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________________ ५१४ लघुविद्यानुवाद मन को आनन्द देने वाले ऐसे चित्र विचित्र पुष्पो से शोभित होती हुई और भक्तजनो ने भक्ति-भाव से समर्पित किया है नैवेद्य और सुन्दर २ वस्त्राभरण, राजपोशाक से सज्जित हे वरदान देने वाली पद्मावति देवी मेरी तुम रक्षा करो ॥१८॥ ___ [मन्त्र विधि नही है । काव्य नं. १७-१८ अस्य काव्यस्य हंशक्ति ग्लव्यं बीजं एकोन विशति क्षरै । मन्त्र :-ॐ ह्री श्री ऐं क्लीं झां प्रो प्रां कों पद्मावति रक्त रूपे नमः । अनेन मंत्रण सव्वा लाख १,२५,००० जाप्यं कृत्वा अष्टाग धूप, दीप नैवेद्य न । यन्त्र रचना . पद्मावति स्वरूप रक्त वर्ण चतुर्भुजा, पद्मासना, अकुश, त्रिशूल, पास, कमल, हस्ते देव्यापरि नवदल कमल कृत्वा, तत कमल परिदेव्यादलै. । ॐ ह्री श्री क्ली ऐ द्रा प्रो ह्र र लिखेत । अनेन मन्त्रण, ॐ ह्री श्री ऐ क्ली झाप्रो आ को पद्मावती रक्त रूपे नम वेष्टयेत तत् अग्ने होम कु ड कृत्वा दशास होम कुरू । इस यन्त्र को पद्मावती के आकार का बनाकर ऊपर नौ कमल दल बनावे। उसमे ॐ ह्री श्री क्ली ए द्रा प्रो ह्र र. लिखे। उपरि ॐ ह्री श्री ए क्ली झा प्रोप्रा को पद्मावति रक्त रूपे नम लिखे, फिर होम कु ड बनाव । होम कु ड चोकोन अगुल २५ उसका विस्तार अगुल १०० उसके मध्य मे योन्याकार कु ड अगुल ६४ विस्तार मध्य मे करे। लाल कनेर के फूल, गुग्गुल, घी, कपूर, सहित मिष्ठान, तिल ये सब मिला कर होम करे। जितना जाप मन्त्र का किया हो उसका दशास होम करना, तब देवता प्रसन्न होता है, और अपना भक्ष मागता है। हलवा, पूरी, २५ सेर, लड्डू ५ सेर, मेवा ५ सेर, खीर ४ सेर, इत्यादिक भक्ष दीजिये, तब पद्मावति प्रत्यक्ष होकर कहे कि वर मागो तब जो इच्छा हो देवो से वर माग लेना, कार्य सिद्ध होता है । पद्मावति देवी को छहो सिद्धान्त वाले अलग-२ नाम से पुकारते व पूजा करते है । ॐ ह्री श्री ए क्ली झा प्रो श्रा को पद्मावति रक्त रूपे नम इस मन्त्र का सवा लक्ष १२५०० जाप करे। अष्टाग धूप दीप नैवेद्य से करे । यन्त्र मे देवी की मूर्ति बनावे । क्षुद्रोपद्रवोगशोक हरगी दारिद्रय विद्राविणी व्यालव्याघ्रहरा फरणत्रयधरा देहप्रभा भास्वरा । पातालाधिपतिप्रिया प्रणयिनी चिन्तामणिः प्राणिनां श्रीमत्पार्श्व जिनेश शासन सरी पद्मावती देवता ॥१६॥
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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