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लघुविद्यानुवाद
यन्त्राधिकार
पन्द्रहिया यन्त्र का विधि विधान
(३)
(४)
ह्रीं हीं हीं श्री ही ही हीं श्री साहश श्री
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मूल मन्त्र — ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः
यन्त्र साधना के समय मूल मन्त्र की हर रोज एक माला का जाप करना चाहिए । विधि :- योग्य शुद्ध व एकान्त स्थान मे पूर्व दिशा की ओर भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिये । दशाग धूप या गुग्गुल की धूप करना चाहिए घृत का दीपक होना चाहिए । प्रत्येक यन्त्र लिखने के बाद उसकी पूजन करे । चावल, पुष्प, खोपरे का टुकडा, पान, सुपारी अनुक्रम से चढाने चाहिए । उपरोक्त यन्त्रो को गिनती मे लिखने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है ।
(५)
(१)
१० हजार केसर कस्तूरी या गोरोचन की स्याही व चमेली की कलम से लिखे तो वशीकरण हो ।
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(२)
२० हजार - चिता के कोयलो की स्याही व लोहे की कलम से श्मसान की भूमि पर लिखे तो शत्रु का हो, और धतूरे के रस व कौए की पाख से लिखे तो शत्रु का निषेधकर्म होता है ।
३० हजार - हल्दी की स्याही व सेह की शूल से लिखे, तो शत्रु का स्तम्भन हो ।
४० हजार - केसर की स्याही व चादी की कलम से लिखे, नो देव दर्शन हो प्रसन्न हो । ५० हजार अष्टगन्ध स्याही व सोने की कलम से लिखे तो मोह न हो ।