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लघुविद्यानुवाद
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काव्य नं. २१ इस काव्य का पाठ करने से क्षुद्रोपद्रव, रोग, शोक, दारिद्र, दुख, दुर्बुद्धि, व्याघ्र, सर्प, विष, राजभय, दुष्ट कर्म मारण, उच्चाटन, इत्यादिक धरणेद्रपद्मावति जो पाताल वासी देव है, वह दूर करते है ।
यन्त्र नं० २१ षट् ल ल मध्ये, देवदत्त देय तद्वाह्य अष्टदल कृत्वा, प्रत्येक दल मध्ये द्वय २ ल देयं, एतद् यत्रा कृति।
एतद् यत्र हरिद्रात, लिखित्वा, शिलासंपुट अधोमुख कृत्वा स्थातव्य यत्र प्रभावेन् शत्रु मुख स्तभन भवति । इस यत्र को हल्दी से लिखकर शिला सपुट करके रखे तो शत्रु का मुख स्तभन होता है।
श्लो. नं. २१ विधि नं. २
यंत्र नं. २१
लू
ल
(ललल
नाम ललल
छ