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________________ लघुविद्यानुवाद ६६३ रुद्राक्ष कल्प भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णो के लोगो को रुद्राक्ष धारण करना चाहिये । उत्तम रुद्राक्ष असख्याय समूहो का भेदन करने वाला है । जाति भेद के अनुसार रुद्राक्ष चार तरह के होते है। ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । उन ब्राह्मणादि जाति के रुद्राक्षो के वर्ण श्वेत, रक्त पीत तथा कृष्ण जानना चाहिये। मनुष्यो को चाहिये कि वे क्रमश वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करे। जो रुद्राक्ष आवले के फल के बराबर होता है वह समस्त अनिष्टो का विनाश करने वाला होता है। जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह उतना छोटा होते हुए भी लोक मे उत्तम फल देने वाला तथा सुख, सौभाग्य वृद्धि करने वाला होता है । जो रुद्राक्ष गु जाफल के समान वहुत छोटा होता है वह सम्पूर्ण मनोरथो और फलो की सिद्धि करने वाला होता है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है वैसे-वैसे अधिक फल देने वाला होता है। एक-एक बडे रुद्राक्ष से एक-एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानो ने दस गुना अधिक फल देने वाला बतलाया है। अतः विघ्नो का नाश करने के लिये रुद्राक्ष धारण करना आवश्यक बताया है। रुद्राक्ष के समान फलदायिनी कोई भी माला नही है। समान आकार, प्रकार वाले चिकने, मजबूत, स्थूल, कण्टक युक्त (उभरे हुए छोटे-छोटे दानो वाला) और सुन्दर रुद्राक्ष अभिलम्बित पदार्थो के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले है। जिसे कीडो ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा न हो, म उभरे हुए दाने न हो, जो वर्ण युक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो इन पाच प्रकार के शक्षा को त्याग देना चाहिये। जिस रुद्राक्ष मे अपने आप ही डोरा पिरोने योग्य छिद्र हो गया हो, उत्तम माना गया है, जिसमे मनुष्य के प्रयत्न से छेद किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता "रह सा रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैकडो वर्षों नहीं किया जा सकता, भक्तिमान पुरुष साढे पाच सौ रुद्राक्ष के दानो का सुन्दर मुकुट बनाले सिर पर धारण करे तीन सौ साठ दानो के लम्बे सूत्र मे पिरोकर एक हार वना ले । कार बनाकर भक्ति परायण पुरुष उनका यज्ञोपवीत तैयार करे और उसे यथा स्थान - और उसे सिर पर धारण करे तीन सा र वैसे-वैसे तोन हार बनाकर धारण किये रहे। हाथ मे, पन्द्रह की भुजा म, बी कितने रुद्राक्ष की माला कहाँ धारण की जाये-छ रुद्राक्ष की माला कान मे, वारह की पन्द्रह की भुजा मे, बाईस की मस्तक मे, सत्ताईस की गले मे, बत्तीस की कण्ठ मे (जिसन झूलकर वह हृय को स्पर्श करती रहे) धारण करनी चाहिये। कानसा रुद्राक्ष कहां धारण करना चाहिये-छ. मुखा रुद्राक्ष दाहिने हाथ में, सान मुग्ग पाठ मुखा मस्तक मे, नौ मुखा बाये हाथ मे, चौदह मुखा शिखा मे, वारह मुखा बाल कण्ठ मे.
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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