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________________ ―――― श्लोकाय नं. १६ (१६) हे माता तुम हमारे क्षुद्रोपद्रव, राग, शोक को नाश करने वाली, दरिद्रता को दूर करने वाली, सर्प और व्याघ्र के उपद्रव को नाश करने वाली, जो कान्ति से युक्त शरीर सहित शोभायमान हो रही हो । जिनके मस्तक पर नागराज के तीन फरण शोभित है और नागराज धरणेंद्र के द्वारा प्रीति को प्राप्त हो गई है, भक्त जनो के लिये चिन्तामणि समान हो, भगवान पार्श्वनाथ जिनेश्वर के शासन को शासन देवी हो । हे देवी माता मेरे पर कृपा करो ।। १६ ।। फल लघु विद्यानुवाद इस श्लोक का निरन्तर पाठ करने से, क्षुद्रोपद्रव नाश होता है, और दारिद्र दूर होता है । तारा त्वं सुगतागमे भगवती गौरीतिशैवागमे वज्रा कौलिक शासने जिनमते पद्मावती विश्रुता । गायत्री श्रुत शालिनां प्रकृतिरित्युक्तासि सांख्यागमे मातभारती ! कि प्रभूत भरिणतै व्यप्तिं समस्तं त्वया ||२०|| श्लोक पाठ का फल ५१५ श्लोक नं० २० (२०) हे माता, हे सरस्वती, तुम्हारी प्रत्येक धर्मावलम्बी आराधना करता है, तुम प्रत्येक जगह व्याप्त हो, बौद्धमतावलम्बी तुमको ( तारा ) नाम से पुकारते है, शैवमतावलम्बी आपको गौरी कहकर पूजते है, कौलिक मत वाले आपको वज्रा कहकर आराधना करते है, और जैन दर्शन वाले आपको पद्मावति नाम से आराधना करते है, वैदिक सम्प्रदाय वाले, गायत्री कहते है, साख्य मत वाले आपको प्रकृति नाम से पूजते है, हे भगवती देवी आप सबकी मान्य देवी हो ||२०|| ---- इस श्लोक का पाठ करने से सर्वत्र देवी अपने - २ रूप मे दर्शन देती है । काव्य नं. १६ - २० इस विद्या मन्त्र का एक लाख ( १,००,०००) जाप पूर्व की तरफ मुख करके बहत्तर ( ७२ ) दिन तक जाप करे, मन्त्र सिद्ध हो जायगा । मन्त्र सिद्ध होने प्रभाव से साधक को पाताल वासी विषधर, देव, भूमिजा, स्वगादिक देव, दानव यक्ष, राक्षस, कल्पेद्र, सूर्यादि ग्रह गरण, समस्त साधक के चरण कमलो की पूजा करते है ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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