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________________ ५२६ लघुविद्यानुवाद मात ! पद्मिनी ! पद्मरागरुचिरे ! पद्मप्रसूनानने ! पद्म ! पद्मवन स्थिते ! परिलसत्पद्माक्षि ! पद्मानने । पद्ममोदिनि ! पद्मकान्ति वरदे ! पद्म प्रसूनाचिते ! पद्मोल्लासिनि ! पद्म नाभि निलये ! पद्मावती पहिमाम् ||२८|| (२८) हे पद्मिनी, हे कमल जैसे सुन्दर वर्ण वाली, हे कमल के समान मुख वाली, हे पद्मा, हे कमल के वन मे रहने वाली कमल के समान सुशोभित नेत्र वाली, कमल के समान काति वाली, भक्तो को वरदान देने वाली, भक्तजनो ने भक्ति से पूजन किया है कमल के फूलों से, कमल के समान उल्लास वाली, आपका नाभि कमल, कमल के समान है ऐसी है पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो ||२८|| विधि नं. २ श्लोक नं. २८ (२८) इस श्लोक के द्वारा माता जी का कमलो से सेवा करे तो देवी का कमल रूप दर्शन होता है ||२८|| या देवी त्रिपुरा पुरत्रयगता शीघ्रासि शीघ्रप्रदा या देवी समया समस्तभुवने संगीयता कामदा | तारा मान विर्मादनी भगवती देवी च पद्मावती तास्ता सर्वगताः स्तमेव नियतं मायेति तुभ्य नमः ||२६|| ( २ ) त्रिपुर मे रहने से त्रिपुरा, शीघ्र ही साधक को वरदान देने से शीघ्रप्रदा, आपको समया नाम से भी पुकारते हैं, साधको को इच्छित वरदान देने वाली होने से कामदा कहते है, दुष्टो के मान मर्दन करने वाली होने से तारा कहते है । हे भगवती श्राप समस्त वैभव सहित हो, सारे संसार मे प्रसिद्ध हो, तुम हो माया स्वरूप हो इसलिये श्रापको मेरा नमस्कार है ||२६|| त्र ुटयत् श्रृंखल बन्धनं बहुविधैः पाशश्च यन्मोचनं स्तम्भे शत्रु, जलाग्नि दारुण महीनागारिनाशे भयम् । दारिद्रय ग्रह रोग शोक शमनं सौभाग्य लक्ष्मीप्रदं ये भक्त्या भुवि संस्मरन्ति मनुजास्ते देवि ! नामग्रहम् ||३०|| (३०) इस जगत मे तुम्हारी जो कोई भक्ति करता है, ग्रापका स्मरण करता है, उसका तुम मनोवांछित पूरा करती हो, तुम्हारे स्मरण मात्र से ही बंधन टूट जाते है, कैसी भी श्रापत्ति मे
SR No.009991
Book TitleLaghu Vidhyanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj, Vijaymati Aryika
PublisherShantikumar Gangwal
Publication Year
Total Pages774
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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