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________________ लघुविद्यानुवाद २८६ यत्र न० ४५ ४६६६२ ४६६६६ ४६६१६ ४६६६५ ४६६६८ ४६६६३ ४६६६४ ४६६६७ रात्रि मे लिखते है और धन प्राप्ति अथवा दूसरे किसी काम के लिये बनवाना हो तो पच गध से लिखते है, जिसमे केसर, कस्तूरी चदन, कपूर, मिश्री का मिश्रण होना चाहिये ।।४५॥ लखिया यंत्र दूसरा ॥४६॥ इसको भी दीवाली के दिन मध्य रात्रि मे लिखते है और अष्ट गध से लिखकर यत्र जिसके लिये बनाया हो अथवा उसका नाम लिखकर पास मे रखने से जय विजय होता है व्यवसाय यत्र न०४६ ४२००० ४६००० २००० ७००० ६००० । ३०००। ४६००० । ४५००० ४८००० । ४३००० ८००० | १००० ४००० । ५००० । ४४००० | ४७००० करते समय जिस गद्दी पर बैठते है उसके नीचे रखने से व्यवसाय मे लाभ होता है। ऊपर बताया हया लखिया यत्र भी ऐसे कार्य मे लाभ देता है। जिसको जो यत्र ठीक लगे उसी का उपयोग करे।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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