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________________ ३८२ लघुविद्यानुवाद ॐ नमो लडी लडगीही मे द्रेई मसाण हिडई नागी पडर केशी मुहई विकराली अमकडा वी अगई पीडा चालाई माजी मराती केर उरझ सई अमकडा के अगई पीडा करै सही मात लडी लडगी तोरी शक्ति फुरई मेरी चाडसरई हु फट् स्वाहा ।।२५३॥ पर को हानि पहुचाने रूप क्रिया होने से यत्र की विधि समाप्त कर दी गई है। यन्त्र न, २५४ हीं ॐघटाकर्ण महावीर नाकाने मरणनस्याय सर्पण इत्यते विस्फोटक भय नास्ति अग्निचोरभय वन नास्तिका एफस प्रभवतिना Athey घटाकणी नमोस्तुतेक रतरमदानलका त्यतिष्टते देवलिखितो HenbKERALLY यह यन्त्र बटा कर्ण कल्प का है। इस यन्त्र को अष्टगन्ध से भोजपत्र पर लिखकर मन्त्र का साढे बारह हजार जप विधिपूर्वक करे तो सर्वकार्य की सिद्धि होती है। विशेप विधि घटा कर्ण कल्प मे देख लेवे ॥२५४।। 4 मता जिनका मन है, तप जिसली आत्मा है विद्या जिनकी वाणी है, ज्ञान जिनका चरित्र हे, परोपकार जिनका कर्म है, दया जिनका धर्म है, सेवा जिनकी माता हे धर्म जिनका पिता है, सहयोग । जिनका भाई हे शाति जिनको पत्नी है, पुरुषार्थ जिनका पुत्र है, भाग्य जिनका साशी है, धर्य जिनका * मित्र है, प्रभु भक्ति जिनका जीवन है और साहस जिनका शस्त्र है ऐसे महापुरुप विरले ही होने है इन गुणो से रहित होकर मनुष्य हुए भी तो क्या और जीये भी तो क्या ?
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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