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________________ ४६२ लघुविद्यानुवाद विधि .-यह चार अक्षर वाला मन्त्र अमावश्या तिथि शनिवार हो अथवा ग्रहण के दिन करे, पद्मासन लगाकर, रूद्राक्ष की माला से जाप्य करे तो साक्षात वैरियो अथवा गधे के दॉत की माला से तीन दिन मे दस हजार जाप्य करे तो वैरी कुटुम्ब सहित। दूसरी काली नामा देवि चामुडा सखी से सहित उसने मन्त्र रूप धारण किया उस कहते है। ॐ ह्रीं काली भ्रां, ॐ ह्री काली भ्रीं, ॐ ह्री काली भ्रू, ॐ ह्री काली भ्रः यह चार अक्षर का मन्त्र है। विधि -एक महिने तक केशो की माला बनाकर स्मरण करे तो दैत्य प्रसन्न होते है, अर्द्ध रात्रि २१ बार स्मरण करने से साक्षात स्वप्न मे दर्शन देते है। तीसरी कराली नामा देवि नित्या नदी सखी से सहित इन्होने मन्त्र के रूप को व ९ किया है उस मन्त्र को कहते है। ॐ ह्री कराली ह्रां ॐ ह्रीं कराली ही ॐ ह्री कराली ह. ॐ ।। कराली ह्रः। -इस मन्त्र को तीन दिन की रात्रि मे २१ हजार मूगा की माला से, पद्मासन लाकर निश्चल ध्यान करे तो कगली नाम की देवी सरस्वती का रूप धारण कर साधक के मुह मे प्रवेश करे, उसको वाग्वादिनि सिद्धि हो जाती है। चंचत्कांची कलापे, स्तनतन विलुठत्तार, हारावलोके ।। प्रोत्फुल्ल पारिजात, द्रमकुसुममहा, मंजरी पूज्यपादे ॥ ह्रां ह्रीं क्ली ब्लू समेते, भुवनवशकरी, क्षोभिणी द्रावणी त्वं ॥ श्रां ई ॐ पद्महस्ते, कुरु कुरु घटने, रक्ष मां देवि पद्म ॥५॥ व्याख्या -रक्ष पालय क मा स्तुतिकर्तार, कीदशे । चचत्काचीकलापे, चचत् देदीप्यमानः काच्या कलाप काची कलापो मेखला यस्या सा तस्या सवोधन । चचत्काचीकलापे । पुनरोप कीदृशे, स्तनतनविलुठत्तारहारावलीके स्तनतने विलुठति तारा समुज्ज्वला हारावली मुक्तावती पक्तिर्यस्यासा तस्या सबोधन, स्तनतन० हारावलीके । पुनरपि कीदृशे । प्रोत्फुल्लपारिजातः द्रुमकुसुम महामजरी पूज्यपादे | प्रोत्फुल्लद्भि विकसद्भि पारिजात-द्रमाणा देवतरुणा व परिजात नामधेयकल्पवृक्षाणा कुसुमै पुष्पैरूपलक्षिताभि महामजरीभि पूज्या
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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