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________________ लघुविद्यानुवाद ५२१ इस यन्त्र को भोज पत्र पर लिखकर सामने रखे, फिर ॐ ह्री श्री अर्ह नमः यह मत्र १२००० हजार विधि पूर्वक जाप्य कर दशास होम करे, तब मन सिद्ध होता है। सिद्ध होने के बाद मन्त्र का पीला ध्यान से करने स्तम्भन, अरूण वर्ण का ध्यान से वशीकरण, प्रवालवर्ण का ध्यान से क्षोभ, काला ध्यान करने से विद्वेषण होता है, चद्रमा के समान सफेद ध्यान करने से कर्मक्षय होता है। विधि नं. ३ श्लोक नं० २३ (२३) इस मत्र का एक सौ आठ बार जाप्य करे, नित्य ही त्रिकाल जपे, सर्वजन वश्य होय । इस श्लोक का पाठ करने से त्रिलोक मोहन होता है ।।२३।। प्रोत्फल्लत्कुन्दनादे कमलकुवलये मालतीमाल्यपूज्ये पादस्थे भूधरारणां कृतरणक्वरिणते रम्यझंकार रावे । गुंजत्कांचीकलापे पृथुलकटितटे तुच्छमध्यप्रदेशे हा हा हुंकारनादे ! कृतकर कमले ! रक्ष मां देवि पद्म ॥२४॥ (२४) विकसित होते हुये मोगरा के पुष्प ऊपर गुजायमान भ्रमर जैसे शब्द वाली, कमल और कुमुदनी से शोभायमान दिख रही है, मालती पुष्पो से पूजित, पर्वतो पर रहने वाली, जिनके चरण युगल शब्दायमान नुपूरो से सहित है, जिनकी कटी तट पर काची कलाप (कटी सूत्र) शब्दायमान कर रहा है, तुच्छ मध्य प्रदेश वाली, हा हा हु कार शब्द करने वाली, हाथ मे कमल पुष्प को धारण करने वाली, हे पद्मावति देवि मेरी रक्षा करो॥२४॥ श्लोक नं. २४ विधि नं. २ देवदत्तभितो, वलयं देयं, वलयमध्येषोडशस्वरं देयं, तद्वाह्य षटकोणाकृतिकृतव्यं तन्मध्ये क्रमशः ॐ जूं सः प्रां कों ह्र लिखेत् तद्वाह्ये कोणेषु रः रः, सः सः लिखेत् तद्वाह्य मायाबीजं त्रीगुणवेष्टयं बाह्य, ॐ श्रां क्रों ह्रीं क्लीं ब्लू सः अमुकी वश्य मानय २ सवौषट् लिखेत् । एतद्यन्नं नागरबेलस्यपो अर्कदुग्धे अखरोटत्रणपोसित्वा, सहराइ योगेन लिखित्वा, दीपशिखायांदिनत्रयं दहति, तस्य रम्भा एवं वशंभवती ती अन्यस्त्रीस्य कि वार्ता, दृष्टप्रत्यक्ष । इस यन्त्र को नागरबेल के पत्ते पर पाक के दूध मे अखरोट ३ पीसकर साथ मे राइ भी मिलावे और यत्र इससे लिखकर दीप शिखा मे तीन दिन तक जलावे तो रम्भा भी वश मे होती है तो अन्य स्त्री की तो क्या बात ।
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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