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________________ ५१६ लघुविद्यानुवाद यन्त्र रचना - कस्यै देवा, धरणेद्र देवेन कथ भूत धरणेद्रादि विष हर पन्नग पुरुपाकार स्वरूप द्विभुजा सर्पाकार मस्तके अर्द्ध चद्राकार, तन्मध्ये ही कारे स्थाप्य पुनरपि पोडश वर्णन मना ॐ ह्री विषहर पन्नग धरणेद्राय नम लिखेत कठ देशे रविकारी स्थाप्य मति अष्टदल कमल मत्रेन ॐ हो ऐ धरणेद्राय विषहर पन्नग रूपाय श्रा, श्री धू हर हर हा ह ह नम देष्टयेत् अनेन प्रकारेन धरणेद्र स्वरूप कृत्वा । ये यन्त्र साक्षात पुरुप त्रैलोक्य को वशी करता है। मत्र का राजा धरणेद्र है । लक्ष्मी मनोकामना को देने वाला है। नोट ---इस १६-२० श्लोक को विधि मे हमे कुछ अशुद्ध पाठ नजर आता है। क्योकि जहा श्लोक मे बाह्य कठेर वेष्टया कमल दल युत मूल मत्र प्रयुक्त ऐसा पाठ है। किन्तु हमारी समझ से तो यहा--बाह्य ठकार वेप्टय होना चाहिये। समझ मे नही आता कि कहा पाठ बदल गया है। जब तक पूर्ण प्रमाण नही मिले तब तक पाठ बदलना ठीक नही जमता है। हमने जैसा पाठ था वैसा ही यत्र बना दिया। विशेष विद्वान लोग समझे। जितने आजकल उपलब्ध पाठ है उनमे ऐसा ही पाठ है। पाताले कृशता विषं विषवरा धर्मन्ति ब्रह्माण्डजाः स्वर्भूमिपति देवदानवगणाः सूर्येन्दुज्योतिर्गणाः । कल्पेन्द्राः स्तुति पादपंकजनता मुक्तामरिंग चुम्बिता सा त्रैलोक्यनता मता त्रिभुवने स्तुत्या सदा सर्वदा ॥२१॥ श्लोकार्थ नं० २१ (२१) हे माता आप तीनो लाको मे वदित हो, पाताल मे रहने वाले, विषधर भयकर विप को लेकर ब्रह्माड भ्रमण कर रहे है, तुम्हारे चरण कमलो की आराधना कर रहे है, आपके चरण कमल देवेन्द्रो से, राजाप्रो से, सूर्य चद्र, तारागण भी पूज रहे है, नमस्कार कर रहे है, आपके पाद पकज मुक्ता, मरिण से चुम्बित है हे माता तीनो भुवन के प्राणी आपकी निरन्तर स्तुति कर रहे है ॥२१॥ श्लोक पाठ का फल : यह श्लोक सर्वत्र रक्षा करने वाला है, इस श्लोक का पाठ कर चोटी गाठ लगा देने से सर्वत्र रक्षा होगी ॥२१॥
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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