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________________ लघुविद्यानुवाद १४५ मन्त्र :-ॐ रणमो अरहंतारणं णमो सिद्धारणं णमो अणंत जिरणाणं णमो सिद्ध जोग धराणं णमो सव्वेसि विज्जा हर पुत्तारणं कयंजली। -~-इम विज्जाराय पउ जामि इमामे विज्जा पसिष्यऊ। मन्त्र :- प्राक्खालि वालिका लिपं सुखरे ॐ प्रावत वो चडि स्वाहा । विधि -दिय वाय पत्त कक्वराऊ वा धिप्पति ताऊ सत्त वाराऊभिमति उण जो प्राहम्म इसो वसो होई ।।१।। इस मन्त्र से सात ककर लेकर मन्त्रित करे, फिर जो भी बिकने वाली चीज है उसमे उन सात ककरो को डाल देवे तो वस्तु शीघ्र बिक जाती है॥२॥ एयाए तुलसी पत्ताणी सत्ताभि मतिउरण कन्हे कीरति ज मग्रइ त ल ह इ॥३।। सत्ताभि मतिऊ कुमारी सुत मऊ डोरो हस्ते वध्यते कुविऊ पसीयइ ॥४॥ एयाए घरा, कक्वराऊ सत्तधि तुण सत्त वा राजा वियाहि गावी सुरण हीवा। प्राहम्मइ ॥५॥ अप्पणो सरीरे पज्जविऊण ज मोसो वइ सो वसो भवई ।।६।। एयाए तिल्ल जविउण जरिऊ मक्खिज्जइ सस्थो हवइ ॥७॥ एयाए सप्पदट्ठस्स पाणिय सत्ताभिमतिय पाइज्जइ सुही होइ ।।८॥ मन्त्र :-ॐ क्रों प्रों नरी सहि सहे नमः । विधि :-गोमय मडल कृत्वा श्री खड कस्तुरिका कर्पू रेणमडल वेधाय तस्यो परि दीपकः कुमारी कर्तित सूत्र वृति घृत भृतो दीयते बार १०८ बार मन्त्रा जप्यते पात्र मस्तके दीयते जव निकातर मध्ये आत्मना मन्त्रो जप्यते श्रु भे श्रु कला वरधरा नारी श्र क्ल पुष्प गहीत्वा श्रभ वदती दृश्यते अश्रुभे रक्ता वरा श्रुभ वदती च अष्टम्या चतुर्दश्या वा अथवा प्रयोजनेऽनस्या तिथौ दृश्यते दीप शीखाया दृश्यते । मन्त्र :---ॐ अरिहंते उत्पत्ति स्वाहा । (ॐ अरहंतउत्पत २ स्वाहा) विधि :-इस मन्त्र का एक लाख जाप करने पर सिद्ध होता है । इस विद्या का नाम त्रिभवत । स्वामिनि है । सिद्ध हो जाने पर विद्या से जो पूछो वह सब कहेगी। मन्त्र :-ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौ ह्रः असि आउसा नमः । विधि -इय सप्ता दशाक्षरी विद्या अस्याः फल गुरूपदेशा देव ज्ञायते । मन्त्र :-ॐ रूधिर मालिनी स्वाहा । विधि :-इस मन्त्र को सात बार जप करके अपना रक्त निकाले फिर उस रक्त को करजो तेल मे मिलावे फिर कमल पुष्प की डडि का डोरा सूत्र निकाले फिर उस डोरे की बत्ती बनावे उस बत्ती को रक्त मिला हुमा करज के तेल में डाल कर बत्ती को जला देवे फिर काजल ऊपाड कर आख मे अजन करने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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