सर्व भूतानां सर्व प्रतानां सर्व दुष्टानां, सर्व शाकिनीनां नाशय २ त्रासय २ क्षोभय विक्षोभय २ ॐ हूं फट् स्वाहा ।
विधि :-बार १०८ जाडा दीजे व डोरा कर गले बाँधे सर्व रोग ज्वर दोष जाये ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते अपहयत सासनाय संसार चक्र परि मर्दनाय श्रात्ममन्त्र रक्षरणाय पर मन्त्र छेदनाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय सर्व ज्वरं, विषम ज्वरं, महा ज्वरं, ब्रह्म ग्रहकं, नाक ग्रहकं, भूत ग्रहकं प्र ेत ग्रहकं, पिशाच ग्रहकं सर्व ग्रह, सर्व दुष्ट ग्रह, सहस्त्र शूल विनाशनाय, अमृत राई केशर की पीडा, ज्वर विनाशनाय, यक्ष भवतादि दोष नाशय नाशय हिलि २ हल हल विध्वंसय २ ॐ ह्रां ह्री हृ ह्रों हः
व्यूव्यूव्यू घस्तव्य
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१६१
2
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स्वाहा ।
विधि - रक्षा मन्त्रोय झाडो दीजै सर्व रोग दोप जाए ।
राक्षस, भूत पिशाचादि दह २ पच पच मर्दय मर्दय सर्व ग्रह उच्चाटनं हव्यू स्मल्थ्य सम्व्यू ॐ हुं फट्
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते पार्श्वतोर्थ नाथाय वज्र स्फोटनाय, वज्र महावज्र, सर्व ज्वर, आत्म चक्षु, पर चक्षु, प्र ेत चक्षु, भूत चक्षु, डाकिनी चक्षु, शाकिनी
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लघुविद्यानुवाद
चक्षु, सिंहारी चक्षु, माता चक्षु, पिता चक्षु, वटारी, चमारी, एतेषां सर्वेषां दृष्टि बंधय बंधय प्रवलते श्री पार्श्वनाथाय नमः ।
विधि - इस मन्त्र से भाडा दे, नजर जाय । बालक का दृष्टि दोष न रहे ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते पद्म ह्री ह्री क्लीं ब्लू गीय गीय प्रमुकस्य अपत्यदानाय अपत्यं सुपुत्र सर्वावयवेन युत, शोभनं दोर्घायुषं पुत्रं देहिया विलम्बय ह्रीं श्री पद्मावती मम कार्य सिद्धि कुरु कुरु ठः ठः
स्वाहा ।
विधि :- गोली बीज (पारस, पीपल बीज) मन्त्रितटतु समये सूर्य सन्मुख होय खाय, सन्तान होय ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं पद्म पद्मासने श्री धरणेन्द्र प्रिये पद्मावती मम श्रीयं कुरु कुरु दुरितानि हर हर सर्व दुष्टानां मुख बंधय बंधय हो स्वाहा ।
विधि - यह मन्त्र स्मरण करे २१ बार लाभ होय ।
मन्त्र :- ॐ नमो पार्श्वनाथाय भगवते सप्तफरणी मरिण विभूषिताय, क्षित्र क्षिप्र भ्रमर भ्रमर महाभूमि सर्व भूतान सर्व प्रेतान, सर्व ग्रहान, सर्व रोगान, सर्व शाकिनी, भेदान श्रों क्रीं ह्रीं श्राय प्राह्वानया छेदय छेदय भेदय भेदय ॐ क्रौ ह्री फट् स्वाहा ।
विधि :- पानी मन्त्र पिलावै तथा भाड़ा दे, सर्व दोष रोग शान्ति करे ।
मन्त्र :- ॐ नमो पद्मावती मुख कमल वासिनी गोरी गांधारी स्त्री पुरुष मन क्षोभिनी, त्रिलोक मोहनी स्वाहा ।
विधि :- ये मन्त्र दीपावली के दिन १०० जप करे सर्व कार्य सिद्ध होय ।
मन्त्र :- ॐ ह्री श्रीं ह्र ं क्लीं श्रसि श्रा उ सा घुलु धुलु कुलु कुलु सुलु सुलु अक्षयं में कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - पच परमेष्ठी मन्त्रोऽय त्रिभुवन स्वामिनी विद्या अनेन लाभो भवति जाप १०८ नित्य करे गुरुवाम्नायेन सिद्धम् ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते विश्वचिन्तामरिण लाभ दे, रूप दे, जश दे, जय दे, श्रानय श्रानय महेश्वरी मन वांछितार्थ पूरय पूरय सर्व सिद्धि, ऋद्धि वृद्धि सर्व जन
वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
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विधि :-चिन्तामणि मन्त्रोऽयम् नित्य जपै सर्व सिद्धि होय, प्रभात सन्ध्या जपै । धूप खेवे । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते वज्र स्वामिने सर्वार्थ लब्धि सम्पन्नाय वस्त्तार्थ स्थान भोजनं
___ लाभ दे ह्रीं समोहितं कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-अनेन मन्त्रेण ग्राम प्रवेशे ककर ७ बार २१ क्षीर वृक्षे स्थाप्यते सिद्धिर्भवति ग्रामे सुख
भवति लाभ च भवति । लाभ मन्त्रोऽयम् । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते गोमयस्स, सिद्धस्स, बुद्धस्त अक्खीणस्स ह्रीं गौतम स्वामिने
नमः अनेन मन्त्रण ग्राम प्रवेशे कंकर ७ बार २१ अभिमन्त्र्य क्षीर वृक्ष दक्षिण दिशा हन्यते । प्रभूत लाभो भवति । लाभ मंत्रोयम । ॐ तारे तुतारे
ह्रीं तुरे स्वाहा । विधि :-प्रथम ग्रामे प्रवेशे १०८ जपै सर्व जन शोभन लाभ मन्त्र । मन्त्र :-ॐ ह्रीं णमो अरहंतारणं आरे अभिरणी मोहनी मोहय मोहय स्वाहा । विधि :-नित्य १०८ बार जाप जप ग्राम प्रवेशे ७ ककर बार २१ क्षीर वृक्ष हन्यते लाभो भवति ।
प्रथम मन्त्र जप दीप, धूप से सिद्ध करना पीछे अपने कार्य मे लगना। मन्त्र .-ॐ ह्रथूफट किरटिं घातय घातय पर विघ्नान स्फोटय हन हन सहस्त्र
खण्डान कुरु कुरु पर मुद्रां छिद छिद पर मंत्रान् भिद भिद ह्रां क्षां क्षं व फट
स्वाहा । विधि :-पढकर सिद्धार्थ क्षेपण करना। इसको ब्रह्मचर्य से जपना । शुद्ध भोजन करे, रात्रि को
भोजन न करे रक्षा मन्त्रोऽयम् । मन्त्र :-ॐ नमो अघोर घंटे मम वन्दि मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा । विधि -जाप १२००० श्याम विधानेन । मन्त्र :--ॐ ह्रीं तुर तुर आगच्छ आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा। विधि :-शाक पाहारो, भुवि सेज्या, शुचि भूत्वा जितेन्द्रियः पचोपचार योगेन अर्चये।
चन्द्र मण्डल श्वेताम्बर शुक्ल वस्त्र धरो भूत्वा मन्त्र गुनिये श्वेत गधानुलेपने लिग करति आगे गुणी को होम कीजे साठ सहत्र गुणिये तिल, घत होमये तो सिद्ध । भवति याक्षिणी। स्वर्ण पाद सहस्त्र च प्रयच्छति । दिने दिने भगिनी मानेती वक्तव्य अथवा चेटी च जल्पयेत । अथ भार्या शोभने चेव तेन भावने पश्यते भागिनी इत्युकते नेता सिधिया शृण ददाति पादुकाग ह देव कन्या प्रयच्छति। सर्व काम करा सास्तु सालिका भोग दायिनी निधानाति विचित्राणि आनये चेटिका सदा इति सूर सून्दरि साधन विधि।
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१६४
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :--ॐ उच्चिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ही ठः ठः
स्वाहा। -बार १०८ दिन : पहले दिन जीमने बैठता ग्रास १ वार ३ जीमता बीच झूठे मुंह बार १०८ जपै। पानी ३ मन्त्र कर पीना फिर भोजन करे दिन ह जप कर पीछे से परवाने बैठा वार १०८ जाप करना पीछे 8 दिन ३ मसान ऊपर जाप करना प्रत्यक्षी
भवति । मन्त्र --ॐ रणमो गोमय स्वामी भगवऊ ऋद्धि समो, वृद्धि समो, अक्षीण समो, प्राण २
भरि २ पुरि २ कुरु २ ठः ठः स्वाहा । विधि :-मन्त्र प्रात काल नित्य जपे, शुचि होय लक्ष्मी प्राप्त होय । वार १०८, २१ सुपारी,
चावल मन्त्रित कर जिस वस्तु मे घाले सो अक्षय होय। यह मन्त्र पढ दीप धूप खेवे ।
भोजन वस्तु भन्डार मे होय । उज्ज्वल वस्त्र पहनकर शुद्ध आदमी भीतर जाय । मन्त्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्ली महालक्ष्म्यै नमः। ॐ नमो भगवऊ गोमयस्स, सिद्धस्स,
बुद्धस्स अक्षोरगस्स भास्वरी ह्रीं नमः स्वाहा । विधि :-मन्त्र नित्य प्रात. काले शुचि भूत्वा दीप धूप विद्यानेन जपे, लक्ष्मी प्राप्त होय, लाभ
होय। मन्त्र :-ॐ ह्रीं पद्मनी स्वाहाः । विधि :-घर मध्ये सुन्दर स्थान केशर से एक हाथ लीपे, पद्मनी की पूजा करे।
जाप १०,००० गगल खेवे। दोप पूष्प नेवेद्य चढावे । अर्द्ध रात्रि मे करे। १,००० राज
ऐसे ही १ मास करे। देवी प्रसन्न होय । लक्ष्मी देवे । लाभ मन्त्रोऽयम् । मन्त्र :-ॐ कमल वासिनी कमल वासी महालक्ष्म्यै राज्य मे देव रक्षे स्वाहा । विधि .-त्रिकाल जाप कीजे मनोरथ सिद्धि लक्ष्मी प्राप्ति होय । मन्त्र --ॐ ह्रीं ऐ पद्म पद्मावती पद्म हस्ते राज मन्त्र क्षोभिनी शीघ्र मम वश्य
मानय २ हुं फट् स्वाहाः । विधि -राज द्वार जाय जाप करे बार २१ तथा १०८ राजा वश्य होय । मन्त्र :-ॐ मुखी, राजा मुखी, प्रजा वश्य मुखी, सर्व वश्यं कुरु कुरु पद्मावती क्ली
फट् स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
१६५
विधि -बार २१ तथा १०८ पानी को चुल्लू मन्त्र मुख धोवे राजद्वार जाय सर्व सभा वश्य । कार्य
सिद्धि होय। मन्त्र :-ॐ नमो रत्नत्रयाय अमले विमले स्वाहाः । विधि :-हस्त वाह नात् अभि मन्त्रय जल दानात् सर्प विष जाय । मन्त्र :-ॐ ब्लीं ब्लीं सा दुग्ध वृद्धि कुरु २ स्वाहाः । विधि :-चावल की खीर मन्त्रित कर खिलावे, दुग्ध स्तनो मे बढे । मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कलिकुंड स्वामिन् अमुकस्य गर्भ मुंच २ स्वाहा । विधि :-अनेन मन्त्रेण तैलमभिमन्त्रय ऋष्यते सुखेन प्रसवति । मन्त्र :--ॐ रक्ते रक्तवती ह्रफट् स्वाहा । विधि :-रक्त कण वीर पुष्प २१ जाप्य कृत्वा देव रक्त स्त्री कण्ठे बधनीय । रक्त स्रावे हरति । मन्त्र -ॐ ह्रीं कमले कमलोद्भवे स्वाहा । विधि -बार २१ चने की दाल, खारक मन्त्री दीयते कमल वाय जाय । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय अपराजित शासनाय चमर महा भ्रमर-भ्रमर
रूज रूज भुज २ कड़ सर्व ग्रहान् सर्व ज्वरान् सर्व वातान् सर्व पीड़ान सर्व भूतान् सर्व योगिनी सर्व दुष्टान्नाशय क्षोभय २ ॐ कः धः मः यः र क्षि क्षं
सर्वोपसर्गान्नाशय २ हुं फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से कल वाणी करके पिलावे सर्व रोग दोष पीडा भूत उपद्रव जाय सही। मन्त्र -ॐ रामो अरहंतारणं ॐ णमो भगवऊ पास जिणंदस्स अलवेसर २ प्रागच्छ
२ मम स्वप्ने शुभाशुभ दर्शय २ स्वाहा।। विधि -प्रथम पूर्व मुख दीप, धूप विद्यानेन १६००८ जपे । कार्य काले २१, १०८ जप सोवे,
शुभाशुभ आदेश स्वप्न मे होय सही।
अष्ट गंध श्लोक मन्त्र :--चन्दनो सीर कर्पूरा गुरू काश्मीर काम दै ।
गोरोचन जरा मांसी युक्त गंधाष्टकं विदुः ॥
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१६६
लघुविद्यानुवाद
ॐ नमो भगवते चन्द्र प्रभावभित् सर्व मुख रंजनि स्वाहा । प्रभाते उदकमभिमन्त्रय अमुकं प्रक्षालयेत् ।। ___सर्व जन प्रियो भवति ।
ॐ नमों कपाली ज्वलिते लोहित पिंगले स्वाहा ॥ विधि -इस मन्त्र से ककर १२ लिखे, रोगी क गिनावने पूरे देखे तो रोगी जीवे । ज्यादा देखे तो
रोग बढे । कम देखे तो रोगी मरे । इति रोग परीक्षा। मन्त्र :-ॐ अप्रति चक्र फुट विचनाय स्वाहा । विधि :-सरसो के दाने अाठ पानी से धोय सुखावे, पीछे १०८ बार पढि (मन्त्र्य) पानी के कटोरे
मे डाले, एक दाना तिरे तो भूत दोष, दो तिरे तो क्षेत्र पाल दोप, तीन तिरे तो शाकिनी दोष, चार तिरे तो भूतनी दोष, पाच तिरे तो आकाश देवी दोष, छ तिरे तो जल देव दोष, सात तिरे तो कूलदेव दोष, पाठ तिरे तो गोत्रज देवी दोष, सर्व डबे तो किसी का
दोष नही । इति दोष ज्ञान मन्त्रोऽयम् । मन्त्र :-ॐ चक्रेश्वरी चक्र धारिणी कटोरे चालय २ चोरं ग्रहाण २ स्वाहा । चिट्ठी
जुवा नाम । विधि -लिख वार २१ मत्र पढ कटोरै भुथाई नाम चिट्ठी मत्र पढता ऊपर मेल जे जे नाम कटोरो
सो चोर जानिए । वा चिट्ठी जलावे सो जले नाही इति चोर ज्ञान मत्रोऽयम् । मन्त्र .-ॐ नमो श्री आदेश गुरू को थल बाध. जल बाघू, बाँधू जल की तीर । नगरी सहित
राजा बांधू जाल सहित कीर। जे रण जाल मे जीव माछली पावे, तो श्री पार्श्वनाथ
छप्पन छप्पन कोड जादूँ की दुहाई।। विधि :-वार ७ ककरी मन्त्रि जाल मे डाले । जाल बधे मछली आवे नही । मन्त्र :-ॐ पद्मावती पद्मनेत्रे शत्रु उच्चाटनी महा मोहिनी सर्व नर नारी मोहिनी
जयं विजयं ऋद्धि वृद्धि कुरु २ । विधि :-राजा प्रजा मोहन होय, ऋद्धि बढे । मन्त्र --ॐ ह्रीं न श्री चक्र श्वरी मम रक्षां कुरु २ ह्रीं अरहताणं सिद्धाण सूरीण
उवज्झायाणं, साहूणं मम् ऋद्धि वृद्धि समीहित कुरु २ स्वाहा । विधि -वार १०८ नित्य जपे धन धान्य वृद्धि होय । कामधेनु मन्त्रोऽयम् । मन्त्र --ॐ ह्रा ह्रीं ह्रीं क्ली असि आ उ सा चल २ कुल मुल इच्छियम में कुरु २
स्वाहा।
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लघुविद्यानुवाद
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विधि :-नित्य वार १०८ जपे दोनो समय लाभ होय । मन्त्र :--ॐ ह्रीं कलिकुंड स्वामिन् आगच्छ २ अात्म मंत्रान रक्ष रक्ष पर मंत्रान छिद
छिद मम सर्व समीहितं कुरु कुरु हुं फट् स्वाहा । विधि :-ये मन्त्र १२००० जपे श्वेत तथा रकत पुष्पे । सर्व सम्पदा प्राप्त होय । मन्त्र :-ॐ नमों वृषभनाथाय मृत्यु जयाय सर्व जीव शरणाय, परम त्रयी
पुरुषाय, चतुर्वेदाननाय अष्टादश दोष रहिताय, श्री समवशरणे द्वादश परीषह वेष्टिताय ग्रह, नाग भूत, यक्ष भूत, राक्षस सर्व शान्ति कराय स्वाहा ।
सर्व शान्ति कर मन्त्रोऽयम् मन्त्र :-ॐ कर्ण पिशाचिनी देवी अमांध वागीश्वरी, सत्यवादिनी, सत्यं ब्रू हि २
यत्वं चितेसि सप्त समुद्राभ्यंतरे वर्तते तत्सर्व मम कर्णे निवेदय २ ॐ
वोषट् स्वाहा। विधि :-जाप १००० करे, जल मध्ये होम १००८ शुभा शुभ कथयति । मन्त्र :-ॐ रक्तोत्पल धारिणी मझ हाजर रिपु विध्वंशनी सदा सप्त समुद्राभ्यंतरे
पद्मावती तत्सर्व मम कर्णे कथय । शीघ्र शब्दं कुरु कुरु ॐ ह्री ह्रां ह्र कर्ण
पिशाचिनी के स्वाहा। विधि :-सहस्त्र जाप होम १०८ पश्चात्सिद्धि ।
गोरोचन कल्प मन्त्र :-ॐ ह्री हन ३ ॐ ह्रीं दहे दहे ॐ ह्रीं हन् हनां ॐ हन् २ ॐ ह्रीं हः हः
स्वाहा। विधि -इस मन्त्र से गोरोचन २१ बार मन्त्रित कर माथे पर तिलक करे तो राज दरबार मे विवाद
मे वशीकरण होता है। रोगी मनुष्य हृदय पर तिलक करे तो स्त्री वश होय । वाहै तिलक करे तो व्याघ्र चिता वश होय। गर्दन पर तिलक करे तो सप वशी होय । पग (पैर) मे तिलक करे तो चौरादिक वश होय । अगूठे मे तिलक करे तो सर्व विद्या सिद्धि होय ।
जीभ मे तिलक करे तो कवि पडित विद्वान होता है। मन्त्र :---ॐ नमों काली वया कुशा की प्राणै जो अमुका कीखिसै कव ही देवी कालि
की प्राण ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि :-बार २१ या १०८ बार वेल मन्त्री जै घरण ठीकाने प्रावे। मन्त्र .-ॐ नमों आदित्या भगदीन सूर्य संसयस वृष लोचन श्री शक्र प्रसादेन
प्राधासीसी सूय नाशय २ स्वाहा । विधि :-बार ६ मन्त्रित धूप खेने से आधा सीसी रोग नष्ट होता है। मन्त्र :-ॐ जल कपई जल हर कंपइ सय पुत्र सु चंडिका कंपै राजा रूवो (चो) कहा
करे सि आसन छांडि वैदेसि जव लगई चंदन सिर चढ़ा दूं तब लग त्रिभुवन
पाप पठावं ह्री फुट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र से चन्दनादि १०८ बार मन्त्रित करके माथे मे तिलक करे तो राजा का
वशीकरण हो, सत्य है। मन्त्र :-ॐ नमो आदेश गुरू कू उचो खेडो डिग डिगे लोः तवे ने मोर मुछालो ज्यो २
मोर करे पुकार तुतु बिछु चढ़े कपाल । विधि :-इस मन्त्र को एकात मे खडे रह कर २१ बार जपे तो बिच्छू काटे हुए आदमी को ज्यादा
जहर चढता है। मन्त्र :-ॐ नमो आदेश गुरू कूधाइ गाइ गोबर जिसमै ऊपना च्यार बिछु चार
काला चार काबरा चार भवरा पाखा लाल तारू उतर बिछ नहीं तरै के नील कंठ मोर हकारू मोर खासी तोड़े जारे बिछू मकरे खी छोड गु०
ह० फु० । विधि -इस मन्त्र को २१ बार पढ कर हाथ से झाडा देने पर बिच्छू का जहर उतर
जाता है। मन्त्र - ॐ धु लुः दे उ लः धुल पुरः तिहानै मे दायरण देव कुकर विस कुनर ई
मारण मारणस के ही मातरीख मन्त्री बधी जै सगला ई स्वान रो विषलत्तरई
सही। विधि :-इस मन्त्र से ३ रविवार तक पागल कुत्ते का काटा हा आदमी को मन्त्रित करे २१ बार,
तो कुत्ते का जहर उतर जाता है। मन्त्र :-ॐ छौं छौ छौ छः अस्मिन् यात्रे अवतर स्वाहाः। विधि -इस मन्त्र से पेडा, ३ बार मन्त्रित कर प्रात ही खावे तीन दिन तक, तो प्राघा सीसा
(आधा माथा का दर्द दूर हो।)
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मन्त्र
लघुविद्यानुवाद
- मेरू गिरी पर्वत जहां बसे हणमंत वीर कांख विलाई श्रंग थरण मुरड तीनु भस्मा भूक गुः ० हः० फुरोः ० ।
विधि
:-७ नमक की डली लेकर ७ बार मन्त्रित करे, २१ बार फूक दे तो काख विलाइ ठीक होती है गथैस बरो वार २१ तिणाथी मन्त्री जै तिर ७ लेई एक २ का तिणाथी वार ३ मन्त्री जे फूंक दीजै थरास से जाय । मुरड गई होय तो तेनो लोहनी कडछी की डडी बार २१ मन्त्र कर २१ बार फूक देने पर पेट दर्द, उदर शूल, धरण पीडा, वाय काख विलाई इतने रोग ठीक होते है ।
१६६
मन्त्र :- ॐ नमो इंद्र पूत इंद्राणी हरणइ राधरणी हरणड वायसूल हरणइ हृर्षा हरणाई फीहा गोला अंतगलि वायगोला हरणइ नहीं तर इंद्र माहाराजा नी
श्राज्ञा ।
विधि :- इस मन्त्र से १०८ वार साढ़े तीन प्रॉटा की ताबा की रोग मन्त्र कर चावल से रक्त वस्त्र सवा गज कपडे को मन्त्र तो गोलो, फीहो ठीक होय ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं श्री करि, धन करि, धान्य करि, रत्न वर्षरणी, महादेव्यै, पद्मावत्यै नमः ।
विधि :- इस मन्त्र का १०८ बार नित्य ही जाप करे तो देवीजी प्रत्यक्ष हो ।
नारि केल कल्प
श्लोक - द्वि जटी एक नेत्रस्तुः नालि केरो महीतले ।
चितामरिण समोप्रोक्तं सर्व बांछित दायक ॥ १ ॥ यस्य पूजन मात्रेण समृद्धि कुरु ते सदा ।
राजद्वारे जयेप्राप्तेः लाभः प्राकस्मिक तथा ॥ २ ॥ वेशानिपूज्य मानेय दद्यात्यभीष्ट वांछित ।
प्रज्ञाल नपयध्पाना । द्वंध्याज नयतेसुतं ॥३॥ गंधाद्रानय स्यासु गूढ गर्भात ।
स्वगारेपूजितेयस्मिन् इष्टसिद्धि स्थिरा भवेत् ॥४॥ युगी तर घोरे । विवादे नृप वेनि ।
अचंयेन्नेक नेत्रंयत् । अजज्यो जायतेपुमान् ॥५॥
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२००
लघुविद्यानुवाद
वृद्धिस्यादिवसायस्य । विदेसेपूजनाद्विसः ।
पूजनात्मन्दिरे स्वीये क्षुद्रानस्यंत्यु पइवा ॥६॥ शाकनी भूत प्रेतादि क्षेत्रपाल पिशाचकाः ।
मुद्गलादि महादोषाः क्षयंयांति क्षणे नते ॥७॥ सर्व शांति भवेयस्मिन् मही तेज गती भले।
आयु वृद्धि महासिद्धिः तीव्र बुद्धि समुद्वय ॥८॥ ॐ ह्री श्रीं क्लू स्वरूपायः क्लीं चकामाक्षये नमः
__ स्वति त्रैलोक्य नाथाय सर्व काम प्रदाय च ॥६॥ सर्वात्मगूढ़ मन्त्राय नालिके रेक चक्षुषविना मरिण समानाय प्रसस्याय नमो नमः । ॐ ह्रीं श्री क्लू क्लीं एकाक्षराय भगवती स्वरूपाय सर्व युगेस्वराय
त्रैलोक्य नाथाय सर्व काम प्रदाय नमः। विधि :-अनेन मन्त्रेण चैत्राष्टम्यां रक्त कुसु मैवा १०८ लक्ष्मी वीज जप पुरस्सर गृहे पूज्ययति
तस्यसर्वार्थभीष्ट सिद्धिर्भवती। एतस्य प्रक्षाल नोद केन बध्या सुतजनयति । ऋतु रमानानतर एतस्य गधा ढ़ातेन गूढगर्भा प्रसूतय । गृहे पूजिते सर्वा भिष्टार्थ सिद्धि स्थिरा भवति । एतस्य पूजना द्वादेव्यवस्थिपिते व्यवसाय वृद्धि भवति । इद माया बीजपूर्व स्वेत पुष्प १०८ पूजनात् गृहेस गोणसा धुपद्रवो न स्यात् । एतस्य पूजनात् गृहे शाकिनी भूत प्रेत पिशाच क्षेत्र पालादि दोषो न भवति । एतस्य गहे पूजनात् क्षद्रोप द्रवानस्यु । एतस्य पूजनात् सर्व शाति भवति । एतस्य गहे पूजनात् मुद्गलाद्या सानिध्य, करा भवति, कि बहुनायस्यैक नेन्नद्विजटी सषक त नालिकेर कृति सास्ति गेहे । चिता मणि प्रस्तर तुल्य नाव सम चित धन्य त मस्य चित्त ।
॥ इति । मन्त्र :-ॐ क्लीं क्लीं क्लू ब्लू क्ली ब्लू यस्तीस्तं सुग्नी वीय शाकिनी दोष निग्रह
कुरु कुरु स्वाहाः। विधि .-कोरा मटका या हडिया मे खडी चूना से अक्षर लिखे फिर उडद मुट्ठी, १५ कपूर, फूल ७.
बार मन्त्रित कर हडिया मे डालकर ढक्कन लगा देवे फिर नीचे आग लगा कर ऊपर
हडिया घर देवे । बिल्ली को आने नही देवे तो, शाकिनी पुकारती आवे । मन्त्र :-ॐ नमो महाकाय योगरिण योगरिण नाथाय शाकीनो कल्प वृक्षाय दुष्ट
योगिणी संधिरू हाय कालडेडेशाधय २ बंधय बंधय मारय २ चूरय २
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लघुविद्यानुवाद
२०१
पहर शाकिनी संधूमवीरात् ॐ उग्नों ग्नी ग्नां उ ह्रीं ह्रां २ होत्फट् स्वाहा ।
विधि - इस मन्त्र से गुग्गुल ७ बार मन्त्रित कर उखल मे डाल कर मुसल से कूटे तो शाकिनी को प्रहार लगता है । गोडो मूडे शाकिनी मस्तक मूडा वैलागीनी चेष्टा । पेट दर्द हो, उबाक आवे, उच्चाट उपजै, सूल आवे, वेटि करे, माटि दिठाउ चाट उवाट उपजै, सूल आवे, सासरे न रहे, मावो अगर, देह लूणपारिग हो वई । घणु बोले नही, सूहो भीलडी रूप देखे । सुती डरे, छोरू आवद्व रहे, लोहि पडे, छोरू न हुवं । इतनी बात हो तो शाकिनी की चेष्टा जानना ।
मन्त्र
मन्त्र :- काली चीडी चग २ करें मोर विलाइ नाचै, हणमंती यती की हाक मांने श्रमुका की धरण ठोका
।
विधि : - इस मन्त्र को १०८ बार प्रभात ही रविवार को वेलअठाइ आाटा की मन्त्री धूप देइ हाथ राखिजे धरण ठोकाने आवै ।
:- ॐ नमो अ जैपाल राजा श्राजया देरारणी तेहने सात पुत्रा प्रथम पुत्र: एकान्तरो, वेलाज्वर, शीतज्वर, दाह ज्वर, पक्ष ज्वर, नित्य ज्वर, तृतीय ज्वर, ए सात ज्वर माहिपोडा करें तो जैपाल राजा अर्जया देराणी की ग्र० मे फु० ।
—कन्या कत्रीत सूत्र को सात वड कर के गाठ ७ लगावे उसको २१ वार मन्त्रित करे हाथ मे बाधे तो सर्व प्रकार के ज्वर दूर होते है ।
विधि
मन्त्र :- ॐ नमो रूद्र २ महारूद्र २ वृश्चिक विनाशय नाशय स्वाहा । विधि - इस मन्त्र से १०८ बार मन्त्रित करे वैसे बीछु का जहर उतरे ।
मन्त्र
- ॐ ह्रीं हिमवन्तस्योतरे पार्श्वे श्रश्व करर्णो महादुमः तत्र सूलसमुत्पन्ना तत्रेव विलयंगता |
विधि :- इस मन्त्र से पानी कलवारणी कर पिलाने से सूल मिट जाता है ।
मन्त्र — ॐ नमो लोहित पीगलाय मातंगराजाय उतप्पथा लघु हिली हिली चिली २
मिलि २ स्वाहा ।
— कन्या कत्रीत सूत को सात वड करके गाठ २१ देवे फिर २१ वार मन्त्रित कर कमर मे बाधने से गर्भ का स्तम्भन होता है ।
विधि
मन्त्र — ॐ श्रॉणू गंग जमरण चीबेली लूं खोलू होठ कंठ सहसा बालू खोलू जीभ मुखं संभालं खोलूं मावापजिण तूं जाया खीलू वाट घाट जिण तू या खोलूं धरती गयण प्रकाश मरहो बिसहर जो मेंलू सास ।
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२०२
लघुविद्यानुवाद
विधि :-इस मन्त्र से धूलि, अथवा ककर, अथवा भस्म, १०८ मन्त्रित कर साप के ऊपर डालने
से साप कीलीत होता है। मन्त्र :-ॐ गंगयमण उंची पीपली जारे सर्थ निकलि वोर । विधि .-इस मन्त्र से भस्म १०८ बार मन्त्रित कर सर्प पर डालने से कीलित किया हुआ सर्प छुट
जाता है । मन्त्र :-ॐ काली कंकारू वाली महापत्र राली हूं फट् स्वाहाः । विधि :-इस मन्त्र से भस्म १०८ बार मन्त्रित कर ऑख (चक्षु) पर पट्टी बाधने से नेत्र अच्छे
होते है। मन्त्र -ॐ नमो गगा यमुना की प्राण बल खीलु होठ कठ मुख खीलु तेरी वाट घाट जीतु प्राया
तर धरती ऊपर आकाश मरीन सकै काढिसा सलवा २ कोयला करी कर वहा काल राजारि रूघोच्यार दनार हाली चाली कू तरी पछारी लख गरूडदसर अफीरि फुरो मन्त्र
ईश्वरो वाचा। विधि .-इस मन्त्र से सर्प का मुह स्थभन किया जाता है। मन्त्र -ॐ नमो सु उखिलणभई वाचा भई विवाच इसर गोरी नयनस जो वै सिर मुकलाया केस
कमर धोवती करै वाभरण का वेस मइतो सरपा छोडि फिर करि च्यारू दसर अफरि
फरो मन्त्र इश्वरो वाचा। विधि -इस मन्त्र से सर्प का मुख स्तम्भन किया हुआ छुटता है । मन्त्र --ॐ नमो लोह मै ताल लोह मै जडीउ वज्र मै जडीउ तालो उघडि तालो न उ घडै तो
वज्र नाथ की आज्ञा न उघडै तो राम सीता की आज्ञा फुरै तत्त उघडै तो नार सिह वीर
की आज्ञा फुरै ठ ठ ठ स्वाहा । विधि -वार ७ वा २१ ताला को मन्त्रित कर तीन बार ताला को हाथ से ठपका लगावे तो ताला
खुल जावे। मन्त्र :-ॐ नमो कामरू देश कामक्ष्या देवी लकामाहि चॉवल उपाय किसका चोर किसका
चावलपीरकानगाधीरमे रामनकाचाउल चिडा चोर को मुख लागै साह उ गण उखा व चौर के मख लोही नी कावै चौर छटै तो महादेव को पत्र फट फरो मन्त्र इश्वरो वाचा
ब्रह्मा वाच विष्णु वाच सूर्य चद्रमा वाच पवन पाणी वाणी वाच।। विधि :-इस मन्त्र से चावल २१ वार मन्त्रित कर चबावे तो चोर के मुह मे खून निकले। मन्त्र .--ॐ नमो ब्राह्मण फोटि योगी हया त्रोर ज नोइ नासकीय फुटकिर गलइ पछा
नारसिह कीर को पारण फिरइए।
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लघुविद्यानुवाद
विधि :- इस मन्त्र से गुड (गुल) २१ बार मन्त्रित कर खिलाने से ७ दिन तक तो वाला का रोग
दूर होता है । वाला माने नेहरवा रोग।
मन्त्र :-ॐ नमो उज्जेन नगरी सीपरा नंदी सिद्धवड़ गंधरप मसान तहां बसे जापरो
जापराग बे बेटा भूतिया, मेलिया अहो भूतिया अहो मलिया अमकानै घर पाखान नाख नाख ॐ अहो मलिया अमुकाने घर विष्टानाख विष्टानाख ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । इस मन्त्र की विधि निकाल दी गई है क्योकि किसी सज्जन पुरुष की कोई हानि नही
हो इसलिये। मन्त्र :-ॐ नमो मोहनी महामोहनी मुजने देष इय नर धारी सर्व जन वश्य कुरु २
ॐ श्री क्लीं श्रीं महा मोहनी देवै नमः । विधि :-रवि ग्रहण के दिन वा कालि चतुर्पदो के दिन १०८ वार मन्त्र का जाप्य करना, घी का
दीपक जलाना, गुगुल धूप खेना तो देवी प्रसन्न होती है । २१ दिन मे साक्षात प्रत्यक्ष
होती है। मन्त्र :-ॐ 2 2 टे मार दें स्वाहा । विधि :--जहा चौरस्ते की धूलि को लेकर मध्यान्ह समय मे लेकर इस मन्त्र से १०८ बार मन्त्रित
करके, घर मे डालने से चहे सब भाग जाते है । एक भी चूहा नही रहता है।
मणि भद्रादि क्षेत्रपालों का मन्त्र
ॐ नमो भगवते ह म्ल्व्यू ह्रा ही ह ह्रौ ह्र माणि भद्र देवाय भैर वाय कृष्णा वर्णाय रक्तोष्टाय, उग्र दष्ट्राय त्रिनेत्राय, चतुर्भुजाय, पाशाँ कुशफल वरदे हस्ताय नागकर्ण कुण्डलाय, शिखा यज्ञोपवीत मण्डिताय ॐ ह्री झा झा कुरु कुरु ह्री ह्री आवेशय आवेशय ह्रौ स्तोभय स्तोभय हर हर शीघ्र शीघ्र आगच्छ आगच्छ खलु खलु अवतर अवतर क्षम्ल्व्य हम्ल्व्य" म्ल्व्य चन्द्रनाथ ज्वालामालिनी. चडोन पार्श्वनाथ तीर्थङ्कर धरणेन्द्र पद्मावति प्राज्ञादेव नाग यक्ष, गधर्व, ब्रह्म राशस रण भता दीन रति काम, वलि काम, हतु काम, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, भवातर, स्नेह, वैर, सबधीसर्व ग्रहान्नावेश्य २ नाग ग्रहान्नावेशय २ गधर्व ग्रहान्नावेशय २ आकय २ व्यतर ग्रहान्नाकर्षय बना राक्षस ग्रहान्नाकर्षय २ चेटक ग्रहानाकर्षय २ सहस्त्र कोटि पिशाच ग्रहानाकर्षय २ अवतर २ शीघर धन धन २ कम्पय २ कम्पावय २ लीलय २ लालय २ लोलय नेत्रं चालय २गात्रं चालय २ सर्वात चालय २ प्रो को ह्री गगनगमनाय प्रागच्छ २ कार्य सिद्धि कुरु २ दुष्टाना मुख स्तभय २ सर्व
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ग्रह भूतवेताल व्यतर शाकिनि डाकिनी ना दोष निवारय २ सर्व पर कृत विद्यानाशय २ हू फट् घे घे ठ ठ वषट् नमः स्वाहा ।
विधि : - इस मरिण भद्र क्षेत्रपाल के महामन्त्र को दीप धूपपूर्वक क्षेत्रपाल की धूमधाम से पूजा करके ब्रह्मचर्यपर्वक, एकासन करता हुआ सिद्ध करे १००० वार तो ये मन्त्र सर्व कार्य सिद्ध करने वाला है । जो भी रोगी भूत प्रेत बाधा से दुखी हो उसको बैठाकर इस मन्त्र से १०८ बार भाडा देने पर उसकी व्यतर बाधा हट जायेगी । रोग से मुक्त हो जायगा । किन्तु पहले सिद्ध करना पडेगा । मन्त्र सिद्ध करे तो डरे नही, इस मन्त्र से मरिण भद्र भैरव प्रत्यक्ष भी आ सकते है ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्री श्रहं चन्द्र प्रभपाद पंकज निवासिनी ज्वाला मालिनी तुभ्यं
नमः ।
लघुविद्यानुवाद
विधि :- इस मन्त्र का ६ दिन तक पिछली रात्रि मे शुद्ध होकर ३ माला जप करे नित्य तो ज्वालामालिनी देवी जी प्रत्यक्ष दर्शन देवे ।
मन्त्र — ॐ क्षां क्षीं क्षू क्ष क्ष क्षः भगवति सर्व निमिति प्रकाशिनी वाग्वादिनि हिफेनस्य मासं धुवां कं कथय २ स्वप्नं दर्शय २ ठः ठः ।
— इस मन्त्र का खूब जप करने से सर्व चीजो के भाव क्या खुलेगे सो स्वप्न में दिखेगा ।
अनोत्पादन
मन्त्र :- ॐ तद्यथा प्राधारे गर्भ रक्षरणे ग्रास मात्रिके हूं फट् ठः ठः ठः ठः ठः ।
विधि : - अनेन मन्त्रेण रक्त कुसुम सूत्रे स्त्री प्रमाणे ग्रन्थि ७ स्त्रो के कटि बाधे गर्भ थमे अधूरा जय नही । मन्त्र १००८ प्रथम जपै । दीप धूप विधानेन जपै ।
विधि
मन्त्र :- ॐ उदितो भगवान सूर्य सहस्राक्षो विश्व लोचन श्रादित्यस्य प्रसादेन श्रमुकस्य द्ध शिरोद्ध नाशय नाशय ही नमः ।
विधि :- डोरा करि १०८ बार मन्त्रि गाठ दे कर बाधे श्रधा शीशी जाय !
मन्त्र :- ॐ नमो
विधि
मेघ कुमाराणां ॐ ह्री श्री क्षम्व्यू मेघ कुमाराणां वृष्टि कुरु कुरु ह्री संवौषट् ।
- प्रथम १ लाख विधिपूर्वक जपै । जब पानी बरसावना होय तब उपवास कर पाटा पर लिख पूजा कर जपै पानी बरसे।
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मन्त्र :- ॐ ह्रीं क्षीं सों क्षं क्षं क्षं मेघ कुमार केभ्यो वृष्टि स्तभय २ स्वाहा ।
विधि :- श्मशान मे प्यासो जाप जपै मेघ का स्तभन होगा ।
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते विश्व चिन्तामणि लाभ दे रूप दे, जश दे जय दे श्रानय २ महेसरमनवांछितार्थ पूरय २ सर्व सिद्धि वृद्धि ऋद्धि सर्व जन वश्यं कुरु कुरु
स्वाहा ।
विधि :- चिन्तामरिण मन्त्रोयम्, निल्य जपै सर्व सिद्धि होय प्रभात सध्या जपै धूप खेवै 1
मन्त्र :- ॐ नमो ह, म्ल्ब्यू मेघ कुमारणां ॐ ह्रीं श्रीं नमो स्म्व्य मेघ कुमारि - काणां वृष्टि कुरु कुरु ह्रीं सर्वोषट ।
विधि :- सहस १२ जपेत वृष्टिकृत्सद्य ।
विधि
२०५
मन्त्र :- ॐ स्फ्रांरक्त कम्बले देवी द्यूत मृतं उत्थापय २ आकाशं भ्रामय २ जलदमानय २ प्रतिमांचालय २ पर्वत कंपय २ लीला विलासं श्रीं श्रीं श्रीं नमः ।
विधि
मन्त्र :- ॐ नमो सुग्रीवाय हनुमंताय सर्व कीटकका मक्षि काय पिपीलिका विले प्रवेश
२ स्वाहा ।
- अनेन मन्त्रेण कुमकुम मिश्रिते जवात्से रभिता नभि मन्त्रायाडगे स रक्त पादौ क्षिप्यते जलदागम । इद मंत्र इटय हरिताल कुम कुमाद्यं लिखेत् । इस मन्त्र को ईंट के ऊपर हरिताल और केशरादि से लिखकर भूमि के अन्दर गाड़े तो वृष्टि रुक जाती है । याने पानी बरसना बद हो जाता है ।
विधि
- यदा रविवारे सूर्य सक्रमण भवति तदा रात्रौ बार १०८ सहस्रो जपित्वा कीटी नगरे क्षिप्यते सर्वथा कीडी जाय ।
मन्त्र :- ॐ चिकि २ ठः ३ ।
विधि
-बार २१ अनेन जप्त सूत्र शय्या बद्ध मत्कुरण । इस मन्त्र को २१ बार जप कर सूत्र को शय्या मे बाघने से खटमल कम होते है ।
मन्त्र - ॐ नमो श्रावी टीडी हु अ ऊ उकाम छाडयउ मन्दिर मेरु कवित्र हाकाइ हनुमंत हूकई भीम छां-डिरे टीडी हमारी सीम ।
-बार १०८ अभिमन्त्रय सरसप ने बाल खेत मे चोकर छोटे टीडी जाय बार १०८ अभिमन्त्रय सरसप ने बेलू खेल्लने चौकेर छीटे टीडी जायँ ।
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२०६
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ ॐ ॐ ठ सइफल नव सह भुज पंच ग्राम कूठ तनइ पापिली जइ जउइणि
करिण कीडउ पडइ। विधि :-निट्ठी लिखधान कण मध्ये अथवा जीर्णधान कण मभिमन्त्र्य अन्न मध्ये क्षिप्यते । धान
__ सुलै नाही। मन्त्र :-ॐ नमो भुज नायाय तद्यथा हर-हर ससि-ससि मिलि-मिलि सर्वेषां प्राणिना
मुंडं बंधं करोमि स्वाहा । विधि :-तीन सै गुणी जै सरसप बेलुमन्त्र्य सस्य मध्ये क्षिप्यते धान सुलै नाही। मन्त्र :--ॐ नमो नार सिघ तू घूधरियालो सबह वीरह खरड पियारउ ॐ तली
धरती ऊपर-आकाश मरहि मृगी जइ लहइ प्रकाश । विधि -जि बार मृगी प्रावै ति बार श्याही मसि सू माथे लिख जै, मन्त्र भरिण प्रौपधि नाख दीज
मृगी जाय। मन्त्र :---ॐ नमो आदेश गुरु कू तेरह सरसौ, चौदह राई, हाट की धूलि, मसान की
छाई पढ़कर मारु मंगलवारै तो कदई नावह रोग द्वारे फुरई मन्त्र ईश्वरो वाचा।
विधि --बारई मगलवारे इण मन्त्र सू मन्त्रि तेरइ महिला, ७ सरसप, ७ राई, १ चुटकी चौराहे
की धूलि, एक चुटकी मसान की छाई (राख) एकठा कर मन्त्रइ मगल वारै दोषाइत मे नाखिजे अबरता गले मन्त्रि बाधिये आदित्य वारे । एकठा करिए मगलवारे कीज
मृगी जाय। मन्त्र :-ॐ नमो ऊँचो पर्वत मेष विलास सुवरण मगा चरइ तसु आस-पास श्री
रामचन्द्र धनुष बाण चढ़ाया आजि रे मगा तुझको रामचन्द्र मारने पाया
गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा । विधि :-वर्षाकाले रवि दिने धनुप भवति तदा कुमारी सूत्र नो डोरो नव लड कीजै धनुष सामा जो
इने बार ७ मन्त्रि गाठि दशक दीजै। इम गाठ दीजै कार्य काले रवि दीने गाठ।
तावीज माहि घालि गले राखिए मगी जाए। मन्त्र :-ॐ चन्द्र परिश्रम २ स्वाहा ।, विधि -१०८ जप सरसो से ताडि रीगन वाय जाय।
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लघुविद्यानुवाद
२०७
मन्त्र :--समरा समरी इम मरणइ गंडू गर ऊपर माल रवरणई बलि रांगरण फाग
विलाई लूरण पानी जिमि हेम गलाई झारा अमृत २ प्रक्षुभ्य फुट
स्वाहा। विधि :-पानी मन्त्र्य बार २१ प्याइजे झाडो दीजै रीगनवाय जाय । मन्त्र :-ॐ ताररिण तारय मोचनि मोचय मोक्षरिण मोक्षय जीव वरदे स्वाहा । विधि -पानी बार २१ मन्त्रित कर पीलावे झाडो दीजै सर्व वायु जाय । मन्त्र :-ॐ प्रह जउ गाइ सूरो ए ए झिझत तिमिर संघाया अनिल, वयण, निबद्धो
अमुकस्य लूतवातं, रक्त वातं अंगिवातं, अडनोवातं विगंछिया वातं,
वृद्धिवातं, संतिवातं, पणासरा स्वाहा । विधि :-कुमारी का सूत्र बार १०८ गाठ १२ मन्त्रि दीजं देह प्रमाण डोरो करिए तो वाय
जाय। मन्त्र -ॐ मोहिते ज्वालामालिनी महादेवी नमस्कृते सर्वभूत देवी स्वाहा । विधि .-जिस पर शका हो उसके नाम की चिट्ठी मन्त्र तेल मे चोपडि अग्नि माहि होमिये बले ते
चोर जाणबे। मन्त्र :-ॐ नमो भगवते श्री वज्र स्वामिने सर्वार्थ सिद्धि सम्पन्नाय भोजन वस्त्रार्थ
देहि-देहि ह्री नमः स्वाहा। विधि -नगर प्रवेशे काकरा ७, बार २१ बार मन्त्रि वट वृक्ष के सामने डाले गाव मे प्रवेश करे तो
सर्व कार्य सिद्ध होता है। मन्त्र -ॐ नमो भगवऊ गोमयस्य सिद्धस्य, बुद्धस्य अक्खीरण महाणसस्य, भास्करी
श्रीं ह्रीं मम चितितं कार्य प्रानय-पानय, पूरय २ स्वाहा । विधि –१०८ बार गुनिये तो लाभ होय । मन्त्र :-ॐ ह्री श्री वयर स्वामिस्स मम भोजन देहि-देहि स्वाहा । विधि - बार १०८ गुरिण काकरी २१ मन्त्रि वट वृक्ष उपर छाटिये तत ग्रामे लाभ भोजन
भवति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्री क्लीं कलि कुड स्वामिने अप्रति चक्र जये-विजये अजिते अपराजिते
जम्भे स्वाहा ।
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२०८
लघुविद्यानुवाद
विधि :-देशना काले स्मृत्वा देशनाकार्ये युवति जनान आकर्षयति सर्व वशीर्भवति दिन त्रय यस्या
दिशि पर चक्र भवति । तत्सम्मुख स्मरयते निर्विधनहो भवति । मन्त्र :-ॐ नमो अरिहंतारणं प्रास्मिरणी मोहनी मोहय-मोहय स्वाहा । विधि :-एष मार्गे गच्छद्भि स्मरतव्यः तस्कर । दर्शनमपि न भवति । मन्त्र :-ॐ नमो सयं बुद्धारणं नौं झौ स्वाहा । विधि :-प्रति दिवस सिद्ध भक्ति कृत्वा अष्टोत्तर शत दिनानि यावदष्टोत्तर जपेत कवित्ता
___ गमादितय, पाडित्य च भवति । मन्त्र :-ॐ ह्री नमो पुरुषोत्तमाणं अललि अपौरूषाणम् अहं असि आ उ सा
नमः। विधि -जाप्य १०८ कृत्वा असवलित सुख सौभाग्य ऋद्धिश्च भवति । मन्त्र :-ॐ ह्रीं अहँ नमो जिरणारणं लोगुत्तमारणं लोग पइवाणं लोग पज्जोयगराणं मम्,
शुभाशुभं दर्शय २ कर्ण पिशाचिनी स्वाहा । विधि .-जाप १०८ सस्तर के उपर मौनेन शयनीय स्वप्ने आदेशः । मन्त्र :-ॐ नमो अरिहंतारण अभय दमाणं चक्खू दयारणं मंगा दयाणं शरण दयारण
ऐं ह्रीं सर्वभय विद्रावरणायै नमः। विधि -जाप १०८ सर्व भयानि विशेष तो राजकुल भय पर चक्र णय निवर्तयति। मन्त्र - ॐ नमो अरहंतारणं अप्पडि हय वरनाणं दसरण धराणं विउट्ट छडमारणं ऐं
स्वाहा । विधि .-निरतर जापा दतीत वर्तमानागत्त ज्ञान स्वप्न शकुन निभित्तादीनामपि तथा देशत्व
च भवति । मन्त्र -ॐ नमो जिरणाणं जावयारणं केवलियारणं केवलि जिरणांरण सर्व रोष प्रशमनि
जंभिनी स्तंमिनी मोहनी स्वाहा । विधि :-पट्टे मन्त्र लिखित्वा जापो १०८ बार दीयते तत् कार्य काले वस्त्र खड मयूर शिखा सयुक्त
परिजप्य वाम पार्वे ध्रियते राजा वश्यो भवति । मन्त्र :-ॐ णमो जिरणाण जावयाणं मुत्ताणं मोयगाणं असि प्रा उ सा यै नमः बंदि
मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा । विधि -रात्रौ दश हजार जापो बदि मोक्षः।
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लघुविद्यानुवाद
२०६
मन्त्र -ॐ चक्रेश्वरी चक्नधारिणी शंख चक्र गदा प्रहरिणी अमुकस्य बंध मोक्षं कुरु
२ स्वाहा । विधि .-बार २१ तैल जपित्वा मस्तके क्षिपेत् वदि मोक्षः । मन्त्र :-ॐ णमो बोहि जिणारणं धम्मदियारण धम्मदेसियाण अरिहंतारणं, णमो भगवइ
सुय देविया सव्सुव तायरावार संग जरपरिण अर्ह सीरीए इवीं क्ष्वीं स्वाहा ।। विधि :-१०८ जपिये । देसना समये वाक्य रस होय, व्याख्याने सत्य प्रत्यय । मन्त्र :-ॐ नमो जिणाणं लोगुत्तमाणं लोगनिहारण लोग हियारणं लोग पइवाणं लोग
पज्जुगारारणं नमः शुभाशुभं दर्शय २ करण पिस्रावति स्वाहा । विधि .-रात सूता जापिये १०८ बार शुभाशुभ कथयति । मन्त्र :-ॐ नमो भगवउ गोयमस्स, सिद्वस्स, बुद्वस्त, अक्खोरण महाणसी, अस्य संयोगो
गोयमस्स भगवान भास्करीयम् ह्रीं श्रारणय २ इम स भयवं अक्षीण महालब्धि
कुरु कुरु सिद्धि, वृद्धि कुरु २ स्वाहा । विधि -तन्दुल १०८ मन्त्र सूखडी घृत माहि मूकिये। अदृयाय सही। अक्षय होता है। ॐ
चिन्तामणि २ चितितार्थ पूरय २ स्वाहा । चिन्तामरिण मन्त्र :-- ॐ ह्रीं श्रीं अर्हते नमः । विधि :-पान ७ ऊपर लिखै, १ सासे लिखि बीडा चबाइये, केशर सू लिख स्त्री पुरुष सर्व
वश्य। मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कलिकुंड स्वामिन पागच्छ २ पर विधां छेदं कुरु २
स्वाहा। विधि :-बार १०८ तथा २१ तेल मन्त्रि प्रसूति काले नाभि लेप सर्व डील (शरीर) मर्दन सखे
प्रसव होई। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्री बाहुबलि शीघ्र चालय उर्द्ध बाहुं कुरू २ स्वाहा । विधि :-प्रथम यस्मिन् दिने बाहुबलि साधन प्रारभ्यते तस्मिन् दिने उपवास विधाय, सध्या समये
स्नान कृत्वा शुभ वस्त्राणि परिधारय श्री खण्ड, कर्पूर, कस्तूरिकाया, सर्वाङ्ग लिप्त्वा ततो पविश्य मन्त्र-१०८ जप्यते ततोझै भूय कायोत्सर्गेन मन्त्र स्मरणीय शभाशों कथयति । इति ।
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२१०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-लक्षं लक्षणं लक्ष्यते च पयसा संशुद्ध मानोर्जलम क्षीरणे दक्षिण पश्चिमोत्तर
पुरः षट्म त्रयद्वये मासैकम । मध्ये क्षिद्रगतं भवे दश दिन, धूमाकुले तछिने, सर्वज्ञ परिभाषितं, जिनमते
आयुर्प्रमाणं स्फुटं ॥१॥ अर्थ -निर्मल भोजन मे जल भर सम ठामे (वर्तन) मे रोगी ने दिखावी जै जो सूर्य दक्षिण
हीन दीखै तो छ मास जीव । पश्चिम हीन दीखै तो ३ मास जीवै, उत्तरहीन दीखै तो २ मास जीव, पूर्वहीन दीखै तो २ मास जीवै। जो मडल सछिद्र देखै तो १० दिन जीवै । धूभाकुलित देखै तो तिहि (उसी) दिन मरे । यह मृत्यु जीवित शान सर्वज्ञ
देव कहो। मन्त्र :-ॐ नमो भगवती कूष्मांडनी क्षां ह्री ग्वी शासनदेवी अवतर २ दीपे दर्पणे
क्ति ब्रू हि २ स्वाहा । विधि -बार १०८ मन्त्रि पढी जै विधि सू पूजा कीजै माता प्रत्यक्षा भवेत् । मन्त्र :-ॐ नमो चक्र श्वरी, चक्रवेगेन वाम हस्ते अचलं चालय २ घटं भ्रामय २ श्री
चक्रनाथ केरी आज्ञा ही प्रावतों स्वाहा । विधि :-पूर्व जाप १०८ चावल मन्त्र घडा माहि (डाले) ना खिजै घटो-भ्रमति । मन्त्र .--ॐ ह्री नमो पाइरियाणम् भव्य पश्चिम द्वार बधय २।
ॐ नमो उवज्झायाण म्म्ल्व्यू उत्तर द्वार बधय-वधय । ॐ ह्री णमो लोए सव्व साहूण कम्ल्व्यू अधोद्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो अरिहताण स्म्ल्व्यू अग्रद्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो सिद्धाण म्ल्व्य नैऋत्य द्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो आयरियाण म्म्यं पवन द्वार बधय-बधय । ॐ ह्री णमो उवज्झायाण म्व्यं ईशान द्वार बधय २ । ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूण रम्य उत्तर द्वार वधय बधय प्रात्म विद्या
रक्ष-रक्ष। ॐ ह्रां ह्रीं हह्रौ ह्रः क्षां क्षी क्षः म्ल्व्य पर विद्यां छिद छिद देवदत्त स्वाहा। क्षां क्षी क्षी क्ष्यः क्षी झू क्षौ क्षः क्षेत्र पालय वन्दि मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
२११
विधि :-बार १० जाप कीजै बन्धन छूटै । सही सर्व सिद्धि करे । सर्व सिद्धि कर मन्त्र सर्व दुख हर पर पठनीय ।
मन्त्र — ॐ ह्रीं पद्मावती सर्वजन वशंकरी सर्व विघ्न प्रहारणी सर्वजन गति मति, जिह्वा स्तंभिती ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ू ह्रौ ह्रः क्ष्म्हव्यू हम्ल्ब्यू गति मति जिह्वा स्तंभनं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि :- ७ बार व तीन चन्दन, केशर, कपूर, कस्तूरी, गोरोचन, पीस, गुटका क्रियते, तदुपरि जाप १०८ दीयते पुष्प दीयते, तिलक कृत्वा गम्यते शाकिनी भूत राजादि वश्य भवति ।
मन्त्र :- ॐ ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं द्रां द्रीं क़ौ ह्रौ नमः ।
विधि :- नित्य जाप पीत मालाया पञ्चशत क्रियते । पीतवसनानि धारयते सर्वसिद्ध मनोभिलास पूरिता भवति सकल भूषरणाचार्य ग्वालेर्या कृता लक्ष्मी लाभ. स्यात् ।
कलश भ्रामरण मन्त्र विधि
मन्त्र — ॐ नमो चक्र श्वरी चक्रवेगेन वाम हस्तेन श्रचलं चालय २ घटं भ्रामय भ्रामय श्री चक्रनाथ केरी श्राज्ञा ह्रीं श्रावतंय स्वाहा ।
विधि :- गोमयेन चतुष्कोण मंडल लिप्य गौ धूमादि अन्नोपरि कलश स्थाप्य तन्मध्ये पुष्प १०८ मन्त्रेण मन्त्रियित्वा कलशे निवेशयेत् । पर पुरुष हस्तारूढे प्रक्षतेन घट भ्रमति तदा शुभ स्वहस्तारूढे सति घट भ्रमति तदा कार्य सिद्धि | महत्तर कार्य विधि. कार्या राजादि विचारे व वर्षे सुमिक्षाए विचारेण रोगादि विचारे स्त्री पुत्रादि विचारेऽपि विचारणीय ।। “चमत्कृते व्यापारे वस्तु विक्रय प्रयोग भूर्य पत्र लिखेद् यत्र ।" अष्टगंधेन नरः शुचिः पुनः सुश्वेत पुष्पेण मन्त्र जाप्य शत्तोत्तरं ।
मन्त्र
- ॐ ह्रीं पद्म पद्मासने श्री धरेन्द्र प्रिय पद्मावती श्रियं सम कुरु कुरु दुरितानि न २ सर्व दुष्टानां मुख बंधय २ स्वाहा ।
इदं जप्त्वा वस्तु मध्ये यन्त्र क्षिपित्वा बिक्रीयते । तत्क्षरणादपि अन्य प्रकारः ॥ १ ॥ रम्भापत्र लिखेन्नाम । कर्पूरेण मदेन त्रि रात्रि मर्चनं कृत्वा केशरं समं । तन्दुले मस्तके क्षेप्यं । दारिद्रयं तस्य नश्यति, देवि तस्य प्रसादेनं धनवान जायते नरः ॥ २ ॥
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२१२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र च भक्षय दिशं दारिद्रयं तस्य नश्यति ॥३॥ पुनः द्वितायुतं जपेन्मन्त्रं होमयेत् पायसं कृतं, नश्यते तत्क्षरणादेवी दारिद्रय दुष्ट बुद्धिना ॥४॥
पद्मावती सिद्धि मन्त्र महारजते ताम्रपत्रे कदली त्वचि व पुनः । अष्टगंधेन, दुग्धेन, श्वेत पुष्पै रक्त पूजनं ॥१॥ ताम्र पत्रे पयः क्षिप्त्वा यन्त्र स्नानं समाचरेत् । श्रादौ च वर्तुलं लेख्यं, त्रिकोणकं षट् कोणकं ॥२॥ वर्तुल चैव पश्चाश्च्चतुद्वारेण शोभितं ।। मध्ये क्रों लिखेद्धीमान् । कोणे क्लीं सदा बुधः ॥३॥ त्रिकोणे प्रणवं कृत्वा तद्वाहये च फुट उच्यते । चतुरि लिखे श्री धरणेन्द्र पद्मावती नमः ॥४॥ कों कारेण वेष्टयेत् रेखां वन्हिमानं च वाहुभिः । एवमेव कृते यन्त्रे । संवानीयं प्रयत्नतः ॥५॥ पीताम्बर धरो नित्यं पीत गंधानु लेपनं । ध्यायेत् पद्मावती देवी भक्ति मुक्ति वर प्रदां ॥६॥
प्रथमं कों बाहु क्षेत्रपाल संपूज्य यन्त्र पूजनमाचरेत् । ततो जापः । मन्त्र :-ॐ क्रों क्लीं ऐं श्रीं ह्रीं पद्म पद्मासने नमः ॥ लक्ष मेकं जपेन्मत्रं ।
होमयेत्पायसं घृतं ।। तावत्पात्रे घृत क्षीरं । अथवा द्रव्य विमिश्रितं होमयेद्वर्तुले कुडे । देवीनुवशगा भवेत् । दुग्धाहार यव भोज्यं निराहारश्च श्राद्धयो । एवमेव जपेन्मन्त्रं भूमिशायि नरः शुचिः । प्रत्यक्षो देवीमा विश्य, वरं दत्ता भवेन्तदा । त्रिगुणं सप्त रात्रि व । जपं कृत्वा प्रशांत धी। प्रथम दिवसे देवीं । कन्यकां दशवर्षकी । भैरवी भीम रूपा च । सावधाने जितेन्द्रियः॥
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लघु विद्यानुवाद
२१३
द्वितीय दिवसे शक्ति कन्यकां द्वादशाब्दिकां भैरवेण समायुक्तां भयं द्वष्ट्ठा च रौरवं । तृतीये दिवसे मायां वरं ब्रूहि मम प्रभो एवमेव प्रकारेण त्रिकालज्ञो भवेन्नरः ।
मन्त्र :- ॐ नमो ह्रां श्रीं ह्रीं ए े त्वं चक्र ेश्वरी चक्रधारिणी, शंख चक्र, गदाधारिणी मम स्वप्न दर्शनं कुरु २ स्वाहा ।
विधि - १०८ बार मौनेन शपयनीय जप्त स्वप्ने आदेश. सत्यः ॥
मन्त्र :- ॐ मुकं तापय २ शोषय २ भास्करी ह्रीं स्वाहा ।
विधि - प्रादित्य सम्मुखो भूत्वा, नामगृहित्वा, रात्रौ सहस्त्र मेक जपेत् सप्ताहे म्रियते, रवौ कर्त्तव्य | घोडा वच स्त्रीरणी दाए हाथ की चिटली अंगुली प्रमाण ततु दूध सू घिसिरित्वतर प्याइये पेट माहि रहे तो पुत्र होय, न रहे तो न होगा ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं नमो जिरणागं लोगुत्तमागं लोगनहारणं लोगहियाणं, लोग पाइवारणम्, लोग पज्जो प्रगराणं, मम शुभाशुभं दर्शय २ कर्ण पिशाचिनी स्वाहा ।
जाप्य १०८ संस्थार के मौनेनशयनीयम स्वप्ने श्रादेशः ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रर्ह सव्वजीवानां मत्तायां सव्वेंसिसत्तू गं प्रपराजिउ भवामि
स्वाहा ।
विधि :- श्वेत सरसप (सरसो) बार २१ मन्त्रि जल मध्ये क्षिप्यति तरति तदा जोवति, बूढति तदा मरति । रोगी आयुर्ज्ञानम् ॥
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू वस्त्रांचल वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि :- बार १०८ सध्याए मन्त्रि जे पछे बडी ( चादर ) सिरहाने दीजै प्रभाते नापिये बढे तो शुभ घटै तो अशुभ ।
मन्त्र : -- ॐ गजाननाय नमः ।
विधि :- जाप सहस्त्र घृत मधु एक ठाकर का टवका १०८ होमिये । वस्तु तौल सिरहाने दीजै । प्रभाते नापिये बढ़े तो मदी, घटे तो तेज होय ।
मन्त्र :- ॐ नमो वज्र स्वामिने सर्वार्थ लब्धि सम्पन्नाय स्नानं भोजनं, वस्त्रार्थः लाभं
देहि देहि स्वाहा ।
विधि - काकरा ७ वार २१ मन्त्रि क्षीर वृक्षहेठ मूकिये लाभ होय ।
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२१४
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :--ॐ ह्रीं श्री सूर्याय नमः।। विधि :-जल मन्त्रि नेत्र प्रक्षालिये नेत्र दूखता न रहे । मन्त्र :-ॐ विश्वावसु नाम गधर्व कन्या नामाधिपति सरुपा सलक्षान्त देहि मे
नमस्तस्मै विश्वावसवे स्वाहा ।। विधि -मन्त्र मणि ७ अजुलि जल दीजे ए मन्त्र स्मरण १००० जाप कीजै नित्य १०८ कीजै, १
मास अथवा ६ मास मे कन्या प्राप्त होय । मन्त्र - ॐ धूम-धूम् महा धू धू स्वाहा । विधि :-वार १०८ राख मन्त्र माखिये उ दरा (चहे) जाय । (सत्य) मन्त्र -ॐ ह्रां ह्रीं ह्रां ह्रह ह्रीं ह्र ह्रः॥ विधि -सात बेर काकरा मन्त्रि चार दिशिनाखिये (डाले) टीडी जाय । मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं ह्रह्रवद्-वद् वागेश्वरी स्वाहा ।। विधि -सरस्वती मन्त्र वार २१ जपिये श्वेत पाटा लिखि घोल प्यानै वाचा स्फुटा भवति । मन्त्र ---ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय महति महावीर्य पराक्रमाय सर्वसूल रोग
व्याधि विनाशनाय काल दृष्टि विष ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं ह्रः सर्वकल्याणकर दुष्ट हृदय पाषारण जीवन रक्षा कारक दारिद्र विध्वशक अस्माकम् मनोवा
छिकं (त) भवतु स्वाहा। विधि -इमा पार्श्वनाथाय सपादिका विद्या यक्ष कर्दमेन स्थाली लिखित्वा शुभौ दिने जाती पुष्प
१२००० जपैत । त्रिकोण कूडे जाप द्वादशाशेन समगगल गुटिका १२००० सिताघृत मिश्रित होमिये । तत्र प्रत्यक्षा भवति ।। द्रव्य ददाति, वार्ध दिन, प्रतिदिन १०८ वार
करिये सर्वकार्य सिद्धिकर हर्ष ददाति ।। मन्त्र -ॐ नमो भगवते (दो) वो सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खीरण महारण लब्धि मम
पारण्य २ पूरय पूरय ह्रीं भास्करी स्वाहा । विधि -जाप १२००० चावल अखण्ड दिवाली की रात जपिये। रोज १०८ जपिये भोजन अक्षाण
लब्धि मन सतोष शरीर सौख्य पालय मागल्य भवति । मन्त्र -ॐ नमो भगवते आदित्य रूपाय आगच्छ २ अमुकस्य अक्षिरोगं, प्रक्षिपीड़ा
नाशय स्वाहा। विधि -बार १४ आख पर जपिजे पीडा जाय।
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लघुविद्यानुवाद
२१५
मन्त्र :---ॐ नमो भगवते विश्व रूपाय कामाख्याय सर्व चितितं प्रदाय मम लक्ष्मी
प्राप्त कराय स्वाहा । विधि :-(इस मन्त्र की विधि नही है)। मन्त्र :-ॐ नमो अर्हते भगवते प्रक्षोरणाशेष-दोषाय दिव्य-तेजो-मूर्तये नमः श्री
शान्तिनाथाय शान्ति कराय सर्व विघ्न प्रणाशनाय, सर्वरोगापमृत्युविनाशनाय, सर्वपरकृतक्षुद्रोपद्रव नाशाय विनाशनाय सर्व क्षाम डामर विनाशनाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौ ह्रः अ सि आ उ सा देवदत्तस्य सर्व शान्ति कुरु २
स्वाहा। विधि :-अनेन मन्त्रेण वार ३ व ७ गधोदक पढि शिरसि निक्षियेत् । मन्त्र :--ॐ उच्चिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महा पिशाचिनी ह्रीं ठः ठः
स्वाहा। :-बार १०८ दिन पहले जीमने बैठता ग्रास १ बार ३ जप धरती मेलता पानी चलु ३ धरती
मेलता दुजै दिन ग्रास ३ जीमतॉ बीच झूठे मुह बार १०८ जप पानी चलु ३ मत्र पढि पीना। फिर भोजन करे दिन : इस प्रकार कर पीछे से पाखाने गैठता, बार १०८ जप
करना। पीछे दिन मशान ऊपर बैठ जप करना प्रत्यक्ष भवति । मन्त्र :-ॐ क्म्य , ॐ रम्य , ॐ त्म्य , ॐ म्म्यं , ॐ भव्य ,
ॐ ह म्यू, ॐ श्म्य, ॐ क्षम्य , ॐ रम्यं , ॐ रुम्ल्व्य । विधि .-ये मन्त्र अष्टगधेन लिख पूजा पूर्वक मस्तक पर रखे, लाभ हो जाये, जाप करे विधि पूर्वक
लक्ष्मी की प्राप्ति होय । मन्त्र :-ॐ नमो आदि योगिनी परम माया महादेवी शत्र, टालनी, दैत्य मारिनी मन
वांछित पूरणी, धन प्रान वृद्धि प्रान जस सौभाग्य प्रान आने तो प्रादि भैरवी तेरी आज्ञा न फुरै । गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो । ईश्वरो मन्त्र
वाचा। विधि -मन्त्र जपै निरन्तर १०८ बार विधिपूर्वक लक्ष्मी की प्राप्ति होय । सर्वकार्य सिद्ध होय।
वार २१-१०८ चोखा मन्त्रि जिस वस्तु मे राखै अक्षय होय । मन्त्र -ॐ नमो गोमय स्वामी भगवउ ऋद्धि समो अक्खीरण समो पारण २ भरि २
पुरि २ कुरु २ ठः ठः ठः स्वाहा ।
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२१६
लघु विद्यानुवाद
विधि :- मन्त्र जपै प्रातः काल शुद्ध होयकर लक्ष्मी प्राप्त होय । वार २१ - १०८ सुपारी, चावल, मन्त्रि जिस वस्तु मे घालै सो अक्षय होय । ये मन्त्र पढ दीप, घूप खेवै भोजन वस्तु भाडार अक्षय होय । उज्जवल वस्त्र के शुद्ध आदमी भीतर जायँ ।
1
मन्त्र :- ॐ श्रीं ह्रीं क्षीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ॐ नमः भगवऊ गोमय मस्स सिद्धस्स बुद्धस्स, श्रक्खीणस्स भास्वरी ह्रीं नमः स्वाहा ।
विधि :- मन्त्र नित्य प्रातः काले शुचिर्भूत्वा दीप-धूप विधानेन जपै लाभ होय । लक्ष्मी प्राप्त होय ।
मन्त्र :- ॐ नमो भगवते गौतम स्वामिने सर्व लब्धि सम्पन्नाय मम श्रभीष्ट सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा |
विधि :-वार १०८ प्रतिदिन जपिये । जय होय । कार्य सिद्धि होय ।
मन्त्र :- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रौं ह्रः ज्वां ज्वों ज्वालामालिनी चोर कंठं ग्रहण २ स्वाहा ।
विधि :- शनि रात्रि चौखा ( चावल ) धोय, वार २१ मन्त्रि कोरी हाडी माहि घालिये' (रवि प्रभाते गुहली देय वार २१ मन्त्रि चावल खवावै चोर के मुख लोहू पडै ।
मन्त्र :- ॐ चक्रेश्वरी चक्रवेगेन कट्टोरक भ्रामय २ चोरं गृहय २ स्वाहा ।
विधि :- कट्टोरक भमना पूर्व मन्त्र्य चोरमेव गृहरणाति कटोरा चलावन भस्मना पूर्व मन्त्र्य चोरमेव गृहणाति कटोरा चलावन मन्त्रम् ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्री हृ क्ली असि श्रा उ सा धुलु २ कुल २ सुलु २ प्रक्षयं में कुरु
कुरु स्वाहा ।
विधि :- पच परमेष्ठी मन्त्रोय त्रिभुवन स्वामिनी विद्या । अनेन लाभो भवति जप १०८ वार नित्य करे | गुरु श्राभ्नायेन सिद्धम् ।
ܘ
काक शकुन विचार
जिस समय अपने मकान की हद मे काक बोल उसी समय अपने पैरो से अपनी परछाई नाप ले जितने पैर हो उसमे ७ का भाग दे । शेषफल का शकुन इस प्रकार है । पहले पगले अमृत फल लावे, द्वितीय पगले मित्र घर आवै, तीसरे पगले मित्तर हान, चौथे पगले श्री ं कष्ट जान । पाचने पगले ( जीये न कोय ) सुख सम्पति ला, छठवे पगले निशान व जावे, सातवे पगले जीया न कोय । काक वचन नहीं झूठा
होय ।
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लघुविद्यानुवाद
२१७
जीवन मरण विचार प्रात्मदूत तथा रोगो त्रिगुण्य नामकाक्षर सप्त ह्रते समे मृत्यु विषमे जीवति ध्रुव ॥
इति ॥१॥
मन्त्र :-ॐ ह्रा ह्रीं ह्र ह्रौ ह्रः ॐ ह्रीं नमः कृष्ण वा ससे क्ष्मौ शत सहस्र लक्ष
कोटि सिह वाहने फ्रैं सहस्र वदने ह्रौ महाबले ह्रौ अपराजिते ह्रीं प्रत्यंगिरे हयौ पर सैन्य निर्णाशिनी ह्री पर कार्य कर्म विध्वंशनीयः पर मन्त्रोच्छेदिनि यः सर्व शत्रूच्चाटनीह्यौ सर्वभूत दमनि ठः सर्वदेवान् बंधय बंधय हुं फट् सर्व विघ्नान छेदय २ यः सर्वानर्थान निकृत्य २ क्षः पर्व दुष्टान् भक्षय २ ह्रीं ज्वाला जिह्वे ह्रौ कराल वक्त्रे ह्यः पर यंत्रान् स्फोटय २ ह्रीं वत्र शृखलान् त्रोटय २ असुर मुद्रां द्रावय २ रौद्र मूर्ते ॐ ह्रीं प्रत्यंगिरे मम्
मनश्चिति तं मंत्रार्थ कुरु २ स्वाहा । विधि .-अस्य स्मरणात् सर्वसिद्धि । मन्त्र .-ॐ नमो महेश्वराय उमापतये सर्व सिद्धाय नमो रे वार्चनाय यक्ष सेनाधिपते
इदं कार्य निवेदय तद्यथा कहि २ ठः २ । विधि :-एन मन्त्र वार १०८ क्षेत्रपाल्स्याग्रे पूजा पूर्व जपेत् । ततो वार २१ गुग्गलेनाभिमन्त्र्य
__ आत्मान धूपयित्वा सुप्यते स्वपने शुभाशुभ कथयति। मन्त्र -ॐ विधज्जिहे ज्वालामुखी ज्वालिनी ज्वल २ प्रज्वल २ धग २ धमां
धकारिकी देवी पुरक्षोभं कुरु कुरु मम मनश्चितितं मत्रार्थ करू करू
स्वाहा । विधि -अमु मन्त्र कर्पूर चन्दनादिभि स्थालादौ लिखित्वा श्वेत पुष्पाक्षतादि मोक्ष पर्व सहन
जाप्येन प्रथम पश्चात्नित्य स्मर्यमाणात्सिद्धि । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते पिशाच रुद्राय कुरु २ यः भंज २ हर २ दह २ पच पच
गृह्न २ माचिरं कुरु रुद्रो प्राज्ञां पयति स्वाहा ॥ विधि -अनेन मन्त्रेण वार १०८ गुग्गुल, हीग । हिगुल) सर्षप सर्पक चुलिका एकत्र मेलयित्वा
गर्भन्त्र्य धूपोदेय तत्क्षण शाकिन्यादि दुष्ट व्यतरादि गृहीत पात्र सद्यो विमुच्यते स्वस्थ भवति ।
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२१८
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र - ॐ इटि मिटि भस्मं करि स्वाहा । विधि :-अनेन बार १०८ जलमभिमन्त्र्य पाय्यते उदर व्यघोपशाम्यति । मन्त्र - ॐ ह्री सर्वे ग्रहाः सूर्यागारक बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनिश्चर, राहु,
केतु, सहिता सानुग्रहा मे भवन्तु । ॐ ह्री अ सि पा उ सा
स्वाहा । विधि -अस्या स्मृताया प्रतिकूला अपि गृहा अनुकूला भवन्ति । मन्त्र -ॐ रक्त रक्तावते हुं फट् स्वाहा । विधि -कुमारी सूत्रेण कटक कृत्वा रक्त कण वीर पुष्प १०८ जाप्य दत्वा कटौवधयेत् रक्त
प्रवाह नाशयति। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री धनधान्य करि महाविद्य अवतर २ मम गृहे धन धान्यं कुरू २
___ स्वाहा । विधि -वार ५०० अक्षताभिमत्र्य ऋयारणके क्षिप्यते क्रयो विक्रयो लाभश्च भवति । मन्त्र :-ॐ शुक्ले महाशुक्ले ह्री श्री क्षी अवतर २ स्वाहा । विधि व फल :-१००८ नाम पूर्व १०८ गुणिते स्वप्ने शुभाशुभ कथयति । मन्त्र :-ॐ नमोर्हते भगवते बहरूपिणी जम्भे मोहिनी स्तंभे स्तंभिनो ..
उरग वाहिनी मुकुट कुण्डल केयूर हारा भरण भूषिते . यक्षी लक्ष्मी पद्मावती त्रिनेत्रपाशांवश फलाभय वरद हस्ते मम प्रभ सिद्धि कुरु २ मम चितित कार्य कुरु २ ममोषध सिद्धि कुरु २ व
स्वाहा।
विधि -इस मन्त्र का त्रियोग शुद्ध कर श्रद्धापूर्वक जपने से सर्वकार्य सिद्ध होते है।
औषधियो की सिद्धि होती है। इस मन्त्र की सिद्धि पज्यपादाचार्य को थी, अरि इसक प्रभाव से देवी जी श्री पद्मावती माताजी ने पज्य पादाचार्य के पाव के तलवो म ६
औषधियो का लेप कर दिया था, उन औषधियो के प्रभाव से विदेह क्षत्र मे उन । का आकाश मार्ग से गमन हया था।
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लघुविद्यानुवाद
पुत्रोत्पत्ति के लिये मन्त्र
२१६
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रर्ह प्रसि श्राउला नमः ।
विधि :- सूर्योदय से १० मिनिट पूर्व उत्तर दिशा में, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम उर्ध्व, अधो दिशाओ मे क्रमश २१ - २१ बार जप करे । पुन १० माला फेरे, मध्यान्ह मे १० माला, साय काल
१० माला जपे । पुन स्वप्न आवेगा, तब निम्न प्रकार की दवाई देवे, मयूर पख की चाद २, शिवलिंगी का बीज १ ग्राम, दोनो को बारीक खरल करे, ३ ग्राम गुड़ मे मिलाकर रजोधर्म की शुद्धि होने पर खिलावे, पहले या दूसरे माह मे ही कार्य सिद्ध हो जायेगा ।
| अथ वृहद् शांतिमन्त्रः प्रारभ्यते ।
इस शाति मन्त्र को नियमपूर्वक पढने से अथवा शांति धारा करने से सर्व प्रकार के रोक शोक व्यतरादिक बाघाये एव सर्व कार्य सिद्ध करने वाला और सर्व उपद्रवो को शात करने वाला है. इसे नित्य ही स्मरण करना चाहिये ।
ॐ ह्री श्री क्ली ऐ अर्ह व महस त प व २ म २ हं२स २ त २ प २ झ २ झवी २ क्ष्वी २ द्वा २ द्वी २ द्रावय २ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ॐ ह्री को [ + देवदत्त नामधेयस्य ] पाप खण्ड २ हन २ दह २ पच २ पाचय २ कुट २ शीघ्र २ अर्ह स्वी क्ष्वी ह स झ व व्ह प ह क्षा क्षी क्षू क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्षी ह्रा ह्री ह्रह्र ह्रो ह्रौ द्रा द्री द्रावय द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ठ ठ ठ ठ [ × देवदत्त नामधेयस्य ] श्रीरस्तु । सिद्धिरस्तु । वृद्धिरस्तु । तुष्टि-रस्तु । पुष्टि-रस्तु । शान्ति रस्तु । कान्तिरस्तु । कल्याणमस्तु स्वाहा ॥
ॐ निखलभुवनभवनमगलीभूत जिनपतिसवनसमयसम्प्राप्ता । वरममिनवकर्पूरकालागुरुकु कुमहरिचदनाद्यनेकसुगन्धिबन्धुरगन्ध द्रव्यसम्भारसम्बन्ध बन्धुरम खिल दिगन्तरा-लव्याप्त-सौरभातिशयसमाकृष्टसमदसामजकपोलतल विगलित - - मदमुदितमधुकर - निकरात्परमेश्वर पवित्रतरगात्र स्पर्शनमात्रपवित्रिभूत-भगवदिदगन्धोदकधारा वर्षमशेप हर्ष निबन्धन भवतु [ देवदत्त नामधेयस्य ] शान्ति करोतु । कान्तिमाविष्करोतु । कल्याण प्रदु करोतु । सौभाग्य सन्तनोतु । श्रारोग्य मातनोतु ।
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लघुविद्यानुवाद
सम्पद सम्पादयतु । विपदमवसादयतु । यशोविकासयतु । मन प्रसादयतु । आयुर्दीधयतु । श्रिय श्लाघयतु । शुद्धि विशुद्धयतु । बुद्धि विवर्द्धयतु । श्रेय 'पुष्णातु । प्रत्यवाय मुष्णातु । अनभिमत निवारयतु । मनोरथ परिपूरयतु । परमोत्सवकारणमिद । परममगलमिद । परमपावनमिद । स्वस्त्यतु न । स्वस्त्यस्तु व । इवी क्ष्वी ह स. असिआउसा स्वाहा ।।
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते त्रैलोक्यनाथाय धातिकर्मविनाशनाय अष्टमहाप्रातिहार्यसहिताय चतुस्त्रिशदतिशयसमेताय । अनन्तदर्शनज्ञानवीर्यसुखात्मकाय । अष्टादशदोपरहिताय । पञ्चमहाकल्याणसम्पूर्णाय । नवकेवललब्धिसमन्विताय दशविशेपणसयु-क्ताय । देवाधिदेवाय । धर्मचक्राधीश्वराय । धर्मोपदेशनकराय। चमरवैरोचनाच्युतेन्द्र प्रभृतीन्द्रशतेन मेरूगिरिशिखरशेखरीभूतपाण्डुकशिलातलेन गन्धोदकपरिपूरितानेक --विचित्रमणिमय - मगलकलशैरभिषिक्त - मिदानीमहत्रेलोक्येश्वरमहत्परमेष्ठिनमभिषेचयामि ह भ इवी क्ष्वी ह स द्रा द्री ऐ अर्ह ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री द्रावय २ स्वाहा ।।
(यहा जिस २ भगवान के नाम के साथ
जो जो द्रव्य का नाम है उन्हे चढाता जावे) ॐ ह्री शीतोदकप्रदानेन शीतलो भगवान् प्रसीदतु व । शीता प्राप. पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥१।। गन्धोदकप्रदानेन अभिनन्दनो भगवान् प्रसीदतु । गन्धा पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥२।। अक्षतोदक प्रदानेन अनतो भगवान् प्रसीदतु अक्षत पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥३॥ पुष्पोदकप्रदानेन पुष्पदन्तो भगवान् प्रसीदतु । पुष्पाणि पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥४॥ नैवेद्यप्रदानेन नेमिनाथो भगवान् प्रसीदतु । पोयूपपिण्ड पान्तु । शिवमागल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥५॥ दीपप्रदानेन चन्द्रप्रभो भगवान् प्रसीदतु । कर्पूरमाणिक्यापा पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥६॥ धूपप्रदानेन धर्मनाथो भगवान् प्रसीदतु । गुग्गुलाब शाङ्गधूपा पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व ॥७॥ फलप्रदानेन पार्श्वनाथो भगवान प्रताप क्रमुक-नारिग-प्रभृतिफलानि पान्तु । शिवमाङ्गल्यन्तु श्रीमदस्तु व. ॥ ८॥ अहन्त र व । सद्धर्म श्रोबलायुरारोग्यश्रर्याभिवृद्धिरस्तु व । सिद्धा पान्तु वः । हृदयनिर्वाण प्रयच्छन्तु व ।। आचार्या पान्तु व । शीतल सौगन्ध्यमस्तु व ।। उपाध्याया पान्तु व । सौमनस्य चास्तु व ।। सर्वसाधव पान्तु व । अन्नदानतपोवीर्य विज्ञान मस्तु व ।। (यहा २४ बार पुष्प चढावे)
ॐ वृपभस्वामिन श्री पादपद्मप्रसादात् अष्टविधकर्म विनाशन चास्तु व ॥ १॥ श्रीमद जितस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादादजेयशक्तिर्भवत व ॥२॥ शम्भवस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसाद
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लघुविद्यानुवाद
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दनेकगुणगणाश्चास्तु व ॥३॥ अभिनन्दनस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादादभिमतफल प्रयच्छन्तु वः ॥ ४ ॥ सुमतिस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादादमृत पवित्र प्रयच्छन्तु व ।। ५॥ पद्मप्रभस्वामिनः श्रीपादपद्मप्रसादाद्दया प्रयच्छन्तु व ॥६॥ सुपार्श्व स्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात् कर्मक्षयश्चास्तु व ॥७॥ श्रीचद्रप्रभस्वामिन श्रीपादपद्म प्रसादाश्चन्द्रार्कतेजोऽस्तु व ॥ ८ ।। पुष्पदतस्वामिनः श्रीपादपद्मप्रसादात् पुष्प सायकातिशयोऽस्तु व ॥ ॥ शीतलस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादादशुभकर्ममलप्रक्षालनमस्तु व ॥१०॥ श्रेयासजिनस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात् श्रेयस्करोऽस्तु व ॥ ११॥ वासुपूज्यस्वामिन श्रीपादपद्मसादाद्रत्नत्रयावासकरोऽस्तु व ॥ १२ ।। विमलस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात् सद्धर्मवृद्धिर्वै माङ्गल्य चास्तु व ।। १३ ॥ अनन्तनाथस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादादनेकधनधान्याभिवृद्धिरक्षणमस्तु व ॥ १४ ॥ धर्मनाथस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात् शर्मप्रचयोऽस्तु वः ॥ १५ ॥ श्रीमदर्हत्परमेश्वरसर्वज्ञपरमेष्ठिशान्तिनाथ स्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात् शान्तिकरोऽस्तु व ॥ १६ ।। कुन्थनाथस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात्त त्राभिवृद्धिकरोऽस्तु व ॥ १७ ॥ अरजिन स्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात्परमकल्याणपरम्पराऽस्तुव ॥ १८॥ मल्लिनाथस्वामिन श्रीप्रादपद्मप्रसादाच्छल्यविमोचनकरोऽस्तु व ॥ १६ ।। मुनिसुब्रतस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात्सम्यग्दर्शन चास्तु व ॥ २०॥ नमिनाथस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादा'त्सम्यग्ज्ञान चास्तु व ॥२१॥ अरिष्टनेमिस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात् अक्षय चारित्र ददातु व ॥ २२ ।। श्रीमत्पार्श्व भट्टारकस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात्सर्वविघ्नविनाशनमस्तु व ॥ २३ ॥ श्रीवर्धमानस्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात्सम्यग्दर्शनाद्यष्टगुण विशिष्ट चास्तु व ।। २४ ॥
श्रीमद्भगवदर्हत्सर्वज्ञ परमेष्ठी-परम-पवित्र-शातिभट्टारक स्वामिन श्रीपादपद्मप्रसादात्सद्धर्म श्रीबलायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिरस्तु । वषभादयो महति महावीर वर्धमान पर्यन्त परम तीर्थकरदेवाश्चतुर्विशतिर्हन्तो भगवन्त सर्वज्ञा सर्वदशिन सम्भिन्नतमस्का वीतरागद्वेषमोहास्रिलोकनाथा स्रिलोकमहिता स्रिलोकप्रद्योतनकरा जातिजरामरणविप्रमुक्ता सकल भव्यजनसमूहकमलवनसम्बोधनकरा । देवाधिदेवा । अनेकगुणगणशतसहस्रालडकृतदिव्यदेहधरा । पञ्चमहाकल्याणाष्टमहाप्रातिहार्यचतुस्त्रिशदतिशयविशेषसम्प्राप्ता इन्द्रचक्रधरबलदेववासुदेवप्रभृतिदिव्यसमानभव्यवर पुण्डरीकपरमपुरुषमुकुटतटनिबिडनिबद्धमरिणगणकर निकरवारिधाराभिषिक्तचारुचरण कमलयुगला । स्वशिष्य पर शिष्यवर्गा प्रसोदन्तु व ॥ परममाङ्गल्यनामधेयाः। सद्धर्मकार्येष्विहामुत्र च सिद्धा सिद्धि प्रयच्छन्तु व ।।
___ॐ नृपातिशतसहस्रलड् कृतसार्वभौमराजाधिराज परमेश्वरबलदेववासुदेवमण्डलीक महामण्डली कमहामात्यसेनानाथराजश्रेष्ठिपुरोहिताधीशकराञ्जलिनमितकर कुड्मलमुकुलाल
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लघुविद्यानुवाद
कृतपादपद्माः । कुलिशनालरजत मृणाल मन्दारकरिणकारातिकुल गिरिशिखरशेखरगगन मन्दाकिनी - महाहृदनदनदीशतसहस्रदलकमलवासिन्यादि सर्वाभरणभूषिताङ् गसकलसुन्दरीवृन्दवन्दित- चारुचरणकमलयुगला. ।।' श्रमौषधय । क्ष्वेलीषधय जल्लोषधाय विप्र षोषधय । सर्वोषधयश्च व प्रीयन्ताम् २ || मतिस्मृति सज्ञाचिन्ताभिनिबोधज्ञानिनश्च व प्रीयन्ताम् २ ।।
ॐ ह्री अर्ह मोजणारण हा ह्री ह हो ह्र असि ग्राउसा ग्रप्रति चक्रे फट् विचक्राय झ झौ स्वाहा ॐ ह्री अर्ह णमो प्रोहि जिरणारण सिरो रोग विनाशन कुरू २ ॐ ह्री ग्रह रामो परमोहि जिरणाण नासिका रोग विनाशन कुरू २ॐ ह्री ग्रर्ह णमो सव्वोहि जिरणाण प्रक्षिरोग विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो प्रणतोहि जिरणारण कर्ण रोग विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह मो कुट्ठ बुद्धीणममात्मनि विवेकज्ञान कुरू २ शुल उदर गड गुमड विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो बीज बुद्धीण मम सर्व ज्ञान कुरू २ श्वास हेडकी रोग विनाशन कुरू २ ॐ ह्री श्रर्ह णमो पादाणु सारीण परस्पर विरोध विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो सभिन्न सौदराण श्वास कास रोग विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमोसय बुद्धिण कवित्व पाडित्व च कुरू २ ॐ ह्री अर्ह म पत्ते बुद्धि प्रतिवादी विद्या विनाशन कुरू २ ॐ ह्री श्रर्ह णमो बोहिय बुद्धिरण अन्य गृहीत श्रुत ज्ञान कुरू २ॐ ह्री वर्ह णमो ऋजुमदीण बहुश्रुत ज्ञान कुरू २ ॐ ह्री अर्ह रामो विउल मदीण सर्व शाति कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो दश पुव्वीरण सर्व वेदिनो भवतु ॐ ह्री अर्ह गमो चउ दस पुत्रीण स्व समय परसमय वेदिनो भवतु ॐ ह्री अर्ह णमो अट्ठाङ्ग महारिणमित कुसलारग जीवित मरणादि ज्ञान कुरू २ ॐ ह्री
मो विपित्तारण कामित वस्तु प्राप्ति र्भवतु ॐ ह्री श्रर्ह णमो विज्जा हराग उपदेश प्रदेश मात्र ज्ञान कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो चारणार नष्ट पदार्थ चिता ज्ञान कुरू २ ॐ ह्री अर्हगमोपण्ण समरणारण आयुष्यावसान ज्ञान कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो आगासगामीण अतरिक्ष गमन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो प्रसीविसाण विद्वेष प्रति हत भवतु ॐ ह्री अर्ह गमो दिट्ठि विसाण स्थावर जगम कृत विघ्न विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो उग्ग तवाण वचस्तम्भरण कुरू २ ॐ ह्री
मो दित्त तवाण सेना स्तम्भन कुरू २ॐ ह्री ग्रह णमो तत्तवारण अग्नि स्तम्भन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो महा तवाण जलस्तम्भन कुरू २ ॐ ह्री ग्रर्ह णमो घोर तवाण विषरोगादि विनाशन कुरू २ ॐ ह्री श्री रामो घोर गुरणारण दुष्ट मृगादि भय विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह णमो घोर गुरण पर क्कमाण लता गर्भादि भय विनाशन कुरू २ ॐ ह्री श्रर्ह णमो घोर गुण वम्भ चारण भूतप्र ेता दिभय विनासन भवतु ॐ ह्री अर्ह णमो विपो सहि पत्ताण जन्मान्तर देव वंर विनाशन कुरू २ ॐ ह्री अर्ह गमो खिल्लो सहिपत्ताण सर्वाप मृत्यु विनाशन करू
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लघुविद्यानुवाद
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ॐ ह्री अर्ह णमो जल्लोसहिपत्ताण अपस्मार रोग विनाशन कुरु २ ॐ ह्री ग्रह रामो विप्पोसहि पत्ताणगजमारि विनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह णमो सव्वोसहि पत्ताण मनुष्य मरोप सर्ग विनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह मो मरण वल्लीण गो अश्व मारि विनाशन कुरु २ ॐ ह्री ह णमो वच वल्लीण अजमारि विनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह णमो काय वल्लोण महिष गोमारि विनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह रामो खीर सवीण सर्प भय विनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह णमो सप्पिसवीरण युद्ध भय विध्वसक कुरु २ॐ ह्री अर्ह णमो अक्खीण महारण सारण कुष्ट गड मालादिविनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह णमो महुर सवीरण मम् सर्व सोख्य कुरु २ ॐ ह्री अर्ह णमो अमीय सवीणं मम् सर्व राज भय विनाशन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह णमो वड्ढमारणारण बधन विमोचन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह गमो वढ्ढ मारणारण अस्त्र शस्त्रादि शक्ति निरोधन कुरु २ ॐ ह्री अर्ह मोसव्व साहू सिद्धि कुरु २ ।।
व
httबुद्धिबुद्धिपदानुसारिवुद्धिसम्भिन्नश्रोत्रश्रवणाश्च वः प्रीयन्ताम् २ ॥ जलचाररणजङ्घाचारणतन्तुचा रणभूमिचारणश्रेणिचारणचतुरङ्ग लचाररणश्राकाशचारणाश्च प्रीयन्ताम् २ || मनोबलिवचोबलिकाय बलिनश्च व: प्रीयन्ताम् २ ॥ तपो महातपो घोरतपोऽनुतपोमहोगतपश्च व प्रीयन्ताम् २ ॥
केवलज्ञानिनश्च
उग्रतपदीप्तगुमतिश्रुत्तावधिमन:पर्यय
व: प्रीयन्ताम् 11
व.- प्रीयव
व प्रीयन्ताम् ।। यमवरुण कुबेरवासवाश्च अनन्तवासुकीतक्षककर्कोटकपद्म महापद्मशखपाल कुलिशजय विजयादिमहोरगाश्च न्ताम् 11 इद्राग्नियमनैर्ऋ' तवरुणवायुकुबेर ईशानधरणेन्द्र सोमाश्वेतिदशदिक्पालकाश्च प्रीयन्ताम् २ ॥ सुरसुरोरगेन्द्रचमरचारण सिद्धविद्याधर किन्नर किम्पुरुषगरुडगन्धर्वयक्षराक्षसभूत पिशाचाश्च व प्रीयन्ताम् २ ।। बुधशुक्रबृहस्पत्यर्केन्दुशनैश्वराङ्गारकराहुकेतु तारकादिमहाज्योतिष्कदेवाश्च व प्रीयन्ताम् २ ।। चमरवैरोचनधरणानन्दभूतानन्द धापूर्ण शिष्ठ जलकान्तजल- प्रभुघोषमहाघोषहरिषेणहरिकान्तश्रमितगतिश्रमितवाहन वेलाञ्जनप्रभञ्जन अग्निशिखग्निवाहनाश्चेति विशतिभवनेन्द्राश्च प्रीयन्ताम् २ || गीतरति गीतकान्तसत्पुरुष महापुरुष सुरूप प्रतिघोषपूर्णभद्रमणिभद्र चूल महाचूलभीम महाभीमकालमहाकालाश्चेति षोडशव्यन्तरेन्द्राश्व व प्रीयन्ताम् २॥ नाभिराजजितशत्रु दृढ राजस्वयवरमेघराजधरणरा जमु प्रतिष्ठ महासेन सुग्रीवदृढरथ विष्णु राजवसुपूज्यकृतवर्मसिहसेनभानुराज विश्वसेन सुदर्शन कुम्भराजसुमित्रा विजय महाराजसमुद्रविजय विश्वसेन सिद्धार्थाश्चेतिजिनजनकाश्च व प्रीयन्ताम् २ ॥ मरुदेवी विजया सुषेणा सिद्धार्थासुमङ्गलासुसोमापृथ्वीलक्ष्मणाजय रामासुनन्दाविपुलानन्दाजयावतीश्रार्यश्यामालक्ष्मीमतिसुप्रभाऐरादेवी
व
पुष्प
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लघुविद्यानुवाद
श्रीकातामित्रसेनाप्रभावती सोमावपिलाशिवदेवीब्राह्मी प्रियकारिण्यश्चेति जिनमातृकाश्च व प्रीयन्ताम् २॥ गोमुखमहायक्षत्रिमुखयक्षेश्वरतुम्बरुकुसुमवरनन्दिविजयअजितब्रह्म ईश्वरकुमारषण्मुख पाताल किन्नरकिम्पुरुपगरुडगन्धर्वमहेन्द्रकुबेरवरुण विद्युत्प्रभसहिधरणेन्द्रमातङ्गनामश्चेतिचतुर्विशतियक्षाश्च व. प्रीयन्ताम् २ ॥ चक्रेश्वरीरोहिणोप्रज्ञप्तिवज्रश कलापुरुषदत्तामनोवेगाकालीज्वालामालिनीमहाकालीमानवीगौरीगान्धारीवैरोटीअनन्तमतिमानसीमहामानसीजयाविजयाअपराजिताबहुरूपिणीचामुण्डीकुष्माण्डीपद्मावतीसिद्धायिन्यश्चेति चतुविशतिजिनशासनदेवताश्च व प्रीयन्ताम् २॥ कुलगिरिशिखरशेखरीभूतमहाह्रदादिसरोवरमध्यस्थितसहस्रदलकमलवासिन्योमानिन्य सकलसुन्दरीवृन्द वन्दितपादकमलाश्च देव्यो वः प्रीयन्ताम् २॥ यक्षवेश्वनरराक्षसनवतपन्नगअसुर सुकुमारपितृविश्वमालिनीचमरवैरोचनमहाविद्यमारविश्वेश्वरपिण्डासनाश्चेति पञ्चदशतिथिदेवताश्च व प्रीयन्ताम् २॥ हिट्ठिमहिट्ठिम हिटिममज्झम हिट्ठिमोपरिम मज्झमहिटिम मज्झम मज्झम मज्झमोपरिम उपरिमहिटिम उपरिममझम उपरिमोपरिमाश्चेति नव वेयकवासिनोऽहमिन्द्रदेवाश्च व प्रीयन्ताम् २॥ अर्चअर्चमालिनीवैरोचनसोमसोमरूपाङ्क स्फटिकादित्यादि नवानुदिशवासिनश्च व प्रीयन्ताम् २ ॥ विजयवैजयन्तजयन्तअपराजितसर्वार्थसिद्धिनामधेयपञ्चानुत्तरविमानविकल्पानेक विविधगुणसम्पूर्णाष्टगुणसयुक्ता सकलसिद्धसमहाश्च व. प्रीयन्ताम २॥ सर्वकालमपि [ + देवदत्त नामधेयस्य ] सम्पत्तिरस्तु । सिद्धिरस्तु। वद्धिरस्तु । तुष्टि रस्तु । पुष्टिरस्तु । शान्तिरस्तु । कान्तिरस्तु । कल्याणमस्तु । सम्पदस्तु । मन समाधिरस्तु । श्रेयोऽभिवृद्धिरस्तु । शाम्यन्तु घोराणि । शाम्यन्तु पापानि । पुण्य वर्धताम् । धर्मों वर्धताम् । आयुर्वर्धताम् । श्रीवर्धताम् । कुल गोत्र चाभिवर्धताम् । स्वस्ति भंद्र चास्तु व । ततो भूयो भूय श्रेयसे ।। ॐ ह्री झ्वी ध्वी ह स स्वस्त्यस्तु व । स्वस्त्यस्तु मे स्वाहा । ॐ पुण्याह २ प्रीयन्ताम् २। भगवन्तोऽर्हन्त सर्वज्ञः सर्वदशिनः सकलवीयो सकलसुखास्रिलोकप्रद्योत नकरा जातिजरामरण विप्रमुक्ता सर्वविदश्च ॐ श्रीह्री-धृतिकीतिबुद्धि लक्ष्म्यश्च व प्रीयन्ताम् २॥ ॐ वष-भादिवर्धमानान्ता शान्तिकरा सकलकमरिपुकान्तार-दुर्गविषमेषु रक्षन्तु मे जिनेन्द्रा । आदित्यसोमाङ्गारक-बुधबृहस्पतिशुक्रशनैश्चरराहु केतुनामनवग्रहाश्च व प्रीयन्ताम् २ ॥ तिथिकरण नक्षत्रवार मुहूर्तलग्नदेवाश्च इहान्यत्र ग्रामनगराधिदेवताश्च ते सर्वे गुरुभक्ता अक्षीणकोशकोष्ठगारा भवेयुनितपोवीर्यधर्मानुष्ठानादि नित्यमेवास्तु । मातृपितृभ्रातृपुत्रपौत्रकलत्र गुरुसुहृत्स्वजनसम्बधि बन्धुवर्गसहितस्यास्य यजमानस्य [. + देवदत्त नामधेयस्य] धनधान्यैश्वर्यद्यतिबलयश कीतिबुद्धिवर्धन भवतु सामोदप्रमोदो भवतु । शान्तिर्भवतु कान्तिर्भवतु । तुष्टिर्भवत । पुष्टिर्भवतु । सिद्धिर्भवतु । वृद्धिभवतु ।
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लघुविद्यानुवाद
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अविघ्नमस्तु । आरोग्यमस्तु । आयुष्यामस्तु । शुभकर्मास्तु । कर्मसिद्धिरस्तु । शास्त्रसमृद्धि रस्तु इष्टसपदतु । अरिष्टनिरसनमस्तु । धनधान्यसमृद्धिरस्तु । काममाङ्गल्योल्सवा सन्तु । शाम्यन्तु पापानि, पुण्य वर्धताम् ! धर्मो वर्धताम् । श्रीवर्धताम् । आयुर्वर्धताम् । कुल गोत्र चाभिवर्धताम् । स्वस्ति भद्र चास्तु व । स्वस्ति भद्र चास्तु न । झ्वी क्ष्वी ह स स्वस्त्यस्त ते स्वस्त्यस्तु मेस्वाहा ।।
ॐ नमो ऽहते भगवते श्रीमते श्रीमत्पावतीर्थङ्कराय श्रीमद्रत्नत्रयालकृताय दिव्यतेजोमूर्तये नम प्रभामण्डलमण्डिताय द्वादशगणपरिवेष्टिताय शुक्लध्यानपवित्राय सर्वज्ञाय स्वयम्भुने सिद्धाय बुद्धाय परमात्मने परमसुखाय त्रैलोक्यहिताय । अनन्तससारचक्रपरिमर्दनाय । अनन्तज्ञानाय । अनन्तदर्शनाय । अनन्तवीर्याय । अनन्तसुखाय । सिद्धाय बुद्धाय । त्रैलोक्यवशकराय । सत्यज्ञानाय । सत्यब्रह्मणे । धरणेन्द्रफणामण्डलमण्डिताय । उपसर्गविनाशनाय । घातिकर्मक्षयकराय । अजराय । अमराय । अपवाय । ( देवदत्त नामधेयस्य ) मृत्यु छिदि २ भिदि २ ।। हन्तुकाम छिदि २ भिदि २ । रतिकाम छिदि २ भिदि २ ॥ बलिकाम छिदि २ भिदि २ ॥ काध छिदि २ भिदि २ ॥ पाप छिदि २ भिदि २ ।। वैर छिदि २ भिदि २ ॥ वायुधारण छिदि २ भिदि २ ॥ अग्निभय छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व शत्रुभय छिदि २ भिदि २ । सर्वोपसर्ग छिदि २ भिदि २॥ सर्व विघ्न छिदि २ भिदो २ ।। मर्व भय छिदि २ भिदि २ ।। सर्व राज भय छिदि २ भिदि २॥ सर्व चोर भय छिदि २ भिदि २ ।। सर्व दुष्ट भय छिदि छिदि भिदि २ ।। सर्व सर्प भय छिदि २ भिदि २॥ सर्व वृश्चिक भय छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व ग्रहभय छिदि २ भिदि २॥ सर्व दोष छिदि २ भिदि २ । सर्व व्याधि छिदि २ भिदि २॥ सर्व क्षाम डामर छिदि २ भिदि २ ॥ सर्न परमत्र छिदि २ भिदि २ ।। सर्वात्मघात छिदि २ भिदि २ ।। सर्न परघात छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व कुक्षि रोग छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व शूलरोग छिदि २ भिदि २ ॥ सर्वाक्षिरोग छिदि २ भिदि २॥ सर्व शिरोरोग छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व कुष्ट रोग छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व ज्वररोग छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व नरमारि छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व गजमारि छिदि २ भिदि २ ।। सर्वाश्वमारि छिदि २ भिदि २ । सर्व गोमारि छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व महिषमारि छिदि २ भिदि २ ।। सर्वाजमारि छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व सस्यमारि छिदि २ भिदि २॥ सर्व धान्यमारि छिदि २ भिदि २॥ सर्व वक्षमारि लिन भिदि २ ॥ सर्व गुल्ममारि छिदि २ भिदि २ । सर्व लतामारि २ छिदि भिदि २ ।। सर्वपत्रमारि छिदि २ भिदि २ ।। सर्ग पुष्पमारि छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व फलमारि छिदि २
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लघुविद्यानुवाद
भिदि २ ॥ सर्न राष्ट्रमारि छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व देशमारि छिदि २ भिदि २॥ सर्व विपमारि छिदि २ भिदि २ । सर्व क्रू ररोगवेतालशाकिनीडाकिनीभयं छिदि २ भिदि २ सर्व वेदनीय छिदि २ भिदि २ ।। सर्व मोहनीय छिदि २ भिदि २ ।। सर्वापस्मार छिदि २ भिदि २ ॥ सर्व दुर्भग छिदि २ भिदि २॥
ॐ सुदर्शन महाराज चक्र विक्रय तेजो बलशौर्य वीय वश कुरु २ सर्व जनानन्द कुरु २। सर्व जीवानन्द कुरु १ । सर्व राजानन्द कुरू २ । सर्व भव्यानन्द कुरु २ । सर्व गोकुलानन्द कुरु २ । सर्व ग्राम नगर खेट खर्वट मटम्ब पत्तन द्रोणमुख जनानन्द कुरु २ । सर्व लोक सर्व देश सर्व सत्त्व वश कुरु २ । सर्वानन्द कुरु २। सर्वपाप हन २ दह २ पच २ पाचय २ कुट २ शीघ्र २ । सर्व वश मानय हू फट् स्वाहा
यत्सुख त्रिषु लोकेषु व्याधिय॑सन वर्जित । अभय क्षेम मारोग्य स्वस्तिरस्तु विधीयते । श्री शातिरस्तु शिवमस्तु जयोस्तु नित्यमारोग्यमस्तु तव दृष्टिसुपुष्टिरस्तु कल्याणमस्तु सुखमस्त्वभि वृद्धिरस्तु दीर्घायुरस्तु कुलगोत्रधन धान्यम् सदास्तु ।।
॥ इति । इस वृहत् शान्ति मन्त्र का उच्चारण करते हुए मन्त्र साधक जिनेन्द्र प्रभु पर जल धारा अवश्य करे । तब मन्त्र साधन करने में किसी प्रकार का भय उत्पन्न नहीं होगा।
पदमावती प्राह वानन मत्रः ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते श्रीमत् पार्श्वचन्द्राय त्रैलोक्य विजयालकृताय, सुवर्ण वर्ण धरणेन्द्र नमस्कृताय नीलवर्णाय, कर्मकान्तारोन्मूलन मत्त-मत्तङ्गजाय, ससारोतीय, प्राप्त परमानन्दाय, तत्पादारविन्द सेवा हे वाक चचरीकोप मे मानव देव-दानव विनम्र मौलि मुकुट मण्डली मयूख मजरी रजिनानोपीठे सेवक जन वाच्छितार्थ पूरणाधरीकृतकचिन्तामणि काम धेनु कल्प लते विकएज्जपाकुसुमोदितार्क पद्मरागारुण देह प्रभाभासुरीकृत समस्ताकाशादिक चक्रवाल लीला निर्दलित रौद्र दारिद्रोपद्रवे शरणागत त्राणकारिणी, दैत्योपमर्ग निवारिणी भूत-प्रेत-पिशाच-यक्ष राक्षसाकाश जल, स्थल देवता, दोप निणोशिनी मात मुग्दल चेटकोग्र ग्रहण गाकिनी योगिनी वृन्द वेताल रेवती पीडा प्रमदित परविद्या मन्त्र यन्त्रोच्छेदिनी पर सैन्य विध्वसिनी स्थावर जगम विष सहारिणीसिंह शार्दूलव्याघ्रोरग प्रमुख दुप्टसत्व भयापहारिणि कास-श्वास, ज्वर भगन्दर श्लेष्मवातपित्त कडूकामल क्षयो दुम्बर
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लघुविद्यानुवाद
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प्रसूति प्रमुख रोग विध्वसिनो चोरानल जन राजग्रहविच्छेदिनी एकाहिक द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिक भौतिक वातिक सान्निपातिक पैत्तिक ज्वरोच्चा टिनी त्रिभुवन जन मोहिनी भगवती श्री पद्मावती महादेवी एहि एहि आगच्छ आगच्छ प्रसाद कुरु कुरु ( वषट् ) सर्व कर्म करी (वषट्)।
इस आह्वानन मन्त्र का स्मरण जब करे, जहा देवीजी को आकर्षण करना हो।
पद्मावती माला मन्त्र लघु ___ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ह्री पद्मावती सहिताय धरणोरगेन्द्र नमस्कृताय सर्वोपद्रव विनाशनाय, परविद्याच्छेदनाय, परमन्त्र प्रणाशनाय सर्व दोष निर्दलनाय आकाशान बधय-२ पातालान् बधय-२ देयान् बधय-२ चाण्डाल ग्रहान् बधय-२ भगवन् क्षेत्र पालग्राम बधय-२ डाकिनी बत्रय-२ लाकिनी बधय-२ जाकिनो बधय-२ ग्रहोत मुक्तकाम बंधय-२ दिव्य योगिनी बधय-२ वज्र योगिनी बधय-२ खेचरी बधय-२ भूचरीम् बधय-२ नागान् बधय-२ वर्ण राक्षसान् बधय-२ जोटिगान् बधय-२ मुग्दल ग्रहान् बधय-२ व्यन्तर ग्रहान बधय-२ आकाश देवी बधय-२ जल देवी बधय-२ स्थल देवी बधय-२ गोत्र देवी बधय-२ एकाहिक द्वयाहिक-त्र्याहिक चातुर्थिक नित्य ज्वर रात्रि ज्वर सर्व ज्वर मध्यान्ह ज्वर वेला ज्वर वातिक-पैतिक श्लेष्मिक-सान्निपातिक - सर्व दोप देव कृत-मानव कृत यत्रकृत कार्मण उच्छेदय-२ विस्फोटय-२ सर्व दोषान् सर्व भूतान् हन - हन दह - दह पच-पच भस्मी कुरु कुरु स्वाहा धे धे।
ॐ ह्री पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय ठम्यू क्ष्मा क्ष्मी क्ष्मू क्ष्मौ क्ष्य क्षमः कलिकण्ड दण्ड स्वामिन्नतुल बलवीर्य पराक्रम मम शाकिन्यादि भयोपशमन करु २ आत्म विद्या रक्ष २पर विद्या छिदि २ भिदि २ ह फट् स्वाहा । विधि -इस मन्त्र का साढे बारह हजार विधि से जप करे, दसास होम करे तो सर्व प्रकार के उपद्रव शात होते है।
पद्मावती माला मन्त्रः (वृहत्)
ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय धरणेन्द्र सहिताय पद्मावती सहिताय सर्न लोक हृदयानन्द कारिणी भृगी देवी सर्व सिद्धि विद्या विधायिनो कालिका सर्व विद्या मन्त्र यन्त्र मुद्रा स्फटिनिकरालि सर्व पर द्रव्ययोग चर्ण मथिनि सर्वविप प्रमदिनि देवि । अजितायाः स्वकत विद्या
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२२८
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र तत्र योग चूर्ण रक्षिणि जृम्भे पर सैन्य मर्दिनि नोमोदानन्द दायिनि सर्व रोग नाशिनि सकल त्रिभुवानन्द कारिणि भृगी देवि सर्वसिद्ध विद्या विधायिनि महामोहिनी त्रैलोक्य सहार कारिणि चामण्डि ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्वग्रह निवारिणी फट २ कम्प २ शीघ्र चालय २ वाह चालय २ गात्र चालय २ पाद चालय २ सर्वाङ्ग चालय २ लोलय २ धुनु २ कम्प र कम्पय २ सर्व दुष्टान विनाशय २ सर्व रोगान विनाशय २ जये, विजये, अजिते, अपराजिते, जम्भे मोहे स्तम्भे, स्तम्भिनि, अजिते ह्री २ हन २ दह २ पच २ पाचय २ चल २ चालय २ अाकर्षय २ प्राकम्प २ विकम्पय २ भव्य क्षा क्षी हूं क्षौ क्ष. हू फट फट फट निग्रह ताडय २ क्म्यं स्रा स्री ह. क्री क्ष क्षौ क्ष क्ष ह २ स २ ध २ स २ भव्य ह २ धर २ कर २ ह फट फट फट ॐ शख मुद्रया धर २ रम्यं पुर हू फट कठोर मुद्रया मारय २ ग्राहय २ दम्व्यू हर हर स्वस्तिक मुद्राताडय २। व्यं पर २ प्रज्वल २ प्रज्वालय २ धग २ धूमान्धकारिणि रा रा प्रा प्रा क्ली ह २ व २ आ नद्यावर्त मुद्रया त्रासय २। दम्व्यं शख चक्र मुद्रया छिदि २ भिदि २ ग्म्ल्यू , ग त्रिशूल मुद्रया छेदय २ भेदय २ व्यं ध चन्द्र मुद्रया नाशय २ ठम्यूँ मुशल मुद्रया ताडय २ पर विद्या छेदय २ पर मन्त्र भेदय २ म्यं धम २ वन्धय २ भेदय २ हलमुद्रया प २ व २ य कुरु २ म्य॒ ब्रा ब्री व ब्रौन समूद्र मज्जय २
म्यं छा छी छौ छ् अत्राणि छेदय छेदय पर सैन्यमुच्चाटय २ पर रक्षा क्ष क्ष क्ष' हू २ फट फट पर सैन्य विध्वसय २ मारय मारय दारय दारय विदारय २ गति स्तम्भय २ भ्यं भ्रा भ्री भ्र भ्रौ भ्र श्रवय २ श्रावय २। टम्व्यं य प्रषय २ प छेदय २ दृपय २ विद्वेषय २ म्ल्व्यू स्रा स्त्री स्र स्रौ ल. श्रावय २ । मम रक्षा. रक्ष २ पर मन्त्र क्षोभय २ छेद २ छेदय २ भेद २ भेदय २ सर्व यन्त्र स्फोटय २ म म म्म्व्यू म्रा म्री म्र म्रौ न जम्भय २ स्तम्भय २ दु खय २ दुखाय २ ख्व्यं खा रखी ख खौ न हा. ग्रीवा भजय २ मोह्य २ त्म्यं त्रा त्री त्रू त्रौत्र त्रासय २ नाशय २ क्षोभय २ सर्वाङ्ग स्तम्भय २ चल २ चालय २ भ्रन २ भ्रामय २ धूनय २ कम्पय २ आकम्पय २ व्यू स्तम्भय २ गमन स्तम्भय २ सर्वभूत प्रमर्दय २ सर्व दिशा बधय २ सर्व विघ्नान छेदय २ निकृन्तय २ सर्व दुष्टान् निग्राहय २ सर्व यत्राणि स्फोटय २ सर्व शृखलान् त्रोटय र मोटय २ सर्व दुष्टान् आकर्पय हम्य ह्रा ह्री हू, ह्रौ ह्र शान्ति कुरु २ तुष्टि कुरु २ पुष्टि कुरु २ स्वस्ति कुरु २ ॐ आ क्रौ ह्री ह्रौ ह्र पद्मावति आगच्छ २ सर्व भयात् मम रक्ष २ . सिद्धि कुरु २ सर्व रोग नाशय २। किन्नर कि पुरुष गरूड महोरग गधर्व यक्ष राक्षस भूत प्रत पिशाच वेताल रेवती दुर्गा चण्डी कूष्माण्डिनी डाकिनी वन्ध सारय २ सर्व शाकिनी मदय २ सय योगिनी गण चूर्णय २ नृत्य २ गाय २ कल २ किलि २ हिलि २ मिलि २ सुलु २ पुलु २ कुलु कुरु २ अस्माक वरदे पद्मावती हन २ दह २ पच २ सुदर्शन चक्रेण छिदि २ ह्री २ क्ली प्ल
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लघुविद्यानुवाद
२२६
प्लु ह्रा ह्री श्र ह भ्र स्र स्क्र ह. ग्री प्री श्रा श्री वात्री ह्रा ह्री प्रा प्री पू प्र. पद्मावती धरेन्द्र माज्ञापयति स्वाहा ।
यह पद्मावती माला मन्त्र पढने मात्र से सिद्ध होता है नित्य हो दिनमेत्रिकाल पढे । सर्व कार्य की सिद्धि होती है, भूत प्रेतादि व्याधिया नष्ट होती है।
___श्री ज्वालामालिनी देवी माला मन्त्रः'
ॐ नमो भगवते चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय शशाक शख गोक्षीर हार नीहार विमल धवल गात्राय घाति कर्म निर्म लोच्छेदन करायजाति जरा मरण शोक विनाशन कराय ससार कान्तारोन्मूलन कराय अचिन्त्य बल पराक्रमाय अप्रतिहत शासनाय अप्रतिहत चक्राय त्रैलोक्य वशकराय सर्व सत्व हितकराय भव्यलोक वशकराय सुरा सुरोरगेन्द्र मणिगण खचित मुकुट कोटि तट घटित पादपीठाय त्रैलोक्यमहिताय अष्टादश दोष रहिताय धर्म चक्राधीश्वराय सर्व विद्या परमेश्वराय कुविद्या अध्नाय चतुस्त्रिशदतिशय सहिताय द्वादशगण परिवेष्टिताय शुक्लध्यान पवित्राय अनन्त ज्ञानाय अनन्त दर्शनाय अनन्तवीर्याय अनन्त सुखाय सर्वज्ञाय सिद्धाय वुद्धाय शिवाय सत्यज्ञानाय सत्यब्रह्मणे स्वयभुवे परमात्मने अच्युताय दिव्यमूर्ति प्रभामण्डलमडिताय कण्ठताल्वोष्ठ पुटव्यापार रहित तत्तदभोष्ट वस्तु कथक निशेषभाषा प्रतिपालकाय देवेन्द्र धरणेन्द्र चक्रवर्त्यादि शतेन्द्र वदित पादार विदाय पच कल्याणाष्ट महा प्रातिहार्यादि विभवालकृताय वज्रवृषभनाराच सहनन चरम दिव्य देहाय देवाधिदेवाय परमेश्वराय तत्पादपकजाश्रय निवेशिनि देविशासन देवते त्रिभुवन जन सक्षोभिणी त्रैलोक्य सहार कारिणि स्थावर जगम कृत्रिम विपम विषसहार कारिणि सर्वाभिचार कर्मापहारिणि पर विद्या छेदिनि पर मन्त्र प्रणाशिनि अष्टमहानाग कुलोच्चाटिनि कालदष्ट्र मृतकोत्थापिनी सर्व रोगापनोदिनी ब्रह्मा विष्णु रूद्रद चन्द्रा दित्य ग्रह नक्षत्र तारा लोकोत्पाद- .... भय पीडा प्रमदिनी त्रैलोक्य महिते भव्य लोक हितकरी विश्वलोक वशकरि महाभैरवि भैरव रूपधारिणि भीमे भीम रूपधारिणि महारौद्र रूपधाररिणी सिद्ध सिद्ध रूपवारिणि प्रसिद्ध सिद्व विद्याधर यक्ष राक्षस गरूड गधर्व किन्नर कि पुरुप दैत्योरगेन्द्रामर पूजिते ज्वाला माला कराले तत्तदिगन्तराले महामहिष वाहिनि त्रिशूल चक्र झप पाश शर शरासन फलवरद प्रदान विराजमान षोढशार्द्ध भुजे खेटक कृपाण हस्ते त्रैलोक्याकृत्रिम चैत्यालय निवासिनि सर्व सत्वानुकम्पनि रत्नत्रय महानिधि साख्य सौगत चार्वाक मीमासक दिगम्बरादि पूजिते विजयवर प्रदादिनि भव्यजन सरक्षिणि दुष्ट जन प्रमर्दिनि कमल श्री गृहीत गर्वावलिप्त ब्रह्मा राक्षष ग्रहापहारिणि शिवकोटि महाराज प्रतिष्ठित भीम लिंगोत्पाटन पटु प्रतापिनि समस्त ग्रहाकर्षिणि ( ग्रहानुबन्धिनि ग्रहानुछेदिनि ग्रह काला मुखि) नगर निवासिनि पर्वत वासिनि स्वयभूरमण वासिनि वज्र वेदिकाधिष्ठित व्यतरावास
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लघुविद्यानुवाद
वासिनि मणिमय सूक्ष्म घटनाद किचिद्रणित नूपुर युक्त पादार विन्दे वज्र वैडूर्य मुक्ताफल हरिन्मरिण मयूरवमाला मण्डित हेम किकिणि झणत्कार विराजित कनक ऋजुसूत्र भूषित नितम्बिनि वारद नीरद निर्मलायमान सूक्ष्म दुकूल परीत दिव्य तनुमध्ये सध्यापरागारूण मेघ समान कौसुम्भ वस्त्र धारिणि बालार्क रूक् सन्निभायमान तपनीय वसनाच्छादिते इन्द्र चन्द्रकादि मौक्तिकाहार विराजित स्तन मण्डले तारा समूह परित्तोत्तमागे यमराज लुलायमान महिषासुर मर्दन दक्षभूत महामहिष वाहिनि ताराधर तारे नीहार पटीर पयः पूर कर्पूर शुभ्रायमान विमल धवल गात्रे भयकाल रूद्र रौद्रावलोकित भाल नेत्रानल विस्फुलिंग समूह सन्निभ ज्वालावेष्टित दिव्य देहिनि कुल शैल निर्भेदिनि कृत सहस्र धारायुक्त महा प्रभा मण्डल मण्डित कृपाणि भ्राज दोर्दण्डे देवि ज्वालामालिनि अत्र एहि २ र पिण्ड रूपे एहि २ नव तत्त्व देहिनि महामहित मेखला कलित प्रतापे एहि २ ससार प्रमदिनि एहि २ महामहिषवाहने एहि २ कटक कटि सूत्र कुण्डलाभरण भूषिते एहि २ घनस्तनि किकिणि नूपुरनादे एहि २ महामहित मेखला सूत्रे एहि २ गरूड गधर्व देवासुर समिति पूजित पादपकजे एहि २ भव्यजन सरक्षिणि एहि २ महादुष्ट प्रमर्दिनि एहि २ मम ग्रहाकर्षिणि एहि २ ग्रहानुवन्धिनि एहि २ ग्रहानुच्छेदिनि एहि २ ग्रहकाल कालामुखि एहि २ ग्रहोच्चाटिनि एहि २ ग्रह मारिणि एहि २ मोहिनि एहि २ स्तम्भिनि एहि २ समुद्रधारिणि एहि २ धुनु २ कम्प २ कम्पावय २ मण्डल मध्ये प्रवेशय २ स्तम्भ २ ॐ ह्रा ह्री ह. ह्रौ ह्र आह्वानन गृह २ जल गृण्ह २ गध गृण्ह २ अक्षत गृण्ह २ पुष्प गृण्ह २ नरू गृह २ दीप गृह २ धूप गृण्ह २ फल गृह २ आवेश गृण्ह २ ॐ ह म्यं महादेवि ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री ह्रा ह्री ह्र ह्रो ह्र हा देव ग्रहान् आकर्षय २ ब्रह्मा विष्णु रूद्रन्द्रादित्य ग्रहान्नाकर्षय २ नाग ग्रहान्नाकर्षय २ यक्ष ग्रहान्नाकर्षय २ गधर्व ग्रहानाकर्षय २ ब्रह्मराक्षस ग्रहान्नाकर्षय २ भूत ग्रहान्नाकर्षय २ व्यन्तर ग्रहान्नाकर्पय २ सर्व दुष्ट ग्रहान्नाकर्षय २ शतकोटिदेवतानाकर्षय २ सहस्रकोटि पिशाच देवतानाकर्षय २ कालराक्षस ग्रहानाकर्षय २ प्रेतासिनी ग्रहानाकर्षय २ वैताली ग्रहानाकर्पय २ क्षेत्रवासी ग्रहानाकर्पय २ हन्तुकाम ग्रहानाकर्षय २ अपस्मार ग्रहानाकर्षय २ क्षेत्रपाल ग्रहानाकर्पय २ भैरव ग्रहानाकर्पय २ ग्रामादि देवतानाकर्षय २ गृहादि देवतानाकर्षय २ कुलादिदेवतानाकर्षय २ चण्डिकादि देवतानाकर्षय २ शाकिनि ग्रहान् आकर्षय २ डाकिनी ग्रहानाकर्षय २ सर्व योगिनी ग्रहानाकर्षय २ रणभूत ग्रहानाकर्षय २ रज्जूनिग्रहानाकर्षय २ जलग्रहानाकर्षय २ अग्गि ग्रहानाकर्षय २ मूक ग्रहानाकर्षय २ मूखेग्रहानाकर्षय २ छल ग्रहानाकर्षय २ चोरचिताग्रहानाकर्षय २ भूत ग्रहानाकर्षय २ शक्तिग्रहानाकर्षय २ चाडाली ग्रहानाकर्पय २ मातगग्रहानाकर्षय २ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रभव
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लघुविद्यानुवाद
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भवान्तर स्नेह वैर बध सर्व दुष्ट ग्रहानाकर्षय २ कम्प २ मृत्योरक्षय २ ज्वर भक्षय २ अनलविषहर २ कुमारीरक्ष २ योगिनीभक्षय २ शाकिनी मर्दय २ डाकिनी मर्दय २ पूतनी कम्पय २ राक्षसी छेदय २ कोलिकामुद्रा दर्शय २ सर्व कार्यकारिणी सर्व ज्वर मर्दिदनिसर्व शिक्षाजन प्रतिपादिनि एहि २ भगवति ज्वालामालिनि एकाहिक द्वाहिक त्र्याहिक चातुथिक वात्तिक श्लेष्मिक पैत्तिक २ श्लेष्मिक सान्निपातिक (वेला) ज्वरादिक पाने प्रवेशय २ ज्वलि ज्वलि ज्वालावय २ मु च २ मुंचावय २ शिर मु च २ मुख मु च २ ललाट मु च २ कठ मु च २ बाहू मु च २ हृदय मुच २ उदर मु च २ कटि मु च २ जानु मु च २ पाद मुच २ आछेदय २ को भेदय २ ही मर्दय २ क्षी बोधय २ ह म्ल्व्य घूमय २ र र र र र रा रा स ध पातय २ पर मत्रान् स्फोटय २ ॐ हा ही ह ह्रौ ह्र. घे घे फट् स्वाहा । अस्मिन् दलमध्ये प्रवेशय २ पात्र गृहण २ आवेशय २ ग्रासय २ पूरय २ खण्ड २ कट कट कपावय २ ग्राहय २ शीप चालय २ भाल चालय २ नेत्र चालय २ वदन चालय २ कण्ठे चालय २ बाह चालय २ हस्त चालय २ हृदय चालय २ गात्र चालय २ सर्वाग चालय २ लोलय २ कप २ कम्पावय २ शीघ्र अवतर २ गण्ह २ ग्राहय २ अचेलय २ आवेशय २ ॐ क्ष्ल्यू ज्वालामालिनी ही क्ली ब्लू द्रा द्री क्षा क्षी क्ष क्षौ क्ष हा सर्व दुष्ट ग्रहान् स्तभय २ हा पूर्व बधय २ दक्षिण बधय २ पश्चिम बधय २ उत्तर बधय २ ठः ठः हु फट २ घे घे ॐ रम्य ज्वालामालिनी ही क्ली ब्लू द्रा द्री ज्वल र र र र र र र रा रा प्रज्वल २ ह ज्वल ज्वल धग २ धू धू धूमाधकारिणी ज्वल ज्वल ज्वलित शिखे प्रलय धग धगित वदने देव ग्रहान् दह २ नाग ग्रहान् दह २ यक्ष ग्रहान् दह २ गधर्व ग्रहान् दह २ बह्य रक्षस ग्रहान् दह २ सर्व भूत ग्रहान् दह २ व्यन्तर ग्रहान् दह २ सर्व दुष्ट ग्रहान् दह २ शतकोटि देवतान् दह २ सहस्र कोटि पिशाच राजान दह २ धेधे स्कोटय २ मारय २ दहनाक्षि प्रलय धग धगित मुखि ॐ ज्वालामालिनी ह्रा ह्री ह्र ह्रौ ह्र हा सर्व दुष्ट ग्रह हृदय हू दह २ पच २ छिदि २ भिदि २ ह. ह हा हा हे हे हू फट २ धे २ ॐ स्म्लव्यू ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र हा. सर्व दुष्ट ग्रहान् ताडय २ ह फट २ धे.२। ॐ म्म्य ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री म्रा म्री म्र नौ म्र हा सर्व दुष्ट ग्रहाणा वज्रमय सूच्या अक्षिणी स्फोटय २ अदर्शय २ हू फट २ घे २ । ॐ टम्व्य ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री हा पा को क्षी या यी यू यो यू हा सर्व दुष्ट ग्रहान् प्रषय २ ध२ हू ज ज ज ॐ धम्ल्व्य ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री घ्रा ध्री घ्र घ्रौ ध्र. हा. घ घ ख ख खङ्ग रावण सद्विद्यया घातय २ सच्चन्द्रहास शस्त्रेण छेदय २ भेदय २ जठर भेदय २ झ झ ख ख ह हह २ फट २ धे२ॐ म्म्यं ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री झा झो झझौ झ. हा सर्व दुष्ट ग्रहान वज्रपाशेन बधय २ -मुष्टि बधेन बधय २ हूं फट २ घे२। ॐ हम्ल्य . ज्वालामालनि ही क्ली ब्लू द्रा द्री खा खी ख-खौ हा सर्व दुष्ट 'ग्रहाणा अगभग कुरु २
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लघुविद्यानुवाद
ग्रीवा भजय २ हू फट् २ धे २ । ॐ छ्यू ज्वालामालिनि ही क्ली ब्लू द्वाद्री छ्रा छ्री छू छौं छ हा सर्व दुष्ट ग्रहारणा अन्त्राणि छेदय २ ।
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ܘ
हू फट् फट् घेघे । ॐ ठ्ल्यू ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्वाद्री ठाठी ठूठी ठू हा सर्व दुष्ट ग्रहान् विद्युत्पःपारण अस्त्रेण ताडय २ भुम्या पातय २ हूँ फट् फट् घे घे । ॐ ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्वाद्री व्रा व्री ब्रू व्रो व्र. हा सर्वदुष्ट ग्रहान समुद्र े मज्जय २ हू फट् फट् घेघे । ॐ म्यू ज्वालामालिनि ह्री क्ली ब्लू द्वा द्री ड्रा ड्री ड्र ड्री ड्र हा. सर्व किन मर्द २ हूँ फट् फट् घे घे झौ झ सर्व शाकिनि मर्दय २ हूँ फट् फट् धे धे सर्व योगिनिस्तर्जय तर्जय सर्व शत्रून् ग्रासय २ ख ख ख ख ख ख खादय खादय स त व म हा झ सर्व ग्रहान् उत्थापय २ नट नट नृत्य नृत्य स्वाहा य य सर्वं दैत्यान् ग्रस ग्रस विध्वसय २ दह दह पच पच पाचय २ घर २ धम २ घुरू २ पुरू २ फुरु २ सर्वोपद्रव महाभय स्तभय २ झम् २ ह ह दर दर पर २ खर २ खड्गेरावरण सद्विद्यया घातय २ पातय २ चन्द्रहास शस्त्रेण छेदय २ भेदय २ झ झ ह ह ख ख घ घ दद फट् फट् घेघं हा हा आक्रौ क्ष्वी क्षो ह्री क्ली ब्लू द्राद्री क्रौ क्षी क्षी क्षी क्षी ज्वालामालिन्या ज्ञापयति स्वाहा । श्रय पठति ससिद्धि
ܘ
M
ܘ
॥ इति ॥
इस ज्वालामालिनीपठति सिद्ध माला मन्त्र को ७० दिन तक दीप धूप रखकर नित्य ही १ बार पढने मात्र से सिद्ध हो जायगा, फिर प्रत्येक व्याधि मे पानी मन्त्रित करके देने से अथवा झाडा देने से सर्व व्याधि दूर हो, और भूत, प्र ेत, शाकिनि आदि तथा परविद्या का प्रभाव नष्ट होता है ।
( सरस्वती मंत्र : ) पाप भक्षणी विद्या
मन्त्र :- ॐ श्रर्हन् मुख कमल वासिनी पापात्म क्षयंकरी श्रुत ज्ञान ज्वाला
सहस्त्र प्रज्वलने सरस्वती मत्पापं हन २ दह २ पच २ क्षां क्षीं क्षू क्ष क्ष क्षीर वर धवले अमृत संभवे ( पल्लवे) श्रमृतं श्रावय २ वं वं हुं फट्
स्वाहा ।
विधि
. - केशर घिसकर गोली ३६० बनाकर दीपोत्सव के दिन अथवा शरद पूर्णिमा के दिन अर्हन्त प्रतिमा के सम्मुख साधन करे । १००० जप करे। उपरोक्त से १ गोली को
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लघुविद्यानुवाद
२३३
२१ बार मन्त्रित करके प्रात उस गोली को खावे, इस प्रकार ३६० दिन मे ३६० गोली खावे तो महान विद्यावान हो । किन्तु खट्टा खारा नही खावे । प्रतिदिन स्मरण करने से
बुद्धि का वैभव बढता है। द्वितीय विधि :-इस मन्त्र को कासी की थाली मे लिखे सुगन्धित द्रव्यो से, फिर सुगन्धित पुष्पो से
१००८ वार मन्त्र का जप करे, शरद पूर्णिमा के दिन मेवा की खीर बनाकर रखे। दूसरे दिन वही मेवा की खीर खावे और कुछ नही खावे, तो सरस्वती प्रसन्न रहे। बुद्धि प्रबल होती है। यह प्रयोग शरद पूर्णिमा के दिन करे। जप सुगन्धित पुष्पो से करे।
। शांतिमन्त्र लघु । मन्त्र :--ॐ ह्रीं श्री शांति नाथाय जगत् शांति कराय सर्वोपद्रवशांति कुरु २ ही नमः
स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र का जाति पुष्प से नित्य ही १०८ बार जप करने से सर्व मनो वाछित प्राप्त होता है।
शांति मन्त्र
मन्त्र .--ॐ नमोऽहंते भगवते श्री शांति नाथाय सकल विघ्न हराय ॐहां हीं
हह्रौ ह्रः असि आ उ सा अमुकस्य सर्वोपद्रव शांति लक्ष्मी लाभं च करु २
नमः (स्वाहा) विधि :-इस मन्त्र का सोलह दिन मे १६००० जप करके दशास होम करे, शुक्ल पक्ष के पखवाडे
मे १६ दिन का जो पखवाडा हो उसमे प्रत्येक दिन १००० जप सुगन्धित पूष्पो से करे जो कार्य की सिद्धि हो। उपसर्ग, उपद्रव, सर्व दूर हो, सर्व शाति होती है। लक्ष्मी लाभ, यश लाभ होता है।
नवग्रह जाप्य
१. रवि महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते पद्मप्रभतीर्थकराय कुसुलयक्ष मनोवेगा यक्षी सहिताय ॐ प्रॉ कों ह्रीं ह्रः आदित्यमहाग्रह ( मम कुटुबवर्गस्य ) सर्व
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लघुविद्यानुवाद
दुष्टग्रह रोग कष्टनिवारणं कुरु कुरु सर्वशांति कुरु कुरु सर्व समृद्धि कुरु कुरु इष्ट संपदा कुरु कुरु अनिष्ट निश्सनं कुरु २ धनधान्य समृद्धि कुरु कुरु काम मांगल्योत्सवं कुरु २ हूं फट् ।
इस मन्त्र का जप ७००० हजार करे, तो रवि गृह शांत होते है ।
२. सोम महाग्रह मन्त्र
ॐ नमो भगवते श्रीमते चंद्रप्रभतीर्थकराय विजय यक्ष ज्वालामालिनी यक्षी सहिताय ॐ प्रां क्रीं ह्रीं ह्रः सोममहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ॥
इस मन्त्र का ११००० हजार जप करे ।
३. मंगल महाग्रह मन्त्र
ॐ नमोऽर्हते भगवते वासुपूज्यतीर्थंकराय षण्मुखयक्ष गांधारी यक्षो सहिताय ॐ प्रां क्रो ह्रीं ह्रः मंगलकुज महाग्रह मम - दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्वशांति च कुरु कुरु हूं फट् ॥
इस मन्त्र का जप १०००० करे ।
४. बुध महाग्रह मन्त्र
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते मल्लीतीर्थकराय कुवारेयक्ष श्रपराजिता यक्षी सहिताय ॐ प्रां क्रीं ह्री हः बुधमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोग कष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ।
इस मन्त्र का जाप १४००० करे ।
५. गुरू महाग्रह मन्त्र
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमने वर्धमान तीर्थ कराय मातंगयक्ष सिद्धायिनीयक्षी सहिताय ॐ क्रो हो हः गुरूमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ॥
ग्रह की शांति के लिये इस मन्त्र का जप १६००० हजार करे ।
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लघुविद्यानुवाद
२३५
६. शुक्र महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽहतो भगवते श्रीमते पुष्पदंत तीर्थकराय अजितयक्ष महाकालीयक्षी सहिताय ॐ प्रां कों ह्रीं ह्रः शुक्रमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ।। इस मन्त्र का जप १६००० हजार करे ।
७. शनि महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते मुनिसुव्रततीर्थ कराय वरुणयक्ष बहुरुपिरणीयक्षी सहिताय ॐ प्रां कों ह्रीं ह्रः शनिमहाग्रह मम दुष्टग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् ॥ इस मन्त्र का जप २३०० हजार करे ।
८. राहु महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते नेमितीर्थ कराय सर्वाण्हयक्ष कुष्मांडीयक्षी सहिताय ॐ श्रां कों ह्री ह्रः राहुमहाग्रह मम दुष्टग्रह रागकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु कुरु हूं फट् । इस मन्त्र का १८००० जप करे ।
६. केत महाग्रह मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पार्श्वतीर्थ कराय धरणेद्रयक्ष पद्मावतीयक्षी सहिताय ॐ श्रां कों ह्रीं ह्रः केतुमहाग्रह मम दुष्ट ग्रह रोगकष्ट निवारणं सर्व शांति च कुरु २ हूं फट् ॥
इस मन्त्र का ७००० जप करे । नोट :-प्रत्येक ग्रह के जितने जप लिखे हो उतना जप करके नवग्रह विधान करे । दशमास होम करे तो ग्रह की शान्ति होती है।
___ शान्ति मन्त्र ॐ नमोऽर्हते भगवते प्रक्षीरगाशेषदोष कल्मषाय दिव्य तेजोमूर्तये नमः श्री
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२३६
लघुविद्यानुवाद
शांतिनाथाय शांति कराय सर्व पापप्रणाशनाय सर्व विघ्न विनाशनाय सर्व रोगोप मृत्यु विनाशनाय सर्वपरकृत क्षुद्रोपद्रव विनाशनाय सर्व क्षाम डामर विनाशनाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्र. ह्रौ ह्रः असि पाउसा मम सर्व शांति कुरू २
स्वाहा। विधि .- इस शान्ति मन्त्र को शुक्ल पक्ष के सोलह दिन के पखवाडे मे प्रत्येक दिन १००० जप करे।
सोलह दिन मे सोलह हजार जप दीप, धप विधि से करे, फिर शान्ति विधान कराकर, १६००० जप का दशास होम करे, तो सर्व प्रकार के रोग, सर्व प्रकार के डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेतादि बाधा दूर होती है । लक्ष्मी लाभ होता है, मनवाछित सिद्धि प्राप्त होती है।
वर्द्धमान मन्त्र ॐ रणमो भय वदो वड्ढ मारणस्स रिसहस्स चक्कं जलंतं गच्छइ आवासं पायालं लोयारणं भूयाणं जये वा विवादे व थंभरणेवा रणांगणेवा रायं गणेवा मोहेण वा सव्व जीवसत्तारणं अपराजिदोमम् भवदु रक्ख २
स्वाहा। विधि :--इस वर्द्धमान महाविद्या को उपवास करके एक हजार जप सुगन्धित पुष्पो से जप कर,
दशमास होम करे, तो ये मन्त्र सिद्ध हो जाता है। फिर कही से भय आने वाला हो अथवा आ गया हो, तो सरसो हाथ मे लेकर सर्व दिशाओ मे फेक देने से प्रागत उपद्रव, भय, परकृत विधाएं सर्व स्तम्भित हो जायेगे। घर मे स्मरण मात्र से ही शाति हो जायगी। विशेष फल गुरु गम्य है। जिनेंद्र पंच कल्याणक के समय प्रतिमा के
कान में देने वाला सर्य मन्त्र मन्त्र :-ॐ ह्रीं क् ह सुसुः क्रौ ह्री ऐं अर्ह नमः सर्व अर्हन्त गुणभागी भवतु
स्वाहा। विधि -प्रतिष्ठाचार्य इस मन्त्र को २१ बार कान मे पढे । मन्त्र .-ॐ ह्री श्री क्लीं हां हौ श्री श्री जय जय द्रां कलि द्रा क्ष सां मृजय
जिनेभ्योः ॐ भवतु स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को दर्पण सामने रखकर ४ बार कान मे पढे ।
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लघुविद्यानुवाद
२३७
मन्त्र :-ॐ ह्रीं कौ सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रातर गात्राय चतुरशिति गुरण गरणधर
चरणाय अष्ठचत्वारिंशत गणधर वलाय षट्त्रिंशत गुण संयुक्ताय णमो प्राइरियारणं हं हं स्थिरं तिष्ठ २ ठः ठः चिरकालं नंदतु यंत्र गुरग तत्र गुणं वेदयुतं अनंत कालं वर्द्ध यन्तु धर्माचार्या हुं हुं कुरु कुरु स्वाहा,
स्वाहा। विधि :- इस मन्त्र को भी प्रतिमा के सामने सात बार पढे ।
प्रत्येक शासन देव सूर्य मन्त्र मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रां श्रीं वं सर्वज्ञाय प्रचण्डाय पराक्रमाय वटुक भैर वाय
अमुक क्षेत्रपालाय अत्र अवतर २ तिष्ठ २ सर्व जीवानां रक्ष २ हूं फट्
स्वाहा। विधि :-इस मन्त्र से जिस क्षेत्रपाल की प्रतिष्ठा करनी हो, उस क्षेत्रपाल की मूर्ति के कान मे २७
बार पढे। पद्मावती प्रतिष्ठावायक्षिणी प्रतिष्ठा सूर्य मन्त्र मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू ऐ श्री पद्मावती देवी (व्य) अत्र अवतर २ तिष्ठ २
सर्व जीवानां रक्ष २ हूं फट् स्वाहा । विधि :-कोई भी देवी की प्रतिष्ठा करनी हो तो इस मन्त्र को जिसकी प्राण प्रतिष्ठा होनी है, उस
मूर्ति के दोनो कानो मे २७-२७ बार पढना चाहिये ।
धररगेन्द्र अथवा यक्ष प्रतिष्ठा सूर्य मन्त्र मन्त्र :--ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू ऐं श्री धरणेन्द्र देवताये अत्र अवतर २ अत्र तिष्ठ २ सर्व
जीवानां रक्ष २ हूं फट् स्वाहा। विधि .-इस मन्त्र को यक्ष मूर्ति के कान मे २७-२७ बार कान मे पढने से प्रतिष्ठा हो
जायगी। मन्त्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वद् २ वाग्वादिनीभ्योनमः । विधि :-कुमकुम कपूर के साथ सूर्य ग्रहण मे जिह्वाग्रे लिखित्तस्य नरस्य वाग्वादिनी सतष्टा
भवति ।
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२३८
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र -ॐ ह्रीं श्रीं वद् २ वाग्वादिनी भगवति सरस्वती ही नमः । विधि .--१२००० जप इस मन्त्र का करके दशाश होम करे, सूर्य या चन्द्र ग्रहण मे वेला, वच,
मालकागणी, इन चीजो को १०८ बार मन्त्रित करके जिस बालक की खिलावे उसकी बुद्धि का विकास होता है।
॥० ॥
गरगधर वलय से सम्बन्धित
ऋद्धि मन्त्र व फल ॐ णमो प्ररहताणं णमो जिरणाणं ह्रां ह्री ह ह्रौ ह्रः अप्रतिचक्र फट विचनाय स्वाहा ॐ ह्रीं अर्ह असि पाउसा नौ २ स्वाहा । एतत् सर्व प्रयोजनीयम्, विसूचिकाशान्ति र्भवति ॥१॥
ॐ रणमो अरहंतारणं गमो जिरणारणं हां पुष्प १०८ जपेत् ज्वरनाशनम् ॥२॥
णमो परमोहिजिणारणं हां शिरोरोगनाशनम् ॥३॥ । णमो सव्वोहिजिणारणं ह्रां अक्षिरोगनाशनम् ॥४॥ रणमो अणंतोहिजिरणारण कर्णरोगं नाशयति ॥५॥ रगमो कुट्ठबुद्धीरणं शूल-गुल्म-उदररोगं नाशयति ॥६॥ णमो बीजबुद्धीरणं श्वास-हिक्कादि (होचकी) नाशयति ॥७॥ णमो पदाणुसारीणं परैः सह विरोधं कलहं नाशयति ।।८।। रगमो संभिन्नसोयारणं कासं नाशयति ॥६॥ णमो पत्ते यबुद्धाणं प्रतिवादिविद्याच्छेदनम् ॥१०॥ णमो सयंबुद्धारणं कवित्वं पाण्डित्यं भवति ॥११॥
णमो बोहिबुद्धारणं अन्यगृहीते श्रुत एक संधो भवति ५२ दिन यावज्जपेत् ॥१२॥
णमो उज्जुमदीरणं शान्तिकं भवति, दिन २४ यावज्जपेत् ।।१३।।
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लघुविद्यानुवाद
२३६
णमो विउलमदीरणं बहुश्र तत्वम्, लवणाम्लवर्ज भोजनम् ॥१४॥ णमो दसव्वीरगं सर्वाङ्गवेदी भवति ॥१५॥ रणमो चऊदसपुवीरणं जापः १०८ स्वसमय-परसमयवेदी ७ भवति ॥१६॥ णमो अंटुगनिमित्त कुसलाणं जीवित-सरणादिकं जानाति ॥१७॥
णमो विउव्वरणरिद्धिपत्ताणं काम्यवस्तूनि प्राप्नोति, दिन २८ जापः ॥१८॥
रगमो विज्जाहराणं उद्देशप्रदेशमानं खे गच्छति ॥१९॥ रगमो चारणाणं चिन्तानष्टपदार्थ स्वरूपं जानाति ॥२०॥ णमो पण्हसमणारणं आयुर्वसानं जानाति ॥२१॥ रगमो पागासगामीरणं अन्तरिक्षे योजनमात्रं गमयति ॥२२॥
रामो आसीबिषा (सा) णं विद्वेषणं पार्श्वष्टकमंत्रक्रमेण प्रतिहत भवति ॥२३॥
णमो दिद्वीविसाणं स्थावर जङ्गम-कृत्रिमविषं नाशयति ॥२४॥ णमो उग्गतवारणं वाचास्तंभनम् ॥२५॥
णमो दित्ततवाणं रविवाराद् दिनत्रयं मध्याहूने जापः, सेनास्तम्भ ॥२६॥
णमो तत्ततवाणं जलं परिजप्य पिबेत् अग्निस्तम्भं ॥२७॥ रगमो महातवारणं जलस्तम्भनम् ॥२८॥ णमो धोरतबारणं विष-सर्प-मुखरोगादिनाशः ॥२६।। णमो धोरगुरगाणं लतागर्भपिटकादि नाशयति ॥३०॥ (दुष्टमृगादिभयं) णमो धोरगुणपरक्कमारणं दुष्टमृगादीनां भयं (लुतादि) नाशयति ॥३१॥ णमो धोरगुण बंभचारीणं ब्रह्मराक्षसादि नाशयति ॥३२॥ णमो पामो सहिपत्ताणं जन्मान्तखैरेण पराभवं न करोति ॥३३।। णमो खेलोसहिपतारणं सर्वानपमृत्यूनपहरति ॥३४॥
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२४०
लघुविद्यानुवाद
मो जल्लोसहिपत्ताणं अपस्मारप्रलाप चित्तविप्लवं नाशयति ||३५|| मो विप्पोसहपत्ताणं गजमारी शाम्यति ॥३६॥
'मो सम्वोसहिपत्ताणं' मनुष्यकृतघोरोपसगं नाशयति ॥ ३७ ॥ 'गमो मरणवलीणं' श्रश्वमारी शाम्यति ॥३८॥
'णमो वचोवलीणं' श्रजमारी शाम्यति ||३६||
'मो कायबलीगं' गोमारी शाम्यति ॥४०॥
'मो श्रमयसवीरणं' समस्तमुपसर्ग शाम्यति ॥ ४१ ॥
'मो सप्पिसवीणं' एकाहिक - द्वयाहिक व्याहिक चातुर्थिक-पाक्षिक मासिक सांवत्सरिक - वातादिसमस्तज्वरं नाशयति ॥ ४२ ॥ |
मो खीरसवीर गोक्षीरं परिजत्यपिबेत् दिन २४ क्षयं कांस गण्डमालादिक च नाश्यति || ४३ ॥
'मो क्खी महारणसारणं श्राकर्षणं ॥ ४४ ॥ ॥
'मीलोए सब्वसिद्धायदरगाणं' राजपुरुषादिवश्यं ॥ ४५ ॥
ॐ नमो भगवदो महदि महावीर वड्ढमारणबुद्धिरिसीगं चेतः समाधि सुखं प्राप्नोति ॥४६ ||
ॐ गमो जिणे तरे उत्तरे उत्तिण्ाभवण्णवे सिद्ध े २ स्वाहा ।
पूर्वसेवा- - करजापः ११००० ततः । १००८ श्रथवा जघन्यतः १०८ उभयं गरूडाक्षतैजपिः इति सिद्धा भवति । ततो महति संघादि कार्ये प्रयुज्जते श्रनागाढे न प्रयोज्यम् । रौद्रकर्मरिण ॐ गमो जिरणे चक्कवाले' इति विशेष । शेषं समानमेव ।
प्रयोगश्चेत्यम्.
३ तथा स्वकार्येऽव्यादौ जलदौः स्थूये जापः शतत्रयंत्तन प्रतीक्षते । ततः स्वोत्सङ्गाच्छ्वेता मार्जारिका निर्गच्छति । सा च गच्छन्ती धीरैरनुगम्यते । यत्र झाटादौ गत्वान्तर्घते तत्र एकहस्ते खनिते जलं भवति ।
अवृष्टयादावागाढ़े कार्ये गूहलिकां कृत्वा चांदनं चतुररत चतुर्द्वारप्राकारं
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लघुविद्यानुवाद
२४१
कृत्वा मध्ये चंदन टिक्कक्कं कृत्वा गरूडाक्षतर्जातिक लिकाभिर्वा १०८ जाप दिन न प्रतीक्षते कार्य सिद्धयति ।
___ अथ अप्रस्तुता अपि मन्त्रा नान्दीपदगर्मत्वात् प्रकाश्यन्ते केचित-नमो 'प्ररहन्ताणं इत्यादि नमो लोए सव्वसाहूरण' पर्यन्तमादौ पठयते ॐ रणमो।
जिणारणं २ गमो ओहिजिणाणं ३ णमो परमोहिजिरणाणं ४ णमो सवोहिजिणाणं ५ णमो अणंतोहि जिणाणं ६ णमोकुतुबुद्धीणं ७ रणमो बीज (य) बुद्धोणं ८ णमो पयाणुसारीणं ६ णमो संभिन्नसोयाणं १० रणमो सयंबुद्धारणं ११ रणमो पत्त यबुद्धारणं १२ गमो उज्जुमईणं १३ णमो विउलमईणं १४ णमो दसपुवीरणं १५ णमो चउदस-पुव्वीरणं १६ रणमो अट्ठगमहानिमित्तकुसलाणं झौ झौ सत्यं कथय कथय स्वाहा । अष्टोत्तरशतजापेन यत्किञ्चित्पृच्छयते तत् सर्व कथयति भवति च ।
अत्रापि पर्वपाठः । १ ॐ गमो आमोसहिपत्तारणं २ णमो जल्लोसहिपताणं ३ णमो खेलोसहिपत्तारणं ४ णमो विप्पोसहिपत्तारण ५ णमो सम्वोसहिपत्तारणं झी २ स्वाहा ।
गुल्म-शूल-प्लोह-दद्र (दाद् ) गड-गण्डमाला-कुष्ट-सर्वज्वरातिसार लूता वरण विषारिण अन्येऽप्यष्टोत्तरशत व्याघय उञ्जनेन जलपानेन नश्यत्ति ।
पूर्ववतः पाठः । १ ॐ रणमो उग्गतवाणं २ गमो दित्तवाणं ३ णमो तत्ततवाणं ४ रणमो महातवारणं ५ गमो धोरतवारणं ६ णमो धोरगुरगाणं ७ रगमो घोरपरक्कमारणं ८ णमो धोरगुणबभयारीणं झौ झौ स्वाहा। युद्ध तस्करादिषोडशभयनाशो युद्ध विजयश्च ।
पूर्ववत् पाठः। १ ॐ णमो खीरासवीणं २ गमो सपिसवीरण ३ णमो महुरसवीरणं ५८ णमो अमयसवीणं स्वाहा । सवौषधी (धि) उत्पादन-वंधन-नियोजाभिमन्त्रण कला पानीय स्थावरजङ्गमजाठरयोगज कृत्तिमादिसर्वविष सर्ववृश्चिकादि विषहरणं जलपानामृतध्यानेन ॥१०॥
स्तुतिपदानि ३२, २४, १८-१६-१३-१२-८ यावत् पच्च भविष्यति इहचात्यन्तगोप्यान्याम्नायान्तरारगयपि सन्तीति वृद्धाः ।
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२४२
लघुविद्यानुवाद
[तथाहि ॐ रणमो अरिहंतारणं ह्रां ह्रीं ह्न हौ ह्रः अप्रतिचक्र फट् विचक्राय ह्रीं अर्ह असिग्राउसा झौ झौ स्वाहा ॐ नमो भगवते अरिहंताणं णमो प्रोहि जिणाणं ह्रां ह्रीं ह्रह्रौ ह्रः अप्रतिचक्र फट विचकाय ह्री अर्ह असिमाउसा झौ झौ स्वाहा । पूर्वोक्तयंत्रस्वरूपं ध्यात्वा कार्योत्सर्ग दत्वा एतं मंत्रमष्ट्रोत्तरशतवारं जपेत । ज्वरस्तम्भनं भवति ॥२॥]
ॐ णमो बीज (य) बुद्धीणं । एतन्मंत्रमष्टोत्तराशतवारं कायोत्सर्गेण यन्त्रस्वरूपं ध्यात्वा जपेत । काशश्चासहिक्कारोगोऽपयाति ॥३॥
ॐ नमो परमोहिजिरणारणं । एतन्मन्त्रं ध्यात्वा कायोत्सर्गेण तिष्ठेत् । शिरोरोगोऽपयाति ॥४॥
ॐ रणमो रगमो सम्बोहिजिणाणं अक्षिरोगोऽपैति ।।५।। ॐ रणमो रणमो प्रणंतोहिजिणाणं कर्णरोगनाशः ।।६।। ॐ णमो णमो कुलुबुद्धीणं शूल-गुल्म-कृमिनाशः ॥७॥ ॐ रणमो णमो पत्तेयबुद्धाणं । प्रतिवादि पक्षस्य विद्याच्छेद ।।८।।
'ॐ णमो सयंबद्धाणं' झौ झौ स्वाहा । प्रतिदिवसं सिद्धर्भाक्त कृत्वा अष्टोत्तरशतदिनानि यावत् अष्टोत्तरशतं जपेत् कवित्वमागमवेदित्वं च भवति ॥६॥
ॐ णमो बोहिबुद्धारणं झौ झौ स्वाहा । पञ्चविंशतिदिनानि यावच्छतं जपेत् एक संधो (१) भवति ॥१०॥
ॐ णमो दसपुव्वाणं झौ झौ स्वाहा । एकान्तर भोजनं कृत्वा दिनास्त् समय दिन ८० यावज्जपेत्, परसमयागमवेदित्वं भवति ।।१३।।
___ ॐ णमो अटुंगमहानिमित्तकुसलाणं झोझो स्वाहा । त्रिधा ब्रह्मचर्येण दिन २४ चतुविशतितीर्थंकरस्तवानन्तर श्री खंडकूकूमसितसर्षपकूष्टोगोक्षीरेण पिष्टा सव्यकरेणालिख्य पश्चादुपरि सुगन्धपुष्पैरेकान्तेऽधरात्रवेलायां जपेत् नष्ट-विनटाच सुख-दुःख जीवित-मरणादीन सम्यग् जानाति ।
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लघुविद्यानुवाद
२४३
ॐ रणमो विउम्बरणइड्ढिपत्ताण झौ झौ स्वाहा । दिन २८ पञ्चोपचा स्क्रमेण रक्तकरणवीरपुष्पैर्जपेत् १०८ । काम्यवस्तूनि प्राप्नोति ॥१५॥
ॐ रणमो विज्जाहराणं झौ झौ स्वाहा । दिन २५ यावत् जाती पुष्पैः १०८ जपेत् देशतोऽन्तरिक्ष गामी ॥१६॥
ॐ रणमो चारणाण झौ झौ स्वाहा । स्नात्वा नदी तीरे वार २५ जपेत् । कायोत्सर्ग कृत्वा नष्टमुष्टिचिन्तास्वरूपं जानाति ॥१७॥
ॐ णमो पण्हसमरणाणं झौ झौ स्वाहा दिन २८ यावत् श्वेतकरणवीर पुष्प, १०८ जिनगृहे चन्द्रप्रभपादमूले जपेत् । प्रायुरवसानं कथयति ॥१८॥
ॐ णमो प्रागासगमरणाणं झौ झौ स्वाहा । दिन २८ जपेत् । अलवणकाञ्जिनभोजनम् । योजनमेकं खे याति ॥१६॥
ॐ णमो दिट्ठि विसाणं झौ २ स्वाहा । गमनस्तम्भः ॥२०॥
ॐ णमो दित्ततवाणं झौ २ स्वाहा रवौ मध्यान्हे दिन ३ जपेत चौरस्तम्भः ॥२१॥
ॐ णमो महातवाणं झौ २ स्वाहा । शुद्धजलं १०८ अभिमन्त्रय पिबेत, अग्निस्तम्भः ॥२२॥
ॐ णमो मणोबलोणं झौ २ स्वाहा । दिन २ जपेत् १०८, जलस्तम्भ ॥२३॥
ॐ णमो धोरतवारणं झौ २ स्वाहा विष विषादिरोगजयः ॥२४॥ ॐ रणमो महाधोरतवारणं झौ २ स्वाहा । दुष्टा न प्रभवन्ति ।।२।। ॐ णमो धोरपरक्कमारणं झौ २ स्वाहा । लुतादिदोषायनयः ॥२६॥ ॐ णमो धोरवंभयारीणं झौ झौ स्वाहा । ब्रह्मराक्षसनाशः ॥२७॥
ॐ रणमो प्रामोसहिपत्तारणं जन्मान्तरावस्थायां वैरकारणेन प्राप्तग्रह-- मेकदिन--मात्रेण न स्पृशति ॥२८॥
ॐ णमो खेलोसहिपत्ताणं । सद्योऽपमृत्युनाशः ।।२६॥
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२४४
लघुविद्यानुवाद
ॐ गमो जल्लोसहिपत्ताणं । शुद्ध नदीजले १०८ जपित्वा तज्जलं पिबेत्, दिनत्रयेरणापस्मारादिरोगनाशः ॥३०॥
ॐ रणमो विप्पोसहिपत्ताणं झौ २ स्वाहा नरमारीशमः ॥३१॥
ॐ रणमो मरणोबलीरणं (झौ झौ स्वाहा) दिन २ जपेत् अजमारीशमोअष्टशतम् ॥३२॥
___ ॐ णमो वयणबलीरणं झौ २ स्वाहा दिन ३ जपेत् गोमारीशमः ॥३३॥
ॐ रणमो अमयासवाणं (झौ २ स्वाहा,) समस्तोपसर्गनाशः ॥३४॥
ॐ रणमो सप्पिरासवलद्धीणं झौ २ स्वाहा । एकाहिक--द्वयाहिक-- त्रयाहिक-चातुराहिक--षरण मासिक वार्षिक--वातिका-पंत्रिक-श्लैष्मिकादीना दिनत्रयेण शमः ॥३५॥
ॐ णमो खीरासबलद्धीणं झौ २ स्वाहा कायोत्सर्गे स्थित्वा १०८ जपेत् ततः क्षीरमभिमंत्रय दिन २४ पिबेत्, अष्टादशकुष्ठवणोपशमः ।। ३७॥
ॐ णमो जिणाणं जायमारणाणं न य पई नय सोणियं न य पच्चई न य फु टु इ वणं ठः ठः । रक्षा लवणं जलक्किन्नंवार २१ अभिमन्त्र्य बध्यते ॥३७॥
ॐ गमो जिणाणं णमो पण्हसमरणारणं णमो वेसमणस्स णमो रयण चूडाए रगमो पुण्य भद्दमारिणभद्दाण णमो सव्वाणभईण रयणुतर पुष्फचूलाणं णमो अट्टह वाईणं सिद्धिसंतिपुट्रिसिद्धा णवयरणं प्रारणाइक्कमरिणज्ज स्वाहा । गोरोयणा १० मरणपिलापत्र कुकुम च पोसपुणिमाए चउत्थेरणं ११ अट्ठसयं जाम्रो दायत्वा पुस्सजोगे वा परिर्जावतेणं गुलिया समालभिन्ना सव्वकज्जसाहरणी होइ विसास असज्जझया होइ ॥४४॥ ।
अण्डकोष वृद्धि व खाख बिलाई मंत्र मन्त्र .--ॐ नमो नलाई-ज्यां बैठ्या हनुमंत आई पके न फुटे चले बाल जात
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यस्वाहा
SA
म स्वाहा
स्निपरणेद्राय
स्वाहाट स्वाहा:बाह षट तापवावपटू
घायपट
होतयुद्रिाय 3
बाप रषद विजय प्रातकाका
स्वष्टास्वाहा
अदिदाप
मा
म्य बाजाय नमःTRA
....
asa Ra/
हा वषट् स्वाहा:
विषट् स्वाहा.
47
बाहा स्वाहा
तिगेलायन्नाटा
परनेहि जिणाoad
कसा आलाजमो महान
पदायिसा असिविभागानहर
"MAAणमोहीअहमछ
नाहाः/स्वाहास्वाहा पष्टपट घट
मलकिंगारूघदतावरबलाबजय.
आस्वहो IA
FEAtti
अहणली जाईजमा
मामकापाकगुE
सामगोपणसममाण घटस्वा चौघटस्वाहा
ऊरण
स्वाही होस्वाहा।।
पाहा
जिणाणवघर
सणाण प्राणोघट चाहार स्वाहा
भवटरवाजधख दिवष्ट
महाअपरेन्द्रीय
स्वाहा
ravy
लावषय
सुतेन्द्राय स्वाहा
। स्वाहा स्वाहा स्वाहा ।
जीवनभA
वघर -स्वा
वर
उ.औरणन्द्राथ ईन्द्रायस्वाहा जनमः
स्वार
मनमोहमी
डायस्वाहा.
Am साहा
3 आदित्यतीमगर
"
शतिररिमंड
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लघु विद्यानुवाद
रक्षा करे । गुरु रखवाला शब्द सांचा पिंड काचा चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा सत्य नाम आदेश गुरु को ।
विधि :- नीम की डाली से २१ बार झाडे तो अण्डकोष वृद्धि तथा खाख बिलाई ठीक हो ।
मन्त्र :- ॐ उमती उमती चल चल स्वाहा ।
विधि - शुभ मुहूर्त मे ११०० जाप कर इस मन्त्र को सिद्ध कर ले। सूत मे एक गाठ दे, और हर २१ बार पढकर एक गाठ दे ।
मस्सा नासक मन्त्र
मन्त्र
२४५
शरीर पर हा जाते
जाते है |
फिर २१ बार पढकर लाल इस तरह तीन गाठ देने पर
६३ बार मन्त्र पढ लिया जायेगा । इस सूत्र को दाहिने पैर के अंगूठे मे बाँध देने से खूनी बवासीर की पीडा दूर होती है ।
वरणहर मन्त्र
मन्त्र :- ॐ गमो जिरणारण जावयाणं पुसोरिग अं ए एरिए सव्व पायेण वरणमा पच्च उमा धुव उमा फुट् ॐ ॐ ठः ठः स्वाहा ।
विधि
- इस मन्त्र से राख अभिमन्त्रित कर व्रण जिनको वरण भी कहते है । जो बालको के उन पर अथवा शीतला के व्रणो पर लगावे, तो मिट
बाला (नहरवा) का मन्त्र
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- ॐ नमो मरहर दे शंक सारी गांव महामा सिधुर चांद से बाले कियो विस्तार बालो उपनो कपाल भांय या हुतियो गहु प्रो तोड़ कीजै नै उबाला किया पाचे फुटे पीड़ा करे तो विप्रनाथ जोगी री श्राज्ञा फुरे ।
विधि :—कुमारी कन्या के हाथ से कते सूत की डोरी करके ७ गांठ मन्त्र पढकर दे, पैर के बाध दे ।
बाला ठीक हो जायगा ।
घाव की पीड़ा का मन्त्र
मन्त्र - सार सार बिजे सार बांधू सात बार फूटे अन्न उपजे धाव सीर राखे श्री गोरखनाथ |
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२४६
लघुविद्यानुवाद
विधि :- इस मन्त्र को ७ बार पढकर घाव पर फूंके तो पीडा कम हो घाव भरे ।
कर्ण पिशाचिनी देवी का मन्त्र
मन्त्र :- ॐ ह्री अर्ह मो जिरगाणं लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोग ईवारणं, लोगपज्जोयगराणं मम शुभाशुभं दर्शय कर्णपिशाचिनी नमः स्वाहा ।
विधि - प्रतिदिन स्नान कर, शुद्ध वस्त्र पहनकर पूर्व की ओर मुँहकर रुद्राक्ष की माला से जाप शुरू करे । दसो दिशाओ मे एक एक माला फेरे २१ दिन तक । फिर जब जरूरत हो तो रात के समय एक माला फेर कर जमीन पर सो जाय, चन्दन घिस कान पर लगावे । स्वप्न मे प्रश्न का सम्पूर्ण उत्तर प्राप्त होगा, कान मे बीच मे चटका चलेगा घबराये नही ।
क्लीं बीजमंत्र
श्राकर्षण तन्त्र मे सबसे पहले क्ली बीजमन्त्र को सिद्ध कर लेना चाहिए। इसके सिद्ध होने के बाद ही आकर्षण मन्त्रो व तन्त्रो का प्रयोग करना चाहिये । उसके अभाव मे सफलता प्राप्त
क्लीँ
करना सम्भव प्रतीत नही होता । क्ली बीज मन्त्र को काय वीज यानि काय कला बीज कहते है । त्रिकोण की ऊर्ध्वमुख तथा अधोमुख स्थापन से जो आकृति बनती है उसे योनि मुद्रा कहते हैं । इसके
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लघुविद्यानुवाद
२४७
वीच मे क्ली बीजाक्षर की स्थापना करके ध्यान करना चाहिये । इस मन्त्र का जाप करते समय निम्न बातो को ध्यान मे रखना आवश्यक है :-- १ सर्व प्रथम भकुटी के बीच मे योनि मुद्रा की कल्पना करके उसके बीच मे क्ली बीजाक्षर
को स्थापना कर उसका ध्यान करना चाहिये । २. ध्यान मे इसका वर्ण लाल रग का बनाकर ध्यान करना चाहिये। ३. प्रात काल दो घण्टे तक इसका ध्यान करना चाहिये । ४ स्वस्थ मन शात चित्त होकर ही ध्यान व जप किया जाना चाहिये । ५. दाहिने हाथ की कनिष्ठा अगुली पर माला फेरनी चाहिये। ६ दण्डासन का उपयोग व दक्षिण दिशा की अोर मुह रखना चाहिये । ७ प्रवाल (मू गा) की माला का प्रयोग करना चाहिये। ८ ६ महिने मे यह बीज मन्त्र सिद्ध हो जाता है। उसके बाद वशीकरण व आकषण आदि मन्त्र का प्रयोग करना चाहिये।
वाक् सिद्धि मंत्र मन्त्र :-ॐ नमो लिंगोद्भव रुद्र देहि में वाचा सिद्ध बिना पर्वतं गते, द्रां, द्रों, द्र,
द्र, द्रौ, द्रः। विधि :-मस्तक पर बाया हाथ रखकर एक लक्ष जाप करे तो वचन सिद्ध हो। मन्त्र .-ॐ णमो अरिहंताणं धम्म नाय गाणंधम्म सार हीरणं धम्म वर चाउरंग चक्क
वट्ठीरणं मम् परमैश्वर्ये कुरु कुरु ह्रीं हंसः स्वाहा। विधि :-पूर्व की ओर मुख करके सफेद आसन, सफेद माला व सफेद वस्त्र पहनकर शुभ मुहर्त मे
जाप शुरू करे। मस्तक पर वाया हाथ रखकर एक लक्ष जाप कर, फिर एक माला रोज जपे तो वाक सिद्धि होती है।
दाद का मंत्र मन्त्र :--- गुरुभ्यो नमः देव देव पूरी दिशा मेरुनाथ दलक्षना भरे विशाह तो राजा
वैरधिन याज्ञा राजा वासुकी के पान हाथ वेगे चलाव । विधि -इस मन्त्र से पानी २१ बार मन्त्रित गर पिलाने से दाद का रोग दर होता है।
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२४८
लघुविद्यानुवाद
भजन है।
-संकलन कर्ता-श्री शान्तिकुमार गगवाल कुथु सागर, गुरुवर हमारे, हमको दर्शन दे रहियो ।
मन मन्दिर में आजइयो । टेक ॥ . रेवा चन्द्र के राज दुलारे, माता के हो प्राण पियारे । हमको दर्शन दे रहियो, मन मन्दिर में प्राजइयो ॥१॥ बीस वर्ष में दीक्षा धारी, छोड़ी है धन-दौलत सारी। शरण हमें स्वामी ले रहियो, मन मन्दिर मे आजइयो ॥२॥ भेष दिगम्बर तुमने धारा, सकल भेद विज्ञान संवारा । . भेद ज्ञान दरशा जइयो, मन मन्दिर मे आजइयो ॥३॥ मंडल को है शरण तुम्हारी, पूरी करना प्राश हमारी। मोक्ष मार्ग बतला जइयो, मन मन्दिर में प्राजइयो ॥४॥
- ॥ आरती॥ संतोषी लाल की दुलारी, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥टेक॥ कामा नगरी में जन्म लियो है, जन्म लियो है माता जन्म लियो है । माता जी हो प्यारी-प्यारो, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥१॥ यह संसार दुःखमय जाना, दुःखमय जाना, माता दुःखमय जाना । भारत देश उजियारी, 'मैं औरती · उतारूं तुम्हारी ॥२॥ बालापन में दीक्षा धारी, दीक्षा धारी, माता दीक्षा धारी। मुक्ति दीजे भव पारि, मै आरती उतारूं तुम्हारी ॥३॥ आप विदुषि हो माता जी, जय माता जी, जय माता जी । ज्ञान का है भण्डार भारी, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥४॥ गरणनी विजयमती माता जी, जय माता जी, जय माता जी । मंडल है शरण तुम्हारी, मै आरती उतारू तुम्हारी ॥५॥
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लघुविद्यानुवाद
। तृतीय खंड (अ)
(पृष्ट २४६ से ४००)
इस खण्ड में
२४६ २५१
२५२
२५७
२६०
२६१
रह२
मन्त्र लिखने की विधि व बनाने की विधि
यन्त्र महिमा वर्णन AS अथ यंत्र महिमा छद का भावार्थ US शकुन्दा पन्दरिया यन्त्र a विभिन्न कष्ट निवारण यन्त्र (चित्र सहित) 9 जय पताका यन्त्र, विजय पताका यन्त्र
सकट मोचन यन्त्र व विजय यन्त्र
चौसठ योगिनी यन्त्र 9 दूसरा चौसठ योगिनी यन्त्र © चौबीस तीर्थकरो का यन्त्र ॐ सर्व मनोकामना सिद्ध यन्त्र My विभिन्न कष्ट निवारण यन्त्र my श्री महालक्ष्मी प्राप्ति यन्त्र As मनोकामना पूर्ण एव कष्ट निवारण विभिन्न यन्त्र
पचागुली महायन्त्र का फल (चित्र सहित)
यत्र व मन्त्र की साधन विधि ॐ महायन्त्र का पूजा विधान
२६६ २६८
m
.
m
००
m
m
३०८
३९७ ४००
POE
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यंत्रो की प्राण प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी
यंत्रों की प्रारण प्रतिष्ठा मंत्र
पहले यत्रो का दुग्धादिक से नहरण करे, फिर यत्रो को सुगन्धित गध लेकर करें । यत्र की प्राण प्रतिष्ठा करके यत्र की पूजा करे । पूजा करने के बाद जिस कार्य के लिये जो यत्र हो वैसा उस यत्र का प्रयोग करे, सामान्यतः छोटे-छोटे यत्रो की पूजा तो मात्र निम्न प्रकार करे ।
ॐ ह्री हे यत्र राजाय अत्रा गच्छ-२ अत्र तिष्ठ-२ अत्र मम् सन्निहितो भव-२ वषट् । ॐ ह्री हे यत्र राजाय जल निर्वपामिति स्वाहा ।
इसी प्रकार गधाक्षतादि के मंत्र बोलकर पूजा कर लेवे । ऋषि मण्डल, कलिकुण्ड, सिद्धचक्रादि बडे-बडे यत्रो की पूजा विशेष रीति से करे प्रारण प्रतिष्ठा होने तक तो ऊपर के समान विधान करे, और फिर ऋषि मण्डल विधान कलि कुण्ड विधान करे, जो-जो यत्र है उस यत्र सम्बन्धित विधान करे ।
छोटे -२ यंत्रों की प्रारण प्रतिष्ठा मंत्र
ॐ श्रा को ही प्रसि, आउ साय र ल व श ष स ह अमुकस्य प्रारणा इह प्रारणा अमुकस्य X जीवा इह स्थिता अमुकस्य x यत्र मंत्र तत्रस्य सर्वेन्द्रियाणि काय वाड, मनश्चक्षु श्रोत्र धारण प्रारण देवदत्तस्य x इहे वायतु ग्रह पत्र सुख चिर तिष्टतु स्वाहा ।
X ऐसा निशान जहा कही पर भी हो वहा यत्र का नाम लेवे ।
बड़े - २ यंत्रो की प्राण प्रतिष्ठा मंत्र
2
ॐ ह्रीको अाइ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ ए ऐ ओ औ अ अ क्यू म्यू नमः परमात्मने ॐ ह स क ख ग घ ड ॐ ह्रा गमो अरहताण दम्य देवदत्ताण × प्राणॉया च छ ज झ ॐ ह्री णमो सिद्धारण पम्ल्यू जल देवताया x प्रारणा ट ठ ड ढॐ ह्र मो आइरियाण फ्ल्यू ू अग्नि देवताणा X प्रारणा त थ द ध न ॐ ह्र े णमो उवझायाण रम्यू वायु देवताया x प्रारणा प फ ब भ म ॐ ह्र गमो लोए सव्वसाहूण हम्ल्यू आकाश देवताया x प्राणायरल व श स ष ह क्ष ॐ णमो ग्ररहत केवलिगो भ्यू श्रानदेवताया X प्रारणा इह स्थिता सर्व यंत्र, मंत्र, तन रूपेण दिव्य देहाय सप्त धातु रूप कायेन्द्रियाणि देवदत्तस्य काय वाड, मनश्चक्षु श्रोत्र धारण जिव्हेन्द्रियाणि सु रूचिर सुख चिर तिष्ठतु स्वाहा ।
[x ऐसा निशान जहा भी हो मत्र का नाम लेवे ]
2
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प्रकारांतर से
यंत्र प्रारण प्रतिष्ठा मंत्र
ॐ को ही प्रसि श्रा उसा य र ल व श ष स हंस अमुकस्य त्वग्र शास्त्र मास मेदोऽस्थिमज्जा शुक्रारिण घातवः प्रमुकस्य यत्रस्य काय वाड मनश्चक्षु श्रोत्र धारण मुख जिव्हा सर्वाणि इन्द्रियाणि शब्द स्पर्श रस गध, प्राणायान समानोदान व्याना सर्वे प्राणा ज्ञान दर्शन प्राणश्च इहेव प्राशु ग्रागच्छत-२ सवोषट् स्वाहा । अत्र तिष्टत-२ ठ ठ स्वाहा । अत्र मम् सन्निहिता भवत-२ वपट् स्वाहा । अत्र सर्वजन सौख्याय चिरकाल नन्दतु वद्धता वज्र मया भवन्तु । ग्रह वज्रमयान करोमि स्वाहा ।
इस प्रकार यंत्र की प्रारण प्रतिष्ठा करके श्रागे की स्थापनादि करके पूजा करे 1
कम से कम प्राण प्रतिष्ठा मत्र को सात बार या नौ बार पढे, पढता जाये और यत्र के ऊपर पुष्प क्षेपण करता जाये अन्त मे यत्र पूजा के बाद विसर्जन करके यत्र को मंदिर वेदिया घर मे उच्च स्थान पर रख देवे, यत्र को गन्दे हाथादिक न लगावे, मासिक धर्म वाली स्त्री आदि न छुए, नही तो यत्र का प्रभाव कम हो जाता है, यत्र से कार्य होना बन्द हो जाता है, लाभ होने की अपेक्षा नुकसान होने लगता है यत्र तो प्रभाविक ही होता है लेकिन श्रद्धा पक्की होनी चाहिये श्रद्धा विना कोई भी कार्य नही होता । हमने देखा लोगो के घर में अनेक यत्र भरे पड़े है तो भी उनका कार्य नही हो रहा है और सबके पास यत्र लेते फिरते है । मेरा कहना है कि यत्र चाहे एक ही ले औौर चाहे किसी के पास से ही लो किन्तु श्रद्धा रखखो, श्रद्धा बिना कोई कार्य सिद्ध नही होता । यन्त्र का प्रतिदिन गध धूपादि पूजा करते रहना चाहिये ।
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तृतीय यंत्राधिकार मंत्र लिखने की विधि व बनाने की विधि
श्लोक :-इच्छा कृतार्द्ध कृत रूप हीनं। धने गृहे, षोडश सप्त चाष्टौ ।
१५ १०-० १ २ ७ ६ ३ ८ १ ४ ५ तिथि दशांशे प्रथमे च कोष्टे । द्वि सप्त षट् त्रि अष्ट कु वेद वाण ।
अर्थ:-जितने का यन्त्र बनाना हो उस सख्या का प्राधा करना, उसमे से एक कम करना, पुन. एक-एक कम कर लिखना, धने गृहे-६ वा कोठे में लिखना, फिर १६ वे कोठे मे लिखना, फिर ७ वे कोठे मे लिखना, फिर ८वे कोठे मे लिखना, फिर १५ वे कोठे मे लिखना, फिर १० वे कोठे में लिखना, इतना लिख जाने के बाद जो कोठे खाली रह जाये
कु वेद-वारण उन कोठो मे क्रमश: २, ७, ६, ३, ८, १, ४, ५। उदाहरणार्थ यन्त्र नीचे मुजब देखो जैसे कि हमको बनाना है ८४ का यन्त्र--
यन्त्र ८४ का
त
38
८४ -२-४२-१-४१ इस ४१ संख्या को कोष्टक का जो प्रथम खाना है चार लाइन वाला, उसके दूसरे खाने मे ४१ सख्या को रक्खे। फिर श्लोक मे लिखा है कि, धने गडे. राशियो मे सबसे अन्तिम वाली राशि धन राशि है। इसलिए धन राशि को हवा न० दिया है। सो कोष्टक मे भी नोवा खाना है उसमे एक सख्या घटा कर ४० रख देवे। इस प्रकार श्लोक मे जो जो नम्बर पूर्वक सकेत दिया है, उन २ खाने मे एक २ सख्या को कम करते हुए रख देना। इस प्रकार
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२५०
रखते हुए यन्त्र बना लेना । इसी वित्रि से अन्य प्रकार जिसको जितनी संख्या का यन्त्र बनाना हो वह । इसी प्रकार बनावे | ये १६ खाने वाले यन्त्र की विधि है ।
नो खाने वाले यन्त्र की विधि :- एक नो खाने वाला कोष्टक बनावे फिर उसको विधि के अनुसार सख्या भर देवे ।
-
१०
५
६
यन्त्र २१ का
३
७
११
८
m
३
४
' उदाहरणार्थ -जैसे हमको यन्त्र बनाना है तो दूसरे नम्बर कोठे मे १ लिखे फिर 8 नम्बर के कोठे मे २ लिखे, नम्बर के कोठे मे ३ लिखे, फिर ७ नम्बर कोठे मे ४ लिखे, फिर ५ नम्बर कोठे मे ५ लिखे, फिर ३ नम्बर कोठे मे ६ लिखे, फिर ६ नम्बर कोठे
१५ का फिर ४
1,1 3
यन्त्र १८ का
&
४
५
लघुविद्यानुवाद
ご
४
यन्त्र १५ का
१
५
ह
२
६
६
१०
७
२
७
८
३
११
६
७
यन्त्र २४ का
४
८
१२
ह
१०
५
1
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लघुविद्यानुवाद
२५:
मे ७ लिखे, फिर १ नम्बर के कोठे मे ८ लिखे, फिर ८ नम्बर के कोठे मे ६ लिखे, इस प्रकार यन्त कोष्टक भरने से १५ का यन्त्र तैयार हो जाता है। इसी प्रकार नो कोठे के यन्त्र लिखने की विधि है अन्य १८ या २१ का या ३३ जो भी जरूरत हो, वह इसी प्रकार लिखकर तैयार करे।
यन्त्र लेखन विधि समाप्त ।
यंत्र महिमा वर्णन जिरण चोवीसेपय प्रगमेवि, सह गुरु तणा वचन निसुरणेवि । यंत्र तणो महिमा अतिघणो, भावे बोलू भवियरण सुरणो ॥१॥ सोले कोठे लखिये वीश, सघला भय टाले जगदीश । अठावीसवाँ रोग भय हरै, छत्रीशे युति जय करे ॥ २ ॥ त्रीशे वलि सायंरिण (शाकिनी)नाशंति, वत्रीशे सुख प्रसवते हुति । देवध्वजा जो लखिये इसे, पर चर्चा भय न होवे किमे ॥ ३॥ घर वारणें जो लखिये एह, कामण नव पराभवे तेह । शाकरिण संहारनि हुवे तिहां, चोतीसो यंत्र लखिये जिहाँ ।। ४ ।। चालीशे शीश रोग टले, पागे वयरी हेला दले। अनेवली ठाकरवे बहुमान, वसुधावलि वाधारे मान ॥ ५ ॥ वासठे बंध्या गर्भ जु धरै, ऐसा वयण सद्गुरु उच्चरै। चौसठ रो महिमा छे घणो, मार्गे भय न होवे कोई तरणों ॥ ६ ॥ वारिभय रिपू शाकिणी तरणा, चौशठना नहीं प्रणं । बावत्तरो भूरू भूरि जेह, भुझे नर जय पाये तेह ॥ ७ ॥ पच्चासी पंथे भय हरे, अठयोत्तरि सो शिव सुख करे। वीशोत्तर सौ नयणे निरखंत, प्रसव वेतन तेब विहुत ।। ८ ।। बावनशोनो ऊली नीर, मुख धोवे होवे वाहलो वीर । सत्तरि भय नो महिमा अनन्त, तुच्छ बुद्धि किम जाणे जंत ॥६॥
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२५२
लघुविद्यानुवाद
एक सो बहुत्तरो यंत्र प्रभाव, बालक ने टाले दुष्ट भाव । बिहुमोनो यंत्र लखिये वाट, वाणिज्य धरणा होय हाट मझार ॥ १० ॥ त्रणशें नर नारी नो नेह, विणठो बांधे नहीं सन्देह । चारशें घर भय न विहोय, कण उत्पत्ति घरणी खेत्रे जोय ॥ ११ ॥ पाँच सै महिला गर्भज धरै, पुरुष हने पुत्र संतति करे। छशे यन्त्र होय सुखकार, सातशे झगड़े होय जयकार ॥ १२ ॥ नवसे पंथे न लागे चोर, दश में दुख न परभवें घोर । इग्यारसे छेजे जीव दुष्ट, तेहना भय टाले उत्कृष्ट ॥ १३ ॥ बन्दी मोक्ष वार से होय, दश सदृसे पुनः तेहिज होय । बली सयलनी रक्षा करे, एम यन्त्र तरणी महिमा विस्तरे ॥ १४ ॥ पच्चास से राजादिक मान, शाकिनि दोष निवारण जान । कण्ठे तथा मस्तक जे धरे, अशुभ कर्म ते शुद्ध जे करे ।। १५ ॥ बावन नामो मस्तके तथा, कंठे क्षेत्रपालनो हित सदा । परणयालीस सिर कण्ठे होय, सर्व वश्य धा तस जोय ॥ १६ ॥ . कुंकुम गोरोचन्दन सार, मृग मद सों चौदस रविवार । पवित्र पणे पुण्य मूल नक्षत्र, एकमना लखिये जो यन्त्र ।। १७ ॥ पार्श्व जिनेश्वर तणे पसाय, अलिय विघन सब दूर पलाय । पंडित अमर सुन्दर इम कहे, पूजे परमारथ सब लहे ।। १८ ।।
॥ इति छन्द महिमा ।
अथ यन्त्र महिमा छंद का भावार्थ :
बीसा यन्त्र सोलह कोठे मे लिखकर पास मे रखने से तमाम तरह के भय का नाश होता है। २२ (अट्ठाइसा) यन्त्र रोग भय को नष्ट करता है। ३६ (छत्तीसा) यन्त्र धात
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लघुविद्यानुवाद
२५३
सट्टा करने वाले पास रखकर करे तो विजय होती है । ३० (तीसा) यन्त्र से शाकिनी भय नष्ट होता है। ३२ (बत्तीसा) यन्त्र से कष्ट के समय उपयोग करने से सुख से प्रसव होता है। ३४ (चौतीसा) यन्त्र देवध्वजा पर लिखा जाय तो शुभकारक है । पर चक्र अथवा किसी के द्वारा भय प्राप्त होने वाला हो तो उसे मिटाता है। मकान के बाहर दीवार पर लिखने से पराभव नही होता। कामण टुमरण का जोर नही चलता। शाकिनी आदि पलायण हो जाती है। ४० (चालीसा) यन्त्र से सिरदर्द मिट जाता है। बैरी पावों मे गिरता है। गाव मे परगने मे मान-सम्मान बढता है। ६२ (बासठ) के यन्त्र से बन्ध्या स्त्री भी मानसम्मान गर्भ स्थिर धारण करती है। चोसठिया यन्त्र की महिमा बहत है। मार्ग मे सर्व प्रकार के भय से बच जाता है। ७२ (बहत्तरिया) यन्त्र से भूतप्रेत का भय नष्ट होता है, सग्राम मे विजय पाता है। ८५ (पिच्चासिये) यत्र से मार्ग का भय मिटना है। अट्टोत्तरिये यत्र से शिव सुख दाता सर्व कष्ट को नष्ट करने वाला है। २० (बिशोत्तर सो) यत्र बड़ा होता है जिससे प्रसव सुख रूप होता है । वेदना मिटती है । ५२ (बावन सौ) यत्र को पानी से धोकर मुख घोवे तो भाईचारा स्नेह बढता है । भाई बहिन के आपस मे प्रेम रहता है । १७० (एक सौ सत्तरिये) यत्र की महिमा बहुत है। इसका वर्णन तुच्छ बुद्धि से मनुष्य नही कर सकता। १७२ (एक सौ बहत्तरिया) यत्र से बालक को लाभ होता है, भय मिटता है । २०० (दो सौ) का यत्र दुकान के बाहर दीवार पर या मागलिक स्थापना के पास लिखने से व्यापार बढता है । ३०० (तीन सौ) के यत्र से नर नारी का 'म बढता है और टटा हा स्नेह फिर जड जाता है। ४०० के यत्र से घर मे भय नही होता। खेत पर लिखने से या लिखकर खेत मे रखने से उत्पत्ति अच्छी होती है। ५०० के यत्र से स्त्री को गर्भ धारण हो जाता है, और साथ ही पुरुष भी बाधे तो सतति योग भी होता है। बनता है। ६०० (छ. सौ) के यत्र से सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । ७०० के यत्र बाधने से झगडे टटो मे विजय करता है । ६०० (नोसौ) के यत्र से मार्ग मे भय नही होता, तस्कर का भय मिटता है । १००० (सहस्रिये) यन्त्र से पराजय-परभव नहीं होता और विजय पाता है। ११०० (ग्यारह सौ) के यत्र से दुष्टात्मा की ओर से भय क्लेश होता हो तो वह मिट जाता है। १२०० (बारह सौ) के यत्र से बन्दीवान् मुक्त हो जाता है । १०००० (दस सहस्रिये) यत्र से बन्दीवान मुक्त हो जाता है । ५०००० -- (पचास सहस्रिये) यत्र से राज मान मिलता है, कष्ट मिटता है। इस तरह प्राचीन छन्द का भावार्थ है। इसमे बताये बहुत से यत्र हमारे सग्रह मे नही, लेकिन यत्र महिमा और उनमे होने वाले लाभ का पाना छन्द भावार्थ से समझ मे आ सकेगा। जिनको आवश्यकता हो यत्र शास्त्र के निष्णात से लाभ उठावे।
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लघु विद्यानुवाद
यत्र लेखन गन्ध || यत्र अष्ट गध से और यक्ष कर्दम से लिखे जाते है और कलम के लिए भी अलग विधान है ।। अनार की चमेली की श्रीर सोने की कलम से लिखना बताया है सा यत्र के बयान में जिस प्रकार की कलम या गध का नाम श्रावे वैसी तैयारी कर लेना चाहिये । लिखते समय कलम टूट जाय तो यत्र से लाभ नही हो सकेगा गौर लिखते समय गवादि भी कम न हो जाय जिसका उपाय पहले ही कर लेना चाहिये ।। अष्ट गध मे अगर, तगर, गोरोचन, कस्तूरी, चन्दन, सिन्दूर, लाल चन्दन, कपूर इनको एक खरल में घोट कर तैयार कर लेना चाहिये । स्याही जैसी रस बना लेनी चाहिये ||=|| अष्ट गध का दूसरा प्रकार कपूर, कस्तूरी, केशर, गोरोचन, सघरफ, चन्दन और गेहुँला । इस तरह आठ वस्तु का बनता है । अष्टगंध का तीसरा विधान केशर, कस्तुरी, कपूर, हिंगुल, चन्दन, लाल चन्दन, अगर, तगर लेकर घोटकर तैयार कर लेना । पच गध का विधान केशर, कस्तूरी, कपूर, चन्दन, गोरोचन इन पाच वस्तुओ का मिश्रण कर रस बना लेना । ॥ यक्ष कर्दम का विधान, चन्दन, केशर, कपूर, अगर, तगर, कस्तूरी, गोरोचन, हिगुल रत्ता जरणी, अम्बर सोने का वर्क, मिरच, ककोमु इन सबको लेकर स्याही जैसा रस बना लेवे || ऊपर बताए अनुसार स्याही जैसा रस तैयार कर पवित्र कटोरी या अन्य किसी स्वच्छ पात्र मे लेना । ध्यान रखिये कि जिसमे भोजन किया हो अथवा पानी पिया हो तो वह कटोरी काम मे नही आ सकेगी। स्याही यदि तत्कालिक बनाई हो अथवा पहले बनाकर सुखाकर रखी हो तो उसे काम मे ल सकते है । सब तरह के गंध या स्याही की तैयारी मे गुलाब जल काम मे लेना चाहिये और अनार की या चमेली की कलम एक गुल से याने ग्यारह तेरह अगुल लम्बी होनी चाहिए और याद रखिये कि ग्यारह अगुल से कम
1
मना है । सोने का निब हो तो वह भी नया होना चाहिए जिससे पहले कभी न लिखा हो । जिस होल्डर मे निब डाला जाय उसमे लोहे का कोई अश नही होना चाहिए । इस तरह की तैयारी व्यवस्थित रूप से की जाय ।। भोजपत्र स्वच्छ हो, दाग रहित हो, फटा हुआ नही हो ऐसा स्वच्छ देखकर लेना और यन्त्र जितना बडा लिखना हो उससे एक अ गुल अधिक लम्बा, चौडा लेना चाहिए, भोजपत्र न मिले तो अभाव मे आवश्यकता पूरी करने को कागज भी काम ले सकते है | = ॥ यन्त्र लेखन योजना ।। ।।जब यन्त्र का साधन नया सिद्धि करने के लिए बैठे उससे पहले यन्त्र को लिखने की योजना को समझ ले । बिना समझे या अभ्यास किये बगैर यत्र लिखोगे तो उसमे भूल हो जाना संभव है । मान लो भूल हो गयी लिखे हुए अक को काट दिया या मिटा दिया और उसकी जगह दूसरा लिखा हो वह भी यत्र लाभदायक नही होगा यदि न क लिखते समय अधिक या एक के बदले दूसरा लिखा गया तो वह भी एक प्रकार की भूल मानी गयी है । अत इसी तरह से लिखा गया हो तो उसका कागज या भोजपत्र, जिस पर लिख रहे हो उसको छोड दो और दूसरा लेकर लिखने लगो इस तरह एक भी भूल न होने पाए । इसीलिए पहले लिखने का अभ्यास कर लेना चाहिए ।। यत्र लिखते समय यत्र मे देख नो
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लघुविद्यानुवाद
कि सबसे छोटा या कम गिनती वाला अक किस खाने मे है । और जिस खाने मे हो उसी खाने से लिखना शुरू किया जाय और वृद्धि वाले अंक से लिखते जाओ। जैसे यत्र मे सबसे छोटा अक पजा है तो पाच का अक जिस खाने मे है उसी खाने से लिखने को शरूपात करो और बाद मे वद्धि पाते हुए याने छ सात, आठ, जो भी सख्या लिखे हुए की पहली अधिक हो उसे लिखते हुए यत्र पूरा लिख लो। ऐसा कभी मृत करना कि यत्र के खाने अकित किए बाद प्रथम के खाने मे जो अक हो उसे लिखकर बाद मे जो खाने है उनमे लाइन सिर लिखते जानो। यदि इस तरह से यन्त्र लिखा गया हो तो वह यन्त्र लाभ नही पहुचा सकेगा। इसलिए यन्त्र लिखने की कला बरावर सीख, लेनी चाहिए और लिखते, समय बराबर सावधानी से लिखना योग्य है। “यत्रो की योजना" यन्त्र मे जो विविध प्रकार के खाने होते है जिसमे से कई यन्त्र तो ऐसे होते है कि जिनमे लिखे अको को किसी भी तरह स गिनते हए अन्त की सख्या एक हो प्रकार की आवेगो। बहधा इस प्रकार के यन्त्र आप देखेंगे इस तरह की योजना से यह समझ मे ग्राता है कि यन्त्र अपने बल की प्रत्येक दिशा मे एकता रखता है और दिशा मे भी निज प्रभाव को कम नही होने देता ॥ यत्रो मे भिन्न भिन्न प्रकार के खाने होते है, और वह भो प्रमाणित रूप से व अको से अकित होते है । जिस प्रकार प्रत्येक अक निज बल को पिछले अक मे मिला दश गुना बढा देता है। तदनुसार यह योजना भी यन्त्र शक्ति को बढाने के हेतु की गयी, समझना चाहिये । जिन यन्त्रो मे विशेष खाने हो और उन खानो मे अकित किए हुए अको को किधर से भी मिलान करने से एक ही योग की गिनती आती हो तो इस तरह के यन्त्र अन्य हेत से समझना चाहिए और ऐसे यन्त्रो का योगाक करने की भी आवश्यकता नही होती है। ऐसे यत्र इस तरह देवो से अधिष्ठित होते है कि जिनको प्रभाव बलिष्ट होता है-जैसे भक्तामर आदि के यन्त्र है। इसलिए जिन यन्त्रो मे योगाक एक मिलता हो उनके प्रभाव मे या लाभ प्राप्ति के लिए शका करने की आवश्यकता नहीं है ।। यन्त्र लेखन विगन ।।।। यन्त्र लिखने बैठे तब यदि यन्त्र के साथ विधान लिखा हुआ मिलेगा तो उस पर ध्यान देना चाहिए और खासकर यन्त्र लिखते मौन रहता उचित है। सुखासन से आसन पर बैठना सामने छोटा बडा पाटिया या बाजोठ हो तो उस पर रखकर लिखना परन्तु निज के घुटने पर रखकर कभी न लिखना चाहिए। क्योकि नाभि के नीचे का अग ऐसे कार्यो में उपयोगी नही माना है।
प्रत्येक यन्त्र के लिखते समय धूप, दीप आदि अवश्य रखना चाहिए और यन्त्र विधान मे जिस दिशा की तरफ मुख करके लिखना बताया हो देख लेवे। यदि न लिखा मिले तो सुखसम्पदा प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा की तरफ और सकट-कष्ट, आधि-व्याधि के मिटाने को उत्तर
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दिशा की तरफ मुख करके बैठना चाहिए। तमाम क्रिया करे तो शरीर शुद्धि कर स्वच्छ कपडे पहिन करके विधान पर पूरा ध्यान रखना ।।-॥ यन्त्र चमत्कार ||-यन्त्र का बहुमान कर उससे लाभ प्राप्त करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आती है। वार्षिक पर्व दिवाली के दिन दुकान के दरवाजे पर या अन्दर जहाँ देव स्थापना हो वहा पर पन्दरिया चोतीस पेसठिया यन्त्र लिखने की प्रथा है । जगह-जगह बहुत देखने में आती है। विशेष मे यह भी देखा है कि गर्भवती स्त्री कष्ट पा रही हो और छुटकारा न होता हो तो विधि सहित यन्त्र लिखकर उस स्त्री को दिखाने मात्र से ही छुटकारा हो जाता है। और किसी स्त्री को डाकिनी शाकिनी सताती हो तो यन्त्र को हाथो पर या गले मे बाधने मात्र से या सिर पर रखने से व दिखाने मात्र से आराम हो जाता है । प्राचीन काल मे ऐसी प्रथा थी कि किले या गढ की नीव लगाते समय अमुक प्रकार का यन्त्र लिख दीपक के साथ नीव के पास मे रखते समय भी बहुत से मनुष्य यन्त्र को हाथ मे बाधे रहते है, और जैन समाज मे तो पूजा करने के यन्त्र भी होते है जिनका नित्य प्रति प्रक्षाल कराया जाता है । और चदन से पूजा कर पुष्प चढाते है। इस तरह से यन्त्र का बहुमान प्राचीन काल से होता आया है जो अब तक चल रहा है ।। साथ ही श्रद्धावान लोग विशेष लाभ उठाते है। श्रद्धा रखने से आत्म विश्वास बढता है । साथ ही श्रद्धा भी फलती है । जिस मनुष्य को यन्त्र पर भरोसा होता है उसे फल भी मिलता है। एकनिष्ठ रहने की प्रकृति हो जाती है और इतना हो जाने से आत्म बल, आत्म गुण भी बढता है। परिणाम मजबूत होते हैं और प्रात्म शुद्धि होती है । इसलिए विश्वास रखना चाहिए।
___ यन्त्र लेखन कैसे करवाना ||-॥ जो मनुष्य मन्त्र शास्त्र यन्त्र शास्त्र के जानकार और अक गणित जानने वाले ब्रह्मचारी, शीलवान, उत्तम पुरुष हो, उनसे लिखवाना चाहिए और ऐसे सिद्ध पुरुष का योग न पा सके तो जिस प्रकार का विधान प्रति मन्त्र के साथ लिखा हो उसी तरह से तैयारी कर मन्त्र लेखन करे। और लिखते ही यन्त्र को जमीन पर नही रखना और जिसके लिए बनाया हो उसे सूर्य स्वर या चन्द्र स्वर मे देना चाहिए ।। लेने वाला बहुमान पूर्वक ग्रहण करते समय देव के निमित्त फल भेट करे तो अच्छा है। यन्त्र लेने के बाद सोने के चादी या ताबे के मादलिए मे यन्त्र को रख देना भी अच्छा है। यदि मादलिया न रखना हो तो वैसे ही पास मे रख सकते है। यन्त्र को ऐसे ढग से रखना उचित है कि वह अपवित्र न हो सके मृत्यु प्रसग मे लोकाचार मे जाना पड़े तो वापसी आने पर धूप खेने से पवित्रता प्रा जाती है ।।।
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शकुनदा पन्दरिया यन्त्र ॥१॥ पदरिया यन्त्र आपके सामने है इसमे एक से नौ प्रक तक की योजना है। इसलिए इसको सिद्ध चक्र यन्त्र भी कहते है। इस यन्त्र पर शकुन लिए जाते है। ताबे के पत्रे पर या कागज पर प्रष्ट गध से अच्छे समय मे यन्त्र लिख लिया जाय और जहा तक हो सके (आम) आबे के पाटिया का बना हुआ पाटला हो उस पर स्थापित करे। आबे का पाटिया न मिल सके तो जैसा भी मिले उस पर स्थापित कर धूप से निज हाथो को स्वच्छ कर नवकार मन्त्र नौ बार बोलकर तीन चावल या तीन गेहू के दाने लेकर ऊपर छोड देवे । जिस अक पर कण अर्थात् दाने गिरे उसका फल इस तरह समझ लेवे । चोके छक्के दोसे नही। शकुन वीचारी
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आवे, बीये अछे सात तिये बात सूनावे। रुके पजे नव निधि पावे ।। इस तरह फल का विचार कर कार्य की सिद्धि को समझ लेना ॥१॥
द्रव्य प्राप्ति पन्दरिया यन्त्र ॥२॥ . इस यत्र से बहुत से लोग इसलिए परिचित है कि दिवाली के दिन दुकान मे पूजन विधान मे लिखते है । जब कार्य की सिद्धी के लिए लिखना है तो सिन्दूर से लिखना चाहिए। पहले छोटे खाने
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शुद्ध कलम से बनाकर एक अक छट्ट खाने है वहा से शुरुआत करे। सातवे खाने में दो का प्रक दूसरे मे तीन का अक इस तरह चढते अक लिखना चाहिये और बाद मे चन्दन या कु कुम से पूजा कर पुष्प चढाना धूप खेय कर नैवेद्य फल चढा कर हाथ जोड लेना चाहिये यही इसका विधान है। यत्र लिखते समय जहाँ तक हो सके श्वास स्थिर रख मौन रहकर लिखना चाहिए और हो सके तो नित्य धूप खेय कर नमन कर लेना चाहिए ॥२॥
वशीकरण पंदरिया यन्त्र ॥३॥
यह पदरिया यत्र भोज पत्र या कागज पर पच गध से लिखना चाहिए। विशेषकर शुक्ल पक्ष मे पूर्व तिथि के दिन शुभ नक्षत्र मे घी का दीपक सामने रख, धूप खेयकर चमेली की कलम से
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लिखना और इस यत्र को पास रखना चाहिए। शीघ्र से सिद्ध करना है तो जिस काम पर काम करना है प्रात काल मे यन्त्र को धप से खेवे और कार्य का नाम लेवे। यन्त्र को नमन कर पास में ले कार्य सिद्धि हो जाती है ॥३॥
उच्चाटन निवारण पन्दरिया यन्त्र ॥४॥
यह यन्त्र उच्चाटन या उपद्रव को नाश करने में सहायक होता है। प्राचीन समय से पद्धति चली ग्राती है कि इस यत्र को दिवाली के दिन दकान के दरवाजे पर लिखते हैं पार इस को लिखने का कारण यही है कि भय का नाश हो और सुख सम्पदा आवे। लिखते समय धूप, रखना और सिन्दूर से चमेली की कलम से लिखना चाहिए। दरवाजे के सिरे पर कोई मागाला स्थापन हो तो उसके दोनो तरफ लिखना। स्थापना न हो तो दरवाजे मे जाते दाहिना तर
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के भाग मे लिखना चाहिए। इस यन्त्र को जब किसी मनुष्य को भय उत्पन्न हुआ हो और उसे वास्तविक भय के सिवाय बहम भी हो रहा हो तो उसके निवारण के लिए भोज पत्र पर प्रष्ट गध से लिखकर पास मे रखने से स्थिरता आयेगी, बहम दूर होगा । यत्र को दशाग धूप से खेना चाहिए ||४||
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प्रसूति पीडा हर यंत्र (पंदरिया यंत्र ) ||५||
प्रसूति को प्रसव के समय पीडा हो और शीघ्र छुटकारा न हो तो कुटुम्ब में चिता बढ जाती है । जब ऐसा समय आया हो तो इस यत्र को सिन्दूर से या चन्दन से अनार की कलम से
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मिट्टी की कोरी ठीकरी जो मिट्टी के टूटे हुए बर्तन की हो। इसमे लिखकर लोबान से खेबकर प्रसूति वाली को बताने से प्रसव शीघ्र हो जायगा । प्रसूति स्त्री यत्र को एक दृष्टि से कुछ देर देखती रहे, और इतने पर से प्रसव शीघ्र नही होवे तो चदन से लिखे हुए यत्र को स्वच्छ पानी से उस ठीकरी पर के यत्र को घोकर वह पानी पिला देवे तो प्रसूति पीडा मिट जायगी ॥५॥
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मृत्यु कष्ट दूर पंदरिया यन्त्र ||६||
यह यत्र उन लोगों के काम का है जो जीवन की जोखिम का काम करते है । जल मे, स्थल मे, व्योम मे या वराल यत्र से आजीविका चलाते हो या ऐसा कठिन काम हो कि जिनके करते
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समय आपत्ति आने का अनुमान किया जाता है । इस यत्र की तरह के कार्य करने वाले इस यत्र को यक्ष कर्दम से लिखकर अपने पास रखे तो अच्छा है । इस यन्त्र को अनार की कलम से लिखना चाहिए और दिवाली के दिन मध्य रात्रि मे लिखकर पास मे रखे तो और भी अच्छा है। दिवाली के दिन नही लिखा जाय तो अच्छा दिन देखकर विधान के साथ लिख मादलिये मे रख पास मे रखे ॥६॥
पिशाच पीड़ा हर यन्त्र ॥७॥ (सत्तरत्रिया यंत्र) पिशाच, भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी इत्यादिक कष्ट पहचाता हो तो उसे निवारण करने के लिये ऐसे यन्त्र को पास मे रखना चाहिये । भोजपत्र या कागज पर यक्ष कर्दम से अनार या चमेली की कलम से अमावस्या, रविवार और मूल नक्षत्र इन तीनो मे एक जिस दिन हो स्वच्छ होकर मोन
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५॥
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२॥
१॥
___४॥
रह कर इस यन्त्र को लिखे लोबान व धप दोनो का धूपा चलता रहे। उत्तर दिशा या दक्षिण । की तरफ लाल या श्याम रग के आसन पर बैठ कर लिखो। विशेष बात सात रग के रेशम का धागा से यन्त्र को लपेट देवे और मादलिये मे रख ले या कागज मे लपेट अपने पास रखे। विशेष जिसक लिये बनाया हो उसका नाम यन्त्र के नीचे लिखे कि "शाकिनी पीडा निवारणार्थ या भूत १ निवार्णार्थ ।” जिसकी ओर से पीडा होती हो उसका नाम लिखे । किसी, मनुष्य को कोई शत्रु या मनुष्य सताता हो, कष्ट पहुंचाता हो, हैरान करता हो, परेशान करता हो तो यन्त्र लिख द्वारा उत्पन्न पीडा के निवार्थ ऐसा लिखाना चाहिए और तैयार करने के बाद पास में र" कप्ट हो रहा होगा उससे शाति मिलेगी। दोनो विधान में यक्ष कर्दम मे लिखना चाहिए ॥७॥
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सिद्धिदाता बीसा यन्त्र ||८||
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बीसा यन्त्र बहुत प्रसिद्ध है और यह कई तरह के होते है जैसा कार्य हो वैसे यन्त्र बनाया जाय, तो लाभ होता है । इस यन्त्र को अष्ट गध से भोज पत्र चमेली की या सोने की कलम से लिखना चाहिए । भोजपत्र स्वच्छ लेकर गुरुपुष्यवार, विपुष्य योग हो । उस दिन या पूर्णा तिथि
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लिखे और पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके लिखे । दीपक धूप सामने रखे । यन्त्र तैयार होने के बाद जिसको दिया जाय वह खडा हो दोनो हाथो मे लेकर मस्तक चढावे और पास रखे तो ससार के कामो मे सिद्धि मिलती है ||८||
लक्ष्मीदाता विजय बीसा यन्त्र || ||
इस यन्त्र को लिखना हो तब आम्बे के पटिये पर गुलाल छिड़क कर उस पर चमेली की कलम से एक सौ आठ बार यन्त्र लिखे वही गुलाल या दूसरी गुलाल छाटता रहे । बारीक कपडे
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मे गुलाल रखकर पोटली बनाने से छाटने मे सुविधा होगी। जब एक सौ आठ बार लिख ले तब उसी समय अष्ट गध से भोज पत्र पर या कागज पर यन्त्र को लिख कर पास मे रखे तो उत्तम है। व्यापार या क्रय विक्रय का कार्य पास मे रख कर किया करे और हो सके तो नित्य धूप भी देवे ॥६॥
सर्व कार्य लाभ दाता बीसा यन्त्र ॥१०॥ यह यन्त्र तमाम कार्य को सिद्ध करता है। इस यन्त्र को ताबे के पत्रे पर या भोज पत्र पर लिख कर तैयार कर अष्ट गध और चमेली की सोने की कलम से लिखे। शुक्ल पक्ष शुभ वार
यन्त्र नं १०
पूर्णा तिथि या सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग हो उस दिन लिख कर रख लेवे और अमृत धूप दीप रख लेवे प्रात काल से यन्त्र की स्थापना कर सामने सफेद आसन पर बैठकर नीचे लिखे मन्त्र का जाप करे । जाप कम से कम साढे बारह हजार और अधिक करे तो सवा लाख जाप पूरा कर, फिर यन्त्र को पास मे रख कर कार्य करे।
मन्त्र -ॐ ह्री श्री सव काय फलदायक कुरू कुरू स्वाहाः। यन्त्र तैयार हो जाने के बाद जब पास म
रखा जाय और अनायास प्रसूति ग्रह या मत देह दाह क्रिया में जाना हो तो वापस आकर यन्त्र को धूप खेवने मात्र से शुद्ध हो जायगा ॥१०॥
शांति पुष्टि दाता बीसा यन्त्र ॥११॥ शाति पुष्टि मिलने के लिये यह यन्त्र बहत उत्तम माना गया है। जब इस तरह का यन्त्र तैयार करना हो तो स्वच्छ कपडे पहिन कर पूर्व दिशा की ओर देखता हा बैठकर धूप दीप
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रख कर इष्ट देव का स्मरण कर इस यन्त्र को आबे के पटिये पर एक सौ पाठ बार गुलाल छिड़क कर लिखे और विधि पूरी होने पर भोज पत्र या कागज पर, अष्ट गध से लिखकर यत्र को अपने पास मे
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रखे। जिसके लिये यन्त्र बनाया हो उसका नाम यन्त्र मे लिखे अर्थात् मनुष्य के श्रेयार्थ ऐसा लिख शुभ समय मे हाथ मे चावल या सुपारी ले कर यत्र सहित देवे । लेने वाला लेते समय तो आदर से लेवे, और कुछ लेने वाला भेट यन्त्र के नाम से कर धर्मार्थ खर्च करे। यह यन्त्र शुभ फल देने वाला है। शाति पुष्टि प्रदायक है। श्रद्धा रख कर पास में रखने से फलदायक होता है। यत्र न ११
क. यत्र न ११
बाल रक्षा बीसा यन्त्र ॥१२॥ इस यन्त्र की योजना मे एक अक्षर बाये से दाहिने ओर का एक खाना बीच मे छोडकर दो बार पाया है जो रक्षा करने मे बलवान है। इस यन्त्र को शुभ योग मे भोज पत्र या कागज पर प्रष्ट गध से अनार की कलम से लिखे और लिखने के बाद भेट कर ऊपर रेशम का धागा लपेटते हए नौ प्राटे लगा देवे। बाद मे धूप खेवे मादलिये मे रखे। गले में या कमर पर जहाँ सुविधा हो
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लघुविद्यानुवाद
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बाध देवे वास्तव मे गले मे बाधना अच्छा रहता है। इसके प्रभाव से बालक बालिका के लिये भय, चमक, डर आदि उपद्रव नहीं होते और हर प्रकार से रक्षा होती है ॥१२॥
आपत्ति निवारण बीसा यन्त्र ॥१३॥ मनुष्य के लिये आपत्ति तो सामने खडी होती है। ससार प्राधि-व्याधि उपाधि की खान है । जब जब कष्ट आते है तब मित्र भी बैरी बन जाते है। ऐसे समय मे इस यन्त्र द्वारा शांति मिलती है। आपत्ति को आपत्ति मानता रहे और हताश होता रहे तो अस्थिरता बढती
यन्त्र न. १३
है। अत: इस यन्त्र को पच गध से चमेली की कलम से भोजपत्र या कागज पर लिख कर पास मे रखे और जिस मनुप्य के लिये यन्त्र बनाया हो उसका नाम यन्त्र में लिखे अमुक की आपत्ति
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निवार्थ ऐसा लिख कर समेट कर चावल, सुपारी, पुष्प और यन्त्र हाथ मे दे देवे । लेने वाला मन्त्र को पास मे रखे और चावल सुपारी आदि जल मे प्रवेश करा देवे । आपत्ति से बचाव होगा और आपत्ति को नष्ट करने मे हिम्मत पैदा होगी। दिमाग मे स्थिरता आवेगी साथ ही अपने इष्ट देव के स्मरण को भी करता रहे। इष्ट का आराधना ऐसे समय मे बहुत सहायक होता है। और दान, पुण्य करने से आपत्ति का निवारण होता है। इस बात का ध्यान रखे। इष्ट सिद्धि होगी ॥१३॥
गृह क्लेश निवारण बीसा यन्त्र ॥१४॥
ग्रह क्लेश ग्रहस्थ के यहा अनायास छोटी बडी बात मे हुआ करता है और सामान्य क्लेश हुआ हो तो जल्दी नष्ट हो जाता है परन्तु किसी समय ऐसा हो जाता है कि उसे दूर करने मे कई तरह की कठिनाइया आ जाती है और क्लेश, दिन-दिन बढता रहता है। और ऐसे समय में यह बीसा यन्त्र बहत काम देता है। इस यन्त्र को भोज पत्र या कागज पर यक्ष कर्दम से लिखना चाहिये और
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लिखने के बाद एक यन्त्र को ऐसी जगह लगा देना कि जिस पर सारे कुटुम्ब की दृष्टि पड़ती रहे और एक यन्त्र घर का मुखिया पुरुष निज के पास भे रखे और पहला यन्त्र जिस जगह लगाया हो वह शरीर भाग से ऊँची जगह पर लगावे और नित्य धूप खेय कर उपसम होने की प्रार्थना करे तो क्लेश मष्ट हो जाएगा। प्रत्येक कार्य मे श्रद्धा रखनी चाहिये। इष्ट देव के स्मरण को कभी नही भलना. जिससे कार्य की सिद्धि होगी ॥१४॥
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लक्ष्मी प्राप्ति बीसा यन्त्र ॥१५॥
ससार मे लक्ष्मी की लालसा अधिक रहा करती है। इसीलिये लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अनेक उपाय ससार मे गतिमान हो रहे है और ऐसे कार्यो की सफलता के लिये यह यन्त्र काम मे आता है। जिसको इस यन्त्र का उपयोग करना हो तब उत्तम समय देखकर अष्ट गध से या पच गंध
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से लिख ले । कलम सोने की या अनार की अथवा चमेली की जैसी भी मिल सके लेकर भोजपत्र या कागज पर लिखे और यन्त्र को अपने पास मे रखे। हो सके तो इस तरह का यन्त्र ताबे के पत्र पर तैयार करा, प्रतिष्ठित करा, निज के मकान मे या दुकान मे स्थापना पर नित्य पूजा करे। सुबह शाम घी का दीपक कर दिया करे तो लाभ मिलेगा। इष्टदेव के स्मरण को न भूले । पुण्य सचय कर पुण्य से आशाएँ फलती है और दान देवे तो लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।।१५।।
भूत-पिशाच-डाकिनी पीड़ा हर बीसा यन्त्र ॥१६॥ जब ऐसा बहम हो जाय कि भूत पिशाच-ढाकिनी पीडा दे रही हो तब यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र वाले को तलाश की जाती है। और इस तरह के बहम अक्सर स्त्रियो को हो जाया करते है आरएस बहम का असर हो जाने से दिन भर सुस्ती रहती है रोती है, रुग्णता रखती है और ऐसे वहम का असर और पाचन शक्ति कम हो जाती है। और भी कई तरह के उपद्रव हो जाने से घर के सार
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मनुष्य चितातुर हो जाते है और यन्त्र मन्त्र वालो की तलाश करने मे बहुत साधनं खर्च करते है ऐसे समय मे यह बीसा यन्त्र काम देता है। यन्त्र को यक्ष कर्दम से अनार को कलम से लिखना चाहिये लिखते समय उत्तर दिशा की तरफ मुह करके बैठना और यन्त्र भोज पत्र पर अथवा कागज पर
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लिखवा कर दो यन्त्र करा लेना। जिसमे से एक यत्र को मादलिया मे रखकर गले मे या हाथ मे बाँध देना । दूसरा यत्र नित्य प्रति देखकर डब्बी मे रख देना और जिस समय पीडा हो तव दो-चार मिनट तक पाखे बन्द किये बगैर यत्र को एक दृष्टि से देखकर वापस रख देना, सो पीड़ा दूर जायेगी, कप्ट मिटेगा और धन व्यय से बचत होगी। धर्म नीति को नहीं छोड़ना ।।१६।।
बाल भय हर इक्कीसा यन्त्र ॥१७॥ बालफ को जब पीडा होती है, चमक हो जाती है तब अधिक भय पुत्र की माता को
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हुआ करता है और जिस प्रकार से हो सके पीडा मिटाने का उपाय किये जाते है, और घर के सव लोग ऐसा अनुमान करते है कि किसी की दृष्टि लगने से या भय से अथवा चमकते यह पीडा हो गयी है । इस तरह की पीडा दूर करने मे यह यत्र सहायक होता है । जब यत्र तैयार करना हो तब भोजपत्र अथवा कागज पर यक्ष कर्दम से अनार की कलम लेकर लिखना चाहिये। जब यत्र तैयार हो जाय तब समेट कर कच्चे रेशमी धागे से सात अथवा नौ आटे देकर मादलिये मे रख गले मे या हाथ मे बाँधने से पीडा मिट जाती है। आपत्ति चिता का नाश हो जाता है । बालक आराम पाता है। नित्य इष्टदेव के स्मरण को नही भूलना चाहिये ||१७||
नजर दृष्टि चौबीसा यन्त्र ॥ १८ ॥
बालक को दृष्टि दोष हो जाता है । तब दूध पीने या कुछ खाते समय अरुचि हो जाने से वमन हो जाता है । पाचन शक्ति कम हो जाने से मुखाकृति रक्त रहित दिखने लगती है । इस तरह
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को हालत हो जाने से घर मे सबको चिंता हो जाती है । इस तरह परिस्थिति में चौवीसा यंत्र भोजपत्र अथवा कागज पर अनार की कलम लेकर यक्ष कर्दम से लिखना चाहिये और मादलिये में रख गले मे या हाथ पर बाघना और जिस मनुष्य का या स्त्री की दृष्टि की दृष्टि दोष हुआ हो 'तो केवल इतना ही उसका नाम देकर दृष्टि दोष निवारणार्थ लिखना चाहिये यदि नाम स्मरण न लिखना कि दृष्टि दोष निवारणार्थ यत्र तैयार हो जाय तब समेट कर कच्चे रेशमी धागे मे आटे देकर यत्र के पास मे रखे या गले पर या हाथ पर बांधे तो दृष्टि दोष दूर हो जाता है ||१८||
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प्रसूती पीड़ा हर उन्तीसा यन्त्र ॥१६॥ यह यत्र उन्तीसा और तीसा कहलाता है। ऊपर के तीन कोठे और बायी तरफ के तीन कोठो मे तो उन्तीस का योग आता है। और मध्य भाग के तीनो कोठे और नीचे के
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तीन कोठे और ऊपर से नीचे तक मध्य विमाना व दाहिनी ओर के तीन कोठो मे तीस का योग आता है गर्भ प्रसव के समय मे यदि पीडा हो रही हो तब इस यन्त्र को कुम्हार के अवाडे की कोरी कोठरी पर अष्ट गध से लिखकर बताने से प्रसव सुख हो जाएगा। बताने के बाद भी पीडा होती है तो यन्त्र को पीतल या ताबे के पत्त पर थाली मे अष्ट गध से अनार की कलम से लिख कर धूप देकर धोकर पिलाने से पीडा मिटती है और प्रसव सुखपूर्वक हो जायगा ॥१६॥
गर्भ रक्षा तीसा मन्त्र ।।२०।। यह यन्त्र जब प्रसव का समय निकट नही और पेट मे दर्द या और तरह की पीडा होती है
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तो उस यन्त्र को प्रष्ट गध से लिखकर पास मे रखने से पीडा मिटेगी। अकाल मे प्रसव नही होगा और शरीर स्वस्थ रहेगा ॥२०॥
गर्भ रक्षा पुष्टि दाता बत्तीसा यन्त्र ॥२१॥
यह यत्र गर्भ रक्षा के लिए उत्तम माना गया है । जब महिने दो महिने तक गर्भ स्थिर रहकर गिर जाता हो अथवा दो चार महीने बाद ऋतुस्राव हो जाता हो तो इस यन्त्र को अष्ट गध से तैयार करके पास में रख लेने से या कमर पर बाधने से इस तरह के दोष
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मिट जाते है । गर्भ की रक्षा होती है और पूर्ण काल मे प्रसव होता है। विशेषकर गर्भ स्थित रहने के पश्चात् बाल बुद्धि से जो स्त्री ब्रह्मचर्य नही पालती हो अथवा गर्म पदार्थ खाती पीती हो उसी के गर्भ स्राव होना सम्भव है । और दो चार बार इस तरह हो जाने से प्रकृति ही ऐसी बन जाती है । इसलिये ऐसे अमगल करने वाले कार्य को नही करना चाहिये और यत्र पर विश्वास रखकर शुद्धता से रखेगे तो लाभ होगा ॥२१॥
भयहर सुव्वं व्यवसाय वर्धक चौतीसा यन्त्र ॥२२॥ ___ इस यन्त्र को निज जगह व्यवसाय की रोकड रहती हो या धन-सम्पत्ति रखने का स्थान हो या तिजोरी के अन्दर दीवाली के दिन शुभ समय लिखकर दीप, धूप, पुष्प से पूजा करते रहना । यदि नित्य नही हो सके तो आपत्ति भी नही है। इस यन्त्र को अष्टगध से लिखकर पास मे रखा
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जाय तो उत्तम है। ताबे के पत्रे पर तैयार कर प्रतिष्ठित करके तिजोरी मे रखना भी अच्छा है । जैसा जिसको अच्छा मालूम हो करना चाहिए ॥ २२ ॥
मंत्राक्षर सहित चौतीसा यंत्र ॥ २३ ॥ यह चौतीसा यन्त्र बहुत चमत्कारी है। धन को इच्छा करने वाले और ऋद्धि सिद्धि जय विजय के इच्छुक लोगो की मनोकामना सिद्ध करने वाला यह यन्त्र है। इस यन्त्र को ताबे
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के पतडे पर तैयार कर प्रतिष्ठित करा लेवे और हो सके तो मत्र एक लाख जाप यन्त्र के सामने धूप, दीप, रख कर लेवे । यदि इतना जाप नही हो सके तो साढे बारह हजार जाप तो अवश्य कर लेना चाहिये । जाप करते मत्र बोला जाय उसमे एक गुरु कम है वह यह है कि मत्र के अन्त मे स्वाहा. पल्लव से जाप करता जाय अर्थात कुरु कुरु स्वाहा करना चाहिये जिसमे मत्र शक्ति बढेगी और यत्रमत्र नव पल्लवति जैसा होकर लाभ पहुँचायगा। 'जाप करते समय एक यत्र भोज पत्र पर तैयार कर जाप करते समय ताबे के पतडे वाले यत्र के पास ही रखे । जब जाप सम्पूर्ण हो जाये तब भोजपत्र वाले यन्त्र को नित्य अपने पास मे रखे और ताबे के यत्र को दुकान मे या मकान ने स्थापित कर नित्य दीप, पूजा किया करे । इतना कर लेने के बाद हो सके तो मत्र की एक माला नित्य फेर लवे । और नही हो सके तो कम से कम २१ जाप तो अवश्य करना चाहिये। श्रद्धा रख कर इष्ट देव का स्मरण करता रहे। नीति से चले और दान पुण्य करता रहे तो लाभ होगा ॥ २३ ॥
प्रभाव प्रशंसा वर्धक चौतीसा यंत्र ॥२४॥
चौतीसा यन्त्र बहुत प्रसिद्ध है। और व्यापारी वर्ग तो इस यत्र का बहुमान विशेष प्रकार से करते है। मेदा पाट मरु भूमि और मालव प्रात मे व्यापारी लोग अपनी दुकान पर
यन्त्र न० २४
दीवाली के दिन लिखते हैं प्राचीन काल मे ऐसी प्रथा चलती है कि शुभ समय मे सिन्दुर स गणपति के पास लिखते हैं । दरवाजे पर, मकान की दीवार पर लिखना हो तो हडमची स लिखना चाहिए। इस यन्त्र को लिखने के बाद धूप, पूजा कर नमस्कार करने से व्यापार चलता रहता है। और व्यापारियो मे इज्जत बढती है प्रशसा होती है और ऐसे यत्र भोज पत्र पर लिख
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लघुविद्यानुवाद
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कर पास मे रखने से व्यापारी वर्ग मे आगे वान की गिनती मे आ जाता है। हर एक कार्य मे लोग सलाह पूछने आयेगे । परन्तु साथ ही कुछ योग्यता, बुद्धिमान, धैर्यता और निष्पक्षता भी होना चाहिए । सस्कार न हो और मिलन सार भा न हो तो यन्त्र से साधारण फल मिलेगा और परोपकारी स्वभाव होगा तो विशेष फल मिलेगा ॥२४॥
धन प्राप्ति छत्तीसा यन्त्र ॥२५॥ इस छत्तीसे यन्त्र को दीवाली के दिन रात्रि मे लिखना चाहिये। शुभ मे दुकान के अन्दर सामने दरवाजे या मगल स्थापना के दाहिनी ओर अथवा दुकान के अन्दर सामने की
यन्त्र न.२५
१७
दीवार पर सिन्दूर से लिखे तो व्यापार बढता है । व्यापार करते समय किसी प्रकार का भय, सकट पाता हो तो मिट जायगा, प्रभाव बढेगा और इस यन्त्र को भोज पत्र पर लिख कर पास में रखना भी शुभ सूचक है ॥२५॥
सम्पत्ति प्रदान चालीसा यन्त्र ॥२६॥ ___ चालीस यत्र दो प्रकार का है। दोनो उत्तम है जो सामने है इन यत्र को किसी भी महिने की सुदी पक्ष की एकादशी के दिन अथवा पूर्णिमा के दिन पंच गघ से लिखना चाहिये पत्र गध (१) केशर (२) कस्तूरी (३) कर्पूर (४) चन्दन (५) गोरोचन इन पांचों को मिश्रित कर उत्तम गध बनाकर स्वच्छ भोजपथ पर लिखना चाहिये । यह यंत्र पास में हो तो चोर भय मिटता है और
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लघुविद्यानुवाद
नदी के किनारे या तालाब को पाल पर बाघ आसन बिछाकर बैठे । शुभ समय मे यन्त्र लिखे। लिखते समय दृष्टिं जल पर भी पडती रहे और लिखते समय धूप, दीप अखड रखे तो मन इच्छा पूर्ण होती है । इतना स्मरण रखना चाहिये कि ब्रह्मचर्य पालन मे सभ्यता का व्यवहार करने मे और
यन्त्र न २६
।
१४
शुद्ध सम्यक वृती से रहने मे किसी प्रकार से कमी नही होनी चाहिये। आचरण शुद्ध रखने से क्रिया साधन फल देती है ॥२६॥
ज्वर पीड़ा हर साठिया यन्त्र ॥२७॥ यह साठिया यन्त्र ज्वर ताप एकान्तर तिजारी आदि के मिटाने के काम में आता है इस तरह के डोरे धागे व यन्त्र बनवाने की प्रथा छोटे गावो मे विशेष होती है और जो लोग जिसमें श्रद्धा रखा
यन्त्र न. २७
२६
।
२
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लघुविद्यानुवाद
२७५
है उनको मन्त्र तत्र यन्त्र फलते भी है इस तरह के कार्य मे इस यन्त्र को अष्ट गध से तैयार कराके पास मे रखने से पीडा दूर होती है शाति मिलती है। भोजपत्र पर अथवा कागज पर लिख पीडित के गले या हाथ पर बाँधने से अथवा पास में रखने से लाभ होता है । इस यन्त्र को कासे के स्वच्छ पात्र मे अष्ट गध से लिखकर पी सकता है, उत्तम पानी से धोकर पानी पिलाने से सभी ज्वरादि पीडा नष्ट हो जाती है ।।२७।।
चोबीस जिन पेसठिया यन्त्र ॥२८॥
अथ पच षष्टि यत्र गभित चतुर्विशति जिन स्तोत्रम । बन्दे धर्म जिनसदा सुख कर चन्द्र प्रभ नाभिज । श्री मन्दिर जिनेश्वर जय कर कुन्थु च शाति जिनम् । मुक्ति श्री फल दायनन्त मुनिप बधे सुपार्श्व विभु । श्री मन्मेध नृपात्म जच सुखद पार्श्व मनाडे भीष्टदम ॥१॥ श्री नेमीश्वर सुब्रतोच विमल पद्म प्रभ सावर सेवे सभव श गूर नमि जिन मल्लि जया नदनम् । बदे श्रीजिन शीतल च सुविध सेवेड जित मुक्ति द श्री सघ वतपञ्च विशति नभ साक्षा दर वैष्णवम् ।।२।। स्तोत्र सर्व जिनेश्वरे रभिगत मन्त्रेषु मन्त्र वर एतत् स सङ्गत यन्त्र एव विजयो द्रव्यो लिखि त्वाशु भे पायें सन्ध्रिण भाणा सब सुखदो माङ्गल्यमाला प्रदो वामागे वनिता नारास्त दितरे कुर्वन्तुये भावत ॥३॥ प्रस्थाने स्थिति युद्धवाद करण राजादि सन्दर्शने । वश्यार्थे सुत हेत वैधन कृते रक्षन्तु पार्वे सदा । मार्गे सविण मे दवाग्नि ज्वलिते चिन्ता दिनि नाशिने । यन्त्रो ऽय मुनि नेत्रसिह कविता सङ्ग स्थित. सौख्यदः ॥४॥ इति पच षष्टि यन्त्र स्थापना ॥२८॥ ऊपर बताया हुआ स्तोत्र बोलते जाइये और जिन तीर्थ कर भगवान के नाम का अक आवे, उतनी अक सख्या लिखने से पेसठिया यन्त्र तैयार हो जाता है। इस तरह के यन्त्र को, ताबे के पतडे पर तैयार कर शुद्ध कराने के बाद घर मे स्थापित कर ऊपर बताया हा स्तोत्र नित्य पढे, स्तुति बोल कर
मन करना चाहिये । इस तरह के यन्त्र को भोजपत्र पर लिखवा कर पास मे रखने से परदेश जाते समय अथवा परदेश मे रहते समय में लाभ होता रहेगा। किसी के साथ वाद विवाद करने से जय प्राप्त होगी राजा के पास अथवा और किसी के पास जाने से प्रादर होगा। नि. सन्तान को पुत्र प्राप्ति होगी निर्धन को धन प्राप्त होगा। मार्ग मे किसी प्रकार का भय नही होगा चोरो के उपद्रव से बचाव होगा। अग्नि प्रकोप से पीडा न होगी और अकस्मात भय में रक्षा होगी चिता नष्ट होगी प्रत्येक कार्य मे विजय प्राप्त होगी इसलिये जो अपना भविष्य
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न २८
१६ .
. १२ ।
१०
उज्ज्वल बनाना चाहते है उन पुरुषो को इस यन्त्र की आराधना करनी चाहिये । दूसरा चौबीस जिन पेसठिया यन्त्र ॥२६॥
। पंचा षष्टि यन्त्र भित ॥२६॥ श्री चतुर्विशित जिन स्त्रोत्रम् । आदि नेमि जिन नौमी सभव सुविध तथा, धर्म नाथ महादेव शाति शाति कर सदा ॥१।। अनते सुव्रत भक्तया नमि नाथ जिनोत्तमम् । अजित जित कन्दर्प चन्द्र चन्द्र समप्रभम् ॥२॥ आदिनाथ तथा देव सुपार्श्व विमलजिन । मल्लि नाथ गुणोपेत धनुषा पञ्च विशतिम् ॥३॥ अरनाथ महावीर सुमति च जगदगुरूम श्री पद्म प्रभ भान । वासुपूज्य सुरैर्नतम् ।।४।। शीतल शीतल लोके श्रेयास श्रेयसेसदा । कुन्थु नाथ चवामेय श्री अभिनन्दन जिनम् ।।५।। जिनाना नामभिर्वद्ध पचषष्टि समुद्भवा। यन्त्रो ऽय राजते लोके श्रेयास यत्र तत्र सोख्यम् निरन्तरम् ।।२।। यस्मिन गृहे महा भक्तया यन्त्रो ऽय पूज्यते बुधैः । भूतप्रेतेपिशाचादि भय तत्र न विद्यते ।।७।। सकल गुण निधान यन्त्र मेन विशुद्धम् । हृदय कमल कोषे धी मता ध्येय रूपम् । जयतिलक गुरू श्री सूपर राजस्य शिष्यो वदति सुख निदान । मोक्ष लक्ष्मो निवासम् ।। दूसरे पेसठिये यन्त्र की स्थापना ॥२८
का नाम आवे इस यन्त्र का जो स्रोत्र पाठ श्लोक का बताया है उसका पाठ करते समय जिन तीर्थकर का
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२२
उनकी संख्या का क लिखने से पेसठिया यन्त्र तैयार हो जाता है । इस यन्त्र का महात्म्य भी बहुत है । यन्त्र को विधानानुसार ही तैयार करना चाहिये । जिस घर मे ऐसे यन्त्र की स्थापना पूजा हु
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१
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लघुविद्यानुवाद
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यन्त्र न २६
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४
करती है उस घर मे आनन्द मगल रहा करता है जो मनुष्य इस यन्त्र की आराधना करते है उनको प्रत्येक प्रकार के सुख • मिलते है और जिस मकान में स्थापना की हो वहा पर भूत-प्रेत पिशाच का भय नही होता । अगर हुआ हो तो नष्ट जाता है । इस यन्त्र का जितना आदर करेंगे उतना ही अधिक सुख पा पकेगे । इस यन्त्र को निज के पास रखना हो तो भोज पत्र पर तैयार कराके रखना चाहिये । ऐसे यन्त्र शुद्ध प्रष्ट गध से लिखने से लाभ देते है ||२६||
लक्ष्मी प्रदानं श्रडसठिया, यन्त्र ||३०||
f
'
यह ग्रडसठिया यन्त्र बहुत प्रसिद्ध है । कई लोग दीवाली के दिन शुभ समय दुकान के मंगल के स्थान पर लिखते है । इस यन्त्र मे यह खूबी है कि लक्ष्मी प्राप्ति के हेतु चमेली की कलम लेकर
".
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न.३०
m
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अष्टगध से लिखना चाहिये और समेट कर रेशम लपेट कर निज के पास रखना और व्यापार करते समय तो यन्त्र को पास मे रख कर ही करना चाहिये ॥३०॥
नित्य लक्ष्मी लाभ दाता बहतरिया यन्त्र ।।३१।। बहतरि यत्र के लिए कई मनुष्य खोज करते है । मन्त्र का मिल जाना तो सहज बात है परन्तु विधान का मिलना कठिन बात है । इस यन्त्र को सिद्ध करते समय जहा तक हो सके सिद्ध पुरुप की सानिध्यता मे करना चाहिये और सिद्ध पुरुष का योग नही मिल सके तो किसी यन्त्र के जानकार की सानिध्यता मे करना चाहिये शुभ दिन देख कर शरीर व वस्त्र शुद्धता का उपयोग कर अधिष्ठाता
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देव को सानिध्य समझकर प्रात काल मे ढाई घड़ी कच्ची दिन चढे पहले अष्ट गध से कागज पर बहत्तर यन्त्र लिखना चाहिये । कलम जैसी अनुकूल आवे चमेली की या सोने की निब से लिखे जव
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यन्ना लिखने बैठे तब तक पूर्व दिशा की ओर मुख रखना चाहिये, आसन सफेद लेना चाहिये, उत्तम बताया है लिखते समय मौन रख कर लिखने के विधान को पूरा करले, व जब यन्त्र लेखन पूरा हो जाय जब यन्त्र को एक स्वच्छ पट्टे पर स्थापन अगर बत्ती लगा देवे दीपक स्थापन करे और ढाई घडी दिन बाकी रहे तब अर्थात सूर्यास्त से ढाई घडी पहले हुये यन्त्रो को ऊचे रख कर पानी से धोकर कागज भी जलाशय मे डाल देवे । यह सब क्रिया समय पर ही करने का पूरा ध्यान रखे । एक विधान ऐसा भी है कि बहत्तर यन्त्र अलग-अलग कागज पर लिखना चाहिये । और कोई एक कागज पर लिखना बताते है । जैसा जिसको ठीक मालूम हो सुविधा अनुसार लिखे। इस प्रकार से बहत्तर दिन तक ऐसी क्रिया करना चाहिये और बहत्तर दिन ब्रह्मचर्य पालना चाहिय सत्य निष्ठा से रहना और कुछ तपस्या करे जिससे क्रिया फलवती होगी। इस प्रकार से बहत्तर दिन पूरे हो जाय और तिहत्तरवे दिन १ प्रात काल ही बहत्तर यन्त्र लिखकर एक डब्बी मे लेकर दुकान मे रख देवे या गल्ले मे, तिजोरी मे या ताक मे रखकर नित्य पूजा कर लिया करे । इस तरह करते रहने से धन की प्राय और इज्जत, मान, सम्मान की वृद्धि होगी । सुख और सौभाग्य बढता है। इष्ट देव के स्मरण को वीनत्य, सत्य, निष्ठा धर्म नीति को नही छोडना चाहिये १ तिहत्तर दिन प्रात काल यन्त्र लिख कर डब्बी मे रख देवे यन्त्र की पूजा कर धूप, दीप, रखना, कुछ भेट भी रखना और दिन रात अखड जोत रखना ॥३१॥
सर्प भय हर अस्सीया यन्त्र ॥३२॥
इस यन्त्र का विशेष करके सर्प के उपद्रव मे काम पाता है। जब सर्प का भय उत्पन्न हा या
यन्त्र न ३२
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लघुविद्यानुवाद
मकान मे बराबर निकलता हो अथवा घर नही छोडता हो तो अस्सीया यन्त्र सिन्दूर से मकान की दीवार पर लिख कर और जहा तक हो ऐसी जगह लिखना चाहिये कि जहा सर्प की दृष्टि यन्त्र पर गिर जाय अथवा कासी की थाली मे लिखा हुआ तैयार रखे सो जव सर्प निकले जब उसे थाली बता देवे सो सर्प का भय मिट जायेगा । और उपदव नही करेगा । विधान तो बताता है कि सर्प उस मकान को छोडकर ही चला जायगा । किन्तु समय का फेर हो तो इतना फल नही देता है तो भी उपद्रव भय तो नही रहेगा। ऐसा समय घर मे सर्प हर नाम की औषधि जो काश्मीर जिले मे बहुतायत से मिलती है मगवा कर घर में रखने से सर्प तत्काल निकल जायेगा। लेकिन सप को मारने की बुद्धि नहीं रखना चाहिये । सर्प को सताने से वह क्रोध कर के काटता है वह समझता है मुझे मारते है और सताया न जाय तो वह अपने आप चला जाता है ॥३२॥
भूत प्रेत हर पिच्चासिया यन्त्र ॥३३॥ अक्सर (प्राय. ) जब मकान मे कोई नही रहता हो और बहुत समय तक बेकार सा पडा होतो ऐसे मकान में भूत प्रेत अपना स्थान बना लेते है और भूत प्रेत नही भी बसते हो और मकान मे रहने लगे उसके बाद कुछ अनिष्ट हो जाय तो उस मकान मे परिवार
यन्त्र न ३३
के लिये बहम सा हो जाता है और मकान को खाली कर देते है। लोकवाणी फैल जाती हैं और ऐसे मकान मे कोई बिना किराये भी रहने को तैयार नही होता है। ऐसी अवस्था
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कम हो जाती है और व्यवसाय व व्यवहार मे शोभा भी कम हो जाती है। बाहर के दुश्मन से मनुष्य सम्भल के रह सकता है किन्तु घर का दुश्मन खडा हो तो आपत्ति रूप हो जाती है। धन, वैभव, मकान मिलकियत वही दस्तरे, खत, खतुन जिसके हाथ आई हो दबा देता है। और ऐसी अवस्था हो जाने से घर की इज्जत कम हो जाती है। इस तरह की परिस्थिति हो तव इस यत्र को यक्ष कर्दम से मकान के अन्दर और खास कर पणिहारे पर और चूल्हे के पास वाली दीवार पर लिखे और अगरबत्ती या धूप सायकाल को कर दिया करे। इस तरह से इक्कीस दिन तक करे और बाद मे आपस मे फैसला करने बैठे तो कार्य निपट जायगा। साथ ही स्मरण रखना चाहिये कि न्याय नीति और कर्तव्य पूर्वक कार्य करोगे तो सफलता मिलेगी। घर की बात को बाहर नहीं फैलने देना चाहिये । इसी मे शोभा है इज्जत की रक्षा है। जो लोग स्त्रियो के कहने मे आकर भ्रातृ प्रेम कुटुम्ब स्नेह और कर्तव्य को भूल जाते है । उनका दिनमान बिगडा समझना। प्रत्येक कार्य मे इष्ट देव को न भूलना चाहिये ।।३।।
यत्र न० ३५
mr
पुत्र प्राप्ति गर्भ रक्षा यंत्र ॥३६॥ यह सौ का यन्त्र है और इसको पाशा पूर्ण यत्र भी कहते है। जिसको सन्तान नहीं हो या गर्भ स्थिति के बाद पूर्ण काल मे प्रसन्न होकर पहले ही गिर जाता है तो यह यत्र काम देता है। इस यन्त्र को अष्ट गध से लिखना चाहिये । अष्ट गध बनाने मे (१) केशर (२) कपूर (३) गोराचन (४) सिन्दूर (५) हीग (६) खैरसार, इन सब को बरावर लेना परन्तु केशर विशेष डालना, जिससे लिखने जैसा रस तैयार हो जायगा इतना कार्य शुद्धता पूर्वक करके भोज पत्र पर दीवाला क दिन मध्यरात्रि मे तैयार कर स्त्री गले पर या हाथ पर जहाँ ठीक मालूम हो वाव देवे । पुत्र के इच्छक हो तो पत्नि-पति दोनो को बाधना वैसे तो कर्म प्रधान है। जैसे कर्म उपार्जन किये हाग
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लघुविद्यानुवाद
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यत्र न० ३६
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वैसा ही फल मिलेगा-परन्तु उद्यम उपाय भी पुरुषो को बताए हुए है करने मे हानि नही है। अपने इष्ट देव को स्मरण करते रहे पुण्य प्राप्त करना सो क्रिया फल देगी। स्त्री गर्भ धारण करेगी, पूर्ण काल मे प्रसव होगा अपूर्ण समय मे गर्भ-पात नही होगा ऐसा इस यन्त्र का प्रभाव है । श्रद्धा विश्वास रखने से सर्व कार्य सिद्ध होते है । पुण्य धर्म साधन नीति व्यवहार से आशा फलती है ॥३६॥
ताप ज्वर पीड़ा हर एक सौ पांचवा यंत्र ॥३७।। यह एक सौ पाचवा यन्त्र है । ताप ज्वर एकान्तरा तिजारी को रोकने मे काम देता है।
यन्त्र न०३७
२८
भोज पत्र पर या कागज पर लिख कर घागे डोरे से हाथ पर बाधने से ताप ज्वरादि मिट जाते
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लघुविद्यानुवाद
जाते है । यन्त्र तैयार हो जायेगा तव धूप से खेव कर इक्कीस बार ऊपर कर पीडा वाले को बाँधने से ज्वर पीडा मिट जाय तब यन्त्र को कू ए के पानी मे डाल देना, विश्वास रखना और इष्ट देव को स्मरण करते रहना ।।७।।
सिद्धि दायक एक सौ पाठवां यंत्र ॥३८॥
इस यन्त्र को अष्ट गघ से भोज पत्र या कागज पर लिखना चाहिये। कलम चमेली की लेना चाहिए। सोने की निव हो तो और भी अच्छा है। यन्त्र तैयार कर बाजोट पर रखकर धूप,
यत्र न०३८
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५१
दीप, पुष्प चढा कर पूजन वास क्षेप तप से पूजा कर सामने फल नैवेद्य चढा कर नमस्कार कर यत्र को समेट कर पास मे रखे। यन्त्र जिस कार्य के लिये बनाया हो उसका सकल्प यन्त्र की पूजा करने के बाद खयाल कर नमस्कार कर लेवे और जहाँ तक कार्य सिद्ध न हो तब तक प्रात काल मे नित्य प्रति धूप से या अगरबत्ती से खेव लिया करे । इष्ट देव का स्मरण कभी न भूले । कार्य सिद्ध होगा ॥३८॥
भूत प्रेत कष्ट निवारण एक सौ छत्तीस यत्र ॥३६॥
इस यन्त्र को मकान के बाहर भी लिखते है और पास मे भी रखने को बताया जाता है। वैसे तो लिखने का दिन दीवाली की रात्रि को बताया है। परन्तु आवश्यकता अनुसार जब चाहे लिखले और हो सके तो अमावस्या की रात्रि मे लिखना जिसमे यन्त्र लाभ दायक होगा।
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लघुविद्यानुवाद
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जब भूत प्रेत डाकिनी का भय उत्पन्न हुआ हो तो इस यन्त्र को बाधने से मिट जायगा और इसी
यत्र न० ३६
४८
तरह के कष्ट होगे तो वह भी इस यन्त्र के प्रभाव से कम हो जायेगे और सुख प्राप्त होगा। इस तरह यन्त्र को भोज पत्र या कागज पर अष्ट गध से लिखना चाहिये और मकान की दीवार पर सिन्दूर से लिखना चाहिये ॥३६॥
पुत्रोत्पत्ति दाता एक सौ सत्तरिया यंत्र ॥४०॥ यह सौलह कोठे का यन्त्र एक सौ सत्तरिया है । इस यन्त्र से धन प्राप्ति मे जय विजय
यन्त्र न० ४० .
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लघुविद्यानुवाद
मे, पुत्र प्राप्ति के हेतु बनाना हो तो अष्ट गध से लिखना चाहिये । भोज पत्र पर काला दाग न हो और स्वच्छ हो। कागज पर लिखे तो अच्छा कागज लेवे और शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (पूर्णा) तिथि पचमी दशमी पूर्णिमा को अच्छा होगा देख कर तैयार करे । लेखनी चमेली की या सोने की नीब से लिखे और पास मे रखे तो मनोकामना सिद्ध होगी और सुख प्राप्त होगा। धर्म पर पावन्द रह पुण्योपार्जित करने से आशा शीघ्र फलती है। इप्ट देव के स्मरण को नहीं भूलना चाहिये ॥४०॥
एक सौ सत्तारिया दूसरा यंत्र ॥४१॥ . इस यन्त्र को लक्ष्मी प्राप्ति हेतु जय विजय के निमित्त 'इस यन्त्र को भी काम लेते है। गर्भ रक्षा और अन्य प्रकार की पीडा मिटाने के लिये भी काम लेते है गर्भ रक्षा करने के लिए इस यन्त्र को अच्छे दिन शुभ समय मे अष्ट गध से भोज पर पत्र अथवा कागज पर लिखना चाहिये। ये एक
यत्र न० ४१
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४१
सौ सत्तरिया दोनो यन्त्र लाभदायी है । नीति न्याय पर चलना चाहिए और इष्ट देव को स्मरण करत । रहना जिससे यन्त्राधिष्टायक देव प्रसन्न होकर मनोकामना सिद्ध करेगे। यन्त्र मादलिया मे रखे या मोम के कागज मे लपेट कर पास मे रखे ॥४१॥
व्यापार वृद्धि दो सौ का यंत्र ॥४२॥ इस यन्त्र का दो विधान है। पहला विधान तो यह है कि दीवाली के दिन अर्ध रात्रि के समय सिन्दूर या हीगुल से दुकान के बाहर लिखे तो व्यापार की वृद्धि होती है। दूसरा विधान यह है
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___ इस यत्र को भोज पत्र पर अथवा कागज पर पच गध से लिखे जिसमे केशर, कस्तूरी कपूर, गोरोचन __ और चदन का मिश्रित हो उत्तम पात्र मे पच गध से तैयार कर चमेली की कलम से लिखे। यह यत्र विशेष कर दीवाली के दिन अर्ध रात्रि के समय लिखना चाहिये और ऐसा समय निकट नही हो और
यत्र न० ४२
।
३
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कार्य की आवश्यकता हो तो अमावस्या के अर्ध रात्रि के समय लिख, और जिसके लिये बनाया गया हो, उसी समय प्रात काल दे देवे । यत्र को पास मे रखने से ऋतु वन्ति का स्त्राव नही रुकता हो तो रुक जायेगा। गर्भ धारण करेगी और रक्षा होगी इष्ट देव का स्मरण नित्य करना चाहिये ।।४२॥
लक्ष्मी दाता पांच सौ का यंत्र ॥४३॥ इस यन्त्र को पास मे रखने से लक्ष्मी प्राप्ति होगी और विधान इसका यह है कि
यत्र न०४३
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३
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पुत्र की इच्छा वाले पति-पत्नी पास मे रखे तो आशा फलेगी। शुभ कामना के लिये अष्ट गध से लिखना और बेरी, पुत्र पराजय के हेतु यक्ष कर्दम से लिखना चाहिये। कलम चमेली की लेना और यन्त्र मादलिया मे रख पास मे रखना अथवा कागज मे लपेट कर जेब मे रखना। धर्म के प्रताप से आशा फलेगी। दान पुण्य करना धर्म निष्ठा रखना ॥४॥
सात सौ चौबीस यंत्र ॥४४॥ इस यन्त्र को एक सौ इक्यासिया यन्त्र भी कहते है। इस यन्त्र को वशीकरण यन्त्र को
यत्र न० ४४
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चॉदी के पतडे पर तैय्यार करा कर प्रतिष्ठा कराकर पूजा कराने से भी लाभ होता है जिसको जैसा योग्य मालूम हो करा लेवे । धर्म पर श्रद्धा रखे । इष्ट देव का स्मरण किया करे ॥४४॥
लक्षिया यंत्र ॥४५।। इस यन्त्र को सोना गेरू से लिख कर अपने पास रखने से अग्निभय से बचाव होता है। जिन लोगो को मातेहाती मे काम करना पडता है और ऊपरी अधिकारी बार २ नाराज होते है । तो इस यन्त्र को गध से लिखकर अपने पास रखे तो अधिकारी की कृपा रहती है अक्सर कई जगह पति-पत्नि के आपस मे वैमनस्य हो जाया करता है। बहमी भी अल्प समय मे हो तो दुखदायी नही होता। परन्तु बार २ क्लेश होता हो तो इस यन्त्र को कु कु म से लिख कर पुरुष पास मे रखे तो पत्नि के साथ प्रेम बढता है। अक्सर ऐसे यन्त्र दीवाली के दिन मध्य
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यत्र न० ४५
४६६६२
४६६६६
४६६१६
४६६६५
४६६६८
४६६६३
४६६६४
४६६६७
रात्रि मे लिखते है और धन प्राप्ति अथवा दूसरे किसी काम के लिये बनवाना हो तो पच गध से लिखते है, जिसमे केसर, कस्तूरी चदन, कपूर, मिश्री का मिश्रण होना चाहिये ।।४५॥
लखिया यंत्र दूसरा ॥४६॥ इसको भी दीवाली के दिन मध्य रात्रि मे लिखते है और अष्ट गध से लिखकर यत्र जिसके लिये बनाया हो अथवा उसका नाम लिखकर पास मे रखने से जय विजय होता है व्यवसाय
यत्र न०४६
४२०००
४६०००
२०००
७०००
६०००
।
३०००।
४६००० । ४५०००
४८००० । ४३०००
८०००
| १०००
४०००
। ५०००
।
४४०००
| ४७०००
करते समय जिस गद्दी पर बैठते है उसके नीचे रखने से व्यवसाय मे लाभ होता है। ऊपर बताया हया लखिया यत्र भी ऐसे कार्य मे लाभ देता है। जिसको जो यत्र ठीक लगे उसी का उपयोग करे।
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२६०
लघुविद्यानुवाद
इस यत्र का एक विधान और भी है । वह हमारे संग्रह मे नही है । परन्तु विधान यह है कि दीवाली की मध्य रात्रि मे लिखकर उसके सामने एक पहर तक का यत्र का ध्यान करे । और फिर वन खड में या बाग मे अथवा जलाशय के किनारे बैठकर यत्र के सामने एक पहर तक यत्र का ध्यान करे। जिससे यन्त्र सिद्ध हो जायगा क्रिया करते समय लोभान का धूप बनाकर रखना चाहिये तो यन्त्र सिद्ध हो जायगा और भी इन दोनो यन्त्र के कई चमत्कार है। श्रद्धा रखकर इष्ट देव का स्मरण करते रहना चाहिये जिससे कार्य सिद्ध होगा ।।४६।।
यन्त्र न०४७
६२ | १६
३७ । ५५
। २४ । ४२ । ६०
८० । १७ । २८ ।
३३ । ७८ । १५
३
| ४८ । ६८ । ५
। ५० । ७० ।
७ । ५२ ।
| ३६ । ५७ / २३ | ४१
२५ । ४३ । ६१
३० । ७५ । १२ । ३२ | ७७ | १४ | ३४ | ७६ / १६
६७ ।
४ । ४६ । ७२ |
१ | ५४ | ६५ /
२
४७
४० । ५८ । २७ ।
६३ । २०
M
|
२३ । ७४ । ११
mr
२६ ।
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________________
लघुविद्यानुवाद
२६१
जयपताका यंत्र ॥४७॥
यह जयपताका यत्र है जिस व्यक्ति को महात्माओ की कृपा प्राप्त हो जाती है उसी को इस यत्र की आमनाय मिलती है । सामान्य से इस यत्र के लिये कहा है कि इस यत्र को पच गध अथवा अष्ट गध से लिखे और किसी खास काम पर विजय पाने के लिये बनाना हो तो यक्ष कर्दम से लिखे । लिखते समय इक्यासी कोठे मे पाच का अक बनाकर चढते अक से लिखने को शुरू करे जैसे प्रथम पक्ति के पाचवा कोठे मे एक का अक लिये। सातवी लाइन के आठवे कोठे मे दो का अक लिखे । चौथी लाइन के पाचवे कोठो मे पाच का अक लिखे। प्रथम लाइन के आठवे कोठे मे ६ का अक लिखे । चोथी लाइन के आठवे कोठे मे सात का अक लिखे। प्रथम लाइन के दूसरे कोठे मे आठ का अक लिखे । सातवी लाइन के पाचव कोठे मे नौ का अक लिखे और तीसरी लाइन के छठे कोठे मे दस का अक लिखे । इस तरह से सम्पूर्ण अक को चढते अक से लिखकर पूर्ण करे और तैयार हो जाने पर जिस मनुष्य के लिये बनाया हो उसका नाम व कार्य का सक्षेप नाम यत्र के नीचे लिखे । इस तरह से तैयार कर लेने के बाद यत्र को एक बाजोट पर स्थापन कर अष्ट द्रव्य से पूजा कर यथा शक्ति भेट भी रखे और बहुत मान से यत्र को लेकर पास मे रखे तो लाभदायी होता है। नीति न्याय को नही छोडे । चरित्र शुद्ध रखे । जिससे सफलता मिलेगी ॥४७।।
विजयपता का यंत्र ।।४।।
इस यत्र के लिखने का विधान जयपताका की तरह समझना चाहिये । विशेष इस यत्र मे यह विशेषता है कि प्रत्येक पक्ति के पाचवे खाने मे अताक्षर एक है चौथे मे अनुस्वार है और छठी पक्ति के प्रत्येक खाने मे अताक्षर दो का है पाठवे कोठ मे अताक्षर तीन का है कही ६ का, कही पाठ का अक अधिक बार आया है । इस यत्र को विधि से लिख कर पास में रखने से विजय मिलती है। वाद विवाद करते समय मुकदमे की बहस करते समय और सग्राम मे अथवा इसी तरह के दूसरे कामो मे प्रयास प्रमाण या प्रवेश किया जाय तब इस यत्र को पास रखने से सहायता मिलती है इस यत्र का लेखन अष्ट गध या पच गध अथवा यक्ष कर्दम से हो सकता है बाकी विधान जयपताका यत्र की तरह समझ लेना चाहिये श्रद्धा से कार्य सिद्ध होता है विजय पाते है हिम्मत रखने से आशा फलती है ।।४८।।
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२६२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. ४८
४७
८०
१
१२
२३
३४ ।
४६
६८ । ७६ / ६० / ११ । २२ ।
३३ / ४४ | ४६
-
७८ |
८ | १० | २१ । ३२ । ४३ ५४ / ५६
७ | १८ | २० | ३१ | ४२
५५
६ । १७ । १६ / ३० । ४१ । ५२ । ६३ । ६५ / ७६
१६ / २७ / २६ | ४० | ५१ । ६२ । ६४ । ७५ ।
५
-
-
-
-
-
-
-
। २८ । ३६ | २० | ६२
३६ । ३८ / ४६ । ६० । ७१ । ७३
३ । १४
५६ | ७०
८१
२४
। तो उस
संकट मोचन यत्र ॥४६॥ इस यन्त्र से यह लाभ है कि शरीर अस्वस्थ हो गया हो या पेट दर्द हो गया हो ता समय अष्ट गध से कासी की थाली मे यन्त्र लिखकर धोकर पिलाने से दर्द मिट जाता है। इस १९ के विधान है, सो समझ कर उपयोग करे ।।४६।।
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लघुविद्यानुवाद
२६३
यन्त्र न० ४६
१५५ ।
१५६
१५४
१५३ । १२७
१२७
१३८
११६
१५१
१३१
१५२
१३४ ।।
११७
| १३० | १२५ । १३५ । १५६
------------- ११८ | १४१ । १४३ । १४३
१४०
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१२३
१४५
१२६ । ११६
।
१४६
१४७
१२२
१२६ । १५०
१२१
विजय यंत्र ॥५०॥
इस यत्र को विजय यत्र और वर्द्धमान पताका भी कहते है हमारे संग्रह मे इसका नाम वर्द्धमान पताका है, परन्तु इस यत्र को विजय राम यत्र समझना चाहिये क्योकि यही नाम इम यत्र के मत्र में पाया है। इस यत्र को रविवार के दिन लिम्वना चाहिये । और ऐसा भी लेब है कि रपु सडिया तारा का उदय हो तब लिखना चाहिये। जव यत्र तैयार हो जाय तब एक बाजोट पर स्थापन कर धूप दीप की जयणा सहित रखकर कुछ भेट रखकर और नीचे बताये हुये मत्र की एक माला फेरना । ।मत्र।।ॐ ही श्री वली नम विजय मत्र राज्यधार पन्य ऋद्धि वृद्धि जयं मुख सौभाग्य लक्ष्मी मम् सिद्धि कुरु २ स्वाहा ।। जिसको जैसा विधान मानम हो, उपयोग करे। उस तरह की माला फेरते पचामृत मिश्रित शुद्ध वस्तुम्रो का हवन करना भी बताया है। हम यत्र के नो विभाग बताये है प्रत्येक विभाग के अलग-२ यत्र भी है। जिसका वर्णन इन प्रकार है
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२६४
लघुविद्यानुवाद
(१) प्रथम विभाग के यत्र से दृष्टि दोष, डाकिनी शाकिनी, भूतप्र ेत आदि का भय नष्ट होता है ।
(२) दूसरे विभाग के यत्र से अधिकारी आदि को प्रसन्नता रहती है ।
(३) तीसरे विभाग के यत्र से अग्नि भय, सर्प का भय या उपद्रव नष्ट होता है ।
चौथे विभाग के यत्र से ताप एकान्तरा, तिजारी ग्रादि नष्ट होती है ।
पाँचवे विभाग के यत्र मे नवग्रह आदि पोडा नष्ट होती है ।
( ४ )
(५)
(६) छठे विभाग के यत्र से विजय पाते है ।
(७) सातवे विभाग के यत्र से मन्दिर आदि के दरवाजे पर लिखने से दिन-दिन मे उन्नति होती है ।
(८) आठवे विभाग के यत्र से धनुष आदि शस्त्र पर बाघने से विजय पाते है |
(९) नवे विभाग के यत्र से दीवाली के दिन दीवार पर लिखने स जय विजय है । इस तरह से नौ विभाग के यत्रो का वर्णन है । प्रथम विभाग के ग्रक गिनती के अनुसार, प्रथम पति के मध्य का समझना, इसी तरह से दूसरा, तीसरा आदि चढते हुए को से समझना चाहिए । इस यत्र का दूसरा विभाग इस प्रकार है कि विधि सहित यत्र तैयार करके एकान्त स्थान मे शुद्ध भूमि बनाकर कुम्भ स्थापना कर अखण्ड ज्योत रखे और चोकोर पाटे पर नन्दी वर्धन साथिया करे । चावल सवा सेर, देशी तेल के केसर से रंगे हुये अखण्ड हो, उनसे साथिया कर फल नेवेद्य और रुपया, नारियल चढावे फिर सामने बैठकर साढ़े बारह हजार जाप यत्र के सामने पूरे करले । वे नियमित जाप की सख्या प्रतिदिन एक सी हो इस तरह से विभाग कर जाप पाच दिन अथवा आठ दिन मे पूरा कर लेवे । जाप करने के दिनो मे चढने से पहले पूजा कर लेवे । भूमि शयन ब्रह्मचर्य पालन और आरम्भ का त्याग कर नित्य स्थापना कर स्थान मे ही करे । जिस दिन जाप पूरे हो जाय साथिया मे से चावल चूटि भर कर लेवे । और सिरहाने रखकर एक माला यन्त्र की फेर कर सो जावे । रात्रि के समय स्वप्न मे शुभा शुभ कथन देव द्वारा मालूम होगे और धन वृद्ध होगी । कार्य सिद्ध होगा । आशा श्रद्धा से और पुण्य फलती है । पुण्य, धर्म साधन से उपार्जित होता है । इसका पूरा ख्याल करे | ॥५०॥
से
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लघुविद्यानुवाद
२६५
यन्त्र न० ५०
५१
६७ । ७२ । ६५ ।। ४ ।
२
४६ । ५४ । ४७
१६ | २४, ४४ | ३७ । ४२ । ६२ । ५५ , ६०
२३ । २५ । ३६
४१ । ४३ । ५७ । ५६
२२ । २७ । २० । ४० । ४५ । ३८ । ५८ । ६३ । ५६
८० । ७३ । ७८ । १७ । १० । १५
३४
७५
७७
|
७६
८१ । ७४ |
१८
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२६६
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० ५१
२५८
सिद्धा यंत्र ॥५१॥
४७०
३६६
४७०
यह सिद्धा यन्त्र, सिद्धा के काम का है, इस यन्त्र को पास मे रखने की अावश्यकता नही है। न ही दीप, धूप रखकर भोज पत्र मे लिखने की आवश्यकता है । यह यन्त्र तो जो इसकी गिनती के अनुभवी है उन्ही के काम का है। जो पुरुप इसका उपयोग समझ सकेगा, वही लोग ऐसे यन्त्रो से लाभ उठा सकेगे और विना अनुभव से कार्य करने वाला हानि उठाता है ।।५१॥
५८१
४७०
५८१
६६२
५८१
चौसठ योगिनी यन्त्र ॥५२॥ यह चौसठ योगिनी यन्त्र कई तरह के कार्य सिद्ध करने में समर्थ है । इस यन्त्र के लिखने मे यह खूबी है कि एक का अक लिखे बाद दो अक तिरछे कोठे में, तिरछे एक कोठ के बीच मे छोड कर लिखा गया है। इसी तरह के तमाम अक तिरछे कोठे मे एक-एक छोडते हुए लिखे है और अन्त मे चौसठवे अ क पर समाप्ति की है। इस यन्त्र की लेखन विधि को अच्छी समझ लेना चाहिये और यन्त्र लिख कर जिस कार्य की पूर्ति के लिए बनाया हो उसकी विगत
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लघुविद्यानुवाद
२९७
-
यन्त्र न ५२
४७
५३
१७
३५
२२
४८
५२
। २६
३७ । २४
११
और जिसके लिये बनाया हो उसका नाम यन्त्र मे लिखना चाहिए । जब यन्त्र, विधि सहित तैयार हो जाये तब शुभ समय मे पास मे रखे और हो सके वहा तक कार्य सिद्धि तक धारण करना चाहिए । धूप नित्य देने से प्रभाव बढता है कष्ट भी शीघ्र मिटता है और भावना फलती है । इप्ट देव देवी को पूजा करना और दान पुण्य करना सो कार्य ठीक होगा ।।२।।
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२१८
लघुविद्यानुवाद
दूसरा चौसठ योगिनी यन्त्र ॥५३।। २६० का यह यन्त्र बहुत से कार्य मे काम आता है। लिखने का विधान सर्वत्र समझना चाहिये । इस यन्त्र को ताबे के पतडे पर बनवा कर पूजा करने से भी लाभ होता है । इष्ट देव की सहायता से कार्य सिद्ध होता है। मनुष्य का प्रयत्न करने का काम है ।।५३।।
यन्त्र न ५३
६१
१५ । ५१
५२
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। ३५ । ३१ ! ३२
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४४
उदय अस्त अंक ज्ञाता यन्त्र ॥५४।। यह उदय अस्त अक जाता यन्त्र है। इसका ज्ञान जिसको है वह जान सकता है कि भाषा
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________________
ru
खुलेगे ? और क्या बन्द होगे ? इस यन्त्र की गिनती किस प्रकार से करना चाहिए। इस यन्त्र की ग्राम्नाय गुरु नाम से प्राप्त हो जाय तो कार्य सिद्ध होते देर नही लगती । इस यन्त्र को द्रव्य प्राप्ति हेतु चितामरिण यन्त्र भी कह देना तो अतिशयोक्ति नही है । नसीब जोरदार हो तो देर नही लगती । यह यन्त्र विशेष करके वस्तुप्रो का भाव जानने के काम का है । इसकी गिनती का अभ्यास करने से जानकारी होगी । इष्ट देव के स्मरण को नही भूलना चाहिये । दान-पुण्य करने से इच्छाएँ फलती है ।। ५४ ॥
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२
लघुविद्यानुवाद
3
१
५
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४००४ २६६२४६२५ | २५५२ २५५२ ६३४१ ६६५१ | ७४६७ | ६३३५ | २५३७ ७४३७ ६८५१०३३७ | ६३४२ ६८६७ | ५७२५ ५०९७ ५२२५ ०६२६ ६६७४
४
यन्त्र न ५४
६००५ | ७३५७ | ६९०२ | ४७६६ ८०७६ ३६७८ ४००० ८१४० ३०७० | ५३५५
३६०४ | ९७७६ | ५३२६ | ४११५ ०८५३ ४१०० २०२४ । ७५०४ | १३७० ९१६२
४६५
८३७० ७३३१ ६३७७६०७६६६७ ६६१८ ] ८५०५ | २६७१ ३००३ | ५३६८
४००४ ३७०२४००७ | १८८१ २०७ ४७६६ ४२०८ ७३६५ ३७०२२६१७
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Voo५ | ६३० ३१२० ७८३५ २६७३ ६२६७५७८०००६
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५६६६ | ५७७५ | २८८६ | ६४४१ ४५०४ ७३३७ १५१७ २५६६७३७५ ३५३७ ३५८०३००३ ६२४४ | ५७७३ | २३६८ | २८६१ ६००७ ३१३७ || १५४६ | २६२४
६६०२ | ८००५ ६००६ ५५६० ६५३७ | ६४६६ | ६३७९ | ५५३६ ६५०६ ३८८१७५६२ ५३८४ ] ८६७१४१७० ६ ३५ | ४६३४ ६४५२ १५२६७३५३
२६६
(27)
७३५३ ४१३३ ८३४६ ६२१६ ४६७६ ६५६१६६७६ | ७०१७ | ३१०३ | २५४०
५०८१५२३५ | ६०६४६८९३ ३७६० २८८२ २४०४ १९८२ ७१०३ ७३६६
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४००८ ३६८६ V३/६/३८६
१८२८ ३९६२ ३६७२ ३७०७/३८० ०३८६ | १९३३ १९३१ २०७४ | ६३१९
२५५२ ७००७ २५५७७२२२५२६ ५८६६ / ६४८६ ००७६
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25=51 =१६
५२६०१२१०८
५/३०
१८६० ५०३६/५५.३
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लघुविद्यानुवाद
३०१
लाभ, सम्मान, यश राज्य मान्यता, कोर्ट मे विजय होती है। कुष्ठ, ज्वर, वायु रोग भी इस यन्त्र को धो कर पिलाने से नष्ट हो जाता है, सर्प का जहर उतर जाता है । एक वर्ण की गाय के दूध से यन्त्र का प्रक्षालन कर पिलाने से बध्या गर्भ धारण करती है।
जय माला सोना, चादी, प्रवाल रेशमी, सूत अथवा लीला, सफेद, रगनी रखना। शुभ चन्द्र मे मूल मन्त्र की छ मास मे सवा लाख जाप करना चाहिए । यथा शक्ति ब्रह्मचर्य पालना । जाप पूर्ण होने पर प्रतिदिन ६-१०८,२७ या १०८ बार जप करना । यथा शक्ति सप्त क्षत्रो मे पूजन आदि मे द्रव्य खर्च करना । पाचो गाथाओ का १०८ बार प्रतिदिन जाप करने से सर्व कार्यो की सिद्धि, सर्व रोगो का नाश, सुख सपति की प्राप्ति होती है ।।५५-५६।।
यन्त्र ५६ का
ॐनमो भी हो श्री
ॐहां प्रोक्लानाशखर श्वरपार्श्वनाथाय नमः
विषहरफुल्लिगमत
उव सगारंपास।
भवतु
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भगलकल्लामाआवास
NNY
AIDDH
चौबीस तीर्थकरों का यन्त्र इस यन्त्र को सुवर्ण या चादी के पतडे पर बनावे रविपुष्य नक्षत्र मे। यन्त्र में दिये हुए अको के समान उन २ भगवान को नमस्कार करे । यन्त्र मे लिखे यन्त्र का प्रात. कम से कम पाच माला जपे । घर मे घर मे अटूट धन, घर मे शान्ति रहती है ।।५७।।
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३०२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. ५७
-
-
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।
-
-
+-यन्त्र न ५८
२०करो
सका
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कल्प वृक्ष यन्त्र
२सा
इच्चिन
२३.स्वाहा
-
मम
इस यन्त्र को रविपुप्य गुरुपुष्य रवि हस्त या रवि मूल मे शुभोपयोग मे सोना चाँदी के पतडे व भोजपत्र पर अष्टगध से लिखे, हमेशा पूजन करे, अक्षत से उन्हे अपने सिर पर डाले । मनुष्य मान सन्मान सत्कार पावे। रोजगार वृद्धि लक्ष्मी प्राप्ति । यन्त्र के एक एक अक्षर मे चौबीस तीर्थकर देवी का निवास है ।।५।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
३०३
यन्त्र न ५६
-
१७/२०३७/
१२.१४
-
इस पार्श्वनाथ यन्त्र को पार्श्वनाथ भगवान के जन्म कल्याण के दिन तावे के पतडे पर खुदवावे। सुगन्धी द्रव्य से लिखे एक धान का एकासन करे । फूल जाइके से पूजन करे। धरणेन्द्र पद्मावती प्रसन्न होय मन वाछित फल देवे ।।५।।
सर्व मनोकामना सिद्ध यन्त्र इस यन्त्र को पास मे रखने से सर्व मनोकामना सिद्ध होती है ।।६०-६१।। यन्त्र न ६०
यन्त्र नं. ६१
12
त
विनाशनः
पा
A
.
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________________
३०४
लघुविद्यानुवाद
१३० को सर्वतो भद्र यन्त्र सिद्ध मंत्र मन्त्र :-ॐ ह्री श्रींचतुर्दश पूर्वेभ्यो नमो नमः विधि :-इस यत्र को रविपुष्य मे, शुभ योग मे बनावे । मत्र का सवालाख जाप करे। इससे महाविद्यावान तथा सर्व प्रकार सुखी होवे ॥६२।।
यत्र न. ६२
१३०
१३० । १३०
१३०
१३०
१३०
१३०
३०
। १३०
१३०
।
१० । १४ । २८ ।
३२ । १३०
१३०
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।
४४ ।
१३०
१३० ।
२०
१३०
२२ । ३६
१३०
१३० । १३०
१३० , १३० । १३० । १३०
अद्भुत लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र इस यत्र को सोना चादी या ताबे के पत्रे पर खदाकर पूजन करे तथा ॐ ह्री श्री क्ला प्रह नम महा लक्ष्म्यै. धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय ह्री श्री नमः । इस यन्त्र का १२५०० जाप करना लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।।६३॥
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लघुविद्यानुवाद
-
-
यन्त्र न०६३
क्ली
महा
fice
लक्ष्मै
पद्मा
य । वती
ह्री
श्री ।
न
नम
यन्त्र न०६४
-
-
इस यन्त्र को सोना व चादी, तावा के पत्रे पर खुदावे । अष्ट गध से रवि पुण्य मे लिखकर पूजे । व्यापार वृद्धि होय। लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ॥६४॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
-
-
यन्त्र न०६५
४२
इस यन्त्र को सुगन्धी द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखकर पूजे, विद्या बहुत आवे ॥६५॥
२१
यन्त्र न०६६
२८
मिली स्वाहाॐस्वाहा हाँ
|श्री स्वाहा
| Paक
|
रक्षा ॐ कुरु
-
यह यन्त्र लक्ष्मी दाता चमत्कारी है। रविपुष्य मे सोने चादी के भोजपत्र पर लिखकर हमेशा पूजन करे । ६६।।
श्री पातु की .
यत्र न०६७
१
.
.
.
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श्री महालक्ष्मी प्राप्ति
क्लॉ
इस यन्त्र को ग्रप्ट गध से लिखकर दीवाली के दिन रोहिणी नक्षत्र में इसे घटे मे रखकर, घर के भण्डार मे रखने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । इमे कुभ मे लिस, कु भ का पानी रोगी को पिलाने से रोग नष्ट होता है ॥६७॥
यन्त्र न. ६८
श्री सरस्वती
ॐ श्रीं हाँक्लो महालक्ष्म्यै नमः
५५.५
१००८
323
क ख
ग घ
"
लघुविद्यानुवाद
१०१ AST
महालक्ष्मी जी
म पानी
êm 1 leon aga erat & usen
३०५
अद्भुत विद्या प्राप्ति यन्न नं० ॥६६॥
रवि
में पीने
श्री महा लक्ष्मी प्राप्ति यंत्र
यह त्रिक ( तीन ) का यन्त्र लक्ष्मी पूजन का है | चादी के कलश से सिकर घर में स्थापित करे तो लक्ष्मी की प्राप्ति वय होती है ||६||
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. ६६ अद्भुत विद्या प्राप्ति यंत्र नं
म य र ल व श ष
जहाँ श्रीं के वली
झी झा स्वाहा
For
DANI
यन्त्र न ७०
ॐ श्री ऋषभ देव प्रथम जिने
ॐ चक्रेश्वरी देवी यक्ष यन
नाम
मम इच्छित देहि देहि (त्क) सवं स्वाहा
स्वाहा
इस यन्त्र को दीवाली के दिन गुरु पुप्य मे अष्ट गव से जाई की कलम में लिखकर पूजन करे तो सर्व प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हो। गध से पूज कर तिलक करे, मान सम्मान प्राप्त हा
AD
जौँ जाँ चारभुजाली आदि तिर्थकरप्रथम
हीनमः
॥७०॥
क्षः नः
चक्र हस्त राजाधिराज सर्व कार्यकरें
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लघुविद्यानुवाद
-
-
यत्र न०७१
ह क लश ह क शल हश कल
३333/60
. इस यन्त्र को ताइ पत्र या भोज पत्र सोना, चांदी व नांवा के पने पर गोरोचन, मिन्दूर, लाल चन्दन, काम और अपनी अनामिका गली के मन में यन्त्र लिखना । भविन ने पूजन कर निम्न मन्त्र ने "हम ही कह ही गह ही ।।'' मवा नाव जप करना चाहिए। जप अमावस्या ने शुभ कार तीन पक्ष में पूरे करे ।।७।।
यन.७२
क्लों
विद्या येहि
* स्वाहासरस्वत्ये
नोविद्यार्थिनम.
)
समीर
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________________
३१०
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. ७४
इस यन्त्र की विधि यन्त्र न ७३ के समान है ॥७४।।
यन्त्र न. ७५
२
४८
इस ऋद्धि सिद्धि यन्त्र को कु कुम, गोरोचन, केशर से प्राविया (ग्राम) के पाट पर लिखकर पूजन करे, ऋद्धि वृद्धि होय ।।७।।
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लघुविद्यानुवाद
श्री घंटाकर्ण महावीर अद्भुत चमत्कारिक यन्त्र ॥७७॥
ॐ | घ | टा | क
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हा / वी | र । स ।
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प |क्ति भि | रो | गा | स्त | त्र | प्र
खि | क्ष | य । शा | कि नो भू त । वैताण
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लघु विद्यानुवाद
इस यन्त्र को रवि पुष्य व शुभयोग मे भोजपत्र, चादी, ताबा के पतरे पर व कामी की थाली मे खुदवावे । रवि हस्त अथवा मुला गुरु पुष्य मे भी दीवाली के दिन बन सकता है । यन्त्र का पचामृताभिषेक कर, चन्दन पुष्पादि से पूजा करना चाहिये । जाई जुई के १०८ पुष्प रखे । मन्त्र बोल कर एक – एक फूल थाली मे चढावे । एक टुकडा अगरबत्ती का लगावे और लकडी से एक टकोर थाली मे लगावे ( बजावे ) । १०८ बार होने पर थाली मे श्री फल, पचरत्न की पोटली तथा रुपया एक चादी का रख दे । एक कासी की थाली मे यन्त्र लिख ले । इन दोनो यन्त्रो की एक ही विधि है ।। ७७-७८ ॥
ॐ ह्रीं ॐीँ क
12 N
or ज
ॐ
यन्त्र न० ७८
हीँ
च १ ६ ३७
४ २ २
ॐ ह्रीं श्रीं क्ली
बीर
हा
KH
म ह्रीं ॐ ॐ
क टा
इस चन्द्र यन्त्र को रूपा (चादी) के पतरे पर खुदवाना, अष्टगंध से, चंद्र ग्रहरण मे लिख कर अपने घर मे रखे, फिर आवश्यकता पडने पर तीन दिन तक धोकर पिलावे तो रोग मिट जाये | शनिवार, रविवार, गुरुवार को इसे धोकर सवेरे पिलावे, कफ, गुल्म नष्ट हो जाये । इसका पूजन करने से जहा जाये, वहाँ जय होय सब काम सफल होय ॥७६॥
९ ६ ७
C WA
तू
AG
ॐ अमृतवर्षि
यन्त्र नं ७६
रोग निवारण पत्र•
वर्षिणी अमृत श्रायणे मम अमृतदेहि मम सर्वरोग नष्ट कुल
कुरु स्वाहाठ ठ ठ स्वाहा।
३१३
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________________
२१४
लघुविद्यानुवाद
सर्व रोगनिवारण यन्त्र न० ८०
पा
स
| नाह
मा । ब
क्ली | श्री । ती | मा । तृ । देवी | मम | विस
5/
झो | श्री | रोग | शोक | भय / द्वेष
जरा | मरण | विघ्न
झो । श्री विघ्न
जा | दि
भ
।
य | चो
ह्री | श्री | श | दि
भ
य
।
व्या | घ्रा । दि
ही
थी । भय ।
सि | हा ।
दि
|
भ
।
य
|
10
ट
स्वाहा
इस यन्त्र का राव पुष्य या शुभ योग में कासी की थाली में खुदवाना । अष्ट गध या मे अक्षर अक्षर की पूजन कर सुखाना, पीछे उसे पानी से धोकर उस पानी का दिन मे तान वार पिलाने से सर्वग्राधि, व्याधि रोग, पोड़ा भय, मिट जाता है ।।८०॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
३१५
यन्त्र न० ८१
इस छत्तीस यन्त्र को सुगधित द्रव्य से लिखकर धारण करने से आधा शीशी नष्ट हो जाती है ।।१॥
यन्त्र न० ८२
३
इस यन्त्र को भोजपत्र या सादा कागज पर लिख कर मादलिया ताबीज मे रख कर भज ___ या गले मे बाध दे तो आधा शीशी जावे ॥२॥
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________________
३१८
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. ८७
१०
।
३
इस पदहरिया यन्त्र को लिखकर' घोकर पिलाने से तुरन्त ही ज्वरताप उतर जाता है । भूत प्रेत वगैरह जाय । यह बडा चमत्कारी है ।।७।।
यन्त्र त०८८
१ । क्ली ह्री ३
| श्री
४
इस यन्त्र को मगलवार, गुरुवार या शनिवार को जाई की कलम से आक के पत्ते. पर लिख कर भुजा या गले मे बाधे या सिरहाने रखे तो सभी प्रकार का ताप ज्वर उतर जावे ।।८।।
हा
७ हन
खा | ६ ८ । क्ष
५
भूत प्रेत पिशाच डाकिन वगैरह निवारण यन्त्र न ८६
२
शांतिनाथाय।
।
क्ली पार्श्वनाथाय धरणेंद्रदेव क्ली
महावीरस्वामी १ चक्रेश्वरीदेवी,
५ क्लीं ह्रीं क्ली ५ इस यन्त्र को हरताल मनसिन हिंगुल तथा गोरोचन से आकड़ा के पत्ते पर लिय, प देकर जिसके गले, भुजा या कमर मे बाघे तो भूतादि वाधा नष्ट हो जाय ॥८६॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
व्यापार वर्द्धक यन्त्र न० ६० "ॐ ह्री श्री अहं नम” इस मन्त्र को १० माला रोज २१ दिन तक सफेद माला,
| ह्री | ह्री |
ह्री | ह्रो
!
| ४२ । ३५ । ४० ।
!
!
ठ. | ३८ । ४३ ।
फ
!
भर
भर
भर ।
फ
सफेद आसन और सफेद पुष्पो से जपे। यन्त्र को चादी, सोना, ताबा के पत्रे पर खुदवा कर रखे। वदी चतुर्दशी से जाप करे, रात के समय जपे ।।६।।
यन्त्र न० ६१
4
५१२
५६६
२
६
। ३ । ५६६
५६५
इस यत्र को चांदी के पने पर रवि गुरु पुप्य या रविहस्त मूला अथवा दिवाली के दिन जब अपना मूर्य पर चलना हो उन ममय दवा कर प्रतिष्ठा कर गेज पूजन पर तो कार्ट की शादि विषय में जीत हाच । सन्म को रेख में ना
१९८
५.४।
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________________
३२०
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० ६२
इस यत्र को रवि पुष्य के दिन सोना, चादी, ताबा या भोजपत्र पर लिख प्रतिष्ठा कर लो। यत्र को ५, १०, १५ तिथि से प्रारम्भ कर साढे बारह हजार करना फिर रोज एक माला
|
श्री
| क्ली
48
4
।
से
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।
हे
व
।
ज्झा
।
ये
स
व्व
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मः
स्वा
जपना । मन्त्र प्रारम्भ और अन्त करने वाले दिन उपवास करना। सफेद वस्त्र, माला, आसन सफेद, एकाग्रचित से जप करे, मन वाछित कार्य सिद्ध हो, गृह देव प्रसन्न होय ॥१२॥
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लघुविद्यानुवाद
अकस्मात धन प्राप्ति यन्त्र :--इस यन्त्र को सफेद चणोठी (सफेद गुजा) के रस मे
यन्त्र न०६३
२
।
७
-
४
___ जैनून की कलम से हर मगल को अन्त की सख्या से लिखना। मौन मे लिन्वे । २१ बार लिगने पर __सिद्ध होय । पीछे अष्ट गध से लिख दाए हाथ मे वाधे, अकस्मात धन लाभ होय ॥१३॥
यन्त्र न०१४
श्रीक्ली प्रावली)
एकातीममवृद्धि
इस एकाक्षी नारियल पर मोना, चांदी का बरग्व लगाना। उम पर यह मंत्र ॐ श्री वली श्री देव्यं नम कुम-गुरु ऋद्धि वृद्धि स्वाहा । अष्टगध मे लिये। दिवानी के दिन १२.५०० हजार जप । १०८ बार गोन्ना से हवन करना । मिद्ध पर इम नारियल को भार पी पेटी में की प्राप्ति होय तो भी विनिमयानी ॥१४॥
प्रार
मित
'वृदि)04/10/
RA
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________________
३२२
लघुविद्यानुवाद
पूर्व दिगा की ओर मुख कर ॐ ह्री श्री क्ली एकाक्षय भगवते विश्व रुपाय सर्व योगेश्वराय त्रैलोक्य नाथाय सर्व काम प्रदाय नम दीवाली के दिन १२,५०० हजार जप पद्मासन से यन्त्र न०६५
यन्त्र न०६६
देवदत्तस्थ सर्वसिद्धि कुल्नु
करे । माला प्रवाल की होनी चाहिये । पीछे होम करे, होम की विधि -बादाम १०८-अखोल ( ) १०८-सुपारी १०८ लोवान सेर १।।, काली मिरच सेर १।।, दाख सेर ०।–गोला ०/-जव से र
यन्त्र न०६७
ICutar
०।-घी सेर-२ बेर की लकडी, अर्द्ध रात्रि मे उत्तर दिशा मे मुख कर हवन करना । चैत्र सुदा आसोद मुदो ८ दिवाली, होली और ग्रहण के दिन मे नारियल को पूजन करना । यत्र मे देव दत्त जगह अपना नाम देना। तीनो यन्त्रो की विधि एक ही है ।। ६५ ।। ६६ ।। ६७।।
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लघुविद्यानुवाद
३२३
इस परिया यन्त्र को रवि पुष्य, रवि मूल, रवि हस्त, गुरु पुप्य, दिवाली के दिन अपने चन्द्र स्वर के साथ सोने, चादी के पत्र व भोजपत्र पर लिखे । 'ॐ ह्री श्री ठ ठ ठ क्रौ
यत्र न०६८
GSRN
स्वाहा” साढे बारह हजार बार यत्र लिखना और मत्र भी इतना ही जपना। प्रतिदिन एक हजार जप करना । सफेद वस्त्र पहनना, लवण, खट्टा मीठा, नही खाना ब्रह्मचर्य पालना, जमीन पर सोना, एक बार भोजन करना, पान खाना ।।१८।। यत्र न. ६६ नवग्रह शान्ति पदरिया के साथ यत्र __यत्र न १०० विजय पताका यत्र
१
| csAN |
४२
बायव्य
पश्चिम
इस यत्र की विधि नही है ।।६।।
इस यत्र की विधि नहीं है ॥१०॥
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________________
३२४
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० १०१ इस यन्त्र को लिखकर पास में रखने से सर्वग्रह शात होते है ।।१०।।
* नवग्रहयुक्त बीसा
महा
शनि
MALAIMER
चन्द्र
क्ली
इस यत्रको लिखकरपास मे रक्सने से सर्वग्रहशातहोते है 1020/
यत्र न० १०२ मूल यन्त्र --ॐ श्री ह्री क्ली "महा लक्ष्मै नम" भोजपत्र पर रोज एक यन्त्र लिखना अष्टगध से उस पर २१०० जाप करना, धूप दीप फूल फल नैवेद्य धरना, पीला वस्त्र, पीली माला
सहा
लक्ष्मय
-
-
-
-
-
-
रखनी चाहिये। इस प्रकार ६२ यत्र ६२ दिन मे लिखना । ६३वॉ यत्र चॉदी के पत्ते का बनवाना। उसके पीछे ६२ यन्त्र भोजपत्र के रखसा। श्री सुक्त ( ) से पूजा करनी चाहिये ।।१०२॥
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________________
८
६
१४
४
१६
३
१३
लघु विद्यानुवाद
२
यन्त्र नं. १०५
बत्तीसा : लक्ष्मी प्राप्ति यन्त्र
१५
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५
&
व्यापार तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए चालू विधि से तैयार करना ॥ १०५ ॥
१२
१२
चौतीसा यन्त्र न. १०६
७
८
लक्ष्मी तथा व्यापार वर्द्धक यन्त्र है ।
१०
४
१५
१
७
१४
११
१
१३
५
१०
८
११
३२५
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________________
३२६
लघुविद्यानुवाद
चौतीसा गन्त्र न० १०७
१४ ।
१५
।
१
१६
।
२
व्यापार तथा लक्ष्मी वर्द्धक यन्त्र है।
छत्तीसा यन्त्र नं० १०८
व्यापार तथा लक्ष्वी वर्द्धक यन्त्र है। उपरोक्त तीनो यन्त्रो को चालू विधि से लिखना ।। १०६-१०७-१०८ ।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
३२७
६५ या यन्त्र न० १०६
।
१४
२२
| २०
-
-
-
-
-
-
-
२३ ।
६
१६
१६
६५ या यन्त्र न० ११०
२६
इन बन्न सो नदी मे गया सुपारो. रपया. हल्दी. बनिया बानकर दुकान को गाई नोकाना उन पर बैठना तो व्यापार अधिर चलना: ॥१०॥
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________________
३२८
लघुविद्यानुवाद यन्त्र न. १११
१४
__ २१
१ .
७ । १३ । १६ ! २५
१८
।
२४
।
५
।
६
।
१२
११
।
१७ ।
२३
यन्त्र न. ११२
२४
१७
३
।
२५ -
१८
६५ या यन्त्र का जप मन्त्र :(१) ॐ झी झी श्री क्ली स्वाहा ।। (२) ॐ ह्रा ह्री नमो देवाधिदेवाय अरिष्टनेमिय अचिन्त्य चिन्तामणि त्रिभुवन
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________________
लघुविद्यानुवाद
३२६
जगत्रय कल्पवृक्ष ॐ ह्रा ही समीहितं सिद्धये स्वाहा विधि :-पुनर्वसु, पुष्य, श्रमण और धनिष्ठा नक्षत्र मे जाप करना, १२,५०० (साढे बारह हजार)
जप करे। फिर बाद मे एक माला रोज जप करते रहना ।। ११०-१११-११२ ।। इन तीनो ६५ या यन्त्र की विधि एक ही है।
यन्त्र न० ११३
३
س
-
इस यन्त्र को अण्ट गन्ध से भोज पत्र पर लिखे । कटि मे बाधे, नाभि ठिकाने पावे ॥११३॥
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________________
३३०
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र नं० ११४
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क्षि |
प
|
ॐ |
स्वा ।
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स्वा
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»
इस यन्त्र को वालक के गले मे बाधे तो सर्व रोग जाये, नजर न लगे ॥११४।।
यन्त्र न० ११५
३
३७
इसे अष्ट गध से लिसकर पास रखो तो दुश्मन वश मे होय ।।११।।
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३३
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________________
६
४
४
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३०
४
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५
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२५
यन्त्र न० ११६
५
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इस यन्त्र को वाधने से कागलो अच्छी होय ॥ ११६॥
15
८
२८
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लघुविद्यानुवाद
1
७
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२
१
६
यन्त्र न० ११८
२६
८
४
इस यन्त्र को कमर मे बाधे तो वायुगोला की पीडा न रहे तथा गले मे बाँधे साप का जहर उतर जाता है ।। ११७॥
५
यन्त्र न० ११७
IN
८
४
नोट :- पेज नं० २३७ पर यन्त्र नं० १०६ की विधि नीचे दी हुई है ।
७
५
७
३३१
इस यन्त्र को लिखकर चरखे मे बाघ कर उल्टा घुमावे, परदेश गया हुआ
वापस आता है ।। ११८ ॥
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________________
३३२
लघुविद्यानुवाद
"ॐ नमो गौतम स्वामिने सर्व लब्धि सम्पन्नाय मम अभीष्ट सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा। प्रतिदिन १०८ बार जपिये । जय होय, कार्य सिद्धि होय ।
"ॐ ह्री धरणेन्द्र पार्श्वनाथाय नमः । विधि :-दर्शन कुरु २ स्वाहा । १२ हजार जप कर हाथ मुख पर, नेत्रो पर फेरे, जहाँ धन गडा
होगा स्पष्ट दीखेगा।
यन्त्र न० ११६
२
इन दोनो यत्रो को कु कुम गोरोचन से भोजपत्र पर लिख कर गले मे बाधे, गर्भ स्तम्भन होय ॥११६, १२०॥
यन्त्र न.१२०
७७
---
----
------
G
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________________
लघुविद्यानुवाद
३३३
४२
यन्त्र न० १२१
___ इस यत्र को स्याही से लिखकर माथे पर वाधे तो आधा शीशी जाय ॥१२१।।
३११
७०
यन्त्र न० १२२
यन्त्र न०१२३
४८
४४
४१
।
५
।
देवदत्त
४१७
-
-
लोहे के ढोलने मे यत्र घाल कर स्त्री के गले मे बाधे, गर्भ रहे ।। १२२।।
कुमारी कन्या के हाथ पूणो कत्ताकर यह यन्त्र कागज पर दूध से लिखे। स्त्री के गले मे वाधे, दूध घनी घनो होय ।।१२३।।
यन्त्र न० १२५
यन्त्र न० १२४
the
ह्री
हो
। दत्त
the
___ मत्र
४१८
ह्री
हो
ह्रो
यन्त्र बाधे शीतला जाय ॥१२५।।
यह यन्त्र पास रखे राजा गुरु प्रसन्न होय प्रप्ट गध से लिखें ।।१२४।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १२६
यन्त्र न०१२७
६ । ३ । ११ । १०
hc
-
-
-
-
इस यन्त्र को पान के उपर चूने से लिख, सभा वश्य हो ।।१२६।।
भोज पत्र पर लिख, सिरहाने रखे तो
स्वप्न न आवे ।।१२७॥
यन्त्र न० १२८
यन्त्र न०१२६
__श्री
ही
५
|
।
लो
नमः
अर्क के पत्तं लिखीत्वा यस्य द्वारे स्थापत्ये तस्योच्चाटन भवति ।।१२८॥
इस यन्त्र को कागज पर लिख कर हाथ मे वाधे शीतला जावे ॥१२६।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
३३५
यन्त्र न० १३०
१२
।
१८
२०
१३
इस यन्त्र को रविवार के दिन | चूना से पान पर लिख कर खिलावे,
वश्य होय ।।१३०॥
यन्त्र न० १३१
-
-
-
NG
५२
५५
इस यन्त्र को घर के दरवाजे पर गाडे तो अति उत्तम व्यापार चले ।।१३१॥
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________________
३३६
३०
३
१
११
औंऔं
यां यों
लघुविद्यानुवाद
पीभुभु
यन्त्र न० १३२
जंजक्राॐ सं मान
वीमाषां
७
८
ら
७
यन्त्र न० १३३
२६
इस यन्त्र को रविवार के दिन लिख कर वाघे, तो आधा शीशी जाय ।। १३२||
४
२
(नाम)
ॐ क्रीं श्रीं क्लों
फट् स्वाहा
海和
बीं
नही थंथोसतो / बी क्रां
क्रीगभीः घं घों
चलचः
गं गं
ᄒᄒ टांटींठीं ड डो
गंज तुं मं हं प्रात झशुवामशाहा
८
७
३
७
फल -
ल—कोई व्यक्ति धोखा देकर जहर पिलावे, तो चल छः लिख कर धोकर पिलावे तो
उतरे ||१३३||
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १३४
४७
४२
।
४
---------
-
४१
४८
४५
४४
गले की गाठ नाशक यत्र भोज पत्र पर अष्ट गन्ध से लिख कर, गले मे बाधे, तो गले की गाट का नाश होता है ।।१३४।।
यन्त्र न०१३५
.
-
-
१५
हृदय घबराहट नाशक यन्त्र ॥१३५।
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३३८
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १३६
उच्चारण निवार यत्र ॥१३६।।
२१ ।
यन्त्र न. १३७
-
दत्त
| देवदत्त APP
ដ 23
stoot
इस यन्त्र को ताबे के पत्रे पर खुदवा कर मकान की चारो दीवार मे लगा देवे, तो धन की प्राप्ति, उपद्रव की शाति होती है ।।१३७।।
TA देवदत्त
देवदत्त
यन्त्र न. १३८
क ख ग घ च ज झ भ
२६ २७ २८ २५-३०३१-३२ टठ
४५४३८ - १८४ डटण तथदध
४२ न प फ भ र य र ल व शस
२५.२४ २३ २२.
38
४-१८
६१३॥
AM
२१२०
५६ ५७ ५८
६२३
H
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अा उऊ * *
श्री मरिण भद्र महा यन्त्र से यन्त्र न १०० का है। मरिणभद्र महाराजा का है। जो मनुष्य ये यन्त्र दीवाली के दिन छद्र तप कारी सुगन्धि द्रव्य मे रात में लिखे, जो चरणोटो का जड हो वहाँ जाकर यन्त्र को गाडे, फिर दूसरे दिन सुबह ब्राह्म मुहर्त मे निकाल लेना। मौनपूवक घर पाकर इस यन्त्र का हमेशा श्रद्धा से पूजन करे, तो उसके घर मे लोला लहेर और मगलाचार होता रह । अटूट लक्ष्मी का आवागमन होता है ।।१३८।।
२१
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/ ८५ ८५
* ३ २५ / ०६४ ८७ ५५
* ३७२७१७०६४ ६७६६६५ अ५०४५ ४८४४४६ ५५४४ ४३ ४२ ४१
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लघुविद्यानुवाद
३३
यन्त्र न० १३६
यन्त्र न १४०
शत्रूनाममुनः
प्रज्वल
ज्वलज्जल विधि :-गुगल गोलो १०८ होमयेय शत्रु, नादाह । यह यन्त्र रविवार के दिन लिख कर,
इस यन्त्र को मशान की ठोकरी वौ x माथे मे राखै, तो मथवाय जाये तथा यह नीयत दोय परि लिखत्वाऽग्नि मध्ये यन्त्र पृथ्वी मे गाडे तो टिड्डी खेत को प्रज्वाल्य तदोपरिकुर्यात् ।। १३६।।
नही खावे ।।१४०॥
यत्र न० १४१ या यन्त्र रविदिन आक का दूध, सो आम की लेखनी से लिखै । पानी ३११-घालिजे
/देवदत्त
४ उड्दै ३१ लीजै । हाडी मे जंत्र डाले, प्रौटावे। मुडे, मुदै डाकिनी प्रावै सही ॥१४१॥
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३४०
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १४२
.
पलीतो मली भूत को स्याही सो लिख कर धूप दीजै, डील मे आवै सही । सत्य ।।१४२॥
यत्र न० १४३ यह यन्त्र होली दीवाली मे लिखै, पास राखे सर्व वश्य होय ।।१४३।।
ॐ ह्री
।
क्ष ।
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हा
प
___ हां
क्ष
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क्ष
.
प .
मी
स्वा
क्लो
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लघुविद्यानुवाद
३४१
यन्त्र न० १४४
यह यन्त्र अष्टगध सू भोजपत्र पर लिखै । कनै राखे, तो घाव लगे नाही। फते होवै सही ।। १४४॥
५५ । ११
यन्त्र न०१४५
राजा रानी मोहन को नव प्रकर्ण यन्त्र है सत्य । इस यन्त्र को अष्टगध से लिख कर; पास मे रखने से, राजा-रानी वश मे होते है ।। १४५ ।।
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________________
३४२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १४६
।
२७ । २७ । २७
-
-
।
२७ । २७ । २७
२७ ।
२७ । २७ । २७
२७
२७
२७
इस यन्त्र को प्रष्ट गध से, भोजपत्र पर लिखकर, डाकिनी के गले मे बाधे, तो जिसको डाकिनी की बाधा है, वह दूर होगी ।। १४६ ।।
यन्त्र न० १४७
६७८
६८५
६८१
६८४
૬૭e
६८०
६८३
इस यन्त्र को सुगन्ध द्रव्यवास सू लिखकर गले मे बांधना चाहिये, इस यन्त्र से भूत-प्रेत का डर कभी नही होय ।। १४७।।
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२०
६
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२७
४
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२१
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यन्त्र न० १४८
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२४
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२८
६
७
३४
४
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५
२२
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इस यन्त्र को थाली मे लिखकर, धोकर पिलावे सर्व ज्वर ठीक हो जावे ।। १४६ ।। यह यन्त्र भोज पत्र पर अष्टगंध से लिखे, दीतवार (रविवार) के दिन पास मे रखे तो राड़ जीत कर घर आवे । सत्य व तथा यन्त्र को बालक के गले बाधे तो नजर न लगे ॥ १४८ ॥ विजय यत्र न० १५०
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लघुविद्यानुवाद
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यन्त्र न १४६
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२५
७
३४३
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________________
लघुविद्यानुवाद
____यत्र रविवार के दिन आटे की गोली बनाकर मछलियो को खिलावे, तो जिस नाम खिलावे, वह वश मे होता है। इस यत्र को सवा लाख बार लिखने से मनचिचित कार्य की सित होती है ॥ १५० ।।
यन्त्र न० १५१
४७५
४८२ ।
२
।
७
। ४७६ | ४७८
४७६
७७७
४८०
इस यत्र को भोज पत्र पर लिखकर पास मे रक्खे तो शस्त्र नही लगे, विजय हो ॥१५१ ।। यन्त्र नं० १५२
यन्त्र न०१५३
१८१
१०
। २१
९८२
। २० | १५ | ८ | १
१७६
१२ ।
६ ।
३
ग्रहण मे लिख वाटु, मृगी जाय ॥१५२॥
जन्त्र नजर निवारण को, भोजपत्र पर सुगन्ध सो लिखकर गले मे वाधे ॥१५३।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
३४५
-
यन्त्र नं. १५४
यत्र न० १५५
ह्रो
ह्री
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ह्री
७
४ ह्री
इद यन्त्र राई भर दीवा बाले तो जिन्द भूत जाय । निश्चय सेती इद भूत नाशन यत्रम् ॥१५४॥
रविवार के दिन यन्त्र लिख, हाथ मे बाधे, तिजारी चढे नही ।।१५५।।
यन्त्र न० १५६
१०४
१११
५
। १०६ : १०६
यह मन्त्र लिख पास राखे, काख अलाई अच्छी होय । विष न रहे ।।१५६।।
Page #406
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________________
३४६
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० १५७
यत्र न० १५८
७७ ५.८७
यह यन्त्र अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखकर पाम मे राखे, तो भूत मैली वीजासण लागे नही, कभी याको दखल होय नही ।।१५७।।
यह यन्त्र रविवार के दिन भोजपत्र पर लिखकर हाथ मे बाधे, तो बेला ज्वर चढे नहीं ।।१५८।।
यन्त्र न. १५६
-
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कॉ ।
कॉ
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________________
लघुविद्यानुवाद
३४७
इदं यंत्रं अष्टगंधेन भोज पत्रे लिखित्वा स्थापय, भरतार वश्यं ।
इस यन्त्र को अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर, पास मे रक्खे या स्थापन करे, तो भरतार वश मे होता है ॥१५६।।
यन्त्र न १६०
७४
यन्त्र न०१६१
ခု
४१
२७
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१६ । ३५
१२
।
४३ ।
४५
१२
१५१३
__४१
यन्त्र रविवार के दिन भोजपत्र पर लिखे, दष्ट मूठ को भा .भी भी नही होय :१६०-१६१ ॥
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________________
३४८
हह
१०
१११
६००
कैर
१०१
यन्त्र को पीपल के पान पर स्याही से लिखिये । इससे एकातरा ज्वर जाय ।। १६२ ।।
यन्त्र न १६३
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११०
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लघुविद्यानुवाद
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यन्त्र न० १६२
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७
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५५
६६
१०७
६००
८६
इस यन्त्र को लिखकर काजल कीजे, पाछे ७ दिन लीजै, प्रजनि को करि भरतार कने जाव वश्य भवति ॥ १६३ ॥
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________________
लघु विद्यानुवाद
-
यत्र न० १६४
४
११५
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यह यत्र भोजपत्र पर लिख, माथा मे राखे, सभा वश होय सही ।।१६४।।
यत्र न० १६५
१६
१५
__ २०
२१ ।
२
हनमन्त की आज्ञा फुरै
७ ।
१३ ।
१६
हनुमन्त की आज्ञा पुरै
११
यह पद्मावती यत्र लिखकर विलोवनी के बाधने से भी ज्यादा होता है ।।१६।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० १६६
९८६ या यन्त्र
४६२
४८६
।
४८८
४६१
४८६
४८७
४६०
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्य से लिखकर पास मे रक्खे तो युद्ध मे जीत होय ।।१६६॥
यत्र न० १६७
9939
हार र हर
र र
इम यत्र को कागज मे लिखकर जलावे, फिर सु घावे, प्रेत वकारे जाय सही। इद प्रा वकारो यत्रोऽयम् ।।१६७।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
३५१
यत्र न० १६८
फेशर से थाली मे लिख धोय पिलावे ।।१६८।।
यन्त्र न० १६६
यन्त्र जाप मे स्त्री के सिरहाने राखै तो कोई बात का विघ्न नही आवे सही ॥१६९।।
६०
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________________
३५२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १७०
यन्त्र सुगन्धित द्रव्यो से लिखकर मकान की देहली के ऊपर नीचे गाडे और उसको उलाघे तो स्त्री सासरे रहे सही ॥१७०।।
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-
-
-
६४
६७
यन्त्र न० १७१ इस यन्त्र को केशर, सिन्दूर से लोटा के नीचे लिख कर पानी पीलावे तो वश होता है ।।१७१॥
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अमुकेगृहश्वसुर तिष्ट२.
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________________
-
चौतीसा यन्त्र न. १७२
यह यन्त्र क्रियाण मध्ये रखे, लाभ होय । कच्ची ईट मे लिख, गद्दी के नीचे गाडे, लाभ अवश्य होय ।। १७२ ।।
३७
८
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यन्त्र न १७३
७
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लघुविद्यानुवाद
४०
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यत्र न० १७२
यं यं यं यं
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यन्त्र न १७५
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१६
ॐ नमो आदेश गुरु को आधाशीशी प्राध (कपाला) कमाल माँग सँवारो सारी रात एकून आया, हनुमत प्रया काई लाया सहसामरणों को मुदगर लाया, सवा हाथ की धुरो हाक सुनी हनुमत की ( आधाशीशी ) जाय ।। १७५ ।।
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यन्त्र न० १७७
यन्त्र थाली मे लिख स्त्री को पिलावे, तो गर्भ 8 माह पीछे सुख से होय ॥। १७७ ।।
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लघुविद्यानुवाद
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७
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यन्त्र न १७६
जन्त्र पीड को कागज पर स्याही लिखे तो पीडा मिटै ।। १७६ ।।
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२ २८ २७ य
१
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३ ४१ ४०
३८
५ ३६ ४२
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७
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य. -
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________________
लघुविद्यानुवाद
३५५
यन्त्र न० १७८
यन्त्र लिख थल मे गाडे । रविवार के दिन उलधे तो गर्भ है ।।१७८।।
यन्त्र न०१७६
यन्त्र नं० १८०
६७७
६८४ ।
२
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७
३
-
-
-
___३ । ६८१
६८०
६८३
६७८
५ । ६७६
। ६८२
यन्त्र सुगध से लिखे। गाय के गले वाँधे, बछडा होगा तथा स्त्री के गले मे बाधे तो भरतार वश्य होय ॥१७६।।
यन्त्र माल कॉगनी का रस सूजाका घर मे गाडे ताके सर्प भय होय नाही ।।१८०॥
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--------------------------------------------------------------------------
________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न १८१
४४
३८
---
।
३६
।
४२
इस यन्त्र को मुर्गा की बीट से कागज पर लिख कर माथे पर रक्खे, तो वश मे हो ।। १८१ ॥
यन्त्र न० १८२
३४
४१
यन्त्र घर के सम्मुग्व हिरमिच सू माडे, तो डाकिनी शाकिनी का भय नही होय ॥१८॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
३५७
यन्त्र न० १८३
यन्त्र न० १८४
३६
। ४४
यन्त्र क्रौच का रस सू लिख, भोज-पत्र, ऊपर घर मे राखे तो सर्प, आवे नही ।।१८३।।
यन्त्र पौली के दरवाजे लिखै, शत्रु देख जल मरै । शत्र वश होय सही ।।१८४।।
-
2
-यन्त्र न. १८५
काई मः
१६९
__गेहूँ को रोटी आदित्यवार के दिन करावै। ११ तिह ऊपर यह यन्त्र लिखिये ते रोटी छाया मे सुखावे, पुरुष कुत्तीस्वाननी ते खिलावै तो स्त्री वश्य होय और स्त्री स्वान ने खिलावै तो पुरुप वश्य हो ॥१८॥
३
३८०
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १८६
४४
कुमारी कन्या के हाथ पूनी २।। को कतार कर ये यन्त्र कागज मे दूध से लिखे। स्त्री के गले बाधे, दूध ज्यादा होय ।।१८६।।
यन्त्र न० १८७
२
।
१
४७ । ५०
यन्त्र भोजपत्र पर दिवाली की रात लिख, गले मे राखे । मनुष्य व स्त्री, तो कामण इमण लागै नाही ॥१८७॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
३५६
यन्त्र न० १८८
|
४६
।
__ ४५
४८ ।
४३
४४
४७
यन्त्र, ढाक का पान पर माडै, जाका नाम को सो यन्त्र वन मे गाडै, तो वह भ्रमता फिरै ॥१८॥
यन्त्र न० १८६
-----------
५६
यन्त्र जापा मे स्त्री के सिरहाने राखे तो कोई बात का विघ्न नही, सही ॥१८६।।
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________________
३६०
६१
७
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६७
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यन्त्र न० १६०
६८
३
६२
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यन्त्र बुझारी के माहि लिखकर के मशान मे गाडे, तो स्त्री की कूख बन्द होय ||१०||
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १६२
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यन्त्र न० १६१
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६७
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८
६८
यन्त्र आक की जड सू लिख, माथै राखे, तो देवता प्रसन्न होय ।। १६१ ।।
१
७०
यह यन्त्र गर्म पानी मे रखिये । तीन दिन मे शीत ज्वर जाय । शीतल पानी मे रक्खे शीत ज्वर जाय, हाथ मे वाधे बेला ज्वर जाय, धूप खेवै, भूखो को जिमावे ।। १६२।।
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________________
लघु विद्यानुवाद
यन्त्र न० १६३
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हदेवदत्तस्यो च्चाटनंकुरूकुरु
फट।
१ यन्त्र चौराहे मे और १ यन्त्र शत्रु के द्वारे गाडै १ आक के वृक्ष मे बॉधै। पहले दम __हजार जपना, दशाश होम करना, यन्त्र मे मत्र है ।।१६३।।
यन्त्र न० १६४
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नोट-इसकी विधि उपलब्ध नहीं हो सकी है ।
Page #422
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________________
३६२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १६५
४५
|
४४
।
४७
यन्त्र लाहे के ताबीज मे घाल कर स्त्री के गले मे बाधे, गर्भ रहे ॥१६५।।
यन्त्र न० १६६
हह
ह
holic
यह यन्त्र श्मशान के कोयले से धतूरे की लेखनी से लिखे । मनुष्य की खोपड़ी पर अनि तपावै ॥१६६।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. १९७
यन्त्र न० १६८
२८
३५
| ३ | ३२ । ३१
--
-
-
३३
जत्र भोजपत्र ऊपर हिगुल से लिख, गले मे बाधे तो ताव रोग जाय बालक का सही छै ।।१९७॥
जत्र थाली के ऊपर माढ स्त्री को दिखावे । उलघी घोली प्यावे तो कष्टी का कष्ट छूटै ॥१६८।।
यन्त्र न० १६६
यन्त्र न० २००
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ह्री
ह्री
जन्त्र स्त्री ने दूध मे घोल पिलावे, पुष्य नक्षत्र से पावा पान पडे ॥१६६।।
यह यन्त्र पास राखे, राजा, गुरू प्रसन्न होय अष्ट गन्ध सू लिखे ।।२००।।
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________________
३६४
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न २०१
४३
४२
इस यन्त्र को स्याही से लिख कर माथे पर वाघे, तो आधा शीशी जाय ॥२०१।।
३११
७०
यन्त्र न २०२
इस यन्त्र को रविवार के दिन पीपल के पत्र पर लिख, हाथ मे बाधे तो अन्तरा ज्वर जाता है ।।२०२।।
यन्त्र न २०३
११
रवि दिन धोय पिलावे, स्त्री पुरुष वश्य होय ।।२०३॥
यन्त्र न २०४
यन्त्र न २०५
४७
४४ -
१
।
५
।
१३ ।
७
गर्भ म्नम्भन यन्त्र कु कूम गोरोचन सू भोज पत्र पर लिग्वे, कण्ठ मे वॉधे तो गर्भ का स्तम्भन होता है ।।२०४।।
यह यन्त्र केशर सू लिख थाली मे लिख कर घोल कर पिलावे, तो प्रसव की वेदमा से छुटे ।।२०।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
३६५
यन्त्र न २०६
यन्त्र न. २०७
न
२प्र
४
ये यन्त्र धोय पिलावे, कष्ठी छूटे ॥२०६।।
पीपल के पत्ते पर लिखे, सिर पर वाधे, सिर दर्द जाय ।।२०७॥
यन्त्र नं.२०८
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४
|
प्राधा शीशी जाय ।।२०८||
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-
-
इद यन्न कुम कुमादिभि लिस्यते कठेप्रियतेशिरोति रोग निवारगति नासोनिका
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. २१०
-
- -
डॉहीलुलु
स्वाहा स्वा देवदत्त
ल
इस यन्त्र को बालक के गले मे बाधने से रोना दूर होता है ॥२१०।।
यन्त्र न २११
एक च धन लाभ च । द्वितीय च धन क्षय ।। त्रितिय मित्र सयुक्त । चतुर्थ च कलह प्रिय ।।१।। पच मे सुख लाभाय । षष्टमे कार्य नाशन । सप्तमे धन धान्य च । अष्टमे मरण ध्रुव ।।२।। नव मे राज सन्मान । कथित जिन भाषित । केवली समाप्त ।।२१।।
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न. २१२
यन्त्र न. २१३
यह यन्त्र १०८ बार मौन सो लिखि भजि मे पुष्ट बेडी भाजि पडे ॥२१२॥
यन्त्र न.२१४
यह यन्त्र खडी सू थाली मे लिखि स्त्री ने दिखावे तो कष्ट सू छूटे ॥२१३।।
सा| लौं
/ॐ
मुं
यह यन्त्र घृत पात्र के नीचे राखे । पात्र चालजे तो मात्र माहि घृत बढे टूटे नही अष्ठगध सो लिखे ॥२१४।।
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/ॐ
यत्र न० २१५
.
पानापाय नमः
अमुक मार्ग पर चक्र पागत स्तम्भ भवति स्वाहा। सत्य कुरु स्वाहा प्रबल स्थभो भवति । भोज पत्रे लिय शत्रु द्वारे प्रवेशे स्थाने वा लिख तथा भोज पत्रे लिखि त्वा सूत लपेटे आटा की गोली मध्ये घालिये मनुष्य कृपाले ॥२१५।।
३४ | ५४ १४ 7 nnn
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न २१६
यन्त्र न २१७
जःजःजः जःजः
बदत्तस्य
बर नाशप/
देवदत्तस्य ज्वरं
-
नाशय२
-
ये यन्त्र शीत ज्वर चढने के पूर्व अग्नि मे तपावै । जब तक वक्त टल जाय पानी के कटोरे मे डाल देवे सिरहाने राखे ज्वर य ।।२१६, २१७।।
यत्र न० २१८
यन्त्र जजोरे का सिन्दूर से लिखे । दिखावै जलावै भूत वकारे सही ॥२१८॥
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________________
४५
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यन्त्र न० २१६
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४६४॥
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लघुविद्यानुवाद
इस यन्त्र को पान पर लिख स्त्री को खिलाने से प्रसूति मे कष्ट नही होता || २१६ ।।
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यन्त्र न० २२१
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यन्त्र न २२०
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४६३॥
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इस यन्त्र को बच्चे के गले में बांधने
से
दृष्टि दोष निवारण होता
है ।। २२० ।।
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२
जमीन मे लिखे मेटे, शत्रु उच्चाटन होय || २२२ ।।
यन्त्र न० २२३
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० २२२
किकाली महा कं काली
कंदली महा कं दलौ
५
यन्त्र न० २२४
७
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गौरी खंडी
महा महा गौरी च
डास चीज यहा डोहा रु राजु
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ख ज्ञ
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१
६
इस यन्त्र को पान मे रख खिलावे वश्य होय || २२३ ||
और विगहा भैरवी
गांधारी महा गांधा
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिख कर कमर मे वाधे, तो सर्व वायु जावे ॥ २२४॥
Page #431
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________________
लघुविद्यानुवाद
३७१
यन्त्र न० २२५
यन्त्र न० २०६
८३१
८२४
८२६
३८
८२६
८२८
८३०
८०७
८३२
८२५
मृत वत्सा के मरे हुये बच्चे होना वध हो ॥२२५॥
-
-
इस यन्त्र को गले वाय, शाकिनी जाये ॥२२॥
यन्त्र न० २२७
यन्त्र न. २०८
४४
पल के पते पर लिन बारे घर जाम ॥२२॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० २२६
यन्त्र न० २३०
१२॥
१२।। | १२॥ १२॥
१२।। | १२।। | १२॥
७ ।
२ । ८३
| १२॥ | १२॥ १२॥
१२॥
१२
८०
१२।। । १२॥
१२॥ | १२।।
यन्त्र लिख कर बाधे आधा शीशी जाय ॥२२६।।
२३० की विधि उपलब्ध नहीं है ।।
यन्त्र न०२३१
यन्त्र न. २३२
।
३६
५
।
१२
यन्त्र लिखे बाधे शूल जाय ।।२३१।।
यन्त्र लिख नोले डोरे से बाधे, सिर पीडा मिटै ।।२३२॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
३७३
यन्त्र न० २३३
यात्र न० २३४
१४
२५ ।
२
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१
।
२४
१६
२०
२३
यह यन्त्र लिख धोय पिलाव, सुख से प्रसव होय, कष्ट छुटै ॥२३३॥
पोपल के पत्ते पर लिख कर चर्खे से बाघ उल्टा घुमावै, परदेश गया हुआ आवै ॥२३४।।
यन्त्र न०२३५
।
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कक hd
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।
भोज पत्र पर लिख सिरहाने राखे तो स्वप्न पावै नही ॥२३॥
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________________
३७४
लघुविद्यानुवाद
-
यन्त्र न० २३६
ॐ नमो पञ्चागुलि २ परम सरिसता मय गल वशीकरण लोहमइ डड मोहिणी वज्रमयी कोटा फाटनी चौषट कामण निह डणीरण मध्ये रावल मध्ये शत्रु मध्ये डाकिनी मध्ये नाम मध्ये जिको मुड ऊपर विराउ करावइ जडई जडाबई चिन्ते चिन्तावई मन धरई घरावई तीन मध्ये पचागुलितणुवज्रनिर्धात पढई सत्यम ।
ये मन्त्र यन्त्र के चारो तरफ लिखे । ये मन्त्र सर्वकार्य ऊपर श्रेष्ठ है । भुजा अथवा गले मे बाधे तो भूत, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी की बाधा दूर हो । राजा प्रजा सर्व वश्य होते है, धूप से पूजा करे ॥२३६।।
यन्त्र न.२३७
धघर /
|
देवदत्त
यह मन्त्र लिख बाधे शाकिनी, डाकिनी छाया भूतादि दोष जाये । वशी होय सही ।। २३७॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
३७५
यन्त्र नं. २३८
५०
५७
। ५२
इस यन्त्र को घर के दरवाजे पर गाडे तो उत्तम व्यापार चले ॥२३८।।
यन्त्र न०२३४
क्ली
इस यन्त्र को पान पर, अथवा पीपल के पत्ते पर, भोज पत्र पर केशर से लिखे। ॐ ह्री ला श्री नमः का जाप करे, दीप धप रखकर प्रभात, सध्या, सोते समय यन्त्र सिरहाने राखे, शद्ध पवित्र होकर रहे. अर्द्ध रात्रि के पीछे सब शुभाशुभ मालूम हो ॥२३६।।
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________________
३७६
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० २४०
ड्रीप षषःअमुकँक्षीण
स्वाहा
किसी पर चलाना होय तब शील सयम तथा त्रियोग शुद्धि के साथ लाल वस्त्र पहन कर उत्तर दिशा मे मुख करके खडा हो । लाल माला से १२००० माला सवा पाच अगुल की तावे की कील वाये हाथ मे लेकर ।।२४०।।
यन्त्र न० २४१
३७४
३६६ ३७६ | ३४ | ३८१ | ३६२ [ ३७६, ३७० | ३७५ | ३२
३७३. | ३७७ ३७० ३३ ३७२
| ३७१ इस यन्त्र को दुकान के तथा घर के दरवाजे पर लिखकर चिपका देवे तो चोरी कभी नही होती है, चोर भय मिटता है ॥२४१।।।
यन्त्र नं. २४२
हाहीहांहीहीही
MEROLLER ही देवदत्त हीं तं ही खं ही हीचाही ही नहीं
"4TA L..
.
इस यन्त्र को अष्ट गध से भोज पत्र पर लिखकर गले मे बाधे तो सन्तान पुत्र होता है । और होकर मर जावे तो जीवे, मूल नक्षत्र रविवार के दिन गूजा के रस से भोज पत्र पर यन्त्र लिखकर पास मे रखे तो शत्रु मित्र हो जाय । सत्य ॥२४२।।
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लघुविद्यानुवाद
३७७
यन्त्र न.२४३
ॐतारे तारे तुं तारे २ देवदत्तस्य बच्चन मुक्ति कुरुर स्वाहा।
इस यन्त्र को अष्टगध से भोज पत्र पर लिखकर, गले मे बाधे तो राजा के वधन से छट जाय, बन्धि मोक्ष यन्त्र है ॥२४३।।
यन्त्र न २४४
ॐ १६
ह्री २
| ह्री २ | ह्री १३
सु ५
। स ११
व १०
ह्री ८
ह्री ७
| ह्री ६ । ह्र १२
_स ४ ।
स ४ । ठ १५ ।
ह्री १
. इस यन्त्र को भोज पत्र पर अष्टगध से लिखकर घर मे बाधे तो गाकिन्ध दि नष्ट हो और ध्वजा पर लिखे तो राजा शत्र भागे, घर में रखे तो घर का मर्व उपद्रव नाश हो सवेरे नित्य ही इस यन्त्र का दर्शन करे तो शुभ हो ॥२४४।।
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३७८
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न २४५
हाँ हाँ हाँ
हाँ हाँ ह्रीं
का
'देवदत्त श्री हरस्वाहा
हाँही/
हाँ हाँ
इस यन्त्र को अष्टगन्ध से भोज पर लिखकर वाधे, तो निर्धन को धन की प्राप्ति हो ॥२४॥
यन्त्र न २४६
जं जं जं जं
जं जं जं.
जज ज ज जं.
जं जं
चन्दन, कस्तूरी, सिन्दूर, गौरोचन कपूर, इन चीजो से थाली मे यन्त्र लिखे, फिर थोडा सा एक बरनी गाय का दूध डालकर रूई से उस यन्त्र को पोछ लेवे, फिर उस रूई की बत्ती बनाकर दीपक में जलाना । जिसको प्रेत लगा हो वह पाता है ।।२४६।।
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लघुविद्यानुवाद
३७४
यन्त्र नं २४७
his he he
is
'he he he
he
he is
'he hechche
the
t is the
he
is the
ichche is
ह्री | ह्री ह्री 'ह्री | ह्री
ह्रो ह्री | ह्री
he the
मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अमुकं उच्चाट्य वषट् । विधि ,-इस मन्त्र का, १० हजार जप करके दशास होम करने से सिद्ध होता है, फिर इस यन्त्र को
१०८ बार लोहे की कलम से जमीन पर लिखना और पूजन करना तब जत्र मत्र सिद्ध हो जायेगा। फिर एक चिमगादड पक्षी को पकडकर लावे । उस चिमगादड के पख पर पीपल, मिरच धर का धुआ, बन्दर का विष्टा, नमक, समुद्र फेन इनका चूर्ण कर स्याही बनावे । उस • याही से यन्त्र मन्त्र लिखकर उस चिमगादड पक्षी को उडा देवे, चिमगादड जिस दिशा न उड़ेगा, उसी दिगा म शत्रु भाग जायेगा । उसका उच्चाटन हो जायेगा ॥२४७।।---
यन्त्र न २४८ ह्री ह्री ह्री अ ह्री
देवत्त
ये यन्त्र अष्टगन्ध से लिखकर दरवाजे के चोखट में बाँधने से बहू सासरे नही रहती हो तो रहे ॥२४॥
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१३८०
८
w
लघुविद्यानवांद
३
यन्त्र न २४६
इस यन्त्र को भोज पत्र पर अष्टगंध से लिखे और पगडी मे अथवा टोपी मे रक्खे तो छत्रधारी होता है ||२४|
यन्त्र न २५०
૧.
ह्रीँ
सः
११
इस यन्त्र को १ लाख बार लिखकर सिद्ध करे । फिर कार्य पडे तब प्रयोग करे || २५०||
यन्त्र न २५१
सः
सः
१०
सः
४
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लघुविद्यानुवाद
हस्त नक्षत्र रविवार के दिन भोजपत्र पर अष्टगन्ध से लिखकर फिर पास में रक्खे, राजा वश्य, शत्रु मित्र होय ।। २५१ ।।
यन्त्र न. २५२
ह्रीँ
क्रों का का
का का 簽
1930
वदत्त
ॐॐ ॐ ॐ ॐ हाँ हाँ हाँ
आ आ आ
३८१
ימ
इस यन्त्र को लिखकर हडिया मे डाले, फिर उस हडिया मे पीपल की छाल, सखा होली आधा सेर पानी डालकर बबूल की लकड़ी से चूले पर उबालना तो शाकिनी की जो बाधा हो, तो दूर होती है, शाकिनी पुकारती श्रावे सर्व दोष मिटे । श्रावेश उतारन यन्त्र है ।। २५२ ।।
यन्त्र न २५३
Fromeho
hololo
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३८२
लघुविद्यानुवाद
ॐ नमो लडी लडगीही मे द्रेई मसाण हिडई नागी पडर केशी मुहई विकराली अमकडा वी अगई पीडा चालाई माजी मराती केर उरझ सई अमकडा के अगई पीडा करै सही मात लडी लडगी तोरी शक्ति फुरई मेरी चाडसरई हु फट् स्वाहा ।।२५३॥
पर को हानि पहुचाने रूप क्रिया होने से यत्र की विधि समाप्त कर दी गई है।
यन्त्र न, २५४
हीं
ॐघटाकर्ण महावीर नाकाने मरणनस्याय सर्पण इत्यते विस्फोटक भय नास्ति
अग्निचोरभय वन नास्तिका
एफस
प्रभवतिना
Athey
घटाकणी नमोस्तुतेक रतरमदानलका त्यतिष्टते देवलिखितो
HenbKERALLY
यह यन्त्र बटा कर्ण कल्प का है। इस यन्त्र को अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखकर मन्त्र का साढे बारह हजार जप विधिपूर्वक करे तो सर्वकार्य की सिद्धि होती है। विशेप विधि घटा कर्ण कल्प मे देख लेवे ॥२५४।।
4 मता जिनका मन है, तप जिसली आत्मा है विद्या जिनकी वाणी है, ज्ञान जिनका चरित्र हे,
परोपकार जिनका कर्म है, दया जिनका धर्म है, सेवा जिनकी माता हे धर्म जिनका पिता है, सहयोग ।
जिनका भाई हे शाति जिनको पत्नी है, पुरुषार्थ जिनका पुत्र है, भाग्य जिनका साशी है, धर्य जिनका * मित्र है, प्रभु भक्ति जिनका जीवन है और साहस जिनका शस्त्र है ऐसे महापुरुप विरले ही होने है इन
गुणो से रहित होकर मनुष्य हुए भी तो क्या और जीये भी तो क्या ?
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्राधिकार
पन्द्रहिया यन्त्र का विधि विधान
(३)
(४)
ह्रीं हीं हीं श्री ही ही हीं श्री साहश श्री
J
मूल मन्त्र — ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः
यन्त्र साधना के समय मूल मन्त्र की हर रोज एक माला का जाप करना चाहिए । विधि :- योग्य शुद्ध व एकान्त स्थान मे पूर्व दिशा की ओर भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिये । दशाग धूप या गुग्गुल की धूप करना चाहिए घृत का दीपक होना चाहिए । प्रत्येक यन्त्र लिखने के बाद उसकी पूजन करे । चावल, पुष्प, खोपरे का टुकडा, पान, सुपारी अनुक्रम से चढाने चाहिए । उपरोक्त यन्त्रो को गिनती मे लिखने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है ।
(५)
(१)
१० हजार केसर कस्तूरी या गोरोचन की स्याही व चमेली की कलम से लिखे तो वशीकरण हो ।
३८३
(२)
२० हजार - चिता के कोयलो की स्याही व लोहे की कलम से श्मसान की भूमि पर लिखे तो शत्रु का हो, और धतूरे के रस व कौए की पाख से लिखे तो शत्रु का निषेधकर्म होता है ।
३० हजार - हल्दी की स्याही व सेह की शूल से लिखे, तो शत्रु का स्तम्भन हो ।
४० हजार - केसर की स्याही व चादी की कलम से लिखे, नो देव दर्शन हो प्रसन्न हो । ५० हजार अष्टगन्ध स्याही व सोने की कलम से लिखे तो मोह न हो ।
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३८४
लघुविद्यानुवाद
(६) ६० हजार-अष्टगन्ध स्याही व चादी की कलम से लिखे तो खोई अचल सम्पत्ति वापस
प्राप्त हो। (७) ७० हजार --- प्रष्टगन्ध स्याही व चमेली की कलम से लिखे तो द्रव्य प्राप्त हो । (८) ६० हजार-अष्टगन्ध स्याही व चमेली की कलम व ग्राम, केला, वटवृक्ष के पत्त पर लिखे
तो महान् बने । (6) ६ लाख-अष्टगन्ध स्याही व चादी की कलम से लिखे तो भगवान की कृपा हो, सर्व कार्य
सिद्धि हो।
इन यन्त्रो के अक भरने की अलग-अलग विधि है उसका फल भी अलग-अलग है जो निम्नलिखित है(१) १ से 6 तक के अक भरे, तो देव दर्शन हो, १ लिखे तो वशीकरण हो। (२) २ के अक से शुरू कर ६ तक लिखे, फिर १ लिखे तो वशीकरण हो । (३) ३ से लेकर ६ तक लिखे, फिर १-२ लिखे तो भूमि प्राप्त हो । व्यापार वृद्धि हो । (४) ४ से ६ तक लिखे, फिर १-२-३ लिखे, तो द्रव्य प्राप्त हो, देव दोप दूर हो। (५) ५ से लेकर ६ तक लिखे, फिर १-२-३-४ लिखे, तो यह अशुभ है। अत इसे न
लिखे। (६) ६ से लेकर ६ तक लिखे १-२-३ ४ ५ लिखे तो कन्या प्राप्त हो । उस पर कोई मारण
का प्रयोग नहीं कर सकेगा।
७ से लेकर ह तक लिखे, फिर १ से ६ तक लिखे, तो मोह न हो, अनेक लोग वश हो । (८) ८ से लेकर ६ तक लिखे, फिर १ से ८ तक लिखे तो शत्रु के उच्चाटन हो, अशुभ चितन
करने वाला विपत्ति मे पडे । (६) ६ से प्रारम्भ करे, फिर १ से ८ तक के अ क लिखे, तो सर्व कार्य सिद्ध हो।
पन्द्रहिया यन्त्र कल्प यह अति प्रसिद्ध व प्रभावशाली यन्त्र है। यह यन्त्र एक से लेकर नौ के अ क तक, नौ कोठो मे ही भरा जाता है । इसको जिधर से भी गिना जावे, योगफल १५ ही आयेगा। यह पन्द्रहिया यन्त्र मुख्यतया चार प्रकार का बनता है। इसकी अलग-अलग वर्ण व सज्ञा होती है।
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लघुविद्यानुवाद
३८५
वर्ण-ब्राह्मण संज्ञा . -वादी के नाम से
पहचाना जाने वाला यह यन्त्र मिथुन, तुला, कुम्भ के चन्द्र मे लाल चन्दन, हिगुल या अष्टगन्ध से लिखा जाना चाहिए।
वर्य क्षत्रिय संज्ञा :-आलसी के नाम
से पहचाना जाने वाला यह यन्त्र धन व मेष के चन्द्र मे काली स्याही व बरासे (कपूर) मिलाकर लिखा जाना चाहिए।
वर्ण-वैश्य संज्ञा :-रखाखी के नाम से
पहचाने जाने का यह यन्त्र वृपन के चन्द्र मे अष्टगन्ध से लिखा जाना चाहिए।
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लघुविद्यानुवाद
वर्ण-शद्र संज्ञा -वी के नाम से
पहचाना जाने वाला यह यन्त्र वृश्चिक और मीन के चन्द्र मे काली स्याही से लिखा जाना चाहिए।
इन चारो यन्त्रो के अलग २ फल हैं । ब्राह्मण जाति वाले यन्त्र का फल सर्वश्रेष्ठ माना गया है । अत उसी के विधि विधान का यहा उल्लेख किया गया है। उसे सिद्ध करने मे निम्नलिखित वस्तुओ की आवश्यकता होती है
लापसी, पूरी, अनार की कलम, अष्टगन्ध, स्याही, चावल, गुग्गुल, पुष्प, खोपरे के टुकडे २१, नागर बेल के पान २१, सुपारी २१, घृत का दीपक, एक कोरा घडा । विधि -योग्य शुद्ध व एकात स्थान मे पहले पूर्व दिशा की ओर घडे की स्थापना करनी चाहिये।
उसके सामने भोजपत्र बिछाना चाहिये । उसके ऊपर के भाग मे घृत का दीपक हो, नीचे के भाग मे धूप का धूपिया हो, जिसमे गुग्गुल का धूप करना चहिए। लापसी, पूरी आदि को भोजपत्र के बाऐ आधा आधा रखना चाहिये । तत्पश्चात् अनार की कमल से भोत्रपत्र पर अष्टगन्ध से यन्त्र लिखना चाहिये । यह यन्त्र लिखते समय 'ह्री या ॐ ह्री श्री" मन्त्र का जाप करते रहना चाहिये । यन्त्र लिखने के बाद उसका पूजन करे। फिर मन्त्र का ६,००० जाप करे । इस प्रकार २१ दिन करे, जिससे सवा लाख जाप पूरा हो जायेगा। मन्त्र और यन्त्र की सिद्धि हो जायेगी, अन्त मे हवन, तर्पण आदि विधि पूर्वक करे।
इन यन्त्रो के अक भरने को अलग अलग विधि है । उसका फल भी अलग अलग है जो निम्नाकित है(१) १ से 8 तक के अक भरे, तो हनुमानजी के आकार का यक्ष दर्शन दे।। (२) २ के अक से शुरू कर ६ तक लिखे, फिर १ लिखे तो राज्याधिकारी वश मे हो । (३) ३ से ६ तक लिखे, फिर १-२ लिखे तो व्यापार वृद्धि हो। (४) ४ से ६ तक लिखे, फिर १-२-३ लिखे तो जिसके ऊपर देवी-देवता का दोष हो गया या किसीने
उच्चाटन आदि कर दिया हो वह दूर हो जायेगा।
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लघुविद्यानुवाद
(५) ५ से ६ तक लिखे, फिर १-२-३-४ लिखे तो यह अशुभ है । स्थान भ्रष्ट कराता है । प्रत इसे न लिखे ।
(६) ६ के अक से शुरू कर 8 तक लिखे, फिर १ से ५ तक लिखे, उस पर कोई मारण का प्रयोग नही कर सकेगा ।
(७) ७ क से शुरू कर 8 तक लिखे, फिर १ (5)
६ तक लिखे, तो अनेक मनुष्य वश हो । ८ के अक से शुरू कर 8 तक लिखे, फिर १ से ८ तक लिखे, तो धन की वृद्धि हो । इसको गिनती मे लिखने से अलग अलग फल की प्राप्ति होती है
१००० लिखने से सरस्वती प्रसन्न होती है । विष का नाश होता है ।
३८७
-
२००० लिखने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है। दुख का नाश होता है । शत्रु वश में होता है । उत्तम खेती होती है | मन्त्र तन्त्र की सिद्धि होती है ।
३००० लिखने से वशीकरण होता है, मित्र की प्राप्ति होती है ।
४००० लिखने से भगवान व राज्याधिकारी प्रसन्न होते है, उद्योग धन्धा प्राप्त होता है । ५००० लिखने से देवता प्रसन्न होते है, वध्या के गर्भ रहता है ।
६००० लिखने से शत्रु का अभिमान टूटता है, खोई वस्तु वापिस मिलती है, एकान्तर ज्वर मिटता है, निरोग रहता है ।
१५००० लिखने से मनवाछित कार्य मे सफलता मिलती है ।
शुभ कार्य के लिए शुक्ल पक्ष मे उत्तर दिशा की ओर मुँह करके यन्त्र लिखना चाहिए । सफेद माला, सफेद वस्त्र तथा सफेद प्रासन होना चाहिये । साधना के दिनो मे ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, शुद्ध विचार रक्खे जाने चाहिए ।
विधि
लिखने के बाद एक यन्त्र को रखकर बाकी सभी को आटे की गोलियो मे भरकर मछलियो को खिला देना चाहिये या नदी मे बहा देना चाहिये ।
चादी या सोने के मादलिया मे डालकर पुरुष को दाहिने हाथ और स्त्री को वाये हाथ मे या गले में धारण करना चाहिये ।
॥ इति ॥
( चौसठ्यो विधि प्रारम्भ )
- यह चौसठ योगिनियो का प्रभावक यन्त्र है । यह यन्त्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी रविवार या चर्तुदशी रविवार को सूर्य दिशा की ओर मुह कर, अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखना चाहिये । अथवा सोने, चादी या ताबे के पत्र पर खुदवा कर घर मे पूजन के लिये रखा जा सकता है । पूजन मे रखने के बाद नित्य धूप, दीप करना चाहिये । शरीर की दुर्बलता, पुराना ज्वर तथा किसी भी प्रकार की शारीरिक व्याधि के लिये
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३८८
लघुविद्यानुवाद
-
-
सात दिन तक नित्य एक बार चादी की थाली में अष्टगन्ध से लिखकर जल प्रक्षालित कर पिलाने से पूर्ण लाभ मिलता है। इस यन्त्र को धारण करने से भूत, प्रेत, पिशाच शाकिनी, डाकिनी, व्यतर आदि देवो का दूषित प्रभाव अथवा दोष नही होते है । यन्त्र को
चौसठ योगिनी महायंत्र - चौ स ट यो 0 नी
म. हा यत्र २,
. श्री च उ स ठ दि व्यायै नमः
दिव्ययोगिनी महायोगिनी घोरा | विकटी दुर्जटा प्रतभक्षणी काली कालरात्री
निसाचरी हुंकारी यंत्रवाहिनी कौमारी यती भक्षणी महाकाली रक्तांगी
। ४७ । १४ । २० २१ २२ ४ २ यमदूती लक्ष्मी वीरभद्राजी पुलाजी कलिंप्रिया रात्तसी | चक्री मोहिनी
४०
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as | २७ । नच
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3
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|
ये न मः .श्री क्षे त्र पालि
कालाग्नि मंत्रयोगिनी कौमारकी चंडी वाराही मुंडधारनी दुर्मुखी क्रोधी
३१ । । ८ ३७ वज्रणी | भैरवी प्रितवाहिनी कंडकी दीर्घलुस्वा मालिनी | सैवरी | भयंकरी
२३४३४४ प्रपू प६ । १८ विरूपाक्षी चोररक्ताती कंकाली भुवनेश्वरी कुंडला तालुकी प्रेतकारी नरभोजनी
श्री मणि भाद्रा ये न मः
करालनी कौशीकी उईकेशी भूतडामरी कलिकारी सिद्धवेताली विशाला कामुका
| व्याश्री यक्षणी डाकिनी प्रेसादी जिनेश्वरी सिद्धयोगिनी कपाली विषलागुली
-
X
.
.
.
.
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लघुविद्यानुवाद
३८४
पानी में घोलकर वह पानी घर मे चारो कोनो मे छिडकने से व्यंतर देव सम्बन्धी दोष निवारण होता है । ऋद्धि, सिद्धि व समृद्धि का आगमन होता है। प्रतिकूल तात्रिक व मान्त्रिक प्रभावो को नष्ट करता है।
यंत्रों का प्राकार स्तभन कर्मार्थ - चौकोर यन्त्र बनावे । उच्चाटनार्थ - षट् कोण विद्वेषण - त्रिकोण वशीकरण - कमलाकर शान्ति - गोलाकार
(चौसठ यो० विधि समाप्त) विद्या आने का यंत्र
७७
७६ ।
७६
इस यन्त्र को शुक्ल पक्ष मे प्रत्येक दिन कासी की थाली मे केशर से लिखकर उस थाली ___ मे खीर डालकर यन्त्र को धोवे, उस खीर को खावे तो ज्ञान की वृद्धि होती है।
चोत्रीसिया यंत्र कल्प अव चौत्रीस के जन्त्र मन्त्र का व्यौरा :१. आदि भवन चौत्रीस भराय, आदर रक्षा बहुत बढाय ॥ १ ॥
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३६०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र -ॐ ह्री श्री काला गोरा क्षेत्रपाला जहाँ जहाँ भेजिये तहाई कर वाला गाजत आया वाजत जाय । घोरत जाव उडत जाव, काला कलवा वाटका घट का चाले का भोव का पराइण का चुहड का चमारी का प्रगट करे इस घर की आदर रक्षा बढाई करे । गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
दूजे घर तै जो अनसरै रोग जहा लो सब परहरै ।।२।। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री पद्मावती प्रसादात रोग दु ख विनास नाई गुरु को शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र
ईश्वरो वाचा।
तीजे ठास जात घर आवे ॥३॥ मन्त्र :-ॐऐ ता विश्रधारणी झगडा जितिनी कुरु कुरु स्वाहा, गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र
ईश्वरो वाचा।
चौथे चर उच्चाट लगावे ।।४।। मन्त्र -ॐ ह्री ब्राह्मणी र र र ठ. ठ ठ । विधि :-लूण राई का होम मन्त्र जाप १०८ वार ।
पचम घर थंमण करै सव कोई ।।५।। मन्त्र:-ॐ अजता अजत सासताई स प ष. अ अमुक मुख वधन कुरु स्वाहा।
छठे घर झट कचन फुन होय ।।६।। मन्त्र :-ॐ नमो जहाँ २ जाए वेग कारज करु धनषुन वीर धन ले प्राव, वेग ले प्राव, धनपुन
वीर की वाचा फुर कुरु स्वाहा । मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
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लघुविद्यानुवाद
विधि - १३६ यत्र लिखना । १३६ दिन में रोज १ यत्र लिखना, जबकि रोटी खाणी घीव, नही
•
खाणा और उस यत्र को रोज आटे में डालकर नदी में बहा देना । १३७ वे दिन यत्र लिखकर दाहिने गोडे के नीचे दवाकर रखना । यत्र देवता ले जाएगा, कुछ रुपये रख जावेगा । मन्त्र जाप करता रहे।
सात में घर मोहन करें नर नार ॥७॥
मन्त्र — ॐ नमो सर्व मोहनी मेल राजा पाय पेल जो मै देखू मार मार करता, सोई मेरे पाव पडता, रावल मोह देवल मोह स्त्री मोह पुरुष मोह नार सिंह वीर तेरी शक्ति फुरे, दाहिना चाले नार सीध बांया चाले, हनवत मेरे पिड प्रान का रीछपाल होडी मोह जहा मेरा मन चालै ता मोह गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा !
विधि -१३६ वार जाप करना जहा जावे वहा सफल होय ।
आठवे घर ते होय उजाड ||८||
मन्त्र .—ॐ नमो ॐ लमोल वोटा हनवत वीर वज्र ले बैठा काकड़ा, सुपारी, पीले पान, घर उजाड करो, काढो प्रारण गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा । | विधि नही है । नौ मे घर तै हाजरात कहावे ॥६॥
मन्त्र — ॐ मनो कामरू देश ने कामख्या आई, ता डड राता ही माई, राता वस्त्र पहरि श्राई राता जाप जपती आई, काम छै, काम धारणी रक्त पाट पहरगी पर मुख बोलती आई वेग मन्त्र उतार लेही, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा |
विधि - लडकी को लाल वस्त्र पहनाकर बैठावे, दीपक जलावे, अगूठे पर काजल लगाकर मंत्र
मेरे दुश्मन
बोलकर हजरात चढावे |
दस मे घर फल उपजै सारा धरती, नारि, तीर जच विचारा ॥१०॥
सन्त्र
मन्त्र :–ॐ नमो मन पवन पवन पठारा के राव बधै गरम रहै ॐ हठा ॐ कचे मासौ फुलै कपास पुरै मासे होईनीकास नदी पुठी गंगा बहे । अर्जुण साधे वारण पुरे मासे निकासे सही सतो हरवत जती की आरग गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा | विधि : - यन्त्र लिखकर कमर बाँधे, सतान होवे, खेत मे गाडे तो अनाज अच्छा ऊपजे । ग्यारह से घर तै लिखे जो कोई, लिख मेटे जीवे नही कोई ॥ ११ ॥
- काल भैरो ककाल का तो वाही कलेजा भु ज कली रात काला मै अरु चढे मसारण जिस हम चाहे तिस तु प्रारण कडी तोड कलेजा फोड नौमे छार मे द्वार लोहु जोल श्राव तो छरै न प्रावतो कलेजा फुटे गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।
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३६२
लघुविद्यानुवाद
विधि -११६ यन्त्र लिखे । मन्त्र की १०८ जाप करै। कौवे की पाख व श्मसान के कोयले की राख
से लिखे।
बारह मे घर तै लिख जो कोई टोटा नही नफा फुन होई ॥१२॥ मन्त्र -ॐ गणवाणी पत रह मसाणी सो मै मागु ले ले आऊ काची नदी क व मै दीय फुल २
म्हा फुल जपै जगत्र दस कोस पच कोसी ग्राहक ले आऊ गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो
मन्त्र ईश्वरो वाचा। विधि :-१३६ यन्त्र लिखे, हाट मे गाडे बहुत ग्राहक आवे ।
तेरहवा घर ते लिखे सूजान प्राणी सु कर है निदान ।।१३।।
चौदह घर ते चौदह विद्या कही लिख लिख पीव पडित हो सही । मन्त्र :-ॐ ह्री श्री वदवद् वाग वादनी सरस्वती मम् विद्या प्रसाद कुरु २ स्वाहा । विधि -यन्त्र १३६ लिख लिख के पानी में घोलकर पीवे तो पण्डित हो।
पन्द्रह घर ते लिखे मन लाय गुप्त ही आये गुप्त ही जाय । मन्त्र :-ॐ नमो उच्छिष्ट चडालिनी क्षोभणी द्रव्य आरणय पर सुख कुरु २ स्वाहा । विधि -यन्त्र लिखके पावे । एक अपने पास रखे तो गुप्त आवे गुप्त जावे।
सोलह घर तै कारज सब करे आपा राखे भूल न करे।
इन जत्र को जानी भेष सब कोई करे तिसकी सेव ।।१६।। मन्त्र :-ॐ ह्री श्री श्री प्री चउसठ जोगनी की रक्षा करेगी कुरु २ स्वाहा । विधि :-यन्त्र १३६ पीवणा एक आपणा पास राखणा रक्षा करे।
स्रा२७
आलीमसकरोज
६२ नोरोज
dena
Poo
हनुमानजी२०
२रावण
विधि:-इस यन्त्र को प्रात: जव तारे व सप्तर्षी मगल के उतारे का समय हो, स्नान कर, नये वस्त्र
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लघुविद्यानुवाद
३६३
पहनकर चीनी मिट्टी की प्लेट या टुकडे पर अष्ट गन्ध स्याही व अनार की कलम से पूर्व की ओर मुह करके लिखे। फिर अपने गले मे डाल ले। किसी प्रकार का शस्त्र उस पर नही चल सकेगा। शत्रु तलवार लेकर उस पर वार करे तो भी तलवार नही चलेगी।
अंडकोष वृद्धि रुके यन्त्र
४४२
____४४६
।
२
।
६ .
३ । ४४६ । ४४५ ४४३ । ८ । १
४४८
५
। ४४४
।
४४७
विधि:-इस यन्त्र को केसर से भोजपत्र पर रविवार को लिखकर दाहिने हाथ के बाधने से बढते हुए अण्डकोष की वृद्धि रुक जाएगी।
स्वप्नदोष मिटे यन्त्र
हा ॥
सा ।।
हो ।
आ |
पा |
ओ
क
।
क
क
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-
२
२५
m
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३६४
लघुविद्यानुवाद
विधि -पुष्य रविवार को भोज पत्र पर लिखकर कमर के वाधे तो स्वप्नदोष मिटे, स्तभन
बढे।
मिरगी मिटे यन्त्र
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॥१५॥
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विधि .-अष्टगन्ध से भोज पत्र पर यह यन्त्र लिखकर भुजा पर बाधे, तो मिरगी का रोग मिटे ।
वैराग्योत्पत्ति यन्त्र
'निसार निसार/ निसार निसार
देवदत्त
निसार /निसारे निसार/निसाये
निसार
-
-
विधि -इस यन्त्र को अष्टगन्ध से भोज पत्र पर लिखकर लोहे के मादलिए मे मढाकर मस्तक के
बाँधे तो धीरे-धीरे स्त्री व धन आदि से मोह से छुटकर वैराग्य की ओर उन्मुखता होगी
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लघु विद्यानुवाद
३६५
अन्ततः वह व्यक्ति योगी व सन्यासी बन जायेगा । देवदत्त के स्थान पर व्यक्ति का नाम लिखा जायेगा ।
पंचांगुली महा यन्त्र का फल
शुभ मुहूर्त मे सफेद कपडा, सफेद आसन, से पूर्व की ओर मुह करके, अनार की कलम से | प्रष्ट गन्ध स्याही बनाकर भोज पत्र पर लिखे, फिर इस यन्त्र को ताम्र पत्र पर खुदवाकर मन्त्र का | सात बार जप करे, फिर सर्वाग पर हाथ फेरे, इसके प्रभाव से हस्त रेखा विद की भविष्यवाणी सफल होगी, यह यन्त्र सौभाग्यशाली रोग नाशक व भूत प्रेत बाधा नाशक प्रभावापन्न यन्त्र है । | मन्त्र यन्त्र के बाहर लिखा है ।
विशेष मन्त्र साधना
कार्तिक मास मे जब हस्त नक्षत्र प्रारम्भ हो, उस दिन से यन्त्र की साधना प्रारम्भ करे । | मार्ग शीर्ष के हस्त नक्षत्र मे पूर्ण करे । प्रतिदिन एक माला का जाप करे । जप शुरू करने के पहले ध्यान मन्त्र का एक बार उच्चाररण अवश्य करे ।
ध्यान मन्त्र :- - ॐ पंचांगुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने ।
धिष्ठात्री करस्यासौ, शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः ॥
फिर जप शुरू करे, जाप के बाद नित्य पच मेवा की दस आहुतियो से अग्नि मे हवन करे । इस प्रकार साधना करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। देवी का एक चित्र बाजोट पर रखकर उसके सामने बैठकर साधना करनी चाहिये । हस्त नक्षत्र रूप आधार पर स्थित हाथ की पाच अगुलियो के प्रतीक स्वरूप देवी का एक चित्र बनवा लेना चाहिये ।
चित्र कल्पना
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शनि की अर्थात् मध्यमा उगली के प्रथम पोरवे के आध भाग पर देवी का मुकुट सहित मस्तक होगा । उसके पीछे सूर्य मण्डल हो । देवी के भाठ हाथ होगे, जिनमे हिनी तरफ पहला हाथ ग्राशीर्वाद का हो, दूसरे हाथ मे रहनी, तीस् रे मे खड्ग, चौथे में तीर हो, बाई तरफ पहले हाथ मे पुस्तक, दूसरे मे घण्टा, तोसरे मे त्रिशूल प्रौर चौथे में धनुष । गले मे प्रभूपरण ललाट में तिलक, कानो मे कुण्डल, कमर मे आभूषण व सुन्दर वस्त्र हो । पैर में मणिबन्ध रेखा के नीचे तक आये । इस तरह देवी का चित्र बनाना चाहिये ।
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३६६
फल
- जो भी व्यक्ति इसकी एक बार भी साधना करले । फिर नित्य ही हाथ को इस मन्त्र से सात बार मन्त्रित कर, उसे सर्वाग पर फेरे, तो इसके फलस्वरूप हस्तरेखा द्वारा जन्म कु डली बनाने मे हाथ देखकर, फल कहने मे ही सदा सफल नही होता, अपितु उसके सूक्ष्म रहस्यो को भी जान लेता है । पचागुलिदेवी हस्तरेखाओ की अधिष्ठात्री देवी है ।
दोयाशरण मध्ये दुष्ट मध्ये बोर
देवीपंचांगुली महायंत्र
१ ६ ॐ नमो पचागुली २ परशरी २ माताममंगल वशीकरणी
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लघुविद्यानुवादे
ॐ सूर्यपुचाय नम
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ॐ कृष्णा वरन्यै नम 6 ॐ रक्षायै नम ॐ काल रात्रे नम ॐ भूमावश्यै नम ॐ श्रीवत्यै नम ॐ जयायै नमः ॐ भरमन्यै नम ॐ कालाय नम ॐ कल्पायें नमा ॐ नागेश्वर्ये नमः
ॐ भग्नहोत्रीनमः
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५६ ६०
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३३ ३४ ३० २६ २८ २७ ३६/२० २५२६/३८ ३७३६ ३५ ३१ ३२
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ॐ कामाक्षे नम
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ॐ प्रतायै नमः
ॐ हेम कत्तायै नमः ॐ नर सहेनम चैडामैन ॐ नारसहानम ॐ पद्मवृतौ नम
ॐ भैरवी जम कुरु कुल्ले नम अकडन्ये नम ॐ त्रिपुरायै नम ॐ सुल करायै नम ॐ कंपनीयै नम
ॐ समगलाये जम
मकायै नम काली नम ॐ युगली नम
ला दी नम ॐ महा कालीन नभ ॐच डाली नम
ॐ ज्वालापुष्ये नम ॐ कामाक्षूनम
ॐ कामात्यै नम ॐ भद्रकाली नम ॐ इमयै नम ५७ ॐ अंबकायै नम
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ललनायै नम
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ॐ ब्रह्मण्यै नम ॐ कुमार्यै नम
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लोहभयदक गणिनी चौसठ कामविहडनी रणमध्ये राहुलमध्ये रात्रुमध्ये दावान मध्ये भूतमध्ये मतमध्ये पिशाच मध्ये झोटिंग मध्ये डाफिकी
मध्ये
शखि
नीमध्ये पक्षिणीमध्ये
महायन्त्र का साधन व मन्त्र विधि पूर्वक
यत्र रचना - प्रथम प्रष्टदल का कमल बनावे, उसमे क्रमश ग्रहंत, सिद्ध ग्राचार्य, उपाध्याय सव साधू, सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र लिखे। फिर उसके ऊपर ग्रष्ट दल फिर बनावे उन
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लघुविद्यानुवाद
३६७
आठो ही दलो मे अष्ट जया, विजया, अजिता, अपराजिता, जम्भे, मोहे, स्तम्भे, स्तम्भिनी, इन जयादि देवी को लिखे, फिर सोलह दल ऊपर और खीचे, उन सोलह दलो मे क्रमश रोहिणी, प्रज्ञप्ती, वज्र शृ खला, वज्राकु शी, अप्रति चक्रा, पुरुषदत्ता, कालि, महाकालि, गान्धारी, गौरि, ज्वालामालिनी, वैरोटि, अच्युता, अपराजिता, मानसि, महा मानसि, इन सोलह विद्या देवी को लिखे, फिर उसके ऊपर चौवीस दल और वनावे, उन चौबीस दलो मे क्रमश चौवीस यक्षिणियो के नाम लिखे, चक्रेश्वरी आदि। फिर बत्तीस दल और वनावे उन बत्तीस दलो मे क्रमश असुरेन्द्र, नागेन्द्र आदि बत्तीस इन्द्रो के नाम लिखे, उसके ऊपर चौबीस वज्रन रेखा बनावे उन चौवीस वज्र रेखा पर क्रमश चीबीस यक्षो के नाम लिखे, गौमुखादि । फिर ऊपर दश दिक्पालो के नाम लिखे, फिर नव ग्रहो के नाम लिखे। ऊपर से अनावृत मत्र लिखे, ॐ ह्री पा को हे अनावृत यक्षेभ्योनम । यह हुई यन्त्र रचना चित्र देखे।
यन्त्र व मंत्र को साधन विधि मन्त्र : --ॐ ह्रां ह्री ह ह्रौ ह्रः असि पाउसा मम् सर्वोपद्रव शांति कुरु कुरु
स्वाहा । इस मन्त्र का साधक १०८ बार जाप जपे, यह मूल मन्त्र है।
शान्ति कर्म ज्वर रोग की शाति के लिए साधक, रात्रि के पिछले भाग मे श्वेतवर्ण से इस महा यन्त्र __ को भोजपत्र या आम के पाटिया पर लिखे, फिर उस यन्त्र की पूजा करके, पश्चिम की ओर मुखकर, ज्ञान मुद्रा, धारण कर पद्मासन से बैठकर, सफेद माला से, १०८ बार जप करे। इस तरह करने से तीन दिन या, पाच दिन के भीतर ज्वर दूर हो जाता है । इसी तरह अन्य रोगो के लिये भी अनुष्ठान करे।
पौमिक कर्म मन्त्र -ॐ ह्रा ह्री ह्र हौ ह्र असि प्रा उता अस्य देवदत्त नामधेयस्य मन पुष्टि कुरु २
स्वाहा।
इस तरह पौष्टिक कर्म मे भी ऐसा ही करे । इतना विशेष है कि इस जप मे उत्तर की ओर मुह करके बैठे।
वशीकरण __ मन्त्र :-ॐ ह्रा ह्री ह ह्रौ ह्र असि आउसा प्रमु राजाना वश्य कुरु २ वषट् ।
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लघुविद्यानुवाद
इस वश्य कर्म मे, महायन्त्र को लाल रंग से बनावे, लाल पुष्पो से यन्त्र की पूजा करे, स्वतीकासन से बैठे, पद्म मुद्रा जोडे, उत्तर की ओर मुँह करे, पूर्वान्ह के समय बाये हाथ से जाप १०८ बार करे ।
३६८
आकर्षण
कर्म
मन्त्र — ॐ ह्रा ह्री ह ह्रौ ह्र असि ग्राउसा एना स्त्रिया श्राकर्णय २ सर्वोौपट् ।
ू
किसी का भी ग्राकर्षरण करना हो तो महायन्त्र को लाल वर्ण से यन्त्र वनावे, पूर्व दिशा 'मुख करे, दण्डासन से वंठे, अकुश मुद्रा जोडे, और मन्त्र का १०८ बार जप करे, इसी तरह भूत प्रेत वृष्टि आदि का श्राकर्पण करे ।
स्तम्भन कर्म
मन्त्र — ॐ ह्रा ह्री ह्र हौ ह्र प्रसि आउसा देवदत्तस्य क्रोध स्तम्भय २ ठ ठ ।
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क्रोध स्तम्भन के लिए, महायन्त्र को हल्दी आदि पीले रंग से यन्त्र लिखे, पूजा सामग्री भी पीली बनावे, माला भी पीली हो, वज्रासन से बैठे, शख मुद्रा जोडे, मन्त्र का १०८ बार जप करे । इस प्रकार सिह श्रादि का क्रोध स्तम्भन करे ।
उच्चाटन कर्म
मन्त्र — ॐ ह्रा ह्री ह्र ह्रौ ह्रा प्रसि उसा देवदत्त उच्चाटय २ हू फट् २ |
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उच्चाटन कर्म मे काले रंग की माला, काला रंग से हो महायन्त्र बनावे, दिन के पिछले पहर मे, वायव्य दिशा की ओर मुह करके कुकुटासन से बैठे पलव मुद्रा जोडे, नीली माला से वा काली से मन्त्र १०८ बार जप करे । भूतादिक का उच्चाटन भी इसी प्रकार करे ।
विद्वेष कर्म
मन्त्र — ॐ ह्रा ह्री ह ह्रौ ह्र असि ग्राउसा यज्ञदत्त, देवदत्त नाम धयो परस्पर मतीव विद्वेष कुरु हू ।
महायन को काले रंग से यन्त्र बनावे, मध्याह्न के समय, प्राग्नेय दिशा मे सुहकर, कुकुटासन से बैठे, पल्लव मुद्रा करे । काले जाप्य से मन्त्र १०८ बार जपे । किसी मे भी विद्वेष करना हो तो इस प्रकार करे ।
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मन्त्र — ॐ ह्रा ह्री ह्र ह्रीं ह्र' असि ग्राउसा प्रस्या एतन्नाम धेयस्य तीव्र ज्वर कुरु २ घ घे । इस महायन्त्र को जहर से ग्रथवा किसी मादक द्रव्य से मिश्रित काले रंग से यन्त्र लिखे, दोपहर के बाद, ईशान दिशा मे मुख करके, काले वस्त्र, भद्रासन से बैठे, वज्र मुद्रा बनावे, खदिरमणि की जपमाला से मन्त्र का जप १०८ बार करे तो ज्वर चढे शिरो रोग हो । आदि ।
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४००
लघुविद्यानुवाद
महायन्त्र का पूजा विधान महायन्त्र का और जिन मूर्ति का पचामृताभिषेक करके, महायन्त्र की पूजा, अष्ट द्रव्य से करे। पूजा मन्त्र :-ॐ ह्रा ह्री ह्र ह्रौ ह्र असि पाउसा जल चन्दन आदि ।
अष्ट द्रव्य से क्रमश चढावे । फिर क्रमश अर्हतसिद्ध, आचार्य, उपाध्याय साधु दर्शन ज्ञान चारित्र का अर्घ चढावे ।
फिर द्वितीय वलय की जयादि देवियो का अर्ध चढावे, फिर १६ विद्या देवियो का अर्घ चढावे, फिर चौबीस यक्षिणियो की अर्घ से पूजा करे, फिर बत्तीस इन्द्रो की पूजा करे, फिर चौबीस यक्षो की पूजा करे, फिर दश दिक्पाल की पूजा करे। फिर नवग्रह और फिर अनावृत यक्ष को पूजा करे । सबके पहले ॐ ह्री लगाना चाहिये ।
इस प्रकार महायन्त्र की पूजा करके फिर मूलमन्त्र का १०८ बार जाप जपने से कार्य सिद्ध होता है। प्रत्येक कर्म मे जो विधि लिखी है उसी विधि के अनुसार साधन करे तो ही कार्य सिद्ध होता है। लेकिन ध्यान रखे कि साधन करने से पहले महायन्त्र की पूजा करना परम आवश्यक है।
|| इति ।।
जो जैसा हो उसे वैसा ही जानना ज्ञान है और जो जैसा हो उसे वैसा न में जानना, अन्यथा जानना या बिल्कुल न जानना अज्ञान है । जो ज्ञान हमारे उपयोग से
मे आये वह सार्थक ज्ञान है, जो उपयोग में न आये वह निष्फल ज्ञान है । हमारे - दैनिक जीवन मे हम जो भी काम करते है पदार्थो का उपयोग करते है और सोच में विचार करते है वे सफल सार्थक और श्रेष्ठ तभी होगे जब वे ज्ञान के अनुसार
किये जाएँ, अज्ञान के अनुसार नही । ज्ञान प्रकाश है अज्ञान अन्धकार है । ज्ञान से मुक्ति है अज्ञान बन्धन है । ज्ञान विकास है अज्ञान अवरोध है । ज्ञान उत्थान है ,
अज्ञान पतन है । अतः हमे दैनिक जीवन मे उपयोगी और आवश्यक ज्ञान प्राप्त में करने के लिए सदैव प्रयत्नशील और तत्पर रहना चाहिए ।
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विमल भाषा टीका (पद्मावती स्तोत्र वृत्याष्टक)
यंत्र मंत्र विधि सहित
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टीकाकर्ता परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य
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लघुविद्यानुवाद
- तृतीय खंड (ब)
४४६ ४५६ ४६८
(पृष्ठ ४०१ से ६०८) इस खण्ड मे मगलाचरण
४०१ 8 अथ श्री पद्मावती स्त्रोत (विधि न०१ यत्र मत्र विधि) ४०६ 9 श्री पद्मावती देवी स्तोत्र यत्र मत्र विधि सहित वहद काव्य न.६ ४१० 6 श्लोक न २ के यत्र मत्र विधान यत्र मत्र विधि सहित काव्य न २ ४१८
वृहद (यत्र मत्र) @ श्लोक न ३ वृहद
४४७ ॐ माला मत्र, माला मत्र का पाठान्तर भेद 6 यत्र नं ४ वृहद 6 श्लोक न ५ वृहद, श्लोक न. ३ की विधि श्त्रोक न ६ के यत्र मत्र, काव्य न ६ वृहद
४७० ॐ श्लोक न ७ के यत्र मत्र, काव्य न ७ बृहद, एव
४७७ श्लोकार्थ यत्र मत्र विधि @ श्लोक न. ८ के यत्र मत्र, काव्य न ८ वहद (यत्र रचना व फल)
४८७ ॐ काव्य न ६ (यत्र रचना व फल)
४६१ ॐ काव्य न १० (यत्र रचना व फल)
४६५ काव्य न ११ (यत्र मत्र रचना व फल)
काव्य न. १२ (यत्र रचना व फल) A) काव्य न १३ (यत्र रचना व फल)
५०२ AS काव्य न १४ (यत्र मत्र रचना व साधन विधि)
५०५ ES काव्य न १५ (यत्र रचना व मत्र साधन विधि)
५०८ RAJ काव्य न.१६ (यत्र रचना व मत्र साधन व फल)
५११ A श्री चक्रेश्वरी देवी स्तोत्र, यत्र मत्र विधि सहित
५२६ @ विभिन्न प्रकार के रोग एव कष्ट निवारण यत्र
५४६ ® अथ घण्टा कर्ण मत्र सक्षेप विधि सहित
५७७ AY पचागली यत्र मत्र की साधन विधि (चित्र सहित)
५८३ ॐ ज्वालामालिनी यन्त्र विधि
५८६ O ऋपि मण्डल यन्त्र विधि
५८४ AS विभिन्न कष्ट निवारण यन्त्र
५६१ AS भजन
६०८
४६७
५००
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भाषाकार का मंगलाचरण
मोहतिमिरको नाशकर पायो केवल ज्ञान । पार्श्व प्रभू को नमन कर हो जाऊं भव पार ॥ जिनवारणी सरस्वति नमो गुरु सेवु निग्रंथ । पद्मावत्याष्टक की भाषा लिखु, सब ही हो प्रसन्न ॥१॥ प्रादि, महावीर विमलगुरु सन्मति प्रज्ञावान् । सब मिलकर प्राशिस दो, पाउं केवल ज्ञान ।
मंगलाचरण
प्ररिणपत्य जिनं देवं श्री पार्श्व पुरुषोत्तमम् ।
पद्मावत्यष्टक स्याह वृत्ति वक्ष्ये समासतः ॥ ननु किमिति | भवद्भिः सद्भिः पद्मावत्यष्टकस्य वृत्तिः विधीयते । यत साविरता कथ तस्या सम्बधिनोष्टकस्य । भवता मुनीना सता वृत्ति. कर्तुं युज्यते । अत्रोत्तर मनुत्तर वीतरागः यतः सा हि भगवत. सर्वज्ञस्य तीर्थकरस्य सर्वोपद्रव रक्षण प्रवणस्य सकल कल्याणहेतो श्री पार्श्वनाथस्य शासन रक्षणकारिणी सर्वसत्त्वभयरक्षणपरायण अविरतकथा, सम्यग्दर्शनयुक्ता जिनमदिर प्रवत्तिनी सर्वस्यापि त्रिभवनोदरविवरवतिनी। लोकस्य मानसानदविधायिनी । अष्टचत्वारिंशसहस्त्र परिवार समन्विता । एकावतारा श्री पार्श्वनाथचरणारविद समाराधनी। अत कथमीदृशाया श्री पद्मावत्या. सबधिनोऽष्टकस्य वृत्तिम् । पूर्वता अस्माक दूषणजालमारोप्यतो न भवता, तस्मान्नात्र दोपः अथैव वदिप्यति । जजपूक सन् भवान् यदुत किमिति पूर्वाचार्य प्रणीतस्यास्य मत्रस्तोत्रस्य वत्ति क्रियते, यतो भवता प्रयोजना भावात् ।
अत्रोच्यते प्रयोजनं हि त्रिविधं प्रतिपादयंति । १ परवादी कुञ्जर विदारणमृगेंद्र. सहृदय स प्रयोजनम् । २ पर प्रयोजन । ३ उभय प्रयोजन च ।
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लघुविद्यानुवाद
नववृत्ति प्रमाणस्य लोक प्रसिद्धस्य अस्य मत्रस्तोत्रस्यार्थ स्मरणलक्षण विद्यत एव स्व प्रयोजन । तथा पर प्रयोजनमपि विद्यत एव । यतस्ते केचित् भविष्यति मदतमा मतिपाठका येपामस्यापि वृत्ते सकाशात् बोधो भविष्यति । अत एव उभयप्रयोजनमपि सभवत्येव । तस्मात् वृत्तिकरणेऽस्माकम् प्रयोजनमपि विद्यत एव । तत्राद्य वृत्तमाह -१卐 .
श्लोकार्थ हिन्दी भाषा
मंगलाचरण पुरुषो मे उत्तम श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र देव को मै (पार्श्वमणि आचार्य) नमस्कार करके, ___ अच्छी तरह से पद्मावत्यष्टक की वृत्ति (टीका) को कहु गा।
टीकार्थ-यह क्या है ? जो आपके द्वारा पद्मावति अष्टक की वृत्ति देखी जा रही है, आप ___ तो विरत है मुनि है फिर आपके द्वारा पद्मावति सम्बन्धि अष्टक कैसे लिखा जा रहा है ?
ऊपर प्रश्न का उत्तर आचार्य देते है, जो वितराग है, उन्ही भगवान् सर्वज्ञ, तीर्थकर देव का सर्व उपसर्ग दूर करने वाली है, और सबका कल्याण की हेतु है, पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के शासन की रक्षा करने वाली है, सम्पूर्ण जीवो के भय का निवारण करने मे परायण ऐसी यह अविरत कथा है, सम्यग्दर्शन से युक्त जिन मन्दिर मे जिन धर्म का प्रवर्तन करने वाली है, सम्पूर्ण तीन भूवन के पेट रूपी गडे को वर्तन (पूर्ण) करने वाली है। लोगो के मन को आनन्द देने वाली चौरासी हजार देवो के परिवार से वित है (सहित) है। जो एकावतारी है अब दूसरा भवन ही लेने वाली है, दूसरे ही भव से मोक्ष जाने वाली है श्री पार्श्वनाथ के चरणो की सतत् आराधना करने वाली है। ऐसी जो पद्मावती है उस सबधि अष्टक वृत्ति को आपके द्वारा दूषण दिया जा रहा है और हमको भी दोषी कह रहे हो। आपके द्वारा दूषण देना ठीक नही, इसलिये कोई दोप नही ऐसा कहता हूँ, मैं तो पूर्वाचार्यो के द्वारा कहा हुआ ही कह रहा हु, और यह स्तोत्र भी पूर्वाचार्यो द्वारा ही वर्णित है, उसको ही हम वृत्ति रूप विस्तार लिख रहे है, यही हमारा प्रयोजन है ।
प्रयोजन तीन प्रकार का है(१) पहला प्रयोजन प्रतिवादी रूपी हाथियो का विदारण करने मे सिह के समान है, सत्
हृदय से यही प्रयोजन है। (२) दुसरा प्रयोजन इस मन्त्र स्तोत्र की नई वृत्ति बनाना। (३) दोनो हो प्रकार प्रयोजन उभय स्तोत्र का अर्थ स्मरण लक्षण ही है जिसका ऐसा ही स्व
का प्रयोजन है। इसमे पर का प्रयोजन भी देखा जाता है, कोई मद बुद्धि वाला शिष्य
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लघुविद्यानुवाद
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है तो उसको भी इस वृत्ति से बोध हो सकता है। इसलिये हमारा उभय प्रयोजन है, इस कारण से हमारे द्वारा वृत्ति का करना प्रयोजन भी देखा जाता है ।
-विशेषार्थमाह श्री मद्गीर्वाणेति न तु च महत 'सूरे' तपस्विनोऽस्मिन् स्तव करणे कथ सम्यक्त्व जातेती प्रश्ने प्रत्युत्तर माह मोक्ष मार्ग प्रत्युद्यतस्य सम्यक्त्वस्य सहितस्य तपस्विनो मुने. सम्यक्वधनिका जातास्तव प्रतिमोक्षमार्गार्हत्वेन तस्य समुद्यमो न तस्य तु निच्चमत्कारी चिन्तापेक्षा श्रावकाणा यथोपदिष्ट यथाभिलषित-समीहितसिध्यर्थमन्त्र लौकिक मिथ्यात्वाऽपोहार्थ जिन धर्म-समुद्योतनार्थ श्रावकाभिप्रायेव पक्षिणामपि समुत्पत्यनतर दृष्टनात् सम्यक्त्वाना यथालब्ध स्वकीयनियोगी सेवावसराणा सत्यकार्यधत्व समुचित (न) तु इय देवी मोक्षमार्ग फलदायिकेति बुद्धयासत्कारार्हत्व तस्य तु व्यवहारविधौ सोपदेशदातृत्वात् यदा श्रावका कोऽपि पृच्छति मम कुटबादौ कोपि भुतै. समायाति तस्य निराकरणम् कि तदा पच नमस्कार सेवन तथा तीर्थकर यक्षयक्षिनॉ परिहार निमित सेवन विघान समुपदिशत्येव न तु स्वयमाराधक. 'स्यात्' न तु विराधक 'स्यात्' कथं पार्श्व प्रतिमादेरुपरि दृष्टत्वादनादि--निधनरचनेयमिति तथाचरणादौ इष्टत्वादपि चितामण्यादे. कथ निरपेक्षत्व यथा सर्वेषा सहिताशास्त्राणा प्रतिष्ठाशास्त्रारणा शिल्पशास्त्राणा प्रायश्चितशास्त्राणाम् नादरो भवति ? तदसत्कारे तथा यशस्तिलक देवसेन कृत भाव सग्रह वामदेव वृत्त वसुनदी श्रावकाचार महापुराण लघुसकल कीर्ति आदि शास्त्रारणा भट्टारक शुभचन्द्र कृत शास्त्राणा व्रत कथा कोशादीनाम नादरो भवति तेन सत्कारार्हत्त्व समुचित एतदसत्कारे प्रथमानुयोगोपदिष्ट दान फलादिकारसापेक्ष्यपद्मावत्यादि कथा भगोपि यथास्यात्रथा समतभद्र-पात्रकेशरी-अकलकाद्युपसर्ग विघ्नमपि स्यादन्तमेव तथा सकलकीतिना श्रीपालस्त्रीशील रक्षार्थ सर्वा जिनशासन रक्षिका नानाविधोपसमें रक्षार्थ सर्वा जिनशासनरक्षिका नानाविधोपसर्ग कुर्वत्य धवल प्रति 'समागता' एतत्कथानक 'मुक्त' तदाय नृतमेव स्यात" तथा चाकृत्रिम चैत्यालय विन्यासे सर्वाह सनत्कुमार श्री देवी श्रुतदेवोत्यादि यक्षिणी यक्षक्रिया सोपि त्रिलोकसारे नेमिचन्द्र रक्त सोपि व्यलीक एव स्यादित्यत शतधा यक्ष मिथ्यादष्टीना जिनधर्म विराधकाना 'वाक्य' खण्डन दृष्ट्वानादिकालीन यक्षिणी यक्ष विन्यास तथाराधनविधान 'योग्यमेव' सेव्य न तु त्याज्य तथा परमार्थ देवता जिनदेव स सत्यदेवः क्रियादेवश्च चक्रछत्रादिक यक्षविधान व्यवहारदेवता रक्षादेवता कुलदेवता पद्मावत्यादिरित्यादि कथनमपि पचघाविवर्ण चारेप दृष्ट कथमुदितो भास्करोप्यनुदित समुदीर्यते ।।इति।।
इस सस्कृत उद्धरण से स्पष्ट हो जाता है कि शासन देवी-देवताओ को अहंन्त समान मानकर अभिलाषा से स्तवन पूजा आराधना की जायेगी तो अवश्य सम्यक्त्व की हानि होगा। वह
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४०४
लघुविद्यानुवाद
मिथ्यात्व होगा अनत ससार का कारण होगा। धर्म की महिमा दिखाने के लिये, ससारी जीवन सुखी बनाने के लिए, धर्मोद्योत करने के लिये शासन देवी देवता का आदर, पूजा, स्तवन करना दोप नही है। इसमे मिथ्यात्व और मूढता नही है अपितु सम्यक्त्व का पोषण है । मानलो यदि मिथ्यादृष्टि भूत प्रेत व्यन्तर सता रहा है जिससे धर्म ध्यान मे बाधा पाती है तब मुनिराज या साधु उसके निराकरणार्थ उपाय बताकर उसकी रक्षा करते है साथ हो पच नमस्कार मन्त्र की आराधना करने का आदेश देते है। तव यह मिथ्यात्व नही है । यदि मिथ्यात्व समझा जायेगा तो जैन सहिताए' प्रतिष्ठा शास्त्र शिल्प शास्त्र प्रायश्चित शास्त्र तिरस्कृत हो जायेगे। अनादरणीय हो जायेगे। ऐसा समझने पर यशस्तिलक चम्पू, देवसेन द्वारा रचित 'भाव सग्रह' वामदेव रचित शास्त्र, वसुनन्दी श्रावकाचार, महापुराण, लघुसकलकोति शुभचन्द्र भट्टारक कृत शास्त्र, कथा कोप अनादरणीय हो जायेगे। प्रथमानुयोग कथा-पुराण सभी झूठे हो जायेगे.किन्तु ऐसा नही है सभी कथाए चमत्कार एव घटनाए, सत्य और जिन प्रणीत है। अकृत्रिम जिन चैत्यालयो मे अकृत्रिम जिनबिम्ब यक्ष यक्षिणी सहित है यह त्रिलोकसार मे श्री नेमिचन्द्राचार्य ने लिखा है। मिथ्यादप्टि देवो के निपेध के लिये सम्यक्दृष्टि देवो की पूजा सत्कार योग्य ही है ताकि सत्य देवनाराधना निविघ्न हो । इसलिये मैने यह, (श्री मद्रोर्वाण) नामक पद्मावती स्तोत्र लिखा है भव्यो के लोकीक कार्य की सिद्धि के लिये, मेरे द्वारा अथ श्री पद्मावती स्तोत्रम्--
श्रीमद्गीर्वाण चक्रस्फुटमकुटतटी, दिव्यमाणिक्यमाला । ज्योति ाला कराला, स्फुरति मुकुरिका, घृष्टपादारविंदे ॥ याघ्रोरुल्का सहस्त्रज्वलदनल शिरषा, लोलपाशांकुशाढये । ऑ क्रौ ह्रीं मंत्ररुपे, क्षपितकलिमले, रक्ष मां देवि पद्म ॥१॥
व्याख्या --रक्ष पालय हे देवि पद्मावती शासन देवी । क, मा स्तुतिकर्तार, कोदृशे देवि, श्रीमद्भि पादारविदे श्री विद्यते येषाम् ते श्रीमत श्रीमतोगीर्वाण श्रीमद्गीर्वाण तेपा चक्र श्रीमद्गीर्वाण चक्र स्फुटितानि च तानि मुकुटानि च स्फुटमुकुटतटि। दिव्यानि प्रधानानि माणिक्यानि दिव्यमाणिक्यानि तेपा माला, दिव्यमाणिवयमाला। श्रीमद्गीर्वाण दिव्यमाणिक्यमाला। तस्य ज्योतिस्तेजस्तस्या ज्वाला । श्रीमद्गीर्वाण० माणिक्यमाला ज्योतिर्वाला तया कराल स्फुरितमुकुरिका श्रीमद्गीर्वाण करालस्फुरितमुकुरिका श्रीमद्गीर्वाण स्फुरितमुकुरिका । श्रीमद्गीर्वाण मुकुरिकाया पृष्टपादावेवारविन्दे यस्या सा तस्या सबोधन श्रामद्गीर्वाण० घृष्टपादारविन्दे पद्मा त्रिदशनिकुरवस्पष्टकिरीट पर्यस्त-तटस्थ-प्रधानरत्नमाला । दीप्तिशिखारौद्रस्फूर्जमानमुकुरिकाया
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लघुविद्यानुवाद
४०५
घर्षितचरणेदीवरे । पुनरपि कीदृशे। व्याघ्रारोल्का सहस्त्रज्वलनल शिलालोलपाशाकुशाढये । व्याघ्रोराश्च ता उल्काश्च, व्याघ्रोरुल्का तामाम् सहस्त्राणि ज्वलश्चासावनलश्च ज्वलदनलस्तस्य शिखा ज्वलत् अनल शिखा, व्याघ्रोरोल्का सहस्त्राणि च ज्वलदनलशिखा च पाशश्च अकुश च, पाशाकुशे लौले च, पाशांकुशे लोलपाशाकुशे ते च व्याघ्रोरोल्का लोलपाश तेराढया व्याघ्रो० लोलपाशाकुशाढया तस्या सबोधन व्याघ्रो पाशांकुशाढये ।
तारापतन ज्वाला सहस्त्रदेदीप्यमानानल धाराचचल पाशकरिकलत्र कु भविदारण प्रहरण इत्दर्थः । पुनरपि कीदृशे आ को ही मत्र रुपे । आ च, क्रौ च, ह्री च, ओं को ही रुपा पा को ह्री रुपो च एव मत्र तत्स्वरुपे । प्रॉ को ही मत्र रुपे प्रतीते । पुनरपि कीदृशे । क्षपित कलिमले ।
क्षपित. कलिमल यया सा तस्याः सबोधन । हे क्षपित कलिमले । विघटित पापमले । अस्य भावमाह।
श्री कार नाम गर्भ तस्य बाह्यषोडशदले लक्ष्मीवीजमालिख्य । निरतर ध्यानमान पिगलादि द्रव्यैः सौभाग्य भवति । द्वितीयप्रकारे पट्कोण अस्य चक्र मध्ये एका रस्य नामभितस्य बाह्य क्लीकार दातब्य । बहिरपि ह्रौ सलिख्य कोणेषु ॐ क्ली ब्लू द्रा द्री द्र, सलिख्य मायावीजैस्त्रिविधमावेष्टय निरतर सार्यमारणे काव्य शक्तिर्भवति ।
अथ तृतीय प्रकार षट्कोण चक्रमध्ये ऐ क्ली ह्रौ नाममध्ये तत कोणेपु ॐ ह्री क्ली द्रवे नमः ॐ ह्री क्ली द्रावे नम. ॐ ह्री देनम ॐ ह्री उभादे नमः ॐ ह्री द्रवे नम. ॐ ह्री द्रावे नमः ॐ ह्री पद्मिनी नाममालिख्य बहिरष्ट दलेपु मायावीज दातव्यम् । वाह्य षु पोडणदलेपु कामाक्षरवीज दातव्य । बाह्मषु पोडशदलेषु ह्रौ सलिख्य बहिरष्ट दलाने मायाबीज सलिख्य मध्येषु ॐ माँ को ह्री जयायै नम.विजयायै नम. अजितायै नम अपराजितायै नम जयंती नमः विजयती नमः भद्रायै नमः ॐ ह्री शातायैनम आलिख्य बाह्यमायावीज त्रिगुरण वेष्टय माहेद्रचक्राकित चद्रकोरणेषु लकार लेख्य । इद च क कुकुमगोरोचनादि सुगधद्रव्यै भूर्जपत्रे सलिख्यास्या मूल विद्या--
ॐ पा को ही घरणेद्राय ह्री पद्मावती सहिताय को ह ह्री फट् स्वाहा ।।
श्वेत पुप्पैपचाशत् सहस्त्रैः (५०.०००) प्रमाण एकात म्याने मानेन जापन दशांग होमेन सिद्धिर्भवति । प्रथम वृत्तानतर मालामत्रमनेक प्रकार सप्त पचमाह ।।
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लघुविद्यानुवाद
विधि नं. १ 'अथ श्री पदमावती स्तोत्रम्
प्रथम श्लोकार्थ बडे बडे देवतानो के समुह के स्वच्छ मुकुटो की किनारियो के ऊपर लगे हुये दिव्य माणिक्यो से प्रकाशमान ज्वालामो से सहित चमकते हुये उन मुकुटो से किनारियो से घीसाये गये चर कमलो वाली, भयकर उल्काप्रो से निकलने वाली हजारो अग्नि शिखाओ से चमकता हुवा पाश, और अकुश, को धारण करने वाली और कलिकाल के मल दोष को नाश करने वाली आ, क्रो ह्री, इस मत्र स्वरूप वाली हे देवि पद्मावति मेरी रक्षा करो ॥१॥ साधना का मूल मत्र, ॐ या को ह्री पद्मावत्यै नम । इस मत्र का जाप्य पहले करके यत्र साधन करे। ,
प. स्त्रो. विधि नं १ यत्र नं १
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आक्रों
RAHA
सर्व सौभाग्यकारी यंत्र
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विधि
लघुविद्यानुवाद
विशेषार्थ
पद्मावती देवी स्तोत्र सम्बन्धि यंत्र मंत्र साधन का विवरण -
(१) श्री कार मे, देवदत्त, लिखकर सोलह दल वाले कमल की रचना करे श्री कार के उपर फिर उस सोलह दल वाले कमल म, प्रत्येक दल मे, लक्ष्मी बीज की स्थापना करे । लक्ष्मी बीज याने (श्री) लिखे । यह यत्र रचना हुई । देखिये इस स्तोत्र के प्रथम काव्य की
यन्त्र न० १
- इस यत्र को सुगधित पीले रंग के द्रव्य से लिखकर निरतर सामने रखकर यत्र का ध्यान करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है । गोरोचन, कस्तुरी से यत्र भोज पत्र पर बनावे ।
नमः
(२) दुसरे प्रकार से -- प्रथम ऐ कार लिखे, ऐ कार मे देवदत्त लिखे फिर उस ऐ कार के ऊपर षडकोणाकार रेखा खीचे । षडकोरण के प्रत्येक दल मे क्ली लिखे । फिर बाहर फिर हो लिखे, कोरणो मे ॐ क्ली ब्लू द्वाद्री द्र लिखकर माया बीज याने ही कार से तीन घेरा लगावे | देखिये चित्र न० २
पद्म. स्त्रो. विधि नं. १ यंत्र नं. २
द्रा
देवदत
ܬ
४०७
ॐ ऐं ह्रीं हौं
कवित्व प्राप्ति सरस्वति यंत्र
पद्मा
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-
-
-
४०८
लघुविद्यानुवाद
विधि :--इस यन्त्र को भोज पत्र पर गोरोचन, कस्तुरी, केशर आदि सुगधित द्रव्यो से लिखकर
निरतर यन्त्र का ध्यान करने से काव्य शक्ति बढती है। यन्त्र मे लिखा हुवा मन्त्र का
जाप्य करे, जाप, आसन, भोजन, पुष्य मब सफेद ही हो। (३) तीसरे प्रकार से यन्त्र की रचना --
प्रथम पटकोण बनाये, षट्कोण चक्र मे ऐ क्ली ह्रौं तया देवदत्त लिखे, उस षटकोण के । दलो मे क्रमश -ॐ ह्री क्ली द्रवे नमः, ॐ ह्री क्ली द्रावे नम , ॐ ह्री क्ली द्रनम, ॐ ह्री क्ली उमाद्रे नम , ॐ ह्री क्ली द्रवे नम , ॐ ह्री क्ली द्रावे नम , ॐ ह्री क्ली से पद्मिनी लिखे। फिर उस षट्कोण पर वलयाकार बनावे, उस वलय को अष्ट दल बनावे, उन अष्ट दलो मे माया वीज यानी (ह्री) बीज की स्थापना करे। फिर उसके उपर सोलह दल के कमल वनावे उन सोलह दल मे काम बीज यानी (क्ली) वीज की स्थापना करे। उसके उपर एक सोलह दल वाला कमल और बनावे, प्रत्येक दल मे (ह्रो) बीज की स्थापना करे, फिर उसके उपर आठ दल वाला कमल बनावे, प्रत्येक दल मे क्रमश माया बीज (ही) लिखकर फिर क्रमश ॐ पा को ह्री जयायै नम ॐा को ह्री विजयायै नम , ॐ आ को ह्री अजितायै नम , ॐ श्रा को ही अपराजितायै नम , ॐ आ को ह्री जयताय नम , ॐ श्रा को ह्री विजयायैनम ॐ आ को ह्री भद्रायै नम ॐ आ को ही शातायै नम , लिखे फिर उपर से ह्री कार को तोन गुणा वेष्टित करके माहेद्र चक्राकित चद्रकोण मे, (ल) कार की स्थापना करे । यह यन्त्र रचना हुई । देखे यत्र न० ३ विधि --इस यन्त्र को भोज पत्र पर लिखकर इस मन्त्र से जाप, करे (क कुम-गोरोचनादि
से लिखे) । मन्त्र -ॐ प्रां कों ह्रीं धरणेद्राय ह्री पद्मावति सहिताय क्रौं ह्र ही फट् स्वाहा । विधि :-सफेद फूलो से ५०००० हजार जाप, एकात स्थान मे मौन से करे। दशास होम करे तो
सिद्ध होता है।
इस यन्त्र के सामने रखकर मन्त्र का सतत् कर जाप्य करने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है, सर्व कार्य की सिद्धि से यहा मारण कर्म और उच्चाटन कर्म को थोडा बहुत भी अवकाश नही, मात्र सर्व कार्य सिद्धि का अर्य ससारीक सुखो की प्राप्ति होना है, इसलिये दुसरो का अनर्थ रूप कार्य करने की कभी भी इच्छा न करे।
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लघुविद्यानुवाद
४०६
श्लोक नं. १ प. स्त्रो. विधि नं. १ यं. नं. ३
SUK
दि. ता
माहेन्दचक्राय
नमः
नम-मानी ही जय
माहेन्द्रचक्राय
नमः
किहाँअपराजितायै
हौँ
जतायै नमः ॐआंकी
A
नमः ॐआक्रो
सकी हैं
-
-
नमः
जियायैनमः ॐआंको ही
(कलौं क्ली)
की क्लाँ कि
श्री बलमा
अन्त्यै नमः ॐ आंद
दिली
--
ॐआक्रो हॉविजयी
Solhi
JE
-
लाँ क्ली
भद्रासनम ॐ
काहीजयायै नमः
-
नमः
काहीहीयान्ताय नमः। 530
माहेन्द्रचक्राय
माहेन्द्रनकाय
प्रारोग्यप्रद, बुद्धिलाभकर, सकल कामना सिद्धिकर यंत्र
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लघुविद्यानुवाद
श्री पद्मावती देवी स्त्रोत यंत्र मंत्र विधि सहित वृहद काव्य नं. ६
४१०
यत्र रचना:- - चतुर्थ दल कमल कृत्वा, तन्मध्ये ही बीज लिखेन दल मध्ये ॐ ग्रा को ही नम एतत्मन्त्र लिखेत् तदुपरि ॐ ह्री श्री क्ली महा लक्ष्मै नम लिखेत तदुपरी काव्य लिखेत प्रय प्रकारेण यत्र कृत्वा पार्श्व रक्षणीयात राज्य भयादि नश्यन्ति ।
-- प्रथम काव्यस्य ही बीज पडाक्षरै मन्त्र ॐ ग्रा को ही नम अथवा ॐ ह्री श्री क्ली महालक्ष्मै नम अनेन मन्त्रेण पूर्व दिक मुख शुक्लासन शुक्ल माला, श्रष्टोत्तर शत जाप्य कृत्वा, गुगलस्य धूप दत्वा दीप घृतस्य धृत्वा ग्राग्य कुर्यात जाति पुष्पेन जाप्य तहिराज्य भय दुष्टादि भय, अग्नि भय, नश्यति ।
इस काव्य के यन्त्र मन्त्र को पास मे रखने से व मन्त्र का १०८ बार पूर्व दिशा मे मुख करके और सफेद आसन, सफेद माला, अथवा जाई (चमेली) के फूल से गुगुल का धूप, धी का दीपक रखकर जाप करने से राज भय, दुष्टादिभय, ग्रग्नि भय आदि नाश होते है । लक्ष्मी लाभ होता है।
मन्त्र :- ॐ प्रां कों ह्रीं नमः ।
फल
श्रीमद्गीर्वाण चक्र स्फुटमुकुट तटि दिव्य माणिक्य माला
ॐ
ह्रीँ
श्रीँ
ॐ
ह्रीँ आँ
क्रौं
मः
आक्रो हीँ मन्त्र रूपे क्षपित कलिमले रक्षमा देविपझे ॥
ब्ब
The
यन्त्र न. १
नमः
भय निवारण यंत्र
क्लॉ
ज्योति ज्वाला कराला स्फुरित मुकुरिका घृष्ट पादार विन्दे
म
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लघुविद्यानुवाद
विधि नं. ३
श्लोकार्थ मन्त्र विधि न० (१) मन्त्र विधि--ॐ प्रॉ कों ह्री नम --इस मन्त्र को मच्छी यन्त्र, नागपास यन्त्र, अकुश यन्त्र मे मन्त्र की स्थापना करे, रूद्राक्ष की माला से प्रतिदिन १२१ बार मन्त्र का जाप्य करे, मच्छी यन्त्र का ध्यान करे, तो मन्त्र से हिसा दूर होय, शरीर को पाप से निवृति करे, कुष्ट आदि रोग दूर करे । और भी बाल हत्या, स्त्री हत्या, राज हत्या, जोगी हत्या, सर्व हत्या, कुटु ब हत्या, आदि दूर होय । यह यन्त्र चन्दन से मच्छो का आकार लिखकर उसमे मन्त्र स्थापन करे, और एकाग्र मन से एकान्त मे जाप करे तो. धैर्य रखे सर्व कार्य सिद्ध होगा। (व्याघ्रोरूल्का)--इस मन्त्र का जाप करे तो कष्ट आदि पेट का सर्व रोग समाप्त होता है, रूद्राक्ष की माला से जल मन्त्रीत कर पिलाने से शरीर के रोग दूर होय, नागाकुशाब्जे, इस मन्त्र से मन का विकार नष्ट होता है क्योकि यह यन्त्र पार्श्वनाथ जी के स्मरण रूप मे है, वो भगवान तो स्वर्ग और मुक्ति को देने वाले है फिर सामान्य की तो बात ही क्या, जिस जगह दैत्य, राक्षस, किन्नर, भूतप्रत, पिशाच, मुद्गल, गधर्व आदि का भय होता है तो इस यन्त्र को (प्रथम काव्य के ४ यन्त्र को) मुकुट मे रखे, याने शिर पर धारण करे तो सर्व उपद्रव नष्ट होता है। उस मन्त्रोद्धार श्लोक को द्वितीया शनिवार से आरभ करे, अन्य तिथी या वार मे प्रारभ न करे ।
यन्त्र न० १-२-३-४
श्लोक नं. १ मच्छी यंत्र नं. १ विधि नं. ३
स
HAYAT
-
(ना
Ele.
SEEIN
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४१२
लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं. १ नागपाश यंत्र नं. २ विधि नं. ३
Tara
yz
SERINA
नाकाहान
LAL17RITTER
श्लोक नं. १ अंकुश यंत्र नं. ३ विधि न. ३
PM ॐआं क्रॉ हीनमः ॥
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लघुविद्यानुवाद
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श्लोक नं. १
यंत्र नं. ४ विधि नं. ३
PRINCE
POSदेवदत्त
सर्वोपद्रव नाशक यंत्र भित्वा पाताल मूल, चल चल चलिते, न्यायलीलाकराले । विधु दंड प्रचंड प्रहरण सहिते, सद्भुजेस्ताडयंती ॥ दैत्येंद्रक रदंष्टा, कटकटघटितः, स्पष्टभीमाट्टहासे । माया जीमूतमाला, कुहरितगगने, रक्षमां देवि पद्म ॥२॥
रक्षपालय हे देवि पद्मावति । शासनदेवि ! क मा स्तुति कार कीदृशी देवी, चल-चलचलिते चचलगमने इत्यर्थः कि कृत्वा, भित्वा विदार्य कि पातालमूल पातालस्य मल, असरभुवनमूलमित्यर्थ. पुनरपि कीदृशी, व्याललीलाकराले । व्यालाना साणा लीला | व्याललीला तया कराला, व्याललीलाकराला, तस्या. सबोधन हे व्याललीलाकराले । पुनरपि कीदृशे। विद्यद्दड प्रचड प्रहरण सहिते। विद्युड. तद्वत्प्रचड च तत् प्रहरण च विद्युदृडप्रचडाहरण तेन सहिता, विद्यदृडप्रचडाहरणसहिता । तस्या सबोधन । विद्युद्दडप्रचडाहरणसहिते सौदामिनीलकुटसमर्थायुध
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४१४
लघुविद्यानुवाद
युक्तेत्यर्थ । तथा तर्जयती, ताडयती, क दैत्येद्र दानवेंद्र । कै. सद्भुजै. शोभनदोर्दण्डै पुनरपि कीदृशे । क्रूरदष्ट्राकटकटघटित स्पष्टभीमाट्टहासे । क्रूरदष्ट्राकटकटघटित. स्पष्टश्चासौ भीमश्चस्पष्ट भोम स्पष्टभीमश्चासौ अट्टहासश्च स्पष्टभीमाट्टहास. क्र रदष्ट्रा कटकटेन घटिते स्पष्टभीमाट्टहासौ यया सा तस्या सबोधन, क्रूर द हासे पुनरपि कीदृशे । मायाजीमूतमालाकुहरितगगने । मायाशब्दे ह्रीकार वीज मुच्यते । ह्रीकारनामभित तस्य बाह्य पु षोडशढलेषु मायाबीज सलिख्य धारयेत् । ततो मायाशब्देन माया बीज ह्रीकार मुच्यते । तत्सप्त लक्षाणि जपेत् । सर्वकार्यसिद्धिर्भवति ।।१।।
___ माया एव जीमूता मायाजीमूता तेषा माला मायाजीमूतमाला तया कुहरित शब्दायमान गगन आकाश यया सा तस्या सवोधन “मायाजीमूतमालाकूहरितगगने "ह्रीकार जलधरखगजिताबरे इत्यर्थ । इदानी मायानामगजितस्य वहिराष्टपत्रेषु ह्रीकार दातव्य, एतद्यत्रम् कु कुमगोरोचनया लिखित्वा हस्ते बघात्सर्वजन प्रियो भवति ॥२॥
पुनरेतद्यत्र कु कुमगोरोचनया भूर्ये (भोजपत्रे) विलिख्य बाही धारणीय सौभाग्य करोति ।।३।। मन्त्र .--ॐ नमो भगवति पद्मावति सु धारिणी पद्मसंस्थिता देवि प्रचंडदौड खंडित
रिपुचक्न किन्नर किंपुरुषगरुडगंधर्वयक्षराक्षस भूतप्रेत पिशाचमहोरगसिद्धिनागमनुजपूजिते विद्याधरसेविते ह्रीं ह्री पद्मावती स्वाहा ॥१॥
एतन्मत्रेण सर्पपभिमत्र्य यदेकविशतिवारान् वाम हस्तेन वधनीयम् सर्वज्वर नाशयति, भूतशाकिनीज्वर नाशयति ॥४॥
___ॐ नमो भगवति पद्मावति अक्षिकुक्षिमडिनीजयन्तउ वासिनी आत्मरक्षा पररक्षा, भूतरक्षा, पिशाचरक्षा शाकिनीरक्षा चोरखधामिय ॐ ठ ठ स्वाहा" ।।१।। १ पूर्व द्वार वधामि
७ उत्तर द्वार वधामि २ आग्नेय द्वार ,
- ईशान द्वार , ३ दक्षिण द्वार ,
६ अघो द्वार , ४ नैऋति द्वार ,
१० ऊर्ध्व द्वार , ५ पश्चिम, ,
११ वक ६ वायव्य द्वार ,
१२ सर्व ग्रह (ग्रहान्) वधामि चण्डप्रहरणसहिते सद्भुस्तजयती । दत्येन्द्रऋ रदष्ट्रा कटकट घटितस्पप्टभीमाहाने । मायाजीमतमाला कुहन्तिगगने रक्ष मां देवि पद्म। २ सर्वकर्मकरी नाम विद्यावर विनागिनो भवति ।
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लघुविद्यानुवाद
४१५
।।ॐ ह्री ह्री ज्वी ज्वी ला ज्वा प लक्ष्मी श्री पद्मावति पागच्छ २ स्वाहा ।।
एत विद्या अष्टोत्तर सहस्त्र श्वेतपुष्पैरष्टोत्तर शत जप्य श्री पार्श्वनाथचैत्येजपितः सिद्धिर्भवति । स्वप्नेमध्ये शुभाशुभ कथयति ।
॥ ॐ नम चडिकायै ॐ चामु डे उच्छिष्ट चडालिनो · .. "अमुकस्य हृदय भित्वा मम हृदय प्रविशाय स्वाहा ।।
ॐ उच्छिष्ट चडालिनीए -- अमुकस्य हृदय पीत्वा मम हृदय प्रविशेतक्षणादानय स्वाहा ॥
___ॐ चामु डे अमुकस्य हृदय पिवामि । ॐ चामु डिनी स्वाहा । सित्थय पडिम काउ सपुगति अटुण्णतावेव-या होमे-सर्वरसिण बासकुण ।। मत्र ।।
ॐ उ तिम मातगिनी अपद्रुपिस्सेपइ कित्तिएइपत्तलग्निचडालि स्वाहा ।। ॐ ह्र ह्री ह्र ह्र-एकातर ज्वर मत्र्य तावूलेन सह देयम् ।।
ॐ ह्री ॐ नामाकर्षण । ॐ ग म. ठ. ठ गतिवध. ह्री ह्री द्र द्र ॐ देव २ मुखबध २ ॐ ह्री फट् क्रौ प्रोच्छि २ भी ठ ठ ठ कुडलीकरण । ॐ लोलु ललाट घट प्रवेश ॐ य विसर्जनीय प्रोष्ठ कठ, जिह्वा, मुखखिल्लउ तालु खिल्लउ ॐ जिह्वा खिल्लउ ॐ खिल्लउ तालू हैगरु सुवहुः चचु २ हरे ठ ठ महाकाली योगकाली कुयोगम्मूह सिद्धसिद्ध उए कु सप्प मुह बधउ ठ. ठ । सर्प मन्त्र --
___ॐ भूरिसि भूतिधात्री विविध चूर्णरलक्षता स्वाहा । भूमि शुद्धि । डाकिनी मन्त्र -
___ ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय शाकिनी योगिनीना-मडलमध्ये प्रवेशय, ग्रावेशय, सर्वशाकिनी सिद्धि सत्त्वेन सर्षपास्तारय स्वाहा । सर्षप तारण मन्त्र -
ॐ नमो सुग्रीवाय ह्री खट्वाग, त्रिशूल, डमरुहस्ते तिस्तोक्ष्णक कराले वटेलानलकपोले लुचित केशकपाल वरदे । अमृतशिरभाले । गडे ।-सर्व डाकिनीना वशकराय सर्वमन्छिदनी निखये आगच्छ भवति-त्रिशूल लोलय २ इ अरा डाकिनी बल ३ । शाकिनीना निग्रह मन्त्र :--
नरल इ किलइ फेत्कारमडलि असिद्धिहइ निवारइ द्रोसममै पाउसिपइ सइहाल पुलिमाइ २ रक्त सी पुत्तपसम न करसी। डाकिनी मन्त्र -
ॐ ह स व क्ष कम्बू भा ह्री ग्ना ज फट् ।
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४१६
लघुविद्यानुवाद
अश्वगधापसवसर्षपकर्पासिकानि अभिमन्त्र्य अवस्तूनि प्राछोते ऊसलमूसलवतिना वालागरुडै. सिदुरैस्ताडयेत् । शाकिनी प्रगटा भवति त पात्र मोचयति । शाकिनी मन्त्र --
किलट्टमल तदुलोदकेन गालयित्वा पात्रस्य तिलक क्रियते । शाकिनीना स्तभो भवति । अत. पर प्रवक्ष्यामि । योगिनी । क्षोभं मुक्तयंरि-संमंत्र संसिद्ध श्रीमत्संधैः प्रपूजितं ॥१॥
ॐ सुग्रीवाय जने वा तराय स्वाहा ।। डाकिनी दिशा बध पुत्र रक्षा च प्रवश्य ।। ॐ नमो मुग्रीवाय--भौ भौ मत्तमातगिनी स्वाहा । मुद्रिका मन्त्र :-।। चकमुद्राप्रेषित व्याग्रह गृहीतस्य मुद्रादर्शनादेवाग्रनिर्गच्छति ॥
ॐ नमः सुग्रीवाय नमः चामुडे तक्षिकालोग्रह विसत् हन २ भंज २ मोहय २ रोषिरणी देवी सुस्वाप स्वाहा ॥ प्रोच्छादने विद्या ॥ ॐ नमो सुग्रीवाय परमसिद्धसर्वशाकिनीनां प्रमर्दनाय-कुट २ अाकर्षय २ वामदेव २ प्रतान् दहममाहली रहि २ उसग्रत २ यसि २ ॐ फट् शूलचंडायनो विजमामहन् प्रचंड सुग्रीवो सासपति स्वाहा ॥ सर्वकर्मकरो मन्त्रः ॐ नमो सुग्रीवाय गपिके सौम्ये वचनाय गोरीमुखीदेवी शूलिनीज्ज २ चामु डे स्वाहा ।
अनया विद्यया सकल परिजप्य करणवीरलता सप्ताभिमन्त्र्य उखल मुशलेन ताडयेत् यथा २ ताडयति तथा २ योगिनीभूतास्ताडिता भवति । प्रताडरण विद्या अष्ट शतिको जाप । ॐ कारो नाम गभितो वाह्यश्चतुर्दलमध्ये ॐ मुनिसुव्रताय सलिख्य बहि हर २ वेष्टय । बहि कमादिक्षकार पर्यन्त वेष्टय, मायावीज त्रिधा वेष्टय । यथा द्वितीयवकार नामगभित बाह्यश्चतुर्दले वकार दातव्य, वहिरष्ट पत्रेषु उकार देय । यथा तृतीय मायाबीज नामगभित । बहिरष्टकार वकार देय । बहिरगारेपु माया देया। एतद्यत्र कु कुमगोरोचनया भूर्ये सलिख्य दुष्ट वश्यौपसर्गो दोषमुपशमयति । ह्री नाम गभितोक्ष वेष्टय--मया त्रिधा वेष्टय वहिरष्टार्थे 'क्ष क्षी शू ह्री सलिख्य विदिशिगेषु 'देवदत्त' देय । द्वितीय नाम गभिबहि स्वरावेष्टया बाह्य-ॐ ह्री चामु डे वेष्टय वाह्य बलय पूरयेत् । एतद्यत्रद्वय क कम--गोरोचनया भूर्ये सलिख्य सूत्रेण वेष्टय बाहौ धारणीयम् । प्रथम यत्र बध्याया गुविणी मृतवत्सा धारयति । काकवध्या प्रसवति ।
सर्वभूतपिशाचप्रभतीनां रक्षा बालगृहरक्षणे रक्षा भवति ।।
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लघुविद्यानुवाद
४१७
"माया नामभितो बहिरष्टपत्रेष रं देय । यथा रक्षाद्वितीयप्रकारः ।। माया नामभितो बहिरष्टाध मायाबीजं देयं । यथा तृतीयं ॥
ह्री श्री देवदत्त ह्री श्री सलिख्य बाह्य षोडशार्ध ह्री श्री देयम्, एतद् यत्र कु कुम गोरोचनया भूर्ये स लिख्य कुमारीसूत्रेण वेष्ट्य बाहौ धारणीय । बालाना शातिरक्षा भवति । सर्वजन: प्रिय । दुर्भगास्त्रीणा सौभाग्य भवति ॥
क्ष ज ह स म म ल व !' एतानि पिडाक्षराणि मध्ये नाम गभितानि सलिख्य कु कुमगोरोचनया भूर्ये लिख्येत । बाहौ धारणीय, वश्यो भवति ।
षट्कोण चक्रमध्ये माया नाम गर्भित षट्कोणेषु 'ह्री स' लिखेत् ॥ बाह्य 'ह्री' देयं । एतद्यत्र कु कुम-गोरोचनया सराव सपुटमध्ये प्रक्षिप्य स्थाप्य वश्यो भवति ।।
____ माया श्री नामगभितो बहि माया वेष्ट्य बहिरष्टाध माया देयम् । कुकुम गोरोचनादि सुगध द्रव्यै भूर्ये लिखेत् । वस्त्रे कठे बाहौ वा धारणीय । आयुवृद्धि अपमृत्युनाश रक्षा, भूतपिशाच, ज्वरस्कन्द ।
अपस्मारग्रहगृहीतस्य बंधितस्य तत्क्षणादेव शुभं भवति ।। मायात्रिविधावेष्टयं ॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौ हः यक्षः ।।
षट्कोण गभित एतत् कोणेषु 'ह्र ॐ' २ ह ४ बाह्य ह्रा ह्री स्वाहा, एतद्यत्र नागवल्लिपत्रेषु चूर्णेन लिखेत् । सप्ताभिमन्त्र्य एतद्दीयते । बेलाज्वर नाशयति । अथवा-"हा ही ॐ" शुभेद्रव्यै भूर्ये सलिख्य माया त्रिविधा वेष्ट्य एतद्यत्र गोरोचनया भूर्ये विलिखेत् । कठे हस्ते बध्वा चौरभय न भवति । अमोघविद्या करोति ।
ह्रीं स्त्रं देव ही स्त्रं नामभितो
बहिश्चतुर्दल ह्री हा स्त्र लिख्य एतद्यत्र गोरोचनानामिकारक्तेन भूर्ये सलिख्य एरडनालिकाया प्रक्षिप्य राजमहामात्यप्रभृतीना वश्य भवति । कालिकाप्रयोग । ह्री द्र नय रं नप क्षोभयति । य नामभितो बहि ॐ कार मयवेष्टय बाह्य षोडशाः मायाबीज बाह्य माया त्रिवेष्टय एतद्यत्र कु कुम-गोरोचनादि शुभ द्रव्यैर्भूर्ये लिखेत् । कुसुम रक्तसूत्रेण वेष्टय रक्तकणवीर पुष्पैरष्टोत्तरशतानि जापे क्रियमाणे पुरुषक्षोभो भवति । नामाक्षराणि नित्य जपेत् । नप पूर ग्राम च क्षोभयति । षट्कोण चक्रमध्ये य नामगर्भितो बाह्यसपुटस्थकोणेषु र देय ज्वलनसहित, एतद्यत्रं स्मशाना गारे, काक पिच्छे श्मशाने कर्पटे वा लिखेत् । श्मशाने निखतेत् सद्य. उच्चाटयति । अनेन मन्त्रेण सप्ताभिमन्त्र्य यत् कृत्वा निखनयेत् । ॐ ह्रा ह्री ह्र ह्रौ फट व: नाम ही नाम गभित ठ
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४१८
लघुविद्यानुवाद
वेष्टय बहिरष्ट--ल री र रो २ रै र सलिख्य वायसरुधिरेण यस्य नाम लिखेत् स महाज्वरेण गृह्यते । पट्कोणमध्ये 'य' नामभितो कोणेषु य ६ बाह्य निरन्तरम् पूरयेत् । एतद्यत्र विषेण श्मशानागारेण प.दपाशुना सह भूर्ये यस्य नाम आलिख्येत प्रतवन निर्जयन्तम् । ॐकारम् वेष्टय बहिरर्ध 'य' देय । एतद्यत्र विषकतकरसेन ध्वजाग्रपट्ट' यस्य नाम लिखित्वा श्मशाने निखनेत् उच्चाटयति । यस्य नाममध्ये 'क्यू' सपुटस्थ बहिश्चतुर्दले य' देयम् । एतद्यत्र श्मशानागारेण निवपत्ररसेन ध्वजकर्पटे लिखित्वा ध्वजाग्रे बन्ध उच्चाटयति । यकार नाम अग्नेय मडलम् कोणेषु 'र' देय । स्वस्ति कामाना भूषित । इद यत्र विभीतकरसेन नाममालिख्य खरमूत्र स्थाप्यते सद्य उच्चाटयति । देवदत्त प्रसाद ह्रीकार च वारत्रय च वेष्टय एतद्यत्र तालपत्र २ कटकेन लेख्य कुभमध्ये स्थाप्य कुभ वसनेन आच्छाद्यते । मायाबीजो नामभितो बहिरष्टाध माया देय । एतद्यत्र कु कुमगोरोचनया भर्ये लिख्य बाहौ धारणीय । ग्रह, भूत, पिशाच, डाकिनी प्रभृतीना पीडा न भवति ।
मायाबीज नामगभितो न द्विषा प्रमाण अग्रे वज्राकित दिक्ष लकार वौषट् मध्येपु ह्रीकार प्रत्येकम् लिखेत् । एतद्यत्र कु कुम-गोरोचनया भूर्यपत्रे वा नाम मालिख्य बाहौ धारणीय । भूतप्रेत पिशाच डाकिनी त्रास कम्प विदाही उपशामयति । सिद्धोपदेश । मायावीज नामभितो त्रेधावेष्टय सिकतामयी प्रतिमा कृत्वा लिखेत् । उपयेत्स्थाप्य मादनकटके विद्धा सर्वा उनकटकेन लोहिशिलाकाया हारा बद्ध अकरे स्थापयेत् त । कूज दिव्य भास्वद्वैडूर्यदड वा आकर्षयति ॥२॥ "इदानी प्रहरणमनेकप्रकारं सप्रपंचमाह ।"
___ श्लोकार्थ नं०२ हे पद्मावति मेरी रक्षा करो, हे महादेवि पाप कसे प्रभाव वाली हो, पाताल के मूल को भेद कर चचल गति से चलने वालो, सर्प की लीला के समान विकराल, बिजली के समान चमकने वाले दण्ड की तरह स्वय के हाथ मे पकडने वाले प्रचड शस्त्रो से प्रहार करने वाली, विकराल दाडो को कटकट शब्द करती हुई भयकर हास्य करने वाली, दैत्यो को ताडन करने वाली. और मेघ के पक्ति के समान आकाश में गमन करने वाली, हे मा मेरी रक्षा करो।
श्लोक नं. २ के यंत्र मंत्र विधान (१) ह्रीकार मे देवदत्त गभितकर उपर सोलह पाखुडी का कमल बनावे, उन मोलह
पाखुडी मे माया वीज (ही) की स्थापना कर दें। यह मन्त्र रचना हुई। यन्त्र न० १ देखे।
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लघुविद्यानुवाद
४१८
विधि :-इस यन्त्र को भोजपत्र पर सुगधित द्रव्य से लिखकर ॐ ह्री नम । इस मन्त्र का सात
लाख विधि पूर्वक जपे तो कार्य सिद्ध होता है । मनवाच्छित फल की प्राप्ति होती है। (२) ह्रीकार मे देवदत्त गर्मितकर ऊपर अष्टदल कमल बनावे उस कमल की पाखुडी मे
प्रत्येक मे ह्री बीज की स्थापना करे । ये यन्त्र रचना हुई। यन्त्र न २ देखे । विधि :-इस यन्त्र को भोजपत्र पर केशर गोरोचनादि सुगधित द्रव्यो से लिखकर हाथ मे बांधने
से सर्वजन प्रिय होता है और और सौभाग्य की वृद्धि होती है, बाल रक्षा होती है । मन्त्र .--ॐ नमो भगवती पद्मावति (सूक्ष्मपद्म धारिणो) सूलधारिणी पद्म
संस्थिता देवि प्रचंडदौर्दड खडित रिपु चक्र किन्नर कि पुरुष गरुड गंधर्व यक्ष राक्षस भूतप्रेत पिशाच महोरग सिद्धी नाग मनुज पूजिते विद्याधर
सेविते ह्रीं ह्री पद्मावती स्वाहा ॥१॥ विधि - इस मन्त्र से सरसो २१ वार मन्त्रीत कर वाम हाथ मे बाधने से सर्व ज्वर का नाश होता __ है और भत, शाकिनी ज्वर का नाश होता है । मन्त्र जाप्य दस हजार करना चाहिये। पूर्व द्वार बधामि
उत्तर द्वार बधामि आग्नेय द्वार बधामि
ईशान द्वार बधामि दक्षिण द्वार बधामि
अधो द्वार वधामि नैऋत्य द्वार बधामि
ऊर्द्ध द्वार बधामि पश्चिम द्वार बधामि
वझ द्वार बधामि वायव्य द्वार बधामि
सर्व ग्रह (ग्रहान) बघामि मन्त्र :-ॐ नमो भगवती पद्मावती अक्षि कुक्षि मंडिणी उवज्जयं त वासिनी
प्रात्मरक्षा पररक्षा, भूतरक्षा पिशाचरक्षा, शाकिनी रक्षा चोर बांधामिय ॐ ठः ठः स्वाहा।
सर्व कर्म करने वाली विद्या, सर्व ज्वरो का नाश करने वाली है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं ह्रीं ज्वों ज्वी (क्ली) (क्ली) ला नानोप लक्ष्मी श्री पद्मावती
आगच्छ २ स्वाहा। (नोट) :-इस मन्त्र के अन्दर दो प्रतियो मे दो पाठ मिलते है मूल सस्कृत प्रति मे ज्वला इवी है,
आगे ला, ज्वा, प लक्ष्मी है । एक प्रति मे, ज्वी क्ली क्ली ना नोप लक्ष्मी है। किन्तु मल पाठ ऐसा होना चाहिये । ॐ ह्री ही झ्वी क्ली ना नोप लक्ष्मी श्री पद्मावती आगच्छ २ स्वाहा।
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४२०
लघु विद्यानुवाद
श्लोक न० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १
हाँ
हाँ हाँ
हाँ
देवदन्त
Res
ह्रीँ
M
ສ
सर्वकार्यसिद्धिकर यन्त्र श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २
देवदत्त
(You
सर्वजनप्रिय यन्त्र
यह यन्त्र सौभाग्यकर भी है इसी यन्त्र से बाल रक्षा भी होती है
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लघु विद्यानुवाद
विधि :-- इस विद्या का १००८ श्वेत फूलो से श्री पार्श्वनाथ के चैत्यालय मे भगवान के सामने जप करे, तो, सर्व मन्त्र विधा की सिद्धि होती है । स्वप्न मे शुभाशुभ होने वाली भविष्य को कहती है ।
""अमुकस्य हृदय कित्वा मम
'अमुकस्य हृदय पीत्वा मम हृदयम् प्रविशेतत्क्षरणा
४२१
ॐ नम चडिकाये ॐ चामु डे उच्छिष्ट चडिलिनि -
हृदय प्रविशायै स्वाहा ।
ॐ उच्छिष्ट चडालिनीए...
दानय स्वाहा ।
ॐ चामु डे अमुकस्य हृदय पिवामि । ॐ चामुळे डिनी स्वाहा ।
विधि - बालू की मूर्ति बनाकर अक्षुणता से उपरोक्त मन्त्र का जाप करें, फिर होम करे, सर्व
रसिणवास कुण ।
मन्त्र :- ॐ उतिम मातंगिनी अप स्वाहा । ॐ ह्र ं ह्रीं ह्रीं .-- इस मन्त्र से ताबूल (पान) को नाश होता है ।
विधि
(इ) विस्सेपइ कित्ती एइ पत्त लग्नी चंडालि ह्रः । एकांतर ज्वर मंत्र्य तांबू लेन सह देयम् ॥ २१ बार मन्त्रीत कर रोगी को खिला देवे तो एकात ज्वर
मन्त्र :- ॐ ह्रीं ॐ नागाकर्षणं । ॐ गः मः ठः ठः गति बंध ह्रीं ह्रीं द्र ं द्रः ॐ देव २ मुख बंध २ ॐ ह्रीं फट् क्रों प्रोच्छि २ भी ठः ठः ठः कुंडली करणं । ॐ लोलु ललाटः घट प्रवेशः ॐ यहः विसर्जनीयं श्रोष्ठ, कंठ, जिह्वा, मुखखिल्लउ तालु खिल्लउ ॐ जिह्वा खिल्लवु ॐ खिल्लउं तालु हगरु सुबहुः चंचु २ हेर ठः ठः महाकाली योग काली कुयोगमुह सिद्ध २ उ, ए, हु कु सप मुह बंध ठः ठः ।
ॐ भूरिसि भूति धात्री विविध चूखैर लकृता स्वाहा । भूमि शुद्धि ।
डाकिनी मन्त्र ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय शाकिनी योगिनीना -- मडल मध्ये प्रवेशाय २ अवेशय २ सर्व शाकिनी सिद्धि सत्वेन सर्षपास्तारय स्वाहा ।
सर्वपतारण मन्त्र -- ॐ नमो सुग्रोवाय ह्री खट् बाग, त्रिशूल डमरू हस्ते तोस्तीक्ष्णक कराले, वटेला नल कपोले लुचित केश कपाल वरदे | अमृत शिर भाले । गडे । सर्व डाकिनोना वणकराय सर्व मन्त्र छेदनी निखये श्रागच्छ भवती त्रिशूल लोलय २ इरा डाकिनि, चले ३ |
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४२२
लघुविद्यानुवाद
-
शाकिनि निग्रह मन्त्र --नरल ३ किमलइ फेत्कार मडली असिद्धि हई निवारई द्रोसम मैं आऊ सिपई
स हालपुलिमाई २ रक्ती सी पुत्तप सम नकरसी। डाकिनी मन्त्र --ॐ ह स व क्ष क्म्व्यू भा ह्री ग्ना ज फट । १ विधि --अश्व गधापसव, सरसो कपास को उपरोक्त मन्त्र से मन्त्रीत कर अवस्तुनि आछोते,
ऊसल मुसल वतिना वालागरुडै सिदुरस् ताडित करे तो, शाकिनी प्रगट होती है, और उस पात्र को, यानी रोगी को छोड देती है।
शाकिनो मन्त्र विधि -किलट्टमल तदुलोदकेन गालयित्वा पात्रस्य तिलक झियते । शाकिनीना स्तभो भवति ।
अत पर प्रवक्षामि । योगिनि क्षोभ मुक्तयरि समत्र ससिद्ध श्री मत्सद्य प्रपूजीत । मन्त्र :-ॐ सुग्रीवायजनेवहतराय स्वाहा । विधि --इस मन्त्र को पढने से डाकिनी की दिशा बध होती है । और पुत्र की रक्षा डाकिनी से
अवश्य होती है। मन्त्र :-ॐ नमो सुग्रीवाय भो भो मत्त मातंगिनी स्वाहा । यह मुद्रिका मन्त्र है। विधि --उपरोक्त मन्त्र को चक्र मुद्रा बनाकर रोगी को दिखावे और मन्त्र का जाप करे तो कोई
भी प्रकार की भूतप्रेत ग्रह शाकिनी, डाकिनी आदि रोगी को छोडकर भाग जाती है। मन्त्र --ॐ नमः सुग्रोवाय नमः चामुंडो तक्षि कालोग्रह विसत् हन २ भंज २
मोहय २ रोषिरणी देवी सुस्वाप स्वाह । प्रोच्छादने विद्या । मन्त्र :--ॐ नमो सुग्रीवाय परमसिद्ध सर्व शाकीनां प्रमर्दनाय, कुट २ आकर्षय २
वामदेव २ प्रतान दह २ ममाहलि रहि २ उसग्रत २ यसि २ ॐ फट् शूल
चडायनो विजमामहन् प्रचड सुग्रीवोसासपति स्वाहा । १卐-दूसरा पाठ इस प्रकार है-ॐ ह स व क्ष क्म्यं ब्लू भा ह्री ग्र हु फट् ॐ स्वो क्ष क्रो
शाकिनीना निग्रह कुरु २ हु फट् । द्वितीय विधि इस प्रकार है, असगध का चूर्ण, जौ के अाटा की खीर, सरसो और कपास मन्त्रीत कर, घर के कोने २ मे छाटना, और भी चला पर, देरी वगेरे पर सिन्दुर मन्त्रीत कर छाटना चाहिये, तो घर मे घुसी हुई डाकरण प्रगट होती है और जिसको लगी हो उसको छोड कर भाग जाती है।
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लघुविद्यानुवाद
४२३
सर्व करो मन्त्र मन्त्र :--ॐ नमो सुग्रीवाय वार्षिके सौम्ये बचताय गोरीमुखी देवी शूलनी ज्जं २
चामुडे स्वाहा । विधि :--उपरोक्त मन्त्र से कनेर डाली को ७ बार मन्त्रीत कर, उखल मे डालकर मूसल से कूटे
जैसे २ कूटे वेसे २ योगिनी भूत का ताडन होता है। लेकिन प्रताडन मन्त्र को १०८ बार जपना चाहिये।
यन्त्र रचना - (३) ॐकार देवदत्त, गभित करके ऊपर चतुर्दल वाला कमल बनावे, उस चतुर्दल मे ॐ
मुनि सुव्रताय लिखे, उपर एक बलय बनावे उस वलय को हरहर से वेष्टित करे । ऊपर फिर एक वलय बनावे, उसमे क ख ग घ ड, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द धन, प फ ब भ म, य र ल व श, ष स ह क्ष, लिखे । ऊपर से ह्रीकार से यन्त्र को तीन
घेरे से सहित बनावे । ये यन्त्र रचना हुई, चित्र न ३ देखे । विधि :-केशर अथवा गोरोचन से भोज पत्र पर लिखकर धारण करने से मारण कर्म का नाश
होता है। (४) वकार मे देवदत्त, गभित करे, ऊपर चार पखुडी का कमल बनावे उन पाखड्यो मे
वकार की स्थापना करे । फिर ऊपर पाठ दलो का कमल वनावे, उन आठ दनो मे उकार की स्थापना करे । यह हुआ यन्त्र का स्वरूप । यन्त्र न ४ देखे । यन्त्र धारण करने से
वशीकरण दूर होता है। (५) ह्रीकार मे देवदत्त, गभित करे, फिर आठ दल का कमल बनाकर उसमे वकार की
स्थापना करे, ऊपर ह्रीकार से बेष्टित करे । ये हुई यन्त्र रचना । यन्त्र न. ५ देखे । विधि .-इस प्रकार यन्त्र को केशर, गोरोचन से भोपजत्र पर लिख कर धारण करे तो दुष्ट लोगो
के द्वारा किया हुमा वशीकर उपद्रव शात होता है । (६) ह्रीकार मे देवदत्त गभित करके, ऊपर अष्ट पाखुडी का कमल बनावे, फिर प्रथम क्षा
लिखे। फिर देवदत्त फिर क्षी फिर झू फिर ही लिखे । यह यन्त्र का स्वरूप वना ।
यन्त्र न ६ देखे । विधि --यन्त्र केशरादि द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखकर धारण करने से मुख से प्रसव होता है।
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४२४
लघुविद्यानुवाद
(७) देवदत्त लिखे ऊपर एक वलय लिखे उस वलय मे क्रमश अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु
ल ए ऐ ओ औ अ अ ये स्वर लिखे, फिर ऊपर से एक वलय और खीचे उस वलय मे ॐ ह्री चामु डे लिखे। ये हुई यन्त्र रचना । यन्त्र न ७ देखे ।
प. श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं. ३
प फन
दिघन
रह रहर
रह र
त
ण
जनमः मा
1ॐ
हरहर हर
य
सबताया
हरहरहर
अट ठड
गायनम
र
ल
व
Shree
स्वछ ज झ हर हर हर
नसुव्रताया
रह रह रहा
वश ष स
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SE.
विधि
इस यन्त्र से अभिचार (मारण) कर्म भी दूर होता है -इन दोनो यन्त्रो को केशर गोरोचन से भोज पत्र पर लिखकर यन्त्र को वेष्टित करके हाथ मे बाधने से वघ्या गर्भ धारण करती है और उसके गर्भ मे मरे हुए बच्चे कभी नही होगे। दूसरे यन्त्र के प्रभाव से काक बध्या भी प्रमव धारण करती है। यन्त्र न ६-७ की विधि है।
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विधि :
लघु विद्यानुवाद
( 5 ) ह्रीकार मे देवदत्त लिखकर, उपर अष्ट दल कमल बनावे, उन आठो ही दलो मे र कार लिखे । देखे यन्त्र न. ८ ।
- इस यन्त्र को धारण करने से स्त्रियो को सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
(९) ह्रीकार मे देवदत्त लिखे, फिर चतुर्थ दल का कमल बनावे, उन चारो ही, दलो मे माया बीज (ह्री) को लिखे । यन्त्र न ε देखे |
(१०) ह्री श्री देवदत्त ही श्री लिखकर ऊपर अष्टदल का कमल बनावे, उस कमल दल प्रत्येक मे क्रमश ह्री श्री लिखे । यन्त्र रचना इस प्रकार हुई । यन्त्र न. १० देखे ।
5.
वधि :- इन तीनो यन्त्रो मे से जो कार्य वाला यन्त्र है उसको बनाकर धारण करने से उसी प्रकार का कार्य होता है । यन्त्र को केशर, गोरोचन से भोज पत्र पर लिखकर कुमारी कत्रीत सूत्र से यन्त्र को वेष्टित करे । न ८ और भुजा मे धारण करे | बच्चो को तो शाति रक्षा न. ε होती है । भौर सर्वजन प्रिय होता है । दुर्भाग्य स्त्रियो का सौभाग्य होता है । न १०
प. श्लोक नं० २, विधि नं० १, यन्त्र नं० ४
उ
४२५
देवदत्त
2
ส
q
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४२६
लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं. २ विधि नं. १ यन्त्र नं. ५
ज
ही ही
सही ही ही
ही
सही ही
हाँ हीं
दिवटता
रहीं हाहास
पही ही ही
ही ही ही
-
-
ही हा हा
यन्त्र नं. ३-४-५ परकृत वश्य उपसर्ग दूर होता है
श्लोक नं २ विधि नं. १ यन्त्र नं. ६
-
D52
-
देवदत्त
2
दवदत्त
Ca
AAMAD.
इस यन्त्र से वन्ध्या भी पुत्रवती होतो है
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४२७
लघुविद्यानुवाद प. श्लोक नं. २ विधि नं. १ यन्त्र नं. ७
-
२
।
ओ/
SBE
न्धा
आर
Rela
-
इस यन्त्र से गर्भ में बच्चे नहीं मरते, काक वन्द्या (धारयति) गर्भ धारण करती है,
इससे पिशाच की पीड़ा भी शांत होती है
प. श्लोक नं. २ विधि नं. २ यन्त्र ८
-
aamana
LanvrewHAARAKinatamnnama
सब प्रकार के भूत पिशाचादि से रक्षा होती है
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४२८
लघुविद्यानुवाद
प. श्लोक न २ विधि न. १ यन्त्र नं ६
देिवदत्त
on
-
वालको की ग्रहो से रक्षा होती है, और अप्रियता का नाश होता है
प. श्लोक नं २ विधि नं १ यन्त्र नं १०
हाँाँदेवदत्तहाँ श्री
-
बालकों को शांति रक्षा होती है, सर्वजनप्रिय होता है, दुर्भग स्त्रियां सौभाग्यवतो होती हैं
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लघुविद्यानुवाद
४२६
(११) देवदत्त लिखकर उपर आठ दलो का कमल बनावे, फिर प्रत्येक दलो में क्रमश: मल्व्यू
जमल्व्यू झल्व्य स्म्व्य भव्य म्म्ल्व्यू लम्व्यू मव्यू लिखे । यन्त्र रचना इस प्रकार हुई । यन्त्र न. ११ देखे।
विधि :-यन्त्र को केशर गोरोचन से भोज पत्र पर लिखे। भुजा मे धारण करे तो सर्वजन वशी होते है।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० ११
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इच्छितजन वशीकरण यन्त्र
(१२) ह्री कार मे देवदत्त गभित करे उसके ऊपर षटकोण बनाव, पटकोण की कर्णीका में
क्रमश ही, स लिखे बाहर ही २ लिखे । ये यन्त्र रचना हुई। यन्त्र नं १२ देखे ।
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४३०
विधि
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लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १२
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इच्छितजन वशीकरण यन्त्र
--इस यन्त्र को केशर गोरोचन से लिखकर ( भोजपत्र पर ) सराव सपुट के अन्दर डालकर स्थापना करे तो अच्छा वशीकररण होता है ।
(१३) ह्री देवदत्त श्री लिखे, बाहर चार दल का कमल खीचे, उस कमल कर्रिएका म ह्रीकार की क्रमश स्थापना करे । यन्त्र न १३ देखे ।
- इस यन्त्र को केशर गोरोचन से भोजपत्र पर लिखे, यन्त्र को वस्त्र पर लपेट कर गले में अथवा हाथ मे धारण करने से, प्रायु की वृद्धि होती है । अपमृत्यु नही होती है । भूत, पिशाच, ज्वर, स्कघ अपस्मार ग्रह से पीड़ित रोगी को तत्क्षण ही छुटकारा मिल जाना है। रोगी अच्छा हो जाता है ।
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लघुविद्यानुवाद
४३१
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं. १३
इस यंत्र से आयु वृद्धि, अपमृत्यु से रक्षा, भूत पिशाच, ज्वर स्कंद, अपस्मार ग्रह से
पीड़ित तत्क्षरण ठीक होते है (१४) देवदत्त लिखकर षटकोणाकार बनावे षटकोण के कणिका मे क्रमश. हू , ॐ, ॐ, ह्र
ह्र ह ह लिखे बाहर ह्रा ह्री स्वाहा लिखे ऊपर एक वलयकार वनावे उस बलयाकार मे ॐ ह्रा ही ह ह्रौ ह्र. यक्षः । ह्री कार का तीन घेरा लगावे । यह बना । यन्त्र न. १४ देखे।
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४३२
लघुविद्यानुवाद श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १४
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इस यन्त्र से बेला ज्वर नाश होता है श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १५
देवदत्ता
चौरभय को दूर करता है, अमोघ विद्या की प्राप्ति होती है
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लघुविद्यानुवाद
४३३
विधि .--इस यन्त्र को नागर बेल के पत्ते पर, नागर बेल के पत्ते के रस से लिखे । उस पत्ते को
रोगी को खिलावे। इससे बेला ज्वर नाश होता है। उस पत्ते के रस को उपरोक्त मन्त्र
से ७ बार मन्त्रीत करे । (१५) अथवा ह्रा ह्री ॐ के बीच मे देवदत्त लिखे, उपर से ही कार को वष्टित कर दे।
यन्त्र न १५ देखे। विधि :-इस यन्त्र को गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर गले मे या हाथ मे बाँधने से चोर भय
नही होगा। ये अमोघ विद्या है। (१६) ह्री स्त्र देवदत्त ह्री स्त्र लिखे, ऊपर चतुर्थ दल कमल बनावे। उस कमल की पाखुडी मे क्रमश. ॐ ह्रा ही स्त्र लिख दे। यह यन्त्र रचना हुई । यन्त्र न. १६ देखे ।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं. १६
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राजपुरुषों को वश करने का यन्त्र
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४३४
लघुविद्यानुवाद
विधि -इस यन्त्र को गोरोचन और अपनी अनामिका अगुली के खून से (यहा रक्त का प्रयोग
आया है साधक इस प्रयोग को नही करे), भोजपत्र पर लिखकर, एरड की नली मे डाले तो, राजमन्त्र आदि के वश मे होते है। कही ऐसा भी पाठ है (एरड को लकडो के
अन्दर यन्त्र रखना)। मन्त्र :--ह्री द्रं नय रं नृप (राजा को शोभित करता है ।) (१७) य कार मे देवदत्त लिखकर ऊपर एक वलय बनावे, उस वलय मे ॐ २ लिखे, ऊपर अष्ट
दल का कमल बनावे । उन पाठों ही दलो मे ह्री कार आठ बार लिखे, कार से ह्री कार का त्रिधा घेरा बनावे । यन्त्र रचना हुई । यन्त्र न १७ देखे ।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १७
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राजा, नगर, गांव को क्षुभित करता है
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मन्त्र :-- ॐ ह्रीं ह्रः श्रमुक नगरे अमुक ग्रामं अमुक राजा नां क्षोभय २ स्वाहाः । विधि :- इस यन्त्र को केशर गोरोचनादि शुभ द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखे, कमल के धागे से यन्त्र को वेष्टित करके, लाल कन्हेर के फूलो से १०८ बार जाप करने से, राजा पुरुष प्रदि को भी शोभित करता है । नामाक्षर को नित्य ही जपे । नृप को, नगर को, गाव को शोभित करता है । १
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १८
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उच्चाटन यन्त्र
मन्त्र का सात बार उच्चारण कर यन्त्र को गाड़ें
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यह यन्त्र नगर, राजा, ग्राम को क्षुभित करने वाला है, कव यन्त्र का असर होगा जब उस राजा या ग्राम या नगर का पुण्य क्षय होने पर, इसलिये धीरे २ ग्रसर होगा, लेकिन यह यन्त्र क्रिया भी दूसरे को हानि पहुँचाने का रूप है । साधक यह क्रिया कभी नही करे, मात्र ग्रन्थ में प्रयोग आने से देना पड रहा है, हमारा स्वतन्त्र कोई अभिप्राय नही है हम ग्रन्थकर्ता ऐसी क्रियाओ के लिये आज्ञा नही देते है, (सावधान) उपरोक्त मन्त्र नित्य ही जपे ।
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४३६
विधि
२ अब आगे करीब पाच यन्त्र उच्चाटन प्रयोग के है, उनमे ग्रशुद्ध द्रव्यो का प्रयोग व कफन, रक्त आदि का प्रयोग लिखा है, सावधान होकर क्रियाओ को करो, नही तो स्वयं का उच्चाटन हो जानोगे ध्यान रखो, ये क्रियाये दूसरे को हानि पहुँचाने रूप है, जो दूसरे को हानि पहुँचाता है उसकी हानि प्रति शीघ्र होती है, मै तो ये ही समझता हूँ कि इन क्रियाओ मे हाथ नही लगावे ।
(१८) य कार मे देवदत्त गर्भित करके, ऊपर पटकोरणाकर बनावे, उस पटकोण की कणिका मे
रर लिखे । यन्त्र न १८ देखे ।
लघुविद्यानुवाद
- इस यन्त्र को श्मशान के कोयले से कौश्रा के पख से कफन के टुकडे पर लिखे, फिर श्मशान मे गाड देवे तो उच्चाटन होता है । यन्त्र गाडने के समय मन्त्र को सात वार जपना चाहिये ।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० १६
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महाज्वर कारक यन्त्र
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लघुविद्यानुवाद
४३७
मन्त्र -ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौ फट् अमुकं उच्चाटय २ स्वाहाः । (१९) ह्री कार मे देवदत्त लिखे, फिर एक वलयाकार वनावे, उस वलय मे ॐ कार से वेष्टित ___ करे। फिर आठ दल का कमल बनावे, उस कमल मे ल री र रो रो रै रः लिखे। यह
यन्त्र रचना हुई। यन्त्र न १६ देखे । विधि .-इस यन्त्र को कौआ के रक्त से शत्रु के नाम सहित लिखे तो शत्रु को ज्वर पकड लेता है।
(सावधान इस क्रिया को कभी नहीं करे नरक जाना पडेगा।) (२०) य कार मे देवदत्त गभित करके, ऊपर षटकोण बनावे, प्रत्येक षटकोण की करिणका मे । य २ लिखे यह प्रथम यत्र रचना हुई । यन्त्र न. २० देखे।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २०
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उच्चाटन यन्त्र विधि ---इस यन्त्र को विप, श्मशान का कोयला और शत्रु के पाव की नीचे की धूल, इन सब
चीजो से भोजपत्र पर शत्रु के नाम सहित लिखे तो शत्रु का उच्चाटन होता है।
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(२१) य कार मे देवदत्त लिखकर ऊपर षटकोण बनावे, उस षटकोण के करिका मे य २ लिखे, ऊपर एक वलय बनावे | उस वलय मे ॐ कार लिखे फिर बाहर चार य' कार से वेष्टित कराये । यह हुई यन्त्र रचना । यन्त्र न. २१ देखे ।
विधि - इस यन्त्र को विष कनक फल के रस से ( जहरी कुचला और धतुरे का रस से ) ध्वजा के कपडे पर लिख कर श्मशान मे गाड़ देवे, तो शत्रु का उच्चाटन होता है ।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २१
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लघुविद्यानुवाद
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उच्चाटनकर यन्त्र
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लघुविद्यानुवाद
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(२२) कम्व्य पीडाक्षर मे देवदत्त गभित करे, ऊपर चतुर्थ दल का कमल बनावे उन दलो मे यं २ लिखे। ये हुई यन्त्रकार की रचना । यन्त्र नं. २२ देखे।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २२
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उच्चाटनकर यन्त्र विधि :-इस यन्त्र को श्मशान के कोयले से नीम के पत्ते के रस से लिखे, कौवे के पख की कलम
से ध्वजा के कपडे पर लिखकर उस ध्वजा को बॉस मे लगाकर बाँध देवे तो शत्रु का
उच्चाटन होता है। (२३) य कार मे देवदत्त नाम गभित करके फिर ऊपर अग्नि मडल बनावे, उस अग्नि मडल
के तीनो कोण मे र कार लिखे। बाहर तीनो हो कोणो मे स्वस्तिक ३ लिखे ।
यन्त्र न २३ देखे । विधि :-इस यन्त्र को विभितक के (हरे के) रस से लिखकर गये के मूत्र से क्षेपण करे तो शत्रु
का उच्चाटन होता है । (कही बहेडा के रस से) (२४) देवदत्त लिखकर ह्रो कार को विधा बेप्टय करे। ये यन्त्र हुवा । यन्त्र न २४ देखे।
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लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २३
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देवदत्त
उच्चाटन यन्त्र
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र न० २४
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उच्चाटनकर यन्त्र
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लघुविद्यानुवाद
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विधि :-इस यन्त्र को ताल पत्र के रस से ताल पत्र की काटे की कलम से लिखकर घडे मे डाले।
उस घडे का मुंह कपड़े से ढक देवे तो उच्चाटन होता है । (कही उस घड़े को फोड
देवे लिखा है) (२५) ह्री कार में देवदत्त लिखकर, ऊपर चार दलो का कमल बनावे, उन चारो ही दलो मे
ह्री को स्थापना करे । यह यन्त्र का स्वरूप हुा । यन्त्र न. २५ देखे ।
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २५
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ग्रह, भूत, पिशाच, राक्षस, डाकिनी आदि की पीड़ा शांत होती है
विधि -इस यन्त्र को केशर गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर हाथ मे धारण करने से ग्रह, भूत,
पिशाच, डाकिनी आदि के द्वारा पीडित व्यक्ति को पीडा नही होगी। (२६) ही कार मे देवदत्त लिखे, ऊपर आठ वज्र का चिन्ह बनावे, ऊपर लकार वौपट
मध्य मे प्रत्येक मे २ ह्री कार लिखें। याने ह्री, लं वौषट् । ये यन्त्र रचना हुई। यत्र न. २६ देखे ।
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४४२
लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं० २ विधि नं० १ यन्त्र नं० २६
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भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी कम्पविदाहि उपशम हो
विधि -इस यन्त्र को केशर, गोरोचन से, भोजपत्र पर लिखे और भुजा मे धारण करे तो भूत,
प्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि के द्वारा पीडित व्यक्ति की, पीड़ा नष्ट हो जाती है।
सिद्धोपदेश है । यानी प्रसिद्ध पुरुषो ने ऐसा कहा है। (२७) बालू की प्रतिमा बनाकर उस प्रतिमा मे ह्री कार देवदत्त सहित लिखे । माया ह्री
बीज से त्रिधा वेष्टित करे । इस यन्त्र को लिखने की विधि :-जिसको आकर्षित करना है, उसके पाव की मिट्टी ( बालु ) लेकर पुतला बनावे, उस पुतले की छाती के ऊपर त्रिकटु के रस से इस यन्त्र को लिखे, उस पुतले के सर्व अगो को कॉटे से बीध करे, उसके बाद एक लोहे के सरिये पर हार के समान उखली के ऊपर लटका देना, फिर नीचे आग लगाना, आंच लगने से व्यक्ति प्राकर्षित होकर आपके पास आ जायगा । देखे यन्त्र न २७ ।
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लघुविद्यानुवाद
४४३
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श्लोक नं० २ विधि न० १ यन्त्र नं० २७
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आकर्षण यन्त्र काव्य नं. २ वहत
चन्त्र रचना.
षट्कोण आकारं कृत्वा, तन्मध्ये क्रौं बीज लिखेत् । तदुपरि प्रत्येक कोणे मन्त्राक्षरं लिखेत ॐ ह्री पद्म नम. एतत् मन्त्र लिखेत तदुपरी काव्य लिखेत् । पश्चात् पार्श्व
रक्षणियात् । फल :--
द्वितीय काव्यस्य को बीजं, षडाक्षरै मन्त्र ॐ ह्री पद्म नमः अनेन मन्त्रेण कुवेर दिग् मुख कृत्वा रक्त पुष्पेने अष्टोत्तर शत (१०८) जाप्य कृत्वा, लक्ष्मी लाभ तथा चितित कार्यस्य सिद्धिर्भवति, यन्त्रस्य रक्त पुष्पेन पूजा कुर्यात ।
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इस यन्त्र मन्त्र कार्य को भोजपत्र या सोना, ताबा, चादी के पत्र पर लिख कर लाल पुष्प से पूजा करे । मन्त्र का १०८ बार जाप करे तो लक्ष्मी का लाभ होता है । चितित कार्य सिद्धि होती है । भोज पत्र पर यन्त्र लिखना हो तो सुगंधित द्रव्य से लिखे ।
जपने का मन्त्र :
ॐ ह्री पद्म नम. । इस मन्त्र की १ माला उत्तर दिशा मे मुख करके नित्य फेरे
लघु विद्यानुवाद
यंत्रनं02
भित्वा पाताल मूलं चल चल चलिते व्याल लीला कराले ।
मायाजी मूल माला कुहरित गगने, स्तमां देवी पद्मे ॥
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विद्यु दण्ड प्रचण्ड सहितैः समुजै स्तर्ज यन्ति ।
मनोवांछित दायक यन्त्र
कूजत्कोदंड कांडो, डमरु विधुरितः क्रूरधोरोसपर्गा ॥ दिव्यं वज्रातपत्रं, प्रगुणमरिण र रणत्कि किरणीक्वारणरम्यं ॥ भास्वद्वे डर्यदंडं, मदन विजयिनो, विभ्रती पार्श्वभर्त्तः ॥ सा देवी पद्महस्ता विघटयतु महा, डामरं मामकीनम् ||३||
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लघुविद्यानुवाद
४४५
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व्याख्या :-विघटयतु विनाशयतु, काडसौ की देवी पद्मावती किम् तत्कर्मतापन्न महाडामर महा
विघ्न कथभूत मामकीन मदीथ । कीदृशी देवी पद्महस्ता पद्मकरा. कि कुर्वती विभ्रती धारयती कि कर्मतापन्नम् वज्रातपत्र, वज्र च आतपत्र च बज्रातपत्र कस्य पार्श्वभर्तु: पार्वाभिधानयक्षस्य पुनरपि कि कर्मतापन्न कूजत्कोदडकाडो डमरूविधुरितः क्रू रघोरोपसर्गाः, कोदडश्च काडश्च कोदडकाडौ कूजतौ, कोदडकाडौ कूजत्कोदडकाडी तयोरू डमरः कूजत्कोदडकाडोडमर क्रू रश्च घोरश्च क्रू रघोरौ, क्रू रघोरौ उपसर्गो यस्यासौ क्रू रघोरोपसर्गा कूजत्कोदडकाडोडमरेण विधुरितः क्रू रघोरौ०–तत् क्रूरघोरोपसर्गाः गदाधनुर्बाणोडुमरविधुरितः दुष्टरौद्रविघ्न न केवल विभ्राणा कि तत् वज्रातपत्र दिव्य प्रधान तथा बिभ्रारणा कि तत्-भास्वर्यदड, भास्वान् प्रभापु ज सहितो वैडर्यदडो येनासौ भास्वद्वैडूर्यदड त भास्वद्वैडूर्यदड देदीप्यमानरत्नविशेषम् तल्लगुड कीदृश प्रगुणमणिरणत्किकिणीक्वारगरम्य । प्रगुणश्च त मरणयश्च, प्रगुणमरणयरणतश्च ताः किकिण्यश्च, रणत्किकिण्य प्रगुणमणिरण त्किकिरणीनाम् क्वाण. प्रगुणमणिरणत्किकिणी क्वाणः तेन रम्य, प्रगुणमणिरण त्किकिणी क्याणरम्य । विशिष्टरत्ननिर्मितक्षुद्रघण्टिकारावरमणीय । कीदृशस्य पार्श्वभर्तु मदन विजयिन. कामजयिन भाव माह । एपा विद्यामार्ग भये ७ सप्त वारान् अभिमन्त्र्य पथे धनुगलिखेत्--चोर भय न भवति ।
ॐ मदन विजयिनो विभ्रती पार्श्वभर्तु सा देवी पद्महस्ता विघटयतु महाडामर मामकीन ।। भृङ्गी काली कराली परिजन सहिते, चडी चामुण्डि नित्ये ।। क्षा क्षी क्षौ क्ष. क्षणार्धक्षतरिपुनिवहे ह्री महामन्त्रवश्ये ।।१।।
॥ नमो धरणेद्राय खड्गविद्याधराय चल २ खड्ग गृह २ स्वाहा ॥१॥ अष्टोत्तर सहस्त्रकर जाप्ये मुख्यानि । वादिन भय सिद्धि । "खड्गस्तंभन मन्त्रः"-॥ ॐ नमो कुबेर । '' अमुक चोरं गृह २ स्थापितं दर्शय आगच्छ स्वाहा ॥१॥ भस्मना कटोरक पूरयित्वा पूजयेत्-चोर गृण्हापयति । पूर्व सेवा दणलक्षाणि जपेत् तत सिद्धा भवति ।।३।। "इदानी अनेक प्रकार शास्त्र प्रतिपाद्य अधुना देवकुलरक्षा. स्तभन, मोहन, उच्चारण, विद्वेपण, वशीकरण, भतशाकिनी देवीना अभिधानानि मन्त्राणि विद्याश्च सप्रपचमाह।"
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४४६
विधि
लघुविद्यानुवाद
श्लोकार्थ नं. ३
जिसके हाथ मे कमल है ऐसी है पद्मावति देवि मेरे ब्रह्मा मेरे उपसर्गो को दूर करो आपने पार्श्वनाथ भगवान को मस्तक पर धारण किया है, आप कामदेव के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले श्री पार्श्वनाथ भगवान के ऊपर वेडुर्य मरिण के सुन्दर छत्र को धारण करने वाली हो, उस छत्र को मनोहर छोटी २ शब्द करने वाली घटिया बची हुई है, ऐसी हे देवि मेरे उपसर्गो को अवश्य दूर करो ।
. - इस श्लोक का पठन करने से हर प्रकार के उपसर्ग अवश्य दूर होते है ।
श्लोक नं. ३ की विधि
इस चोर भय यन्त्र से चोरो का निवारण होता है देखे इस श्लोक न. ३ का यन्त्राकार नं. १ । रास्ते मे चोर डाकुओ का भय या गया है ऐसा मालूम पडने पर, रास्ते के ऊपर धनुष्य की आकृति लिखकर नीचे लिखे अनुसार मन्त्र का सात बार जप करना, उससे चोरो के शस्त्रादि चलना बद हो जायेगे, चोरो का भय समाप्त हो जायगा ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं धनु २ महाधनु सर्व धनु देवि, सर्वेषां दुष्ट चोराणां श्रायुधं बन्ध २ दृष्टि बन्ध २ मुखस्तम्भं कुरु २ स्वाहा ।
मन्त्र :- ॐ नमो धरणेन्द्राय खड्गविद्याधराय चल २ खड्गं गृह २ स्वाहा ॥ विधि
--- इन दो मन्त्रो के जाप से चोरो के धनुष्य बाण, तलवार प्रादि का स्तभन हो जाता है, किसी भी प्रकार के शस्त्रो का उपयोग नही कर सकते है ।
इन मन्त्रो का तीन दिन मे प्रतिदिन हाथ से १००० जप करके यन्त्र मे धरणेन्द्र पद्मावती
का आवाहन कर १००० पुष्पो से पूजा करना चाहिये, मन्त्र सिद्ध होने पर ही प्रयोग से कार्य सिद्ध होता है ।
चोरी गया धन वापस मिलने के लिये और चोर पकडने के लिये --
मन्त्र :- ॐ कुबेर प्रमुकं चौरं गृह २
स्थापित दर्शय आगच्छ स्वाहा ।
विधि :-- इस मन्त्र का जाप्य १०००० दस हजार करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है, जब जरूरत राख भरकर उसकी पूजा करना, उसमे कुबेर की जाप्य करना चोर पकडा जायगा, माल मिल
पडे तब कटोरे मे अथवा सरावे मे पूजा करना, उसके बाद मन्त्र का
जायगा ।
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लघुविद्यानुवाद
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यह प्रयोग श्लोक नं. ३ के अन्तर्गत लिखा है यन्त्र नं. १
श्लोक न. ३ बृहत यन्त्र विधि .--
अस्य काव्यस्य, श्री बोज, अष्टाक्षरे मन्त्र, ॐ ह्रो पद्म वज्र नमः । अनेन मन्त्रेण एकाशत जाप्य कृत्वा, दक्षिणाभिमुख रूद्राक्षमालाया जाप्य कृत्वा घोरोपसर्ग नाशन भवति अष्टदल कमल यन्त्र कृत्वा, तन्मध्ये श्री बीज लिसेत । ॐ ही पदम वजे नमः अनेन मन्त्रेण अक्षर यन्त्र स्थाप्य । पीत पुष्पेन यन्त्र पूजन कृत्वा नमस्कार कुर्यात ।
उपयुक्त विधि के अनुसार सोने अथवा तावे अथवा चॉदो या भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्य से यन्न लिखकर ॐ ह्री पद्म वजे नम इस मन्त्र को १०८ बार नित्य जपे, रुद्राक्ष की माला से दक्षिण की ओर मुख कर जपने से और यन्त्र मन्त्र को पान में रखने से सर्व धोरोपन दर होवे मुल हो, महाभय दूर हो।
भगो कालो कराली, परिजन सहिते, चंडि चामडि नित्ये ।। माक्षी शूक्षो क्षणार्धक्षतरिपुनिवहे. हो महामत्र वरपे ।।
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लघुविद्यानुवाद
यत्र नं०३ कूजाकोदण्डकांडोडमरविशुरितक्रूर चोरोपसर्ग!
सादेवी पद्महस्ता विघटयतुमहाडामरंमामकीन।
दिव्यवजातपनं प्रगुणमणिरणत्किंकिणीक्वाणरम्पं
i Gregon pregledajte
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उपसर्गहर यन्त्र
ॐ ह्रां ह्री भ्रां भ्रीं भ्रभ्र भंग संग, मकुटि पुटतटः, त्रासितोहामदैत्ये ॥ स्रां स्त्री र स्त्रौ (झां भी झ झः) प्रचंडे, स्तुति शतमुखरे, रक्ष ! मां देवि
पद्म ॥४॥ व्याख्या :-रक्ष पालय हे देवी, पद्मे, पद्मावती। क मा स्तुति कर्तारम-कीदृशी स्तुति , शतमुखरे,
स्तुतय श्री पार्श्वनाथ सबधिन्यस्तासा शतानि तै मुखरा. वाचाला तस्या सबोधन, स्तुतिशतमुखरे। कीदृशे । भू गी, काली, कराली परिजन सहिते । भृगी च काली च कराली च, भृगीकालीकराली एव परिजन परिवार तेन सहिते । सयुक्ते ! पुन कीदृशे । चडि चामुडि नित्ये । चडिश्च चासु डिश्च, चडिचामु डि चडिचामु डिभ्या नित्ये युक्ते-चडिचामुडिनित्ये, लोक प्रतीते। क्षा च क्षी च क्षु च क्षो च, क्षा क्षी भू क्षो एतैरक्षरै क्षणस्या, क्षणार्ध तेन क्षणार्धन क्षता हता. रिपूणा निवह समूहा. यया सा
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लघुविद्यानुवाद
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तस्या सबोधन क्षा क्षी क्ष क्षो क्षणार्धक्षतरिपुनिवहे । पुन. कोशे, ही महामत्रवश्ये । ह्रो लक्षणो यो महामत्रस्तस्माद्वश्या, ह्री महामन्त्रवश्या तस्या सबोधन ह्री-महामन्त्रवश्ये | नरनारीप्रभृतय । पुनरपि कीडशे । ॐ ह्रा ह्री भ्रू भग. ॐ ह्रा ह्री भ्र 5 भगसग । भूकुटिपुटतट । त्रासित्तोद्दामदैत्या । तस्या सबोधन ।। ॐ ह्रां ह्री श्रं भ्रू भंग० हामदैत्ये ॥ विकट कटाक्षोच्चाटयेत् ॥ दुष्टासरे ॥ पुनरपि कीदृशे--स्रा स्त्री त्र स्री प्रचडे स्रा च स्री च न च स्रौ च एतैः प्रचडा सा तथोक्ता तस्या सबोधन, स्रा स्री स्त्र स्रौ प्रचडे, समर्थत्यर्थ अस्य भाव तामाह । इदानी देव ग्रह यन्त्र मन्त्र ।। क्म्यं -ह व्यं -म्ल्यू ॥ एतत् हि अष्टदलेषु सर्वाणि पिडाक्षराणि सलिख्य बहिरष्टदलेषु ॐ भृगी नमः ॐ काली नम ॐ कराली नम. ॐ चडी नम ॐ जभायै नम ॐ चामु डायै नम ॐ अजितायै नम. ॐ मोहायै नम ॥ बाह्य मायाबीजम् त्रिधावेष्टय । पृथ्वी मडल चतुष्कोणेषु क्षिकार वज्राकित एतत क्रमेण चक्र कु कम-गोरोचनया कर्पूरादिसुगन्धद्रव्य भूर्य पत्रे सलिख्य कुमारीसूत्रेण वेप्टयम् वाही धारणीय सर्वभयरक्षा भवति ।। अथवा ।। एतद्यत्र श्रीखड--कर्पू रादिना सलिख्य श्वेतपुष्पैरष्टोत्तरशतैः पूजयेत् । षण्मासं यावद् लक्ष्मी सौभाग्य सर्व कार्य सिध्यति ।।
माला मंत्र "ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेद्रपद्मावतीसहिताय ।सर्वलोका (हृदयानन्द) भ्युदयकारिणी भू गीदेवी सर्व सिद्धि विद्या (वि) बुधायिनी, कालिका सर्व विद्या, मन्त्र, यन्त्र, मुद्रा स्फोटनी कराली, सर्व परद्रव्ययोगचूर्ण (मथनी) रक्षणा जभाषुर' सैन्यमदिनी, नमोदानन्द रोग नाशिनी सकलत्रिभवनानन्दकारिणी, भृ गी देवी सर्व सिद्ध विद्या बुधाइणी महामोहिनी, त्रैलोक्यसहारकारिणी चाम् डा । ॐ नमो भगवति पद्मावती सर्वग्रह निवारय फट् २ कप २ शीघ्र चालय २ गात्र चालय २ पाद चालय २ सर्वाग चालय २ लोलय २ धनु २ कपय २ कंपावय २ सर्वदृष्टान विनाशय 1 3 जये विजये | अजिते । अपराजिते । जभे। मोहे ! अजिते । ह्री २ हन २ दह २ पच २ धम २ चल २ चालय २ आकर्षय २ प्राकपय २ विकपय २ मल्व्यू क्षा भी क्ष क्षौ क्षः ह. १. सर्व विपप्रमर्दनी। चामडी देवि अजिताया स्वकृत विद्या मन्त्र तन्त्र योग चूर्णरक्षणा । २ वाहु चालय २ । ३ सर्वरोगविनाशय २।
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2
प्रा
फट् ३ निग्रह ताडय' २ ब्ल्यू स्रास्री ह्र क्रौक्ष २ ह२ स २ ध २ स २ म्यू ह्र २ घर २ ॐ ह्रा ह्री भ्रू भ्रूभग सग -- भृकुटि पुटतट त्रासितोद्दामदैत्ये । स्रा स्रीखू स्रौ प्रचडे । स्तुतिशत मुखरे । रक्षमा देवि पद्मे । पर २ कर २ ॐ फट् शखमुद्रया मारय २ ग्रहाय २क्ष्म्ल्यू हर २ स्तुतिका मुद्रा ताडय २ र्यू रषरा प्रज्वल २ प्रज्वालय २ धूमावकारिणी रा २ प्रा २ क्ली २ ह व नद्यावर्तुळे मुद्रा त्रासय २ म्यू खचक्रमुद्रया छिद २ भल्ब्यू ग त्रिशूल मुद्रया छेदय २ परमन्त्रभेदय २ म्यू धर्म २ वधय २ मोचय २ हलमुद्रया द्रावय २ व २ य कुरु २ क्यू प्रू प्रो समुद्र मज्झ २ ब्ल्यू छा छ्री छौ छ्र मन्त्राणि छेदय २ परसंन्यमुच्चाटय पर रक्षा क्ष त्रकुत्र फट् २ परसैन्यम् विध्वसय २ मारय २ दारय २ विदारय २ गतिस्तभय २ म्यू भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र श्रवय २ म्यू य प्रेषय २ प छेदय २ विद्वषय २ स्म्ल्यू स्रा स्री स्रावय २ मम् रक्षा रक्ष २ पर मन्त्र क्षोभ २ छेद २ छेदय २ भेद २ भेदय २ सर्वजभ स्फोटय २ भ २ म्यू म्राम्री भ्रू म्रौ जामय २ स्तभय २ दुखय २ खाय २ -- क्ल्यू व्रा व्री व्र ब्रौ ब्र हा ग्रीवा भाजय २ मोहय २ म्यू त्रात्री त्रू त्रोत्र --त्रासय २ नाशय २ क्षोभय २ स २ सर्वदिशि बधय २ सर्व विघ्न छेदय २ निकृ तय २ सर्वदुष्टान् ग्राहय २ सर्वं यन्त्रान् स्फोटय २ सर्व शृखलान् त्रोटय २ मोटय २ सर्वदुष्टान् श्राकर्षय म्यू ह्रा ह्री ह ह्र शातिम् कुरू कुरू -- तुष्टि कुरू कुरू स्वस्तिक सर्व भय मम रक्ष सर्व सिद्धि कुरू २ सर्व रोग नाशय २ किन्नर किपुरुष गरुड गधर्व यक्ष राक्षस भूत प्रेत पिशाच वैताल रेवती दुर्गा चडी - कुष्माडिणी बाध सरय २ सर्व शाकिनी मर्दय सयोगिनी गण चूरय २ नृत्य २ गाय २ कल २ किली २ हिलि २ मिलि २ सुलु २ घुलु २ कुलु २ पुरु २ अस्माक वरदे पद्मावती हन २ पच २ सुदर्शन चक्रेण छिद २ ही क्ली -- प्र ॐ ग्नी प्लीस्रा श्री श्री ही २ प २ प्रीं २ ह्रा २ पद्मावती धरणेंद्र प्रासादयति स्वाहा ॥
कुरू २ ॐ क्रौ ही हो पद्मावती आगच्छ २
ह्रां
एष मन्त्र पठित. सिद्ध. निरन्तर स्मर्यमाणेन सूत ग्रह ब्रह्म राक्षस वेताल प्रभृति-शाकिनी ज्वर रोग चोरारिमारि - निग्रह - व्यालसर्प वृश्चिक मूषक लूत पातक च शिरगेगो नाशयति ।
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४ क्यू ।
लघुविद्यानुवाद
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ܘ
ܘ
ॐ भृंगी रेटी किरेटी जंभय २ क्लीं पय २ घृत ट क स्वाहा ॥१॥
ॐ चंडाली प्रमुकस्य रुधिर पितर २ सुहृदये भित्वा हिलि २ चंडालिनो मातंगिनी स्वाहा ॥२॥
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लघुविद्यानुवाद
४५१
-
-
ॐ नमो भगवती काली महाकाली रुद्र काली नमोस्तु ते हन २ दह २ छिद २ छेदय २ लिंद २ त्रिशूलेन हः २ स्वाहा ॥३॥ विद्यात्रयं सप्त वारानाभिमंत्र्य तद्दीयेत शूल नाशयति ॥ॐ नमो भगवती कराली महाकराली, ॐ महामोहसमोहनीय महाविद्ये । जभय २ स्तभय २ मोहय २ मुच्चय २ क्लेदय २ आकर्षय २ पातय २ कुनरे समोहिनी। ऐद्री त्री ट्रौ आगच्छ कराली स्वाहा ॥१॥ एषा विद्या निरतर द्वादश सहस्त्राणि (१२०००) कर जापे सिद्ध भवति । मोहनी विद्या ।। ॐ नौ ह्रीं अजितए आगच्छ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ नमो जंभे मोहे स्तंभे ! स्तंभिनी स्वाहा ॥ ॐ नमो भगवती गंगा देवी कालिका देवी आह्वाननः । ॐ महामोहे स्वाहा ॥ ॐ नमो चडिकायै योगवाहि प्रवर्तय महामोहय योग मुखी योगीश्वरी महामाये । रूपिणी महा हरिहर भूतप्रिये । स्वः स्वार्थ नृणातिखय जिह्वाग्ने सर्वलोकाना-एष्य पुसरु २ दर्शय साधय स्वाहा ।।२॥ हस्ताकर्षणी नदी द्रह तडागे वा आकाशे-चद्रमडले वा खड्गे, दीप शिखाया या अगुष्ठे, दर्पणे तथा । स्वप्ने खङ्ग तथा-देवी अवतीर्य शुभाशुभ ॥ एषा आकर्षणी विद्या ॥२॥ ॐ नमो चंडिकायै योगं वाहि २ इयं वा । ॐ नमो चंडि वज्रपाणये महायक्षसेनां गाधिपतये वज्रको वा दौष्ट्रोत्कट भैरवा एतद्यथा । ॐ नमो अमृतकु डलि । अमुक-खाहि २ ज्वल २ कृद्म २ वध २ गज २ सर्वविघ्नौघ विनाशकाय महागणपनि + + + अमुकस्य जीवहराय स्वाहा ।।२।।
शक्ते प्रेषण मन्त्र :-ॐ नमो भगवतिः ! रक्तचामुडे ! मत्प्रजापाले कट २ आकर्षय २ ममोपरि चित्त भवेत् फल पुष्प यस्य हस्ते ददामि स शीघ्रमागच्छतु स्वाहा ।।४।।
वश्याकर्षण वज्रपारिणमंत्रण विशेषणं क्रियते । तस्य सहस्त्र जापः । कराभ्यां शत पुष्पारणां सिद्धिर्भवति ॥
प्रथम तावत करन्यास् (हस्तन्यास ) ॐ ठः ठ कराभ्या शोधनीयम् तर्जनागुलिना प्रत्येक सशोधनं कार्य ।। तदनतरं ।। क्ष पादाभ्या स्वाहा। भ हृदये स्वाहा । क्षी शिरसि स्वाहा । क्ष ज्वलितशिखायै वौषट् । क्षा कवचाय वपट् । हुक्षं बाहुभ्या स्वाहा । क्ष स्कंधाभ्या स्वाहा ।। क्षे
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४५२
लघुविद्यानुवाद
नेत्राय वषट् । क्षौ कर्णाय वषट् । क्ष नेत्राय स्वाहा । क्ष अन्धाय स्वाहा । ददशदिशाना रक्षा करोति ।।
__ ॐ ह्री बाहुबली लम्ब वाहु क्षा क्षी क्ष क्षौ क्षे क्षत्रुर्द्ध पुज कुरू कुरू शुभाशुभ कथय स्वाहा ॥२॥
एतन्मंत्रं कर जापेन दश सहस्त्राणि (१०,०००) सिद्धिर्भवति ।
ॐ कट विकट कटे कटि धारिणी ठ ठ परिस्फुटवादिनी भज २ मोहय २ स्तभय २ वादी मुख प्रति शल्यमुख कीलय २ पुरय २ भवेत् + + + अमुकस्य जयम् ।।२।। एपा विद्या व्यवहारकाले स्मर्यमाणा वादिमुख स्तम्भयति । विजय प्रयच्छति ।।२।। अवश्यप्लवा सदा कटकारि वृक्षाणा अष्ट सहस्त्र (८०००) जपेत्तत: सिद्धो भवति-कटकारि महाविद्या । अधुना नामादि मूर्ति मध्येषट्सु दिक्षु को विदिक्षु च क्ली बहिर्बहि पुट कोष्ठेऽष्टौ जभे-मोहे समालिख्येत । मौह पिशतदप्टाग्राब्रह्माकारमास्थित ॐ ल्बै धीत्रे वषट् फट् बाह्य क्षितिमडल अष्टर्वा लाछण च चडकोणेषु लकारमालिख्य, फल के भूर्यपत्रे वा लिखित्वा कु कमादिभि: जयेत् । य सदा यन्त्र तस्य अवश्य जगत् सर्व वश्य भवति ॥३॥
॥ ॐ ह्रीं क्लीं जंभे मोहे - ++ अमकं वश्यं कुरू २ ते से षवश्यं यंत्रम् ॥ ॐ रम्यं र र व र स हा हां ॐ को क्षी क्ली ब्लूद्रां द्री पद्ममालिनी । ज्वल २ हन २ दह २ पच २ इदं भूर्य नि-दय २ धूत्र धूम्रांधकारिणी। ज्वलन शिखें हु फट २ यः त्रिमात्रां हतार्थान् हिना ज्वालामालिनी प्राज्ञापयति ।। स्वाहा ।।
मन्त्रेण वेष्टयेत् त्रोटयत इद पिड ललाटे व्याधि दग्निवण सिरवागे भूत, ज्वर-ग्रहदोप शाकिनी प्रभृति नाशयती ।।४।।
___ॐ नमो भगवते एषु पतये नमो नमोऽधिपतये नमो रुद्राय ध्वस २ खड्गरावण चल २ विहरनपे २ स्फोटय २ स्मशान भस्म नाचिता शरीरघण्टा कपालमालाधरा यथा व्याघ्र भ्रम परिधानाय शशाकित शेखराय कृष्णसर्पयज्ञोपवीताय चल २ चलाचल २ अनिवृत्तिक पिपीलिनी हन २ भूत प्रेत त्रासय २ ह्री मण्डल मध्ये कट २ वत्स कुशेममानमत्र प्रवेशय आवह प्रचड धारासि देव रुद्रो-आपेक्षय महारुद्रो अाज्ञापयति ठ त्र स्वाहा ।। भूत मत्र ।।४।। इदानी योगिनी चकारणांतरं 'कंदर्णचन' सप्रपंचमाह ।।
__ श्लोकार्थ नं ४ (४) भृगी, काली, कराली, आदि देवियो के परिवार से सहित तथा चडी, चामु डी और नित्या
नाम को धारण करने वाली, क्षा क्षी शू क्ष इन अक्षरो से आधे क्षण मे ही शत्रु का
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४५४
लघुविद्यानुवाद
माला मत्र (यहाँ नहीं लिखा है मूल सस्कृत टीका मे दिया है) इस माला मत्र को पठित सिद्ध मत्र कहते है। इस मत्र को सिद्ध नही करना पडता है । नित्य ही पढने मात्र से सिद्ध होता है । नित्य ही पाठ मात्र करने से भूत ग्रह ब्रह्म राक्षस, बेताल प्रभृति, शाकिनी ज्वर रोग चोरारि मारी का निग्रह होता है । व्याल, सर्प, वृच्छिक
मूषक लता, पातक आदि शिरोरोग का नाश होता है। मन्त्र -ॐ भगी रेटी किरेटी जंभय २ क्ली पय २ धत टं के स्वाहाः ॥
ॐ नमो भगवतो काली महाकालि चंडाली अमुकस्य रुधिर पितर २ सुहृदये भित्वा हिलि २ चंडालनी मातंगिनी स्वाहा ॥ ॐ नमो भगवती काली महाकाली रुद्र काली नमोस्तुते हन २ दह २ छिद २ ।
छेदय २ भेदय २ त्रिशूलेन (हुं) हः २ स्वाहा । विधि -इन तीनो ही मत्रो को सात बार पढ कर पानी पिलावे तो शूल का नाश होता है। मन्त्र :--ॐ नमो भगवती कराली महाकराली ॐ (ह्रीं नमो) महामोहसंमोहनीयं
महाविद्य जंभय २ स्तंभय २ मोहय २ म(धं)च्चय २ क्लेदय २ आकर्षय २ पातय २ नरेसंमोहिनी ऐ द्री भी ह्रौ प्रागच्छ कराली स्वाहा ।
माला मन्त्र का पाठान्तर भेद ॐ नमो पार्श्वनाथाय धरणेद्र सहिताय पद्मावती सहिताय, सर्वलोक हृदयानन्दकारिणी भृङ्गीदेवी, सर्व सिद्धविद्याविधायिनी कालिका, सर्वविद्या मन्त्र यन्त्र मुद्रास्फोटनी कराली, सर्वपरद्रव्ययोगचूर्णमथनी चडी, सर्वविषप्रमदिनी चामुडी देवि | अजिताया स्वकृत विद्या मन्त्र तन्त्रयोग चूर्णरक्षणा जम्भा परसैन्यमदिनी नमो दानन्द (?) रोगनाशिनी सकल त्रिभुवनानन्दकारिणी भृङ्गोदेवी, सर्वसिद्धा विद्या विधायिनी महामोहिनी ! रैलोक्य सहारिणी चामुण्डा, ॐ नमो भगवती पद्मावती सर्वग्रह निवारिणी फट २ कप २ शीघ्र चालय २ बाहु चालय २ गात्र चालय २ पाद चालय २ विङ्ग चालय २ लालय २ धनु ३ कम्पय २ कम्पावय २ सर्वदुष्ट विनाशय सर्वरोग विनाशय जये विजये अजिते अपराजिते जम्भे मोहे अजिते ही २ हन २ दह २ पच २ धम २ चल २ चालय २ आकर्पय २ आकम्पय २ विकम्पय २ क्षम्यं क्षा क्षी शू क्षौ क्षः हु फट् ३ निग्रह ताडय २ क्म्यं स्रा स्री हू को क्ष रह २ सः २ घ २ स २ भ्व्यं हू २ घर पर २ हु फट ३ शङ्खमुद्रया घर टम्ल्यू पुर हु फट् कठोरमुद्रया मारय २ ग्राहय २ म्ल्व्यू हर स्वस्तिक
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लघुविद्यानुवाद
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प्रू प्रौ प्र समुद्रे मज्ज मुच्चाटय उच्चाटय |
मुद्रा ताडय २ र्यू फ्ल्यू २ पर २ प्रज्वल २ प्रज्वालय २ धम २ धूमान्धकारिणी रा २ प्रा २ क्लीह व २ नन्द्यावर्तमुद्रया त्रासय २ भ्यू शङ्खचक्र मुद्रया छिन्द २ भिन्द २ म्यू ग त्रिशूलमुद्रया छेदय २ भेदय २ म्यूघ मुशल मुद्रया ताडय २ पर विद्या छेदय २ परमन्त्र भेदय २ म्यू घम २ बन्धय २ मोचय २ हलमुद्रया बय २ व प कुरु २ वम् प्रा प्री मज्ज छमलवर्य् छा छूी छू छौ छ्रः मन्त्राणि छेदय छेदय । परसैन्यपर रक्षा क्षः क्ष क्षः हू ३ फट् । परसैन्य विध्वसय विध्वसय । मारय मारय दारय दारय । विदारय विदारय, गति स्तम्भ्य स्तम्भ्य म्यू भ्रा भ्री भ्रौ भ्र भ्र. श्रवय श्रवय श्रावय २ यम्यू य. प्रेषय २ प छेदय २ द्वेषय २ विद्वेषय २, स्म्ल्यू स्रौ स्रावय स्रावय मम रक्षा रक्ष रक्ष, परमन्त्र क्षोभय क्षोभय । छेद छेद छेदय २, भेद २, भेदय २ सर्वयन्त्र स्फोटय २ म २, म्यू भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र भ्रामय २, स्तम्भय २, दुखय २, खाय २ ब्ल्यू ब्राब्री ब्रू ब्रो ब्र फट् हा, ग्रीवा भजय २, मोहय २, म्यू त्रात्री त्र त्रौ त्र त्रासय २, नाशय २, क्षोभय २, सर्वाङ्ग क्षोभय २, चल चल, चालय २ भ्रम २, भ्रामय २, धूनय २, कम्पय २, कम्पय २, म्यू स्तम्भय २ गमन स्तम्भय २, सर्वभूत प्रमर्दय २, सर्वदिशि बन्धय २, सर्व विघ्नच्छेदय २, निकृन्तय २, सर्व दुष्टान निग्राहय २, सर्व यन्त्राणि स्फोटय २, सर्वशृङ्खलान् त्रोटय २, मोटय २, सर्वदुष्टानाकर्षय २, ह ्मम्ल्यू ह्रा ह्री ह्र ू ह्रौ ह्र शान्ति कुरु २, तुष्टि कुरु २, स्वस्तिक कुरु २, ॐ ह्रीं ह्रौ पद्मावती । श्रागच्छ २, सर्वभय मम ग्क्ष २, सर्वसिद्धि कुरु २, सर्वरोग नाशय २, किन्नरकिपुरुष गरुडगन्धर्व ८ कुष्माण्डिनी - डाकिनी बन्ध सरय २, सर्व शाकिनी मर्दय २, योगिनीगरण चूर्णय २, नृत्य २, गाय २, कल २, कल २, किलि २, हिलि २, मिलि २, सुलु २, मुलु २, कुलु २, कुरु २, अस्माकम वरदे | पद्मावति । हन २, दह २, पच २, सुदर्शनचक्रे ग छिन्द २, ह्री क्ली ह्री ह्रा ह्री ह्र भ्रू ब्रह्र ग्रो प्ली श्री त्रात्री ह्रा २ प्रा प्री २ प्रू २ पद्मावती धरणेद्र श्राज्ञापयति स्वाहा ।
ू
2
यह माला मन्त्र पाठान्तर पद्मावती उपासना की है जसकी प्रति ग्रहमदाबाद से छपी
ܘ
ܘ
2
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४५५
हुई है
विधि - इस मंत्र का बारह हजार जप करने से ये मंत्र सिद्ध होता है, ये मोहिनी विद्या है ।
मन्त्र :- ॐ क़ों ह्रो अजिताय श्रागच्छ हो स्वाहा । ॐ नमो जृंभे मोहे स्तंभे स्तंभिनी स्वाहा । ॐ नमो (भगवती ) गंगा देवी कालिका देवी श्राव्हाननः ॐ महामोहे स्वाहा ।
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४५६
लघविद्यानुवाद
श्लोक नं. ४ विधि नं. १ यंत्र नं. १
जम्भाय
चामुण्डाय
चण्डिकायै
नमः
नमः
।
कराल्य नमः
नमः
अजितायै
नसः
काल
अपराजितायै
नमः
4
-
सर्वसिद्धि कारक यंत्र
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लघुविद्यानुवाद
४५७
ॐ नमो चडिकायै योग वाही (योग) प्रवर्तय महामोहय योग मुखी योगीश्वरी (महायोगे) महामाये (चारू चारूणि) रूपिणी महा हरीहर भूत प्रिये स्व स्वार्थ नृणातिशय जिह्वाग्रे सर्व लोकाना वश्य २ कुरू २ दर्शय साधय स्वाहा । हस्ताकर्षणी नदीद्रह तडागे वा आकाशे चद्र मडलेवा खङ्ग दीप शिखाया या अगुष्ठे दर्पणे तथा स्वप्ने, खङ्ग तथा
देवी अवतीर्य शुभाशुभ (ये आकर्षणी विद्या है) १) मन्त्र :- ॐ नमो चंडिकाये योगं याहि २ स्वाहा । ॐ नमो चंडि वज्रपाणये महायक्ष
सेनाधिपतये वज्रकोपाय दृष्टोत्कट भैरदाय योगं याही २ स्वाहा । २
१卐 इस मन्त्र को हस्ताकर्षणी विद्या भी, नवाब साहब के यहाँ से छपा पद्मावति उपासना मे कहा है इन पाचो मन्त्रो का एक ही फल होता है । किसी झरने के किनारे अथवा नदी के तट पर बैठकर आकाश मे अथवा चन्द्रमडल मे देवी का ध्यान करके इस मन्त्र का जाप करने से मत्र सिद्ध होता है, इस मत्र का १०,००० जाप करने से सिद्ध होता है।
खड्गेदीपशिखायां वा अंगुष्ठे दर्पणे तथा ।
स्वप्ने खड्गे तथा देवी मवतार्य शुभाशुभं ।।
तलवार, दीपक की ज्योति, अगुठा अथवा अगुठे के ऊपर नाखून, दर्पण, निद्राधीन मनुष्य अथवा तलवार के ऊपर देवी का प्रथम कहे हुये चार मन्त्रो से आवाहन, पूजन करके फिर जो जानने की इच्छा हो उसकी इच्छा करना, उससे ज्ञान होता है, अथवा किसी व्यक्ति का आकर्पण करना हो तो उस तलवारादिक को दूसरे की दृष्टि मे पडे ऐसा रखकर इच्छित स्थान पर जाने से इच्छित व्यक्ति साधक के साथ मे मोहित होकर पीछे २ आ जायगा।
२) यह मत्र वशीकरण और आकर्षण के लिये श्रेष्ठ मत्र है एक हजार जाप्य करके दोनो हाथो से १०० पुष्पो से पूजा करना, मत्र सिद्ध हो जायगा।
अब शत्र को नाश करने के लिये मत्रो का प्रतिपादन आचार्य कर रहे है, इन मत्रो के प्रयोग उग्र होते है साधक सावधान रहे, बने जहाँ तक तो इन मत्रो का प्रयोग करे ही नही, कभी अत्यन्त आवश्यक कार्य पड गया है, जैसे चतुर्विध सघ के ऊपर महान उपद्रव ही हो रहा हो, और अन्य उपायो से हट नही रहा हो तो सज्जनो का रक्षण करने के लिये मत्र शास्त्रकारो ने यह विधि लिखी है, हमारा धर्म अहिसा प्रधान है, ध्यान रख। .
अत्र मारणे कर्मणि ब्राह्मण धार्मिक जनमिष्ट राजा, स्त्री, जन व्यक्तिरिक्त दष्टम्लेच्छादयो विषयाः। तत्रापि स्वरोषिते लोकानुग्रहाय वा मारणं कुर्यात । न तु द्रव्यादि लोभेन ॥
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४५८
विधि
लघुविद्यानुवाद
ॐ नमो अमृत कुंडली प्रभुकं याही २ ज्वल २ तृष्ण २ बंध २ भंज २ सर्व विघ्नौघ विनाशकाय महागणपती ++ + अमुकस्य जीव हराय स्वाहा ।
मन्त्र
शक्ते प्र ेपण मंत्र-ॐ नमो भगवतीः रक्त चामु डे मत्प्रजापाले कट २ श्राकर्णय २ ममोपरी चित्त भवेत फल, पुष्प, यस्य हस्ते ददामिस शीघ्र मागच्छ तु स्वाहा ।
- इस मंत्र का १००० जाप कर, फिर १०० पुष्पो से जप कर फल अथवा पुष्प को मंत्री करे । फिर जिसको दिया जाय वह शीघ्र ही वश्य होता है ।
करन्यांस मन्त्र — ॐ ठ ठ कराभ्या शोधनीय तर्जनागुलिना प्रत्येक सशोधन कार्य । तदनन्तर क्ष पादाभ्या स्वाहा । क्ष हृदये स्वाहा । क्षी शिरसि स्वाहा क्षू ज्वलित शिखायै वैपट् क्षा कवचाय वपट् हु क्ष बाहुभ्या स्वाहा । क्षै स्कचभ्या स्वाहा । क्षे नेत्राय वषट् क्षौ कर्णाय वपट् क्ष नेत्राय स्वाहा । क्ष प्रधाय स्वाहा । दशो दिशाओं से रक्षा करता है ।
मन्त्र
-- ॐ ह्री बाहुबली लंब बाहु क्षां क्षी क्षू क्षे क्षौ (उद्ध) क्षत्रुर्द्ध पूजां कुरू २ शुभाशुभं कथय स्वाहा ।
यह मन्त्र दस हजार जाप करने से सिद्ध होता है ।
-ॐ कट विकट कटे कटिधाररणी ठः ठः परिस्फुट वादिनी भंज २ मोहय २ स्तंभय २ वादी मुखं प्रतिवादि मुखं, शलय मुखं, प्रतिशल्य मुखं, कीलय २ पूरय २ भवेत + + + अमुकस्य जयं ।
विधि :- इस विद्या को कार्य पर जप करने से वादी का मुख स्तभित होता है और विजय प्राप्त होती है ।
काटे वाले वृक्ष के नीचे इस मन्त्र को ८००० जपने से यह मंत्र सिद्ध होता है और विजय प्राप्त होती है इसको कटकारी महाविद्या कहते है ।
(२) देवदत्त की मूर्ति का आकार बनावे, फिर छह दिशाओ मे को लिखे, विदिशाओं मे क्ली लिखे, फिर ऊपर ग्राठ कोठो मे क्रमश जूभे मोहे आदि लिखे, मोह विषत दष्टाग्रा ब्रह्माकार मास्थित । ॐ ब्ले धात्रै वपट् फट् वाह्य क्षिति मंडल टर्वा लाछण च चड कोणेपु लकार मालिख्य इन पक्तियो का अर्थ समझ मे नही आया है, इसलिये यन्त्र रचना नही की गयी है ।
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लघुविद्यानुवाद
४५६
विधि
-पाटे पर अथवा भोजपत्र पर यन्त्र लिखकर केशर पुष्पादि से पूजा करे, जो सदा इस यन्त्र की आराधना करता है उसके तीनो लोक अवश्य ही वश मे रहते है ।
____ मन्त्र :-ॐ ह्री क्ली जभे मोहे + + + अमुकं वश्यं कुरू २ । ॐ यं र र व र
स हा ह्रां प्रां को क्षी क्लीं ब्लू (हां ह्रीं) द्रां द्रों पद्ममालिनी ज्वल (प्रज्वेल) हन २ दह २ पच २ इदं भूतं निर्दय (निर्घाटय) धूम धूम्रांध कारिणी ज्वलनशिखे हूं फट् २ यः ३ त्रिमात्रां समि हितार्थान् हितां ज्वालामालिनी प्राज्ञापयति स्वाहा ।
विधि -इस मन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर पास में रखने से, सिर दर्द मिटता है, कपडा
मन्त्रीत कर प्रोढाने से भूत, ज्वर, ग्रह दोष, शाकिनी प्रभुती आदि का नाश होता है। मन्त्र :-ॐ नमो भगवती पषुपतये नमो २ अधिपतये नमो-रुद्राय ध्यंस २ खड्ग
रावण चलं २ विहर २ सर २ नृपे २ स्फोट्य २ श्मशान भस्मानां चित्त शरीराय घंटा कपाल मालाधराय व्यान चर्म परिधानाय शशांकित शेखराय कष्णं सर्प यज्ञोपविताय चल २ चलाचल २ अनिवृतिक पिपलिनी हन २ भूतं प्रतं त्रासय २ ह्रीं मंडलं मध्ये फट २ वश्यं कुरू २ अमुक नाम्न. (अस्य) प्रवेशय २ प्रावह प्रचंड धारासि देव (देवि) रुद्रो-यापेक्षय
महाविद्यारुद्रो आज्ञा पयति ठः ३ स्वाहा । भूत मंत्रः ।। विधि :- इस मन्त्र से ताडन करने से भूतादिक दोष शात होते है।
पहले के समान मन्त्र सिद्ध करके पानी मत्रित करके छाटने से भूत प्रेतादि शरीर मे पाकर इच्छित माग कर चले जायेगे, साधक इस मन्त्र से इच्छित कार्य सिद्धपण कर सकता है।
यन्त्र नं० ४ वृहत चतुर्थ काव्यस्य, प्रौ, बीज पोडशाक्षरै मन्त्र । ॐ ह्री भ्रा ह्री पो षोडश भुजे प्री ह. + नमः अनेन मन्त्रेन पूर्वादिग् मुख, रक्तासन रक्तमाला १०८ शत जाप्य कृत्वा स्थान लाभ भवति ।
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४६०
लघुविद्यानुवाद
श्लो. नं. ४ विधि नं. १ यंत्र नं. २
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अपराजिताया
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जयाय
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वशीकरण यंत्र यन्त्र रचना :--
षोडश दल कमल कृत्वा तन्मध्ये प्रों बीज लिखेत, दल मध्ये क्रमश ॐ ह्रीं भ्रां ह्रीं पढ़ें षोडश भुजे प्रौ ह्र ह्र नम एतत्मन्त्र लिखेत तदुपरी पूव क्षा क्षी शू क्षे क्ष , पश्चिमें भ्रा भ्री भ्र भ्र भ्र , दक्षिणे झा झी झ झ झ झ उत्तरे ह्रा ही ह ह ह्र लिखेत्, अय प्रकारेण यन्त्र कृत्वा । काव्य मन्त्र यन्त्र पार्श्व रक्षणात, राजा प्रसन्न भवति शत्रु लाशन भवती, स्त्री पुरुप वश भवती ॥४॥
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लघुविद्यानुवाद
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इस चतुर्थ काव्य के यन्त्र मन्त्र व काम को सुगधित द्रव्य से लिखे, भोजपत्र अथवा सोना, चादी; ताबा के ऊपर लिखकर पास में रखने से स्थान लाभ होता है । राजा प्रसन्न होता है। शत्र का नाश होता है और स्त्री पुरुष वश मे होते है। मन्त्र का १०८ बार जाप पूर्व दिशा मे मुख कर, लाल माला से, लाल आसन पर बैठकर जाप करे।
यंत्र नं. ४
भृगीकाली कराली परिजन सहिते चण्डि चामुण्डि नित्ये।
भ्रः
भे झाँ झीँ झ प्रचण्ड स्तुति शात मुखरे रक्षमा देविपद्मा।
भ भी भी
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क्षा क्षी -क्षाक्षी रक्षक्षणा क्षरिपु निबहे ही महा मन्त्र वश्य।
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संकट निवारक यंत्र
श्लोकार्थ मन्त्र विधि नं०३ १४) मन्त्र विधि :--श्लोक के अन्दर कहे हुए मन्त्रो का उद्धार करते है प्रथम, यहां तीन देवि
जिसमे पहली भृगी नाम की देवि, उसकी चडी सखी है, इन्होने मन्त्र के रूप को धारण किया है, उसका वर्णन करते है।
ॐ ह्री भृगी क्षा, ॐ ह्री भृगी क्षी, ॐ ह्रीं भृगी शू, ॐ ह्री भृगी क्षः।
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लघुविद्यानुवाद
विधि .-यह चार अक्षर वाला मन्त्र अमावश्या तिथि शनिवार हो अथवा ग्रहण के दिन
करे, पद्मासन लगाकर, रूद्राक्ष की माला से जाप्य करे तो साक्षात वैरियो अथवा गधे के दॉत की माला से तीन दिन मे दस हजार जाप्य करे तो वैरी कुटुम्ब सहित। दूसरी काली नामा देवि चामुडा सखी से सहित उसने मन्त्र रूप धारण किया उस कहते है। ॐ ह्रीं काली भ्रां, ॐ ह्री काली भ्रीं, ॐ ह्री काली भ्रू, ॐ ह्री काली भ्रः
यह चार अक्षर का मन्त्र है। विधि -एक महिने तक केशो की माला बनाकर स्मरण करे तो दैत्य प्रसन्न होते है, अर्द्ध रात्रि
२१ बार स्मरण करने से साक्षात स्वप्न मे दर्शन देते है। तीसरी कराली नामा देवि नित्या नदी सखी से सहित इन्होने मन्त्र के रूप को व ९ किया है उस मन्त्र को कहते है। ॐ ह्री कराली ह्रां ॐ ह्रीं कराली ही ॐ ह्री कराली ह. ॐ ।। कराली ह्रः। -इस मन्त्र को तीन दिन की रात्रि मे २१ हजार मूगा की माला से, पद्मासन लाकर निश्चल ध्यान करे तो कगली नाम की देवी सरस्वती का रूप धारण कर साधक के मुह मे प्रवेश करे, उसको वाग्वादिनि सिद्धि हो जाती है। चंचत्कांची कलापे, स्तनतन विलुठत्तार, हारावलोके ।। प्रोत्फुल्ल पारिजात, द्रमकुसुममहा, मंजरी पूज्यपादे ॥ ह्रां ह्रीं क्ली ब्लू समेते, भुवनवशकरी, क्षोभिणी द्रावणी त्वं ॥
श्रां ई ॐ पद्महस्ते, कुरु कुरु घटने, रक्ष मां देवि पद्म ॥५॥ व्याख्या -रक्ष पालय क मा स्तुतिकर्तार, कीदशे । चचत्काचीकलापे, चचत् देदीप्यमानः काच्या
कलाप काची कलापो मेखला यस्या सा तस्या सवोधन । चचत्काचीकलापे । पुनरोप कीदृशे, स्तनतनविलुठत्तारहारावलीके स्तनतने विलुठति तारा समुज्ज्वला हारावली मुक्तावती पक्तिर्यस्यासा तस्या सबोधन, स्तनतन० हारावलीके । पुनरपि कीदृशे । प्रोत्फुल्लपारिजातः द्रुमकुसुम महामजरी पूज्यपादे | प्रोत्फुल्लद्भि विकसद्भि पारिजात-द्रमाणा देवतरुणा व परिजात नामधेयकल्पवृक्षाणा कुसुमै पुष्पैरूपलक्षिताभि महामजरीभि पूज्या
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४६३
पादौ चरणौ यस्या सा तस्या सबधिन प्रोत्फुल्लपारि० पूज्यपादे ! पुनरपि कीदृशे ? भुवन वशकरी क्षोभिणी द्राविणी त्व । त्रलोक्यवश्यताधायिनो चालयती अग मोहयती द्रावयती तपयंती। पुनरपि कीदृशे ! ह्री' ही क्ली ब्लू समेते-ह्रा च ह्री च क्ली च ब्लू च यत्ते तानि तैः ह्रा ह्री क्ली ब्लू समेन. एतावत्येतानि बीजाक्षराणि भावना क्ला क्ली नाम गभितस्य लक्षकोणेषु रेफ स्वस्तिका ज्वाला दातव्या। बहिः षोडश स्वरैः वेष्टनीय बहिरष्ट दलेषु कामिनी रजिनी स्वाहा । ॐ ह्री आ कौ क्षी ही क्ली ब्ल द्रा द्री देवदत्ताभग द्रावय २ मम वश्य मानय २ पद्मावती आज्ञापयति स्वाहा। अस्य वामपादपाशु गृहीत्वा पुष्प वामकरे मासेन दक्षिणे निजकरे लिखेत् । तस्य वामकर पीडयेत् करनिभवती । अधुनाॐ चले चलचित्त चपले मातंगी रेतं मुच मुच स्वाहा ॥ ॐ नमो कामदेवाय महानुभावाय कामसिरि असुरि स्वाहा ।। अनेन मन्त्रोणाभिमन्त्र्य ताबूल, दन्तकाष्ठ, पुष्प, फल वार २१ परिजाप्ययस्य दीयते स वश्यो भवति । अनेन मन्त्रेण रक्त करणवीर अष्टोत्तरशत अभिमन्त्र्य स्त्रियाग्रतो श्रामयेत् सा क्षरति । ॐ नमो भगमल्लिनी भगावहे चल २ सर २ ।। अनेन मन्त्रेण ७ वारानभि मन्त्र्य हस्त भगस्योपरि दद्यात् सा क्षरति प्रवासे ।। ८ सहस्राणि जपेत् य तद्दशाशेनाशोककुसुमैः होम । पुन कीदृशे । आ इ उ पद्महस्ते अच इ च उ च ते तथोक्तामिति बीजाक्षराणि । भावनाहहुकार नामगभितस्य बाह्य ककार दातव्य । बाह्य षोडश स्वरारिण वेष्टय, बाह्य षोडश दलेषु ॐ क्षा गैइ वा रे आ खा ला वा उ छो मां जी सी मासलिख्य दलान उ रा पूरयेत् ।
माया बीज त्रिगुणी वेष्ट्य बहि जगद्वयमस्तके ग्रथ हृदये 'इ , वा' सलिख्य । एतद्यन्त्र कु कुमादि सुगन्ध द्रव्यभूर्ये सलिख्य वाही धारणीय सर्वभय रक्षा भवति । पद्मसदृशौ हस्तौ यस्या सा तस्या सबोधन पद्म हस्ते कमलपाणे कुरू २ ल फलक । सर्वप सुगम विष । तत्त्व सार विषय प्रतिपाद्य अधुना विषहरण सौभाग्य अपुत्राण पुत्रजनन सस्तवक मन्त्रमाह ।
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लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं. ४ के यन्त्र मन्त्र
( १ ) क्ला क्ली के अन्दर देवदत्त गर्भित करके, लक्ष कोण मे रेफ स्वस्तिक ज्वाला वाहर सोलह स्वर वेष्टित करे, ऊपर ग्रष्ट दल का कमल बनावे, उस कमल के दला कामिनी रजनी स्वाहा लिखे ।
मन्त्र :- ॐ ह्रीं श्रां क्रौ क्षीं क्ली ब्लूं द्रां द्रीं देवदत्ता भगं द्रावय २ वश्य मानय पद्मावती श्राज्ञापयति स्वाहा ।
जिसके वाम पाव की धूलि को ग्रहण करके पुष्प को वाम हाथ मे श्रोर दक्षिण मे ( करे लिखेत) उसके वाम हाथ को दव दे तो १५ इस मन्त्र से लाल कनेर के फूलो १०८ बार मन्त्रीत करके स्त्री के आगे फेकने से द्रवित होती है ।
ॐ चले चलचित्तं चपले मातंगीरेतो मुंच मंच स्वाहा । २
ॐ नमो काम देवाय महानुभावाय कामसिरि असुरी २ स्वाहा ।
विधि :- इस मन्त्र से ताबुल अथवा दातुन अथवा पुष्प अथवा फल को २१ बार मन्त्रीत करके जिसको दिया जाये वह वश्य मे हो जाता है । इस मन्त्र से लाल कनेर को १०८ बार मन्त्रीत करके स्त्रियो के आगे ( श्रामयेत ) फेके वह शरण को प्राप्त होती है ।
१ स्वय के सीधे हाथ मे यन्त्र लिखो, फिर स्त्री के दाया पाव की धूलि लेकर उसके ऊपर दाया हाथ मे रखे पुष्प को सीधे हाथ से मसलते हुए, उसका रस अथवा मसली हुई पाखडियो को उस धूल के ऊपर डालना, मन मे नीचे लिखे मन्त्र का जाप्य करना, इससे मदोन्मत्त ' हुई, स्वय की स्त्री वश में होती है । यन्त्र न० १ देखे ।
इस यन्त्र को केशर आदि शुद्ध सुगन्धित द्रव्यो से भोज पत्र के उपर लिखकर, उसमे पद्मावती की पूजा करके नीचे लिखे मन्त्र का जाप्य करना, इससे स्वय की मदोन्मत्त स्त्री भी वश मे हो जाती है और जल्दी ही द्रवित हो जाती है, श्राज्ञाकारिणी हो जाती । यन्त्र न० २ देखे ।
२ इस मन्त्र से करणेर के फूलो को अभिमन्त्रीत करके पुरुष के श्रागे फेकने से पुरुष स्खलित हो जाता है ।
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लघुविद्यानुवाद
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श्लोक नं. ५ विधि नं० १ यंत्र नं. १
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स्त्री वशीकरण व द्रावरण यंत्र
मन्त्र --ॐ नमो भगमाल्लिनी भगावहे चल २ सर । विधि ... इस मन्त्र से हाथ को ७ बार मन्त्रीत करके स्त्री के भग पर रखे तो वह शरण को प्राप्त
होती है। प्रवास मे ८०,००० हजार जप करे । अशोक के फूलो से दशॉस होरर करे। फिर कैसर है
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यन्त्र लेखन विधि
लघुविद्यानुवाद
काव्य न. ५ वृहत
षोडशदल कमल कृत्वा, तन्मध्ये, क्ली बीज दलेपु ॐ ह्री श्री ह, स् क्ली त्रिभुवन वस्य कराय ही नम. एतन्मत्र लिखेत् तदुपरी द्रा द्रो द्र् द्र े द्र एतत्पच वर्णे पूर्वे लिखेत् । क्ली ब्लू क्ली ब्लू क्ली उत्तरे लिखेत् श्राइ आ इ ग्रा दक्षिण लिखेत्, ॐ ॐ ॐ रक्ष पश्चिमोलिखेत्, अनेन प्रकारेन यन्त्र कृत्वा, नाना प्रकारे पुष्पे प्रष्ट द्रव्ये पूजन कार्यं ।
फल
-- क्ली बीज षोढसाक्षरै मन्त्र । ॐ ह्री श्री ह स्क्ली त्रिभुवन वश्य कराय ही स्वाहा । अनेन मन्त्रेण उत्तराभि मुख कृत्वा, कमल बीजस्य मालास्तु कमलासन कृत्वा शुद्ध वस्त्र तुजाप्य द्वादश सहस्ररेण १२००० जाप्य कृत्वा, सर्वजन प्रीतिर्भवति, राजसभा सर्वजन वश्य भाग्य सर्व लक्ष्मी लाभो भवति यन्त्र मन्त्र काव्य प्रभावात्सुख भवति ।
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर लिखकर अथवा सोने चादी वा ताँबे के पत्रे पर लिखकर मन्त्र का १२००० जाप करे। उत्तर की तरफ मुख करे, कमल बीज की माला और कमलासन शुद्ध वस्त्र से, मन स्थिर करके, जाप करने से और यन्त्र की पुष्पो से और प्रष्ट द्रव्य से पूजा करने से सर्वजनप्रिय होता है । राजसभा मे सर्वजन वश्य होते है । भाग्य खुलता है । लक्ष्मी का लाभ होता है । जपने वाला मन्त्र - ॐ श्री ह्री ह स् क्ली त्रिभुवन वश्य कराय ही स्वाहा ||५||
श्लोकार्थ नं० ३ की विधि
( ५ ) अर्थ की मन्त्र विधि -- इस ५वे श्लोक जाप्य करने से वशीकरण मन्त्र इस प्रकार है-ॐ ह्रीं श्रीं द्रां ॐ ह्रीं क्रों द्री ॐ ह्री ऐ क्ली ॐ ह्रीं ॐ ब्लों ।
यह इसका मन्त्र है, मन्त्र को १२ ॥ हजार जाप्य मूगा की माला से करने पर वशीकरण ! पॉच नः के श्लोक का पाठ करने से भी वही कार्य होता है ।
लीला व्यालोलं नीलोत्पलदलनयने, प्रज्वलद्वाडवाग्नित्रुट्यज्ज्वाला स्फुलिंगस्फुरद रुरकरोदग्रवज्राग्रहस्ते ॥ ह्रां ह्रीं ह्र. ह्रौ हरंती हर हर ह ह ॐ कार भीमकोरे पद्मे, पद्मासनस्थे व्यपनय दुरितं देवि ! देवेद्रवंद्य ||६||
व्याख्या ‘--व्यपनय—स्फोटय । कि ? तत् दुरित विघ्न कीदृशे - लीला - व्यालोलनीलोत्पलदलनयने । लीलया व्यालोल नीलोत्पलस्य दल लीलाव्यालोल च तत् नीलोत्पलदल च लीला
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लघुविद्यानुवाद
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व्यालोल०---तत् सदृशे नेत्रो यस्या सा तत्सवोधन-लीला० नीलोत्पलदलनयने | क्रोडाशोभमानेन्दीवर नयने । पुन कोदशे प्रज्वलद्वाडवाग्नि, त्रुटयज्ज्वालास्फुलिग स्फ़रदरुणकरोदग्रवज्राग्रहस्ते। वाडवस्य अग्नि वाडवाग्निः प्रज्वलच्चासौ वाडवाग्निश्च प्रज्वलद्वाडवाग्निः त्रुटयती चासौ ज्वाला च त्रुट्यज्ज्वाला प्रज्वलद्वाडवाग्ने प्रज्वलद्वाडवाग्नि त्रुटयज्ज्वाला तस्या. स्फुलिगाः। तेषा स्फुरतश्च ते अरुणकराश्च तैरुदन प्रचड यद्वज्र तदन हस्ते यस्या सा प्रज्वलद्वाडवाग्नि । त्रुटयज्ज्वालास्फुलिगम्फुरदरुणकरोदनवज्रागहस्ता, तस्या सबोधन-प्रज्वल० वज्राग्रहस्ते । जाज्वल्यमानबाडवज्वलत् व्यालाकलाप समान शतकोटि विभूपित हस्ताग्रे ॥ पुनरपि कीदृशे-"ह्रा ह्री ह ह्री हरती हर हर ह ह ॐ कार भीमैकनादे ।" ह्रा च ह्री च ह च ह्रौ च हरती हर हर हह ॐ कारास्तैीमो भीषणम् । ‘एकोऽद्वितीयो नादो यस्या सा तस्या सवोधन-ह्रा ह्री ह. ह्रौ भीमैकनादे ।। सर्वारिण एतान्यक्षराणि मालामन्त्रयन्त्राणि सूचयति । लीला व्याला.
वाडवाग्निः । त्रुटयज्ज्वालावज्राग्रहस्ते हा ह्री भीमकनादे यद्यथा.१. ॐ नमो भगवती, अवलोकित पद्मिनी, ह्रां ह्री ह हः वरागिनी,
चितित पदार्थ साधनी, दुष्टलोकोच्चाटनी, सर्वभूतवश्यकरी, ॐ क्रौं ह्रीं पद्मावती स्वाहा । ॐ नमो भगवती पद्मावती सप्त-स्फुट विभूपिता, चतुर्दशदप्ट्राकराला व. नर २ रम २ फुर २ एकाहिक, द्वयहिक, त्र्यहिक, चतुर्थ्यहिक ज्वर चातुर्मासिक ज्वर, अर्घमासिक ज्वर, सवत्सर ज्वरं, पिशाचज्वर, मूर्तज्वर, सर्वज्वर, विषमज्वर, प्रेतज्वर, भूतज्वर, गृहज्वरं, राक्षसज्वर, महाज्वर, रेवतोग्रह ज्वर, दुर्गाग्रह ज्वर, किकिरणोग्रह ज्वर, ग्रासह नाशय २ छेदय २ भेदय - हन • दह • पन २ क्षोभय २ पार्श्वचद्राय ज्ञापयति, मर्वभय रक्षिणी २।। विद्या - मन्त्र द्वयं एतदम्यस्यते, ज्वरनाशो भवति । हरंति, नाशयंति, अस्य भावना । ऐ ह्रीं क्लीं ब्लू प्रां को श्री प्ली म्ले ग्लें सर्वाग सुदरी क्षोभि २ क्षोभय २ सर्वाग त्राशय हूं फट् स्वाहा । एपा विद्या निरंतर घ्यायमाना दुाट गंग नागहादरनि माया । मायादी नामगभितस्य वहिनतुटलेप पाश्यनाथ मनिय
वारयहि. हि: ( है है हो हो ह ह. दहि. ककारादि र पचना मामा मदिर! यमुना
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लघुविद्यानुवाद
दातव्या। एतद्यन्त्र कु कम गोरोचनया भूर्ये सलिख्य कुमारी सूत्रेण वेष्टय । निजभुजे धारयेत् । य पुरुष. स. स्वजनवल्लभो भवति । श्रीमान्अपुत्रो लभते पुत्रं निदवो जीवितप्रजाः । यंत्रधारणमात्रेण दुर्भगा सुभगा भवेत् ॥१॥ प्रभवंति विषं न सूतं सनिहांती चेटिकाश्चभूताश्च । संस्मरणादस्य स्तुत्यां पारमार्यविनाशमुपयांति ॥२॥
द्वितीय--हुकार नामभितस्य बहि क्षकार वेष्ट्य । बहि पोडशदलेषु स्वरा. दातव्या.। बाह्य षोडशदलेषु--"ऐ ह्रा ह्री द्रा द्री वली क्ष 'लु प्ली ह्रा ह्रौ ह्र ह्री ह्रठठ ।"-आलिस्य बाह्यदलाने ॐ कार ह्री कार दातव्य ।
एतद्यन्त्र कु कुमगोरोचनया भूर्यपत्रे सलिख्य कुमारीकर्तितसूत्रेण वेष्टय मुच्यते । भीमैकघोरे प्रतीतनादप्रल्हादे । कीदृशे-पळे, पद्मावती देविइति सवध. । पुनरपि कीदृशे । देवेद्रवद्ये । देवताना इन्द्रा । देवेद्रास्तैर्बद्या वन्दनीया देवेन्द्रवद्यास्तस्या सबोधन देवेन्द्रवद्ये ॥६॥
श्लोक नं. ६ का अर्थ (६) लीला से सहित चसल नीलकमल के समान नेत्र वाली, बडवानल की अग्नि के समान
लाल रंग के समान भयकर वज्र को हाथ मे धारण करने वाली, ह्रा ह्री ह्र ह्र, इन चार अक्षर वाले बीज मत्र से जगत प्राणि मात्र का भयकर उपसर्ग दूर करने वाली (नाश) कमल के आसन पर विराजमान देवेन्द्रो से वन्दित हे पद्मावति देवि मेरी रक्षा करो ॥६॥
श्लोक नं. ६ के यन्त्र मन्त्र मन्त्र :-ॐ नमो भगवती, अवलोकित पद्मिनी ह्रां ह्र ही हहः वरागिनी
चितित पदार्थ साधनी दुष्ट लोकोच्चाटनी सर्वभूत वश्यं करी, ॐ को ही पद्मावती स्वाहा। ॐ नमो भगवती पद्मावती सप्तस्पट विभषिता, चतुर्दश दष्टा कराला (च) नरः २ रमः २ फुरः २ एकाहिक, द्वयहिक, · त्र्यहिक, चतुर्थ्यहिकं ज्वर, चातुर्मासिकं ज्वरं, अर्द्ध मासिकं ज्वरं, संवत्सरं ज्वरं, पिशाच ज्वरं, मूर्त ज्वर, सर्व ज्वरं, विषम ज्वरं, प्रतज्वरं, भूत ज्वरं, ग्रह ज्वरं, राक्षसग्रह ज्वर, महा
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लघुविद्यानुवाद
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ज्वरं, रेवतो ग्रहज्वरं, दुर्गाग्रह ज्वरं, किकिरणो ग्रह ज्वरं त्रासय त्रासय नासय नासय छेदय २ भेदय २ हन २ दह २ पच २ क्षोभय २ पार्श्वचंद्रायज्ञापयति
सर्वभय रक्षिणी ।।२।। विधि ---इस मत्र को पढने से सर्व प्रकार के ज्वर का नाश होता है। हरण होता है। दोनो
मत्रो को पढना चाहिये । १ मन्त्र :-ऐ ह्रीं क्लीं ब्लू ां को श्रीं क्लों म्लों ग्लें सर्वाग सुदरी क्षोभी २
क्षोभय २ सर्वाग त्रासय २ हुं फट् स्वाहा ।
इस विद्या का नित्य ही स्मरण करने से दुष्ट रोगो का नाश होता है। (१) ह्री कार मे देवदत्त गभित करके, ऊपर चार दलो का कमल वनावे, उन चारो दलो मे
क्रमश. पार्श्वनाथ लिखे, ऊपर एक वलय मे हर २ लिखे, फिर ऊपर एक वलय और बनावे, उस वलय मे ह हा हि ही हु हु हे है हो हो ह ह लिखे ऊपर एक वलय और बनावे उस वलय मे क ख ग घ ड इत्यादि क्ष कार प्रर्यत लिखे, ऊपर भुजग पद लिखना। देखे
यन्त्र न० १ विधि :-इस यन्त्र को केशर गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर, कन्या के हाथ से कता हवा सूत्र से
वेष्टीत करके, अपने हाथ मे धारण करे तो वह पुरुष स्वजन वल्लभा होता है। जिसको पुत्र नही वह पुत्र प्राप्त कर सकता है। निर्धनो को धन प्राप्त होता है। यन्त्र के धारण मात्र से हा दुर्भगा, सुभगा होता है। विप का असर नही होता है। भूत, प्रेत पिटक, आदि कभी भी असर नही करता है। स्मरण मात्र से नाना प्रकार के पाप नष्ट होता है।
१
मंत्र पाठान्तर :- ॐ नमो भगवति पद्मावति सप्तफरणाविभूषिता चतुर्दश दंष्ट्राकराला च नर २ रम २ फुरू २ एकाहिक, द्वयाहिक, व्याहिकं चाथिक ज्वरं, अर्थज्वरं, भूतज्वरं, मासिकं, संवत्स रज्वरं, पिशाचज्वरं, वेलाज्वरं, मूर्तज्वरं. सर्वज्वरं, विषमज्वरं, प्रतज्वरं, भूतज्वरं, ग्रहज्वरं, राक्षसग्रहज्वरं, महाज्वरं, रेवतीज्वरं, ग्रहज्वरं, दुर्गाग्रहज्वर, किङ्किणीग्रहज्वरं, त्रासय २ नाशय २ छेदय २ भेदय २ हन २ दह २ पच २ क्षोभय २ पार्श्वचन्द्र प्राज्ञापयति । ॐ ह्री ही पद्मावति पागच्छ २ ही है स्वाहा । इन दो मन्त्रो को सिद्ध करने से सर्व प्रकार का ज्वर उतार सकते है।
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लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं० ६ विधि नं० १ यंत्र नं १
ॐथर
कबभम
न्द्राय
वजन
धरणद्राथ Tण तथा
सहर हर
हार
मयरल
नमः
वायनमः ॐ
उडद
लव शप
दवदत्त
ढिरहर
हो
SakeBOX
माणन्ना
धरण
रहर हो
REE१५ S-202
रहार
रह
१०
88
भूत प्रेतादि नाशक, पुत्रादि सौभाग्यप्रद महायंत्रं (२) हकार मे देवदत्त गभित करके बाहर क्ष कार वेष्टित करै, ऊपर सोलह दलों वाली कमल
बनावे, उन सोलह दलो में सोलह स्वर लिखे. ऊपर सोलह दलों का एक और कमल बनावे, उनमे क्रमशः ऐ ह्रा ह्रीं द्रा द्री क्लीं क्ष. प्लुप्ली ह्रा ही ह्र हो हठ छ'
लिखकर बाहर ॐकार और ह्रींकार लिखना चाहिये। विधि --इस यन्त्र को केशर गोरोचन से भोजपत्र पर लिखकर कन्या के हाथ से कता हुवा सूत्र
से वेष्टित करके धारण करे। इससे सर्प का विष उतर जाता है, शरीर दाह कम हो जायेगा, भूत, प्रेत पीड़ा भी दूर हो जाती है।
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लघुविद्यानुवाद
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श्लोक नं० ६ विधि नं० १ यन्त्र नं० २
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Sen TERATE
विषहर भूतादि पीड़ा शामक यंत्र
काव्य नं. ६ वहत यन्त्र रचना विधि --
एकोण विशति दलै कमल कृत्वा, तन्मध्ये प्लौ वीज लिखेत दले अष्टादशाक्षरे मन्त्र लिखेत । ॐ नमो पद्मावती सर्व कामना सिद्धि ह्रा ही नम लिखत तदुपरी ह्रा ह्री हो ह्र हर हर हु आ को नम , एतन अक्षराणा यन्त्र वप्टयेत् प्रष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा मन्त्र जाप्य कुर्यात । --पष्टम काव्यस्य प्लौ बीज अष्टादशक्षर मन्त्र. अनेन मन्त्र काव्य यन्त्र प्रभावेन विद्यासिद्धोर्भवनि, सर्प विष, शत्र भय नाशन भवति, अनेन मन्त्रेन पूर्वाभिमुख कृत्वा तथा रक्त माला, रक्तासन अष्टोत्तर सत् जाप्य कुर्यात्विद्यासिद्धिर्भवति ।
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४७४
लघुविद्यानुवाद
इस यन्त्र को भोजपत्र पर अथवा सोना चादी, ताबे के पत्रे के ऊपर लिखकर सुगन्धित द्रव्य से लिखकर अष्ट द्रव्यो से पूजा करे। १०८ वार मत्र का जाप करे । तो विद्या सिद्ध होती है। सर्व विष, शत्रु भय नाश होता है। मत्र पूर्व दिशा मे मुखकर, लाल आसन पर बैठकर लाल माला से जाप करे । जाप का मत्र--ॐ नमो पद्मावती सर्व कामना सिद्धि ह्रा ह्री नमः।
यन्त्र नं०६
बाmarnama
कलाप्यालोलोत्पल दल नरनिरालद्वाहवानि।
ह
पोपमासनस्यव्यय नय बुरित रक्षमादेवितेवेन्द्रबंदे।
आँ क्रीन
मादिहा
उपमालास्फुलिग स्फुरूवल्ण करूदग्रवज्रांग हस्ते ।।
-
न
मEिD
Melet122221
भय निवारक यंत्र
स्तोत्र
श्लोकार्थ नं. ३ मन्त्र विधि (६) इस श्लोक पाठ से सब प्रकार की हत्या के अपराध दूर होते है । मन्त्रोद्धार -ॐ ह्रां ह्री ह ह्रः हर २ हः हः ठः ठः ।
इस मत्र को एकाग्रचित होकर स्मरण करने से सब प्रकार के उपसर्ग दूर होते है। इदानी शातिक पौष्टिक तुष्टिक यत्र विषहर यत्र मत्र सप्रपचमाह--
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लघुविद्यानुवाद
कोपं बंड सहसः कुवलय कालितोद्दामलीता प्रबंधे
ज्वां ज्वों ज्वः पक्षिबीजंः राशिकरधत्रले प्रक्षरत्क्षीरगौरे || व्यालव्याबद्धजूटे, प्रबलनलमहा, कालकूटं हरंती
हा हा हुंकारनादे, कृतकर मुकुलं, रक्ष मां देवि पद्मे ||७||
४७५
तत्राब्जपयस्य भावना |
व्याख्या -- रक्ष । पालय । क मा कासौ कर्त्री पद्मावती देवी कीदृशा कृतकर मुकुल विहितपारिण कमलमीलन, विहितकरकुड्गल । कोदृश कोप वड सहस । कोप च, बडच कोपवड | सह हसेन वर्तते य – सहस | ॐ कोप वड हस वसह मन्त्र । ॐ क्षा साहू ज्वी स्वी ह स त्रक्रमुद्रा प्र पु जात । पुन कथभूते । कुवलयकलितोद्दामलीलाप्रबधे । कुवलय अथवा कुवलयै नीलोत्पलै कलित स्वीकृत उद्दाम स्फारोलीला - प्रबध. क्रीडासमूहो यस्या सा तस्या सबोधन, कुवलयलीला प्रबधे । तस्य मन्त्र - ॐ कुवल हस कुसुम मन्त्र पुनरपि कथभूते । शशिकरघवले । शशिन करा शशिकरा तद्वत्धवला तस्या सबोधनम् - शशिक रघवले । कै कृत्वा ज्वा ज्वी ज्व पक्षिवीजं कृत्वा ज्वा च ज्वी च ज्व पीक्षवीज । अस्य पदस्य उपलक्षणत्वात् चक्र - सूचयति । तद्यथा-- लव हु पक्षिना नामगभितस्य वेष्टय बहि पोडशदलमध्ये- अकार पर्यंतानि सलिख्य बहि वकार वेष्ट्य, बहि द्वादशदपु --ह हा हि ही हुहू है है हो हाँ ह हः
हि हकारद्वयसपुटस्थ बहि इवी क्ष्वी ह स वेष्टयेत् पुन तद्वाह्यं एकारद्वय सपुटस्थम्पुनर्मायाबीज त्रिगुण वेष्टय मन्त्रमिद एतद्वक्ष्यमाण यन्त्र द्वय पूर्वोक्त स्यात् चव यत्रस्य - तद्यथा - का खागा घा चा छा ज्वी ज्वी नम । गरुध्वरणजो नाममंत्र । कर जाप सहस्त्ररण सिद्धिर्भवति । क्षिप ऊ स्वारा। जी एक प्रभिमत्रयेत् वारि पश्चात्तु पातव्य, अजीर्ण विष नाशयति । हा हि ही हु है है हो हो ह ह अनेन मत्रेणोदक ग्रभिमत्र्य श्रोत्राणि ताडयेत् चियेत् - निर्विशे भवति । ज च ज्व पक्षि वा स्वी ह स मत्रमाराध्ये श्वेतपुष्पैर्वा श्रीराडादिभि सुगघद्रव्ये शरावसपुटे लिख्य जाति पुष्टि - भवति । एत जलपूर्णघटे प्रतिपेत् । शीतज्वर वातज्वर नाशयति पीडा निवारय सर्व रोगा न प्रभवति । दृष्टप्रत । पमिदन् । -- नरपि कीदृशे - प्रक्षरत्क्षं रगोरे, प्रक्षरत् च तद् क्षीर व प्रक्षोर तद्वद् गौराः क्षर नोरगं रा तया सगोधन तद् राप्रक्षरत्क्षीरगीरा तस्या: सबोधन, प्रक्षरत्क्षोरगारे | 1 प्रक्षरत् दुग्धपाडुरे ॐ कारै त्रिक्रकारें हंसः प्रमृत स्वाहा । सर्वविषत्यजन सन्त्रः- - पुनरपि
सॐ कोपं पडं हस टः ठः ठ कीदृशे - व्यालव्या पद्धजूटे । ददसू
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४,७६
लघुविद्यानुवाद
बद्ध मोड़के | '30 कुरु कुरु कुल्लेण उपरिमेरुवलि बिदु - विनु पडमन्त्र गरुडाहि व हा हस यक्ष मन्त्र | को पं व डं हंसः ॐ स्वाहा ।" हा हसः वृक्ष मन्त्रः । तथा कि कुवती । हरती । कं-प्रबल वनमहाकालकूट । - प्रबलं बल यस्यासौ प्रबलबलः प्रबलबलश्चासौ महाकाल कूटश्च प्रबलबल महाकाल कूटस्त प्रबल - कूट । पुनरपि कीदृशे । हा हा हुंकारनदे ! हा हा हुकारनादो यस्याः सा तस्याः सबोधन हा हा हुंकारनादे ! हा हा इति दैत्यनाशः हुकार शन परविद्याछेदः सूच्यते नादे हा महाकूट - इत्यस्य भावनामाह । "स स्वी क्ष्वी हंस. पक्षिय: प्रावय २ विष हर हर स्वाहा ।" डंकार वाम गर्भितं तकारे वेष्टय । पुनरपि बाह्य वलयाकार मन्ये षोडशस्वरैर्वेष्टव्य । वलयाकारब ह्य द्वादशदलेषु मध्ये - ह हा हि ही हु हु हे है हो हो ह हः दातव्य । वाह्य हकार सपुट दातव्य । तस्य बाह्य बलयाकार मध्ये वं ड ह सः पूरयेत् बकरद्वय सपुट ।
ॐ नमो भगवती पद्मावती स्वाहा । पक्षे हस विप हरय २ प्लावय २ विप हर २ स्वाहा । एतन्मत्र निरतर कर्णजापेन विप नाशयति । हकार नाम गभितस्य बाह्य ह स वार त्रय वेष्ट्य हा मस्तक हा अष्टागन्यास । तथा वाह्य हस हस -- वारत्रय लिख्य स्वकीय मंडल स्थाप्य यथा ॐ क्षी साह्र ज्वी क्षी ह्रौ ह स । विपहरण मंत्र । ॐ कार नाम गर्भित ॐ कार सपुटस्थ वज्राष्ट भिन्न वज्र - ॐ कार लिखेत् । वज्रपर्यंते लकार मालिखेत् । सर्वेषामपि । अथवा - ॐ कार नाम गर्भितो तस्य बाह्य ॐ कार द्वयसपुटस्थ तस्य वाह्य स्वरावेष्ट्य दिशि विदिशि वज्राष्ट भिन्न वज्रणे, ॐ कार मध्ये सकार सर्वत्र वज्रं पु द्रष्टव्य । एतद्यत्र शुभैद्रव्ये कसपात्रे दर्भाग्रेण यत्रमालिखेत् । यथा श्वेतपुष्टोत्तर शत प्रमाण जाप क्रियतेऽनेन परविद्या मन्त्र, यन्त्र, रक्षाछेदन कळेति । अधुना दार्वोक्त कसपात्रे नुगधद्रव्ये ! ॐकारनामगभितस्य तस्य वाह्यं षोडश तस्यैव स्वरावेष्टितस्य ब ह्य' ॐकार वेष्टय वहि ॐ कलिकु डाय स्वाहा । लिखेत् । यन्त्रस्य श्वेनपुष्वैरष्टोत्तर सहस्त्रप्रमाणेग्क्षतैर्बलि धूपदीपप्रभृतिभि गृहीतस्य पूर्वोक्त कमपात्रानीयेन प्रक्षालयेत् । तत् पानीय च भूतादिगृहीत रोगाकात चुलुक त्रिक पायेत् । सर्वग्रह रोग नियुक्तो भवति ।
-
श्लोकार्थ न. ७
( * ) जो ग्रष्टाक्षरी विद्यारूपी विकसित कमलो के सुन्दर ग्राभूषण धारण करने वाली, जो
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लघुविद्यानुवाद
४७७
उत्कृष्ट लीला को करने वाली है, जा जी न ज्र ये चार अक्षर के मत्रो से पवित्र है
और जो चन्द्रमा की किरण के समान उज्ज्वल तथा दूध की धारा के समान गौरवर्ण वाली, जिनकी जटा सर्प से बँधी हुई है, जो कालकूट विष को दूर करने वाली है, हा हा हु ऐसा शब्द करने वाली हाथ मे कमल को धारण करने वाली, हे देवि पद्मावती मेरी रक्षा करो ॥७॥
श्लोक नं. ७ के यन्त्र मन्त्र (१) ल व हु पक्षिना मे देवदत्त गर्भित करके वेष्टित करे फिर सोलह दल वाला कमल
बनावे, उन दलो मे क्रमश अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋलु लू ए ऐ ओ औ अ अ लिखकर बाहर व'कार से वेष्टित करे, फिर बारह दल का कमल बनावे। उन दलो मे क्रमश ह हा हि ही हु हू हे है हो हो ह ह बाहर लिखे । ह कार दोनों सपुट करे, बाहर झ्वी क्ष्वी ह स वेष्टित करे। फिर बाहर एकार द्वय सपुटस्थ करके मायावीज को त्रिगुणा वेष्टित करे। इस मन्त्र को कहा गया जो यन्त्र पूर्वोक्त है। उसी प्रकार का खा गा घा चा छा ज्वी ज्वी नम । १) इस मन्त्र को गरुड ध्वज मत्र कहते है । एक हजार जाप से मत्र सिद्ध होता है। लेकिन कर (हाथ) जाप्य करना चाहिये, माला वगैरह से नही ।।
१-ॐ कों प वं झं हं सः । २-ॐ क्षां स हूं ह्रीं स्वी स नौ हं सः। ३-ॐ कु कुवलय हं सः। ४-ॐ कों खों गां घां चां छां ह्रीं क्लीं नमः । ५-ॐ क्षिप ॐ स्वाहा । ६-ॐ ह हा हि ही ह ह हे है हो हो ह हः । ७-ॐ ऋबह्व : पक्षि वः स्वी। ८-ॐ को पं वं झं हं सः ठः स्वाहा । 8-ॐ कुरु २ कुलेण उपरि हाल विषउपडु मन्नु गरूडाहि हा हं सः पक्षि यः ३ को पं वं ह स ह स । ॐ स्वाहा हा हा हंसः पक्षि ।। ये सब गरूड मन्त्र है, इन सब मे पहला मन्त्र पद्मावती का ध्यान और पूजन करने का है, कितना ध्यान करना चाह्येि सो नही लिखा है, किन्तु इस प्रकार के मत्रो का १०८ वार सामान्यतया प्रतिदिन जप करना चाहिये, उसी प्रकार पाराधक शातिकर यन्त्र का ध्यान पूजन करना चाहिये। मत्र का दूसरी प्रकार से भी जप किया जाता है लेकिन चक्रमुद्रा से जप किया जाता है। तीसरे प्रकार से मत्र का जाप लाल कनेर के सुगन्धित फूलो से जाप करना है।
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लघुविद्यानुवाद
-
-
मन्त्र .-क्षिा, ॐ स्वाहा । विधि --इस मत्र को पढकर पानी मे मत्रीत करके पिलाने से अजीर्ण विष नाग होता है। मन्त्र -ह ह' हि ही हु हू हे है हो हो हं हः । विधि --इस मत्र से पानो मत्रीत करके उस पानी से कान को ताडन करे, तो मनुष्य निर्विष
होता है। मन्त्र -जच ज्वः पक्षि वां स्वी ह स । इस मन्त्र को आराधना करे । विधि -श्वेत अक्षत, श्वेत पुष्प से श्री खडादि सुगधित द्रव्यो से सरावसपुट मे लिखे तो शाति
पुष्टि नुष्टि होती है। इसको जल से भरे हुये घडे मे डालने से शीत ज्वर, वात ज्वर का नाश होता है। ग्रह
पीडा को निवारण करता है। सर्व रोग नही होता है अनुभूत है। मन्त्र :-ॐ विझकारे स र हंसः अमत ह स ॐ को पंव में हं स ठः ठः ठः
स्वाहा ।
इससे सर्व प्रकार का विप नाश होता है। (२) ड कार मे देवदत्त गभित करके त कार वेष्टित करे, फिर बाहर एक वलय बनावे, उम
वलय ने सोलह स्वर लिखे, फिर बारह दल के कमल मे क्रमश ह हा हि ही हु हू हे है हो हौ ह ह लिखे । बाहर ह कार सपुट देवे । उसके बाहर वलय कार मध्ये व, झ, ड, ह, स लिखे, व कार द्वय सपुट करे । २
विधि -अक्षत तथा सफेद पुष्पो से पूजन कर १०००० जाप इत्यादि सम्पूर्ण रोति से आराधना
करना फिर मत्र को दीप सपुट के अन्दर लिखकर, यत्र और मत्र दोनो लिखना, उस सपुट को पूजन मे रखना, उससे शाति, दृष्टि तुष्टि होगी स्वय के पूरुषार्य से देवी मन्द करती रहेगी, इस प्रकार इस मत्र को माराधना से आराधक को बहुत लाभ होता है । मन्त्र परोक्त ही जाप करना है। इस मन से मत्रीत परके पानी से भरा हया घडा मे यत्र डालकर, घर वाले व्यकि पिता से ठण्डी से प्राने बाला ज्वर अथवा उष्णता से आने वाला वर उत’ जाता है। इस नी के उपयोग से ज्वर पीडा, ग्रहपीडा तथा अनेक प्रकार के रोग दूर है। जाते है। उपरोक्त मत्र से काजल मयोत करके रोगी के आँख मे आजने गे रोग दूर होता है। जहरी। प्राणी से दिप का प्रभाव होने पर शीघ्र जहर दूर हो जाता है ।
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लघुविद्यानुवाद
४७६
मन्त्र :- ॐ सं स्वीं ( इवीं) क्ष्वों हंसः पक्षिपः प्लवय २ प्लावय २ विषहर हर
स्वाहा ।
विधि :-- इस यत्र की आराधना करते हुये मत्र को सिद्ध करना, फिर रोगी को कान मे फूक मारने से जहर उतर जाता है |
श्लोक न. ७ विधि नं १ यन्त्र नं १
दुवीं क्ष्वीं हंसः इ
सःइनक्वींस
इस पदवी डका प्रमादान
दुर्वीक्ष्वीं हंसः इवानी
ផ្ទះ
जब दुः
(पिसि देवदत्त क्षिप
राजन सर 56 गतयर घन फलस्थ
Nepales
DOOR
Stewartru
跨 心
क्रोँ
सर्व शांतिकर यत्र
वीएवी ते सः हवी हवी
हिमालहरु
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४८०
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र :-ॐ नमो भगवती पद्मावती (ॐ) स्वाहा । पक्षि हं सः विषं हरय २
प्लावय २ विषं हर २ स्वाहा । विधि --इस मन्त्र का निरतर कान मे जप करने से विप का नाश होता है। ___ यन्त्र -(३) ह कार मे देवदत्त गर्भित करके बाहर ह स तीन बार वेष्टित करे, हा मस्तक, हा
अष्टागन्यास करे तथा बाहर हस हस व र तीन बार लिखकर स्वकीय मण्डल में स्थापना करे। १)
श्लोक नं० ७ विधि नं० १ यन्त्र नं० २
BE
वसावं झहस्सा
विझहसः
Ca
हह
Di
साव झंडा
सावा
३
बझं हसः
PR
विषहर यंत्र
१
यत्र न ३ की विधि--यत्र और मत्र की आराधना कर जहर चढे हए व्यक्ति के कान में
फूक देने से,जहर उतर जाता है।
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'मन्त्र :
- ॐ क्षीं सां हृ ज्वीं क्षीं ह्रौ हं सः । ये विष हरण मन्त्र है ।
हा हा
हाहा हंसः हंसः
हंस
t
(४) ॐ कार मे देवदत्त गर्भित करके ॐ कार से संपुट करे । अष्ट वज्राकित करके ॐ कार लिखे । वज्र पर्यंत लकार को लिखे । सब जगह मे भी, और भी यत्र नं ५ ॐ कार मे देवदत्त गर्भित करके उसके बाहर ॐ कार द्वय सपुट, उसके बाहर मे स्वरो को लिखे, दिशा विदिशाओं मे वज्राष्ठिभिन वज्र के द्वारा, ॐ कार मे सर्वत्र स कार वज्र ही दिखना चाहिये ।
श्लोक नं० ७ विधि नं० १ यन्त्र नं० ३
हा हा हाहा
The he
लघुविद्यानुवाद
Ele हा हा
화
ज्वी हा हा
हाहा
हसः
हंसः
हसः
B
33
PB
इ.स. हसः
Jourey
(देवदत्त !. 拉拉
Sthef to the
हंसः
श्री
विषनाशक यंत्र
हा
'हाहा
B
B
13 13
हा
हो
हाहा
हा हा
४८ १
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४८२
लघुविद्यानुवाद
(४-५) को विधि :-इस यन्त्र को सुगधित द्रव्यो से कास्य पात्र मे दर्भाग्र से लिख । श्वेत पुष्पो से
अष्टोत्तर शत १०८ बार जप करने से, परविद्या मत्र यत्र से रक्षा होती है और उनका
छेदन करता है। अभिचार (मारण) कर्म नष्ट होता है। (६) ॐ कार मे देवदत्त गभित करे, फिर उसके बाहर सोलह स्वर लिखे, उसके बाहर ॐ कार
को वेष्टित करे, फिर बाहर ॐ कलि कु डाय स्वाहा लिखे । विधि :--इस यत्र को सुगधित द्रव्यो से कासे के पात्र मे लिखकर श्वेत पुष्पो से १०८ बार
जपे, श्वेत पुष्प अक्षत नैवेद्य धूप दीप आदि से यत्र की पूजा करे। फिर उस यत्र को पानी से धोकर, उस पानी को भूतादिक से गृहीत रोगाक्रात व्यक्ति को तीन अजुली प्रमाण पिलावे । सर्व ग्रह रोग से निर्मुक्त होता है ।
श्लोक नं० ७ विधि नं० १ यन्त्र नं. ४
* ॐ हूँ. ॐ
-
MPOEM
अभिचार नाशक यंत्र
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लघुविद्यानुवाद
४८३
श्लोक नं. ७ विधि नं० १ यन्त्र नं. ५
-
METANY
AL
4481
LEELADS
MAR
COM
अभिचार शामक यंत्रम्
काव्य नं० ७ वहत
यन्त्र रचना:
सप्तम काव्यस्य, कम्ल्यू बीज अष्टादशाक्षरै मंत्र, ॐ ह्रीं धरणेद्र पद्मावती विद्या सिद्धि क्ली श्री नमः । अनेन मत्रेण पूर्वदिग् तथा उत्तराभिमुख कृत्वा, मालासहस्र जाप्यं कृत्वा । बुद्धिप्रबलभवती सोभाग्यविस्थाण्य दलेषु अष्टाक्षरै। ॐ ह्री धरणेद्र पद्मावती विद्या सिद्धि क्ली श्री नमः लिखेत् तदुपरि पं च झ स हं सः इवां इवी झ्वी झ्वा प्रवल वल हां हां हूँ रक्ष रक्ष एतत् अक्षरेन वेष्टयत् ।
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४८४
लघुविद्यानुवाद
फल -यत्र रचना सात, यत्र अष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा काव्य यत्र मत्र प्रभावात् राज कोप
रोगादि भय व्यतरादि दोष, उच्चाटनादि भय नष्ट भवति बदि मोक्ष बल पराक्रमस्य वृद्धि भवति ।
इस यन्त्र के प्रभाव से राज्य का कोप मिटे । रोगादि भय नष्ट होय, व्यतरादि दोप का ___ और उच्चाटनादि दोष का भय दूर हो । बदिखाना से छुटे । बल पराक्रम की वृद्धि होय। इस यन्त्र को सुगन्धित वस्तुग्रो से लिखकर अष्ट द्रव्यो से पूजा करे।
श्लोक नं० ७ विधि नं० १ यन्त्र नं०६
कलि कुण्ड
स्वाहा
Kॐ ॐ
ई
देवदत्त
हाऊकलि का
RANI
TRAVBHARAT
सर्वग्रह रोग मोचक यंत्रम्
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लघुविद्यानुवाद
४८५
यन्त्र नं०७
पंचभंसहस.कुवलयकलितो घामलीला प्रबंध्ये.! पंचमं स
मःॐ
हाहा हूंकार नादे कृतकरकमले स्त्रमाँ देविषमे
भवाँ भवी भवों भवा प्रबल -झॉनी में पवित्र शशि कर धवले प्रक्ष रक्षीरगौरे।
ADI
(ALI
IP2LoLetest
भयनिवारक यंत्र
स्तोत्र नं. ३
७ श्लोकार्थ यन्त्र मन्त्र विधि (७) अब यन्त्रोद्धार करते है। विधि :-पीपल के पत्ते पर अथवा सुवर्ण के अथवा ताम्र के पत्रे पर, रोज दूध से यन्त्र लिखे,
यह श्लोक रोज छह महीने तक २१ बार पढे, और लिखे भी, अगर लिखना भूल जाय तो यन्त्र को घोलकर पी जाय, इस प्रकार छह महीना तक इस विधि को करे तो, इस विधि को एकान्त मे करे, गुरु को छोड कर किसी को न बतावे, दूध चावल का भोजन करे, डाब के आसन पर सोये ब्रह्मचर्य का पालन करे, धैर्य रखे तो यह यत्र जो चाहे सो साधक को देवे, लेखक कहते है कि इसमे कोई सदेह नही करे ।।७।। इदानी परविद्याछेदानंतरं चक्र प्रकार देव कुलमाह । प्रातर्बालार्क रश्मिस्फुरित घनमहासांसिंदूरधूलीः । सन्ध्या रागारूणांगीः, त्रिदशवरवधूवंद्यपादारविदे।
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लघुविद्यानुवाद
चंचच्चंडासिधाराप्रहतरि पुफुले, कुंडलोद्घष्टगल्ले । श्री श्री अं श्रौं स्मरंती, मदगजगमने, रक्ष मां देवि पद्म ॥८॥
"कोपं वंज" श्लोक नं०७ विधि नं०३
.
रं.
प
रं रं रं
रं.
जः कुं हूं बं जाना
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रं रं रं रं
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रंरररररर
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-
-
-
इच्छापूर्ति यंत्र व्याख्या :-रक्ष ! पालय ! देवी पद्मावती । कं? मा, कीदृशे, प्रातर्बालार्क रश्मिः स्फुरितधनमहासासिंदूरधूली सध्यारागारूणागी प्रातः प्रभाते बालोनवोद्वतो यो अर्क' तस्य रेणूमय' किरणा. तेषा स्फुरित देदीप्यमानम् वा प्रकाशरूप प्रातर्बालार्क रश्मिस्फुरितो घनो बहु महासाद्रो निविडो यः सिदूरः तस्य धूलि चूर्ण सन्ध्याया राग. सन्ध्यारागः प्रातर्बालार्करश्मयश्च घनमहासाद्रसिंदूरघूली च सन्ध्यारागश्च ते प्रातर्बा० तद्वदरुणा रक्तवर्ण अगो यस्याः सा, प्रातर्बा० सन्ध्यारागारूणागी.। पुनरपि कीदृशे | त्रिदशवरवधूवद्यपादारविदे ! वराश्च ता वध्वश्च वरवध्व विदशाना देवाना वरवध्व त्रिदशवरवध्वः ताभिरभिवद्ये पादारविंदे यस्या. सा तस्याः सबोधनम् त्रिदशवर
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लघुविद्यानुवाद
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वधूवद्यपादार विदे ! अमरवरागनानमस्यमानचरणपकेरूहे । कीदृशे । चचच्चडासिधाराप्रहतरि पुफुले | चडा चासौ प्रसिधारा च, चडासिधारा चचती चासो चडासिधारा च चचच्चडासिधारा तया प्रहत विनाशित रिपुकुल शत्रुसमूह यया सा चचच्चडा० रिपुकुलः तस्या सबोधन, चचच्चडा० रिपुकुले। देदीप्यमान प्रचण्डमगलानधारा व्यापादित (विध्वसित शत्रुसमूहे) पुनरपि कीशे ! कु डलोद्धृष्टगल्ले ! कुडलाभ्या उद्धृष्टौ गल्ली गडौ यस्याः सा तस्या सवोधनम् कु डलोद्धृष्टगल्ले । कर्णवेष्टकोद्धृष्टमारणगडस्थले। पुनरपि की दृशे श्रा श्री श्र श्री स्मरती श्रा च, श्री च श्र च, श्रौ च तानि स्मरती ध्यायती एतेषाम् पवाक्षराणा मत्र दर्शयन्नाह–कम्यं नामगभितस्य बाह्य म्ल्यू वेष्टयं च बाह्य षोडशस्वरान् लिखेत् । बहिरष्टदलेषु क च छ य ट र भ म ल व यू पिडाक्षराणि दातव्यानि बहिः कम्व्यू म्ल्यू छम्ल्यू इयं रम्यं व्यं भव्यू म्म्ल्यू अष्टदलेषु ब्रह्माणी १ कुमारी २ ऐद्राणी ३ माहेश्वरी ४ वाराही ५ वष्णवी ६ चामु डा ७ गाधारी ८ ॐकार पूर्वमत्रमालिख्यते । बाह्य स्म्ल्व्यू हा ह ह आ क्ली ब्ली द्रा द्री पद्मावती श्रा श्री श्र श्री श्र हु फट् स्त्री स्वाहा । एषा विद्या अष्टोत्तर सहस्त्र प्रमाण करजापेन क्रियमाणेन दशदिश पर्य'ने सर्वकार्याणि सिद्धयन्ति । पु .रपि कीदृशे मदगजगमने मदेनोपल क्षितो गजो मदगज' तद्वद्गमन गतिर्यस्या सा तस्या. सबोधन, मदगज गमने ।।८।। साप्रतमुपसहरन्नाह ॥
श्लोकार्थ नं. ८ प्रात काल के उगते हये सूर्य की किरणो का जैसा रग सिदूर वर्ण के समान अथवा सायकाल के अस्त होने के समय जो लाल रग है उसके समान रग वाली, देवलोक की अप्सरायो जिसके चरण कमल पूजित, ऐसो देदीप्यमान और भयकर तलवार की धार से शत्र ओ का नाश करने वाली, दोनो कानो मे पहने हये कु डलो से जिनके गड स्थल घिस गये है, श्रा श्री श्र श्र. इन चार अक्षरो का स्मरण करती हुई, मदोन्मत हस्तिनी क चाल से चलती हुई हे पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ।।८।।
श्लोक नं. ८ के यंत्र मंत्र क्म्यं मे देवदत्त गभित करके, बाहर म्ल्यू वेष्टित करके ऊपर वलय बनावे । उस वलय में सोलह स्वर लिखे ऊपर से एक अष्टदल का कमल बनावे । उन दलो मे क्रमशः कम्यं च छळ (इम्यं ) दम्यू
व्यं भव्यू म्ल्यू (स्म्य ) म्म्ल्यू लिखे। ऊपर से अष्टदल कमल और बनावे, उसमें भी क्रमशः ब्रह्माणी, कुमारी ऐद्राणी माहेश्वरी वाराही
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लघुविद्यानुवाद
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वैष्णवी चामुडा, गांधारी लिखे । ॐकार पहिले मंत्र को लिखे। बाह्य में स्मळ हा हं हः प्रां क्लीं ब्ली द्रां द्रों पद्मावती श्रां श्री श्री श्रः हुं फट्
स्त्री स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र विद्या को एक हजार आठ प्रमाण हाथ के जप, नित्य दस दिन तक करने से सव
सिद्धि होती है। दूसरे प्रमाण से इस यन्त्र की विधि को कहते है जो पद्मावती उपासना ग्रन्थ मे लिखा है । केसर गोरोचन से भोजपत्र के ऊपर लिखकर अथवा सोना चादी ताम्र के पतरे के ऊपर लिखकर प्रति कराके पूजन मे नित्य ही रखे, प्रतिदिन यत्र की पूजा करने से, यत्र में साक्षात पद्मावती देवी विराजमान है ऐसी भावना करता हुआ सुगन्धित पुष्पो से और उत्तम द्रव्यो से पूजा करने से प्रतिदिन नीचे मुजब मन्त्र का १०८ बार जाप्य करने से
सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि होगी। मन्त्र :-ॐ स्व्यं हा हं हां प्रां क्रों ह्रीं क्ली ब्ली द्रां द्री पद्मावती श्रां श्रीं |
श्रौं श्रः फट् घी स्वाहा । जब भी जरूरत पडे तब चाहे जैसा कठिन कार्य हो सरलतापर्दक सिद्ध करने के लिये, यत्र का पूजन और १००८ कर जाप्य दस दिन तक मत्र का करने से, यथा शक्य मानसिक 1-जाप्य मन मे करते रहने से सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि होती है ।
काव्य नं० ८ वृहत यन्त्र रचना:
दशदलकमल कृत्वा तन्मध्ये प्रव्य स्थाप्य कमलेषु ॐ ह्री पद्मे श्रा श्री श्र, श्रः नमः एतत् मत्र लिखेत् तदुपरी चतुर्दश द्रो कारेन वेष्टयेत तदुपरि काव्य लिखेत् तत्पश्चात् अष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा, काव्य, मत्र, यत्र, पार्श्व रक्षणात् अस्य प्रभावेन सर्व लोके पूजनीक
भवति, धनधानयसस्य वृद्धिर्भवति, देव समसुखी भवति । फल :-अष्टम काव्यस्य म्व्यं बीज दशाक्षरै मत्र, ॐ ह्री पद्मे श्री श्रा श्रू श्र नम' अनेन
मत्रेण अष्टत्तरी शत् १०८ दिने कमल पुष्प मध्ये बीजाक्षर मत्राक्षर सयुक्त लिखेत् कर्पूर कस्तुरिकाया, प्रात समये भक्षण कृत्वा, तस्य पुरुषस्य आयुचिर भवति, लक्ष्मी लाभ भवति निश्चयेन.। इस मत्र यन्त्र काव्य को सुगधि द्रव्य से लिखकर फिर अष्ट द्रव्य से यन्त्र की पूजा कर, पास मे रखे, यन्त्र को ताबा अथवा चादी-सोना व भोजपत्र पर लिखकर पास मे रखे,
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लघुविद्यानुवाद
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यन्त्र तो सर्व लोक मे पूजा को प्राप्त होता है। यश की प्राप्ति होती है, धन धान्य को वृद्धि होती है। देवता समान पूजा को प्राप्त होता है, सुखी होता है और किसी भी बात का भय नही रहता है।
___ श्लोक नं० ८ विधि नं. १ यन्त्र न० १
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सर्वकार्य सिद्धि यंत्र
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लघुविद्यानुवाद
विशेष मंत्र - ॐ ह्री पद्म श्रा श्री श्र श्र नम इस मंत्र को १०८ दिन में कमल पुष्प के अन्दर बीजाक्षर और मत्राक्षर कर्पूर और कस्तुरी से १०८ दिन तक लिखे फिर प्रात समय १०८ दिन तक भक्षण करे तो उस पुरुष की आयु वढती है । लक्ष्मी लाभ होता है । राजद्वार मे मान्यता मिलती है और अत्यन्त सुखी होता है ।
४६०
नोट - जहाँ प्रायु बढाने की यन्त्र विधि लिखी है उस विधि मे ऐसा भी अर्थ बनता है, कि कर्पूर कस्तुरी को भक्षण करके १०८ दिन मे बीजाक्षर सहित मन्त्र को कमल पुष्प के अन्दर १०८ दिन तक प्रतिदिन लिखे ।
(5)
यंत्र नं०८
- प्रातवीला के रश्मि छुरित घन महा सांद्र सिन्दुर धूली ।
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श्री श्री ॐ श्रः स्मरति मदं गज गमने रबमा देवि पद्मे !
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सर्व सुखदायक यंत्र
स्तोत्र नं० ३
इस श्लोक का नित्य ही स्मरण करना चाहिये ।
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श्लोकार्थ मन्त्र विधि नं०.८
संध्यारागारूणांगी त्रिदशयर वधू वंद्य पादार विंदे ।
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लघुविद्यानुवाद
४६१
मन्त्रोद्धार, ॐ स्त्रां ॐ स्त्री ॐ स्त्रूॐ स्त्रः । विधि :- इस मन्त्र को सायकाल लगातार छह महीने तक स्मरण करके सिद्ध करे, फिर विष पुष्पो
को २१ बार मत्रीत कर शत्रु की शय्या पर डाले तो शत्रु के शरीर मे प्राघात पहुचे, इसमे कोई सदेह नही है। किन्तु धर्मात्मानो को इन क्रियाओ को नही करना चाहिये । पाप लगता है। विस्तीर्णे पद्मपीठे कमलदल निवासो चिते काम गुप्ते लां ता ग्री श्री समेते प्रहसित वदने दिव्य हस्ते ! प्रसन्ने ! रक्ते रक्तोत्पलागि प्रतिवहसि सदा वाग्भवं कामराज हंसारुढे ! त्रिनेत्रे ! भगवति ! वरदे ! रक्ष मां देवि ! पद्म ॥६॥
श्लोक नं. १ विस्तार वाले कमलो के पत्र के ऊपर बैठी हुई, भक्तो की गुप्त बातो को जानने वाली, ला __ता श्री श्री, ये चार मत्राक्षरो से विभूषित, जिनका मुख कमल मद हास्य से सयुक्त है, दिव्य
हस्त कमलो से सहित, प्रसन्न मुख मुद्रा वाली लाल रंग से सहित लाल कमल के समान जिनका शरीर है, हस पर आरूढ है, तीन नेत्रो से सयुक्त है, हे भगवती नुम निरतर वाग्भव मत्र 'ऐ' और कामराज मत्र 'क्ली' को धारण करने वाली हो, भक्त जनो को आशीर्वाद से इच्छित कार्य को सिद्धि करने वाली हे पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ।।६।।
काव्य नं. ६ यन्त्र रचना :
विशति दल कमल कृत्वा तन्मध्ये प्ली बीज स्थाप्य दल मध्ये ॐ ह्री श्री धरणेद्र पद्मावती बल पराक्रमाय नम एतत्मत्र लिखेत । तदुपरि ॐ ह्री श्री पद्मावती ला ता ग्री श्री की द्रौ र रौ झौ झी ही ह्रा ह्रो वाग्भवे नम. एतत् अक्षरेन यन्त्र वेष्टयेत् यन्त्रस्य प्रष्ट द्रव्येन
पूजन कृत्वा । काव्य यन्त्र मत्र प्रभावात् सर्व क्षेम कुशल भवती। फल -नवम काव्यस्य प्लौ बीज विसत्यक्षर मंत्र । ॐ ह्री श्री धरणेद्र पद्मावती बल पराक्रमाय
नम अनेन मत्रेण पूर्वाभिमुख पीत वस्त्र, पीतासने सहस्र द्वय जाप्य कृत्वा एक विंशति दिने मत्र सिद्धिर्भवती, राज्य स्थान लाभ भवती।
इस यन्त्र के मन्त्र को पूर्व मे मुख करके पीला वस्त्र पहिनकर पीली माला से दो हजार ___ जाप पीले आसन पर बैठ कर २१ दिन तक करे तो मत्र सिद्ध हो जाता है। फिर यन्त्र पास मे रखे ।
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४६२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र सुगधित द्रव्य से भोजपत्र पर निखे और यन्त्र की अष्ट द्रव्य से पूजा करे। काव्य मन्त्र यन्त्र का ___ नित्य ही स्मरण करे तो नया स्थान का लाभ हो और नाना प्रकार की सपदा का लाभ होता है । शत्रु तो सन्मुख भी इस यन्त्र के प्रभाव से नही आवे । मत्र जपने काॐ ह्रीं श्री धरणेंद्र पद्मावति बल पराक्रमाय नमः ।
यंत्र नं०६
-
-
| विस्तीर्णैपद्मपीठेकमलदल निवासोचितेकाम गुप्ते ।
| ॐ ह्रीं श्रीं प मा व
। मः
न - हंसारुडे त्रिनेत्रेभगवति नरदेरजमादेवि पो।।
ही वा ग •भ वे
न ती लाँ तॉ श्रीं | -लॉतॉ पीनासमेतेप्रहसिसवने डिव्यहस्तेप्रशस्ते।।
श्रीं क्रॉ .
NehtarLARYuba
मनोवांछित दायक यंत्र स्तोत्र विधि नं. ३ .
श्लोक नं. ६ (8) इस नौ नम्बर श्लोक का पाठ करने से हसारूढ भवानी का दर्शन होता है, इस मत्र को
अष्टगध से हल्दी की कलम से ग्रहण की रात्रि मे लिखकर, मुकुट मे रखे तो मनोभिलाषा पूर्ण होती है।
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लघुविद्यानुवाद
"विस्तीर्णेपद्म" श्लोक नं. ६ विधि न० ३ यन्त्र नं. १
MARA
SASUALSOurer
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चला तो ग्री
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गलाता की
देवदत्त
जला ता ग्रो
..
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RELAE
मनोवांछितदायक यंत्र ( वृत्ति में इस श्लोक का नं० ६ का है )
वृत्तिउपसंहार दिव्यं स्तोत्रं पवित्र, पटुतरपठतां, भक्तिपूर्व त्रिसंध्यम् । लक्ष्मी सौभाग्यरूपं, दलितकलिमलं, मंगलं मंगलानाम् ।। पूज्यं कल्याणमान्यं, जनयति सततं, पार्श्वनाथप्रसादात् । देवी पद्मावती सा, प्रहसित वंदना, या स्तुता दानवेंद्र ॥६॥
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लघुविद्यानुवाद
व्याख्या -जनयति उत्पादयति कासी की इय देवी पद्मावती कीशी ? प्रहसितवदना प्रहृष्टानना कस्मात् पार्श्वनाथप्रसादात् या स्तुता. के ? दानवेद्रे : दैत्यपुरुहूतः कि जनयति लक्ष्मी सौभाग्यरूप कीदृश तत् दलितकलिमल निर्दलित पापमल । तथा मगल जनयति । केपाम् मगलाना, नि श्रेयसानामपि मध्ये विशिष्ट नि श्रेयस जनयति इत्यर्थः । पुनरपि कथभूत पूज्य, अर्य पुनरपि कीदृश, कल्याणमान्य, कुशलयुत । कथ? सतत निरतर केषु ? पटुतरपठता स्पष्टतर भूर्णेता पठेता कथ ? भक्ति पूर्व बहुमानपूर्व न केवल भक्तिपूर्व विसध्य च, किं कर्म भो मत स्तोत्र स्तवन कीदृश? दिव्य प्रधान पुनरपि कीदृशम् पवित्रम् ।।६।।
___ अस्या पार्श्वदेवमणिविरचिताया पद्मावत्यष्टकवृतौ यत् किमपि वद्य पठित तत्सर्व सर्वाभिक्षतव्य । देवताभिरपि ।
__वर्षाणा द्वादश कि शतै गते. त्र्युत्तरैरिय वृत्ति १२०३ वैशाखे सूर्ये दिने समयिता शुक्ल पचम्या ॥१॥ अस्याक्षरस्य गणनाम् पचशतानि द्वाविद्रादक्षराणि च सदनुष्टुप छदसा प्राप ।।२।। इति श्री पार्श्वदेवमणि विरचिता पद्मावत्यष्टक वृति. सपूर्ण ॥
सवत् १९२२ रा मिति ज्येष्ठ वद १३ कुजवासरे योधपूरे नगरे लिपि कृत प० रामचद्रण स्वात्मार्थे ।।इति।।
(पद्मावत्यष्टक वृती अर्थ समाप्तः )
श्लोक नं. ६ इस दिव्य पवित्र स्त्रोत को बुद्धिमान, तीनो सध्यारो मे भक्ति पूर्वक पढता है उसको लक्ष्मी की प्राप्ति, सौभाग्य की प्राप्ति होती है । मगलो मे मगल होता है। कलीमलो का नाश होता है । जो देवी प्रहसत वदन है । क्योकि जिनका मन पार्श्व जिनेद्र की भक्ति मे ही है। इसलिये दानव इन्द्रो के द्वारा वदित है। इसलिए सबको कल्याणकारी है।
इस स्त्रोत को जो आ० पार्श्वदेव मणि विरचित पद्मावती वत्ति को जो कोई भी वदन करता है, पढता है वह सर्व प्रकार के सर्व अभिसिप्त प्राप्त करता है।
इति श्री आ० पार्श्वदेवमणि विरचित पद्मावष्टक वृत्ति सपूर्ण । आगे विरनद्याचार्यकृत पद्मास्तोत्र के यन्त्र मन्त्र विधि चालू जो ३७ श्लोक मे है । षट्कोणे चकमध्ये प्रणतवरयुते वाग्भवे कामराजे हंसारुढे सविन्दौ विकसित कमले करिणकाने निधाय । नित्ये ! क्लिन्ने ! मदद्रव इति सहितं साडू शंपाश हस्ते ! ध्यानात संक्षोभकारि त्रिभुवनवशकृद् रक्ष मां देवि ! पद्मे ॥१०॥
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लघुविद्यानुवाद
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श्लोक नं. १० षट्कोण चक्र के मध्य मे रहने वाली, नमस्कार करने वाले भक्तजनो को वरदान देने वाली, वाग्भव 'ऐ' कार तथा कामबीज 'क्ली' से विभूपित, मस्तक के ऊपर बिन्दु धारण करके हस पर विराजमान रहने वाली, विकसित कमल पुष्प की कणिका के अग्रभाग पर विराजमान, नित्या, क्लिन्ना, मद्रा, मद्दवा आदि देवियो से सहित दो हाथ मे पाश और अकुश को धारण करने वाली तुम्हारा ध्यान करने से तीनो लोको को जो क्षोभ को प्राप्त होते है, और वश भी होते है ऐसी हे पद्मावती देवि मेरी रक्षा करो ।।१०।।
काव्य नं. १० यन्त्र रचना -
षट्कोण यन्त्र कृत्वा ऐ बीज मध्ये स्थापयेत, तत्पश्चात् क्ली ऐ ह्री श्री नमः स्थापयेत तदुपरी षट्कोणे एकविशती क्ली कारेन वेष्टयेत् अष्टद्रव्येन पूजन कृत्वा एकाग्रचित्तेन साधयेत । काव्य यन्त्र मन्त्र प्रभावात तथा यन्त्र पार्श्व रक्षरिणयात् अस्य प्रभावेन लक्ष्मी
लाभो भवति, राजा प्रसन्न भवती, देव आशीर्वाद ददाति प्रत्यक्ष भवति अस्य प्रभावात् । फल :-दशम काव्यस्य ऐ बीज वाग्भव शक्ति दशाक्षरै मत्र ॐ ह्री श्री क्ली ऐ ह्रा ही ह नमः
अनेन मन्त्रेन प्राप्य कृत्वा बृहस्पति समान भवति द्वादश सहस्त्र श्वेत जाति पुष्पेन जाप्यं कृत्वा। बृहस्पती समबुद्धिर्भवति । एक त्रिशदिन मध्ये ब्रह्मचर्यात् जाप्य कुर्यु एकस्थाने स्थित्वा, एकासन कृत्वा द्वादश सहस्र जाप्य कृत्वा ।
इस यन्त्र को सुगधित द्रव्य से भोजपत्र पर लिखे अथवा सोना, चाँदी, ताँबा के पत्रे पर लिख कर अष्ट द्रव्य से यन्त्र की पूजा करे फिर मन्त्र का जाप ३१ दिन मे १२००० जाप एकासन करता हया दीप धूप विधान से ब्रह्मचर्य रखते हुये, जाति (जाई) पुष्प से करे तो वृहस्पती समान बुद्धि होती है। यन्त्र को पास मे रखने से अत्यन्त लक्ष्मी लाभ होता है। राजा प्रसन्न होता है। देव प्रत्यक्ष होकर वरदान देता है।
स्तोत्र विधि न० ३
श्लोकार्थ नं. १० (१०) इस श्लोक का पाठ करते हुये, अष्टगध से दोपमालिका के दिन रात्रि को अष्टगध से
लिखकर हाथ की भुजा मे बाधना और मस्तक के ऊपर धारण करना, सम्पूर्ण लोक वश होते है इसमे कोई सदेह नही है ।।१०॥
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४६६
1.
ध्यानात् संक्षों भयंति त्रिभुवन् वसकृद् रक्ष मां देवि पद्मव क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्लीँ
4
लघुविद्यानुवाद
कोर्णे चक्रमध्ये प्रणववर युते वाग्भवे काम राजे। क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्लीँ
मः
यन्त्र नं० १०
रौँ
雀
क्लीँ क्लीँ क्लीँ
हंसा रूढ़े सविन्दा विकसित कमले कर्णि काग्रे निधाय
लाँ क्लीँ
Fre
श्रीँ
根梅梅梅梅
लक्ष्मीदायक यंत्र
क्रीं ह्रीं पंचबाणैलिखित षट् दले चक्र मध्ये सहंसः ह्स्क्ली श्रीं पत्रान्तरालेस्वर परिकलिते वायुना वेष्टितांगी ह्रीं वेष्टे रक्तपुष्पैर्जपति मरिणमतां क्षोभिणी वीक्ष्यमारणा चन्द्रार्कं चालयन्ती सपदि जनहिते रक्ष मां देवि ! पद्म ॥११॥ श्लोक नं. ११
(११) को ही और पचवारणमाने, द्राद्री क्ली ब्लू स इन मत्राक्षरो को आठ पाखडियो अन्दर तथा चक्र के मध्य मे स ह स ह्रस्क्ली श्री, इन बीजो को और यत्र के बीच मे सोलह स्वर लिखे, फिर 'य' वायु वीज से यत्र को लपेटना और पश्चात् 'ही' शक्ति बीज से यत्र को वेष्टित करे। यह यन्त्र रचना कही ।
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लघुविद्यानुवाद
४६७
इस यन्त्र की लाल पुष्पो से पूजा करे तो, मणि वाले सर्प का भी क्षोभरण होता है, सावन करने वाले के हित के लिये चन्द्र सूर्य को भी विचलित करने वाली, शक्तिशाली हे देवो मेरी रक्षा करो ।।११।।
"षट्कोणे" २५ श्लोक नं० १० विधि नं० ३
IMa
-
to ॐ ही पनांती देवता 1.चॐनित्ये ॐ किन्ने ॐार
-
CLOPARD
हाँ
ॐर रंॐ रं रं रं रंॐ
ॐ हीं पद्मावती देवता ?
भयनाता सकलसूख दायना।
४० ॐ ह्रौँ पद्मावती देवता,
ॐरं रं रं रंॐ रं रं₹₹ॐ"
पश्चिम
हो
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उत्तर
सर्वलोक वशीकरण यन्त्र काव्य नं० ११
पत्र रचना -
षट् दल कमल कृत्वा 4 बीज मध्ये स्थापयेत षटक्षरै ह स क्ली को झा ही बोजाक्षरैन वेष्टयेत आ झो ह्री श्री पद्म एतत् अक्षरेन षट् दल कमल मध्ये लिखेत। तदुपरि पोडग
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४९८
लघुविद्यानुवाद
ह्री कारेन वेष्टयेत् वायुतत्व मध्ये, यन्त्र साधयेत रक्त पुष्प अष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा यत्र मत्र साधनात चितित कार्यस्य सिद्धिर्भवती, शत्रु क्षययाति लक्ष्मो लाभो भवति, सद्गति
प्राप्तिर्भवति । फल :-एकादशम काव्यस्य प बीज द्रो शक्ति षोडशाक्षरै मन्त्र ॐ ह्री श्री या झो ह्री क्ली झो
ह्री ऐ पद्मावति नम. अनेन मत्रेन पूर्व दिशा मुख कृत्वा द्वादश सहस्र जाप्य १२००० रक्त पुष्पेन कृत्वा, मन्त्र सिद्धिर्भवति मन्त्र प्रभावत् सर्वजनप्रियो भवति, अस्य, प्रभावात् चक्रवर्ति समान भवति, सर्वजन वशी भवति । भाग्योदय भवति ।
इस यन्त्र को भोजपत्र पर सुगधित द्रव्य से लिखे, अथवा सोना, चादी, ताँबा के पत्रे पर अष्ट द्रव्य से खुदवाकर और लाल पुष्प से यन्त्र की पूजा करे तो चितित कार्य की सिद्धि होती है। शत्रु नाश को प्राप्त होता है। लक्ष्मी का लाभ होता है। सद्गति की प्राप्ति होती है। ॐ ह्री श्री आ को ह्री क्ली को ह्री ऐ पद्मावति नम , इस मन्त्र को पूर्व दिशा मे, मुख करके बारह हजार लाल पुष्प से जाप करे तो मन्त्र सिद्ध होता है। मन्त्र के प्रभाव से समस्त पृथ्वी के लोक चरणो मे पाकर पडे, चक्रवर्ती के समान भाग्योदय करता है।
यन्त्र नं० ११ ऑ क्रॉ ही पंचवर्णलिखित षट् दलेक्रमध्ये हसकी । | हाँ ह्रीं ह्रीं ह्रीं
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हाँ त्रैलोक्यंचालयतिसपदिजनहितरक्षमा दविपद्ये।।
हाँ हाँ |
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मनोवांछितदायक यन्त्र
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लघुविद्यानुवाद
४88
__ "प्रां क्रों ह्रीं पंच" श्लोक नं० ११ विधि नं० ३ यन्त्र नं. १
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सर्वसिद्धि दायक यन्त्र स्तोत्र विधि नं.३
श्लोक नं० ११ (११) इस श्लोक का पाठ करता हुआ, यन्त्र को अष्टगध से लिख कर, मंत्र का लाल कनेर के
पूप्पो से २१००० हजार जाप छह महिने तक करे तो महादेवी पद्मावती का विकराल रूप मे दर्शन होवे, यन्त्र के प्रभाव से दृष्टि दोष निवारण होता है, ध्यान से सव
सिद्धि प्राप्त होती है। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं पद्मावती सकल चराचर त्रैलोक्य व्यापी ह्रीं क्लीं लहां
ह्रीं ह्रौ ह्रः ऋद्धि वृद्धि कुरु २ स्वाहा ।
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५००
लघुविद्यानुवाद
गर्जन्नीरद गर्भनिर्गत तडिज्ज्वाला सहस्त्र स्फुरत्सद्वत्राकुशपाशपंकजधरा भक्त्या भरैरचिता । सद्यः पुष्पित पारिजातरुचिरं दिव्यं वपुबिभ्रती
सा मां पातु सदा प्रसन्न वदना पद्मावती देवता ॥१२॥ (१२) गजते हुये मेघ के अन्दर से निकलने वाली विजली को हजारो ज्वालाप्रो से चमकती हुई,
वज्र अकुश, नागपाश और कमल पुष्प को, चारो हाथो मे धारण करने वाली, देवो के समूह ही जिनकी पूजा कर रहे है भक्तिपूर्वक, तत्काल खिलते हुये पारिजात के फूल जैसे सुन्दर शरीर वाली, निरन्तर ही मुख पर प्रसन्नता है, ऐसी हे देवी पद्मावती मेरी रक्षा करो ॥१२॥
काव्य नं० १२ यत्र रचना :
षोडश दल कमल कार्य, मध्ये म्यस्थाप्य दले षोडश देव्या । ॐ ब्रह्माणी ॐ कालरात्री ॐ भगवती, ॐ सरस्वती, ॐ चडी, ॐ चामु डायै, ॐ नित्याय, ॐ मात्यायै, ॐ गाधारी, ॐ गौरी, ॐ धृति, ॐ मति, ॐ विजय, ॐ किर्ती, ॐ ह्री नमः ॐ पद्मावते नम लिखेत पश्चात् यत्रोस्योपरि चतुर्कोण क्षा क्षी क्षु क्ष लिखेत् तदुपरि काव्य लिखेत यत्रस्य अष्ट द्रव्येन पूजन कृत्वा, काव्य, यन्त्र, मन्त्र, पठनात् शत्रु भय न भवति, शत्रु उन्मत भवति नाश भवति शत्रुस्य मरण भवति यन्त्र साधन प्रभावात मत्रात
मिरजकाया मत्रित्वा होम कुर्यात शत्रुस्य निश्चयेन मरण भवति । फल :--द्वादश काव्यस्य व्यं बीजं माया शक्तिः पं वशति अक्षरै मन्त्र ॐ ह्रीं
श्रीं प्रौ प्रौ क्लीं नौ पद्मावति धरणेंद्र सहिताय क्षां क्षी क्षक्षः नमः अनेन मन्त्रण हस्तार्क, वा मूलार्क वा पुष्पार्क दिने पंचविशति सहस्त्रेण २५००० दक्षिण दिशां साधनं कृत्वा कृष्ण पुष्पेन होम, कृष्ण माला जाप्यं कृत्वा, शत्रुस्य मरणं भवति संग्राम विषये जयं भवति । इस यन्त्र को भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्यो से लिखे अथवा सोना, चादी, तॉवा के पत्रे पर
खुदवा कर यन्त्र की अष्टद्रव्य से पूजा करे फिर मन्त्र की साधना करे । मन्त्र :--ॐ ह्री श्री प्रौ प्री क्लों को पद्मावतो धरणेंद्र सहिताय क्षां क्षीं झूक्षः नमः
इस मन्त्र को काली माला से और काले पुष्प से पच्चीस हजार (२५,०००)
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लघुविद्यानुवाद
रवि हस्त नक्षत्र में अथवा रवि मूल नक्षत्र में वा रवि पुष्यामृतं दिन में जाप करे, काले फूल से होम करे, तो शत्रु मरे, और संग्राम में जय हो । काव्य, यन्त्र, मन्त्र के पढ़ने से और पूजन करने से शत्रु मरे, वा भ्रष्ट होय, शत्र पागल हो जाय, और मन्त्र से मिर्च मन्त्रीत करे, तो शत्रु का मरण
हो जाय । नोट -इस यन्त्र की साधन विधि कभी नही करे, बहुत पाप लगेगा, जो दूसरो को मारता है
वह स्वय मरता है, वीतराग धर्म दया प्रधान धर्म है, मै ग्रन्थकर्ता साधक को इस विधि को करने की कभी प्राज्ञा नही देता।
यन्त्र नं० १२
ब्रह्माणी कालरात्रीभगवलिवरदेचंडिचामुडि नित्ये।।
PPO
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वात
rr
ताँतींतूंतःक्षणा क्षतरिपुनिवहेरनमंडेविपो।।
मातर्गाधारिगौरीधृतिमति विजयेकीर्ति हाँस्तुत्यपझे।
FurpoG
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मा० यन्त्र
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५०२
लघुविद्यानुवाद
स्तोत्र नं. ३
श्लोक नं. १२
(१२) इस बारहवे श्लोक का दुर्भिक समय ध्यान करने से, मेघ (बादल) उमड २ कर आते है, भक्तजनो की रक्षा करते है, अमोघ वृष्टि होती है, इस श्लोक को उल्टा पढे तो शाति होती है ।।१२।।
1
जिह्वाग्रे नासिकान्ते हृदि मनसि दृशोः कर्णयोर्नाभिपद्म स्कन्धेकण्ठेललाटे शिरसिच भुजयोः पृष्ठि पार्श्वप्रदेशे । सर्वाङ्गोपाङ्ग शुद्धयान्यतिशय भवनं दिव्यरूपं स्वरूपं ध्यायामः सर्वकालं प्ररणवलयगतं पार्श्वनाथेतिशब्दम् ||१३||
(१३) ॐ कार के मध्य भाग मे विराजमान, शुद्ध अतिशय सुन्दर भवन रूपी दिव्य तेजोमय स्वरूप वाले श्री पार्श्वनाथ प्रभु को मैं निरन्तर जीभ के अग्रभाग पर, नासिका के अग्रभाग पर, हृदय मे, मन और दोनो आँखो मे, नाभि कमल मे, कठ, ललाट, मस्तक, दोनो भुजा, पीठ और पूठ के अस्थि प्रदेश मे, सब अग और उपागो मे आपका ध्यान करता हूँ ॥१३॥
काव्य नं. १३
यन्त्र रचना :
अष्ट दल कमल कृत्वा मध्ये स्थाण्य, मष्टाक्षर मन्त्र ॐ ऐ द्रा ह्री झा की ह लिखेत् तदुपरि ॐ शक्ति नमः, ही शक्ति नमः, श्री शक्ति नम, क्ली शक्ति नम, चतुर्दिक लिखेत, प्रष्ट द्रव्येन च रक्त पुष्पैः यन्त्रस्य पूजन कृत्वा, एकाग्रीतेन यन्त्र, मन्त्र साधन कुर्यात, प्रस्य प्रभावेन सर्व बाछा सिद्ध भवति दिव्य दृष्टीर्भवती सर्व लोकस्य वशीकरण भवति । मन्त्र साधन विधि :
त्रयोदश काव्यस्य म्म्व्यं बीज दण्ड शक्ति चतुर्विंशति अक्षरे मन्त्र ॐ ह्री पद्मावती उपसर्गभय निवारय हा प्रो क्ली ही नमः अनेन मन्त्रेण द्वादश सहस्त्र १२००० उत्तर दिशा जाप्य कृत्वा हीरवणीस्य - होम कुर्याततर्हि विद्यासिद्धीर्भवति, चिंतित कार्यं भवति, होमस्य भस्म तथा मिष्ठान्न सहखादयेत तर्हि स्त्री पुरुष वश्य भवति ।
2
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लघुविद्यानुवाद ।
५०३
-
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्य से भोज पत्र पर लिख कर लाल फूल और अष्ट द्रव्य से पूजन करे एकाग्र मन से, मन्त्र की साधना करे तो मनवाच्छित कार्य की सिद्धि होय, दिव्य दृष्टि होय । वशीकरण होय। ॐ ह्री पद्मावती उपसर्गभय निवारय हा प्रौ क्ली ह्री नम. इस मन्त्र का बारह हजार उत्तर दिशा मे मुख करके जाप करे (हीरवणी) का होम करे तो विद्या सिद्धी होय । मन मे चितवन करे तो कार्य होय, मिष्टान्न और होम की राख दोनो मिलाकर जिसको
खिलावे पुरुष व स्त्री वश्य हो जाय । नोट :-इस यन्त्र मन्त्र की विधि मे हीरवणी द्रव्य का होम करे लिखा है सो हीरवणी क्या वस्तु
है सो अर्थ समझ मे नही आया हमने भी जैसा था वैसा लिख दिया है। (हीरवणी) शब्द का अर्थ मेवाडी भाषा मे नासिका सू घने वाली को कहते है और गुजराती भाषा मे हीरवणी कपास होता है। यहाँ हीरवणी कपास ही होता है। उसका होम करे।
यन्त्र नं० १३
-
-
-
ख कोदंडकोडै मुसलहलधेरैवाणनारच चकै।
ॐ शक्ति नमः
मः।
न दुष्टानादारयतिवरभुजललिते रक्षमाँदेविप ॥
क्ली शक्ति
-
हाँ शक्ति न शक्त्या सल्यनिशुलैवर फणस सौमुद्रैर्मुष्टिदण्डै॥
मा
सार त HeltikayaNELBIDINIAth
-
-
-
-
- मा. यन्त्र
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५०४
विधि नं० ३
(१३) इस श्लोक का और ॐकार के मध्य मे पार्श्व प्रभु का ध्यान करने से शुभगति की प्राप्ति होती है, इस मन्त्र को बोलकर, ( ॐ पार्श्वनाथाय नम ) चोटी मे गाठ लगाने से आत्म रक्षा होती है, इस श्लोक को बोलता हुआ ऊपरी बाधा वालो को झाडने से, ऊपरी बाधा दूर होती है ।।१३।।
श्लोक नं० १३ यन्त्र नं० १
ॐ०१ हीं श्रीँ
पूर्व
ॐ
ॐ र र र र ॐ र र र रॅॐ₹
ॐ ही पद्मावती देवता
किन्ने
श्रीँ ॐ
Jabo
लघुविद्यानुवाद
सान
नित्ये
हीँ ईश्वरी 'भयत्राता सकल सुख दायनी
पश्चिम
植
ॐ ह्रीं श्रीँ
लक्ष्मी प्राप्ति यन्त्र
मद्रे
ॐ ह्रीं पद्मावती देवता
ॐ मेँ हैँ रहे
नैनै ट्रेक्ट
उत्तर
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लघुविद्यानुवाद
५०५
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-
ब्रह्माणी कालरात्री भगवति वरदे ! चण्डि चामुण्डि नित्ये मातङ्गो गौरिधारी धृतिमतिविजये कोति ह्रीं स्तुत्यपद्म ! सग्रामे शत्रु मध्ये जलज्वलनजले वेष्टिते तैः स्वरास्त्रोः क्षां क्षीं सूक्षः क्षणार्धक्षत रिपुनिवहे ! रक्ष मां देवि पद्म ।।१४।।
श्लोकार्थ नं० १४ (१४) क्षा क्षी क्ष , इन चार अक्षर मन्त्रो से वेष्टित होती हुई है माता, प्राधे क्षण मे ही
सग्राम के अन्दर शत्रुप्रो के समूह को भगा देने वाली, आप ब्रह्माणो कालरात्रि, भगवतो, वरदा, चडा, चामु डी, नित्या मातगी. गाधारी, धृति, मति, विजया, कीति और ह्री आदि देवियो से पूजित चरण है आपके, हे पद्मावतो माता मेरी अग्नि से और पानी से होने वाले उपद्रवो को नष्ट करो, उनसे हमारी रक्षा करो ॥१४।।
काव्य न. १४
यन्त्र रचना --
एक विशति दल कमल कृत्वा, मध्ये अम्य स्थाप्य कमल दले ॐ ह्री श्री पदमावती सर्व कल्याण रूपे ग रो द्रा द्री द्रो नम लिखेत, तदुपरि षोडश श्री कार वेष्टयेत् तदुपरि काव्य लिखेत, नानाप्रकारेन अष्टद्रव्य पूजन कृत्वा, बीज मन्त्र यन्त्र प्रभावात स्वर्ग लोकस्य, यक्ष, किन्नर, देव, भूत, भैरवादि सिद्धिर्भवति, राजा प्रजा, स्त्री पुरुषादिक सर्व
वश्य भवति, सौभाग्य लक्ष्मी ददाति वदि मोक्ष भवति ।।१४।। फल व साधन विधि -
चतुर्दश काव्यस्य अम्ल्यू बीज माया शक्ति मे एक विंशति अक्षरै । ___मन्त्र :-ॐ । ह्री श्री पद्मावतो सर्व कल्याण रूपे रां री द्रां द्री द्रो नमः अनेन मंत्रोरण
एक विशति सहस्त्रेण २१००० जाप्य कृत्वा उत्तर दिशा मुखं कृत्वा । पोत वस्त्र परिध.न्यः पीत पुष्पे सरसपं च धृत संयुक्त होमयेत सहस्त्र एक विशती। ४६ दिन मध्ये विद्या सिद्धि भवेत् । अस्य विधा प्रभावात् देव : प्रसनं भवति, सोभाग्य, लक्ष्मी, प्राप्तीभ नि । इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर लिखकर अप्ट द्रव्य से पूजा करे । अथवा सोना, चाँदो, तॉवा के पत्रे पर यन्त्र लिख कर अष्ट द्रव्य से पूजा करे तो यन्त्र मन्त्र के
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५०६
लघुविद्यानुवाद
प्रभाव से स्वर्गलोक के देवता, यक्ष, किन्नर देव, भूत, भैरव को सिद्धी होय, राजा, प्रजा, स्त्री पुत्रादिक सर्व वश्य होय, सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति हो, बदी खाने से छूटे । ॐ ह्रा श्री पद्मावति सर्व कल्याण स्पे रा री द्रा द्री द्रो नम । इस मन्त्र का २१००० हजार जाप उत्तर दिशा मे मुह करके पीले वस्त्र पहनकर जाप करे। पीली सरसो, पीले फूल और ी मिलाकर २१००० मन्त्र से होम ४६ दिन तक करे तो विद्या की सिद्धि होती है। प्रसन्न होय, सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति होय ।
यन्त्र नं० १४
यस्यादेवेनरेन्द्रै नरपति गणैः किन्नरैदानवेन्द्रैः।
आँ श्रीँ श्री श्री
-
अंबेकाले समाधिप्रकटय परमरक्षमा देविप !!
ाँ श्रीँ सिद्धैनागेंद्र यनरमुकुटतटैघृष्टपादारविंद्रे॥
श्री श्री
ahale
-
Wilalbwythaukuwaheela
सोभाग्यदायक यन्त्र
विधि नं. ३
श्लोक न. १४ (१४) इस बारहवे श्लोक के पाठ करने से भक्त के अनेक उपसर्ग नष्ट होते हैं ।
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लघुविद्यानुवाद
५०७
मन्त्र :-ॐक्षा ॐ क्षों ॐ क्षुॐ क्षः स्वाहा ।
इस मन्त्र को पढ़ते हुये शत्रुओं के सामने जाने से शत्र मित्र के समान होता है, इसमे कोई सन्देह नही ।।१४॥ पद्मावति स्थापना यन्त्र को दीपमालिका की पहली रात्रि, कालि चतुर्दशी को अष्टगध से सुवर्ण पत्र पर लिखकर उस यन्त्र के ऊपर पद्मावतीजी की मूर्ति स्थापन कर (ब्रह्माणी कालरात्रि) इस श्लोक का का ल चतुर्दशी को पूर्ण रात्रि पाठ करे, थोडी भी निद्रा न लेवे, उसके दोपमालिका की रात्रि को अष्ट प्रकार से पूजा करे, दशास होम दशाग धूप से करे तो अाकाशगारणी होती है। फिर यन्त्र को मस्तक या भुजा मे धारण करने से अनेक कार्य सिद्ध होते है। नान्यथा, यह गुरूओ की कृपा से है।
श्लोक नं० १४ यन्त्र न० १
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चतुर्मुख यन्त्र
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५०८
लघुविद्यानुवादे
भूविश्वेक्षण चन्द्र चन्द्र पृथिवी युग्मैक संख्याक्रमाच्चन्द्राम्भोनिधि बाणषण्नवसन् दिक् खेचराशादिषु । रिपुमारविश्व भयहृत क्षोभन्तराया विषाः लक्ष्मीलक्षण भारती गुरु मुखान्मन्त्रानिमा देवते ।।१५।। श्लोकार्थ नं १५
१
४
१
१ ५
०
३
६
५
(१५) भू, विश्व, क्षरण, चंद्र, चंद्र, पृथ्वी प्रादि क्रम से चद्र, ग्रभो, निधि, वारण, षष्ट,
ह १०
मुख, दिशा, खेचरादि को से तैयार होते हुये चतुर्मुख यन्त्र से वशीभूत होने वाली पद्मावती भगवती देवी, जो तुमको याद करता है, उसको तुम ऐश्वर्य प्रदान करतो हो, साधक के मारी रोग वगैरह और सर्वभय नष्ट होते है । काव्य नं. १५
यन्त्र रचना
चतुर्दशदल कमल कृत्वा इम्यू बीज मध्ये, स्थाप्य दलेपु मन्त्र । ॐ ह्री पद्मे राज्य प्राप्ति ही क्ली कुरु २ नम लिखेत । तदुपरी षोडश द्रो कारेन वेष्टयेत तदुपर काव्य लिंख्येत । पश्चात धूप दीप नैवेद्य, पुप्पेन पूजन कृत्वा, राज्य लाभ सतान प्राप्तिर्भवति । मन्त्र साधन विधि - पंच दशम काव्यस्य इम्यू बीज रक्त दंता शक्ति चतुर्दशाक्षरे। - ॐ ह्री पद्मे राज्य प्राप्ति ह्रीं क्ली कुरु २ नम । श्रनेन मन्त्रेण षोडश सहस्त्र जाप्यं साधयेत्, मास द्वयेन राज्य प्राप्ति भवति ।
मन्त्र
दीप इस मन्त्रको सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर व सोना, चादी के पत्रे पर लिख कर धूप तो राज्य का लाभ, सन्तान की प्राप्ति होती है । श्रीर मन्त्र सिद्ध कर लेवे, तो दो मास मे राज्य
नवेद्य पुष्पो से यन्त्र की पूजा
प्राप्ति
मन्त्र का जाप सोलह हजार करके होती है ।
विधि न० ३
श्लोक न० १५
(१५) इस श्लोक का मंत्रीद्वार, एक साथ तीन, एक, एक, एक, दो, एक, इसकी संख्या अनुक्रम
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लघुविद्यानुवाद
५०६
-
से जानना, एक, सात, पाच, छैः, पाठ, दस, दस, अठारह, दस । यह हुया यन्त्रोद्धार इस यन्त्र से राज्य के अन्दर बैरी, मारी, सम्पूर्ण भय, सर्प भय, विष भय, सब दूर होता है । इस यन्त्र को कमर मे बाधना, भगन्दर प्लीहा, पेट गोला, कठोदर, जलोदर, वायसूल, पित्तसूल, पक्षाघात, चौरासी प्रकार की वायु नष्ट होती है। इस श्लोक का पाठ करने से साक्षात महादेवी का दर्शन होता है। इस श्लोक को पढते हुये नोम की छाल लेकर झाड़ा देने पर उपरोक्त सर्व रोग नष्ट होते है । जीव को सुख मिलता है, इस चतुर्मुख यन्त्र को गुगुल के रस से भोजपत्र पर लिखे अथवा जलभागरा के रस से, शिला या पीपल के पत्ते पर लिखकर हाथ मे बाधने से और श्लोक को सात बार पढ के झाडा देने से, सर्प भय, विष भय दूर होता है, न अन्यथा जानना ।
यन्त्र नं० १५
पैश्चंदन तदुलै शुभमहा गंधेश्वभन्नालिका
द्र द्रों द्रों द्वाँ
द्रों = राज्यहेत्वांग्रहाणभगवतिवरदेरममावेविपद्मा
द्रौँ द्रौं
द्रों द्रौँ नानावर्णफले विचित्रसरसै:दिव्यंमनोहारिभिः ।।
दाँ
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राज्य प्राप्ति यन्त्र
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____५१०
लघुविद्यानुवाद
श्लोक नं० १५ विधि नं०३
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| ব ল দু স্তক নিজ স্ত্রী ও ক. জল কিচ্ছ, ভলিল ভুক্ত,
दृष्टीक्षण ईक्षण पृथ्वी पृथ्वी चन् निशा
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एक युग्म पृथ्वी दिन चन्द्र शमविभू ਬ ਦਨ ਉਬਹਊਣਖੀ ਲੁਕਰੇ ਬਦਲੇ ਵਿੱਚ ਵਧ ਚੌਂਕ বয়কা লিঙ্ক হল কিন্তু স্তম र की जिंक एक व किलकिन एक
र
रं रं रं
पद्मावती स्थापन यन्त्र खपुर : कोदण्डका ण्डेशलहललाकिरणैर्वज्रनाराच चक्र : शक्ता शल्यन्त्रिश लैवरपरशफलैर्युदगरैमुष्टिदण्डैः । पार्शः पाषाणनृर्व गिरिसहित दिव्य शस्त्रे मानेदुष्ट 'न् संहारयानी ६ र भुजललिते | रक्ष मां देवि ! पद्म ।।१६।।
श्लोकार्थ नं० १६ (१६) जिनके हाथ मे तलवार, धनुप, काड, मूशल, हल', अकुश, भाला चक्र, शक्ति, त्रिशूना
बरछी, गोफल, मुद्गर, मुष्टि, दड, पाश, पाषाण, वृक्ष, पर्वत, गदा आदि दिव्य असख्म
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लघुविद्यानुवाद
शस्त्रो से दुष्टजनो का सहार करने वाली सुन्दर भुजानो से शोभित हे पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ।।१६।।
यन्त्र नं० १६
|| राजन्नीर गर्भ निर्गततडित्ज्वाला सहल्ला स्फुरित्।।
सामापासु प्रसन्नवदला पद्मावलीदेवता
सहत्रांकुशपासपंकजकरामत्स्यामरैरचिताः॥
(12/BR
Plutelle health. Lighl=
पुत्र प्राप्ति दायक यन्त्र
काव्य नं. १६ यन्त्र रचना -
पचविशति दल कमल कृत्वा, कम्यं मध्ये स्थाप्य, वीज दल मध्ये मन्त्राक्षर । ॐ नमो धरणेद्र पद्मावती सहिताय ह्री श्री वा बीक्षा क्षी प्रो ह्री नम लिखेत् । तदुपरि षोडश ॐ कारेन वेष्टयेत पश्चात ऊपरी काव्य वेष्टयेत वेष्टन कृत्ग। अष्ट द्रव्ये न, पूजन कुरू, यन्त्र, मन्त्र प्रभावात् कु बुद्धि नाश भवति तथा परकृत मारण मोहन, उच्चाटन, विद्वेषनादिक कर्म नष्ट भवति दुष्टाना नाश भवति ।
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५१२
लघुविद्यानुवाद
मंत्र साधन व फल :
षोडशं काव्यस्य कम्ल्यू, बीजं श्रीं शक्ति, पंचविंशति मन्त्राक्षरे । ॐ नमो भगवते धरणेंद्र पद्मावति सहिताय ह्रीं श्रीं वां व्री क्षां क्षीं प्रों ह्रीं नमः । अनेन मन्त्रोण, अष्टादश सहस्त्रोन १८००० जाप्यं कृत्वा श्वेत पुष्प, श्वेत सिद्धार्थ, व नारिकेल संयुक्त दिने होम कृत्वा, तत्मंत्र सिद्धिर्भवति, तस्य प्रभावेन, वंध्या पुत्रवति भवति, नव प्रकारेन वम्हिभयं न भवति ।
श्लोक नं. १६ विधि नं. ३ यंत्र नं. १
- -
HION
कहा
ओ
ओ
1 अंॐ
1108
भयनिवारक यन्त्र इस यन्त्र को मुगन्धित द्रव्य से लिखकर प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे। अथवा सोना, चादा तांबा के ऊपर खुदवाकर अप्टद्रव्य मे पूजा करे तो दुर्बुद्धि का नाश होता है और पर
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नीप्रकृति रित्यक्तासिक
गायशी तशालिनी
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लघु विद्यानुवाद
16
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सागमेभगवतीगी
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त्वयासिजप्ताकणबीर
मजपेरातिषाववद सहदबीर
खीर रक्तकुसम पुम्पेचिरंत
मशागुम्लामवन्होदशंसको
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त्रिकोणकृतः होमालपोत
हितगुग्गुलचिमधुभिः
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लघुविद्यानुवाद
५१३
मारण, माहन उच्चाटनादिक कर्म का नाश होता है और दुष्टो का नाश होता है । मन्त्र का जाप्य अठारह हजार (१८०००) जाप करके फिर सफेद फूल और सफेद सरसो और नारियल का गोला तीनो को मिलाकर होम करे, तो मन्त्र की सिद्धि होती है। मन्त्र के प्रभाव से वध्या स्त्री पुत्रवान होत है और नौ प्रकार की अग्नि का नाश होता है। इस मन्त्र और काव्य को पास मे रक्खे ।
विधि नं. ३
१६ श्लोक विधि (१६) इस श्लोक का पाठ करने से ध्यान करने से देवो भक्तजनो के शत्रुनो का नाश करती है।
यस्या देवर्नरन्द्ररमरपतिगणैः किन्नरैर्दानवेन्द्रः। ' सिद्धर्नागेन्द्रयक्षनरमुकुटतटैर्धष्टपादार विन्दे । ।
सौम्ये सौभाग्य लक्ष्मी दलित कलिमले ! पद्मकल्याणमाले ! अम्बे ! काले समाधि प्रकट्य परमं रक्ष मां देवि पद्म ॥१७॥
श्लोक नं० १७ (१७) हे माता आपके चरण कमल, देवो, नरेन्द्रो, इन्द्रो, किन्नरो, राक्षसो सिद्धो (मत्रवादि
पुरुषो) नागेन्द्रो, यक्षो और मानवो के मुकुट सहित नमस्कार करने से आपके चरण घिस गये है। हे सौम्य मूर्ति आपका रूप ही सरल है, आप तो सौभाग्य रूपी लक्ष्मी को देने वाली हो, कलिकाल रूपी मल का नाश करने वाली है, कल्याणकारी, कमल पुष्प की माला धारण करने वाली हे माता समय के अनुसार समाधि प्रकट करने वाली
देवी पद्मावति मेरी रक्षा करो ॥१७॥ फल :- इस श्लोक का पाठ करने से शरीर के अनन्त रोग नष्ट होते है।
धूपैश्चन्दन तन्दुलैः शुभमहागन्धैः समन्त्रालिक
नावर्ण फलैंविचित्रसरसै दिव्यमनोहारिभिः । पुष्प नैवेद्यवस्त्रैर्मनुभुवनकरा भक्ति युक्तः प्रदाता राज्ये हेत्वं ग्रहाणे भगवति वरदे ! रक्ष मां देवि ! पद्म ॥१८॥
श्लोकार्थ नं. १८ (१८) हे माता तुम धूप से, सुगन्धित चदन से, अक्षत से. सुगन्धित द्रव्यो से, मन्त्रपर्वक पजित
हो, फिर गुजार करते हुये भ्रमर समूह से वेष्टित स्वादृ मधुर फलो से, दिव्य मुगन्धित,
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५१४
लघुविद्यानुवाद
मन को आनन्द देने वाले ऐसे चित्र विचित्र पुष्पो से शोभित होती हुई और भक्तजनो ने भक्ति-भाव से समर्पित किया है नैवेद्य और सुन्दर २ वस्त्राभरण, राजपोशाक से सज्जित हे वरदान देने वाली पद्मावति देवी मेरी तुम रक्षा करो ॥१८॥
___ [मन्त्र विधि नही है ।
काव्य नं. १७-१८ अस्य काव्यस्य हंशक्ति ग्लव्यं बीजं एकोन विशति क्षरै । मन्त्र :-ॐ ह्री श्री ऐं क्लीं झां प्रो प्रां कों पद्मावति रक्त रूपे नमः । अनेन मंत्रण
सव्वा लाख १,२५,००० जाप्यं कृत्वा अष्टाग धूप, दीप नैवेद्य न । यन्त्र रचना .
पद्मावति स्वरूप रक्त वर्ण चतुर्भुजा, पद्मासना, अकुश, त्रिशूल, पास, कमल, हस्ते देव्यापरि नवदल कमल कृत्वा, तत कमल परिदेव्यादलै. । ॐ ह्री श्री क्ली ऐ द्रा प्रो ह्र र लिखेत । अनेन मन्त्रण, ॐ ह्री श्री ऐ क्ली झाप्रो आ को पद्मावती रक्त रूपे नम वेष्टयेत तत् अग्ने होम कु ड कृत्वा दशास होम कुरू ।
इस यन्त्र को पद्मावती के आकार का बनाकर ऊपर नौ कमल दल बनावे। उसमे ॐ ह्री श्री क्ली ए द्रा प्रो ह्र र. लिखे। उपरि ॐ ह्री श्री ए क्ली झा प्रोप्रा को पद्मावति रक्त रूपे नम लिखे, फिर होम कु ड बनाव । होम कु ड चोकोन अगुल २५ उसका विस्तार अगुल १०० उसके मध्य मे योन्याकार कु ड अगुल ६४ विस्तार मध्य मे करे। लाल कनेर के फूल, गुग्गुल, घी, कपूर, सहित मिष्ठान, तिल ये सब मिला कर होम करे। जितना जाप मन्त्र का किया हो उसका दशास होम करना, तब देवता प्रसन्न होता है, और अपना भक्ष मागता है। हलवा, पूरी, २५ सेर, लड्डू ५ सेर, मेवा ५ सेर, खीर ४ सेर, इत्यादिक भक्ष दीजिये, तब पद्मावति प्रत्यक्ष होकर कहे कि वर मागो तब जो इच्छा हो देवो से वर माग लेना, कार्य सिद्ध होता है । पद्मावति देवी को छहो सिद्धान्त वाले अलग-२ नाम से पुकारते व पूजा करते है । ॐ ह्री श्री ए क्ली झा प्रो श्रा को पद्मावति रक्त रूपे नम इस मन्त्र का सवा लक्ष १२५०० जाप करे। अष्टाग धूप दीप नैवेद्य से करे । यन्त्र मे देवी की मूर्ति बनावे ।
क्षुद्रोपद्रवोगशोक हरगी दारिद्रय विद्राविणी व्यालव्याघ्रहरा फरणत्रयधरा देहप्रभा भास्वरा । पातालाधिपतिप्रिया प्रणयिनी चिन्तामणिः प्राणिनां श्रीमत्पार्श्व जिनेश शासन सरी पद्मावती देवता ॥१६॥
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श्लोकाय नं. १६
(१६) हे माता तुम हमारे क्षुद्रोपद्रव, राग, शोक को नाश करने वाली, दरिद्रता को दूर करने वाली, सर्प और व्याघ्र के उपद्रव को नाश करने वाली, जो कान्ति से युक्त शरीर सहित शोभायमान हो रही हो । जिनके मस्तक पर नागराज के तीन फरण शोभित है और नागराज धरणेंद्र के द्वारा प्रीति को प्राप्त हो गई है, भक्त जनो के लिये चिन्तामणि समान हो, भगवान पार्श्वनाथ जिनेश्वर के शासन को शासन देवी हो । हे देवी माता मेरे पर कृपा करो ।। १६ ।।
फल
लघु विद्यानुवाद
इस श्लोक का निरन्तर पाठ करने से, क्षुद्रोपद्रव नाश होता है, और दारिद्र दूर होता है ।
तारा त्वं सुगतागमे भगवती गौरीतिशैवागमे
वज्रा कौलिक शासने जिनमते पद्मावती विश्रुता । गायत्री श्रुत शालिनां प्रकृतिरित्युक्तासि सांख्यागमे मातभारती ! कि प्रभूत भरिणतै व्यप्तिं समस्तं त्वया ||२०||
श्लोक पाठ का फल
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श्लोक नं० २०
(२०) हे माता, हे सरस्वती, तुम्हारी प्रत्येक धर्मावलम्बी आराधना करता है, तुम प्रत्येक जगह व्याप्त हो, बौद्धमतावलम्बी तुमको ( तारा ) नाम से पुकारते है, शैवमतावलम्बी आपको गौरी कहकर पूजते है, कौलिक मत वाले आपको वज्रा कहकर आराधना करते है, और जैन दर्शन वाले आपको पद्मावति नाम से आराधना करते है, वैदिक सम्प्रदाय वाले, गायत्री कहते है, साख्य मत वाले आपको प्रकृति नाम से पूजते है, हे भगवती देवी आप सबकी मान्य देवी हो ||२०||
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इस श्लोक का पाठ करने से सर्वत्र देवी अपने - २ रूप मे दर्शन देती है ।
काव्य नं. १६ - २०
इस विद्या मन्त्र का एक लाख ( १,००,०००) जाप पूर्व की तरफ मुख करके बहत्तर ( ७२ ) दिन तक जाप करे, मन्त्र सिद्ध हो जायगा । मन्त्र सिद्ध होने प्रभाव से साधक को पाताल वासी विषधर, देव, भूमिजा, स्वगादिक देव, दानव यक्ष, राक्षस, कल्पेद्र, सूर्यादि ग्रह गरण, समस्त साधक के चरण कमलो की पूजा करते है ।
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५१६
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र रचना -
कस्यै देवा, धरणेद्र देवेन कथ भूत धरणेद्रादि विष हर पन्नग पुरुपाकार स्वरूप द्विभुजा सर्पाकार मस्तके अर्द्ध चद्राकार, तन्मध्ये ही कारे स्थाप्य पुनरपि पोडश वर्णन मना ॐ ह्री विषहर पन्नग धरणेद्राय नम लिखेत कठ देशे रविकारी स्थाप्य मति अष्टदल कमल मत्रेन ॐ हो ऐ धरणेद्राय विषहर पन्नग रूपाय श्रा, श्री धू हर हर हा ह ह नम देष्टयेत् अनेन प्रकारेन धरणेद्र स्वरूप कृत्वा ।
ये यन्त्र साक्षात पुरुप त्रैलोक्य को वशी करता है। मत्र का राजा धरणेद्र है । लक्ष्मी मनोकामना को देने वाला है। नोट ---इस १६-२० श्लोक को विधि मे हमे कुछ अशुद्ध पाठ नजर आता है। क्योकि जहा
श्लोक मे बाह्य कठेर वेष्टया कमल दल युत मूल मत्र प्रयुक्त ऐसा पाठ है। किन्तु हमारी समझ से तो यहा--बाह्य ठकार वेप्टय होना चाहिये। समझ मे नही आता कि कहा पाठ बदल गया है। जब तक पूर्ण प्रमाण नही मिले तब तक पाठ बदलना ठीक नही जमता है। हमने जैसा पाठ था वैसा ही यत्र बना दिया। विशेष विद्वान लोग समझे। जितने आजकल उपलब्ध पाठ है उनमे ऐसा ही पाठ है। पाताले कृशता विषं विषवरा धर्मन्ति ब्रह्माण्डजाः स्वर्भूमिपति देवदानवगणाः सूर्येन्दुज्योतिर्गणाः । कल्पेन्द्राः स्तुति पादपंकजनता मुक्तामरिंग चुम्बिता सा त्रैलोक्यनता मता त्रिभुवने स्तुत्या सदा सर्वदा ॥२१॥
श्लोकार्थ नं० २१ (२१) हे माता आप तीनो लाको मे वदित हो, पाताल मे रहने वाले, विषधर भयकर विप को लेकर ब्रह्माड भ्रमण कर रहे है, तुम्हारे चरण कमलो की आराधना कर रहे है, आपके चरण कमल देवेन्द्रो से, राजाप्रो से, सूर्य चद्र, तारागण भी पूज रहे है, नमस्कार कर रहे है, आपके पाद पकज मुक्ता, मरिण से चुम्बित है हे माता तीनो भुवन के प्राणी आपकी निरन्तर स्तुति कर रहे है ॥२१॥ श्लोक पाठ का फल :
यह श्लोक सर्वत्र रक्षा करने वाला है, इस श्लोक का पाठ कर चोटी गाठ लगा देने से सर्वत्र रक्षा होगी ॥२१॥
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लघुविद्यानुवाद
५१७
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काव्य नं. २१ इस काव्य का पाठ करने से क्षुद्रोपद्रव, रोग, शोक, दारिद्र, दुख, दुर्बुद्धि, व्याघ्र, सर्प, विष, राजभय, दुष्ट कर्म मारण, उच्चाटन, इत्यादिक धरणेद्रपद्मावति जो पाताल वासी देव है, वह दूर करते है ।
यन्त्र नं० २१ षट् ल ल मध्ये, देवदत्त देय तद्वाह्य अष्टदल कृत्वा, प्रत्येक दल मध्ये द्वय २ ल देयं, एतद् यत्रा कृति।
एतद् यत्र हरिद्रात, लिखित्वा, शिलासंपुट अधोमुख कृत्वा स्थातव्य यत्र प्रभावेन् शत्रु मुख स्तभन भवति । इस यत्र को हल्दी से लिखकर शिला सपुट करके रखे तो शत्रु का मुख स्तभन होता है।
श्लो. नं. २१ विधि नं. २
यंत्र नं. २१
लू
ल
(ललल
नाम ललल
छ
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लघुविद्यानुवाद
सजप्ता कणवीर रक्तकुसुमैः पुष्पैः समं संचितैः सन्मिश्रः धुत गुग्गलौघ मधुभिः कुण्डे त्रिकोणे कृते । होमार्थ कृत षोडशांगुलिसमं वन्ही दशांशेर्जपेत् तं वाचं वचसीह देवि ! सहसा पद्मावती देवता ॥२२॥
(२२) अच्छी तरह से एकत्र किये गये लाल कनेर के पुष्प व अनेक प्रकार के पुष्पो से जाप्य करके धी, गुग्गल और मधु, गुड को चासनी के साथ होम द्रव्य को सोलह अगुल की समिधा से त्रिकोण होम कु ड मे दशास होम करे तो उसके मुख कमल मे साक्षात् भगवती निवास करती है, साधक की सम्पूर्ण इच्छा पूर्ण करने के लिये देवी आकाशवाणी करती है ।।२२।।
श्लोक नं० २२ विधि नं० २ मन्त्र .-ह. नामभितो वलयंदेयं, वलयमध्ये ॐ पार्श्वनाथाय स्वाहा, लिखेत् तद्वाह्य
त्रणं वलयंदेयं, तस्यप्रथमं वलय मध्ये षोडशः स्वरंलिखेत् द्वितीय वलयमध्ये हर हर लिखेत् तृतियवलयमध्ये, ककारात् प्रारंभं कृत्वा क्ष कारप्रर्यतं लिखेत् बाह्य ही कारं त्रिगुणं वेष्टयेत्, एतद्यन्त्र रचना । एतद्यन्त्रंकर्पूर अगुरू, कस्तुरी, कुकुमादि सुगन्धित द्रव्येण लिखेत् शुभसमयमध्ये, नन्तरंकन्याकत्रितसूत्रेण यन्त्र वेष्टयित्वा भुजायांधारयेत् तर्हि
सौभाग्यादिसुखस्य प्राप्तिर्भवति । विधि :-इस यन्त्र को कपूर, अगुरू, कस्तुरी, कु कुमादि सुगन्धित द्रव्यो से जाई की कलम से शुभ
समय मे यत्र बनाकर कन्या कत्रित सूत्र से यन्त्र को वेष्टित करके हाथ मे बाधने से सौभाग्यादि सुखो की प्राप्ति होती है।
विधि नं० ३
श्लोक नं० २२ (२२) इस श्लोक का विधान इस प्रकार है-धूपैश्चदन, इस श्लोक से पूजा करे, लाल कनेर के फूल, गुग्गल, घृत, दस जाति की वस्तुओ को मिलाकर त्रिकोण कु ड मे ॐ भूविश्वे, इस मन्त्र के
आदि अन्त मे ॐ मौ जै मै, इन बीजो को लगाकर होम करे, त्रिकोण होम कु ड बनावे, वह होमकुड पच्चीस अगुल गहरा सोलह अगुल का त्रिकोण बनाकर तीन रात्रि तीन दिवस दीपमालिका, अथवा होली, अथवा ग्रहण के दिन, एकान्त स्थान मे प्रारम्भ करे, पानी रहित नारियल को चढावे, तो देवो की आकाशवाणी होती है, न सदेह ॥२२॥
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५१६
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र नं० २२
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22
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ह्रींकारे श्चन्द्रमध्ये पुनरपि वलयं षोडशावर्णपूर्णेर्बाह्याकण्ठैरवेष्ट्यं कमलदलयुतं मूलमन्त्र प्रयुक्तम् । साक्षात् त्रैलोक्यवश्य पुरुषवश कृतं मन्त्र राजेन्द्र राज एतत्स्वरूपं परमपदमिदं पातु मां पार्श्वनाथः ॥२३॥
(२३) द्वितीया के चद्रमा से सहित, मध्य भाग मे श्री धरणेद्र की मूर्ति का आलेखन करे, नाहर सोलह पाखडियो के अन्दर सोलह अक्षर का मत्र लिखे, उसके बाद आठ पाखडियो मे मल मन्त्र लिखे।
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५२०
लघुविद्यानुवाद
यह यन्त्र साक्षात त्रिलोक को वश में करने वाला है, पुरुष को वश करने मे श्रेष्ठ है, सर्व मत्रों मे मन्त्रराज है, यही तत्व स्वरूप व भक्तजनो को परम आनन्द देने वाला है, इस प्रकार हे देवी मेरी भी रक्षा करो ॥२३॥
यंत्र नं. २३
देवदत्ता
श्लोक नं० २३ विधि नं० २ ॐ नामभितो, षट्कोणं कृत्वा, तपटकोणमध्ये क्रमशः ह्रीं श्रीं अर्ह नमः लिखेत् बाह्य मायाबीजं त्रिगुणं वेष्टय, यन्त्र लिखेत् । एतद् यन्त्र भोजपत्रे लिखित्वा, ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह नमः एतमंनं जपेत् मंत्रस्य पीतध्यानात् स्तंभनं भवति अरूणवर्णस्यध्यानात वशीकरण भवति, प्रबालवर्णस्यध्यानात् क्षोभं भवति, कृष्णवरणस्यध्यानात् विद्वषरणं भवति, शुक्लवर्णस्यध्यानात् कर्मक्षयंभवति ॥
___एतद् मन्त्रस्य द्वादशसहस्त्रविधिपूर्वकं जाप्यं कृत्वा, दशांस होगकुर्यात् तदा मंत्रंसिद्ध भवति ॥
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लघुविद्यानुवाद
५२१
इस यन्त्र को भोज पत्र पर लिखकर सामने रखे, फिर ॐ ह्री श्री अर्ह नमः यह मत्र १२००० हजार विधि पूर्वक जाप्य कर दशास होम करे, तब मन सिद्ध होता है। सिद्ध होने के बाद मन्त्र का पीला ध्यान से करने स्तम्भन, अरूण वर्ण का ध्यान से वशीकरण, प्रवालवर्ण का ध्यान से क्षोभ, काला ध्यान करने से विद्वेषण होता है, चद्रमा के समान सफेद ध्यान करने से कर्मक्षय होता है।
विधि नं. ३
श्लोक नं० २३ (२३) इस मत्र का एक सौ आठ बार जाप्य करे, नित्य ही त्रिकाल जपे, सर्वजन वश्य होय । इस श्लोक का पाठ करने से त्रिलोक मोहन होता है ।।२३।। प्रोत्फल्लत्कुन्दनादे कमलकुवलये मालतीमाल्यपूज्ये पादस्थे भूधरारणां कृतरणक्वरिणते रम्यझंकार रावे । गुंजत्कांचीकलापे पृथुलकटितटे तुच्छमध्यप्रदेशे हा हा हुंकारनादे ! कृतकर कमले ! रक्ष मां देवि पद्म ॥२४॥
(२४) विकसित होते हुये मोगरा के पुष्प ऊपर गुजायमान भ्रमर जैसे शब्द वाली, कमल और कुमुदनी से शोभायमान दिख रही है, मालती पुष्पो से पूजित, पर्वतो पर रहने वाली, जिनके चरण युगल शब्दायमान नुपूरो से सहित है, जिनकी कटी तट पर काची कलाप (कटी सूत्र) शब्दायमान कर रहा है, तुच्छ मध्य प्रदेश वाली, हा हा हु कार शब्द करने वाली, हाथ मे कमल पुष्प को धारण करने वाली, हे पद्मावति देवि मेरी रक्षा करो॥२४॥
श्लोक नं. २४ विधि नं. २ देवदत्तभितो, वलयं देयं, वलयमध्येषोडशस्वरं देयं, तद्वाह्य षटकोणाकृतिकृतव्यं तन्मध्ये क्रमशः ॐ जूं सः प्रां कों ह्र लिखेत् तद्वाह्ये कोणेषु रः रः, सः सः लिखेत् तद्वाह्य मायाबीजं त्रीगुणवेष्टयं बाह्य, ॐ श्रां क्रों ह्रीं क्लीं ब्लू सः अमुकी वश्य मानय २ सवौषट् लिखेत् ।
एतद्यन्नं नागरबेलस्यपो अर्कदुग्धे अखरोटत्रणपोसित्वा, सहराइ योगेन लिखित्वा, दीपशिखायांदिनत्रयं दहति, तस्य रम्भा एवं वशंभवती ती अन्यस्त्रीस्य कि वार्ता, दृष्टप्रत्यक्ष ।
इस यन्त्र को नागरबेल के पत्ते पर पाक के दूध मे अखरोट ३ पीसकर साथ मे राइ भी मिलावे और यत्र इससे लिखकर दीप शिखा मे तीन दिन तक जलावे तो रम्भा भी वश मे होती है तो अन्य स्त्री की तो क्या बात ।
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लघुविद्यानुवाद
यंत्र नं० २४
ऊँऑक्राँ हाँक्ली ब्लू सःअमुकीवस्यमानयर संवौष्ट् |
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% 3D
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दिव्ये पद्म सुलग्ने स्तनतटमुपरि स्फारहारावलीके केयूरैः कंकणाद्य बहुविधरचित हुदण्ड प्रचण्डैः । भाभाले वृद्धतेजः स्फुरन्मरिणशतैः कुण्डलोदघष्टगण्डे त्रां ह्रीं स्रस्रः स्मरन्ती गजपतिगमने रक्ष मां देवि ! पद्म ॥२५॥
(२५) जो उत्तम कमल मे विराजमान है, जिनके स्तन मडल पर अनेक लडियो वाले हार शोभित हो रहे है। वाजुबध, ककण वगैरह आभषणो से जिनके भुज दड शोभित हो रहे हैं। जिनका मस्तक भाल अनेक मणियो के प्रकाश से भी ज्यादा तेजोमय है, दोनो कानो के कु डल
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लघुविद्यानुवाद
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से जिनका गड स्थल घर्षित हो रहा है, और जो भगवती ला स्त्री स्र स्रः, ये चार अक्षरो का स्मरण करती हुई हस्तिनी के समान चल रही है, ऐसी पद्मावति देवी मेरी रक्षा करो ।।२५।।
यंत्र नं० २५
कर दिवदतः श्री
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श्लोक नं, २५ विधि नं. २ ह्रीं नामभितो तदुपरी ॐ ह्रीं श्रीं, लिखेत् बाह्य मायाबीजं लिखेत, चलयाकारं कृत्वा वलयमध्ये ॐ ह्रीं पार्श्वनाथाय ह्री नमः लिखेत् तदनन्तरं मायाबीज त्रीगुणवेष्टयेत् । इदं यन्त्र सुगन्धित द्रव्येण लिखित्वा सुगन्धित द्रव्यात् अर्चनां कुर्यात तदनन्तर कन्याकत्रित सूत्रेण वेष्टयित्वा भुजायां धारयेत् तहि भूतादि दोषं दराः भवति संतानप्राप्तिर्भवति, सौभाग्यं वृद्धिर्भवति ।
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लघुविद्यानुवाद
इस यत्र को सुगन्धित द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखकर सुगन्धित द्रव्यो से पूजा करे, फिर कन्याकत्रीत सूत से लपेटकर हाथ मे बाधे तो भूत, प्रेत वगेरह दोष दूर होता है । सतान प्राप्ति होती है, सौभाग्य वृद्धि होती है।
या मन्त्रागम वद्धिमान वितनोल्लास प्रदार्पणां या चेष्टाशयक्लप्तकार्मरण गण प्रध्वंस दक्षांकुशा । आयुर्वृद्धिकरां जराभयहरं सर्वार्थसिद्धिप्रदां सद्यः प्रत्ययकारिणी भगवती पद्मावती संस्तुवे ॥२६॥
(२६) हे माता तुम मन्त्रागमो से पूजित हो, सर्व प्रकार से वृद्धि, यश, मान, आनन्द, और प्रसन्नता को देने वाली हो, इच्छित कामनाओ को सिद्ध करने के लिये दूसरो के द्वारा प्रयोगित कामण, टोटका आदि से होने वाले उपद्रवो को अकुश मे करने वाली हो, आयुष्य की वृद्धि करती हो, वृद्धत्व और प्रत्येक प्रकार के भय को दूर करने वाली हो, सर्व प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हो, प्रत्यक्ष फल को देने वाली हो, ऐसी भगवती देवी से मै प्रार्थना करता हूँ ॥२६॥
श्लोक नं० २६ विधि नं० २ षट्कोण चक्रमध्ये ॐ लिखित्वा तदुपरी ह्रीं लिखेत् षट्कोरणेषु प्रत्येकमध्ये क्रमशः, कुरू कुल्ले स्वाहा, लिखेत् । एतद् यन्त्र प्रकारं ।
एतद् यन्त्रं अष्टगंधेन भुर्जपोलिखित्वा, ॐ ह्री देवी कुरू कुल्ले अमुकं कुरू २ स्वाहा, मन्त्रस्य सताष्टवारं जपात मन्त्रस्यसिद्धिर्भवति, शुभयोगे, शुभदिने, शुभवासरे चंद्रबलादि द्धसित्वा, जाप्यं कुर्यात् अष्ट द्रव्येणनित्यं अर्चनां कुरू तर्हि सिद्धिर्भवति ।
_मन्त्र प्रभावेण कुष्टरोगं, नाशं भवति, कुपस्य लवरणनिरं मृधु भवति सर्प पुष्पमाला भवति, शस्त्रस्य आघातः पुष्पस्यमाला समभवति । अग्नि नीर समं भवति, विषः अमतं सम भवति उष्णकालः शरदऋतु सम भवति, रविकिरणस्य उष्णता चन्द्रकिरणसमशीतलं भवति, नित्यज्वर, एकान्तज्वर, द्वितीयज्वर तृतीयज्वर चतुर्थ ज्वरादि नाशं भवति, सादिकं प्राज्ञामाशेण शीघ्रदुरतरः भवति ।
इस यत्र को अप्टगध से भोजपत्र पर लिख कर ॐ ह्री देवी कुरू कुल्ले अमुक कुरु २ स्वाहा । इस मत्र का १०८ बार जाप्य करने से मत्र सिद्ध होता है, इस मत्र का जप करने के
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लघुविद्यानुवाद
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लिये, अच्छा दिन, अच्छा योग चन्द्रबल वगैरे का निर्णय करके जाप्य करे, अष्टद्रव्य से यन्त्र पूजा करे, तो मत्र सिद्ध होता है ।
इस मत्र के प्रभाव से कोड रोग का नाश होता है। कुएं का खारा पानी अमृत के समान हो जाता है, सर्प फूल को माला बन जाता है, भाला का अग्रभाग फूल जैसा हो जाता है, अग्नि का पानी हो जाता है, विष अमृत के समान बन जाता है। गर्मी के दिन शरद ऋतु के समान बन जाता है, सूर्य चन्द्रमा के समान हो जाता है, नित्य ज्वरादि ठीक हो जाते है । विषैले जन्तु तो आज्ञा मात्र से ही दूर हो जाते है ।
यन्त्र नं० २६ विधि नं. २ का यन्त्र
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पद्मासना पद्मदलायताक्षी, पद्मानना पद्मकरांध्रि पद्मा । पद्मप्रभा पार्श्व जिनेन्द्र सक्ता, पद्मावती पातु फरणीन्द्र पत्नी ॥२७॥
(२७) कमल के ऊपर विराजमान, कमल लोचन है आपके, कमल के समान मुख वाली हो, आपके हाथ पाव भी कमल के समान है, कमल के समान शोभा वाली हो, श्री पार्श्वनाथ प्रभ की शासन देवी हो, श्री धरणेद्र की पत्नी देवी पद्मावती मेरी रक्षा करो ॥२७॥
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लघुविद्यानुवाद
मात ! पद्मिनी ! पद्मरागरुचिरे ! पद्मप्रसूनानने ! पद्म ! पद्मवन स्थिते ! परिलसत्पद्माक्षि ! पद्मानने । पद्ममोदिनि ! पद्मकान्ति वरदे ! पद्म प्रसूनाचिते ! पद्मोल्लासिनि ! पद्म नाभि निलये ! पद्मावती पहिमाम् ||२८||
(२८) हे पद्मिनी, हे कमल जैसे सुन्दर वर्ण वाली, हे कमल के समान मुख वाली, हे पद्मा, हे कमल के वन मे रहने वाली कमल के समान सुशोभित नेत्र वाली, कमल के समान काति वाली, भक्तो को वरदान देने वाली, भक्तजनो ने भक्ति से पूजन किया है कमल के फूलों से, कमल के समान उल्लास वाली, आपका नाभि कमल, कमल के समान है ऐसी है पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ||२८||
विधि नं. २ श्लोक नं. २८
(२८) इस श्लोक के द्वारा माता जी का कमलो से सेवा करे तो देवी का कमल रूप दर्शन होता है ||२८||
या देवी त्रिपुरा पुरत्रयगता शीघ्रासि शीघ्रप्रदा
या देवी समया समस्तभुवने संगीयता कामदा |
तारा मान विर्मादनी भगवती देवी च पद्मावती
तास्ता सर्वगताः स्तमेव नियतं मायेति तुभ्य नमः ||२६||
( २ ) त्रिपुर मे रहने से त्रिपुरा, शीघ्र ही साधक को वरदान देने से शीघ्रप्रदा, आपको समया नाम से भी पुकारते हैं, साधको को इच्छित वरदान देने वाली होने से कामदा कहते है, दुष्टो के मान मर्दन करने वाली होने से तारा कहते है । हे भगवती श्राप समस्त वैभव सहित हो, सारे संसार मे प्रसिद्ध हो, तुम हो माया स्वरूप हो इसलिये श्रापको मेरा नमस्कार है ||२६||
त्र ुटयत् श्रृंखल बन्धनं बहुविधैः पाशश्च यन्मोचनं स्तम्भे शत्रु, जलाग्नि दारुण महीनागारिनाशे भयम् । दारिद्रय ग्रह रोग शोक शमनं सौभाग्य लक्ष्मीप्रदं
ये भक्त्या भुवि संस्मरन्ति मनुजास्ते देवि ! नामग्रहम् ||३०||
(३०) इस जगत मे तुम्हारी जो कोई भक्ति करता है, ग्रापका स्मरण करता है, उसका तुम मनोवांछित पूरा करती हो, तुम्हारे स्मरण मात्र से ही बंधन टूट जाते है, कैसी भी श्रापत्ति मे
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लघुविद्यानुवाद
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निकल जाता है, किसी के किये हुये, स्तम्भन प्रयोग, शस्त्र, पाणी, अग्नि, भूकम्पन आदि उपसर्ग, सर्प, सिह वगैरे हिसक प्राणियो के भय, तुम्हारे स्मरण से दूर हो जाते है। दरिद्रता, ग्रहो की पीडा, रोग, शोक आदि सब शात हो जाते है, सौभाग्य तथा लक्ष्मी की प्राप्ति तुम्हारा नाम लेने वाले को होती है ।। ३०॥
भक्तानां देहि सिद्धि मम सकलमधं देवि ! दूरी कुरुवं सर्वेषां धामिकानां सततनियततं वांछित्तं पूरयस्य । संसाराब्धौ निमग्नं प्रगुरणगरगयुते जीवराशि च त्राहि श्रीमज्जैनेद्र धर्म प्रकटय विमलं देवि ! पद्मावति ! त्वम् ॥३१॥
(३१) भक्त जनो को सिद्धि देने वाली हे पद्मावती देवी मेरे सर्व पापो को तुम नाश करो, सर्व धार्मिक मनुष्यो के नित्य ही मनोवाछित पूर्ण करो, सम्पूर्ण जीव राशि की रक्षा करो, जो ससार समुद्र मे डूब रही है । हे पद्मावती देवी आप पवित्र जिनेश्वर के द्वारा प्ररूपण किया हुआ जिनधर्म की महिमा को बढायो ।।३।।
विधि नं० ३
श्लोक नं० ३१ (३१) इस श्लोक का शुद्ध मन से निरन्तर पाठ करने से भगवती साक्षात दर्शन देती है, और साधक के मनोवाछित पूर्ण करती है ।।३१।।
दिव्यं स्तोत्रं पवित्रं पटुतरपठतां भक्तिपूर्व त्रिसन्ध्यं लक्ष्मी सौभाग्य रूप दलितकलिमलं मङ्गलं मङ्गलानाम् । पूज्यं कल्यारणमाद्य जनयति सततं पार्श्वनाथ प्रसादाद् देवी पद्मावती नः प्रहसित वदना या स्तुता दानवेन्द्रः ॥३२॥
(३२) इस दिव्य और पवित्र स्तोत्र को शुद्ध और पवित्र वस्त्रो को पहनकर भक्तिपूर्वक प्रात काल मे, मध्यान्ह, सायकाल मे पाठ करने वालो को निरन्तर सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. सब पाप कर्मों का नाश होता है, सर्व मगलो मे मगल रूप है, इस स्तोत्र का पाठ करने से प्रभु पाश्वनाथ की कृपा से प्रसन्न मुख वाली और दानवेद्र, राक्षस आदि स्तुत्य ऐसी भगवती पद्मावती देवी निरन्तर कल्याण करो ॥३२॥
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लघुविद्यानुवाद
विधि नं०३
श्लोक नं० ३२ (३२) इस बती मा श्लोक के पाठ करने से ऋद्धि, वृद्धि, सौभाग्य लक्ष्मी की प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, परिवार रोग रहित होता है. सर्व कार्य की सिद्धि होती है ।।३२॥
पठितं भणितं गुरिणतं जयविजय रमा निबन्धनं परमम् । सर्वाधि-व्याधिहरं जपतां पद्मावती स्तोत्रम् । ३३।।
(३३) इस पद्मावति स्तोत्र का पाठ करने वाले, कराने वाले, सुनने वाले को जय, विजय और अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, और सर्व प्रकार से मानसिक चिन्ता दूर होती है, सर्व प्रकार के रोग दूर होते है तथा परम कल्याण करने वाला है ।।३३।।
प्राद्य चोपद्रवं हन्ति द्वितीयं भूतनाशनम् । तृतीये चामरी हन्ति चतुर्थे रिपुनाशनम् ॥३४॥ पंच पंच जनानां च वशीकारं भवेद् ध्र वम् । षष्ठे चोच्चाटनं हन्ति सप्तमे रिपुनाशनम् ॥३५॥ अत्योढे गांश्चाष्टमे च नवमे सर्वकार्यकृत् । इष्टा भवन्ति तेषां च त्रिकाल पठनार्थिनाम् ॥३६।।
इस पहले श्लोक से उपद्रव नाश होता है, द्वितीय श्लोक से भूत प्रेत की पीडा शात होती है, तीसरे श्लोक से मारी वगैरे उपद्रवो का नाश होता है, चौथे श्लोक से शत्रुओ का नाश होता है, पचम श्लोक से राक्षस वगैरे का निश्चित रूप से वशीकरण होता है, छठे श्लोक से उच्चाटन प्रयोगो का नाश होता है। सातवे श्लोक से भी शत्रुओ का नाश होता है। आठवे श्लोक से उद्वेग आदि मन की आकुलता कम होती है । नवम श्लोक से सर्व कार्य की सिद्धि होती है। इस प्रकार इस स्तोत्र का त्रिकाल पाठ करने से इष्ट सिद्धि प्राप्त होती है ॥ ३४ ॥ ३५ ॥ ३६॥
आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं । पूजार्चा नैव जानामि त्वं गतिः परमेश्वरि ॥३७॥
हे देवी मैं तुम्हारा आवाहन, विसर्जन, पूजा-अर्चना कुछ भी करना नही जानता, इसलिये जो कुछ भी करता हूँ वह भक्ति से करता हूँ इसलिये मेरी रक्षा करने वाली भी तुम ही हो, मेरा आधार भी आप ही हो ॥३७॥
॥ इति ।
LATE
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काययंत्रन०-6-2017
लावारियायालय
का
वरळDTER
-
तारत मत त्या
दलिनलाल
Fed
SCOTHA
SM-TRuse
BHARASTRA
लपकजानता सुख
जदाजबागणी
कNAESAR
न्हा स्तुल पान
LEEShatsAD
-काट दलकमलो लये महि-ॐही परणाम
लय विधानुवाद
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श्री विश्वरी देवी
लघु विद्यानुदाद
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लघुविद्यानुवाद
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प्रशस्ति स्वस्ति श्री वीरनिर्वाण २५ मासानांमासे द्वितीयजेष्ठमासे शुक्लपक्षेश्रुतपंचम्यां, रविवासरे शुभमूहेर्ते, शुभलग्ने, बिहार राज्ये, पारानगरस्य, चंद्रप्रभुज्वालामालिनि मंदिर मध्येस्थित चन्द्रप्रभूजिनबिंब समीपे, टीकाकर्ता श्रीमूलसंघ, सरस्वतिगच्छे, बलात्कारगणे, कुन्दकुन्दाचार्य परंपरायां श्री प्राचार्य आदिसागर अंकलीकर तत्शिष्य, समाधिसम्राट, अध्यात्मयोगी, तीर्थभक्तशिरोमरिण, चतुनियोग प्रागमज्ञ, महातपस्वी, निमित्तज्ञानी, प्राचार्यमहावीरकीति तत्शिष्य, सर्वागमज्ञ, यन्त्र, मन्त्र, तन्त्र विशेषज्ञ, श्रमरणरत्न, वात्सल्यरत्नाकर, स्याद्वाद केशरी, गरगधराचार्य कुन्थुसागरेण, पद्मावती स्तोत्र श्री मग्दिवाण, वृतिस्य राष्ट्रभाषायांमया सर्वजनहितार्थ, विमलनामधेयस्य टीकाकर्ता । इति
श्री चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र यन्त्र मन्त्र
(हिन्दी) विधि सहित स बीज मन्त्र यन्त्र गभित चक्रेश्वरी स्तोत्रं लिख्यते । श्री चक्रे चक्र भीमे ललित वर भुजे लीलया लालयन्ती । चक्र विद्युत्प्रकाश ज्वलित शत शिरवे खे खगेन्द्राधिरूढे । तत्त्वै रूद्भूत भासा सकल गुण निधे मन्त्र रूप स्वकान्ते ।
कोट्यादित्य प्रकाशे त्रिभुवन विदिते त्राहि मा देवि चक्रे ।।१।। टीका :-हे चक्रे 'देवि' व 'मा' त्राहि रक्ष पालय, कथ भूत हे चक्र, श्री चक्रे श्रियालक्ष्म्याः
चक्रे समूहे पुन. कथ भूते चक्र भीमे, 'चक्रण' भीमे भयकरे पुनललित वर भजे, चक्र 'लीलया' लालयन्ती, कथ भूत, चक्र, विद्यु द्वत्प्रकाशा, यस्य तत्, पुनर्वलित, शतशिख, ज्वलिता दीप्ता, शतशिखा, शताग्नि, शिखा, यस्मिन्, तत् पुनः कथ भूते, देवि रवे, आकाशे, कोट्यादित्य प्रकाशे, कोटि सूर्य प्रकाशे पुनः खगेन्द्राधिरूढे, गरु डा रूढे, पून, स्तत्त्वै, स्सप्त तत्त्वै रूद्भुताया भास, स्तया सकलगुण निधे, हे मन्त्र रूप स्वकान्ते. हे त्रिभुवन विदिते त्रिलोक प्रसिद्ध त्व 'मा' त्राहि योजनीय चेति पदार्थः ।
शान्ति कर्म
॥ यन्त्रोद्धार । अस्य 'तत्व' समुद्धीयते 'श्रीचक्र' अतश्चक्रे, अभ्यतर कणिकाया 'खे' चक्र भीमा गरुडा
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लघुविद्यानुवाद
रूढा भने 'चक' लाल यन्ती इ 'रूपा' लक्ष्मी रूपात 'तत्त्व' श्रीचक्र अष्टार चक्र श्री वीज लेखनीय चक्रशब्देनाष्टार चक्र - गृह्यते पुनस्तत्त्वै स्सप्त तत्व वीज रुद्भूता 'या' कान्ति, स्तया, सकल गुण निधे, रितिपदेन कलाभि पोडश कलाभि गुणरष्ट बीजाक्षर स्तथा निध्याक्षरे स्तथा, मूल मन्त्रेण रूप वेप्टियित्वा ध्यातव्या।
प्रस्य मन्त्र : ॐ ऐ श्री चक्र चक्रभीमे ज्वल २ गरुड पृष्टि समान्ढे ह्रा ही ह ह्रौ ह्र स्वाहा । विद्युद्वीज 'ऐ' तत्त्वानि आमादीनि चेतिजय ।।
अथ विधि : पूर्वादिक् 'पासन' 'पद्मासन' प्रभात काल वरद मुद्रा इत्यादि को ज्ञेय । शान्ति कर्मण फल सकल गुण लाभो निधि लाभश्चेति ज्ञेय ।
यन्त्र न० १
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यत्र के बीच मे बारह भुजी चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति बनाके ।
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लघुविद्यानुवाद
बीजोत्पत्ति समद्देशः सूच्यते 'बीज कोशत , विज्ञानार्थ प्रतीत्यर्थं, फल, तेषा, पृथक २ तत्वानि, कानी' सप्तव आ वा हा ता रा ला धां इति च भवन्ति, गुणा अष्टौ के असि पाउसा ह्री श्री इवी गुण अष्टौ प्रकीत्तिता. इत्युक्त नैव निध्यक्षराणि इह कानि सति जिनागमे गूढानि, चान्य शास्त्रेषु विना विद्यानुशासनात् । ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री द्रा को क्षी, एतानि नव बीजानि निधिना चार्थ सज्ञया नव भेदाः प्रणीता स्यु, कर्मणा च पृथक प्रदा इत्युक्त कान्ति वीज : क्ली) भवेच्च सर्व कामार्थ साधक च चक्र बीज माख्यात चक्रे चक्रे पृथक २ इत्युक्ति गूढा अर्थतेषा फलोदश माह प्राकार सूरि वर्गस्यात् मकार साधुवर्गे तत्संयोग भवा सिद्धि. प्रथमे तत्व बीजके ॥१॥ - व कारो वरूण पक्षी, गगन सज्ञया स्मृता स्तत्सयोगेन शात्यैश्य पुष्टि कर्म प्रदोप्यय ॥२॥
ह कारोदिविज भारव्ये कर्मणी व्योम शून्ययो स्तत्सयोगेन, वशीकार कार्य सिद्धि करो भवेत् ।।३।।
त कार स्तस्कर प्रोक्तस्तद्रोधे, 'पाश' बीज युक्त तत्प्रभावेन चौर्यादि दृष्ट घात करो भवेत् ॥ ॥
__ र कामानिल वन्हीना त्रिस्वरूपेणैव सस्थित तत्सयोग भवेदेष सर्व कामार्थ साधनः ॥५॥
। लः कामोल पृथिव्याख्य स्तम्भन बीज मुक्तम तत्सयोगादिद जाये ताग्न्यादि स्तम्भ कारण ॥६॥ ।
ध धनेध समादाने सयोगेन निधिप्रद इत्युक्ते सप्त विजाणी कार्य कराणि च ॥७॥ .
सयोगत समुद्दिष्टः देवताः 'स्सप्त एव च प्राचार्यो वरूणो पाशी 'शक' सोमो' यमो भवेत् ॥८॥
कुवेर इति सज्ञाता सप्त देवाः इमे स्मृता इति वीज कोशात् गुणोत्पत्ति कथ्यते । अकारोहन सिर्भवेत् सिद्ध प्राचार्ये उरूपाध्याये सा साधौ इत्युक्ते. ।
ह्री श्री क्ली कथ सिद्धा इत्युक्ते श्चेत् कथ्यते क्षत् जस्थ, व्योम वक्त्र धूम्र भैरव्य ल कृत नाद बिन्दु समायुक्त बीज प्राथमिक स्मृत ।।
क्षतजो 'र कारः' व्योम वक्त्र' ह कार.' धूम्र भैरवी ई इत्येभि' ही सिद्ध फलं च पञ्च वर्णात्मक ध्यानस्य यत्फलं तत् ज्ञेय श्री चण्डीश, क्षतजारूढ धूम्र भैरव्य ल कृत नाद विन्दु समायुक्त बीज पद्मालयात्मकं ।२।
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लघुविद्यानुवाद
श्री चडीश. शकार ( शेष पूर्ववत् ) संयुक्त धूम्र भैरव्या रक्तस्य वलि भायुत नाद विन्दु समायुक्त बीज स्याद्भ त भैरवी।३।
स्वी फल च वास्णी शान्ति स्तुष्टि पुष्टि वितन्य ते इत्यप्ट गुणोत्पत्ति फल नव निधि फलोत्पत्ति सूच्यते तद्यथा ह्री तु सूचित मेव पर तु वर्णान्त प्रादि जिनोयोरेफ स्त लगत स गोमुख राट् तूर्य स्वर स बिन्दु सभवेच्च श्वरी सन इत्यभिधानार्थ पुनम्क्तम ने नैव क्रमेण वर्णान्त पार्श्व जिनोयो रेफस्त लगत. 'स' धरणेन्द्र स्तुर्य स्वर स बिन्दुः सभवेत्पद्मावती सज्ञ -
इत्यभिधानमपि सगत कथं अ वा ज्वालामुखी काली चक्रा पद्मावती ति 'च' लक्ष्मी सरस्वति दैव्यो 'जैना' शासन भाक्तिका शक्ति स्पा एक स्पा ध्यातव्या वर देवता यासा प्रतीति सिद्धयर्थ पुरु नभ्यत्य सम्मती इति विद्यानुशासनोक्त मल्लिपेणाचार्य ॥
क्ली क्रोधीगो बल भेदी च धर्म भैर व्यलकृत' नाद विन्दु ममायुक्त कामराज पर स्मर । क्रोधीश. ककारा बलभेदी 'लकार' व्ल व भय करो बलभिलदा युक्तो नाद युतो भवेत् विदारी भूषितो भूत सज्ञया द्रावणो मत ।
द्रा द्री द्वय काम युग रति काम द्वयं प्रद उत्पति बीज कोशाच्च मोहने कर्मणि स्मृता ।४।
आ 'बीज' पाश वीज स्यात् को बील त्व कुशाह्वय क्षी वीज पृथ्वी बीज त्रिण्यापि प्रीति कारण।
चण्डेन 'कविना' 'प्रोक्ता निधियो' 'नव' कि न च, लिखिताश्चेति प्रश्नेचोत्तर शृणत भाक्तिका ।
ह्रा ह्री क्षा क्षी तू क्षे ह ह्री ह इत्येता निधियो मता । वश्याकर्षण उन्मादोच्चाटन स्थम्भनानि च तुष्टि पुष्टि शरीरस्य धातु वर्द्धन कारिका , इत्युक्ते स्ता कथ ने 'त्युरमाहा' काव्येऽस्मिन नव कर्माणि नोक्तान्य स्मात् कृतानि च, मोहनाकर्षण शान्ति पुष्टि मुस्कान सन्ति चात पृथक, उक्तानि, इति सक्षेपतो बीज विषय फल प्रथम काव्यस्य गत ॥
यन्त्र रचना यन्त्र रचना इस प्रकार करे। वलयाकार छ घेरे बनाकर बोच कणिका मे, गरूडा रूड अष्ट भुजा वाली चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति बनाकर अष्टदल वाला प्रथम वलय मे कमल बनावे । और कमल के प्रत्येक दल मे श्री, बीज की स्थापना करे, पाठो ही दल मे आठ श्री बनाव ।
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लघुविद्यानुवाद
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द्वितीय वलय मे क्रमश: आ वा हा ता रा ला धा की स्थापना करे तृतीय वलय मे अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अ अ., इन सोलह स्वरो की स्थापना करे। चौथा वलय मे क्रम से, असि पाउसा ह्री श्री झ्वी, इन बीजाक्षरो को लिखे। पचम वलय मे ह्री क्ली ब्लू द्रा द्री द्रू (ह्र.) आ को क्षी इन नौ निधि रूप बीजाक्षरो को लिखे, फिर सप्तम वलय मे मूल मन्त्र इस श्लोक का है वह लिखे । मूल मन्त्र :-ॐ ऐं श्री चक्र चक्र भीमे ज्वल २ गरूड पृष्टि समा रूढे ह्रा ही ह ह्रौ ह्र.
स्वाहा। इस मन्त्र को लिखे । इस स्तोत्र के प्रथम काव्य का यह न० १ यन्त्र का स्वरूप बना।।
इस प्रकार के यन्त्र को ताबा, सोना, चादी, अथवा भोजपत्र के ऊपर खुदवा कर यन्त्र सामने रखकर, मूल मन्त्र का पूर्व दिशा मे पद्मासन से प्रात. काल, वरद मुद्रा से साढे बारह हजार जप करे, यन्त्र पास मे रखे तो सर्व शाति होती है सर्व गुणों का लाभ होता है और नाना प्रकार की निधि का लाभ होता है । धन की वृद्धि होती है। भोजपत्र पर यन्त्र लिखना हो तो सुगन्धित द्रव्य से लिखकर पास रखे, तावीज मे धारण करे। मूल मन्त्र .-ॐ ऐं श्री चक्रे चक्र भीमे ज्वल २ गरूड पृष्टि समारूढे ह्रा ह्री ह ह्रौ ह्रः
स्वाहा। इसी मूल मन्त्र का साढे बारह हजार जप करना है।
__अथः द्वितीय श्लोक क्ली क्लीन्ने क्लि प्रकीले किलि-किलि त खे दुदभिध्नाननादे । आ हु क्षु ह्री सु चक्रे क्रमसि जगदिद चक्र विक्रान्त कीत्ति ।। क्षा आ ऊ भासयति त्रिभुवन मखिल सप्त तेज. प्रकाशे ।
क्षा क्षी क्षं विस्फुरन्ति प्रबल बल युते त्राहि मा देवि चक्रे ।२। टीका -हे चक्र, देवि, त्व मा त्राहि रक्ष २ कथ भूते चक्रे क्ली क्लिन्ने क्लीमित्यस्य 'कोर्थ' नित्ये
काम साधिनि पुन. कथ भूते क्लिन्ने काम रूपे मनोभिष्ट साधिनि पुनः कथ भूते क्लि प्रकीले मुखात् क्लि प्रकथके थ 'त' एव किलि-किलि त खे सज्ञा शब्द. किलकिलोति सज्ञा रूप. सजातो यस्मिन् स किलकिल तो र वः शब्दो यस्या पुन. कथ भूते दुदुभि ध्वान नादे, दु दुभि ध्वानवत् नादो यस्या सा व चक्र विक्रान्त कीति. दश दिशा व्याप्त कीर्ति आ हु क्षु ह्री सु चक्रे इदं जगत क्रमसि है सप्त तेज प्रकाशे वल वोर्य पराक्रम | ति मति पुष्टि तुष्टि सप्त तेजासि तेषाप्रकाणे क्षां प्रां त्रिभि
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लघुविद्यानुवाद
बीजै स्त्रि भुवन "भाष्यन्ति ई रूपा" सि क्षा क्षो क्ष प्रबल वलयुते विस्फुरन्ति दशी 'त्व' म सीत्यर्थ --
अथ यन्त्रोद्धार चक्र विक्रान्त कीति रिती पदेन पटकोण चक्रे कणिकाया समति कोति.। कोणपु पट् सु ा हु क्षु ह्री चक्रे इति पट् बीजानि उपरी क्लि क्लिन्ने क्लि नित्ये किलि किलि इति क्षा आ उ इति दक्षिणे उत्तरे सप्त तेजासि लेख्यानि अघ. क्षा भी क्षु प्रवन बलेति पदानि चेत्युद्धार ।
अथ मन्त्रोद्धारः ॐ क्ली क्लिन्ने दिल नित्ये नम १ उपा हु क्षु ह्री नम २४ क्षा प्रा ॐ नम: ३ ॐ चक्रे क्षा क्षी क्षु प्रवल बल स्वाहा ४ एत्तानि मन्त्राणि चत्वारि अस्मिन् काव्ये सन्ति ।
अथ विधि पुष्टि कर्मणः सप्त दश नियमा ज्ञातव्या. फल च तेज प्रताप वृद्धि दिव्य वाचा लाभ श्चेति ज्ञेय ।
अथ बीजोत्पत्ति क्ली स्वरूप क्रोधीश बल भी सस्थ धूम्र भैरव्य ल कृत 'विद्वि दु सयुत' बीज द्रावण क्लेदन स्मृत इति ।
प्रथमस्य काम बीजस्य क्लि 'क्रोधीश' बल भी सस्थ रूद्र भैरव्य लकृत विद्विदु सयुत बीज़ चड कर्म फल स्मृत, इकारो गर्जिनी चण्डा तथा च रूद्र भैरवी त्युक्ते प्रेत्यस्य मकारस्तु कपर्दी स्यात् ‘र कार' क्ष तेजो भवेत् ।।
सयोगेन भवे द्वश्य कारी प्रो बीज उत्तम किलि २ क्रोधीशो, बल भेदी, चण्डी, बीजेण सयत फलेन काम रूपत्व मोहने वश्य कर्मणि, इत्युक्ते, आकारे नाम सी काले नाद बिन्दु समाश्रिते, पाश बीज फल दुष्ट निग्रह प्रति पादित मित्युक्ते हू व्योमास्य काल वज्राढय नादिनी बिन्दु सयुत, ह फल निधि प्रदान च क्ष' त्रैलोक्य नसन बीज काल वक्त्रान्वित पर क्षु वीज साद्धं विद्वि क फल चाकर्षण पर चेति 'ह्री' युक्त फल त्रैलोक्य ग्रसन ध्येय, पाश बीज समन्वित तेज प्रताप सिद्धयर्थ पाश, प्रणव , सयुत सप्त तेजा सिर बीज सप्तक वा थ वेदक तस्या पि सप्त क वोध्य श अ व र त क ग इति क्षा क्षी सू आ काल रात्रि. ई धूम्र भैरवी 'ऊ' विदारी च सयोगात् फलानि च 'तेज' प्रतापादिव्य वाचा लाभश्चेति बोध्य ।
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मूल मन्त्र
-ॐ क्लि क्लिन्ने क्लि नित्ये नमः |१|
ॐ ग्राहु क्षु ही नम
|२|
ॐ क्षा प्रा ॐ नम |३|
लघुविद्यानुवाद
1.
ॐ चक्रे क्षा क्षी क्षू प्रबल बल स्वाहा |४|
इस श्लोक मे व यन्त्र में, ये चार प्रकार का मन्त्र पाया जाता है । इन मन्त्रो का जाप पुष्टि कर्म के लिए जपना चाहिये । इसके लिये १७ प्रकार के नियम जानना चाहिए ।
यन्त्र न० २
क्लिं क्लिन्ने क्लिं नित्ये किल किल
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५३५
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独典
यन्त्र - लेखन विधि
पहले पट् कोरगा कार बनावे । बीच मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति का प्रकार बनावे, फिर पट्कोण को करिंणका मे क्रमश नीचे वाली प्रथम करिंणका मे आ लिखे फिर दूसरी करिका मे 'हु ' लिखे, तृतीय करिंणका से 'क्ष' लिखे, चतुर्थ करिंका मे 'ही' लिखे, पचम करिणका मे 'च' लिखे, छठी करिंका मे 'क' लिखे । पट् वोजो के ऊपर क्लि क्लिन्ने क्लि नित्ये किलि किलि लिखे, क्षा यार्ड
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५३६
लघुविद्यानुवाद
-
लिखे, दक्षिण मे और उत्तर मे सात र र र र र र र कार तेज वीज को लिखे, नीचे क्षा क्षी झू प्रबल वल लिखे । ये यन्त्र रचना इस प्रकार हुई ।
इस यन्त्र को ताबा, सोना या चादी पर खुदवा कर, पास रखने से, वाक् सिद्धि (वचन सिद्धि) होती है । तेज बढता है । प्रताप बढता है ।
मूल मन्त्र जो उपरोक्त चार प्रकार के है, उनका जप पुष्टि कर्म के लिए विधि पूर्वक करना चाहिये । जप करते समय गुरु से पूछकर पूर्ण विधि विधान ज्ञात कर जप करे । प्रत्येक मन्त्र का सवा सवा लाख जप करने से तेज व प्रताप बढेगा और दिव्य वचन का लाभ होगा।
अथ ततीय काव्य
मोहन कर्म श्रू झौ दू प्रसिद्ध सुजन जन पदाना सदा कामधेनु. । गू क्ष्मी श्री कीर्ति बुद्धि प्रथयति वरदे त्व महा मन्त्र मूर्ते। त्रैलोक्य क्षोभयति कुरु कुरु हरह नीर नाद प्र घोपे ।
क्ली क्लि ह्री द्रावयन्ती द्रुत कनक निभे त्राहि मा देवि चक्रे ॥३॥ टीका . हे चक्र देवी त्व 'मा' त्राहि रक्ष रक्षेति श्र झी द्र इति मन्त्रेण । 'प्रसिद्ध' हे चक्र
देवि त्व सुजन जन पदाना सुष्ट जना सुजना स्तेषाये जन पदा. देशा तेषा त्व सदा सर्व स्मिन् काले 'कामधेनु रसि' पुनः कथ भूते, हे वरदे हे महा मन्त्र रु मूर्ते त्व गूक्ष्मी श्री इति त्रिभिर्मत्र बीजाक्षरैः श्री कीर्ति बुद्धि प्रथयसि 'पुन ' कथ भूते हे नीर नाद प्रघोषि जलद् नाद शद्वे कुरु २ हर ह इति मन्त्रेण त्रैलोक्य क्षोभयती हे द्रत कनकनिभे द्रुत तप्त षोडश वणिक स्वर्ण कान्ते क्ली किल ही स्त्री द्राव यन्ति त्यसि चास्मिन् काव्ये चतुर्भि पादै काम धेनु त्व प्रथम पदेन मनोभिप्सित कार्ये साधने द्वितीय पदेन श्री कीर्ति बुद्धि प्रथनत्व तृतीय पदेन त्रैलोक्य क्षोभणत्व तूर्य पदेन स्त्री द्रावण त्व सूचित मिर्त्यर्थः ।
अथ यन्त्रो द्धार षट् कोण चक्र स मूर्तिक पूर्ववत् कृत्वा पश्चादुपरि श्रूझौद्र पू लिख्यते गू क्ष्मी श्री दक्षिणे उत्तरे हर ह कुरु २ अध. क्ली क्ली ही चक्रे इति यन्त्रो द्धार. ।
अथ मन्त्रो द्धार ॐ श्रू झौ दू धू गू क्ष्मी श्री कुरु कुरु हर हर ह क्ली क्लि ह्री चक्रे स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
५३७
मोहन कर्मणः सवौं ज्ञातव्य. फल श्री कोति बुद्धि विस्तृति, क्षोभण, द्रावण, वशीकरणानि च ज्ञातव्यम् ।
अथ बीजोत्पत्ति
श्र शश्चडीशः र क्षतज ॐ विदारी 'म' महाकाल चतु सयोग फल वशीकरण झौ झः __वाल मुख र क्षतज. ॐ डाकनो मः ‘महाकाल' चतु सयोग फल डाकिनी तिरस्कार: द. वलि. रक्षतजः ___ॐ विदाराम. 'काल' इति चतु. सज्ञः काम बीजात् द्रावण फल पः ‘कपर्दी' र: क्षतज ॐ विदारी मः महाकाल इति चतु. सयोगात् ग श्वड. ॐ विदारी म महाकाल त्रि सयोगात् वर सिद्धि फल, क्षः त्रैलोक्य (ग्रसित) ग्रसन म: महाकाल. ई धूम्र भैरवी 'म' महाकाल क्ष्मी शत्रु सहारः फल श्री लक्ष्मी बीज साधन पूर्व मुक्त हः श्रन्य र. अग्नि बीज ह व्योम वक्त्र फल हर है त्रयाणा, लोक शून्य ‘फल क्ली क्ली ही पूर्व मुक्त फल साधना । इति :
यन्त्र नं. ३
कर
कुरू कुरू
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हं
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५३८
लघुविद्यानुवाद
मन्त्र, यन्त्र रचना व फल इसमे पहले षट्कोण रचना करे, फिर बीच मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति बनावे। षट्कोण को कणिकाओ मे नीचे से क्रमश आ, हु क्ष , ह्री, च, के लिखे, पट्कोण चक्र के ऊपर थू , झौ, दू , पू , दक्षिण मे गू क्ष्मी श्री लिखे, उत्तर मे ह र ह कुरु कुरु लिखे, नीचे क्ली क्ली ही चक्र इति यन्त्रोद्धार । मूल मन्त्र -ॐ श्रू झौद्र पू गू क्ष्मी श्री कुरु कुरु हर हर ह क्ली क्ली ह्री चक्रे स्वाहा ।
इस मन्त्र का साढ बारह हजार यन्त्र तावे के पत्रे पर बनाकर सामने रख कर, विधि सहित जाप करे, तो मोहन कर्म, विणेप होता है, श्री कीति बुद्धि का विस्तार होता है, क्षोभण, द्रावरण, वशीकरण भी होता है। मोहन, शोषण, विजय, उच्चाटनार्थ
चतुर्थ काव्य
ॐ क्षु द्रा ह्री सु बीजै प्रवर गुण धरै मोहिनी शोषणी त्व। शैले-शले नटन्ती विजय जयकरी रौद्र मूर्ते त्रि नेत्रे ।। वज्र क्रोधे सु भोमे 'रहसि' करतले भ्रामयन्ति सु चक्र। रु रु रौ ह कराले भगवति वर दे त्राहि मा देवी चक्रे ॥४॥ टीका . हे चक्रे देवि त्व मा त्राहि रक्ष रक्ष कथ भूते चक्रे ॐ क्षु द्रा द्री ह्री सु बीजै मोहनी त्व
मसि 'प्रवर' गुण धरै बीज त्व शोषिणी कर्म शोषण्यसि शैले २ पर्वते 'नटन्ती' श्री श्ली पदेन श्ले श्लै पदेन विजय जय करो हे रौद्र मर्ते हे त्रिनेत्रे हे वज्र क्रोधे हे सु भी मे भ्रा भ्री भ्र भ्रौ भ्र सु भी मे 'त्व' कर तले हस्त तले चक्र, भ्रामयन्ति 'रटसि' पठसि रु रु रोह कराले हे चक्र भगवति वर दासि इति हे वरदे त्व मा रक्षेत्यर्थ ।
अथ यन्त्रोद्धार प्रथमा नु क्रमे 'चक्रेश्वरी' मति रभ्यन्तरे लेख्या षट्कोण केपु पूर्व व द्विजाति व्यवस्थाप्य तदुपरि ॐ शू द्रा ह्रो माहय मोहय मोहनि एनी श्ली श्ले श्लै विजये जय जय दक्षिण उत्तरे च भ्रा भ्रो 5 भ्रो न चक्र भ्रानय भ्रामय अध श्च रु रु रौ ह. कराले वरदे रक्ष रक्ष इति ।
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लघुविद्यानुवाद
अथ मन्त्र: ॐ क्षु द्रा ह्री असि पाउसा इवी क्लो ब्लो माहय २ मोहिनी स्वाहा ॐ असि पाउसा इवी क्ली ब्ली कर्माणि शोषय २ र र र र र धग २ ज्वालय २ स्वाहा ।
ॐ श्ली श्ली श्ले श्ल विजये जये रौद्र मूर्ते त्रिनेत्र स्वाहा । ॐ वज्र क्रोधे चक्रे भीमे भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र चक्र भ्रामय २ स्वाहा । ॐ रु रू रौ ह कराले भगवति वरदे स्वाहा। इत्येव चत्त्वारि मत्राणि मोहन शोषण विजयो उच्चाटनाना पचमो वरद विधि पञ्च कर्मणा ज्ञेय फल लिखित मेव ।
अथ बीजोत्पत्ति ॐ अ अरिहत अशरीर 'अ' आचार्य 'या' स वर्ण दीर्घ त्वा 'दा' उपाध्यायस्य ऊ पदेन प्रो इतिमुने 'मकारस्य' अनुस्वारेण कृते, सिद्ध फल-मिति मोक्ष रूप क्ष त्रैलोक्यग्रसन उ काल वक्त्रा क्षोभरण, फल द्रा काम बीज 'ही' मोहन बीज (श) श्वडीश स ल बल भेदी ए' ऊर्द्ध केशी ऐ उग्न भैरवी श्ले श्लै फल प्रालिगनादि करणत्व फल र क्षत ज काल वक्त्रा 'ऊ' विदारी ऊ डाकिनी
यन्त्र न० ४
ॐचूद्रोही मोहयमोहय मोहनिश्तांग्लाश्लें ।
भौं भ्रः चक्रं भामय भ्रामया इ.
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श्लें विजय जप जय रूबै रौं हः ॥
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चीज एतत्त्रय मोहन बीज रू शोषण बीज रू उच्चाटन वीज रौ ह सकल शून्य । इति ।
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५४०
लघुविद्यानुवाद
पूर्वोक्त प्रकार से षट्कोणाकार यन्त्र रचना करे। पट्कोण के प्रथम करिणका से क्रमश आ, हु, क्षु , ह्री, च, के लिखे, फिर यन्त्र के चारो तरफ मूल मन्त्र लिखे ।
ॐ क्षु दाह्री मोहय २ मोहनी । श्ली श्ली श्ले श्लै विजये जय जय । रू रू रौ ह कराले वरदे रक्ष २ । भ्रा भ्री भ्रू भ्रौ भ्र चक्र भ्रामय २ ।
इन बीजाक्षरो को षट्कोण यन्त्र के चारो तरफ लिखे ।
इस यन्त्र को चादी के ऊपर खुदवाकर, मन्त्र का साढे बारह हजार जप यन्त्र के सामने जप करे, प्रत्येक कार्य के लिये प्रत्येक मन्त्र का साढ बारह हजार जप करे तो क्रमश मोहन, शोषण, विजय उच्चाटन होता है । मन्त्र पहले इसो काव्य मे लिखा है।
अथ पंचम काव्य वशीकरणार्थ ॐ ह्री हु हु सुहर्षे ह ह ह ह हिम कुन्देन्दु स काश बीजै । ह्रा ह्री ह्र क्षः सुवर्ण कुवलय नयनेद्विद्रु मा द्रावयन्ती ।। ह हो ह क्ष स्त्रिलोकी अमृत जलधरा वारुण प्लावयन्ती।
झा झा ह स सु बीजे. प्रबल बल भया त्राहि मा देवि चक्रे ॥५॥ टीक .हे देवि चक्रे त्व मा त्राहि 'रक्ष २' कस्मात् भयात् । कथ भूते झा झा ह्र स प्रबल बलेति
सु बीज भय-नाशके पुन कथ भूते चक्रे हिम कुन्देन्दु सकाश बीजै ध्यात. ॐ ह्रा ह्रो ह्र ह लक्षणे सुहर्षे 'पुन' कथ भूते, ह्रा ह्री ह्र. क्ष सुवर्ण द्विद्र, द्र, द्र, द्र. सर्व जनान योषि तश्च आद्रावयन्ती मोहयन्ती 'पुन.' कथ भूते ह ही ह क्ष पदा कितै. अमृत । जलधरा वारुण त्रिलोकी प्लावयती त्व रक्षत्यर्थ ।
अथ यन्त्रोद्धार: पूर्ववत् स मूर्तिक षट्कोण चक्र मारभ्य. स बीज कृता ऊपरि ॐ ह्रा ह्री ह ह ह ह ह हैति विलिख्य दक्षिणे ह्रा ह्री ह क्ष द्रु , चेति विलिख्य 'उतरे' च, ह हो ह क्ष त्रिभुवन बीजानि च अधश्च झा झा ह्र, स प्रबल बलेति चेति सलिख्य अमृत वीजेन वेष्टयित्वा जलधरा वारुण प प्लावयन्ती तिध्यातव्येत्यर्थ ।
मन्त्रोद्धारः ॐ ह्रा ह्री ह्र. ह ह ह ह ह द ह्रा ह्री ह.क्ष द्रावय २ मोहय २ स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
५४१
ॐ ह हा ही ह. क्षः झा झा ह्र, सः प्रबल बल चक्रे स्वाहा।
वशीकरण विषयोऽपिसो विधि र्वोधव्या फल च द्रावण आकर्षण मोहन वशीकरणानिचेति सवोध्य।
अथ बीजोत्पत्ति ॐ अ विद्यु जिह्वा 'उ' काल वक्त्रा सयोगे द्वयो उईति मः महाकालः ऊ इति शत्रु क्षय कारक त्त्वेनानदोत्पादकत्व फल ह्री क्षतजस्थ व्योम, वक्त्रधूर्म भैरव्यल कृत नाद बिन्दु समायुक्त बीज प्राथमिक स्मृत, षट् कर्म सिद्धि करण फल ज्ञेय । हु काल वक्त्र युकफल च स्तम्भन ज्ञय स र
यन्त्र नं. ५
वो
वो
इवीं
वा
6
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________________
५४२
लघुविद्यानुवाद
कार तदा कर्पण हू मोहनात्मक विदारी युक्त व्योमास्य रूद्र डाकिन्य लकृत नाद बिन्दु समायुक्त है ह बीजद्वय भवेत् । चतु शून्य हकारः स्यात्फलं क्रोधाग्नि वारुणा विपाना स्तभ करण विजेय विजकोशत द्र द्र, कामरतीख्याते ह्रा ह्री ह्र क्षः उक्तफला ह हो ह रूद्र डाकिनी भीमाक्षी चण्डिका सयोगात् त्रिलोक वशीकरणात्मका: झा झा ह स झो वाल मुख प्रा कालरात्री: तत्फल वल भय हरण झो वालमुख. र क्षतजः आ काल रात्री फल रोग हरण ह्र. फलमाकर्पण स धूम ध्वज स विसर्गस्तत्फल परदेश गमन फल इति ।
___ इस यन्त्र को तांबे के पत्रे पर या चॉदी सोने के पत्र पर खुदवाकर पूजन करे पश्चात् ऊपर लिखित दोनो मन्त्रो का पृथक २ जप करे, जिसका कार्य के लिये जपना है। वशीकरण विधि मे भी सर्व प्रकार की विधि जानना चाहिये । इन दोनो मन्त्रो को अलग २ जप साढे बारह हजार करने से द्रावरण, आकर्षण, मोहन, वशीकरण आदि होता है। जप विधि पूर्वक करना चाहिए।
शोभनार्थ षष्टम काव्यम या को ह्री क्षयुताँगे प्रलय दिन करास्तस्य कोटि प्रकाशे। अष्टौ चक्राणि धृत्वा विमलः निज भुजैः पद्यमेक फल च ।। द्वाभ्या 'चक्र' करालं निशित चल शिख तार्क्ष्य रूढा प्रचण्डा ।
ह्रा ही ह्रौ क्षोभ कारी र र र र रमणे त्राहि मा देवि चक्रे ॥६॥
हे चक्रे देवि त्व मा त्राहि रक्ष रक्ष' कथ भूते पा को ही क्षु युतान्य गानि यस्य प्रा को ह्री क्षु युताँगे आनाभ्यु परि को ललाटे ह्री 'हार्द' क्षु कर्ण द्वय पुन कथभूते प्रलया चल सवध्यऽस्ताचलस्य कोटि दिन कर प्रकाशे पुनः कथ भूते विमल निज भुजैरष्ट भि अष्टौ चक्राणि धृत्वा पद्मक नवम् भुजे दशम भुजे प्येर्क फल द्वाभ्या एकादश द्वादश भुजाभ्या 'कराल' विकराल निशिता तीक्ष्णा 'चला' चचला शिखायस्य तत ईद्दश चक्र धृत्वा प्रचण्डाऽसि पुन कथ भूता ताक्ष्य रूढा गरुढा गरूढा पुन कथ भूते चक्र हा ह्री ह्रौ क्षोभकारी र र र रमणो हे 'चक्र' देवित्व मा रक्ष रक्ष रक्ष इत्यर्थ।
अथ यन्त्रोद्धार द्वादश भुजा चक्रेश्वरी लिखित्वा गरुढारूढा उक्त स्थानेषु बीजानि सलेख्य ह्रा ही हो इति त्रिभि /जै वेष्टयेत् पश्चात् र र र र बीज त्रय वेष्टितेऽग्नि पुटेस्थाप्य ध्यातव्येत्युद्धार. । अथ मन्त्र :-ॐ आ को ह्री क्षुह्रा ह्री ह्रौ स्वाहा । इति मन्त्र ।
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लघुविद्यानुवाद
५४३
विधि -क्षोभ कर्मण सर्वोजेय फल च त्रैलोक्य क्षोभत नाम सज्ञेयम् ।
अथ बोजोत्पत्ति .~-या या काल रात्रि. शत्रु सहार कारिका क. क्रोधीश र क्षतज औ 'सयोगात्' विद्वेपण फल ही मित्युक्त फल क्ष. त्रैलोक्य असनात्मक 'उ' 'उ' काल वक्त्राम. महाकाल त्रिमयोगी क्षु फल चाकर्षण कर ज्ञेय ह्रा ह्री ह्रौ आ काल रात्री ई गजनी प्रो डाकिनी शेप पूर्ववत् फल च क्षोभण र र र र चतुष्कस्य फल चाग्नि बीज चतुष्क तु शत्र क्रोध जलानतोच्चाटन फल विज्ञय ।
यन्त्र न. ६
व
का
हाही
MAKnt
ا یم ایم ایم ایس
इस मन्त्र को इस प्रकार बनावे । प्रथम पट्कोणाकार बनावे। पटकोण के प्रथम
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५४४
लघुविद्यानुवाद
करिंणका मे आ, द्वितीय मे हु, तीसरे मे क्षु, चौथे मे ह्री, पचम मे च, छठे मे को लिखे, फिर पट्कोण के बीच मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लिखे । षट्कोण के ऊपर ६ वलय खीचे । प्रथम वलय कार मे १४ हा लिखे । द्वितीय वलय मे २२ ही लिखे । तीसरे वलय मे २३ हौ लिखे । चौथे वलय मे २७ र कार लिखे । पचम मे ३४ र कार लिखे । छठे मे ३२ र कार लिखे । फिर वलया कार पर त्रिकोण रेखा खिचे । त्रिकोण के अन्दर १२ र कार खीचे । इस प्रकार यन्त्र बनावे |
सुगन्धित द्रव्य से भोजपत्र पर यन्त्र लिखे, चादी अथवा तावे के ऊपर खुदवाकर यन्त्र सामने रखकर मन्त्र का विधिपूर्वक जप करे, साढे बारह हजार तो तीनो लोक मे क्षोभ होता है । ये यन्त्र मन्त्र त्रैलोक्य क्षोभन है ।
तुष्ट कर्म रगार्थ सप्तम काव्यम्
क्षु हु क्षु विचित्रे त्रिनयन नयने नाद विन्दूग्र नेत्रे । च च च वज्र धारा ल ल ल ल ललिते नील के शालि केशे । च च च चक्र धारा चल चल चलिते नू पुरै लेलि लीले । ह्राह्री सुकीर्ति सुर वर नमिते त्राहि मा देवि चक्रे ॥७॥
ܘ
टोका .—हे चक्रे देवि त्व मा त्राहि रक्ष रक्ष कथ भूते चक्रे सुक्षु हु क्षु विचित्रे पुन कथ भूते त्रि नयने स्त्रिभि लोचने र्नयन वस्तु प्रापण यस्या सापुन कथ भूते नाद विन्दू नेत्रे अर्द्ध चन्द्राकार विन्दुभि: रूग्र नेत्रं च च च वज्रधारी ल ल ल ल ललिते (भ्र) नूपुर विराजमाने
पुन कथ भूतै हेलिकेशे, भ्रमर केसे, त्व नीलकेशासि पुनः कथ भूते, नूपुरै च च च चक्र
धारया चल चल चलिते पुन. कथ भूते लोल च चला लीला यस्या सा पुनः कथ भूते श्री
肉
त्र ह्रा ह्री सुकीर्ति रसि पुन कथ भूते सुर वर नमिते त्व रक्षत्ये त्यर्थ. ।
यन्त्रोद्वार
षट्कोण चक्रमध्ये पूर्ववत मूर्ति विलिख्य ऊपरि त्र क्षु हु क्षु लिखत दक्षिणे च च च च
ल ल ल ल इति उत्तरे च च च च चल चल । इति अधएव श्री त्र हा ही इति विलिखते पश्चात् नूपुर विलिख्य वज्रोपरि ल ल ल ल इति लिखेत् ।
मूल मन्त्रोद्धार :- उ त्र क्षु हु क्षु श्री त्र हा ही नम स्वाहा ।
ू
2
विधि :- अस्य तुष्टि कर्मरगोवोध्य. फल यशो लाभोऽभ्युदयश्चेति बोधव्य ।
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श्रथ बीजोत्पत्ति :- स्र हु क्षु सस्तु धूमध्वजो, 'र:', क्षतज उ काल काम. महाकाल स्र ू' दहन बीज 'फल' शत्रु दहनादि क्ष. क्षितिबीज 'उ' काल वक्त्रा सयोगात् स्थावरकरण द व्योम वक्त्र काल वक्त्रा सयोगात् । 'व्यापकत्व' फल क्षु ं क्षः त्रेलोक्य ग्रमनबीज सयोगात् दा कृष्टि कृत्फल च 'त्रयस्य' फल ज्ञेय ज्वल ज्वल ज्वलेति च ज्वाला मुख सज्ञात्वात् ल ल ल ल चतुष्कस्य फल प्रवल प्रवल इति चतुष्क लस्य वल भेदि सज्ञात्वात् च चड रूप पुनश्च काल रूप पुनश्च चामुण्डा रूप सिह वाहनत्व श्री लक्ष्मी बीज 'स्र' दहन बीज हा आर्ष बीज ह्री मूल बीज । इति । श्री त्र ह ह्री ।। इति ।। रत्न चतुष्क बिख्यात बीजकोशात् परिज्ञेय ।
च ल च ल 31.
षट् कोण चक्र मे चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लिखकर फिर षट्कोण चक्र की कणिका क्रमश, हु, क्षु ं ह्री च के लिखे, फिर षट् कोरण चक्र के ऊपर चतुष्कोण रेखा खीचे । ऊपर ग्राधा इच का अतराल छोड कर एक रेखा चतुष्कोण और खीचे, दोनो रेखाओ के बीच ऊपर क्षु क्षु लिखे । दक्षिण चचचच ल ल म ल लिखे । उत्तर मे च चं च चल चल लिखे, नीचे 'श्व' श्री त्रह्रा ह्री लिखे । फिर भू पुर को लिख कर वज्र के ऊपर ल ल ल ल लिखे ।
ू
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लघुविद्यानुवाद
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यन्त्र न० ७
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हुं नुं लं
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चं चं चं
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५४५
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________________
लघुविद्यानुवाद
-
-
इस यन्त्र को चादी के ऊपर खुदवा कर पास मे रखे और मन्त्र का सवा लक्ष जप विधि विधान पूर्वक करे तो यश का लाभ, अभ्युदय की प्राप्ति होती है।
ये तुष्टि कर्म के लिए है।
वश्य, मोहनार्थ अष्टम काव्य ॐ ह्री फटकार मत्रे ह्रदय मुपगते रू धि वश्याधिकारे ह्रा ह्री क्ली क्लि सु घोपे प्रलय घन घटा टोप शब्द प्रनादे ।। वा फा क्रोध मूर्ते धगधगित शिख ज्वालिनि ज्वाल माले।
रौद्र हु कार रूपे प्रकटित दर्शने त्राहि मा देवि चक्रे ।।८।। टोका .-हे चक्रे देवित्त्व मा पाहि रक्ष रक्ष कथ भूते चक्रे ॐ ह्री फट् कार मत्रे हृदय मुंपगते
रूधि वश्याधिकारे ॐ ह्री फट् इत्येनेन रू धा त्यनेना कर्षण वशीकरणाधि कारे ह्रा ह्री कती क्लि सुघोषे सु शब्दे पुन कथ भूते प्रलय घन घटा टोर शब्द प्रन्नादे प्रलय काल सबधि मेघ घटा डबर शब्द, पुन कथ भूते वा फा क्रोवमय मूर्ते पुन कथ भूते धग धगिताऽग्निसिखे हे ज्वालिनि हे ज्वाला माले हे रौढ़े हु कार रूपे हू वेष्टित मन्त्र
'रूप प्रकटित दर्शने' प्रकरित दते हे चक्र देवित्व मा त्राहि रक्षत्येर्थ । अथ मन्त्रोद्धार -अस्मिन् अभ्यन्तरे ॐ ह्री फट् इति लिखेत् तदुपरि मूर्ति प्रलिख्य तदुपरि ह्रा
ली क्ली क्लि लिख्यते दक्षिणे वा फा ह्री लिखेत् उत्तरे च धग धग ज्वल ज्वल रूद्र अधश्च ज्वालिनी दहर हु हु इति विलिख्याऽग्नि मण्डल कृत्वा ध्यायेदित्युद्धार ।
मूल मन्त्र '-ॐ ह्रीं फट् इति मन्त्र
वश्ये ॐ ह्रा ही क्ली क्लि वा फाह्री धग २ उवालिनि उवल रूद्रे २९ फट चक्र स्वाहा।
विधि .-अत्र वश्य मोहनाकर्षणानां कर्मणा वोध्यः ।
__ फल मपि तदात्मक मेव सबोध्य इति । अथ बीजोत्पति - अ विधु त 'उ' काल म महाकाल ॐ सिद्ध फलं शत्रु क्षय ह्रीं ह्र व्याम
र सग्नि. ई धम्र भैरवी सयोगात ही वश्याधिकारे फट इति वश्य बीज ह्रा
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लघुविद्यानुवाद
बीज फल मोहन हो मूल बीज माया मायाफलं क्नो काम बीज क्लि क्लिन्ना बीज फल वय द्रावणोचेति व भयकर: 'प्र' काल रात्रिम महाकाल त्रि सयोगी कां फल उच्चाटन फल फ. प्रलयाग्निः प्राकाल रात्रिर्म पूर्व सज्ञा फल मारण फल ही हकार शून्य रकार. दहन ईकार धूम्र. भैरवी तत्सयोगात् फलं 'तदेव' पूर्ववत्ग फल इत्यस्य मध्येघ इत्यस्य उग्र शूल सज्ञान इत्यस्य चड सज्ञा धग इत्यनेनापि दह्नत्व फल वोध्य हु विद्वेषऽपि फट् वश्यात्म के जय शत्रु क्षय करोsपिचेति बोध्य इत्येव बीज निष्पत्ति बोद्धिव्या वीज कोशत परत स्वेन कि प्रोच्य तदेकान्वय युक्तित ।
य. स्तोत्र रूप पठति निज मनो भक्ति पूर्व शृणोति त्रैलोक्य तस्य वश्य भवति बुध
जने वाक्य पटुत्व च दिव्य । सोभाग्य स्त्रिषु मध्ये खगपति गमन गौरवत्वत् प्रशादात् । डाकिन्यो गुह्य कावा विदद्यति न भय चक्र देव्या स्तवेन ।
यन्त्र न० ८
3
धग ज्वल ज्व
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हां ह्रीं क्लीक्ली
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ॐ
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च
५४७
फां
इस यन्त्र को प्रथम पट् राखीचे, पोको मृत उप पर हो फट् लिखे । पट्कोण की रक्षा हो लिये। प केहा ही तील लिये दक्षिण में वह
स्प्रे निये
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५४८
लघुविद्यानुवाद
और नीचे ज्वालिनो दह दह ह ह लिखे, पश्चात अग्नि मण्डल बनावे याने ऊपर त्रिकोणाकार रेखा खीचन र अन्दर तीनो तरफ र कार लिखे। करीव तीनो तरफ मिलाकर बाहर र लिखना चाहिए।
इस यन्त्र को सोना, चादी व तांबे के पत्रे पर खुदवाकर शुद्धि करवाकर, मन्त्र का सवा लक्ष जप करके यन्त्र पास रखे तो सर्वजन वश्य होय और सर्वकार्य सिद्ध होता है । इसमे बडा मन्त्र भी है । सो बडा मन्त्र का साढे बारह हजार जप करना चाहिये । उससे भी वशीकरण होता है । ये दोनो ही मन्त्र अन्तिम श्लोक के मूल है।
इस स्तोत्र रूपी काव्य को जो कोई पढता है, अपने मन मे, भक्ति पूर्वक सुनता है उस पुरुष, के तीनो लोक वशी हो जाता है। बुद्धिमान पुरुपो के समाने देवो के सामने वाक् 'पटुता होती है । सौभाग्य की प्राप्ति होती है । विद्याधरो के समान गौरव को प्राप्त होता है। चक्रेश्वरी देवी के स्तवन से शाकिनी डाकिनी आदि का भी भय,नही होता है।
* उन्हे मत सराहो जिन्होने अनीति व अन्यायपूर्वक सफलता पाई और
सम्पत्ति कमाई क्योकि उनकी दुखद स्थिति और भावी भयानक परिणामो का आपको पता नही । ऐसे कुर्कोमयो से बढकर अभागा कोई नही क्योकि विपत्ति मे उनका कोई साथी नही होता ।
*
आलस्य से बढकर घातक और निकटवर्ती शत्रु कोई नही जो हमे तत्काल तो सुखद लगता है पर बाद में यही दुख व पश्चाताप करने का कारण सिद्ध होता है।
** जब ज्ञान इतना घमण्डी बन जाए कि झक न सके, इतना कठोर बन
जाए कि रो न सके, इतना रूखा व गम्भीर बन जाए कि हस न सके
और इतना प्रात्म केन्द्रित बन जाए कि अपने सिवा और किसी की परवाह न करे तो ऐमा ज्ञान, प्रज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध होता है ।
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लघुविद्यानुवाद
५४४
विभिन्न प्रकार के रोग एवं कष्ट निवारण हेतु यन्त्र यन्त्र न०१
यन्त्र न० २
।
४२
४६.
-
४८
४३
__ ३४
| '४४
।
४७
इस यन्त्र को भोत्र पत्र पर अष्टगध से लिख कर पास मे रखने से दुष्ट मनुष्य का मुख स्तभन होता है ।। १ ।।
इस यन्त्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर पास मे रक्खे तो स्त्री .. का गर्भ,अधूरा नही गिरे ॥२॥
यन्त्र न. ३
____७६
देवदत्त
४६
।
७३
__७३
इस यन्त्र को रविवार के दिन अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर ताबोज मे डालकर गले मे पहने तो मृत वत्सा गर्भ रहे ॥ ३ ॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न०४
। १० ।
१८ ।
१ ।
१४ ।
२२ ।
इस यन्त्र को लिखकर जौ, सुपारो, घृत, अजवाइन, इन चीजो सहित कुलडी (छोटा मिट्टी का घड़ा) के अन्दर रखकर गद्दो के नीचे गाडे और ऊपर बैठकर व्यापार करे तो व्यापार अधिक चलता है ॥ ४॥ यन्त्र न० ५
यन्त्र न०६
१० । १०
१३
८
११
इस यन्त्र को रविवार के दिन रोटी बनाकर, उस रोटी पर यन्त्र लिखे, धान मे उस रोटी को रक्खे तो अनाज कभी भी नही सड़ता है ॥ ५॥
इस यन्त्र को कागज पर लिखकर स्त्री के गले मे बाधे तो रक्त स्राव रुक जाता है।॥ ६॥
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________________
लघुविद्यानुवाद
५५१
यन्त्र नं०७
यन्त्र न०८
यहां
क्ष्य
-
त्य
३.
'क्ष्य
क्ष्य
-
इस यन्त्र को लिखकर लोहे की कील से ठोके तो दाढ दुखती अच्छी हो जाती है ॥ ७॥
इस यन्त्र को सूत कातने वाले रेहटिये मे (चरखा बाधकर) उल्टा १०८ बार घुमावे, परदेश गया शोघ्र आवे ।। ८ ।।
यन्त्र न०
bar
the
४४
प्राका
अव
इस यन्त्र को बसुले पर (लकड़ी काटने वाले बसुले) लिखकर यन्त्र के दोनो बाज जिनमे झगडा करवाना हो उनका नाम लिखे फिर उस बसुला को आग मे तपावे, तो दोनो की जुदाई होती है याने मन मुटाव हो जाता है अथवा वघ्या स्त्री को पुत्र पैदा होता है ।। ६ ।।
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________________
५५२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न०१०
॥ ह्रीं ह्रीं ह्रीं | ही
७मट३ ZAR ॥६६ पूजउ |
-
इस यन्त्र को वसोला उपरि लिखी अग्नि मध्ये धमीजे पछै उपरिति राध करा वो वा छूटूईः ।। १०॥
यन्त्र न०११
यन्त्र न०१२
देवदत्तस्यमृगीनाशक)
।
।
७
।
२१
इस यन्त्र को वसोला पर लिखकर अग्नि मध्ये धमीज स्त्री वध्या छुट्इ । याने पुत्र होगा ॥ ११॥
इस यन्त्र को लिख गले मे वाधे तो मृगी रोज जाये ।। १२॥
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________________
७५
१५
११
११
११
११
११
११
२७
२२
२३
७५
३५
११
११
११
११
११
११
२०
२४
२८
११
११
११
११ ।
ove
११
११
११
११
लघुविद्यानुवाद
२५
२६
यन्त्र न० १३
२१
यन्त्र न० १४
११
११
११
११
११
' ११
११
इस यन्त्र २० से लिखना शुरू करे । क्रम २ से सख्या बढाते हुए लिखे तो डाकिनी शाकिनी दोष दूर होता है ।। १३ ।।
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११
११
११
११. ११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
ove
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
११
५५३
११
इस यन्त्र को लिखकर धान के अन्दर डालकर रक्खे, तो धान सुलता (सड़ता ) नही है || १४ ||
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५५४
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० १५
१८ ।
२४ ।
५ ।
६
१२
१०
।
११ । १७ । २३
इस यन्त्र को अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर गले मे बाधने से डाकिनी शाकिनो दोप दूर होता है, और दृष्टिदोप निकल जाता है ।। १५ ।।
यन्त्र न० १६
इस बन्य को नेशर में थाली में निमकर धोकर पिलाने में यष्टि म्त्री, कष्ट मेर गती है, याने प्रगती ग्रन्छी तरह हो जाती है ।। १६ ।।
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न०१७
यन्त्र न० १८
-
-
४४
इस यन्त्र को लिखकर ताबीज मे डालकर गुगुल का धूप लगाकर, माथे पर धारण करने से, मार्ग मे किसी प्रकार का भय नही होता है ॥ १७ ॥
यन्त्र न० १६
इस यन्त्र को लिखकर पशुओ के गले मे बाधने से पशुप्रो को किसी प्रकार का रोग नही होता ॥ १८ ॥
यन्त्र न० २०
२८
३०
५
१६
।
२२
३२
-
२६
इस यन्त्र को लिखकर गले मे बाधने से दृष्टि दोष, शाकिनी, भूत, प्रत , डाकिनी, सिहारी सर्व दोष मिटे ॥ १६ ।।
इस यन्त्र को लिखकर माथे पर रक्खे तो झगडे पर, विजय हो और नामर्द मर्द होई ॥ २०॥
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५५६
क्ष्म्यू
जाता है ॥ २१ ॥
देवदत्त
40
क्ली
क्ष्म्ल्यू
क्ली
क्ष्मव्यू
क्ष्म्ल्यू
क्ली
८
क्ली
देवदत्त देवदत्त देवदत्त
क्ली
EX
क्ष्म्य
इस यन्त्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर पास रक्खे तो डाकिन्यादि सर्व रोग
४
लघुविद्यानुवाद
०
यन्त्र न० २१
ू
क्ष्म्य क्ष्ल्यू
क्ष्म्यू
क्ष्म्ल्यू ू | क्ष्म्ल्व्यू
2
क्ष्म्यूक्ष्मव्यू क्ष्म्ल्व्यू
यन्त्र न० २२
क्ली
१
ू
EX
क्ली
ह
4
क्ली
देवदत्त
क्ली
क्ली
२
क्ली
ܘ
क्लो
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लघुविद्यानुवाद
५५७
यन्त्र न० २३
ह्री
श्री
यन्त्र न० २४
hos
hcom
|
-
-
-
Tom
her
श्री
ह्री सकट निवारण
श्री रोजगार कर - इन तीनो यन्त्रो मे से जिसका जो काम हो वह यन्त्र भोजपत्र पर अष्टगध से लिखकर हाथ या भुजा मे बाधे तो उसका वह कार्य सिद्ध होता है ॥ २२ ॥ २३ ।। २४ ।।
यन्त्र न० २५
पावतो
रा रा रा रस
/
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५५८
लघुविद्यानुवाद
इद यत्र श्री चिन्तामरिण सर्व कार्य-कर्म कर । इद यत्र सुरभि कर्पूर, कस्तूरी, केशर, गोरोचनादि लिख्यते । सुवर्ण रूप मृदगेन भिवेष्टित कृत्वा मस्तके अथवा बाहु धारयते । सदा सर्व जनप्रियो भवति । सर्वेपि वशी स्यात् । यस्य कस्यापि कारमणन प्रभवन्ति । नागवली पत्रेण चदनेन यत्र लिखित्वा वन्ध्या स्त्री दीपते ऋतु वेलाया प्रत्रो प्रसूति गर्भ धारयति । नान्यथा पश्चात् गौ दुग्ध चावल दीयते, दृष्ट प्रत्यय आत्म पार्वे स्थाप्यते, सकल जन मोहोत्या धत । ॥ इति श्री चिन्तामणि यन्त्र प्रभाव सत्य छै ।। यस्य कस्याऽपि न दातव्य ॥२५॥
पंदरिया यन्त्र विधि
इस १५वा यन्त्र को शुभ तिथि, शुभ वार देख कर पुरुष ॐ ह्री श्री क्ली मम देहि वॉच्छित स्वाहा।
यन्त्र न० २६
।
७
।
२
ब्राह्मण के लिये भोजपत्र पर, वैश्य के लिए ताडपत्र पर, अथवा कागज पर लाल चन्दन, कस्तुरी आदि से लिखना । वश करने के लिए लाल चन्दन से लिखना दुकान के लिए कस्तूरी से, स्तम्भन के लिए हल्दी से, देव दर्शन के लिए केशर से, मारण के लिए धतूरे से, उच्चाटन के लिए श्मसान के कोयले से, विद्वे पण के लिए सफेद चन्दन से, शाति के लिए दिव्य रस से ... कलम मुसल स्याही से लिख, सब काम ऊपर एक अ गुल प्रमाण ५ अ गुल प्रमाण, दो अगुल प्रमाण, पाठ, तीन, दस, चार तथा १५ अ गुल प्रमाण कलम होनी चाहिये। सोना की १, चादी की २, साँभर पक्षो के पख की ३, कौवा के पख की ४ लौह की ५-६ ।
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________________
लघुविद्यानुवाद
५५६
विधि :-लाल आसन, लाल वस्त्र, लाल पुष्प, लाल चन्दन, ब्रह्मचर्य से रहना, जमीन पर
सोना, लोभ छोडना। मोक्ष के लिए १० हजार जप करना, नष्ट राज्य की प्राप्ति के लिये २० हजार जाप करना, जीतने के लिए ३० हजार जप करना, पाप दूर करने के लिये तीन सौ चालीस हजार या पचास हजार से वचत सिद्धि, ६० हजार से जल मे प्रवेश, ७० हजार से सर्व वश होय, सवा लक्ष (सवा लाख) से मनुष्य शिव सुख
के समान हो। अक भरने की विधि :--लाभ तथा सुख के लिए १ अङ्क से भरना, जीतने के अर्थ भरे तो
२ से भरना, क्षय करना हो तो ३ अक से भरना, वश करने के लिये ४ अक से भरना। परदेश से बुलाना हो तो ५ के अक से भरना, उच्चाटन करना हो तो ६ के अ क से भरना, मोहन करना हो तो ७ के अक से भरना, सर्व कार्य सिद्धि के लिये ८ से और सन्तान तथा गर्भ स्तम्भन, रोग दूर करना हो तो , के अ क से भरना ॥ २६ ।
बीसा यन्त्र कल्प
यन्त्र न० २७
धीसायनकल्प ऊहीं स्वाहा
चितपिगला
बीसा यन्त्र .-बीसा यन्त्र कल्प जिसके साथ विधान, यन्त्र और मन्त्र का मिलना भाग्योदय
से होता है : यन्त्र के साथ मन्त्र होने से पारावना करने वाले को जल्दी सिद्धि होती है। पहले यन्त्र बना देते है। यन्त्र को ठीक प्रकार से समझ लेना चाहिये। ऊपर बताये हये यन्त्र का आलेखन अष्टगन्ध से करना चाहिये। और जब सव कोठे तैयार हो जाये तब बीच मे जो यन्त्र हो, खुणिया बताया है उनमे प्रथम बॉयी तरफ के कोठे मे दो का अक लिखना, फिर तीन का, चार का, छ, सात,
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लघुविद्यानुवाद
आठ और दस का अङ्क लिख, यन्त्र लेखन को पूरा करने के बाद बाजू मे मन्त्र
लिखना चाहिये। मन्त्र -ॐ ह्री चित पिगल दह २ ज्ञापन, हन २, पच २ सर्व सापय स्वाहा । विधि -इस मन्त्र को प्रथम ऊपर कोठे मे से प्रारम्भ कर बताये मुताबिक लिखे, जैसे
ॐ ह्री लिखा, बाद मे दूसरे कोठे मे चितपिगल, तीसरे के नीचे कोठे मे दह, चौथे के बायी तरफ के कोठे मे ज्ञापन लिखे, और नीचे दाहिनी ओर के कोठे मे हन २ लिखे, नीचे बायी ओर के कोठे मे, के कोने मे पच २ लिखे, सर्व भी लिखे, ऊपर के बायी ओर के कोठे मे सापय लिखना, और ऊपर के दाहिनी ओर के कोने मे स्वाहा लिखे। इस यन्त्र को ताम्रपत्र पर खुदवाना चाहिये। यन्त्र को सिद्ध करते समय किसी एकान्त जगह मे निर्जन्तुक स्थाना को देखे, जो पीपल पेड के नीचे हो, वहा अग्रण्ड दीपक जलाकर यन्त्र सिद्ध करे। तुम्हारे यन्त्र सिद्ध करने मे किसी प्रकार की बाधा नही आवे, इसलिये दो नौकर साथ मे ले जाना चाहिये । इस यन्त्र को पीपल के पत्ते पर १०८ बार लिखना चाहिये, लिखकर उन पत्तो मे पीपल की लकडी से घी लगावे, फिर रख देवे, मन्त्र का जाप प्रारम्भ करना, मन्त्र साढे बारह हजार करना, फिर जप किया हुआ मन्त्र का दशास होम करना, होम करते समय, पीपल की लकडी के साथ, जो पीपल के पत्ते पर यन्त्र लिखे थे, उन पत्तो को भी एक २ मन्त्र के साथ आहुती देते जाना पीपल की लकडी के साथ, कपूर, दशास, धूप भी लेना आवश्यक है। इस तरह से ४० दिन तक १०८-१०८ बार क्रिया करना, खाना मे केवल चालीस दिन तक दूध या दूध की वस्तु ही बनी हुई, गरम पानी ठण्डा कर पीये, भूमि शयन, ब्रह्मचर्य पाले, उनके वस्त्र पर शयन करे, पिछली रात्रि मे जप करे, वैसे मन्त्र जप त्रिकाल कर सकते है। सध्या के समय बराबर साधना और देव को, फल नैवेद्य से नित्य ही पूजा करे, पुष्प गुलाब के या मालती के चढाना, इस तरह करते समय रात्रि मे जब स्वप्न आवे उसका ध्यान रखना। जव सिद्धि प्राप्त हो तव यन्त्र सामने रख कर, मन्त्र की एक माला फेर कर सो जाने से स्वप्न मे शुभाशुभ मालूम होगा। व्यापार के अर्थ अक भी स्वप्न मे मालूम होगा। कुछ यन्त्र भोजपत्र पर या कागज पर सिद्ध करते समय सामने रखना चाहिये । भोजपत्र पर लिम्बे हुये मे से १ यन्त्र अपने पास रखकर व्यापार करने से बहुत लाभ होगा। बाकी यन्त्र
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लघुविद्यानुवाद
५६१
दूसरों को भी दे सकते है । उपकारार्थ । धर्म, नीति, न्याय, श्रद्धा को नही छोडे, धर्म से विजय पा सकते है ॥२७॥
यन्त्र न०२८
tor
इस यन्त्र को लिखकर शत्रु के सोने की जगह पर गाड देवे, तो शत्रु का पलायन हो जाता है ॥२८॥
यन्त्र न०२१
देवदत्त स्त्री सुसर कुले
तिष्ठ तिष्ठ
क्ष
_ मे रहती है इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्यो
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्यो से लिखकर, तावीज मे डाल कर गले मे वाधे, तो स्त्री सासरे मे रहती है ।।२६।।
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५६२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० ३०
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|
ह्री । ह्री। श्री। क्ली
|
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स्त्र
इस यन्त्र को हिगुल से लिखकर साथ मे नाम भी लिखकर, कमर मे बाधने से कूखि बाधेः ॥३०॥
यन्त्र न० ३१
ह्री ह्री ह्री ह्री ह्री ह्रो ह्री क्ली ब्ल
पाक के अन्दर अधोमुख रखिए, यन्त्र को कोरी ठीकरी ऊपर रविवार को लिखकर रखे तो शत्रु का मुख स्तम्भन होता है ॥३१॥
यन्त्र न०३२
-
१०२/
०३/
११५०७/०३२७
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लघुविद्यानुवाद
५६३
इस यन्त्र को जिसको बुलाना हो, उसके पहनने के कपडे पर लिखकर कोडे लगावे, उस लिखे हुये यन्त्र पर, तो परदेश गया हया वापिस आ जावे ।। ३२।।
यत्र न० ३३
इस यन्त्र को रविवार के दिन लिखकर, उस यन्त्र पर दोनो का नाम लिखे, फिर उस यन्त्र को आग मे जलावे, तो दोनो जुदाई हो यानि अलग २ हो जावे ॥३३॥
यत्र न०३४
-
७७/५/३७
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इस यन्त्र को लिखकर, धोकर पिलावे, तो स्त्री पुरुष मे आपस का मनमुटाव दूर हो जाता है और मेल, प्रेम हो जाता है ।।३४॥
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५६४
लघुविद्यानुवाद यन्त्र न० ३५
५०
३०
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२३
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६५ ।
४०
५८
इस यन्त्र को सुरभि द्रव्यो से लिखकर पास मे रखने से शत्रु वश मे होता है और डाकिनी शाकिनी आदि दोष दूर होता है और चोर भयादिक नही होते है ॥३५॥
यन्त्र न ३६
१५ ।
१६
।
छ
१७
२३
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लघुविद्यानुवाद
५६५
इस यन्त्र को भोजपत्र पर अष्टगन्ध से लिखकर सोने के मादलिया मे डालकर, अथवा चादी के मादलिया मे डालकर पास रखे, फिर ११ सेर आटे की रोटी बना कर कुत्तो को खिलावे, देव गुरु के पांव पूजे तो राजा वश होय ॥३६॥
यत्र न०३७
८० ।
७७
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।
२६
५५
५७ ।
३४ ।
४५
४८
-
-
।
ह्री
४४
ॐ ह्री श्री क्ली ऐ द्राय आसन वन डंड सही करि । निद्ध मुर फुट स्याहा नमः। इद यन्न मन्न भोज पत्रे रवि दिन मे अष्टगन्ध से लिखकर पास में नी जन स्वय या दाम होता है ॥३७॥
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लघुविद्यानुवाद
यत्र न० ३८
इस यन्त्र को लिखकर ३ दिन तक गर्म पानी मे डाले तो शीत ज्वर दूर होता है और शीतल जल मे डाले तो ताप ज्वर दूर हो। हाथ मे बाधे तो वेला ज्वर दूर होता है ॥३८।।
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देवदत्त
यत्र न० ३६
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श्री | ३३ | १८
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लघुविद्यानुवाद
५६७
इस यन्त्र को अपने पहनने के कपड़े पर, नाम सहित लिखकर, कपड़ा जलावे, फिर उसकी राख (भस्म) को खिलावे तो वश्य होय ।।३।।
यन्त्र न०४०
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इस यन्त्र को बाँस की कलम से जमीन पर लिखे तो मित्र समागम होता है ।॥४०॥
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यत्र न०४१
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इस यन्त्र को गेहूँ की रोटी पर लिखकर काली कुत्तो को खिलावे, तो सासु वश मे होती है। काले कुत्ते को खिलाने से ससुर वश मे होता है ॥४१॥
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५६८
लघुविद्यानुवाद
यत्र न०४२
२१
इस यन्त्र को चन्दन, सिन्दूर से भोजपत्र पर लिखकर पास मे रखे तो वाण, (तीर) नही लगता है । केशर किस्तुरी से लिखे, तो सर्व वश होते है ।।४२।।
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-
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यत्र न०४३
१५१
२३
-
-
३१॥
२७॥
३॥५
॥३६
है।
२४॥
१४॥
२४
३४।।
५॥
४॥
इस यन्त्र को बच्चो के गले मे बाधने से दात सुखपूर्वक आते है ॥४३।।
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लघुविद्यानुवाद
यत्र न० ४४
इस यन्त्र को रविवार के दिन लिखकर पास रक्खे, तो भूत प्रत हा हा कार करके भाग ये । (ग्निसुं जाय सूध छै) ॥ ४४ ॥
यत्र न० ४५
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कुंगरं व सहक
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इस यन्त्र को रविवार के दिन लिखकर कमर मे बाधने से गर्भ का स्थम्भन होता है ||४५ ||
यत्र न० ४६
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लघुविद्यानुवाद
इस यन्त्र को अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखकर सिर पर धारण करे, तो राजा वश मे होता है ।।४६।।
यत्र न०४७
--
७20NRU०७
७ ॥११॥
इस यन्त्र को रविवार के दिन घी से कागज पर लिखे, फिर दीपक मे यन्त्र को जलावे तो नर वश्य मे होता है। तस्य (उसके) कपडे पर तेल, मिश्री, मीठा (नमक) से लिखकर प्रतिदिन १ जलावे ॥४७॥
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यंत्र न०४८
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इस यन्त्र को अर्क (आकडा) के पत्ते पर लिखकर, ऊपर नीचे पत्थर से दबावे याने एक पत्थर के नीचे रखे, फिर ऊपर यन्त्र रखे, फिर यन्त्र के ऊपर पत्थर रखे देवदत्त की जगह शत्रु का नाम लिखे।
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होता है ॥४६॥
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यत्र न० ४६
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इस यन्त्र को हल्दी से लिखकर, शिला सपुट कर अधोमुख करके रखे, तो मुख स्थम्भन
यत्र न० ५०
ॐ क्रीं ह्रीं क्लीं ब्लूं सः अमुकी वस्य मानय र संवैौषट्
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५७२
लघुविद्यानुवाद
इस यन्त्र को नागरवेल के पत्ते पर आक के दूध मे अखरोट ३ पीसकर साथ मे राइ भी मिलावे, और यन्त्र इससे लिखकर दीप शिखा मे दिन तीन तक जलावे तो रम्भा भी वश मे हो जाय तो अन्य की तो बात ही क्या ? दृष्ट प्रत्यक्ष ।।५०।।
__ यत्र न० ५१
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२७०४५ ही १२१५ उर्जनस्यमुखीमन
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इस यन्त्र को आक के पत्ते पर अष्टगन्ध से लिखकर ऊपर शिला, नीचे शिला, बीच मे यन्त्र रखना, तो शत्रु वश्य होता है ॥५१॥
यत्र न० ५२
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लघुविद्यानुवाद
५७३
इस यन्त्र को थाली के अन्दर सुगन्धित द्रव्यो से लिखकर ३ दिन त्रिकाल पूजा करके, चौथे दिन दूध से थाली धोकर पीये तो स्त्री के निश्चय से गर्भ रहे ॥५२॥
यत्र न०५३
श्रीधरणेंडा
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श्रीपाविनाथायनमः
Simes
इस यत्र का मत्र -ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय ह्री धरणेंद्र पद्मावति सहिताय, प्र? मट्टे क्षद्रविघट्ट क्षिप्र क्षुद्रान् स्थम्भय २ ज़ुभय २ स्वाहा। '
विधि :-इस यत्र को शुभ दिन मे पवित्र होकर सुगन्धित द्रव्यों से लिखे, फिर सफेद वस्त्र पहन
कर पूर्व दिशा व उत्तर दिशा मे बैठकर पद्मासन से बैठकर १२,००० हजार सफेद पुष्पो से जाप करे, यत्र पार्श्वनाथ पद्मावती के सामने स्थापित करके जप करे। रविवार से लेकर रविवार तक, १३०० जाप नित्य करे, तव मत्र सिद्ध होता है । जब कार्य पडे तब इस प्रकार करे, प्रथम शांतिक, पौष्टिक, मगलीक कार्य मे सफेद माला, सफेद धोती, सफेद फूल सुगन्धित से, दिन मे १०८ बार जपे तो कार्य सिद्ध होता है। शुक्ल ध्यान करे ।
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५७४
लघुविद्यानुवाद
लक्ष्मी प्राप्त पर जरद धोतो, जरद माला, जरद आसन, जरद फूल, पद्मासन से वैठकर उत्तर दिशा मे मुंह करके श्री पार्श्वनाथ प्रभु के सामने चपा के पुष्प १०८ से जप करे, रविवार से लेकर आठ दिन पर्यंत नित्य ही केशर, चन्दन, अगर कपूर से यत्र पूजा करे, लक्ष्मी लाभ होगा, पात वर्ण का ध्यान करे । वश्य करने के लिये लालासन, लाल माला, लाल कपडा, पूर्व दिशा मे मुख या उत्तर दिशा मे मुख पद्मासन से पार्श्वप्रभु के सामने ररिवार से लेकर आठ दिन पर्यंत, कनेर के १०८ फूलो से नित्य करे, सर्ववश्य होगा, फूल नित्य ही ताजा चुने हुये होने चाहिये। लाल ध्यान करे। भूत प्रत, शाकिनी, डाकिनी का उपद्रव हटाने के लिए, काला आसन, काला कपडा. काली माला, पच वर्ण के पुष्पो से लोह रक्षा करते हुए, पटकोण यन्त्र, सामने रख कर, पूर्व दिशा मे बैठकर १०८ बार २ जप आठ दिन पर्यंत नित्य जप करे । भूतादि दोष नष्ट होता है ।।५३।। परविद्या छेदन
कलि कुण्ड यन्त्र
यत्र न०५४
स्वामिन्नतुलबलवीर्यप सुदाधिषस्फ्रास्फी स्त्री स्फ ममझात्मविद्या
हफाट्यविदरमिद
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इस यन्त्र को भोजपत्र पर केशर से लिखकर गले या हाथ मे बाधे, तो परकृत विद्या, मूठ, कामण से रक्षा होती है । यन्त्र मे लिखे हुये मन्त्र का साढे बारह हजार जप करे और दशास होम करे ॥५४॥
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० ५५
ज्वरोपशम कलिकड यन्त्र
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ॐ ऐ ही झी मान उदंड स्वामिन् खलबलवीर्यपराकमाय (समदावरायुपशांतिकुसर पर वि
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५७६,
लघुविद्यानुवाद
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यत्र न०५७
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कामाक्षीमूक्ष्मैनौ । इस कलिकुडदडस्वामिन्नतुलबलवीर पराक्रसममशाकिन्यादिभयोपशाम आत्मविद्यारक्षर पर विद्यांछिदभिद टू फट् स्वाहा।
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क्षि इस यन्त्र को ताबे के पत्रे पर खुदवाकर प्रतिष्ठा करवा ले, फिर किसी भी प्रकार के ज्वर से आक्रान्त रोगी के सिरहाने गरम पानी मे डालकर यन्त्र रक्खे तो ताप ज्वर जाता है और ठडे पानी मे डालकर सिरहाने रक्खे तो ताप ज्वर जाता है ॥५५।।
इस लघु सिद्ध यन्त्र को ताबे के पत्रे पर खुदवाकर यन्त्र पर लिखा हुना मन्त्र का सवा लक्ष जपकर एक यन्त्र भोजपत्र पर लिखकर पास मे रक्खे, दशास होम करे, तो सर्व कार्य सिद्ध होता है, सर्व रोग दूर होते है, सर्व प्रकार की पर विद्या का छेदन होता है। लक्ष्मी लाभ होता है । चितित सर्व कार्य सिद्ध होते है। यह यन्त्र मन्त्र चिंतामरिण है । इसके प्रभाव से मोक्ष लाभ होता है ।।५६।।
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लघु विद्यानुवाद
५७७
इस शाकिन्यादि को दूर करने के यन्त्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर उस यन्त्र को एक चोकी पर स्थापन कर, विधि पूर्वक यन्त्र मे लिखे हुये मन्त्र का साढे वारह हजार जप करे, यन्त्र की पूजन नित्य करे, जब जप पूरे हो जाय तब दशास आहुती देवे, यन्त्र को गले मे या हाथ मे बाधने से भूत, प्रेत, राक्षस, शाकिनी, डाकिनी की बाधा दूर होती है । ५७ ।
अथ घन्टा कर्ण मन्त्र संक्षेप वीधि
ॐ घटाकर्णो महावीर सर्व व्याधि विनाशक, विस्फोटक भय प्राप्ते, रक्ष २ महावल यत्र त्व तिष्ठ से देव लिखितो क्षर पक्ति भि. रोगास्तत्र प्रणश्यति वातपित्त कफोद्भवा । तत्र राज भय नास्ति, याति कर्णे जपात्क्षय, शाकिनी, भूत, वैताला राक्षसा प्रभवति न || ३ || ना काले मरण तस्य न च सर्पेण डस्यते । श्रग्नि चोर भय नास्ति ॐ घटा करर्णो नमोस्तुते । विधि :- शुभ दिन देखकर रवि पुष्य या रवि मूल या और कोई शुभ दिन मे कोरे धुले हुये कपडे पहन कर महावीर प्रभु की प्रतिमा के श्रागे दोपक जलाकर नैवेद्य चढाकर आठ जाति के धान्य को अलग ढेर लगाकर एक मुक्त प्रहार करे, ब्रह्मचर्य व्रत पाले और मन्त्र का साढे बारह हजार जप करना, दिन १४ मे अथवा १२ मे पूरा करना, तब मन्त्र सिद्ध होगा, सर्वकार्य सिद्ध होय, इस मंत्र को तीनो काल मे पढने से मृगी रोग घर मे कभी भी नही आवे, सोते समय तीन बार पढकर तीन बार ताली बजाकर सोवे तो, सर्प भय, चोर भय, अग्नि भय, जल भय इत्यादि नही होता है । अछूता पानी को इस मन्त्र से २१ बार मन्त्रीत कर छाटा देने पर अग्नि नही लगेगी तथा एक वरिंग गाय के दूध को २१ बार मन्त्रीत कर छाटा देवे तो अग्नि बुझ जायेगी । मन्त्र को कागज पर लिखकर घटा मे बाधे तो और घटा बजावे तो जहा जहा ग्रावाज जाये वहा २ के उपद्रव सब मिटते है । कन्या कत्रत सूत्र मे ७ गाठ लगाते हुये मन्त्र से २१ बार मन्त्रीत कर बच्चे के गले मे वाधने से नजर नही लगती है । कन्या कत्रीत सूत्र को २१ बार मन्त्रीत कर धूप देकर हाथ मे बाधे तो एकातरा ज्वर जाता है ।
---
इसी मन्त्र की दूसरे प्रकार से विधि कहते है
दीवाली की रात्रि तथा शुभ मुहूर्त मे प्रारंभ कर भगवान महावीर के सामने ब्रह्मचर्य पालन करते हुये पूर्वोक्त विधि से १२ दिन मे साढ़े बारह हजार जप पूरा करे । फिर गुग्गुल अढाई पाव, लाल चन्दन, घृत, बिनौला (कपास के वोज), तिल, राई, सरसो दूब, दही, गुड, रक्त कनेर के फूल, सब चीजो को मिलाकर, साढ वारह हजार गोली बनाना फिर एक २ मन्त्र के साथ एक २ गोली ग्राग मे खेवना, इस प्रकार साढ़े बारह हजार जप पूरा कर, फिर दास होम करना, तव मन्त्र सिद्ध होगा, नित्य ही भगवान की पूजा करना, माला लाल चन्दन की होनी चाहिए ।
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लघुविद्यानुवाद
राज द्वार मे जाते समय मन्त्र को तीन बार पढकर मुख पर हाथ फेरे, राज सभा वश मे होती है । खाने की वस्तु को २१ बार मन्त्रीत कर जिसको खिलावे वह वश होता है । पिछली पहर को गुग्गुल खेय कर मन्त्र १०८ बार पढकर मुख पर हाथ फेरे तो वाद-विवाद झगडे, आदिक मे वचन ऊचे रहे, याने सब उसको ही बात माने । पले गुग्गुल आदिक को १०८ बार मन्त्रीत कर होम करना, फिर रोगी को झाडा देना तो भूत प्रेत सर्पादि दोष सर्व जाते रहते है। विशेष विधि घटा कर्ण कल्प मे देखे ।
ज्वाला मालिनी यन्त्र ५८
दम्य दम्य दम्व्यू
क्रो क्रोक्रो ज्वाला मालिनी देवी नम द दा दि दी दुदु दे दै दो दो द द द्र द्रौ द्रौ द्रः दुष्टान वारय वारय स्वाहा श्री नम
ह म्व्य हम्ल्व्यू हम्व्य क्रोक्रो क्रो
ज्वाला मालिनी देवी नम ह हा हि ही ह ह है है हो हो हह ह्री ह्री ह.ह्र सर्व दुष्ट जीवान् वश्य कुरु कुरु फट् स्वाहा
क्ष्म्ल्यू व्यं भव्यू
को क्रोक्रो ज्वाला मालिनी देवी नम क्षक्षा क्षिक्षी क्षक्ष क्षेः क्षोक्षौ क्षक्ष सर्व जन वश्य दुष्ट जन वश्य कुरु कुरु स्वाहा
झळ, म्म्ल्यू भ्ल्यू, क्रोक्रो को
ज्वाला मालिनी देवी नम भमा मिभी भुभू भेभै भोभो भम सर्व जन वश्य दुष्ट जन वश्य कुरु कुरु स्वाहा श्री नम
म्ल्यू म्व्यू म्ल्यू
को क्रो क्रो ज्वाला मालिनी देवी नम ममा मिमी मुमू मे मै मो मो म म सर्व जन वश्य दृष्ट जन वश्य कुरु कुरु स्वाहा श्री नम
जम्व्यू, उम्लव्य उम्ल्यू .
क्रो को क्रो ज्वाला मालिनी देवी नम जजा जिजी जूज जेजे जोजो जज सर्व जन वश्य कुरु कुरु स्वाहा श्री नमः
यम्ल्यू यम्ल्यं यम्यू कोक्रो को ज्वाला मालिनी देवी नम यया यियी यूयू येय योयौ यय सवं जन वश्य दुष्ट जन वश्य कुरु कुरु स्वाहा श्री नम
धम्तव्य व्यं व्य क्रोक्रो क्रो घ्रो घ्र ध्रे | दुन घ्रो घ्र शशष्टान् त्रय २ य य न न श्री घोरा क्षेयम सुरम्य नम स्वाहा
कम्ल्यू कम्य क्य,
क्रो क्रोको ज्वाला मालिनी देवी नम क्रा की क्र नं को क दुष्टा घ भन् २ पर्य बन्ध पराण नीट ॐ फट् स्वाहा
सम्व्यं रम्यं रम्य
क्रो क्रोक्रो ज्वाला मालिनी देवी नम खोने ने खौ ख. दुष्ट जनान् वश्य जट नम नाग्री भजय २ स्वाहा कुरुभ्य नम
चम्य चम्ल्यं चम्ल्य
को को को ज्वाला मालिनी देवी नम चा ची चे च च चो दुष्टान् कृ जतात्रान् मय २ छेदय २ ॐ ह्री फुट् स्वाहा श्री नम
मलव्य म्यं म्य कोक्रो क्रो
ज्वाला मालिनी देवी नम व्राजी व्रोव व दुष्टा नानि वदना विस्थ वर रम कय कार फुट २ स्वाहा श्री नम
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लघुविद्यानुवाद
५७६
___ लक्ष्मी इद यन्त्रम् । विधि .-दीप मालिकाया कृष्ण चतुर्दश्या षष्ठ व्रतः तप कृत्वा पवित्री भूत्वा अष्टगन्ध केन अगुरु धूपोत्क्षेपण पूर्वक सदृश पीताम्बर परिधाय स्वर्ण लेखिन्या लिखनीयम् । तत षट्कोर्णक कुण्ड कृत्वा अष्टोत्तर शत सख्येयनालीकेर पू गीलवग जाती फल, एलादिक, पञ्चामृतं सार्द्ध पञ्च पञ्च सेर सख्याक अग्नौजुहुयात् ।
इस यन्त्र को अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर विधिवत् पूजा करने से और यन्त्र पास मे रखने से मन चितित सर्व कार्य की सिद्धि होती है। शरीर निरोग रहता है। परकृत दुष्ट विद्या का परकोप नही होता। डाकिनी, शाकिनी, भूत, प्रेत, व्यतरादिक की पीडा शात होती है । लक्ष्मी का लाभ होता है ।। ५८ ।।
ज्वर नाशक यन्त्र नं० ५९
नाही
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असाहन्नौँझ्वाँ
इस यन्त्र को लिखकर गर्म पानी मे डालकर रखने से, शीत ज्वर शात होता है । ठण्डे पानी मे डालकर रखने से उष्ण ज्वर शात होता है । ५६ ।। नोट -जहा बीच मे देवदत्त लिखा है, उस जगह 'स' लिखकर फिर बीच मे देवदत्त लिखे ।
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५८०
लघुविद्यानुवाद
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर, सामने रखे, फिर ॐ ह्री श्री अर्ह नम । इस मन्त्र का पीला ध्यान करने से स्तम्भन होता है। अरुण वर्ण का ध्यान करने से वशीकरण होता है। मू गे का रग जैसा ध्यान करने से क्षोभ होता है । काला ध्यान करने से विद्वषण होता है । कर्म का क्षय करने के लिए चन्द्रमा के समान ध्यान करे।।
इस मन्त्र का १२००० हजार विधि पूर्वक जप कर दशास होम करे, तब मन्त्र सिद्ध होता है । इस मन्त्र का रहस्य सबसे ऊ चा है ।। ६० ॥
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यन्त्र नं०६१
कखचडी
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हर
और
अः
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चखजम
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ॐ
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४
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५८२
लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न०६३
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(कवदत्त ।
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखकर, सुगन्धित द्रव्यो से पूजा करे, फिर कन्या कत्रीत सूत मे लपेट कर हाथ मे वाधे तो, भूत वगैरह दोषो को दूर करता है। स्त्रियो को सन्तान की प्राप्ति कगता है । सौभाग्य वगैरह गुणो को देने वाला है ।। ६३ ।।
यन्त्र न०६४
३०
४२
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लघुविद्यानुवाद
५८३
इस यन्त्र को लिखते समय, प्रथम १ कलश पानी से भरकर विधि से रक्खे, फिर आम के पत्ते पर कु कुम विछाकर अनार की कलम से यत्र लिखकर अष्टद्रव्य से पूजा करे । मन मे कामेश्वरी देवी का ध्यान करे, यन्त्र को लिखते समय ॐ ह्री श्री पार्श्वनाथाय नम । यन्त्र लेखन कार्य जब पूरा हो जाय तब पूजन करने के उपरात इस मन्त्र का जप करता रहे ।
ॐ नमो कामदेवाय महाप्रभाय ह्री कामेश्वरी स्वाहा।
इस मन्त्र का ७२ वार जप करे, मन्त्र जपने के बाद लिखा हुआ यन्त्र मिटा दे, इस प्रकार पुन लिखे पुन. मिटाये प्रतिदिन, इस तरह २४ यन्त्र लिखे। २४वे यन्त्र के वाद मन्त्र की २१ माला जपे, प्रतिदिन इसी नियम से करता रहे । एक दिन के लिखे यन्त्र को गेहू के आटे मे थोडा सा मीठा (मिश्री) मिलाकर घी और बुरा मिलाकर गोली बाधकर नदी मे वहा दे। साधक जौ की रोटी, वथुप्रा के साग को खाये । पृथ्वी पर शयन करे तथा ब्रह्मचर्य पालन करे, सत्यादि निष्ठा से रहे । ७२ दिन तक इसी क्रिया को करता रहे और इसी अवधि मे सवालक्ष जप पूरा करे । जब जप पूरा हो जाय, तब दशास होम करे । यतियो को दान दे । उसके बाद प्रतिदिन एक २ यन्त्र लिखकर उस यन्त्र की पीठ पर ७२ टके चलन बाज र दे। उस अपने बैठने के आसन पर रखकर ७२ यन्त्र जप ले । ७२ टके बाजार मिले तो किसी से कहे नही, कहेगा तो देना बध हो जायेगा । यदि आसन के नीचे नही आयेगे तो किसी तरह से कुटुम्ब के पालन के लायक खर्च करने को धन प्राप्त होता रहेगा। इसके उपरात यन्त्र को आसन के नीचे से उठाकर पगडो मे रखले तथा दूसरे दिन गोली बनाकर नदी मे बहादे। जो यन्त्र किनारे पर आ जाये, उसे एक आले मे रख दे तथा उस पर सफेद वस्त्र का पर्दा डाल दे और प्रति दिन पुष्प चढाकर धूप दे दिया करे ।। ६४ ।।
पंचांगुली यन्त्र व मन्त्र की साधन विधि, यन्त्र नं० ६५ की विधि प्रथम-मन्त्र -ॐ ह्री पचागुली देवी देवदत्तस्य आकर्षय २ नम स्वाहा । विधि :-इस यन्त्र को अष्टगध से लिखकर, मध्य मे देवदत्त का नाम लिखकर, फिर उपरोक्त
मन्त्र का १०८ बार जप करे, फिर बडे बास की भोगली के अन्दर यन्त्र डाले, तो ४१ दिन के अन्दर हजार गउ से मनुष्य अथवा स्त्री का आकर्षण होता है। शुक्ल पक्ष
की अष्टमी से प्रारभ करे। द्वितीय मन्त्र-ॐ ह्रो पचागुली देवी अमुको अमुकी मम वश्य श्र श्रा श्री स्वाहा । विधि -इस यन्त्र को देवदत्त के कपडे पर शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को हिगुल, गौरोचन, मूग के
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मतदमनायसमशरीरे रक्षर वज्रपीजरायममानदार धारणायममरासैन्यभजयरसम रक्षरस
सममात्रूसैन्यविध्वंसायधूरयर मारयसीझॉम
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ॐ हीनी सास फट् स्वाहा
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हीदवसाक्षासूराक्ष पंचागुलीपरगरमती मपंगलवस करणालीहमयदउसोडणी चौपट कामविहोरणमध्यरावमध्यभूतमध्यप्रेतमध्यपीशाचमध्याHिTRA योगामध्यमोगामध्य जाधारस्यपर जोकरैकरावेतस्समधे श्रीपचागुली देवातणो नत्र निर्धातपडे.ॐ137ीहीश्रीजम स्वाहा ।।
वजनिर्घातपडइ38 1 लीं ह्रीं श्रीमम स्वाहा। मोगामध्यजाधारवस्य परजोकरकरावेसस्तमपेश्रीपचागलीदेवीतणोनियति हउणीरगमध्यराबमध्यभूतमप्रेतमध्यपीताचमध्यभाकिनीमध्यडाकिनीमध्यगोगामध्य
सबस-साक्षीसोक्ष पचागुलीघरसरमा समेगलवाकरशीलोहमयूदंड मोडणी चावट कामति उल्लाउकाउलीउल्लाडली लीला की लीउकी उनी उकली लाली SAZNANENANFFAFFFAFHAFAFFAITHAT
याप्पीपूष्पौष्प ममशनमारल्यापचागुलीदेवीचूसयर जीर्धातवजेनपायर हफुटास्वाहा जीपबागुलरिसर स्वाहा।
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ॐहींपचागुली मुकस्यउच्चाटय
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लघुविद्यानुवाद
५८५
पानी के साथ स्याही बनाकर लिखे। लाल चन्दन का धूप जलावे, दीपक मे घी जलाव, फिर इस यन्त्र को मकान के छप्पर मे अथवा छत मे बाधे, सोने के समय उपरोक्त मन्त्र १०८ बार १३ दिन तक जपे, फिर (उवात्रण हावरणीनी मारवो) मन की इच्छा पूर्ति
हो । इच्छित व्यक्ति वश मे हो । तृतीय मन्त्र-ॐ ह्री क्ली क्षा क्ष फुट् स्वाहा। विधि .-इस यन्त्र को शत्रु के वस्त्र पर, रजेकरी श्मशान के कोयले से लिखकर फिर इस मन्त्र
का १०८ बार जप करे, धूप श्मशान रक्षा डोडढीषापाट जाग पख, उल्लू का पख लेकर हवन करे, इस रीति से करके यन्त्र काले कपडे मे बाधकर, एक पत्थर मे बाधे, फिर उसको कुए मे प्रवेश करा देवे याने कुएँ मे डाल देवे, फिर नित्य १०८ बार जपे ४१ दिन तक
उपरोक्त धूप जलावे तो विद्वेषण होगा। __चतुर्थ मन्त्र-ॐ ह्री पचागुली अस्य उच्चाट्य २ ॐ क्ष क्ली क्ष घे स्वाहा । विधि :-इस यन्त्र को धतुरे के रस से लिखकर पृथ्वी मध्ये कोयला से ये उपरोक्त मन्त्र का
१०८ बार जप करता हुआ यन्त्र को पृथ्वी मे गाडे और उस मन्त्र के ऊपर अग्नि जलावे । ७ दिन के अन्दर कार्य होता है। भूत, प्रत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, चुडेल च डावली, जीद, झोटीग के लिये इस यन्त्र को विष से लिखकर कटि मे बाधे तो सर्व बाधा का नाश होता है । सर्व गुणो की प्राप्ति होती है।
पंचम मन्त्र- ॐ ह्री पा पी ष्पू ष्पौ ष्प मम् शत्रुन् मारय २ पचागुली देवी चूसय २ नीराधात
वज्रनपातय २ फुट २ घेघे । विधि :-अभिचार कर्म के लिये इस यन्त्र को काले कपडे पर श्मशान के कोयले से लिखे, ॐकार
के नीचे नाम लिखे। सध्या मे इस मन्त्र का जप करे १०८ बार, धूप भेसा गुग्गल का जलावे ( यन्त्र गरीयल डोरे) फिर इस यन्त्र को रेशमी डोरे से लपेट कर एकात स्थान मे गाड देवे, तीर्थ की धारा छोडे, धूप गुग्गुल का जलावे, जिस जगह यन्त्र गाडा हो, उस कोने मे उपरोक्त मन्त्र का जाप करे १०८ वखत, व्यक्ति के पाव के नीचे की धूल और गुग्गुल के साथ मे जलावे, २१ दिन तक करने से व्यक्ति परेशान हो जायेगा । कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन करे। अगर व्यक्ति परेशान होकर पावो मे आकर पडे, तब गड़ा हुमा यन्त्र को निकाल कर, दूध मे उस यन्त्र को भिगो
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५८६
लघु बिद्यानुवाद
मन्त्र
कर घी, धूप जलाता हुआ ॐ ह्री पचागुली रक्ष २ स्वाहा । इस मन्त्र का जप १११ बार करे तो शत्रु को फिर से शान्ति लिखे, सर्व विघ्न दूर हो ।
पंचांगुली मूल मन्त्र — ॐ ह्री श्री पचागुली देवी मम सरीरे सर्व अरिष्टान् निवारणाय नम स्वाहा, ठ ठ |
बाकी के तीन मन्त्र और यन्त्र के बीच मे और आजू-बाजू लिखे हुये है । उन मन्त्रो के फल भी जैसा मन्त्र मे शब्द विवरण आया हुआ है वैसा ही समझना ।
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इस मूल मन्त्र का पूर्ण विधि विधान से सवालक्ष जप करे तब पचागुली देवी सिद्ध होगी, सर्वकार्य की सिद्धि होती है ।। ६५ ।।
मन्त्र
ज्वालामालिनी यंत्र विधि
- ॐ ह्री श्री अर्ह चद्र प्रभु स्वामिन्न पादपकज निवासिनी ज्वाला मालिनी स्वाहा नित्य तुभ्य नम ।
इस यन्त्र को सुगन्धित द्रव्यो से भोजपत्र पर लिखकर, उपरोक्तं मन्त्र का जप सवा लक्ष विधि विधान से करे तब सर्व कार्य की सिद्धि हो, सर्व रोग शांत हो, महादेवी श्री ज्वाला मालिनी जी का वरदान प्राप्त होता है । पश्चात विशेष कर्म के लिये अलग २ पल्लव जोडकर मन्त्र का जप करने से वैसा ही कार्य सिद्ध हो । एक यन्त्र ताबा अथवा चादी अथवा सोना, अथवा कासे पर खुदवाकर यन्त्र प्रतिष्ठा करके घर में स्थापित करने से सर्व विघ्न बाधा दूर हो । जो भोजपत्र पर लिखा हुआ यन्त्र है उसको स्वय के हाथ में ताबीज में डालकर बाधे, तो सर्वकार्य सिद्ध हो ॥ ६६ ॥
मृत्यं जय ज्वालामालिनी यन्त्र मन्त्र की विधि
:- ॐ ह्रा ह्री ह्र, ह्रौ ह्र हा प्रक्रौ क्षी ह्री क्ली ब्लू द्वाद्री ज्वालामालिनी सर्वग्रह उच्चाटय २ दह २ हन २ शीघ्र २ हू फट् घे घे ।
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विधि - उपरोक्त मन्त्र का जप सवालक्ष, प्रमाण विधि विधान से करे पश्चात ज्वाला मालिनी विधान मन्त्र का दशास होम करने से सर्व प्रकार की अपमृत्यु का नाश होता है । यन्त्र भोजपत्र अथवा कोई भी धातु के पत्र पर खुदवाकर, प्रतिष्ठा करके घर में स्थापित करने से यन्त्र को धोकर पीने से, सर्वरोग शोक शात होते है || ६७ ॥
↓
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लघुविद्यानुवाद
यन्त्र न० ६६
ज्वाला मालिनी यंत्र . ॐह्रीं श्रींअर्हचन्द्रप्रभु स्वामिनपादपंकज निवासिनीज्वालामालिनीखाहानित्यं तुभ्यं नमः
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लघुविद्यानुवाद
श्री महा मृत्यु जय ज्वाला मालिनी यन्त्र न० ६७
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यन्त्र में लिखित मन्त्र का सवालक्ष प्रमाण विधि पूर्वक जप करने से सर्व प्रकार को ग्रपमृत्यु का नाश होता है ।
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लघुविद्यानुवाद
५८९
यन्त्र न०६८
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५१०
लघुविद्यानुवाद
ऋषि मण्डल यन्त्र विधि मन्त्र -ॐ ह्रा हि ह ह ह ह ह्रीं ह्र असि पाउसा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रभ्यो
ह्री नम विधि -ऋषि मण्डल यन्त्र को भोजपत्र पर सुगन्धित द्रव्य से लिखकर हाथ या गले मे वाधने
से सर्व प्रकार के रोग, शोक, ऊपरी हवा नष्ट होती है। परकृत विद्या का नाश होता है। सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। किन्तु प्रथम ऋपि मण्डल मन्त्र को विधिविधान पूर्वक सिद्ध करे, जैसे प्रथम एक ताम्र पत्र पर अथवा सुवर्ण पत्र पर अथवा चादी के पत्रे पर अथवा कासे के पत्रे पर यन्त्र खुदवाकर शुद्ध कराव, फिर उस यन्त्र को एक सिंहासन पर विराजमान करके, सामने दीप, धूप रखकर उपरोक्त मन्त्र का ८००० हजार जप करे, आठ दिन मे, सयम से रहे, प्राचाम्ल तप करे, ब्रह्मचर्य पाले, मन्त्र का जप समाप्त होने के बाद शुभ दिन मुहूर्त मे ऋपि मण्डल विधान करके दशास आहुती देवे तो मन्त्र के प्रभाव से मन चितित कार्य सिद्ध हो । सर्व उपद्रव मिटे । लक्ष्मी लाभ हो, विशेष मन्त्र का छह महीने तक नित्य ही
आचाम्ल तप पूर्वक आराधना करने से स्वय के मस्तक पर अर्हत विव दिखेगा। जिसको अहं त बिम्ब दिख जायेगा उसको निश्चय ही सातवे भव में मोक्ष हो जायेगा । साधक को किसी प्रकार का भय, डाकिनी, गाकिनी, भूत, प्रेत, परकृत विद्या, इन चीजो का उपद्रव कभी नही होगा। वैसे मन्त्र की एक माला फेरकर, स्त्रोत का पाठ करने से ही सर्व प्रकार के रोग, शोक, बाधाएं मिटती है। इस काल मे ये मन्त्र, यन्त्र की साधना कल्प वृक्ष के समान चितित पदार्थ को देने वाला है । विशेप क्या कहे ।। ६८ ।।
यन्त्र न० ६६
१२
इस यन्त्र को भोज पत्र पर लिख कर मस्तक पर वाधने से मूठ नहीं लगती। इस यन्त्र का होली की रात्रि मे नगे होकर धतूरे के रस से लिखना चाहिये ।। ६६ ।।
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लघुविद्यानुवाद
छुहारा गुण यन्त्र । जिस छुहारे मे दो गुठली हो उसे उठाकर रखले, फिर दीवाली के दिन अनार की कलम से, इस यन्त्र को पहले १०८ बार पृथ्वी पर लिखकर सिद्ध करे,
___ यन्त्र न० ७०
__
तत्पश्चात् भोजपत्र पर अष्टगन्ध से लिखकर धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजनकर छुहारे की दोनो गुठली को यत्र के साथ लपेट कर चादी के ताबीज मे मढवाकर रखले । कार्य पडे तब ताबीज को धोकर पिलाने से कष्टो स्त्री का कष्ट दूर होता है। रोगी का रोग दूर होता है । वाझ स्त्री के कमर मे बाधने से गर्भ रहता है। पास मे रखकर राज दरबार में जाने से सम्मान प्राप्त होता है। यन्त्र के प्रभाव से ऋद्धि सिद्धि प्राप्त होकर सभी इच्छाये पूरी होती है ॥ ७० ॥
यन्त्र न० ७१
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लघुविद्यानुवाद
इस यन्त्र को लिखकर, खेत मे गाड देने से तथा क्षेत्रपाल की पूजा करने से, खेत मे अधिक अन्न उत्पन्न होता है ।। ७१ ।।
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इस यन्त्र को आश्लेषा नक्षत्र मे हाट मे लिखने से हाट उजड जाती है ॥ ७२ ॥
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इस यन्त्र को कौंच के बीज से लिखकर घर में रखने से चूहे कपड़े को नहीं काटते
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लघुविद्यानुवाद
५४३
यत्र न० ७४
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इस यन्त्र को थूहर के रस मे (दूध) स्वाति नक्षत्र मे लिखकर, पुरुष अपनी कमर मे धारण करे तो शुक्र का स्तम्भन होता है ।।७४॥
यत्र न० ७५
२५ ।
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इस यन्त्र को सेही के काटे से, पशु के खूटे पर लिख देने से तथा खू टे को गाड़ देने से गया हुमा पशु वापस लौट आता है ॥७॥
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५६४
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० ७६
इस यत्र को केवडे के रस से लिख कर, सिरहाने रखकर सोने से स्वप्न मे भूत ही भूत दिखाई पडते है ॥७६॥
यत्र न० ७७
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७६
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इस यत्र को लाख के पानी से थूहर के पत्ते पर लिखकर, बगीचे में गाड़ देने से अधिक फूल आते है ।।७।।
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लघुविद्यानुवाद
यत्र न० ७८
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इस यत्र को पुष्य नक्षत्र मे लिखकर स्वय के पास रखने से भोग इच्छा खत्म हो जाती है ।।७८॥
यत्र नं०७६
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इस यन्त्र को कुम्हार के आवे की ठीकरी पर-लिखकर, किसी के घर मे डाल देने से, उस ____घर मे नाटक होना प्रारम्भ हो जाता है ॥७॥
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५१८
लघुविद्यानुवाद
यत्र न०८४
इस यन्त्र को लामी पूजा के दिन वसने बदलने के दिन बही खातो पर हल्दी से यन्त्र मन्त्र लिखे, तो लक्ष्मी लाभ होगा। ॐ ह्री श्री क्ली ब्ल अहँ नमः। इस मन्त्र का १०८ बार नित्य जप करे ॥४॥
यन्त्र न०८५
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३३४
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इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर गले मे बाधने से मसान का रोग शात होता
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इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर सोते समय सिरहाने रख लेने से बुरे स्वप्नो का दिखना बन्द हो जाता है ॥८६॥
यत्र न०८७
इस यन्त्र को कागज पर लिखकर लोबान को धूप देकर, ओखली मे धरकर कुटे । डाकिनी का मस्तक फूट जायेगा और वह चिल्लाकर सब कुछ बताने लगेगी और रोगी को छोड़कर भाग जायेगी ।।७।।
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६००
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० ८८
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नये खप्पर पर खडिया मिट्टी से यन्त्र को लिखकर पुष्पादि से पूज कर धूलि से पूर्ण अग्नि मे रखकर रवैर की अग्नि से प्रज्वलित करे। इस यन्त्र के प्रभाव से भूतादिक, रोते कापते हुये बालकादिक को अथवा कोई भी हो छोडकर भाग जाते है। उस देश मे ही वास नहीं करते है ।।८८॥
यत्र न०८६
इस यन्त्र को भो बवासीर दूर हो जाता है ।।६।।
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श्री
श्री
लघुविद्यानुवाद
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यंत्र नं० ६०
१२
इस यन्त्र को कागज पर लिखकर, लपेट कर रोगी को सुधाने पर तथा इस यन्त्र मे राई रकर जलाने से भूत जिद उतर जाते है ||६०
यंत्र नं० ६१
श्री
श्री
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श्री
श्री
श्री
६०१
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इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर गले मे बाघने से शीतल (चेचक ) नही निकलती है ६ जिसको निकली है उसकी शात होती है ॥ ६१ ॥
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लघुविद्यानुवाद
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यत्र न० ६२
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर दायी भुजा में बाधने से, तिजारी बुखार दूर हो
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७१
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७७
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इस यन्त्र को मार्ग की बालू पर लिखकर ऊपर कोडा मारने से गया हुग्रा मनुष्य घर लौट आवे ||६३||
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लघुविद्यानुवाद
६०३
यत्र न०६४
२४
२१
इस यन्त्र को अनार के रस से लिखकर कान मे बाध देने से, कान मे दर्द नहीं रहता ।।६४॥
यत्र न०६५
इस यन्त्र को आम के वृक्ष के नीचे बैठकर सवा लक्ष लिखने से अम्बिका देवी प्रसन्न होती है ॥६५॥
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६०४
लघुविद्यानुवाद
-
यत्र न०६६
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---
इस यन्त्र को अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर, गुग्गुल का धूप देकर, गले में धारण करने से दुष्ट स्वत्नो का दीखना बन्द हो जाता है ।।६६||
यत्र न०४७
२८
इस यन्त्र को केशर, गोरोचन अथवा रोली से भोजपत्र पर लिखकर, गाय के गले मे और भैस के सीग मे गूग्गल की घूप देकर वाघने से वह बच्छे को लगाने तथा वहुत दूध देने लगती है ॥१७॥
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लघुविद्यानुवाद
६०५
यत्र न०१८
-
इस यन्त्र को कागज पर लिखकर, रविवार के दिन, सूर्य के सामने पानो मे धोकर पीने से वायु गोला का दर्द तुरन्त दूर हो जाता है ।।६।।
यत्र न०.६६
-
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर मस्तक पर रखने से कुत्ते का विष दूर होता
है ।।
यंत्र नं० १००
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८६
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर कमर मे बाधने से घरन ठिकाने पर आ जाती है ॥१०॥
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६०६
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७२
१
८
लघुविद्यानुवाद
यत्र न० १०१
५
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर घोड़े के गले मे बाधने से उसका पेट दर्द दूर होता है । पैशाब बन्द हो जाय, तो होने लगता है : सर्व कष्ट दूर हो जाता है ।। १०१ ।।
७३
७
यत्र न० १०२
३
५
७६
३
७४
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४
७७
१
७५
७
इस यन्त्र को भोजपत्र पर लिखकर कमर मे बाधने से नपुंसक व्यक्ति की नपुंसकता दूर होती है ॥१०२॥
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लघुविद्यानुवाद
६०७
-
यत्र नं० १६३
देवदत्त
हाहा
इस यन्त्र को अष्टगध से भोजपत्र पर लिखकर मस्तक पर बाधने से पीलिया रोग दूर होता है ।।१०३॥
TALIRIT
PRODnom
॥ यन्त्राधिकार इति ।।
भगवान महावीर के अहिंसा का सारः
"तुम स्वयं जीरो और जीने दो।" पढ़ लेने से धर्म नहीं होता, पोथियों और पिच्छी से भी धर्म नहीं होता, किसी मठ में भी रहने से धर्म नहीं है और केशलोंच करने से भी धर्म नहीं कहा जाता । धर्म तो प्रात्मा में है उसे पहचानने से धर्म की प्राप्ति होती है ।
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लघुविद्यानुवाद
* भजन *
___ संकलनकर्ता-शांति कुमार · महावीर कीत्ति गुरु स्वामी, दु.ख मेटो जी अन्तरयामी ।।टेर।। (१) रतनलाल के पुत्र कहाये, बून्दा देवी जी के जाये।
सबसे नेहा तोडा, जग से मुंह को मोडा, दीक्षा धारी-दुख"..... .. (२) वीर सागर से क्षुल्लक दीक्षा धारी,
आदी सागर से मुनि दीक्षा धारी। शेढवालमे पा, सबसे प्राग्रह पा,
पदवी आचार्य की पाई दुःख... 'मेटो जी अन्तरयामी (३) पाँचो रस का तो त्याग किया है,
__त्याग स्वारथ का भी कर दिया है। अठारह भाषा के ज्ञाता, सारे शास्त्रो के वेत्ता,
गुरु स्वामी-दु.ख...... मेटो जी अन्तरयामी (४) लाखो बार तुम्हे शीश नवाऊ,
मुनिराज दरश कब पाऊ। सेवक व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया,
लागे नाही-दुःख......मेटो जी अन्तरयामी
* भजन *
सारे जहाँ से न्यारे, मुनिराज है हमारे। झाको तो इनके अन्दर, तन-मन से ये दिगम्बर, वैभव के हर नजारे, इनको लुभा के हारे-सारे जहाँ से....... . इनको न मोह मठ से, रखते न पर से यारी, धरणी न ये रमाते, होते न जटाधारी। टीका तिलक से हटकर, इनके स्वरूप न्यारे-सारे जहाँ सेवक से न खुश हो, दुश्मन से न द्वष करते। कोई भी फिर सताये, ये क्षमा भाव धरते । हर क्षण क्षमा का दरिया, बहता है इनके द्वारे-सारे जहाँ से .
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लघुविद्यानुवाद
चतुर्थ खंड
( पृष्ठ ६०६ से ६३२ तक)
इस खण्ड में
प्रत्येक तीर्थकर के काल में उत्पन्न शासन रक्षक - यक्ष यक्षरिण के चित्र सहित स्वरूप
व होम विधान ४ २४ तीर्थकरों के यक्ष व यक्षरिण का नाम व स्वरूप ६०६ * श्रष्ठ मातृका स्वरूप वर्णन, अष्ट जयाद्या देवता स्वरूप
६१७ सोलह विद्या देवियो के नाम चतुःषष्टि योगिनियो के नाम
६१८ यक्ष अथवा यक्षिणियो की पचोपचारी पूजा का
क्रम, होम विधि * अथ पीठिका मत्र
६२७ * अथ पूर्ण आहूति
६२८ * अथ पुन्याह वाचन * मत्र जप के बाद दशास होम करने के लायक
होम कुण्डो का नक्शा
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चतुर्थाधिकार प्रत्येक तीर्थ कर के काल में उत्पन्न शासन
___ रक्षक यक्ष यक्षिणी के चित्र सहित स्वरूप व होम विधान
(१) श्री आदिनाथ जी (बैल का चिन्ह) गौ मुख यक्ष-स्वर्ण के ममान, कान्ति वाला, गो मुख सदृश वाला, वृषभ वाहन वाला, मस्तक पर धर्म चक्र, चार भुजा वाला, ऊपर के दाहिने हाथ मे माला, बाएं हाथ मे फरसा तथा नीचे वाले दाहिने हाथ मे वरदान, बाएं हाथ मे विजौरे का फल धारण करने वाला होता है। (चित्र न० १)
__ "चक्नेश्वरी यक्षिणी" (अप्रतिहत चक्र) -स्वर्ण के जैसे वर्ण वाली, कमल पर बैठी हुई गरुड की सवारी, १२ भुजा वाली, दोनो हाथो मे दो वज्र, दो तरफ के चार चार हाथो मे पाठ चक्र, नीचे के दाहिने हाथ मे वरदान धारण करने वाली, नीचे के बाएं हाथ मे फल । प्रकारान्तर से चार भुजा वाली भी मानी है। ऊपर के हाथो मे चक्र, नीचे के बाएं हाथ मे विजोरा, दाहिने हाथ मे वरदान धारण करने वाली है। क्षेत्रपाल ४ जय, विजय, अपराजित, मरिण भद्र । (चित्र न० २)
(२) श्री अजितनाथजी (हाथी का चिन्ह) "महायक्ष"-जिन शासम देव-स्वर्ण सी काति वाला, गज की सवारी चार मुख व आठ भुजा वाला है। बाऐ चारो हाथो मे चक्र, त्रिशूल, कमल और अकुश तथा दाहिने चारो हाथो में तलवार, दडं, फरसा और वरदान धारण करने वाला है । (चित्र न० ३)
___"रोहणि यक्षिणी" स्वर्ण समान काति वाली, लोहासन पर बैठने वाली चार भुजा वाली हाथो मे शख, चन्द्र, अभय और वरदान युक्त है। (चित्र न० ४)
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६१०
लघुविद्यानुवाद
क्षेत्रपाल --- ४ क्षेम भद्र, क्षाति भद्र, श्री भद्र, शान्ति भद्र ।
( ३ ) श्री संभवनाथजी (घोड़े का चिन्ह )
"त्रिमूख यक्ष " -- कृष्ण वर्ण वाला, मोर वाहन वाला, तीन नेत्र व तीन मुख वाला, छह भुजा वाला, बाऐ हाथ मे चक्र, तलवार व कुश और दाहिने हाथो मे दड, त्रिशूल और तीक्ष्ण कतरनी को धारण करने वाला है । (चित्र न० ५ )
"प्रज्ञप्ति यक्षिरणी " - श्वेत वर्ण, पक्षी की सवारी, छह हाथ वाली, हाथ मे अर्द्धचन्द्रमा, फरसा, फल, तलवार, तुम्बी और वरदान का धारण करने वाली है । (चित्र न० ६ ) क्षेत्रपाल - -४ वीर भद्र, वलि भद्र, गुरण भद्र, चन्द्राय भद्र ।
(४) श्री अभिनन्दननाथजी ( वानर का चिन्ह )
" यक्षेश्वर यक्ष" - कृष्ण वर्ण वाला, गज की सवारी, चार भुजा वाला, बाऐ हाथ मे धनुष और ढाल, दाहिने हाथ मे बारग और तलवार धारण करने वाला है । (चित्र न० ७ )
"वज्र शृखला यक्षिणी" - स्वर्ण सी काति वाली, हस वाहिनी, चार भुजा वाली, हाथो मे नाग पाश, बिजोरा फल, माला और वरदान धारण करने वाली है । (चित्र न० ८ )
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क्षेत्रपाल - ४ महा भद्र, भद्र भद्र, शत भद्र, दान भद्र ।
( ५ ) श्री सुमतिनाथजी ( चकवे का चिन्ह )
" तुम्बरु यक्ष" - कृष्ण वरण वाला, गरुड की सवारी और यज्ञोपवीत धारण करने वाला, चार भुजा वाला है । ऊपर के दोनो हाथो मे सर्प, नीचे दाहिने हाथ मे वरदान तथा बाएं हाथ मे फल धारण करने वाला है । (चित्र न० ६ )
1
"पुरुष दत्ता यक्षिणी" – ( खङ्गवरा ) स्वर्ण के वर्ण तथा हाथी की सवारी करने वाली, " चार भुजा वाली है । हाथो मे वज्र, चक्र और वरदान धारण करने वाली है । (चित्र न० १० ) क्षेत्रपाल - - ४ कल्याण चन्द्र महा चंन्द्र, पद्म चन्द्र, नय चंद्र |
1
(६) श्री पद्मप्रभुजी ( कमल का चिन्ह )
"पुष्प यक्ष" - कृष्ण वर्ण वाला, हरिन - वाहन, चार भुजा वाला । (वसु नन्दि प्रतिष्ठा कल्प मे चार भुजा वाला है ।। दाहिने हाथ मे माला व वरदान तथा वाऐ हाथ मे ढाल और अभय को air करने वाला है । (चित्र न० ११)
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लघुविद्यानुवाद
.....
"मनोवेगा (मोहनी) यक्षिणी"--स्वर्ण वर्ण तथा अश्व वाहन वाली, चार भुजा वाली है। हाथो मे वरदान, तलवार, ढाल और फल को धारण करने वाली है। (चित्र न. १२) । क्षेत्रपाल–४ कालाचन्द्र, कल्पचन्द्र, कुमुत चन्द्र कुमुद्र चन्द्र। ,
(७) श्री सुपार्श्वनाथजी (स्वस्तिक का चिन्ह) . "मातङ्ग यक्ष" कृष्ण वर्ण वाला, सिह की सवारी करने वाला, टेढा मुह वाला, दाहिने हाथ मे त्रिशूल, बाएं हाथ मे दड को धारण करने वाला है। (चित्र न० १३)
"काली देवी (मानवी) यक्षिणी" -- श्वेत वर्ण वाली, बैल की सवारी करने वाली चार भुजा वाली है। हाथो मे घटा, फल, त्रिशूल और वरदान को धारण करने वाली है। (चित्र न० १४) क्षेत्रपाल-४ विद्याचन्द्र, खेमचन्द्र, विनयचन्द्र । '
. (८) श्री चन्द्र प्रभुजी (चन्द्रमा का चिन्ह) "श्याम यक्ष"-कृष्ण वर्ण, कबूतर (कपोत) की सवारी करने वाला, तीन नेत्र तथा चार भुजा वाला है। बाएं हाथ मे फरसा और फल, दाएं हाथ मे माला और वरदान युक्त है। (चित्र न० १५)
"ज्वाला मालिनी (ज्वा लनी) यक्षिणी"---श्वेत वर्ण भंसा (महिप) की सवारी करने वाली तथा आठ भुजा वाली है । हाथो मे चक्र, वनुष, नाग पाश, ढाल, वारण, फल, चक्र और वरदान है। (चित्र न० १६) क्षेत्रपाल-४ सोम काति, रविकाति, शुभ्र काति, हेम काति।
(६) श्री पुष्पदन्तजी (मगर का चिन्ह) "प्रजित यक्ष"-श्वेत वर्ण वाला, कछुप्रा की सवारी तथा चार हाथ वाला है। दाहिने हाथो मे अक्ष माला है और वरदान तथा बाऐ हाथो मे शक्ति और फल को धारण करने वाला है। । चित्र न १७)
__ "महाकाली (भृकुटि) यक्षिणी"-कृष्ण वर्ण वाली, कछया की सवारी तथा चार मजा वाली हैं हाथो मे वच, फल, मृग्दर और वरदान युक्त है। (चित्र न १८)
क्षेत्रपाल-४ वञकाति, वीरकाति विष्णुकाति. चन्द्रकाति ।
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लघुविद्यानुवाद
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(१०) श्री शीतलनाथजी (कल्पवृक्ष का चिन्ह) "बाह्य यक्ष जिन शासनदेव"-श्वेत वर्ण, कमल आसन, चार मुख और आठ हाथो वाला है। बाएं हाथ मे धनुष, दण्ड, ढाल और वज्र तथा दाहिने हाथ मे बाण, फरसा, तलवार और वरदान को धारण करने वाला है। (चित्र न० १६)
"चामुण्डा देवी (मानीव चामुण्डी) यक्षिणी"-हरे वर्ण वाली, काले सूअर की सवारी, चार भुजा वाली है, हाथो मे मछली माला, बिजोरा फल और वरदान धारण करने वाली है। (चित्र न २०)
क्षेत्रपाल-४ शतवीर्य, महावीर्य, बलवीर्य, कीर्तिवीर्य ।
(११) श्री श्रेयांसनाथजी (गडे का चिन्ह)
"ईश्वर यक्ष"--श्वेत वर्ण, बैल को सवारी करने वाला, त्रिनेत्र तथा चार भुजा वाला है। बाएं हाथ मे त्रिशूल और दण्ड तथा दाहिने हाथ मे माला और फल को धारण करने वाला है। (चित्र न० २१)
"गौरी यक्षिणी"-स्वर्ण वर्ण तथा हरिन की सवारी करने वाली, चार भुजा वाली है। हाथो मे मुग्दर, कलश, कमल और वरदान को धारण करने वाली है । (चित्र न २२) क्षेत्रपाल-४ तीर्थ रुचि, भाव रुचि, भव्य रुचि, शान्ति रुचि ।
(१२) श्री वासुपूज्यजी (भैसे का चिन्ह) "कुमार यक्ष"-श्वेत वर्ण तथा हस की सवारी करने वाला है। त्रिनेत्र और छह भुजा वाला है । बाएं हाथ मे धनुष, नोलिया और फल तथा दाहिने हाथो मे बाण, गदा और वरदान को धारण करने वाला है। (चित्र न० २३)
___ "गान्धारी (विन्धुन्मालिनी) क्षिणी"-हरित वर्ण, मगर वाहिनी तथा चार भुजा वाली है। ऊपर के दोनो हाथ मे कमल, फल, वरदान युक्त है। (चित्र न० २४) क्षेत्रपाल-४ लब्धि रुचि, तत्व रुचि, सम्यक्त रुचि, तूर्य वाद्य रुचि ।
(१३) श्री विमलनाथजी (सूअर का चिन्ह) "चतुर्मुख यक्ष"-वर्ण मुख, हरित वर्ण वाला, मोर की सवारी करने वाला चार मुख, बारह भुजा वाला है। ऊपर के आठ हाथो मे फरसा तथा बाकी के चारो हाथो मे तलवार, ढाल, माला और वरदान धारण करने वाला है। प्रतिष्ठा तिलक मे छह मुख वाला चित्र है। (चित्र नं० २५)
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लघुविद्यानुवाद
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"वैराटो देवो यक्षिणी"-हरे वर्ण वाली सर्प वाहिनी, चार भुजा वाली है। ऊपर के दोनो हाथो मे सर्प, नीचे के दाहिने हाथ मे बाण, बाएं हाथ मे धनुष को धारण करने वाली है। (चित्र न० २६) क्षेत्रपाल-6 विमल भक्ति, आराध्य रुचि, वैद्य रुचि, भावश्य वैद्य वाद्य रुचि ।
(१४) श्री अनन्तनाथजी (सेही का चिन्ह) "पाताल यक्ष"-लाल वर्ण तथा मगर की सवारी करने वाला और तीन मुख वाला, मस्तक पर सर्प को तीन फरिण को धारण करने वाला तथा छह भुजा वाला है दाहिने हाथ मे अंकुश, त्रिशूल और कमल तथा बाएं हाथ मे चाबुक, हल और फल धारण करने वाला है। (चित्र न० २७)
"अन्नतमति यक्षिणी"-स्वर्ण वर्ण वाली, हस वाहिनी, चार भुजा वाली है। हाथो मे धनुष, बिजोरा, फल, बाण और वरदान धारण करने वाली है। (चित्र न० ०८) क्षेत्रपाल-४ स्वभाव नामा, परभाव नामा, अनौपम्य, सहजानन्द ।
(१५) श्री धर्मनाथजी (वज्र का चिन्ह) "किन्नर यक्ष"--मू गे (प्रवाल) के वर्णमाला मछली की सवारी करने वाला, त्रिमुख और छह भुजा वाला है । बाएं हाथ मे फरसा, वज्र और अकुश तथा दाहिने हाथ मे मुग्दर माल और वरदान को धारण करने वाला है । (चित्र न० २६)
___ "मानसी यक्षिणी"--मू गे जैसी लाल कान्ति वाली व्याघ्र की सवारी करने वाली, छह भुजा वाली है। हाथो मे कमल, धनुष वरदान, अकुश बाण और कमल को धारण करने वाली है। (चित्र न. ३०) क्षत्रपाल--४ धर्मकर, धर्माकारी, शातकर्मा (सातृ कर्मक) विनय नाम ।
(१६) श्री शान्तिनाथजी (हरिन का चिन्ह) _ "गरूड़ यक्ष"--कृष्ण वर्ण वाला टेढा मुख वाला (सूअर का सा मुंह वाला) सूअर की सवारी करने वाला चार भुजा वाला है । नीचे के दोनो हाथो मे कमल और फल तथा ऊपर के दोनों हाथो मे वज्र और चक्र लिये हुये है। (चित्र न० ३१)
'महामानसी ( कदर्पा) यक्षिणी"-मयूर वाहिनी, चार भुजा वाली तथा स्वर्ण के समान वर्ण वाली है। हाथो मे चन्द्र, फल, वज्र और वरदान को धारण करने वाली है। (चित्र न० ३२)
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६१४
लघुविद्यानुवाद
क्षत्रपाल--४ सिद्धसेन, महासेन लोकसेन, विनय केतु ।
(१७) श्री कुन्थनाथजी (बकरे का चिन्ह) "गधर्व यक्ष"-कृष्ण वर्ण वाला, पक्षी की सवारी करने वाला तथा चार भुजा वाला है। ऊपर के दोनो हाथो मे नागपाश, नीचे ‘दोनों हाथो मे क्रमश धनुष और बाण हैं। (चित्र न० ३३)
"जया गान्धारी यक्षिणी"- स्वर्ण वर्ण वाली, काले सूअर की सवारी करने वाली चार भुजा वाली है। हाथो मे चक्र, शख, तलवार और वरदान को धारण करने वाली है । (चित्र न० ३४) क्षेत्रपाल-४ यक्षनाथ, भूमिनाथ, देशनाथ, अवनिनाथ ।
(१८) श्री अरहनाथजी (मत्स्य का चिन्ह) ", . "रवगेन्द्र यक्ष"-शख की सवारी करने वाला, त्रिनेत्र तथा छह मुख वाला है। बाएं हाथो मे क्रमश: धनुष, कमल, माला, बिजोरा फल, बड़ी यक्ष माला और अभय को धारण करने वाला है। (चित्र न० ३५)
तारावती यक्षिणी"-स्वर्ण वर्ण वाली, हस वाहिनी, चार भुजा वाली है। हाथो मे सर्प हरिण, वज्र और वरदान को धारण करने वाली है । (चित्र न० ३६) क्षेत्रपाल-४ गिरिनाथ, गद्धरनाथ, वरूणनाथ, मैत्रनाथ ।
(१६) श्री मल्लिनाथजी (कलश का चिन्ह) . 'कुबेर यक्ष"-- इन्द्र धनुष जैसे वर्ण वाला गज वाहिनी चार मुख आठ हाथ वाला है ।
'अपराजिता देवी यक्षिणी"-हरित वर्ण वाली, अष्टापद की सवारी करने वाली चार भुजा वाली, हाथ मे ढाल, फल, तलवार और वरदान को धारण करने वाली है। (चित्र न० ३८) क्षेत्रपाल-४ क्षितिप, भवप, क्षांतिप, क्षेत्रप (यक्षप)। .
(२०) श्री मुनिसुव्रतनाथजी (कच्छप का चिन्ह)
"वरूण यक्ष"--श्वेत वर्ण तथा वैल की सवारी करने वाला, जटा के मुकुट वाला, पाठ मुख वाला, प्रत्येक मुख तीन-तीन नेत्र वाला और चार भुजा वाला है। वाऐ हाथ मे ढाल और फल तथा दाहिने हाथ मे तलवार और वरदान है। (चित्र न० ३६)
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लघुविद्यानुवाद
६१५
- "बहुपिरूणी ( सुगन्धनो देवो) यक्षिणी" - पीत वर्ण, कृष्ण सर्प की सवारी करने वाली और चार भुजा वाली है । हाथो में ढाल, फल, तलवार और वरदान धारण करने वाली है । ( चित्र न० ४० )
क्षेत्रपाल -- ४ तद्रराज, गुगराज, कल्याणराज, भव्यराज ।
,
(२१) श्री नमिनाथजी ( नील कमल का चिन्ह )
"भृकुटि
यक्ष' - रक्त वर्ण वाला, बैल की सवारी करने वाला, चार मुख तथा आठ हाथ वाला, हाथो मे ढाल, तलवार, धनुष, बाण, अकुश, कमल, चक्र और वरदान है । ( चित्र न० ४१ )
"चामुण्डा (कुसुममालनि ) यक्षिणी" -- हरित वर्ण वाली, मगर की सवारी करने वाली, चार भुजा वाली, हाथो मे दण्ड, ढाल, माला और तलवार है । (चित्र न० ४२ )
क्षेत्रपाल -- ४ कपिल, वटुक, भैरव, भैरव, सल्लाकारव्य ।
(२२) श्री नेमिनाथजी ( शंख का चिन्ह )
"गोमेद यक्ष " -- कृष्ण वर्ण वाला तीन मुख तथा पुष्प के प्रासन वाला मनुष्य की सवारी करने वाला और छह हाथ वाला है हाथो मे मुग्दर, फरसा, दण्ड, फल, चक्र और वरदान है । (चित्र न० ४३ )
"श्राम्रा (कुष्माण्डनी) यक्षिणी -- सिह वाहिनी, ग्राम की छाया में रहने वाली दो भुजा वाली है बाएं हाथ में प्रिय पुत्र की प्राप्ति के लिए आम्रा की लूम को धारण करने वाली है तथा दाहिने हाथ मे शुभकर पुत्र को धारण करने वाली है । (चित्र न० ४४ )
क्षेत्रपाल ---४ कौकल, खगनाम, त्रिनेत्र, कलिंग |
(२३) श्री पार्श्वनाथजी (सर्प का चिन्ह )
“धरणेन्द्र यक्ष”—ग्रकार के समान नीले वर्णवाला, कछुग्रा की सवारी करने वाला, मुकुट मे सर्प का चिन्ह और चार भुजा वाला है । ऊपर के दोनो हाथो मे सर्प और नीचे के वाऐ हाथ मे नागपाश और दाहिने हाथ में वरदान को धारण करने वाला है । (चित्र न० ४५)
"पद्मावती देवी यक्षिणी" - कमल (आशाधर पाठ मे कुक्कुट ) सर्प की सवारी करने वाली कमलासानी माना है मस्तक पर सर्प के तीन फरणो के चिन्ह वालो माना है । मल्लिपेणाचार्य कृत पद्मावती कल्प मे चारो हाथो मे पाश फल वरदान को धारण करने वाला भी माना है ।
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६१६
लघुविद्यानुवाद
प्रकारान्तर में छह और चौबीस भुजा वाली माना है। छह हाथो मे पाश, तलवार, भाला, वाल, चन्द्रमा, गदा और मूसल को धारण करती है तथा २४ हाथो मे शख, तलवार, चक्र, बाल चन्द्रमा, सफेद कमल, लाल कमल, धनुष, शक्ति, पाश, अकुश, घण्टा, व रण, मूसल, ढाल, त्रिशूल, फरसा, वज्र, माला, फल, गदा पान नवीन, पत्तो का गुच्छा और वरदान को धारण करने वाली है। (चित्र न० ४६) क्षेत्रपाल ४ कीर्तिघर, स्मृमिधर, विनयधर, अजधर (ब्जारव्य) ।
(२४) श्री महावीरजी (सिह का चिन्ह) "मातग यक्ष"-मू गे के जैसे वर्ण वाला, गज वाहन, मस्तक पर धर्म चक्र को धारण करने वाला और दो भुजा वाला है। बाएं हाथ मे बिजोराफल, दाहिने हाथ मे वरदान है । (चित्र न ४७)
"सिद्धायिक यक्षिणी"-स्वर्ण के समान वर्ण वाली भद्रामनी, सिहवाहिनी, दो भुजा वाली, वाये हाथ मे पुस्तक व दाहिने हाथ मे वरदान युक्त है । (चित्र न० ४८) क्षेत्रपाल-४ कुमुद, अजन, चामर, पुष्पदन्ता ।
॥ इति ।।
लोभ एक इतना बड़ा विशाल समुद्र है कि जिसके भंवर मे पडकर न निकलना अत्यन्त ही कठिन है। लोभ से क्रोध आता है, लोभ से कामनाये * बढती है, लोभ से अज्ञान बढता है और लोभ से विनाश होता है। FAMIRMIRRIERRAIMIRIKEKRANTERARTHAREKAR
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RAIIMIRTUAL
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गंधर्व यज्ञ नं.३३
जयागांधारी यक्षणी नं.३४
स्पेन्द्रपानं.३५
तारावती यणीनं.३६
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BEDED EYE YE DEDEO EDITED BY**********************************
कुबेर यक्ष नः ३७
गौतम
वरुण' यक्ष न३
अपराजिता देवी नं. ३८
बहुरूपिणी यक्षणी नं.४०
लघु विद्यानुवाद
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कुटीत नं. ४१
गामेव यह नं. ४३
चामुण्डा यक्षणी नं. ४२
(कुदनी पीन ४४
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पद्मावती देवी यक्षणी नं.४६
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धरणेन्द्र यक्ष नं. ४५.
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अष्ठमातका स्वरूप वर्णन
१-(ब्रह्माणी) देवी पद्मराग वर्णवाली, पद्मवाहन, मूसल का आयुध धारण करने वाली है।
२-(माहेश्वरी देवी) सुकर का वाहन, दड और वरदान, आयुध को धारण करने वाली और श्वेतवर्ण वाली है।
३-(कौमारिदेवी) विद्र म वर्ण वाली; मयूर का वाहन (खड) तलवार का प्रायुध धारण करने वाली है।
४-(वैष्णविदेवी) इन्द्रनील वर्ण वालो, चक्रायुध धारण करने वाली, और गरूड वाहन वाली है।
५-(वाराहिदेवी) नील वर्ण वाली, वराहका (सुकर) वाहन वाली, हल का श्रायुध धारण करने वाली है।
६-(इन्द्राणि देवी) सुवर्ण वर्ण वाली, वज्रायुध धारण करने वाली, हाथी का वाहन वाली है।
७-(चामुण्डि देवी) अरूण वर्ण वाली, व्याघ्र वाहन वाली, शक्ति प्रायुध को धारण करने वाली है।
____८-(महालक्ष्मीदेवी) सर्व लक्षणो से पूर्ण गदा का प्रायुध, चूहे का वाहन, और श्वेत वर्ण।
अष्टजयाद्यादेवता स्वरूप १-(जयादेवी) पाश, अमि, वेटक, और फल, मोने के समान वर्ण गली पीतावर को धारण करने वाली, फूल की माला पहने हुये, चार भुजा वाली।
२-(विजयादेवो) छः हाथ वाली कोदंड, वारण, अनि, गदा, सरोज, फन के आयुध धारण करने वाली, रक्त चणं वाली, रक्ताम्बर वाली।
3- (अनितादेवी) श्वेत व बाली, नुवर्ण वच, मत्म्य का बान, दो मुजा वाला, एक साप में पारण, एक हाथ में फल ।
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१८
लघुविद्यानुवाद
४-(अपराजितादेवी) कृष्ण वर्ण वाली, कृष्णाबर धारण करने वाली ६ भुजा वाली खेट, कृपाण, रूचक, अभय, गदा, पाश के आयुध को धारण करने वाली।
५-(जभादेवी) लाल वस्त्र को धारण करने वाली, श्वेत वर्ण वाली, अष्ट भुजा वाली, धनुप, वारण, कृपारण, गदा, वर, माला, फल, अवुरूह ।।
६-(मोहादेवी) रक्तवर्ण वाली श्वेत वस्त्र को धारण करने वाली, सिहाधिरूढ, चार भुजा वाली, माला, अभय, अभोज, (कमल), वरद को धारण करने वाली है ।
७-(स्तभादेवी) सुवर्ण वर्ण वाली, लाल वस्त्र को धारण करने वाली, हाथी की सवारी, छह हाथ वाली, खडग, त्रिशूल, उत्पल, मातुलिग, वरद, अभय के आयुध वाली है।
८-(स्तभिनीदेवी) रक्तवर्ण वाली, लाल वस्त्र को धारण करने वाली, ४ भुजा वाली, फल, असि, पुत्रीपरिका, अभय के प्रायुधो को धारण करने वाली, द्विरदाधि रूढ ।
सोलह विद्या देवियों के नाम रोहिणी १ प्रज्ञाप्ते २ वज्र ” खला ३ वज्राकुशे ४ अप्रतिचक्रे ५ पुरूपदता ६ कालि ७ महाकालि ८ गान्धारिद गौरि १० ज्वालामालिनी ११ वैरोटि १२ अच्युते १३ अपराजिते १४ मानसि १५ महामानसि १६ ।
सोलह विद्या देवियो के वाहन व प्रायुध २४ यक्षिणियो के अन्तर्गत ही है इसलिए अलग से नहीं दिया है । २४ यक्षियो के चित्र सहित वणन किया है ।
चतःषष्टि योगिनियों के नाम दिव्ययोगिनी १ महायोगिनी २ सिद्धयोगिनी : जिणेश्वरी ४ प्रेताशी ५. आकिनी ६ काली ७ कालरात्रि ८ निशाचरी हुँकारी १० सिद्धवैताली १५ ह्रीकारी १२ भूतसरामगे: जर्ववेशी १४ विरूपाक्षी १५ शुक्लाङ्गी १६ नरभोजिनी १७ पटकारी १८ बीरमा १९ घनाक्षी २० बलप्रिया २१ गक्षमा २ घोरखनाक्षी २: विश्यम्पा २४ भयवरी २५ बैग २६ कुमारिका २७ चपिट २८ बागही २६ मुण्डधारिगी ३० भाकरी ३१ गटकारी: भीषनी ३३ विगन्ना ! गैम्बी : ध्वमिनी : गांधा ५७ दुगी ३८ प्रेनवाटनी गदवाली ८० दोपलाष्टि, मानिनी ४ः मन्त्रयोगिनी ४३ मानिनी ८४ पानी ८५ गरी ४६ सानि ८ भने वर्ग ८ टी. निपटी ५० माया ५१ गामवादिनी ५२ मा ५: गा गमापा ५ मामयी ५६ चित्रात ५यामकी ५८ र
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१. रोहिणी (दिग०
१ रोहिणी (वे०)
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४. वजापुर
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४ बजाकुशा (वे०)
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५ जाम्वूनदा (दिग०)
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६ पुत्पदत्ता (दिग०) .
६ पुष्पदना (२०) .
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१० गांधारी (दिग०)
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१० गाधारी (श्वे०)
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११ ज्वालामालिनी (दिग०)
१२ मानवी (दिग०)
१२. मानवी (श्वे०)
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लच विद्यानुवाद
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लघुविद्यानुवाद
दृष्टि रधोमुखी ५६ मडोयधारिणी ६० व्याघ्री ६१ भूतादित नाशिनी ६२ भैरवी, महामाया ६३ कपालिनी वृथाङ्गनी ६४ । यक्ष अथवा यक्षिणियों की पंचोपचारी पूजा का क्रम
प्रथम सकलीकरण करे, फिर अष्टद्रव्य सामग्री शुद्ध अपने हाथ से धोकर, यक्ष अथवा यक्षिणी की पचोपचारी पूजा भक्ति से श्रद्धानपूर्वक करे। ॐ आ को ह्री नमोऽस्तु भगवति अमुक यक्ष अथवा अमुक यक्षिणी एहि २ सवौषट् ।
इति आह्वान मंत्र ॐ पा को ही नमोऽतु, भगवती, अथवा, भगवते, अमुक यक्ष, अथवा अमुक यक्षिणी, तिष्ठ २ठ ठ ।
इतिस्थापन मंत्र ॐ पा को ही नमोऽतु भगवति, अथवा, भगवते, अमुक यक्ष, अथवा अमुक यक्षिणी, ममसन्निहिता भव २ वषट् ।
इति सन्निधीकरण मंत्र ॐ पा को ही नमोऽतु भगवति अथवा भगवते, अमुकयक्ष अथवा अमुक यक्षिणो, जलगध अक्षत् पुष्पादिकान् गृण्ह २ नम ।
उपरोक्त मत्र से प्रत्येक द्रव्य को चढ ते समय उपरोक्त मत्र का उच्चारण करे। प्रत्येक द्रव्य से पूजा हो जाने के बाद विसर्जन करे।
इति द्रव्य अर्पण मंत्र ॐ प्रा को ह्री नमोऽतु, भगवति अथवा भगवते, यक्ष, अथवा अमुक, यक्षिणी स्वस्थान गच्छ २ ज ज ज.।
इति विसर्जन मंत्र इस प्रकार यक्ष अथवा यक्षिणी की पूजा करनी चाहिए।
होम विधि पहले सकलीकरण के बाद होम शुरू करे । तद्यथा--ॐ ह्रीं क्ष्वी भु स्वाहा पुष्पाञ्जलिः ॥ ११ ॥
इस तरह के मन्त्र जाप के विधान को पूर्ण कर दशास अग्नि होम करे इसका विधान इस प्रकार है।
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६२०
लघुविद्यानुवाद
"ॐ ह्रीं क्ष्वीं" इस मन्त्र का उच्चारण कर पुष्पांजलि क्षेपण करे ॥१॥
ॐ ह्रीं अत्रस्थ क्षेत्रापालाय स्वाहा ।। क्षेत्रपालबलिः ॥२॥ इस मन्त्र का उच्चारण कर क्षेत्रपाल को वलि देवे ॥२॥
ॐ ह्रीं वायु कुमाराय सर्व विघ्नविनाशनाय महीं पूतां कुरु कुरु हूं फट् स्वाहा ।। भूमि सम्मार्जनम ॥ ३ ॥
इस मन्त्र को पढकर भूमिका सम्मान-सफाई करे ॥ ३ ॥
ॐ ह्रीं मेघ कुमाराय धरां प्रक्षालय प्रक्षालय अं हं सं तं पं स्वं झ झ यं क्षः फट् स्वाहा ॥ भूमि सेचनम् ॥ ४ ॥
यह मन्त्र पढकर भूमि पर जल सीचे ।। ४ ।।
ॐ ह्रीं अग्नि कुमारायं हम्व्य ज्वल ज्वल तेजः पतये अमित तेज से स्वाहा ॥ दर्भाग्निप्रज्वालम ॥ ५॥
यह मन्त्र पढकर दर्भ से अग्नि सुलगावे ।। ५ ।। ॐ ह्रीं नौ षष्टि सहस्त्र संख्येभ्यों नागेभ्यः स्वाहा नागतर्पणम ॥ ६ ॥ इस मन्त्र का उच्चारण कर नागो की पूजा करे ।। ६ ।। ॐ ह्रीं भूमिदेवते इदं जलादिकमर्चनं गृहारण स्वाहा । भम्यर्चनम् ॥ ७ ॥ यह मन्त्र पढकर भूमि की पूजा करे ।। ७ ॥
ॐ ह्रीं अहं क्षं वं वं श्रीं पीठ स्थापनं करोमि स्वाहा ॥ होम कुण्डाऽप्रव्यक पीठ स्थापनम ॥८॥
इस मन्त्र का उच्चारण कर होम कुण्ड से पश्चिम की ओर पीठ स्थापन करे ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं समग्दर्शनज्ञानः चारित्रेभ्यः स्वाहा ॥ श्री पीठाचनम ॥६॥ इस मन्त्र को पढकर पीठ की पूजा करे ।। ६ ।।
ॐ ह्रीं श्री क्लीं ऐं अहं जगतां सर्व शान्ति कुर्वन्तु श्री पीठे प्रतिमास्थापनम् करोमी स्वाहा ॥ श्री पीठे प्रतिमास्थापनम् ।। १० ॥
यह मन्त्र पढकर श्री पीठ पर प्रतिमा स्थापन करे ।। १० ॥
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लघुविद्यानुवाद
६२१
ॐ ह्रो अर्ह नमः परमेष्टिभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्री अर्ह नमः परमात्मकेभ्य स्वाहा ।। ॐ ह्रीं अर्ह नमोऽनाधिनिधनेभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं नमो नृसुरासुर पूजितेभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं अर्ह नमोऽनन्तज्ञानेभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं मह नमोऽनन्त दर्शनेभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्री अर्ह नमोऽनन्तवीर्येभ्य स्वाहा ॥ ॐ ह्रो अर्ह नमोऽनन्त सौख्येभ्यः स्वाहा इत्यष्टभिर्मन्त्रः प्रतिमार्चनम् ।। ११ ॥
इन अाठ मन्त्रो का उच्चारण कर प्रतिमा की पूजा करनी चाहिये ।। ११ ।। ॐ ह्री धर्म चकायां प्रतिहत तेज से स्वाहा ॥ चकत्रयार्चनम ।। १२ ।। इस मन्त्र को पढकर तीनो मन्त्र से चक्रो की पूजा करे ।। १२ ।। ॐ ह्रीं श्वेतच्छत्रयश्रियै स्वाहा ॥ छत्रत्रय पूजा ।। १३ ।। इस मन्त्र का उच्चारण कर छत्र त्रय की पूजा करे ।। १३ ।।
ॐ ह्रीं श्री क्ली ऐं अहह्रौस २ सर्व शास्त्र प्रकाशनि वद् वद् वाग्वादिनी अवतर अवतर । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः संनिहिता भव भव वषट् क्लूनमः सरस्वत्यै जलं निर्वपामि स्वाहा ॥ एवं गन्धा क्षत पुष्प चरु दीप धूप फल व स्प्राभरणादिकम् । प्रतिमानं सरस्वती पूजा ॥ १४ ॥
ॐ ह्री श्री इत्यादि मन्त्र पढकर सरस्वती का आव्हान, स्थापन और सन्निधिकरण करे "क्लू" इत्यादि पढकर जल गन्ध अक्षत पुष्प नैवेध दीप धूप फल और वस्त्राभरणादिक से प्रतिमा के सामने सरस्वती की पूजा करे ।। १४ ।।
ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र पवित्रतरगात्र चतुर शीत लक्षरण गुणाष्टा दश सहस्त्र शोल गणधरचरणाः आगच्छत २ संवौषट इत्यादि गुरु पादुका पूजा ॥ १५ ॥
"ॐ ह्री” इत्यादि पढकर गणधरो की पादुका की पूजा करे ॥ ५१ ।।
ॐ ह्रीं कलियुग प्रबन्ध दुर्मार्ग विनाशन परम सन्मार्ग-परिपालन भगवन् यक्षेश्वर जलार्चन गृहाण गृहारण इत्यादि जिनस्य दरिगरणे यक्षाचनम ॥ १६ ॥
"ॐ ह्री' इत्यादि पढकर जिन भगवान के दक्षिण की ओर यक्षो की पूजा करे ।। १६ ॥
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लघुविद्यानुवाद
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ॐ ह्री कलियुग प्रबन्ध दुर्गि विनाशिनि सन्मार्ग प्रतिनि भगवती यक्षी देवते जलाद्यर्चन गृहारण गृहारण । इत्यादि बामे शासन देवतार्चनम ॥ १७ ।।
यह मन्त्र पढकर जिन भगवान की वाई अोर शासन देवताओ की पूजा करे ।। १७ ।।
ॐ ह्री उपवेशनभूः शुद्यतु स्वाहा ।। होम कुड पूर्व भागे दर्भपूलेनोपवेशन भूमि शोधनम् ॥ १८ ॥
यह मन्त्र पढकर होम कुड के पूर्व भाग में दर्भ वे पूले से बैटने वी जमीन को शुद्ध करे ॥ १८ ॥
ॐ ह्रीं पर ब्रह्मणे नमो नमः ब्रह्मासने अहमुपविशामि स्वाहा । होम कुण्डाग्ने पश्चिमाभिमुख होता उपविशेत ।। १६ ।।
यह मन्त्र पढकर होता (होम करने वाला) होम कुड के अग्र भाग मे पश्चिम की ओर मुख करके बैठे ॥ १६ ॥
ॐ ह्रीं स्वस्तये पुण्याहकलशं स्थापयामि स्वाहा ।। शाली पूज्जोपरि फल सहित पुण्याह कलश स्थापनम् ।। २० ॥
यह मन्त्र पढकर चावलो के ढेर पर पुष्प वाचन के कलश स्थापन करे और उनके ऊपर नारियल आदि कोई सा फल रक्खे ॥ २० ॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्र हौ ह्रः नमोऽहते भगवते पद्ममहा पद्मातिगींच्छ केसरि पुण्डरिक महापुंडरिक गंगा सिन्धु रोहिद्रोहिता स्याहरिद्वरिकान्ता सीता सीतोदा नारी नर कान्ता सुवर्ण रूप्य कुलारक्तारक्तोदा पयोधि शुद्ध जल सुवर्ण घट प्रक्षालित कर रत्न गन्धाक्षत पुष्पा चितमा मोदकं पवित्रं कुरु कुरु झं झं झौ झौ वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पंद्रां द्रां द्री द्रीं हं सः इति जलेन प्रसिञ्चय जल पवित्री करणम् ।। २१ ॥
यह मन्त्र पढकर जल सीचकर पूजा करने के जल को पवित्र करे ।। २१ ॥ मन्त्र :-ॐ ह्री नेत्राय संधौषटम ।। कलशार्चनम ।। २२ ॥
यह मन्त्र बोलकर कलशो की पूजा करे ।। २२ ।।
ततो यजमानाचार्यः वाम हस्तेन कलशं धत्वां सव्यहस्तेन पुण्याहवाचनां पठित्वा कलशं कुंडस्य दरिगणे भागे निवेशयेत् ।। २३ ।।
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लघुविद्यानुवाद
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इसके बाद यजमान आचार्य बाये हाथ मे कलश लेकर दाहिने हाथ से पुण्याहवाचन को पढता भूमि का सिचन करे ।। २३ ।। और पुण्याह पुण्याह प्रीयन्ता प्रीयन्ता इत्यादि पुण्याहवाचन को पढता हुआ कलश को कुण्ड के दाहिने भाग मे स्थापन करे ।। २३ ।।
ततः ॐ ह्री स्वस्तये मङ्गलकुम्भ स्थापयामि स्वाहा वारे मङ्गलकलश स्थापनं तत्र स्थालि पाक प्रोक्षरण पात्र पूजाद्रव्य होम द्रव्य स्थापनम् ॥ २४ ॥
__इसके बाद "ॐ ह्री स्वस्तये" इत्यादि पढकर कुण्ड के बाये भाग मे कलश स्थापन करे और वही पर स्थालीपाक गन्ध पुष्प अक्षत फल इत्यादि से सुशोभित पाच पच पात्रो, प्रेक्षणपात्र, पूजाद्रव्य और होम द्रव्य को स्थापन करे ॥ २४ ॥
ॐ ह्रीं परमेष्ठिभ्यों नमो नमः इति परमात्म ध्यानम् ।। २५ ।। इसे पढकर परमात्मा का चिन्तवन करे ॥ २५ ।।
ॐ ह्री गमो अरिहंताणं ध्यात भिरभीप्सित फलदेभ्यः स्वाहा परम पुरूषस्यायं प्रदानम् ॥ २६ ॥
यह पढकर परमात्मा को अर्घ्य दे ॥ २६ ।।
तत इदं यन्त्रं कुण्ड मध्ये लिखेत् ॐ ह्रीं नीरज से नमः ॐ दर्पमथनाय नमः । इत्यादि । जलैर्दभै गंधाक्षतादिभि होम कुण्डार्चनम ॥ २७ ॥
___इसके बाद कुण्ड के बीच मे ॐ ह्री नीरज से नम ।। "दर्पमथनाय नम” इत्यादि जिसे पीछे पूर्ण लिख पाये है उस मन्त्र को लिख जल गन्ध अक्षत दर्भ आदि से होम कुण्ड की अर्चना करे ॥ २७ ॥
__ॐ ॐ ॐ ॐ र र र रं अग्नि स्थापयामि स्वाहा ।। अग्नि स्थापनम् ॥ २८ ॥
इसे पढकर कुण्ड मे अग्नि की स्थापना करे ।। २८ ॥
ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं दर्भ निक्षिप्य अग्निसन्धुक्षण करोमी स्वाहा ।। २६ ।।
यह पढकर कुण्ड मे दर्भ डालकर अग्नि जलावे ।। २६ ।।
ॐ ह्रीं क्ष्वी क्ष्वी वं मं हं सं त प द्रां द्रां हं स. स्वाहा ॥ प्रापचम नमः ।। ३० ॥
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लघुविद्यानुवाद
यह मन्त्र पढकर आचमन करे ।। ३० ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः असि प्रा उ सा अहं प्राणायाम करोमि स्वाहा ।। त्रिरुच्चार्य प्राणायाम् ।। ३१ ॥
इस मन्त्र का तीन बार उन्चारण कर प्राणायाम करे ।। ३१ ।।
ॐ नमोऽहते भगवते सत्यवचनसन्दर्भाय केवल ज्ञान दर्शनप्रज्वलनाय पूर्वीतराग्नं दर्भ परिस्तऽरणमुदुम्बर समित्रस्तरण च करोमि स्वाहा ॥ होम कुण्डस्य चर्तु भुजेषू पञ्च पञ्च दर्भ वेष्टितेन परिधि बन्धनम् ॥ ३२ ॥
__"ॐ नमोऽहते" इत्यादि पढकर कुण्ड के चारो कोनो पर पाच पाच दर्भ को एक साथ बाधकर परिबन्धन करे, दक्षिण और उत्तर के कोने पर रक्खे हुये दर्भो की नौके पूर्व दिशा की ओर करे और पूर्व पश्चिम के कोने पर रक्खे दर्भो की नोके उत्तर की ओर करे ।। ३२ ।।
ॐ ॐ ॐ ॐ र र र र अग्निकुमार देव आगच्छागच्छ इत्यादि ।
इत्यादिदेव माहूय प्रसाद्य तन्मौल्युद्भवस्याग्नेरस्य गार्हपत्येनामधेयमन्त्र संकल्प्य अर्हदिव्यमूर्तिभावनया श्रद्धानरूपदिव्य शक्ति समन्वित सम्यग्दर्शन भावनया समभ्यर्चनम ।। ३३ ।।
"ॐ ॐ ॐ ॐ" इत्यादि मन्त्र पढकर अग्नि देव (अग्निकुमार) का आह्वान करे उसे प्रसन्न करे, अर्थात् अग्नि जलावे, 'ग्राहपत्य' इस नाम की कल्पना करे और अर्हन्त भगवान की दिव्य मूर्ति को तथा श्रद्धान रूप दिव्य शक्ति युक्त सम्यग्दर्शन की भावना कर पूजा करे ॥ ३३॥
___ॐ ह्रीं नौं प्रशस्त वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन वधूचिन्ह सपरिवाराः पञ्चदश तिथिदेवताः आगच्छत श्रागच्छत इत्यादि कुण्डस्य प्रथममेखलायाम तिथि देवताचंनम ।। ३४ ॥
"ह्री कौ" इत्यादि मन्त्र को बोलकर कुण्ड को प्रथम मेखला पर पन्द्रह तिथि देवताओ की पूजा करे ॥ ३४ ॥
___ "ॐ ह्रीं क्रौ" प्रशस्तवर्णसर्व लक्षरणसम्पूर्णस्वायुध वाहन वधु चिन्हस परिवारा नवग्रह देवता आगच्छत प्रागच्छतत्यादि । उर्ध्वमेखलायां द्वात्रिशदि दिन्द्रार्चनम ॥ ३५॥
यह मन्त्र पढकर तीतरी मेखला पर बत्तीस इन्द्रो की पूजा करे ॥ ३५॥
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लघु विद्यानुवाद
६२५
ॐ ह्रीं क्रौ स्वर्ण सुवर्णवर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहनवधू चिन्ह सपरिवार इन्द्रदेव श्रागच्छा प्रगच्छेत्यादि इन्द्रार्चनम ||३६||
एव लघ पीठेषु दशदिक्पाल पूजा करे ।। ३६ ।।
ततः ॐ ह्रीं स्थालिपाक सुपहमि स्वाहा । पुष्पाक्षतैरुपहार्य स्थाली पाक ग्रहरणम ||३७||
इसके बाद "ॐ ह्री स्थालिपाक मुपयामि स्वाहा' यह पढकर पुष्प अक्षतो से भरकर स्थालि पाक को अपने पास रखे ||३७||
ॐ ह्रीं होम द्रब्य मादधामि स्वाहा । || होम द्रव्याधानम् ।।३६।।
इसे पढकर होम द्रव्य अपने पास रखे ।
ॐ ह्रीं श्राज्यपात्रस्थापनम् ||४०||
यह पढकर होम करने के घी को अपने पास रखे स्थापन करे ||४० ॥
ॐ ह्रीं स्वमुपस्करोमि स्वाहा ।। स्रुववस्तापनं मार्गानं जलंसेचन पुनस्तापनमग्रे निधापनं च ॥४१॥
यह मन्त्र पढकर स्त्रुक (सूची) अर्थात् घी होमणे के पात्र का सस्कार इस प्रकार करे कि प्रथम उसे अग्नि पर तपावे, सेके इसके बाद उसे पौछे, इसके बाद उस पर जल सीचे, पुन अग्नि पर तपावे और अपने सामने रखे ||४१||
ॐ ह्रीं स्रुमुपस्करोमि स्वाहा || स्रूपस्थापनं तथा ॥ ४२ ॥
यह मन्त्र बोलकर स्त्रुव अर्थात् होम सामग्री को होमने के पात्र की सूची की तरह सस्कार करे, स्थापना करे ॥४२॥
ॐ ह्रीं प्राज्यामुद्वासयामि स्वाहा ॥ दर्भपिण्डोज्वलेन श्राज्यस्यो द्वासन मुत्पाचनमवेक्षरगंम च ॥४३॥
यह मन्त्र पढकर घी को तपावे वह इस तरह कि दर्भ के पूले को जलाकर घी को उठावे उत्पाचन (तपावे) और प्रवेक्षण (देखे) करे ||४३||
ॐ श्रीं पवित्रतर जलेन द्रव्यशुद्धि करोमि स्वाहा होम द्रव्यं प्रोक्षरणम ॥ ४४ ॥ यह मन्त्र पढकर द्रव्य शुद्धि करे ||४४ ||
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लघुविद्यानुवाद
ॐ ह्री कुशमाददामि स्वाहा । दर्भपूलमादाय सर्वद्रव्य स्पर्शनम ॥४५॥ यह मन्त्र पढकर दर्भ के पूले को उठाकर सब द्रव्य से छुवावे ॥४५।। ॐ ह्रीं परम पवित्राय स्वाहा ।। अनामिकांगुल्यां पवित्रधाररणं ॥४६।। यह मन्त्र पढकर अनामिका उगली में पवित्र पहिने ॥४६।। ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राय स्वाहा ॥ यज्ञोपवीतधारणम् ॥४७॥ यह मन्त्र पढकर यज्ञोपवीत पहने ।।४७॥ ॐ ह्रीं अग्निकुमाराय परिषेचनं करोमि स्वाहा । अग्निपर्युक्षरणम् ॥४८।। यह मन्त्र पढकर कुड के चारो ओर पानी की धार छोडे ।।४८॥
ततः ॐ ह्री अर्ह अहसिकेवलिभ्यः स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं पञ्चदशतिथिदेवेभ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्रीं नवग्रहदेवेभ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्री द्वात्रिंशदिन्द्र भ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्रो दशलोकपालेभ्यः स्वाहा ।। ॐ ह्री अग्नीन्द्राय स्वाहा षड़े तान् मन्त्रानष्टादशकृत्वः पुनरावर्तनेनोच्चारयन् स्त्रुवेगप्रत्येक माज्याहुति कुर्यादित्याज्याहुतयः ॥४६॥
इसके बाद “ॐ ह्रो अर्ह" इत्यादि छह मत्र को अठारह बार दोहरा कर बोले, प्रत्येक मन्त्र को वोल कर सूची घृताहुति करे। इस तरह एक सौ आठ आहुति हा जाती है, इसे घृताहुति कहते है ॥४६॥
ॐ ह्रां अर्हत्परमेष्ठिनस्तर्पयामि स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं सिद्धपरमेष्ठिनतपयामि स्वाहा ॥ ह्रौ उपाध्यायपरमेष्ठिनस्तर्पयामि स्वाहा ॥ ॐ ह्र सर्वसाधुपरमेष्ठिनतपयामि स्वाहा ।। अवांतरे पंचतर्पणानि "ॐ ह्रा" इत्यादि पढ़ कर मध्य में पांच तर्पण करे ।।५०॥
____ यह तर्पण हर एक द्रव्य का हो और होम हो चुकने के वाद किया जाता है। इसलिये इसे अवान्तर तर्पण कहते हैं।
ॐ ह्रीं अग्नि परिषयामि स्वाहा ।। क्षीरेणाग्निपर्यु रणक्षम ॥५१॥ यह मन्त्र पढकर अग्नि को दूध की धार देवे ॥४४॥
अथ समिधाहुतयः ॐ ह्रा ही ह ह्रो ह्र असि आउसा स्वाहा ।। अनेन मन्त्रेण समिघाहुतयः करेण होतव्या इति समिधा होम १०८ ॥ तत षडाज्या हुतय पञ्च तर्पणानि पर्युक्षणच ॥५१॥
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लघु विद्यानुवाद
__ अब समिधाहुति कहते है। "ॐ ह्रा' इत्यादि मन्त्र के द्वारा हाथ से समिधा की एक सौ पाठ आहुतिया देवे । मन्त्रोच्चारण भी एक सौ आठ वार करे, इसके बाद पूर्वोक्त छह घृताहुति देवे। पॉच तर्पण करे ओर अग्नि पर्युक्षण करे। अग्नि के चारो और दूध की धार देने को पर्युक्षण कहते है ।।५२॥
अथ लवगाद्यातुयः ।। ॐ ह्रा अर्हदभ्य स्वाहा । ॐ ह्री सिद्ध भ्य स्वाहा। ॐ ह्र. सूरम्य स्वाहा । ॐ ह्रौ पाठकेभ्य स्वाहा ॐ ह्र सर्व साधुभ्य स्वाहा ।। ॐ ह्री जिन धर्मेभ्यः स्वाहा । ॐ ह्री जिनागमेभ्य स्वाहा । ॐ ह्री जिनालयेभ्य स्वाहा । ॐ ह्री सम्यग्दर्शनाय स्वाहा ॐ ह्री सम्यकज्ञानाय स्वाहा । ॐ ह्री सम्यक चारित्राय स्वाहा । ॐ ह्री जया द्यष्टदेवताभ्यः स्वाहा । ॐ ह्री षोडश विद्यादेवताभ्य स्वाहा । ॐ ह्री चतुर्विशतियक्षीभ्य. स्वाहा। ॐ ह्री चतुदर्शभवन वासिभ्यः स्वाहा । ॐ ह्री अष्टविधव्यन्तरेभ्य स्वाहा । ॐ ह्री चतुर्विध ज्योतिरेन्द्र भ्य स्वाहा । ॐ ह्री द्वादशविधकल्पवासिभ्य स्वाहा । ॐ ह्री अष्टविधकल्पवासिभ्य स्वाहा । ॐ ह्री नवग्रहेभ्य स्वाहा। ॐ ह्री अष्टविध कल्पवासिभ्य स्वाहा । ॐ ह्री अग्निद्राय स्वाहा । ॐ स्वाहा भू स्वाहा । भुव स्वाहा स्व. स्वाहा । एतान् सप्तविशन्ति मन्त्राश्चतुवारानुच्चार्य प्रत्येक लदग गन्धाक्षतगुग्गुलुतिलशालिकुड कुमकर्पूरलाजा गुरु शर्करामि राहुति सरुचा जुहुयात् इति लवङ्गाद्याहुतयः ।
"ॐ ह्री अर्हदभ्य" इत्यादि सताइस मन्त्रो का चार-चार बार उच्चारण कर हर एक मन्त्र को लोग गन्ध अक्षत-गुग्गुल-कु कुम-कर्पूर लाजा (भुने चावल) अगुरु और शक्कर इनकी सूची से आहूतियाँ देवे । इस प्रकार १०८ आहूति देवे ।।५३।।
॥ पूर्ववत् षडाज्याहुति पञ्चतर्पणकपर्युक्षणानि ।।५४॥
इसके बाद पहिले की तरह छह घृताहुति पचतर्पण और एक पर्युक्षण करे, इनके करते समय पूर्वोक्त मन्त्रो को बोलता जावे ।।५४।।
॥अथ पीठिका मन्त्रः ।। ॐ सत्यजाताय नम । ॐ अर्हज्जाताय नम । ॐ परमजाताय नम । ॐ अनपमजाताय नम । ॐ स्वप्रधानाय नमः। ॐ अचलाया नमः। ॐ अक्षयाय नम । ॐ अव्यावाधाया नमः। ॐ अनन्तज्ञानाय नम । ॐ अनन्तदर्शनाय नम । ॐ अनन्तवीर्याय नमः । ॐ अनन्तसुखाय नम । नोरज से नम । ॐ निर्मलाय नम । ॐ अच्छेद्याय नम । ॐ अभेद्याय नम. । ॐ अजराय नम । ॐ प्राराय नमः । ॐ अप्रमेयाय नम । ॐ गर्भवासाय नम । ॐ अविलोनाय
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लघुविद्यानुवाद
नमः। ॐ परमनाथाय नमः। ॐ लोकाग्रनिवासने नमः । ॐ परमसिद्ध भ्य नमः । ॐ अर्हत्सिधेभ्यो नमः । ॐ केवलि सिद्ध भ्य नम. । ॐ अनन्तकृत्सिदेभ्य नमः । ॐ परपरासिद्ध भ्य नम ।
ॐ अनादिपरमसिद्धेभ्यः नमः। ॐ अनाद्यनुपमसिद्ध भ्य नमः। ॐ सम्यकदृष्टे आसन्न भव्य निर्वाणपूजाह अग्निन्द्राय स्वाहा। सेवाफलषट परम स्यान भवतु अपमृत्युनाशन भवतु ।। पीठिकामन्त्रा ।। पीठिकामन्त्ररेते षटत्रिशद्भेदभिन्न प्रतिमन्त्र त्रिवारमुच्चारितः शाल्यन्नक्षीरघृत-भक्ष्यपायस शर्करारम्भाफलैमिलितैरन्नाहूति। स्रुचा जुहुयात पुनराज्याहुतितर्पणपर्युक्षणानि ॥५॥
"ॐ सत्यजाताय नम" इत्यादि छत्तोस पीठिका मन्त्रो का हर एक का तीन तीन वार उच्चारण करे । प्रत्येक के अन्त मे, शाली, अन्न, दूध, घी, दूसरे खाने के पदार्थ, खोवा, शक्कर और केले इन सबको मिलाकर सूची के द्वारा अन्नाहूति देवे, यह भी १०८ बार हो जाती है इसके बाद जितने मन्त्र जप किया हो उसका दशास होम लवगादि द्रव्य से करे, फिर छह घृताहूति, पाच तर्पण, एक पर्युक्षण करे।
॥ अथ पूर्ण पाहूति ॥ ___ॐ तिथि देवाः पञ्चादशघा प्रसीदन्तु, नवग्रह देवा प्रत्यवापहरा भवन्तु । भावनादयो द्वात्रिश देवा इन्द्रा प्रमोदन्तु । इन्द्रादयो विश्वे दिक्पाला पालयन्तु । अग्निन्द्रामोल्य द्भवाऽप्यानि देवता प्रसन्ना भवतु । शेषा' सर्वेऽपि देवा एते राजानं विराजयन्तु सघ दातर तर्ययन्तु सघ श्लाघयन्तु वृष्टि वर्षयन्तु । विध्न विधातयन्तु मारी निवारयन्तु । ॐ ह्री नमोऽईते भगवते पूर्ण ज्वलित ज्ञानाय सम्पूर्ण फलार्ध्या पूर्णाहुति विदध्महे ।। इति पूर्णाहूतिः ॥५६।।
"अति तिथि देवा' इत्यादि मत्रो के द्वारा पूर्णाहूति देवे। पूर्णाहूति मे फल और पूजा का द्रव्य होना चाहिये । पूर्णाहूति के मन्त्र पूर्ण हो, वहा तक बराबर एक सरीखी धी की धार छोड़ता रहे ॥५६॥
तता मुकलित कर :-ॐ दर्पणो घोत ज्ञान प्रज्वलित सर्व लोक प्रकाशक भगवन्नहन् श्रद्धा मेघा प्रज्ञा बुद्धि श्रिय बल आयुष्य तेज आरोग्य सर्व शान्ति । विधेहि स्वाहा । एत पठित्वा सम्प्राय शान्ति धारा निपात्य पुष्पाजलि प्रक्षिप्य चैत्यलादि भिक्त त्रयं चतुविशति स्तवन वा पठित्वा पञ्चाग प्रणम्य तदिव्य भष्म समादाय ललाटा दौ स्वय धृत्वा अन्यानपि दधात् ।।५७।।
इसके वाद हाथ जोडकर "ॐ दर्पणो घोत" इत्यादि मन्त्र पढे, प्रार्थना करे, शान्ति धारा दे, पुष्पाजलि क्षेपण करे, चैत्यालय वगैरह की तीन भक्ति अथवा चौबीस तीर्थंकरो की स्तुति
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लघुविद्यानुवाद
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पढे और पचाग नमस्कार कर होम की दिव्य भस्म को लेकर ललाट वगैरह स्थानो पर लगावे, और औरो को भी देवे ॥५७।।
- शाति धारा शातिपूर्वक भक्ति से पढे । फिर पहले स्थापित कलश लघु पूण्याह वाचन कर, स्थापित जिनेन्द्र प्रभु की मूर्ति को स्वस्थान पर विराजमान करके मगल कलश को बाजे-गाजे के साथ अपने घर मे ले जावे।
। इति होम विधान ।
अथ पुन्याह वाचन ॐ स्वस्ति श्री यजमानाचार्य प्रभृति समस्त भव्यजनाना सद्धर्म श्री बलायुरारोग्यैश्वर्याभि वृद्धिरस्तु।
अद्य भगवतो महापुरूषस्य श्री मदादि ब्रह्मणो मते त्रैलोक्य मध्य मध्यासीने मध्य लोके श्री मदनावृत यक्ष स सेव्य माने, दिव्य जम्बू वृक्षोपलक्षित, जंबू द्वीपे, महनीय महामेरोदक्षिण भागे, अनादिकाल स सिद्ध भरत नाम धेय प्रविराजित षट् खण्ड मण्डित भरत क्षेत्रे, सकल शलाका पुरुष स भूति सम्बन्ध विराजितार्य खण्डे, परम धर्म समाचरण अस्मिन् देशे, अस्मिन् विनेय जनताभिरामे, ....-- ग्रामे, श्री दिगम्बर जैन मूल सघे सरस्वती गच्छे, बलात्कार गणे श्री मद् कुन्दकुन्दाम्नाये महा शाति कर्मणोचित्ते, अत्र ....... .-दिव्य महा चैत्यालये, प्रदेशे एतदव सर्पिणी कालावसाने प्रवृत्त ।सुवृत्त चतुर्दश मनूपमान्वित सकल लोक व्यवहारे, श्री वृषभ सेन सिह सेन, स्वामी पौरस्त्य मगल महापुरुष परिपत्प्रतिपादित परमोपशम पर्व क्रमे, वृषभ सेन, चारू सेनादि गणधर स्वामी निरूपित विशिष्ट धर्मोपदेशे, दुखम सुखमानतर प्रवर्तमान कलियुगा पर नाम धय दुखमाभिवान पचम काल प्रथम पाडे, महति महावीर वर्द्ध मान तीर्थकरोपदिष्ट सधर्म व्यति करे श्री गौमत स्वामी प्रतिपादित सन्मार्ग प्रवृत्त माने, श्रेणिक महा मडलेश्वर समा चरित सन्मार्गा विशेष, विक्रमाक नृपाल पालित प्रवृत मानानुकूल शक नृप काले ... ... .. वर्षसमिते, प्रवृतमान · - ...... सवत्सरे, अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथौ अमुक वासरे, प्रशस्त तारका योग करणद्र काण होरा मुहूर्त लग्न युक्ताया, अष्ट महा प्रातिहाय शोभित श्री मद अहत्परमेश्वर सन्निधौ श्री शारदा सन्निधौ, राजर्षि परर्षि ब्रह्मापि सन्निधौ, विद्वत्सामाज सन्निधौ, अनाधि श्रोतृ सन्निधौ, देव ब्राह्मण, सन्निधौ, सुब्राह्मण सन्निधौ, याग मडल भूमि शुद्धयर्थ, द्रव्य शुद्धयर्थं, पात्र शुद्धयर्थं, क्रिया शुद्धयर्थ, मत्र शुद्धयर्थ, महा शाति कर्म सिद्ध साधन यत्र मत्र तत्र विद्या प्रभाव स सिद्धि निमित्त विधियै म.नस्य अमुक क्रिया
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लघुविद्यानुवाद
महोत्सव समये, पुण्याह वाचन करिष्ये । सर्वः सभाजनैरनु ज्ञायता विद्वद्विशिष्ट जनेरनु ज्ञायता, महाजनैरनु ज्ञायता तद्यथा ।
प्रस्थमात्र तदुलोपरि ही कार सवेष्टित स्वस्तिक यन्त्रे मन्त्र परिपूजित मणिमय मगल कलश सस्थाप्य, यजमानाचार्यो ऽपसव्य हस्तेन् घृत्वा पुण्याहमन्त्रमुच्चारन् सिचेत् । ॐ स्वस्तिक कलश स्थापन करोमि ।
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पास मे छपे हुये यन्त्रानुसार करीब एक सेर चावल लेकर जमोन मे यत्र बनावे, फिर उसके ऊपर जल से भरा हुआ कलश रखकर उसमे नगर बेल का पत्ता रखे और पुण्यहवाचन पढते जावे और कलश का पानी उस पत्ते से दाहिने हाथ मे छिडकते जावे।
ॐ हां ह्रीं ह्रौ हः नमोऽहते भगवते श्रीमते समस्त गंगा सिध्वादि नदी नद तीर्थ जलं भवतु स्वाहा । जलपवित्री करणं ।
ॐ ह्रीं पुण्याह कलशार्चनं करोमि स्वाहा । साथिया के ऊपर के कलश मे अर्घ चढावे ।
ॐ पुण्याह २ प्रियता २ भगवतोऽहत. सर्वज्ञाः सर्वदशिन त्रिलोकनाथा त्रिलोक प्रद्योतनकरा वृषभ अजित-सभव अभिनदन सुमति पद्मप्रभ सुपार्श्व चन्द्रप्रभ पुष्पदत, शीतल श्रेयो वासुपूज्य विमल अनत धर्म शाति कुन्थु अर मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्व श्री वर्द्ध माना शाताः शातिकरा सकलकर्मरिपु विजय कातार दुर्गविषयेषु रक्षतु नो जिनेद्रा सर्वविदश्च ।। श्री ह्री पति कीति बुद्धि ल मी मेधाविन्यः सेवा कृषि वाणिज्य वाद्य लेख्य मन्त्र साधन चूरिणप्रयोग स्थान गमन सिद्धि साधन या प्रतिहत शक्तयो भवतु नो विद्यादेवता । नित्यमर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधु वश्च भगवतो न प्रियता २ आदित्य सोमागार बुद्ध वृहस्पति शुक्र शनैश्नर राहु केतु ग्रहाश्च न प्रियता २ । तिथि करण मुहूर्त लग्न देवता इहचान्य ग्राम नगरादिषु अपि वास्तु देवताश्चताः सर्वेगुरु भक्ता अक्षिण कोष कोष्टागारा भवेयुनि तपोवीर्यं नित्यमेवास्तु न प्रियता २ मातृपितृ भातृ सुत सुहृत्स्व जन सबधी बधुवर्ग सहिताना धनधान्यैश्वर्य द्युति बलयशो वृद्धिरस्तु । प्रमोदोस्तु शाति भवतु पुष्टि भवतु सिद्धि र्भवतु काम मागल्योत्सवा सन्तु शाम्यतु घोराणि शाम्यतु पापानि पुण्य वर्द्ध ताम् धर्मोवर्द्ध ताम् अायुषीवद्धताम् कुलगोत्र चाभिवर्द्ध ताम् स्वस्ति भद्र चास्तु न हता स्तेपरिपथिन शत्रवः शमयतु । निष्प्रति घमस्तु । शिव मतुलमस्तु । सिद्धा सिद्धि
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लघुविद्यानुवाद
६३१
प्रयच्छतु न । ॐ कर्मण पुण्याह भवतो व वतु इति प्रार्थयेन् । प्राथि नवित्रा: पुण्याह कर्मणोऽस्तु "इतिव यु । ॐ कर्मणेस्वस्ति भवतो व वतु । स्वस्ति कर्मणेऽस्तु कर्मऋद्धि भवतो बुवतु "कर्मऋद्धिस्तु ।
विशेष -अगर होम नहीं करना है तो जितना जप किया, उतने जप का दशास, जप चौगुना
जप, ज्यादा कर लेना चाहिये । जसे-एक हजार जप का दशास १०० जप हुग्रा, उस १०० जप का चौगुना जपने से, याने ४०० बार जप कर लेने पर होम की पूर्ति हो जाती है। फिर अग्नि होम करने की आवश्यकता नही पडती है।
मन्त्र जप के बाद दशांस होम करने के लायक
होम कुण्डों का नक्शा
होम कुण्ड नीचे दिये गये नक्शे के मुताविक बनावे, और होम कुण्ड के लिये ईटे कच्ची होनी चाहिये । वध, विद्वे पण, उच्चाटन कम मे आठ अगुल लम्बी समिधा ले (लकडी)। पुष्टि कर्म मे नो अगुल, शान्ति, आकर्षण, वशीकरण मे, स्तम्भन, कर्म मे वारह अगुल की लकडियाँ हो । लकडिया दूध वाले वृक्ष की हो।
तीर्थधर कुण्ड (१)
ភ្នំ
गाई पन्परिन
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६३२
लघुविद्यानुवाद
गणधर कुण्ड (२)
ह्वनीय
केवली कुण्ड (३)
दक्षिणाग्नि
जो व्यक्ति धर्म मे, नीति मे, त्याग मे, तप मे, मन में, मानव मर्यादाओ मे सदा स्थिर रहता है, मजबूत रहता है, सकटकाल मे भी विचलित नही होता है, अनीति मे कदम नही रखता है, उस व्यक्ति के चरणो मे देवता भी नमन करते है ।
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लघुविद्यानुवाद
पंचम खंड
(पृष्ठ ६३३ से ६८८)
इस खण्ड में
पंचम तंत्राधिकार
६३३
६४१
६४३
६४५
६४५
६४८
- विभिन्न जडी बूटियो के प्रयोगो से कप्टो का
निवारण की विधिया * वदा कल्प (नदिपणाचार्य कृत) TAS अथ कल कोश प्रवक्ष्यामि (धन्वतरी कृत) 9 अथल जाल कल्प as अथ श्वेद गूजा कल्प 0सर पूग्वा करप एव पमाड़ कल्प
अथ रक्त गूजा कल्प (A) एकाक्षी नारियल कल्प
दक्षिगा वर्त जन कल्प, र गोरोचन कला
तन्नाधिकार रद्राक्ष वल्प RA बोटा फल्प, निगुती पप
या जोड़ी गलजिया मला या पक्षिणी या 7 रन पभोग गरि
.७
.५
2
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६७५ ६७७
६७७
६७८
६७८
ॐ ह्री कार कल्प
रक्त ह्री कार के ध्यान का फल ॐ पीत वर्णी ह्री कार के ध्यान का फल 9 श्याम वर्ण ह्री के ध्यान का फल 9 कुडली स्वरुप ह्री के ध्यान का स्वरूप
कि मन्त्र यन्त्रै विविधा गमोक्ते दु.साध्यस
नीति फलाल्पलाभे ॐ सोना चादी बनाने के तत्र
पारा स्तभन का तत्र @ पूज्यपाद स्वामी कृत n चादी बनाने का तत्र, सोना बनाने का तत्र
हीरा बनाने की विधि
६७८
६८१
६८६ ६८७
६५८
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पंचम तंत्राधिकार
अश्विनी नक्षत्र मे अर्द्ध रात्रि को नग्न होकर अपामार्ग की जड़ को लावे, फिर कण्ठ मे धारण करे तो राज सभा वश होय । १ ।
भरणी नक्षत्र मे सखा होली की जड लावे, ताबीज मे रवखे (पर) स्त्री वश मे होय । २। कृत्तिका नक्षत्र मे रोहिस की जड लावे, पास रक्खे तो अग्नि नही लगे । ३ ।
रोहिणी नक्षत्र मे अद्ध रात्रि मे नग्न होय, नेगद बावची की जड लावे और पास रक्खे तो वीर्य चाले नही । ४ ।
मृगशिर नक्षत्र मे महुवा की जड लावे तो रात्रि मे चोरी नही होय । ५ ।
आद्रा नक्षत्र मे अर्क की जड लाय, ताबीज मे डालकर पास रक्खे तो, बात सच होय । ६।
पुनर्वसु नक्षत्र मे मेहदी की जड़ को लेकर पास रक्खे तो अपने शरीर मे अच्छी सुगन्ध आती है । ७ ।
पुष्प नक्षत्र मे नागरबेल की जड लेकर पास रक्खे तो, दुष्ट वाक्य से कभी भय नही होता है । ८।
आश्लेषा नक्षत्र मे धतूरा की जड लेकर देहली मे रक्खे तो सर्प घर मे आने का भय नही रहता है।
मघा नक्षत्र मे पीपल की जड लेकर पास रक्खे तो रात्रि मे दुस्वप्न नही आते है । १०।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र मे आम की जड लाकर दूध मे घिसकर पिलाने से बाझ स्त्री को पुत्र प्राप्ति होती है । ११ ।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र मे नीम की जड़ को लाकर पास रक्खे तो लडकी से लडका होता है । १२ ।
हस्त नक्षत्र में चम्पा की जड लाकर गले मे बाधने से भूत-प्रेत नही लगता है ।१३।
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६३४
लघुविद्यानुवाद
चित्रा नक्षत्र मे गुलाव की जड लेकर पास रक्खे तो शरीर मे नष्ट नही होता है। १४ ।
स्वाति नक्षत्र मे मोगरा की जड लेकर भैस के दूध मे घिस कर पीने से काले से गोरा होता है । १५ ।
विशाखा नक्षत्र मे बबूल की जड को लाकर पास मे रक्खे तो नित्य ही चोरी करने पर प्रकाशित नही होता है । १६ ।
अनुराधा नक्षत्र मे चमेली की जड को लाकर सिर पर रक्खे तो शत्रु मित्र हो जावे। १७ ।
___ जेष्ठा नक्षत्र मे जामुन की जड को लाकर पास रक्खे तो राजा के द्वारा सन्मान को प्राप्त हो । १८ ।
मूल नक्षत्र मे गूलर की जड लेकर पास रक्खे तो दूसरे का द्रव्य मिले । १६ ।
पूर्वाषाढा नक्षत्र में शहतूत की जड लेकर स्त्री को पिलावे तो योनि संकोच होती है । २० ।
उत्तराषाढा नक्षत्र मे कलगरामा की जड लेकर हाथ मे बाधे तो पहलवान से युद्ध मे जीते । २१ ।
श्रवण नक्षत्र मे प्रावली की जड, नागरबेल के रस मे पीवे तो स्त्री नव यौवनवान हो । २२ ।
धनिष्ठा नक्षत्र में बबूल की पत्ती अजन प्राख मे करे तो सोना, चादी की परीक्षा मे सफल होय, याने परख ज्यादा करे । २३ ।
शतभिषा नक्षत्र मे केले की जड लेकर शहद के साथ पीवे तो चाप न होय । २४ ।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र मे तुलसी की जड लेकर मस्तक पर रक्खे तो मुरदा कभी नही जलता है । २५ ।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र मे पीपल की जड लेकर पास रक्खे तो चतुर मनुष्य युद्ध मे जीत कर आता है । २६ ।
रेवती नक्षत्र मे वड की जड लेकर माथे पर रक्खे तो दृष्टि चौगुनी होय । याने अगस दृष्टि ह ती है । २७ ।
हिंगुल १८ तोला, अभ्रक ३२ तोला एकत्र कर रूद्रवती के रस मे घाटकर चादी के पत्रे पर लेप कर पुट दीजे तो सुवर्ण होता है । २८ ।
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लघुविद्यानुवाद
६३५
स्वर्ण माक्षिक ८ माशा, पारा ४ माशा, ताबा ४ माशा, सुहागा ४ माशा, इन सब चीजो को एक साथ गलाने से शुद्ध चादी होती है । २६ ।
शुद्ध गन्धक को प्याज के रस मे १०८ बार तपाकर बुझावे, फिर उस गन्धक को चादी के पत्रे पर गलावे तो सोना होता है । ३० ।
मेनशिल, सिधब, गोरोचन, भृगराज के रस में इन चीजो को घिस कर वाम हाथ पर, जिसको वश करना चाहे, उसका नाम लिखे, फिर अग्नि मे तपावे तो वगी होता है । ३१ ।
हस्त नक्षत्र रविवार के दिन अधाहुली को लेकर राजा के माथे पर डाले तो राजा वश होता है और दुष्ट व्यक्ति भी स्नेह करने लगता है। ३२ ।
अधोमुखा च जला च श्वेता च गिरि कणिका गोरोचन समीयुक्त , तिलक विश्व
चिता भस्म विष युक्त, धतुर चूर्ण मिश्रित, यस्यागे विक्षिप्ते सद्योयाती ।।३४।।
बेल के पत्ते का चूर्ण और विजोरा को बकरी के दूध मे घिसकर इष्ट मत्र से मत्रित कर तिलक करने से सामने वाला तुरन्त वश मे हो जाता है । ३५ ।
ब्रह्मदण्डी, वच व उपलेट का चूर्ण पूर्वोक्त मत्र से मत्रित कर पान मे रखकर रविवार को जिसको खिलावे वह वश मे हो जाता है । ३६ ।
__ श्वेत दूर्वा को कफीला गाय के दूध मे घिस कर अपने शरीर मे लेप करने से देखने वाले सब लोग वशी हो जाते है । ३७ ।
शनिवार धनिष्ठा नक्षत्र मे बवूल की जड को लाकर चूर्ण कर मत्रित कर जिसके ऊपर डाला जायगा, वह वशी हो जाता है । ३८ ।
सिन्दुर, कु कुम, गोरोचन को पावले के रस मे पीसकर तिलक करे तो सव मोहित होते है। ३६ ।'
श्वेत दूर्वा व हरताल को पीसकर तिलक करे तो सब मोहित होते है । ४० ।
रविवार को सहदेवी के रस में तुलसी का बीज पीसकर तिलक करे तो सब वश मे हो। ४१
मेष राशि के सूर्य मे एक मसूर का दाना, दो नीम की पत्तियो के साथ खाने से एक साल तर सर्प का भय नही रहता है । ४२ ।
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लघुविद्यानुवाद
सत्यानाशी की जड पान मे खिलावे तो बिच्छु का जहर उतर जाता है । ४३ ।
हरिताल और असगघ को केला के रस मे गौरोचन सहित घिस कर तिलक लगाने से मोहित होता है । ४४।
शृगी, चन्दन, वच, कूट, ये चारो चीज की धूप बनावे फिर अग्नि मे उस धूप को डाल कर अपने शरीर मे धुश्रा लगावे और अपने मुख मे भी धुपा लगाने से और वस्त्र मे धुप्रा लगाने से राजा, प्रजा, पशु, पक्षी जो देखे सर्व मोहित हो । ४५ ।
पान की जड का तिलक करने से मोह नही होता है । ४६ । मैनसिल, कपूर को केला के रस मे घिस कर स्नान करे तो मोह नही होय । ४७ ।
सेदूर, वच असगन्ध, पान के रस मे घिस कर स्नान करे और तिलक लगाने से मोह न होय । ४८ ।
भगर या चिचिडा, छुईमुई, सहदेई, इन चारो चीजो का तिलक लगाने से मोह न होता है । ४६ ।
डमरू के फूल की वाती नैनु के साथ रात्रि को जलाय काजल उपाड कर अजन करे तो मोह न होता है । ५० ।
सफेद घु घची का रस ब्रह्मदण्डी के साथ घिस कर शरीर मे - लेप करने से मोह नहीं होता है । ५१ ।
सफेद दूब के रस मे हरिताल को घिस कर तिलक लगाने से मोह नही होता है । ५२ ।
सफेद अकुपा की जड और सफेद चन्दन को घिस कर तिलक लगाने से मोहन होता है । ५३ । ..
__ बेलपत्र छाया में सुखा कर, कपिला गाय के दूध मे घिस कर तिलक लगाने से मोह नही होता है । ५४ ।
. भाग के पत्ते, सफेद सरसो, इन दोनो को कूटकर शरीर में लेप करने से मोह नही होता है । ५५ ।
. तुलसी के पत्ते को छाया में सुखाकर चूर्ण करे, असगन्ध और भाग के बीज समभाग मिलाकर कपिला गाय के दूध मे घिस कर गोली बनावे, उस गोली का तिलक लगाने से मोह
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लघुविद्यानुवाद
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नहीं होता है और उस गोली की शस्त्र मे लेपन करने से शत्रु की सेना उस शस्त्र को देखकर ही भाग जाती है । ५६ ।
विष्णु काता का बीज मे से तेल निकाले यन्त्र से, फिर उस तेल मे विष भी मिलावे तेल, और अफीम, गधे का पेशाब, धतुरे के बीज का चूर्ण, हरताल, मैनशिल, गन्धक, इन सब को लेकर घोटकर पाच छटाक का गोला बनाकर रख लेवे । जब युद्ध का काम पडे तब अपने शस्त्र पर उस गोले का लेप कर युद्ध मे जावे तो शत्रु की सैन्य उस शस्त्र को देखते ही भयभीत होकर भाग जावे, और अपने पर दूसरो का शस्त्र चल नही सकता है । ५७ ।।
श्मशान की राख को एक मिट्टी के बर्तन मे भर कर शत्रु का नाम लेकर नील के रग मे रगे हुए डोरे से उस बर्तन को बाध कर गाड देवे तो शत्रु की सैन्य का स्तम्भन हो जाता है । ५८ ।
भिडी की जड को धरण (नाभि) पर थोडे समय तक रखे तो धरण ठिकाने आवे । श्वेत अपराजिता की जड को हाथ मे बाधने से हाथी का भय नही होता है। दो ईट श्मशान की आग सहित लेकर जगल मे गाड देवे तो मेघ का स्तम्भन होता है । मूल गृन्हाति मधुक, पिष्टानिशि समाचरेत् । निद्रास्तभन मेतद्धि, मूल देवेन भापित । भरवा क्षीर काष्टाना कील पचागुलिक्षिपत्नौकास्तभन मेतन्मूलदेव न भाषित ।
रविवार के दिन सती होने वाली स्त्री की चिता मे ईट घर आवे फिर तीसरे रविवार जाकर उस ईट को ले जिसके घर मे डाल दे अथवा खोद दें तो उसके घर मे पत्थर बरसने लगते है।
उल्लू के आख का पानी और कालि जो, मशान की भस्म, गाय की लगी, इन सब चीजो को मिलाकर गोली बनावे उस गोली को सोने या चादी के तावीज मे भर कर पास रखे तो अदृश्य होता है । स्वय सबको देखता है और स्वय को कोई नही देख पाता।
एक वर्ण का काला कुत्तों को पकड कर उपवास करावे, स्वय भी उपवास करे, दूसरे दिन दूध और क ला तिल, उस कुत्ते को खिलावे, जब कुत्ता टट्टी करेगा, उस टट्टी मे से काले तिल को निकाल कर तिल मे से तेल निकाल कर यन्त्र मे नही गया, कपास की बत्ती बनाकर उम बत्तो को डाल कर दीपक जलावे और काजल उपाड़कर ग्राख मे अजन करे तो मनुष्य अग्य हो जाता है।
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लघुविद्यानुवाद
धौली (सफेद) चिणोठी, (गुजा) सफेद रीगणी, (सफेद भट कटैया) की जड लेकर चूर्ण करे फिर मनुष्य की खोपडी पर काजल उपाडकर नेत्र मे अजन करने से अदृश्य होता है।
बिच्छु काटने पर उसे अपामार्ग की जड को दिखा देने मात्र से जहर उतर जायगा, अगर अधिक जहरीला है तो अपामार्ग की जड को व पत्तो को पीसकर काटे हुए स्थान पर लगा देने से बिच्छु का जहर उतर जाता है।
लोद्र विभितिक, आमलक, व रुई के फल, इन सबको चतुर्या श जल घोटे और पाख मे अजन करे तो आख मे फूला का नाश होता है । रात्रिघता का नाश होता है।
पिडी, तगर की जड, गोरोचन के साथ ताबे के बर्तन मे रगड कर आख मे आजने से (अक्षिपुष्प नाशयति) याने प्राख का फूला नष्ट हो जाता है।
लाल चन्दन, मिरच, सम भाग लेकर पानी में पीस कर लेप करने से विस्फोटक का नाश होता है।
गडुची, हरिद्रा, दूर्वा, धूर्य से, समभाग, गुटिका क्रियते से सर्व बणोपशम करोति प्रलेपन ।
रविवार के दिन सफेद कनेर की जड को लेकर कुसुम्भ डोरे से बाघ कर वाम हाथ मे बांधने से (मर्कटिका) का नाश होता है।
लगडे आम की जड को कमर मे बाघने से पुरुष का वीर्य स्थभित होता है। मकोय की जड को कान मे बाधने से रात्रि मे आने वाला ज्वर नष्ट होता है । सफेद चिरमी की जड घिस कर सू घे तो आधा शीशी रोग नष्ट होता है । पार्श्वपिप्पल फलानि एक वर्णे गो दुग्धेन प्रस्तावे स्त्रिय पानेदात व्यानि (पुत्रोत्पत्ति कृत) काक जगा की जड को एक वर्ण की गाय के दूध मे पीवे, निश्चित ही गर्भ रहे।
भृगराज रस, पली १ (एक छटाक) काच कर्पूर गठियाणउ १ (कपूर) गाठियउ १ ऋतु स्नाने दिन त्रयस्त्रीपाय्यतेत्तछिनत्रये श्वेत वर्ण गो दुग्धक्षीरेयी भोजन कार्य अन्यकेकिमपिन भोक्तव्य पुत्रोत्पत्तिर्भवति दृष्टप्रत्ययः ।
मातुलिग (बिजोरा) के बीज की दूध के साथ खीर बनाकर घी के साथ पीवे तो स्त्री को निश्चित ही गर्भ रहे विन्तु ऋतु समये तीन दिन खाना चाहिये ।
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लघुविद्यानुवाद
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गेरू, (ही-डमीस) विद्रग, पीपली, समभाग लेकर पीसे फिर सभोग के समय पान करने से स्त्री गर्भवान होती है।
___ रविवारे अष्टमी निशीथ समसे वाटिकिया जाती पत्र सरडक मेक गृहीत्वा एक वर्ण गोक्षीरेण सहपीयतेरितु समये गर्भधारयति ।
वासक, त्रिफला, शर्करा, मुलेठी को समभाग लेकर पीसकर रितु समय मे यदि स्त्री पीये तो गर्भवान हो।
श्वेत रीगणी मूल पुष्य नक्षत्र मे लेकर एक वर्ण की गाय के दूध म पीवे तो वन्ध्या भी पुत्रवान होती है।
मयुरशिखा की जड़ को तीन दिन दूध के साथ पीने से स्त्री पुत्रवान होती है। लक्षमणा भाग ३ उभयलिगी भाग ४ विरहाली भाग ६ सव एकत्र करके गाय के दूध म पीसकर ऋतु समय मे स्त्री को पिलाने से पुत्र होता है।
श्वेत पुनर्नवा मूल को दूध के साथ घिसकर पिलाने से स्त्री को गर्भ रहता है ।
मेढसिगी, वच, राल, खस, चन्दन और छोटी इलायची, इन सवको समभाग लेकर, कूट पीस कर छान ले तथा पहनने के कोई वस्त्र के ऊपर उ रोक्त चूर्ण की धूनी दे तो देखने वाला देखते ही प्रसन्न होता है, अधिकारी वश मे हो जाते है।
यस्यलिगे पापाण निरोधोवभति (जिसके मूत्राशय मे पथरी हो) तस्य (काला नमक) कृष्णलवणन सहसुरापान दीयत्त साम्यत्र जत्ति ।
अपकतिल नाल भस्म गृहीत्वा दुग्धेन माक्षिकेन सहपान दीयते स एव पाखापान लिग पीडा नाशयति ।
सखाहुली की जड और गाय का शृग (सीग) को बाधने से स्तन रोग का नाश होता है। काक जगा को जड और उपलउ (पापाण) दोनो को जल के साथ पीसकर नस्य दे अथवा पिलावे तो सर्प का जहर उतर जाता है ।
कविठ्ठ की जड, नमक और तेल, इनको पिलाने से विच्छ का जहर उतर जाता है । तिल को जड़, अनार की छाल, समभाग लेकर ठडे जल से पीसकर गटिका बनावे पीलावे विन्छु क्र. जहर का नाश करता है।
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लघुविद्यानुवाद
वध्याकर्कोटिका सर्प दृष्टस्य जलेन धर्षयित्वामध्येपान तस्य च देय भद्रो भवति ।
गु गचि की जड़ को (पाय तरे) बाधे तो व्ववहार में अपराजित होता है याने उसको कोई जीत नही सकता है।
कु दमूल पुष्पेणोत्पाद्य प्रसार के धर्तध्य प्रभूतक्रिया भवति ।
कृष्णा निर्गुडी का मूल मागसिर मधि पुष्यार्के उत्पाद्य तस्मिन्नदिने मूले श्वेत सर्प पार्श्व ग्रथौ वध्यतेहदेव्यवहारो घनो भवति दृष्ट प्रत्यय ।
काक जगाहाथ मे बाधने से सर्व प्रकार के ज्वर का नाश होता है।
पिटारी, (काकश्री) की जड़ को सध्याकाल मे लेकर कमर मे बाधने से हर्ष रोग (मस्सा) का नाश होता है लेकिन जड को चौदश के दिन दीप धूप विधान से लेवे ।
उपरोक्त औषधि की लकडी अठारह अगुल प्रमाण लेकर (दन्तपवनेन) तो सर्वप्रकार के ज्वर का नाश करता है।
विशाखा नक्षत्र मे पिडी तगर की जड को चावल के पानी के साथ पीवे तो स्त्रियो का रक्त स्त्राव बन्द हो जाता है।
इमली के बीज २, बहेडा के बीज २, हरडे का बीज २, इन बीजो की गुटिका बनाकर पानी के साथ प्राख मे अजन करे तो (तिमिरगच्छति) ज्योति ज्यादा बढ़ती है।
काक पारावत, मयुर, कपोतना, विष्टागृह्यते, तत्पश्चात् खर, (गधा) रूधिर सहिता निगडानि, लपयेत् तत्क्षणत्रुटयति ।
सरसो, देवदारू को पीसकर गोली वनावे और अपने मुंह मे उस गोली को रखकर जिससे वार्तालाप किया जावे वह वश मे हो जाता है।
__ पचमी के दिन सूर्यावर्त (हुलहुल) वृक्ष की जड लाकर पीसकर चूर्ण बना ले, उस चूर्ण को पान के साथ मे जिसको खिलावे वह आकर्षित होकर पास मे आता है।
मुखे निलोत्पलनाल, केशरश्वेत पद्मिनिपुष्प मधु शर्कराधृतेन नाभिलेपोदीयतेवीर्य-स्तम्भ छीत प्रोइ गृहीत्वा छो हरि दुग्धेन भावयित्वा पादौलेपयेत् वीर्य स्तम्भ ।
श्वेतसर पखा की जड को नाभि पर लेप करने से वीर्य का स्तम्भ होता है । मयणु मयण हलु मणसिल एकीकृत्य लिग लेपयेत वीर्य स्तम्भो भवति ।
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लघुविद्यानुवाद
श्वेतसरपखा की जड को कमर मे बाधने से और दक्षिण जघाप्रदेश में स्थापित करने से वीर्य का स्तम्भन होता है ।
श्वेतपुनर्नवा की जड को दूध के साथ घिस कर पिलाने से स्त्रियो को गर्भ रहता है । सावलि (साल्मली) (सेमर) काष्टपादुका. क्रियन्ते वज्रापरिवृते मुक्रवाणिमध्ये प्रक्षिप्य लेपोदिय अलग पादुकाभिः चक्रम्यते ।
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सफेद कनेर की जड को रविवार के दिन लाकर कुसुभ रंग के डोरे मे वामहस्त में बाधने से (मर्कटिका) रोग नष्ट होता है ।
कोलिका गृहद्रय मुत्याद्य सूक्ष्म वस्त्रेण वेष्टिरित्या तैलेन स्निग्ध कृत्वा कोरक शराबे ( कोरा मिट्टी का घडा पर ) कज्जल पात्यते तेनाक्षि श्रजयेत् एकान्तर, द्वयतर चातुर्थिक ज्वरानाशर्यत । गोघृतेन दीपक दातव्य तस्य दीपकस्य शिखाया सूचीकापोइ ( सुई पिरोना) अरीवादहनीय, गोसत्क माथुरीवा घर्षणीय जीरक मगध, पिपल, नमक सेधा, मध्ये घर्षणीय ताम्र भाजने घर्षण कर्तव्य अक्षिरोगो नश्यति ।
सरसो, हिगुल, नीम के पत्ते, वच, साप की काचली की धूप बनाकर खेने से शाकिनी का उच्चाटन होता है और सर्व प्रकार की ऊपर की बाधाये दूर होती है ।
मूल, हिंगुल, सु ंठ, इन सब चीजो को बराबर मात्रा मे लेकर पानी सुंघाने से शाकिन्यो नश्यति ।
बहेडाबोज, संधव, शखनाभि सम मात्रा चूर्णेन अक्षिभरण चक्षुफुल्लोपशम. ।
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साथ पीसकर
वंदा कल्फ
नंदिषेरणाचार्य कृत
aarकल्प प्रवक्ष्यामि नन्दिषेरण मुनि भापित, यस्यविज्ञान मात्रेरण, सर्वसिद्धि प्रजायते 1 अश्विनी नक्षत्रे पलास ( डाक ) वदा सगृह्यहस्ते वध्वा सर्पभय निवारयति । भरणी नक्षत्रे प्रायिली (इमली) वा आवल, वदा सगृह्य हस्ते वध्वा सग्रामे राजकुले अपराजितो भवति सर्वजन प्रियोभवति और इसी नक्षत्र को, कुश, वदा सगृह्यद्रव्य मध्येधान्य राशौवाधियते प्रक्षयो भवति ।
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६४२
लघुविद्यानुवाद
कृतिकानक्षत्रे वध्या कर्कोटी मूल उत्तराभिमुखोभूय उत्पाद्यते हस्तेवध्यते सर्व प्रकारस्य ज्वरयान्ति । और इसी नक्षत्रको तु बरि (उवरि) वदा सगृह्य दुग्धेन सहपिवेत् महापुष्टिकारक भवति ।
रोहनी नक्षत्रे विल्ववदागृह्यहस्ते वध्यते सर्वदोपग्रहान् निवारयति । मृगशिरनक्षत्रे शखपुष्फिमूल दक्षिणाभिमुखीभूत्वा उत्पाट्य कर्णे दत्वाफू किते वृश्चिकविप नाशयति ।
आद्रानक्षत्रे जातीमूल ( ) वायव्याभि मुखीभूय उत्पाट्य हस्ते वध्वा सर्वजन प्रिय भवति । इसी नक्षत्र मे जाति मुनवाय व्याभि मुख भूप उत्पादय लिहसोडा वदा सगृह्य द्रव्यमध्ये धान्यराशोवा स्थापयेत् अक्षयो भवति ।
पुनर्वसु नक्षत्रे मदार (अकौना) वदा सगह्य हस्तेवध्वा सर्व ज्वर नाशयति । इसी नक्षत्र मे कटिका मूलनैऋत्याभिमुखो भूय उत्पाट्यते वोदकृत्वा हस्ते वध्वा सर्व जनप्रियो भवति । इसी नक्षत्र मे वट वदा बीज कृत्वाया स्त्रीऽपुत्रिणी भवति स तस्याः पुत्रो भवति । पुष्य नक्षत्रे श्वेतार्कमूल सगृह्य राजा सन्मुख राई सहित्त सहस्त्र जाप कृत्वाऽग्नि मध्येहोम कारयेत् सप्तरात्रेण चितित कार्यसिद्ध ।
__ अश्लेषा नक्षत्रे पुनर्नवा मूल ईशानदिशाभिमुखी भूय उत्पाट्यते बीज क्रियते सर्व कमीणि करोतिविष नाशयति ।।
मघानक्षत्रे मदारक मूल पूर्वाभिमुखी भूयोत्पाद्यते सर्व कर्माणि करोति । यदाविनाय ऋ करिमस्तके प्रक्षिप्यते पूज्यते, तदा मनश्चितितकार्य भवति ।
मघानक्षत्रे मधुवदा सगृह्य क्षेत्र मध्ये तथा चतु कौणे स्थापयेत् मूषकायति । पूर्वाफाल्गुनिनक्षत्रे दाडिम (अनार) वदाहस्ते वध्वाज्वर नाशयति ।
उत्तराफाल्गुनि नक्षत्रे उवरि मूल (तु वरि) उत्तराभिमुखो भूयत्पाट्यते हस्तेवध्वा सर्वकार्याणि करोति ।
चित्रानक्षत्रे वदरी (बैर) वदाहस्तेवद्धा सग्रामे राजकुले अपराजितो भवति । स्वातिन नक्षत्रे धातकी वदा हस्ते वध्वा या रमते सा वश्या भवति ।
विशाखा नक्षत्रे वोरि वदा- सग्रह्यवरिणजे, (किसी भी प्रकार के खेल मे) अपराजितो. भवति ।
अनुराधा नक्षत्रे प्राविलि (इमली) वदा सगृह्य यस्पृशेत् सवश्यो भवति ।
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लघुविद्यानुवाद
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ज्येष्ठानक्षत्रे मधूक, निव, कपिथ, वदा सगृह्य य स्पर्शते सवश्यो भवति । मूलन क्षत्रे खदीर वदाय हस्य गृहे ध्रियते सवश्यो भवति । पूर्वाषाढा नक्षत्रे अमिलोडवदा अजाक्षिरेण सह यः पिवतित्तस्य वातरोगनाश यति । उत्तराषाढा नक्षत्रे मदारक वदाहस्ते वध्यते सर्व जनप्रियो भवति । श्रवणनक्षत्रे कमोलिवदाहस्ते वध्वा सर्वेषा विष नाशयति । धनिष्ठा नक्षत्रे बबूल वदा कटि वध्वा हरिषा (बवासिर) नाशयति ।
शतभिखा नक्षत्रे ककोलिका वदा अजाक्षीरेण सहपीवेत् कुष्टयाति । इसी नक्षत्र मे शखपुष्पी मूल उत्तराभिमुखी भूयोत्पाट्यते पीष्यये स्त्री रितुकाले दिन ३ क्षीरेण सहपीवति सा स्त्री पुरुष सग मे गर्भवति भवति ।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रे चपकवदा (चपा) सगृह्य तिलक कृत्वा य इच्छति तभवति । उत्तराभाद्रपद नक्षत्रे पलासवदा (ढाक) सगृह्य क्षीरेण सहपीवति वध्या पुत्र प्रशवति । रेवति नक्षत्रे अश्वत्थ वदक सगृह्य हस्ते वध्वा लोकेश्वर पुत्र जनयति ।
॥ इति । ॥० ॥
अथ कलकोशं प्रवक्ष्यामि
धन्वंतरी कत श्वेत् अपराजिता, मूलं नाश्यदेयं सर्वग्रहं नाशयति । वंध्या ककोडी मूलं तंदुलोद केनसहा पोषयेत् सर्वविषं नाशयति । श्वेतगिरि करिणकामूलं नाश्यदेयं शिरोरोग नाशयति । मयुरशिखा मूलं कर्णेविध्वा चक्षुरोगं नाशयति । अपामार्ग मूलं भृगराज संयुक्त हस्तेवध्वा सर्व जनप्रियो भवति । शरपंखा मूलं हस्ते वध्वा सर्व ज्वरं नाशयति ।
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लघुविद्यानुवाद
कासमद्दकामूलं तंदुलोद के नसह पीवेत् नीद्रा नाशयति । अपामार्ग मूलं तंदुलोदकेन सहपिवेत काम्बलं नाशयति । तुलसीमूलं कर्णेवध्वा चक्षुरोगं नाशयति । मूडिमूल कर्णेवध्वा शिरलेपोदीयते शिरवायो नाशयति । वालामूलं हस्ते वध्वारात्रि ज्वरं नाशयति । सिवलमूलं कर्णेवध्वा एकोत्तशत्त ज्वरं नाशयति । बहडामूलं कर्णेवध्वा सर्वं ज्वरं नाशयति । श्वेतार्कमूलं कर्णेवध्वा सर्वविषं नाशयति । शंखपुष्पिका मूलं पुष्प नक्षत्रे उत्पादय हस्तेवध्वा सर्वज्वरं नाशयति । श्वेतगुजा मलं मुखे प्रक्षेप्यः कालसर्पोवारयति । गुडौचीमूलं हस्तेवध्वा सर्व सहस्त्रांक्षी भवति । उंट कटाला मूलं मूखेप्रक्षेप्यं षर्वलोकोनां स्तंभयति । च मूलं गुविरणी सपेठ उत्परे धारयति सुख शीघ्र प्रसवोभवति । दूधिका मूलं कर्णेवध्वा वेलाज्वरं नाशयति । गोखरीका मूलंकठे वध्वा उष्ण वातं नाशयति । सुहंजण मूलं कर्णेवध्वा वेलाज्वरं नाशयति । कटशेलुवा मूलं वध्वा ज्वरं नाशयति । दम्परणा मूलं कर्णे वध्वा अग्नि उदीपयति । श्वेरऐरंड मूलं कटिवध्वा श्रुकं नाशयति । जोडासीयनी चूर्णं कृत्वा मुखेपीरगंदीयतै मरी नाशयति । सतावरी मुलं हस्ते वध्वा महावलं भवति । उंट कटाला मूलं तंदुलोदकेन लेपोददाति गंडमाला नख प्रमाणे नाशयति । काक जंगामूलं करे वध्वा क्षयं नाशयति ।
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लघुविद्यानुवाद
व्यायापुत्रो भवति ।
कंठ सेलुना मूलं करे वध्वापीत ज्वरं नाशयति ।
श्वेत कटाइ मूलं पुष्प नक्षत्रे उत्पाटयेत् एक वर्ण गोक्षिरेण सहपिवेत
पलास मूलं खारं हरिताल चर्ण, प्रलेपयेत् रोमनाशयति । जाती मूलं तंदुलोदकेन, सहपिवेत्, वातज्वरं नाशयति । श्रात्मग स्त्रिया वामपादं लिप्यतेस शीघ्र वशी भवति ।
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अथलजालु कल्प
शनिवार सध्या को जहा छुइमुइ ( लजालु ) का पेड हो वहा जाकर एक मुट्ठी चावल सुपारी रक्खे, फिर उस पेड को मोली धागा बाधे, अपनी छाया पेड़ पर नही पडने दे, सवेरे तुमको अपने घर ले जायेंगे, ऐसा कहे । फिर प्रभात ही पिछली रात को जाकर छाया रखकर उस पेड को उखाड लावे, उखाडते समय इस मन्त्र को २१ बार पढे ॐ भ्रू भ्र व मम कार्य प्रत्यक्ष भवतु स्वाहा । फिर जिसको वश करना हो उसके घर मे रखवादे तो वह वश में हो जाता है । लजालु पचाग १ छटाक, घो २ छटाक, गिरक रणी छटाक ३ सखा होली छटाक ३ सब चीज एकत्र कर गोली बनावे, फिर जिसको वश करना हो उसके खाने-पीने की चीजो मे मिलाकर खिला देवे तो वश होता है । वाद, विवाद, झगडे प्रादिक मे पास रखकर जावे तो सब लोग उसकी बात मानते है । गोरोचन के साथ घिसकर तिलक करे तो राजा प्रजा सर्वलोक वश होते है ।
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श्रथ श्वेतगुजाकल्प
शुक्ल पक्ष मे श्वेतगुजा को दशमी के दिन पूरी जड सहित ले, पंचाग ले फिर उसकी जड को पान के साथ जिसको खाने को देवे वह वश होय, स्त्री वश हो । पान के साथ मे घिसकर गोरोचन
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लघुविद्यानुवाद
से टीका करे, फिर जिसका नाम ले, वह वश मे होता है अथवा गुजा चदन मणसिल से तिलक करे जिसका नाम लेवे वह वश मे होता है। गुजा, प्रियगु, सरसो इन चीजो को जिसके माथे पर डाले तो वह वश मे होता है, गुजा को जड को पीसकर लगावे अथवा पोवे तो वातरोग का नाश होता है। गुजा की जड को पानी के साथ पीने से मूत्र कुछ नही होता है। गुजा की जड़ को घिस कर पानी के साथ पिलाने से व लगाने से साप, बिच्छु व अन्य विषले जन्तुरो के द्वारा काटने से विष फैल जाता है, उस विप को दूर करती है । गुजा को जड को गोरोचन के साथ घिस कर तिलक करने से जो-जो देखता है वह वश मे होता है। गुजा को जड को स्त्री के कमर मे वाधने से सुख से प्रसव होता है । गुजा की जड को घटके मुखेक्षिपत जयभवति । पास रखकर राजा के पास जावे तो राज्यसभा वश होती है।
सरपंखा कल्प पुष्य नक्षत्र मे सूर्य उदय के समय नग्न होकर सरपखा को ले, फिर उसको छाया मे सुखावे, जड सहित उखाडे, (मासाश्वेरीत जड लिजइ) अथ पचाग लीजई। छाया में सुखावे । फिर उसका चूर्ण करके दूध के साथ अपने शरीर मे लेप करे तो सर्व शत्रुनो का स्तम्भन होता है । सरपखा के तिल का गोरोचन के साथ तिलक करे तो राजा प्रजा सर्व वश होते है। दुकान पर बैठे तो व्यापार अधिक चले। सरपखा के पचांग की गोली को गाय के दूध के साथ २१ दिन तक पिलावे तो गर्भ धारण करे।
शुभ मुहूर्त मे सोने या चादी के ताबीज मे रखकर बाधे तो शस्त्रादिक की धार वन्द हो। श्वेत सरपखा को लेने के समय २ आदमी हाथ मे नगी तलवार लेकर खड रहे, एक आदमी दीपक लेकर खडा रहे १ आदमी तीर छोडे, जब तक तीर जमीन पर न गिरने पावे तव तक सरपखा को उाले और घर लेकर आ जावे, छाया मे सुखा देवे ।
॥०॥
पमाड कल्प अश्वनी नक्षत्र मे उत्तर दिशिमुख करके पवित्र हो सूर्योदय से पहले पमाडीये का जड लेना,
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लघुविद्यानुवाद
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नग्न होकर, छाया पडने नही देवे, घर लाकर, कपूर कस्तुरी, केशर, के साथ अपने पास रखना, राजाप्रजा सर्व वश मे होते है, सर्व कार्य की सिद्धि होती है। जिसके हाथ मे बाधे, उसका वेलाज्वर, तीजारो ज्वर आदिक नष्ट होते है और जिसको मक्खन के साथ खाने को देवे वह वश में होता है।
॥० ॥ तार ताम्र सुवर्ण च इदु अके पोडशभी। पुण्यार्के घटिता मुद्रा दृढ दारिद्र नाशिनी।
१ रती सोना, १२ रती ताबा, १६ रती चादी, सब मिला ले । २६ रती हुया, इनकी अगूठी बनवावे रविवार पुष्प नक्षत्र के योग मे, उसी रोज बनवाना, उसो रोज पार्श्व प्रभु का पचामृत अभिषेक करके उसमे वह अगुठी धोकर, याने गन्धोदक से धोकर धून खेवे, फिर अगुठे के पास वाली तर्जनी अगुली मे पहने तो तीव्र दरिद्र का नाश होता है, लक्ष्मी का लाभ होता है। अगुठी जमणे हाथ मे पहनना चाहिए। भोजन करते समय अगुठी को निकाल देना, फिर पहन लेना । ध्यान रहे उसी रोज अगुठी वने उसो रोज अगुली मे पहन लेना चाहिये। भक्तामर जी के प्रथम काव्य के मत्र का १०८ बार जप करे ।
बिल्ली की ऊपर की दाढ और कुत्त की नीचे की दाढ, को भक्तामर के काव्य का नम्बर वाला मन से मत्रित करके शत्रु के घर मे गाड देने से शत्रु के घर में महान उत्तात होता है।
सफेद सरमो, सफेद चन्दन, उपलेट ( ) वच तथा कपूर, इन मवको दमरा रविपुष्य के दिन इकट्ठा करके गोली बनाकर रक्खे, जब जरूरत पड़े तब उस गोनो को घिसकर तिला करे तो दष्टि दोष का नाश होता है। पशुप्रो के प्राग्न में अजन करने से प्टिदोष दूर होता है।
विदेश मनु 1107
मेने में पानी nिfra - प्रमाणे
रन माम". TARI
"
S
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लघुविद्यानुवाद
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अथ रक्त गुजा कल्प पुष्प होय आदित्य को, तव लीजिये यह मूल । सुकर वारी रोहिणी, ग्रहण होय अनुकूल ॥१॥ कृष्ण पक्ष की अष्टमी, हस्त नक्षत्र जो होय । चौदह स्वाति शतभिषा, पूनों को लेय सोय ॥२॥ अर्द्ध निशा कारज सरे, मन की संज्ञा खोय । धूप दीप कर लीजिये, धरे दूध ले घोय ॥३॥ जो काहू नर नारी . विष कोई को होय । विष उतरे सब तुरंत ही, जड़ी पिलावे धोय ॥४॥ जो तिलक लगावे भाल पर, सभा मध्य नर जाय। मान मिले स्तुति करे, सब हो पूजे पाय ॥५॥ हांजी हांजी सब करे, जो वह कहे सो सांच । एक जड़ी के जुगत से, सब नचाव नाच ॥६॥ तांबे मूल मढ़ाये के, बांधे कमर के सोय । नव मासे व नारी के, निश्चय बेटा होय ॥७॥ ऋतुवंती के रक्त सो, अंजन प्रांजे कोय । देखत भाजे सैन सब, महा भयानक होय ॥८॥ काजल हूं घिस प्रांजिये, मोहे सब संसार । गाली दे दे ताडिये, तोय लगा रहे लार ॥६।। मधु सु अंजन प्रांजिये, देखे वीर वैताल । जो मंगावे वस्तु कू, ले आवे सो हाल ॥१०॥ जो घिस कर लेपन करे, दूध संग सब अंग । भूत प्रेत सब यक्ष गण, लगे फिरत सब संग ॥११॥
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लघुविद्यानुवाद
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घिसके रुई लगाइये, बत्ती घरे बनाये । फिर भिगोवे तेल में, दीपक देय जलाय ।। १२ ॥ करे अच भों सब नमें, घर श्मशान दरसाय। सात महल के बीच सू, लावे पलंग उठाय ।। १३ ।।
जो घृत मे घिस के करे, लेप मूत्र नर ताय । सर्व शक्ति बाढ़े अमित, मन अति मोद उठाय ।। १४ ।। अजा मूत्र में रगड़कर, बेंदा दे जो हाथ । करे दूर की बात वो, रहे यक्षरणी साथ ।। १५ ।। गोरोचन के साथ घिस, लिखिये जाको नाम । होय बाकी तुरंत, नही देर को काम ।। १६ ।। लिग पत्र के अर्क सु, घिसिये केवल नाम । भूत प्रेत व डाकिनी, देखत नसे तमाम ।। १७ ।। स्याउ संग वा रगड़ के, तलुवे तले लगाय । प्रॉख मीच के पलक में, सहस कोस उड़ जाय ।। १८ ।। जो घिस प्रांजे पीस के, बंदी छोड़ कहाय । बन्दी पड़े छुटे सभी, बिना किये उपाय ॥ १६ ॥ जो गुलाब संग याहि घिस, नाड़ी लेप कराय। घड़ी चार कू जी पड़े, मुरदा सहज सुभाय ।। २० ।। फेर अंकोल के तेल में, घिस के प्रांजे कोय । धन दीखे पाताल को, दिव्य दृष्टि जो होय ॥ २१ ॥ जो बाघिन के दूध में, घिस चौपड़े सब अंग । सर्व शस्त्र लागे नहीं, बढ़ कर जीते जंग ।। २२ ।। घिस कर तिल के तेल में, मर्दन करे शरीर । दिखे सब संसार कू, महावीर रणधीर ॥ २३ ॥
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लघुविद्यानुवाद
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जो अलसी के तेल में, घिसिये हतश मिलाय । कोडि के लेपन करे, कंचन तन हो जाय ॥ २४ ॥ जो कोई संसार में, अधा पावे जे कोय । सात दिवस तक प्रांजिये, दृष्टि चौगुनी होय ॥ २५ ॥ श्याम नगद सग रगड़ के, वोसो नख लिपटाय । जो नर होय कुमारजी, देखत वश हो जाय ।। २६ ॥ कस्तूरी सू प्रांजिये, प्रात समय लो लाय । मौत जो लिखिये सवन की, काल पुरुष दरशाय ।। २७ ।। गंगाजल स प्रांजिये, दोनों नेत्र ज मांही। वरसा वरसे धूल की, या में संशय नाही ॥ २८ ॥ जो प्रांजे निज रक्त सू, भर के दौऊ कोय । देखे तीन लोक कू, अपनी ऑखन सोय ।। २६ ॥ जो प्रांजे निजरक्त, खुले रागनी राग। जो घिस पावे दूध सू, होय सिद्ध सू भाग ।। ३० ॥ रक्त गुजा यह कल्प है, सूक्ष्म कहियो बनाय । जो साधे सो सिद्ध हो, या में संशय नाय ।। ३१ ।। नोट :-इस रक्त गुजा कल्प के दोहे का अर्थ इतना सरल है कि कम पढ़ा लिखा हुआ
व्यक्ति भी अच्छी तरह जान लेता है । इसलिए यहा पर इसका हिन्दी अनुवाद करना उचित नहीं है।
॥ इति ॥ मनुष्य की खोपडी पर, रताजन, भीमसेन कपूर तथा रविपुष्य के रोज जिस स्त्री के पहली बार प्रसूति मे लडका पैदा हुआ हो उस, स्त्री के दूध मे रवि पुष्य के दिन गोली बनावे, काम पडे तव तीन दिन आँख मे अजन करने से, ऑख के सर्व रोग नाश को प्राप्त होते है।
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लघुविद्यानुवाद
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शरद पूर्णिमा को ब्राह्मी का रस, वच और कपिला गाय का घी, इन तीनो चीजो को बराबर २ लेकर, कासे की थाली मे इन चीजो को खूब गाढा २ लगावे, फिर उसमे भक्तामर का ६ न० का यन्त्र लिखे, ऊपर अष्टगन्ध से ॐ ह्री श्री क्ली ब्लू वद् वद् वाग्वादिनी लिखे, फिर चन्द्रमा के प्रकाश मे रात्रि भर उस थाली को एक ऊचे पाटे पर विराजमान कर रक्खे, सवेरे एक २ अक्षर को खावे, तो सरस्वती वश मे होती है । महान् बुद्धिमान होता है।
ब्रह्म दडी को शनिवार के दिन शाम को अक्षत, सुपारी को रखकर कु कुम के छीटे लगाकर नोत दे, फिर रविवार की शाम को नग्न होकर धूप खेवे, फिर ब्रह्मदण्डी का पचाग ले, फिर कपड़े पहनकर घर ले आवे, उस ब्रह्मदण्डी को कैसा भी घाव हो, व्रण हो, किसी भी प्रकार का गडगुमड हो, उसके ऊपर लेप करने से शीघ्र ही आराम हो जाता है।
रवि पुष्य के दिन जिस स्त्री को पुत्र पैदा हुआ हो, उस स्त्री की जेर लेकर छाया मे सुखा देवे । एकान्त मे फिर उस जेर को रूई के अन्दर लपेटकर बत्ती बनावे। दीपक मे रख कर जलावे, तो घर मे मनुष्य ही मनुष्य ही दिखते है । चोर चोरो नही कर सकते है ।
___ रवि पुष्य को (लजालु) छुइमुइ का पचाग को ग्रहण करके छाया मे सुखाले, फिर जो मनुष्य कई दिनो से खो गया है, उस मनुष्य के कपडे मे लजालु को बाध कर, त्रिकाल उस वस्त्र मे कोडा लगावे तो खोया हुआ मनुष्य शीघ्र ही आता है।
१२ भाग ताबा, १६ भाग चादी, १० भाग सोना, इन तीनो का पृथक २ तार खिचवा कर, रविपुष्य या गुरु पुष्यामृत योग रहते २ अ गुठी बनवाना और पचामृत से जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक करके, उस अभिषेक मे उस अगूठी को धोकर सीधे हाथ की तर्जनी अगुली मे पहनना चाहिए, जिससे सर्व प्रकार का तीव्र दारिद्र नाश होता है। किन्तु रवि या गुरू पुष्यामत योग मे ही अगुठी बनवाना चाहिये और उसी ही योग के रहते २ ही पहन लेना चाहिये। तब ही कार्यकारी हो सकती है। आचार्य श्री महावीर कीति जी महाराज इस दारिद्र नाशिनी अ गुठी के लिए सबको कहा करते थे।
लोग, केशर, चन्दन, नाग केशर, सफेद सरसो, इलायची, मनशिल, कूठ, तगर, सफेद कमल, गोरोचन, लालचन्दन, तुलसी, पिक्कार, पद्मास्वा, कुटज तो पुप्य नक्षत्र मे वरावर लाकर, सबको धतूरे के रस मे कुमारी कन्या से पिसवाकर, उसका चन्द्रोदय होने पर तिलक करने पर संसार मोहित होता है।
लाल कनेर के पुष्प, भुजगाक्षि जटा, ब्रह्मदण्डी, इन्द्रायन, गोबन्धनी (अधो पुष्यिया
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लघुविद्यानुवाद
प्रियगु) लज्जावती के चूर्ण की गोलिया बनावे, उन गोलियो को बरावर नमक सहित एक बर्तन मे डालकर पका । इन गोलियो को भोजन आदि के साथ खिलाने से स्त्री वश में होती है ।
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बड, गूलर, पीपल, पिलखन, अ जोर के दूध तथा पडुको रस मे कपास, आक, कमल सूत्र, सेमल की रूई, सन की बनी हुई बत्ती को भावना देकर काले तिलो का दीपक जलाने से तीन लोक वश में होते है ।
निर्गुण्डी और सफेद सरसो घर के द्वार पर अथवा दुकान के द्वार पर रक्खी जावे तो अच्छा क्रय-विक्रय होता है ।
जो स्त्री काजिका ( सौवीर ) के साथ जवे के फूल को मल कर ऋतु काल मे पीती है, वह फिर मासिक से नही होती है, यदि हो भी जावे तो गर्भ धारण तो कभी भी नही करती है ।
कृष्णपक्ष की चतुर्दशी या अष्टमी सहदेवि लाकर चूर्ण करे, फिर जिसको पान मे खिलावे तो सात दिन मे प्राता है ।
उत्तर दिशा मे उत्पन्न होने वाली कौच की जड को गो मूत्र मे पीसकर उसका मस्तक पर तिलक करने से शाकिनी उसमे अपना प्रतिबिम्ब देखती है ।
रवि पुष्यामृत के योग मे ब्राह्मी, शतावरी, शखा होली, अधा जारा, जावत्री, केशर मालकारणी, चित्रक, अकलकरो और मिश्री का चूर्ण करके सर्व सम भाग लेकर, सवेरे १४ कोमल अदरख के रस मे २१ दिन तक खाने से बुद्धि की वृद्धि होती है ।
पुष्यार्के योग मे काला धतुरे की जड अथवा सफेद धतुरे की जड शनिवार को निमन्त्रण देकर, रविवार को सध्या काल में नग्न होकर ग्रहरण करे, फिर कन्या कत्रीत सूत लपेटकर, धूप खेवे, फिर उस जड को अपने कमर मे बाघने से स्वप्न मे वीर्य का कभी स्खलन नही होता है ।
पुण्यार्क अथवा हस्तार्क मे रूद्रवति और ( ) का पचाग लेकर पानी मे गोला बनाकर रक्खे, जव कार्य पडे तब अपने शरीर मे लेप करने से अग्नि शीतल के समान लगती है । याने अग्नि मे नही जलता है ।
मूलार्क योग मे सरपखा का पचाग, वीसरखपरा का पंचाग, इन्द्रवारुणी का पंचाग शिव लिंगी का पंचाग, इन सब को एकत्र करके पेट पर लेप करने से उदर रोग शात होते है ।
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लघुविद्यानुवाद
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पुष्पार्क योग मे लज्जालु पचाग, शख पुष्पी पचाग, ( ) पचाग लक्ष्मण पचाग, श्वेत गु जा पचाग इन सब चीजो को ग्रहण करके गोली बनावे, जब कार्य पडे तब स्वय के थूक मे उस गोली को घिस कर तिलक करने से पर विद्या का छेदन होकर आजीविका की प्राप्ति होती है ।
रवि पुष्यामृत योग मे दूव पचाग का रस लाकर अष्टगंध मिलाकर दाया हाथ की अनामिका अगुली से माथे पर निरन्तर तिलक करने से सर्व जन वश में होते है ।
पुष्यार्क योग मे जाइ पुष्प का पंचाग और समुद्र फेन, गधेडा के मूत्र में गोली करके श्राख मे अजन करने से भूत प्रेत, व्यतरादि सव दोष का नाश करता है ।
पुष्यार्क मे धन्वतरि पचाग, लक्ष्मणा पचाग, शिवलिंगी पचाग इन तीनो का चूर्ण करके सू घने से आंधा शीशी तथा सूर्य वात का नाश होता है ।
पुष्यार्क योग मे एक डंडी पचाग, पुत्र जारी पचाग को तीन धातु के ताबीज मे डालकर हाथ मे बाधने से, सर्व जाति की अग्नि ठंडी हो जाती है ।
पुष्यार्क योग मे मुरगे की विष्टा, मयुर की विष्टा, लोमडी की विष्टा, चिमगादड को विष्टा और चतुष्पद पशुओ की रज, सबको इकट्ठा करे ।
पुष्यार्क योग मे सरपखा पचाग, चक्राग पचाग, मयुर शिखा पचाग इन सब चीजो को पानी के साथ पिलाने से सर्प जाति के विष से कभी मरण नही होता है |
पुष्यार्क योग मे चक्राग पचाग, काक जघा पचाग पिलाने से अन्दर गाठ और गोलादिक शूल की शांति होती है ।
पुष्यार्क मे सहदेवी का पंचाग तीन धातुओ के ताबीज मे डालकर धारण करने में असमय मे गर्भपात कभी नही होता है ।
पुण्याकं मे सूर को विष्टा जमीन पर नही गिरे, उसके पहले हो ग्रहण करके मिष्ठान के साथ में हाथी को सिलाने से हाथो वश में होता है ।
पुष्पार्क योग में सफेद कौसा जड को, जो गणेशाकार होती है उसकी के साथ मे रखने से अष्ट सिद्धि और नव निधि की प्राप्ति होती है।
गंगा पार को ताम्बा लाकर बने में मिलावे और कूट देव रोगात होता है ।
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लघुविद्यानुवाद
• सर्प की केचुली को मस्से के नीचे वाधे तो बवासीर ठीक होता है।
दाये हाथ की बीच की अगुली मे लोहे को अगूठी पहनने से पथरी रोग शात होता है।
सुबह के समय दक्षिण दिशा की ओर मुह करके हाथ मे गुड की डली लेकर उसे दातो से काट कर चौराहे पर फेक देने से आधा शीशी का रोग शात होता है।
गाय के घी मे सोरा मिलाकर सूधने से आधा शोशी रोग दूर होता है।
दूध के दांत जिसके गिरे हो उस दात को ताबीज मे मढवा कर पास रखने से दात पीडा शात होती है।
रेशम के डोरे मे जायफल की माला गू थ कर रोगी के गले मे बाधने से मृगी रोग शात होता है।
गाय के बाये सीग की अगूठी बनवा कर, दाये हाथ की कनिष्ठा अगुली मे पहनने से मृगी का दौरा आना जल्दी बन्द हो जाता है।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र मे उत्तर दक्षिण की ओर वाले पवित्र स्थान से व्याघ्र नखी, बूटी की जड उखाड लावे और उसे स्त्री के कमर मे वाधने से प्रदर रोग शात होता है।
काली मूसली की जड को हाथ या पांव मे बाधने से रुका हुमा गर्भ की प्रसूति हो जाती है।
जेष्ठा नक्षत्र मे अडुसे को जड लाकर उसे धूप देकर स्त्री की कमर मे बाधने से नष्ट पुष्पा स्त्री ३० दिन के भीतर फिर रजस्वला होने लगती है।
तिल की जड, ब्रह्मदण्डी की जड, मुलहठी, काली मिर्च और पीपल इन सबको जौ कुट का काढा बनाकर पीने से बन्ध मासिक धर्म फिर से होने लगता है।
शिव लिंगी के बीज की गुड के साथ गोली बना कर ऋतु स्नान के बाद तीन दिन खाकर मैथुन करने से गर्भ ठहर जाता है।
निर्गण्डि के रस मे गोखरू के बीज डालकर सात दिन तक पीने से स्त्री गर्भ धारण करती है।
श्रवण नक्षत्र मे काले एरण्ड की जड लाकर, उसे धूप, दीप देकर वन्ध्या स्त्री के गले में बाधने से वन्ध्यात्व दोष दूर हो जाता है । वह गर्भ धारण करती है।
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लघुविद्यानुवाद
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नीब के पुराने वृक्ष की जड को दूध मे पीसकर घी मे मिला कर पीने से दीर्घ जीवी पुत्र की प्राप्ति होती है।
सहदेवि की जड को पानी मे घिसकर आँख मे अजन करे तो लोग उसको देखते ही उसके __ वश मे हो जाते है।
रवि पुष्यामृत मे धतूरे की जड को लाकर रख ले, कार्य पडे तब गर्भवती स्त्री के कमर मे बाध देने से सुख पूर्वक प्रसव होता है।
सफेद सोठ की जड को गभिणी स्त्री की योनि में रखने से सुख पूर्वक प्रसव होता है । गर्भिणी स्त्री के हाथ मे चुम्बक पत्थर रख देने से सुख पूर्वक प्रसव होता है । स्त्री के कमर मे बास की जड बाधने से प्रसव सुख से होता है। नीम की जड स्त्री के कमर मे बाघने से प्रसव सुख पूर्वक होता है ।
उत्तर दिशा मे उत्पन्न ईख की जड़ को स्त्री के नाप के डोरे मे बाध कर कमर मे बाधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
आवला और मुलहठी को गाय के दूध के साथ पीने से गर्भ स्तभन होता है । धतूरे की जड को कमर मे बाधने से गर्भ स्त्राव नही होता है । अकरकरा को सूत मे लपेट कर बच्चे के गले मे बाधने से मृगी रोग शात होता है।
दूध पिलाने वाली मा अथवा धाय के कपडे मे से एक टुकडा फाड कर, पानी मे भिगोत्रे, फिर बच्चे के माथे पर रख देने से हिचकी रोग शान्त हो जायेगा।
कपूर की डलियो की माला बनाकर बच्चे को पहनाने से सुखपूर्वक दात पायेगे।
बच्चे के हाथ मे लोहे अथवा ताबे का कडा पहनाने से दात सुखपूर्वक आयेगे और बच्चे को दृष्टि दोष नही होगा।
काली सरसो और काली मिर्च को पीसकर अजन करने से भूत वाधा नष्ट होती है।
अश्विनी नक्षत्र मे घोडे के खुर का नख लेकर रखले, उस नख को अग्नि मे डाल कर धूनी देने से भूत प्रेत आदिक भाग जाते है ।
अनार का बाधा ज्येष्ठा नक्षत्र मे लाकर घर के दरवाजे पर वाध देने से बालको के दुष्ट ग्रहो का निवारण हो जाता है।
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लघुविद्यानुवाद
काशीफल के फूलो के रस मे हल्दी को पीस कर पत्थर के खरल म खूब घोट कर अजन बनाले । इस अजन को प्रॉख मे • गाने से भूतादि की बाधा अवश्य दूर हो जाती है।
रविवार के दिन सफेद कनेर की जड को दाये कान पर बाचने से विषम ज्वर दूर होता है और दायी भुजा मे वाधने पर शीत ज्वर दूर होता है ।
चौलाई की जड सिर मे वाधने से विषम ज्वर दूर हो जाता है। मकडी के जाले को गले मे लटकाने से ज्वर उतर जाता है।
रविवार के दिन पाक की जड को उखाड कर कान मे बाधने से सभी तरह के ज्वर दूर हो जाते है।
नारियल की जड को (लॉगली मूल) को गले मे बाधने से महा ज्वर दूर हो जाता है । वृहस्पति की जड को मस्तक पर रखने से, बाधने से महा ज्वर नष्ट होता है। अपा मार्ग की जड को रोगी के भुजा मे बाधने से भूत ज्वर नाश होता है।
रीठे के फल को धागे मे गू थ कर बच्चे के गले मे बाधने से उसे नजर नही लगती तथा हिचकी रोग शान्त होता है।
भेडिये के दात को बालक के गले में बाधने से बालक का अपस्मार रोग शात होता है।
कबूतर की बीट को शहद के साथ पीने से स्त्री रजस्वला हो जाती है। घू घची की जड को कान से बाधने से दाढ के कोडे झड जाते है।
रविवार के दिन सर्प की केचुल लाकर थोडे से गुड मे १ रत्ती भर केचुलि मिला कर देने से नाहरू रोग शान्त हो जाता है ।
सूखी मिट्ठी का डला सू घने से नाक का रक्त बन्द हो जाता है। नकसीर ठीक होती है। प्याज की माला को कण्ठ मे धारण करने से तिल्ली और जिगर दूर हो जाता है।
आबा हल्दी, सैघा नमक, कूठ को सम भाग लेकर नीबू के रस मे पीसकर लेप करने से मुह के धब्बे दूर होते है।
तज, धनिया और लोध को सम भाग पीसकर मस्सो तथा मुहासो पर लेप करने से वे दूर हो जाते है।
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लघुविद्यानुवाद
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सरसो, सेधा नमक, लोग और बच-इन सबको कूट कर मुंह पर लेप करने से मुंह पर होने वाली छोटी २ कीले फुन्सिया ठीक होती है ।
सफेद साठी की जड को घी मे पीस कर आखो मे अजन करने से बहता हुआ पानी रुक जाता है।
बादाम, कपूर, आधी २ रत्ती लेकर खूब महीन पीस ले, फिर अगुली से अजन करने पर दुखती हुई आखे ठीक हो जाती है ।
रागे की अगूठी मध्यमा अगुली मे पहनने से मोटापा कम हो जाता है। सोते समय सूखा नमक पिसा हुआ सिर मे मलने से झडते हुए सिर के बाल बन्द हो
जायेगे।
शुभ नक्षत्र मे (अपामार्ग अथवा अधाझार) की जड लाकर व्यक्ति के दाये कान मे बाधने से सर्प-बिच्छु का जहर उतर जाता है ।
सर्प के काटे हुए स्थान पर सफेद सोठ की जड का लेप करने से जहर उतर जाता है।
मयूर के साबुत पङ्ख को चिलम मे भर कर फूक देने से तुरन्त सर्प का जहर उतर जाता किन्तु इस प्रयोग को छ -सात बार करना चाहिये, सर्प दृष्टा व्यक्ति अगर बेहोश हो गया हो तो अन्य व्यक्ति स्वय फूक देकर सर्प दृष्टा के नाक मे जोर से धु आ फेकने से विष उतर जायगा।
॥० ॥
स्वप्नदोषों को दूर करने का उपाय ऊट के बालो की रस्सी बनाकर, अपनी जाघ मे वाध ले तो जब तक उस रस्सी को नही खोलेगा तब तक वीर्य स्खलित नहीं होगा।
कमल गट्टे को शहद के साथ पीसकर नाभि पर लेप करने से वीर्य स्खलित नहीं होगा।
पुष्य नक्षत्र मे पाक और धतूरे का कपरी भाग एव कटेली को जड लाकर, सवको मिलाकर चूर्ण करे, इस चूर्ण को जिसके सिर पर डाल दिया जाय, उससे इच्छित वस्तु प्राप्त की जा सकती है।
___ ताल को मढे में पीसकर मिट्टी सहित पुतली बनाए। उस पुतली को जिसके घर मे गाड दिया जाय उस घर का ग्रह-क्लेश का नाश हो जाता है।
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लघुविद्यानुवाद
शुक्ल पक्ष मे पुष्य नक्षत्र पडे तब घूचची की जड लाकर उसे शैया के सिरहाने वाधकर सोने से चोरो का भय नही रहता है ।
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कृतिका नक्षत्र मे कैथ का बाधा लाकर मुँह मे रखने से शस्त्र के प्रघात का भय दूर हो जाता है ।
कोल के फल का तेल निकालकर उसमे तगर के फल का चूर्ण मिलावे, इसे आखो मे प्राजने से जहा तक दृष्टि जायेगी वहा तक देवी देवता ही दिखाई पडेगे । बाद के केवल तगर के तेल का अजन करने से पुन मानुषि दृष्टि प्राप्त होती है ।
कोल का तेल दीपक मे भर कर घर मे जलाने से भूत-प्रेत दिखाई देते है ।
मीठे तेल मे गधक डालकर दीपक जलाने घर मे भूत-प्रेत दिखाई देते है । रविहस्त को पमाड की जड, शनिवार को न्योतकर रविवार को प्रात. उसे लाकर दाई भुजा मे बाधने से सब में जीत होती है ।
सफेद घू घच्ची को पानी मे पीसकर बिना खूटी वाली खडाऊ पर गाढा लेप कर ले फिर उस पर पाव जमा कर चले तो खडाऊ पाव से अलग नही होगी ।
मूली के पत्तो का रस हाथ मे लेकर बिच्छू पकडने से वह डक नही मारता है ।
गोखरू बकरी का सीग, ताल बुखारा, शूकर की विष्टा ओर सफेद घू घची इन सबको पीसकर रसोईघर मे डाल देने से मिट्टी के बरतन सब फूट जायेगे ।
रविवार के दिन प्रात काल लाल एरण्ड को न्योत आवे । शाम के समय उसे एक झटके मे तोड लाये कि उसके दो टुकडे हो जाये । एक टुकडा नीचे गिर पडे, दूसरा हाथ मे रहे, फिर दोनो टुकडो को अलग-अलग रख ले। फिर जिसे पीढे (पाटा) पर बैठा हुआ देखे, उसके शरीर से जो टुकडा नीचे गिर पड़ा हो, उस टुकड़े को छुआवे तो वह आदमी पाटे से चिपक जायेगा | हाथ जो रह गया था, उसको स्पर्श करा देने पर वह चिपका हुआ आदमी छूट जायगा ।
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प्राक के दूध मे चावलो को भिगोकर आग पर चढाने से चावल कभी भी नही पकते हैं । भिलावे का रस मे घूघचो, विष, चित्रक और कौच को मिलाकर देने से शत्रु को भूत लग जाता है | चन्दन, खस, माल कांगनी, तगर, लाल चन्दन और कूठ को एक मे पीसकर शरीर मे लेप करने से भूत उतर जाता है ।
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लघुविद्यानुवाद
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शुभ तिथि, शुभ वार के नक्षत्र को काली गाय के दूध को जीभ पर रखे और उसके घी को दोनों हाथो मे अजन करे तो पृथ्वी मे गडा हुआ द्रव्य दिखेगा ।
जहा पर कौए मैथुन करते हो और सिह आकर बैठता हो वहा अवश्य ही धन गडा हुआ समझना ।
बडे के वृक्ष को शाम को न्योत आवे, सवेरे उसका पत्ता लाकर पॉव के नीचे दबा कर भोजन करने से बीस-तीस श्रादमी का भोजन केले ही खा जाता है ।
बहडे का पत्ता तथा सफेद कुत्ते का दात इन दोनो को कमर मे बाधकर खाने बैठने से बहुत भोजन करता है ।
भैस के दूध मे तथा घी मे अपामार्ग के बीजो की खीर बनाकर खाने से एक महीने तक भूख नही लगती है ।
पमार के बीज, कसेरू तथा कमल की जड को गाय के दूध मे पकाकर खाने से एक महीने तक भूख नही लगती ।
गोरोचन तथा केशर को महावर के साथ घिसकर, उसके द्वारा भोज-पत्र के ऊपर जिस व्यक्ति का नाम लिखे वह सदैव वश में रहता है ।
पके और सूखे हुए लभेडे (ल्हिसोडे) के फल को खूब महीन पीसकर पानी मे डालने से पानी बध जाता है ।
दो हाडियो मे श्मशान के अगारे भरकर दोनो का आपस मे मुँह मिलाकर जगल मे गाड देने से मेघ का स्तम्भन हो जाता है ।
चौलाइ की जड को चादी के ताबीज से डालकर अपने मुँह मे रखने से इच्छित व्यक्ति का मुख स्तंभित रहता है ।
ऊट के रोमो को किसी पशु पर डाल देने से वह जहां का तहा ही स्तम्भित हो जाता है । कटेली की जड को और मुलहठी को समभाग लेकर पीसे, फिर नाक में सू घने से निद्रा का स्तन हो जाता है ।
जलते हुए भट्ठे मे घोडे का खुर और बेत की जड को डाल दिया जाय तो निका स्तभन हो जाता है । फिर खाली धुम्रा उठता रहता है ।
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लघुविद्यानुवाद
रविपुष्यामृत नक्षत्र मे सफेद पाकड़े को जड को लेकर दाई भुजा मे वाधने से व्याध का स्तम्भन होता है।
एकाक्षी नारियल कल्प
मन्त्र :--ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं एकाक्षाय श्रोफनाय भगवते विश्वरूपाय सर्व योगेश्वराय
त्रैलोक्यनाथाय सर्वकार्य प्रदाय नमः । पूजन विधि -प्रथम हस्त मे पानी लेकर सकल्प करे--अत्राद्य सवत् मिलादे महामगलाय फलप्रद
अमुकमासे अमुक पक्षे अमुकतिथौ अमुक वासरे इष्ट सिद्धये बहुधन प्राप्तये एकाक्षि श्रीफल पूजन मह करिस्यामि । इस प्रकार कहकर पानी छीटे फिर उपर्युक्त मन्त्र को बोलते हुए श्रीफल का पचामृताभिपेक करे, अष्ट द्रव्य चढावे, रेशमी वस्त्र प्रोढाए, पूजन करे । उसके बाद सोने की व मू गे को अथवा रुद्राक्ष की माला से जप शुरू करे। जप १२५०० हजार हो जाय, फिर नित्य प्रति एक माला फेरे,
दीवाली, सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय पूजन करे। मन्त्र :-ॐ ह्री श्रीं क्लीं ऐं महालक्ष्मी स्वरूपाय एकाक्षिनालिकेराय नमः सर्वसिद्धि
कुरु कुरु स्वाहा। यह मन्त्र रेशमी कपडे पर अष्टगन्ध से अथवा केसर से लिखा । अनार की कलम से उस वस्त्र के ऊपर एकाक्षि श्रीफल रखा मन्त्र से प्रात और सध्या को प्रष्ट द्रव्य से
पूजा करे, मूल मन्त्र की एक माला फेरे । मन्त्र :-ॐ ऐं ह्री ऐ ह्रीं श्री एकाक्षिनालिकेराय नमः ।
इस मन्त्र की एक माला फेरे, गुलाब के फूल १०८ चढावे । मन्त्र :-ॐ ह्रीं ऐं एकाक्षिनालिकेराय नमः।
इस मन्त्र की १० माला पाच दिन तक प्रतिदिन फेरे तथा कनेर के २१ फूल चढायें । जिज्ञासित को स्वप्न मे उत्तर प्राप्त होगा।
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लघुविद्यानुवाद
फल प्राप्ति :
इस श्रीफल सु घाने मात्र से स्त्री गर्भ के कष्ट से छूटे, तुरन्त प्रसव हो । वध्या स्त्री को ऋतु स्नान के बाद घोल कर पानी पिलावे तो सन्तान हो ।
श्रीफल को सात बार पानी मे डुबोकर सात बार ही मन्त्र पढे, फिर उस पानी को घर में छीटने से भूत-प्रेत का उपद्रव शात होता हो।
लाल कनेर का फूल लेकर, दक्षिण दिशा मे बैठकर शत्रु का नाम लेते हुए एक माला फेरे।
दक्षिणावर्त शंख कल्प __शंख ३ तोले का उत्तम २५ तोले का अत्युत्तम है। शख शुक्ल वर्ण का ही उत्तम माना गया है।
यदि शख को पानी मे नमक डालकर उस पानी मे डाल दे, फिर सात दिन तक पानी मे ही रहने दे, अगर शख फटे नही तो समझो असली शख है नहीं तो नकली है। प्रयोग फल :
शख में पानी भरकर मस्तक पर नित्य ही छीटे तो उपसर्गो का क्षय हो । शख मे पानी लेकर पूजन करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है । पूजन के पश्चात् शख मे दूध भरकर वध्या स्त्री पिये तो उसके सन्तान होती है।
जिस घर मे शख हो उस घर मे सर्व मगल होता है। रोग शोकादि का नाश, प्रतिष्ठा बढती है । मान-सम्मान राज्य मे होता है। पूजन विधि :
स्नान करके, सफेद वस्त्र धारण करे, प्रतिदिन दूध से फिर पानी से शख को स्नान १। फिर चादी अथवा सोने के पत्र पर उस शख को सोने मे मढाना चाहिये, फिर पप्टद्रव्य ने डिसो प्रचार पूजन करना चाहिए । पूजन करने के पहले सकल्प करे ।
ॐ अद्य अमुक वर्षे अमुकमासे असुक पक्षे अमुकतिथौ मम मनोवाछित कार्यसिद्धये ऋद्धिसिद्धि प्राप्यर्थ मह दक्षिणा वर्त शखरय पूजन करिष्याम ।
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लघुविद्यानुवाद
पूजन मन्त्र :
___ॐ ह्री श्री क्ली श्रीधर कस्रथायपयोनिधि जाताय श्री दक्षिणावर्त शखाय ह्री श्री क्ली श्रोकराय पूज्याय नम ।
इस मन्त्र को पढते हुए अष्टद्रव्य से सुगन्धित इत्र चढाए, नैवेद्य चादी के बरतन मे रखे, उसमे दूध, चीनी, केशर, कस्तूरी, बादाम, इलायची डाले, साथ मे केला रखे, जो भोजनशाला मे मे वस्तु बनी हो उसे चढाए, कपूर से आरती उतारे। ध्यान मन्त्र :
ॐ ह्री श्री क्ली श्रीधर करस्थाय पयोनिधि जाताय लक्ष्मी सहोदराय चिन्तितार्थ सपादकाय श्रीदक्षिणावर्त शखाय श्री कराय, पूज्याय क्लो श्री ह्रो ॐ नम सर्वाभरणभूषिताय प्रशस्यायङ्गोपाङ्घसयुताय कल्पवृक्षाय स्थिताय कामधनु चिन्तामणिनव निधिरूपाय चतुर्दश रत्न परिवृताय अप्टादश महासिद्धि सहिताय श्री लक्ष्मी देवता श्री कृष्णदेव करतन लालिताय श्रीशख महानिधये नमः।
जप मन्त्र ॐ ह्री श्री क्ली ब्लू दक्षिण मुखाय शखनिधये समुद्रप्रभवाय शखाय नम । प्रतिदिन एक या दस माला फेरे । जप करने के बाद मन्त्र के साथ पानी आकाश की ओर छॉट दे।
गोरोचन कल्प मन्त्र :-ॐ ह्रीं हन हन ॐ ह्रीं हन ॐ ह्री ॐ ह्रां ह्री हो हा ठः ठः ठः स्वाहा । विधि -गोरोचन की टिकडी बनाये-२१ उपरोक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करके शुद्ध जगह
रख दे, जब भी जरूरत हो उपरोक्त मन्त्र से २१ वार अभिमन्त्रित करके प्रयोग मे लावे,
गुगुल का धूप खेवे। प्रयोग -१. ललाट पर तिलक कर राज्य सभा मे राज्य प्रमुख के पास व सरकारी किसी भी
कार्य के लिए जावे तो मनोकामना सफल हो । २. हृदय पर तिलक करके जहा भी जावे, तो मनोकामना सफल हो, किसी के पास
__ जावे, तो वश मे हो। ३. मस्तक पर तिलक करके जावे तो रास्ते मे सिह, व्याघ्र, चोर ग्रादि का भय .. मिटे, स्त्री-पुरुष सब वश हो, लोकप्रिय हो ।
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लघुविद्यानुवाद
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रुद्राक्ष कल्प भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णो के लोगो को रुद्राक्ष धारण करना चाहिये । उत्तम रुद्राक्ष असख्याय समूहो का भेदन करने वाला है । जाति भेद के अनुसार रुद्राक्ष चार तरह के होते है। ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । उन ब्राह्मणादि जाति के रुद्राक्षो के वर्ण श्वेत, रक्त पीत तथा कृष्ण जानना चाहिये। मनुष्यो को चाहिये कि वे क्रमश वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करे। जो रुद्राक्ष आवले के फल के बराबर होता है वह समस्त अनिष्टो का विनाश करने वाला होता है। जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह उतना छोटा होते हुए भी लोक मे उत्तम फल देने वाला तथा सुख, सौभाग्य वृद्धि करने वाला होता है । जो रुद्राक्ष गु जाफल के समान वहुत छोटा होता है वह सम्पूर्ण मनोरथो और फलो की सिद्धि करने वाला होता है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है वैसे-वैसे अधिक फल देने वाला होता है। एक-एक बडे रुद्राक्ष से एक-एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानो ने दस गुना अधिक फल देने वाला बतलाया है। अतः विघ्नो का नाश करने के लिये रुद्राक्ष धारण करना आवश्यक बताया है। रुद्राक्ष के समान फलदायिनी कोई भी माला नही है। समान आकार, प्रकार वाले चिकने, मजबूत, स्थूल, कण्टक युक्त (उभरे हुए छोटे-छोटे दानो वाला) और सुन्दर रुद्राक्ष अभिलम्बित पदार्थो के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले है। जिसे कीडो ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा न हो,
म उभरे हुए दाने न हो, जो वर्ण युक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो इन पाच प्रकार के शक्षा को त्याग देना चाहिये। जिस रुद्राक्ष मे अपने आप ही डोरा पिरोने योग्य छिद्र हो गया हो, उत्तम माना गया है, जिसमे मनुष्य के प्रयत्न से छेद किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता "रह सा रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैकडो वर्षों नहीं किया जा सकता, भक्तिमान पुरुष साढे पाच सौ रुद्राक्ष के दानो का सुन्दर मुकुट बनाले सिर पर धारण करे तीन सौ साठ दानो के लम्बे सूत्र मे पिरोकर एक हार वना ले । कार बनाकर भक्ति परायण पुरुष उनका यज्ञोपवीत तैयार करे और उसे यथा स्थान
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और उसे सिर पर धारण करे तीन सा र वैसे-वैसे तोन हार बनाकर धारण किये रहे।
हाथ मे, पन्द्रह की भुजा म, बी
कितने रुद्राक्ष की माला कहाँ धारण की जाये-छ रुद्राक्ष की माला कान मे, वारह की
पन्द्रह की भुजा मे, बाईस की मस्तक मे, सत्ताईस की गले मे, बत्तीस की कण्ठ मे (जिसन झूलकर वह हृय को स्पर्श करती रहे) धारण करनी चाहिये।
कानसा रुद्राक्ष कहां धारण करना चाहिये-छ. मुखा रुद्राक्ष दाहिने हाथ में, सान मुग्ग पाठ मुखा मस्तक मे, नौ मुखा बाये हाथ मे, चौदह मुखा शिखा मे, वारह मुखा बाल
कण्ठ मे.
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लघुविद्यानुवाद
रुद्राक्ष को केश प्रदेश मे धारण करना चाहिये । इसके धारण करने से आरोग्य लाभ, सात्विक प्रवृति का उदय, शक्ति का श्राविर्भाव और विघ्ननाश होता है ।
रुद्राक्ष के मुखों के अनुसार उसका फल निम्न प्रकार से है
( 1 )
एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात भोगोपभोग रूप फल प्रदान करना है । जहा इसकी पूजा होती है, जहा से लक्ष्मी दूर नही जाती । उस स्थान मे सारे उपद्रव नष्ट हो जाते है तथा वहा रहने वाले लोगो की सम्पूर्ण कामनाये पूर्ण होती है ।
(२) दो मुख वाला रुद्राक्ष देव देवेश्वर कहा गया है । वह सम्पूर्ण कामनाओ और फलो को देने वाला है । गर्भवती महिलाओ की कमर या वाह पर सूत से बाघ देने पर गर्भावस्था नौ महीने के अन्दर किसी भी प्रकार की बाधा, भय बेहोशी, हीस्टीरिया, डरावने स्वप्न आदि दोष नही होगे साथ मे एक रुद्राक्ष बिस्तर पर तकिये के नीचे एक डिबिया मे रख देना चाहिये ।
(३) तीन मुख वाला रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधन फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याये प्रतिष्ठित होती है, तीन दिन के बाद आने वाला ज्वर इसके धारण करने से ठीक हो जाता है ।
(४) चार मुख वाले रुद्राक्ष के दर्शन और स्पर्श से शीघ्र ही कार्य सिद्धि होती है एव सर्व पुरुषार्थी को सिद्धि देने वाला है ।
(५) पाच मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात् कालाग्नि रूप है, वह सब कुछ करने में समर्थ है, सब कष्ट से मुक्ति देने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है, उसके तीन दाने धारण करने से लाभ होता है ।
(६) छ मुखो वाला रुद्राक्ष यदि दाहिनी बाह उसे धारण किया जाये तो धारण करने वाला मनुष्य विद्याओ का स्वामी होता है और विघ्नो से मुक्त हो जाता है, यह विद्यार्थियो के लिये उत्तम है ।
(७) सात मुख वाला रुद्राक्ष अनग स्वरूप और अनग नाम से ही प्रसिद्ध है, उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्वर्यशाली हो जाता है । सभी रोगो का नाश होता है ।
(८) आठ मुख वाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव रूप है । उसको धारण करने से मनुष्य पूर्णायु होता है और मृत्यु के पश्चात् शूलधारी यक्ष हो जाता है ।
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लघुविद्यानुवाद
(8) नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव का प्रतीक माना गया है अथवा नौ रूप धारण करने
वाली माहेश्वरी दुर्गी उसकी अधिष्ठात्री देवी मानी गई है । जो मनुष्य अपने बाये हाथ मे
इसको धारण करता है वह सर्वेश्वर हो जाता है । (१०) दस मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात देव रूप है। उसको धारण करने से मनुष्य की
सम्पूर्ण कामनाये पूर्ण हो जाती है, वह भूत-प्रेत-बागाउँ तथा सभी प्रकार की बीमारियो को
हरण करने वाला है। (११) ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष रुद्र रूप है, उसको धारण करने से सर्वत्र विजयी होता है । इसे
पूजा-गृह अथवा तिजोरी मे मगल कामना के लिये रखना लाभदायक है, यह सबको
मोहित करने वाला है। (१२) बारह मुख वाले रुद्राक्ष को केश प्रदेश मे धारण करे, उसको धारण करने से मानो,
मस्तक पर आदित्य विराजमान हो जाते है। (१३) तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विश्व देवो का स्वरूप है, उसको धारण करके, मनुष्य सम्पूर्ण
अभीष्टो को पाता है तथा सौभाग्य और मगल लाभ प्राप्त करता है । (१४) चौदह मुख वाला रुद्राक्ष परम शिव रूप है, उसे भक्ति पूर्वक मस्तक पर धारण करे,
इससे समस्त पापो का नाश होता है। इस तेरह मुखो के भेद से रुद्राक्ष के मुख्यतः चौदह भेद बताये गये है। रुद्राक्ष धारण करने के मन्त्र निम्नलिखित रूप मे है१-४-५-१०-१३ इन पाचो का मन्त्र-ॐ ह्री नम है। २-१४ इन दोनो का मन्त्र-ॐ नम' है। ३-इसका मन्त्र-क्ली नम. है । ६-६-११ इन तीनो का मन्त्र-ॐ ह्री ह्र नम है। ७-८ इन तीनो का मन्त्र-ॐ हु नम है। १२-इसका मन्त्र-ॐ क्रौ क्षौ रौ नम है।
उपरोक्त चौदह ही मुखो वाले रुद्राक्षो को अपने-अपने मन्त्र द्वारा धारण करने का विधान है । रुद्राक्ष की माला धारण करने वाले पुरुष को देखकर भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा द्रोहकारी राक्षस आदि सर्व दूर भाग जाते है । एक मुखी रुद्राक्ष को साधने का मन्त्र :. श्री गौतम गणधर जी को नमः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं एक मुखाय भगवतेऽनुरूपाय सर्व युगेश्वराय त्रैलोक्य नाथाय सर्व काम फलं प्रदाय नमः ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि :-चैत्र शुक्ला अष्टमी को १०८ रक्त वर्ण के पुष्पो से पूजन करे। धूप, दीप, प्रसाद करे,
केशर, चन्दन कपूर का तिलक करे। प्रत्येक पुष्प पर एक मन्त्र पढे। फिर इसी तरह दीपावली के दिन करे तत्पश्चात् तिजोरी में रख दे या सोने मे मढाकर गले मे धारण करे।
एक मुखी रुद्राक्ष जिसका मूल्य ५-१० हजार तक भी हो जाता है। विशेष रूप से नकली आते है । लेते समय सावधानी रखनी चाहिये । किसी विज्ञ व्यक्ति से पहचान करवाकर लेना चाहिये।
वहेड़ा कल्प ___ शनिवार की सध्या को वृक्ष के पास जावे, “मम कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा" इस मन्त्र का उच्चारण करे, चन्दन, चावल, पुष्प, नैवेद्य, धूप, दीप द्वारा उसका पूजन करे व मोली बाधकर आ जावे । दूसरे रोज रविवार पुष्य नक्षत्र के दिन सूर्योदय से पहले जावे और निम्नलिखित मन्त्र पढकर मूल व पत्ते ले आवे। मन्त्र :-ॐ नमः सर्व भूताधिपतये ग्रस शोषय भैरवीञ्चाज्ञापयति स्वाहा ।
घर पर लाकर पचामृत से धोकर अच्छी तरह स्थापना कर, उपरोक्त मन्त्र मे फिर अभिमन्त्रित करना चाहिये तत्पश्चात् प्रयोग में लाया जा सकता है। जैसे .- (१) दाहिनी जाघ के नीचे रखकर भोजन करे, तो अपनी खुराक से बीस गुना ज्यादा
भोजन कर सकता है। (२) तिजोरी मे रखे तो अटूट भण्डार रहे।
निर्गुण्डी कल्प विधि -रात्रि के समय अकेला निर्गुण्डी वृक्ष के पास जावे और २१ प्रदक्षिणा निम्नलिखित मन्त्र
को बोलते हुए सात रात्रि तक बराबर दे, तो वृक्ष सिद्ध हो जाता है। मन्त्र -~-ॐ नमो गौतम गणेशाय कुबेरये कद्रि के फट् स्वाहा ।
तत्पश्चात् सातवे रोज वृक्ष का पचाग ले आवे । फिर धूप दीप से पूजन करे । पचामृत से धोकर शुद्ध जगह रखकर उपरोक्त मन्त्र की एक माला से अभिमन्त्रित कर निम्नलिखित प्रयोगा से
काम ले। जैसे .-(१) पुष्य नक्षत्र मे निगुण्डी और सफेद सरसो, दुकान के द्वार पर रसी जाये, तो अच्छा
क्रय-विक्य होता है।
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(२) वृक्ष की छाल का चूर्ण, जीरे का चूर्ण समभाग आठ दिन तक सेवन करने से हर
प्रकार का ज्वर दूर हो जाता है। (३) एक महीने तक सेवन करने से भूमिगत द्रव्य दिखाई देता है । (४) चालीस दिन तक सेवन करने से आयुष्य मे वृद्धि होती है। (५) पचास दिन तक सेवन करने से शरीर मे अत्यन्त वल बढता है । मृत्यु पर्यन्त ___ निरोग रहता है, इसका सेवन करते समय हल्का भोजन, खिचडी आदि खाना चाहिये।
हाथा जोड़ी कल्प शुभ दिन शुभ योग मे ले, निम्नलिखित मन्त्र का १२५०० जाप करके इसको सिद्ध कर ले। मन्त्र :-ॐ किलि किलि स्वाहा । योग -(१) किसी भी व्यक्ति से वार्ता करने मे साथ रखे, तो बात माने ।
(२) जिसको भी वश करना हो उसका नाम लेकर जाप करे तो इसके प्रभाव से वह
व्यक्ति वशीभूत होगा। (३) प्रयोग के बाद चादी की डिबिया मे सिन्दूर के साथ रखे ।
विजया कल्प इसका भिन्न-भिन्न मास मे भिन्न-भिन्न अनुपान से सेवन करने से अलग-अलग फल है जो निम्न प्रकार से है -
(१) चैत्र मास में पान के साथ खाने से पंडित वने । (२) वैशाख मास मे अकलकरा के माथ खाने से जहर नही चढेगा । (३) ज्येष्ठ मास मे नीबू से खाने से, तावे के से रग का शरीर ।। (४) आषाढ मास मे चित्र बल से खाने से, केश कल्प हो । (५) श्रावण मास शिवलिगी से खाने से, बलवान बने । (६) भाद्र मास मे रुदवंती से खाने से, सबका प्रिय होता है। (७) अश्विन मास मे माल कागनी से, खाने से, अमरी उतरे स्वस्थ हो । (८) कार्तिक मास मे बकरी के दूध के साथ खाने से, सभोग शक्ति बढे । (६) मार्ग शीर्ष मास मे गाय के घृत के साथ खाने से, दृष्टि दोप मिटे ।
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लघुविद्यानुवाद
(१०) पोष मास मे तिलो के साथ खाने से जल के भीतर की वस्तु भी दृष्टिगोचर हो। (११) माघ मास मे मोथा की जड के साथ खाने से शक्तिशाली हो। (१२) फाल्गुन मास मे प्रावला के साथ खाने से पैदल यात्रा की शक्ति बढे ।
यक्षिणी कल्प (१) विचित्रा (२) विभ्रमा (३) विशाला (४) सुलोचना (५) वाला (६) मदना (७) धूम्रा (हसनी) (८) मानिनी (8) शतपत्रिका (१०) मेखला (११) विकला (१२) लक्ष्मी (१३) काल करणी (१४) महाभय (१५) महिन्द्रीका (१६) श्मसानी (१७) वट यक्षिणी (१८) चन्द्रिका (१६) चक्रपाली (घटा कणि) (२०) भीषणा (२१) जनरजिका (२२) विशाला (२३) शोभना तथा (२४) शखिनी। विचित्रा-मन्त्र :-ऐं विचित्र विचित्र रूपे सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा । विधि :-वट वृक्ष के नीचे एक लाख जाप करने से, विचित्रा नामक यक्षिणी सिद्धि होती है। प्राप्ति :--अजरामरत्व का वरदान देती है। विभ्रमा-मन्त्र :-ॐ ह्रीं भर भर स्वाहा । विधि --एक लाख जाप करे तथा तीन कोनो का यज्ञ कुण्ड बनाकर उसमे दुग्ध, घृत व शक्कर की
चासनी से दशास हवन करे तो विभ्रमा नामक यक्षिणी सिद्ध होती है। प्राप्ति -साधक के स्त्री रूप मे रहती है तथा चितित अर्थ देती है। विशाला-मन्त्र : ऐं विशाले ह्रीं ह्रीं क्ली एहि एहि हां विभ्रम भुये स्वाहा । विधि --श्मसान मे दो लाख जाप करे । गुग्गल व घृत का दशास हवन करे । प्राप्ति - साधक के स्त्री के रूप मे रहे। ५०० व्यक्तियो तक का भोजन दे । साधक अन्य स्त्री के
साथ सगम न करे। सुलोचना-मन्त्र :-ॐ लै लै सुलोचने सिद्ध देहि देहि स्वाहा । विधि .-पर्वत पर या नदी के किनारे तीन लाख जाप करे । घृत से दशास हवन करे, तो सुलोचना
नामक यक्षिणी सिद्ध हो। प्राप्ति -आकाश गामिनी दो पादुकाये भेट करे । जिससे जहा चाहे जा सके। मदना-मन्त्र-ऐं मदने मदन बिटबिनी आत्मीय मम देहि २ श्री स्वाहा । विधि -राज द्वार पर एक लाल जाप करे तथा जाति पुप्प व दूध से दणास हवन करे तो मदना
नामक यक्षिणी सिद्ध हो ।
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OupMRAHARAMGEMIUMIRMIRMIRMIRPrarupiaudharmaamiMIRMImmmmm
प्राप्ति --एक गुटिका भेट करे, जिसे मुह मे रखने से अदृश्य हा जाने को शक्ति प्राप्त होती है। मानिनी-मन्त्र :-ऐ मानिनी ह्रीं ऐहि-ऐहि सुन्दरी हस-हस सहीम मे सगमकं स्वाहा । विधि :-जहा चौपाये जानवर रहे वहा बैठकर १,२५,००० जाप करे व लाल फूल व तीन
मधुर वस्तुप्रो से दशास होम करे, तो मानिनी नामक यक्षिणी सिद्ध हो। प्राप्त :-साधक के पास स्त्री रूप मे आकर उससे सभोग करे। उसके बाद एक तलवार भेट
दे जिससे वह विद्याधर बनने की शक्ति प्रात्त करे । हंसिनी-मन्त्र :-हंसिनी हंसयनि वली स्वाहा । विधि -नगर द्वार पर एक लाख जाप करे व कमल पत्र से दशास हवन कर तो हसिनी नामक
यक्षिणी सिद्ध हो। प्राप्ति -साधक को अजन भेट करे, जिससे पृथ्वी के अन्दर की वस्तुये देखी जा सके । शतपत्रिका-मन्त्र :-शतपत्रिके हां ह्रीं ध्वीं स्वाहा । विधि -वट वृक्ष के नीचे एक लाख जप करे व घत से दशास हवन करे, तो शतपत्रिका नामक
यक्षिणी सिद्ध हो। प्राप्ति :-पृथ्वी मे गडे खजाने को बताये । मखला-मन्त्र : -ह्र मन मेखले ग ग ही स्वाहा । बाध -पलाश वृक्ष के नीचे १४ दिन तक जाप करे, तो मेखला नामक यक्षिणी सिद्ध हो। प्राप्ति -प्रतिदिन ५०० रुपये तक भेट दे। विकला-मन्त्र :-विकले ऐ ह्रीं श्री ह्रस्वाहा ।
धि -घर मे तीन मास तक जाप करे, तो विकला नामक यक्षिणी सिद्ध हो । प्राप्ति -अणिमा (छोटा होना) आदि विद्या दे। लक्ष्मी-मन्न .-ए कमले कमल धारिणी हंस स्वाहा ।
-~लाल कनेर के फलो से एक लाख जाप करे। कुण्ड मे गुग्गुल से दशास हवन करे ।
इससे लक्ष्मी नामक यक्षिणि सिद्ध हो । प्राप्ति .-पाच विद्या दे तथा मनवाछित धन दे । कालकारण-मन्त्र-को कालणिके ठः ठः स्वाहा ।
'ब्रह्म वृक्ष के नीचे एक लाख जाप करे, मध-मिश्रित दशास हवन कर तो कालकणि नामक
यक्षिणी सिद्ध हो।
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विध -लाल कनेर
विधि -ब्रह्म वृक्षक
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लघुविद्यानुवाद
प्राप्ति -सैन्य स्तम्भन, अग्नि-स्तम्भन, मधु-स्तम्भन तथा गर्भ-स्तम्भन की विद्या दे। महाभय-मन्त्र :-- ह्रीं महाभय एहिं स्वाहा । विधि --श्मसान मे जहा मुर्दा 'जलाया गया हो, वहा बैठकर एक लाख जाप करे तो महाभय
नामक यक्षिणी सिद्ध हो। प्रा.प्त -रसायन दे, जिसके खाने से वृद्धावस्था नही पाये व वृद्धावस्था हो तो युवा हो जाये। माहिन्द्रि-मन्त्र :-माहिन्द्री कुल-कुल युल युल स्वाहा । विधि :-इन्द्र धनुष के उदय के समय निर्गुण्डी वक्ष के नीचे बैठकर १२,००० जाप करे, तो
माहिन्द्री नामक यक्षिणी सिद्ध हो । प्राप्ति –आकाश गामिनी, पाताल गमिनी, नगर प्रवेश, वचन सिद्ध, देव, भूत, प्रेत, पिशाच,
शाकिनी, बेताल, सोटिग, आदि को दूर करने की शक्ति दे। श्मसानी-मन्त्र -ह्रां ह्रीं स्युः श्मसान वासिनी स्वाहा । विधि - श्मशान मे नग्न होकर ४ लाख जाप करे, तो श्मसानी नामक यक्षिणी सिद्ध हो । प्राप्ति .-एक पट्ट दे, जिससे अदृश्य होकर तीनो लोको मे घूम सके । वट्यक्षिणी मन्त्र -ऐं कपालिनी हां ह्रीं क्लीं ब्लू हस हम्बली फुट् स्वाहा । विधि :-वट वृक्ष के नीचे बैठकर चादमी रात मे तीन लाख जाप करे, तो वट नामक यक्षिणी
सिद्ध हो। प्राप्ति .-साधक की स्त्री के रूप मे रहकर वस्त्र, अलकार, स्वर्ण, गन्ध व पुष्प आदि दे । चन्द्रिका-मन्त्र :-ॐ नमो भगवती चन्द्रिकाय स्वाहा । विधि -शुक्ल पक्ष की रात्रि मे एक लाख जप करे, तो चन्द्रिका नामक यक्षिणी सिद्ध हो । प्राप्ति .-अमृत रसायन दे, जिससे हजार वर्ष तक जीवित रहने की शक्ति प्राप्त हो । घंटारिण-मन्त्र :-ऐं घंटे पुर क्षोभय राजा नाम क्षोभय क्षोभय भगवती गंभीर
श्वरप्ली स्वाहा। विधि :-बजते हुए घण्टे के साथ बीस हजार जाप करे, तो घटाकरिण यक्षिणी सिद्ध हो । प्राप्ति -इतनी शक्ति दे कि पूरे नगर को भयभीत कर सके। . भीषणा -जनरजिका विशाला। मन्त्र :-भीषणा क्षपेत माता छिते चिरं जीवितं कर्मव्या, साधकेन भगिन्या जनरंगिनी
कालोजन रंगि के स्वाहा ।
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लघुविद्यानुवाद
विधि ---एक लाख जाप से भीपणा सिद्ध हो जायेगो। उसके सिद्ध होने से जनर जिका सिद्ध हो
जायेगी। ५० हजार और अधिक जाप से विशाला सिद्ध हो जायेगी। प्राप्ति :-विशाला स्त्री के समान तथा जनरजिका, दासी के समान रहेगी तथा भीषणा इन दोनो
के पच की स्थिति मे रहेगी। शोभना-मन्त्रः-ॐ अशोका पहलवा काटकर तले श्री क्षः स्वाहा । विधि :-लाल वस्त्र व माला से तानो समय १४ दिन तक जाप करे, तो शोभना नामक यक्षिणो
सिद्ध हो। प्राप्ति :-साधक की स्त्री के समान रहेगी। शाखनी मन्त्र :-ॐ शख धारिणो शंखा भरणे हां ह्रीं क्लीं ग्लीं श्रीं स्वाहा । विधि :-सूर्योदय के समय शख माला से १० हजार जाप करे, कनेर के फूल, सफेद गाय के घृत
तथा आठ प्रकार के धान्य सहित दशास हवन करे, तो शखिनी नामक यक्षिणो सिद्ध हो। प्राप्ति :-अन्न व पाच रुपये प्रतिदिन दे।
रत्न, उपभोग, फल व विधि भारत मे भिन्न-भिन्न ग्रहो की दशा मे भिन्न-भिन्न रत्नो को धारण करने का विधान है । इस सम्बन्ध मे निम्नाकित बाते विशेष रूप से ज्ञातव्य है। माणिक्य (मानिक) कौन धारण करें -माणिक्य सूर्य का रत्न है। यदि किसी के जन्म के समय
__ सूर्य अनिष्टकारी हो तो उसे माणिक्य धारण करना चाहिये। पारण विधि -कम से कम तीन रत्ती का माणिक्य होना चाहिये। अपने जन्म मास की १, ६,
१० या २८वी तारीख को या रविवार को प्रात काल ग्रीवा, भुजा या अगुली मे इसे धारण किया जाता है। लालडी (सूर्य मणि) को भी चादी मे जडवाकर रविवार को
मध्यान्ह मे धारण किया जाता है। माणिक्य को धारण करने का निम्नलिखित मन्त्र है -
ॐ प्राकृष्णेन रजसा वर्तमानों निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च ।
हिरण्येन सविता रथेनादेवो याति भुवनानि पश्यन् ।। माता कान धारण करें:-मोतो चन्द्रमा का रत्न है। यदि किसी को जन्म के समय चन्द्रमा निबन
है तो उसे मोती धारण करना चाहिये।
amwamyreemadeसाता
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लघुविद्यानुवाद
धारण विधि :-२, ४, ६, ११ रत्तो का मोतो होना चाहिये । ७ या ८ रत्ती का मोतो नही पहनना
चाहिये । मोती को चादी मे जडवाकर शुक्ल पक्ष, सोमवार को सध्या के समय ग्रीवा, भुजा या अगुली मे धारण करना चाहिये। इसे धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है -- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्येष्ठाय महते जान राज्यायेन्द्र स्येन्द्रियाय, इम मनुष्य पुत्र ममुष्य पुत्रमष्यै विष एष वोडमी
राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा । मू गा कौन धारण करे.-मू गा मगल ग्रह का रत्न है। अत मगल ग्रह की दशा मे इसे धारण
करना चाहिये। धारण विधि .-जन्म कुण्डली मे मगल ग्रह ४, ८ या १२ वे स्थान पर हो तो ८ रत्ती का मू गा,
सोने की अगूठी मे पहनना चाहिये । चन्द्र मगल के योग मे चादी मे, मू गा जडवाकर पहनना चाहिये । ५ या १४ रत्ती का मूगा कभी नही होना चाहिये । मगलवार के दिन सूर्योदय से एक घण्टा पश्चात् ग्रीवा, भुजा या तीसरी अगुली मे इसे धारण करना
चाहिये। इसे धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है -
ॐ अग्निर्द्धा दिवः ककुत्पत्तिः पृथिव्या अयम् ।
अपा रेतासि जिन्वति । पन्ना कौन धारण करे :-पन्ना बुध ग्रह का रत्न है । अत बुध की दशा मे ५ के रेट का पन्ना धारण
करना चाहिये। धारण विधि --पन्ने को स्वर्ण मे जडवाकर अपने जन्म मास की ५, १४ या २३ तारीख को या
वुधवार के दिन सूर्योदय के दो घण्टे पश्चात् ग्रीवा, भुजा या मध्यमा अंगुली मे धारण
करना चाहिये। इसे धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है :
ॐ उदबुध्यस्वातने प्रति जाग्रहित्व मिष्टापूत संसृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थे
अध्युकेरस्मिन् विश्वेदेवा यजमान सीदत्त । पखराज पौन धारण करे -पुखराज गुरु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है । गुरु की दशा मे पुखराज धारण
करना चाहिये।
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लघुविद्यानुवाद
धारण विधि
- ७ या १२ कैरेट का पीला पुखराज सोने की अगूठी मे जडवाकर गुरुवार को साय सूर्यास्त से एक घण्टे पूर्व ग्रीवा, भुजा या तीसरी प्रगुली में धारण करना चाहिये । ६, ११, १५ रत्ती का पुखराज कभी धारण नही करना चाहिये । इसे धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है.
ॐ बृहस्ते प्रति यदि श्रद्य मद्विभाति क्रतुमज्जनेषु । यद्दीयच्छवश ऋतप्रजात तदस्मामु दु विणं धेहि चित्रम् |
हीरा कौन धारण करे - हीरा शुक्र ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है । शुक्र की दशा मे हीरा धारण
करना चाहिये ।
धारण विधि - शुक्रवार की प्रात ग्रीवा, भुजा या प्रगुली में धारण करना चाहिये । इसे धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है :
६७३
ॐ अन्नात् परिस्तों रसं ब्रह्मणा व्यपिवत्
क्षत्रं पयः सोमं प्रजापितः ऋतेन सत्यमिन्द्रियं
विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोमृतं मधु ।
नीलम कौन धारण करे नीलम शनि ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। शनि की दशा मे नीलम धारण करना चाहिये ।
धारण विधि :- ५ या ७ रत्ती का नीलम धारण करना चाहिये । शनिवार को सूर्यास्त से दो घण्टे से पहले से ४० मिनट बाद तक इसे एक नीले कपडे मे बाधकर भुजा पर धारण कर, तीन दिन परीक्षा करनी चाहिये । यदि ग्रनुकूल सिद्ध हो, तो धारण किये रहना चाहिये । हृदय पर धारण करने से यह उसे शक्ति प्रदान करता है ।
इसे धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है
ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु, पीतये गंयो रस्त्रिवन्तु नः ।
गोमेद कौन धारण करे :- गोमेद, राहु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है । राहु की दशा में चार करने से लाभ होता है ।
धारण विधि :- गोमेद ६, ११ या १३ कैरेट का होना चाहिये । ७१० या १६ रन का कभी नही होना चाहिये | इसे धारण करने का समय नदी
तक है।
गोमेद धारण करने का निम्नांकित मन्त्र है
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ॐ कवानचित्र ग्राभुव दूती सदा वृधः सखा या चिया वृता ।
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६७४
लघुविद्यानुवाद
लहसुनिया कीन धारण करे -लहसुनिया, केतु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। केतु की दशा मे इसे
__धारण करना लाभप्रद है। धारण विधि -३, ५ या ७ कैरट का लहसुनिया धारण करना चाहिये । २, ४, ११ या १३ रत्ती
का निपिद्ध है । इसको चादी मे जडवाकर अर्द्ध रात्रि मे धारण करना चाहिये। लहसुनिया को धारण करने का निम्नाकित मन्त्र है - ॐ केतुं कृप्वन्न केतवे पेशोमा अयेषसे । समुद्धिरजायथा. ।
॥०॥
श्वेतार्क कल्प विधि :-शनिवार के दिन वृक्ष के पास न्योता देने जाये तो सर्वप्रथम "मम कार्य सिद्धिं कुरु कुरु
स्वाहा" यह मन्त्र वृक्ष के सामने हाथ जोडकर बोले और चन्दन, चावल, पुष्प, नैवेद्य से पूजन करे, धूप दे और मोली बाधकर आ जाये। दूसरे रोज रवि पुष्य नक्षत्र को सुबह से पहले २ वृक्ष के पास नहा धोकर शुद्ध वस्त्र पहनकर जाये और निम्न मन्त्र बोलकर
वृक्ष को जड को घर ले आवे । जड पूर्व या उत्तर की और मुह करके लेनी चाहिये । मन्त्र :-ॐ नमो भगवते श्री सूर्याय ह्रां ह्रीं ह्र ह्रः ॐ संजु स्वाहा ।
इस मन्त्र से मूल को लाकर पचामृत से धोकर ऊँचे व शुद्ध स्थान पर रख दे, तत्पश्चात् पुष्य नक्षत्र रहने उस जड से भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति बनावे व निम्नलिखित मन्त्र से पूजा करे । इससे श्री गौतम गणधर जी की मूर्ति भी बनाई जाती है व गणेश जी की भी। मन्त्र :-ॐ नमो भगवति शिव चक । मालिनी स्वाहा।
उपरोक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर फिर किसी भी कार्यवश साथ में लेकर जाये तो अवश्य सफल हो । इस सम्बन्ध मे निम्नाकित बाते और ज्ञातव्य है -
(१) जहा सफेद आक होता है कहते है कि वहा आसपास गडा हुआ धन होना चाहिए। (२) सातवी ग्रथि मे ऐसी गाठ पडती है कि उससे गणेशजी की स डवालो आकृति बनती है।
यदि दक्षिणावर्ती सू डवाली प्राकृति के श्रीगणेश मिल जाये, तो बहुत चमत्कारी
होती है। (३) पुरुष के दाहिने हाथ और स्त्री के बाये हाथ मे इसे बाधने से सौभाग्य व लाभ होता है।
ऐसा माना जाता है।
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लघुविद्यानुवाद
६७५
-
(४) वध्या स्त्री की कमर मे बाधने से सन्तान की प्राप्ति होती है। (५) मूल को ठण्डे पानी मे घिसकर लगाने से विच्छ आदि का जहर व हर प्रकार का जहर
उतरता है। (६) मूल मे गोरोचन मिलाकर गुटिका कर तिलक करे तो सर्वजन वश हो । (७) यह मूल वच, हल्दी तीनो बराबर मिलाकर तिलक करे, तो अधिकारी वश मे हो। (८) मूल, गोरोचन, मैनासिल भृ गराज चारो मिलाकर तिलक करे, तो अधिकारी वश
मे हो। (६) मूल, हल्दी, कुट (लाज कुरी) स्वरक्त से भोज-पत्र पर लिखकर हाथ मे बाधे, सर्वजन
वश हो। (१०) मूल, वीर्य, भृगराज मिलाकर अजन करे, तो अदृश्य हो। (११) मूल का मेघा नक्षत्र मे कस्तूरी मे अजन करे, तो अदृश्य हो। (१२) मूल का वच के साथ घिसकर हाथ के लेप करे, तो हाथ नही जले । (१३) मूल को छाया मे सुखाकर, चूर्ण कर घृत के साथ आधा रत्तो की मात्रा में खाने से भूत,
प्रेत दूर होते है। स्मरण शक्ति बढती है । देह को काति कामदेव के समान हो जाती
है । ४० दिन थोडी मात्रा मे सेवन करे। उष्णता का अनुभव हो, तो छोड़ दे। पचांग .-फल, फूल, जड, पत्ते व छाल को पचाग कहते है । पचामैल.-कान, दात, पाख, जिह्वा और स्ववीर्य को पाच प्रकार का मैल कहते है। मूल -किसी भी पेड की जड को मूल कहते है । बदा .-एक वृक्ष पर दूसरा वक्ष निकल आता है। उसे बदा कहते है। उस वृक्ष की गाठ लेना
चाहिए।
अपनी मा का नाम कागज पर लिखकर, मस्तक के नीचे दबाकर सोने से स्वप्न दोष कभी नहीं होता है और यह रोग मिट जाता है ।
काले धतूरे की जड ६ मासा प्रमाण चूर्ण कर कमर मे बाधने से, स्वप्न दोष कभी नही __ होता है और बवासीर रोग ठीक होता है ।
ह्रीं कार कल्प
सवर्ण पार्श्व लय मध्य सिद्ध मधिश्वरं भास्वर रूप भासम । खन्डेन्द्र बिन्दु स्फुट नाद शोभ, त्वां शक्ति बीजं प्रमना प्रणौमि ॥१॥
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६७६
लघुविद्यानुवाद
अर्थ
अर्थ
~जिसके पार्श्व मे (स) वर्ण है (ऐसा, 'ह') 'ल' और 'य' के मध्य मे सिद्ध विराजमान है । ऐसा, 'र' उसके अन्दर 'इ' स्वर है जिसको कान्ति दैदिप्यमान सूर्य के जैसी है, और जो अर्थ चन्द्र (कत) विन्दु और स्पष्ट नाद से शोभा पा रहा है। ऐसा यह शक्ति बीज है। मै तुमको उल्लासपूर्वक मन मे भाव मूवक स्तुति करता हू नमन करता हू ।।१।। ह्रीं कार मेकाक्षर मादि रूपं, मायाक्षरं कामद मादि मंत्रम् । त्रैलोक्य वर्ण परमेष्ठि बीज, विज्ञाः स्तुवन्तीशभवन्त मित्यम् ॥२॥ -हे ईश ह्री कार आपकी विद्वान पुरुष ह्री कार, एकाक्षरी, आदि रूप मायाक्षर कामद,
आदि मन्त्र, त्रैलोक्य वर्ण और परमेष्टि बीज, ऐसे विशेपणो से स्तुति करते हैं ।।२।। शिष्यः सुशिक्षा सु गुरोर वाप्य, शुचिर्वशी धीर मनाश्च मौनी । तदात्म बीजस्य तनोतु जाप मुपांशु नित्यं विधिना विधिज्ञः ॥३॥ -सद्गुरु के पास पूर्ण प्राज्ञा प्राप्त करके, विधि को जानने वाले शिष्य को पवित्र होकर, सर्व इन्द्रियो को वश मे कर पूर्ण रूप से, मन मे धैर्य धारण कर, मौन रखकर इस आत्म बीज ही कार का विधियुक्त उपाश जाप नित्य करना चाहिए ॥३॥
अर्थ
विशेष -ह्री कार के जाप व ध्यान करने वाले को प्रथम गुरु से आज्ञा प्राप्त करनी चाहिए।
फिर स्वय पूर्णरूपेण शुद्ध होकर धैर्यपूर्वक इन्द्रियो को वश मे करता हुआ मौन से उपाशु जाप करे। जाप करने के पहले सकलीकरण करना परम आवश्यक ह । यहा उपाशु जाप का अर्थ है कि बिना वोले मन्त्र पढना, जिसमे होठ हिलते रहे । जाप १ लक्ष करना चाहिये । जाप करने का स्थान श्वेत खडी से रगा हुआ मकान हो, सफेद ही कपडा हो, सफेद ही अन्न का भोजन करे, सफेद ही माला हो, जाप करने वाले को अपने शरीर मे सफेद चन्दन का विलेपन करना चाहिये । पक्ष भी शुक्ल हो, पहले एक ताम्रपत्र अथवा सोना, चादी या कासे के ऊपर ही कार खुदवा ले, फिर ह्री कार यत्र का पचामृत अभिषेक करके, उत्तमोत्तम अष्ट द्रव्यो' से पूजा करे, फिर ॐ ह्री नम की आराधना शुरू करे । जाप करने वाले को एकासन अथवा उपवास करना जरूरी है । उपवास कृष्णपक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी को करके विद्या पाराधना करे, शुक्ल पक्ष मे भी कर सकते है। षट्कर्मो के लिये कोष्ठक को देख लेवे । उपवास करने वाले साधक को दस हजार जाप से भी विद्या सिद्ध हो जाती है। विद्या सिद्ध हो जाने के बाद इस
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अर्थ
लघुविद्यानुवाद
अर्थ
माया बीज ही कार को कौन-कौन कार्य के लिये किस-किस वर्ण का ध्यान करना चाहिये सो कहते है । ( 'सफेद रंग का ह्री' का ध्यान करने का फल 1 त्वचिन्तयन् श्वेत करानुकारं, जोत्स्नामयों पश्यतियस्त्रि लोकोत्मा । (म ) श्रयन्ति तंतत्क्षणतोऽनवद्य विद्या कला शान्तिक पौष्टि कानि ||४|| - चन्द्रमा के समान उज्ज्वल ही का ध्यान करने वाले को सर्व विश्वाए, सर्व कलाए और शातिक पौष्टिक कर्म तत्क्षण सिद्ध हो जाते है । जो ह्री को तीनो लोक मे प्रकाशमान होता हुआ ध्यान करता है और शुक्लवर्ण का ध्यान करता है उसकी विपत्ति का नाश होता है । अनेक रोगो का नाश, लक्ष्मी और सौभाग्य की प्राप्ति, बन्धन से मुक्ति, नये काव्य की रचना शक्ति प्राप्त होती है । नगर मे क्षोभ पैदा करना व सभा मे क्षोभ पदा करने की शक्ति और आज्ञा ऐश्वर्यफल की प्राप्ति होती है ||
अर्थ
रक्त ह्रीं कार के ध्यान का फल
त्वामेव बाला रुरगडमण्ड लाभं स्मृत्वा जगत् त्वत्कर जाल प्रदीपम् । विलोक तेयः किल तस्य विश्वं विश्वं भवेदवश्यम वश्यमेव ॥ ५ ॥
६७७
- हे ही कार तुम उदित हुए बाल सूर्य की कान्ति के समान अरुण हो । आापके अरुण मण्डल मे सारा ससार विहिन है । जो इस रूप मे आपका ध्यान करता है उसके वश मे समस्त ससार प्रवश्य हो जाता है । अन्य प्राचार्यो के मतानुसार लाल वर्ण के हा कार का ध्यान करने से सम्मोहन, आवर्षण और प्रक्षोभ भी होता है ||५|| स्त्री आकर्षण के लिए मध्य मे ध्यान करना ।
पीतवरण ह्रीं कार के ध्यान का फल
यस्तप्तचामी कर चारु दीपं, पिङ्ग प्रभं त्वां कलयेत् समन्तात् । सदा मुदा तस्य गृहे सहल, करोतिकेलि कमला चलाऽपि ॥६॥
- जो पीले कान्ति सहित तुमको तप्त सुवर्ण के समान सुन्दर सर्वत्र प्रकाशमान ध्यान करता है उसके घर मे चलायमान लक्ष्मी भी प्रानन्द और लीला सहित कोड़ा करती है । वह स्तम्भन कार्य और शत्रु के मुख बन्धन मे उत्तम कार्य करता है || ६ ||
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६७८
लघुविद्यानुवाद
श्याम वर्ण ह्रीं के ध्यान का फल
अर्थ
यश्यामलं कज्जलमेचकाभ, त्वां वी क्षतेवा तुष धम धुम्रम् । विपक्ष पक्षः खलु तस्यवाता, हतऽभ्रवद्या त्यचिरेरण नाशम् ॥७॥ --जो साधक ही कार मायावीज को काला काजल के समान श्याम वर्ण रूप अथवा छिलके के धुश्रा के समान ध्यान करता है उसके शत्रु समूह क्षण भर मे नाश को प्राप्त हो जाते है। जैसे पवन से मेघ विखर जाते है। नि सन्देह शत्रु को मरण प्राप्त वरा देता है। और नील वर्ण का (ही) तुम्हारा ध्यान करने स विद्वषण और उचाटन करता है ।।७॥
कुडली स्वरूप ह्रीं के ध्यान का स्वरूप
श्राधार कन्दोद्गत तन्तु सूक्ष्म लक्ष्यद्भवं ब्रह्म सरोज वासम् ।
योध्यायति त्वां स्त्रंव बिन्दु बिम्बा मृतं स च स्यात् कवि सर्व भौमः ॥८॥ अर्थ :-जो मूलधार कन्द मे से निकलता हुआ तन्तु के समान सूक्ष्म सुषुम्ना नाड़ी मे रहने वाले
लक्ष्यो (चक्रो) को भेद कर ऊपर जाता हुआ अन्त मे सहस्रार कमल मे रह स्थिर होकर वहा चन्द्रमा के बिम्ब के समान अमृत झर रहा हो ऐसा ही कार माया बीज का ध्यान करता है वह साधक कवियो मे श्रेष्ठ चक्रवति होता है ।।८।। फल श्रति षड् दर्शनि स्व स्व मतावलेपः, स्वे देवते त (त्व) न्मय बीज मेव । व्यात्वा तदाराधन वैभवेन, भवेद जेयः परिवारि वन्दैः ॥६॥ -षड्दर्शन के जानकार अपने-अपने इष्ट देवता ह्री कार बीज का ध्यान करके वे
आराधना के वैभव से प्रविष्ट होकर वादियो के समूह से अजेय बन जाते है। ऐसा इस माया बीज का अतिशय है। कि मन्त्रयन्त्रविविधागमोक्तैः । दुःसाध्यसं शीतिफला ल्पत्गर्भ ॥ सुसेव्यः वः ( सद्यसुसेव्य ) फलचिन्तितार्थाधिकप्रदश्चसिचेत्वमेकः ॥१०॥
अर्थ
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लघुविद्यानुवाद
६७६
अर्थ :-साधक के हृदय मे एक ही कार अगर विद्यमान है, तो अन्य यन्त्र मन्त्र जिनका कि
अल्पफल है और दू साध्य है, ऐसे मन्त्रो अथवा यन्त्रो का क्या प्रयोजन है। अन्यत्र प्रागम मे जिनका वर्णन है ।।१०॥ चौरारि-मारि-ग्रह-रोग, लता, भूतादि दोषा नल बन्ध नोत्थाः ।
भियः प्रभावात् तव दूर मेव, नश्यन्ति पारीन्द्ररवारि वेभा ॥११॥ मर्थ .- जसे वनराज सिह की गर्जना से हाथी दूर भाग जाते है, वैसे ह्रो कार तुम्हारे प्रभाव
से चोर, गागु मारी, ग्रह, रोग, ह्रता रोग तथा भूत, व्यतर, राक्षस, प्रेत, डाकिनी, शाकिनी, पिशाचादि दोष और अग्नि तथा बन्धन से उत्पन्न होने वाले भय दूर हो
जाते है ।।११।।
प्राप्नोत्यपुत्रः सुतमर्थहीनः श्री दायते पतिरपीतवीह ।
दूखी सुखी चाऽथ भवेन्न कि कि, त (त्त) पचिन्ता मरिचितनेन ॥१२॥ अर्थ -चिन्तामणि समान तुम्हारे रूप का चितन करने से क्या-क्या प्राप्त नहीं होता?
जिसको पुत्र नहीं है उसको पुत्र की प्राप्ति होती है, जिसके पास लक्ष्मी नही है उसको लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। सेवक भी स्वामी बनता है, दुखी भी अत्यन्त सुखी
होता है ॥१२॥ विशेष :-इस ही कार को साधक सावन ध्यान से निरालबन ध्यान करे फिर निरालवन
ध्यान से से पराश्रित ध्यान करे, उसके बाद उल्टा पराश्रित ध्यान मे से निरालवन और निरालबन मे से सालवन ध्यान करे, इस प्रकार ध्यान करने से अनेक सिद्धिया प्राप्त हो जाती है । सालबन वाह्य पर आदि आलबन सहित ध्यान ।। निरालवन-बाह्य प्रालबन बिना केवल मन के द्वारा ही कार की आवत्ति का ध्यान करना । पराश्रित हो कार से वाच्य ऐसे परमात्मा के गुणादि का ध्यान करना। पुष्पादि जापामतहोम पूजा, क्रिया धिकारः सकलोऽस्तुदूरे । य केवल ध्यायति बीज मेव, सौभाग्य लक्ष्मी वृर्णत स्वयंतम् ।।१३।। -पुष्प वगैरह के जाप से क्या, घी के होम से भी क्या, पूजा वगैरह समस्त क्रियानो का
आधकार दूर रहा, किन्तु केवल तुम्हारे वीज रूप ध्यान से समस्त सौभाग्य रूपी लक्ष्मी स्वय वरण करती है ।।१३।।
अर्थ
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६८०
लघुविद्यानुवाद
महिमा :
त्वतोऽपि लोकः सु कृतार्थ काम, मोक्षान पुमर्थाश्चतुरो लभन्ते । यास्यन्ति याता अथ यान्तिये ते, श्रेय परं त्वमहिमा लवः सः ॥१३॥
अर्थ
-तुम्हारे प्रभाव से लोक धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थो की प्राप्ति करते है। जो मोक्ष का स्थान है उसको प्राप्त कर रहे है, कर गये है और आगे भी करेगे । वे सब तुम्हारी महिमा का अश मात्र है। क्योकि एक ही कार माया बीज के अन्दर चौवीस तीर्थङ्कर, चौबीस यक्ष, चौबीस यक्षिणी समाविष्ट है। ह्री कार को सिद्ध परमेष्ठि वाचक भी कहा है, और इस ह्री कार मे धरणेद्र पद्मावती पाश्वनाथ प्रभू का भी वास है । मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक को ही कार का कैसा स्थान चाहिये सो बताते है ।
वृक्ष, पर्वत, शिलाओ से रहित क्षीर समुद्र के समान जो सम्पूर्ण बाधाओ से रहित आनन्ददायक, शान्त अद्वितीय क्षीर से परिपूर्ण जैसे क्षीर का महासागर हो ऐसी इस पृथ्वी का चितवन करे। फिर ऐसी पृथ्वी के बीच अष्ट दल कमल, कमल दल पर ही कार उसके बीच करिणका मे स्वय मै उज्ज्वल कान्तिमान पद्मासन लगाकर बैठा हू ऐसा चितवन करे। फिर स्वय को चतुर्मुख तीर्थङ्कर के समान समवसरण सहित ध्यान करे, चारो गतियो का विच्छेद करने वाला सव कर्मो से रहित पद्मासन से बैठा हुआ श्वेत स्फटिक के समान वर्णमाला ही कार के बीच अपनी आत्मा को बैठा हुआ देखे फिर ह्री कार के प्रत्येक अग से अमृत झर रहा है और उस अमृत से मेरी प्रात्मा का सिचन हो रहा है, ऐसा चितवन करे, ऐसा ध्यान करने से साधक तद भव मोक्ष सुख पा लेता है अथवा तीन चार भव मे नियम से मोक्ष पा लेता है।
अर्थ
विधामयः प्राक प्रणवं नमाऽन्ते, मध्येक (च) बीजननु जरनपोति । तस्यैक वर्णा वितन्योतया वंध्या, कामार्जुनी कामित केव विद्या ।।१४।। -जो साधक पहले प्रणव "ॐ" और अन्त मे ‘नम" मध्य मे अनुपम बीज "ही" कार
का बार-बार जप करता है, उसके सर्व मनवाछित कार्य एक वर्नवाही अवश्य और कामधेनु के समान ही कार विद्या विस्तारती है, इसको एकाक्षरी विद्या कहते है । ॐ ही नम । १५।
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नोट - ध्यान रहे कि शुक्ल ध्यान का ही को छोड़कर बाकी पीली, लाल, काली, जो भी वर्ण का ध्यान करने का आया है, उस वर्ण के ह्री को शत्रु के हृदय में ध्यान करे, मारण कर्म के लिये शत्रु के नाभि मे ध्यान करे ।
लघुविद्यानुवाद
(२)
अर्थ - जो मनुष्य त्रैलोक्य बोज रूप, अच्छे गुरण वाली, स्तुति रूपी इस माला को तीनो काल अपने हृदय में धारण करता है, उसके गोद मे आठ सिद्धिया अवश्य बनकर नित्य ही आती है और क्रम से मोक्ष पद की प्राति कराती है । १६ ।
सोना चान्दी बनाने के तन्त्र
मालामिमा स्तुतिमयीं सुगुणां त्रिलोकी ।
बीजस्य यः स्वहृदये निधयेत् क्रमात् सः ।। अष्ट सिद्धिर वशा लुठतीह तस्य
नित्यं महोत्सव पदं लभते क्रमात् सः ।। १६ ।।
(१) स्वर्ण माक्षिक ८ मासा
पारा
४ मासा
तावा
४ मासा
सुहागा
४ मासा
इन सबको मिलाकर 'कुप्पी' मे डाले, फिर अग्नि मे गलावे तो शुद्ध चादी हो ।
गधक को प्रोटा कर (गर्म कर ) प्याज के रस मे भुजावे १०८ बार फिर उस गधक को चादी के साथ गलावे तो सोना होता है ।
(४)
६८१
(५)
(३) हिगुल शुद्ध १८ तोला, अभ्रक ३२ तोला को एकत्र करके रूद्रवन्ति के रस में घोटकर, चादी के पत्रे पर लेप करके पुट देवे, तो सोना हो ।
साग बीज एक जात की बूटी होती है । उसके पत्ते की लुगदी में ताबा रखकर अग्नि मे फूके तो स्वर्ण बने ।
गाथा :- नाग फरिणए मुलं, नागरण तोए एगभनागेण । नागरण होइ सुवरण धमत पुण्ण जोगेण ॥
( समयसार जयसेनाचार्य की टीका मे लिखा है)
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६८२
अथ - नागफणी की जड लेना, हथिनी का मूत्र लेना, उसमे सिदूर मिलाकर घोटना फिर उस द्रव्य को अग्नि मे धोकना तो सोना बनता है, यदि पुण्ययोग हुआ तो ।
(७)
लघुविद्यानुवाद
(६)
शुद्ध हिगुल का एक तोले का डला लेकर उस हिगुल के डले को गोल बेगन काला वाला को चीरकर उसमे हिगुल को रखकर ऊपर से कपडा लपेट कर फिर मिट्टी का उस बेगन पर खूब गाढा लेप करे, फिर उस बेगन को जगली कडो के अन्दर रखकर जलावे, जब कण्डो की अग्नि जलकर शान्त हो जावे तब उस बेगन को निकाले । बेगन के अन्दर से उस हिगुल के डले को निकाल लेवे । इसी तरह क्रमश १०८ बेगन मे उस हिगुल के डले को फूके । यह रसायन तैयार हो गई । इसी रसायन में से एक रती लेकर एक तोला ताबे के साथ मिलाकर कुप्पी मे गलावे तो एक तोला सोना तैयार हो जाएगा, लेकिन णमोकार मन्त्र का संतत जंप करना होगा ||
(ह)
'
(१०)
(5)
कर्ड होय अर्द्ध मेली होय मागुनी पानी करने एक तोल मास दाने तोले रूप मिलविणे धवल शुद्ध होय हा एक तोल्या चा अनुपान ।
लोहे के लुपा चेउघा चेपक्का सेर दुधाचेमा लोल सारख त्याल सेराचा दुधत्या भर मिलाउन सख्या समोल तोले ६ श्रात घालणे घोडयाची चूल करणे वर लोट के ठेव ने शनसेनी अग्निदेवी रुचिक आटवने मगपुरे करने म्हणजे कल्क झाला जतन ठेवणे तोला १ लॉव्या चेपानी करणे रसफिरो लागलाम्हण जे सामध्ये श्रर्द्ध मासा कनकणे काटकाणे समरस करणे हालवने भुसीस धमकव ने से नाचे मुसील बोलने घंड झा ल्यावर काढने म्हणजे शुद्ध धवल होय || इति ॥
い
लाल फूल वटो लापान बहुत होय है । रानोरान जडमूल का किया थाना । नाथ कहे कथील हुआ रूपा वंटोल पान सफेद फूले येफे लासव ही रान एक थेव से पारा मारू नाथ कहे, कचन रूप ।
ततोला १ पाढया व सूच्या भावना सात देणे मग पत्र करण कटक वेधनी ताडन रसान सिजवे म्हण जे एक फुट जाले मागु ते लाडन सिजवने म्हण जे पुटि २ झाले मागुते लाडन एसे पुट सात देणे मगपुरे करणे मग एक मुसोत घालोन कोलसा वर ढेऊन कोल से पेटवा वे त्याचे पानी करणे रस वरापि घलला म्हणजे मग काही थोडा बहुत मुस थोडी बहुत थंड झाल्या वर रस जो मुसीर ढले सरल तो त्या मध्ये पारा तोला १ मेलवने पारा व जस्त तत क्षण एक होती मग ते खला मध्ये बारीक करून
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लघुविद्यानुवाद
ठेवणे म्हण जे कलक सिद्ध साध्य झाला एक करून ठेवणे तांब पत्र कटक वेधनी करून मग रूई चेपाना चा यस काहुन हे वणे मग ताम्र पत्र लाऊन रूई रसात सिजवने एसेपुट ७ देणे मगपूरे करणे मग श्वेत झालीया एक मुसीत घालणे त्याचे पानी करणे ॥ इति ।।
शुल्वस्य भाग तय नेककं नाग वंगयोः ॥११॥ समावर्त्य विचूरायार्थ सिद्ध चूर्णेन पूर्ववत् । नागमेकं द्वयंशुल्वंषट् शुल्वं चैकं पन्नगं ।।१२।। शुल्व चूर्ण त्रयोभाग भागैकं हेमगैरिकं ॥१३॥ गंध केनहतं शुल्वं माक्षि के कंच समं समं । रूध्वाध्मातं पुनश्चूर्णे सिद्ध चूर्णेन् पूर्ववत् ॥१४॥ हंस पायि त्रक द्रायै दिन मेकं विर्मदयेत् । तैनेव तार पत्राणिलिप्त्वा रूध्वा पुटेप, चेत् ॥१५॥ समुह टा त्पश्चा त्कृत्वा पत्राणि लेपयेत् । पूर्वपल्केन रूध्वाथपुटं दत्वा समुद्धरेत ॥१६॥ इत्येवं सप्तधा कुर्यात्तार मायाति कांचनम् ।इति। राजावत च पारापत मल समं ॥१७॥ असित्य सेन कुरू तेस्वर्ण रोप्यं च पूर्ववत् ।इति। से शिरीष पुष्पस्य पार्द्र कस्य रसै समै ॥१८॥ भावयेत्सम वाराणि राजावर्तसू चरिणतं ।। तेनेव शत मांसेनस्वर्ण तारद्रतं समं ।।१६।। वेधयेत् सर्व वसिद्ध दिव्यं भवति कांच नं ।इति। कुकुमं विमल ताप्यं रस कंदरदं शिला ।।२०।। राजावर्त प्रवालं च राजी गैरिक र्टकणं । सेधवं चूर्ण ये तुत्यंम शीत्यंशेन वेधयेत । काच माच्या द्रवः समं ॥२१॥ पाम मर्धत तरुध्वा प्रारण्योत्पल के पुटेत । इत्ये वं तुबिधा फुन्मिदितं पुट पाचितं ।।२२।। तद्धहिलं शुद्ध क्षिप्त्वा तस्मिन्वि मर्दये कांलि के र्याम मात्रहि पटे नै दे.न पाचयेत् ।।२३॥
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लघुविद्यानुवाद
अस्य कल्कस्य भागकं भागा श्चत्वारिहाटकं । धमुर्वागतं मातं समादाय विचूर्णयेत् ॥ २४॥ पूर्ववत्पूर्व वत्कल्केन रूध्या दंयं पुटे पुनः । अनेन षोडशां शेनसित वतु वेध येत ॥ २५॥ सेचये त्कांगुणी तैलं रक्त वर्णेन भावित | पुनर्वेध्य पुनः सेच्य षोडशांशेन बुद्धिमान् ॥ २६॥ एवं वार त्रयं वेध्यं दिव्यं भवति कांच नं । इति । ताम्र तुल्यं स्य दागस्य शोध येत् ध्यनेन च । ताम तुल्य शुद्ध हेम समा वर्त्य तिपत्रयेत् ||३२|| इष्टि का तुवरी चैव स्फटिका लवणं तथा । गैरिकं भाग वृद्धंशं मारना लेन पेषयेत् ॥ ३३॥ तेनलिप्तवा पूर्व पत्रं रूध्वा गज पुटे पचेत् ।
एवं पुनः पुनः पाच्यं यावत्स्वर्ण विशेषितं ॥३४॥
तत्स्वर्ण ताम्र संयुक्तं समावर्त्या तुपत्रयेत्पूर्व वत्पृट पाकेन पचेत्स्वर
विशेषितं ||३५||
इत्येवं षङ्ग ुणं ताम्र स्वर्णे वाह्य क्रमेण तत् ।
तत्स्वर्ण जायते दिव्यं पद्मराग समः प्रभः ।। ३६ ।।
षत्रिशेन ते नैबमष्ट वर्णतु वेध येत् ।
तत्सर्वं जायते दिव्यं दशवर्ण न सशयः | ३|७|| इति । समं ताप्यं ताम्रचूर्ण ताप्यार्द्ध लोह चूर्णकं । धर्मं तं रे व मर्दयेत् ॥ ३८ ॥
तः शुष्कं विचूर्णयेत् ।
कन्या द्रावै क्षणं मद्यं एवं वाराश्च तुषष्टि त षोडशांशेन तैनेव मण्ट वर्ण तु वेधयत् ॥३६॥ तत्स्वर्ण जायते दित्र्यं दश वर्ण न संशयः । इति । गंधकेन हत स्वात्वं दर्दार्द्ध प्रत सुतकम् । मन शिले समायुक्तं मातुलिंगेन मर्द ते ॥
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लघुविद्यानुवाद
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नाग पत्र प्रलेपानां त्रिपुट कुंक मारून सन्नभम् ॥
तार वेदश्य त्रिगुरणं द्यत तारामायात कंचनम् ॥१॥ गधक लेके वाटे पानी से ताबे चे तगड को लेप करे। अग्निदेय ताम्र मरेनन्सर हिगुल जस्त मनशिल समभाग लेय वा ताम्र मरलेला एकत्र करिनिबू रस से खरल करे दिन ३ नतर सीस को पत्र करीतेवाट लेलो जिनस तेपत्रास लेप करे मग रान गोविरी को अगार क पुटती न देय । तर ते शीस मरेल नतर ३ भाग चादी १ भाग ते नाग भस्म मुसमे गलावे वसु थाय ॥इति।।
गन्धकेन हले सुल्व दर देन समान मिता ॥ तते समा मनि शिला युक्तं मातु लिगेन मर्दताम् । त्रिषष्ट पुट तं नागं कु कुमारुन सन्न भम् ।। षोडशं शतार वेदान्त एवं भव तु कांचनम् ।।२।।
गधक से तावामारे हिगुल क दोई समान मन शिल लेप निबू रस मे मर्दन करे शीशे पतरा __ को लेप करे नतर रान गोविरोके छपुट दे अग्नि की मूतर कु कम सारभस्म होय षोडष भाग चादी एक भाग चादी एक भाग ते भस्म एक भाग मुसमे गलावे पोत ।।इति।।
गंधिकं मधु संयुक्तं हरि वीर्येन मर्दताम् ॥ भूमिस्ता मास मेकं तारा मयात कंचनम् ॥३॥
गन्धिक मदपारा एकत्र करी खल करै दिवस २ शीशी मे भरे। उकरडा मे गाढे मास १ मग काठुन तोला चा दीस मासादेय वसु ।।इति।।
हार मेकं मयं तीरं तार नीक्षण चतुर्गणं ।। चतुरष्ट मष्टवंगं च वंगं स्थंभन रौषधम् ॥४॥
पीतल चादी पौलाद रेत ४ कथील भाग ८ एकत्र मुस मे गलावे, एक मेक होय जाय तब निकाल लेय ते जिनस घट होय नतर वारीक वाटी तोला कथील को पानी करी एक मासा कथीला सी देय रजत ॥इति।।
हिगुलक उत्तम लेय तोला १ खडा काले बैगन मे भरे। फिर बैगन को कपर मिट्टी का लेप करे । अग्नि मे देय जब बैगन पक जाय, ठड भये काटे । ऐसे १०८ बैगन मे पकावे । एप्रमाण करे भस्म होय ते भस्म तोला ताबे को गू ज देय वसु ।। मन्त्र :-ॐ नमो अरिहंतारणं रसायनं सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।
इस मन्त्र का जाप्य ४५०० करे ।।इति।।
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लघुविद्यानुवाद
जूनी ईट लेय १ साचे दल वाटे ४ के सममधी खड्डा करके खड्डा मे पारा भरे तोला २ मग जस्ताची वाटी तो पाच को ऊपर वौघी ठेवे। पारा को ऊपर मग भौताल वाटी की सधी (साठ) गुड चुना ओमू चे मग तीन पत्थर के ऊपर ईट चढावे । नीचे अगार नर बेर की लकडी की देय प्रहर १६ मगते बाटी ऊपर हजार निबू को रस लेप चो वादे सोलह प्रहर मग ठडी भवे निकारे नारियल फोडे । मन्त्र जप :-ॐ नमो भवावते पर भटे मम रसायनं सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।।
जप १०,००० नतर ते भरम पर की तोला ताबे को गू ज १ देय उत्तम पीत । जस्त भस्म देय तर मध्यम भगार ।।इति।।।
पारा स्तंभन का तंत्र मन्त्र :-अल बांधो, थल बांधो, बांधो जल का नीरा, सात कोस समुंदर बांधो,
बांधों बावन वीरा, लंका ऐसी कोट, समुदर ऐसा खाइ, पारा तेरा उडना
बांधो, शिव तोर वी जाई बंध जा पारवती की दोहाई ॐ ठः ठः स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को कमलाक्ष की माला से पूर्व की तरफ मुख करके चौरासी हजार जप करे,
दशास अग्नि में आहुति देवे, होम द्रव्य, खोवा १ सेर, शहद १ सेर, सौप १ सेर, दूध १ सेर, घी १ सेर, आम की लकडी । तब मन्त्र सिद्ध होता है।
मन्त्र सिद्ध हो जाने के बाद पारा एक रुपया भर से लेकर नोसो भर पारा तक एक पात्र मे घर, छोटा वरि पारी बूटो का दो-चार पत्र डारि, इस मन्त्र को १०८ अथवा तीन, अथवा सात, अथवा एक इस बार मन्त्र पढि २ पारा कु फूक के ढाक ते जाना, मन्त्र पढते जाना, अच्छी भाति ढाकी के गोबढे (कडे) सेर २ सेर के अग्नि मे कप रोटी करके डार देना, पारा की चादी हो जायेगी। यह सिद्ध सावर मन्त्र है रसायन का।।
(१) गधक एक भाग, पारा दो भाग, हरताल भाग तीन, सीसा भाग चार, पीला वधारी
याने पीले तीलवनी उसके रस मे खलकर ताबे को पुट देने से सुवर्ण के समान पीत
होता है। सिद्धम् इति । (२) हरण खुरीता रस मे घुमाना चाहिये । प्रथम तावे मे पारा भस्म अथवा शिशभस्म
डाले, उसके बाद रस मे घुमावे । सिद्धम् । (३) कन्हेरा मशिल तोला ५ उसका रग कनेर के फल जैसा रहता है। एक तोला कथिल
का पानी करना । उसमे एक रती गूज मसिल डालना। उसमे शुद्ध शुभ्र होता है। (४) कलकपारा सेर ७७२ काले पत्थर के खल मे उसका घोटना । सफेद रिंगणी
उसके फूल सफेद होते है उसको तोडकर डाले उसके बाद मूल शाखा, पाला घिसकर उसका रस बनाना। २ सेर खल मे डालकर उसको खलना। पारा
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लघुविद्यानुवाद
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मक्खन जैसा बनता है। कुम्भार से एक बेलनी लाना। उसमे खल किया हुआ पारा डालना । एक वीत भरा खड्डा बनाना। दंगका कोयला भट्टी जलाना । उस पर वेलनी रखना। उसमे रिगणी का रस डालना। वेलणी आटे को पाक
करना । पारा और रस प्रोटने के बाद पूरा पारा पीता है। (५) समभाग सावन भाग १, साजो खार भाग १, फटकडो भाग १, सोरा कलमो
भाग १, सख्या समोल १, नवसागर १ व औषध काजल ६ वटिका करना । उस
पर पुट देते जाना, सात बार पुट देना। ताम्र धवल शुद्ध होता है। (६) सफेद फूलोक का कोहला लेकर उसका ऊपरी हिस्सा निकालना। उसकी साक
पकाना । उसमे कथील डालना। पकने के बाद ठडा होने के बाद निकालना । शुभ्र धातु होय ।
पज्यपाद स्वामी कत
सोना बनाने की विधि ___ श्लोक .-पारद पलमेक च हरिताल च तत्समम् ।
गधक च तयो तुल्य मर्दनीय विशेषत । दिनेक सूर्य दुग्धेन पश्चात् छाया विशेषत । कोपिको दूरे विनिक्षिप्य मुख रूध्वा विपाचित ।
रतिमात्र प्रयोगेन दिव्य भवति काचनम् । अर्थ .-पारद १ पल, हरताल' १ पल और गधक १ पल, इन द्रव्यो को लेकर विशेष रूप से
मर्दन करे, आकडे के दूध मे, फिर छाया में सुखाकर उसको सोना गलाने की कुप्पो मे डालकर मुख को रूध करे, फिर अग्नि मे फू के तब एक रसायन तैयार हो जायेगा, उस रसायन को १ रती, तोला ताबे के ऊपर प्रयोग करे तो शुद्ध सोना होता है।
गधक से ताबा को मारकर हिगुलक दोई समान, मनशिल लेप नीबू रस मे मर्दन करे, सीसा के पतरा पर लेप करे, फिर रानगोबिरो के ६ पुट देवे अग्नि में तो कु कुमसार भस्म हो जायेगा। सोलह भाग चादी पर वह एक भाग रसायन भस्म, लेकर कुप्पी मे गलावे तो सोना होता है। श्लोक -गधिक मधु सयुक्त हरी वीर्येन मर्दताम् ।
भूमीस्ता मासमेक तारामायात कचनम् ।
गधक, मद, पारा एकत्र कर खरल करे, दिवस २ शीशी मे भरे, उकरडा मे गाडे मासा १ निकाल कर एक तोला चादी के साथ गलावे तो सोना होता है ।
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________________ लघुविद्यानुवाद 688 - - पीतल चादी पौलाद रेत 4 भाग कथील भाग 8 एकत्र मुसल मे गलावे, एक मेक हो जाय, तब निकाल कर, जब जिनस घट्ट हो जाय नतर वारीक वाटी तोला कथोल को पानीकरी एक मासा कथील देय तो चादी बने / चांदी बनाने का तंत्र तरबूज सेर पाच से ज्यादा कुछ तौल म होय ऐसा एक तरबूज ताके तले की तरफ तेचकरी काट के उसमे समलखार पैसे दो भर चिथरा मे लपेट कर डारि के तब पेदा तरबूजा की लगाय के कपरौटा सात दफे सुखाय 2 के करना तवगज पुट का आच देना, जब तरबूज जलने नही पावे तब निकाल लेना, तब ताबा तोला 1 पर मासा 1 उपरोक्त रसायन देना तो शुद्ध चादी बने / सोना बनाने का तंत्र शीशा को प्रहर चार अग्नि मे देना जब ठण्डा होय तब तोला एक का पत्र बनाय कर, उसके ऊपर हिगुल तोला 1 नीबू के रस मे खरल कर पत्ते पर चुपड कर दो दीए के बीच मे रखकर बन्द करे, ऊपर कपरौटी करे, सुखावे, सेर एक जगली कण्डे मे उसको फू के, जहा किसी की छाया नही पडे, जब ठण्डा हो तब निकालना, इस भाति सात बार करे तब शीशा की भस्म बनेगी, वेधक होय सो नोला एक चादी भरे तो एक की मात्रा डालने से शुद्ध सोना बनेगा। हीरा बनाने की विधि मए के बीज का तैल तैयार रखे, जब बिनौला अाकाश से पडे, तब तुरन्त अग्नि जलाकर, उस तैल को अग्नि पर चढादे, फिर गर्म करे, उस गर्म तेल मे विनौला ले लेके डालते जाना, सब पत्थर हो जायेगा जम करके वही कोरा हीरा है। लेकिन मऐ की लकडी की ही पाच दे। कडाई को जब वे नीला पत्थर हो जाय तब नीचे उतारना / भाग्य अच्छा हो तो यह कार्य अच्छा हो जाय ।।इति।। श्री मूलसंगे, सरस्वतिगच्छे, बलात्कारगणे कुन्दकुन्दान्वये श्री प्राचार्य आदिसागर अंकलीकर, तत्शीष्य श्री प्राध्यात्मयोगी, समाधि सम्राट दिगम्बर जैनाचार्य आष्टादश भाषाविज्ञ महावीर कीर्तिजी, तत्शीष्य गणधराचार्य चतुर्विध अनुयोगविज्ञ, श्रमरणरत्न, वात्सल्यरत्नाकर, स्याद्वादकेशरी, वादीभसूरी जिनागम सिद्धान्त महोदधि यंत्र, मंत्र, तंत्र शास्त्र विशेषज्ञ श्री कुन्थुसागरेण पूर्वाचार्यानुसार तः, इदं लघुविद्यानुवादानाम ग्रंथ श्री सोनागिरी सिद्धक्षेत्रे वीर निर्वाण 2504 कार्तिक कृष्णा अमावश्या यां समाप्तः। // शुभं भूयात् / /